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  بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ محمدي ښوونځى د پېغمبراکرم (ص) د  ويناوو، موعظو، ليکونو، سپارښتنو، سنتونو … پښتو ټولګه څېړنه : اجرالدين اقبال د (( ديني ملي)) خوځښت پلويانو ته، چې د راتپل شويو خوځښتونو له پايلو ستړي ستومانه شوي او روڼ سباوون ته سترګې پر لار دي.           لړليک د […]

 

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

محمدي ښوونځى

د پېغمبراکرم (ص) د  ويناوو، موعظو، ليکونو، سپارښتنو، سنتونو … پښتو ټولګه

څېړنه :

اجرالدين اقبال

د (( ديني ملي)) خوځښت پلويانو ته،

چې د راتپل شويو خوځښتونو له پايلو ستړي ستومانه شوي

او روڼ سباوون ته سترګې پر لار دي.

 

 

 

 

 

لړليک

د اسلامي نړۍ حديثي ټولګې.. 42

(الف) د اهل سنتو د احاديثوغوره کتابونه : 42

د”امام بخاري” لنډه پېژندنه. 42

“صحيح مسلم”. 43

د”امام مسلم” لنډه پېژندنه. 44

“جامع ترمذي”. 44

د”امام ترمذي” لنډه پېژندنه. 45

“سنن ابوداود”. 45

د امام “ابوداود” لنډه پېژندنه. 46

“سنن نسائي”. 46

د”امام نسائي” لنډه پېژندنه. 47

“سنن ابن ماجه”. 48

د”امام ابن ماجه” لنډه پېژندنه. 48

“سنن دارمي”. 49

“الموطا”. 49

“دامام احمد بن حنبل مسند”. 49

د “اماميه شيعه وو” د احاديثوغوره  کتابونه. 50

“اصول کافي”. 50

د”شيخ  کليني” لنډه پېژندنه. 50

د شيخ صدوق لنډه پېژندنه. 51

“تهذيب الاحکام”. 51

د شيخ طوسي لنډه پېژندنه. 51

“استبصار”. 52

“بحارالانوار”. 52

د شيخ مجلسي لنډه پېژندنه. 52

“وافي”. 53

د ملامحسن فيض کاشاني لنډه پېژندنه. 53

“وسايل الشيعه”. 53

د حرعاملي لنډه پېژندنه. 54

بسم الله… 55

خويونه. 55

بدخویه. 55

ناوړه وګړي.. 55

بخيل. 56

کشران او مشران.. 57

الهي لارښوونې.. 57

ټلوالي.. 57

الهي تقوا 57

ځورول. 58

هديره 58

ګهيځ.. 58

حرص…. 58

نېکمرغه. 59

کار. 59

ښه چلن.. 60

نېک چارى زوى.. 61

لاس… 61

قناعت.. 62

توکل. 62

ټوکې.. 62

سخي.. 63

ورین تندی.. 63

ملګري.. 63

لیده کاته. 64

پاکوالى.. 64

استغفار. 64

عاجزي.. 64

نسپالي.. 65

پلور پېر. 65

د خدای وېره 65

ښکلا.. 65

زغمناک… 66

ریا 66

ښه بوی.. 67

سوداګر. 67

اسراف… 68

یووالی.. 69

راز ساتنه. 69

حق.. 69

شهید. 70

امن او روغتیا 70

امین.. 71

غوره وګړي.. 71

لاروی.. 72

ډار اچول. 72

زړښت.. 72

عزت.. 73

پاسوالي.. 75

ځاني غوښتنې.. 75

ناپوهي.. 76

نشتمني.. 76

ایمان.. 77

ناشکري.. 78

ځوان.. 78

ناوړه چارې.. 78

د پت دفاع.. 78

خوار او ذلیل. 79

نوم بدي.. 79

سفر. 79

په سفر کى د نورو حق ته پاملرنه. 80

له څارویو سره نېکي.. 80

رښتین.. 81

دښمن.. 83

بېځایه رټنه. 83

خپلمنځي جوړجاړى.. 83

روغتيايي احاديث.. 84

مسواک… 85

سلام  اچول. 87

د ګاونډي حق.. 89

اولاد. 90

اخر وخت او قیامت.. 92

د جمعې د ورځې خطبه. 94

شمع. 94

اذان.. 94

بډې.. 95

وصیت.. 95

انګېرنې.. 95

لارښود. 95

جهاد. 95

قریش… 96

واکمني.. 97

کرنه. 97

د کهف سورت.. 98

لوڼې.. 99

د اسلامي ټولنې د وګړيوخپلمنځي اړيکې.. 99

عیال. 100

د غونډې آداب.. 100

شعر. 101

پرنجى او پړمخکۍ.. 102

ځان سینګارول. 102

نامحرمو ته کتل. 103

د ايمان نښې.. 103

وفا 104

الهي تقدير. 104

اړتیا پټه ساتل. 104

ساتېري.. 105

متقي شتمن.. 105

نفقه. 105

سخي او بخیل. 105

سخاوت.. 106

بدګوماني.. 107

دروغ.. 108

قیامت.. 111

منځلاري.. 113

الفت او مينه. 114

امانت.. 115

امت.. 117

اسلامي مذاهب.. 118

لاروي.. 120

عاجزي او تواضع. 121

کنځل کول. 121

غيبت.. 123

غيرت.. 126

فتوا 127

کنځلې.. 128

فراغت.. 129

هېر. 130

پرښتې.. 131

خواړه 131

مسافر. 134

غصب.. 134

غفلت.. 135

غنيمت ګنل. 136

عورت (ستر). 138

عيب.. 139

عطر. 143

عفت.. 143

عقل. 144

د خير غوښتنه. 146

تمه. 146

عاقبت.. 147

عبادت او بنده 147

عُجب ( وياړنه). 150

عدالت.. 151

عذاب.. 152

عذاب ژغورنه. 154

طلاق.. 154

زړه سوى.. 156

صلوات.. 158

سوله. 160

صدقه. 161

د مؤمن پاڼه. 163

زغم او صبر. 164

ګهېځ.. 167

شيطان.. 168

شهوت.. 170

شهادت.. 170

شوخي.. 171

پېژندنه. 171

توره 173

ښکار. 173

شکر او مننه. 173

سپارښتنه (شفاعت). 174

مياشتې.. 176

وينځل. 177

شريک او برخوال. 177

شرک… 178

شرافت.. 179

شراب.. 179

شرابخور. 181

مړانه او شجاعت.. 181

بيړه 181

ورته والى = يو شان والى.. 182

شبهات.. 183

شاهدي ورکول. 183

خوشحالول. 184

خوړل. 185

د مؤمن خوشحالول. 186

سخت زړي.. 186

نښې.. 187

د فيزيولوژيکي انګېزو په اړه احاديث.. 191

د بشري نوعي د پايښت په اړه احاديث.. 192

مور. 193

د اروايي او روحي انګېزو په اړه احاديث.. 194

د سيالۍ د انګېزې په اړه 195

د مالکيت انګېزه 196

د انګېزې او عاطفې تر منځ اړيکه. 197

د انګېزو تر منځ  شخړه 197

د انګېزو کابو کول. 200

د غريزې بې لاري.. 208

مينه. 210

(الف) له خداى تعالى سره مينه. 210

( ب ) له پېغمبر اکرم سره مينه. 211

( ج) له خلکو سره مينه. 211

( د) د  خداى له پنځوليو سره مينه. 215

( ه) له اولاد سره مينه. 215

( و ) جنسي مينه. 217

( ز) له شتمنۍ سره مينه. 217

کينه. 218

آخرت گروهنه. 218

حيا 219

پر عواطفو برلاسي.. 223

پر کبر برلاسي.. 223

غم او پر خپګان برلاسي.. 224

د غم پرمهال دعا 227

دغم له منځه وړونکی.. 229

حسي ادارک… 229

له حس اخوا ادراک… 229

فکر کول. 232

بنسټګر. 234

د فکر کولو تېروتنې.. 235

زده کړه 237

د يادولو لارې چارې.. 240

تقليد او لاروي.. 240

ازمېښت او تېروتنه. 241

شرطي سازي Conditioning.. 242

اندنه او فکر کولوته هڅونه. 242

دزده کړې اصول. 243

بدله ورکول. 249

په زماني واټن کې زده کړه 250

تکرار. 250

رغنده سيالي.. 251

په پوښتنې د پام راړول. 252

په مثال او تشبيه د پام رااړول. 253

انځورول. 255

امبريالوژي (جنين پوهنه). 257

کوچني.. 259

د خوړو اداب.. 259

ځوان ته د پېغمبراکرم نصيحت.. 260

شخصيت.. 260

د مېرمنې د ټاکنې غوره کچه. 262

دوستي.. 262

زړه 263

بنيادم. 265

ځان ساتنه. 266

اروايي روغتيا 266

کرهڼه. 268

ورهڼه. 268

ډاډمني او روغتيا 269

ځواک… 270

اروايي درمل. 271

د اولاد روزنه او درناوى يې.. 276

لوڼې.. 285

د جګړې د بنديانو ملاتړ. 287

ښځه. 288

د ښځمنوملاتړ. 290

له دوه ځانو(اميندوارو) ښځوملاتړ. 293

واده، سم کوروالى او د اولاد پر زوکړه اغېزمن لاملونه. 297

ايمان.. 303

له ظالم سره مرسته. 305

وفا 305

الهی تقدیر. 305

تر مړينې وروسته ژوند. 305

دوه مخي.. 306

اسانخوښی – راحت طلبي.. 309

یقین او زهد. 309

مسکین.. 309

احسان.. 310

غوره کړنې.. 311

ناوړه کړنې.. 311

خپلمنځي اړیکې.. 313

تله. 313

ډار. 314

تسبيح.. 314

تسليت.. 315

په جنازه کې ګډون.. 315

د عقايدو څارنه. 316

تقيه. 316

کبر. 317

تکلف… 318

تکليف… 318

کنجوسي.. 318

يوازېتوب.. 320

غښتليتوب.. 320

توبه. 322

توفيق.. 323

د نورو سپکاوى.. 323

تور. 324

ثواب.. 324

کوډګر. 325

جبر او اختيار. 325

ټولى.. 326

غوړه مالي.. 327

د سترګو وهل ( نظرېدل ). 327

حج.. 328

حجامت.. 328

حد او پولې.. 329

حرام اوحلال. 329

حساب.. 331

حسرت.. 331

حق اوحقيقت.. 332

حقوق.. 333

شفاعت.. 333

د مؤمن حقوق.. 333

پر مسلمان د مسلمان حقوق.. 334

حکمت.. 335

حماقت.. 337

څاروي.. 337

کورنۍ.. 338

خبر. 339

خداى.. 340

زړه وژونکي.. 340

تاوتريخوالى.. 340

خوشحالي.. 341

ژغورنه. 342

خندا 344

خوب.. 345

خواري.. 347

غوښتل. 347

نېکي.. 348

خواړه 350

لمر. 352

خطاطي.. 352

په ژوند کې بسياېنه. 353

خپلوان.. 353

خياطي – ګنډل. 354

خيانت.. 354

خير. 357

شتمني.. 358

درمل. 360

پوهه. 360

ښوونکى.. 366

د عالم مړينه. 367

عالمان.. 367

ورمندون- قضاوت ( منځګړتوب). 367

نېک… 368

وصيت.. 369

اودس… 369

واکمني.. 370

وليمه. 370

هجرت.. 371

ډالۍ.. 371

ګاونډى.. 372

د شرافت لامل. 372

د ورکاوي لاملونه. 372

د خداى ياد. 373

د مرګ ياد. 374

مرسته. 375

پلارمړى (يتيم). 376

يقين.. 377

د خداى وحدانيت (توحيد). 379

يهود. 379

ډوډۍ.. 380

نبوت.. 380

نجوا ( پسپسکې). 381

نرمي.. 381

نږدېوالى.. 383

نصيحت او خيرغوښتنه. 383

نعمت.. 384

ښېرا 385

لمونځ.. 385

د شپې لمونځ.. 388

اوبه. 390

نهيلي.. 390

اړتيا 391

نيت.. 391

چل. 392

مېلمه. 393

ورکاوى.. 394

بېوسي.. 395

نوک… 395

ناپوهه. 396

نفلونه. 396

نوم. 397

لیک… 397

مړه خوا 398

وېښته. 398

مؤمن.. 399

لورنه. 403

مهر. 404

مسئووليت.. 404

نشه يي توکي.. 405

جومات.. 405

مسلمان.. 406

سلامشوره 407

مصيبت ( کړاو ). 408

معاشرت.. 411

مينه. 411

ستاېنه. 413

سړيتوب او انسانيت.. 414

خلک… 415

مړينه. 417

پراخي.. 418

ګومان.. 419

بې لاري.. 419

ګناه. 420

غوږ. 423

غوښه. 424

ګوښه کېناستل. 425

ځېل. 425

لعنت.. 425

لواط.. 426

زنا – بدلمني.. 427

نبوي کورنۍ.. 428

امام مهدي عليه السلام. 447

حضرت فاطمه الزهرا 447

حسنين.. 451

د امت غوره مېرمن.. 453

له حضرت علي سره مينه. 453

اصحاب.. 454

ماعون.. 455

مبارزه 456

شخړه 456

مجازات.. 457

غونډې.. 457

پور. 459

قسم. 460

غچ ،کسات.. 460

قضاوقدر. 461

قوم. 461

غښتلتيا 462

غوسه کول. 462

نېکچاري.. 468

کورنۍ ته هڅاند. 470

د نن کار سبا ته پرېښوول. 471

وژنه. 472

کعبه. 473

کفر او کفران.. 474

کمال. 475

ډنډۍ وهل. 475

ژړا 477

قرآن.. 479

قدر او منزلت.. 483

سوکړه- قحطي.. 484

قبر. 484

فقه او فقهاء. 486

فضيلت اوغورواى.. 487

فقر او نيستي.. 488

ځانمني.. 490

ملاماتوونکي لاملونه. 491

بلنه. 491

تېراېستنه. 492

دنيا 493

ملګرى.. 494

دوستي.. 494

له قحطۍ د ژغورنې لاملونه. 495

ليده كاته او زيارت.. 495

دينار او درهم ( پيسې). 496

دين.. 497

رښتيا 498

ربا 498

د رجب مياشت.. 499

د روژې مياشت.. 500

روژه 501

غازي.. 506

رسوايي.. 506

د مسلمانانو چارو ته پاملرنه. 507

بډې.. 507

رنګونه. 507

ورځې.. 508

روزي.. 509

غوړي.. 510

د خوب ليدل. 510

څوكۍ او مقام. 511

ريا او د ځان مشهورول. 512

ژبه. 515

زكات.. 519

د چا لمونځ نه قبلېږي.. 521

ځمكه. 521

تېرى– ظلم. 522

سپارښتنې.. 523

له اسلامه وتلي.. 524

ښېرا 524

مظلوم. 524

ښكلا.. 526

ځيركي.. 526

جګړه مار. 527

خداى ته سجده كول. 527

ګهيځ پاڅېدل. 528

خبرې او حديث.. 528

د خداى پرتم. 530

پړه 530

لوبې.. 531

مولا  او مشر. 532

د اوبو وركړه 532

چوپتيا 532

د واکمن ماڼۍ.. 535

ملعون.. 535

پت.. 535

اور. 536

داسې وخت به راشي.. 536

ملګرتوب.. 539

هيله. 539

ازار. 541

ازمېښت.. 541

بلا.. 541

خداى چې له بنده خوښ شي.. 543

د بدمرغۍ نښې.. 544

آفتونه. 544

پيدايښت.. 544

ښوونه. 545

مزدوري.. 546

ځانګړې اجازه 546

احتکار. 547

اخلاص…. 548

ښه خوى.. 549

ادب.. 551

ميراث.. 552

اسلام او د مسلمانانوحقوق.. 552

د خوړو ورکړه 554

مشري او چارواکي.. 555

پرنېکيو امر و له بديومنع. 556

امنيت.. 558

نهيلى.. 559

انتظار. 559

زغم. 559

پند. 559

فکر. 560

انفاق او لګښت.. 561

اولياء الله… 561

ايمان.. 562

بازار. 565

سوداګري.. 566

بښنه. 567

بدمرغي او نېکمرغي.. 569

بدعت.. 571

شر او بدي.. 573

برابري.. 573

د رسول اکرم ورور. 574

برکت.. 574

کينه او دښمني.. 575

بنده او بندګي.. 579

جنت او دوزخ.. 581

خپلسري.. 588

ناروغ او پوښتنه يې.. 588

بدله او اجر. 591

تقوى او پرهېزګاري.. 592

پاکي.. 594

مور و پلار. 594

پوښتنه. 600

طبابت.. 601

پستي.. 601

پښېماني.. 602

جامې.. 603

پېغمبران.. 604

تړون،ژمنه او وعده 605

بريا 606

سپکاوى.. 606

مجاهد فقيه. 609

علي (ک) ته د پېغمبراکرم سپارښتنې.. 610

حكمتونه. 620

د حلم آثار او څانګې.. 621

د علم څانګې.. 621

د ودې څانګې.. 622

د عفاف څانګې.. 622

د مړه خواينې يا  ځان ساتنې څانګې.. 622

د حيا څانګې.. 622

د وقار څانګې.. 623

پر خير د ټينګار څانګې.. 623

له شره د كركې څانګې.. 623

د ناصحانو د لاروۍ څانګې.. 624

د ناپوهه نښې.. 624

د اسلام نښې.. 625

ايمان  نښې.. 625

د علم نښې.. 625

د رښتين نښې.. 626

د مؤمن نښې.. 626

د پراخې سينې خاوند نښې.. 626

د توبه ګار نښې.. 626

د شكر كوونكي نښې.. 626

د خاشع نښـې.. 627

د صالح نښې.. 627

د ناصح نښې.. 627

د يقين لرونکي نښې.. 627

د مخلص نښې.. 628

د زاهد نښې.. 628

د نېک انسان نښې.. 628

د تقوا لرونکي نښې.. 628

د متکلف نښې.. 629

د ظالم نښې.. 629

د رياکار نښې.. 629

د منافق نښې.. 629

د کينه کښ نښې.. 630

د اسراف کوونکي نښې.. 630

د غافل نښې.. 630

د لټ نښې.. 630

د دروغجن نښې.. 631

د فاسق نښې.. 631

د خاين نښې.. 631

د يمن د والي کولو پر مهال. 634

حضرت معاذ بن جبل ته د پېغمبر اکرم (ص)  سپارښتنې.. 634

د پېغمبر اکرم (ص) غوره ويناوې.. 635

پوهه،ناپوهي او عقل. 637

د پېغمبر اکرم (ص) موعظې.. 639

بختور. 640

په حجة الوداع كې د پېغمبر اکرم (ص)  خطبه. 641

د پېغمبر اکرم (ص)  لنډې خبرې.. 645

لس ډلې.. 674

عادلانه چلن.. 675

د بدچاريو پايلې.. 676

توبه ګار. 677

د ګناه جبرانول. 677

تر ټولو ناوړه انسان.. 678

منافق وپېژنئ.. 678

د امت سمونه. 679

ريا 679

فطري دين.. 680

د اولاد لاسنيوى.. 680

له کورنۍ سره غوره چلن.. 680

د ماشوم ژړا 681

بډې.. 681

له درې څيزونو وېره 681

حلاله روزي.. 681

ډېرښت.. 682

سفر. 682

نېک چاري.. 683

ګناهکار. 683

له مسلمان سره خيانت.. 683

رهبانيت منع دى.. 684

د مؤمن او کافر توپير. 684

د لمانځه ثواب.. 684

وړ  مشر. 685

د پېغمبر اکرم د لارښوونې او روزنې مثال. 685

د عالمانو ډولونه. 686

ګاونډ. 686

د جنتيانو د روح په څېر بدن.. 687

په سلو کې نهه نوي برخې عقل يې پېغمبر اکرم ته ورکړ. 687

زه د نېکو اخلاقو لپاره مبعوث شوى يم. 688

د صبر او ايمان تړاو. 688

رسول الله ته ورته انسان.. 688

حقيقي لارويان اوبې لاري.. 689

پینځه نبوي سنتونه. 689

له خلکو سره جوړجاړى.. 689

له فقيرانوسره مینه. 690

دعا 690

د پېغمبر اکرم دعا 692

د نويو جامو اغوستو پر مهال دعا 694

له مجلسه د پاڅېدو پرمهال دعا 695

جومات ته د ننووتو او وتو دعا 695

د ويدېدو پرمهال دعا 696

د دسترخوان دعا 696

د دسترخوان د برکت دعا 696

خوړو ته د لاس نږدې کولو د مهال دعا 697

د دسترخوان ټولولو پرمهال دعا 697

د خوړو او شيدو پر مهال دعا 697

د تازه ميوې د ليدو پرمهال دعا 698

تشناب ته د ننووتو دعا 698

د خداى ستاېنه. 699

له تشنابه د راوتوپر مهال دعا 699

له هديرې د تېرېدو پر مهال دعا 699

د قبر د زيارت دعا 699

د خوشحالۍ او خپګان پرمهال دپېغمبراکرم دعا 700

د خوښ څيز د ليدو پر مهال دعا 700

د سهار تر لمانځه وورسته دعا 700

په سجده کې دعا 701

له لمانځه د راستنېدو پر مهال دعا 701

په هر لمانځه پسې دعا 702

د نوي کال پرمهال د پېغمبر اکرم دعا 702

د شعبان پر پینځلسم (پينځلسي) د پېغمبر(ص) دعا 703

د شعبان پر پینځلسمه دپېغمبر(ص) بله دعا 704

د مياشتې د ليدو پر مهال دعا 706

د روژې د مياشتې د ليدو پرمهال دعا 706

٣٦٠ ځل ستاېنه او شکر. 707

د قرآن د حفظولو لپاره دعا 707

د دښمن له شره د امان لپاره دعا 708

په سهار کې دعا 708

د مياشتې د ليدوپرمهال دعا 709

د رجب د مياشتې د ليدو پرمهال دعا 709

د شعبان د مياشتې د ليدو پرمهال دعا 710

دمياشتى د ليدو پرمهال دعا 710

خداى ته پناه وړل. 710

محمدي دعا 711

د لارښوونې دعا 711

د برښنا،ورېځو او تالندې پر مهال دعا 712

د پېغمبر(ص) دعا 712

د بد خلقۍ آفتونه. 713

د يارانو خوشحالول. 713

د خوړو له زېرمولو ډډه کول. 713

د يو بل په ليدوخوشحالېدل. 713

يارانو ته سپارښتنه. 714

ست.. 714

له خلکو سره له شخړې ژغورل شوى و. 714

اوه ځانګړنې.. 714

فقيرانه ژوند. 715

فقيرانو ته زکات او صدقه. 715

زه خداى روزلى يم. 715

د هر څه بښنه. 715

شپږ ناوړه ځانګړنې.. 715

سرتېرو ته سپارښتنه. 716

څلور ګران کسان.. 716

له علي سره مينه ولره 717

د چا د  تېرايستو سوچ مه کوه 717

د وېښتانو د ږمنځولو ګټې.. 717

د برېتو کمول. 717

ښايسته بوي ثواب لري.. 718

د ځمکې ګواهي.. 718

د مخه ښې پر مهال دعا 718

د نفس د پاکوالي لامل. 719

د مؤمن نښه د پېغمبرانو سنت.. 719

د سپينوجامو سپارښتنه. 719

په جامه کې ساده ګي.. 719

څوک چې مې له سنته مخ واړوي؛له ما څخه نه دى.. 719

سپين چرګ يې ساتلى و. 720

د پېغمبراکرم د سترګو رڼا 720

غوره خلک… 720

تر ابراهيم هم غيرتي.. 720

درې حلالې لوبې.. 721

د لمانځه فرمان.. 721

اهل بيتو ته د خداى ځانګړي نعمتونه. 721

له خدایه شرم. 722

د ډوډۍ خوړلو ‏آداب.. 722

ډېرګرم خواړه 722

فالوده 722

د خوړو د لوښي برکت.. 723

د خوړو وخت.. 723

تواضع. 723

په هرې مړۍ پسې شکر. 724

سرکه. 724

د څارويو پښتورګي يې نه خوړل. 724

دخوړو پر مهال‏ يې پڼې اېستې.. 724

حلوا 725

‏سخته ناورغي.. 725

‏ دوه ګرایه ‏دي.)) (سنن النبي). 725

د جنابت غسل. 725

لمونځ.. 726

د ګناهونوکفاره. 727

په خپل لاس مرسته. 728

هغه آیت چې فضیلت یې تر زر آيتونو ډېر دی.. 728

سورة اعلى.. 728

د ښايست شکر. 729

جامې.. 729

د امام حسن اوحسين لپاره د پېغمبر(ص) تعويذ. 730

د شعبان مياشت.. 731

د خداى او د پېغمبر مياشت.. 731

غوره دعا 731

د پېغمبر(ص) شفقت.. 731

د فضيلت د بيان پرمهال د پېغمبراکرم ادب.. 732

د مؤمن ذکر. 732

د ساداتو د زيارت سنت.. 732

د پېغمبر(ص) د وجود رڼا 732

ړومبى مخلوق.. 733

په زړه پورې څېره 733

د خداى او پېغمبر ترمنځ يوه پرده 733

د خداى او پېغمبراکرم ټاکلى وخت.. 734

پېغمبراکرم ته د خداى ډالۍ.. 734

د پوهانو فضيلت.. 734

اسلام. 734

د پېغمبراکرم مناظره 735

له تېرو به لاروي وکړئ.. 742

د پېغمبر اکرم  ليکونه. 743

د ايران پاچا ته ليک… 743

“نجاشي” د حبشې  پاچا ته ليک… 744

په مدينه کې د پېغمبراکرم منشور. 744

د دين آفت.. 746

د ښېګڼو سرچينه. 747

امانت ساتنه. 747

چې نه کار هلته څه کار. 747

 

 

د څېړونکي خبرې

موږ ته د رسول الله صلى الله عليه و آله وسلم احاديث د سني او شيعه راويانو له لارې رارسېدلي دي،چې د راټولېدو، کره کتنې او په بېلابېلو ټولګو کې يې راټولول يو ارزښتمن “ديني-تاريخ” چار دى او د ديني او پوهنتوني زده کړيالانو د فرهنګي کچې د لوړولو لپاره ددې څېړنې راټول شوي مطالب تر يوه بريده د اسلامي مذاهبو ترمنځ د “حديث” په اړه تفاهم او يو خوله توب راښيي،په دې هيله،چې تر دې وروسته نوى کهول په ډاډمنه توګه د اسلامي مذاهبو له روايتونو ګټنه وکړي او خپله علمي تنده پرې ماته  کړي او د پرديو د فرهنګي يرغل پر وړاندې له ديني غښتلي فرهنګي ملاتړه برخمن شي .

 

په درنښت ورور مو؛

اجرالدين اقبال

١٣٨٨ل د جدي شپږمه

د ١٤٣١ س  د محرم الحرام لسمه

 

 

                             

بسم الله الرحمن الرحيم

 

د اسلامي نړۍ حديثي ټولګې

(الف) د اهل سنتو د احاديثوغوره کتابونه :

١- “صحيح بخاري”:

ددې کتاب مؤلف “محمدبن اسماعيل بخاري” (رحمة الله عليه) دى، چې د اهل سنتو معتبر حديثي کتاب دى .”امام بخاري” دا کتاب په شپاړسوکلو کې تاليف کړى،چې اوه  زره پینځه سوه دري شپېته (٧٥٦٣) احاديث لري .

 

د”امام بخاري” لنډه پېژندنه

“محمدبن اسماعيل بن مغيره بن احنف جعفي”،چې په “امام بخاري” مشهور دى،کنيه يې “ابوعبدالله” دى او د”شوال” پر اولسم ١٩٤ س زېږېدلى دى .

د “امام بخاري” د احاديثو کتاب په “صحيح بخاري” مشهور دى او د اهل سنتو له “صحاح سته وو” ځنې دى،چې ورته تر قرآن وروسته صحيح کتاب  ويل کېږي .

 “امام بخاري” خپل کتاب ته د “الجامع الصحيح المسند من حديث رسول الله وسننه وايامه” نوم  غوره کړى؛خو په خلکو کې په “صحيح بخاري” مشهور دى . 

د”امام بخاري” کتاب اوه زره پینځه سوه دري شپيته ( ٧٥٦٣) حديثونه  لري،بې تکراره پکې دوه زره شپږسوه دوه ( ٢٦٠٢) ا حاديث دي،چې له شپږسوو زرو ( ٦٠٠٠٠٠)  احاديثو يې را اېستي دي .

“امام بخاري” ډېر شاګردان درلودل؛لکه “مسلم بن حجاج” د”صحيح مسلم”  خاوند،”ابوعبدالرحمان النسائي” ‎‎ د”سنن نسائي” خاوند، “ابوعيسى ترمذي” د “سنن ترمذي” خاوند،”ابن قتيبه”،”ابوزرعه الرازي”،”ابوحاتم الرازيان”  او نور….

د “امام بخاري” نورو آثارو؛لکه “الادب المفرد” ، “الاسماو الکني”، “تاريخ صغير”،”تاريخ اوسط”،”تاريخ کبير”،”ثلاثيات بخاري” او”السنن” ته   اشاره کړاى شو.

“امام بخاري” د کمکي اختر پر شپه پر ٢٥٦س “سمر قند” ته نږدې د”خرتنګ” په کلي کې وفات شو.

 

“صحيح مسلم”

  ددې کتاب مؤلف “مسلم بن حجاج نيشابوري” (رحمة الله عليه) دى،چې اهل سنتو ته  تر “صحيح بخاري” وروسته معتبر کتاب دى،چې د دولس زرو(١٢٠٠٠) احاديثو ټولګه ده .

 

د”امام مسلم” لنډه پېژندنه

“مسلم بن حجاج بن مسلم القشيري نيشابوري” (رحمة الله عليه) پر ٢٠٤س په “نيشابور”کې وزيږېد،کنيه  يې “ابوالحسن” او لقب يې “امام الحافظ” و . د امام مسلم له آثارو مشهور کتاب “صحيح مسلم” دى، چې تر”صحيح بخاري” وروسته د اهل سنتو په “صحاح سته وو” کې معتبر کتاب ګڼل کېږي .

“امام مسلم” خپل کتاب ،چې دولس زره (١٢٠٠٠) احاديث لري، د پینځه ويشت کلوپه موده کې وليکه .

 د کتاب ځانګړنې يې دادي : ښه اوډون شوی او بې له نېمګړتيا او زياتوالي لنډ شوي او احاديث يې په څلورو واسطو له “رسول الله” روايت کړي دي او د راويانوله پلوه احاديث يې د ډاډ وړ دي . 

د “مسلم” نورو آثارو؛لکه “المسندالکبير” ، “الجامع” ، “الکني والاسماء”، “اوهام المحدثين” او”طبقات التابعين” ته  اشاره کړاى شو .

“مسلم بن حجاج” پر ٢٦١س  د “رجب” پر پینځه ويشتمه په “نيشابور”کې وفات شو.

 

“جامع ترمذي”

چې په”صحيح ياسنن ترمذي” مشهور دى . ددې کتاب مؤلف “محمدبن عيسى ترمذي” دى،چې له علماوو او فقهاوو يې پکې د احکامو اوغېر احکامو احاديث راغونډکړي دي .  

        

د”امام ترمذي” لنډه پېژندنه

نوم يې “محمدبن عيسى بن سوره بن موسى السلمي الترمذي” دى،چې په ٢٠٩س کې په “ترمذ” کې زېږېدلى.  

 “ترمذي”،چې په کومه پېړۍ کې ژوند کاوه،د احاديثو د علم د پرمختګ پېړۍ وه،چې په پايله کې “ترمذي” له ډېرو پوهانو د حديث علم زده کړ او له هغو يې روايتونه وکړل،چې د “امام بخاري” شاګردي يې هم  کړې ده او له “بخاري” او”مسلم بن حجاج” دواړو يې احاديث روايت کړي دي .

د “ترمذي” له آثارو : د”الجامع الکبير” کتاب دى،چې په “صحيح ترمذي” يا”سنن ترمذي”مشهور دى او نور کتابونه يې”الشمائل النبويه”،”التاريخ”او”العلل”دي .

“ترمذي” د عمر په پاى کې پر سترګو ړوند شو او پر ٢٧٩س  په “ترمذ” کې ومړ .

 

“سنن ابوداود”

مؤلف يې “سليمان بن اشعث” دى،چې پر “ابوداودسجستاني” مشهور دى،دا کتاب څلورزره اته سوه ( ٤٨٠٠) احاديث لري،چې ډېرى يې فقهي دي . 

 

د امام “ابوداود” لنډه پېژندنه

نوم يې “سليمان بن اشعث بن اسحاق بن بشير بن شداد بن عمران السجستاني الازدى” دى،چې په اصل کې د”سيستان” دى او پر ٢٠٢ س کې زېږېدلى دى . “ابوداود” په احاديثو کې د خپلې زمانې له مخکښانو و، چې “ابوعبدالله نسائي” [ د سنن نسائي ليکوال ]  او ډېرو ترې  روايتونه کړي دي .

د “ابوداود” له  آثارو د احاديثو کتاب دى،چې په “سنن ابي داود”مشهور دى،چې د اهل سنتوله “صحاح سته و” دى .

“ابوداود” په خپل  کتاب کې څلورزره اته سوه ( ٤٨٠٠) احاديث راټول کړي،چې له پينځو سوو زرو( ٥٠٠٠٠٠) احاديثو يې چوڼلي او هغه احاديث يې راوړي،چې فقهاوو پرې استدلال کړى او فقهي احکام پرې ولاړ  دي . د “ابوداود” له نورو آثارو “المراسيل” او”کتاب الزهد” ته اشاره کړاى شو . “ابوداود” پر ٢٧٥س  په “بصره” کې وفات شو.

 

“سنن نسائي”

مؤلف يې “ابوعبدالرحمان احمدبن علي بن شعيب نسائي” دى،چې د احاديثوله پلوه د”سنن ابي داود”او”صحيح ترمذي” سره ډېر نږدې دى .                   

 

د”امام نسائي” لنډه پېژندنه

نوم يې “احمدبن علي بن شعيب” او  په “شيخ الاسلام” مشهور دى، کنيه يې  “ابوعبدالرحمان” دى اوپر ٢٢٥ س د “خراسان” په “نسا” کې پيداشوى بيا “مصر” ته تللى او هلته اوسېدلى او په فقه او حديث کې د زمانې  له مخکښانو و.

ويل شوي چې : (( د”دمشق” پر لور په سفرکې “نسائي”  د حضرت “علي” (ک) او “معاويه” بن ابي سفيان په هکله وپوښتل شول،هغه حضرت “علي” (ک)  پر”معاويه” بن ابي سفيان غوره وباله،چې په پايله کې معتصبينو  له جوماته دباندې  وغورځاوه او له دمشقه ووت .))

د “نسائي” له آثارو د هغه د احاديثو کتاب دى،چې په “سنن نسائي” مشهورشوى او “المجتبى” هم ورته  وايي . 

د “نسائي” له نورو آثارو “خصائص اميرالمؤمنين علي” ، “مسندعلي”،”مسند مالک” ، “الضعفاء” او”المترکين” ته اشاره کړاى شو .

“نسائي” د خپل عمرپه پاى کې مکې ته ولاړ او پر ٣٠٣س  هملته ومړ.    

 

 

“سنن ابن ماجه”

مؤلف يې “محمد بن يزيد بن ماجه قزويني” دى،چې احاديث يې د فقهي مسائلو پر بنسټ اوډون شوي او څلور زره درې سوه يوڅلوېښت (٤٣٤١) احاديث لري .

 

د”امام ابن ماجه” لنډه پېژندنه

نوم يې “ابوعبدالله محمد بن يزيد ماجه قزويني” دى،چې پر ٢٠٩س  د “ايران” په “قزوين” کې زېږېدلى دى .

د “ابن ماجه” له آثارو ځنې د احاديثو مشهور کتاب “سنن ابن ماجه” دى، چې د اهل سنتوله “صحاح سته وو” څخه دى

 کتاب يې په “فقه” کې د اوډون له پلوه غښتلى دى او کوم احاديث يې، چې راوړي،د فقهي مسائلو له مخې يې ترتيب کړي او تکراري حديث پکې نه  ليدل کېږي او له نوروځانګړنو يې  ښه ترتيب اوباب بندي  ده .

“ابن ماجه” په خپل کتاب کې څلور زره درې سوه يوڅلوېښت ( ٤٣٤١)  حديثونه  نقل کړي،چې درې زره دوه ( ٣٠٠٢)  حديث يې په نورو  “صحاحو”کې راغلي او يو زر درې سوه نهه دېرش (١٣٣٩)حديثونه  په نورو صحاحو کې نه دي راغلي .

د “ابن ماجه”  له نورو آثارو د “تفسيرالقرآن” او”تاريخ قزوين” نومونه يادولاى شو. “ابن ماجه” پر ٢٧٣ س  وفات شو.

 

“سنن دارمي”

مؤلف يې “عبدالله بن عبدالرحمان بن فضل بن بهرام بن عبدالصمد” دى، چې کتاب يې پر “الجامع الصحيح” مشهور دى .

“الموطا”

مؤلف يې “مالک بن انس بن مالک اصبحي حميري” دى،کنيه  يې “ابوعبدالله”  او د “اهل سنت او جماعت” له څلورو امامانو دى .”امام مالک” دا کتاب د عباسي خليفه؛”منصور”په غوښتنه ليکلى دى .

 

“دامام احمد بن حنبل مسند”

 مؤلف يې “ابوعبدالله احمدبن محمدبن حنبل شيباني” دى او د “اهل سنت او جماعت” له مخکښانو دى او په “مسند” کتاب کې يې دېرش زره احاديث دي .

 

 

 

د “اماميه شيعه وو” د احاديثوغوره  کتابونه

“اصول کافي”

د “محمد بن يعقوب کليني رازي” تاليف دى،چې د خپل عمر وروستي  شل کاله يې په “بغداد”کې تېر کړل اوهماغلته ومړ او دا کتاب يې په “بغداد” کې وليکه . هغه ړومبى امامي محدث دى،چې د ديني رواياتو په راټولولو،نظم ،ترتيب او تبويب يې پيل وکړ.

 کتاب يې تقريبا شپاړلس زره حديث لري،چې د”شيعه وو” معتبر حديثي کتاب ګڼل کېږي  او درې برخي لري : د “عقايدو اصول”،”فقهي احکام” او “خطبې او موعظې”،چې د”الروضة” په نامه يادېږي .

 

د”شيخ  کليني” لنډه پېژندنه

کليني د اماميه شيعه وو يو  فقهي شخصيت دى،چې د “ايران” په “رى” کې زېږېدلى  او ډېر عمر يې په “بغداد” کې تېر کړى او په “فقه” او”حديث” کې ترې آثار پاتې دي . 

٢-“من لايحضره الفقيه”:

 مؤلف يې “ابوجعفرمحمدبن علي بن بابويه قُمي” دى،چې په “شيخ صدوق” مشهور دى . دغه کتاب پينځه زره نهه سوه شل ( ٥٩٢٠) حديثونه  لري،چې د “محمد بن زکريا” د کتاب “من لايحضره الطبيب” په سياق يې ليکلى دى .

 

د شيخ صدوق لنډه پېژندنه

“شيخ صدوق” د شيعه مذهب له سترو پوهانو څخه دى ،چې پر٣٠٦س په قُم کې زېږېدلى او پر”شيخ صدوق” مشهور دى . په “رى” او “خراسان” کې ا وسېدلى او پر ٣٨١ س په “رۍ” کې وفات شو. په اسلامي علومو،تاريخ او شعر کې ترې تقريباً درې سوه (٣٠٠) کتابونه پاتې دي .

 

“تهذيب الاحکام”

 مؤلف يې “محمد بن حسن طوسي” دى،چې په “شيخ طائفه” مشهور دى؛ هغه د شيعه فقهاوو رئيس دى او د ډېرو اسلامي علوموپه هکله يې معلومات درلودل، کتاب يې ديارلس زره پينځه سوه نوي ( ١٣٥٩٠)  حديثونه  لري .

 

د شيخ طوسي لنډه پېژندنه

“شيخ طوسي” د اماميه شيعه وو فقيه او ليکوال  دى،پر ٣٨٥ س کال زيږېدلى  او له خراسانه “بغداد” ته ولاړ،چې هلته څلوېښت کاله پاتې شو او بيا “نجف” ته ولاړ او پر ٤٦٠ س کې په “نجف” کې ومړ. 

 

“استبصار”

 مؤلف يې هم  “ابوجعفرمحمدبن حسن طوسي” دى  او پينځه زره پينځه سوه يوولس (   ٥٥١١) احاديث لري .

 

 

 “بحارالانوار”

مؤلف يې “محمد بن باقربن محمد تقي مجلسي” دى،چې په خپله زمانه کې د فقې او تفسير ستر عالم و او د “شيخ بهايي” شاګردي يې هم کړې ده .”مجلسي”په خپل کتاب کې په نورو کتابوکې خپاره واره احاديث راغونډ کړل . په کتاب کې يې اعتقادي،تاريخي،د انبياوو او امامانو قيصې او بېل بېل فقهي بابونه شته .

 

د شيخ مجلسي لنډه پېژندنه

“شيخ مجلسي” د اماميه شيعه وو له پوهانو دى،چې پر١٠٣٧ س په “اصفهان” کې زېږېدلى د احاديثو ډېره برخه يې په “فارسي” ژباړل شوې او په اسلامي علومو او تاريخ کې ترې ډېر آثار پاتې دي .

 

“وافي”

مؤلف يې “محمد بن مرتضى” دى،چې په “ملامحسن فيض کاشاني” مشهور دى او په يوولسمه هجري قمري پېړۍ کې د اماميه وو له سترو پوهانو څخه و.

 کتاب يې د “کافي”، “من لايحضره الفقيه”،”تهذيب” او”استبصار” د کتابو ټولګه ده.همداراز ددې کتابونو خپاره واره احاديث يې راټول کړي، په دې توپير،چې تکراري احاديث يې چاڼ کړي دي .

 

د ملامحسن فيض کاشاني لنډه پېژندنه

“ملامحسن فيض کاشاني” په يوولسمه هجرى پېړۍ کې د اماميه وو له سترو علماوو څخه دى،په فقه،حديث،تفسير او فلسفه کې د نظر خاوند دى او تر اتياو( ٨٠) پورې کتابونه يې تاليف کړي ،”ملا محسن” پر١٠٩١ س په “کاشان” کې ومړ.

 

“وسايل الشيعه”

  مؤلف يې “محمدبن حسن شامي” دى،چې په “حُر عاملي” مشهور دى ده په خپل کتاب کې هغه احاديث راټول کړي،چې په څلورمه هجري قمري پېړۍ کې د شيعه و د احاديثوپه کتابو کې راغلي او روايتونه يې پرې ورزيات کړل او د فقهي مسايلو له مخې يې اوډلي دي .

 

د حرعاملي لنډه پېژندنه

“حر عاملي” د شيعه مذهب فقيه او تاريخپوه دى،چې پر ١٠٣٣ س  په “لبنان” کې زېږېدلى او”عراق” او “خراسان” ته يې سفرونه کړي او د عمر تر پايه په “خراسان” کې پاتې شو .

 

 

بسم الله

ð “بسم الله الرحمن الرحيم”د هرې ليکنې کونجي ده.(کنز : ٢٤٩٠ حديث)

 

خويونه

ðپه مؤمنانو کې هغه تر ټولوغوره دى،چې خوى يې تر نورو ښه وي . (ابوداوود – الدارمي )

ðمؤمن په ښه خوى د شپې د تهجد کوونکيو او همېشنيو روژه تيانو مقام ته رسي .( ابو داوود)

ð څوک چې امانت ساتى نه وي ،مؤمن نه دى او څوک چې پر خپله ژمنه وﻻړ نه وي؛نو دين نه لري . (بيهقي)

 

بدخویه

ðڅوک چې بدخويه وي (؛نو) ځان يې په عذاب کړى دى .(بحار ٧٣/ ٢٩٨)

ناوړه وګړي

ðزما په امت کې ډېر ناوړه(ناخوښه) هغه دى،چې خلک يې د زيان رسونې له وېرې درناوى کوي . ( تحف العقول : مخ ٥٨ )

ðهغه ډېر ناوړه دى،چې خپل آخرت په دنيا پلوري . ( مکارم الاخلاق: مخ ٤٣٣)

ðڅوک چې مسلمان وغولوي،يا ورته زيان ورسوي يا ورته دسيسه جوړکړي ( ؛نو) له ما څخه نه دى . ( تحف العقول : مخ ٤٢)

ðد خداى ډېر غوره بندګان هغه دي،چې په ليدو يې انسان ته خداى ور يادېږي او ډېر ناوړه يې هغه دي،چې چغلي کوي او دوستان سره بېلوي اوپه دې لټه کې وي،چې د خداى د بندګانو پاکې لمنې په يو ډول ګناه ککړې کړي او يا يې په کړاو او پرېشانۍ اخته کړي .( بيهقي )

ðاى چې پر ژبه موايمان راوړى؛خو لا مو زړه ته نه دى ننووتى! د مسلمانانو غيبت مه کوئ او پټ عيبونه يې مه راسپړئ ؛ځکه که داسې وکړئ؛ نو خداى به هم درسره همدغسې وکړي،چې د رسوايۍ او سپکاوى لامل به مو شي .( ابوداوود)

 

بخيل

 ð بخيل له “خداى” او خلکو لرې او “اور” ته نږدې دى . (بحار٧٣/ ٣٠٨)

ðډېر بخيل هغه دى،چې په “سلام” اچولوکې بخل کوي . ( کنز ٢ / ٦٤ )

 

کشران او مشران

ð هغه له ما څخه نه دى،چې پرکوچنيانو و نه لورېږي  او د مشرانو حق ونه پېژني . ( کنز: ٥٩٧٠ مخ)

ðڅوک چې له کوچنيو سره په مينه او له لويانوسره په درناوي چلن و نه کړي؛نو له موږ ځېنې نه دى . ( “ترمذي” – “ابوداود”)

 ðهر ځوان،چې د بوډا عزت او درناوى وکړي؛نو خداى به ورته په بوډاتوب کې داسې څوک وګوماري،چې عزت يې وکړي . (ترمذي)

 

الهي لارښوونې

ð الهي لارښوونې پر ځاى کړئ،چې “الله”درباندې ولورېږي  (ميزان: ٧٠٠٩ مخ)

 

ټلوالي

ð دچاچې له هرې ډلې سره مينه وي (؛نو) خداى به يې د قيامت پر ورځ له هماغې سره راپاڅوي . ( کنز: مخ ١٠ )

ð (په قيامت کې به) له هغه سره يې،چې ښه دې ايسي . (امالى مفيد، مخ ١٥٢ )

الهي تقوا

ð څوک چې غواړي په خلکو کې عزتمن وي ؛نو”الهي تقوا” دې غوره کړي . (بحار ٧٠ / ٢٩١)

 

ځورول

ðچا چې مؤمن وځوراوه ؛نو زه يې ځورولى يم . ( بحار ٦٧/ ٧٢٩  )

ð دخداى بندګان مه ځوروئ . ( کنز: ٤٣٧٤٠ ح )

ð غوره انسان هغه دى،چې مسلمانان يې د لاس او ژبې له ازاره خوندي وي . ( وسائل/٨ ٥٩٨ )

 

هديره

ð هديرو ته ولاړشئ،چې آخرت دريادوي . ( کنز ١٥/٦٤٦ )

 

ګهيځ

ð ګهيځ ژر په خپلې روزۍ اونورو اړتياوو پسې ولاړشئ،چې ګهيځ له وخته پاڅېدل برکتي اوله برياسره مل دي . ( کنز ٤/ ٤٨ )

ð د سهار خوب  روزي کموي . ( کنز ٦ / ٤٧٣ )

 

حرص

ðهغه  ډېر شتمن دى،چې د حرص په لومه کې نه وي نښتى.(مستدرک ١٢/ ٥٩ )

نېکمرغه

ðډېر نېکمرغه هغه دى،چې له عزتمنو سره ناسته ولاړه لري .( بحار ٧٤/١٨٥)

ð هغه نېکمرغه دى،چې د خپلو عيبونوکره  کتنه  ولري  او کړه  وړه  يې د نورو له عيب لټولو منع کړي . ( کنز ١٦/ ١٤٢)

 

کار

ðد خداى عزتمن او ستر کارونه ښه ايسي او سپک او کوچني يې نه . ( المعجم الکبير ٣/ مخ ١٣١)

ð همېشنى اوپرله پسې کار د خداى ښه ايسي،که څه هم لږ وي . (کنز ٣ / ٥٧ )

ð د کار سم پاى ته رسول،د هر کارکچه ده . ( کنز ١٥ / ٦٩٤ )

ð د ښه کار کول  تر پيلولويې  ښه دى .( بحار ٦٩ / ٤٠٥ )

ð پر ښه کار ګومارنه،د کوونکي هومره ثواب لري .(کنز ٦/ ٣٦٠)

ð که کوم کار چې دې کاوه؛نولومړى يې پاى وسنحوه او راتلونکى يې  وګوره . ( کنز ٣/ ٩٩)

ð هر کار،چې دې زړه غواړي،ويې کړه؛خو بېشکه چې بدله او سزا به يې ګورې . ( حلية الاولياء ٣/ ٢٥٣)

ðبېشکه هغه  د خداى تعالى ښه ايسي،چې کوم کار کوي او ښه يې پاى ته ورسوي . ( ميزان الحکمه: ١٤٣٧١ح ) 

ð څوک چې ناوړه کار وکړي (؛نو پر اخرت سربېره ) په دې نړۍ کې هم سزا ويني. ( کنز: ٤٣٧١٣ح )  

ðهغه دې خوښ وي،چې کار و کسب يې له حرامو پاک وي . ( يعقوبي تاريخ ٢/ ٥٩ )

ðڅوک چې بې له پوهې کوم کار کوي؛نو زيان يې تر سمونې ډېر دى . (تحف العقول: مخ ٤٧ )

 

ښه چلن

ðڅوک چې نرم طبيعته نه وي ؛نو تر ټولو ښو به بې برخې وي.  ( صحيح مسلم )

ðپه حقيقت کې زه د ښوکارونو او خويونو بشپړولو ته مبعوث شوى يم.  ( بحار ١٦/ ٢١٠ )

ðله خلکوسره نرم چلن  نه کول،په حقيقت کې تر ټولو نېکيو بې برخي ده . ( وسائل ١١/ ٢١٤ )

ðڅوک چې مؤمن خوشحاله کړي؛نوپه حقيقت کې زه يې خوشحاله کړى يم . ( کافي ٢/ ١٨٨)

ðپه ورين تندي له خپل ورورسره مخامخ شه .( بحار ٧٤/ ١٧١)

ðخلکو سره ښه چلن کول نيم دين دى او ورسره دوستي او نرمي کول نيم ژوند دى . ( الکافي  ٢\١١٧)

ðډېر عاقل هغه دى،چې له خلکو سره خورا ښه چلن کوي . (من لايحضره الفقيه  ٤\٣٩٤)

ðدرې ځانګړنې دي،چې که په چاکې نه وي،کړنې يې نه پوره کېږي 🙁 ١) داسې تقوا،چې له ګناه يې منع نه کړي (٢) داسې خوى،چې له خلکو سره پرې ښه چلن وکړي (٣) او داسې زغم،چې د ناپوهانو ناپوهي پرې وزغمي . ( الکافي  ٢\١١٦)

ðماته مې پالونکي له خلکو سره د ښه چلن په اړه  دغسې امر کړى؛لکه د فرايضو يې،چې کړى دى .( الکافي ٢\١١٧)

ðله ښځوسره ښه چلن وکړئ .(نهج الفصاحه)

 

نېک چارى زوى

ð بېشکه نېک چارى زوى د جنت يو ګل دى . ( کافي ٦ /٣ )

 

لاس

ð پاسنى لاس (بخشش ورکونکى) تر کوزني لاس (بخشش اخستونکي) غوره دى . ( کنز ٦ / ٣٦٣ )

ðكه څوك غواړي شتمن وي؛نو پر هغه دې ډېر ډاډه وي،چې د خداى په لاس كې وي،نه پر هغوچې له نورو سره وي . (الكافي  ۲\ ۱۳۹ )

ðيو بل ته لاس وركړئ؛ځكه دا كار دوستي زياتوي . (مستدرك الوسايل  ۹\ ۵۷)

 

قناعت

ð قناعت نه تمامېدونکې پانګه ده . ( وسائل ١١/ ٢٢٠ )

ðقناعت د برکت لامل دى . ( الجعفريات : ١٢٢)

ðلږه غوښتنه، د قناعت ښکلا ده . (جامع الاخبار: ١٢٢)

ðقناعت ناپايه زېرمه ده .( ارشادالقلوب  ١\١١٨)

ðد خداى پر ورکړې روزۍ قناعت کول،د انسان سترګې يخوي .( مستدرک الوسايل  ١٥\ ٢٢٤)

ðابوذره!هغه غني دى،چې د خداى پر ورکړې روزۍ قناعت يې کړى دى . ( يوت  ١٥\٢٢٧)

 

توکل

ð د چا چې غښتلتيا ښه ايسي؛نو پر خداى دې توکل وکړي . ( بحار ٧١/١٥١ )

ټوکې

ð زه په ټوکو کې يوازې حق وايم (؛يعنې باطلې او ناسمې خبرې به پکې نه وي) (ترمذي)  

ð له (بېځايه) ټوکو ډډه وکړئ؛ځکه د نورو پر وړاندې مو سپکوي . ( وسائل ٨/ ٤٧٨)

  ð حضرت انس روايت کوي : چا له رسول اکرم (ص) سپرلۍ ته اوښ وغوښت . آنحضرت ورته وويل :زه درته يو جونګى درکوم .سړي وويل : جونګى به څه کړم ؟ آنحضرت ورته وويل: اوښ خو له اوښه وي (؛يعنې هر جونګى اوښ وي؛نو هر اوښ،چې درکړ شي ؛نو جونګى به وي .)   ( “ترمذي” – “ابوداوود”)

 

سخي

ð علي! سخي وسه .( مشکاة الانوار: مخ ٤٠٥ )

ðسخي يې خداى او بندګانو ته نږدې وي او بخيل يې له خداى او بندګانو او(همداراز) له جنته لرې او دوزخ ته نږدې وي،بېشکه خداى ته “ناپوهه”سخي تر”عابده” بخيله ډېر ګران دى .(ترمذي)

 

ورین تندی

ð ورين تندى کينه له منځه وړي .( بحار ٧٤/ ١٧٢)

 

ملګري

ð انسان له خپل ملګري  اغېزمنېږي  .( مستدرک: مخ ٦٢)

ð له ناوړه ملګري سره تر ناستې يوازېتوب ښه دى .( مواعظ عدديه :٥٠ مخ)

ð له احمق سره له دوستۍ ډډه وکړئ؛ځکه د ګټې پر ځاى زيان درسوي . ( کنز ١٦/ ٢٦٧)

ðيوازېتوب تر ناوړه ملګري غوره دى .( بحار ٧٧/ ١٧٣)

 ðښه ملګرى د عطار په څېر دى، که له خپلو عطرو څه در نه کړي (؛نو) له بويه خو يې ګټه دررسي . (سنن ابي داوود )

ð له ناوړه ملګري ځان وژغوره،چې ته پرې پېژندل  کېږې . (کنز ٩/ ٤٣)

  

لیده کاته

ð له نورو سره ليده کاته مينه او دوستي ټينګوي . (ميزان  ٧٩٣٩ ح )

ð ورځ ترمنځ ليده کاته کوئ،چې مينه مو زياته شي.( کنز ٩/ ٣٠ )

ðله خپلوانوسره ليده کاته،د قيامت د ورځې حساب اسانوي او د ناوړه مړيني مخه نيسي . ( بحار ٧٤/ ٩٤)

 

پاکوالى

ð پاکوالى  د ايمان نښه ده . ( بحار ٦٢/ ٢٩١)

 

استغفار

ð استغفار ګناهونه له منځه وړي . ( کنز ١/ ٤٧٦)

 

عاجزي

ðعاجزي د لمانځه ښکلا ده .(بحار ٧٧/ ١٣١)

ð څوک چې خداى ته عاجزي او تواضع وکړي (؛نو) خداى يې مرتبې لوړوي . ( کنز ٣/ ٥٠ )

 

نسپالي

ð له نسپالۍ سخت زړي راولاړېږي .( کنز ٣/ ١٨٢)

 

پلور پېر

ð پلورونکى،چې د پښېمان پېرودونکي له معاملې تېر شي ( پلورل شوى مال بېرته واخلي) (؛نو) خداى به يې  د قيامت پر ورځ له ښويېدنې تېرشي . ( کنز ٤/ ٩٠)

د خدای وېره

ð څوک چې له خدايه ډارېږي(؛نو) خداى به يې وېره په ټولو څيزونوکې واچوي . ( ترغيب ٤ /٢٦٧)

 

ښکلا

ð بېشکه چې خداى ښکلى دى او”ښکلا” يې ښه ايسي .(صحيح مسلم ١/ ٦٥)

ðځان ساتنه د بلا ښکلا ده.تواضع د نسب د اصيلولۍ ښکلاه  ده. فصاحت د خبرې ښکلا ده.عدالت د ايمان ښکلا ده. ډاډ د عبادت ښکلا ده.ياد اوساتنه د روايت ښکلا د. ياد د پوهې ښکلا ده. ښه ادب د عقل ښکلا ده. پراخه تندى د زغم ښکلا ده. سرښندنه او ایثار د زهد ښکلا ده. د منت پرېښوول د نېکۍ ښکلا ده او عاجزي د لمانځه ښکلا ده . (بحارالانوار ٧٤\١٣٣ )

ð د يو چا د اسلام ښکلا او کمال په دې کې دى،چې د چټي او بې مانا ويناوو او چارو يې لاس اخستى وي .(“ابن ماجه” او”بيهقي”)

 

زغمناک

ð زغمناک د “دنيا او اخرت” ښاغلى دى . ( کنز ٣/ ١٢٩ )

 

ریا

ðبېشکه چې “الله تعالى” پر ټولو رياکارانوجنت حرام کړى دى . ( کنز ٣ / ٤٧٣) 

ðښه کار په ريا مه کوه اوهېڅ کار د حيا له امله مه پرېږده.(بحار ٦٨ / ١٥٤)

ðريا (د ځانښوونې لپاره د ښه کار ترسره کول ) “وړوکى شر ک” دى . ( مسند احمد )

ðڅوک چې د ځان مشهورولو لپاره کوم کار کوي؛نو خداى يې مشهوروي او څوک چې نورو ته  د ځانښوونې لپاره څه کوي؛نو خداى هغه نورته ښه ښيي . ( بخاري – مسلم )

ðستر عابدان يا قرآن لوستونکي،چې نورو ته د ځانښوونې لپاره ښې کړنې کوي؛نو په دوزخ کې به دغم او خپګان په څاه کې ولوېږي،چې په خپله دوزخ ترې  د ورځې څلور سوه وارې پناه غواړي . (ترمذي)

ðڅوک چې ښې چارې وکړي او خلک يې وستايي؛نو دې مؤمن ته بېړنى زېرى دى . ( مسلم )

ð څوک چې ځانښوونې ته لمونځ کوي،روژه نيسي او صدقه ورکوي ؛ نو شرک دى .( مسند احمد)

ðڅوک چې خپل لمونځ دومره اوږدوي،چې خلک ورته وګوري،چې څومره اوږد لمونځ کوي؛نو “خفي شرک” دى .  (ابن ماجه)

 

ښه بوی

ðښه بوی زړه قوي کوي .( فروع ٦/ ٥١٠ )

 

سوداګر

ðمسلمان رښتينى امانت ساتى سوداګر په قيامت کې له شهيدانوسره دى . ( کنز: ٩٢١٦)

ðد قيامت پر ورځ رښتينى سوداګر د عرش ترسيورې لاندې دى . ( کنز: مخ ٩٢١٨)

ðڅوک چې د مسلمانانو په بازارو کې [روغه او رښتينې] راکړه ورکړه کوي،د خداى په لار کې د مجاهد په څېر دى او زموږ په بازارو کې محتکر د خداۍ له کتابه  د منکر په څېر دى.دسيوطي جامع الصغير٣٢٧ )                  

ðرښتين او امين سوداګر(په قيامت کې) له پېغمبرانو،رښتينو او شهيد انو سره دى .(ترمذي، الدارمي، الدارقطني )

 

چغلګري ( د خبرې وړل راوړل )

ð په تاسې كې هغه ډېر ناوړه دى،چې چغلي كوي،ډنډورې خپروي،دوستان يو له بله بېلوي او په بې ګناهو كې عیبونه او ټكې پيدا كوي .( الكافي ۲\ ۲۶۹)

ðابوذره! چغلګر په اخرت كې ان يوه شېبه هم له الهي عذابه نه خلاصېږي . ( وسايل ۱۲\۳۰۷)

ðله پينځو څيزونو ډډه وكړئ : ( ۱) كينه ( ۲ ) پال نيونه (۳)   ظلم (۴) بدګوماني ( ۵) او چغلي . ( عوالي الاللي ۱\ ۲۸۹ )

 ðهغوى د خداى ډېر غوره بندګان  دي،چې په ليدو يې انسان ته خداى وريادېږي او ډېر ناوړه يې هغوى دي،چې چغلي کوي او دوستان سره بېلوي او په دې لټه کې دي،چې د خداى د بندګانو پاکلمنۍ په يو ډول ګناه ککړې کړي او يا يې په کړاو او پرېشانۍ اخته کړي .  (بيهقي)

ðچغلګر به جنت ته ولاړ نشي. ( الترغيب ٣/ ٤٩٥)

 

اسراف

ðڅوک چې اسراف کوي ،خداى به يې نشتمن کړي . ( الحياة ٤/٢٠ )

 

یووالی

ðله ټولنې سره وسئ؛ځکه لېوه له رمې لرې پسه خوري . (مسنداحمد ٦/ ٤٤٦)

  ðاختلاف مه کوئ؛ځکه ړومبنيو مو اختلاف وکړ؛نو هلاک شول . ( کنز: ٨٩٤ح )

 

راز ساتنه

ðد خپل ورور د راز  رابرسېرول خيانت دى؛نوله دې کاره لاس واخلئ . ( بحار ٦٨/ ١٥٤)

ðد خپلو چارو سر ته رسولو ته له راز والۍ مرسته وغواړئ .( د نهج البلاغې شرح  ۱۱\ ۲۲۱)

ðد نېکۍ څلور خزانې دي : (۱) د اړتيا پټول (۲) په پټه صدقه وركول (۳) د ناروغۍ پټول (۴) او د كړاو پټول . ( الامالي للمفيد : ۸مخ )

ðڅوک چې په دنيا کې پر خپل ورور پرده واچوي (؛نو) خداى به په قيامت کې پرې پرده  واچوي . ( ترغيب وترهيب ٢/  ٢٣٩)

 

حق

ðډېر پرهېزګار هغه دى،چې “حق”ووايي،په ګټه يې وي که په زيان .( امالي صدوق : مخ ٢٧)  

ðحق ووايه او د خداى لپاره د پړې اچوونکيو له پړې مه ډارېږه .(کنز: ٤٣٥٥٥ح)

ðد خداى په لارکې د ګرموونکيو له پړې مه وېرېږئ . ( معاني الاخبار: مخ ٣٣٥)

ðحق ووايه،که څه هم تريخ وي . ( الخصال : مخ ٥٢٦)

ð”حق” دروند او تريخ دى او”باطل” سپک او خوږ . ( مکارم الاخلاق: مخ ٤٦٥)

ðته چې د چا حق په پام کې نيسې؛خو هغه يې نه نيسي؛نو د دوستۍ وړ نه دى .(يعقوبى تاريخ : مخ ٦٦)

 

شهید

ðشهيد تر ټولو ړومبى جنت ته ننوځي . ( ميزان الحکمة: ٢٦٣٥)

ðڅوک چې د خپل مال په ساتنه کې ومري؛نو شهيد دى .(دعائم الاسلام: ١/ ٣٩٨)

ðڅوک چې په اوداسه ويده شي اوپه هماغه شپه ومري؛نو د خداى په نزد شهيد دى . ( بحار ٧٦/ ١٨٣)

امن او روغتیا

ðامن اوروغتیا دوه نعمتونه دي،چې شکر يې نه پرېښوول کېږي . ( الخصال: مخ ٣٤)

 

امین

ðڅوک چې “امين” نه وي ؛نو ايمان نه لري . (بحار ٧٢/ ١٩٨)

 

مجاهدین

ðد خداى د لارې مجاهدين د جنتيانو مشران دي .( بحار ٨ / ١٩٩)

ðڅوک چې له خپل ورور سره مرسته وکړي اوګټه ورورسوي؛نو د خداى د لارې د مجاهدينو هومره ثواب وړي.  ( ثواب الاعمال: مخ ٢٨٨) 

 

غوره وګړي

ð خلکو ته ګټور ډېر غوره دى .( بحار ٧٥/ ٢٣)

ðغوره هغه دى،چې تاسې ښه کار ته راوبلي .( الخيروالبرکة:  ١٣٥مخ)

ðخداى دې پر هغه ولورېږي،چې خپله ژبه وساتي،خپله زمانه او وخت وپېژني او پر سمه لار ګام کېږدي . (  کنز: ٦٨٩٤ح )

ðخداى ته هغه بنده ډېر ګران دى،چې بندګانو ته يې ډېر ګټور وي . ( تحف العقول: ٤٩ ح )

ðڅوک چې خپل پېټى په خپله يوسي؛نوپه حقيقت کې له کبره لرې کېږي . ( مکارم الاخلاق: مخ ١١٠ )

 

لاروی

ðبېشکه هغه مې لاروى دى،چې په ماپسې  ولاړ شي او زما په پله پل کېږدي او زموږ کړه وړه عملي کړي . ( بحار ٦٨ / ١٥٤)  

ډار اچول

ðيو مسلمان هم مه ډاروئ ؛ځکه ډارول يې ستر ظلم دى .(کنز ٤٣٧٠٩ ح)

 

زړښت

ð”بوډازناکار”،”ظالم واکمن” او”نشتمن کبرجن” هغه ډلې دي،چې خداى ورسره خبرې نه کوي او د قيامت پر ورځ پرې رحم نه کوي او دردناک عذاب ورته سترګې پر ﻻر دی . (الکافي ٢\٣١١)

ðڅوک چې د بوډا پر فضيلت ځان پوه کړي او د عمر له امله يې درناوی وکړي،پاک خداى(ج)به هغه د قيامت د ورځې له ډاره خوندي کړي . (ثواب اﻻعمال:١٨٩)

ðد مؤمن بوډا درناوى د الهي ﻻرښوونو درناوى دى. (وسايل ١٢\٩٩)

ðپه يقين،چې خداى(ج)ته تر کنجوس عابد بوډا،په ګناهونو کې ډوب سخي ځوان ډېرګران دي . (جامع اﻻخبار ١١٢)

ðزما ناپوهه،شتمن،ظالم بوډا او نشتمن کبرجن ښه نه ايسي. (مستدرک الوسايل ١٢\٣٢)

ðله بوډاګانوسره مو تل برکت مل وي . ( بحار ٧٥/ ١٣٧)

ðد بوډا د دنيا غوښتنې حس ځوان دى . ( ورام ١/ ٢٧٨)

ð انسا ن بوډا کېږي؛خو له شتمنۍ او د عمر له زياتوالي سره يې حرص ډېرېږي . ( بخاري – مسلم )

ð د بوډا زړه له دنيا سره په مينه او په اوږدو هيلو ځوان وي .( بخاري-مسلم)

ðد بوډا مسلمان درناوى د خداى له درناويو دى .(الکافي  ٥\١٦٥)

 

عزت

له خلکو سره  له شخړې ډډه وکړئ،چې غفلت رابرسېروي او عزت له منځه وړي . (بحارالانوار ٧٢/ ٢١٠)

ð تواضع د عزت لامل ده؛نو تواضع وکړئ،چې خداى مو لوړ پوړي کړي او صدقه د شتمنۍ د زياتوالي لامل ده؛نو صدقه ورکړئ،چې خداى درباندې ولورېږي او بښنه د انسان د عزت لامل ده؛نو له خلکو تېر شئ، چې خداى مو عزتمن کړي . (مستدرک الوسايل ٧/ ١٦٠)

ð د چا چې خداى مل او ملګرى وي؛نو نه ډارېږي او څوک چې خداى عزتمن کړي؛نو نه  خوارېږي .( مشکاه الانوار :١٢٥)

ðډېر عزتمن هغه دى،چې څه ورته ګټور نه وي پرېږدي يې. ( الامالي صدوق : مخ ٧٣)

ðد خلکو عزت وکړئ،چې  عزت مو وکړي .( مشکاة الانوار: مخ ١١٤)

ðڅوک چې عزت غواړي؛نوله ګناه دې ځان لرې ساتي .(بحار ١٧/ ٤٨)

ðد قوم مشر،چې درته راغى؛نو عزت يې وکړئ .( الکافي  ٨\٢١٩)

ð در کړ شوې ډالۍ ومنئ ؛ځکه يوازې “خر” ډالۍ بېرته ستنوي .(په دې روايت کې د کرامت ظاهري مفهوم ډالۍ ورکول برېښي ) . ( وسايل  ١٢\١٠٣)

ðمسلمان چې خپل غمځپلي مسلمان ورورته تسلي او ډاډ ورکړي ؛ نو خداى يې د احترام په جامو پوښي . ( مستدرک الوسايل  ٢\٣٥١)

ðڅوک چې خپل مسلمان ورور په کومه خبره خوشحاله او کړاو يې لرې کړي؛نو تل به د خداى تر پراخه سيورې لاندې وي او تر هغه چې پر دې چار بوخت وي؛د خداى رحمت به پرې وي .(ثواب الاعمال : ١٤٨ )

ðڅوک چې د خوار مسلمان عزت وکړي؛نو د قيامت پر ورځ،چې يې له خداى سره ليده کاته وي؛خداى به ترې خوښ وي .(من لايحضره الفقيه٤\ ١٣ )

ðخداى تعالى وايي :څوک چې زما مؤمن بنده ازاروى؛نو له ماسره جګړه کوي او څوک چې یې عزت وکړي؛نو له غوسې به  مې خوندي وي . (عدة الااعي : ١٦٥مخ )

 

پاسوالي

ðد خداى په لار کې يوه ورځ پاسوالي،تر يوې مياشتې د ويښې شپې تېرونې او روژه نيونې غوره ده. ( عوالي اللآ لي ١/ ٨٧)    

 

ځاني غوښتنې

ðزه خپل امت ته له دوو څيزونو ډېر وېرېږم ؛ځاني غوښتنې او اوږدې هيلې . ( سفينة البحار ٢/٧٢٨)  

ðله ځاني غوښتنو سره مبارزه وکړئ،چې زړونه مو حکمت زده کړي . (ميزان : ٢٧٦٧ح )

ðڅوک چې د  ځاني غوښتنوپه لارکې ډېرې هلې ځلې کوي؛نو له زړه يې د ايمان خواږه اخستل کېږي .( تنبيه الخواطر ٢ / ١١٦)

ðد خپل امت په اړه تر ټولو بلاوو ډېرپه “هوى” [د نفساني غوښتتې [ او “طول  امل” [ د ډېرو هيلو خيال پلونه [ ډارېږم . (بيهقي )

ð د خپل امت په اړه تر ټولو بلاوو ډېر په “هوى”[ځاني غوښتنو] او”طولا مل” [خيال پلوونو]  ډارېږم . (بيهقي)

ð د خپل امت په اړه تر ټولو بلاوو ډېر په “هوى”[ځاني غوښتنو] او”طولا مل” [خيال پلوونو]  ډارېږم . (بيهقي)

ðهغه د خداى د لارې مجاهد دى،چې د الهي اطاعت په لار کې له ځان سره مبارزه وکړي .(اعلام الدين : ٢٦٥مخ )

ðغوره جهاد دادى،چې انسان له خپل دننني نفس سره مبارزې ته راپورته شي .( معاني الاخبار : ١٦٠مخ )

ð نفس دې  ناوړه دښمن دى . (چې خپل نفس دې کابو کړ؛نو ستر دښمن دې کابو کړى) ( بحار ٧٠/٣٦)

 

ناپوهي

ðدا ناپوهي ده، چې خپله پوهه ټوله رابرسېره کړې .( تنبيح الخواطر ٢/ ١٢٢)

نشتمني

ðڅوک چې ځان فقير او نشتمن ښيي ( ؛نو) نشتمنېږي . (تحف : ٤٢ )   

ðد خلکو شتو ته له تمې ډډه وکړئ،چې دا يو ډول نيستي او فقر دى . (بحار ٦٩/ ٤٠٨)

 

ایمان

ðغوره ايمان دا دى،چې پوه شې خداى درسره په هر ځاى کې دى . ( کنز : مخ ٦٦)

 ðايمان د کميس په څېر دى،چې کله يې څوک اغوندي اوکله يې وباسي . (دسيوطي جامع الصغير)

ðد خداى لپاره دوستي او دښمني،ژبه د “الله” په ذکر بوختول،څه چې ځان ته خوښوې،نورو ته يې هم خوښ کړې او څه چې ځان ته نه خوښوې؛نورو ته يې هم خوښ نه کړې؛نو دا د ايمان غوره مرتبې دي . (مسند احمد)

٩٤٥-د زنا،غلا،شرابخورۍ،لوټ،وژنې او خيانت پرمهال په وګړي کې “ايمان” نه وي؛نو ځکه مؤمنانو! له دې ځانګړنو ځان وساتئ .  ( صحيح بخاري- مسلم )

ð د اسلام بنسټ پر پينځو ستنو درول شوى دى :

 (١)پردې حقيقت شاهدي ورکول،چې  بې له “الله”بل خداى او معبود نشته،محمد (ص) يې بنده او استازى يې دى . (٢) لمونځ کول (٣) د زکات ورکول (٤ ) د خداى د کور حج کول (٥  ) د رمضان د مياشتې روژه نيول .( بخاري – مسلم )

ð ايمان څه له پاسه اويا څانګې لري،چې تر ټولو غوره يې د “لا اله – الا الله”ويل او ټيته يې له لارې د خڼدونو لرې کول دي او”حيا” د “ايمان” يوه څانګه ده . ( بخاري  – مسلم )

ðپېغمبراکرم (ص) د ايمان په اړه وپوښتل شو؟ويې ويل : هله مؤمن يې،چې په خپلو ښو کړنو درته خوشحالي اوپه ناوړو درته رنځ او خپګان پيدا شي . ( احمد)

 

ناشکري

ðتر ټولو ګناهونو د نعمت د ناشکرۍ سزا ډېر ژر وي .(وسائل ١١/٥٤١)

ðد نعمت له ناشکرۍ ځان وساتئ،چې ناشکري د بدمرغۍ لامل دى . (تفسيرالامام العسکري : ٤٤٧)

  

ځوان

ðبېشکه د خداى هغه ځوان ښه ايسي،چې ځواني يې د الهي لارښوونو په عملي کولو کې تېره کړ ې وي .( ميزان ٥/ ٩)

 

ناوړه چارې

ðله هغه  چار ډډه وکړه،چې د عذر غوښتو لاملېږي .(الدعوات: مخ ١٠ )

 

د پت دفاع

ðڅوک چې د مؤمن ورور د پت دفاع وکړي؛نودا به يې د دوزخ د اور ډال شي . ( الامالي طوسي: مخ ١١٥)

ðڅوک چې واوري،چې يو تن نارې سورې وهي : مسلمانانو! زما چاره وکړئ؛خو ستونزه يې اواره نه کړي؛نو مسلمان نه دى .( کافي ٢/ ١٦٢)

ðڅوک چې د غيبت او بدوينۍ پر وړاندې د خپل ورور دفاع وکړي؛نو پر خداى يې حق دى،چې له اوره يې ازاد کړي . (بيهقي) 

 

خوار او ذلیل

ðهيڅ مسلمان ته روا نه ده،چې ځان خوار او ذليل کړي .(يعقوبى تاريخ : مخ ٦٧)

نوم بدي

ðله نوم بدو سره ناسته ولاړه د انسان د نوم بدۍ لامل دى .(مستدرک ٢/ ٦٥)

سفر

ðلومړى د سفر ملګرى ومومئ او بيا سفر وكړئ . ( الكافي  ۴\ ۲۸۶)

ðسفر د عذاب يوه برخه ده؛نو په سفر كې،چې مو چارې پاى ته ورسېدې؛نو بايد په بيړه خپلې كورنۍ ته راستانه شئ . (بحار الانوار  ۷۳\ ۲۲۲)

ðسفر وکړئ،که په سفرکې موشته لاس ته رانه وړل؛نو(تجربي)عقل خو به مو زيات شي .( مکارم الاخلاق : مخ ٢٤٠)

ðسفر وکړئ،چې روغتيا ومومئ او روزي ترلاسه کړئ .( بحار ٨١/ ١٧٣)

ðدرې ناوړه خلك دادي 🙁 ۱) چې ځان ته سفر كوي (۲) ډالۍ نه مني ( ۳) او خپل مرىى وهي . ( الامان : ۵۳)

ðدا د سفر د ملګري حق دى،كه ناروغ شو؛نو ملګري دې يې ورته تر درېو ورځو پورې سفر وځنډوي . ( الكافي  ۲\ ۶۷)

ðاواز  او شعر د مسافر توښه ده؛خو چې ناسزا پکې نه وي . ( من لايحضره الفقيه  ۲\۲۸۰)

 

په سفر کى د نورو حق ته پاملرنه

ðانصارو له وريجو ډکه کاسه د خداى رسول ته ډالۍ راوړه، پېغمبر (ص) حضرت سلمان، مقداد او ابوذر  هم راوغوښتل،هغوى ډېر ژر له خوړو لاس واخست او بښنه يې وغوښته،د خداى رسول ورته وويل : ((تاسې خوڅه ونه خوړل؟!په تاسې کې،چې زه پر هر چا ګران يم ؛نو ډېره دې وخوري .))

 

له څارویو سره نېکي

ðد معراج پر شپه جنت ته ولاړم،هلته مې د هغه سپي خاوند وليد،چې خپل سپي ته يې اوبه  ورکړې وې .( بحار ٦٢/ ٦٥)  

ðڅاروي مه مثله کوئ،څوک يې چې  مثله کړي،خداى پرې لعنت وايي . (اصول کافي)

ðزړه سوى وکړئ،ان که د چوغکې د حلالو په باب هم وي (؛نو) خداى به درباندې د قيامت پر ورځ ورحمېږي .(صحيح بخاري)

ðکه څوک يوه چوغکه خوشې او بې ګټې [اخستو] ووژنې(؛نو) د قيامت پر ورځ به همدا چوغکه خداى(ج) ته عرض وکړي : پالونکيه! زه پلاني خوشې ووژلم،زه يې ګټنې ته نه يم وژلې. (صحيح بخاري)

ðمېږي يو پېغمبر وچيچه او په امر يې د مېږيو ځاله وسوځول شوه. خداى ورته وحې ولېږله،چې ته خو يوازې يومېږي وچيچلې؛خو تا يو تسبيح ويونکى امت وسېځه . [بخاري : ٣٠١٩ح]

 

رښتین

ðله تاسې رښتينى به موپه قيامت کې راته ډېر نږدې وي . (بحار ٧٧/ ٦٧)

ðرښتيا پر ځان لازم کړئ او تل رښتين وسئ؛ځکه رښتيا ويل (انسان ته) سمه او ښه لار ورښيي او سمه لار يې جنت ته رسوي او داچې انسان تل رښتيا ووايي او رښتيا ويل يې خوى وي؛نو د “صديقيت” او “رښتينولۍ” مقام ته رسي او د “الله” پر وړاندې د رښتينو په ډله کې شمېرل کېږي . تل له دروغو ځان وساتئ؛ځکه په دروغو روږدېدل، (انسان )بدې لارې ته راکاږي او بده لار دوزخ ته تللې او انسان،چې په دروغو روږد شي او دروغ ويل يې خوى شي؛نو د خداى پر وړاندې په دروغجنو کې ليکل کېږي . ( بخاري – مسلم )

ðتل رښتين وسئ،چې خداى مو د رښتنيو په ډله کې وشمېري او دروغجن مه واست،چې خداى مو په دروغجنو کې ونه ليکي . ( بخاري – مسلم )

ðيوه ورځ رسول اکرم (ص) اودس کاوه او اصحابو،چې د اودس اوبه پر خپلو مخونو او تنو اچولې؛آنحضرت ورته وويل : دا کار ولې کوئ ؟ هغوى ورته وويل : ((د خداى او له استازي سره يې د مينې له امله.)) آنحضرت ورته په ځواب کې وويل : څوک چې په دې خوشحالېږي،چې له “الله” او رسول سره يې حقيقي مينه لري؛نو پرې لازمه ده،چې تل رښتيا ووايي،په ورسپارلي امانت کې خيانت و نه کړي او له ګاونډ يانوسره ښه چلن وکړي .(بيهقي)

ð تل رښتين وسئ،چې خداى مو د رښتيو په ډله کې وشمېري او دروغجن مه  وسئ،چې خداى مو په دروغجنوکې ونه ليکي .( بخاري – مسلم)
ð رښتين او امين سوداګر(په قيامت کې) له پېغمبرانو،رښتينو  او شهيدانوسره دى .  (ترمذي،الدارمي، الدارقطني)

 

دښمن

 ð حضرت جبرائيل په هيڅ څيز كې ماته له خلكوسره په دښمنۍ كې د نه زیاتي هومره سپارښتنه نه ده كړې (له خلكو سره په دښمنۍ كې به زیاتی نه كوئ) . ( الكافي  ۲\ ۳۰۲)

ðزما د دښمن دوست ،زما دښمن ګنل کېږي .( بحار ٧٧/١٧٤)

ðد هر چا خپل عقل ملګرى او ناپوهي يې دښمنه ده.( بحار ٧٧/ ١٧٤)

 

بېځایه رټنه

ðخپل ورور دې هغه ته د ورپېښو ستونزو له امله مه رټه؛ځکه شونې ده،چې خداى پرې ولورېږي او وژغورل شي او ته په خپله پر هماغه کړاو اخته شې .( وسائل ٢/ ٩١٠)

 

خپلمنځي جوړجاړى

ðتر فرضو پر ځاى کولو وروسته د خلکو ترمنځ جوړجاړى غوره چار دى . (سفينة البحار٢/٤٠ )  

ðد خلکو ترمنځ جوړجاړى تر ټولو لمونځونو او روژو غوره دى . (سفينة البحار ٢ /٤٠)

ðپر مصلح دروغ نشته . (اصول کافي: ٤ ټ ،باب اکذب ،٢٤  حديث)

ðڅوک چې د دوو تنو ترمنځ جوړجاړى کوي؛نوکه ښه خبره وکړي يا د ښو نسبت وکړي (که څه هم واقعيت ونه لري؛نو) دروغحن نه دى. (عشريه : ١٨ مخ .)

 

روغتيايي احاديث

ðهوږه وخورئ،چې درملنه مو وشي؛ځکه د اويا دردونو شفا ده . (سفينة البحار ١ / ١٣٩ )

ðانګوردانه دانه وخورئ،چې دا خوندور خوراک دى . (سفينة البحار ١/ ٥٣٥ )

ðپه سباناري کې کجورې وخورئ،چې د ګېډې چينجي وژني.(صحيفة الرضا : ٤٩ او٥٨ احاديث)

ð کدو ډېر پخوئ؛ځکه خپه زړه خوشحالوي .(عيون اخبارالرضا:٣٠باب)

ðانار وخورئ؛ځکه هره دانه يې په معده کې زړه خوشحالوي او شيطان تر څلوېښتو ورځو پورې لرې کوي .( اخبار الرضا: ٣٠ باب )

ðوڅکې(مميز) وخورئ ؛ځکه :

١) صفرا لرې کوي ٢ ) بلغم له  منځه وړي . ٣ ) رګونه ټينګوي . ٤ ) ذهني کمزوري له منځه وړي . ٥ ) خوى ښه کوي . ٦ ) خوله پاکوي . ٧ ) اوغم له  منځه وړي . (روضة الواعظين : ٣١٠مخ )

ð ناروغ ته پرنجى د روغتيا او د بدن د راحت نښه ده.( الکافي ٢/ ٦٥٦)

ðفراغت او روغتيا دوه نعمتونه دي،چې ډېرى خلك پرې ازميېل کېږي . ( بحارالانوار  ۷۸\۱۷۰)

ðتر څلورو څيزنو مخكې له څلورو څيزو مه غافلېږه : ( ۱) ځواني دې تر زړښت مخكې ( ۲) روغتيا دې تر ناروغۍ مخكې (۳) شتمني دې تر نشتمنۍ مخكې ( ۴) او ژوند دې ترمړينې مخكې. ( الخصال  ۱\۲۳۸)

ðامنيت او روغتيا هغه نعمتونه دي،چې  شكر يې(معمولا) نه اېستل كېږي . ( بحارالانوار  ۷۸ \ ۱۷۰)

 

مسواک

ðخولې مو د قرآن لارې دي ؛نوپه مسواک يې پاکې کړئ . (محجة : ١/٢٩٦ )

ð مسواک وکاروئ !مسواک وکاروئ . ( کنز: ٢٦١٧٠ ح )

ðپه مسواک کارولو خوله پاکېږي او خداى خوشحالېږي .(کنز:٢٦١٥٦ح)

ðد خپلوغاښونو منځونه پاک کړئ . ( بحار ٦٢/ ٢٩١)

ð د مسواک وهلو ( ١٢ ) ځانګړنې دي :

١ ) خوله پاکوي .٢) خداى خوشحالېږي .٣ ) غاښونه سپينوي .٤ ) خيرى له منځه وړي . ٥ ) بلغم کموي . ٦ ) خوراک ته اشتها پيداکوي . ٧ ) نېکي ډېروي . ٨ ) له سنتو سره اړخ لګوي . ٩ ) پرښتي پرې شاهدې وي . ١٠ ) ورۍ ټينګوي . ١١ ) د قرآن  د لوستو لار وينځي . ١٢ ) دوه رکعته لمونځ،چې مسواک ورته وهل شوى وي تر هغو اويا رکعتو لمانځه غوره دى،چې مسواک ورته نه وي وهل شوى .(خصال: باب الواحد الى اثنى اعشر ٦ مخ )

ð ( قرآن چې لولئ؛نو)خولې مو د قرآن لارې دي؛نو په مسواک کارولو يې خوږ بويه کړئ (او پوه شئ،چې) خداى ته تر مسواک وهلو وروسته دوه رکعته لمونځ تر اويا رکعتو بې مسواکه لمانځه غوره دى (همداراز)مسواک غاښونه سپينوي او د خرابۍ مخه يې نيسي او ورۍ ټينګوي،د خولې لاړې کموي،خوړو ته اشتها زياتوي،د عبادت بدله زياتوي،په سنتو عمل کول دي او له پرښتو سره ملګرتوب دى او(پردې سربېره)د پالونکي د خوشحالۍ لامل ګرځي . ( الدعوات : ١٦٠)

ðڅلور څيزونه د الهي استازيو له سنتو دي : ( ١) عطر ( ٢) له خپلې مېرمن سره مينه ( ٣) مسواک ( ٤) نکريزې ( اخصال : ١\٢٤٢)

ðکه پر امت مې نه سختېداى؛نوامر مې کاوه،چې په هر لمانځه کې مسواک وکاروي . ( الکافي : ٣\٢٢)

ðخوله مو په خلالولو پاکه کړئ . (الوسايل  ١٦\٣١٧)

 

سلام  اچول

ðلومړى سلام واچوئ او بيا خبرې وکړئ؛خو چا چې تر سلام اچولو مخکې خبرې پيل کړې؛نو ځواب يې مه ورکوئ . (اصول کافي/٤ټوک باب تسليم ١ او٢ حديثونه )

ðسلام د خداى تعالى يو نوم دى او پخپلو کې يې دود کړئ . مسلمان،چې پر يو قوم تېرېږي او سلام پرې واچوي؛نوکه د سلام ځواب يې ورنه کړي؛نو تر هغه  ډېر غوره او سپېڅلى به يې ځواب ورکړي . (روضة  الواعظين : ٤٥٩ مخ )

ð ډېر بخيل هغه دى،چې په سلام اچولوکې بخل کوي . (روضة الواعظين : ٤٥٩ مخ )

ðسلام اچول او نېکې خبرې د بښنې له لاملونو څخه دي . (جامع الا خبار:١٠٤ مخ )

 ð يو له بل سره په سلام او روغبړ ملاقات وکړئ اوپه دعا بېل شئ .( طرايف الحکم: لومړى /٢١٧)
ðهغوى خداى او استازي(ص) ته يې  ډېره نږدې دي،چې خپلې خبرې په سلام ويلو پيلوي .( اصول کافي/ ٤ټوک، باب التسليم،٣ حديث ) .

ðړومبى سلام اچوونکى له کبره لرې دى .(ميزان الحکمه: ٨٨٤٨ح )

ðڅوک چې تر نورو ړومبى سلام پيل کړي؛نوله کبره به خلاص وي . (بيهقي)

ð مؤمن خپلې خبرې په سلام پېلوي . ( ميزان: ١٤٣٨ )

ðخداى او استازي ته يې هغه ډېر وړ دی،چې لومړى سلام واچوي . ( الكافي ۲\ ۶۴۴)

ðلومړى سلام بيا كلام؛نو چاچې تر سلام مخكې خبرې پيل كړې؛نو ځواب يې مه وركوئ . ( وسايل الشيعة  ۱۲\۵۶)

ðهغه ډېر بېوسې دى،چې دعا نه كوي او هغه ډېر كنجوس دى،چې سلام نه اچوي . ( الا مالى للطوسي : ۸۸)

ðوړ ده،چې سپور  پر (پلي) سلام واچوي .(مستدرك الوسايل ۸\ ۳۷۲)

ðڅوك چې له غونډې پاڅېد؛نو نور دې په سلام ورسره خداى پاماني وكړي . ( الجعفريات : ۲۲۹ )

ðپه دنيا كې زړه سوى وكړئ،كه څه هم په يو سلام اچولو وي . (جامع الاخبار : ۸۸مخ )

ðسلام اچول مستحب او ځواب يې فرض دى . ( الكافي ۲\ ۶۴۴)

ðسلام د پاک خداى له نومونو دى؛نو پخپلو كې يې ښكاره كړئ . ( په لوړغږ سلام اچوئ )  . ( روضة الوا عظين ۲\۴۵۹)

ðپه جنت كې داسې ځايونه دي،چې ظاهر يې له باطنه او باطن يې له ظاهره ليدل كېږي او زما هغه امتيان به پکې اوسېږي،چې ښه خبرې كوي،وږي مړوي،په لوړ غږ سلام اچوي او د شپې،چې خلك ويده وي؛نو لمونځ كوي بيا يې وويل : كله هم پر مسلمانانو له سلام اچولو ډډه مه كوئ . ( الواغظين  ۲\ ۳۷۱)

 

د ګاونډي حق

ðهغه به زما پر”نبوت” ايمان نه وي راوړى،چې په مړه خېټه شپه تېره کړي او ګاونډى يې وږى وي . (اصول کافي٤ټوک،باب الحوار،١٤ حديث)

ð د ګاونډيانو په باب سپارښتنه درته کوم . ( کنز ٩/٤٩ )

ðپر خداى قسم!مؤمن نه دى (درې ځل يې وويل)،چې ګاونډى ځوروي. ( صحيح بخاري)

ðمؤمن نه دى،چې په مړه خېټه وېده شي او ترڅنګ  ګاونډى يې وږى وي .(بيهقي)

ðتر  کور اخستو لومړى يې ګاونډ وګوره بيا کور او تر سفر مخکې د خپل سفر ملګرى پيدا کړه . ( سنن ابي داود ٢/ ١٤٧ )

ð څوک چې پر خداى او قيامت ايمان لري ؛نو د خپل ګاونډي عزت دې کوي .( مسند احمد ٤/ ٣١)

ðد ګاونډي ځوروونکى به جنت ته نه ننوځي .( اثنى عشريه : ١٥ مخ )

 ðجبرئيل تل ماته دګاونډي په باب سپارښتنه کوله(ان تردې)،چې ګومان مې وکړ،دوى به په خپلو کې له يو بله ميراث يوسي. ( صدوق:مجلس ٦٦ ،لومړى حديث .)

ðدګاونډي درناوى؛لکه د مور درناوى دى .(کافي :٤ټوک،باب حق الجوار ،٢حديث .)

ðګاونډيان  درې ډوله دي :ځېنې درې حقه لري؛(١) داسلام  حق  (٢) دګاونډيتوب حق (٣) دخپلوۍ حق .ځينې يې دوه حقه لري ؛(١) اسلام  (٢) دګاونډيتوب حق.ځينې يې يوحق لري او هغه کافر دى،چې (يوازې) د ګاونډيتوب حق لري . (روِضة  الواعظين :٣٨٩ مخ )

ðڅوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځ ايمان لري؛نو د خپل ګاونډي عزت دې وکړي .(ا ثنى عشريه: ١١ مخ )

ðله څلورو خواوو تر څلوېښتوکورونو پورې ګاونډيان شمېرل کېږي . (اصول کافي: ٤ټوک،باب حدالجوار،لومړى حديث )

 

اولاد

 ðخپلو کوچنيانو ته د “لااله الاالله” کلمه ورزده کړئ او د مړينې پر وخت يې هم ورتلقين اوپه خوله کې ورکړئ . (بيهقي)

 ð د خپلو اولادونو درناوى وکړئ او ښه په ادب يې وروزئ .(ابن ماجه)

ðپر خپلو اولادونو مو د پېغمبرانو نومونه کېږدئ؛”عبدالله” او”عبدالرحمن” ډېر غوره نومونه دي .

ðله اولادونوسره مو په عدالت چلن وکړئ؛که دا موښه ايسي،چې هغوى درسره په نېکۍ او لطف چلن وکړي .( سفينة  البحار:٢ / ٦٨٤ )

ð صالح اولاد خو د خداى له لوري يو ګل دى،چې په خپلو بندګانو کې يې ويشي . ( الکافي ٦ / ٢ )

ð د صالح اولاد درلودل د سړي په نېکمرغيو کې ګڼل کېږي.(الکافي٦/ ٣)

ð مهربانې لوڼې غوره اولاد دى،چې تل د مور و پلار په چوپړ کې وي، مينه ناکې،برکتي او پاکې وي . ( الکافي ٦/ ٥)

ð غوره اولاد مو لوڼې دي . (مکارم الاخلاق: ٢١٩)

 ð پر دې امت د “علي” حق؛ لکه پر اولاد د پلار حق دى . (تاريخ مدينه دمشق ٤٢/ ٣٠٨ – ميزان لاعتدال ٣/ ٣١٦ )

ð اولادونو ته مو لامبو او غشى ويشتنه زده کړئ .( الکافي ٦/ ٤٧ )

ð پر پلار د اولاد حق دا دى : که زوى و؛نو له مور سره دې په ورين تندي چلن کول او درناوى دې يې کوي،ښه نوم دې پرې کېږدي،قرآن دې ور وښيي، پاک دې کړي او لامبو دې ورزده کړي او که نجلۍ وه؛ نو له مور سره دې په ورين تندى چلن کوي او درناوى دې يې کوي . ښه نوم دې پرې کېږدي،د “نور سورت” دې ورياد کړي او د “يوسف” سورت دې نه ورښيي او (په عمومې ځايونو کې) دې يې د خلکو کتو ته نه راښکاره کوي او ژر دې ورته مېړه وکړي او که نوم يې ورباندې “فاطمه” ايښې وه؛نو کنځلې دې ورته نه کوي،لعنت دې پرې نه وايي او نه دې يې وهي . ( الکافي ٦/ ٤٨ )

 

 اخر وخت او قیامت

ðزما دې پر هغه ذات قسم وي،چې زما  ساه يې  په لاس کې ده؛قيامت تر هغه نه راځي،څو خپل مشر ووژنئ او په خپلو کې په جګړه  شئ او دنيا مو ډېرو ناوړو ته مېراث شي . (سنن ابي داود)

ðيو په بل پسې د اسلام لارښوونې څنډې ته کېږي او مشران بې لارې کوونکي کېږي او ورپسې درې دجاله راښکاره کېږي.(د حاکم مستدرک)

ðکه چارې نا اهلوته وسپارل شي (؛نو) قيامت ته سترګې پر لار وسئ . ( صحيح بخاري )

ðتر هغه چې  پر ځمکه د”الله”نوم يادېږي (؛نو) قيامت نه راځي. (صحيح مسلم )

ðپر تاسې به داسې وخت راشي،چې نه به له چا سره حلالې پيسې وي او نه به ديني ورور وي،چې څو شېبې کېنې او مينه ورسره وکړي او نه به کوم (نبوي) سنت عملي کېږي . (سيوطي:جامع الصغير)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،چې که څوک پر خپل دين ټينګ ولاړ وي؛ نو لکه  د اورسکروټه يې،چې په لاس کې نيولې وي . (سنن ترمذي)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،چې څوک به د”بېوسۍ” او”بدکارۍ” ترمنځ اختيارمن وي؛نو پر داسې مهال  بايد”بېوسي” پر “بدکارۍ” غوره وګڼې .  ( سيوطي : جامع الصغير)

ðتر ما وروسته به داسې مشران وي،چې واکمنۍ ته به جنګېږي او يو بل به وژني . (دسيوطي  جامع الصغير)

ðداسې وخت به راشي،چې رښتين به دروغجن او دروغجن به رښتين،امين به خائن اوخائن به امين ګڼل کېږي .ژر به فتنې راپېښې شي،چې “ناست”وګړي به پکې تر “ولاړ”  غوره وي  او “ولاړ” به تر “روان” غوره وي او تلونکي به تر ځغاستونکي غوره وي [څوک چې په فتنوکې ډېره لږه برخه لري،ورته غوره ده ] او څوک چې په فتنو پسې ولاړ شي؛نو هلاک به يې کړي؛نوځکه چا چې پټنځى وموند؛پکې دې پټ شي. [ بخاري : ٧٠٨١ ح]

ðپرخلکو به داسې وخت راشي،چې ورته به بې توپېره وي،چې مال يې له کومه لاس ته راوړى،حلال دى  که حرام ؟قيامت ته نږدې دا ډېر لږ پېښېږي،چې د مؤمن خوب سم ونه خېژي؛ځکه د مؤمن خوب د نبوت له ( ٤٦) برخو يوه برخه دى او څه چې د نبوت په باب وي،بېخي پکې دروغ نه وي . [بخاري : ٧٠٧١ ح]

 

د جمعې د ورځې خطبه

ðڅوک چې د جمعې پر ورځ د امام په خطبه کې خبرې کوي،د هغه خره په شان دى،چې څوکتابونه پرې بار وي . (دامام احمدحنبل مسند)

 

شمع

ðڅوک چې نورو ته د ښېګڼو ښوونه کوي او خپل ځان هېروي،د شمعې په څېر دى،چې ځان سوځوي او نور رڼا کوي .(دسيوطي جامع الصغير)

 

اذان

ðاذان،چې اورئ[؛نو په خپل زړه کې يې] داسې يې ووياست؛لکه چې مؤذن يې وايي . ( صحيح بخاري )

ðد اذان او اقامت ترمنځ دعا نه ردېږي . (سنن ابي داود)

ð [د لمانځه په جماعت کې دې]ستاسې تر ټولو ښه قاري امامت وکړي او ډېر ښه مو يې اذان ووايي .(من لايحضره الفقيه )

ðاذان مو،چې تر غوږ شو؛نو د مؤذن په څېر يې ووايئ. (بخاري : ٦١١ح )

 

بډې

ðخداى لعنت کړي:بډې ورکونکى او بډيخور او منځګړى يې. ( مستدرک الوسايل  ١٧\ ٣٥٥)

 

وصیت

 ðشتمن مسلمان دې د خپلې شتمنۍ په باب وصيت وکړي او روا نه ده، چې دوه شپې پرې تېرې شي او وصيت يې نه وي ليکلى . [بخاري :٢٧٣٨ح ]

انګېرنې

ðانګېرنې په درېو څيزونو کې دي:اس،ښځه او کور.(بخاري : ٢٨٥٨ح)

 

لارښود

ðتر هغه د لارښود د خبرو اورېدل او د لارښوونو منل لازمي دي، چې پر ګناه يې امر نه وي کړې؛نوکه امر يې  وکړ(؛نو) نه ښايي خبرې يې واورېدل شي او لارښوونې يې ومنل شي. ( بخاري : ٢٩٥٥ح)

 

جهاد

ðيوسړى پېغمبر اکرم ته راغى او جهاد ته د تلواجازه يې وغوښته. آنحضرت ( ص) ورته وويل : موروپلار دې ژوندي دي ؟ ويې ويل : هو! رسول الله ورته وويل : ستا جهاد د هغوى خدمت کول دي .  [ بخاري : ٣٠٠٥ح]

ðخلکو! “جهاد” د جنت له ورونو يو “ور”دى،چې خداى تعالى يې خپلو ځانګړو بندګانو ته پرانځي . (عوالي الاللي :٢\٩٨)

ðجهاد وکړئ،چې اولادونو ته مو سر لوړي پرېښې وي.(الکافي : ٥\٨)

ðډېر کنجوس هغه دى،چې په سلام اچولو کې کنجوسي کوي او ډېر بښاند هغه دى،چې خپل ځان او شتمني د خداى په لارکې وبښي. (الجعفريات : ٧٦مخ )

ðامت ته مې دپينځو څيزونوسپارښتنه کوم : (١) اورېدل .( ٢) اطاعت کول . (٣) مهاجرت کول .( ٤) جهاد . ( ٥) او ډله ييزکارونه کول . څوک چې بل د جاهليت د زمانې دود ته راوبلي؛نو خداى د جهنم په يوه قبرکې يې ننباسي . ( مستدرک الوسايل  ١١\٩)

 

قریش

ðحضرت “انس” (رض) وايي : نبي اکرم (ص) وويل :زه د قريشو د زړونو د لاس ته راوړنې لپاره ورکړه کوم؛ځکه چې جاهليت ته نږدې دي . ( بخاري: ٣١٤٦ ح)

واکمني

ðتاسې واکمنۍ ته د رسېدولپاره هڅه کوئ؛خو د قيامت پر ورځ به پښېمانه شئ . واکمني شيدوره ده(زيات خوندونه لري)؛خو پرېکون (مړينه) يې خورا ناوړه د‌ى .

  [ بخاري : ٧١٤٨ح]

 (الف) نو خداى چې کوم بنده ته د اولس مسؤوليت ورترغاړې کړي؛خو په نصيحت او خيرغوښتنې کې يې لنډون  او تقصير وکړي؛نو جنت به بوى نه کړي .

(ب) واکمن ته،چې د مسلمانانو د ټولي مسؤوليت ورترغاړې شي او د خيانت په حال کې ومري؛نو خداى پرې جنت حراموي . [بخاري : ٧١٥٠او٧١٥١احاديث ]

ðحضرت “جابربن سمرة” (رض ) وايي: پېغمبراکرم (ص) وويل : دولس تنه به اميران شي بيا يې څه وويل؛خو ما وا نه ورېدل پلار مې وايي : رسول اکرم (ص) وويل : هغو‌ى ټول به له قريشو وي .[بخاري : ٧٢٢٢- ٧٢٢٣ احاديث ]

 ðکه څوک واکمن په داسې څيز خوښوي،چې خداى پرې خپه  کېږي؛نو د خداى له دينه وتلى دى .

 

کرنه

 ðڅوک چې څه وکري او مرغان يې (هم) ترې وخوري؛نو صدقه ورته حسابېږي .(٢٩٩٧ح – نهج الفصاحة )

 ð شنو ته ليدل ، د سترګو کاته زياتوي .(٣١٥٨ح – نهج الفصاحة )

 ð شنو،روانو اوبو او ښکلي مخ ته کتل سترګې روښانوي . ( ١٢٩١ح – نهج الفصاحة  )

ð مسلمان،چې ونه کېنوي يا تخم وکري اوکوم انسان، الوتونکى يا څاروى يې څه ( مېوه) وخوري؛نو صدقه ورته حسابېږي .( بخاري : ٣٢٢٠ حديث ح – نهج الفصاحة )  

ðڅوک چې کومه ونه کېنوي ؛نوخداى ورته د ونې د مېوې هومره بدله ليکي .(٢٦٧٤ ح – نهج الفصاحة)

ðڅوک چې ونه وکري؛نو هر ځل چې ترې انسان يا د خداى مخلوق څه وخوري؛نو صدقه ورته حسابېږي .(٢٩٢١حديث – نهج الفصاحة )

ðپسرلى مو چې وليد(؛نو)قيامت ډېر ډېر رايادوئ.(جهان بيني اسلامي،استاد مطهري)

ðمؤمن چې ونه يا څه وکري،چې انسان،مارغان يا څاروي يې ترې وخوري ؛نو ورته صدقه ده . ( مستدرک الوسايل  ١٣\٤٦٠)

 

د کهف سورت

ðڅوک چې د جمعې پر ورځ د”کهف سورت” ولولي (؛نو) دوو جمعو ترمنځ ورته (په زړه کې ځانګړې) رڼا پيدا کېږي . (بيهقي)

 

لوڼې

ð د چاچې لور وزېږي او په قدر يې وپوهېږي او و يې نه ځوروي او د مينې او چلن تر مخې يې له زامنوټيټه ونه ګڼي؛نو خداى به ورته په بدل کې جنت په برخه کړي .  ( احمد- دحاکم مستدرک )

 ðد چاچې درې لوڼې يا درې خويندې يا دوې خويندې يا دوه لوڼې وي او ښه يې وروزي اوښه چلن ورسره وکړي او واده يې هم کړي ؛نو جنت ورپه برخه دى .( ابوداود- “ترمذي” ) 

 ðپه ډاليو ورکولو کې مو له اولادونوسره يوشان چلن وکړئ او که په دې باب مې څوک غوره ګاڼه؛نو هغه به ښځې وې (؛يعنې که مساوات او يوشانوالى لازم نه و؛نو امر مې کاوه،چې تر زامنو،لوڼو ته زيات ورکړئ) ( د سعيدبن منصورسنن – “طبراني” الکبير)

 

د اسلامي ټولنې د وګړيوخپلمنځي اړيکې

 ðد اسلامي ټولنې وګړي د يوې تنې د غړيو په څېر دي،که سترګه يې درد وکړي؛ټول بدن يې دردېږي اوکه سر درد شي؛نو ټول بدن ورسره دردېږي .( مسلم )

ð مسلمان پر مسلمان پينځه حقونه لري : ١- د سلام ځوابول  ٢- د ناروغۍ  پوښتل . ٣- په جنازه کې يې ګډون کول ٤- بلنه منل .٥- د”پرنجي” پر مهال يې “يرحمک الله” ويل . ( بخاري – مسلم )

 

عیال

ðمخلوق  د الله تعالى “عيال” دى؛نو هغه خداى ته ډېرغوره دى،چې له عيال سره ښه چلن کوي . (بيهقي)

ð ټول مخلوقات د خداى عيال دى؛نو د خداى په بندګانوکې تر ټولو هغه غوره دى،چې له عيال سره يې ډېره مينه لري .(بيهقي)

 

د غونډې آداب

ð د دوو ترمنځ بې له اجازې يې مه کېنه.( د ابوداود سنن )

ðڅوک چې له غونډې ووت او راستون شو؛نو له نورو سره پر خپل ځاى د کېناستو وړ دى . (مسلم)

ðڅوک چې په دې خوشحالېږي،چې خلک يې درناوي ته راپورته شي؛ نو ځان ته دې په دوزخ کې ځاى جوړ کړي .( “ترمذي” – “ابوداود”)

ðلکه عجم،چې درناوي ته يو بل ته راپاڅي؛نو دغسې زما درناوي ته مه راپاڅئ . ( ابوداوود)

 

 

شعر

ð ځينې ويناوې کوډې،ځينې پوهې ناپوهۍ او ځينې شعرونه حکمت دي . ( مستدرک الوسايل ٦/ ١٠٠)

 ð شعر په خپله يو ډول خبرې اوکلام دى،ښه يې ښه او بد يې بد دی . (الدارقطني )

ð (د منځپانګې له پلوه) ځينې  شعرونه حکمت دي . (بخاري)

ð رسول اکرم (ص) وويل :”لبيد بن ربيعه” ښه رښتينى شعر ويلى ((الاکل شى ماخلاالله باطل)؛پوه شئ،چې بې له”الله هر څه فنا کېدونکي دي .  ( بخاري – مسلم )

ð”عمرو بن شرير”له خپل پلار “شريربن سويد ثقفي” روايت کوي،چې په يوه سفرکې په رسول اکرم (ص)  پسې پر سپرلۍ سپور وم، آنحضرت راته وويل : د “اميه بن صلت” شعرونه دې ياد دي؟ ورته مې وويل : هو! راته يې وويل : و يې وايه . ما ورته يو بيت ووايه . بيا يې راته وويل:و يې وايه، ما يو بيت ووايه . بيا يې وويل : و يې وايه . بيا مې ورته تر سلو بيتو پورې وويل . ( مسلم )

ðاو په يو روايت کې راغلي،چې آنحضرت وويل:”اميه” د اشعارو له پلوه اسلام ته ډېر نږدې شوى و اوپه بل روايت کې (فتح الباري ١٥/٤٣٠ ) يې وويل : (( امن شعره وکفرقلبه ) شاعري يې مسلمانه؛خو زړه  يې کافر پاتې شوى دى .

 

پرنجى او پړمخکۍ

ðپړمخکۍ،چې درشي؛نو پر خوله لاس کېږدئ؛ځکه شيطان پکې ننوځي . ( مسلم)

 

ځان سینګارول

ð د خداى دا ښه ايسي،چې پر بنده يې د لورنې اغېزې څرګندې وي . (“ترمذي” )

ð ښه وخورئ،وڅښئ او نورو ته هم صدقه ورکړئ او ښه واغوندئ؛خو چې “اسراف” کبر او د ځانښوونې نيت پکې نه وي . (نسائي – ابن ماجه)

ð وېښتان مو سم کړئ او پاکې جامې واغوندئ . ( احمد- نسائي )

ð ساده ژوند کول د ايمان يوه څانګه ده .(ابوداوود)  

ðد فطري دين څلورځانګړنې دي :  ١- سنتول .٢- تر نامه لاندې د وېښتانوخريېل . ٣- د برېتولنډول . ٤- د نوکانو پرې کول . ٥- تخرګونو وېښته خريېل .  

ð هرڅوک دې د خپلو وېښتانوعزت وکړي .(؛يعنې خپل وېښتان ښه وساتئ.) (ابوداوود )

ð له حضرت عبدالله بن عمروعاص(رض) روايت دى،چې رسول اکرم (ص) به خپله ږيره په اوږدو او لنډو جوړوله . (ترمذي)

 

نامحرمو ته کتل

ð رسول اکرم (ص) علي ته وويل : علي ! که ناڅاپه دې پر نامحرمې نظر ولوېد؛نوڅه باک نه لري؛خو دويم ځل کتل درته روا نه دي . ( احمد- “ترمذي” – ابوداوود)

 

د ايمان نښې

ð خداى چې تر ما مخکې په کوم امت کې پېغمبر معبوث کړى؛ نو يو شمېر وړ مرستندويان او اصحاب يې درلودل ،چې پر دود به يې تلل او لارښوونې به يې عملي کولې بيا داسې شول،چې ناوړه يې ځايناستي کېدل ؛داسې چې څه يې ويل،عمل يې پرې نه کاوه او داسې چارې يې کولې،چې دنده يې نه وه؛نوڅوک چې په خپل مټ ور پسې راپاڅي او جهاد وکړي؛نو مؤمن دى او څوک چې يوازې پر ژبه يې مقابله وکړي؛نو هم مؤمن دى او څوک چې (له ژبني جهاده هم بېوسې و) او يوازې په زړه يې ورسره جهاد وکړ(؛يعنې د زړه له کومې يې ورسره کرکه لرله)هم مؤمن دى؛خوکه دغسې (درې) ځانګړنې يې نه لرلې ؛نو د ږدن د دانې هومره”ايمان”پکې نشته. (مسلم)

ðد بنده ايمان هله سمېږي،چې زړه يې سم شي او زړه پر ژبه سمېږي ؛ نو له خداى سره داسې ليده کاته وکړئ،چې د مسلمانانو شتمنیو ته مو لاس نه  وي غځولى او پر ژبه مو نه وي بې پته کړي .(بحارالانوار ٦٨\ ٢٩٢)

 

وفا

ð دين نصيحت (اخلاص،زړه سوى او وفا) دى . و موپوښتل: له چا سره زړه سوى او وفا؟راته يې وويل : له الله تعالى،له استازي (ص) سره يې، د مسلمانانو له مشرانو او تر ټولو مسلمانو پرګنوسره .  (مسلم )

 

الهي تقدير

ð رقيه او تعويذ،دارو،درمل او هغه چارې،چې ستونزې او کړاوونه پرې لرې کېږي؛دا ټول په الهي تقديرکې شمېرل کېږي. (احمد،”ترمذي”،ابن ماجه)

 

اړتیا پټه ساتل

 ð د خداى بېوزلى او ګڼ اولادى  بنده خوښېږي؛خو چې عفت ولري (؛يعنې بېوزلي يې دې ته نه اړباسي،چې له نامشروع لارو څه لاس ته راوړي؛دغسې نورو ته هم خپله بېوزلي نه څرګندوي). (ابن ماجه)

ð څوک چې وږى وي يا څه ته اړتيا لري؛خو څوک يې پر ځان خبر نه کړل ؛ نو د يو کال د حلال رزق ورکړه يې د خداى په ذمه ده . (بيهقي)

 

ساتېري

ð له ارام پالنې او ساتېرۍ ځان وژغوره؛ځکه د خداى ځانګړي بندګان دغسې نه دي . (احمد)

  

متقي شتمن

ð د خداى متقي،شتمن او نامشهور بنده خوښېږي .(؛يعنې له شتمنۍ او تقوا سره سره يې ځان مشهورکړى نه دى .)

ð په نړۍ کى د خداى له احکامو لاروي وکړه (متقى وسه) او په هرې بدۍ پسې نېکي وکړه،چې ورباندې ووينځل شي او د خداى له بندګانوسره ښه چلن  وکړه. (“احمد”– “ترمذي” – “الدارمي”)

 

نفقه

ð د يتيم (پلارمړي) پر سر لاس راکاږه او بېوزليو ته خواړه ورکړه. (احمد)  

ðنورو ته نفقه ورکړئ،چې خداى يې تاسې ته درکړي .( بخاري– مسلم)

 

سخي او بخیل

ðسخي،خداى او بندګانو ته يې نږدې وي او بخيل له خداى او بندګانو يې او(همداراز) له جنته لرې او دوزخ ته نږدې وي،بېشکه خداى ته “ناپوهه سخي” تر “عابد بخيله” ډېرګران دى . (ترمذي)

ð د بنده په زړه کې کله هم حرص،بخل اوايمان نه يو ځاى کېږي . (نسايي)

 ðچلي،بخيل او منت اېښوونکى جنت ته نه ځي . (ترمذي)

 

سخاوت

ðعلي! سخي وسه،چې سخيان د خداى ښه ايسي.كه څوك درته د كومې اړتېا لرې كولو ته راغى؛نو اړتيا يې لرې كړه؛نو که څه هم هغه د بخشش وړ نه و؛خو ته د بخشش وركولو وړ يې .( مشكاة الانوار : ۲۳۳)

ðسخي انسان خداى،خلكو او جنت ته نږدې او له اوره لرې وي اوكنجوس له خداى،خلكو او جنته لرې  او اور ته نږدې وي.( مستدرك الوسايل : ۷ \۱۳)

ð سخي هغه دى،چې خپله شتمني د خداى لپاره وبښي او څوك چې د خداى د احكامو د مخالفت په لار كې بخشش وركړي؛ نو د خداى غوسه اوغصب به يې پر اوږو كړی وي او پر ځان به ډېر كنجوس وي .( بحار الانوار: ۶۸\۳۵۵)

ðد سخي خواړه شفا دي او د كنجوس د ناروغۍ لامل دي. ( بحارالانوار  ۶۸\۳۵۷)

ðسخاوت يوه ونه ده،چې بېخ يې په جنت كې او څانګې يې تر دنيا راغلي دي؛نو څوك يې چې كومه څانګه ونيسي؛نو د جنت لوري ته يې راكاږي . ( وسايل  ۹\۱۹ )

ðد “اولياء الله” فطرت (او خټه) له سخاوت او ښه خوى سره اغږل شوې ده . ( مستدرك الوسايل ۷\۱۳)

ðمنت ايښوول د سخاوت آفت دى . ( الحضال  ۲\ ۴۱۶)

ð ډېرسخي هغه دى،چې د خپلې شتمنۍ زكات وركړي او ډېر بخيل هغه دى،چې د فرض زكات له وركړې ډډه  وكړي .(مشكاة الانوار  ۲۳۱مخ )

ð اسلام د كنجوسۍ په څېر بل هيڅ څيز نه پوپنا كوي . (الكافي ۴\ ۴۵)

 

بدګوماني

ðپر يو بل له بدګومانۍ ډډه وکړئ،چې دا ډېره دروغجنه خبره ده،د يوه بل کمزورۍ مه وايئ او د ځووپه شان د يو بل عيبونه مه راسپړئ،پر يوبل مه ګواښېږئ، يو له بل سره کينه مه لرئ او مه ورسره دښمني کوئ اومه يوبل ته شا کړئ؛بلکې دخداى بندګانو! يو له بل سره وروڼه وسئ . (بخاري – مسلم )

ðڅوک چې نرم خويه نه وي؛نو تر ټولو ښو به بې برخې وي . (مسلم)

ðبدغونى او بدژبى جنت ته نه ځي. ( ابوداود)

ðد خلکو له بدګومانۍ ځان وژغورئ . ( تحف العقول : مخ ٥٤)

دروغ

ð د مؤمن په طبيعت کې بې له “خيانت” او”دروغو” بل هر څه  ورننووتاى شي. ( احمد –بيهقي)

ð څوک چې دروغ وايي؛نو پرښتې يې د خولې له بدبويۍ يوميل لرې کېږي .(ترمذي)  

ð دا ډېر ستر خيانت دى ،چې له ورور سره دې دروغ ووايئ،حال داچې هغه درته رښتيا وايي . (ابوداوود)  

ð په دروغو شاهدي ويل له “شرک بالله” سره مساوي ده. (ابوداوود– ابن ماجه) 

 ð څوک چې په دروغو د چا مال تر لاسه کړي يا يې ضايع کړي؛نو له خداى سره په داسې حال کې ويني،چې پر “جذام” به اخته وي . (ابوداوود)

ð حضرت”عبدالله بن عامر” روايت کوي،چې يوه ورځ آنحضرت (ص) زموږکره راغلى و  او مور مې راته غږکړ: راشه،چې څه درکړم . آنحضرت مې مور ته وويل : زوى ته دې څه ورکوې ؟ مور مې ورته وويل : کجورې . آنحضرت ورته وويل : پام مو وسه،که خبره دې عملي نه کړې؛نو په کړن ليک کې دې دروغ ليکل کېږي . (ابوداوود- بيهقي)

ð څوک چې د خلکو خندولو ته په خبرو کې دروغ وايي؛نو پر هغوى دې افسوس وي؛نو پر هغوى دې افسوس وي .(احمد- ترمذي – ابوداوود – الدارمي )

ð له چا سره،چې په کومه مسئله کې مشوره وشوه؛نوپه اړه يې امين او ورته امانت سپارل شوې ده. (ترمذي)

ð څوک چې خبرې کوي او شاوخوا ته يې وکتل (؛نوپوه شه)چې خبرې يې امانت دي . (ترمذي– ابوداوود)

ðدروغجن ځکه دروغ وايي،چې ځان ورته کوچنى ښکاري. (مستدرک ٢/١٠٠) 

ðدروغجن ته همدا بس دي،څه چې اوري،وايي يې .(مسلم)  

ðڅوك چې په لوى لاس راپورې دروغ وتړي؛نو دوزخ يې ځاى دى .( كشف الغمه : ۴۶۰ )

ðزياتې ټوكې كول ابرو له منځه وړي، ډېر دروغ او خندا ايمان پوپنا كوي او ډېر دروغ ويل انسان بې ارزښته كوي . (روضة الواعظين : ۲ ۴۱۹ )

ðهر ډول دروغ ويل ګناه ده ؛خو دا چې يو مؤمن ته ګټه ورسي يا پرې له دې نه شر لرې كېږي ( مستدرك الوسايل  ۹\ ۹۵ )

ðدروغ د خبرې آفت دى . ( بحارالانوار  ۶۶\ ۳۸۹)

ðد نارينه ايمان هله بشپړېږي،څه چې ځان ته خوښوي،خپل مؤمن ورور ته يې هم خوښ كړي او په ټوكو كې هم له دروغو ډډه وكړي. ( بحارالانوار ۶۶\ ۳۸۹)

ð دروغ د نفاق له ورونو يو ور دى . ( مجموعة ورام  ۱\۱۱۳)

ðڅوك چې په موږ اهلبيتو پورې دروغ وتړى؛نو د قيامت پر ورځ ړوند او په يهودي دين راپاڅي او كه د دجالو پر مهال وي؛نو ايمان پرې راوړي .( بحارالانوار  ۲\۱۶۰)

ðدروغ ويل په درېو ځايوكې سم دي:(۱) خپلې مېرمن ته د مېړ ه دروغ ويل (۲)د هغه سړي دروغ ويل،چې دوه تنه سره پخلا كوي (۳) اوخپل دښمن ته د چارواكي دروغ ويل؛ځكه په جګړه كې چل روا دى. (الجعفريات  ۱۷۰ مخ )

ðله دروغو ځان وژغورئ ؛ځکه انسان مختورى کوي .( تحف العقول : مخ ١٤)

ð دروغ ويل انسان مختورى کوي او چغلي د قبر عذاب راوړي .( کنز ٣/ ٦١٩ )

ð دروغ ويل ،روزي کموي . ( ميزان: ١٧١٦٣ ح )

ðدروغ ويل خيانت دى . ( بحار ٧٢/ ١٩٢)

ðد يو چا دروغ ويلو ته همدا بس دى،چې څه يې اورېدلي وي، ويې وايي .( مکارم الاخلاق : مخ ٤٦٧)

ðيو ستر دروغ دادي،انسان چې په خوب کې څه نه وي ليدلي؛خو ووايي چې ليدلي مې دي .[ بخاري : ٧٠٤٣ ح]

ðپر دروغوشاهدي ورکول له خداى سره د شرک سره برابره ده . ( ابو داوود – ابن ماجه )

ðدروغجن دروغ نه وايي؛خو داچې په ځان کې ټيټوالى احساسوي. (بحار ٧٢\٢٤٩ )

ð دروغجن د خپل نفس د خوارېدو له امله دروغ وايي. (بحار ٧٢ټ)

 

قیامت

ðخداى د قيامت پر ورځ درېو تنو ته نه ګوري او ورته دردوونکى عذاب دى :

 ١- بوډا زناکار.٢- دروغجن واکمن.٣- کبرجن شتمن . (مسلم )

ð په قيامت کې به غږ  وشي : چاچې خداى ته څه کړي؛خو بل هم ورسره شريک کړي؛نو ثواب دې يې له هماغه واخلي؛ځکه خداى د ټولو شريکانو له ګډونه  غني او مړه خوا دى . (احمد)

ð”خوله انصاري” (رضى الله عنها) روايت کوى،چې رسول اکرم وويل: ځينې خلک په ناحقه د مسلمانانوپر مالونوخېټه اچوي؛نوځکه يې د قيامت پرورځ اورپه برخه کېږي . [ بخاري : ٣١١٨ ح]

ð زه او قيامت ددې دووګوتو په څېر(يو بل ته نږدې) يو. (بخاري،مسلم)

ðهر څوک تر مرګ وروسته هرومرو پښېمانېږي؛ځکه که”ښه” وي؛ نو پښېمانه وي،چې ولې مې تر دې ﻻ ډېر ښه کارونه ونه کړل او که “بد” وي؛ نو پښېمانه وي،چې ولې مې ترې ﻻس نه اخسته .(ترمذي)

ð په قيامت کې به د مؤمنانو قيامت(او پاڅون)خورااسان وي،ان تردې چې د يو فرض لمانځه د وخت هومره به لنډ وي .(بيهقي)

ð څوک چې د شپې تهجدو ته پاڅي؛نو بې حساب وکتابه جنت ته ننوځي. (بيهقي)

ð د قيامت پر ورځ به پېغمبران،اسلامي عالمان اوشهيدان شفاعت کوي .(ابن ماجه )

 ð له معمولي او کوچنيو ګناهونو ځان وژغورئ؛ځکه په اړه يې پوښتل کېږئ. ( “ابن ماجه” ، “بيهقي”،”الدار مي”)

ð د خداى چې کوم بنده ښه ايسي؛نو له دنيا يې داسې خوندي ساتي؛ لکه چې خپل ناروغ له اوبو څښلوخوندي ساتئ.(په دې شرط،چې اوبه ورته زيانمنې وي) ( احمد -ترمذي)

ðد قيامت پر ورځ ښه خوى تر ټولو ارزښتمن څيز دى،چې د کړنو په تله کې ايښوول کېږي . ( الکافي  ٢\٩٩)

ðله تېري ډډه وکړئ،چې د قيامت د ورځې د تيارو لامل دى .(الکافي ٢\ ٣٣٢)

ðد قيامت ځمکه له اوره ده؛خو بې له هغه ځايه،چې د مؤمن سيورى پرې وي او( په دنيا کې) د مؤمن صدقې دا سيورى رامنځ ته کړى . (وسايل  ٩\٣٦٩)

ðهغوى د قيامت پر ورځ دخداى تعالى پر وړاندې ډېر ناوړه خلک دي، چې خلک يې له شره خونديتوب له امله درناوى کوي .(الکافي : ٥\٣٢٦)

 

منځلاري

ðد نبوت د پينځه څلوېښتمې برخې يوه برخه ښه ډالۍ،ښه خوى او منځلاري ده.( الخصال  ١\١٧٨)

ðله خلکو سره مينه،نيم عقل او نرمي نيم ژوند دى او منځلارى له ستونزو سره نه مخېږي . ( الجعفريات : ١٤٩)

ðد انسان د ژغورنې درې څيزونه : ( ١) په پټه او ښکاره له خدايه ډار ( ٢)په خوشحالۍ او غوسه کې عدالت کول (٣) او په شتمنۍ او نېستۍ کې منځلاري . او درې څيزونه پوپنا کوونکي دي : ( ١) په ځاني غوښتنو پسې تلل .( ٢) کنجوسي،چې پر انسان برلاسې شي ( ٣) او کبرکول . (احکايات : ٩٧)

ðڅوک چې د ژوند په لګښتي چارو کې منځلاري کوي،پاک خداى يې روزي خوندي کوي او څوک چې اسراف وکړي ؛نو خداى يې بې برخې کوي .( الکافي  ٤\٥٤)

ðعلي! په تا کې د عيسى د مريمې د زوى څه يوونکي شته؛يوې ډلې ستا په مينه کې زياتى وکړ،چې هلاکه شوه،بلې ډلې ستا په دښمنۍ کې زياتى وکړ،چې هغه (هم) هلاکه شوه او چې کومې منځلاري وکړه ؛نو وژغورل شوه . (الامالي للطوسي : ٣٤٤)

ðخداى چې کومې کورنۍ ته ښه وغواړي؛نو په دين کې ورته ژوره پوهه ورکوي،په ژوند کې ورته نرمي وربښي او په چارو کې يې منځلاري په برخه کوي او کوچنيان يې د مشرانو درناوى کوي او که ونه غواړي؛نو پر خپل حال يې پرېږدي .( الجعفريات : ١٤٩مخ )

ðعلي! په تا کې دعيسى (ع) څه يوونکي شته؛يهودانو ورسره دومره دښمني وکړه،چې ان په مور يې ورته تورونه وتپل او نصاراوو ورسره دومره مينه وکړه،چې داسې ځاى ته يې ورساوه،چې د هغه لپاره نه و . (شواهدالتنزيل  ٢\٢٢٨)

 

الفت او مينه

ð مسلمانان د لورنې،مينې او نرمۍ له پلوه پخپلو کې د يوې تنې په څېر دي،که يو غړى يې په درد شي؛نو نور هم ورسره دردېږي . (بخاري –مسلم)

ð مؤمن د مينې مورينه  ده؛نو که څوک له نوروسره مينه نه لري او نور يې هم له ده سره نه لري؛نو هېڅ ډول خېر پکې نشته. (بيهقي-احمد)

 

 

 

امانت

ðامانت ساتنه د روزۍ لامل دى او له نورو سره خيانت،بېوزلي اونېستي راولي .( تحف العقول: ٤٥)

ðد قيامت پر ورځ زړه سوى او امانت ساتنه د “صراط” دوه  خواوې دي؛نو زړه سواند او امانت ساتى،چې ترې تېرېږي،په بيړه د جنت پر لور ځي او په امانت کې خاين او سخت زړى،چې ورته ورسي؛نو له دې دواړو کړنو بېخې څه ګټه نه ويني او له صراطه د جهنم پر لور ورکږېږي . ( الکافي : ٢\ ١٥٢)

 ðپر چا چې اطمينان لرئ؛خپل امانت ورکړئ،که څه هم ښه يا بد وي . (الکافي : ٦٣٦)   

ðڅوک چې په امانت کې خيانت وکړي؛له موږه نه دى.(الکافي٥\ ١٣٣)

ðچا چې درباندې اعتماد کړى؛نو امانت يې وروسپاره او چاچې درسره خيانت کړى؛نو ته ورسره خيانت مه کوه.(تهذيب الاحکام٦\٣٤٨)

ðڅوک چې مړي ته غسل ورکوي؛نو بايد امانت يې وساتي،چې د امانت ساتلو په بدل کې يې د بدن د هر وېښته په مقابل کې د هر مريي د ازادولو هومره ثواب دى او همداراز پاک خداى يې سل درجې لوړوي . رسول اکرم وپوښتل شو: د مړي د امانت ساتنې مفهوم څه دى ؟ ورته يې وويل : عورت،نيمګړې او عيبونه يې پټ کړي او که دا کار و نه کړي ؛نو ټول ثواب يې پوپنا کېږي او خداى به يې په دنيا  او آخرت کې نيمګړې اوعيبونه رابرسېره کړي . ( وسايل  ٢\٤٩٧)

ðزما امت به تر هغه په خیر او ښو وي ،چې له يو بل سر خيانت و نه کړي او امانت خپل خاوند ته وروسپاري،زکات ورکړي،لمونځونه وکړي او مېلمه پال وي او که دا چارې و نه کړي؛نو په وچکالۍ او قحطۍ به اخته شي . ( وسايل  ٩\٢٥ )

ðڅوک چې امانت سپک وګڼي؛داسې چې په بېرته ورکړه کې يې ټکنى  کړی وي ؛نو له موږه نه دى . ( مستدرک الوسايل  ١٤\ ١٢)

ðد چا ډېرو لمونځونو،روژو،حج تلو،د زکات ورکړې،ښو چارو  ډېرښت او د شپې زمزمو ته مه ګورئ؛بلکې رښتيا ويلو او د امانت سپارلو ته يې وګورئ . (الاختصاص : ٢٢٩ مخ)

ðشپږ کړنې دي که چا يوه وکړه؛نو په قيامت کې دا کړنه هڅه کوي،چې نوموړى جنت ته ننباسي اووايي : خدايه ! دې وګړي زه په دنيا کې تر سره کړې يم او هغه دا دي :لمونځ ،زکات ،حج،روژه ، د امانت ورکړه او زړه سوى . ( الامالي للمفيد: ٢٢٧مخ )

ðڅوک چې رښتینولي،امانت ساتنه،حيا او ښه خوى ولري؛نو ايمان يې بشپړ دى، که څه هم سر تر پا يه ګناهګار وي . (التمحيص : ٦٧مخ )

ðڅوک چې په نړۍ کې په امانت کې خيانت وکړي او خاوند ته يې  ور و نه سپاري؛نو که مړ شي د رسول الله پر امت به نه وي مړ شوی  او له خداى سره به په داسې حال کې ليده کاته کوي،چې پرې غوسه وي . (من لايحضرالفقيه ٤\١٥)

 

امت

ðچې کله مې په امت کې بدعتونه راښکاره شول؛نو د عالم دنده ده، چې خپل علم راښکاره کړي او که داسې ونه کړي؛نو خداى به يې لعنت کړي . ( الکافي ١\٥٤)

ðزما د امت د غوره وګړيو ځانګړنې دا دي :په مسافرت کې روژه نه نيسي،د  مسافرت لمونځ کوي او په ورين تندي نېکي کوي او چې کله هم کوم ناوړه کار وکړي ؛نو بښنه غواړي او د امت مې ډېر ناوړه هغه دي،چې په مېلو چړچو کې ژوند کوي،ښه خواړه خوري،ښې جامې اغوندي او په خبرو کې رښتيا نه وايي . ( الکافي٤\ ١٢٧)

ðد امت غوره وګړي مې په لږو اوبو اودس کوي .(مستدرک الوسايل  ١\ ٣٤٩)

ðجبرئيل راباندې د شپې په پاڅون او تهجدو دومره سپارښتنه وکړه، چې ګومان مې وکړ،چې ډېر غوره امتي به مې هېڅکله نه ويدېږي (وسايل ٨\١٥٤)  

ðچې کله خداى زما پر امت غوسه شي او عذاب پرې نه راکوزوي؛نو قيمتي پرې راوړي او عمرونه يې لنډېږي،سوداګر لږه ګټه کوي،مېوې ښه وده نه کوي اوسيندونه نه ډکېږي،باران پرې نه اوري او ډېر ناوړه وګړي پرې واکمنېږي .( الکافي ٥\٣١٧)

ðما ته په اوونۍ کې پر دوشنبه او پنجشنبه د امت کړنې راوړاندې کېږي؛نو هر مؤمن بښل کېږي؛خو هغه چې ترمنځ يې کينه وي او ورته ويل کېږي : دواړه تر هغه پرېږدئ،چې زړونه يې له کينې پاک شوي نه وي . ( صحيح مسلم )

ðزما د يارانو مثال په خوړو کې د مالګې په څېر دی،چې بې مالګې خواړه خواږه او خوندور نه  وي . (جامع الصغيرسيوطي)

ðزما امت د باران په څېر دى؛نه پوهېږي،چې پيل يې خير دى او که پاى . (دامام احمدحنبل مسند)

 

اسلامي مذاهب

ð امت به مې پر “درې اويا” ډلوو واېشل شي،چې يوازې  يوه يې ژغورل کېږي . (المعجم الکبير ١٩/٣٧٧)

ð خوارج د دوزخيانو سپي دي . (د ابن ماجه سنن ١/ ٦١)

ð”قدريه”زما د امت “مجوسيان” دي،که ناروغ شي،پوښتنې ته يې مه ورځئ او که ومري؛په جنازه کې يې ګډون مه کوئ . ( سنن ابي داوود ٢/ ٤١٠   شرح مسلم للنووي ١/ ١٥٤)

[ تبصره: قدريه د جبر د مسلک لارويان دي،چې ګروهمن دي،نړۍ په مازې جبر اداره کېږي او موږ پکې هيڅ اراده نه لرو. دا فکر امويانو په اسلام کې خپور کړ.]

ð زما د امت دوه ډلې له اسلامه برخمنې نه دي :”مرجئه” او “قدريه” . (الخصال ١/٧٢)

[ تبصره:مرجئه هغې ډلې ته وايي،چې يوازې په زړه کې ايمان بسيا بولي؛نه کړنې.]

ð علي ! زما په امت کې ستا مثال د”عيسى د مريمې د زوى” په څېر دى؛ چې قوم يې پر وړاندې درې ډلى شو: يوه ډله مؤمنان ول،چې هماغه حواريون ول . يوې ډلې ورسره دښمني راواخسته،چې هماغه يهوديان ول  او يوې ډلې يې په اړه “غلو” وکړه او بې ايمانه شول . زما امت هم ستا په اړه درې ډلې کېږي : يوه ډله په تا پسې ځي،چې هماغه مؤمنان دي . يوه ډله دې دښمنان دي،چې ستا په اړه هماغه شکمن دي او يوه ډله ستا په اړه غلو کوي او هغه به ستا منکران وي  او على! ته،ستا لارويان او د دوى مينوال په جنت کې دي او دښمنان او غاليان به دې په اور کې وي .(بحار الانوار: ٢٥/ ٢٦٤ -المناقب،الموفق الخوارزمي ٣١٧ مخ، مجمع الزوايد ٩/ ١٧٣  المعجم الاوسط ٦ / ١٣٥٤  کنزالعمال ١/ ٢٢٣ )

 

لاروي

ð د الهي لارښوونو منل سترګې يخوي . (مستدرک الوسايل  ١١/ ٢٥٧)

ð ډېره ناوړه ډله هغه ده،چې د الهي احکامو د سرغړونه په باب يو له بل سره ژمنه وکړي . ( مستدرک الوسايل ١٦/ ٤٥)

ð په کومو چارو کې چې د خداى له احکامو سرغړاندې کېږي؛نو د مخلوق لاروي روا نه ده . (د نهج البلاغى شرح ١٦ /١٥٨)

ð په علي پسې تلل د خوارۍ لامل دى او سرغړونه ترې کفر دى . په دې اړه رسول اکرم وپوښتل شو،چې څرنګه؟ آنحضرت ورته وويل: علي تاسې د حق پر لار بيايي؛نو که پېغور ورکړئ،خوارېږئ او که سرغړونه ترې وکړئ،پر خداى کافرانېږئ . ( الکافي ٢/ ٣٨٨)

ðمتعال خداى پر تاسې زما اطاعت فرض کړى دى او زما له سرغړونې يې منع کړي ياست او پر تاسې يې زما لاروي او تر ما وروسته د”علي بن ابيطالب” لاروي لازمه کړې ده؛لکه چې پر تاسې يې زما اطاعت فرض کړى او زما له حکمه سرغړونه يې منع کړې او هغه يې زما ورور،وزير، وصي او وارث کړى دى . (په حقيقت کې) هغه له ما څخه دى او زه له هغه څخه يم، دوستي ورسره ايمان او دښمني ورسره کفر دى،دوست يې زما دوست او دښمن يې زما دښمن دى او هغه، د هغه مولى دى،چې زه يې مولى يم  او زه د هر نارينه او ښځمنې مسلمان مولى يم او زه او علي د دې امت پلرونه يو. (بحارالانوار ٢٩/ ٢٦٣)

 

عاجزي او تواضع

د تواضع  ځانګړنه ده چې :انسان په غونډه کې له خپل ځايه کوز کېني،څوک چې  ګوري،سلام پرې اچوي،له شخړې ځان ژغوري،که څه هم په حقه وي او داچې ښه يې نه ايسي،چې په نېکۍ او تقوا وستايل شي. (الجعفر يات : ١٤٩)

ð په همسا تګ (هم) د تواضع له نښو ده،په هر قدم اخستو زر نېکي ورکول کېږي او زر درجې يې لوړوي . ( بحارالانوار ٧٣/ ٢٣٤ )

ð تواضع د اصل و نسب ښکلاه ده . ( جامع الاخبار : ١٢٢)

 ðڅوک چې د خداى لپاره تواضع وکړي؛خداى يې مقام لوړوي .( مستدرک الوسايل ١١/ ٢٩٧ )

ð څوک چې درې ځانګړنې ولري،” الهي لقاء” ته رسي او له هر وره، چې وغواړي جنت ته ننوځي : د چا چې ښه خوى وي،په پټه او ښکاره له خدايه وډار شي او شخړې ته شا کړي،که څه هم په حق وي .(الکافي ٢/ ٣٠٠)

 

کنځل کول

مؤمن ته کنځلې کول فسق دى. (من لا يحضره الفقيه ٣/ ٥٦٩)

 

فصاحت

موږ اهلبيتو ته اوه ځانګړنې راکړل شوي،چې تر موږ وړاندېنيو ته پوره نه دي ورکړل شوي : ( ١) ګهيځ پاڅېدل (٢) فصاحت ( ٣) ستريا ( ٤) مړانه ( ٥) زغم ( ٦) پوهه ( ٧) او له خپلې مېرمنې سره مينه. ( الجعفريات  ١٨٢ )

ð فصاحت د خبرې ښکلا ده . (جامع الاخبار : ١٢٢)

 ðمسواک وهل د نارينه فصاحت زياتوي . (مکارم الاخلاق : ٤٨ مخ)

 

ديني پوهه

 ðهغه عبادت بې ارزښته دى،چې پکې پوهه او اندنه نه وي.   ( الجعفريات : ٢٣٨ )

ð خلکو ! په پوره دين او ژورې پوهې حج ته ولاړ شئ . (مستدرک الوسايل ١٠ / ١٧٣ )

ð ديني پوهه تر لاسه کول غوره عبادت دى . (منية المريد ٣٧٤ )

ð هر څيز يو بنسټ لري او د دې دين بنسټ ديني پوهه ده. (عوالي الاللي ٤/ ٥٩)

ð په حقيقت کې يوازې په مؤمن کې پينځه څيزونه راټولېداى شي،چې خداى جنت ورته لازم کړي : په زړه کې رڼا،په اسلام کې پوهه،په دين کې ورع ( د ټولو ښو کارونو کولو او د ټولو بدو چارو نه کولو ته ورع وايي)،له خلکو سره مينه کول او ښه خوى .(بحار الانوار ١/ ٢١٩)

ð څوک چې ديني پوهه ولري،څومره ښه سړى دى،که د کومې اړتيا لپاره ورته ورشې،په ګټه يې  ده او که ور نه شي،په خپله ګټه يې ده. (مستطرفات السرائر: ٥٧٨ )

ð ايا د پوره ديني پوهې خاوند (= فقيه) درته وښيم؟ هو يا رسول الله! ويې ويل : هغه چې خلک له الهي رحمته نهيلي نه کړي او د خداى له مکر (او غوسې) يې خوندي نه کړي،هغه چې خلکو ته د ګناه جواز ورنه کړي او قرآن يوې بلې لارې ته د لېوالتيا لپاره پرېنږدي؛ځکه په هغه علم کې څه خير نشته،چې په ژورې پوهې ولاړ نه وي او په هغه عبادت کې هم خېر نشته،چې د ژورې پوهې پر بنسټ نه وي او (همداراز) په کومو لوستو کې،چې تدبر نه وي،(هغه هم) ارزښت نه لري . (الجعفريات ٢٣٨ مخ )

 

غيبت

ð غيبت د انسان دين تر هغه خوړونکې ناروغۍ ډېر ژر له منځ وړي،چې په ګرد بدن کې خپرېږي . ( الکافي ٢/ ٣٥٦)

ðمؤمن ته پر مؤمن تېرى حرام دى او ورته حرام دي،چې يوازې يې پرېږدي يا يې غيبت وکړي يا يې ناوړه ځواب کړي . ( الکافي ٢/ ٢٣٥ )

ð له غيبته ډډه وکړئ،چې تر زنا يې ګناه ډېره ده؛ځکه د”زنا کار” توبه قبلېږي؛خو غيبت  کوونکى تر هغه نه بښل کېږي، چې غيبت شوى يې و نه بښي . (مجموعه  ورام  ١/ ١١٥)

ð پر ښځو مو د زنا تور مه تپئ؛ځکه دا کار طلاق ته ورته دى او (هم) له غيبته ځان وژغورئ؛ځکه دا کار کفر کولو ته ورته دى او پوه شئ،چې تور او غيبت زرکلنې کړنې پوپناه کوي . ( جامع الاخبار: ١٥٧ )

ðچاچې له تنه د حيا جامې راواېستې؛نو غيبت يې روا دى(؛يعنې د بې حيا غيبت روا دى.) (الاختصاص : ٢٤٢ )

ð څوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځې ايمان لري؛په هغه غونډه کې ناسته نه بويه،چې کوم مشر ته پکې  کنځلې يا د کوم مسلمان غيبت کېږي . ( تفسير القمي ١/ ٢٠٤)

ð د قيامت پر ورځ يو څوک خداى ته حاضر وي او کړنليک يې ورکوي؛خو خپلې نېکې کړنې پکې نه ويني . وايي: خدايه! دا خو زما کړنليک نه دى؛ځکه خپل عبادات پکې نه وينم. ورته ويل کېږي: پالونکى دې نه تېروځي او هېر هم نه لري،نېکې کړنې دې د خلکو د غيبت له امله له منځه ولاړې بيا يو بل راولي او کړنليک يې ورته ورکوي،چې ډېرې نېکۍ پکې ويني؛نو وايي : خدايه! دا خو زما کړنليک نه دى؛ځکه ما خو دا ټولې نېکې چارې نه دي کړي،ورته ويل کېږي : پلاني ستا غيبت وکړ؛نو ځکه يې ټولې نېکۍ په تا پسې وليکل شوې .( جامع الاخبار ١٤٧ )

ð هغه دروغ وايي،چې انګېري له حلالو زېږېدلى،حال داچې تل په غيبت د خلکو په غوښو خوړلو بوخت دى . له غيبته ډده وکړئ،چې د دوزخ د سپيو خوراک دى . ( الامالي للصدوق ٢٠٩)

ð د قبر عذاب له چغلۍ،غيبت او دروغو راولاړېږي. (مستدرک الوسايل ٩/ ١٢١)

ð څوک چې د مسلمان نارينه او ښځې غيبت وکړي،خداى تعالى يې تر څلوېښتو شواروزو پورې لمونځ او روژه نه قبلوي؛خو داچې غيبت شوى يې وبښي.( جامع الاخبار ١٤٦)

ð څوک چې د مسلمان غيبت وکړي؛نو لکه څوک يې،چې په لوى لاس وژلى وي . (مستدرک الوسايل ٩ / ١٢٥)

ð د معراج په شپه مې ځېني سړي وليدل،چې شونډې يې د خلکو د غيبت له امله په اورينو بياتي ګانو غوڅول کېدې . (مستدرک الوسايل ٩ / ١٢٦ )

ð په”معراج” کې مې پر داسې وګړيوسترګې ولګېدې،چې د مسو په څېر په تکو سرو نوکانو يې خپل مخونه او سينې توږلې،په اړه يې له جبراييل وپوښت؛راته يې وويل:دوى په دنيا کې د خلکوغوښې خوړې (د خداى د بندګانوغيبت يې کاوه) او د هغوى پر پت او ابرو يې لوبې کولې .( ابوداوود )

ð غيبت تر زنا ډېر ناوړه او درنه ګناه ده (؛ځکه) خداى زناکار په توبه بښي؛خو غيبت کوونکي،چې څو له غيبت شوي عذر نه وي غوښتى؛ نو نه يې بښي .(بيهقي)

ðغيبت دې ته وايي،چې د خپل ديني ورور په باب داسې څه ووياست،چې نه يې  خوښېږي . ( کنز ٣/ ٥٨٦ )

ð د يوچا د غيبت جبرانول دا دي ،چې له خدايه ورته بښنه وغواړې . ( کنز ٣/٥٨٨ )

 

غيرت

ðغيرت له ايمانه راولاړېږي اوکنځلې له ناوړه خويه . (الجعفريات ٩٥)

ð ابراهيم غيرتي و او زه ترې ډېر غيرتي يم او خداى دې د بې غيرتو مسلمانانو او مؤمنانو پوزې پرې کړي . (الکافي ٥ / ٥٣٦ )

ð حضرت”سعد بن عباده” رسول اکرم ته وويل : که له خپلې مېرمنې سره مې سړى وليد؛نو د څلورو ګواهانو تر راوستو پورې ورته وګورم؟ آنحضرت ورته وويل: هو!سعد وويل : پر هغه قسم،چې ته يې په حقه پېغمبر کړى يې،چې په وس کې مې وي؛نو تر هغه ړومبى به يې کار پوره کړم . پېغمبر اکرم وويل: واورئ،چې مشر مو څه وايي،هغه غيرتي دى او زه ترې ډېر غيرتي يم او متعال خداى تر ما ډېر غيرتي دى . (شيباني ٣ / ٢٤٥ )

ð حضرت عايشې بي بي له پېغمبراکرم سره غيرت(او کينه) کوله؛په خپله وايي: يوه شپه پېغمبر اکرم رانه ووت،غيرت مې راولاړ شو،چې شونې ده د مېرمنې کره تللى وي . پېغمبر اکرم راغى او ويې ليدل،چې زه څه کوم،راته يې وويل :غيرت دې راولاړ شوى دى؟ ورته مې وويل: زما په څېر څنګه پر تا په څېر کينه ونه کړي؟ پېغمبراکرم ورته وويل: شيطان دې درته راغلى دى. (شيباني ٢/ ٢٤٦)

ðهمداراز له حضرت عايشې بي بي روايت شوى دى چې :حضرت “صفيه” بي بي خورا  ښه پخوونکې وه، يوه ورځ پېغمبر زما کره واو “صفيې” بي بي ورته خواړه راوړل؛نو زه ورته دومره په کينه کې شوم؛ لکه څوک چې له يخنۍ لړزېږي او د هغې لوښى مې مات کړ او بيا پښېمانه شوم او پېغمبر اکرم ته مې وويل:ددې کار کفاره څه ده؟راته يې وويل : د لوښي په څېر يې لوښى او د خوړو په څېر يې خواړه. (شيباني ٢/ ٢٤٦)

ð غيرت (او کينه) دوه ډوله ده : ( ١) يو ډول د خداى خوښېږي او بله نه،په ريبت کې کينه د خداى خوښېږي او په غير ريبت کې نه. (ناصف ٤ / ٣٧١ )

[ ريبت : په هغه ځاى کې چې شک  او د شر او بدۍ نښې لېدل کېږي]

 

فتوا

ð څوک چې بې علمه خلکو ته فتواوې ورکوي،د اسمان او ځمکې پرښتې پرې لعنت وايي. ( کمال الدين ١ / ٢٥٦ )

 ð څوک چې چارې يو له بل سره پرتله کوي او احکام ترې استنباطوي،بې علمه فتواوې ورکوي او ناسخ و منسوخ،محکم او متشابه نه پېژني،هلاکېږي او نور هم هلاکوي . ( الکافي ١ / ٤٣ )

[ تبصره: په دې اړه د “زبير بن بکار” د “الموفقيات” کتاب ٧٥ مخ وګورئ]

 

کنځلې

ð مؤمن ته کنځلې کول د فسق لامل دى،جګړه ورسره  کفر دى،غوښه خوړل (غيبت کول) يې ګناه  او د مالونو حرمت يې د وينې د حرمت په څېر دى . ( الکافي ٢/ ٣٥٩ )

ð څوک چې کوم پېغمبر ته کنځلې وکړي بايد ووژل  شي او څوک چې د پېغمبر  صحابي ته کنځلې وکړي بايد په کمچينه ووهل شي. (مستدرک الوسايل ١٨ / ١٧٢ )

ð څوک چې علي ته کنځلې  وکړي؛نو ما ته يې کړي اوچاچې ماته کنځلې وکړې؛نو خداى ته يې کړي دي او څوک چې خداى ته کنځلې وکړي،دوزخ ته ننوځي او پر سخت عذاب اخته کېږي . (مستدرک  على الصحيحين ٣/ ١٢١ )

ð خلکو ته کنځلې مه کوئ،چې ترمنځ مو دښمني راولاړه نشي. ( الکافي. ٢/ ٣٦٠ )

ðمړيو ته کنځلې مه کوئ،چې ژوندي (خپلوان) يې خپه نشي . (الدعوات ٢٧٨)

ðمؤمن ته کنځلې کول د انسان د هلاکت لامل دى . ( الکافي ٢/ ٣٥٩ )

ð که کنځلې انځورېداى؛نو خورا ناوړه انځور به يې  درلود. ( الکافي ٢/ ٣٢٤ )

[ تبصره: دا مثال د عامو خلکو د پوهېدو لپاره ويل شوى دى،وګورئ: دملا صالح ما زندراني  د اصول کافي شرح ٩/ ٣٦١ ]

ð ايا هغه دروښيم،چې ماته بېخي ورته نه دى؟ ورته وويل شو: هو يا رسول الله ! ويې ويل: بد ژبى کنځل مار،چې کنجوس،کبرجن،کينه کښ سخت زړى او له هر ډول نېکۍ لرې دى او انسان يې له يوه شره هم خوندي نه دى . (الکافي ٢ / ٢٩١)

ðمؤمن ناوړه وينا نه کوي،لعنت نه وايي،سپکې سپورې او کنځلې نه کوي .( شيباني ٤/ ١٧٨   ناصف ٥/ ٣٧)

 

فراغت

ð روغتيا او فراغت دوه نعمتونه دي،چې ډېرى خلک پرې ازمېيل کېږي .( الخصال ١/ ٣٤ )

ð روغتيا او فراغت دوه نعمتونه دي،چې انسان ترې غافل او بې پروا دى . ( من لا يحضره الفقيه ٤/ ٣٨١)

ð زه د درې ډلو ضامن يم : څوک چې په دنيا کې له نېستۍ سره مخ شوى وي او د شتمنېدو لپاره څه لار نه لري . څوک چې پر کوم کړاو اخته شي او خلاصېداى ترې نشي او څوک چې پر بې پايه خپګان اخته شوى وي . (بحارالانوار ٧٠/ ٨١)

ð دنيا خو يو ساعت ده؛نو له خدايه په اطاعت کې يې تېره کړئ او الهي اطاعت ته د ورننووتو لار،په خلوت کې ده،چې انسان تل پر تفکر بوخت وي او خلوت هله وي،چې انسان قناعت وکړي او د ژوند له ډېر لګښته لاس واخلي او تفکر هم په فراغت تر لاسه کېږي او د فراغت بنسټ په زهد ولاړ دى،چې تقوا پوره زهد دى او تقوا ته د ننووتو لار له خدايه ډار دى او د ډار نښه،د خداى د مقام درناوى،د خداى د لارښوونو منل او له محرماتو يې ډډه کول دي او د الهي ډار بله نښه پوهه ده؛لکه چې پاک خداى وايي:په واقع کې له بندګانو يوازې پوهان له هغه ډارېږي . ( مصباح الشريعه: ٢٢)

 

هېر

ð هېر د پوهې آفت دى . (الخصال ٢/ ٤١٦)

ð څوک چې پر ما درود ويل هېر کړي؛نو د جنت لار به يې ورکه کړې وي.( الامالي للطوسي: ١٢٤)

ð ډېر ناوړه هغه بنده دى،چې کبر وکړي او مغرور شي او خداى هېر کړي .( بحار الانوار ٧٣/٢٠٣ )

ð څوک چې د خوړو په پيل کې د((بسم الله الرحمن الرحيم)) ويل هېر کړي؛نو د خوړو په پاى کې دې د “توحيد” سورت ووايي . (بحارالانوار ٨٩/ ٣٥٣ )

ðپينځه څيزونه دي،چې “هېر” له منځه وړي او “ياد” زياتوي او د خولې لاړې کموي 🙁 ١) مسواک ( ٢) روژه ( ٣) د قرآن لوستل ( ٤) شات ( ٥) اللبان (کندر) . (مکارم الاخلا ق : ١٦٦)

پرښتې

ð خداى چې کوم بنده ته خير وغواړي؛نو جنتي پاسواله پرښته ورته رالېږي، چې پر سينه يې لاس راکاږي او سينه يې پراخوي او د زکات ورکړې ته يې هڅوي . (وسايل الشيعه ٩/ ٢٠ )

 ð خداى له بربنډتوبه منع کړي ياست؛نو له الهي عزتمنو پرښتو حيا وکړئ،چې کړنې مو ليکي؛خو يوازې د اودسماتي،جنابت او غسل پر مهال مو (ځان ته) پرېږدي . (بحارالانوار ٥٦ / ٢٠٠)

 

خواړه

ðحلال  خواړه  زړه رڼا کوي .( الحکم الزاهرة ١/ ٤٨٢)

ðد فاسقانو خواړه مه خورئ .( بحار ٧٧/ ٨٤)

ðخواړه مو په مالګه پيل او پاى ته ورسوئ؛ځکه دا کار د جذام، لېونتوب او پيس په څېر د دوه اويا بلاوو مخه نيسي.(الکافي: ٦\٣٢٦)

ðڅوک چې خدای وپېژني او د شان خاوند يې وبولي؛نو خپله خوله دې د(بې ځايه او بې ګټې) خبرو او ګېده دې له خوړو منع کړي او ځان دې روژه تي او د شپې پاڅېدو ته په زحمت کړي . (الکافي ٢/ ٢٣٧ )

ðخواړه مو په تول کړئ؛ځکه برکت پکې وي .( الکافي ٥ / ١٦٧)

ð خواړه هله پوره کېږي،چې څلور ځانګړنې ولري : حلال وي،زيات لاسونه پکې وي،په پيل کې “بسم الله الرحمن الرحيم” او په پاى کې يې “الحمدالله” وويل شي. (الکافي ٦ / ٢٧٣ )

ð سړى چې له خپلې کورنۍ سره پر دسترخوان کېني او د خداى په نامه په خوړو پيل وکړي او په “الحمدالله” يې پاى ته ورسوي؛نو د دسترخوان (پلوشې او برکت) پورته خيژي،چې وبښل شي . ( الکافي ٦/ ٢٩٦)

ð (اصلي) خواړه (؛لکه غنم،جوار اوربشې او…)يوازې ګناهګاران احتکار او زېرموي . (من لا يحضره الفقيه ٣/ ٢٦٦ )

 ð حيران يم هغه ته چې د درد او ناروغۍ له ډاره له (ځينو) خوړو پرهېز کوي؛نو ولې د اور له ډاره له ګناه کولو پرهېز نه کوي (او ځان نه څاري) ؟ (من لايحضره الفقيه ٣ / ٣٥٩)

ð د خوړو پر مهال مو څپلۍ او بوټان وباسئ؛ځکه دا ښکلى دود او د پښو د ارامۍ لامل دى . (وسايل ٥ / ٩٦ )

ð تر خوړو وروسته خلال وکړئ؛ځکه د غاښونو د روغتيا او بنده ته د روزۍ د جلبولو لامل دى . (مستدرک الوسايل ١٦/ ٣١٧)

ð په حقيقت کې تر خوړو مخکې او وروسته اودس کول،د بدن د شفا او روغتيا او د روزۍ د برکتي کېدو لامل ګرځي. (المحاسن ٢/ ٤٢٤)

ðڅوک چې “لږ خورى” وي ؛نو بدن يې روغ رمټ پاتې کېږي او چې ډېرخورى وي؛نو بدن يې رنځور او زړه يې سختېږي .(مجموعه ورام ٢/ ٢٢٩)

ðزړه په ډېر خورۍ مه وژنئ؛ځکه زړونه دکښت په څېر دي،چې که اوبه پرې ډېرې شي؛نو خرابوي يې .(  جامع الاخبار: ٢١٤ مخ )

ðخواړه په مالګه پيل او هم پاى ته ورسوئ؛ځکه د ( ٧٢ ) دردونو شفا پکې ده . ( بحارالانوار٧٧/٥٨)

 

د خوړلو څښلو آداب

 ðتر خوړو وړاندې او وروسته د لاسونو او خولې وينځل د برکت لامل دي .( “ترمذي” – “ابوداوود”)

ð که د خوړو پر وخت د “الله”نوم وانه خستل شي؛نو شيطان پکې د ځان ګډون روا بولي.( صحيح مسلم )  

ð د سړو خوړو خوړل ډېر برکتي وي . (الدارمي )

ðډډه مې چې وهلي وي ؛نو خواړه نه خورم . ( صحيح بخاري)

ð د اوښ په څېر په يوې ساه اوبه مه څښئ؛بلکې دوه درې ځل پکې ساه واخلئ،تر څښلو مخکې “بسم الله” او وروسته ترې حمد او د خداى شکر ووياست. (ترمذي)

ð رسول اکرم د څښلو په لوښي کې  پوکى منع کړى دى . (ابوداوود – ابن ماجه )  

ð تر خوړو وروسته دعا دا ده : د هغه خداى ستاېنه ده،چې  پر موږ يې خواړه وخوړل اوبه يې راباندې وڅښلې او له مسلمانانو يې کړو.(“ترمذي” – ابوداوود )

 

مسافر

 ðپه دنيا کې داسې وسه؛لکه چې مسافر يې او ځان په مړيو کې وشمېره.( الامالي للطوسي: ٣٨١ )

ðمسافر چې ناروغ شي؛نو دواړو لوريو او مخکې او شاته چې وګوري او څوک  و نه ويني؛نو پاک خداى يې تېر ګناهونه بښي.( ارشاد القلوب ١/ ١٩٠)

ðپه نړۍ کې د مسافر يا لاروي په څېر ژوند وکړه. (صحيح بخاري)

 

غصب

ð څوک چې ځمکه پر ناحقه غصب کړي،د قيامت پر ورځ مکلفېږي،چې خاوره يې پر اوږو کړي . ( وسايل  ٢٥/ ٣٨٨)

ð څوک چې په ناحقه يو لوېشت ځمکه تصرف کړي،پاک خداى به يې ددې ځمکې اوه پوړه ترغاړې کړي،چې په قيامت کې په همدې حال راپاڅېږي . (مستدرک الوسايل  ١٧ / ٩١ )

 ð په يقين چې خداى هره ګناه بښي؛خو د هغه ګناهونه نه بښي،چې:

(1) په دين کې بدعت راولي. (2) د کارګر مزدوري ورنه کړي . (3)چې ازاد انسان (د مريي په توګه) وپلوري .(عيون الاخبار الرضا ٢/ ٣٣)

ð که څوک درې ځانګړنې ولري (؛نو) ايمان يې پوره کېږي : (1)که خوشحال وي؛نو خوشحالي يې ناحقو ته اړ نه باسي. (2) که غوسه وي؛ نو غوسه يې له حقه وانه ړوي (3) او چې د واک خاوند وي،هغه څه ته لاس اوږد نه کړي،چې ورته نه دي .( المحاسن ١/ ٦ )

 

غفلت

ðتر اړتيا ډېر خواړه مه خورئ؛ځکه زړه سختوي،چې همدا سختوالى زړه مسموموي،غړي د خداى له بندګۍ سستوي او غوږونه او زړه (او همت) د پند او موعظې له اورېدو منع کوي،له ډېرو کتو ډده وکړئ؛ ځکه د ځاني غوښتنو تخم کري او د غفلت لاملېږي .( اعلام الدين: ٣٣٩ )

ð غفلت په درېو څيزونو کې دى  : د خداى له ياده غفلت .د ګهيځ له لمانځه تر لمر راختو پورې غفلت او د مړينې تر وخته د انسان پخپل دين کې غفلت.( جامع الاخبار : ١٣١)

ð څوک چې د غافلانو په منځ کې خداى يادوي؛لکه په تښتېدونکيو کې چې د خداى د لارې مجاهد وي . (الکافي ٢/ ٥٠٢ )

ð څوک چې هر شپه د قرآن لس آيتونه لولي؛نو نوم يې په غافلانو کې نه ليکل کېږي . (الکافي ٢/ ٦١٢ )

ðجنت ته ننووتم؛نو ومې ليدل،چې ډېرى جنتيان “بُلبلې” دي،د ُبلبلې په اړه پېغمبر اکرم وپوښتل شو. ورته يې وويل: څوک چې په خير کارونو کې عقلمن او له ناوړو کارونو غافل وي او د مياشتې درې ورځې روژه نيسي.(قرب الاسناد ١/ ٣٧ )

ð هغه  ډېر  غافل دى،چې د دنيا د حالاتو له ادلون بدلونه پند نه اخلي او هغه تر ټولو ډېر ستر انسان دى،چې دنيا ته په کوم ارزښت قايل نه وي. ( بحارالانوار ٧٠/ ٨٨)

ð د ماښام او ماسخوتن ترمنځ دوه رکعته نفل لمونځ خداى ته د انسان د ګرانېدو لاملېږي .( تهذيب الامکام ٢/  ٢٤٣ )

 

غنيمت ګنل

ð د زړه د نرمښت پر مهال دعا غنيمت وګڼئ؛ځکه د (الهي) رحمت لامل ده.( الدعوات : ٣٠)

ð د پسرلي ساړه غنيمت وګڼئ؛ځکه څه چې له ونو سره کوي،هماغه مو له بدنونو سره کوي او د مني له سړو ځان وژغورئ؛ځکه  څه چې له ونو سره کوي،هماغه مو له بدنونو سره کوي .( بحارالانوار ٥٩/ ٢٧١)

 

حضرت عمار (رض)

ð واى پر عمار،چې تېري کوونکې ډله به يې ووژني،عمار به هغوى د جنت لوري ته رابلي او هغوى به عمار اور ته رابلي .( د امام احمد حنبل  مسند ٣/ ٩١ ،صحيح بخاري ١/ ١١٥١، د “حاکم” مستدرک ٢/ ١٤٩، فتح البارى ١/ ٤٥١ ،د “ابن کثير” السيرة النبويه ٢/ ٣٠٧ )

ð عمار له حق سره دى او حق له عمار سره،چېرې چې حق وي،عمار به هم وي . (الطبقات الکبرى ٣/ ٢٦٢، تايخ مدينه دمشق ٤٣/ ٤٧٦)

 

عمر

ðزړه سوى عمر اوږدوي او پټه صدقه د خداى د غوسې اور  وژني . (وسايل ٩/ ٣٩٧)

ð يوازې دعا قضا و قدر اړوي او يوازې له نورو سره نېکي کول عمر اوږدوي او په يقين انسان،چې ګناه کوي،له روزۍ بې برخې کېږي . (مستدرک الوسايل ١٥/ ١٧٨)

ð خلکو! روزي اېشل شوې او څوک له خپلې برخې تېرى نشي کړاى ؛ نو ځکه يې د لاس ته راوړو لپاره ښه عمل وکړئ او عمر محدود دى او هېڅوک تر ټاکل شوي عمره زيات عمر نشي کړاى؛نو د مړيني او د کړنو د حسابۍ د رارسېدو له مخه (د آخرت د توښې راټولو لپاره) وځغلئ. (مستدرک الوسايل ١٣/ ٢٩)

ð څوک چې غواړي پاک خداى يې عمر ډېر او روزي پراخه کړي؛نو زړه سوى دې وکړي . (الکافي ٢/ ١٥٦)

ð پر اوږد عمري نېکعمله دې خوښي وي او داچې پالونکى يې ترې خوشحاله دى؛نو لوري ته يې ستنېدنه هم  ښه ده. پر اوږد عمري بدعمله دې افسوس وي او داچې پالونکى يې ترې خپه دى؛نو ورستنېدنه يې هم ناوړه (او سخته) ده.( روضه الواعظين  ٢/ ٤٧٥)

ð څوک چې خپل پاتې عمر په نېکيو تېر کړي؛نو د تېروګناهونو په باب نه نيول کېږي؛خو که څوک پاتې عمر په ګناه تېر کړي؛نو د وړاندې او وروسته ګناهونو په باب نيول کېږي .( الامالي للصدوق ٥٧ مخ)

 

عورت (ستر)

ð مورو پلار دې د اولاد عورت ته نه ګوري او همداراز اولاد دې د پلار عورت ته نه ګوري .( وسايل ٢/ ٥٦)

ð زما له اهلبيتو به يو سړى ووژل شي او (لوڅ لغړ) به راوځړول شي، کومې سترګې چې عورت يې وويني؛نو جنت به ونه ګوري . ( بحارالاانوار ٤٦/ ٢٠٩)

[ تبصره: دا روايت د حضرت زيد بن على (رض) په باب دى،چې د امام باقر د حيثيت او درناوي لپاره راپاڅېد او شهيد شو او امام ابوحنيفه ددې غورځنګ غړى و،په دې باب وګورئ : د افغانستان له ملي راډيو تلويزيونه  د امام اعظم په نامه په ١٣٨٦ل  کې خپور شوى سريال .]

 

عيب

ð جبرئيل تل راته ويل،چې بدي په بدۍ مه ځوابوه دا خو لا څه چې پيلوونکى يې وسې . (الکافي ٢/ ٣٠٢)

ðڅه چې پخپله پرېښوواى نشې (؛نو) نور خلک دې نه ټپسوروي او څه چې ورپورې اړه نه لري،خپل ملګرې دې نه ځوروي . (الامالي للمفيد:٢٧٨)

 ð په يوه ښار کې يوه ډله وه،چې پخپله يې عيبونه درلودل؛خو د خلکو د عيبونو په اړه چوپه خوله وو؛نو خداى هم د هغوى عيبونه را و نه سپړل  (او نا ليدلي يې وګڼل) او په ښار کې يوه ډله وه،چې په خپله يې عيبونه نه درلودل؛خو د خلکو عيبونه يې راسپړل؛نو خداى هم د هغوى عيبونه راوسپړل،چې تر مړينې په همدې (راسپړل شويو عيبونو) وپېژندل شي. (الامالي للطوسي : ٤٤)

ð اى هغې ډلې،چې پر ژبه مو ايمان راوړى او له زړه نه! د مؤمنانو د نيمګړتياوو او عيبونو د راسپړلو په لټه کې مه وسئ؛ځکه څوک چې د خپل ورور عيب راسپړي،خداى يې هم عيب راسپړي او خداى چې د چا عيبونه راوسپړي؛نو رسوا کوي يې،که څه  هم پټ او د کور دننه يې وي . ( المؤمن : ٧١)

ð علي! يوازې مؤمن درسره مينه لري او يوازې د منافق بد ايسې .( امام احمد حنبل مسند ١/ ٥٤ – صحيح مسلم ١/ ٦٠ د ابن ماجه سنن ١/ ٤٢  – د نسايي سنن ٨/ ١٦٦ – شرح مسلم للنوي ٢/ ٦٢ – د قرطبي تفسير ٧/ ٤٤ )

ð علي! ته به له ناکثانو،قاسطانو او مارقانو سره وجنګېږې.

(د حاکم نيشاپوري مستدرک ٣/ ١٥٩  _ کنزالعمال ١١/ ٢٩٢  – مجمع الزوايد ٥/ ١٨٦ – علل الدارقطي ٥/ ١٤٨ – الاستيعآب ٣/ ١١١٧ – اسدالغابه ٤/ ٣٣ – البدايه والنهايه ٧/ ٣٣٧ – ميزان الاعتدال ١/ ٢٧١)

[ تبصره: ناکثان بيعت ماتي ول،چې د جمل په جګړه کې وو . قاسطان؛ يعنې ظالمان،د صفين په جګړه کې او مارقان خوارج وو،چې د نهروان په جګړه کې له علي(ک) سره وجنګېدل،رسوا او ابدي بدمرغه شول .

خوشحال بابا وايي :

چې په جنګ کې د علي له لوري ومړل

په هغوى ګواهي ده، چې مرحوم دي. ]

 

ð علي! ته صديق اکبر او فاروق يې،چې حق او باطل بېلولاى شې،ته د مؤمنانو مشر يې او شتمني د کافرانو مشره ده. ( ذخائر العقبى ٥٦ مخ  – کنزالعمال ١١/ ٦١٦ –  المعجم الکبير ٦/ ٢٦٩ – سير اعلام النبلا ٢٣/ ٧٩ – الاستيعاب ٤/ ١٧٤٤ – تاريخ الاسلام ٤٦ / ٣٩١  – ينابيع الموده ٢/ ٣١٧ )

ð څوک چې زما اطاعت وکړي؛نو د خداى به يې کړى وي او څوک چې زما و نه مني؛نو د خداى به يې نه وي منلي او څوک چې د علي اطاعت وکړي؛ نو زما اطاعت به يې کړى وي او څوک چې د علي اطاعت و نه کړي؛ نو زما به يې نه وي کړى .(د حاکم نيشاپوري مستدرک ٣ / ١٢١)

ð ابوبکره! زما او د علي لاس په عدالت کې يو برابر دى .

 ( د بغداد تاريخ ٥/ ٢٤٠ – ميزان العتدال ١/ ١٤٦  – تاريخ مدينه دشمق ٤٢/ ٣٦٩ – د خوارزمي مناقب ٢٩٦ مخ  – السيره الحلبيه ٢ / ٢١١ – ينابيع الموده ٢/ ٢٣٦  – بحارالانوار ٤٠/ ١١٩ )

ð علي! ته د اور وېشونکى يې . ( د ابن مغازلي شافعي مناقب ٦٧ مخ)

[ تبصره: د دې روايت په هکله امام احمد حنبل وايي:على د جنت او  دوزخ وېشونکى دى؛ځکه دوست يې جنتي مؤمن دى او دښمن يې منافق دوزخي دى .]

   ð دعلي يادول عبادت دى .

 ( الجامع الصغير ١/ ٦٦٥- البدايه والنهايه ٧/ ٣٩٤ – کنزالعمال ١١/ ٦٠١ –  د ابن مردوديه مناقب على ٧٥ مخ – دابن مغازلي شافعي مناقب ٢٠٦ )

ð د علي مخ ته کتل عبادت دى .

( د ابن مغازلي شافعي،مناقب، ٢٠٦ مخ –الاصابه ٨/ ٣٠٨ – اسدالغابه ٥/ ٥٤٧ –د حاکم مستدرک ٣/ ١٤١ – المعجم الکبير ١٨/ ١٠٩ – کنزالعمال ١١/ ٦٠٠)

ð علي له حق سره دى او حق له علي سره او چېرې،چې علي وي،حق هم هلته دى .

( سنن ترمذي ٥/ ٢٩٧ – د حاکم مستدرک ٣/ ١٤٤– د فخررازي تفسير ١/ ٢٠٥ – د ذهبي تاريخ الاسلام ٣/ ٦٣٥ )

 

شات

ð شات ( د خولې بد) بوى او تبې رغوي .( مستدرک الوسايل ١٦/ ٣٦٦)

ð خداى شات برکتي کړي او د دردونو شفا يې پکې اېښې او اويا پېغمبرانو ته يې مبارک کړي دي .( مکارم الاخلاق ١٦٥)

ðخداى په شاتو کې برکت اېښى او د دردونو شفا ده او اويا پېغمبرانو متبرک کړي دي . ( مستدرک الوسايل  ١٦\٣٦٧ )

ð درې څيزونه دي،چې حافظه غښتلې کوي او بلعم له منځه وړي : د قرآن لوستل،د شاتو او کندر خوړل .( مستدرک الوسايل: ١٦ / ٣٦٧)

ðد حجامت په نشتر يا د شاتو په شربت کې شفا ده.(مستدرک الوسايل : ١٦/ ٣٦٧)

ðخداى په شاتوکې برکت اېښى،شات د دردونو شفا ده او اويا پېغمبر انو برکتي ګڼلي دي . ( صحيفة الرضا: ٢٠٧ حديث )

 

عطر

ستاسې له نړۍ مې يوازې ښځه او عطر ښه ايسي .( الکافي ٥ / ٣٢١)
[ تبصره: د دې روايت مخاطبين هغه اصحاب وو،چې رهبانيت او ګوښه کېناستوته لېوال وو]

ð عطر زړه غښتلى کوي .( الکافي ٦/ ٥١٠)

ð خپل حبيب جبرئيل راته وويل : ورځ ترمنځ عطر وکاروه او د جمعې د ورځې عطر کارول مه هېروه . ( الکافى ٦/ ٥١١)

ð بايد هر يو د جمعې پر ورځ عطر وکاروي، که څه هم د مېرمن له بوتله مو وي . ( الکافي  ٦/ ٥١١)

ðهره ښځه،چې عطر وكاروي او له کوره بهر ووځي؛نو كور ته د بېرته راستنېدو پورې پرې لعنت ويل كېږي . ( الكافي ۵\ ۵۱۸)

 

عفت

د خداى حياناک،زغمناک او پاکلمنى انسان خوښېږي،چې له ګناهونو او مکروهاتو ځان ژغوري . (الکافي ٢/ ١١٢)

ð لومړي جنت ته ننووتونکي دا دي : شهيدان،هغه تر لاس لاندې،چې د خپل واکمن لارښوونې مني او زړه يې پرې سوځي او عابد پاکلمنى، چې له ګناهونو او مکروهاتو ځان ژغوري . (الامالي للمفيد: ٩٩)

 ð عفاف او پاکلمني د ازمېښتونو او سختيو ښکلا ده . (بحارالانوار ٧٤ / ١٣٣)

ð له پلرونو سره مو ښه وکړئ،چې زامن مو درسره ښه وکړي او د خلکو له ښځو سترګې پټې کړئ،چې ښځې مو پاکلمنې او عفيفې وي. ( وسايل  ٢٠/ ٣٥٦)

 

عقل

ðعقل لومړنى موجود و،چې پاک خداى پيدا کړ. ( من لايحضر الفقيه ٤\٣٦٨)

ðعقل د هر انسان  د ژوند اړم دى .( کافي ١/٢٩ ) 

ðد “تدبير” په څېر “عقل” نشته .( المحاسن ٢/ ٦٠١)

ðعاقل بايد له خپلې زمانې با خبروي .(مکارم الاخلاق : ٤٧٢)

ðدچا د عقل د کچې د څرګندتيا پورې دې د چا مسلماني تاسې هک پک نه کړي .( مسندالشهاب ٢/ ٨٨)

ð خداى تر عقل بل غوره څيز خلکو ته نه دى ورکړى،دعقلمن خوب د ناپوهه تر شپې پاڅېدو او لمونځ يې دخداى په لار (؛لکه جهاد،حج او….) کې د ناپوهه تر مسافرته غوره دى او خداى هر پېغمبر او استازى په عقل پوره رالېږلى او عقلونه يې د خپلو امتونو تر ګردو عقلونو غوره وو.( الکافي ١/ ١٢)

ð ناپوهي سخته نيستي او عقل ګټوره شتمني ده.( الکافي ٢/ ٦٤٣)

 ð له خلکو سره مينه کول نيم عقل دی .( الکافي ٢/ ٦٤٣)

ð تر ايمان وروسته دعقل بنسټ له خلکو سره مينه کول او هر نېک چاري او بدچاري ته “خيرغواړي” ده. (وسايل ١٦/ ٢٩٥)

ð خداى عقل وپنځاوه او ورته يې وويل: ستون شه؛نو ستون شو بيا يې وويل : مخ کړه؛نو مخ يې کړ،بيا يې ورته وويل : تر تا ګران مې نه دى پنځولى ( پېغمبر اکرم زياتوي 🙂 خداى تعالى محمد (ص) ته د عقل نهه نوي برخې ورکړې او يوه يې پر خلکو ووېشله .(بحارالانوار ١/ ٩٧ )

ð له عقلمن سره مشوره وکړئ او مخالفت ورسره مه کوئ،چې پښېمانه به شئ . (مستدرک الوسايل ٨ / ٣٤٤)

ð پر عقلمن لازم ده،چې پر خپلې زمانې پوه وي،خپل شان ته مخ کړي او خپله ژبه وساتي . ( بحارالانوار ٦٨/ ٢٧٩ )

ð ډېر عقلمن هغه دى،چې له خلکو سره ډېره نرمي (او ښه چلن) وکړي او ډېر خوار هغه دى،چې خلک سپک کړي .( ٧٢ / ٥٢ )

 ðعقل پر درېو برخو وېشل شوى دى،که چا درلودې؛عقل يې پوره دى او که نه عاقل نه دى : د خداى تعالى ښه پېژندنه،ښه طاعت او مننه او پر الهي لارښوونو ښه زغم.( الخصال ١/ ١٠٢ )

 

د خير غوښتنه

ðڅوک چې له خدايه خير وغواړي او د خد اى په ورکړه خوشحاله وي؛ نو هرومرو خدای ورته ګتور څيزونه ورکوي . (الکافي ٨/ ٢٤١)

 

تمه

ðله تمې ډډه وکړئ؛ځکه حرص او تمه زړه خرابوي او پر زړه د دنياغوښتنې ټاپه لګوي.تمه د ټولو ګناهونو کونجي او د ټولو سرغړونو مشره ده او ټولې نېکې چارې له منځه وړي . (بحارالانوار ٧٤/ ١٨٤)

ð په حقيقت کې تمه ښويه ډبره ده،چې ان د پوهانو پښه هم پرې ښويېږي .(مجموعه ورام ١/ ٤٩ )

ð تمه ګر ډېر نشتمن دى . (مستدرک الوسايل: ١٢/٦٨)

  ð د بدمرغۍ له نښو دي : وچ سترګتوب،سخت زړي،د دنيا راټولونې ډېر حرص او پر ګناه ټينګار کول . (الکافي ٢/ ٢٩٠)

 ð يو سړى رسول اکرم (ص) ته راغى او ورته يې وويل : څه راته وښيه ! ورته يې وويل : پر تا (لازم) دي،څه چې له خلکو سره دي ( په اړه يې) نهيلى وسې ( او زړه پرې مه تړه)،چې غنا (خو له واره) حاضره ده . له تمې ډده وکړه، چې سملاسي نيستي ده . سړي  بيا يې وويل: نور څه هم راوښيه ! ورته يې وويل : کوم کار ته چې دې ملا تړله؛نو د پاى په اړه يې ښه غور او تدبر وکړه؛نو که په خير دې و،و يې کړه او که پاى يې په هلاکېدو وه؛نو ډده ترې وکړه. (الوافي  ٤/ ٤١٧)

 

عاقبت

 ðمؤمن د روح قبضولواو د “ملک الموت” تر راښکاره کېدو پورې له (خپل) ناوړه عاقبته په ډار کې وي او الهي رضا ته په رسېدو يقين نه لري .( تاويل الايات الظاهرة: ٥٢٤)

 

عبادت او بنده

ð ډېر غوره هغه دى،چې له عبادت سره مينه ولري او ټينګ يې په غېږ کې نيولى وي او د زړه له کومي ورته ګران وي او په پوره وسې يې ترسره کړي او يو وخت ورته وټاکي،چې پکې ورته مهمه نه وي،چې دنيوي څه تنګسه يا پراخي پرې راځي . ( الکافي ٢/ ٨٣ )

ðڅوک چې خداى ډېر ياد کړي (؛نو) خداى ته به ګران وي .(کافي ٢/٤٩٩)

ðپټ عبادت غوره عبادت دى .( کنز ٣/ ٦٧٣)

ð يوساعت فکر کول ،تر شپېتو کالو عبادته غوره دى . ( کنز ٣/ ١٠٦ )

ð ځانمني د اويا کالو عبادت له منځه وړي .( کنز ٣/٥١٤)

ðپه مينه دعالم مخ ته کتل عبادت دى .( النوادر: مخ ١١٠)

ðپه جومات کې لمانځه ته په تمه کېناستل عبادت دى . (ميزان الحکمه : ٨٣٠٤ ح )

ðڅوک چې د خپل مؤمن ورور اړتيا ترسره کړي ؛نو د داسې چا په څېر به وي،چې ټول عمر يې پرعبادت تېرکړى وي . (الامالي طوسي : ٤٨١ )

ð د لا (اله) الا (الله) د کلمې ويل غوره عبادت دى . (التوحيد: ١٨ مخ)

 ð عبادت اويا برخې دى،چې مهم يې د حلالې روزۍ تر لاسه کول دي . (الکافي  ٥/ ٧٨)

ð ډېر پټ عبادت ته ډېره بدله ورکول کېږي .( وسايل ١/ ٧٩)

  ðد دين د پوهېدو لپاره هڅه کول غوره عبادت دى . (بحارالانوار ١/ ٢١٧)

 ð پراخۍ ته سترګې پر لارېدل غوره عبادت دى .(کمال الدين  ١/ ٢٨٧)

ð سکون او ارامي د عبادت ښکلا ده . (جامع الاخبار: ١٢٢)

ð سستي د عبادت آفت دى .( الخصال ٢/ ٤١٦)

ðقيامت به هله درېږي چې : ګناهګارانو ته پاملرنه وشي او ښه راغلاست ورته وويل شي. منصفان کمزوري شي  او (دلقکها) نژدي شي او عبادت خلکو ته اوږد او سختېږي،د صدقې ورکړه زيان او په امانت کې خيانت کول ګټه وبولي او (په خپل ګومان) لمونځ کول يې (پر خداى) منت اېښوول وي . (بحارالانوار ٦/ ٣١٥)

ð خداى تعالى وايي:کوم بندګان،چې جنتي کوم؛نو په جسمي ناروغۍ يې اخته کوم يا مرګ پرې سختوم،چې راته له ګناه پاک راشي بيا يې جنت ته ننباسم .( الکافي ٢/ ٤٤٦)

 ð صالح بنده ته چې کنځلې وشي؛نو په ځواب کې وايي : زه روژه يم، سلام پر تا! کنځلې درته نه کوم . خداى تعالى وايي: بنده مې د بل بنده له شره روژې ته پنا يووړه؛نو ما هم د دوزخ له اوره وژغوره .(الکافي٤/ ٨٨)

ð خداى تعالى وايي :زه له هغه بنده حيا کوم،چې د دعا لاسونه پورته کړي او د فيروزې غمى يې په ګوته کړى وي؛خو نهيلى يې ستون کړم . (وسايل ٥/ ٩٥)

ð زه د هغه بنده د مړينې اساني او له اوره ژغورنه تضمينوم،چې د لمانځه وختونه او د لمر (راختو او لوېدو) موقعيت څاري . (مستدرک الوسايل  ٣/ ١٤٨)

ð داسې بنده هم وي،چې د يوې ګناه لپاره زر کاله نيول شوى وي؛خو مېرمنې به يې په جنت کې په نازو نعمت کې وي . ( الکافي ٢/ ٢٧٢)

 

عبرت اخستل

ð په دنيا کې د عبرت اخستونکي انسان ژوند د ويده انسان د ژوند په څېر دى،چې ګوري؛خو نه يې لمسوي او له زړه پر دنيا د غولېدو دودونه بد ګڼي،چې د الهي عذاب وړ دي او ځان ترې پاکوي او هغه پر ځان عملي کوي،چې خداى پرې خوشحالېږي  او ( په دنيا  د زړه نه تړلو) په اوبو ټول هغه ځايونه وينځي،چې دنيا ته د بلنې له امله (په زړه کې ورته) ښکلى انځور شوي . عبرت،عبرت اخستونکى له درېو څيزونو برخمنوي : په دې پوهېدل،چې څه کوي،په څه چې پوهېږي،عملي کوي يې او په څه چې نه پوهېږي،پوهېږي . (مصباح الشريعه: ٢٠١)

 

عُجب ( وياړنه)

ð وياړنه د خېل آفت دی . (الکافي ٢/ ٣٢٨)

ð که مؤمن ته تر وياړنې ګناه غوره نه واى ( په دې غاورتوب،چې ګناه نه کوي)؛نو خداى  بېخي د ګناه کولو لپاره د خپل مؤمن بنده لاس ازاد نه پرېښود.( مشکاْةالانوار ٣١٤)

ð خداى تعالى وايي : مؤمن بنده مې د فرايضو په کولو راته نږدېوالى مومي،په بل هېڅ څيز دا چار نشي کړاى او په يقين مؤمن بنده مې د عباداتو يو وره ته مخه کوي؛خو زه يې پرې تړم،چې ځانمنى نشي او پوپناه يې  نه کړي . (التوحيد ٣٩٨)

ð “موسى بن عمران” ( ع) ابليس ته وويل : هغه کومه ګناه ده،چې که بنيادم يې وکړي؛نو ته پرې برلاسي مومې؟ ويې ويل : که ځانمنى شي او خپلې کړنې ډېرې وبولي او خپل ګناهونه په سترګو کې لږ  وبرېښوي . (الکافي ٢/ ٣١٤)

 ð خداى حضرت “داوود” عليه السلام ته وويل : داووده! ګناهګارانو ته زېرى ورکړه او نېکان وډاروه . “داوود” ويل : خدايه! څرنګه دا کار وکړم؟ ورته يې وويل :ګناهګارانو ته ځکه زېرى ورکړه،چې زه يې توبه قبلوم او ګناهونه يې بښم او نېکان ځکه وډاروه،چې پخپلو کړنو ځانمني نشي .

ð درې ګناهونه د هلاکت لامل دي : کنجوسي په ځاني غوښتنو پسې تلل او ځانمني . (الحکايات ٩٧ )

 

عدالت

ð له عادل واکمن سره يو ساعت تېرول تر اوياوو کالو عبادته غوره دى او پر ځمکه،چې د خداى لپاره حد جاري شي؛نو تر څلوېښتو ورځو باران  ورېدو غوره دى . (وسايل ٢٨/ ١٢ )

ð د يو ساعت عدالت جاري کول،د هغو اويا کالو  تر عبادته اوچت دى،چې د شپې پکې په تهجدو بوخت وي او د ورځې روژه وي او د خداى په نزد د يو ساعت ظلم کولو سزا د شپېتو کالو ګناه کولو تر سزا ډېره ده. (مشکاة الانوار: ٣١٦)

ð ډېرعادل هغه دى،څه چې ځان ته خوښوي،نورو ته يې هم خوښ کړي او څه چې ځان ته بد ګڼي،نور ته يې هم بد وګڼي . (معاني الاخبار ١٩٥)

ð عدالت د ايمان ښکلا ده . ( بحارالانوار ٧٤/ ١٣٣)

ð يو ساعت د”عدالت خپرول” تر يوه کال عبادته غوره دي . (مستدرک  ١١/ ٣١٧)

ðحضرت “جابر بن عبدالله” (رضى الله عنه) وايي : يوه ورځ رسول اکرم ( ص) په “جعرانه” نومې ځاى کې غنيمتونه وېشل . چا ورته وويل : عدالت وکړه! رسول اکرم ( ص) ورته وويل : که عدالت ونه کړم (؛نو) بدمرغېږم . [ صحيح بخاري : ٣١٤٨ح]

 

عذاب

خداى په قيامت کې له درېو ډلوعذاب لرې کوي :څوک چې پر الهى قضا و قدر راضي وي . څوک چې پر مسلمانانو زړه سواند وي  او څوک چې نورو ته د خير يه چارو لار ورښيي . (مستدرک الوسايل ١٢/ ٤٣١)

ð پېغمبر اکرم د “حاتم طايي” زوى ته وويل : خداى تعالى ستا له پلاره د سخاوت له امله يې سخت عذاب لرې کړ. (مستدرک الوسايل ١٥/ ٢٦٠)

ð څوک چې د خلکو پت ته له لاس غځولو ډډه وکړي؛نو خدای يې په قيامت کې له عذابه ژغوري او څوک چې پر خلکو له خپلې غوسې ځان وژغوري،پاک خداى يې له الهي عذابه ساتي .( الکافي ٢/ ٣٠٥)

ð د بني اسرائيلو پر يوه ټبر د شپې الهي عذاب راپرېووت او چې  سهار شو؛څلور ډلې يې ځپلې وې : سازيان،ډمان، د خوړو زېرموونکي (محتکرين) او سودخواره . (مستدرک الوسايل ١٣/ ٢٧٣)

 ð  خداى ژبې ته داسې عذاب ورکوي،چې د بدن نورو غړيو ته يې نه ورکوي : ژبه خداى ته وايي : ما ته ولې داسې عذاب راکوې،چې نورو ته يې نه ورکوې ؟ ورته ويل کېږي: له تا داسې خبره راووته،چې ختيځ او لويديځ ته ورسېده او له امله يې (د بې ګناه) وينه تويه شوه او مال په حرامو غصب شو او ناموس څيري شو. پر عزت او پرتم مې قسم! زه به دې هرومرو پر داسې عذاب اخته کړم،چې د انسان د بدن يو غړى به هم پرې اخته نه کړم. (المجتبي: ٢٥)

  ð خدای به هغه زړه په عذاب نه کړي،چې د قرآن لوښى وي . ( الامالي للطوسي: ٦ )

 ðپر هغه قسم،چې زه يې زېرى ورکوونکى نبي رالېږلى يم،چې خداى موحد په اور نه کړوي او (هم) موحدين سپارښت کوي،چې قبلېږي هم. (الامالي للصدوق : ٢٩٥)

ð خداى چې پر کوم امت غوسه شي او عذاب پرې نه راولي؛نو داسې چارې ورسره کوي :نرخونه ورته لوړوي،عمرونه يې لنډوي،سوداګري يې ګټه نه لري،د مېوو حاصلات يې ښه نه وي،سيندونه يې له اوبو نه ډکېږي، باران پرې نه اوري او ډېر ناوړه (واکمن) پرې واکمنېږي. ( الکافى ٥/ ٣١٧)

 

عذاب ژغورنه

ðدرې څيزونه د ژغورنې لامل دي : ( ۱) په پټه او ښكاره له خدايه وېره(۲) په خوښۍ او غوسه كې عدالت كول (۳) او په شتمنۍ او بېوزلۍ دواړو كې منځلاري او درې  څيزونه د پوپنا كېدو لامل دي : (۱) په ځاني غوښتنو پسې تلل(۲) كنجوسي كول (۳) او ځانمني.(الحكايات : ۹۷مخ )

ðدرې څيزونه د ژغورنې لامل دي : ( ۱) ژبه دې وساته (۲) پر ګناهونو دې وژاړه  (۳) او د كور دې  خادم وسه . ( بحار ۶۸ \ ۲۷۹)

 

طلاق

ð خداى ته هغه کور ډېر ګران دى،چې په واده اباد شي او هغه کور يې ډېر بد ايسي، چې په طلاق وران شي . (الکافي ٥/ ٣٢٨)

ð کومه ښځه،چې بې دليله له مېړه طلاق اخلي؛نو د جنت بوى پرې حرام دى .( روضة الواعظين ٢/ ٣٧٦ )

ð طلاق  ډېر (کږلي) منفور حلال دى .( مستدرک الوسايل ١٥/ ٢٨٠ )

  ð واده وکړئ او طلاق مه ورکوئ؛ځکه په طلاق د خداى عرش لړزېږي . (عوالي الاللي ٢/ ١٣٩)

 

 

ضمانت او تضمين

ð څوک چې (له ګناه) د خولې او عورت د ساتنې تضمين راکړي؛ نو جنت ورته تضمينوم . (وسايل ١٦/ ١١٠)

 ð چاچې د حج په اړه د کوم مړي د وصيت ضمانت کړى وي او بې عذره ورته شا کړي؛نو پاک خداى يې لمونځ،روژه او دعا نه قبلوي او په هر شواروز کې ورته سل ګناهونه ليکي،چې ډېره وړه يې له مور و لور سره د زنا هومره ده. (جامع الاخبار: ١٥١)

ð څوک چې د مسلمان ورور د اړتيا د لرې کولو تضمين وکړي؛نو خداى يې اړتياوو ته تر هغه نه ګوري،چې د خپل مسلمان ورور اړتيا يې نه وي لرې کړي . (الجعفريات : ١٩٨)

ðد خداى له فرائضو غفلت مه کوئ،څه چې درته تضمين شوي،پرې بوخت شئ (اخرت ته پاملرنه فرض او د انسان روزي تضمين شوې ده)  (ارشاد القلوب ١/ ٦١)

ðپاک خداى وايي : څوک چې پوهېږي،ګټه او تاون د خداى په لاس کې دى او له ما د کومې اړتيا لرې کول وغواړي؛نو ورته يې پوره کوم .( ثواب الاعمال : ١٥٣)

ð څوک چې له خپلې دنيا سره مينه لري؛نو خپل اخرت ته به يې زيان رسولى وي . (کنزالفوائد ١/ ٦١ )

 

زړه سوى

 ð په زړه سوي کې غوره چار (د خپلوانو) نه ازارول دي .(قرب الاسناد : ١٥٦ )

ðڅوک چې غواړي عمر يې اوږد او روزي يې پراخه شي؛نو پرهېزګاري او زړه سوى دې وکړي . ( الزهد : ٣٩ مخ)

ð جبرئيل خبر کړم،چې د جنت بوى له زر کاله لرې واټنه بويېږي؛خو د موروپلار عاق شوى،سخت زړه او بوډا زناکار به يې بوى نه کړي .( بحارالانوار  ٧١/ ٩٦ )

ð څوک چې د زړه سوي او خپلوانو ته د رسېدو لپاره کوم ګام واخلي؛ نو خدای ورته د سلو شهيدانو ثواب ورکوي او هر ګام ته يې څلوېښت زره نېکۍ ليکي او څلوېښت زره ګناوې يې هم پاکوي او همدومره درجې يې لوړوي او؛لکه داسې دى،چې په پوره زغم يې  يوازې خداى ته عبادت کړى دى . ( بحارالانوار ٧١/ ٨٩)

ð په قيامت کې زړه سوى او امانت ساتنه د صراط پر دواړو غاړو (د دېوال په څېر) وي،چې زړه سواند او امانت ساتى ترې تېرېږي او اور ورته زيان نشي رسولاى . (مستدرک الوسايل ١٥/ ٢٤٠ )

ð څوک چې يو څيز راته تضمين کړي،څلور څيزونه ورته تضمينوم :  زړه خوږى دې وي،چې د خپلوانو ورسره مينه پيدا شي،روزي يې زياتېږي،عمر يې اوږدېږي او خداى يې هغه جنت يې ننباسي،چې وعده يې ورسره کړې . (عيون اخبار الرضا ٢/ ٣٧ )

ð درې څيزونه له اخلاقي مکارمو دي : هغه ته ورکړه،چې ته يې بې برخې کړى يې . له هغه سره اړيکه،چې درسره يې اړيکه پرې کړې او د هغه چا بښل،چې تېرى يې درسره کړى وي  . (مستطرفات السائر :  ٦٥١)

ð زړه سوى سيمې ابادوي،عمرونه اوږدوي،که څه هم اوسېدونکي يې نېکان نه وي . (مستدرک الوسايل ١٥/ ٢٤١ )

ð زړه سوى عمر اوږدوي او نيستي له منځه وړي . (الجعفريات : ٥٥)

ðان که په يو سلام اچولو هم وي؛نو زړه سوى وکړئ . (الجعفريات ١٨٨)

 ð  تر ټولو ښو چارو ډېر ژر د زړه سوي بدله تر لاسه کېږي . (الکافي ٢/ ١٥٢)

ð ډېر داسې قومونه دي،چې نېکان نه دي؛خو زړه سوى لري او (په پايله کې) شتمني يې ډېرېږي او عمرونه يې اوږدېږي؛نو که نېکان وي، څنګه به وي؟( الکافي ٢/ ١٥٥)

ð د خپل امت حاضر او غايبو او هغوى ته چې تر قيامته زېږېږي، وصيت کوم،چې زړه سوى وکړي،که څه هم يوه کلنه لار وي؛ځکه زړه سوى ديني چار دى . ( الکافي ٢/ ١٥١)

ðڅوک چې غواړي رزق يې پراخه او عمر يې اوږد شي؛نو پر خپلوانو دې زړه سوى وکړي . ( صحيح بخاري – صحيح مسلم )

 ð څوک چې له خپلوانو سره ښه چلن نه کوي او زړه سوى پرې  نه کوي ؛ نوجنت ته نشي تلاى . ( صحيح بخاري – صحيح مسلم )

 

صلوات

ð څوک چې ووايي،خداى دې محمد (ص) ته د هغه وړ اجر ورکړي؛نو زر ورځې به يې اويا ليکوال په کار اچولي وي (؛ځکه ددې کار ثواب دومره ډېر دى،چې يو تن يې په زرو ورځو کې په کړنليک کې ليکي).  (بحار الانوار ٩١/ ٦٣)

ð خداى تعالی پرښتې لري،چې پر ځمکه ګرځي او زما د امت سلامونه او درودونه رارسوي . ( وسايل الشيعه ١٤ / ٣٣٨)

ðهغه ډېر کنجوس دى،چې زما نوم واخستل شي؛خو درود راباندې ونه وايي .( کنز: ٢١٤٤ح )

ðپر ما “درود” ويل،د”پل صراط” رڼا ده .( کنز: ٢١٤٩)

ðبېشکه د خداى پرښتې په نړۍ کې ګرځي او ماته مې د امت سلامونه او درودونه رارسوي .( سنن نسائي – دارمي )

ð څوک چې پر ما صلوات ويل هېر کړي؛نو د جنت لار يې ورکه کړې ده.( بحارالانوار ٩١/ ٥٣)

ð څوک چې پر ما صلوات ووايي؛خو پر کورنۍ مې ونه وايي؛نو جنت به بوى نه کړي،حال داچې د جنت بوى له پينځو سو کالو واټنه بويېداى شي . ( الامالي للصدوق : ٢٠٠)

ð صلوات په لوړ غږ ووياست؛ځکه نفاق له منځ وړي . (الکافى: ٢/ ٤٩٣)

ð دعا هله قبلېږي،چې پر ما او اهلبيتو مې صلوات وويل شي.(بحار ٩١/ ٦٦)

 ð پر ما صلوات مو،د دعا د قبلېدو،د پالونکي د خوشحالۍ او د کړنو د قبلېدو لامل دى . (بحار ٩١/ ٦٨)

ð څوک چې په کومه ليکنه کې پر ما صلوات وليکي؛نو څو چې دا ليکنه وي، پرښتې به ورته بښنه غواړي (اللهم صل على محمد و على آل محمد )  (بحار ٩١ / ٧١)

ðد هرې دعا او اسمان ترمنځ يوه پرده ده او دا پرده هله لرې كېږي،چې پر پېغمبر او كورنۍ يې درود ( صلوات ) وويل شي او كه  دا كار و نشي؛ نو دعا بېرته راګرځي . ( بحارالانوار ۲۷\ ۶۰ )

ð پر ما او اهلبيتو مې صلوات ويل د نفاق د منځه وړو لامل دى. (الکافي ٢/ ٤٩٢)

ðڅوک چې راباندې صلوات ووايي؛نو خداى او پرښتې پرې صلوات وايي؛ نو که څوک لږ صلوات وايي يا ډېر!!! (الکافي ٢/ ٤٩٢)

ðڅوک چې راباندې يو صلوات ووايي؛خداى ورته لس صلواته رالېږي،لس ګناهونه يې بښي او لس درجې يې لوړوي .(مستدرک الوسايل ٥/ ٣٣٧)

ð نيمګړى صلوات راباندې مه وائئ : وپوښتل شو: څرنګه؟ آنحضرت ورته وويل: دا چې “اللهم صل على محمد” ووياست،حال داچې بايد “اللهم صل على محمد و على آل محمد” ووياست.

(شرف النبي ٢٤٨ مخ – “الصواعق المحرقه” ٢/ ٤٣٠ – حاشيه الطحاوي على مواتي الفلاح ١/ ٨ )

 ð اصحابو کرامو پېغمبراکرم وپوښت : پر تا باندې په سلام اچولو پوه شو؛خو صلوات درباندې څرنګه دى؟ ورته يې وويل:” اللهم صل على محمد و على آل محمد کما صليت على ابراهيم و آل  ابراهيم.”

 (صحيح مسلم ٢/ ١٦ – سنن ابن ماجه ١/ ٢٩٣ – صحيح بخاري ٤/ ١١٨)

[ تبصره: زموږ ځيني ويناوال او ليکوال يوازې ((صلى الله عليه وسلم)) وايي او ليکي،حال داچې د پېغمبر څرګنده لارښوونه ده،چې بايد ((صلى لله عليه و اله وسلم)) وويل او وليکل شي . ]

 

سوله

ð سوله د مسلمانانو ترمنځ روا ده؛خو نه هغه وخت،چې حرام حلال يا حلال حرام شي . (من لا يحضره الفقيه ٣/ ٣٢)

ð که پر کوم مسلمان ورور مو مينه راغله؛نو ورته يې څرګنده کړئ؛ ځکه چې د اړيکو د ټينګښت لامل ګرځي.(النوادر للراوندي ١٢ مخ)

ð د خلکو پخلاينه تر يو کال روژې نېونې او لمونځ کولو غوره ده. (وسايل ١٨/  ٢٤٠ )

 

صدقه

ð د صدقې په ورکړه (له اسمانه) روزي راکوزه کړئ . ( فقيه ٤/ ٣٨١)

ðخپلوان دې،چې اړمن وي ؛نو نورو ته صدقه ورکول څه پکار؟( فقيه ٤/ ٣٨١) 

ðصدقه د بديو اويا ورونه تړي .( بحار ٩٦/١٣٢)

ðد صدقې په ورکړه،خپل ناروغان له ناروغۍ وژغورئ . (بحار ٩٦/ ١١٨)

ðغوره صدقه داده،چې يو مسلمان پوهه تر لاسه کړي او بل مسلمان ته يې  وښيي .( کنز: ١٦٣٥٧ح )

ðپټه صدقه ورکول،د خداى غوسه سړوي .(بحار ٩٦/ ١٣٠)

ð صدقه د ناوړه مړينې مخه نيسي. (الکافي ٤/ ٢)

ð د صدقې ورکړه مال ډېروي او صدقه ورکړه،چې خداى درباندې ولورېږي.( الکافي ٤/ ٩)

ð د بېوسي لاسنيوى،له غوره صدقو ځنې ده .( الکافي ٥/ ٥٥)

 ð تر خپلې اړتيا د زياتو څيزونو ورکړه،غوره صدقه ده. (وسايل ٩/ ٤٦١)

ðشتمني د صدقې په ورکړه نه لږېږي؛نو بخشش وکړئ او مه ډارېږئ. (مستدرک الوسايل ٧/ ١٥٣)

ð صدقه د ناوړو پېښو مخه نيسي. (مستدرک الوسايل ١٢/ ٣٤٣)

ð د قيامت ځمکه سره ده؛خو بې د مؤمن د سيوري له ځاى،چې  صدقو يې دا سيورى جوړ کړى دى . (الکافي  ٤/ ٣ )

ð ګهېځ مو په صدقه پېل کړئ؛ځکه بلاوې ترې نشي تېرېداى.( مفتاح الفلاح ١٦٤)

  ðخداى د صدقې له ورکوونکي اويا ډوله ناوړه مړينې او بلاوې لرې کوي، چې لږ تر لږه يې غم او خپګان دى . (مستدرک الوسايل ٧/ ١٦١)

ð ګدا چې د شپې درته راشي؛نو مه يې ځوابوئ .( الکافي ٤/ ٨ )

ð که خپلوان مو اړ ول،نورو ته د صدقې ورکړه روا نه ده. (مستدرک الوسايل ٧/ ١٩٦)

 ð مسکين د نړۍ پال استازى دى،چې خلک پرې و ازمېيي؛څوک چې څه ورکړي؛نو خداى به هم پرې ولورېږي او څوک چې يې ځواب کړي،خداى به يې بې برخې کړي . (مستدرک الوسايل ٧/ ١٩٩)

ð د اړتياوو د څرګندولو پر مهال د ګدا خبرې مه پرېکوئ، پرېږدئ، چې پوره خبرې وکړي او له حاله يې خبر شئ.(مستدرک الوسايل ٧/ ١٩٩)

ð ناروغان مو د صدقې په ورکړه ورغوئ او شتمني مو د زکات په ورکړه وساتئ .  (مستدرک الوسايل ٧/ ١٩٩)

ð توحيد نيم دين دى او د روزۍ د لاس ته راوړو لپاره صدقه ورکړئ ( د صدقې د ثواب کچه د وګړي په توحيد پورې اړه لري)  (التوحيد ٦٨)

ðله خلکو سره ښه چلن صدقه ده . ( روضة الواعظين  ٢\٣٨٠)

ðزه داسې صدقه درښيم،چې د خداى او استازي يې ښه ايسي او هغه د مرور پخلا کول دي .( مجموعه ورام ١/٦ )

 

د مؤمن پاڼه

ð د علي مينه،د مؤمن د کړنليک عنوان دى .

 (الجامع الصفين ٢/ ١٨٢ – کنزالعمال ١١/٦٠١ – فيض القدير ٤/ ٤٨١ – د بغدادتاريخ ٥/ ١٧٧ – تاريخ مدينه دمشق ٥/ ٢٣٠ – لسان الميزان ٤/ ٤٧١ – ينابيع الموده ١/ ٢٧٢ ، مناقب ابن مغازلي ٢٤٣ –  النصايح الکافيه ٩٤ مخ)

ð تر مرګ وروسته د مؤمن د کړنليک لومړى سرليک،دده په اړه د خلکو نظر دى،که ښه و (؛نو) ښه دى او که بد و؛بد دى او مؤمن ته (تر مرګ وروسته) لومړى ډالۍ داده،چې خداى يې هغه او د جنازې ګډونوال بښي . ( الامالي للطوسي ٤٦ مخ)

 

زغم او صبر

ð زغم  او وقار دوې ښې ځانګړنې دي . ( صحيح مسلم)  

ð چارې په وقار ترسره کول،د خداى له لوري دي او پکې بيړه کول د شيطان له لوري دي . (ترمذي)

ð ښه خوى،چارې په وقار او ډاډ ترسره کول او منځلاري د پېغمبرۍ (نبوت) د څلروېشتمې برخې يوه برخه ده . (ترمذي)

ðزغم  نيم ايمان دى .( بحار ٨٢/١٣٧)

ð “زغم” ايمان ته داسې دى؛لکه سرچې تنې ته وي . ( کنز ٣/٢٧١)

ð له دوو خويونو ځان وساتئ : له نه زغم او ناغېړۍ . (فقيه ٤/٣٥٥)

ðزغم اوحوصله د خداى ده او بيړه د شيطان . ( المحاسن ١/٢١٥٩)

ðزغم او وقار(مړانه) دوه ښه ځانګړنې دي . ( صحيح مسلم )

ðپوهه د مؤمن ملګرې ده،زغم يې وزير دى،عقل يې دليل او حجت دى،کړنه يې لارښود دى،لورنه يې پلار دى،نېکي يې ورور دی او زغم يې د لښکر بولندوی دی . ( بحارالانوار  ٦٦\٣٦٧)

ðپرهېزګاري عزت دى،زغم ښکلا ده او صبر د سپرلۍ ډېره غوره وسيله ده .( مستدرک الوسايل  ١١\٢٦٣)

ðزه زغم ته مرکز،کړنې ته کان او صبر ته هستوګنځى يم . (پورته سرچينه ١١\٢٨٩)

ðافسوس کول زغم  ته زيان او آفت دى . ( بحارالانوار  ٦٦\٣٨٩)

ðد خداى تعالى حياناک،زغمناک اوعفاف ښه ايسي. (الکافي ١\١١٢)

ðد مؤمن ايمان هله بشپړېږي،چې دا درې ځانګړنې ولري :زغم چې له ناپوهۍ يې منع کړي . تقوا چې له ګناه يې وژغوري او لورنه،چې دوستي يې ښه کړي . ( مستدرک الوسايل  ١١\٨٨)

ðکه په چا کې درې څيزونه نه وي؛نو هيڅ کړه يې نه ټینګېږي : تقوا چې له ګناه يې منع کړي .خوى چې له خلکو سره چلن وکړي او  زغم، چې د ناپوهه ناپوهي ورته پرمخ ووهي .( الحضال  ١\ ١٤٥ )

ðصبر نيم ايمان دى .( ارشادالقلوب  ١\ ١٢٧) 

ðڅوک چې د خپلې مېرمنې پر ناوړوخويونو صبر وکړي؛نو خداى به ددې صبر لپاره ورته د شاکرانو هرمره ثواب ورکړي . (مکارم الاخلاف : ٤٣١)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،که څوک پر خپل دين صبر وکړي؛نو د داسې چا په څېر به وي،چې سکروټه  يې په ورغوي کې نيولې وي .  ( بحارالانوار  ٢٨\٤٧)

ðپر تنګلاسۍ صبرکول او پراخۍ ته هيلمنېدل تر خيانت او له ناوړو پايلو يې غوره دي . ( مستدرک الوسايل  ١١\٤٧)

ðڅوک چې د روزګار کړکېچونو ته د صبر چمتوالى نه  لري؛نو بېوسېږي . ( الکافي ٨\ ٨٦ )

ð څوک چې پر مصيبت صبر وکړي (؛نو) خداى يې بدله ورکوي . ( فقيه ٤/٣٧٧)

ð صبر درې ډوله دى : پر مصيبت صبر،پر طاعت صبر او له ګناه کولو صبر. (الکافي ٢/ ٩١)

ð صبر د سپرلۍ غوره وسله ده .مستدرک الوسايل ١١/ ٢٨٣

 ð خداى وايي : د بنيادم د ټولو کارونو اجر له لسو تر اوه سو ګرايه دى؛ خو صبر چې (يوازې) ماته دى؛نو زه يې بدله ورکوم او د صبر ثواب د خداى د علم په زېرمتون کې دى او صبر؛يعنې روژه. (وسايل ١٠/ ٤٠٤)

ð پر خداى ايمان هله پوره کېږي،چې بنده پينځه ځانګړنې ولري : پر خداى توکل،خداى ته د چارو ورسپارل،د خداى حکم ته غاړه اېښوول، د خداى پر قضا راضي کېدل او پر الهي کړاوو او ازمېښتونو صبر کول . ( بحارالانوار ٧٤/ ١٧٩ )

ð خداى تعالى روزي د (واقعي) لګښت په کچه او صبر د کړاو د سختۍ په کچه راکوزوي . ( بحارالانوار ٧٩/ ٧٣)

ðچې کله ( په قيامت کې) د حساب دفترونه پرانستل کېږي او د عدالت تلې درېږي؛نو کړاو ځپلي ته نه تله وي او نه د حساب دفتر او دا آيت لوستل کېږي:” انما يوفى الصابرون امرهم بغير حساب” ؛ بېشکه چې صابرانو ته پوره بې حسابه اجر ورکول کېږي .(مشکاة الانوار ٣٠٠ مخ)

 

ګهېځ

 ð څوک چې د ګهيح له لمانځه تر لمر راختو پورې د خپل لمانځه پر ځاى کېنې؛نو خداى يې د دوزخ له اوره ساتي.(من لا يحضره الفقيه١/ ٥٠٤)

ð بنده چې سهار کړي او پر چا د تېري نيت ورسره نه وي؛پاک خداى يې ټول ګناهونه بښي . (الکافي ٢/ ٣٣٤)

ð خداى وايي: د آدم زويه! د ګهيځ تر لمانځه څه ساعت وروسته او د مازېګر تر لمانځه څه ساعت وروسته ما ياد کړه،چې د ټولو چارو کفايت دې وکړم . (بحارالانوار ٨٣/ ٢٩٧)

 ð بنده چې سهار کړي او په تن روغ رمټ او روزۍ ګټلو ته خوندي وي؛ نو داسې دى،چې دنيا (ورته مخه کړي او) غوره کړى يې دى .( الامالي للصدوق : ٣٨٥ )

ð کوم امتي مې،چې سهار کړي او موخه يې “غيرالله” وي؛نو د خداى (له بندګانو) څخه نه دى . (المحاسن ١/ ٢٠٤)

ð د چاچې دنيا د شپې او ورځې ستره بوختيا وي؛نو پاک خداى نيستي ورته په سترګو کې ږدي او چارې يې ورته جړوي او له دنيا همدومره ګټه اخلي،چې خداى ورته ټاکلې ده او د چاچې آخرت ګهيځ او ماښام ستره بوختيا وي؛نو پاک خداى په زړه کې غنا ورته ځايوي او چارې يې سموي . (الکافي ٢/ ٣١٩)

 

شيطان

ð مؤمن،چې پر خپلو پينځو لمونځونو ټينګ وي؛نو شيطان ترې ډارېږي؛خو که لمونځ پرېږدي؛شيطان پرې برلاسېږي او لويو ګناهونو ته يې راکاږي .( الکافي ٣/ ٢٦٩)

ð څوک چې د اولاد خاوند شي؛نو بايد په ښي غوږ کې يې اذان او کيڼ کې يې اقامه ووايي؛ځکه دا چار يې له شړل شوي شيطانه ساتي. (الکافي ٦/ ٢٤)

ð که څوک له خپلو ويلو يا، چې په اړه يې څه ويل کېږي،چرت يې پرې خراب نه وي؛نو  يا بې لارې يا د شيطان ملګرى او شريک دى . (الکافي ٢/ ٣٢٣)

ð په حقيقت کې شيطان له تاسې په کوچنيو ګناهونو خوښېږي او هغه ګناه نه بښل کېږي،چې کوونکى يې کوچنۍ وګڼي او ووايي:په دې (وړې) ګناه خو به ونه نيول شم . (مستدرک الوسايل ١١/ ٣٤٧)

 ð ابليس چې کله ( له خپل مقامه) کوز راوشړل شو؛خداى ته يې وويل : ستا پر عزت،جلال او ستريا قسم! د آدم ځوځات به پرېنږدم،څو يې روح له تنې بېل شي.( بحار ٦/ ١٦)

ð خلکو! په واقع کې (نامحرم ته په) بده کتل شيطاني کتل دي،که داسې مو وکړل؛نو له خپلې مېرمن سره کوروالى وکړئ . (من لا يحضره الفقيه ٤/ ١٩)

 ð په جماعت لمانځه چې درېږئ،ليکې مو سمې کړئ او يو بل ته جوخت ودرېږئ،چې شيطان درباندې برلاس نشي .( تهذيب الاحکام ٣/ ٢٨٣)

ð په کورونو کې کوترې مه ساتئ او د ورځې يې دباندې الوځوئ؛ځکه په کورونو کې يې ځالې د شيطان ځاى دى.( وسايل ٥/ ٣١٨ )

ð څوک چې ما په خوب کې وويني؛نو سم خوب يې ليدلى دى،په حقيقت کې شيطان په خوب او وېښه کې زما او زما د وصيانو په بڼه کېداى نشي.( بحار ٣٠/ ١٣٢)

ðبېشکه شيطان خپله پوزه د بنيادم پر زړه ږدي،که د خداى د ياد (بوى) يې بوى کړ (؛نو) تښتي او که د خداى د هېرې (بوى) يې حس کړ؛ نو زړه يې ښوى تېروي،چې ورته “وسواس خناس وايي” ( شيطان باطل او چټي فکرونه د انسان زړه ته اچوي)  (بحار ٦٠/ ١٩٤ )

 ð په حقيقت کې شيطان په انسان کې داسې ننوځي؛لکه وينه،چې په رګونو کې روانه وي . ( بحار ٦٠/ ٢٦٨)

ð که شيطانان د بنيادمانو له زړونو ګردچاپېره نه ګرځېداى؛نو انسانانو د اسمان ملکوت ( او باطن) کتل . (تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي ٣ / ٩ )

 

شهوت

ðتر دې وروسته مې خپل امت ته له درې څيزونو ډېر ډارېږم : حرامې بوختياوې ،پټې شهوتپالنې او سود. (الکافي ٥/ ١٢٤)

ð پر هغه دې خوښي وي،چې نغذ شهوت د ناليدلي وعدې (قيامت) لپاره پرېږدي . (الاختصاص : ٢٣٣)

ð شهوت مو لږ کړئ،چې د فقر زغمل درته اسان وي او ګناهونه مو لږ کړئ، چې له مړينې سره مخامخېدنه درته اسانه شي.(ارشاد القلوب ١/ ٦١)

 

شهادت

ð ( دخداى په لار کې) شهادت ډېره اوچته مړينه ده.(بحار٩٧/ ٨)

 ðڅوک چې په رښتيا شهادت غواړي؛نو که شهيد هم نشي؛نو خداى ورته د شهادت اجر ورکوي . (عوالي الاللي ١/ ١٠١)

ð څوک چې د خپل غصب شوي حق د لاس ته راوړو په ترڅ کې ومري ؛ نو شهيد دى . (الکافي ٥/ ٥٢)

ð پاک خداى لومړى د پېغمبرانو بيا پوهانو او ورپسې د شهيدانو سپارښت مني،چې منل کېږي هم . (بحار ٨/ ٣٤)

ð  چې  قيامت شي؛نو د پوهانو د قلم ارزښت د شهيدانو له وينې سره پرتله کوي؛نو (په پايله کې) د پوهانو د قلم رنګ د شهيدانو پر وينه لوړاوى مومي.(الخصال ١/  ١٥٦)

 

شوخي

ð شپږچارې په مړانه کې شمېرل کېږي، چې درې په سفر او درې په حضر کې دي :

الف – د حضر چارې : د “کتاب الله” لوستل،د خداى د جوماتونو ابادول او دخداى لپاره ورروي کول .

 ب_ د سفر درې چارې : له خپلې توښې پراخ لاسي،ښه خوى او داسې ټوکې چې ګناه پکې نه وي . (صحيفة الرضا ٥١ مخ)

 ð ډېرې ټوکې ابرو، ډېره خندا ايمان او ډېر دروغ د انسان مقام له منځه وړي .( الکافي ٢/ ٦٠٦)

  ð علي! ډېرې ټوکې مه کوه؛ځکه ارزښت او پرتم دې له منځه وړي . ( عوالي الاللي ١/ ١٠١)

 

پېژندنه

ðڅوک چې زما اهلبيت ونه پېژني،له درېو حالتو به وتلى نه وي : يا منافق دى يا ارمونى دى يا په مياشتني عادت کې د مور په ګېډه شوى دى . ( مستدرک الوسايل ٢/  ٢٠ )

ð څوک چې د خپلې زمانې مشر ونه پېژني؛نو په جاهلي مړينه به مړ شوى وي .( الکافي ١/ ٣٧٧ )

ð پر حق پېژاندي دې خداى ولورېږي .( العدد القويه: ٥)

 ð علي!که ته نه واى؛نو تر ما وروسته مؤمنان نه پېژندل کېدل .

(مغازلي مناقب ٧٠ مخ، الطرائف ١/ ٧٧، عيون رضا الرضا ٢/ ٤٨، العمدة ٢٩٢، بحار ٣٨/ ١٤٩)

ðزه او علي ددې امت پلرونه يو،چاچې زموږ حق وپېژاند؛نو خدای يې پېژندلى او څوک چې له موږ انکار وکړي؛نو له خداى يې انکار کړى دى.

 ( ينابيع الموده، ١/ ٣٧٠، د الوسي تفسير ٢٢/ ٣١ ، شرح احقاق الحق سيد مرعسي ١٥/ ٥١٨)

ð څوک  چې دې درناوى وکړي؛نو خداى به يې د قيامت د ورځې له ډاړه خوندي کړي . (الکافي ٢/ ٦٨٥ )

  ðپه ژبه اقرار کول،له زړه پېژندنه او په غړيو عمل کولو ته ايمان وايي. ( بحار الانوار ٦٦/ ٦٣ )

ðايمان لس برخې لري :پېژندنه،طاعت، علم، عمل، ورع،کوښښ، يقين، صبر ، ( په الهي  قضا و قدر) راضي کېدل او تسليم؛نو که يو يې هم  نه وې د ايمان جوړښت به نيمګړى وي . (بحارالانوار ٦٦/ ١٧٥)

ð ( ګېدې مو) مه مړوئ؛ځکه په زړونو کې مو د پېژندنې رڼا مړه کوي. (بحارالانوار ٦٣/ ٣٣١)

 ð تر مرګ وروسته مې امت ته له درېو څيزونو ډارېږم : تر پېژندنې وروسته بې لاري .په فتنو کې ښويېدنه .د ګېډې او عورت شهوتپالي. (الکافي ٢/ ٧٩)

 

توره

ð ټول خيرونه په تورو او د تورو تر سيورې لاندې دي (چې د خداى په لار کې پرې جهاد وشي) او خلکو (دين هم) يوازې په توره او جهاد ټينګېږي،تورې د جنت او دوزخ کونجياني دي.( الکافي ٥/ ٢)

 

ښکار

ðڅوک چې ښکار ته ولاړ شي(له خدايه)غافلېږي . (بحارالانوار ٦٢/ ٢٨١)

ð علي ! زړه په درېو څيزونو سختېږي : دچټي څيزونو اورېدل .تفريحي ښکار او د واکمن دفتر ته تلل . ( روضة الواعظين ٢/ ٤١٤)

 

شکر او مننه

ð پر چاچې لورنې وشي؛نو “الحمدالله” دې ووايي.( وسايل ٧/ ١٧٤)

ð څوک چې د خلکو منندوى نه وي؛نو د خداى مننه هم نشي پر ځاى کولاى . ( الامالي للطوسي : ٣٨٣ )

  ð خداى د منندوى لورونې نورې هم ورډېروي . (الکافي ٨/ ٨١)

 ð ايمان پوره دوه نيمې برخې دى : صبر او  مننه .( بحار الانوار ٧٤/ ١٥٣ )

 ð مؤمن ته حيران يم،په حقيقت کې الهي قضا و قدر يې په خير دى، که  پر کړاو اخته شي،صبر کوي او که لورنه پرې وشي؛نو شکر کاږي. (المؤمن : ٢٧)

ð د شاکر خواړه ورکونکي اجر د هغه روژتي په څېر دى،چې د خداى لپاره يې روژه نيولې وي او څوک چې د روغتيا پر مهال منندوى وي؛نو بدله يې د ناروغ او زغمناک کړاو ځپلي په څېر ده. د لورول شوي د منندوى ثواب د هغه قانع د ثواب هومره دى،چې له هغې لورنې بې برخې شوى دى . ( الامالي للطوسي : ٣٨٣ )

ð څوک چې له خلکو مننه ونه کړي؛نو د خداى شکر به يې نه وي پرځاى کړى . ( مواعظ عدديه : ٣٧ ) 

ð هغه ډېر ښه شکر اېستونکى دى،چې له خلکو سره ډېره مننه وکړي. (کنز ٣/٢٢٦)

 

سپارښتنه (شفاعت)

څوک چې زما له ځوځات سره په لاس،ژبه او شتمنۍ لاسنيوى وکړي، سپارښتنه يې راباندې لازمېږي .(مستدرک الوسايل ١٢/ ٣٧٦)

ð څوک چې زما قبر ته راشي؛نو سپارښت يې راباندې لازمېږي .

 ( الدرمنثور ١/ ٢٣٧ ، سنن الدارقطني ٢/ ٢٤٤ ، جامع الصغير ٢٠/ ٦٠٥، مجمع الزوايد ٤/ ٢)

ðد قيامت پر ورځ  د څلورو تنو شفاعت كوم،كه څه هم د ځمكې د اوسېدونكيو هومره ګناهونه يې كړي وي : زما د اهلبيتو مرستندوى. څوك چې د پرېشانۍ پر مهال يې اړتياوې لرې كړي . څوك چې له زړه او خولې ورسره مينه ولري او څوك چې په لاس دفاع وكړي . ( وسايل الشیعة : ۱۶\۳۳۳)

ð څوک چې خپل فرض لمونځ ځنډوي او په وروستي وخت کې يې کوي،په قيامت کې زما له سپارښنې بې برخې دى . (مستدرک الوسايل ٣/ ٩٧)

  ð په حقيقت کې زما سپارښتنه د خپل امت د ګناهګارانو لپاره ده. ( ان که ستر ګناهونه يې هم کړي وي)  (من لا يحضره الفقيه ٣/ ٥٧٤)

ð څوک چې خپل لمونځ سپک ګڼي،سپارښتنه مې ورته نه رسي او حوض ته مې راتلاى نشي . ( الکافي ٦/ ٤٠٠)

ðپه قيامت کې د څلورو تنو شفاعت کوم : څوک چې تر ما وروسته زما د ځوځات درناوى کوي،چې د هغوى اړتياوې پوره کوي،چې هغوى ته د ورپېښو ستونزو په هوارولوکې هڅې کوي او چې هغوى له زړه اوخولې ښه ګڼي . (بشارةالمصطفى :٣٦)

ðزما شفاعت د امت  د ګناهكارانو په برخه كېږي؛نه د هغوى چې شرك او ظلم يې كړی وي . ( روضة الواعظين  ۲\ ۵۰۱)

ðزما شفاعت د بې انصافه ظالم نه په برخه كېږي .(مستدرك الوسايل ۱۲\۹۹)

 مياشتې

ðڅوک چې د اختر او د پينځلسي پر شپه ويښ وي؛نو زړه به يې پر هغه ورځ نه مري،چې زړونه مړه وي .( وسايل ٧/ ٤٧٨)

ð رجب د خداى مياشت ده،شعبان زما مياشت او رمضان زما د امت مياشت ده. (وسايل ٨/ ٩٨)

ð خيراتونه د شعبان په مياشت کې خپرېږي .(وسايل ١٠/ ٣١٥)

ð څوک چې د شعبان په مياشت کې پر خداى د ايمان او الهي اجر له امله روژه ونيسي؛نو بښل کېږي . ( وسايل ١٠/ ٤٧٨)

ð د شعبان په هره پنجشنبه کې اسمانونه ښکلي کېږي؛نو پرښتې وايي: خدايه! نننى روژه تي وبښه او دعا يې قبوله کړه،څوک چې په دې مياشت کې يوه ورځ روژه شي،پاک خداى يې بدن پر اور حراموي . (وسايل ١٠/ ٤٩٣)

ð شعبان زما مياشت او رمضان د خداى مياشت ده؛نو څوک چې زما په مياشت کې روژه ونيسي،د قيامت پرورځ به يې سپارښتګر يم او څوک چې د خداى په مياشت کې روژه ونيسي،خداى تعالى يې د قبر په هيبت کې مل او ملګرى کېږي .( وسايل ١٠/ ٥٠٦)

 

وينځل

ð څوک چې تر خوړو وړاندې وروسته لاسونه ووينځي؛نو ژوند به يې هوسا او بدن به يې له ناروغۍ خوندي وي . (مفتاح الفلاح ١٧٢)

 

شريک او برخوال

ð که په ختيځ کې څوک ووژل شي او په لويديځ کې يې څوک پر وژنې خوښ وي؛نو د قاتل په څېر دى او د وينې په تويولو کې يې برخوال دى . (بحارالانوار ١٠١/ ٣٨٤)

ð څوک چې د کوم ښه چار لپاره د چا سپارښت وکړي يا پر نېکيو امر او له بديو منع وکړي،يا د کوم ښه چار لپاره چا ته لار وښيي؛نو پکې برخوال دى او څوک چې د ناوړه کار د کولو حکم يا وړانديز وکړي؛نو پکې برخوال دى . (مستطرفات السرائر: ٦٤٣ )

ð لکه شريکباڼى،چې يو له بل سره حساب کوي او آمر،چې تر لاس لاندې سره محاسبه کوي؛نو بنده چې تر دې سخته له ځان سره محاسبه وکړي؛نو هله به مؤمن شي . (محاسبه النفس ١٣ مخ)

 

شرک

 ð د مشرکانو عبادتځايونو ته د هغوى د اختر په ورځو کې مه ورځئ؛ ځکه الهي قهر پرې  نازلېږي . (الجعفريات : ٨٢ )

 ð خداى (د حجاز) جزيره له شرکه پاکه کړه؛خو چې طالع ليدل او پال نيونه يې خلک بې لارې نه کړي .(بحار ٥٥/ ٢٧٧)

 ð زه مې د امت د ګناهګارانو سپارښت کوم؛خو چې شرک او تېرى يې نه وي کړى . (الخصال ٢/ ٣٥٥)

ð چاچې شرک نه وي کړى او ومري؛نو که ښه وي يا بد،جنت ته ځي. (التوحيد ١٩ )

 ð پر تاسې له وړوکي شرکه ډېر ډارېږم . ورته وويل شو: دا څه دي؟ آنحضرت وويل: ريا او ځانښوونه .(د نهج البلاغې شرح ٢/ ١٧٩ )

ðڅلور تنه دي،چې خپلې کړنې بايد له سره ونيسي (مخکېني ګناهونه يې بښل شوي دي): ناروغ،چې روغ شي . مشرک،چې مسلمان شي او حاجي ،چې حج وکړي . (مستدرک الوسايل ٢/ ٦١)

ðڅوک چې خپل لمونځ دومره اوږدوي،چې خلک ورته وګوري،چې څومره اوږ د لمونځ کوي؛نو دا “خفي شرک” دى.   ( ابن ماجه )

ðپه قيامت کې به غږ وشي : چاچې د خداى لپاره څه کړي؛خو بل يې (هم) ورسره شريک کړى؛نو ثواب دې يې له هماغه واخلي؛ځکه خداى د ټولو شريکانو له ګډونه غني اومړه خوا دى .)) ( مسند احمد)

 

شرافت

ð له دينوالو سره ناسته ولاړه،د دنيا او آخرت د شرافت لامل ده . (الکافي ١/ ٣٩ )

ð جبرئيل راته وويل : محمده! څنګه چې غواړې،ژوند وکړه؛خو په پاى کې مرې . څه چې غواړې مينه ورسره ولره،چې هغه به (هم) له لاسه ورکړې . څه چې غواړې ويې کړه (؛خو پوه شه،چې له خداى سره) به دې ليده کاته وشي . د مؤمن  شرف د شپې لمونځ دى او عزت يې د خلکو له ابرو تويولو ډډه کول دي .  (بحارالانوار ٨٤/ ١٤١)

  ð بې تواضع شرافت،بې پرهېزګارۍ کرامت او عزت او بې نيته عمل ګټور نه دي . (وسايل ١/ ٤٨)

ð د انسان شرافت او ارزښت په دين او مړانې کې يې دى . (الکافي ٨/ ٧٩)

 

شراب

ð څوک چې پر هغه دسترخوان کېني،چې شراب پرې اېښي وي؛نو ملعون دى . ( المحاسن ٢/ ٥٨٥)

ð څوک چې پر خداى او اخرت ايمان لري،نه ښايي پر هغه دسترخوان کېني،چې شراب پرې اېښي وي . (الخصال ١/ ١٦٣)

ð په واقع کې شراب د ټولو ګناهونو ريښه ده . ( الکافي ٦/ ٤٠٢)

ð د شرابخور پوښتنه نه بويه،په جنازه کې يې ګډون نه بويه،شاهدي يې نه بويه او چې مرکه وکړي،واده ورسره مه بويه او نه بويه،چې څه ورسره امانت کېښوول شي. (الکافي ٦/ ٣٩٦)

 ð څوک چې تل شراب خوري،په قيامت کې د بوتنمانځي په څېر د خداى حضور ته ورځي . (الکافي ٦/ ٤٠٤ )

ð خداى درې تنو ته د رحمت په نظر نه ګوري : منت اېښوونکى،مور و پلار چې عاق کړى وى او شرابخور.(مستدرک الوسايل ١١/ ٣٦٩ )

ð شراب څښل د روزۍ مخه نيسي.( ١٢/ ٣٣٤)

ð په يوه زړه کې شراب او ايمان (دواړه) نه ځايېږي . (بحارالانوار٧٦/ ١٥٢)

ðهره نېشه ييز (څيز) حرام دى؛نو د څه چې زيات نېشه ييز وي،لږ يې هم حرام دي . (الکافي6/408)

ðخداى لعنت کړي :شراب،شراب ساز، د شرابو ساتونکي، ساقي، شرابخور او   شرابو لېږدوونکى او هغه چې شراب ورته وړي . (مستدرک الوسايل  ١٧\٧٥)

ðپېغمبر اکرم د شراب په جوړولو کې دغه لعنت کړي دي : ((د انګورو بڼوال (باغوان)،د شرابو جوړونکي،وړونکي، پلورونکي، پېرونکي ، سوادګر، منځګړي، شراب ورکوونکي او شرابخور . (وسايل ١٢ \٦٥)

 

شرابخور

ðد شرابوعملي که د نشې په حال کې ومري؛نو له خداى سره به د بوت نمانځي او مشرک په څېر وويني . ( مسند احمد)

 

مړانه او شجاعت

ð ظلم د مړانې آفت دى .(الخصال ٢/ ٤١٦ )

 ð ښه مېړنى هغه دى،چې پر خپلو ځاني غوښتنو برلاسى وي . ( من لا يحضره الفقيه ٤/ ٣٩٤ )

ð موږ اهلبيتو ته اوه ځانګړنې ډالۍ شوي دي،چې تر موږ وړاندې وروسته (دا ټولې يوځاى) چا ته نه دي ورکړل شوي: ګهيځ پاڅېدل، فصاحت،ستريا،مړانه،پوهه ،( له پوهې سره) عمل، له خپلې مېرمنې سره مينه . (بحارالانوار٦٦/ ٤٠٣ )

 

بيړه

ð په حقيقت کې خلک خو بيړې پوپنا کړل او که (د چارو په کولو او هوډ نېونه کې) يې درنګ کولاى؛نو هېڅوک نه پوپنا کېده.( المحاسن ١/ ٢١٥ )

ðحوصله او ارامي د خداى او بيړه د شيطان ده . (مشکاه الانوار: ٣٣٤)

ð په حقيقت کې ښې چارې،چې په بيړه وشي؛نو د خدای خوښېږي. (الکافي ٢/ ١٤٢ )

 ð له خلکو سره په چلن کې له بيړې ډده وکړئ،ښايي هغه مؤمن وي او پوه نشئ . حوصله او نرمي وکړئ او (پوه شئ)،چې بيړه کول د شيطان يوه وسله ده او د خداى نرمي او حوصله ډېره ښه ايسي . (علل الشرايع ٢/ ٥٢٣)

 

ورته والى = يو شان والى

ð ښځې چې ځان نارينه و ته ورته کوي او نارينه يې ښځو ته ورته کوي؛نو خداى پرې لعنت وايي . ( الکافي ٥/ ٥٥٢)

 ð څوک چې د پېغمبرانو په څېر ژوند غواړي او مړينه يې د شهيدانو په څېر وي او د رحمان خداى په پيدا کړي باغ کې مېشت شي؛نو بايد علي خپل امام وبولي او له دوستانو سره يې دوست وي او په هغو امامانو پسې ولاړ شي؛ځکه هغوى زما ځوځات او کورنۍ ده او زما له خټې پيدا شوي دي . خدايه! زما پوهېدنې او پوهه يې روزي کړه! زما د امت پر هغوى دې افسوس وي،چې ورسره مخالفت وکړي،خدايه زما سپارښت يې مه په برخه کوه . (الکافي ١/ ٢٠٨ )

 

شبهات

  ð څوک چې په شبهاتو کې له ورننووتو ډډه وکړي؛نو خپل دين يې ژغورلى دى .  (بحارالانوار ٢/ ٢٥٩ )

 ð ابوذره!په واقع کې پرهېزګاران هغوى دي،چې له هغو څيزونو ډډه کوي،چې ډارېږي شبهې ته به پکې ننوځي . (مستدرک الوسايل ١٧/ ٣٢٣)

 ðحلال او حرام څرګند شوي دي او شبهات يې په منځ کې دي؛نو چا چې شبهات پرېښوول؛نو ځان به يې پر حرامو له اخته کېدو کولو ساتلى وي او څوک چې پر شبهاتو لګيا شي، په پاى کې به پوه نشي؛خو حرام به يې کړي وي . (الکافي ١/ ٦٧)

ð دخداى لاندې څيزونه خوښېږي :د شهوتونو په رادننه کېدو کې تېزې سترګې. د شبهاتو په راکېووتو کې پوره عقل . سخاوت که څه هم د څو کجورو ورکړه وي او مړانه که څه هم د يو مار وژل وي . (بحارالانوار ٦١/ ٢٦٩ )

 

شاهدي ورکول

ð څوک چې د قاضي پر وړاندې په دروغو شاهدي ورکوي؛نو شاهدي يې لا پاى ته نه وي رسېدلې،چې په دوزخ کې ورته هستوګنځى چمتو شوى وي او همداراز د هغه هم،چې شاهد وي؛خو شاهدي پټوي . ( الکافي ٧/ ٣٨٣ )

ð دروغجن شاهد د بې لارو او ناوړو په ليکه کې دى . (دمائم الاسلام ٢/ ٥٠٨)

 ð د هغه ګدا شاهدي نه منل کېږي،چې په ډاګه ګدايي کوي . ( تهذيب الاحکام  ٦/ ٢٤٣)

 

د ماښام خواړه

ðد ماښام د ډوډۍ خوراک مه پرېږدئ، که څه هم د لږې کجورې هومره وي، په يقين وېرېږم، چې امت مې د ماښامنۍ په پرېښوولو (ژر) زوړ شي؛ځکه ماښامنۍ زوړ او ځوان ته قوت وربښي. (وسايل ٢٤/ ٣٣٠ )

 ðڅوک چې دوې شپې سر پر سر ماښامنۍ و نه خوري؛نو بدن يې کمزورى کېږي،چې تر څلوېښتو ورځو پورې يې بېرته پوره کولاى نه شي.( بحارالانوار ٦٣/ ٣٤٥)

 

خوشحالول

 ð د مؤمنانو خوشحالول،د خداى ډېر ښه ايسي . ( الکافي ٢/ ١٨٩)

ðڅوک چې غواړي له ما سره يو ځاى شي او په قيامت کې يې زما شفاعت په برخه شي؛نو زما پر اهلبيتو دې صلوات ووايي او هغوى دې خوشحاله کړي .( وسايل ٧/ ٢٠٣)

ð بنده چې کومه کورنۍ خوشحاله کړي؛نو خداى له دې خوشحالۍ يو مخلوق راپنځوي،چې که دا بنده د قيامت پر ورځ له څه ستونزې يا عذاب سره مخ شي؛ورته مخې ته راځي او وايي :”ولي الله” مه ډارېږه؛ نو بنده دې مخلوق ته وايي : خداى دې درباندې ولورېږي؛که دنيا راسره واى؛نو له تا ځار وه؟هغه ورته وايي : زه د هماغه پلاني کورنۍ خوشحالي يم . (ثواب الاعمال ١٤٩)

ð مسلمان ورور ته روژه ماتى ورکړه او خوشحالول يې تر (ثوابي) روژې درته ستر دى . (الجعفريات ٦٠ مخ )

ð د مسلمان ورور خوشحالول د بښنې لامل دى .( کشف الغمه ١/ ٥٥٢)

 

خوړل

ð په مړه خېټه خوړل د (پيس)برګي ناروغۍ رامنځ ته کوي . ( الامالي للصدوق ٧٤٣)

ð لوږه د رڼا حکمت دى او مړښت له خدايه د لرېوالي لامل دى . (بحارالانوار ٦٣/ ٣٣١)

 ð د مکې د سيمې هومره سره راکړل شول؛خو پالونکي ته مې وويل: دومره نه غواړم؛بلکې غواړم يوه ورځ موړ او بله وږى وسم؛که موړ  وم، تا به ستايم او شکر به دې باسم او که وږې وم  دعا به کوم او تا به يادوم . (الکافي ٨/ ١٣١)

 

د مؤمن خوشحالول

ðڅوک چې مؤمن خوشحاله کړي؛نو زه به يې خوشحاله کړى يم او چاچې زه خوشحاله کړم؛نو خداى يې خوشحاله کړى دى . (سفينة البحار ٢ / ٧٣١)

ðخداى ته تر ټولو غوره چار د مؤمنانو خوشحالول دي .(اصول کافي :٣ټوک – باب ادخال السرورعلى المؤمنين : ١ او٤ حديث )

ðڅوک چې د خپل مؤمن ورور د دنيا له سختيو يوه سختي لرې کړي ؛ نو خداى به يې د آخرت له سختيو يوه سختي لرې کړي . (اثنى عشريه : ١١ مخ )

ðخداى ته ډېرې غوره کړنې دا دي : ١) مؤمن خوشحاله کړې . ٢) لوږه ترې لرې کړې . ٣) له غمونو يې وژغورې .  (اصول کافي : ٣ ټوک، باب ادخال السرور،  ١١  حديث )

ðتر لمانځه وروسته ډېر غوره عمل د مؤمنانو خوشحالول دي . (سفينة البحار: ١ټوک ،٦١٤ او٣٥٢ مخونه  )

ðبنده هغه مهال خداى ته ډېر نږدې وي،چې مؤمن بنده يې خوشحاله کړي . (سفينة البحار: ١ټوک ٦١٤او٣٥٢ مخونه)

 

سخت زړي

ð د چاچې سخت زړي ښه نه ايسي؛نو پر پلار مړي دې ولورېږي،چې د خداى په حکم يې زړه يې نرم شي؛ځکه پلار مړى د حقوقو خاوند دى. (من لا يحضره الفقيه ١/ ١٨٨)

ð د ډېرخور بدن ناروغېږي او زړه يې سختېږي .( الدعوات  ٧٦ مخ)

ð خواړه مو د خدای په ياد،دعا او صلوات پای ته رسوئ او ورپسې (سملاسي) مه څملئ،چې زوړنه مو سختوي .(الدعوات :76 مخ)

ð سخت زړى له خدايه ډېر لرې وي .( الامالي للطوسي ٣ مخ)

ð د بدمرغيو له نښو دي : (له ژړا) د سترګو وچوالى،د زړه سختي،د دنيا د راټولو سخت حرص او پر ګناه کولو ټينګار.( الکافي ٢/ ٢٩٠)

ð تاسې پر (مړيو) خپلوانو له خاورو اچولو منع کوم؛ځکه د سخت زړۍ لاملېږي او څوک چې سخت زړى شي له پالونکي لرې کېږي .(علل الشرايع ١/ ٣٠٤)

 

نښې

ð د يوه اوږده حديث په ترڅ کې راغلي چې : مسيحي مشهور راهب “شمعون بن لاوي” [چې نيکه يې د حضرت عيسى عليه السلام له حواريونو و] رسول اکرم ته راغى او پوښتنې يې وکړې،چې ځينې يې دا دي : د اسلام نښې راته ووايه . ورته يې وويل:ايمان،علم او عمل . ويې ويل : د ايمان، علم  او عمل نښې راته ووايه . ورته يې وويل: ايمان څلور نښې لري : د “الله تعالى” پر “توحيد” اقرار کول،له زړه يې پر خداى، کتابو او استازيو ګروهه درلودل . علم هم څلور نښې لري : پر خداى علم،د خداى د دوستانو پېژندل،پر الهي فرايضو پوهېدنه  او پرې څارنه،چې سم تر سره شي او له لاسه  و نه وځي. عمل دا دى: لمونځ،روژه،زکات او اخلاص (،چې دا په زړه پورې اړه لري)او همدا راز ويې پوښتل : د رښتين نښې راته ووايه . ويې ويل : څلور نښې لري چې دا  دي : چې د واقعيت له مخې خبرې  وکړي،د خداى زېرى او ژمنې تاييد او تصديق کړي،ژمنه پوره کړي او تړون مات نه کړي . د مؤمن نښې راته ووايه . ويې ويل : مهرباني،پوهېدنه او حيا. د زغم نښې راته ووايه.ويې ويل: په نادودو کې صبر کول، ښو چارو ته هوډ کول،عاجزي او حوصله.د توبه ګار نښې راته ووايه. ويې ويل: بې له ټګۍ برګۍ د خداى لپاره کار کول،باطلو ته شا کول،له حقه لاس نه اخستل او خير ته حرص کول . د منندوى نښې راته ووايه . و يې ويل :  پر نعمت شکر اېستل، پر کړاو صبر،پر قسمت قناعت،د غير الله درناوى نه کول . د خاشع نښې راته ووايه . ويې ويل : په پټه او ښکاره د الهي لارښوونو لاروي او څارنه،د ښو چارو کول،د قيامت په باب فکر کول او له خداى سره مناجات . د صالح نښې راته ووايه. ويې ويل: خپل زړه دې نږه کړي،خپل کړه او کسب دې سم کړي او ټولې چارې دې سمې روغې رمټې کړي. د ناصح نښې راته ووايه . ويې ويل :  په حق پرېکړه وکړي،د خلکو حق دې ورکړي،بې له دې،چې څه ترې وغواړي،څه چې ځان ته غواړي،هماغه نورو ته هم وغواړي او پر هېچا تېرى ونه کړي . د باوري خلکو نښې راته ووايه . ويې ويل : د خداى پر شتون باور وکړي او ايمان پرې راوړي،يقين وکړي،چې مرګ حق دى او ترې وډار شي،يقين وکړي،چې د قيامت ورځ حق ده او د هغې ورځې له رسوا کېدو وډار شي. يقين ولري،چې جنت حق دى او شوق ورسره ولري، يقين ولري،چې دوزخ حق دى او په ښکاره ترې دژغورنې لپاره هڅه وکړي،يقين وکړي چې حساب حق دى او له ځان سره محاسبه وکړي. د مخلص نښې راته ووايه . ويې ويل: (د شرک،کفر او کينې له چټليو) د زړه روغ رمټ ساتل، د غړيو روغ رمټ ساتل(چې څوک نه ځوروي او ګناه پرېږدي) خير رسول او د شر نه رسول . د زاهد نښې راته ووايه . ويې ويل: حرامو ته نه لېوالتيا،(له شهوتونو) ډډه کول،د فرايضو ترسره کول،که تر لاس لاندې وي،د  اطاعت او لاروۍ ښه دود وپېژني او که برلاس وي؛نو تر لاس لاندې خلکو سره د چال چلن پر دود پوه وي او تعصب ونه لري،په زړه کې يې کينه نه وي ،که څه  هم چا ورسره بد کړي وي؛نو دى ورسره نېکي وکړي،سره له دې،چې زيان يې وررسولى وي،دى ورته ګټه ورسوي،له ظالم تېر شي او د خداى د حق لپاره تواضع وکړي . د نېک انسان نښې راته ووايه . ويې ويل : د خداى په لار کې دوستي،د خداى په لار کې دښمني،د خداى لپاره ملګرتوب،د خداى لپاره بېلتون،د خداى لپاره غوسه،د خدای لپاره خوشحالي،د خداى لپاره کړنه،خداى ته لېوالتيا او د خداى لپاره ډار،پاکي،اخلاص،حيا څارنه او احسان کول . د پرهېزګار نښې راته ووايه . ويې ويل : له خدايه وډار شي او له عذابه ځان وژغوي،داسې ماښام سهار کړي؛لکه چې هغه يې ويني،دنيا مهمه ونه ګڼي او د ښه خوى له امله دنيا ستره ونه بولي. د متکلف نښې راته ووايه . ويې ويل : په چټي چارو کې شخړه نه کول،تر ځان لوړ سره جګړه ماري نه کول،څه ته چې رسېداى نشي، ورته تمه نه درلودل . د ظالم نښې راته ووايه . ويې ويل : تر لاس لاندې په زور وځوروي،د حق دښمن او په څرګنده تېرى او (له ظالمانو سره مرسته) کوي . د ريا کار نښې راته ووايه . ويې ويل : د خلکو په مخ کې په خدايي کار کې حرص کول؛خو چې ځان ته شي؛نو ناغېړي کوي،دا يې ښه ايسي،چې خلک يې ټولې چارې وستايي او د خپلې نېکنامۍ لپاره هڅه کوي . د منافق نښې راته ووايه . ويې ويل : باطن يې ناکاره وي،ژبه يې له زړه سره، وينا يې له کړنې سره او دننه يې له برسېره سره اړخ نه لګوي. د کينه کښ نښې راته ووايه . ويې ويل : غيبت،غوړه مالي او په مصيبت کې شماتت . د اسرافکار نښې راته ووايه. ويې ويل: په باطلو وياړي،د هغه څه خوړل (او لګول)، چې په لاس کې يې نه وي. د هغه څه اخستل او خوړل،چې له شان سره يې مناسب نه وي . دغافل نښې راته ووايه. و يې ويل: د زړه ړوندوالى،تېروتنه،لوبې او هېره يې نښـې دي . د لټ نښې راته ووايه . ويې ويل : د لنډون تر پولې په چارو کې لټي کول،د کار د خرابۍ او پوپنا کېدو تر پولې لنډون،د ګناه له پولې اوښتل (او د فرايضو پرېښوول) او ستړيا . د دروغجن نښې راته ووايه. ويې ويل: په خپله رښتيا نه وايي،نور رښتين نه ګڼي،چغلي کوي (خبر وړي راوړي) او تورونه تپي. د فاسق نښې راته ووايه . و يې ويل : لوبې  کول،چټي چارې کول،دښمني کول او تور لګول .د خاين (او بې عدالته) نښې راته ووايه . و يې ويل : له خدايه سرغړاندي،د ګاونډي ځورونه،له نږدې خلکو سره کينه درلودل او سرغړاندۍ ته لېوالتيا.( د جنتي ژباړه ،تحف العقول ٢١ مخ.)

 

د فيزيولوژيکي انګېزو په اړه احاديث

ð بنيادم يوازې په درې څيزونو کې حق لري : ( ١)کور،چې پکې و اوسېږي . ( ٢) جامې،چې وا يې غوندي . ( ٣) اوبه او ډودۍ . ( شيباني ٤/ ١٤٢)

ð مسلمانان په دريو څيزونو کې برخوال دي :” اوبه ، واښه، اور” . (ابوداود،کتاب البيوع ٤٧٧ ٣ ګڼه حديث)

ð که څوک موږ ته کار کوي؛نو ښځه دې وکړي،که خادم نه لري، خدمتګار دې ونيسي،که کور نه لري،جوړ دې يې کړي . (ابوداود،کتاب الخراج والادراه ٢٩٤٩ ح)

ð که ناروغ مو څه ته اشتها درلوده؛نو وريې کړئ . (ابن ماجه لومړى ټوک، ١٤٣٩ حديث)

ð تر اودسماتي وروسته دعا: د خداى شکر دى، چې دا رنځ يې رانه لرې کړ او ارام يې کړم . ( ابن ماجه لومړى ټوک، ٣٠١ حديث)

ð که له تاسې هر يو خپله ورځ په ډاډه زړه او روغه سټه او ورځنيو خوړو پيل کړئ(؛نو)داسې ده،چې لکه ټوله دنيا ورکړ شوې وي .( ترمذي، کتاب الزهد ٩ / ٢٠٨ )

ð بنيادم تر خپلې ګېډې بدتر لوښى نه دى ډک کړى، بنيادم ته همدومره خواړه بس دي، چې ملا يې پرې سمه شي (انرژي واخلي) او که خوله يې و نه نيواى شوه ؛نو د معدې له څلورو برخو دې درې برخې خوړو اوبو او سا اېستو ته پرېږدى . (او يوه برخه دې مړوي.)  (ترمذي  ٢/ ٢٢٤)

 

د بشري نوعي د پايښت په اړه احاديث

ð واده کول زما له سنتو دي؛نو څوک چې زما پر سنتو عمل و نه کړي، له ما ځنې نه دى.واده وکړئ؛ځکه زه پر امتونو ستاسې پر ډېرښت وياړم،د چاچې له وسې پوره وي؛ واده دې وکړي او چې بېوسى وي روژه دې ونيسي؛ځکه روژه د شهوت مخه نيسي . ( ابن ماجه لومړى ټوک ١٨٤٦ حديث)

ð له مهربانې او زېږندونکې ښځې سره واده وکړئ؛ځکه زه پر ملتونو ستاسې پر ډېرښت وياړم . ( ابو داود ٢ټ / ٢٠٥٠ ح)

ð له تاسې چې هر يو کوروالى کوئ؛نو صدقه ده.( مسلم ٧/ ٩١ او ٩٢ مخونه)

ð له حضرت “جابر بن عبدالله” روايت دى،چې : پېغمبر اکرم تر ګوتو وهلو او ملاعبې مخکې کوروالى منع کړى دى . ( ابن قيم الجوزيه: الطب السبوي ٢٣٤ مخ)

ð د پېغمبر اکرم په يوه ځاى کې دمه شوه،يو صحابي کونج ته ولاړ او د يو مارغه هګۍ يې راوړه. مارغه د پېغمبراکرم او اصحابو پر سر په الوتو شو. آنحضرت ويل : تاسې کوم يو دا مارغه ځورولى دى؟ يوه ويل : ما يې هګۍ راوړې . آنحضرت ورته وويل: بېرته يې يوسه او په بل روايت کې راغلي،چې پرې ولورېږه او هګۍ يې بېرته يوسه . (احمد ١/ ٤٠٤ )

 

مور

ð يو سړي د خپلې مور د بدخويۍ په اړه پېغمبر اکرم ته شکايت وکړ؛ خو په ځواب کې يې ورته وويل : چې نهه مياشتې يې پر ګېده وې؛نو بدخويه نه وه! سړي وويل : هغه بدخويه ده. آنحضرت ورته وويل: او چې دوه کاله شيدې يې درکړې؛نو داسې نه وه! سړي وويل: هغه بدخويه ده. هغه وخت چې ستا لپاره د شپې نه ويدېده او د ورځې يې تنده تېروله؛نو داسې نه وه . سړي وويل : بدله مې يې ور پوره کړه. پېغمبر اکرم وويل : څه دې ورته ورکړل؟ويې ويل: پر شا مې حج ته بوتله. ورته يې وويل:ان د لنګوال د يو درد بدله دې هم نه ده ورکړې . ( زمخشري،کشاف تفسير: ٢/ ٤٤٥)

ðمور ته دې پام وسه! مورته دې پام اوسه! مورته دې پام اوسه! بيا دې پلار ته او ورپسې څوک چې درته نږدې وي .(نهج الفصاحه : ١٠٩ مخ)

 

د اروايي او روحي انګېزو په اړه احاديث

ðهر زوکړي پر “فطرت” زېږوي او دا مور و پلار يې دي،چې هغه يهودي، مسيحي او مجوسي کوي؛لکه څنګه چې څاروي،پوره څاروي زيږوي،ايا پکې نيم پوزې ګورئ؟ حضرت ابوهريره وويل : که غواړئ، ويې لولئ: فطرة الله التى فطر الناس عليها .

(بخاري – مسلم، ابوداود او ترمذي (شيخ منصورعلي ناصف، التاج الجامع  في احاديث الرسول ٥ / ١٩٦)

ð هر انسان په فطرت زېږي،تر هغه چې خولى يې پرې وازېږي؛نو په دې وخت کې يې مورو پلار يهودي او نصراني کوي . (احمد ٣/ ٤٣٥ )

ð له حضرت “حذيفه بن يمان” روايت دى،چې پېغمبر اکرم موږ ته دوه حديثونه وويل،چې د يو عملي کول مو وليدل او د بل عملي کېدو ته سترګې پر لار يو. موږ ته يې وويل : امانت د خلکو د زړونو په تل کې کېناست بيا قرآن نازل شو او له قرآنه يې زده کړل او له سنتو يې زده کړل . (بخاري – مسلم  او نووي: ١/ ٢٢٢)

ð پالونکي مې راته امر وکړ،نن يې چې راته څه وښوول،تاسې ته يې(هم) دروښيم، چې نه پوهېږئ:”بنده ته مې،چې څه شتمني بښلې (ورته) حلاله ده او ما خپل ټول بندګان حنيف (مؤحد او پر دين ولاړ)  پيدا کړي دي؛خو شيطانان ورته ورغلل او له خپل دينه يې بې لارې کړل او څه چې مې ورته رواکړي ول،پرې يې حرام کړل او ورته يې وويل داسې څه د خداى سيالان کړئ،چې په اړه يې ما کوم دليل نه دى نازل کړى .) (مسلم  او شيباني ٤/ ٣٢)

 

د سيالۍ د انګېزې په اړه

ð زه تر تاسې مخکې ځم او زه درباندې ګواه يم،پر خدای قسم،چې همدا اوس خپل (د کوثر) حوض وينم،د ځمکې د زېرمو کونجيانې راکړل شوې . پر خداى قسم،ستاسې په باب مې له دې وېره نه ده، چې تر ما وروسته به مشرکان شئ؛بلکې له دې مې وېره ده، چې د دنيا په اړه به په سيالۍ کې اخته شئ .( بخاري او مسلم ( شيباني ٤ / ١٨٣)

ð پر خدای قسم،زه پر تاسې له فقره نه ډارېږم؛بلکې له دې ډارېږم،چې دنيا درباندې پراخه شي؛لکه چې پر ړومبنيو مو پراخه شوې وه او د هغوى په څېر پکې په سيالۍ اخته شئ او د هغوى په څېر مو پوپنا کړي.  (بخاري،کتاب، فرض الخمس باب الجزية والموادعة)

ð يوازې په دوو څيزونو کې سيالي وکړئ : چا ته چې خداى قرآن وربښلى وي او شپه و ورځ پرې لګيا وي، لارښوونې يې عملي کوي؛نو يو څوک ووايي،چې کاشکې د پلاني په څېر ما ته هم راکړل شوي واى، چې د هغه په څېر مې عمل کولاى او بل هغه چې خداى ورته شتمني ورکړي وي او انفاق او صدقه ترې ورکوي؛نو يو بل ووايي چې: کاشکې د هغه په څېر ماته هم راکړ شوې واى،چې ما هم صدقه ورکولاى . ( د امام احمد حنبل مسند ٤/ ١٠٥ )

ð له حضرت “عبدالله بن عمر” نه روايت دى چې:پېغمبر به اس د سيالۍ لپاره چمتو کاوه . ( بخاري، مسلم، ابوداود،ترمذي، نسايي شيباني ٢/ ١٦٣ )

 

د مالکيت انګېزه

ð که بنيادم د سرو دوه سيندونه درلوداى بيا يې هم ښه اېسېدل،چې درېم هم ولري،يوازې خاوره ده،چې بنيادم مړولاى شي(او بس) او خداى د توبه ګار توبه قبلوي . (ترمذي، ابواب الزهد ٩/ ٢٠٥ )

ð زوړ زړه له دوو څيزونو سره په مينه کې ځوان وي : اوږد ژوند او ډېره شتمني .( پورته منبع )

 

د انګېزې او عاطفې تر منځ اړيکه

ð خدايه! له لوږې پناه دروړم؛ځکه ناړه ملګرې ده . (ابوداود، نووي ، ٢/ ١٠١٣ مخ)

ð خداى تعالى وايي : روژه زما لپاره ده او زه يې په خپله بدله ورکوم، روژه تي ته دوه خوشحالۍ دي،يو د روژه ماتي پر وخت او بل له خپل پالونکي سره د ليدو پر مهال . (نسايي ٤/ ١٥٩ )

ðمسلمان ورور ته روژه ماتى ورکول او زړه يې خوښول تر (ثوابي ) روژې نيولو ورته ډېرثواب لري .(الجعفريات : ٦٠مخ)

 

د انګېزو تر منځ  شخړه

ð زما مثال د هغه سړي په څېر دى،چې اور بل کړي او همداچې شاو خوا يې رڼا شي؛نو پتنګان او حشرات پکې ځانونه غورځوي،دى يې شړي؛خو هغوى بيا هم ځان اور ته غورځوي،دا دى زما او ستاسې مثال. زه تاسې د ملا له بنده نيسم او له اوره مو لرې کوم او وايم : پام! پام،چې اور دى!؛ خو تاسې مې ټېل وهئ او ځانونه پکې اچوئ .(مسلم ١٥/ ٤٩ )

ð هغه ځيرک دى،چې خپل نفس کابو کړي او تر مرګ وروسته  نړۍ ته کار وکړي او هغه بېوسه دى،چې خپل نفس د خپلو هوسونو او غوښتنو تابع کړي او له خدايه هيلې غواړي .( ترمذي،احمد او ابن ماجه (شيباني ٤/ ١٨٤ )

ð دنيا ښه او خوږه ده او تاسې پکې د خداى ځايناستي ياست،چې وويني،څرنګه چلن کوئ؛نو له دنيا او ښځو ډډه وکړئ؛ځکه د بني اسرائيلو لومړۍ فتنه (او ازمېښت) له ښځو وه. مسلم،نووي ١/ ١٠٣، ١٠٤ )

ð زما تر مړينې ورسته ښځې نارينه و ته ډېره زيانمنه فتنه ده . بخاري، مسلم ( نووي ١/ ٢٩٠)

ð پر تاسې له دې څيزونو ډېر ډارېږم : شهوت، پيسې، ګېډه، عورت او بې لارې کوونکې فتنې .( شيباني: ٤ / ٣٠٩)

ð له دنيا مې ښځه او عطر خوښېږي او لمونځ مې د سترګو رڼا ده. (نسائي،احمد او حاکم ( ناصف التاج الجامعه ٢ / ٢٧٩)

ð د حضرت عثمان بن مظعون(رض) ښځه په جړو وېښتانو حضرت عايشې بي بي ته راغله . عايشې بي بي ورته وويل: ولې داسې يې؟ ښځې ورته وويل :مېړه مې د ورځې روژه وي او د شپې پر عبادت بوخت وي . پېغمبر اکرم چې راغى(؛نو) عايشې بي بي ورته دا کيسه وکړه : رسول اکرم چې حضرت عثمان وليد، ورته يې وويل : عثمانه! رهابنيت راباندې فرض شوى نه دى؛خو ايا زه درته بېلګه نه يم؟ پر خداى قسم! زه تر تاسې ټولو له خدايه ډېر ډارن يم او تر هر چا يې ډېر پولې او حدود په پام کې نيسم اوعملي کوم . (احمد ٦ / ٢٦٤)

ð درې تنه د پېغمبر اکرم د ښځو کورونو ته ورغلل،چې د پېغمبر د عبادت په اړه وپوښتي؛نو چې خبر شول،هغه يې ډېر لږ وګاڼه؛نو ويې ويل : موږ له پېغمبر سره توپير لرو، د هغه وړاندې وروسته ګناهونه بښل شوي دي،وروسته يې يو وويل :بيا زه ټوله شپه پر لمانځه او عبادت تېروم . بل وويل : زه مدام روژه يم . درېمني يې وويل: زه هم له خپلې ښځې ګوښه کېږم او کله به هم ورسره کوروالى ونه کړم . په دې ترڅ کې پېغمبراکرم راغى او ويې ويل : دا ستاسې خبرې  وې؟ پر خداى قسم  زه تر تاسې ټولو له خدايه ډېر ډارن او پرهېزګار يم؛خو کله روژه يم او کله نه،لمونځ کوم  او د شپې چې ويده کېږم،له ښځو سره کوروالى هم کوم؛نو چاچې زما له سنتو مخ واړاوه؛نو له ما ځنې نه دى . (بخاري،مسلم او نسايي (ناصف ٢ / ٢٧٨)

ð عبدالله! ځينې ورځې روژه نيسه او ځينې ورځې يې خوره، د شپې په يوه برخه کې عبادت کوه او په يوه کې يې ويده کېږه؛ځکه بدن دې هم درباندې حق لري،سترګې دې هم درباندې حق لري او ښځه دې هم درباندې حق لري .( بخاري : ١٩ ټ / ٥١٩٩ ح، مسلم (منذري ٦٢٨ ح)

ð پېغمبر اکرم د دنيا پرېښوول منع کړي دي . (نسايي،کتاب النکاح باب النهي عن التبتل (٦/٥٩)

ð  دين اسان دى او کله هم څوک له دين سره ځان نه اړموي ؛خو دا چې مغلوب شي؛نو منځلاري خپله کړئ او نږدې شئ او خوشحاله وسئ او له ګهيځ ،مازيګر او لږ څه له شپې مرسته وغواړئ . او په بل روايت کې راغلي چې : او نږدې شئ او ګهيځ او مازيګر او لږه شپه( په عبادت کې تېره کړئ)منځلاري،خپله کړئ،چې (موخې ته) ورسئ . (بخاري (نووي ١ / ١٦٨)

امام نووي ( ١/ ١٦٨) ددې حديث په تفسېر کې وايي : د دې حديث مانا داده،چې د خداى عبادت پر داسې مهال وکړئ،چې بدن مو روغ رمټ او طبيعت مو جوړ وي،چې خوند ترې واخلئ او ستړي نشئ؛لکه څنګه چې مسافر په ګهيځ،مازيګر او د شپې په يوې برخه کې لار وهي او نور وخت استراحت کوي،چې بې ستړيا خپلې موخې ته ورسي. د نږدې شئ مانا داده،چې که يو کار پوره نشئ کولاى؛نو ورته خو  نږدې يې کړئ.

 ð پېغمبراکرم جومات ته راننووت،ويې ليدل،چې د دوو تنو تر منځ يوه رسۍ غځول شوې وه. ويې ويل : دا د څه لپاره؟ورته وويل شو،چې دا کار زينب کړى دى،چې کله بې حاله شي؛نو هغه به نيسي . پېغمبر وويل : رسۍ ايله کړئ او لمونځ مو په سم حال او  ښېرازۍ کې وکړئ او چې ستړي شئ؛استراحت وکړئ . (بخاري او مسلم ( نووي ١ / ١٦٩)

 

د انګېزو کابو کول

( الف) د حلالو له لارې کابو کول

خلکو! ستر يوازې الله دى او يوازې پاک قبلوي، ستر خدای مؤمنانو ته هماغه ويلي،چې استازيو ته يې ويلي دي . ويلي يې دي :” استازيو! له پاکو څيزونو وخورئ او نېکې چارې وکړئ” او ويلي يې دي : “مؤمنانو! له پاکو څيزونو مو چې روزي درکړې،وخورئ”.بيا آنحضرت د يوه سړي مثال راوړ،چې اوږده لار يې وهلې،ستړي او په دوړو خيرن لاسونه اسمان ته پورته کوي او پالونکيه! پالونکيه! وايي . حال داچې خواړه، څښاک او اغوستن يې حرام دي او په حرامو موړ شوى دى؛نو ددغسې وګړيو دعا خو نه قبلېږى؟

(“مسلم” او “ترمذي” (شيباني ٢/ ١٣٧ – ١٣٨) “احمد” او “دارمي”.)

ðاو ځينې وګړي په ناحقه د خداى مال ته لاس ورغځوي او د قيامت پر ورځ يې برخه اور دى .( “بخاري” او “ترمذي” (شيباني ٤/ ١٣٨)

ð حلال څرګند دي،حرام هم څرګند دي او د دوى ترمنځ شکمنې چارې دي،چې ډېرى خلک د هغوى (په حلالو او حرامو) نه پوهېږي؛نو څوک چې له شبهاتو ځان وساتي؛خپل دين او پت يې ساتلى دى او څوک چې  په شبهاتو کې ولوېد؛په حرامو کې لوېږي؛لکه د هغه شپانه په څېر،چې (خپله رمه) د پاڼ پر غاړې څروي او نږدې وي،چې ولوېږي . پوه شئ،چې هر پاچا څر ځاى لري او د خداى څر ځاى د هغه حرام دي .(بخاري، مسلم ، ابوداود، “ترمذي” او نسايي (شيباني ٤/ ١٣٨)

ð زنا کار د زنا پر مهال مؤمن نه دى . غل د غلا پر مهال مؤمن نه دى. شرابخور د شراب څښلو پر مهال مؤمن نه دى او د هغه قيمتي څيز لوټونکى د لوټلو پر مهال مؤمن نه دى،چې د خلکو سترګې وراوړي. (بخاري،مسلم،ابوداود، ترمذي،نسايي ( شيباني ٤/ ٣٠٩ – ٣١٠)

(ب ) په منځلارۍ د اړتياوو د پوره کولو دود

ð وخورئ،وڅښئ او واغوندئ؛خو له پولو مه اوړئ (اسراف مه کوئ) او کبرجن مه وسئ.[بخاري ( ناصف ، ٣ / ١٦٣)]

ð د دوو تنو خواړه،درېو ته (او په بل روايت کې څلورو تنو) ته بس دي  او د درېو تنو خواړه څلورو ته بس دي او په بل روايت کې د څلورو تنو خواړه اتو تنو ته بس دي . (شيباني ٢/ ١٣٠)

(ج) د جنسي انګېزې کابو کونه

ðد ځوانانو ټوليه! د هر يو،چې له وسې پوره وي؛نو واده وکړئ؛ځکه واده له حرامو د ژغورنې لامل دى،چې (انسان) پاکلمنى کوي او چې څوک وس نه لري،روژه دې ونيسي؛ځکه روژه شهوت لرې کوي . (بخاري ١٩/ ١٢٩ – احمد ١/ ٤٤٧)

ðپېغمبر اکرم : عکافه! مېرمن دې شته؟ ورته يې وويل : نه . ((وينځه دې شته؟)) ورته يې وويل: نه . ورته يې وويل: شتمني دې شته ؟ ورته يې وويل : هو! پېغمبر وويل : ((نو ته د شيطان له وروڼو يې، که نصراني وې؛ نو د هغوى يو راهب به وې؛خو زما سنت واده دى . په تاسې کې ډېر ناوړه “بې واده” دي او دا ډېر ناوړه،مړى مو (هم) بې واده دی . ايا له شيطان سره لوبې کوئ،ښځې صالحانو ته د شيطان تېرې تورې دي؛خو واده والا له چټليو خوندي دي .”عکافه” افسوس درباندې! “ايوب”،”داوود”،”يوسف” او “کرسف” مېرمنې درلودې ))وپوښتل شو: کرسف څوک  و؟ آنحضرت ورته وويل: (( يو سړى و، چې د سمندر پر غاړې يې درې سوه کاله عبادت کاوه،د ورځې روژه او شپه يې پر لمانځه تېروله بيا پر يوې ښځې مين شو او د خداى عبادت يې پرېښود او پر ستر خداى کافر شو بيا يې خداى له تېرو تېر شو او د هغه توبه يې ومنله .”عکافه”! پر تادې افسوس وي،واده وکړه او که نه له مذبذبانو به يې.( احمد ٥ / ١٦٣ – ١٦٤)

ð که د چا دين او خوى مو ښه ايسېده او (د خور لور) غوښتنې (او مرکې) ته مو راغى؛نو وريې کړئ،که داسې ونه کړئ؛نو پر ځمکه به ګډوډي او فساد خپور شي. (ترمذي٥ / ٣١٥  ابن ماجه ، باب النکاح)

ð د نجلۍ چې مياشتنى (عادت) راغى؛نو سمه نه ده (چې داسې جامې واغوندي،چې) بدن يې ترې معلوم شي؛خو بې له مخ او لاسونو يې . (ابوداود،کتاب اللباس ٤/ ١٤٠٤ حديث)

ðعلي!پرله پسې مه ګوره؛ځکه  لومړى کتل دې حق دي؛ خو دويم ځل نه![ ابوداوود،ترمذي” ( شيباني ٣/ ٤١ – ٤٢) ]

ð که کومه ښځه مو خوښه شوه او په زړه کې مو کېناسته؛نو ولاړ شئ او له خپلې مېرمن سره کوروالى وکړئ ؛ځکه دا چار په زړه کې راپيدا شوى اغېز له منځه وړي . [مسلم،ابوداوود،ترمذي او نسايي ( ناصف ٢/ ٣٣١)]

(د) د غوسې د انګېزې کابو کول

ð يوه مسلمان  ته هم روا نه ده،چې بل مسلمان وډاروي . (شيباني ٤/ ٩١، ناصف ٥/ ١٨ )

ð څوک چې مؤمن ته زيان ورسوي،خداى به هغه ته زيان ورسوي او څوک چې له مؤمن سره دښمني وکړي،خداى به له هغه سره دښمني وکړي . (پورته سرچينه)

ðملعون دى هغه چې مؤمن ته زيان ورسوي يا ورسره چل وکړي .( پورته سرچينه)

ð هغه مسلمان دى،چې مسلمانان يې له لاس او ژبې خوندي وي . ( ناصف ١/ ٢٧)

ð د قيامت پر ورځ د مؤمن په تله کې بې تر ښه خوى بل دروند څيز نشته، د خداى تعالى د سپکو سپورو ويونکى نه خوښېږي. ( شيباني ٤/ ١٧٨  ناصف ٥/ ٦٢)

ð مسلمان د مسلمان ورور دى،خيانت ورسره نه کوي،دروغ ورته نه وايي او يوازې يې نه پرېږدي،پر مسلمان د مسلمان ټول څيزونه حرام دي؛پت او آبرو يې،شتمني يې او وينه يې . تقوا دلته ده، د يو چا بدۍ ته دومره بس دى،چې خپل مسلمان ورور سپک وګڼي.  (نووي١/٢٥٠)

ð مفلس پېژنئ! ورته يې وويل : هغه چې پيسې او شتمني ونه لري. آنحضرت ورته وويل :  هغه مې د امت مفلس دى،چې د قيامت پر ورځ  له  لمونځ،روژې او زکات سره راشي او بلخوا يوه ته يې کنځلې کړې وي، په بل پسې يې تور تړلى وي،د يو يې مال خوړلى وي او د يوه بل يې وينه تويه کړې وي او بل يې وهلى وي؛نو  دوى هر يو ته د هغه نېک کارونه ورکول کېږي او که په اړه يې له پرېکړې کولو وړاندې نېکې چارې پاى ته ورسي؛نو له هغوى ګناهونه را اخستل کېږي او پرده وربارېږي؛نو بيا يې په اور کې غورځوي . (نووي ١/٤١)

ð پوهېږئ،چې غيبت څه ته وايي؟ ورته يې وويل :خداى او پېغمبر يې ښه پوهېږي . آنحضرت ورته وويل : دا چې ورور يې داسې څه ووايي، چې ښه يې نه ايسي . يو وپوښتل : ان که داسې څه (هم) وي،چې په هغه کې وي؟آنحضرت ورته وويل : که څه هم ستا ويلي پکې وي؛نو د هغه دې غيبت کړى او که ستا ويلي پکې نه وي؛نو تور دې ور پورې تړلى دى . ( شيباني ٣/ ٢٤٨)

ðهغوى چې ايمان مو راوړى او ايمان مو د زړه تل ته نه دى رسېدلى،مسلمان مه ازاروئ،مه يې رټئ او عيبونه يې مه راسپړئ؛ ځکه څوک چې د مسلمان ورورعيبونه راوسپړي،خداى تعالى به يې عيبونه راوسپړي او خداى، چې د چا عيبونه راوسپړي؛نو رسوا به يې کړي،که څه هم په خپل کور کې وي .( شيباني ٣/ ٤١)

ðد خبرې وړونکى راوړونکی (چغلګر) جنت ته نشي تلاى . (شيباني ٣/ ٢٤٩  نووي، ٢/ ١٠٥٢)

ðکه دوه مسلمانان د يو بل پر وړاندې توره راوکاږي؛نو قاتل او مقتول دواړه په اور کې دي . آنحضرت وپوښتل شو: قاتل خو سمه ده؛نو مقتول ولې؟ ورته يې وويل : هغه هم هڅه کوله،چې هغه بل ووژني او په بل روايت کې راغلي دي چې : د هغه بل هم نيت و،چې دا بل ووژني. (شيباني ٤/ ٢٨ او ٢٩ )

ð له حضرت”عبدالله بن مسعود”(رض) نه روايت دى،چې پېغمبراکرم ويلي دي : مسلمان ته کنځلې کول فسق او جګړه کول ورسره کفر دى . ( پورته سرچينه )

ð تر ما وروسته کفر ته وا نه وړئ او د يو بل څټونه غوڅ نه کړئ . (شيباني: ٤/ ٢٩)

ð او که د اسمان او ځمکې اوسېدونکي د مؤمن په وينه تويولو کې برخه اخلي؛نو خداى ټول په اور کې غورځوي .( ناصف ٢/ ٤ )

ð د مسلمان تر وژنې خداى ته د دنيا له منځه وړل ډېراسان دي .( پورته سرچينه)

ð د قيامت پر ورځ تر هر څه وړاندې د وينې د مسئالې په اړه پرېکړه کېږي .(پورته سرچينه)

ð له ما سره به په دې شرط بيعت کوئ چې  له خداى سره به شرک نه کوئ،غلا مه کوئ،زنا مه کوئ او کوم نفس،چې خداى حرام کړى وي، په ناحقه مه وژنئ.( شيباني ١/ ٢١)

ð له اوو پوپنا کوونکيو ځان وژغورئ : ( ١) له خدای سره له شرکه (٢) کوډې کول (٣) په ناحقه د حرام کړي هغه نفس وژنه   ( ٤) سود خوړل ( ٥) د يتيم د مال خوړل ( ٦) له جهاده تېښته ( ٧) پر پاکلمنو ښځو تور . (ناصف ٤/ ٩٣)

ð څوک چې “اهل ذمه ووژني”؛نو د جنت بوى به بوى نه کړي. (ابوداود)

(ه)  د ملکيت د انګېزې کابو کول

ðمړښت د ډېرې شتمنۍ په درلودو کې نه؛بلکې (واقعي) مړښت د نفس په غنا کې دى .

ð له ظلم ډډه وکړئ؛ځکه ظلم د قيامت د ورځې تيارې دي. له سختې کنجوسۍ ځان وژغورئ؛ځکه ستاسې ړومبني يې پوپنا کړي دي، هغوى يې اړ کړل،چې د يو بل وينه تويه کړي او د يو بل حرام حلال کړي . ( شيباني ٤/ ٣١٠)

ð بدمرغه هغه دى،چې د پيسو او جامو بنده وي،که دا ورته ورکړل شي؛نو خوښېږي او که ور نه کړل شي؛نو خوشحاله نه وي . ( نووي ١/ ٤١٧)

ð د ډېر جايداد د لاس ته راوړو هڅه مه کوئ،چې دنيا ته لېوالېږئ . (نووي ١/ ٤٢٥)

ð د صدقې ورکول شتمني نه کموي .( نووي ١/ ٤٧٨)

ð خداى تعالى ويلي دي : د آدم اولادې!انفاق وکړه،چې انفاق درسره وشي . ( نووي ١/ ٤٧٤)

ð هره ورځ پر بندګانو دوې پرښتې راکېوځي،يوه يې وايي : خدايه! نفقه ورکوونکي ته بدله ورکړه او بله يې وايي: خدايه ممسک زيانمن کړه . ( ناصف ٢/ ٥٠٤)

 ðمسلمان،چې بربنډ مسلمان په جامو پټ کړي؛نو خدای به شنې جنتي جامې ورواغوندي او هر مسلمان،چې وږی مسلمان موړ کړي؛نو خدای به پرې جنتي مېوې وخوري او هر مسلمان،چې تږى مسلمان خړوب کړي؛نو خدای به پرې جنتي سرپوښ شراب وڅښي.( ناصف ٢/ ٤١ او ٤٢ مخونه)

 

د غريزې بې لاري

ðپر امت مې د “لوط” د قوم له کانې ډېر ډارېږم . (ترمذي،الحدود ٦/ ٢٤١)

ðخداى دې هغه په لعنت کړي،چې  له کوم څاروي سره کوروالى کوي، خداى دې هغه په لعنت کړي،چې د “لوط” د قوم چار ې کوي .( دا يې درې ځل وويله) .(احمد ١/ ٣١٧ –بيهقي٨/ ٢٢٤)

ðڅوک چې له محرمې سره کوروالى وکړي (؛نو) و يې وژنئ.  ( بيهقي: ٨ / ٢٣٧)

ð نارينه چې ځان د ښځو په څېر کوي او ښځې،چې ځان د نارينه وو په څېر کوي؛نو رسول الله پرې لعنت ويلى دى .( نووي٢/ ١١٢١)

 

 

مينه

(الف) له خداى تعالى سره مينه

ð له خداى سره ځکه مينه کوئ،چې پېرزوينې درباندې کوي..،او له ما  سره له دې امله مينه ولرئ،چې له خداى سره يې لرئ او له اهلبيتو سره مې له ما سره د دوستۍ له امله مينه ولرئ .(ترمذي،ابواب المناقب: ١٣/ ٢٠١،ناصف 3/249، شيباني3 / 294)

ð ستا مينه او له هغه سره مينه مې روزي کړه،چې ستا پر وړاندې د مينې وړ وي .(ترمذي، ابواب الدعا: ١٣/ ٢٧)

ðله تا مينه غواړم او هم له هغه سره مينه غواړم،چې له تا سره مينه لري او ( همداراز له هغو کړنو سره مينه،چې ستا له مينې سره مې نږدې کوي.) ( ناصف ١/ ٢٤٧ او ٢٤٩)

ð داود (عليه السلام) پخپلو دعاګانو کې ويل : خدايه! له تا غواړم،چې درسره  مينه ولرم،له هغه سره مينه ولرم،چې له تاسره مينه لري او داسې کړه وړه،چې مينې ته مې در رسوي .

ð خدايه! داسې مې کړې،چې تر ځان، کورنۍ او سړو اوبو راته ګران اوسې . (ترمذي، ابواب الدعاء ١٣/٢٧)

ð د هغه به ايمان پوره شوى وي،چې دوستي هم د خداى لپاره وکړي او دښمني هم د خداى لپاره او نفقه هم د خداى لپاره ورکړي .( ناصف ٥/٧٨)

ð د خداى لپاره دوستي او دښمني کول،ډېر غوره کړه وړه دي . ( ناصف ٥/٧٨)

 

له پېغمبر اکرم سره مينه

له تاسې يو هم ايمان نه لري؛خو داچې زه ورته تر پلاراولاد او ټول خلکو ګران يم . (بخاري ١ / ١١٤  مسلم ٢/ ١٥ )

ð که په چا کې دا درې څيزونه وي؛نو د ايمان خواږه به يې څکلي وي.

( ١) تر هر څه ورته خداى او  پېغمبر يې ډېر ګران وي .

( ٢)  له چا سره مينه يې يوازې د خداى لپاره وي .

( ٣)  لکه چې نه يې خوښېږي په اور کې وغورځول شي (دغسې يې) ښه نه ايسي،چې کفر ته واوړي .( ناصف ٥/ ٧٨)

ð له چا سره،چې زما مينه وى؛نو په جنت کې به راسره وي .( ناصف ١/ ٤٧)

 

له خلکو سره مينه

ð  مؤمن مينه ناک دى او چې داسې نه وي (؛نو) خير پکې نشته. (احمد  ٢ / ٤٠   ٥/ ٣٣٥)

ð له يو څيز سره مينه انسان ړوند و کوڼ کړي .(ناصف ٥ / ٨٤ )

ð پر هغه خداى قسم،چې ساه مې يې په واک کې ده،جنت ته به ولاړ نشئ؛ خو داچې مؤمنان شئ او هله به مؤمنان شئ،چې يو له بل سره  مينه ولرئ،ايا د خپلمنځي مينې د پيدا کولو لاره چاره دروښيم؟پر سلام اچولو مو ترمنځ مينه پيدا کېږي .(شيباني ٢/ ٢٣)

ð خلکو!واورئ،خبر اوسئ او پوه شئ،چې د خداى داسې بندګان هم شته،چې نه پېغمبران دي او نه شهيدان؛خو دوى ته سيالي ورځي،چې څنګه هغوى له خداى سره د نږدې مقام خاوندان دي . يو بېدياني وپوښتل : هغه څوک دي؟ آنحضرت ورته وويل: هغوى چې يو له بل سره د خپلوۍ اړيکې نه لري؛خو د خدای لپاره يو له بل سره مينه او اخلاص لري،خداى هغوى د قيامت پر ورځ د رڼا پر منبرونو کېنوي،څېرې او جامې به يې له رڼاګانو وي،د قيامت پر ورځ،چې خلک ډارېږي،هغوى هيڅ ډار نه لري،هغوى “اوليا الله” (د خداى دوستان) دي،چې نه ډار لري او نه خپګان  . (احمد ٥/ ٣٤٣ )

ð  له هغو اوو ډلو،چې په قيامت کې د خداى (د رحمت) تر سيوري لاندې وي، يوه يې دا هم ده چې : دوه تنه،چې د خداى لپاره يو له بل سره دوستي ولري او پردې دوستۍ يو له بل سره ملګري وي او پر همدې يو بله له بېل شي . (ناصف ١/ ٢٣١ – ٢٣٢ ،نووي ١/ ٥٤٧ او ٦٥٩ مخونه)

ð يو سړى د خپل ورور کتو ته بلې سيمې ته روان شو،خداى ورته په لار کې يوه پرښته کېنوله،سړى چې ورورسېد؛نو پرښتې وپوښت : چېرې ځې؟ سړي وويل : د خپل وررو ليدو ته ځم . پرښتې وپوښت : څه حق دې ورباندې دى،چې ترې اخلې يې ؟سړي وويل : نه بلکې د خداى لپاره مې دوست دى،پرښتې وويل : نو پوه شه،چې زه درته د خداى استازې يم . درته ووايم،چې د خداى لپاره دې ور سره دوستي ده؛نو ته هم د خداى دوست يې.(ناصف ٥ /٨٢)

ð هله به مؤمن شې،چې څه ځان ته خوښوې،خپل ورورته يې هم خوښ کړې.( ناصف ١١/ ٢٦)

ð څه چې ځان ته خوښوې؛نو خلکو ته يې هم خوښ کړه،چې مسلمان شې.( ناصف ٥/ ١٦٦ او ١٦٧ مخونه)

ðمؤمنان په دوستۍ کې داسې يوه تنه ده،چې يو غړى يې دردمن شو؛ نو نور غړي هم ورسره ناکراره وي . (نووي ١/ ١٣٨ ، ٢/ ٦٣٢)

ð څوک چې ښې چارې وکړي او خلک يې وستايي؛نو مؤمن ته بېړنى زېرى دى . ( مسلم )

ð مؤمنان يو بل ته د هغه ماڼۍ په څېر دي،چې اجزاوو يې يو بل تينګ کړي وي .( احمد ٤ / ٤٠٤)

ð حضرت “سعد بن ربيع انصاري” له حضرت “عبدالرحمن بن عوف” سره ورور شو. “سعد” ورته وويل : زه ډېر شتمن انصاري  يم او شتمني درسره نيموم،دوې ښځې لرم،کومه چې دې خوښېږي راته ووايه،چې طلاقه يې  کړم او چې عدت يې پوره شو، درواده يې کړم. حضرت”عبدالرحمن”ورته وويل : خداى دې ستا پر اولاد او شتمنۍ برکت کېږدي، بازار مو چېرته دى؟ “عبدالرحمن” په بازار کې په راکړه ورکړه لګيا شو،ښځه يې وکړه او د مديني له شتمنو شو. ناصف(٣/ ٤٠١ – ٤٠٢ )

 ðيو بل ته لاسونه ورکړئ،چې کينې مو له منځه ولاړې شي،يو بل ته ډالۍ ورکړئ،چې مينه مو پيدا شي او دښمنۍ مو لرې شي . ( امام مالک؛ موطا: ١٦٤٢ حديث)

ðخلک د خدای عيال دى او خداى ته هغه ډېر ګران دى،چې له عيال سره يې نېکي وکړي . (بيهقي،شعب الايمان:مشکاة المصابيح ٣/ ١٣٩، ٤٩٩٨ حديث)

ðدنيا ته بې پروا وسه،چې د خدای ښه ايسې او څه چې خلک لري، ورته بې پروا وسه،چې د خلکو ښه ايسي.( نووي ١/ ٤٢٠)

ðد خداى چې کوم بنده خوښېږي؛نو “جبرئيل” راوغواړي او ورته وايي: پلانى مې خوښېږي؛نو ته يې هم خوښ کړه او “جبرئيل” دې يې هم  خوښ کړي او په اسمان کې غږ کړي :”پلانى د خداى خوښېږي؛نو تاسې يې هم خوښ کړئ”؛نو اسمانوال يې هم خوښ کړي، ورپسې يې پر ځمکه محبوبيت او ګرانښت خپرېږي او د خداى،چې کوم بنده ښه نه ايسي؛نو “جبرئيل” راغواړي او ورته وايي: پلانى مې دښمن دى؛نو ته يې هم دښمن وګڼه او “جبرئيل” يې دښمن وګڼي او اسمانوالو ته غږ کړي، چې” پلانى د خداى ښه  نه ايسي؛نو تاسې يې هم دښمن وګڼئ” او اسمانوال يې دښمن ګني؛نو بيا يې په اړه پر ځمکه کرکه او نفرت خپرېږي .( ناصف ٥/ ٧٩)

 

د  خداى له پنځوليو سره مينه

ð مسلمان چې نيالګى کېنوي يا دانه وکري او الوتونکي،انسانان او څاروي يې ترې وخوري،دا ورته صدقه شمېرل کېږي.(ناصف ٢/ ٢٣٠ )

ðيو سړى روان و او سخت تږى شو،يوې څاه ته ورسېد؛ورکوز شو، اوبه يې وڅښلې  او ترې راووت،و يې ليدل، چې يو سپي له ډېرې تندې ژبه را اېستلې او لمده خټه څټي،سړي له ځانه سره وويل:”دا سپى زما هومره تږى دى”؛نو(بيا) څاه ته کوز شو او خپله پڼه يې له اوبو ډکه کړه او په خوله کې يې ونيوه او راپورته شو او سپى يې خړوب کړ. خداى تعالى يې د کار منندوى شو او ويې باښه . اصحابو وويل: ايا د څارويو د خدمت لپاره موږ ته هم اجر راکول کېږي . آنحضرت وويل : د هر تږي ځيګر د خړوبولو لپاره بدله شته. (بخاري:الادب،٢٢ح، ٢٢٢ مخ، ابوداوود، الجهاد ٣ټ، ٢٥٥٠ح)

 

له اولاد سره مينه

ð رسول اکرم حضرت “حسن بن علي” ښکل کړ. “ازع بن حابس تيمي” هلته ناست و؛ ويې ويل :زه لس اولادونه لرم او يو مې هم نه دى ښکل کړى . رسول اکرم  ورته وويل : څوک چې ونه لورېږي،لورنه به پرې ونشي.( ناصف ٥/ ٧)

 ð يو بېديانى پېغمبر اکرم ته راغى او ورته يې وويل : تاسې کوچنيان ښکلوئ! موږ خو يې نه ښکلوو.پېغمبر اکرم ورته وويل: زه څه وکړم،چې خداى ستا له زړه مينه او لورنه اېستې ده.(ناصف ٥ /٧ )

ð حضرت “براء” وايي : پېغمبر اکرم مې وليد،چې “حسن” يې پر اوږو کړی دى او وايي: خدايه! دى راته ګران دى، تا ته دې هم ګران وي . (ناصف ٣/ ٣٥٧)

ð د پېغمبر سترګې پر “حسن” او “حسين” ولګېدې . ويې ويل: خدايه! دا دواړه راته ګران دي،تا ته دې هم ګران وي . (ناصف ٣/ ٣٥٨)

ðحضرت “بُريره” وايي : پېغمبر اکرم راته وينا کوله او”حسن” او “حسين”،چې دواړه سرې اجامې اغوستې وې، په تګ کې پر ځمکه هم لوېدل؛راغلل : پېغمبر اکرم له منبره راکوز شو او دواړه يې په څنګ کې ونيول او پر زنګانه يې کېنول،بيا يې ورته وويل : خداى رښتيا ويلي چې : شتمني او اولاد مو  فتنه (او ازمېينه) ده،سترګې مې پر دوى ولګېدې، چې روان دي او لوېږي،طاقت مې ونشو، داسې چې خبرې مې پرېښووې او په څنګ کې مې ونيول . ( ناصف ٣/ ٣٥٨)

ð څوک چې لور ولري او ژوندى يې ښخه نه کړي او سپکه يې نه کړي او و يې نه رټي او خپل زوى ترې غوره ونه بولي؛نو خداى تعالى يې جنت ته ننباسي. ( ناصف ٣/ ٣٥٨)

ð انسان چې خپل اولاد وروزي،تر يو من صدقه ورکولو ورته غوره ده.(ناصف ٥/ ٨)

ðاولاد ته د خپل پلار ډېره غوره ډالۍ داده،چې ښه ادبناکه يې وروزي. (ناصف ٥/ ٨)

ð”ادب” زوى ته د پلار غوره ميراث  دى . (پورته سرچينه)

 

( و ) جنسي مينه

ð عاشقانو ته مې د واده په څېر لار نه ده ليدلې.( ابن ماجه ١ / ١٨٤٧ حديث)

 

( ز) له شتمنۍ سره مينه

ð زوړ زړه له دوو څيزونو سره په مينه کې ځوان دى : اوږد عمر او ډېره شتمني. (ناصف : ٥/ ١٦٣)

ð مال او شتمني زما د امت د ازمېښت وسيله ده .(ترمذي)  

ð له شتمنۍ او مقام سره مينه ،د انسان دين ويجاړوي .(ترمذي)

ð هر امت يوه فتنه لري او زما د امت فتنه شتمني ده. (ناصف  ٥/ ١٦٣)

ð که بنيادم د پيسو دوه درې سيندونه درلوداى؛نو د درېمې په لټه کې به هم و.يوازې خاوره د انسان نس ډکولاى شي او خداى د توبه ګار توبه قبلوي.( ناصف ٥/ ١٦٢)

کينه

ð د وړاندنيو امتونو په درد؛يعنې کينه اخته شوي ياست.(تخريج زين الدين ابى الفضل العراقى الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالى ٣ / ١٧)

 

آخرت گروهنه

ð”هر څوک چې ومري؛نو پښېمانېږي . وپوښتل شو : ولې؟ آنحضرت ورته وويل : که  نېک چارى و؛نو پښېمانېږي،چې ولې يې  تردې ډېرې ښې چارې نه دي کړي او که بد چارى و؛نو ولې يې ترې لاس نه اخسته . ( ناصف ٥ / ٢٠٣ )

[ دا حديث پردې سربېره،چې انسان د الهي احکامو مننې ته هڅوي، له ګناهونو او بدو چارو يې ډاروي .]

ðد دنيا په غوښتو کې اخروي زيان دى او د آخرت په غوښتو کې دنيايي زيان دى ؛نو په دنيا کې زيانمن شئ؛ځکه دا زيان د آخرت تر زيانه ښه دى . ( الکافي : ٢\١٣١)

 ð زه داسې څه وينم،چې تاسې يې نه وينئ او داسې څه اورم،چې تاسې يې نه اورئ . اسمان وژړل او حق لري،چې وژاړي . د اسمان په لوېشت لوېشت کې پرښتې خداى ته په سجده پرتې دي . پر خداى قسم ! که پر څه چې پوهېږم،تاسې هم پوه شئ. ډېر لږ به خاندئ او ډېر به ژاړئ او له خپلو مېرمنو سره به له کوروالي خوند نه اخلئ او له خپلو کورونو مو اېستلې او خداى ته مو پناه وړه.(ناصف ٥/ ٢٠٤ او ٢٠٥ مخونه)

ð لکه څنګه چې شيدې تيونو ته نه ځي،دغسې څوک چې د خداى له ډاره وژاړي؛نو هېڅکله دوزخ ته نه ځي.( ناصف ٥/ ٢٠ )

ð زه چې هر کار کوم،پکې نه دوه زړى کېږم؛خو د خپل مؤمن بنده په ساه اخستو کې دوه زړى کېږم،د هغه مړينه ښه نه ايسي او زما د هغه خپګان .( ناصف ١/ ٣٣٨ )

ð د خوندونو،مزو او خوښيو ويجاړوونکى (مرګ) ډېر يادوئ. ( ناصف ١/ ٣٣٨ )

 

حيا

ðله وړاندنيو پېغمبرانو،چې کومې خبرې رارسېدلي دي،يوه يې دا ده چې : که حيا دې نه درلوده؛نو څه چې غواړې ويې کړه.( ناصف ، ٥/ ٥٩)

ð حيا د ايمان له څانګو ده.( نووي ١/ ٥٦٢ )

  ð حيا ټول خير دى . (نووي ٣/ ٥٦١ )

ð حضرت “ابوسعيد خدري” وايي:پېغمبر اکرم تر سترمنې نجلۍ هم ډېر حياناک و، چې څه يې کتل؛خو چې ښه يې نه اېسيدل ؛نو له څېرې يې پوهېدو. (نووي ١/ ٥٦٢)

ð حضرت “عبدالله بن مسعود” له رسول اکرم (ص) نه روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : ((له خدايه بايد؛لکه چې ښايي حيا وکړئ)). ورته مو وويل : د خداى شکر دى موږ حيا کوو.راته يې ويل: داسې نه ده؛ بلکې  له خدايه حقيقي حيا دا ده، چې سر او څه چې پکې دي او ګېډه او څه چې پکې دي،وساتئ . مړينه او ورستنېدنه درياد کړئ او څوک چې اخرت غواړي؛نو د دنيا ګاڼه او ښايست دې پرېږدي او څوک چې داسې وکړي؛نو له خدايه به يې؛لکه څنګه چې ښايي،حيا کړې وي . ( ناصف ٥ / ٥٩ – ٦٠ مخونه)

ð”حيا او ايمان” تل يو له بل سره وي،که يوه نه وي؛نو هغه بل به يې هم نه وي . (پورته سرچينه)

 ð “حيا” يوازې خېر او ښه راولي . (بخاري – مسلم )

ð خلکو د مخکېنيو پېغمبرانو له ويناوو زده کړي،چې که شرم او حيا درکې نه وي ؛نوهر څه کړاى شې. ( بخاري )

ð له حضرت “عبدالله بن مسعود” نه روايت دى، چې رسول اکرم (ص) وويل :له خدايه داسې حيا وکړئ؛لکه چې د حيا حق دى. وپوښتل شو:الحمدلله موږ خو له خدايه حيا کوو. ورته يې وويل: دومره کافي نه ده (؛يعنې د حيا پر مفهوم،چې پوهېدلي ياست،دومره محدوده نه ده)؛ بلکې له خدايه د حيا حق دادى،څه مو چې په سر او مغزو کې وي،و يې ساتئ . ګېډه او څه چې پکې دي، و يې ساتئ (؛يعنې ماغزه له ناوړه افکارو او ګېډه له حرامو خوړو وساتئ) او مړينه بيا ورپسې د قبرحالات را پر زړه کړئ اوچا چې اخرت خپله موخه وټاکله؛نو د دنيا له سوکالۍ او ساتېرۍ لاس پر سرېږي او ددې څو ورځو دنيوي ژوند پر ځاى تلپاتې راتلونکى ژوندغوره ګڼي؛يعنې چاچې دا ټولې چارې ترسره کړې؛ نو پوه دې شي، چې  د “الله” د حيا حق به يې ادا کړى وي . (ترمذي)  

ð هر دين ځان ته يوه ځانګړنه لري ؛خو د اسلام ځانګړې نښه “حيا”  ده . (مالک – ابن ماجه – بيهقي)

ðحياء دوه ډوله ده : د عقل حيا او د بې عقلۍ حيا؛علم (او پوهه ) د عقل حيا ده او ناپوهي د بې عقلۍ حيا ده .  (سنن ابو داود )

ðاسلام لوڅ لغړ دى؛خو جامې يې حيا،ښکلا يې وقار،مړانه يې صالح عمل او ستنې يې پرهېزګاري ده او هر څه يو بنسټ لري،چې د اسلام بنسټ زما له اهلبيتو سره مينه ده . ( بحارالانوار : ٧٤ \٨٤)

ðحيا دوه ډوله ده : هوښياره حيا او احمقه حيا،چې پوهه هوښياره حيا ده او ناپوهي احمقه حيا ده . ( الکافي : ٢\١٠٦)

ðکه په چا کې څلور ځانګړنې وي او له سر تر پښو په ګناهونوکې ډوب وي؛نو خداى به ورته هغه پر ثوابونو واړوي،چې دادي 🙁 ١) رښتيا ويل . ( ٢) حيا .( ٣) ښه خوى . (٤)مننه . (التمحيص : ٦٧مخ )

ðابوذره ! له خدايه حيا وکړه،پر هغه خداى قسم،چې ساه مې يې په لاس کې ده،زه چې اودسماتي  ته ځم ؛نو راباندې له ګومارل شويو دوو پرښتو ځينې ځان له حيا نه په جامو کې رانغاړم  او حيا ترې کوم . ( وسايل : ١\ ٣٠٤)

ðايمان او حيا په يوه ليکه کې دي،که يو يې لرې شي؛نو هغه بل يې هم لرې کېږي .( مجموعه ورام  ٢\٨٢)

ðڅوک چې له خپلې مخې د حيا پرده لرې کړي؛نو غيبت يې څه ممانعت نه لري .( کشف الريبة : ٣٦مخ )

ðڅوک چې له حيا بې برخې شي؛نو ټول شر دى . (مصباح الشريعة : ١٨٩)

ðډېرې غوره ښځې مو هغوى دي،چې کله مېړه ته ورشي؛نو د حيا پرده لرې واچوي . ( مستدرک الوسايل  ١٤\١٦٠)

ðله خدايه ډېره حيا وکړئ . ( نهج البلاغې شرح  ١٩ \٤٧)

ðخداى تعالى دې پر هغه بنده ولورېږي،چې په حقه ترې حيا کوي او هغه داچې خپل سر او څه افکار،چې پکې دي او(همداراز) خپله ګېډه او شهوت وساتي او قبر او عذاب يې  ياد کړي او (همداراز) ياد يې وي، چې په اخرت کې د خداى لوري ته ورستنېږي . ( مشکاة الانوار : ٢٣٤)

ð “حيا او ايمان” تل يو له بل سره وي،که يوه نه وي؛نو هغه بل به يې هم نه وي . ( بيهقي )

ð”حيا”يوازې خير او ښه راولي . ( بخاري- مسلم )

 

پر عواطفو برلاسي

ð خپلمنځي کينه مه کوئ! يو بل ته مه شا کوئ او د خداى بندګانو! په خپلو کې وروڼه وسئ .( ابوداوود: الاداب ٤/ ٢٧٨)

ðپېغمبر اکرم کله هم د ځان لپاره غچ نه اخسته؛خو چې د خداى حريم به لتاړل کېده؛نو بيا يې کسات اخسته .(شيباني ٤ / ٢٢٦ )

 

پر کبر برلاسي

  د چا په زړه کې چې د بڅري هومره کبر وي،جنت ته نشي تلاى . يو سړي وويل : د انسان دا خوښېږي ،چې جامې (څادر) يې ښکلې وي . آنحضرت ورته وويل : ستر خداى ښکلى دى او ښکلا يې خوښېږي؛خو تکبر د حق نه منل او د خلکو سپک ګڼل دي .( شيباني: ٤ / ١٥٠ .   نووي: ٢/ ١٠٨٣ )

ð خداى تعالى وايي : کبريا يې مې څادر او عزت مې پرتوګ دى؛نو چا چې پردې دواړو راسره شخړه وکړه؛په عذابوم يې.( شيباني ٤/ ١٥ )

ð څوک چې ومري او تکبر او خيانت (يې نه وي کړى) او پور پرې نه وي؛نو جنت ته ځي. (شيباني ٤/ ٣٠٦)

 ðخداى راته وحې کړې،چې عاجز وسئ،چې يو بل و نه نګوئ او (هم) وياړ ونه کړئ . (نووي ٢ / ١٠٩٢ – ١٥٩ حديث)

ð يو چا وياړنې جامې اغوستې وې او وېښتان يې ږومنز کړي ول او په نازو نخرو پر لار روان و،چې ناڅاپه ځمکې تېر کړ او تر قيامته به پکې ډوب روان وي . ( شيباني ٤ / ١٥٢ )

ðڅوک چې لمن په ځان پسې راکاږي او په کبر پر لار روان وي؛نو خداى ورته د قيامت پر ورځ نه ويني.( نووي ١/ ٦٣٠ )

 

غم او پر خپګان برلاسي

ð مؤمن به تر هغه په غم او خپګان کې وي،چې ګناه يې نه وي پرېښي  .( الکافي ٢/ ٤٤٥)

ð د چاچې غمونه ډېرشي؛نو بدن يې ناروغېږي . ( تحف : مخ ٥٨)

ðرنځونه او مصيبتونه د ثوابونوکونجيانې دي .( بحار ٨٢/ ١١٥)

ðڅوک چې پر دنيا زړه نه تړي؛نو مصيبتونه ورته اسانېږي . (بحار/ ٧٧ ١٧١)

ðدنيا ته لېوالتيا غم اوخپګان زياتوي او ورته نالېوالتيا او زهد د جسم او روح  د ارامۍ لامل دى .( الخصال  ١\ ٧٣)

ðحضرت آدم خداى ته د نفس او خپګان له وسوسو شکايت وکړ. جبرئيل راکېووت او ورته يې وويل : آدمه ! (( لاحول ولاقوة الابالله )) ووايه ؛نو چې آدم وويله، د نفس اوخپګان وسوسه يې لرې شوه .

ðپر جنازو لمونځ وکړه؛ځکه دا کړنه مو خپه کوي او په خدايي چارو کې خپګان ښه بدله لري . ( الامالي للطوسي : ٢٩مخ )

 ðڅوک چې کړاى شي؛نو زړه دې يې ژړغونى وي او که نه يې شي کړاى؛نو زړه دې په خپګان کې ساتي.(مستدرک الوسایل  ۱۱ / ۲۴۰ )

ðد خداى چې کوم بنده ښه وايسي؛ نو په زړه کې يې د خپګان څپه اچوي ؛ځکه خپه زړه د خداى خوښېږي او همداراز څوک چې د خداى له وېرې وژاړي؛نولکه څنګه چې شيدې تيونو ته بېرته ننووتاى نشي؛ دغسې دى هم اور ته ننووتاى نشي او چې خداى پر چا غوسه وي؛ نو په زړه کې يې د خندا يوساز اچوي؛ځکه خندا زړه وژني او خداى د ښځو قهقه نه خوښوي .( عدة الداعي : ١٦٨٩)

ð د دنيا غوښتنه غم او خپګان زياتوي او زهد د زړه او بدن د ارامۍ لامل ګرځي.( الخصال ١/ ٧٣)

ð يوازې د دين لپاره غم او خپګان خوړل سم دى (نه د نورو څيزونو لپاره) (بحارالانوار : ١٠٠/ ١٤٢)

ðخدايه! له غم و خپګانه پناه دروړم . (المعجم المفهرس لا لفاظ الحديث النبوي ١/٤٦١)

 ðد پېغمبر اکرم يوې لور پېغمبر ته پيغام راولېږه،چې ماشوم يې مرګونى  دى او يو ځل راشه. پېغمبر اکرم پيغام راوړونکي ته وويل : ورشه او  ورته ووايه : څه چې خداى واخلي يا ورکړي،په خداى پورې اړه لري او هر څه د هغه پر وړاندې ټاکلى عمر لري او ورته ووايه،چې زغمناکه وسه او له خدايه يې اجر وغواړه.( نووي ١/ ٦٩٨ )

ð د چاچې اولاد ومري،خداى تعالى(پرښتو ته) وايي: زما د بنده اولاد مو واخست؟وايي : هو! خداى ورته وايي : د زړه مېوه مو يې واخسته؟ پرښتې وايي: هو! خداى وايي : بنده مې څه وويل : پرښتې وايي: ته يې وستايلې او استرجاع (رجوع) يې وکړه. پاک خداى ورته وايي: بنده ته مې په جنت کې کور جوړکړه او د حمد نوم پرې کېږده.( نووي ١/ ٦٩٧)

ð رسول اکرم د حضرت “سعد بن عباد” پوښتنې ته ورغى، حضرت “عبدالرحمن بن عوف” حضرت “سعد بن ابي وقاص” او حضرت “عبدالله بن مسعود” (رضي الله عنهم) هم ورسره ول . پېغمبر اکرم وژړل او حاضرينو هم ورسره وژړل . آنحضرت وويل : غوږ ونيسئ! خداى څوک د سترګو په ژړا او د زړه په خپګان  نه په عذابوي؛بلکې پخپله ژبه يې عذابوي يا پرې لورېږي .(نووي ١/ ٦٩٩ )

ðحضرت”انس” وايي : د پېغمبر اکرم زوى “ابراهيم” مرګونى و،چې پېغمبر اکرم راغى او اوښکې يې له سترګو روانې شوې . حضرت “عبدالرحمن بن عوف” وويل : ته هم اى رسول الله !؟ آنحضرت ورته وويل : د عوف زويه! ژړا رحمت دى . بيا يې وويل : سترګې اوښکې تويوي او زړه خپه کېږي؛خو يوازې هغه څه وايم،چې خداى پرې راضي کېږي . ابراهيمه! په بېلتون دې غمجن يم . (نووي ١/ ٧٠٠ )

 

د غم پرمهال دعا

ðد خداى رسول،چې به خپه و؛نو دا دعا یې ویله،چې د خرج دعا نومېږي‏ :((خدايه! پر هغه نظر دې ما وڅاره ،چې ‏کله هم نه ويده کېږي‏ او پر هغو  کلکوستنو‏ مې وساته،چې ‏‏کله هم نه را نړېږي او پر خپل قدرت دې پر ما ولورېږه او په هغه اميد،چې تا ته يې لرم، هلاک مې نه کړې. ماته دې ډېر نعمتونه راکړل؛خو ما دې سم شکر و نه کړ او څومره بلاوې،چې دې پر ما نازلې کړې؛خو ما پرې صبر و نه کړ . خدايه! چې زه دې د ناشکريو پر وړاندې ‏له نعمته بې برخې نه کړم . اى هغه خدايه،چې زه دې د کړخت پر مهال د بې صبرۍ له امله خوار نه کړم . خدايه ! ‏ودې ليدم،چې ګناه ته زړور يم؛خو رسوا دې نه کړم، له تا غواړم،چې پر محمد او آل يې درود ووايې .خدايه! دنيا مې له دين سره د يارۍ لامل وګرځوې او پرهېزګاري مې د آخرت د سعادت لامل وګرځوې . خدايه! هغه نعمتونه،چې دې راکړي او له سترګو مو پټ دي، را ته و یې ساتې او څه چې دې راکړي او راسره دي؛نو د هغه نعمتونو ساتل راته مه پرغاړه کوه . خدايه،چې د بندګانو ګناهونه درته زیان نه دررسوي او د بندګانو بښل درنه هيڅ نه کموي؛نو هغه راته راکړه،چې ‏له تا‏ هیڅ نه کموي او هغه راوبښه،چې تا ته هيڅ ضرر نه دررسوي ،چې يوازې ته بښونکى او مهربان خدای يې . اى خدايه! له تا په نږدوکې پراختيا ، صبر،پراخ رزق،روغتيا او د ټولو نعمتونو د شکر ایستنې ‏توفيق غواړم. (سنن النبي)

ðد خداى رسول،چې خپه و يا غم پرې راغی؛نو دا دعا ‏يې ويله:((يا حى ياقيوم ،يا حيا لايموت،يا حى،لا اله الا انت،کاشف الهم،مجيب دعوة المضطرين،اسالک بان لک الحمد لا اله الا آفت المنان بديع السماوات ولارض ذوالجلال ولاکرام ،رحمان الدنيا ولاخره ورحيمها، رب ارحمنی رحمة تفينني بهاعن رحمة من سواک ، يا اللهم الرحمن – اى ژوندي خدايه! ‏اى تلپاتې خدايه! ‏اى هغه ژوندیه،چې نيستي نه لري، اى ژونديه !‏ بې له تا بل خداى نشته،چې يوازې ته د هر کړکېچ او غم له منځه وړونکى او د بېوزلیو‏ د دعا منونکى يې، بې له تا بل خداى نشته  له تا يې غواړم؛ځکه ‏شکر‏ اوستاېنه يوازې تا ته ځانګړې ده. بې له تا بل خداى نشته،د نعمتونو ورکونکى او د ځمکې او اسمانونو جوړوونکى او د اکرام او جلال خاوند يې او يوازې ته په دنيا او آخرت کې لوراند ‏او لورین ‏يې،پر ما ولوريږه،چې د نورو له لورنې ‏مړه خوا شم،اى تر ټولو مهربانه . پېغمبر اکرم وويل : ((هر مسلمان،چې درې ځل دا دعا وويله؛نو خداى به يې غوښتنه ورکړي،خو ‏دا چې د ګناه او د زړه سوي د پرېکولو ‏لپاره وي.))  (سنن النبي)

 

ð څوک چې په تشويش او غم اخته شي؛نو و دې وايي : (( اللهم انى عبدک،ابن عبدک،ابن امتک ناصيتي بيدک….رسول اکرم وپوښتل شو:موږ هم دا دعا ووايو؟ورته يې وويل:هو! څوک چې دا اوري؛نو ښايي چې زده يې کړي .  ( احمد : ١\ ٣٩١)

 

دغم له منځه وړونکی

ðپر بدن غوړي مږل غم اوخپګان له منځه وړي . (سنن النبي)

 

حسي ادارک

ðله دنيا سره مينه د هرې ګناه او ښويېدنې بنسټ دى او له يوه څيز سره مينه دې ړندوي او کڼوي . (شيباني ٢/ ١١٠ )

 

له حس اخوا ادراک

ð خلکو! زه ستاسې (د جماعت) امام يم؛نو په رکوع،سجده، قيام او لمونځ پوره کولو کې له ما مه مخکې کېږئ،زه تاسې له مخې او شا وينم  ( ناصف ١/ ٢٦٠ )

ð (د لمانځه)ليکې مو سمې او منظمې کړئ؛ځکه چې زه مو له شا وينم.  (نووي ٢/ ٧٩٦ )

ðخداى راته ځمکه راغونډه کړه او ما يې ختيځونه او لوېديځونه وليدل او د امت واکمني به مې ور ورسي.(شيباني ٤/ ٢٤٠ )

ðقريشو،چې زما د “اسراء” او “معراج” کيسه دروغ وګڼله؛ نو په “حجر” کې ودرېدم او خداى راته “بيت المقدس” ښکاره کړ او ما ورته کتل او نښې او ځانګړنې يې مې ورته ويلې. (ناصف ٣/ ٢٦٠ )

ð پېغمبراکرم د مړيو غږونه اورېدل،چې په قبرونو کې به عذابېدل . حضرت “ابن عباس” وايي : پېغمبر اکرم پر دوو قبرونو تېر شو او ويې ويل : دا دواړه په عذاب دي . د کبيره ګناهونو لپاره نه په عذابېږي . بيا يې زياته کړه : بلې!يو يې چغلي کوله (خبرې يې وړې راوړې) او بل يې ځان له متيازو نه ساته .(  ناصف ١ / ٨٦ )

ð حضرت “انس” وايي : پېغمبر اکرم د يو قبر غږ واورېد او ويې ويل : دا څوک مړ شوى دى؟ورته يې وويل : په جاهليت کې مړ شوى دى. آنحضرت يې له اورېدو خوښ شو او و يې ويل: که نه ډارېدم ،چې يو بل ښخ  نه کړئ،دعا مې کوله،چې خداى درته د قبر عذاب واوروي . ( ناصف ١ / ٣٧٨)

ð زه تر تاسې ړومبى ځم او پر تاسې ګواه يم او پر خداى قسم،چې همدا اوس خپل ( د کوثر ) حوض وينم . د ځمکې د خزانو کونجيانې راکړل شوې، تاسې ته مې له دې ډار نه دى،چې مشرکان به شئ؛بلکې له دې امله دی،چې يو له بل سره به د دنيا د د سيالۍ لپاره راپورته شئ . (ناصف  ٥ / ٢٠٤ )

ð حضرت “انس” وايي : پېغمبراکرم پر لمانځه ولاړ و،چې يو ساه نيولى سړى راغى او ويې ويل:  ((الله اکبر،د سپېڅلي او برکتناک خداى ډېره ستاېنه )). پېغمبر اکرم،چې لمونځ وکړ ( ؛نو) ويې ويل : کوم يوه دا خبره وکړه؟ خلک چوپ شول او څه يې و نه ويل : پېغمبر اکرم وويل : هغه بده خبره نه ده کړې . سړي وويل :ما دا خبره وکړه . پېغمبر اکرم وويل : دولس پرښتې مې ولېدې،چې د خداى حضور ته دې خبرې وړو ته يو له بل سره سيالي کوله . (شيباني  ٢ / ٦٧ – ٦٨ )

ð حضرت “حنظله اسيدي”(رض)،چې د پېغمبر اکرم له کاتبانو و، آنحضرت ته وويل : ستاسې په حضور کې،چې يو او د دوزخ او جنت په باب راته خبرې کوئ؛نو داسې وي؛لکه چې په سترګو يې وينو او چې له تا ولاړ شو او له خپلې مېرمنې،عيال او ژوند سره بوخت شو؛نو ډېرى دا خبرې هېروو. رسول اکرم ورته وويل : پر هغه قسم،چې زما ساه يې په واک کې ده، له ماسره،چې په کوم حال او ياد کې ياست او دوام ورکړئ؛ نو پرښتې به په خپلو بسترو،کوڅې او سړک کې درته لاسونه درکړي؛ خو حنظله! د بنيادم د هر ساعت لپاره يو حالت وي او دا يې درې ځل وويله . (شيباني  ١ / ٣٢)

ðد مؤمن له ځيرکۍ ډډه وکړئ؛ځکه مؤمن د خداى په رڼا ګوري. پېغمبر اکرم بيا دا آيت ولوست : او په دې کې په نښو پوهېدونکيو ته نښې دي . ( شيباني ١ / ١٤٦ )

ð رسول اکرم د يوه انصاري باغ ته ننووت،يو اوښ يې وليد،د اوښ سترګې،چې پر پېغمبر اکرم ولګېدې؛نو و يې ژړل . پېغمبر اکرم ورغى او اوښکې يې ورپاکې کړې . اوښ ژړا بس کړه . آنحضرت وويل :  دا اوښ د چا دى؟ يو ځوان انصاري راغى او و يې ويل :زما دى . آنحضرت وويل : ددې بې ژبې څاروي په باب له خدايه نه ډارېږې،چې خداى درکړى دى؟ اوښ راته شکايت وکړ،چې ته يې ځوروې او ستړى کوې . (ابوداوود ٣ /٢٣، ٢٥٤٩ حديث) 

 

فکر کول

ðيو ساعت فکر کول تر يوه کال عبادته غوره دى . (غزالي؛احياء العلوم الدين ٤/ ٤٢٣)

ð د خداى په پنځول شويو کې فکر وکړئ او د خداى د ذات په اړه فکر مه کوئ؛ځکه څنګه چې ښايي؛هغسې يې نشئ پېژنداى .

ð پېغمبر اکرم (ص) “اشج عبدالقيس” ته وويل : په تا کې دوې ځانګړنې دي، چې د خداى او پېغمبر يې خوښېږي :هوښياري او تاني.(صحيح مسلم ١/ ١٨٩)

ðپېغمبر اکرم،حضرت “معاذ بن جبل” “يمن” ته ولېږه او ورته يې وويل : څرنګه به قضاوت کوې؟ ورته يې وويل : د خداى د کتاب له مخې.  پېغمبر اکرم ورته وويل: که د خداى په کتاب کې يې حکم نه و؟ ورته يې وويل: د رسول الله د سنتو له مخې . پېغمبر اکرم ورته وويل : که په دې کې يې (هم) حکم نه و؟ورته يې وويل : په خپل اجتهاد. آنحضرت ورته وويل: د خداى شکر دى، چې خپل استازى يې بريالى کړ. (ناصف  ٣/ ٦٦)

ð که واکمن اجتهاد وکړي او اجتهاد يې سم وي؛نو دوه اجره لري او که پکې تېر وځي ؛نو يو اجر لري . (ناصف  ٣/ ٦٦)

ðپه فکر سره دوه لنډ لمونځونه کول تر يوې شپې پر لمانځه تېرولو غوره دى . ( ثواب لاعمال : ٤٤مخ )

ðيوساعت فکر کول،تر يوې شپې پر لمانځه تېرولو غوره دى.(الزهد : ١٥مخ )

ðيوساعت فکر کول تر يوه کال عبادته غوره دى او هغه د تفکر مقام ته رسي،چې خداى د معرفت او پوهې په رڼا او توحيد ځانګړی کړی وي .( بحارالانوار ٦٨\ ٣٢٥)

ðپه دنيا کې د مېلمه په څېر وسئ او جوماتونه خپل کورونه کړئ او هڅه وکړئ،چې زړه مو نرم شي او د خداى له ډاره ډېر فکر او ژړا وکړئ . مړينه او وروسته ترې په قيامت کې سختي پخپلو سترګو کې انځور کړئ .( پوه شئ،چې) داسې څيز جوړوئ،چې پکې به و نه اوسېږئ او داسې څيز راټولوئ،چې و به يې نه خورئ؛نو د هغه خدای له پولو مه اوړئ،چې ورګرځئ . ( اعلام الدين : ٣٦٥مخ )

ðد مرګ ياد د پند اخستو لپاره،د آخرت ياد د تفکر لپاره،ورع (غوره چارو کول او د ناوړو چارو نه کول) د عبادت لپاره،د ګناه پرېښوول د بښنې لپاره او نصيحت د دعالپاره کافي دي . په چا کې چې دا يوه ځانګړنه وي؛نو د انبياوو له لومړۍ ډلې سره جنت ته ننوځي.(جامع الاخبار: ١٣٠ مخ )

ðتفکر د نېکيو هنداره،د ګناهونو کفاره،د زړونو رڼا،خلاقيت،د آخرت ښو ته رسېدل،د چارو پر پايلو خبرېدنه او د پوهې زياتېدنه ده او داسې ځانګړنه ده،چې په څېر يې خداى نه لمانځل کېږي .( بحارالانوار : ٦٨\٣٢٥)

 

بنسټګر

ð که څوک په اسلام کې د يوه ښه دود (تيږه) کېږدي؛نو اجر يې ده او هغو ته رسېږي،چې پردې دود روان وي . بې له دې،چې د لارويانو له اجره څه کم شي او (همداراز) څوک، چې په اسلام کې د ناوړه دود (تيږه) کېږدي؛نو ګناه يې دده او هغو پر غاړه ده،چې د دې دود لارويان وي،بې له دې چې د لارويانو له ګناه څه کمه شي. (حافظ، منذري، د صحيح مسلم لنډيز: ١٤٥ مخ، ٣٣ حديث)

 

د فکر کولو تېروتنې

( الف) : په پټو سترګو لاروي اوهام او خرافات

ð د وخت زامن کېږئ مه او مه وياست :که خلکو راسره ښه وکړل؛نو زه هم ورسره ښه کوم او که تېرى يې راباندې وکړ؛نو زه هم پرې تېرى کوم؛ بلکې ځان داسې روږدى کړئ،چې که خلکو درسره ښه کول؛نو ښه ورسره کوئ او که بد يې درسره کول؛نو تاسې ورسره بدي او تېرى مه کوئ .(ترمذي ٨ / ١٧٠ )

ð لمر و سپوږمۍ د خداى له نښو دوې نښې دي او د چا د مړينې يا زوکړې لپاره په تندر نه نيول کېږي .( منذري  ١/ ٤٤٥)

ð څوک چې وړاندويوني يا رمال ته ورشي او ويناوې يې ومني؛نو پر محمد(عليه السلام)،چې څه نازل شوي،پرې کافر دی .(المعجم المفهرس الفاظ الحديث النبوي  ٤/ ١٩٦)

ð څوک چې د نجوم علم زده کړي؛نو په واقع کې يې د کوډو يوه برخه زده کړې ده. ( المعجم المفهرس الفاظ الحديث النبوي  ١٢/ ٤٣٥)

[ تبصره : استاد يوسف قرضاوي (الرسول والعلم، دارالصحوه،٥٤ او ٥٥ مخونه) ليکي: دلته د نجوم علم له زده کړې  مراد دادى، چې پر خاوريني نړۍ او راتلونکيو پېښو د ستوريو حرکتونه اغېزمن دي،چې داسمه نه ده؛خو د ستور پوهنې بحث ځان ته بنسټونه او طريقې لري او  پر علمي مشاهداتو ولاړ دى .

 ( ب) د دلايلو نه چمتو والى:

ðپه څه چې نه پوهېږئ؛نو نه ښايي و يې وياست . ( المعجم المفهرس الفاظ الحديث النبوي  ٤/  ٣١٦ )

 ð له ګومان ډډه وکړئ؛ځکه ګومان ډېره دروغ خبره ده. (المعجم المفهرس الفاظ الحديث النبوي  ٤/ ٨٧)

ðڅوک چې په ناپوهۍ کې فتوا ورکړي؛نو ګناه يې د فتوا ورکوونکي پر غاړه ده. (ناصف  ١/ ٧٣)

[يعنې په ديني يا دنيوي چارو کې چې د چا پوښتنې ځواب کړې او پوښتونکى هماغسې وکړي؛نو ګناه يې د ځواب ويونکي پر غاړه ده.

پېغمبر اکرم نه يوازې له بې دليله فتوا ورکولو منع کړي يو؛بلکې له نورو هغو خبرو يې هم منع کړي يو،چې د سموالي په اړه يې ډاډمن نه يو. “ابومسعوده” وپوښتل شو: له رسول اکرم  دې (( وايي)) په اړه څه نه دي اورېدلي،چې څه لارښوونه يې کړې ده؟ ورته يې وويل :سړي ته ناوړه مرکوب دى .( امام احمد حنبل؛مسند ٤/ ١١٩، ٥/ ٤٠١)

 يعنې چې څوک داسې خبره وکړي،چې له سموالي يې ډاډه نه وي . په دې حديث کې خلک په پټو سترګو له نورو له اورېدل شويو منع شوي دي .)

دغسې د روڼ فکر کولو لپاره پخپلو کې بحث او خبرې اترې کول يوه لار ده،چې انسان له تېروتنو ژغوري او پر حقيقت يې برلاسوي . په دې اړه پېغمبر اکرم وايي : څوک چې له خدايه خير وغواړي (؛نو)نه ناکامېږي او څوک چې مشوره وکړي (؛نو) نه پښېمانېږي.(فيض القدير ٥/ ٤٤٢)

 

زده کړه

ð علم زده کړئ او خلکو ته يې وروښيئ. فرايض زده کړئ او خلکو ته يې وروښيئ. قرآن زده کړئ او خلکو ته يې وروښيئ. (دارمي ١/ ٢٢٧)

ð خلک يا پوهان دي يا زده کړي او بې له دې د دوو چارو خير نشته . ( دارمي ١/ ٢٥٢)

 ð پوه شئ،چې دنيا لعنت شوې ده او څه چې پکې دي (هم) لعنت شوي دي؛خو د خداى ياد او مثالونه يې،پوه او زده کړي . (ترمذي ٩/ ١٨٩. ابن ماجه ٢/٤١١٢ حديث)

 ðڅوک چې د پوهې د لاس ته راوړو لپاره لار ووهي؛نو خداى ورته د جنت پر لور لار هواروي .(ناصف ١/ ٦٢- ٦٣ . نووي ٢/ ٩٥٢)

ð څوک چې دعلم په لټه کې بهر ووځي، تر راستنېدو پورې د خداى په لار کې وي . (نووي ٢/ ٩٥٤)

ð څوک چې دعلم د زده کړې لپاره لار وهي (؛نو) خداى ورته د جنت پر لور لار هواروي،پرښتې ورته پخپله خوښه وزرونه غوړوي، اسمانوال او ځمکوال،ان په سمندرونو کې کبان ورته بښنه غواړي .( ناصف ١/٦٣. نووي ٢/ ٩٥٥)

ð هوښياره خبره د مؤمن يو ورک شوى څيز دى؛نو په هر ځاى کې يې چې ومونده؛دهغه ده. (شيباني ٣/ ١٣٧ )

ð که انسان ومري؛نو د کړنو ريښې يې پرې کېږي؛خو د درېو څيزونو يې نه : جاريه صدقه،هغه علم چې خلک ترې ګته اخلي او صالح اولاد، چې ورته دعا وکړي .( نووي  ٢/ ٩٥٣)

ð پرعابدانو د عالمانو لوړاوى؛لکه د سپوږمۍ،چې  پر ستوريو دى. عالمان د پېغمبرانو وارثان دي . پېغمبرانو دينار او درم (پيسې) په ميراث نه دي پريښي؛بلکې علم يې په ميراث پرېښى دى؛نو چا چې علم زده کړ، ډېره ګټه به يې کړې وي . (نووي  ٢/ ٩٥٥)

 ðپر عابد د عالم لوړاوى؛لکه ستاسې پر ډېر ټيټ زما لوړاوى . (نووي٢/ ٩٥٤ )

 ð د قيامت پر ورځ درې ډلې سپارښت کوي : پېغمبران، عالمان او بيا شهيدان . (ناصف ١/ ٦٥)

ð خلکو ته د نېکيو پر ښوونکيو خداى،پرښتې، اسمانوال، ځمکه وال ان ميږي په ځالو او کبان (په سمندر) کې درود وايي.(ترمذي ١٠/ ١٥٨ )

ðد عالم چې کړه وړه ښه وي او(خلکو ته) ښوونه وکړي،د اسمانو په ملکوت کې په ستريا يادېږي .(ترمذي ١٠/ ١٥٨)

ðزه په حقيقت کې د ښوونې لپاره رالېږل شوى يم .(المعجم ٤/ ٣٢٦)

ð خداى زه ددې لپاره نه يم رالېږلى،چې خلک پر کړاو اخته کړم او ستونزې راولاړې کړم؛بلکې د ښوونې او اسانۍ راوستو لپاره يې رالېږلى يم .( شيباني ٤/ ٢٥٧)

ð خداى دې هغه سړى خوشحاله کړي،چې زما خبره واوري او هماغسې،چې يې اورېدلې،نورو ته ورسوي؛ځکه ډېر داسې وګړي شته،چې زما خبره وررسي(؛نو) اورېدونکى به پرې ښه پوهېدونکى وي .

ð له حضرت ابوبکر (رض) څخه روايت دى،چې پېغمبر اکرم ويلي دي: حاضران دې يې غايبانوته ورسوي؛ځکه حاضر  يې ښايي داسې چاته ورسوي،چې پر هغه خبره تر رسوونکي ښه پوه شي.( ناصف ١/ ٦٦)

ð له “ابو زيد عمرو بن اخطب انصاري” (رضى الله عنه) روايت دى، چې يوه ورځ رسول اکرم د سهار تر لمانځه وروسته پر منبر تر لمر لوېدو پورې وينا وکړه،چې يوازې لمانځه ته راکېووت او په دې موده کې يې موږ له هغه څه خبر کړو،چې  موږ ته وو او وي به؛نو ځکه هغه په موږ کې ډېر پوه دى،چې دا وينا يې ښه يادې کړې وې . ( نووي ٢/ ١٢٦٢)

ðحضرت “ابوذر” وايي: رسول اکرم په داسې حال کې له موږه ولاړ،چې که کوم الوتونکي په هوا کې الوت کړى و؛نو په اړه يې يو څه موږ ته راښوولي وو. (احمد ٥/ ١٥٣)

حضرت “سلمان فارسي” وايي : چا ورته وويل : ستاسې پېغمبر ټول څيزونه ان ټټۍ ته تلل دروښوول! سلمان ځواب ورکړ: هو! آنحضرت موږ منع کړو،چې مخ پر قبله به اودسماتى نه کوئ ،په ښي لاس به استنجا نه کوئ او پر درېو ډبرو (لوټو) به ځان پاکوئ او په خرشنو،غوشيانو او هډوکي به  يې نه پاکوئ . (ابوداود ١/ ٧ )

 

د يادولو لارې چارې

ð د نبي اکرم په احاديثو کې د يادولو څلورو لارو ته اشاره شوې ده: تقليد او لاروي،ازمېښت او تېروتنه،شرطي سازي، تفکر او فکر کول.

 

تقليد او لاروي

ðحضرت”ابوحازم بن دينار” وايي : يو ځل پېغمبراکرم پر منبر لمانځه ته ودرېد او تکبير يې ووايه او لا هماغسې پر منبر ولاړ و،چې خلکو ورپسې تکبير ووايه،بيا پېغمبر اکرم رکوع وکړه او ورپسې راکوز شو او بېرته پورته شو،تردې چې د منبر په  څنګ کې يې سجده وکړه بيا پورته شو،تردې چې لمونځ يې پوره کړ. وروسته يې خلکو ته مخ کړ او ويې ويل :دا کار مې ځکه وکړ،چې په ما پسې اقتدا وکړئ او لمونځ مې ياد کړئ .

ðروايت دى،چې پېغمبراکرم د لوى اختر پر ورځ پر اوښ سپور شيطان ويشته، ويې ويل : دا ځکه چې خپل مناسک راڅخه زده کړئ؛ځکه نه پوهېږم،ښايي دا مې وروستى حج وي . ( احمد: ٣/ ٣١٨، ٢٢٧، ٣٦٦، ٣٧٨)

 

ازمېښت او تېروتنه

ð حضرت”طلحه بن عبدالله” وايي: له حضرت پېغمبر اکرم سره پر يو شمېر خلکو تېر شو،چې د کجورو پر ونو وو. آنحضرت پوښتنه وکړه : دوى څه کوي؟ ورته يې وويل : تلقيح کوي،نر په ښځه کې ږدي او ونه بلاربېږي .آنحضرت وويل: ګومان نه کوم، چې دا کار به ګټور وي . دا خبره هغوى ته ورسول شوه؛نو کار يې پرېښود.رسول  اکرم يې خبر کړ. آنحضرت وويل: که دا کار ورته ګټور وي؛ ودې يې کړي،ما خو يوازې ګومان وکړ؛نو په ګومان مې مه نيسئ؛بلکې د خداى له لوري مې چې درته څه ويل؛نو ويې منئ؛ځکه زه کله هم پر خداى دروغ نه تړم . او په بل روايت کې راغلي چې: تاسې په خپلو دنيوي چارو په خپله ښه پوهېږئ . ( صحيح مسلم ١٥/ ١١٦ – ١١٨ مخونه)

د پېغمبر اکرم دا وينا، چې “که درته ګټور وي، و يې کړي” او  “تاسې په خپلو دنيوي چارو ښه پوهېږئ”،په واقع کې شخصي تجربې او د ازمېښت او تېروتنې له لارې زده کړې ته اشاره ده او له دې لارې انسان نويو پوښتنو ته نوي ځوابونه برابرولاى شي او د خپلو ستونزو د هواري لپاه ګټورې حل لارې زده کولاي شي .

پېغمبر اکرم په زده کړه کې د شخصي تجربې اهميت ته اشاره کړې ده.

 ðله حضرت “ابوسعيد” څخه روايت شوى،چې پېغمبراکرم وويل : هر زغمناک ښويېدنه او هر حکيم تجربه لري .( ناصف ٥/ ٦٤)

[تبصره: ځکه هر حکيم يوازې د تجربې له لارې خپل حکمت ته رسي او دا تجربى يې د ډېرو ازمېښتونو له لارې تر لاسه کړي دي . ]

 

شرطي سازي Conditioning

مؤمن له يوې سوړې دوه ځل نه چيچل کېږي .( ناصف التاج الجامع للاصول في احاديث الرسول: ٥/ ٧٠. شيباني: ٤/ ٣٠٧)

 

اندنه او فکر کولوته هڅونه

 ð پېغمبراکرم وويل:(( هغه به کومه ونه وي،چې پاڼې يې نه رژېږي او د مسلمان په څېر وي،څوک يې ځواب راکوي؟)) د خلکو پام بېديانيو ونو ته شو.حضرت”عبدالله بن عمر” وويل : حدس مې وواهه،چې دکجورې ونه وي؛خو له شرمه مې ونه ويل . اصحابو وويل : رسول اکرمه! تاسې يې په خپله ووياست .آنحضرت وويل: ((د کجورې ونه . )) (بخاري  ١\ ٦١ )

ðپېغمبراکرم وپوښتل : ((پوهېږئ،چې مفلس څوک دى؟ يارانو يې وويل : موږ خو هغه ته مفلس وايو،چې نه پيسې لري او نه شتمني . آنحضرت ورته وويل :((زما د امت مفلس هغه دى،چې د قيامت پر ورځ له ځانه سره لمونځ ،روژه او زکات راوړي؛خو بلخوا يې چاته کنځلې کړې وي، پر يو چا يې تور تپلى وي ، د يوه يې مال خوړلى وي،د يوه يې وينه تويه کړې وي او يو يې وهلى وي؛نو د دې چارو له امله له ښو کارونو او ثوابونو يې ده او هغه ته ورکړي او ثوابونه يې،چې پاى ته ورسېدل، مخکې له دې،چې په اړه يې پرېکړه وشي،د هغوى له ګناهونو را اخستل کېږي او پرده وربارېږي او بيا يې په اورکې اچوي .))

 ( نووي :١\٢٤١)

ðحضرت “جابر” روايت کړى :له يوې ډلې اصحابو سره سفر ته ولاړم، په لار کې د يوه سرمات او بيا محتلم شو.د سفر  ملګري يې وپوښتل:روا ده چې تيمم وکړم؟هغوى ورته وويل:نه (؛نو) سرماتي غسل وکړ،چې له امله يې ومړ او چې کله رسول اکرم ته راغلل او پېښه يې ورته وويله (؛نو) آنحضرت وويل:((هغه يې وواژه، د هغوى خداى  دې يې ووژني،چې نه پو هېدل؛نو ولې يې نه پوښتل،پوښتل خو د ناپوهۍ درمل وي.))  (ابوداوود:لومړى ټوک ، ٣٢٦ حديث )

 

دزده کړې اصول

(١) انګېزه.

(الف) په هڅونه اوګواښنه د انګېزې راولاړول :

ðله حضرت”ابوذرغفاري” روايت دى،چې (د اسلام د بلنې په لومړيو ورځو کې) پېغمبر اکرم وويل : ((جبرئيل راغى او زېرى يې راکړ،چې که له امته دې څوک ومري او له خداى سره يې څوک شريک نه وي نيولى (؛نو) جنت ته ځي.)) ورته مې وويل : که زنا يې کړې وې، که غلايې کړې وي ؟ آنحضرت وويل:(( که زنا او غلا يې هم کړې وي ؟ بيا مې ورته وويل : ((که زنا او غلا يې هم کړې وي ؟آنحضرت وويل:((که زنا يې کړې وي،که غلا يې کړې وي؟ اوڅلورم ځل يې وويل:((که څه هم د ابوذر نه خوښېږي)).(ناصف ١\٣١)

ðپېغمبر اکرم مسلمانان د عبادت کولو او له لويو ګناهونو ځان ژغورنې ته هڅول :((هر بنده چې پينځګوني لمونځونه وکړي،د رمضان د مياشتې روژه ونيسي او زکات ورکړي او له اوو سترو ګناهونو ځان وژغوري؛ نو د جنت ورونه ورته پرانستلل کېږي او ورته ويل کېږي : په سلامتي ورننوځه.)) (ناصف  ٢\٥-٦مخونه )

ð[ اوه سترګناهونه دادي : (١) له خداى سره شرک ( ٢) په ناحقه د حرام نفس وژنه ( ٣) د يتيم د مال خوړل ( ٤) سود خوړل ( ٥) کوډې کول (٦) د جهاد له ډګره تېښته ( ٧) پرمړوښو پاکلمنو مېرمنو تورونه لګول .]

ðپېغمبراکرم مسلمانان د ښوچارو کولو او د ناوړه چاره نه کولو ته هڅولي دي : (( خداى تعالى ( په لوح محفوظ کې ) ښې او بدې چارې کښلي بيا يې ( پرښتو او خلکو ته) ويلي دي؛نو څوک چې د ښه کار د کولو هوډ وکړي ؛خو ويې نه کړي؛ نوخداى ورته پوره يو ښه کار ليکي اوکه هوډ يې وکړ او ويې کړ؛نو خداى ورته لس ښه کارونه او تر اوياوو پورې ثواب ليکي؛بلکې څو څو ګرايه او که د ناوړې چارې هوډ وکړي؛ خو ويې نه کړي؛نو خداى ورته يو پوره ښه کار ليکي او که هوډ يې وکړي او ويې کړي؛نوخداى ورته يوازې يو بد کار ليکي.)) (ناصف ١\٥٢)

ðپېغمبراکرم وايي:((ايمان په هيله نه دى؛بلکې ايمان هغه دى،چې په زړه کې څړيکه ووهي او عمل (يې ګواه وي او) تاييد يې کړي،ځينو خلکو داسې الهي بښنې ته سترګې نيولې وي،چې يو ښه چار يې هم نه وي کړى او ومري او وايي : پر خداى يې ښه ګومان لاره،حال داچې دروغ وايي،که پر خداى يې ښه ګومان درلوداى؛نو ښې چارې به يې کولاى.)

 ( البهي الخولي؛آدم عليه السلام: فلسفه تقويم الانسان واخلا قه: ١٨٥٠ مخ .)

ðکه مؤمن له هغې سزا خبر واى،چې له خداى سره ده ؛نو هيچا يې جنت ته تمه نه کوله او که کافر له هغه رحمته خبر واى،چې له خداى سره دى ؛ نو هيڅ کافر يې له جنته نه نهيلېده .)) ( نووي  ١\ ٤٠٠ )

( ب) په کيسه دانګېزې راولاړول .

د کيسې ويل د انسان پام رااړوي؛نو ځکه پېغمبراکرم له دې دوده کار اخستى دى،چې په نبوي احاديثوکې يې بېلګې ليدل کېږي . حضرت “ابوهريره” له رسول اکرمه روايت کوي چې :

ð ((يو سړي به خلکو ته پورونه ورکول او خپل مريي ته يې وويل : که کوم پوروړي ته تلې او ليده دې،چې لاس يې تنګ دى؛نو ترې تېرېږه، ښايي خداى هم له موږه تېر شي او دا سړى،چې ومړ؛نوخداى وباښه ))

 ( نووي : ٢\٩٤٥)

ð (( يوه ښځه له دې امله دوزخ ته ولاړه،چې يوه پيشو يې تړلې وه، نه يې په خپله خواړه ورکول او نه يې پرېښووه،چې واښه وخوري.))

( شيباني  ٢\١١٤)

ð((له شرابو ځان وژغورئ؛ځکه د ټولو ګناهونو ريښه ده . په پخوانيو زمانو کې يوه بې لارې ښځه پر يوه سړي مينه شوې وه،ښځې خپله وينځه ورپسې ولېږله،چې دشهادت لپاره دې راشي . سړى له وينځې سره راغى او په هر وره به،چې ننووته؛نو وينځې ورپسې ورتاړه، څو هغې کوټې ته ننووت،چې ښکلې ښځه له مريي سره ناسته وه او د شرابو منګوټى يې په څنګ کې و. ښځې وويل : رښتيادرته ووايم،ما ته د شهادت ويلو لپاره نه يې رابللى؛بلکې د کوروالي لپاره مې راغوښتى يې،يا داچې له دې شرابو يو جام وڅښې او يا دا مريي ووژنې.سړي ورته وويل:له شرابو يو جام راکړه.ښځې پرې يو جام شراب وڅښل.سړي وويل:نور هم راکړه او دومره يې وڅښل،چې په پايله کې له ښځې سره څملاست او مريى يې هم وواژه؛نو له شرابو ځان وژغورئ؛ځکه پر خداى قسم،چې شراب او ايمان سره نه يو ځاى کېږى؛خو داچې يو بل لرې کړي .))  ( ناصف  ٣\ ١٤٤)

ð (( درې تنه پر لار روان ول،چې باران پرې راکېووت،په غره کې يو غارته ننووتل،ناڅاپه له غره ډبره راولوېده او د غار خوله يې ټپه کړه او دوى پکې بند پاتې شول . يوه بل ته وويل : هر يو دې فکر وکړي،چې د خداى لپاره يې کوم کار کړی دى او د هماغه له مخې دې خداى ته دعا وکړي،چې که دا ډبره لرې شي او ووځو. يوه وويل: خدايه!ما خو بوډاګان مور وپلار او يو شمېر واړه درلودل،چې پالنه يې راپرغاړه وه ، د شپې چې راتلم ؛نو شيدې مې لوشلې او لومړى به مې مور و پلار ته ورکولې،چې و يې خوري او بيا خپلو کوچنيو اولادونوته . يو ځل راباندې ناوخته شو او کورته،چې راغلم؛نو مور و پلار مې وېده ول او شيدې مې، چې ولوشلې او مور و پلار ته راغلم؛ نو زړه مې ونه شو،چې راويښ يې کړم او دا مې هم زړه نه منل،چې تر هغوى وړاندې يې پر خپلو کوچنيانو وڅښم . اولادونو مې راته زارۍ کولې،چې ګهيځ شو؛نو که ما دا کار يوازې ستا د رضا لپاره کړى و؛نو يوه درېمڅه راته پرانځه،چې اسمان خو وګورو.خداى ورته دا کار وکړ او اسمان يې وکوت .

بل وويل : خدايه! د خپل تره پر لور مين وم او د کوروالي هيله مې ترې وکړه؛خو راسره يې ونه منله . ما ورته سل ديناره ورکړل او په ډېرو زاريو مې راضي کړه،چې کېناستم،چې خوند ترې واخلم ويې وويل: د خداى بنده! له خدايه وډار شه او مهر مې يوازې په حلالو پرانځه .زه راولاړشوم . اوس نو خدايه که داکار مې يوازې ستا د رضا لپاره کړى وي؛ نو دا ډبره خو لږه نوره هم څنګ ته کړه او ډبره څنګ ته شوه .

درېم وويل : خدايه ! يو کارګر مې د يوې پيمانې وريجو په بدل کې نيولى و،چې کار يې پاى ته ورساوه،ويې ويل :مزدوري مې راکړه.ما يې مزدوري ورکړه ؛خو هغه وويل ،چې: دا لږه ده او و يې نه منله، ما هماغه يوه پيمانه وريجې وکرلې،چې د حاصلاتو په پلورلو يې ما له شپنو سره د غواوو پاده وپېرله . هغه کارګر راته دويم ځل راغى او ويې ويل: له خدايه وډار شه(او مزدوري مې راکړه) ورته مې وويل: ولاړ شه دا غواګانې سره بوځه . کارګر وويل : له خدايه وډار شه اوملنډې راباندې مه وهه .ورته مې وويل : ملنډې درباندې نه وهم . ځه ولاړ شه او بو يې ځه او هغه ولاړ او له ځان سره يې بوتلې . اوس نو خدايه! که دا کار مې يوازې ستا د رضا لپاره کړى وي؛نو د غار خوله راته بېخي پرانځه،چې همداسې وشول او دباندې راوتل او ولاړل . (ناصف  ١\ ٥٢- ٥٤مخونه ) 

 

 بدله ورکول

تجربي څېړنو ښوولې،چې په زده کړه کې د بدلې ورکړه،خورا اهميت لري؛ خو پېغمبراکرم لا د مخه ددې دود سپارښتنه کړې وه .

ð د کارګر د خولې تر وچېدو وړاندې يې مزدوري ورکړئ . (ابن ماجه : ٢\٢٤٤٣ حديث )

ð چا چې درسره نېکي وکړه،بدله يې ورکړئ او که د بدلې لپاره مو څه نه درلورل؛نو تر هغه ورته دعا وکړئ،چې ګومان مو راشي،چې بدله مو يې ورکړه . (نووي  ٢\١١٧٥مخ  – احمد ١\٢١٤ )

ðپه هره شپه کې داسې يو ساعت شته که مسلمان پکې د دنيا او آخرت له چارو څه خير وغواړي؛نو خداى يې ورته هرومرو ورکوي(نووي : ٢\٨٤١)

ðد جمعې پر ورځ داسې يو ساعت شته،چې که مسلمان پکې پر لمانځه ولاړ وي او له خدايه څه وغواړي؛نو هرومرو يې ورکوي.( آنحضرت په خپل لاس د دې وخت لږ والى و‌ښود. (شيبا ني ٣ \٣١٤)

ðد قدر شپه د روژې  مياشتې په وروستيو لسو په طاقو کې ولټوئ . (ناصف : ٢\٨١)

ðخداى نرم خويه دى او نرمي يې خوښه ده او نرمۍ ته هغه څه ورکوي، چې سختوالى  ته يې نه ورکوي . ( المعجم   ٢\٢٨٤)

ðهڅېکله څوک پر مخ مه وهئ . ( سنن احمد٣\ ٣٢٣ )

 

په زماني واټن کې زده کړه

ðحضرت “عبدالله بن مسعود” وايي : پېغمبراکرم زموږ د ستړيا له وېرې په هر وڅو ورځو کې راته موعظه کوله . (بخاري  ١\ ٦٨ ) 

زياتوي : له پېغمبره مو د قرآن لس آيتونه زده کول او تر هغه مو ورپسې لس آيتونه نه زده کول،څو مو دا لس زده کړي نه وو. شريک ته وويل شو: يعنې عمل مو پرې کاوه؟ويې ويل : هو! (محمد سعيد رآفت؛ الرسول المعلم ونهجه فى التعليم ، ١٤٣ مخ )

تکرار

ðحضرت “انس” وايي : پېغمبر اکرم،چې خبرې کولې؛نو درې ځل يې ويلې،چې ښه پرې وپوهول شي . ( ناصف  ١\ ٧١.  نووي  ١\ ٦٦٤ )

ðد قرآن حافظ د هغه په څېر دى،چې اوښ يې تړلى وي،که و يې څاري، پاتې کېږي او که پرانځې يې او خوشې يې کړي؛نو ځي .(المعجم ١\ ٢٤ )

 ðبنده چې ګناه وکړي؛نو پر زړه يې تور ټکى راپيدا کېږي،که له ګناه يې لاس واخست او بښنه يې وغوښته او توبه يې وکړه،زړه يې پاکېږي؛خو که تکرار يې کړه؛نو دا ټکى ډېرېږي او لا ډېرېږي،ان چې ټول زړه يې ونيسى .دا هماغه زنګ دى،چې پاک خداى ويلي دي : نه؛بلکې څه يې چې کول، زړونو يې زنګ ونيو . (شيبا ني  ١\ ١٩٤)

 

رغنده سيالي

ðد قرآن په ډېرو آيتونو کې د “ايمان” ترڅنګ “عمل” راغلى دى او پېغمبراکرم به د رغنده سيالۍ له لارې يارانو ته زده کړه کوله . حضرت “کلده ابن حنبل” وايي : ((پېغمبر اکرم ته ورغلم او سلام مې پرې وانه چاوه . پېغمبر راته وويل:ستون شه او بيا راننوځه اووايه : پر تاسې سلام،  اجازه ده ،چې راننوځم .)) ( نووي  ١\٦٧٤)

 ðپوهه په زده کړه ترلاسه کېږي او زغم په زغملو او څوک چې “ښه” غوره کړي؛ ورته ورکول کېږي او څوک چې هڅه وکړي ځان له بدۍ وژغوري (؛نو) ژغورل کېږي .)) (تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي لا حاديث کتاب احياء  علم الدين غزالي ٣\١٧٦)

٦_پاملرنه په زده کړه کې ډېر مهم عامل دى؛ځکه انسان،چې څه ته پام نه وي اړولى، زده کولاى يې نشي.

( الف ) د پام اړونې لپاره له روانو پېښو ګټنه :

ð ((پېغمبراکرم له يوه بازاره تېرېده او خلک يې دواړو لوريو ته تلل (په دې ترڅ کې) د آنحضرت سترګې پر يوه مړه “غوږبوچي” سېرلي ولګېدې، آنحضرت له غوږه ونيو او را پورته يې کړ او و يې ويل: څوک به دا په يو درهم واخلي؟ورته وويل شول : په هيڅ يې هم نه اخلو، څه پرې وکړو؟ آنحضرت ورته وويل : خوښېږي مو،چې مال مو (همداسې وړيا) وي؟ ورته يې وويل : پر خداى قسم،چې ژوندى هم و؛ نو غوږ بوچى و، اوس خو لا مړ دى . ( آنحضرت  ورته وويل : پر خداى قسم ! دا څيز،چې تاسې ته بې ارزښته دى ؛نو خداى ته دنيا تر دې هم بې ارزښته ده.))

( نووي  ١\٤١٤)

ðپېغمبراکرم ته يې يو شمېر بنديان راوستل .په دوى کې يو تيخور ماشوم هم و ،چې مور يې په منډه ورته ځان راورساوه. را و يې نيو او په سينې پورې يې جوخت ونيو او تى يې ورکړ. پېغمبراکرم وويل : په نظر مو دا ښځه به دې تياره وي،چې خپل ماشوم په اور کې وغورځوي؟ ورته مو وويل : نه پر خداى ! آنحضرت وويل : ښځه چې پر خپل ماشوم مهربانه ده؛نو خداى تر دې ډېر پر خپلو بندګانو مهربان دى .( نووي ١\٣٨٠- ٣٨٤)

 

په پوښتنې د پام راړول

ðايا له هغه مو خبر نه کړم،چې د دوزخ اور پرې حرام دى؟پر هر نرم خويه ښه سړي . (نووي  ١\ ٥٣٤)

ðدا کومه مياشت ده؟ورته ومو ويل: خداى او استازى يې ښه پوهېږي . آنحضرت چوپ شو او ګومان مو وکړ،چې پر مياشت به بل نوم ږدي؛ ويې ويل : ولې ذيحجه نه ده؟ ورته مو وويل: ده . و يې وويل : دا کوم ښار دى؟ ورته مو وويل : خداى او استازى يې ښه پوهېږي . (آنحضرت چوپ شو او ګومان مو وکړ،چې پر ښار به بل نوم ږدي . و يې ويل : بلده ( مطلب بلدالحرام يا مکه مکرمه) نه دى؟ ورته مو وويل : دى . نن څه ورځ ده ؟ ورته مو وويل :خداى او استازى يې ښه پوهېږي . حضرت چوپ شو او ګومان مو وکړ،چې بل نوم به پرې ږدي . ويې ويل : ولې د قربانۍ (او لوى اختر) ورځ نه ده ؟ ورته مووويل : هو ده. و يې ويل : ستاسې ځان، مال او پت پر يو بل داسې حرامې (او محترمې ) دي؛لکه دا ورځ،چې په دې ښاراو مياشت کې حرامه ده . ( نووي  ١\ ٢٣٧)

يادونه : دغسې په تېرو عنوانو کې دوو احاديثو ته ځير شئ : پوهېږئ چې مفلس څوک دى ؟پوهېږئ چې غيبت څه ته وايي؟

 

په مثال او تشبيه د پام رااړول

ðپاک خداى،چې زه د کومې لارښوونې او معرفت لپاره رالېږلى يم ، مثال يې د هغه باران په څېر دى،چې پر ځمکه وورېږي او د ځمکې هغه برخه،چې(ېبروره) حاصلخيزه وي،اوبه جذب کړي او بوټي او واښه راوټوکوي او يوه برخه يې،چې سخته وي؛نو اوبه پر ځان ډنډ کړي او خلک ترې ګټه واخلي،څښي يې او کر پرې کوي او يوه برخه يې،چې ښوره وي؛نو نه پکې اوبه ډنډېږي او نه پکې بوټي او واښه راټوکېږي . دا د هغه چا مثال دى،چې د خداى په دين کې پوه وي او زه چې خداى د څه لپاره رالېږلى يم، ګټه ورورسوي او په خپله (هم) پوه شي او نورو ته يې هم وښيي او د هغه چا مثال چې ګټه ترې وانخلي او د خداى لارښوونه ونه مني،چې زه  ورته رالېږل شوى يم .)) (نووي ١\١٣٥)

امام نووي ( ١\ ١٨٦ ) د حديث په تشريح کې وايي : ((په دې حديث کې رسول اکرم ،د خداى له لوري راوړې لارښوونه او معرفت له ګټور باران سره تشبيه کړى؛ځکه لکه څنګه چې باران ځمکه راژوندۍ کوي؛نو لارښوونه او معرفت هم زړونه را ژوندي کوي او څوک چې له دې لارښوونو او معرفته برخمنېږي،د پاکې او ېبرورې ځمکې سره يې تشبيه کړې،چې اوبه جذبوي او بوټي ترې راټوکېږي او څوک چې پوهه تر لاسه کوي او نورو ته يې (هم) ښيي؛خو په خپله ترې ګټه نه اخلي، له سختې ځمکې سره تشبيه کړې،چې اوبه نه جذبوي؛بلکې پکې ډنډېږي او خلک ترې ګټمن کېږي؛خو په خپله يې (نه جذبوي او) نه مني او بوټي او واښه ترې نه راټوکېږي او څوک چې نه علم زده کوي او نه عمل کوي، له ښوره ناکې ځمکې سره يې تشبيه کړي،چې نه اوبه ډنډوي او نه بوټي او واښه رازرغونوي او دا ډېر ناوړه انسانان دي،چې نه چاته ګټه رسوي او نه په خپله ګټمن کېږي . ))

ðهغه چې الهي پولې ساتي او هغه چې يې ماتوي،د هغه ډلې په څېر دى،چې په بېړۍ کې د ځاى پر سر پچه اچوي،چې د ځينو د بېړۍ پاس او د ځينو لاندې برخه رسېږي،هغوى چې په لاندې برخه کې اوبو اخستو ته پر بېړۍ د ناستوخلکو له منځه تېرېږي،ويې ويل: دا چې پاس ناست خلک په تکليف نشي؛نو ښه ده په خپله برخه کې سورى وکاږو.اوس که پر بېړى پاس خلک،دوى پرېږدي،چې سورى وباسي؛نو ټول به ډوب او پوپناه شي؛خو که مخه يې ونيسي؛نو ټول به له ډوبېدو وژغورل شي .

 ( نووي  ١\٢١٠ )

 [ تبصره : د ناوړه کار کول،نه يوازې کوونکي ته زيان رسوي؛بلکې ټولنه هم زيانمنوي،دغسې ټولنې ته د ناوړو چارو د مخنيوي هم ګټه رسي او دا په دې مانا ده،چې د ټولنې د ساتنې لپاره ګرده ټولنه، له فسادسره د مبارزې مسوؤله ده،چې دا مفهوم په پورته حديث کې ښه انځورشوى دى .]

ðد ښه او بد ملګري مثال د”عطر پلور” او “پښ” (اهنګر) په څېر دى. عطر پلور درته يا څه عطردرکوي يا يې ته ترې پېرې او يا يې له ښه بويه برخمنېږې او پښ دې جامې سوځوي او يا يې بدبوي دررسي . (نووي  ١\ ٣٣٩ ) .

 

انځورول

٧-په ورو زده کړه : 

پېغمبر اکرم ته له “ثقيفه” يو پلاوى راغى . پېغمبر اکرم ورته په جومات کې ځاى ورکړ،چې ډېر تر اغېز لاندې راشي . هغوى دا شرط کېښود، چې زکات  به نه ورکوي،په جهاد کې به ګډون نه کوي او رکوع اوسجده (لمونځ) به (هم) نه کوي . پېغمبراکرم ورته وويل : زکات مه ورکوئ،په جهاد کې برخه مه اخلئ ؛خو په هغه دين کې خير نشته،چې رکوع پکې نه وي.(شيبا ني  ٣\٢٤٠)

ðپېغمبراکرم حضرت “معاذ” ته وويل : ((ته کتابيانو ته ځې؛نو هغوى دې ته راوبله،چې يوازې “الله” حق معبود دى او “محمد” يې استازى دى .که و يې منله؛نو ورته ووايه،چې په شواروز کې پينځه وخته لمونځ فرض دى او که دا يې ومنله؛نو ورته ووايه،چې خداى پرې صدقه فرض کړې ده،چې شتمن دې يې نشتمنو ته ورکړي او که دا يې درسره ومنله؛ نو هغوى ته چې کومې شتمنۍ خورا ګرانې وي، ترې مه اخله او د مظلوم  له ښېرا وډار شه؛ځکه د مظلوم اوخداى ترمنځ پرده نشته .)) (ناصف  ٢\٣٢٢)

په دې حديث کې سپارښتنه شوې،چې دا ټولې چارې به په يوه ځل نه کوې ؛بلکې په ورو ورو او په تدريج د اهميت له مخې به پرمخ ځې .

 

 

 

 

امبريالوژي (جنين پوهنه)

ð((داسې نه ده،چې ټولې اوبه به اولاد کېږي .))( محمد علي البار؛ الوجيز فى علم الاجنة القرآني:١٤مخ )

ð ((انسان د نر او ښځې د څاڅکو له يوځاى کېدو پيدا کېږي .)) ( پورته : ٢٠ \٢١مخونه )

ð ((څاڅکى چې په زيلانځ کې شي؛خداى پرښته رالېږي،پرښته وايي : پالونکيه!شکل نيولې يا نه نيولې؟ که ووايي:شکل نه نيولې؛نو زيلانځ دا پرنډه (زيانوي او) دباندې يې غورځوي .)) (محمد علي البار خلق الانسان بين الطب والقرآن : ٢٠ \٢١٠ مخونه )

ðله حضرت “ابن مسعود” روايت دى،چې پېغمبر اکرم وايي: ((ستاسې د هر يو پيدايښت داسې دى،چې څلوېښت ورځې د خپلې مور په ګېډه کې څاڅکى ياست بيا همدومره موده د”علقه” په بڼه ياست،ورپسې همدومره موده د “مضغه” په بڼه پاتې کېږئ بيا پرښته رالېږل کېږي او ساه پکې اچوي او د څلورو څيزونو امر ورته کېږي (چې ويې ليکي ) : ( ١) روزي يې ( ٢) د عمر نېټه يې ( ٣) کړه وړه يې (٤) بدمرغي يا نېکمرغي يې . ))  ( نووي  ١\ ٣٦٥)

[ تبصره:د جنين پوهنې له مخې هم دجنين حرکت د درېمې مياشتې په وروستيو او د څلورمې مياشتې په سرکې پيلېږي .]

ð ((مخ مې هغه ته پرخاوره ږدم،چې په خپل قدرت يې پيدا کړم او غوږ او سترګې يې ورته پيدا کړې.))  (المعجم ٢\ ٤١٥)

[پورته حديث له جنين پوهنې سره اړخ لګوي،چې په جنين کې تر ليدو مخکې اورېدل راپيدا کېږي .]

ð((د نرڅاڅکى سپين او د ښځې ژېړ وي؛نو دا دواړه،چې يو ځاى شي او د نر څاڅکى د ښځې پر څاڅکي برلاس شي؛د خداى په حکم،زوى راوړي؛خو که د ښځې څاڅکى د نر پر څاڅکي برلاس شي؛ د خداى په حکم ،نجلۍ راوړي)) (مسلم٣ \٢٢٧)

ðپېغمبراکرم (ص) ته د “بني فزاره” يو سړى راغى او و يې ويل : مېرمن مې تور زوى زېږولى دى . پېغمبر(ص)ورته وويل:(اوښ لرې؟) سړي ورته وويل : هو! آنحضرت ورته وويل : (رنګ يې څنګه دى؟) سړي ورته وويل : سور دى . آنحضرت ورته وويل : په وېښتانو کې يې ايرو رنګي شته؟ورته يې ويل: ځينې يې شته . آنحضرت ورته وويل : ولې داسې شوې دي؟ سړي ورته وويل : ښايې ارثي وي . آنحضرت ورته وويل: ((ښايي دا هم ارثي وي .)) ( ناصف شيباني: ٤\ ١٧٢)

ð څاڅکى چې په زيلانځ کې ځاى ونيسي؛نو خداى پکې ددې او آدم ترمنځ هرډول تړاو ټينګوي . (محمد علي البار؛ خلق الانسان بين الطب والقرآن : ١٩٧مخ )

ð خپلو څاڅکو ته(وړ مېرمنې) غوره کړي او له خپلو سيالانو ښځې وکړي او خپلو سيالانو ته يې ور هم کړئ . ( المعجم ٦\ ٤٧٤ )

 

کوچني

ð((کوچنيانو ته مو په اوه کلنۍ کې د لمونځ کولو امر وکړئ او په لس کلنۍ کې يې دې کار ته تنبيه کړئ او بسترې يې بېلې کړئ.)) (ابوداوود : ١\٤٩٥ ، احمد ٢\ ١٨٠)

 ðپر درېو مسوؤليت نشته :(١) ويده،چې راويښ شوى نه وي ( ٢) ماشوم ،چې محتلم شوى نه وي ( ٣) لېونى ،چې روغ شوى نه وي .))

 ( ناصف  ٢\ ٣٢٨)

 

د خوړو اداب

ð((په ښي لاس خوراک څښاک کوئ؛ځکه په کيڼ لاس شيطان خوراک څښا ک کوي .))  (ابوداوود ٣\ ٣٤٩ .ترمذي ٧ \ ٣٠٥ – او ٣٠٦)

ð ((د خوړو په پيل کې”بسم الله” ووايئ او په ښي لاس د خپلې مخې خواړه خورئ .)) ( المعجم ١\٧٣)

 

ځوان ته د پېغمبراکرم نصيحت

ð ((ځوانه! څو ټکي درښيم : د خداى درناوى وکړه،چې خداى دې هم درناوى وکړي . د خداى درناوى وکړه،چې هغه به دې په مخ کې وي،که څه غواړې؛له خدايه يې وغواړه او که مرسته (هم) غواړې؛له خدايه يې غواړه او پوه شه،که ټول خلک راټول شي،چې ګټه درورسوي؛نو در و به يې نه رسوي؛خو هماغه څه چې خداى درته ليکلي وي او که ټول خلک راټول شي،چې زيان درورسوي؛خو نه يې شي دررسولاى؛خو څه چې خداى درته کښلي وي، قلمونه بند شوي او رنګونه وچ شوي دي .)) ( المعجم: ١\ ٤٨١)

 

شخصيت

ðما خپل ټول بندګان حنيف (الله لمانځونکي) پېدا کړي دي؛خو شيطان ورپسې وﻻړ او له دينه يې واړول . (ناصف ٤\١٣٨)

ð حلال (هم)څرګند دي اوحرام هم . (شيباني٤\١٣٨)

ðانسان په خپل فطرت حلال او حرام،حق او باطل،ښه او بد،فضيلت او ذلت درکولاى شي.حضرت “وابصه بن سعيد” وايي: رسول اکرم (ص)ته وﻻړم،راته يې وويل:((راغلې،چې نېکي او بدي وپوښتې؟ورته مې وويل: هو! راته يې وويل: ((خپل زړه وپوښته، په څه چې زړه (تسکين اوارام ) مومي،نېکي ده او په څه چې ونه مومي او په سينه کې ناکراره وي ، که څه هم په اړه يې درته خلک هره فتوا درکړي(؛نو)ګناه ده.))

( نووي : ٥٠ ٥ا و٥٠٦ )

ðکه څوک ددې لپاره کار کوي،چې لاس يې چاته اوږد نشي او ځان له خلکوبې اړې کړي(؛نو)دا هلې ځلې يې د خداى په ﻻر کې دي او که کار يې د بېوسې موروپلار او کوچنيو اوﻻدونولپاره وي(؛نو بيا هم) د خداى په ﻻر کې دي؛خوکه ددې لپاره کار کوي،چې شتمني يې ډېره شي او ځان خلکو ته وښيي او ووياړي(؛نو دا هلې ځلې يې)د شيطان په لارکې دي . ( تخريج زين الدين العراقي ٢\٦١)

ðخداى له ګردې ځمکې يو موټى خاوره راواخسته او آدم(ع) يې ترې جوړ او پيدا کړ؛نو ځکه يې اوﻻد د ځمکې په څېر دى؛ځينې سره،ځينې سپين،ځينې تور،ځينې ددې ټولو ګډوله دي،ځينې نرم،ځينې تريخ زيږه،ځينې ناپاکه او ځينې پاک دي . (ناصف ٤\٣٩ )

ð خلک هم د سرو سپينو په څېر دي،که ديني پوهه ولري؛نو هغوى چې په جاهليت کې غوره ول؛نو په اسلام کې هم غوره دي . (ناصف ٥\٨١)

ðڅومره مو چې له وسې پوره و،له کومو څيزونو،چې مې منع کړي ياست،ځان ترې وژغورئ او د کومو څيزونو مې،چې درته ﻻرښوونه کړې،عملي يې کړئ . ( ناصف١\٤٤)

ðموږ د پېغمبرانو ټولي ته ﻻرښوونه شوې،چې خلک پخپلو ځايو کې کېنوو او د عقل هومره يې ورسره خبرې وکړو. ( تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي: ١\٥٧)

ð خداى چې د چا خير وغواړي؛نو په دين يې پوهوي،زه په حقيقت کې وېشونکى يم او دا خداى دى،چې لوروي او پېرزو کوي يې . (ناصف: ١\٦١)

 

د مېرمنې د ټاکنې غوره کچه

ðله ښځوسره،چې واده کېږي؛نو له دې څلورو څيزونو،يو پکې لامل وي 🙁 ١) شتمني يې ( ٢) کورنۍ يې (٣) ښکلا يې ( ٤) دينوالي يې. ته د هغې د دينولۍ له امله ورسره واده وکړه . ( المعجم ٢\ ١٦٦)

ðيو تن پېغمبرا کرم(ص)  ته راغى او د خپل واده په هکله يې ورسره سلا مشوره وکړه. پېغمبراکرم(ص) ورته وويل:واده وکړه؛خو له متدينې ښځې سره.  (وسايل ١٤\٣٠)

 

دوستي

ðبنيادم د خپل دوست او ملګري په دين دى؛نو ځير شئ،چې له چا سره دوستي کوئ . (نووي ١\اتم حديث ٣٦٨مخ )

 

زړه

ðګناهونه (يو يو) زړونو ته داسې وروړاندې کېږي؛لکه پوزى،چې له يوې پاډې يا پټې اوبدل کېږي؛نو کوم زړه چې ګناهونه ومني يو تور ټکى پکې پيدا کېږي او چې و يې نه مني؛سپين ټکى پکې منځ ته راځي او داسې سپېنېږي؛لکه ښويه ډبره،چې تر اسمانو او ځمکې ټينګه پر ځاى وي او هيڅ فتنه او ګناه ورته زيان نه شي رسولاى اوبل دومره تک تورګرځي؛لکه نسکوره کوزه،چې بې له خپلو ځاني غوښتنو بل هيڅ ښه او بد نه پېژني . (صحيح مسلم : ٢\١٧١- ١٧٣.دامام احمد مسند : ٥ \ ٣٨٦)

ð زړونه څلور ډوله دي : (١)لوڅ لغړ زړونه دي،چې څراغ ته ورته يو څه پکې بلېږي .( ٢)په پردو کې رانغښتي زړونه دي ( ٣) نسکوره زړونه ( ٤) دوه اړخيز زړونه دي .لومړى ډول د مؤمن زړه دى ،چې څراغ يې د مؤمن خپله رڼا ده.دويم ډول د کافر او درېم د منافق زړه دى او په دوه اړخيز زړه کې هم ايمان دى او هم نفاق . د ايمان مثال يې د شنو دى،چې له ښو اوبو جوړ شوى دى او د نفاق مثال يې زوه ده،چې له خيريو او وينې جوړ دى،که هر يو پر بل برلاس شي؛نو هماغه (ايمان يا نفاق ) پر زړه برلاسېږي .)) ( احمد  ٣\ ٧)

ðخداى ستاسې څېرو او شتمنيو ته نه ګوري؛بلکې زړونو او کړنو ته مو ګوري . ( ناصف  ١\٥٥)

ðله درېو ډلو سره ناسته ولاړه زړه وژني : (١) له پستوخلکو سره ( ٢) له ښځوسره خبرې( ٣) او له  شتمنو سره . ( الکافي ٢\ ٦٤١)

ðد زړه ړوندوالى،ډېر ناوړه ړوندوالى دى . ( بحارالانوار ٦٧\٥١)

ðد دين (د پاسوالۍ) لپاره ناوړه مرستندويان دادي : (١) ډارن زړه (٢) ډېر خوره ګېده ( ٣) او ډېر شهوت . ( الکافي ٦\٢٦٠)

ðد مؤمن زړه،چې له الهي ډاره لړزېږي،ګناهونه يې  د ونې د پاڼو په څېر رژېږي . (بحارالانوار67/394)

ðد بدمرغۍ له نښو (دي) :د سترګو وچوالى،د زړه سختوالى،د دنيا غوښتنې، حرص او پر ګناه ټينګار .( الکافي  ٢\٢٩٠)

ðدنيا تر هغه پای ته نه رسي،چې : د مؤمن زړه (له کړاو او سختۍ) ويلې شي او مؤمن د مړ پسه په څېر خوار شي.(مشکاة الانوار : ٢٨٨)

ðد خداى،چې کوم بنده ښه و ايسي؛په زړه کې يې ورته د خپګان څه څپه کېنوي؛ځکه د خداى خپه زړونه ښه ايسي او جهنم ته يې نه ننباسې، چې له ډاره يې داسې ژاړي؛لکه شيدې،چې د مور له تيونو راوځي او د خداى،چې کوم بنده ښه نه ايسي؛په زړه کې يې ورته د خندا څه څپې اچوي؛ځکه (د زړه له کومې)خندا زړه وژني او خداى هغوى ښه نه ګڼي ، چې له زړه خندوني وي . ( وسايل : ٧\٧٦)

ð د زړه ماتوالى د خداى رحمت دى؛نوپه دې وخت کې دعا غنيمت وګڼه . ( کنز ٢/١٠٢ )

ð بى حکمته  زړه کنډه واله دى .( کنز ١٠ /١٤٧)

ð زړونه مو د دنيا په ياد مه بوختوئ . ( کنز ٣/١٩٨)

ðپه رښتيا چې “الله تعالى” ستاسې تنو او څېرو ته نه ګوري؛ بلکې زړونو ته مو ګوري .(سنن ابي داوود)

ðد بنده په زړه کې کله هم حرص،بخل او ايمان نه يو ځاى کېږي . (نسايي)

 

بنيادم

ðخداى له تاسې د جاهليت کبر او غرور او پر پلرونو وياړنه له منځه يووړل[ اوس تاسې په دوه ډوله ياست] پرهېزګار مؤمن او ګناهګار مؤمن . تاسې د آدم اولاده ياست او آدم له خاورې و.( ناصف :٦٠-٦١مخونه )

ðپوه شئ،چې بنيادمان په بېلا بېلو پوړيو پيدا شوي دي : ځينې مؤمن زيږي،مؤمن ژوند کوي او مؤمن مريې.ېځيني کافر زيږي،مؤمن ژوند کوي (؛خو) کافر مري او ځينې کافر زيږي،کافر ژوند کوي (؛خو) مؤمن مري .  ( ناصف  ٥\ ٢٨٩)

 

ځان ساتنه

ðخلکو!خداى مو يو دى او پلارمو هم يو دى . پوه شئ،چې عرب پر ناعرب او ناعرب پر عرب،سپين پر تور او تور پر سپين غوره نه دى؛ خوپه تقوا.) ) ( احمد ٥\ ٤١١)

ð هېڅوک پر يو بل غوره نه دى؛خوپه دين يا تقوا (اوپه بل روايت کې)  ؛خو چې دين يا کړه يې ښه وي . ( احمد ٤\٤٥- ١٥٨٠مخونه )

ð پرهېزګار ډېر خداى ته عزتمن دى . (نووي  ١\١٠٣)

ð (( خداى ته د قيامت پر ورځ د ښه قدوقامت سړى راځى؛خو خداى ورته د ماشي د وزره هورمره ارزښت نه ورکوي او ويې ويل:ولولئ : د قيامت پر ورځ به ارزښت ور نه کړم.)) ( ناصف  ٤\١٧٢)

 

اروايي روغتيا

ð له چاسره،چې د آخرت غم وي،خداى يې زړه غني کوي او پرېشاني يې لرې کوي او دنيا ورته په خپله مخه کوي او له چا سره،چې د دنيا غم وي؛ پاک خداى نيستي يې ورته په مخ کې ږدي او ټولى يې پرېشانوي او له دنيا ورته يوازې هومره رسي،چې ورته ټاکل شوې ده؛نو شپه و ورځ په نېستۍ تېروي .بنده،چې کله هم خداى ته مخه کړي؛خداى ورته په مينه د مؤمنانو زړه تابع کوي او خداى ورته په بيړه ټولې ښېګڼې رسوي .))  ( شيباني ٤\ ١٨٤)

ðڅوک ضمانت راکوي،چې له خلکو به څه نه غواړي،چې زه ورته د جنت ضمانت ورکړم ؟حضرت ثوبان وويل :زه! او بيا مې له هېچا څه ونه غوښتل . ( ابوداوود ٢\ ١٢١) 

ð پر خداى قسم، چې زما ساه يې په واک کې ده،که تاسې هر يو خپله رسۍ واخلئ او پر شا خس راوړئ ؛نو دا ورته تر دې غوره ده،چې چاته ورشئ او څه ترې وغواړئ،که څه درکړي يا درنه کړي .)) ( ناصف ٢\ ٣٥)

ðد خپلو اولادونو درناوى وکړئ اوښه يې وروزئ .)) (ابن ماجه، الادب ٢ټوک، ٣٦٧١ حديث.)

ðپه روايت کې راغلي،چې د يوې نجلۍ نوم “عاصيه”(سرغړانده) وه، رسول اکرم يې نوم واړاوه او “جميله” يې ونوموله.)) ( ناصف : ٥\٢٦٧)

ðتاسې هر يو پالندوى ياست او د تر لاس لاندې پر وړاندې مسوول.د خلکو مشر،د هغوى پالندوى او د خپلو تر لاس لاندې پر وړاندې مسؤول دى؛نارينه د خپلې کورنۍ پالندوى او د خپلو ترلاس لاندې پر وړاندې مسؤول دى . مېرمن د خپل مېړه د کور پالندويه او د کورنۍ پر وړاندې مسؤوله ده . مريى د خپل خاوند د شتمنۍ پالندوى او پر وړاندى يې مسؤول دى؛نو تاسې هر يو پالندوى ياست او د خپلو تر لاس لاندې پر وړاندې مسوول ياست.)) ( ناصف  ٣\٤٧- ٤٨)

ðواقعي وسمني په ډېرې شتمنۍ درلودو کې نه ده؛بلکې په دې کې ده،چې انسان مړه خوا وي .)) (ناصف  ٥\١٦٦)

ðتر ځان ټيټو ته ووينئ،نه تر ځان لوړو ته او دا کار ددې لاملېږي،چې د خداى درکړي لورنې ناڅيزه ونه بولئ .))  (ناصف  ٥\١٦٦)

ðد خداى پر درکړي قسمت راضي وسه،چې ډېر مړه خوا وسې .))

( ناصف ٥ \١٦٦- ١٦٧)

ð مؤمن ته چې څه غم،خپګان،رنځ،ناروغي او اندېښنه رسي؛ نو له امله يې خداى ورته ګناهونه بښي .)) ( شيباني ٣\٣٤٣)

ð د خپل لاس ګټلي خواړه ډېرغوره دي،داوود(ع) د خپل لاس ګټلي خوړل .)) ( نووي  ١\ ٤٧١)

 

کرهڼه

ðکه قيامت شي او د چا په لاس کې نيالګى وي او د ولاړېدو وس يې نه وي،چې ويې کري (؛نو بيا دې هم ) دا کار وکړي . (احمد ٣\ ١٨٣ – ١٧٤ ، ١٩١ .)

 

ورهڼه

ð بوخت مؤمن د خداى ښه ايسي. (تخريج زين الدين عراقي لا حاديث کتاب احيا علوم الدين للغزالي ٢\ ٦١ )

ð د خداى هغه ښه ايسي،چې کار سم سوتره ترسره کوي.)) (بيهقي؛شعيب  للاايمان ؛طبراني )

ð خداى ته تر بېوسې مؤمنه،ځواکمن مؤمن غوره دى .)) (نووي ١\ ١٠٠ )

ðسود خوړل،ډېر ناوړه کسب دى .( الکافي ٨\٨١)

ðد روزۍ تر لاسه کول ( د لمانځه،روژى او…عبادتونو)په څېر يو فرضي،چار دى .( بحارالانوار  ١٠٠ \١٧)

ðڅوک چې په نارواوو څه لاس ته راوړي،خداى به يې فقير او نشتمن کړي.( الامالي للطوسي : ١٨٢)

ðله ناروا لارو د مال لاس ته راوړنه به هغه دوزخ ته راکاږي .( مستدرک الوسايل ١٣\٢٢)

ðد سپي ( پېر و پلور) ډېر ناوړه کسب دى .( بحارالانوار  ١٠٠ \٥٦)

 

ډاډمني او روغتيا

ð پرهېزګار ته شتمني بده نه ده؛خو روغتيا ورته تر شتمنۍ غوره ده او ډاډمني په خپله يوه لورنه ده.)) (ابن ماجه: ٢\ ٢١٤١حديث احمد: ٥\ ٣٨١)

ðڅوک چې ګهيځ کړي او ډاډمن وي او پر تن روغ(هم) او د خپلې ورځې خواړه  هم ولري؛نو داسې به وي؛لکه چې ټوله دنيا ورته ورکړ شوې وي . ( شيباني ٤\٤٥ )

ðکه الله پاک د کومې کورنۍ خير ښېګڼه وغواړي؛نو ورته د لورنې او ډاډ لار ورښيي؛خو که څوک له لورنې بې برخې شي؛نو له خير او ښېګڼې به بې برخې شوى وي .(مستدرک الوسايل  ١١\ ٢٩٣)

ðډاډ د خداى له لوري دى او بيړه د شيطان . ( وسايل : ٢٧ ١٦٩)

ðتر ډاډمنۍ اونرمۍ بل څه خداى ته ګران نه  دي .( بحارالانوار ٧٢ \ ١٤٨)

ð خدايه! بدن،غوږ او سترګې مې روغې رمټې لرې، بې له تا وړ معبود نشته . (تخريج …: ١\ ٣١٩ )

ðله خدايه يقين او روغتيا وغواړئ؛ځکه تر يقين وروسته،روغتيا غوره څيز دى،چې چاته ورکول کېږي . (ابن قيم الجوزية:الطب النبوي ٢٠٢مخ )

 

ځواک

ð څه مو چې په ځواک کې وي،پر وړاندې يې چمتو کړئ . (او ويې ويل : پوه شئ چې له ځواکه مطلب غشي ويشتل دى او دا يې درې ځل وويل . (منذري  ٢\ ١١حديث)

 

اروايي درمل

ðپه بدن کې يوه ټوټه ده،که روغ رمټه وي؛نو ټول بدن روغ پاتې کېږي او که فاسده شي؛ټول بدن فاسدېږي او هغه ټوټه زړه دى (شيباني ١\٣٢)

ðکوم ګناهونه،چې سړى د خپلى مېرمنې،شتمنۍ، اولاد، خپل ځان او ګاونډي په اړه کوي؛نوپه روژه، لمونځ، صدقې(يا زکات) او”پر نېکيو په امر او له بديو په منع” څنډل کېږي .(المعجم المفهرمن… ٥\٦٢)

ðکه څوک پر پينځوڅيزونو ټينګ ودرېږي او ايمانوال هم وي؛نو جنت ته ځي :څوک چې پينځه وخته لمونځ پرخپل وخت په اودس او په رکوع او سجدو پر ځاى کړي،په رمضان کې روژه ونيسي،چې د وسې يې وي،حج وکړي،د زړه له کومي زکات ورکړي او امانت پر ځاى کړي. “ابودردا” وپوښتل شو: له امانته موخه څه ده ؟ويې ويل : د جنابت غسل .)) ( ابوداود ١١\٤٢٩ )

ðپېغمبراکرم،به چې له کومې ستونزې سره مخ شو؛نو لمونځ به يې کاوه . ( ابوداود ٢\١٣٩١حديث )

ð بلاله! په لمانځه مو خاطر جمع کړه . ( مسند احمد ٥\٣٦٤)

ð څوک چې ښه اودس وکړي؛د بدن ګناهونه يې ان تر نوکانو لاندې وځي . (نووي ٢\ ١٠٦٢)

ðپينځګوني لمونځونه او د جمعې لمونځ تر جمعې پورې،چې څومره ګناهونه يې کړي پاکوي؛خو چې سترګناهونه يې نه وي کړي . (ناصف ١\١٣٥)

ð ((خداى وويل : هر عمل د هر چا خپل دى؛خو روژه زما ده او زه يې اجر ورکوم،روژه ډال دى؛نو روژه تي دې له کنځلو او شخړو ډډه وکړي،که چا ورته کنځل وکړه يا يې ورسره شخړه کوله؛نو ورته دې ووايي : زه روژه يم .)) ( نووي ٢\١٢١٦)

ðحج او عمره وکړئ،چې دا دواړه فقر او ګناهونه داسې له منځه وړي؛لکه د اهنګر بټۍ،چې اوسپنه او سره سپين نږه کوي او جنت د قبول حج بدله ده . (ناصف ٢\١٠٧)

ðستر خداى وايي : زه د بنده په ګومان يم،که ياد مې کړي؛نو زه ورسره يم .که په زړه کې مې ياد کړي؛نو زه يې هم په خپل زړه کې يادوم . که په غونډه کې مې ياد کړي؛نو زه يې د هغوى تر غونډې په غوره غونډه کې يادوم .که راته يو لوېشت رانږدې شي،زه يو ګز ورنږدېږم،که په قدم وهلوراته نږدېږي؛زه ورته په منډ منډه ورځم .(شيباني  ٢\ ١٠٥ )

ðپه هغو کورنو کې،چې خداى پکې يادېږي او د هغې،چې نه يادېږي، مثال يې د ژوندي او مړه انسان دى .( نووي ٢\ ٢٧ حديث ١٤٣٥مخ )

ðد ورځې د سلو تسبيح ويلو پر وړاندې مسلمان ته زر ثوابونه ليکل کېږي يا يې زر ګناهونه رژېږي . ( نووي ٢\٢٤ حديث )

ðڅوک چې تر هر لمانځه وروسته لاندې ټکي ووايي؛نوګناهونه يې بښل کېږي،که څه هم د سمندر د ځګ هومره وي 🙁 ١) سبحان الله ٣٣ ځله ( ٢) الحمدلله ( ٣٣) ځله ( ٣) الله اکبر ٣٣ ځله او ورپسې ووايي :  لا( اله ) – الا( الله ) وحده لا شريک له،له الملک وله الحمد وهو على کل شئ قدير. (نووي : دويم ټوک ، ١٢ حديث )

ð (( که لا ( اله ) – الا (الله ) العلى العظيم ،لا (اله ) – الا (الله ) الحليم الکريم ، لا ( اله ) – الا (الله ) سبحان الله رب العرش العظيم ، الحمد لله رب العالمين  ووايي؛نو خداى به دې وبښي،که څه هم بښل شوى اوسې .)) ( ناصف ٥\٩١)

ðقرآن ولولئ؛ځکه قرآن د قيامت پر ورځ قرآن لوستونکيو ته سپارښتنه کوي . ( نووي  ١\نهم حديث)

ðپېغمبر اکرم لېونتوب په قرآن رغولى دى .”ابي بن کعب” وايي: پېغمبر اکرم ته يې يو ليونى راووست . آنحضرت په لاندې قرآني آيتونو تعويذ کړ او داسې روغ رمټ شو؛لکه بېخي،چې ناروغ نه و:(١) “فاتحة الکتاب” او د”بقرې” سورت لومړى څلور آيتونه (٢) والهکم اله واحد و … او “اية الکرسي” .( ٣) د بقرې سورت درې وروستي آيتونه . (٤) دآل عمران،(( شهدالله انه لا اله الا هو …)) آيت .(٥)  د اعراف سورت (( ان ربکم …)) آيت .(٦) د مؤمنون سورت وروستۍ برخه ((فتعالى لله الملک الحق … )) (٧) د جن سورت ((وانه تعالى جدربنا….)) آيت .( ٨)د صافات لومړي لس آيتونه . (٩) د حشر سورت درې وروستي آيتونه. (١٠) او په ((قل هوالله احد)) او معوذتين . (سعيد حوا؛الرسول : ٢٨ او ٢٨٢ مخونه .) 

ðحضرت “عبدالله بن مسعود” روايت کړى : ((پېغمبراکرم لمونځ کاوه، چې په سجده کې لړم وچيچه . آنحضرت وويل : پر لړم دې د خداى لعنت وي،چې پر پېغمبر او ناپېغمبر رحم نه کوي بيا يې مالګوبى راوغوښت او چيچل شوى ځاى يې پکې کېښود او”قل هو الله احد” او معوذتين يې تر هغه لوسته ،چې درد ارام شو.)) (ابن قيم الجوزية؛ الطب النبوي ، ١٦٧مخ )

ðقرآن غوره درمل دي . (ابن ماجه : دويم ټوک ، ٣٥٠١حديث)

ðدعا هماغه عبادت دى،آنحضرت بيا دا آيت ولوست : ((مَنْ عَمِلَ سَيِّئَةً فَلَا يُجْزَى إِلَّا مِثْلَهَا وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُوْلَئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ يُرْزَقُونَ فِيهَا بِغَيْرِ حِسَابٍ= څوك چې بدكار وكړي؛ نو د خپلو كړنو هومره بدله وركول كېږي او څوك چې نېكې چارې وكړي؛ نارينه وي که ښځه؛خو چې ايمان ولري؛نو جنت ته ننوځي او هلته به ورته بې حسابه روزي ورکړاى شي . (غافر/40) ))

مَا يُجَادِلُ فِي آيَاتِ اللَّهِ إِلَّا الَّذِينَ كَفَرُوا فَلَا يَغْرُرْكَ تَقَلُّبُهُمْ فِي الْبِلَادِ =  يوازې هغوى زموږ په آيتونو كې شخړه كوي،چې (دكينې له امله) كافران شوي دي؛نو په ښارونو كې د هغوى ښکته او پورته کېدل (او د قدرت ښوونه) دې يې تا و نه غولوي!(غافر/4)  ( ناصف : ٥\١٠٩)

ðستاسې ستر او لوړ مقامى خداى حياناک دى او  چې بنده يې پر لور لاسونه پورته کړي او هغه (ذات) يې تش لاسى راوګرځوي،حيا کوي .( ناصف  ٥\١١ )

ðهر مسلمان،چې د ځمکې پر مخ خداى ته دعا وکړي؛پاک خداى يې غوښتنه ورکوي يا د هغه هومره بدي ترې لرې کوي؛خو په دې شرط،چې دعا يې د ګناه يا د خپلوۍ د اړيکو د پرې کولو لپاره نه وي . له ناستو يوه وپوښتل :نو ډېره دعا وکړو؟ آنحضرت ورته وويل : خداى هم ډېره دعا قبلوي . ( ناصف ٥\١١٠ )

ðدعا د راکېوتې او ناراکېوتې بلا لپاره ګټوره ده؛نو د خداى بندګانو، دعا و کړئ ! ( ناصف  ٥\١١٠)

ðڅوک چې دعا وکړي،دعا يې قبلېږي يا په همدې دنيا کې يې ورته ورکوي،يا د آخرت لپاره يې ورته سپموي،يا څومره دعاووې يې چې کړې وي،ګناهونه يې بښي؛خو په دې شرط،چې دعا يې د ګناه يا د خپلوۍ د اړيکو د پرې  کولو لپاره نه وي يايې بيړه نه وي کړي .(شيبا ني: ٢\٦٠ – ٦١  )

ðيوازې دعا ده،چې (الهي) قضا ګرځوى او يوازې ښه کول دي،چې عمر ډېروي .  (ناصف  ٥\١١١)

ð پر هغه قسم،چې ساه مې يې په واک کې ده،که ګناه مو نه کوله ؛ خداى تاسې (له منځه) وړئ او نور خلک يې راوستل،چې ګناه وکړي او له خدايه بښنه وغواړي او هغه يې وبښي. (نووي ١\١١حديث )

ðبنيادمان ټول ګناهګاران دي؛خو هغه غوره ګناهګاران دي ،چې توبه وکاږي . (شيباني  ١\٢١٣ )

ðخداى تعالى د خپل مؤمن بنده په توبه خوشحالېږي . (شيباني ١\٢١١ ) 

 

د اولاد روزنه او درناوى يې

ðما ته خداى ادب راښوولى دى . ( مکارم اخلاق ١\٣٤)

ðښه ادب اولاد ته د پلار غوره ډالۍ ده . ( دحاکم مستدرک ٤\٢٩٢)

ðپر پلار د اولاد دا حق دى : (١) ښه ادب ورزده کړي ( ٢) ښه نوم پرې کېږدي (٣) او د خپلې مور درناوى وکړي . (٤) قرآن وروښيي .( که زوى وي)، لامبو ورزده کړي،(که لور وي)،د نور سورت ورزده کړي او يوسف سوره ور ونه ښيي اوپر کور يې کېننوي او ژر ورته مېړه وکړي . (مجمع الزوايد ٨/٤٧)

ðنارينه د خپلې ښځې او اولاد پالندوى او پر وړاندې يې مسوول دى . (صحيح بخاري  ٩\٧٧ )

 ðله صالحو کورنيو او خېلونو سره واده وکړي؛ځکه اولاد ته د موروپلار خويونه لېږدول کېږي . ( آثارالصادقين : ٧ \ ٤٧٠)

ðښه خوى دښه ارث دليل دى . (غررالحکم : ٣٧٩مخ )

ðاولاد په لومړيو اووکلونو کې د موروپلار ښاغلى (او نازولى) دى او په دويمو اوو کلو کې يې مطيع او غاړه ايښوونکى دى(؛يعنې د موروپلار تر روزنې لاندې دى،چې امر او منع ورته وکړي) او په درېمو اوو کلو کې د موروپلار وزير او مشاور دى؛که خوى يې په ( ٢١) کلنۍ کې ښه و(؛نو ډېره ښه ) او که نه زړه پرې مه تړه او ته د خداى پروړاندې معذور يې . ( کافي ٦\٤٦)

ðاولادونه مو زموږ د ځيګر ټوټې دي،ماشومان يې زموږ واکمن دي . (بحارالانوار  ١٠٤ \ ٩٧)

ðاولادونه مو په درېو خويونو وروزئ : ( ١) له پېغمبر او (٢) د پېغمبرله کورنۍ سره په مينه ( ٣) او د قرآن لوستل .( کنزالعمال ١٦ \٤٥٦)

ðهر څيز يو بنسټ لري او د اسلام بنسټ زما له اهلبيتو سره مينه ده. (بحارالانوار  ٢٧ \٩١)

ðاولاد( ٧) کاله ښاغلى،اوه کاله بنده او ( ٧) کاله وزير دى .(کافي ٦\٤٦)

ðپه قيامت کې لا چا ګام نه وي اخستى،چې پوښتل کېږي : عمر دې په څه کار کې تېرکړى او ځواني دې څنګه تېره کړې؟ (يعقوبي تاريخ ٢/٩٠ )

 ðابوذره!پينځه څيزونه تر پينځو مخکې غنيمت وګڼه : تر زړښت مخکې ځواني او. ( بحار الانوار ٧٧ \ ٧٥)

ðد اولاد نېکمرغي يا بدمرغي د مور په زيلانځ کې جوړېږي. ( کنزالعمال؛ خبر: ٤٩ او يعقوبي تاريخ : ٢\ ٩٤)

ðښځه چې دوه ځانې شي؛نو دومره ستر اجر لري،چې څوک پرې نه پوهېږي . ( بحارالانوار  ١٠٤\ ١٠٦) 

ðښځې چې اولاد وزېږاوه؛نو لومړي خواړه دې يې کجورې وي (؛ځکه) که تر دې غوره خواړه واى ؛نو پاک خداى به د”عيسى” (عليه السلام ) د زوکړې پر مهال پر”مريم” خوړلي واى.)) (مستدرک الوسايل  ٢\٦١٩)

ðپاک خداى وايي: پر عزت،دبدبه او مقام مې قسم! که ښځه د ماشوم د زوکړې پر ورځ کجورې وخوري؛نو که اولاد يې زوى وي که لور، هرومرو به زغمناکه وي  (بحارالانوار  ١٠٤\ ١١٦)

ðماشوم مو چې وزيږېد؛نو په سپينه ټوکر کې يې ونغاړئ. (بحارالانوار  ٤٤\ ٢٥٠ )

ðماشوم مو چې وزيږېد؛په ښي غوږ کې ورته اذان او په کيڼ کې ورته اقامه او…ووايئ . (امام احمد حنبل؛مستد: ٦\٩ )

ðخاوره د ماشومانو پسرلى دى . (کنزالعمال١٦/٤٥٨.مجمع الزوايد: ٨/١٥٩)

ðحضرت عايشه بي بي وايي :ماشومان به يې پېغمبراکرم ته راوستل، آنحضرت به ورته مبارکي ويله او څه يې په خوله کې ورکول . (صحيح مسلم : ١٤ \١٢٧)

ðپر اولادونو مو د پېغمبرانو نومونه کېږدئ او “عبدالله” ،”عبدالرحمن” غوره نومونه دي.)) ( بحارالانوار  ١٠٤ \ ٩٢)

ðکه د “محمد” نوم مو کېښود؛نو مه يې وهئ او بې احترامي يې مه کوئ . ( مجمع الزوايد : ٨\ ٤٨ )

ðصالح اولاد،د خداى له لوري خوږبويه ګل دى،چې پر خپلو بندګانو يې وېشلى دى . ( کافي  ٦\٢)

ðحضرت “ابورافع” پېغمبر اکرم ته د “ابراهيم” د زوکړې زېرى راووړ؛ پېغمبر اکرم په زېري کې يو مريى وروباښه .(طبري تاريخ ٢\٣٦٢)

ðپه ځينو روايتونو (کافي٦\٣٢) کې راغلي، چې پر اولاد مو تر زوکړې مخکى نوم کېږدئ اوپه ځينو (بحار: ٤٤\٢٥٠ ) کې د زوکړې لومړى ورځ ښوول شو ې ده .

ðهر زيږېدلى د خپلې عقيقې ګرو دى . (بحارالانوار ١٠٤ \١٢١)

ðهر ځل چې ماشوم د مور تى روي؛نو مور ته يې په کړنليک کې د حضرت “اسماعيل” د اولادې د يو مريي د ازادولو هومره ثواب ليکل کېږي .( وسايل١٥ \ ١٧٥)

ðد ماشوم ژړا د اورېدو پر مهال به پېغمبر اکرم لمونځ  لنډاوه. (کافي  ٦\٤٨ )

ðله ماشومانو سره مينه وکړئ او په مهربانۍ ورسره وچلېږئ .(من يحضره الفقيه : ٢ \١٥٧)

ðڅوک چې د مشرانواحترام و نه کړي او پر کوچنيانو و نه لورېږي؛نو له ما څخه نه دى . ( د حاکم مستدرک ٤\١٩٧)

ðله اولاد سره دې نېکي وکړه،چې د موروپلار په څېر درباندې حق لري. (محجة البيضاء٣\٤٣٦)

ðحضرت موسى عليه السلام د دعا پر مهال خداى ته وويل : خدايه! تاته ډېرې اوچتې کړنې کومې دي؟خداى ورته وويل : له ماشومانو سره مينه . (بحارالانوار  ١٠٤\ ٩٧)

ðپېغمبر اکرم به ماشوم هم له ځان سره  سپراوه . ( کنزالعمال ٦\٢٨٩)

 ðماشومان به له پېغمبر اکرم کره تلل او د هغه د څښلواو اوداسه له لوښي يې اوبه څښلې او د تبرک لپاره يې پر سر او مخ مښلې او پېغمبراکرم به هم ترې نه منع کول . (محجة البيضاء ٤ \ ١٤٥ )

ðعلي ما روزلى دى . (سنن النبي : ٨٠ مخ )

ðله چا سره،چې ماشوم وي؛نو د ماشومتوب چلن دې ورسره وکړي . (وسايل١٥ \٢٠٣)

ðڅوک چې خپل اولاد خوشحاله کړي؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ خوشحاله کړي .(بحارالانوار  ٤٣ \ ٩٩)

ðرسول اکرم به د اصحابو له زامنو سره لوبې او ټوکې کولې او په خپل غېږ کې يې کېنول .(نهاية المسؤ ل فى رواية الرسول : ١\٣٤٠)

ðپېغمبراکرم د لمانځه لپاره جومات ته روان و،په لار کې کوچنيان پر لوبو بوخت ول،د پېغمبر اکرم په ليدو يې لوبې يې بس کړې او ورمنډې يې کړې،پېغمبراکرم په مينه ومنل او دوى پر پېغمبر ورختل او په خوشحالۍ يې ويل :(( کُن جَمَلى= اوښ مې شه)) پېغمبر هم په عاجزۍ ټيټ شو او پر اوږو او شا يې سپاره کړل او ورسره په لوبو شو. ياران د پېغمبراکرم له ځنډه اندېښمن شول . حضرت “بلال”،پر حال د پوهېدو لپاره راغى او دا حال يې،چې وليد؛نو کوچنيان يې منع کول؛خو پېغمبر اکرم منع کړ او ورته يې وويل : ددې کوچنيانو تر خپګان راته د لمانځه د وخت تنګول ښه دي.کوچنيان حاضر نه ول،چې له پېغمبره راکوز شي . پېغمبر اکرم حضرت “بلال” ته وويل : زما کور ته ولاړ شه او څه راوړه،چې کوچينان پرې راضي کړم . حضرت “بلال” ورته اته “غوزان” راوړل . پېغمبر اکرم په موسکا کوچنيانو ته وويل : اوښ مو په اتو غوزانو پلورئ؟ کوچنيانو په خوشحالۍ غوزان واخستل او له پېغمبره راکوز شول (؛نو په دې وخت کې)رسول اکرم وويل : ((خداى دې زما پر ورور “يوسف” ولورېږي،چې په څو شمېر ليو درهمو يې وپلوره او زه يې په اتو غوزانو.))  (عوفي جوامع الحکايات:محمد بن قاسم روش الاخبار، راهنماى پدران ومادران : ٢\٥٤)

ðد خپل اولاد درناوى وکړئ او په ښو خويونو يې وروزئ . (مکارم الاخلاق  ١\٤٢٦ )

 ðمور وپلار ته نه ښايي،چې خپلو اولادونو ته ووايي،چې احمق ياست يا نه پوهېږئ .  ( کافي  ٦\ ٥٠ )

 ðجنت ته د کنځل مار تګ حرام دى . (محجة  البيضاء ٥ \ ٢١٥)

ðاولادونه مو په ښو نومونو ياد کړئ،په ناسته کې ځاى ورکړئ او په تريو تندي ورسره چلن مه کوئ .( جامع الاخبار: ١٢٤ مخ )

 ðپينځه څيزونه به تر ژونده پرېنږدم،چې يو يې پر کوچنيانو سلام اچول دي،چې تر ما وروسته سنت (او دود) شي او خلک يې عملي کړي. ( بحارالانوار : ١٦ \ ٢١٥ )

 ðپېغمبر اکرم له کوچنيانو هم بيعت اخسته .( صحيح  مسلم  ١٤\ ١٢٦ )

ðکوچنيان مو په اوه کلنۍ کې لمانځه ته اړکړئ  اوکه په لس کلنۍ کې يې لمونځ نه کاوه؛نو غوږ يې تاو کړئ . (د ابي داوود سنن ١\ ١٣٣)

 ðلښته مو د کور په هغه ځاى کې ځوړنده کړئ،چې ستاسې کورنۍ يې ويني؛ځکه دا په خپله د هغوى د تاديب (ګواښنې) وسيله ده .(د طبراني معجم الکبير: ١٠ \٢٨٤. عقل الفريد : ٢\ ٤٢٠ )

ðڅوک چې پرخپله ژمنه ونه درېږي؛نو دين نه لري . (بحار ٧٥ \٩٦ )

ðله خپل کوچني سره مو پر کړې ژمنه وفا وکړئ . (مستدرک الوسايل ٢\٤٢  )

ðحضرت “عبدالله بن ربيعه” وايي :کوچنى وم او پېغمبراکرم راکره راغى،لوبو ته تللم او مور مې راته غږ کړ،چې راشه کجورې درکوم. پېغمبر چې دا خبره واورېده؛نو مور ته مې يې وويل : که کجوره ورنه کړې ؛نو په کړ نليک کې دې يو دروغ کښل کېږي .(حلبية سيرة٣\١٢٩. بحار: ١٠٤ \٩٢ )

ðلکه څنګه چې ستاسې خوښېږي،چې اولاد او نور درسره په نېکۍ او مهربانۍ چلن وکړي؛دغسې مو د خپلو اولادونو ترمنځ  په نېکۍ او مينه کې عدالت وکړئ . ( کنزالعمال١٦\٤٤٤)

ðاولادونو ته مو يو رنګ بخشش ورکړئ،په ورکړه کې توپير واى؛نو ښځمنو ته مې زيات څه ورکول . (کنزالعمال ١٦\٤٤٤)

ðيو سړى له خپل زوى او مريي سره پېغمبراکرم ته راغلل او رسول الله ته يې وويل : ګواه وسه،دا مريي مې خپل دې زوى ته وباښه .پېغمبر اکرم ورته وويل : تر ټولو اولادونو سره دې دا کار کړى ؟ورته وويل : نه ! پېغمبراکرم ورته وويل : زه ورته ناشاهدېږم که څه هم يوه سوې ډوډۍ وي . ( کنزالعمال ١٦\ ٤٤٦)

ðيو سړى له پېغمبراکرم سره ناست و،په دې کې يې کوچنى زوى راغى، سړي ښکل کړ او پر زنګانه يې کېناوه،ورپسې يې کوچنۍ لور يې راغله ؛خو ښکل يې نه کړه او خپلې مخې ته يې کېنوله . رسول اکرم چې دا پېښه وليده؛ورته يې وويل : ولې دې د اولاد ترمنځ په عدالت چلن ونه کړ؟ ( مجمع الزوايد٨ \١٥٦)

ðخداى دې پر هغه ولورېږي،چې له خپل اولاد سره په نېکۍ کې لاسنيوى وکړي .په دې اړه وپوښتل شو؟ ورته يې وويل : کوچنيان،چې پخپله خوښه کوم کارونه او دندې ترسره کوي،و يې مني او چې ورته سختې وي،ترې تېر شي او تېرى پرې و نه کړي او ګناه ته يې اړ نه کړي او دروغ ورته  ونه وايي او…)  ( کافي  ٦ \٥٠)

 ðحضرت “عبدالله بن جعفر” د کوچنيانو او څه نور مختصر څيرونه پلورل، چې پېغمبر اکرم پرې تېر شو؛ورته يې وويل : خدايه! په راکړه ورکړه کې يې برکت کېږدې .(مجمع الزوايد٩ \ ٢٨٦)

ðپېغمبراکرم حضرت “رافع بن حذيج”،چې تکړه غشى ايشتونکى کوچنى و،له ځان سره د “احد” جګړې ته بوت .(دطبري تاريخ : ٢\ ١٩١)

ð حضرت”سعد بن جبتة” يو کوچنى و،چې د “خندق” په جګړه کې يې په مړانه وجنګېد؛نو پېغمبر اکرم يې پر سر لاس راکښه او دعا يې ورته وکړه : پاک خداى دې د هغه پر اولاد او ځوځات برکت کېږدي . (حاکم؛مستدرک ٢\ ٦٩)

ðکوچنيان مو چې اوه کلن  (او په بل روايت کې) لس کلن شول؛نو بېل يې ويده کوئ . (بحارالانوار  ١٠٤ \ ٦٨)

 ðپر پلار د اولاد حق دى،چې ليکل،غشي ويشتل او لامبو ورزده کړي او پاک حلال خواړه پرې وخوري .(کنزالمعال  ١٦ \ ٤٤٣ )

ðد “بدر” هغه اسيران،چې د فديې د ورکړې وس نه لري ؛نو د انصارو زامنو ته دې ليک ورزده کړي .( ابن سعد؛طبقات  ٢\١٦ )

لوڼې

ðلوڼې مو غوره اولاد دى .( بحارالانوار ١٠٤ \٩١ )

ðڅوک چې خپلې لوڼې (يا لور) وروزي،لورنه پرې وکړي؛هرومرو پرې جنت واجبېږي . (مجمع الزوايد ٨\١٥٧)

ðلوڼې څومره ښه اومهربانې دي .( کافي ٦\٥)

ðلور خوږبويه ګل دى،چې روزي يې پر خداى ده.(بحارالانوار ١٠٤\٩٧)

ðکه څوک له بازاره څه وپېري او کور ته يې د ښځې او اولادونو لپاره راوړي؛ نو د هغه په څېر به وي ،چې نشتمنو ته يې د صدقې بار وړى وي او بايد،چې لومړى يې لوڼو او ښځو ته ورکړي او څوک چې خپله لور خوشحاله کړي؛لکه د”اسماعيل”د اولادې مريى يې،چې ازاد کړى وي . (بحارالانوار ١٠٤ \٦٩)

ðڅوک چې لور ولري او و يې نه شړي او و يې نه رټي او زوى ترې غوره ونه ګڼي؛خداى يې جنتي کوي . ( ازدواج دراسلام : ١٣٦)

ðرسول اکرم به چې له سفره راستون شو؛نو خپله لور”فاطمه” به يې ښکلوله او همداراز “فاطمه” به چې پېغمبراکرم ته راتله؛نو ورته به جګېده او د هغې لاس يې ښکلاوه او پر خپل ځاى يې کېنوله . (د ابي داوود سنن ٤\٣٥٥)

ðپېغمبراکرم د زرو يوه غاړه کۍ “امامة” (د ابي العاص بن ربيع لور او د پېغمبر اکرم لمسۍ ته  ور تر غاړې کړه  . ( دابن سعد طبقات : ٨\٤٠ )

ðخداى پر نجونو تر هلکانو مهربان دى،څوک چې لور يا له خپلو محارمو کومه ښځه خوشحاله کړي؛نو پاک خداى به يې په جنت کې خوشحاله کړي . ( وسايل  ١٥\١٠٤)

ðڅوك چې يوه يا دوه لوڼې لري،د قيامت پر ورځ به له ماسره ددې دوو ګوتو په څېر وي (دواړې ګوتې يې غبرګې کړې ) . ( مستدرك : ۱۵\ ۱۱۶)

ðغوره اولاد مو سترمنې لوڼې دي،څوك چې يوه لور لري؛نو پاک خداى دا ورته د جهنم د اور ډال ګرځوي او څوك چې دوې لوڼې لري؛نو پاک خداى يې له امله جنت ته ننباسي او څوك چې درې لوڼې يا درې خويندې لري؛نو صدقه او جهاد پرې نه كېږي .(روضة الواعظين : ۲\ ۲۶۹)

ðغوره اولاد مهربانه لور ده،چې د انسان ملګرې ده او د ناروغۍ پر مهال غمخوره او همېشه د خير كار ته چمتو ده . (مستدرك الوسايل  ۱۵\ ۱۱۵)

ðڅوك چې يوه لور لري؛نو هغه ته تر زرو حجونو،زرو جهادونو، زر قربانيو او د زرو مېلمنو تر پالنې غوره ده . (پورته منبع  ۱۵\۱۱۵)

ðڅوک چې خپله لور ښه وروزي او ديني دندې ښه ورزده کړي او له شتو الهي لورنو يې برخمنه کړي دا چار ورته شرف او پرده ده،چې د دوزخ له اوره يې ژغوري . ( کنزالمعال : ٤٥٣٩١حديث )

ðکورنۍ ته د ډالۍ ورکړه؛لکه له بېوزليو سره،چې مرسته کول وي او په وېش کې يې لومړى له لوڼو پيل کړئ او بيا يې زامنوته . (بحار: ١٠١ \٩٤)

 

د جګړې د بنديانو ملاتړ

 ð غوره خيرات هغه دى،چې هغه بندي ته ورکړ شي،چې سترګې يې له لوږې ټېغې وتلې وي . (جامع احاديث ٨ \٣٨٦ )

ðخيرات ورکړئ،چې لس ځانګړنې لري :

(الف) د پلارمړيو د پالنې توفيق .(ب) پر بنديانو لورنه . (المواعظ العدديه : ٢٢٠ مخ )

ðغوره صدقه د ژبې صدقه ده،چې بندي پرې ازاد شي او وينه پرې خوندي شي .( کنزالعمال  ٣\٢٧)

ðڅوک چې بندي ته خواړه ورکړي؛د خداى د رحمت تر سيورې لاندې به وي .(المواعظ العدديه : ٧٥مخ )

ðخلکو! د عبدالمطلب اولاده مو چې بندي ونيوه؛نو مه يې وژنئ؛ځکه په زور يې جګړې ته راوستى دى . ( مستدرک  ٢\٢٥١)

 

ښځه

ðغواړې چې له ډېرې غوره خزانې دې خبر کړم ؟ (چې داده) پرهېزګاره ښځه،چې ورته ګورې (؛نو) خوشحالېږې او د خپل مېړه خبره مني او پسې شا يې امانتونه وساتي .  (نهج  الفصاحة ٤٥٦ ح)

ðمېړه پالنه د ښه ښځې جهاد دى . ( مستدرك الوسايل ۸\۸)

ðغوره مېړه هغه دى،چې پر خپلو ځاني غوښتنو برلاسى وي . (مستدرک: مخ ٣٤٥)

ðکه “علي” پيدا شوى نه واى [؛نو) دفاطمې سيال به نه و. (کنوزالحقائق: مخ ١٤٢)

ðله کومې ښځې،چې خپل مېړه راضي وي او پر همدې حال مړه شي ؛نو جنت ته به ځي . ( ترمذي)

ðمؤمنې ته خياطي او ګنډل څه ښه بوختيا ده . (مستدرك الوسايل ۱۳\۱۸۶)

ðپه حقيقت كې ښځه د ګوډۍ په څېر ده،چې که څوك يې لري،نه ښايي  چې ضايع يې كړي . ( الكافي ۵\۵۱۰)

ð(په دنيا پالنه كې) په ښځې پسې تلل د پښېمانۍ لامل دى .( الكافي  ۵\۵۱۷)

ðڅنګه څوك خپله مېرمن وهي،حال داچې غواړي بيا يې په غېږ كې ونيسي . ( الكافي  ۵\۵۰۹ )

ðمسلمان نارينه ته ښه روزي داده : داسې مېرمن ولري،چې ورته ګوري، پرې خوشحالېږي او د مېړه په غيابو كې يې شتمني ساتي، خيانت ورسره نه كوي او خبره يې مني . (الكافي ۵\ ۳۲۷ )

 ðښکلې ښځه،چې په ناوړه كوركې لويه شوې وي،ترې ډډه وکړئ . ( مستدرك الوسايل ۱۴\۱۶۴)

ðښځه چې د مېړه بې اجازې له كوره دباندې ووځي؛نو تر بېرته راتلو پورې يې پر مېړه لګښت لازم نه دى . ( الكافي : ۵\ ۵۱۴)

ðڅوك چې له كومې ښځې سره  د هغې د ښكلا له امله واده كوي؛نو يوازې د ښكلا خير يې ور رسي او كه يوازې د شتمنۍ له امله ورسره واده كړي؛نو پاک خداى يې همدا ښځه ډډه او تكيه كوي؛نو څومره به ښه وي،چې په دينوالې ښځې پسې شئ . ( تهذيب الاحكام ۷\۳۹۹)

ðروژه تي،چې د ښځې بدن ته داسې وګوري،چې له جامو يې د بدن اندامونه او هډوكي وويني؛نو روژه يې ماته شوې ده .( وسايل الشيعة  ۱۰\۱۲۹)

ðښځه او (د نارينه بې لارۍ ته) غوسه د ابليس ښه سرتېري دي.(الكافي ۵\۵۱۵)

ðښځه چې د نفاس پر مهال ومري،د قيامت پر ورځ يې “ګناه ليك” نه پرانستل كېږي (او بې حسابه جنت ته ځي) . (مستدرك الوسايل ۲\۵۰)

ðنارينه،چې ځان د ښځو په څېر او چې ښځه ځان د نارينه وو په څېر كوي؛ خداى پرې لعنت او پرښتې پرې امين وايي . (مستدرك الوسايل ۵\ ۲۴۰)

 

د ښځمنوملاتړ

ðد دووکمزوريو د حق له لتاړلو مو ژغورم :

( الف ) پلارمړى ( ب) ښځې . ( نهج الفصاحه : ١٩٣مخ )

ðد خپلې ښځې خدمت کول يو ډول احسان دى .(نهج الفصاحه : ٣٠١مخ )

ðپه تاسې کې غوره هغه دي،چې خپلو ښځو ته غوره دي . (نهج الفصاحه : ٣١١مخ )

ðپه تاسې کې غوره هغه دى،چې خپلو ښځو او لوڼو،ته غوره وي . (نهج الفصاحه : ٣١٨)

ðد ښځو په اړه له خدايه وډارشئ؛ځکه هغوى درسره د بنديانو ( په توګه) دي .(پورته سرچينه : ٩ مخ )

ðپر مېړه د ښځې حق دى،چې کله خواړه خوري؛پر هغې يې هم وخوري او چې ځان ته جامې ګنډي،هغې ته يې هم وګنډي . پرمخ دې يې نه وهي او يوازې له کوره وتلو يې منع کولاى شي .(نهج الفصاحه: ٢٩٢)

ðپه تاسې کې ډېر غوره هغه دى،چې خپلې کورنۍ ته غوره وي . زه له تاسې ټولو خپلې کورنۍ ته غوره يم . عزتمن د ښځو درناوى کوي او بې عزته وګړي، ښځې سپکوي .( نهج الفصاحه : ٣١٨)

ðخداى او استازى(ص) يې له هغه بېزاره دي،چې خپله ښځه دومره وځوروي،چې ښځه ورته خپل حقوق وبښي او طلاق ترې واخلي. (بحارالانوار : ٧٣ \٣٦٦)

ðکور ته چې ننوځئ ؛نو پر مېرمن مو سلام واچوئ او که (ښځه) نه لرئ؛ نو ووايئ :”السلام علينا من ربنا”؛يعنې پر موږ دې د پالونکي له لوري سلام وي . ( تحف العقول : ١١٥)

ðخداى ټول ګناهونه بښي؛خو د ښځو مهر،چې ور نه کړئ؛دا ګناه نه بښي . (مستدرک الوسايل : ٢\٥٠٨)

ðاولادونو ته مو د ډالۍ په ورکړه کې له مساواته کار واخلئ،که وغواړم،چې څوک غوره وګڼم ؛نو هرومرو مې ښځې غوره ګڼلې .( نهج الفصاحه : ٣٦٥مخ .)

ðڅوک چې د خپلې مېرمنې مهر ور نه کړي؛نو د خداى پر وړاندې “زنا کار” دى .(عقاب الاعمال : ٤٦مخ )

ðخداى ټول ګناهونه بښي؛خو ددوو تنو نه : ( ١) چې د کارګر باړه او مزدوري ورنه کړي.(٢) چې د خپلې ښځې مهر ور نه کړي .( بحارالانوار : ١٠٣مخ )

ð حضرت جبرئيل راته د ښځو په اړه تل سپارښتنه کوله،تردې چې ګومان مې وکړ،چې بې له “زنا” ورته طلاق نه شو ورکولاى .( بحار ١٠٠ \ ٢٥٣)

ðمېړه چې خپله مېرمن په زنا تورنه کړي؛نو ټولې کړنې يې داسې ضايع  کېږى؛لکه مار چې خپل پوټکى وباسي او د بدن د وېښتو هومره ګناهونه ورته ليکل کېږي .(مستدرک الوسايل  ٣\١٦٦)

ðغوره اولاد مو لوڼې دي . ( بحار ١٠١\ ٩١)

ðتل جبرئيل راته د ښځو سپارښتنه کوله،تردې چې ګومان مې وکړ، چې د طلاق وړ نه دي .( وافي : ١\٩٦) 

ðخداى درته د ښځو په اړه د نېکۍ سپارښتنه کوي؛ځکه هغوى ستاسې  ميندې،لو ڼي اوتوړۍ  دي .( نهج الفصاحه : ١٠٩)

ðخداى تر نارينه وو پر ښځو ډېر لورين دى او سړى چې د خپلوانو له يوې ښځې سره نېکي وکړي او خوشحاله يې کړي؛خداى به يې د قيامت پر ورځ خوشحاله کړي . (فروع کافي ٦\٦)

ðخلکو! ښځې پر تاسې حق لري او تاسې پر هغوى؛حق مو دا دى،چې څوک کور ته راننباسي،خپل لمن ناپاکه نه کړي او که عفت يې له لاسه ورکړ؛نو خداى حق درکړى،چې زور پرې راولئ ؛بستره ترې بېله کړئ (او که دا نرم غبرګون ګټور نه شو؛نو په وهلو يې تنبيه کړئ؛خو نه دردناکه،که  ويې منله اوغاړه يې کېښوه؛نو عادي خواړه او اغوستن يې ستاسې پر غاړې دي . ښځې ستاسې په لاسو کې د خداى امانت دى . د قرآن په حکم مو ترې خوند اخستل پر ځان حلال کړي دي؛نوپه اړه يې له خدايه وډار شئ او په باب يې زما سپارښتنه ومنئ . (تحف العقول : ٣٣  مخ )

ðڅوک چې خپله مېرمن دومره وځوروي،چې ښځه خپل مالي حقوق ورپرېږدي (اوطلاق واخلي)؛نوخداى دې سړي ته يوازې د دوزخ په اور راضي کېږي؛ځکه لکه څنګه چې خداى د پلار مړيو په باب غوسه کېږي، د ښځوپه اړه هم غوسه کېږي . ( بحار  ٧٢\ ٣٦٥)

 

له دوه ځانو(اميندوارو) ښځوملاتړ

ðښځې ته د”دوه ځانۍ”له پيله د ماشوم د تي ورکولو تر وروستۍ شېبې پورې د هغه په څېر اجر دى،چې د خداى په لار کې پاسوالي کوي او که ښځه په دې موده کې مړه شي؛نو اجر يې د “شهيد” اجر دى.(بحارالانوار  ١٠١ \٩٧)

ð (دوه ځانوښځو!)خوشحاله نه ياست،له تاسې يوه،چې له خپل مېړه دوه ځانې وي او مېړه ترې خوښ وي؛د هغه ثواب ولري،چې د ورځې روژه وي او د شپې پر عبادت بوخت وي او چې ماشوم يې وزېږېد؛نو هر څاڅکى شيدې،چې يې له تيونو راوځي او هر ځل،چې يې تيونه رودل کېږي؛ ورته ثواب دى او که د خپل ماشوم لپاره د شپې ويښه وي؛نو اجر يې د هغه په څېر دى،چې د خداى په لار کې يې اويا زره بندګان ازاد کړي وي . (نهج الفصاحه : ١٠٥)

ðپر هغه خداى قسم،چې زه يې په حقه زېرى ورکوونکى او وېرونکى استازى رالېږلى يم!کومه ښځه،چې له خپل مېړه دوه ځانې شي،د زوکړې تر وخته د خداى د رحمت تر سيورې لاندې وي او د زېږون  د درد پر وړاندې د خداى په لار کې د بنده د ازادولو (هومره) اجر لري او د شيدو ورکولو پر مهال په هر ځل تي رودلو،خداى ورته د قيامت پر ورځ ځلانده رڼا ورډالۍ کوي،چې ټول خلک ورته حيران وي او د شيدو ورکولو پر مهال د هغه په څېر وي،چې د ورځې روژه او د شپې پر عبادت بوخت وي . ( مستدرک  ٢\٦٢٣)

ðد مسلمان نارينه د نېکمرغۍ لاملونه دادي :

 ( ١) صالحه ښځه ( ٢) لوى کور ( ٣) د سپرلۍ ښه وسيله ( ٤) صالح اولاد ( ٥) او د ښځې بختورتوب په دې کې دى،چې لومړى اولاد يې لور وي .( بحارالانوار : ١٠١ \ ٩٨ )

 

د کوچنيانو ملاتړ

ðاولاد په لومړيو اووکلو کې (د موروپلار) ښاغلي دى.په دويمو اووکلو کې (د موروپلار) مطيع او منونکي دى اوپه درېمو اوو کلو کې (د موروپلار) وزير او ورسره د مشورې لورى دى .(مکارم الاخلاق : ١١٥)

ðد پلرونو له لاسه د آخرې زمانې پر اولادونو افسوس ! وويل شو: رسول الله! مطلب مو مشرک پلرونه دي؟و يې ويل: نه؛بلکې مؤمن پلرونه دي ،چې خپلو اولادونو ته ديني فرايض نه ورښيي او که هغوى په خپله ددين احکام زده کوي .مخه يې نيسي (او حال داچې) که څه دنيوي ګټه ورته راوړي،ترې خوشحاله وي .زه له هغوى بېزاره يم او هغوى له ما .( مستدرک الوسايل : ٢\٦٢٥)

ðپېغمبراکرم يو سړى وليد،چې دوه کوچني اولادونه ورسره ول؛يو يې ښکل کړ او بل نه . پېغمبر اکرم د سړي پردې ناروا چار نيوکه وکړه او ورته يې وويل: ولې دې له اولاد سره يوشان چلن نه کوې . (مکارم الاخلاق  : ١١٣ مخ )

ðخداى دې پر هغه ولورېږي،چې په نېکۍ کې له خپل اولاد سره لاسنيوى وکړي . وپوښتل شو : څنګه؟ آنحضرت ورته څلور لارښوونې وکړئ . ( ١) د کوچني،چې څه له وسې پوره وي او و يې کړي؛نو ترې ويې مني .( ٢) د کوچني له وسې،چې څه پوره نه وي ،ترې ونه غواړي .( ٣) ګناه اوسر غړونې ته يې اړ نه کړي .(المحجة البيضاء  ٣\٤٤٣)

ðاولادونو ته مو لا مبو او غشي ويشتنه او ښځو ته د تار ورېشل ورزده کړئ . ( نهج الفصاحه : ٤١٣)

ðڅوک چې خپل اولاد ښکل کړي،خداى ورته نېکي ورکوي،څوک چې خپل اولاد خوشحاله کړي؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ خوشحاله کړي او څوک چې خپل اولاد ته قرآن ورزده کړي؛نو په قيامت کې اولاد موروپلارته غږ کوي او داسې جامې ورکوي،چې له رڼا يې د جنتيانو بدنونه ښکاري . ( کافي : ٦\٤٩ )

ðاولادونه مو په درېو ځانګړنو وروزئ : له خپلو انبياوو او له اهلبيتو سره يې پر دوستۍ او د  قرآن لوستل . ( الجامع الصغير: ١\ ٥١٩)

ðکه سړى خپل اولاد وروزي،تر دې ورته غوره ده،چې د ورځې “يونيم کيلو” خيرات ورکړي .( مستدرک  ٢\٦٢٥)

ðد خپلو اولادونو احترام وکړئ او په ادب او ښه دود ورسره چلن وکړئ،چې ګناهونه مو وبښل شي . ( وسايل ١٥\١٩٥)

ðيوسړى پېغمبراکرم ته راغى او و يې ويل : کله مې هم کوچنى نه دى  ښکل کړى،چې بېرته ولاړ؛نو پېغمبراکرم وويل: زما په نظر دا سړى دوزخي دى . ( فروع کافي ٦\٥٠ )

ðڅوک چې خپل کوچنى اولاد خوشحاله کړي،خداى د قيامت پر ورځ د هغه تر خپلې خوښې پورې خوشحالوي . (ميزان الحکمه : ١٠ \ ٦٦٩)

ðڅوک چې د مور او اولاد ترمنځ يې بېلتون راولي،خداى يې د قيامت پر ورځ د هغه او دوستانو ترمنځ بېلتون راولي . (نهج الفصاحه : ٥٧٥مخ )

 

واده، سم کوروالى او د اولاد پر زوکړه اغېزمن لاملونه

ðخلکو! خداى تاسې له ( ٢٤) څيزونو منع کړي ياست :(چې يو يې) مېړه دې له خپلې مېرمن سره د مياشتيني عادت پرمهال کوروالى نه کوي؛ځکه که ښځه دوه ځانې شي؛نو ماشوم به په جذام يا پيس اخته وي،چې يوازې ځان به پړ ګنئ. ( بحار ١٠٠ \٢٨٣)  

ðله نږدې خپلوانو سره واده مه کوئ؛ځکه اولاد به مو کمزورى وي . (المحجة البيضاء : ٣\ ٩٤)

ðد پېغمبر اکرم دا نه خوښېده،چې سړى تر محتلمېدو وروسته(او تر غسل مخکې) له خپلې مېرمن سره کوروالى وکړي؛ځکه شونې ده،چې اولاد يې لېونى وي؛نو يوازې ځان به پړ ګڼي.(وسايل :١٤ \٩٩)

ðماشوم ته د مور شيدې غوره خواړه دي . (وسايل ١٥\١٨٨ )

ðبهي وخورئ او يو بل ته يې ډالۍ ورکړئ؛ځکه سترګې رڼوي او په زړونوکې مينه پيدا کوي او پر دوه ځانو ښځو بهي وخورئ،چې ماشوم ښکلى کوي او په بل حديث کې راغلي چې: ماشوم نېک خويه کوي .( بحار ٦٣\١٧٦)

ðنه ښايي څوک د هرې مياشتې پر لومړۍ شپه،نيمايي شپه او وروستى  شپه له خپلې مېرمن سره کوروالى وکړي ؛ځکه دا خطر شته چې دهغې شپې اولاد ناقص العقل وي . ( وسايل  ١٤ \٩٠ )

ðغرمنى چې دې وخوړه او په خېټه موړ وې؛نو له مېرمن سره دې کوروالى مه کوه؛ځکه که اولاد دې وشي ؛نو لوڅ لغړ به وي .له خپلې مېرمن سره دې د لوى اختر پر شپه کوروالى مه کوه؛ځکه که اولاد دې ترې وشي ؛نو څلور ګوتى يا شپږګوتى به وي .

ðانسان ته نه ښايي د کوروالي پر مهال د خپلې مېرمنې عورت ته وګوري؛ځکه شونې ده د ماشوم د ړوندوالي لامل شي .(وسايل  ١٤ \٨٥)

ðڅوک دې د کور والي پر مهال خبرې نه کوي؛ځکه شونې ده،چې اولاد يې ګونګ اوکوڼ شي . ( وسايل  ١٤ \٨٧ )

ðله مېرمن سره دې په ولاړه کوروالى مه کوه؛ځکه دا د څارويو چار دى او که اولاد دې وشي؛نو شونې ده،چې په توشک به متيازې کوي.( بحار : ١٠٠ \٢٨١)

ðکه اولاد دې وزېږېد؛نو په ښي غوږکې ورته “اذان” او په کيڼ کې ورته “اقامه”ووايه،چې دشيطان له زيانه خوندي وي .(تحف العقوال :١٣ مخ )

ðماشوم مو د تي ورکولو لپاره کم عقلې او هغې ښځې ته مه ورکوئ چې د سترګو ناروغي لري؛ځکه شيدې سرايت کوي.(وسايل : ١٥ \١٨٨ )                                                                                                       

ðپه کوروالي کې د خپلې مېرمنې شرمځای ته کتل مکروه دي؛ځکه د اولاد د ړندېدو لاملېږي . په کوروالي کې خبرې کول مکروه دي؛ ځکه د اولاد  د ګونګېدو لاملېږي او همداراز تر اسمان لاندې (ازاده فضا) کوروالى هم مکروه دى . ( وسايل الشيعه ٢٠ \١٢٢)

ðد تازه او وچو انځرو خوړل په انسان کې د کوروالي وس زياتوي . (مستدرک الوسايل ١٦\٤٠٤)

ðد سر د وېښتانو ږومنځول “وبا” له منځه وړي، روزي زياتوي او د ډېر کوروالي لاملېږي .( ثواب الاعمال : ٢٢مخ )

ðښه بوى زړه غښتلى کوي او د ډېر کوروالي لاملېږي . (قرب الاسناد : ٧٨مخ )

ðله خپلې مېرمنې سره د مياشتې پر لومړى،په پينځلسمه او د مياشتې پر وروستۍ شپه کوروالى مه کوه او که څوک داسې وکړي؛ نو شونې ده اولاد يې لېونى شي.( الکافي ٥\٤٩٩)

ðعلي! خپله ناوې دې،چې کور ته راوسته او څنګ ته دې کېناسته ؛ نو پڼې يې راوباسه او پښې يې ومينځه او دا اوبه يې د کور له وره بهر تويې کړه؛که داسې وکړې؛نو خداى به ستا له کوره د بېوزلۍ اويا زره لاملونه لرې کړي،هغه اويا زره څيزونه به ستا کورته راننباسي،چې د برکت لاملېږي او اويا پرښتې رالېږي،چې د ناوې پر سر دې والوځي، تردې چې د کور هر کونج ته دې برکت ورسي او ناوې دې،څو په دې کور کې وي، له لېونتوب او جذامه خوندي وي  او په لومړۍ اونۍ کې دې ناوې د لبنياتو، سرکې، دڼيا او تروو مڼو له خوړو منع کړه. حضرت علي پېغمبر(ص) ددې منع په اړه وپوښت؟ رسول اکرم ورته وويل : ځکه دا څلور څيزونه زيلانځ (رحم) شنډ اوسړوي او کومه ښځه،چې بچي رانه وړي،هغه پوزى ترې غوره دى،چې د کوټې په يوه کونج کې پروت وي . علي ( ک) وپوښتل : ولې دې له سرکې خوړو منع کړم ؟ ورته يې وويل : ځکه د سرکې په خوراک حيض پوره نه پاکېږي او دڼيا په بدن کې حيض رالمسوي او زېږون سختوي او تروه مڼه حيض له منځه وړي او د ناروغۍ لاملېږي .علي ! له مېرمن سره دې د مياشتې په سر، منځ او پاى کې کوروالى مه کوه؛ځکه د ښځې او اولاد په لېونتوب اوجذامېدو کې چټکتيا راولي.علي! له مېرمن سره دې تر ماسپښين وروسته کوروالى مه کوه؛ځکه پيدا کېدونکى اولاد يې بېړنى (تلوار ګرندى) کېږي او د شيطان بېړنى انسان خوښېږي . علي! له مېرمن سره دې د کوروالي پر وخت خبرې مه کوه؛ځکه که اولاد دې وشي؛نوګونګېږي او هېڅوک دې د کوروالي پر وخت د خپلې مېرمن شرمځي ته نه ګوري او بايد خپلې سترګې ښکته واچوي؛ځکه شرمځي ته کتنه د اولاد د ړوندوالي لامل ګرځي . علي! هيڅ وخت د بلې ښځې په شهوت له خپلې مېرمن سره کوروالى مه کوه؛ځکه که اولاد رامنځ ته شي؛نو احتمال لري چې نرښځى يا احمقه ښځه شي .علي! که څوک له خپلې مېرمنې سره د جنابت پر حال په بستره کې پروت وي؛نو قرآن دې نه لولي؛ځکه له دې وېرېږم،چې له اسمانه پرې اور راښکته شي او ويې سوځوي (شيخ صدوق په دې اړه وايي :احتمال لري دسجدې آيتونولوستل وي؛ نه د نورو) . علي ! له مېرمن سره په داسې حال کې کوروالى کوه،چې ستا او يا د هغې پر تن جامې وي او دواړه تر پردې لاندې لوڅ لغړ مه وسئ؛ځکه ډېر شهوت تر منځ مو د دښمنۍ لاملېږي او طلاق ته مو راکاږي . علي! له مېرمن سره دې په ولاړه کوروالى مه کوه؛ځکه دا د”خره”کار دى اوکه اولاد دې وشي؛نو تر مرګه به بېوزلى وي .علي ! له مېرمن سره دې د اذان او اقامې ترمنځ کوروالى مه کوه ؛ځکه که اولاد دې وشي د وينو د تويولو حرص به ورسره وي . علي ! مېرمن دې چې دوه ځانې او اميندواره شوه ؛نو بې اودسه ورسره کورالى مه کوه ؛ځکه اولاد به دې تنګ نظرى او کنجوس وي . علي! له مېرمن سره دې د”شعبان” په نيمايي کې کوروالى مه کوه؛ځکه اولاد به دې بدبين،بدرنګ اوپرمخ به يې رټې وي .علي! له مېرمن سره دې د”شعبان” په دوو وروستيو ورځوکې کوروالى مه کوه؛ځکه اولاد به دې باجګير او د ظالمانو ملاتړ به وي او څوک به يې له لاسه يې هلاک شي .علي! له مېرمن سره دې پر بام کوروالى مه کوه؛ځکه اولاد به دې منافق،رياکار او بدعتي وي . علي له مېرمنې سره دې دسفر پر شپه کوروالى مه کوه ؛ځکه که اولاد په دې خپله شتمني په ناسمه لار کې لګوي بيا رسول اکرم دا آيت ولوست : ((په رښتيا اسراف کوونکي دشيطان وروڼه دي .))علي ! کله چې د درې شواروزو لپاره پر سفر ځې ؛نو له مېرمن سره دې کوروالى مه کوه؛ځکه اولاد به دې ستا پر ضد د هر ظالم مرستندوى وي . علي! له مېرمن سره دې د دوشنبې پر ورځ کوروالى کوه؛ځکه اولاد به دې د خداى د کتاب حافظ شي او د خداى په مقدارتو به راضي کېږي .علي ! که له مېرمن سره دې دسه شنې پر ورځ کوروالى وکړ؛نو اولاد به دې د (( لا اله – الا الله اومحمد رسول الله)) تر شهادت وروسته،خداى شهادت روزي کړي،په مشرکانو به يې ونه ځوروي او خداى به هغه خوږبويه،خوږ ژبى،زړه سواند اوسخي کړي،غيبت به نه کوي،دروغ به نه وايي او تورونه به نه تپي . علي! که له مېرمن سره دې د پنج شنبې پر شپه کوروالى وکړ او اولاد دې وشي؛نو “واکمن” يا “عالم”کېږي او که د پنجشنبې پر ماسپښين ورسره کوروالى وکړې او اولاد دې وشي؛نو تر زړښت پورې ورته شيطان نه نږدې کېږي او پالندوى کېږي او خداى به يې د دين او دنيا سلامتي ور پر برخه کړي .علي! که له مېرمن سره دې د جمعې پر شپه کوروالى وکړ اولاد  به دې مشهور او عالم کېږي او که پر همدې شپه تر ماسخوتن وروسته کوروالى وکړې اولا به د دې که خداى وغواړي؛نابغه شي .علي! له مېرمن سره دې د شپې په لومړيو کې کوروالى مه کوه اولاد به دې شونې ده،چې کوډګر شي او دنيا پر آخرت غوره وګڼي . علي ! دا وصيت مې ياد لره؛لکه څنګه چې جبرئيل راته ويلي و او ياد کړى مې دى . (الامالي للصدوق : ٥٦٦مخ ، ٩٤ مجلس )                  

 

ايمان

ðد اسلام بنسټ پر پينځو ستنو درول شوى دى : ( ١) پردې حقيقت شاهدي ورکول،چې بې له “الله” بل خداى او معبود نشته؛ محمد(ص) يې بنده او استازى دى . ( ٢) لموانځ کول . ( ٣) د زکات ورکول . ( ٤) د خداى د کور حج کول .( ٥) د رمضان د مياشتې روژه نيول . ( صحيح بخاري –  صحيح مسلم)

ðايمان څه له پاسه اويا څانګې لري،چې تر ټولو غوره يې د ((لا اله – الا الله )) ويل او ټيټه يې له لارې د خنډونو لرې کول دي او “حيا” د “ايمان” يوه څانګه ده . ( صحيح  بخاري . صحيح مسلم )

ðپېغمبراکرم د ايمان په اړه وپوښتل شو؟ ويې ويل : هله مؤمن يې ، چې په خپلو ښو کړنودرته خوشحالي او په ناوړو درته د رنځ اوخپګان پيداشي . (د امام احمد حنبل مسند)

ðهله به مؤمن يې،چې تر پلار اولاد او نورو خلکو له ماسره ډېره مينه ولرې . (بخار- مسلم )

ðهله به مؤمن يې،چې ځاني غوښتنې دې زما په لارښوونو پسې ولاړې شي . (بغوى في شرح السنة . مشکات)

ðهله به مؤمن يې،څه چې ځان ته خوښوې؛نورو ته يې هم خوښ کړې . ( بخاري – مسلم )

ðپه ايمان راوړو به جنت ته ولاړ شئ او هله به ايمانوال شئ،چې يو له بل سره مينه ولرئ او مينه په خپلمنځي سلام دودولو ډېرېږي . ( مسلم )

ðمسلمان هغه دى،چې مسلمانان يې د لاس او ژبې له ازاره خوندي وي او مؤمن هغه دى،چې خلک ترې د خپل ځان ومال په اړه خوندېينه احساس کړي . (ترمذي – نسايي)

ðپر خداى قسم! مؤمن نه دى (درې ځل يې وويل)،چې ګاونډى ځوروي . (صحيح بخاري)

ðپه مؤمن بنده کې چې پينځه ځانګړنې وي؛نو ايمان يې بشپړېږي :

 (١) پرخداى توکل . ( ٢) خداى ته د چارو ورسپارل .( ٣) د خداى حکم ته غاړه اېښوول . ( ٤) په الهي تقدير رضا او ( ٥) او د خداى د رالېږلو کړاوونو پر وړاندې زغم؛ځکه څوک چې د خداى لپاره دوستي او دښمني او د خداى په لار کې بخشش وکړي او د خداى لپاره لاس واخلي؛نو ايمان يې بشپړېږي .( اعلام  الدين : ٣٣٤)

ðد يو چا د اسلام ښکلا او کمال په دې کې دى،چې د چټي او بې معنا ويناوو او کړنو يې لاس اخستى وي .(ابن ماجه–ترمذي او بيهقي)

ðچاچې بدکار وليد؛نو په لاس دې يې مخنيوى وکړي؛که وسه يې نه وه؛نو پر ژبه يې سم کړي او که دا يې هم له وسې پوره نه و؛نو په زړه کې دې ورسره کرکه  ولري،چې دا (د زړه کرکه) د ايمان ډېر اوچته مرتبه ده. (صحيح مسلم)

ðڅوک چې امانت ساتى نه وي،مؤمن نه دى اوڅوک چې ولاړ نه وي ؛ نو دين نه لري . (بيهقي)

 

له ظالم سره مرسته

ðهغه به له اسلامه وتلى وي ،چې پوهېږې له ظالم سره مرسته کوي . (بيهقي)

وفا

ðدين نصيحت (اخلاق ،زړه سوى او وفا) دى . و مو پوښت،چې له چاسره زړه سوى او وفا ؟ راته يې وويل : له الله تعالى ، له استازي سره،د مسلمانانوله مشرانو او د ټولو مسلمانانو له پرګنوسره .(صحيح مسلم )

 

الهی تقدیر

ðرقيه او تعويذ،دارو، درمل او هغه چارې چې ستونزې او کړاوونه پرې لرې کېږى ؛دا ټول په الهي تقديرکې شمېرل کېږي .(احمدترمذي – ابن ماجه )

 

تر مړينې وروسته ژوند

ðزه اوقيامت ددې دوو ګوتو په څېر (يوله بل سره نږدې) يو. ( صحيح بخاري – صحيح مسلم)

ðپه قيامت کې به د مؤمنانو قيام (اوپاڅون) خورا اسان وي ان تردې ، چې ديو فرض لمانځه د وخت هومره به لنډ وي . (بيهقي )

ðخداى د قيامت پر ورځ درېو تنو ته نه ګوري او ورته دردونکى عذاب دى . ( ١) بوډا  زناکار ( ٢) دروغجن واکمن (٣) کبرجن شتمن . ( مسلم )

ðد قيامت پر ورځ به پېغمبران،اسلامي عالمان او شهيدان شفاعت کوي . ( ابن ماجه)  

ðپه قيامت کې به بني آدم لا له ځايه پښه نه وي پورته کړى،چې د پينځوڅيزنو په اړه به وپوښتل شي :

 (١)خپل ژوند دې په کومه لار کې تېرکړى دى .(٢) ځواني دې په کومو بوختياووکې لګولې وه . (٣) شتمني دې له کومه او څنګه لاس ته راوړې وه . (٤) او په کومولاروکې دې لګولې وه  او (٥) پر خپلې پوهې دې څنګه عمل کړى و. (ترمذي)

 

دوه مخي

ðدوه مخي د قيامت پر ورځ ډېر ناوړه دي،چې ځينو ته يو ډول او نورو ته بل ډول خبرې کوي .(صحيح بخاري – صحيح مسلم )

ðد قيامت پر ورځ د دوه مخو په خولو کې دوه اورينې ژبې وي . (ابوداوود )

ðلکه څنګه چې اوبه د ونې د ودې لامل دى،دغسې څلور څيزونه په زړه کې نفاق راټوکوي او فاسدوى يې : ( ١)اپلتې او چټيات ( ٢) خپلسري او بدلمني (٣) (د ظالم) واکمن خدمت کول او (٤) تفريحي ښکار . (الخصال : ١\٢٢٧)

ðغيرت کول،د ايمان (نښه) ده او چټيات د نفاق .(بحارالانوار٦٨\ ٣٤٢)

ðخداى تعالى حضرت علي (ک) د ايمان او نفاق ترمنځ نښه ګرځولى؛ نو د چاچې خوښېږي،مؤمن به وي او څوک چې ورسره دښمني  کوي، منافق به وي .(بشارة المصطفي :٣٣مخ )

ðڅوک چې خداى ډېر يادوي؛نو د خداى خوښېږي؛نو له “اور” او “نفاقه” ورته د ژغورنې دوه برائته ليکل کېږي . (الکافي ٢\ ٤٩٩)

ðبدن چې تر زړه ډېره عاجزي وښيي؛نو زموږ پر وړاندې دوه مخي او نفاق دى .( الکافي ٢\ ٣٩٦)

ðله موږ (اهل البيتو) سره مينه،ايمان او دښمني راسره نفاق دى. (کفاية الاثر : ٩٨ مخ )

ðد منافق مثال د نوې رسېدلې کجورې په څېر دى، چې خاوند يې په خپل کور جوړونه کې ترې ګټه اخلي؛نو په کوم ځای کې،چې غواړي يې،سمه نه درېږي؛نو ځاى يې بدلوي؛خو بيا هم سمه نه درېږي او په پاى کې يې سوځوي . (الکافي ٢\٣٩٦)

ðعلي! څوک چې درسره د قيامت تر ورځې پورې مينه لري؛نو مؤمن دى او څوک چې درسره په زړه کې  کينه لري؛نو منافق دى.(د فرات الکوفي تفسير : ٣٠٩مخ )

ðمؤمن د خپلې کورنۍ په خوښه خواړه خوري او د منافق کورنۍ يې د منافق په خوښه خوري .(مفتاح الفلاح : ١٧٥)

ðمؤمن لږ خور او منافق ډېرخور دى . (وسايل : ٢٤\٢٠٤) 

ðمؤمن لږې خبرې کوي او ډېر کار او منافق ډېرې خبرې کوى او کم عقله وي .( تحف العقول ١\٢٢١)

ðپه منافق کې دوه ځانګړنې نه ځايېږي : اسلامپوهنه او د مخ ظاهري ښکلا يې . ( تفسيرالقمي ١ \٢٢١)

ðد منافق څرګنده نښه له علي (ک) سره دښمني ده . (ترمذي ٥\٢٩٨ او  ذخايرا لعقبى : ٩١مخ )

ðعلي د مؤمن به درسره مينه وي او د منافق به درسره دښمني . ( د امام احمد حنبل مند : ١\٨٤) صحيح مسلم : ١\٦٠) سنن ابن ماجه : ١\٤٢)

ðزه مې پر خپل امت له مؤمن او مشرکه باک نه لرم؛ځکه خداى مؤمن د خپل ايمان له امله منع کوي او مشرک هم د خپل شرک له امله  خواروي؛ خو زه  پر تاسې له هغه دوه مخي منافقه ډارېږم ،چې په زړه منافق او پر ژبه پوه دى،چې کوم څيزونه وايي،ښه مو ايسي او چې چارې کوي،ښه مو نه ايسي.( بحارالانوار ٣٣\٥٨٨)

 

اسانخوښی – راحت طلبي

ðله اسانخوښۍ- راحت طلبۍ او چړچو ځان وژغوره؛ځکه د خداى ځانګړي بندګان دغسې نه دي .(د امام احمد حنبل مسند)

 

 

یقین او زهد

ðد امت لومړنى خير او نېکي مې “يقين” او”زهد” دى او لومړنۍ ويجاړي يې بخل او د دنيا حرص دى .(بيهقي)

ðزهد دې ته نه وايي،چې حلال څيزونه پر ځان حرام کړې او خپله شتمني ضايع کړې؛بلکې  د زهد اصلي کچه داده،چې پر هغه څه دې يقين ډېر وي،چې له الله تعالى سره دي،نه له تا سره او بل داچې له کړاوونو سره د مخامخېدو پرمهال يې درته په اړه د اخروي ثواب لېوالتيا پيدا شي . (ترمذي– ابن ماجه)

ð د امت لومړنى خير او نېکي “يقين” او “زهد” دى او لومړنى ويجاړي يې بخل او د دنيا حرص دى .(بيهقي)

 

مسکین

ðخدايه ! مسکين مې وساته،مسکين مې مړ کړه او په قيامت کې مې د مسکينانو په ډله کې پا څوه(حشر کړه) . (ترمذي– بيهقي – ابن ماجه )

ðخدايه! آل محمد(نبوي کورنۍ) ته د کفايت او بسيايني هومره رزق په برخه کړه .( بخاري – مسلم )

 

احسان

*نورو ته نفقه ورکړئ،چې خداى يې تاسې ته درکړي.(بخاري – مسلم )

ðپه خير او نېکو چارو کې نورو ته مه ګورئ،که درسره احسان وکړي، تاسې به يې هم ورسره وکړئ او که تېرى او بدي درسره وکړي ؛نو تاسې هم ورسره هماغسې وکړئ؛بلکې هوډ ونيسئ،که نورو درسره احسان وکړ، تاسې يې هم ورسره وکړئ که تېرى او بدي هم درسره وکړه،بيا به هم ورسره احسان اونېکي کوو او د بديو لار به نه نيسو . (ترمذي)

ð څوک چې زما د يو امتي اړتياوې لرې کړي او نيت يې خوشحالول وي؛ نو زه به يې خوشحاله کړى يم او څوک چې ما خوشحاله کړي؛نو خداى يې خوشحاله کړى دى او څوک چې خداى خوشحاله کړي؛نو جنت ته يې ننباسي. (بيهقي)

ðهېڅ ډول نېکي سپکه مه ګڼئ؛نوکه څه نه لرئ،چې مسلمان ورور ته يې ډالۍ کړئ؛ نو په خندا او ورين تندي ورسره مخ شه او چې غوښه دې پخوله؛ نواوبه پکې ډېرې کړه،چې ښوروا يې ګاونډي ته هم ډالۍ کړې . (ترمذي)

 

غوره کړنې

ðخداى ته تر ټولوغوره کړنې دادي،چې د بنده دوستي او دښمنى يوازې د خداى لپاه وي . (ابوداود)

ðخداى تعالى ته غوره کړنې دادي : ( ١) هغه ايمان ،چې شک ورته لار نه وي کړې ( ٢) هغه جهاد،چې کينه ورته نه وې ننووتې (٣) او قبول شوى حج .( الامالي للمفيد: ٩٩ )

ðد تږي خړوبول غوره چار دى .( الکافي : ٢\٢٦٠)

ðالهي فرايض عملي کړئ،چې ډېر پرهېزګاران شئ.(الکافي ٢\٨٢)

ðيوه ډله چې راغونډه شي او خداى ياد کړي ؛نو شيطان او دنيا ترې تښتي . شيطان دنيا ته وايي : ګورې چې څه کوي ؟ دنيا ورته په ځواب کې وايي : پرېږده يې،که بېل شول،( د دنيا غوښتنې کړئ ) ورته په غاړه کې اچوم . ( مستدرک الوسايل : ٥\٢٨٩)

ð ډېر غوره هغه دي،چې خلكو ته ګټور وي او ډېر ناوړه هغه دي ، چې خلك وځوروي او تر دې بدتر هغه دى،چې د شر له ډاره يې خلك احترام كوي او تر دې خو لا ډېر بدتر هغه دى،چې خپل دين د بل په دنيا وپلوري  ( الاختصال : ۲۴۳)

 

ناوړه کړنې

ðپه هغه ټولي كې رحمت نه راكوزېږي،چې پر خپلوانو يې زړه سوى پرې كړی وي . ( مشكاة الانوار : ۱۶۶)

ðڅوک چې ناوړه کار خپروي؛نولکه په خپله،چې يې کوي . (کافي ٢\٣٥٦)

ð د قيامت پر ورځ ډېر ناوړه هغه دي،چې خلك يې د شر له وېرې احترام کوي . (بحار : ۷۲\۲۸۳)

ð زما د امت ډېر ناوړه هغه وګړي دي،چې خلك يې د شرله وېرې يې احترام كوي، هغه به زما (له امته) نه وي،چې د شرله ډاره يې خلك درناوى كوي .( الحضال :۱\۱۴)

ðکنجوسي او بد اخلاقي د مسلمان ځانګړنې نه دي . (الخصال ١\ ٧٥)

ðد خداى پر وړاندې دا درې چارې خورا ناوړه دي،چې بني آدم يې هېڅکله نه کوي 🙁 ١) که څوک کوم پېغمبر ووژني ( ٢) کعبه ويجاړه کړي،چې خداى د خلکو قبله کړې ده (٣) او په حرامو له ښځې سره زنا وکړي . ( من لايحضره الفقيه ٤\٢٠ )

ðګناهونه،نعمتونه اړوي،تېرى د پښېمانۍ لامل دى،وژنه د بدمرغۍ د راكېوتو لامل دى،ظلم پر دې څېر وي او شرابخوري د روزۍ مانع كېږي، زنا مړينه رانږدې كوي او زړه سوى نه كول د دعا د نه قبلېدولامل ګرځي،د موروپلار (له خوا) عاقېدل عمر لنډوي او لمونځ نه كول د خوارۍ لامل ګرځي . ( مستدرك : ۱۲\ ۳۳۴)

ðرسول اکرم وويل : ايا ډېر ناوړه خلک دروښيم ؟ اصحابو وويل : هو! آنحضرت (ص) وويل:څوک چې د لاسنيوي او مرستې مخه نيسي،خپل مريى (ترلاس لاندې)وهي؛نو اصحابو ګومان وکړ،چې خداى له دې هم  ناوړه  موجود نه دى پیدا کړی . بيا آنحضرت(ص) وويل : ايا تردې ناوړه درته وښيم : اصحابو وويل: هو! آنحضرت(ص)  وويل : هغه چې د خير هيله ترې نه کېږي او له شره يې هم خوندي نه يې . بيا اصحابو ګومان وکړ،چې خداى خو به تر دې بل ناوړه موجود نه وي پيدا کړى . آنحضرت(ص) وويل : تردې ناوړه مو خبر کړم : اصحابو وويل: هو! آنحضرت (ص)  وويل : د هغه په مخکې، چې د مؤمنانو نوم واخستل شي؛ نو ورته کنځل کوي او لعنت پرې وايي او چې مؤمنان يې ياد کړي؛نو کنځلې ورته کوي او لعنت پرې وايي . ( الکافي ٢\ ٢٩٠ )

 

 

خپلمنځي اړیکې

ðمسلمانان د لورنې،مينې او نرمۍ له پلوه په خپلو کې د يوې تنې په څېر دي،که يو غړى يې په درد شي ؛نو نور هم ورسره دردېږي . ( بخاري – مسلم )

 

تله

ðتېر امتونه د دووځانګړنو په درلودو پوپناه شوي،چې يو يې پيمانه (کنډه) او بل يې تله وه . (مستدرک الوسايل  ١٣\٢٣٣)

 

ډار

ðعلي! له ډارن سره مشوره مه کوه؛ځکه د چارې لار درباندې تنګوي . (من لايحضره الفقيه  ٤\ ٤٠٩ )

ðعلي! پوه شه چې ډار،کنجوسي او حرص يوه غريزه ده،چې په ټولو کې د بدګومانۍ لامل دى . (علل الشرايع ٢\ ٥٥٩ )

ðنشپاتي وخورئ؛ځکه زړه غښتلى کوي او ډارن زړه وروي.( الکافي ٦ \ ٣٥٧)

ðد خداى رسول ته تردې بل هيڅ څيز هم ګران نه دى،چې څوک د خداى په لارکې “وږي ډارځپلي” ته پناه ورکړي . ( الکافي ٨ \١٢٩ )

ðمؤمن د”تېر” او”راتلونکې” دوو ډارو ترمنځ پروت دى .(مستدرک الوسايل  ١١\٢٢٦)

ðمؤمن تل له ناوړه عاقبته ډارېږي او د خداى د رضا په باب تر هغه يقين نه لري،څو يې روح له تنه وتلى او د مرګ پرښته يې ليدلې نه وي . ( تاويل الايات الظاهره : ٥٢٤ مخ )

 

تسبيح

ðتسبيح په قيامت کې د کړنو نيمه تله ده او “الحمد الله” تله ډکوي . ( الجعفريات : ١٦٩ مخ )

ðډېر په تکبير،تهليل (لا اله – الا الله )،تسبيح، حمد او د “لاحول ولا قوة الا بالله” ويلو بوخت وسئ،چې دا “باقيات صالحات” دي . (مستدرک الوسايل: ٥\٣٢٧)

 

تسليت

ðڅوک چې غمځپلي ته ډاډېنه ورکړي؛خداى به په قيامت کې ورېښميني جامې وراغوندي . ( الکافي ٣\٢٠٥)

ðڅوک چې غمځپلي ته تسليت ووايي؛نو خداى ورته د غمځپلي هومره ثواب ورکوي؛بې له دې چې د غمځپلي له ثوابه څه کم شي . ( قرب الا سناد: ٢٥مخ )

ðڅوک چې بورې ښځې ته تسليت ووايي؛نو خداى به په جنت کې ښکلې جامې وراغوندي .( مستدرک الوسايل ٢\٣٤٩)

ðتسليت ورکونه جنت ته د تلو لامل دى .( ثواب الاعمال : ١٩٨مخ)

څوک چې مصيبت ځپلي ته تسليت ووايي؛نود هغه هومره ثواب ګټي . (کنز ١٥/ ٦٥٨) 

 

په جنازه کې ګډون

ðڅوک چې د يو مسلمان جنازې ته ولاړ شي؛نو پرښتې يې د بېرته راستنېدو تر ځايه ملګرتوب کوي . ( جامع الاخبار: ١٦٦مخ )

 

د عقايدو څارنه

ðزه د خلکو د زړونو د راسپړلو او ګېډې څيرلو لپاره ګومارل شوى نه يم . ( الجامع الصغير ١\ ٤٠٣)

 

تقيه

ðبې تقيې مؤمن د بې سره تنې په څېر دى . (تفسيرالامام العسکرى: ٣٠٢مخ )

ðتقيه د الهي دين يوه برخه ده ؛نو څوک چې تقيه نه کوي؛دين نه لري . (مستدرک الوسايل  ١٢\٢٥٢) 

ðڅوک چې “تقيه”نه کوي ،ايمان نه لري . ( تفسيرالعيا شي  ١\١٦٦)

ðپرخداى قسم که “تقيه” نه واى؛نو هېچا به د شيطان په دولت کې د خداى عبادت نه واى کړى . پوښتنه وشوه، چې د شيطان دولت؛يعنې څه؟ ورته يې وويل : که “لارښود مشر” واکمن وي ؛نو د حق دولت دى او که “بې لارې مشر” واکمن وي؛نو د شيطان دولت دى . ( د سليم بن قيس کتاب : ٨٩٥مخ )

ðکه خداى غوښتاى؛نو تقيه يې درباندې حراموله او په صبر يې درته سپارښتنه کوله . پوه شئ،چې له موږ سره د مينې درلودو او زموږ له دښمنانو سره د دښمنۍ تر فرضېدو وروسته، ستاسې د ځان،شتمنيو، پوهې او وروڼو د حقوقو دساتنې لپاره تر “تقيي” بل ستر فرض نشته . (وسايل  ١٦\٢٢٤)

ðکه څوک له چا،پر يوې مسئالې د پوهېدو لپاره څه وپوښتي؛خو پټه يې کړي،حال داچې بايد رابربنډه يې کړي او د “تقيي” ځاى هم نه وي؛نو خداى  به يې د قيامت پر ورځ په اورينه کيزه دوزخ ته ولېږي. (تفسيرالامام العسکري٤٠٢مخ )

 

کبر

ðبېشکه ستر کبر،خلکو ته ټيټ کتل او د حق بې ارزښته کول دي . په دې اړه وپوښتل شو. آنحضرت وويل:په حق نه پوهېږي او وړ ته يې پېغورونه ورکوي؛نو څوک چې دا کار وکړي؛له خداى سره به يې په جګړه لاس پورې کړى وي . (الکافي  ٢\ ٣٠١)

ðابليس رانجه،لاړې او  نسوار لري،چې چرت يې رانجه دي،دروغ يې د خولې لاړې دي او کبر يې  نسوار دى .( معاني الاخبار: ١٣٨)

ðډېرى دوزخيان کبرجن دي . ( وسايل  ١٥\٣٧٨)

 ðڅوک چې وياړنې جامې واغوندي؛نو کبرجن دى،چې هستوګنځى يې دوزخ دى . ( مستدرک الوسايل  ١٢\ ٣٠)

ðڅوک چې ومري؛خو په زړه کې يې د ذرې هومره کبر وي؛نو د جنت بوى به بوى نه کړي؛خو داچې تر مړينې مخکې يې توبه کړې وي . (مستدرک الوسايل ١٢ \٣٤)

ðد چا په زړه کې،چې د کوچنۍ ذرې هومره “کبر” وي؛نوجنت ته به ولاړ نشي. پوښتنه وشوه: که په موږ کې د چا دا ښه ايسي،چې جامې او کارونه يې ښه وي؛نو کبرجن دى؟ آنحضرت : خداى په خپله ښکلى دى او ښکلا يې خوښېږي؛خو کبر د  حق تر پښو لاندې کونه او د خلکو خوارول دي . (منية المريد: ١٧٥مخ)

ð کبرحن ،خداى خواروي .( بحار ٧٣/٢٣١)

 

تکلف

ðد متکلف څلور نښې دي : په هغه څه کې شخړې کوي،چې ورپورې اړه نه لري،له خپل پورته سره لانجې کوي او په هغه څه پسې درومي، چې نه وررسي .( راوي په روايت کې څلورمه نښه نه ده ښوولې.) ( بحارالانوار : ١\١٢١)

تکليف

ðدرې تنه له مکلفيته معاف شوي : ويده تر راوېښېدو، لېونى تر عقلمنېدو او کوچني تر بالغېدو پورې . ( الطرائف  ٢\٤٧٣)

 

کنجوسي

کنجوسي اسلام تباه کوي . ( الکافي ٤\ ٤٥)

ðکنجوسي او ايمان کله هم په يوه زړه کې نه ځايېږي.(الحضال ١\٧٥)

ðد سخي خواړه “شفا” ده؛خو د کنجوس خواړه د “ناروغۍ” لامل دى . ( بحارالانوار  ٦٨\٣٥٧ )  

ðکوم درد ترکنجوسۍ بدتر دى ؟ (فقه الرضا : ٢٧٦مخ )

ðله کنجوس سره مشوره مه کوه؛ځکه خپلې موخې ته په رسېدو کې دې خنډېږي .( علل الشرائع  ٢\٥٥٩)

ðکنجوسي د دوزخ له ونو يوه ونه ده،چې ښاخونه يې په دنيا کې راځوړند دي؛نو څوک چې کنجوس وي،يو ښاخ يې نيسي او دا ښاخ يې جهنم ته راکاږي .( الامالي للطوسي : ٤٧٤مخ )

ðکنجوسي او بد اخلاقي په مسلمان کې نه ځايېږي . ( معدن الجواهر : ٢٥مخ )

ðکنجوس په اسمانو او ځمکې کې  اوکږلى (مبغوض) دى . ( الکافي : ٤\٣٩)

ðهغه حقيقي بخيل دى،چې د خپلې شتمنۍ فرضي زکات او د خپلې مېرمنې مهر نه ورکوي؛خو په بل ځاى کې يې چټي لګوي .(من لايحضره الفقيه ٢\٦٢)

ðريښتنى کنجوس هغه دى،چې زما د نامه په اورېدو،پر ما درود نه وايي . ( معاني الاخبار:٢٤٦)

ðکنجوس له خداى،خلکو او جنته لرې او دوزخ ته نږدې دى.( روضة الواعظين ٢\٣٨٤)

ðله کنجوسه ځان وژغوره؛ځکه يوه ناروغي پکې ده،چې په عزتمنو کې نشته . ( دلائل الامامه : ٤مخ )

 

يوازېتوب

ðښه ملګرى تر يوازېتوبه او يوازېتوب له بدانو سره تر کېناستو غوره دى . ( وسائل ١٢\ ١٨٨)

 

غښتليتوب

ðدا اتل نه دى،چې پهلوانان راسملوي؛بلکې اتل هغه دى،چې پرخپلې غوسې برلاس شي اوتېره يې کړي . (مستدرک الوسائل ٩\١٢)

ðپر خداى توکل کوونکي ډېر غښتلي خلک دي .(جامع الاخباره:١١٧مخ )

ð ډېر غښتلى هغه دى،چې د خوشحالۍ پر وخت خوښي يې ګناه او خوشې کار ته رانه کاږي او چې غوسه وي؛نو غوسه يې له حق خبرې لرې نه باسي .( مه لايحضره الفقيه ٤\٤٠٧)

 

وسمني او شتمني

ðڅومره ناوړه (چار) دى،چې انسان تر شتمنۍ وروسته د بېوزلي چلن کوي او په مسکينۍ کې سرغړونې کوي او تردې دواړو کړنو خو هغه ډېره ناوړه ده،چې عابد خپل عبادت پرېږدي . (الکافي ٢\٨٤)

ðشتمني؛الهي تقوا ته څومره ښه مرستندويه ده .( الکافي ٥\٧١)

ðڅه چې د خلکو په لاس کې وي،ترې نهيلى وسه؛ځکه په دې حال کې به شتمن يې . ( من لايحضره الفقيه  ٤\٤١٠)

ðشتمن چې په ورکړه کې ځنډکوي؛نو ظلم دى .(وسايل الشعيه ١٨\ ٣٣٣)

ðناپوه بوډا،ظالم شتمن او بېوزلى کبرجن مې نه خوښېږي . (الزهد : ٥٨مخ )

ðاړين مؤمن،شتمن ته د خداى استازى دى؛نو استازى،چې بې د خپلې اړتيا له پوره کولو ستون شي؛نو پاک خداى ګناهونه نه بښي او خداى پر شتمن شيطانان واکمنوي،چې چيچي به يې . (مستدرک الوسايل ١٢\٤٣٤)

ðپر هغه دې د خداى لعنت وي،چې د شتمن درناوى د شتمنۍ له امله کوي يا بېوزلى د بېوزلۍ له امله سپک ګڼي،چې دا د منافق خوى دى، چې په اسمانو کې د خداى او پېغمبرانو دښمن دى،دعا يې نه قبلېږي او اړتيا وې يې نه لرې کېږي . (ارشادالقلوب  ١\ ١٩٤)

ð د وسايلو ډېرښت شتمني نه ده؛بلکې اصلي شتمني د زړه مړښت دى. (صحيح بخاري)

ðخداى تعالى ستاسې تنو او شتمنيو ته نه ګوري؛زړونو او کړنو ته مو ګوري. (صحيح مسلم)

 

توبه

ðله ګناه توبه کوونکى داسې دى،چې هيڅ ګناه يې نه وي کړي . ( کنز : ١٠١٧٤ ح )

ðتر دې بل هېڅ څيز د خداى ښه نه ايسي،چې يو ځوان له خپلې ګناه پښېمانه شي او توبه  وکاږي . ( مشکاة الانوار: مخ ١٥٥) 

ðتوبه د ګناهګار ژغورنې ته بريالى شفيع  ده. ( بحار ٣/٣٠٦)

ðيو هم د مړيني هيله مه کوئ؛ځکه وګړى يا”ښه” دى؛که ژوندى پاتې شي،ښايي پر نېکيو يې ورزياتې شي  او يا “بد” دى ؛نوکه ژوندى پاتې شي،ښايي توبه وکاږي . ( بخاري : ٧٢٣٥ ح )

ðد توبې ور د شپېلۍ د پوکي تر وخته پرانستلى دى . (وسايل الشيعه  ١٦\٩٠)

ðتوبه ګار د داسې چا په څېر دى؛لکه هيڅ ګناه يې،چې نه وي کړي . (عيون اخبار الرضا٢\٧٤)

ðهر درد ته درمل شته او د ګناهونو درمل استغفار دى . (ثواب الاعمال : ١٦٤)

ðيوازې استغفار مړي ته ډېره ارزښتمنه ډالۍ دى . (الجعفريات : ٢٢٨)

ðاستغفار غوره دعا ده .( الکافي ٢\٥٠٤)

ðد مرګ ياد غوره موعظه ده.د آخرت ياد غوره تفکر دى . عاجزي غوره عبادت دى . د ګناهونو پرېښوول غوره استغفار دى او نصيحت غوره دعا ده؛نو په چا کې چې يوه دا ځانګړنه وي؛نو د پېغمبرانو له لومړي ټولي سره به جنت ته ننوځي . ( جامع الاخبار: ١٣٠ )

 

توفيق

ðلږ توفيق تر ډېرعقله غوره دى . ( فيض القدير٤\٦٨٨)

ðتوکل د بد فال کفاره ده . ( الکافي ٨\١٩٨)

 

د نورو سپکاوى

ð څوک چې نورسپک کړي (؛نو) پخپله (هم ) ډېر په سپکو کې شمېرل کېږي .( بحار ٧٥/١٤٢)

ðهغه تر ټولو خوار دى،چې نور خوار کړي .(من لايحضره الفقيه٤\ ٣٩٤)

ðخداى تعالى وايي : پر هغه دې افسوس وي،چې د خداى ولي او دوست سپک کړي او څوک چې داسې وکړي؛نو له ماسره به يې جګړه کړې وي .  ( مشکاة الانوار: ١٠٧مخ )

ð (د معراج په حديث کې راغلي : ) د جهنم پر څلورم وره درې جملې ليکل شوي : ( ١) څوک چې اسلام سپک کړي ؛نو خداى يې سپکوي . ( ٢) څوک چې د پېغمبر اهلبيت سپک وګڼي؛نو خداى يې سپکوي . (٣) څوک چې له ظالم سره د خداى پر مخلوقاتو په ظلم کې لاسنيوى وکړي ؛ نو خداى به يې ذليل کړي . ( الفضايل : ١٥٢)

 

تور

ðغيبت کول؛يعنې د يو څيز يادول،چې د غيب شوي ښه نه ايسي . رسول اکرم وپوښتل شو:که هغه حق وي (؛نو) څنګه کېږي ؟ ورته يې وويل: که “باطل” ووايې (؛نو) هغه خو “تور” دى . (عوالي الا للي : ١\٤٣٧)

ðڅوک چې له تورنو سره کېني؛نو تر ټولو ډېر د تور وړ دى .(من لايحضره الفقيه ٤\٣٩٤)

ðډېر ناوړه هغه دى،چې خداى تعالى په خپلو پېښوکې تورن کړي . (پورته  ٤\٣٦٢)

ðخلکو! په ما پسې تورونه ډېر شوي؛نو څوک چې په ما پسې په لوى لاس دروغ وتړي؛نو ځاى يې جهنم دى . (دسليم بن قيس کتاب : ٦٢٠مخ )

ðلکه څنګه چې يې تر ما په مخکنيو پېغمبرانو پسې دروغ تړل؛نو په ما پورې به يې هم وتړي؛نو چې چا درته زما “حديث” راووړ او د خداى له کتاب سره يې اړخ لګاوه؛نو زما حديث به وي اوکه نه؛نه به وي .( قرب الا سناد : ٤٤مخ )

 

ثواب

ðڅوک چې د پوهې او علم د زده کړې لپاره لار ووهي؛نو خداى به يې لار جنت ته ورسيخه کړي . ( الکافي  ١\٣٤)

ðڅوک چې د خداى په لار کې (په اخلاص) يوه ورځ،روژه شي؛نو خداى به ورته د يو کال روژې نيولو ثواب ورکړي .(ثواب الاعمال : ٥)

 

کوډګر

ðمسلمان کوډګر بايد ووژل شي؛خوکافر کوډګر نه . (الکافي  ١\ ٣٤)

ðله اوو پوپنا کوونکيو څيزونو ځان وساتئ :

 ( ١) له خداى سره شرک . ( ٢) کوډې . ( ٣) په ناحقه د انسان وژله . ( ٤) د پلار مړي د مال خوړل . ( ٥) سود خوړل . ( ٦) پر ناخبرو مؤمنو ښځو د زنا تور پورې کول .(٧) اوله جګړې تېښته.(وسايل الشيعه ١٥\٣٣٠ )

ð رسول اکرم د کوډګر په اړه وپوښتل شو.ورته يې وويل:په کوډو يې چې دوو عادلو نارينه وو شاهدي ورکړه؛نو وينه يې حلاله ده .(وژل يې روا دي) . ( تهذيب الاحکام  ٦\ ٢٨٣)

 

جبر او اختيار

ðد امت دوه ډلې مې له اسلامه څه ګټه نشي وړاى : ( ١) مرجئه ( څوک چې ګروهمن وي،چې انسان څومره ګناه وکړي؛نو دين ته يې زيان نه رسي) . ( ٢) جبريون ( د جبر لارې لارويان ) . ( ثواب الاعمال : ٢١٢)

ðاويا پېغمبرانو جبريون لعنت کړي دي . رسول اکرم وپوښتل شو: جبريون څوک دي ؟ ورته يې وويل : هغوى چې انګېري خداى پرې د هغوى ګناهونه او عذابونه په زورتپلي دي .( الطرائف  ٢\٣٤٤)

ðد امت دوه ډلې مې له اسلامه څه ګټه نشي وړاى : ( ١) غلات (مبالغه کوونکي)  او ( ٢) د جبرلارويان . ( الخصال 72/1 : ٢١٢)

ðهر امت مجوسي (زرتشتي) لري او زما د امت مجوسيان د جبر لارويان دي . ( کنزالفوائد ١\١٢٣ )

 

ټولى

ðڅوک چې د مسلمانانو له ټولي بېل شي؛نو له غاړې يې د اسلام رسۍ لرې شوې . رسول اکرم وپوښتل شو: څوک د مسلمانانو ټولى دى؟ ورته يې وويل : د “حق لارويان”که څه هم لږ وي . (الامالي للصدوق : ٣٣٣مخ )

ðڅوک چې له ما جلاشي؛نو له خدايه به جلا شوى وي او څوک چې له “علي” بېل شي ؛نو له مابه جلا شوى وي . (الغارات  ٢\ ٣٥٦)

ðپه (جمع/جماعت) لمونځ تر ځان ته لمانځه پينځه ويشت ځله غوره دى . ( وسايل الشيعه  ٨\ ٢٨٩)

ðڅوک چې تر ما وروسته له “علي” جلا شي؛په قيامت کې به مې ونه ويني او زه به يې هم ونه وينم . (کمال الدين  ١\٢٦٠ )

ðڅوک چې د جماعت د لمانځه لپاره جومات ته روان شي؛نو هر قدم ته يې اويا زره ثوابونه ليکل کېږي او اويا زره درجې لوړېږي او که په همدې حال کې ومري؛نو خداى تعالى اويا زرو پرښتو ته دنده ورکوي، چې قبرته يې د ليدو لپاره ورشي او خوشحال يې کړي او په يوازېتوب کې يې ملګرې شي او د قيامت تر ورځې پورې ورته بښنه وغواړي . (من لايحضره الفقيه ٤\١٧)

 

غوړه مالي

ðد غوړه مالانو پر مخ خاورې وشيندئ . (من لايحضره الفقيه٤\١١)

ðد پوهې له لاس ته راوړو پرته،د مؤمن خوى دا نه دى،چې غوړه مالي وکړي اوکينه ولري . ( مستدرک الوسائل٩\٨١)

 

د سترګو وهل ( نظرېدل )

ðخرافات،طالع ليدل او فال نيول نشته؛خو د سترګو وهل (نظرېدل) حق  دي . ( الجعفريات : ١٦٨مخ )

ðد سترګو وهل حق دي؛نو څوک چې د خپل مؤمن ورور يو څيز حيران کړي؛ نو سملاسي دې خداى ياد کړي؛ځکه که خداى ياد کړي؛ نو زيان به ورته نه رسوي .( طب الائمه : ١٢١مخ )

ðسترګې وهل يو حقيقت دى او که پر کوم څيز،چې الهي مشيت شوى وي؛ نو بيا هم د سترګو وهل پرې اغېز لري . (عوالي الاللي ١\١٤٦)

 

حج

ðحج  وکړئ،چې شتمن شئ . ( المحاسن ٢\٣٤٥)

 ðخلکو! پر بشپړ دين او له اسلامه له پوهې سره،حج ته ولاړ شئ او بې توبې له مواقفو يې مه راګرځئ . ( مستدرک الوسايل  ٨ \ ٤٥)

ðجنت د مبرور حج بدله ده.رسول اکرم وپوښتل شو: مبرور حج؛يعنې څه ؟ ورته يې وويل : په خوله ښې خبرې کول او د خوړو ورکړه . ( عوالي الاللي  ٤\٣٣)

 

حجامت

ðحجامت د وينې د ناروغۍ دوا ده .حمام کول د بلغم د ناروغۍ دوا ده  او پلى تلل د صفرا د ناروغۍ دوا ده . ( من لايحضره الفقيه ١\ ١٢٦)

ðبې له مړينې،حجامت د ټولو دردونو د شفا په سر کې دى . (طب الائمه : ٥٧مخ )

ðپر سباناري حجامت کول دوا ده او پر مړه ګېډه حجامت کول د ناروغۍ لامل دى او د هرې مياشتې پر اوولسم اوسه شنبې حجامت کول د بدن د روغتيا لاملېږي او جبرئيل راته دومره د حجامت کولوپه اړه سپارښتنه وکړه،چې ګومان مې وکړ واجب دى . (بحارالانوار٥٩ \١٢٦)

ðڅوک چې تل د چهارشنبې او شنبې پر ورځو حجامت کوي؛نو نه ښايي له ځان پرته بل څوک يې پړکړي . (دعائم الاسلام  ٢\١٤٥)

 

حد او پولې

ðپر ځمکه چې د خداى لپاره حد اجرا شي (؛نو) تر څلوېښتو ورځو باران ( ورېدو) غوره دى . ( الکافي : ٧\١٧٥)

ðمخکېني ځکه پوپنا شول،چې پر بېوزليو يې حد اجر کاوه او پر مخور او اشرافو نه . ( دعائم الاسلام ٢\ ٤٤٢)

ðخداى تعالى پولې ټاکلې دي او څوک چې له کومې پولې واوړي؛نو سزا ورکوي . ( مستدرک الوسايل  ١٨ \٩ )

ðشبهه چې درته پيدا شوه؛نو حدود مه جاري کوئ او د درنو خلکو له تېروتنو تېر شئ؛خو داچې له کومې الهي پولې اوښتى وي . ( مستدرک الوسايل  ١ \ ٢٦ )

 

حرام اوحلال

ðخلکو! حلال مې تر قيامته حلال دي .(مستدرک الوسايل١٢ \٢١٧)

ðعبادت اويا ډوله دى،چې ډېر غوره يې د حلالۍ روزۍ لاس ته راوړل دي . ( الکافي : ٥\ ٧٨)

ðعبادت  اويا ډوله دى،چې غوره يې د حلال مال لاس ته راوړل دي . (الکافي  ٥\ ٧٨ )

ðچاچې د حلال مال لاس ته راوړو لپاره ځان ستړى کړى وي او بيا ويده شي؛نو خداى بښلى به ويده شوى وي . (لامالي للصدوق : ٢٨٩ )

ðخداى تعالى د معراج پر شپه وويل: احمده ! عبادت لس ډوله دى ، چې نهه يې دحلال مال لاس ته راوړل دي . (مستدرک الوسائل  ١٣ /٢٠ )

ðامت به مې ژر پر څو اويا ډلو وېشل کېږي،په دوې کې به ډېره ناوړه ډله هغه وي،چې په چاروکې د خپل نظر له مخې قياس کوي او په دې کار حلال،حراموي او حرام ،حلالوي . (بحارالانوار  ٢\٣١٢)

ðخداى خپل بندګان پيدا کړل او ترمنځ يې حلاله روزي ووېشله او حرام يې ور وړاندې کړل ؛نو چاچې له حرامو څه وخوړل؛نو هومره يې له حلال ماله کمېږي او څوک چې حرامخور وي ؛نو په قيامت کې ورسره حساب کېږي . (بحارالانوار  ٥\ ١٤٦)

ðد حلال خور پر سر پرښته درېږي او تر هغه ورته بښنه غواړي،څو له دې کاره لاس واخلي او همداراز و يې ويل : کوم بنده،چې حرامه مړۍ وخوري؛نو څو يې په ګېډه کې وي،په اسمانو او ځمکې کې پرښتې پرې لعنت وايي او خداى هم ورته نه ګوري او څوک چې حرامه مړۍ وخوري؛ نو خداى پرې غوسه کېږي؛نو که توبه وباسي،خداى يې توبه قبلوي او که تر توبې مخکې ومري؛نو د جهنم وړ دى . (بحارالانوار  ٦٣\٣١٤)

ðموږ ټول (اهلبيت) په چارو پوهېدنو،حلال او حراموکې د يو بل په څېر يو. ( الاختصاص : ٢٦٧مخ )

 

حساب

ðمخکې له دې،چې حساب درسره وشي؛له ځان سره حساب وکړئ . (الفضايل : ١٥٢)

ðله بنده چې د قيامت پر ورځ د لومړي څيز حساب اخستل کېږي،دا دى،چې ورته وويل شي: ايا بدن دې روغ رمټ و؟ (مجموعة ورام ١\٤٤)

ðرسول الله وويل : د چاچې کړنې حساب شي (؛نو) په عذابېږي. وپوښتل شو: د خداى تعالى دا خبره “چې د هغوى حساب به اسان وي”په څه مفهوم ده ؟ ورته يې وويل : د خبرې مفهوم دا دى،چې خداى له خپلوبندګانو تېرېږي . (معاني الاخبار :٢٦٢مخ )

 

حسرت

ðپه قيامت کې به هغه تر ټولو ډېر افسوس کوي،چې خپل اودس د بل پر پوټکي وويني . ( من لايحضره الفقيه  ١\ ٤٨)

 

حق اوحقيقت

ðحق او رښتيا ووايه که څه هم تريخ وي (او د خلکو) ښه نه ايسي . (بيهقي)

ð حقيقي مؤمن هغه دى،چې له خپلې شتمنۍ بېوزليو ته (څه) وبښي يا له خلکو سره په انصاف چلن کوي . ( الکافي  ٢\ ١٤٧)

ðرسول الله د بدر پر وژل شويو ودرېد او په يوه څاه کې يې واچول او ورته يې وويل :په څاه کې لوېدليو! پالونکي مو،چې راسره ژمنه کړې، ترسره شوه، ايا له تاسې سره د خداى ژمنه پوره شوه ؟ ورته وويل شو: رسول الله له مړيو سره خبرې کوئ؟حضرت ورته وويل : که هغوى د خبرو اجازه درلوداى (؛نو) ويل يې: هو! پرهېزګاري ډېره غوره توښه ده . ( من لايحضره الفقيه : ١\١٨٠)

ðبېشکه پر هر څه حقيقت او پر هر ښه کار رڼا پرته وي؛نو څه چې له قرآن سره اړخ لګوي، و يې منئ او څه چې ورسره مخالف وي، پرې يې ږدئ  . ( الکافي  ١\٦٩)

ðڅوک چې خپله ژبه وساتي؛نو د ايمان پر حقيقت به پوه شي.(الکافي  ٢\١١٤)

ðد هر حق لپاره يو حقيقت وي او يو بنده هم د اخلاص حقيقت ته رسېداى نشي؛خو داچې کوم  کار وکړي او نه يې خو ښېږي،چې وستايل شي . ( مستدرک الوسايل  ١\ ١٠١)

ðظالم واکمن ته د حق  خبرې ويل غوره جهاد دى . (عوالي الاللي ١\٤٣٢)

 

حقوق

ðمؤمنان په خپلمنځي حقوقوکې د ږومنځې د غاښو په څېر يو له بل سره برابر دي؛خو په کړنو کې يو له بل سره توپير لري او هر سړى د خپل ملګري پر دين وي؛نو ځير دې شي،چې له چا سره ملګرتوب کوي . (مستدک الوسايل : ١\١٠١)

ðلکه څنګه چې پلار پر اولاد حق لري؛دغسې “علي” پر مسلمانانو حق لري .( بشارة المصطفى : ٢٦٩ مخ )

 

شفاعت

ðرسول اکرم حضرت “اسامه” ته وايي :د قضاوت په غونډه کې، چې کېناستې؛نو له ما څه مه غواړه؛ځکه د حق په اجرا کې شفاعت کارسازى نه دى . ( مستدرک الوسايل ١٧ \٣٥٨)

 

د مؤمن حقوق

ðمؤمن ته روا نه ده،چې تر درېو ورځو زيات له خپل مؤمن ورور سره اړيکې پرې کړي . ( بحارالانوار  ٧٢\ ١٨٩)

ðخداى تعالى له مؤمن سره تر هغه مرسته کوي،چې له بل مؤمن سره د لاسنيوي په فکر کې وي او څوک چې په دنيا کې د خپل مؤمن ورور ستونزې هوارې کړي؛نو خداى به يې په آخرت کې اويا ستونزې هوارې کړي .( بحارالانوار : ٧١\٣١٢)

ðکله هم خپل کمزوري وروڼه ټيټ مه ګڼئ؛ځکه څوک چې مؤمن ورور ټيټ وګڼي؛نو خداى دى او هغه مؤمن په جنت کې نه راغونډوي؛خو دا چې توبه وکاږي .(مستدرک الوسايل ٩\١٠٤)

ðمؤمن پر مؤمن اوه واجب حقوق لري،چې دادي :

 ( ١) په درنه سترګه وروګوري . ( ٢) له زړه ورسره مينه ولري . (٣) په خپله شتمنۍ کې يې شريک وبولي . (٤) غيبت يې و نه کړي . (٥) چې ناروغ شو،پوښتنې ته يې ورشي. (٦) په جنازه کې يې ګډون وکړي. ( ٧) اوتر مړينې وروسته يې په ښو ياد کړي .(من لايحضرالفقيه ٤\٣٩٨)

 

پر مسلمان د مسلمان حقوق

ðمسلمان پر بل مسلمان ورور (٣٠) حقوق لري ،چې ددې حقوقو بار ترې نه سپه کېږي؛خو داچې پوره يې کړي ياوبښل شي (او هغه دادي ) : ( ١) له ښويېدنې يې تېر شي. (٢) پر اوښکو يې زړه وسوځوي . (٣) له ګناهونو يې تېرشي . (٤) عذر يې ومني . (٥) پرېنږدي،چې غيبت يې وکړي . (٦) تل ورته نصيحت کوي . (٧) پر بديو يې پرده اچوي .( ٨) خپله دوستي ورسره وساتي . (١٠) په ناروغۍ کې يې پوښتنه وکړي . ( ١١) پر مړي يې شاهدي ووايي . (١٢) بلنه يې ومني  (١٣) ډالۍ يې ومني . (١٤) ليدو ته يې ورشي . ( ١٥) له ډالۍ يې مننه وکړي . (١٦) مرسته يې ښه وګڼي . (١٧) مېرمن يې  وپالي . (١٨) اړتياوې يې لرې کړي . (١٩) غوښتنې يې ومني . (٢٠) د پرنجي پر وخت ورته روغتيا وغواړي . ( ٢١) چې بې لارې شو؛نو سمه لار وروښيي . (٢٢) د سلام ځواب يې ورکړي . (٢٣) ښه خبرې ورسره وکړي . (٢٤) له اخلاصه ورسره ښه وکړي . ( ٢٥) قسم يې ومني . (٢٦) د هغه دوست خپل دوست او دښمن يې خپل دښمن وګڼي . (٢٧) په ظلم او مظلوميت دواړو کې ورسره مرسته وکړي؛يعنې د ظلم  پر وخت ورسره مرسته وکړي،چې له ظلمه يې منع کړي او چې مظلوم شي؛ نو د حق په اخستوکې ورسره لاسنيوى وکړي .(٢٨) ځان ته يې نه پرېږدي او ذليل يې نه کړي . ( ٢٩) هر ښه،چې يې ښه ايسي؛نو هغه ته دې يې هم ښه وګڼي. (٣٠) او څه چې ځان ته نه خوښوي؛هغه ته دې يې هم نه خوښوي . (وسايل الشيعه  ١٢\ ٢١٢)

ðپر مسلمان واجب دي،چې کله پر سفر وځي؛نو خپل وروڼه دې خبر کړي او چې راستون شي،پر دوستانو يې لازم دي،چې کتو ته يې ورشي. ( الکافي  ٢\١٧٤)

 

حکمت

ðخداى تعالى زما د اهلبيتو پر ژبه د حکمت څراغونه جاري کړي دي . (مستدرک الوسايل  ٦ \ ١٩٧)

ðله خداى تعالى څخه وېره د حکمت بنسټ دى .(وسايل الشيعه: ١٥ \٢٢١)

ðزه د حکمت “ښار”يم او علي يې “ور”دى ؛نو که څوک غواړي،دې ښار ته راننوځي؛نو له “وره” دې يې راننوځي .(الامالي للصدوق: ٢٦٩)

ðابوذره! چې و دې ليدل،ورور دې دنيا ته شا کړې؛نو خبرې ته يې غوږ کېږده؛ځکه پر ژبه يې حکمت جاري کېږي . (الامالي للطوسي : ٥٣١مخ )

ðپوهان وپوښتئ،له حکيمانو سره راشه درشه ولرئ او له بېوزليو سره ملګرتوب کوئ .( مشکاة الانوار : ١٣٤)

ðحکمت د مؤمن ورک شوى (څيز) دى؛نو چېرې يې،چې ومومي؛نو اخلي يې .( بحارالانوار ٢\٩٩)

ðخلکو! حکمت، د حکمت نااهلو ته مه ورکوئ ،چې تېرى به مو پرې کړى وي او هم حکمت له اهلو يې مه منع کوئ،چې تېرى به مو پرې کړى وي . ( اعلام الدين : ٣٣٦)

ðپر هغه دې خوښي وي،مخکې تردې چې د بل پر عيبو او نيمګرتياوو پسې ګرځي،د ځان په سمون بوخت وي او خپله شتمني د ګناه په لار کې نه لګوي او پر کمزوريو او بېوزليو يې زړه سوځي او له فقهاوو او حکيمانو سره يې ملګرتوب وي .( بحارالانوار  ١\ ٢٠٥)

ðنرمي د حکمت بنسټ دى . پالونکيه! څوک چې زما د امت له چارو څه پر ذمه واخلي او نرمي ورسره وکړي؛نو ته (هم) ورسره نرمي وکړه او څوک چې ورسره سختي کوي؛نو ته هم ورسره سختي وکړه. (مستدرک الوسايل  ١١\٢٩٥)

ðحکمت زما د اهلبيتو پر ژبه جاري شوى دى .( من لايحضره الفقيه ١\ ٥٣٥)

 

حماقت

ðله احمق سره له واده ډډه وکړئ؛ځکه ناسته يې بلا ده  او اولادونه يې ضايع کېږي . ( الجعفريات : ٩٢مخ )

ðعياشي او  مزې چړچې کول ډېر ناوړه حماقت دى . ( الکافي ٨\٨١)

ðڅوک چې له چا سره ملګرتوب کوي؛نو د هغه پلار،ټبر او نبيره دې وپوښتي؛ځکه دا چار له رښتينې دوستۍ او واجبو حقوقو څخه دى او بې له دې ملګرتوب يې احمقانه دى . (مصادقة الاخوان : ٧٢مخ )

ðابوذره! هله به د ايمان حقيقت ته ورسې،چې ګرد خلک په ديني چارو کې احمق او په دنيوي چارو کې عاقل وويني. (بحارالانوار  ٧٤\٨٤)

 

څاروي

ðپسه غوره څاروى دى .( الکافي ٦\٥٤٤)

ðد شرابو بيه ،د ظلم مهر او د کوټه سپي (ناښکاري) بيه حرامه ده . (وسايل  ١٧\٩٤)

ðخداى تعالى له موږه د هرڅاروي او بوټي په باب ژمنه اخستې؛نو چا چې دا ژمنه ومنله؛نو پاک او سپېڅلى شو او چاچې و نه منله ؛نو تريو تريخ شو. ( وسايل  ٢٥\١٧٨)

ðد پسونو پنډ غالى پاک کړئ ،پر پوزو يې لاس راکاږئ ،چې جنتي څاروي دي .( المحاسن  ٢\٦٤١)

ðد روزۍ له لسو برخو،نهه يې په سوداګرۍ اوپاتې يوه يې په پسه کې ده.( وسايل ١٧\١٠ )

 

 

کورنۍ

ðکورنۍ جوړه کړه ځکه روزي زياتوي . ( قرب الاسناد : ١١مخ )

ðزړه سوى د شتمنۍ لاملېږي او په کورنۍ کې مينه مړينه تمبوي . (عوالي الاللي ٣\٢٨٢)

ðعلي! د کورنۍ د غم خوړل د جهنم د اور مانع ګرځي،له خالقه اطاعت له عذابه خونديتوب دى او د خداى په اطاعت کې صبر،جهاد کول دي، چې تر شپېتو کالو عبادته غوره دى او د مړينې غم د ګناهونو کفاره ده . (جامع الاخبار: ٩١مخ )

ðپه جنت کې داسې يو مقام دى،چې يوازې عادل واکمن، زړه سواند او زغمناک عيالوار وررسېداى شي .( الخصال  ١\٩٣)

ð بندګان ټول د خداى کورنۍ ده؛نو هغه پکې ورته ډېر غوره دى،چې کورنۍ ته يې ډېر ګټور وي .( قرب الاسناد : ٥٦مخ )

ðعلي! پوه شه،چې خداى تعالى بندګانو ته روزي ورکوي او (په اړه يې) غم تا ته کوم زيان نه لري او همداراز د بندګانو روزۍ ته هم کومه ګټه نه لري؛خو( د غم ) له امله يې تا ته ثواب درکوي او بېشکه تر ټولو ښه غم،د کورنۍ لپاره غم دى .( جامع الاخبار: ٩١مخ )

ðعلي! څوک چې د خپلې کورنۍ په چوپړ کې وي؛نو متعال خداى يې له واره د شهيدانو په شمېر کې ليکي او هره شپه و ورځ  ورته د زرو شهيدانو ثواب ورکوي او همداراز يې هر قدم ته د حج او عمرې ثواب وربښي او د بدن هر رګ  ته يې په جنت کې ښار ورکوي .(بحارالانوار  ١٠١\١٣٢)

ðعلي! د کورنۍ خدمتګار يا صديق دى يا شهيد دى او يا داسې سړی دى،چې خداى ورته د دنيا او اخرت خير غوښتى دى .(جامع الاخبار: ١٠٢مخ )

 

خبر

ðښه سړى،ښه خبر راوړي او بد سړى بد خبر راوړي . (مشکاة الانوار : ٣٢٤)

ðعلي! ته د خداى حجت،باب الله،خداى ته د رسېدو لار،ستر خبر، نېغه لار او غوره بېلګه يې . ( عيون اخبارالرضاء ٢\٦)

 

خداى

ðتر متعال خداى هېڅوک هم ډېر غيور نه دى . (بحار ٦\١١٠)

ðخدا ى پاک وايي :”ستريا” مې څادر دى؛نو څوک چې په کبر زما په “ستريا” کې راننوځي ،په اورکې يې سوځوم . (منية المريد : ٣٣٠ مخ )

ðتوحيد نيم دين دى . ( التوحيد : ٦٨مخ )

 

زړه وژونکي

ð ( ١) له کنجوسو سره ناسته ( ٢) له ( نامحرمو ) ښځوسره خبرې او (٣) له شتمنو سره ملګرتوب زړه وژني . ( مشکاة الانوار : ٢٠٥مخ )

 

تاوتريخوالى

ðد پاک خداى او استازي يې پر خداى ايمان او له بندګانو سره يې په نرمۍ چلن ډېر ښه ايسي او له خداى سره شرک او له بندګانوسره يې تاوتريخوالى د خداى د غوسې لامل ګرځي .( بحارالانوار  ٧٢\٥٤)

ðنرمي د ښه انګېرنې لامل دى او تاوتريخوالى د شومۍ لامل دى . (الکافي ٢\١١٩ )

ðکه بد اخلاقي او تاوتريخوالى په انساني بڼه پيدا شوى واى؛نو ناوړه څيز به ترې نه و . ( الکافي ٢\٣٢١)

ðنرمي هر څه ښکلي کوي او حماقت هر څه ناوړه انځوروي؛نو څوک چې د نرمۍ له نعمته برخمن وي؛نو د دنيا او اخرت ښه ورکړ شوي دي او څوک چې ترې بې برخې شي؛نو د دنيا او اخرت له ښو بې برخې شوى دى. ( الجعفريات : ١٤٩)

 

خوشحالي

ðڅوک چې د خداى د غوسې په بيه خلک خوشحالوي؛نو پاک خداى به يې ستايونکى پر ملامتګر واړوي .( الکافي ٢\٣٧٢)

ðله بندګانو نه د خداى د خوشحالۍ نښه داده،چې واکمن يې عادل او د نرخونو ارزاني وي او پر بندګانو د خداى د غوسې نښه دا ده،چې واکمن يې ظالم او نرخونه ګران وي .( الکافي ١\١٦٢)

ðله چاچې خداى راضي وي او څه ترې وغواړي؛نو تر مړينې مخکې  يې ورکوي .(وسايل ١\٥٤)

ðڅوک چې په لږې روزۍ خوشحاله وي؛نو پاک خداى ترې په لږو کړو راضي کېږي .( تحف العقول : ١٠٧)

ðڅوک چې د خداى په ورکړې روزي خوشحاله وي؛نو سترګې يې روښانېږي .( التمحيص : ٥٣)

ðڅوک چې د خداى د غوسې په بيه واکمن خوشحاله کړي(؛نو) د خداى له دينه وتلى دى . (عيون اخبارالرضا ٢\٦٩)

ðڅوک چې خلک د خداى د غوسې په بيه خوشحالوي(؛نو) پاک خداى هغه خلکو ته ورپرېږدي او څوک چې خدای د خلکو د غوسې په بيه خوشحالوي؛نو خداى هغه د خلکو له شره ژغوري . ( اعلام الدين : ٣٣٤)

 

ژغورنه

ðهر بنده،چې د لمانځه وخت مهم  بولي؛نو زه يې تضمينوم،چې  ساه يې په اسانه ووځي،تشويش او کړاوونه يې لرې کېږي او د جهنم له اوره به ژغورل کېږي . ( الامالي للمفيد: ١٣٦مخ )

ðد مؤمن ژغورنه د ژبې په ساتنه کې نغښتل شوې ده . ( الکافي ٢\١١٤)

ðکه غواړې په نېکمرغۍ کې ژوند وکړې او مړينه دې شهادت وي او د قيامت پر ورځ وژغورل شې او د قيامت په سوځنده دښته کې تر سيورې لاندې او د بې لارۍ پر ورځ سمه لارښوونه غواړې (؛نو) قرآن زده کړه؛ ځکه هغه د رحمن (خداى) کلام دى،له شيطانه خوندي دى او په تله کې د دروندوالي لامل دى .(مستدرک الوسايل ٤\٢٣٢)

ðکه څوک غواړي،د ژغورنې په بېړۍ کې سپور شي او پر ټينګه کړۍ منګولې ښخې کړي او د خداى په رسۍ پورې ځوړند شي؛نو تر ما وروسته دې “علي” ښه وګڼي له دښمنانو سره دې يې دښمني وکړي او د اولاد په لارښوونو پسې دې يې ولاړ شي . (د حاکم حسکاني شواهد التنزيل  ١\١٦٨)

ðابوذره!څوک چې چوپ شي؛نو ژغورل کېږي؛نو چوپ وسه او هڅه کوه،چې بېخي دروغ ونه وياست .( سايل ١٢\٢٥١)

ðحلال اوحرام بېخي څرګند دي؛خو د دوى تر منځ شبهات شته؛نو که چا ترې ډډه وکړه،له حرامو ژغورل کېږي؛خو که څوک په شبهاتو کې ورګډ شو؛نو په حرامو به ککړشوى وي .( الکافي ١\٦٧)

ðڅوک چې پوهه د پوهې له اهله واخلي او عمل پرې وکړي؛نو ژغورل کېږي او څوک چې په پوهې دنيوي ګټې تر لاسه کوي؛نو يوازې همدا برخمنېدل به يې وي .(تهذيب الاحکام٦\٣٢٨)

ðپه رښتيا، ژغورنه په دې کې ده،چې خداى و نه غولوئ چې ( ددې په غبرګون کې)هغه هم تاسې تېرباسي؛نو ځکه څوک چې خداى تېرباسي؛ نو خداى هم هغه تېرباسي او ايمان ترې اخلي او که پوه شي؛نو ځان تېرباسي . وپوښتل شو: خداى څنګه تېرباسي ؟ آنحضرت ورته وويل : د کوم کار،چې خداى ورته ويلي،بل ته يې کوي؛نو د ريا لپاره له خدايه ووېرېږئ؛ځکه ريا له خداى سره شرک دى او د قيامت پر ورځ ريا کار ته په څلورو نومونوغږ کوي : کافره! فاجره! وعده خلافه ! او زيانکاره! کړه وړه دې له منځه ولاړل او بدلې دې پوپناه شوې،نن درته بېخي د ژغورنې لار نشته ؛نو ثواب دې له هغه وغواړه، چې ريا دې ورته کوله . (تفسير العياشي ١\ ٢٨٣)

 

خندا

ðله ډېرې خندا ډډه وکړئ ؛ځکه زړه وژني . (ميزان الحکمه : ١٠٦٨٥ح)

ðخپل زړونه په لږې خندا او لږوخوړو ژوندي وساتئ. (محجة البيضاء: ٥/١٥٤)

ðډېره خندا د ورکاوي لامل دى . (مستدرک الوسايل ٨\٤١٧ )

ðله ډېرې خندا ډډه وکړئ ؛ځکه زړه وژني او د مخ رڼا له منځه وړي . (معاني الاخبار: ٣٣٥ )

ðڅوک چې په خندا ګناه کوي؛نو په ژړا به جهنم ته ننوځي.(ثواب الاعمال :٢٢٣ )

ðډېرې ټوکې؛پت،ډېره خندا؛ايمان او ډېر دروغ د انسان ارزښت له منځه وړي . ( الامالي للصدوق : ٢٧مخ )

ðخندا زړه وژني او د ښځو کړس کړس خندا د خدای ښه نه ايسي . (وسايل  ٧\٧٦)

ðپاک خداى ماته شپږ څيزونه ناوړه ګڼلي،چې زه دا څيزونه خپلو وصي اولادونو ته او (همداراز) لارويانو ته مکروه ګڼم : ( ١) په لمانځه کې چټي کارونه ( ٢) په روژه کې کوروالى ( ٣)تر صدقې وروسته منت ايښوونه  (٤) په جنابت کې جومات ته ننووتل ( ٥) په مستراح کې خبرې کول .( ٦) اوپه هديره کې خندا. (فضائل الاشهرالثلاثة : ٧٦مخ )

 

خوب

ðد  حضرت “سليمان” عليه السلام مور ،سليمان ته وويل : زويه ! ځان د شپې له ډېرخوبۍ وژغوره؛ځکه دا چار د قيامت پر ورځ د تش لاسۍ لامل دى . ( من لايحضره الفقيه ٣\٥٥٦)

ðځمکه درې څيزونو ته چغې وهي،چې په څېر يې نورو ته نه وهي : هغه وينه،چې تويول يې حرام دي او پر ځمکه تويه شي،د زناکار د غسل اوبه،چې پر ځمکه تويې شي او څوک چې تر لمرخاته مخکې پر ځمکه ويده شي .( الخصال  ١\١٤١)

ðپه لومړي ځل له خدايه په شپږوڅيزونوسرغړاوى وشو : (١) له دنيا سره مينه ( ٢) له رياست (واکمنۍ) سره مينه (٣) له خوړو سره مينه(٤) له خوب سره مينه ( ٥) له راحت کولو سره مينه ( ٦) او له ښځوسره مينه . ( الکافي ٢\٢٨٩)

ðخوب د مړينې ورور دى . ( بحارالانوار  ٧٣\١٨٩)

ðد خوب پرمهال د (( الهکم التکاثر)) دسورت لوستل د قبر له عذابه د ژغورنې لامل دى .( الکافي ٢\٦٢٣)

ðد ورځې په سر کې خوب د بد اخلاقۍ لامل دى . قيلوله (غرمه مهال) خوب يو نعمت دى . تر ماسپښين وروسته خوب حماقت دى او د ماښام او ماسخوتن ترمنځ خوب له روزۍ د بې برخې کېدو لامل دى . (الجعفريات : ١٥٧)

ðد روژه تي خوب عبادت او ساه راکښل يې د خداى تسبيح ده. (روضة الواعظين  ٢\٣٥٠ )

ðکه د کوچنيانو او کمزوريو خوب نه واى؛نو د ماسخوتن د نفل لمونځونو وخت مې د شپې تر درېمې ځنډاوه. (علل الشرايع ٢\٣٦٧)

ðعلي! پوهېږې چې ځمکه تر لمر خاته مخکې د عالم له خوبه سختې چغې وهي او خداى ته شکايت کوي ؟ (دعائم الاسلام ١ \١٥٣)

ðغوره مو “اولى النهى” دي . وپوښتل شو:څوک دي؟ و يې وويل : هغوى چې د رښتياوو خوبونه ويني،ښه خوى لري،خواړه ورکوي،په  لوړ غږ سلام اچوي، خلک د شپې ويده وي؛خو دى عبادت کوي . (مستدرک الوسايل ٦\٣٣٤)

ðله خوبه،چې راوېښ شوئ ؛نو تر هغه لوښي ته لاس مه وړئ،څو مو مينځلى نه وي ( يا مو اودس نه وي کړى ) . (دنهج البلاغې شرح  ٢٠ \٢٧)

ðکه په خوب کې شيطان تېر اېستئ؛نو چاته يې مه وايئ.( بحارالانوار  ٥٨\ ١٧٤)

 

خواري

ðڅوک چې زما مؤمن بنده سپک کړي؛نو له ماسره به يې په جګړې لاس پورې کړى وي .( الکافي ٢\٣٥١)

 ðډېر هوښيار هغه دى،چې له خلکو سره ښه  چلن وکړي او (خلکو ته درانه وګوري) او ډېر خوار هغه دى،چې خلک سپک وګڼي. (بحارالانوار  ٧٢\٥٢)

ðچاچې مؤمن ته د بېوزلۍ او تنګلاسۍ له امله يې ټيټ وکتل؛نو خداى به يې د جهنم له پله اور ته ورګوزار کړي . (عيون اخبارالرضا ٢\٧٠)

ðد چا په مخ کې،چې يو مؤمن سپک (او ورټل) شي او دى يې د ننګې له  وس سره سره دفاع و نه کړي؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ د ټولو بندګانو په مخ کې سپک او خوار کړي . ( دنهج البلاغې شرح \ ٦٩)

 

غوښتل

ðکه څوک غواړي ډېر غني وي؛نو څه چې د خداى په لاس کې وي، ورته ډېرهيلمن وي،نه هغه چې له نورو سره وي . (الکافي :٢\١٣٩)

ðد مسعود زويه ! هيلې دې لنډې کړه؛داسې چې ګهيځ ووايې،چې تر مازيګره به نه يم او مازيګر ووايې،چې تر سهاره به نه يم او هوډ وکړه،چې ځان له دنيا بېل کړې . (مستدرک الوسايل ٢\١٠٨)

ðکه څوک د آدم (ع) علم  او د “نوح” (ع) فهم ( او پوهېدنې ) ته ګوري ؛نو علي ته دې وګوري . ( بحارالانوار ٣٩\٣١)

ðخداى تعالى يو څيز ځان ته خوښوى؛خو خپلو مخلوقاتو ته  يې نه خوښوي؛د خپلو بندګانو ګدايي نه خوښوي؛خو له ځانه غوښتل خوښوې او د خداى دا ډېر ښه ايسي،چې بنده ترې يو څيز وغواړي ؛ نو له خدايه د هغه د فضل په غوښتنه كې حيا مه كوئ ان كه د څپلۍ پياړمه وي . ( الكافي  ۴\ ۲۰ )

ðله خلكو غوښتنه د انسان له خپلې ابرو او پت سره معامله ده؛ نو سړى بايد ځير شي،چې ابرو يې پاتې كېږي او که ځي . ( الجعفريات : ۵۶)

 

نېکي

ð “نېکي” عمر زياتوي او “دعا” قضا وقدر بدلوي . (بحارالانوار ٩٠\ ٢٩٦)

ðد نېکۍ درې زېرمې دادي :د رنځونو پټول،ناروغي او صدقه ورکول . ( بحار ٨٢/١٠٣)

ð يوازې “نېکي” د انسان عمر زياتولاى شي . ( بحار ٧٧ /١٦٦)

ðبشپړه نېکي هغه ده،چې څه په ښکاره کوې،په پټه يې هم وکړې . (کنز: ٥٢٦٥ح ) 

ð هغه دې خوښ وي ،چې خداى ورته په لاسونوکې د نېکۍ کونحيانې اېښي وي . ( کنز ١٥/٧٦٩)

ðپه نړۍ کى د خداى  د احکامو لاروي وکړه (متقي وسه) او په هرې بدۍ پسې نېکي وکړه،چې پرې له منځه ولاړه شي او د خداى له بندګانوسره ښه چلن وکړه . ( احمد-ترمذي– الدارمي)

ðهيڅ ډول نېکي سپکه مه ګڼئ؛نو که څه نه لرئ،چې مسلمان ورور ته يې ډالۍ کړئ ؛نو په خندا او ورين تندي ورسره مخامخ شه او چې غوښه دې پخوله؛نو اوبه پکې ډېرې کړه،چې ښوروا يې ګاونډي ته هم ډالۍ کړې . (ترمذي)

ðڅوک چې د نېکۍ وړتيا لري که نه لري،نېکي ورسره وکړه؛ځکه که وړتيا نه لري؛نو ته خو د کرامت او لورنې وړتيا لرې .(وسايل ١٦\٢٩٥)

ðنېکي د ناوړو پېښو د مخنيوۍ لاملېږي او صدقه د پالونکي غوسه سړوي .( قرب الاسناد : ٣٧مخ )

ðد ښه کار پاى ته رسول تر پيلېدو يې ډېر مهم دي . (مستدرک الوسايل  ٧\٢٣٧)

خواړه

 ðپه مړښت او د جنابت په حال کې خوراک د برګي (پيس) د ناروغۍ لاملېږي .( روضة الواعظين٢\ ٣٠٨- الامالي للصدوق : ٥٤٣)

ðپه کيڼ لاس خوراک جفا ده .( الجعفريات : ١٦٢)

ðد عدسو(خوراک) مبارک او سپېڅلي خواړه دي،چې زړه نرموي، اوښکې زياتوي او خداى اويا پېغمبرانو ته مبارک کړي،چې وروستى  يې “عيسی دمريمې” زوى و .( الدعوات : ٤٨\)

ðڅوک چې خاورې وخوري او مړ شي؛نو “ځان وژنى” به وي .( الکافي ٦\٢٦٦)

ðڅوک چې “هوږه” او “پياز” وخورى؛نو زموږ جومات ته دې نه رانږدېږي .( عوالي الاللي  ١\ ١٠٣)

ðڅوک چې “انار” وخوري (؛نو) زړه يې نوراني کېږي او تر څلوېښتو ورځو پورې ترې شيطان لرې کېږي .( سايل ٢٥\١٥٣)

ðڅوک چې بې له بلنې خواړه وخوري؛نو خواړه يې په ګېډه کې د اور په لمبه اوړي او کومو خوړو ته چې بلل شوي ياست،بې له اجازې يې نورو ته مه ورکوئ .( دعائم الاسلام  ٢\١٠٨ )

 ðخواړه مو چې وخوړل؛نو خپلې ګوتې وڅټئ؛ځکه برکت پکې دى . (مستدرک الوسائل  ١٦\٢٨٦)

ðڅوک چې هره ورځ (٢١) دانې مميز وخوري؛نو بې له مرګونې ناروغۍ؛په نورو به اخته نشي. (دعائم الاسلام ٢\١٤٨)

ðڅوک چې غټه مړۍ په خوله کوي؛نو پاک خداى به يې په همدومره غټې ناروغۍ اخته کړي . د “غوا” غوښه د ناروغۍ لامل دى؛خو غوړي او شيدې يې دوا ده . (عائم الاسلام  ٢\ ١١١)

 ðڅوک چې د خوب پر مهال اوه کجورې وخوري؛ نو د کولنجو (بادو) له ناروغۍ به خوندي وي او د ګېډې چينجي يې له منځه وړي . (مستدرک الوسايل  ١٦ \٤٦١)

ðڅوک چې کومه مېوه وخوري او”بسم الله” ووايي؛نو زيان نه ور رسوي . ( مستدرک الوسايل  ١٦  \ ٤٦١)

ðڅوک چې خاوره وخوري ؛نو ملعون دى . ( بحارالانوار  ٥٧ \ ١٥٣)

ðغوښه وخورئ؛ځکه په بدن کې د غوښې د راټوکېدو لامل دى؛څوک چې څلوېښت ورځې غوښه و نه خوري؛نو بدخويه کېږي او څوک چې “وازده” يا “لم” وخوري؛نو په هومره ناروغۍ اخته کېږ ي . ( المحاسن  ٢\ ٤٦٥)

ðڅوک چې له “عدسو” (شاکلول) سره د “کدو حلوا” وخوري؛نو د خداى د يادولو پر مهال يې زړه نرمېږي او د کوراوالي قوت يې زياتېږي.  

ðڅوک چې سود وخوري ؛نو پاک خداى يې په هماغه اندازه په ګېډه کې اور ننباسي او څوک چې له دې ماله څه لاس ته راوړي؛نو خداى يې يو عمل  هم نه قبلوي او تر هغه چې ددې مال يو ذره هم ورسره وي؛ نو خداى او پرښتې پرې لعنت وايي . ( ثواب الاعمال : ٢٨٥)

ð خواړه ګډ وخورئ او مه خپرېږئ ؛ځکه په ګډ خوراک کې برکت دى . (بحار ٦٢/٢٦١ )

ð له ډېرخورۍ ډډه وکړئ .( الحياة ٤/٢٠٦)

ðچې وږى شوې (؛نو) خواړه وخوره  او لا،چې موړ شوى نه يې؛نو پرې يې ږده . ( بحار ٦٢/٢٩٠)

 

لمر

ðکومې اوبه،چې په لمر تودې شوې وي،نه پرې اودس وکړئ او نه غسل او نه يې مينځلو ته وکاروئ ؛ځکه د برګي (پيس) د ناروغۍ لاملېږي . ( الکافي ٣\١٥)

ðلمر څلور ځانګړنې لري : ( ١) رنګ اړوي ( ٢) بوى بدوي .(٣) جامې خرابوي او ( ٤) دناروغۍ لاملېږي . (وسايل ١٢\ ١١٠ )           

 

خطاطي

ðښه ليک،د روزيو له کونجيانو دى . ( بحارالانوار  ٧٣\٣١٨)

ðمشواڼۍ دې ډکه کړه،قلم کوږ نيسه،”ب” اوږده ليکه ، د سين غاښونه بېل ليکه، د ميم منځ مه ډکوه،”الله” په ښه ليک کښه او “رحمن” اوږد او “رحيم” په ظرافت وليکه او قلم دې پر کيڼ غوږ کېده، چې ورک يې نه کړې  .( منية المريد: ٣٤٩)

 

په ژوند کې بسياېنه

ðپر هغه دې خوشحالي وي،چې مسلمان وي او روزي يې هم کافي وي . ( الکافي  ٢\١٤٠)

 

خپلوان

ðکه کوم خپلوان دې اړ وي ؛نو د صدقې ورکړه بل چا ته روا نه ده . ( من لايحضره الفقيه ٤\٣٦٨)

ðپه جنت کې يو مقام دى،چې يوازې عادل واکمن،پر خپلوانو زړه سواند او زغمناک عيالوار ورته رسېداى شي . (الحضال ١\ ٩٣)

ðزړه سوى د لوراند خداى له لوري يوه څانګه ده؛نو څوک چې پر خپلوانو زړه وسوځوي؛نو خداى ورسره اړيکه ټينګوي او څوک چې يې و نه سوځوي؛خداى هم ورسره اړيکه پرېکوي . (کشف الغمه ١\ ٥٥٣)

ðله خپلوانو سره اړيکې ټينګې کړئ،که څه هم په يو ځل سلام اچولو وي .(تحف العقول : مخ ٥٧)

ð له خپلوانوسره دې “ليده کاته” کوه،که څه هم يو کال مسافرت ته اړشوې . (بحار ٧٤/١٠٣)

ð خپلوانو ته مو پام وسه،خپلوانو ته مو پام وسه . ( کنز: ٦٩١٣ ح )

ð څوک چې له خپلوانوسره اړيکې پرې کړي؛نوجنت ته نشي تلاى . (عوالى اللئالى ١/ ٢٧٠ )

 

خياطي – ګنډل

ðخياطي مؤمنې ته ښه بوختيا ده . ( الجعفريات : ٩٨مخ )

ðخياطي صالح ښځې ته ښه تفريح ده . ( وسايل الشيعه ١٧ \ ٢٣٧)

 ðخياطي د نېکانو نارينه وو کار دی .( مستدرک الوسايل ١٣\٢٢٦)

 

خيانت

ðامانت ساتنه روزي زياتوي او خيانت د بېوزلۍ لاملېږي . (الکافي  ٥\١٣٣)

ðدسيسه،چل او خيانت انسان جهنم ته راکاږي .(مستدرک الوسايل ٩\٨٠)

ðخاين او خاينې ته د شاهدۍ ورکولو اجازه نشته .(مستدرک  ٧١\٤٣٤)

ðله مسلمان سره خيانتګر له موږه نه دى .(ثواب الاعمال : ٢٨٦مخ )

ðڅلور څيزونه دي،چې که کوم کور ته لار پيدا کړي؛نو ويجاړوي يې او برکت يې له منځه وړي : ( ١) خيانت ( ٢) غلا(٣) شرابخوري .( ٤)  زنا. ( الامالي للطوسي : ٤٣٩)

ðکه څوک په کومه معامله کې له خيانته خبر وي؛نو په معامله کې د خيانتکار په څېر دى او څوک چې حق ته په رسېدو کې د مسلمان ورور مخه ونيسي؛نو روزي پرې حرامېږي؛خو هله چې توبه وباسي . (من لايحضره الفقيه ٤\١٥)

ðابوذره! څه چې په غونډه کې وينې او واورې ؛نو دا درسره امانت دى او د مسلمان ورور د راز رابرسېرول ورسره خيانت دى .( وسايل الشيعه : ١٢\ ٣٠٧)

ðپه پوهه او علم کې د يو بل “خيرغواړي” او ناصح وسئ؛ ځکه په علم کې خيانت،په مال کې تر خيانت سخت عذاب لري او د قيامت پر ورځ يې خداى په اړه تاسې پوښتي . (الامالي للطوسي : ١٢٦)

ð خپل باوري اعتمادي هېڅکله يې مه تورنوه او پر يو ځل ازمېيل شوي خاين هم هېڅکله باور مه کوه .( قرب الاسناد: ٤١مخ )

ðڅوک چې د خپل مؤمن ورور د اړتيا د لرې کولو لپاره هڅه کوى؛خو د هغه “خيرغواړى” او ناصح نه وي؛نو په حقيقت کې د خداې او د هغه له استازي سره يې خيانت کړی .( الکافي  ٢\ ٣٦٢)

ðڅوک چې د خپل ګاونډي ان يوه لوېشت ځمکه لاندې کړي؛نو پاک خداى به د ځمکې د کړۍ هومره غاړه کۍ ورپرغاړې کړي . (الامالي للصدوق : ٤٢٧)

ðکه څوک په دنيا کې کوم امانت خيانت کړي او تر مړينې وړاندې يې بېرته ورنه کړي؛نو بې له اسلامه به پر بل دين مړ شوى وي او خداى به په غوسه ورسره وويني . ( من لايحضره الفقيه ٤\ ١٥)

ðڅوک چې امانت ته سپک ګوري؛داسې چې د بېرته ورسپارلو تر وخته يې ولګوي ؛نو له موږه نه دى او همداراز څوک چې د مسلمان په مال او کورنۍ کې خيانت وکړي؛نو له موږه نه دى .( الاختصاص : ٢٤٨)

ð که چا درسره خيانت(هم) کړى وي ،ته يې ورسره مه کوه . (وسائل ١٢/ ٢٠٢)

ðڅوک چې د نورو په امانت کې خيانت کوي له ما ځينې نه دى . ( بحار ٧٥/١٧٢)

ðدا خيانت دى،چې ملګرى دې تا په هر خبره کې رښتونى وګڼې؛خو ته ورته دروغ وايې . (هماغه)

 

خير

ðڅوک چې انګېري،چې “خير و شر” بې د خداى له ارادې کېږي؛نو د پاک خداى واکمني به يې تر پوښتنې لاندې نيولې وي .(الکافي ٢\ ١٤٢)

ðد “زړه سوي” بدله تر ټولو ښو کارونو ډېر ژر رسي.(الکافي ٢\١٥٢)

ðد ښو چارو ګومارونکى؛لکه پخپله کوونکى داسې دى . (الکافي ٤\٢٧)

ðعلي!خبره يوازې په عمل ارزښت مومي او همداراز ظاهر په باطن، شتمني په بخشش،رښتيا ويل په وفا،فقه په پرهېزګارۍ،صدقه په نيت،ژوند په روغتيا او هېواد په امنيت او ښادۍ ارزښت مومي . (من لايحضره الفقيه ٤\ ٣٦٨)

ð ډېرغوره هغه دى،چې تر ټولو مخکې جومات ته ننوځي او تر ټولو وروسته راووځي .( مستدرک الوسايل٣\٣٦٢)

ð ډېر غوره هغه دى،چې خلک ترې ګټور شي او ډېر ناوړه هغه دى،چې خلک وځوروي او هغه تردې لا ډېر ناوړه دى،چې خلک يې د شر له امله احترام کوي او تر دې هغه خورا ناوړه دى،چې خپل دين د بل په دنيا وپلوري . (مستدرک الوسايل ١٢\ ٧٧)

ðبدعت ډېر ناوړه چار دى او هغه ډېر غوره چار ده،چې د خداى د رضا لپاره وشي . ( بحارالانوار  ١٠ \ ١١٠ )

ðډېره غوره چار،پرېکنده هوډ کول دى .( بحار  ٢١\٢١٠ )

ðڅوک چې (قرآن) تر نورو ډېر سم  لوستاى شي؛نو د جماعت امام دې شي او په حاضرو کې دې ډېر غوره اذان ووايي .(من لايحضره الفقيه ١\ ٢٨٥)

 

شتمني

ðد کومې شتمنۍ،چې زکات ور نه کړل شي؛نو ملعونه ده . (الکافي ٢\٢٥٨)

ðد خپلې شتمنۍ سمونه د مړانې يوه نښه ده .(من لايحضره الفقيه٣\ ١٦٦)

ðد مړي له شتمنۍ يې لومړى کفن وپېرئ بيا يې پورونه ورکړئ، ورپسې يې وصيت عملي کړئ او بياچې څه پاتې شول؛نو هغه يې ميراث شو .( تهذيب الاحکام ٦\١٨٨)

ðڅوک چې په ناحقه د مؤمن شتمني غصب او لاندې کړي او ځان ته يې ځانګړې کړي؛نو پاک خداى ترې مخ اړوي او له کړنو ان  په ښو چارو يې هم غوسه وي او په کړنليک کې يې ورته نه ليکي؛خو هله چې توبه وکاږي او غصب کړاى شوې شتمني بېرته خپل خاوند ته وسپاري . (ثواب الاعمال ٢٧٣)

ðعلي ! د مؤمنينو مشر دى او شتمني د منافقينو مشره ده . (الامالي للطوسي : ٣٥٥)

ðشتمني زما د امت فتنه ده . ( روضة الواعظين ٢\ ٤٢٩)

ðد آدم اولاد زړېږي؛خو دا خويو نه پکې ځوانېږي : ( ١) د شتمنۍ حرص (٢) او د عمر حرص .( روضة الواعظين ٢\ ٤٢٧)

ðڅوک چې ددې باک نه لري،چې خپله شتمني له کومه لاس ته راوړي ؛ نو خداى هم پروا نه لري،چې له کومه ځايه يې جهنم ته ننباسي .( عدة الداعي : ٨٢مخ )

ð شتمني د الهي تقوا د تر لاسي غوره مرستندوى ده .تحف العقول :٤٩)

ðمال او شتمني زما د امت د ازمېښت وسيله ده .(ترمذي)

ðله شتمنۍ او مقام سره مينه،د انسان دين ويجاړوي . (ترمذي– الدارمي)

ðد وسايلو ډېرښت شتمني نه ده؛بلکې اصلي شتمني د زړه غنا ده . (صحيح بخاري )

ðبې عدالته واکمن ،د شتمنۍ د حق نه ورکوونکى شتمن او کبرجن بېوزلى، لومړني دوزخ ته ننووتونکي دي . (عيون اخبارالرضا ٢\٢٨)

ðتر ځان وروسته مې امت ته د درې څيزونو په اړه وېرېږم : دا چې قرآن څنګه چې دى،بې له هغه يې تاويل کړي،عالم په “خوګانو” لټولو پسې شي او داچې مال يې ډېر شي،سرغړونه او بې پروايي وکړي او ددې کړنو چاره داده : د قرآن په اړه يې پر “محکماتو” عمل وکړئ او پر “متشابهاتو” يې ايمان راوړئ . د عالم راستنېدو ته سترګې پر لار وسئ او په خوګانو پسې يې مه ګرځئ او همداراز د شتمنۍ لپاره يې شکر وباسئ او لازم حق يې پوره کړئ . (الخصال  ١\١٦٤)

ðخداى ته غوره کړنې دادي : ( ١) هغه ايمان،چې شک پکې نه وي . (٢) ناستومان جهاد او مبارزه .( ٣) او حج،چې سوچه (د خداى لپاره) وشي او هغوى چې لومړى جنت ته ننوځي دادي :(١) شهيد( ٢) هغه مريى ، چې د خداى ښه عبادت کوي او د خپل پالندوى ناصح او خيرغواړى وي .

 

درمل

ðدرد او درمل درې څيزه دي .دردونه دا دي :”وينه”،”صفرا” او “بلغم”. حجامت د وينې درمل دى . حمام کول د صفرا او پلي تګ د بلغمو درمل دى . ( من لايحضره الفقيه  ١\ ١٢٦)

ðد دردونو علاج وکړئ؛ځکه د درد رالېږونکي درمل هم رالېږلي دي . (الدعوات : ١٨٠ مخ )

 

پوهه

ðپر هر مسلمان د علم زده کړه فرض ده او پوه شئ،چې د علم زده کوونکى د خداى تعالى ښه ايسي . ( الکافي ١\ ٣٠ )

ðڅوک چې د علم د زده کړې لپاره لار ووهي؛نو پاک خداى ورته د جنت لار هواروي او پرښتې يې تر پښو لاندې په خوشحالۍ خپل وزرونه غوړوي او څه چې په اسمان او ځمکه کې دي، ان “کب” ورته په سمندر کې بښنه غواړي او عالم پر عابد دومره غوره دى؛لکه مياشت،چې يې د “بدر” (څوارلسمې)په شپه پر ستورو لري او عالمان د پېغمبرانو وارثان دي .(الامالي للصدوق : ٦٠ مخ )

ðحواريونو حضرت عيسى ( ع) ته وويل : روح الله! له چاسره ناسته پاسته وکړو؟حضرت ورته وويل : له هغه سره،چې ليدل يې خداى دريادوي ،خبرې يې ستاسې کړه وړه زيات کړي او کړنې يې تاسې آخرت ته ورمات کړي . ( الکافي  ١\ ٣٩ )

ðدوه وږي دي،چې هېڅکله نه مړېږي 🙁 ١) د دنيا غوښتونکى ( ٢) او د علم زده کوونکى؛نو څوک چې له دنيا د حلالو هومره ګټه واخلي؛نو روغ رمټ پاتې کېږي او څوک چې بې له دې وخوري؛نو ورکېږي؛خو هله چې توبه وکاږى يا حرام ورته بېرته وګرځوي او څوک چې له عالمه،علم زده کړي او عمل پرې وکړي؛نو ژغورل کېږي او څوک چې تر لاسه کړې پوهه  د دنيا لاس ته راوړو وسيله کړي؛نو له علمه يې برخه همدا ده .

ðعلم د ايمان ښه وزير دى . زغم د علم ښه وزير دى . ملګرتوب د زغم ښه وزير دى  او صبر د ملګرتوب ښه وزير دى . ( الجعفريات : ٨٨مخ )

ðخداى ته ډېره پوهه تر ډېر عبادته غوره ده . (وسايل الشيعه٢٠\ ٣٥٧)

ðپوه په ناپوهانو کې داسې دى؛لکه په مړيو کې ژوندى . (الامالي للمفيد : ٢٨ مخ  )

ðپه مؤمن کې د غوړه مالۍ او کينې خوى يوازې د علم د زده کړې پر مهال وي .( مستدرک الوسايل ٩\ ٨١)

ðپينځه څيزونه دي،چې سپمول او ستنول يې روا نه دي : اوبه، مالګه، امنيت، اور او علم  . ( الجعفريات : ١٧٢)

ðڅوک چې د عالم کتنې او ليدو ته ورشي؛لکه چې زما ليدو ته راغلى او څوک چې له عالم سره روغبړ وکړي؛لکه چې له ماسره يې روغبړ کړى او څوک چې له عالم سره ناسته وکړي،د هغه په څېر دى،چې له ماسره يې ناسته کړې وي او څوک چې په دنيا کې زما ملګرى وي؛نو د قيامت پر ورځ به هم زما ملګرى وي او څوک چې د علم د زده کړې پر مهال مړ شي؛ نو شهيد حسابېږي .(مستدرک الوسايل ١٧ \٣٠٠ )

ðپه مينه د عالم مخ ته کتل عبادت دى . ( الجعفريات : ١٩٤)

ðد علم زده کړى نه مري؛خو داچې له خپلې هڅې برخمنېږي . (بحارالانوار  ١\ ١٧٧ )

ðپر قرآن پوهېدنه او د تاويل پېژندنه او تفسير يې غوره نعمت دى، چې خداى يې کوم بنده ته ورکوي . ( بحار ١\ ٢١٧)

ðعلم زده کړئ،که څه هم په “چين” (لرې واټن کې هم) وي . (روضة الواعظين  ١\ ١١)

ðعالم او زده کړى،په ثواب کې شريک دي،عالم دوه ثوابه او زده کړى يو ثواب وړي او بې له دې دوو کارونو،په بل کار کې خير نشته . (بحار ١\ ١٧٣)

ðعالمان دوه ډلې دي : هغه عالم،چې له خپل علمه ګټه اخلي او ژغورل کېږي او هغه عالم،چې له خپل علمه ګټه نه اخلي او ورکېږي . دوزخيان د هغه عالم له بدبويه تنګېږي،چې پر خپل علم يې عمل نه دى کړى . په دوزخيانو کې به هغه ډېر پښېمانه وي،چې يو څوک يې د خداى لوري ته رابللى وي او د هغه بلنه يې منلې وي او د خداى (د احکامو) لاروي يې کړې وي او خداى جنتي کړى هم وي ؛خو بلونکى د بې عملۍ او د ځاني غوښتنو او اوږدو هيلو له امله دوزخ ته ولاړ شي؛ځکه د ځاني غوښتنو لاروي،انسان له حقه منع کوي او اوږدې هيلې د اخرت د هېرولو لاملېږي . ( الکافي ١\ ٤٤)

ðپاک خداى له علمي مباحثه کوونکيو سره يو ساعت ناسته تر هغو زرو شپو لمونځ کولو ښه ګڼي،چې زر رکعته لمونځ پکې وکړي او همداراز تر زر غزاګانو او د ټول قرآن تر لوستو.(بحار ١\٢٠٣)

ðپه علمي مباحثو کې يو ساعت ناسته درته تر هغه يوکال عبادته غوره ده، چې د ورځې روژه يې او د شپې لمونځونه کوي او د عالم مخ ته کتل درته د زر بندګانو تر ازادولو غوره دي . ( بحار ١\٢٠٣)

ðکه مؤمن مړ شي او يوازې يو مخ (پاڼه) علمي مطلب ترې پاتې شي؛ نو په قيامت کې به دغه مخ د هغه او اور ترمنځ مانع شي او پاک خداى به د هغه د هر ټکي په مقابل کې يو ښار ورکړي،چې ددې دنيا اوه ځل هومره به وي او مؤمن،چې يو ساعت د عالم تر څنګ کېني؛نو خداى تعالى غږ کوي : داچې زما د دوست ترڅنګ کېناستې؛نو پر عزت او جلال مې قسم،چې په جنت کې به دې د هغه ملګرى کړم او ( په دې اړه) هيڅ باک نه لرم . ( الامالي للصدوق : ٣٨)

ðد خداى يو ساعت علمي مباحثه تر لسو زرو کالو عباداتو ښه ايسي او د قيامت پر ورځ دې د علم پر زده کړي خوشحالي وي .(مستدرک الوسايل ١٧ \٣٠٠ )

ðڅوک چې له خپله کوره ووځي او د علم په يو باب پسې وي؛نو پاک خداى يې،هر قدم ته د يو پېغمبر ثواب ليکي او هر ټکى،چې اوري يا ليکي،په جنت کې ورته يو ښار ورکوي . د علم زده کړى پر خداى،پرښتو او پېغمبرانو ګران وي . علم يوازې د نېکمرغو ښه ايسي؛نو د قيامت پر ورځ دې دعلم د زده کړې پر حال خوشحالي وي . پاک خداى د هغه هر قدم ته د “بدر د غزا” د شهيدانو ثواب ليکي او خداى ته ګران دى او د چاچې علم ښه ايسي؛نو جنت ورته واجبېږي او ګهيځ او ماښام د خداى په رضا کې ډوب وي او له دنيا تر هغه نه ځي،چې له “کوثر حوض” يې څښلې وي او له جنتي مېوو وخوري او په جنت کې به له حضرت خضر(ع) سره وي او دا ټولې (ځانګړنې) ددې آيت له امله دي،چې : ((خداى مؤمنانو ته غوراوى ورکوي او هغوى ته چې علم ورکړل شوى، د درجوخاوندان دي )) . ( بحارالانوار  ١\١٧٨)

ðچاچې علم زده کړ او بيا يې پرې خبرې و نه کړې،د هغه په څېر دى، چې زېرمې کوي اوڅه ترې نه بښي . (دسيوطي جامع الصغير)

ðپه کوچنيوالي کې د علم زده کړه؛لکه پر ډبره کښل دي او څوک چې په زړښت کې علم زده کوي؛لکه  پر اوبو يې،چې ليکي . ( دسيوطي جامع الصغير )

ð”زه” د علم ښار يم او “علي” يې “ور” دى ؛نو څوک چې علم غواړي؛ نو له وره دې ورننوځي .( کنز ٣٢٨٩٠ح )

ðعلم او پوهه زده کړئ،که څه هم چين ته په تګ اړ  شئ . (محجة ١/ ٢١ )

ð د علم  زده کړى ،د خداى دوست دى . ( جامع الاخبار ١١٠ / ١٩٥ )

ð له زانګو  تر قبره علم زده کړه . ( تفسيرالقمي ٢/ ٤٠١ )

ð په ناپوهانوکې د پوهې زده کړى؛لکه په مړيوکې ژوندى دى . (بحار ١/١٧٢)

ð د پوهانو د سپرلۍ وسيله يې د شهيدانو له وينې سره وسنجوله او پرې درنه شوه . ( کنز ٢ / ١٦)

ðله چاچې دې کوم ټکى زده کړ؛نو بنده يې شوې .(امالي الآلي١ /  ٢٩٢)

ð په علمي غونډوکې ګډون  عبادت دى .( العلم والحکمة : ٨٠٩ح )

ð څوک چې علم زده کړي او عمل پرې وکړي؛نوخداى به هغه څه وروښيي ،چې پرې نه پوهېږي .( کنز ١٠ / ١٣٢ )

ðڅوک چې زده کړې ته يوساعت خواري ونه زغمي؛نو تل به د ناپوهۍ په خوارۍ کې پاتې شي .( بحار ١/ ٧٧)

ðد علم زده کوونکى د خداى په فضل کې رانغښتل شوى دى .( عوالى اللآلي ١/ ٢٩٢) 

ðڅوک چې د علم په زده کړې پسې وي؛نوجنت به يې په لټه کې وي . (ميزان الحکمه : ١٣٧٨٤ح)

ðد قيامت پر  ورځ هره پوهه خپل خاوند ته وبال وي؛خو داچې عمل يې پرې کړى وي .( ميزان الحکمه: ١٤٠٢٢ح )

ðهغه پوهه،چې ونه کارول شي،د داسې خزانې په څېر ده،چې لګښت ترې ونشي. ( ميزان : ١٤٠٠٩ح )

ðلوى خداى چې عالم ته پوهه ورپېرزو کړي؛نو ژمنه يې ترې اخستې، چې نه به يې  پټوي . (پورته)

 

ښوونکى

ðپه حقيقت کې زه ښوونکى رالېږل شوى يم . ( کنز٢٨٨٧٣ح )

ð دخپلو ښوونکيو پر وړاندې عاجز او متواضع وسئ . (المعجم الاوسط  ١٦/ ٢٠٠ / ٦١٨٦ )

ð د خپل ښوونکي درناوى وکړئ . ( کنز ١٠ /٢٥٠ )

 

د عالم مړينه

ðدعالم مړينه نه جبرانېدونکى مصيبت او نه ډکېدونکې تشه ده. (منتخب ميزان :  ٤٤ ٧٧ح )

 

عالمان

ðپه ځمکه کې عالمان د اسمان د ستوريو په  څېر دي،چې [خلک ] پرې په وچو او د سمندر په تپو تيارو کې لار مومي،چې ستوري پرېووځي ؛ ډېر لارموندونکي ورک شي  . ( دامام احمد حنبل مسند)

 

ورمندون- قضاوت ( منځګړتوب)

ðدوو تنو،چې درنه منځګړتوب او قضاوت وغوښت؛نو تر هغه چې دې د دواړو خبرې نه وي اورېدلي،ترمنځ يې پرېکړه مه کوه؛ځکه که د دواړو خبرو ته غوږ ونيو؛نو حکم درته څرګندېږي . (من لايحضرالفقيه : ٣\١٣)                     

ðڅوک چې د ورځې ( ٢٥) ځل مؤمنو نارينه وو او ښځمنو ته دعا وکړي (؛نو) خداى يې زړه له کينې خالي کوي او د نېکانو په ډله کې يې ليکي،ان شاءالله. (الجعفريات : ٢٢٣مخ )

ðد هغه پر حال دې خوښي وي،چې ښه خوى ولري او خټه يې پاکه وي . دننه يې سمه او دباندې يې (هم) ښکلى وي؛تر خپل لګښت زيات (څيزونه د خداى په لار کې لګوي) له زياتو خبرو ډډه کوي او له خلکوسره په انصاف چلن کوي . ( الکافي  ٢\١٤٤)

ðد هغه پر حال دې خوښي وي،چې د قيامت پر ورځ يې تر هرې ګناه لاندې يو “استغفرالله” وي .( بحارالانوار ٥\٣٢٩)

ð په تاسې کې هوښيار غوره دي . رسول الله (ص) وپوښتل شو :دا څوک دي ؟ ورته يې وويل : د ښه خوى خاوندان،زغمناک،له مورو پلارسره نېک چلي،ګاونډيانو او پلارمړيو ته يې پام وي،خواړه ورکوي،په ډاګه سلام اچوي او د شپې،چې خلک ويده وي،لمونځ کوي ( وسايل الشيعه : ١٥\١٩١)

 

نېک

ðڅوک چې صالح دوستان او نېک اولاد ولري (؛نو) له نېکمرغيو به يې وي . ( مستدرک الوسايل ٩ \ ١٥٥)

ðڅوک چې د خپل موروپلار تر مړينې وروسته،له هغوى سره نېکي وکړي؛نو په قيامت کې به د “نېکانو مشر” وي . (پورته منبع ١٣\٤١٤)

ðله خدايه ډارن نېک،ډېرعاقل دى او بې غمه ګناهګار،ډېر ناپوه دى . ( بحارالانوار : ١\١٣١)

 

وصيت

ðڅوک چې بې وصيته ومري(؛نو بې ايمانه او) په جاهلي مرګ به مړشوى وي .( المجموع للنوي ١٥\٣٦٦)

ðمسلمان چې څه لري،حق نه لري،چې دوه شپې صبر وکړي او ويده شي او خپل وصيت ونه ليکي . ( بحراي  ٨\١٢٦)

 

اودس

ðتازه اودس کوه،چې له “پل صراطه” د ورېځې په څېر تېر شې .(بحار ٧٦/٤)

ðدرې کړنې د ګناهونو د بښنې لامل دي : ( ١) په ځيرتيا پوره اودس کول ( ٢) د جماعت لمانځه ته تلل او ( ٣) تر لمانځه وروسته،بل لمانځه ته انتظار اېستل . ( مستدرک الوسايل ١\ ٣٥٢)

ðاودس تر اوداسه د مخه ګناهونه له منځه وړي . ( فقه القرآن  ١\ ٤٢)

ðڅوک چې ښه او پوره اودس وکړي؛نو وړ دى،چې ستره الهي خوښه يې په برخه شي . ( مستدرک الوسايل  ١\ ٣٥)

ðپه قيامت کې به زما امت د نورو امتونو په منځ کې د اودس د نښو له امله سپين مخى راپاڅي . ( دعائم السلام  ١\ ١٠٠ )

ðاودس د ايمان يوه برخه او مسواک د اوداسه يوه برخه ده .( مستدرک الوسايل  ١\ ٣٦٤)

ðپاک خداى وايي :د چاچې په يوه حدث (ناپاکۍ) اودس مات شي او و يې نه کړي ؛نو له ماسره يې جفا کړې ده او تر اودس ماتي وروسته، چې چا اودس وکړ او دوه رکعته لمونځ يې و نه کړ ؛نو له ماسره به يې جفا کړې وي؛خو څوک چې تر اودس ماتي وروسته اودس او دوه رکعته لمونځ وکړي او دعا وکړي او زه يې ديني يا دنيوي دعا قبوله نه کړم ؛ نو ما به ورسره جفا کړي وي،حال داچې زه جفاکار خداى نه يم . (ارشادالقلوب  ١\ ٦٠ )

 

واکمني

ðڅوک چې درې ځانګړنې ولري، د واکمنۍ وړ دى : ( ١) داسې تقوا،چې له ګناه يې منع کړي.( ٢) داسې زغم ،چې له غوسې يې وژغوري .(٣) او د مهربان پلار په څېر له خلکو سره چلن ولري . (الکافي  ١\٤٠٧)

 

وليمه

ðوليمه په پينځو ځايو کې ده : ( ١) واده ( ٢) د اولاد زوکړه  (٣) د زوى سنتول (٤) د کور اخستل او ( ٥) له مکې د حاجي راستنېدنه .( الخصال  ١\٣١٣)

 

هجرت

ðمهاجر هغه دى،چې له ګناهونو هجرت وکړي او الهي محرمات پرېږدي . (سنن النبي)

ðڅه چې د خداى نه خوښېږي،پرېښوول يې غوره هجرت دى.  (کنز ٤٦٢٦٣ح )

 

ډالۍ

ðډالۍ ومنئ او عطر غوره ډالۍ ده،چې وړل راوړل يې اسان او بوى يې ښه دى .( تحف العقول : ٦٠مخ )

ðډالۍ ورکړئ ؛ځکه کينې پاکوي او دښمنۍ له منځه وړي . (الکافي ٥\١٤٣)

ðد ليدوکتو پر مهال لاسونه او ډالۍ ورکړئ؛ځکه لاسونه ورکول مينه زياتوي او ډالۍ کينې له منځه وړي .( مستدرک الوسايل١٣\ ٢٠٥)

ð بلنه ومنئ او د چا ډالۍ مه ورستنوئ . ( مسنداحمد١/٤٠٤)

ð يو بل ته ډالۍ ورکړئ،چې کينې له منځه وړي .( الکافي ٥‌/١٤٤)

ðغوره ورور مو هغه دى،چې عيبونه مو در ډالۍ کړي . (تنبيه الخواطر ٢/١٢٣)

 

 

ګاونډى

ðد کور د مخې،شا،ښي او کيڼ لوريو تر څلوېښتو کورونو پورې ګاونډ شمېرل کېږي .( الکافي٢\٦٦٧)

ðپوه شئ ،څوک چې ګاونډى يې له شره خوندي نه وي (؛نو) پر خداى او د قيامت پر ورځې ايمان نه لري(او بايد) ګاونډى يې،چې ترې پور غواړي، ور يې کړي،که ګاونډي ته يې څه خير (او خوښي) ورسي؛نو پرې خوشحاله شي او که کوم کړاو ورورسېد؛نو تسلي ورکړي . د کور په جوړولوکې يې ځمکه لاندې نه کړي(که په کوم کارکې ورته څه زيان و)؛ نو هغه دې نه ځوروي يا دې ترې اجازه واخلي،که مېوه يې وپېرله؛ نو ور دې يې کړي اوکه ور يې نه کړي؛نو د هغه له سترګو پټ دې يې خپل کور ته يوسي او اولاد ته يې داسې څه ور نه کړي ،چې د ده پر اولاد  غوسه شي . ( روضة الواعظين ٢\٢٨٨)

 

د شرافت لامل

ðله دينوالو سره ناسته پاسته د دنيا او اخرت د شرافت لامل دى. (الکافي١\٣٩)

 

د ورکاوي لاملونه

ðدرې څيزونه په ورکاوي کې راځي :کنجوسي ،د ځاني غوښتنو لاروي او کبرکول .( وسايل الشيعه ١\١٠٢)

ðد “لوط” قوم د لسو ځانګړنوله امله پوپناه شو،چې دا دي : ( ١) لواطت کول ( ٢) يو بل ته يې ارموني ويل (٣) کوترې الوځول (٤) ساز وسرود کول(٥) شراب څښل(٦) د ږيرو وهل(٧) د اوږدو برېتو پرېښوول (٨) شپېلي وهل (٩)چکچکې وهل(١٠) د ورېښمينو جامو اغوستل او زما امت يوه بله ډېره ناوړه ځانګړنه هم لري : ښځې به يې له ښځو خپل شهوت سړوي . ( دسيوطي جامع المغير: ٢\١٥٥)

 

 

د خداى ياد

ðپه يقين،ګهيځ او ماښام د خداى يادول،د خداى په لار کې تر تورو ماتولو غوره دي .( وسايل ٧\١٥٠ )

تبصره : امام صادق ( الکافي : ٢\٥٢٢) ددې روايت په اړه وايي :چې تر لمر ختو مخکې او تر لمر پرېوتو وروسته داسې شېبې وي،چې دعا پکې قبلېږي .

ðڅوک چې په بازار کې د خلکو د غفلت او بوختيا پر مهال خداى ياد کړي (؛نو) خداى ورته زر نېکۍ ليکي او د قيامت پر ورځ ورته داسې بښنه ورډالۍ کوي،چې د هيچ بشر په زړه کې نه تېرېږي .(عدة الداعي: ٢٥٧مخ )

ðڅوک چې خداى ډېر يادوي(؛نو د خداى (هم) خوښېږي . (بحارالانوار٦٦\٣٤٩)

ðد خداى ياد،د ايمان نښه، له دوه مخۍ پرېکون، د شيطان پر وړاندې مورچه او د اور پر وړاندې خوندېينه ده . (مستدرک الوسايل ٥\٢٨٥)

ðبې د خداى له ياده ډېرې خبرې مه کوئ؛ځکه زړه سختوي او سخت زړى له خدايه ډېر لرې وي .( مشکاة الانوار: ٥٦مخ )

ðڅوک چې (په رښتيا) د خداى ومني او احکام يې عملي کړي (؛نو) هغه به يې ياد کړى وي،که څه هم لمونځ ،روژه او د قرآن لوستل يې لږ وي او څوک چې د خداى و نه مني (او له احکامو يې سرغړونه وکړي؛نو) هغه به يې هېر کړى وي،که څه هم لمونځ،روژه او د قرآن لوستل يې ډېر وي .( معاني الاخبار: ٣٩٩مخ )

 

د مرګ ياد

ðد خوندونو ورانوونکى ډېر درياد کړئ،وپوښتل شو: دا څه دي؟ آنحضرت (ص) ورته وويل : د مرګ ياد او هغه ډېر ځيرک مؤمن دى،چې مرګ ډېر يادوي او ډېر تيارى يې ورته نيولى وي .(الجعفريات : ١٩٩مخ )

ðغوره زهد،غوره عبادت او غوره تفکر،د مرګ يادول دي؛نو څوک چې مرګ ډېر يادوي؛نو خپل قبر به د جنت په يوه باغ کې ومومي . ( جامع الاخبار : ١٦٥)

ðزړونه د اوسپنې په څېر زنګ نيسي؛خو د قرآن په لوست او د مرګ په يادونه جلا مومي . ( د نهج البلاغې شرح : ١٠ ٢٣)

ðمرګ،چې د خوندونو له منځه وړونکى دى،ډېر ياد کړئ . (محجة ٨ /٢٣٩ )

ð تر مرګ وړاندې مرګ ته چمتو وسئ . ( کنز١٥/٥٤٢)  

 

مرسته

ðڅوک چې د مؤمن مرسته وکړي (؛نو) خداى يې ( ٧٣) کړاوونه لرې کوي،چې يو يې په دنيا او نور يې د قيامت پر ورځې،چې د ستر کړاو ورځ ده او د هر چا خپل ځان ته پام وي (نه نورو ته) (لرې کوي) . ( الکافي  ٢\١٩٩ )

ðخداى پر هغه لورېږي،چې له خپل اولاد سره په ښو چارو کې لاسنيوى وکړي .( الکافي ٦\٥٠)

ðڅوک چې د خداى د رضا لپاره د مسلمان ورور د اړتيا د لرې کولو لپاره وځغلي؛لکه زر کاله چې يې د خداى داسې خدمت کړى وي،چې د سترګو د رپ هومره يې  ترې سرغړونه نه وي کړې .( کنزالفوائد١\ ٣٥١)

ðڅوک چې له کمزوري او بېوزلي سره مرسته وکړي(؛نو) خداى ورسره مرسته کوي او د قيامت پر ورځ ورته پرښتې ټاکي،چې له اورينو کندو او هيبتناکو تمځايو په تېرېدو کې ورسره داسې مرسته وکړي،چې دود او تپ يې ور ونه رسي او روغ رمټ او خوندي له “صراط” پله جنت ته تېر شي .( د الامام العسکري تفسير : ٦٣٥مخ )

ðڅوک چې له ظالم سره په ظلم کې له پوهې سره مرسته کوي؛نو په حقيقت کې له ايمانه وتلى دى .( کنزالفوائد ١\ ٣٥١)

 

پلارمړى (يتيم)

ðد يتيم پر سر لاس راکاږه او بېوزليو ته خواړه ورکړه . (احمد)

ðڅوک چې له خپلې شتمنۍ د پلارمړي لګښت پر غاړه واخلي،چې له اړتيا خلاص شي ( او مادي خپلواکۍ ته ورسي) ؛نو په يقين چې جنت پرې واجبېږي .(من لايحضره الفقيه ٤\٣٧١)

ðڅوک چې د مهربانۍ له مخې د پلامړي پر سر لاس راکاږي؛نو چې څومره وېښتان يې ترلاس لاندې ول(؛نو) په قيامت کې ورته هومره رڼاګانې ورکوي .(من لايحضرالفقيه ٤\٣٧١)

ðډېر ناوړه خواړه  د پلامړي د مال خوړل دي . ( الکافي ٨\٨١)

ðعرش د پلارمړي د ژړا پر وخت لړزېږي؛نو خداى وايي : دا څوک مې (هغه) بنده ژړوي،چې په وړوکتوب کې مې ترې موروپلار اخستي ول؟ په عزت او دبدبې مې سوګند،چاچې له ژړا چوپ کړ؛نو جنت ورته واجبوم .(ثواب الاعمال : ٢٠٠مخ )

ðهغه ډېر غوره کور دى،چې د يتيم پکې عزت کېږي . (اثنى عشريه :١٨ مخ )

ðڅوک چې په مينه د يتيم پر سر لاس راکاږي؛نوخداى به يې په قيامت کې د ټولو وېښتانو هومره رڼا ور ډالۍ کړي . (بحارالانوار٧٧/٥٨)

ðيتيم او پلار مړي ته د مهربان پلار په څېر وسه او پوه شه څرنګه يې،چې کرې،هماغسې به يې رېبې . (بحارالانوار٧٧/١٧٢)

ðزه په جنت کې له هغه سره ددې دوو ګوتو[د شهادت ګوته يې له منځنۍ ګوتې سره نزدې کړه ]په څېر يم ،چې د پلار مړي د روزنې او نفقې مسووليت پرغاړه واخلي . (سفينة  البحار٢/٧٣١)   

ðيتيم،چې وژاړي ؛نوعرش ورته لړزېږي . (سفينة البحار٢/٧٣١)

ðد پلار مړي د مال خوړل ستره ګناه ده،چې خوړونکى به يې په دوزخ کې وي . (سفينة البحار٢/٧٣١ مخ)

 

يقين

ðيقين غوره څيزدى،چې زړه ته اچول شوى دى .(بحارالانوار٦٧\١٧٣)

ðسرښندنه د انسان د يقين ښکلا ده . ( جامع الااخبار: ١٢٢مخ )

ðيقين پوره ايمان دى .( ارشاد القلوب ١\١٢٧)

ðد يقين دوه رکعته سپک لمونځ،تر يوې شپې عبادت غوره دى . (الجعفريات : ٣٥مخ )

ðد ژبې، وينا،په غړيوکړنه او د زړه يقين ته ايمان وايي . (عوالي الاللي  ١\٨٣)

ðبې يقينه عبادت ارزښت نه لري .( معدن الجواهر: ٣٩مخ )

ðيقين، غنيتوب او عبادت بوختيا ته بس دى .( الکافي ٢\ ٨٥)

ðڅوک چې د خداى تعالى پر بدلې ورکولو يقين لري؛نو ځان د نفقې ورکولو ته سخي ګرځوي او خداى وايي :څه چې لګوئ،خداى يې بدله درکوي او هغه ډېر غوره روزي ورکوونکى دى .( وسايل ٩\١٨)

ðيقين لرونکى انسان شپږ نښې لري : (١) يقين لري،چې خداى حق دى؛ نو ايمان راوړي . (٢) يقين لري،چې مړينه حق ده؛نو له هغه (چار) ډډه کوي (چې د مړينې د ډار لاملېږي . (٣) يقين لري،چې په قيامت کې راژوندي کېدل حق دي؛نو د هغه له رسوايۍ وېرېږي .(٤)يقين لري،چې جنت حق دى؛نو ورته لېوال او مينوال وي .(٥)يقين لري،چې اور حق دى؛ نو له ژغورنې يې څرګندې هڅې کوي . (٦) يقين لري،چې د قيامت د ورځې حساب حق دى(؛نو) له ځان سره (په همدې دنيا کې) محاسبه کوي .( تحف العقول : ١٨ مخ )

ðد يقين کمزوري داده،چې د خداى په خپګان خلک له ځان خوښ کړې او د خداى د ورکړې روزۍ له امله خلک وستايې او داچې خداى څه نه دي درکړي،خلک ورټې .( بحارالانوار ٧٤\١٨٧)

 

د خداى وحدانيت (توحيد)

ðتوحيد نيم دين دى او د صدقې په ورکړه روزي تر لاسه کړئ .( وسايل : ٩\٣٧١)

ðتوحيد د جنت په بيه دى .( بحارالانوار ٣\٣)

ðد توحيد،ظاهر په باطن کې او باطن يې په ظاهر کې دى . ظاهر يې توصيف او ويل کېداى شي؛خو ليدل کېږي نه او باطن يې داسې دى، چې پټ نه دى .په هرځاى کې لټول کېږي او داسې ځاى به نه وي،چې د سترګو رپ هومره ترې خالي وي،بې له محدوديته حاضر او بې له ورکېدوغايب دى .( بحارالانوار  ٤\٢٦٣)

تبصره :ددې روايت د شرح لپاره وګ :

(الف):حکيم سبزواري؛شرح الاسماالحسنى ١\١٣٣).

(ب) علامه طباطبايي ،تفسيرالميزان ٦\١٠٣)

 

يهود

ðپر يهودي او نصراني سلام واچوئ؛خو پر شرابخور نه او که پر تاسې يې سلام واچاوه؛ځواب يې مه ورکوئ . (بحارالانوار ٧٦\١٥١)

ðڅوک چې زما له اهلبيتو سره دښمني وکړي؛خداى به يې د قيامت پر ورځ د ړانده يهودي په څېر راپاڅوي .(جلال الدين سيوطي احياء الميت بفضائل اهل البيت : ١٨مخ )

 

ډوډۍ

ðخدايه ! ډوډۍ راته مبارکه کړې او زموږ او د ډوډۍ ترمنځ بېلتون مه راوله،که ډوډۍ نه واى،روژه مو نه شوه نيواى،لمونځ مو نه شو کولاى او د خداى فرض مو نه شول پوره کولاى .( الکافي ٦\٢٨٧)

ðد ډوډۍ درناوى وکړئ .( بحار ٦٢/٢٧٩ )

ðډوډۍ په چاړه نه؛بلکې په لاس پرې کوئ .( الکافي 304/6)

ðد ډوډۍ عزت کوئ . وپوښتل شو: څنګه ؟ آنحضرت (ص) ورته وويل : ډوډۍ يې،چې راوړه،بل څه ته انتظار مه باسئ او د ډوډۍ له عزت (دا هم) دى،چې له ((وبرېده)) نه شوه . (الکافي ٦\٣٠٣)

 

نبوت

ðتر ما وروسته بې له زېري ورکوونکيو کوم نبوت نشته . رسول الله ! زېري ورکوونکي څوک دي ؟ورته يې وويل : رښتيني خوبونه! (بحارالانوار  ٥٨\١٩٢)

ðخلکو! تر ما وروسته پېغمبر او زما له سنتو وروسته بل سنت نشته ؛ نو چاچې د نبوت دعوا وکړه؛نو بلنه او بدعت يې په اور کې دى؛نو و يې وژنئ او څوک چې ورپسې ولاړ شي،په اورکې به وي .(وسايل ٢٨\٣٣٧)

ðعلي! نه خوشحالېږې،چې ته زما ورور او زه ستا ورور  وسم او مقام دې راته داسې وي؛لکه د هارون (ع) چې موسى (ع) ته و؛خو په دې توپير،چې تر ما وروسته بل پېغمبر نشته.( صحيح بخاري : ٤\٢٠٨) دامام احمدحنبل مسند١\١٧٠ . صحيح مسلم : ٧\١٢٠)

 

نجوا ( پسپسکې)

ðکه درې تنه وئ؛نو نه ښايي دوه تنه يې،له درېم سره بېل پسپسکې وکړي ؛ځکه هغه خپه کوي . ( مستدک الوسايل  ٨\٣٩٩ )

ðکه دوو تنو په خپلو کې پسپسکې کولې؛نو مه ورځئ. (الجامع الصغير ١\١٢٥)

ðنه ښايي((په درېو تنو کې دې)) دوه تنه په خپلو کې پټې خبرې وکړي . ( کنز: ٢٤٨٦٠ ح )

 

نرمي

ðپه نرمۍ کې پرېماني او برکت دى او څوک چې له نرمۍ بې برخې شي (؛نو) له خيره به بې برخې شوى وي .( الکافي ٢\١١٩)

ðنرمي نيم ژوند دى .( مستطرفات السرائر: ٥٥٠ مخ )

ðنرمي ښه انګېرل دي او تاوتريخوالى شوم دى .( الکافي ٢\١١٩ )

ðکه نرمي د مخلوق په بڼه انځورېداى؛نو ډېر ښکلى مخلوق به ترې نه و. ( الکافي  ٢\١٢٠ )

ðنرمي يو څيز پسولي؛خو له څه چې لرې شي،بد رنګوي يې .( الکافي  ٢\١١٩)

ðنرمي د حکمت بنسټ دى . خدايه! څوک چې زما د امت څه چارې پر غاړه واخلي او له امت سره په نرمۍ وچلېږي؛نو ته هم ورسره په نرمۍ وچلېږه او چاچې پرې سختى کوله؛نو ته هم ورسره سختي کوه .( عوالي الاللي  ١\٣١٧)

ðکه څوک څلور ځانګړنې ولري؛خداى ورته په جنت کې کور جوړوي : (١) چې پلار مړي ته هستوګنځى ورکړي .( ٢) پر بېوزلو ولورېږي . (٣) پر موروپلار مينه وکړي (٤) تر لاس لاندې سره نرمي وکړي .(وسايل  ١٦\٣٣٧)

ðپه حقيقت کې خداى رفيق (او نرم) دى او نرمي خوښوي او نرمۍ ته داسې څه بښي،چې زور او سختۍ ته يې نه بښي . (الزهد : ٢٨ مخ )

ðعلم،ايمان،ته ښه مرستندوى دى او زغم،ايمان ته ښه مرستندوى دى او نرمي زغم ته ښه مرستندوى دى او نرمخويي چلن ته ښه مرستندويه ده. ( قرب الاسناد ٢\٣٢مخ )

 

نږدېوالى

ðابوذره! د بنده پټه سجده کول،خداى ته د نږدېوالي غوره لار ده . (الامالي للطوسي : ٥٢٩)

ðهېچاته (هم د خداى په خپګان) مه ورنږدېږئ،چې له خدايه به بېل شئ . ( الکافي ٨\٨١)

ðله هغه “بلونکي” سره مه کېنئ،چې تاسې (دغو څيزونو ته) رابولي : (١) له يقينه شک ته . ( ٢) له اخلاصه ريا ته . (٣) له تواضع نه تکبر ته . (٤) له دوستۍ او نصيحته دښمنۍ ته .( ٥) او له زهده ،دنيا غوښتنې ته؛ بلکې هغه “عالم”ته ورنږدې شئ،چې تاسې د پورته څيزونو پوټه (او عکس) ته رابولي؛يعنې : ( ١) له تکبره،تواضع ته ( ٢) له ريا اخلاص ته (٣) له شکه يقين ته (٤) له دنيا غوښتنې زهد ته (٥) او له دښمنۍ،دوستۍ او نصيحت ته . هغه (عالم) خلکو ته د وينا او وعظ صلاحيت لري،چې ددې پورته څيزونو له آفتونو په رښتيا ووېرېږي او د وينا (او وعظ) پر نيمګړتياوو برلاس وي،سم له ناسم،ناروغۍ،ځاني القاات او فتنې يې او ځاني غوښتنې وپېژني . (عدة الداعي : ٧٨مخ )

 

نصيحت او خيرغوښتنه

ðدين (ټولو ته) نصيحت او خير غواړي ده . رسول اکرم (ص) وپوښتل شو: چا ته؟ ورته يې وويل : خداى ته،استازي ته يې،ديني امامانو او مسلمانو پرګنو ته . ( الامالي للطوسي :٨٤مخ )

ðڅوک چې خپل  ځان د خپل مشر(او امام) لاروۍ او د هغه خير غوښتنې ته راهڅوي؛نو خداى به يې په رفيق اعلى (،چې د مرسلو پېغمبرانو،صديقانو او شهيدانو ځاى دى) کې له موږ سره يوځاى کړي . ( الکافي ١\٤٠٤)

ðخداى د قيامت پر ورځ له درېو ډلو عذاب لرې کوي 🙁 ١) په الهي قضا راضي ( ٢) د مسلمانانو ناصح او خيرغواړى (٣) او د نېکو چارو لارښوونکى . (مستدرک الوسايل ١٢\٤٣١)

 

نعمت

ðپر چاچې لورنې څرګندې شي؛نو”الحمدالله رب العالمين” دې ډېر ووايي . (الکافي  ٨\٩٣)

ðمؤمن ته د قبر فشار،د هغو نعمتونوکفاره ده،چې ضايع کړي يې دي . (بحارالانوار ٦٨\٥٠ )

ðپر چاچې خداى د “توحيد” لورنه لورولې وي؛نو بدله يې جنت دى . (بحارالانوار ٣\٥)

ðپر خداى  تر ايمان وروسته غوره نعمت دادى،چې خداى چاته د”کتاب الله” علم او پر تاويل يې ورته پوهه ورکړې وي .( بحارلانوار ١ \ ٢١٧)

 

 

ښېرا

ðځان د مظلوم له ښېرو وساتئ،چې له ورېځو پورته خېژي او خداى يې ويني . بيا وايي : پورته يې راوړئ،چې قبولې يې کړم او د پلار له ښېرو ډډه وکړئ،چې له تورې تېرې دي (ژر قبلېږي).(الکافي: ٢\٥٠٩)

 

کتل

ð د عالم مخ ته په مينه کتل عبادت دى .( مستدرک الوسايل : ٩ ١٥٢)

ð له عالمانو سره ناسته او علي،کعبې،قرآن او موروپلار ته کتل عبادت دي .( کشف الغمة ٢\٢٦٨)

ð علي ته کتل عبادت دى . (حاکم نيشاپوري؛مستدرک : ٣\١٤١) ( البداية و النهاية : ٧/٣٩٤)

ðعلي! په دنيا کې د مؤمن درې تفريح دي : ( ١) د دوستانو او ورونو ليده کاته ( ٢) روژه تي ته روژماتى ورکول ( ٣) او د شپې په پاى کې تهجد اوعبادت . ( مصادقة الاخوان : ٣٤)

 

لمونځ

ð داسې لمونځ کوه؛لکه چې د خپل عمر وروستى لمونځ کوې .  (وسايل  ٥\٤٦٤)

ð په قيامت کې لومړى د لمانځه پوښتنه کېږي؛نو که پوره يې ادا کړى وي (بريالى کېږي) او که نه اور ته غورځول کېږي .(عيون اخبارالرضا ٢\٣٧)

ð لمونځ ( د نورو کړنو په منځ کې) د کېږدۍ د ستنې په څېر دى،که ستنه سمه ولاړه وي؛نو تنابونه،مېخونه او پردې ګټورې وي او که ماته شي؛نو تنابونه،مېخونه او پردې ګټه نه لري .(وسايل  ٤\٣٣)

ð لمونځ د کړنو تله ده؛چاچې پوره وکړ،پوره بدله يې ورکول کېږي . (وافي  ٧\٣٠ )

ð لمونځ د دين ستن ده او ړومبى کړنه ده،چې له بني بشره ليدل کېږي؛ نو که پوره سم و؛نورې کړنې يې هم ليدل کېږي اوکه نه و؛نو نورې کړنې يې په پام کې نه نيول کېږي .( تهذيب الاحکام ٢\٢٣٧)

ð لمونځ د دين ستن ده . (المسايل الصاغانية : ١١٨ )

ð د کفر او ايمان ترمنځ يوازې د لمانځه پرېښوول دي .(ثواب الاعمال : ٣٢١)

ð بنده چې په سپکه لمونځ کوي(ښه يې نه ادا کوي او چټک يې کوي) خداى خپلو پرښتو ته وايي : زما بنده وينئ؟؛لکه چې ګومان کوي،اړتياوې يې بې له ما بل څوک پوره کوي،نه پوهېږي،چې د ټولو اړتياوو پوره کول يې زماپه واک کې دي .( الکافي ٣\٢٦٩)

ð (په جومات کې يو سړي د رسول اکرم په مخ کې په بيړه لمونځ وکړ، چې سجدې يې سمې ونه کړې،پېغمبر اکرم  وويل:) د کارغه په څېر يې (پرځمکه) ټونګې ووهلې،که په دغسې لمونځ کولو ومړ؛ نو د محمد (ص) پر دين به نه وي مړ شوى .( المحاسن  ١\٧٩)

ð لمونځ په لوى لاس مه پرېږده؛ځکه په دې کار د”اسلام ملت” ترې بېزاره وي .( الکافي ٣\٤٨٨)

ð څوک چې لمونځ په هماغه خپل وخت و نه کړي؛نو له لمانځه يو تور سيورى پورته خېژي او وايي:زه دې ضايع کړم!خداى دې داسې ضايع کړه؛لکه زه يې چې ضايع کړم .

ð بنيادم چې پينځګوني لمونځونه په خپل وخت کوي؛نو شيطان ترې ډارېږي او تښتي؛خو چې ضايع يې کړي،شيطان پرې جرائت کوي او د سترو ګناهونو کولو ته يې اړباسي. (الامالي للصدوق : ٤٨٤)

ð سبا په قيامت کې هغه ته زما شفاعت نه په برخه کېږي،چې فرض لمونځ له خپل وخته ځنډوي .(روضة الواعظين ٢\٣١٩)

 ð خداى وايي : د آدم زويه! څه ساعت د ګهيځ تر لمانځه وروسته او څه ساعت د مازيګر تر لمانځه وروسته ما ياد کړه چې څه درته مهم دي،در يې کړم .( تهذيب الاحکام : ٢\ ١٣٨)

ð پوه شئ،چې لمونځ د ځمکې پرمخ د الهي نعمت دسترخوان دى؛نو خداى يې د ورځې پينځه ځل هغوى ته غوړوي،چې د خداى رحمت غواړي . (مستدرک الوسايل : ٣\١٥)

ðد خداى د بنده او کافر ترمنځ توپير په لمونځ کولو يا نه کولو کې دى . ( سنن الکبرى ٢/٣٨٦)

ð لمونځ ،د مؤمن رڼا ده . ( کنز ٧/٢٨٨ )

ðلمونځ د هر خير کونجي ده . ( کنز ٢/٦٢)

ðبيشکه چې لمونځ،خداى ته د مؤمن د نږدېوالي لامل دى .(کنز : ١٨٩٠٧ح )

ðخداى د هغه چا لمونځ نه قبلوي،چې بدني حضور لري؛خو له زړه  نه . (بحار ٨٤/٢٤٢)

ðداسې لمونځ وکړه؛لکه چې وروستى لمونځ دې وي؛ځکه په داسې لمانځه کې خداى ته نږدېوالى وي .(بحار ٧٨/ ٢٠٠)

ðزما په امت کې نه شمېرل کېږي،چې خپل لمونځ سپک ګڼي. ( ميزان : ١٠٤٠٥ ح )

ð لمونځ  شيطان مختورى کوي . (الصلاة فى الکتاب : ٤١٥ح )

 

د شپې لمونځ

ð د مؤمن شرافت د شپې په لمانځه کې دى .(عوالي الاللي ١\ ١٣٥٢)

ð د شپې لمونځ،د قبر په تياره کې د خپل خاوند څراغ دى . (بحارالانوار  ٨٤\١٦٠ )

ð د شپې لمونځ رڼا ده؛نو پر تا د شپې لمونځ دى؛نو چاچې د شپې ډېر لمونځ کاوه،د ورځې به يې څېره ښه ښکلې وي .(مستدرک الوسايل  ٦\٣٣٧)

ð مېرمن،چې خپل مېړه د شپې لمانځه ته راپاڅوي او تر اوداسه وروسته لمونځ وکړي؛نو د داسې”مېړه او مېرمن” په ليکه کې شمېرل کېږي،چې خداى ډېر يادوي . (وسايل٧\٢٥٧)

ð څوک چې د شپې لمونځ کوي؛نو پايلې يې دا دي : ( ١) پالونکى ترې خوشحالېږي .(٢) د پرښتو ورسره مينه پيدا کېږي .(٣) د پېغمبرانو د سنتو عملي کول دي .( ٤) دپوهې رڼا يې ده. ( ٥) د ايمان اصل او بنسټ به يې غښتلى کړى وي .(٦) بدن پرې راحت مومي . ( ٧) د شيطان به بد ايسي . ( ٨) د دښمنانو پر وړاندې يې وسله ده. (٩) دعا يې قبلېږي .(١٠) کړنې يې (د خداى په درشل کې) قبلېږي . ( ١١) روزي يې برکتي کېږي . (١٢) د ملک الموت پر وړاندې د شفاعت لامل يې وي . (١٣) په قبر کې يې څراغ وي . (١٤) دا اړخونو بالښت به يې وي .( ١٥) منکر او نکير ته يې ځواب وايي .(١٦) په قبر کې تر قيامته يې ملګرى وي .(١٦) او چې قيامت راورسي؛نو د شپې لمونځ  يې : ( الف) : پرسر  سيورى او تاج وي  ( ب) د بربنډ بدن جامې وي .( ج) او رڼا يې وي،چې مخه ورته رڼا کوي (د) د هغه او اور تر منځ به پرده وي (ذ) د خداى پر وړاندې به يې د ايمان دليل وي( ذ) د نېکو کړنو د دروندوالي لامل به يې وي .(ر) له صراطه د تېرېدو اجازه ليک به يې وي .( ز) او د جنت کونجي به يې وي .(ارشاد القلوب  ١\١٩١)

 

اوبه

ð اوبه د دنيا او آخرت د څښاک آغلې (ښکلې) دي  .(طب النبي :٢٣مخ )

ð (د ورځې) په ولاړه اوبه څښه،چې روغتيا ته دې ګټورې دي. (مستدرک الوسايل ١٧\٨)

ð څوک چې د شپې په ولاړه اوبه وڅښي؛نو پر ناعلاجه ناروغۍ اخته کېږي . ( مستدرک الوسايل١٧\٩ )

ðاوبه په غړپ غړپ وڅښئ؛په يو وار اوبه څښل د ځيګر ناروغۍ رامنځ ته کوي . ( الکافي : ٦\٣٨١)

 

نهيلي

ð خداى د قيامت پر ورځ نهيلي تورمخي راپاڅوي او ورته ويل کېږي : دوى له الهي رحمته نهيلي ول . (النوادر للراوندي : ١٨ مخ )

ð په ګناه پسې د سترګو تر رپ چابکه،استغفار وکړئ او که و مو نه کړ؛ نو انفاق وکړئ او که دا مو و نه کړ؛نو خپله غوسه تېره کړئ،که دا مو ونه کړه؛نو خلکو ته څه ورکړئ او که دا مو و نه کړل؛نو له خلکو سره احسان وکړئ او که دا مو و نه کړ؛نو پر ګناه ټينګار پرېږدئ او که دا مو و نه کړ،د خداى په هيله استغفار وکړئ او هېڅکله دخداى له رحمة مه نهيلېږئ . ( مستدرک الوسايل  ١٢\١٢٤)

 

اړتيا

ð څلور څيزونه د جنت له زېرمو دي : ( ١) د اړتياپټول ( ٢) د صدقې پټول ( ٣) د ناروغۍ پټول ( ٤) د ګناه پټول . ( الامالي للمفيد:٨مخ )

ð اړتيا انسان ته د خداى امانت دى؛نو چاچې له ځان سره وساتله ؛ نو خداى ورته د لمونځ کوونکيو بدله ورکوي . ( الکافي ٢\٢٦١)

 ð څوک چې د خپل وروراړتياوې پوره کړي (؛نو) خداى يې پخپله اړتيا وې لرې کوي . ( سنن ابي داود ٢/٤٥٤)

ðخداى چې د کوم بنده خير وغواړي (؛نو) د نورو خلکو د اړتياوو لرې کولو مرجع يې ګرځوي . ( فردوس ١/٢٤٣)

 

نيت

ð بې عمله وينا،بې نيته او بې وينا عمل او (همداراز)عمل او نيت، چې له سنتو سره اړخ ونه لګوي (؛نو څه) ارزښت نه لري . ( الکافي  ١\٧٠)

ð د مؤمن نيت تر کړنې يې غوره دى او د کافر نيت تر کړنې يې بدتر دى او هر څوک د خپل نيت له مخې عمل کوي . (الکافي ٢\٨٤)

ð په حقيقت کې د کړنو ارزښت يوازې په نيتونو پورې اړه لري . (تهذيب الاحکام  ١\٨٣)

ð ابوذره! هڅه کوه،چې د هر څه لپاره نيت ولرې ان د ويدېدو او خوړو لپاره . ( وسايل  ١\٤٨)

ðکه څوک نيت وکړي،چې خپله کړې ژمنه به ترسره نه کړي (؛نو) ژمنه يې ماته کړې . ( کنز ٦/ ٢٢١)

ðد مؤمن نيت، تر  کړنو يې غوره دى . ( کافي ٢/ ٨٤ )

ðپه هر څيز کې ښه نيت لره،ان که په خوب اوخوړو کې وي . (مکارم الاخلاق : ٦٤٢)

 

چل

ðپه يقين د ژغورنې لار مو دا ده،چې له خداى سره چل مه کوئ،چې خپله به تېر وځئ؛ځکه څوک چې خداى تېر باسي؛نو همدى به وغولېږي او ايمان به يې زايل (او لرې) شي،که پوه شي؛نو ځان به يې غولولى وي.  (الامالي للصدوق : ٥٨١)

 

مېلمه

ðکوم کور ته چې مېلمه ولاړ نشي؛نو پرښتې هم نه ورننوځي . (جامع الاخبار: ١٣٦)

ðمېلمه د جنت  لار او لارښوونکى دى . (جامع الاخبار: ١٣٦)

ðڅوک چې زکات ورکړي او د مېلمه درناوى وکړي او په سختيو کې بخشش وکړي؛نو د کنجوسۍ له آفتونو به خوندي وي .(مستدرک الوسايل ٧\٣٢)

ðد مېلمه درناوى او خواړه ورکول له اخلاقي ځانګړنو دي . (الجعفريات : ١٥٤)

ðمېلمه چې د چا پر کور ننوځي،روزي يې رارسي او چې وځي؛نو د کوربه ګناهونه هم دباندې وځي ( کوربه له ګناهونوپاکېږي) (پورته :١٥٤)

ðڅوک چې کوم ښار ته ننوځي؛نو تر هغه د خپلو دينوالو مېلمه شمېرل کېږي،چې له ښاره ووځي .(علل الشرايع ٢\ ٣٨٤)

ðد مېلمستيا له احکامو دي،چې مېلمه به بې د کوربه له اجازې مستحبه روژه نه نيسي . ( الکافي ٤\١٥١)

ðمېلمستيا درې شواروزه ده او تردې ډېره په صدقه کې شمېرل کېږي، چې کوربه يې مېلمه ته ورکوي او نه ښايي مېلمه کوربه ستړى کړي،چې  پرېږدي يې يا يې وشړي . (الکافي٦\٢٨٣، جامع الاخبار: ١٣٦)

ðمېلمه د کوربه کور ته له خپلې روزۍ سره راننوځي او چې وځي؛نو د کوربنو ګناهونه له منځه ځي .( بحار ٧٥/٤٦١)

ðکوم کور ته چې مېلمه ولاړ نشي؛نو پرښتې هم نه ورننوځي .(بحار ٧٥/٤٦١)

ðمېلمه ته ځان ډېر مه کړوئ .( کنز: ٢٥٨٧٥ح )

ðڅوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځ ايمان لري؛نو د خپل مېلمه عزت دې وکړي .( جامع الاخبار: مخ ٣٧٧ )

 

ورکاوى

ðد دې امت سمېدل (او صلاح) په زهد او يقين  کې او پوپنا کېدل  يې په کنجوسۍ او اوږدو هيلو کې وي . ( الخصال ١\ ٧٩)

ð (د زړه له کومې) خندا د پوپنا کېدو لامل دى .(مستدرک الوسايل ٨ \٤١٧)

ðپه دوو څيزونو زما د امت ښځمنې پوپنا کېږي : په سرو او نريو جامو او د امت نارينه مې د علم په پرېښوولو او مال راغونډولو ورکېږي . (ارشادالقلوب  ١\١٨٣)

ðخداى تعالى وايي : کوم بنده،چې زما ومني؛نو هغه بل چا ته نه پرېږدم او چې څوک زما ونه مني؛نو خپل ځان ته يې ورپرېږدم،چې که په کومه کنده کې تري تم شي؛نو څه پروا يې نه لرم .(من لايحضره الفقيه ٤\٤٠٣)

 

بېوسي

ðله بېوسي سره مرسته دې له غوره صدقاتو ده . ( الکافي ٥\٥٥)

ðډېره ستره بېوسي داده،چې له چا سره دې پر ملګرتوب خوښه راشي؛ نو د نوم،نسب او د اوسېدو د ځای پوښتنه ترې و نه کړې . (مسايل علي بن جعفر : ٣٣٠ مخ )

ðډېره ستره بېوسي دا ده،چې څوک دې خوړو ته راوبولي؛خو بې دليله ور نشې .(المحاسن ٢\٤١١)

ð ډېر بېوسې هغه دى،چې له دعا کولو عاجز وي او ډېر کنجوس هغه دى،چې په سلام اچولو کې کنجوسي کوي . (الامالي للمفيد : ٣١٧)

 

نوک

ðڅوک چې د جمعې پر ورځ خپل نوکان غوڅوي؛نو ګوتې يې نه خرابېږي .( الجعفريات : ٢٩ مخ )

ðد نوکانو غوڅول،انسان پر سختو ناروغيو له اخته کولو ژغوري او د روزۍ د پراخۍ لامل يې ګرځي .( الکافي ٦\٤٩٠)

ðنارينه وو!خپل نوکان پرې کړئ (او ښځمنو ته يې وويل:) خپل نوکان پرېږدئ،چې ښکلا مو ده . (دعائم الاسلام ١\١٢٤)

ðڅوک چې د جمعې پر ورځ خپل نوکان پرېکوي،پاک خداى د هغه له ګوتو دردونه وباسي او شفا ورکوي . (النوادر للراوندي : ٢٣مخ )

 

ناپوهه

ðدوه غرېبې کلمې دي،چې ويې زغمئ : د ناپوهه د حکمت خبره ومنئ او د حکيم له ناپوهه خبرې تېر شئ . ( من لايحضره الفقيه ٤\٤٠٦)

ðناپوهي ډېره سخته نيستي ده او عقل ډېره ګټوره شتمني ده . (الکافي  ١\٢٥)

ðعاقل هغه دى،چې د خداى ومني،که څه هم (ظاهراً) بدرنګه وي او ناپوهه هغه دى،چې د خداى و نه مني که څه (ظاهراً) ښکلى وي،ډېر عقلمن غوره خلک دي .( بحارالانوار ١\١٦٠)

ðعقل يوه کېزه ده،چې پر ناپوهۍ لګول کېږي .(مستدرک الوسايل  ١١\٢٠٩)

 

نفلونه

ðخداى تعالى وايي : څوک چې زما د کوم دوست سپکاوى وکړي؛نو له ماسره به يې جګړه اعلان کړې وي او بنده د فرايضو پر ادا کولو سربېره، په نفلو او مستحبي کړنو (هم) ما ته تردې رانږدېداى شي،چې ښه يې وګڼم؛نو زه يې غوږونه کېږم،چې پرې يې واوري او سترګې يې کېږم، چې پرې وګوري او ژبه يې کېږم،چې خبرې وکړي او لاسونه،چې کار پرې وکړي ،که دعا وکړي،قبلوم يې او که وغواړي،ورکوم يې .(الکافي  ٢\٣٥٢)

ðد امت کړنې مې راوړاندې شوې او و مې لېدې،چې زياترو يې نيمګړتيا درلوده؛نو هر فرض لمونځ ته مې دوه مستحبه کېښوول ،چې په کولو يې د وګړي فرض لمونځ قبول شي؛ځکه خداى حيا کوي،چې د خپل بنده له کړنې درېمه قبوله نه کړي .( وسايل  ١٠ \٤٢٦)

 

نوم

ðاولادونو ته مو غوره ډالۍ،پرې ښه نوم ايښوول دي . (النوادرللراوندي :  ٦مخ )

ðکه پر زوى مو د “محمد” نوم کېښود؛نو احترام يې وکړئ او په ناسته کې ځاى ورکړئ او بد يې مه ګڼئ . ( عيون اخبارالرضا ٢\٢٩ )

ðد کورنۍ د کوم غړي،چې د کوم پېغمبر نوم وي؛نو دا کوربه تل برکتي وي .( دعائم الاسلام ٢\١٨٨)

ðڅوک چې درې زامن لري او پر يو يې د “محمد” نوم نه وي ايښى ؛ نو له ماسره يې جفا کړې ده .( الامالي للطوسي : ٦٨٢)

 

لیک

ðښکلى ليک،د حق څرګندوالى لاپسې زياتوي . ( کنز: ٢٩٣٠٤ )

ð د نورو د ليک ځوابول،د سلام د ځوابولو په څېر لازم دي . ( کنز ١٠ /٢٤٣)

ðعلم په ليک کې را ايسارکړئ . ( ميزان الحکمه : ١٧٣٢٤ح )

ðد يوې ليکنې ارزښت په پاى کې يې نغښتى دى .( کنز ١٠/٢٤٣)

ðد ليک ځوابول،د سلام د ځوابولو په څېر واجب دي . (الجامع الصغير ٢\ ١٤)

ðڅوک چې د غازي ليک (کورته يې) ورسوي؛لکه چې مريى يې ازاد کړى او د جهاد په ثواب کې ورسره شريک دى . ( الکافي : ٥)

 

مړه خوا

ðتر وسې ( له نورو) څه مه غواړه . ( مستدرک الوسايل ٧\٢٢٤)

ðڅوک چې خلکو ته خپلې ستونزې رابرسېره کړي؛نو ځان يې رسوا کړ، غوره غنا له نورو نه غوښتل دي اودا ډېر ناوړه فقر دى،چې څوک په زوره عاجزي کوي  . (پورته)

 

وېښته

ðښکلي وېښتان  ښکلا ده .( الکافي ٢\٦١٥)

ðښکلي وېښتان الهي پوښ دى؛نو عزت يې وکړئ . (الجعفريات :١٥٦)

 

مؤمن

ðمؤمن د عطارپه څېر دى،که ورسره کېنې ګټه در رسوي اوکه پرلار هم ورسره ولاړ شې (بيا هم) ګټه دررسوي اوکه په چاروکې ورسره ګډون وکړې (؛نو هم) ګټه دررسوي . (دسيوطي جامع الصغير)

ðمؤمن د شاتو د مچۍ په څېر دى،چې يوازې پاک خوري او پاک پر ځاى پرېږدي . (دسيوطي جامع الصغير)

ðمؤمنين د اخلاص له مخې پر يو بل درجې او لوړاوى مومي . (تنبيه الخواطر ٢/١١٩)

ðهله به مؤمن يې،چې  تر پلار اولاد او نورو خلکو له ما سره ډېره مينه ولرې .( بخاري – مسلم )

ðهله به مؤمن يې،چې ځاني غوښتنې دې زما په لارښوونو پسې ولاړې شي . ( بغوى فى شرح السنة– مشکاة )

ð د ښه خوى خاوند تر ټولو بشپړ مؤمن دى .(ابوداوود- الدارمي)

ðهله به مؤمن يې،څه چې ځان ته خوښوې ،نوروته يې هم خوښ کړې . ( بخاري-مسلم )

ðمؤمن د مؤمن هېنداره ده اومؤمن د مؤمن ورور دى؛زيان ترې لرې کوي ،پاسوالي او ملاتړ يې کوي .( “ابوداود”- “ترمذي” )

ðشونې ده،چې مؤمن ډارن او بخيل شي؛خو نه دروغجنېږي.  (بيهقي)

ð مؤمن خداى ته تر مقربو پرښتو هم عزتمن دى .( کنز ١/١٦٤)

ð مؤمن ځيرک او هوښيار دى . ( ميزان : ١٤٥٠ )

ð مؤمن د مؤمن هېنداره ده .(کنز: ٦٧٣ح)

ð مؤمن هېڅکله له يوې سوړې دوه ځل نه چيچل کېږي .(صحيح البخاري ٧ / ١٠٣ )

ð مؤمن د مؤمن ورور دى او په يو حال کې هم نصيحت ترې نه سپموي . ( کنز ١ /١٤٢)

ðد مؤمن د کړنليک عنوان د علي بن ابي طالب دوستي ده . (کنز ١١/ ٦٠١)

ðمؤمنان د يو بل وروڼه دي . ( بحار ٧٧/٢٦٩)

ðمؤمن چې د مؤمن ورور په چوپړ کې وي ؛نو تردې لوړ مقام نه ترلاسه کېږي .( مستدرک ١٢/٤٢٩ )

ðمؤمن د مينې او الفت پلازمينه او مرکز دى؛نوکه څوک له نورو سره مينه او دوستي نه لري او نور يې هم ورسره نه لري؛نو په هغه کې هېڅ ډول خير نشته . ( بيهقي – احمد )

ðد مؤمن په طبيعت کې له “خيانت” او “دروغو” پرته بل هر څه ورننووتلاى شي .( احمد- بيهقي)

  ðمؤمن،مؤمن ورور ته د هيندارې په څېر دى،چې حاضر نه وي؛نو زړه يې پرې سوځي او چې حاضر وي،څه چې يې نه خوښېږي،ترې لرې کوي او په غونډه کې ځاى ورکوي . (النوادر للراوندي : ٨مخ )

ðد مؤمن له ځيرکۍ ډډه وکړئ،چې په الهي رڼا يې ګوري . (الکافي  ١\٢١٨)

ðد مؤمن ژغورنه، د ژبې په ساتنه کې يې نغښتې ده . (الکافي ٢\١١٤)

ðنشتمنو ته د شتمنۍ زياته ورکړه او له خلکو سره په انصاف چلېدل،د حقيقي مؤمن ځانګړنې دي .( الکافي ٢\١٤٧)

ðمؤمن د کجورې د ونې په څېر دى،چې پاڼې يې په اوړي او ژمي کې نه تويېږي .( الکافي ٢\٢٣٥)

ðدعا د مؤمن وسله،د دين ستن او د اسمانو او ځمکې رڼا ده . (الکافي  ٢\٤٦٨)

ðمؤمن په الهي ادب مؤدب شوى،د پراخۍ پر مهال ډېر څه لګوي او چې تنګلاسى شي؛لګښت يې لږ وي .( الکافي ٤\١٢)

ðمؤمن پر مؤمن (اوه) واجب حقوق لري 🙁 ١) په درنه سترګه وروګوري (٢) له زړه نه ورسره مينه ولري(٣) له خپلو شتمنيو يې ورکړي(٤) غيبت يې حرام بولي(٥) د ناروغۍ  پر مهال يې پوښتنې ته ورځي(٦) په جنازه کې يې برخه اخلي(٧) او تر مرګ وروسته يې يوازې په ښو يادوي .(من لايحضرالفقيه ٤\٣٩٨)

ðمؤمن ته چې (تر مړينې وروسته) لومړۍ ډالۍ ورکول کېږى،داده، چې پخپله او هغوى چې په جنازه کې يې ګډون کړى بښل کېږي .(وسايل ٣\١٤٤)

ðمؤمن هغه دى،چې نور مؤمنان په خپل ځان او شتمنۍکې د اعتماد او ډاډ وړ وبولي .( وسايل ١٢\٢٧٨)

ðمؤمن د ځمکې په څېر دى،چې خلک ترې ګټه اخلي او ازاروي يې او څوک چې د خلکو پر جفا زغم و نه کړي؛نو د خداى رضا نشي تر لاسه کولاى؛ځکه د خداى خوښي د خلکو له جفا سره اغږل شوې ده . (بحارالانوار ٦٨\٤٢٢)

ðکه له تاسې څوک ناوړه کار وويني؛نو په لاس دې يې سم کړي، که داسې نشي کړاى؛په ژبه دې يې سم کړي او که دا يې هم نشو کړاى؛نو په زړه کې دې پرې ناخوښه وي او که داسې هم نه وي؛نو ايمان يې خورا کمزورى دى .( مستدرک الوسايل ١٢\١٩٢)

ðد مؤمن له  اخلاقي ځانګړنو دي 🙁 ١) (د جماعت) په لمانځه کې حاضر وي( ٢) د زکات په ورکړه کې بيړه کوي . (٣) بېوزليو ته خواړه ورکوي . (٤) پر پلار مړي د لورنې لاس راکاږي . ( ٥) جامې يې ( زړې؛خو) پاکې وي(٦) د بدن ( په تېره بيا د عورت) په ساتلوکې ډېره ځيرنه کوي( ٧) په خبرو کې دروغ نه وايي( ٨) پر خپله ژمنه درېږي (٩) که اعتماد پرې وشي؛خيانت نه کوي(١٠) په خبرو کې رښتيا وايي ( ١١) دشپې راهبان (١٢) او د ورځې زمريان وي ( ١٣) د ورځې روژه تيان (١٤) او د شپې پر لمانځه ولاړوي ( ١٥) نه کوم ګاونډى ځوروي (١٦) او نه يې کوم ګاونډي له لارې ځورېږي (١٧) پر لار په وقار او تواضع روان وي ( ١٨) د بېوزليو لاسنيوونکي وي (په انفاق او صدقه ورسره مرسته کوي) (١٩) د مؤمنانو په جنازو کې ګډون کوي . خداى دې موږ او تاسې په پرهېز کارانو کې وشمېري . ( الکافي ٢\ ٢٣٢)

 

لورنه

ð پر نورو ولورېږئ،چې درباندې لورنه وشي؛نور وبښئ،چې وبښل شئ . (کنز ٣/١٦٤ )

ð ستا تر ګناهونو د خداى بښنه ډېره ده [؛نو] هيڅکله د خداى له رحمته مه نهيلېږه. ( کنز ٤/ ٢١٤)

ðڅوک چې پر خلکو ونه لورېږي؛نوخداى به پرې ونه لورېږي . ( عوالي الآلي ١/٣٦١٩

ðڅوک چې پر خلکو ونه لورېږي؛نو خداى به پرې هم و نه لورېږي . (بخاري– مسلم)

ðڅوک چې پر نورو ونه لورېږي؛نو خداى به پرې و نه لورېږي .( بخاري – مسلم )

ðڅوک چې پر خلکو ونه لورېږي؛نو خداى به پرې و نه لورېږي . ( مستدرک الوسايل ٩\٥٥)

ðڅوک چې پر کوچنيانو لورين نه وي او د مشرانو درناوى نه کوي او زموږ حق ونه پېژني؛نو له موږ ځنې نه دى .( الامالي للمفيد: ١٨ مخ )

مهر

ðخداى د قيامت پر ورځ هره ګناه بښي؛خو له دې درېو ګناهونو پرته ( ١) دخپلې مېرمنې د مهر نه ورکول ( ٢)  د کارګر حقوق نه ورکول (3) ازاد انسان د مريي په توګه پلورل .( الکافي ٥\٣٨٢)

 

مسئووليت

ðتاسې ټول (د تر لاس لانديو وګړيو،خپلې کورنۍ او ټولنې) پالندويان او مسؤولين ياست او په دې اړه به وپوښتل شئ . (منيةالمريد : ٣٨)

ðڅوک چې سهار راپاڅي او د مسلمانانو د چارو سمونې او د ستونزو هواري  ته يې لاسونه رابډ نه وهي؛نو مسلمان نه دى .( الکافي :١٦٣)

ðڅوک چې د چا اواز واوري،چې مسلمانانو ! (راورسئ) او ستونزه مې لرې کړئ! ؛خو دې بلنې ته يې ځواب و نه وايي (او مرسته ورسره ونه کړي؛نو) مسلمان نه دی .( الکافي ٢\ ١٦٤)

 

نشه يي توکي

ðهر نشه ييز څيز حرام دى؛نو د يو څه چې ډېر مقدار د نشه کولو لامل ګرځي ؛نو لږ يې هم حرام دى .( الکافي ٦\٤٠٨)

 

جومات

ðبلاوې،کړاوونه،آفتونه او سختۍ چې راشي؛نو جوماتوال ترې خوندي او په امان کې وي . ( الجعفريات : ٣٩)

ðاوه تنه به هغه ورځ د الهي رحمت تر سيورې لاندې وي ، چې بې له دې به هيڅ سيورى نه وي ( ١) عادل واکمن ( ٢) هغه ځوان،چې د خداى پر عبادت بوخت وي (٣) هغه چې په ښي لاس صدقه ورکړي ؛خو کيڼ يې ترې خبر نشي ( ٤) هغه چې په يوازېتوب کې خداى ياد کړي او له وېرې يې سترګې له اوښکو ډکې شي(٥) څوک چې مؤمن وګوري او ورته ووايي،چې يوازې د خداى لپاره راته ګران يې (٦) هغه چې له جوماته ووځي او نيت يې داوي،چې بيا ورته راشي(٧) او هغه چې ښکلې ښځه  يې ځان ته راوبولي؛خو دى ورته وايي،چې له ” نړى پالونکي” خدايه وېرېږم . ( الخصال ٢\٣٤٣)

ðابوذره ! په جومات کې بې له لمونځ کولو،خداى يادولو او پوهې تر لاسه کولو ناستى خوشې دى . ( مستدرک الوسايل ٣\٣٧١)

ðجوماتونه،د آخرت له بازارونو وي،پيسې يې بښنه او څيزونه يې جنت دى .( الامالي للطوسي : ١٣٩ )

ðجومات ته،چې  ننوځئ؛نو دوه رکعته لمونځ پکې وکړئ .(وسايل  ٥\٢٩٣)

ðجوماتونه مو هغسې مه ښکلي کوئ؛لکه چې يهوديانو او مسيحيانو خپلې صومعې او کليساوې ښکلې کړې دي .(مستدرک الوسايل٣\ ٣٧)

 

مسلمان

ðمسلمان هغه دى،چې نور مسلمانان يې له لاس او ژبې خوندي وي . مسلمان پر مسلمان حق لري چې 🙁 ١) د کتنې پر مهال پرې سلام واچوي (٢) د پرنجي پر مهال ورته روغتيا وغواړي(٣) په ناروغۍ کې يې پوښتنې ته ورشي(٤) بلنه يې ومني(٥) په جنازه کې يې ګډون وکړي (٦) څه چې ځان ته خوښوې،هغه ته يې هم خوښ کړي،څه چې يې بدې ايسي،هغه ته يې هم بد و ايسي(٧)چې حاضر نه وي،خير غواړى يې وي او څوک نه پرېږدي،چې غيبت يې وکړي ( ٨) پر غم يې خپه شي .( ٩) عيبونه او نيمګړې يې پټې کړي (١٠) له تېروتنو يې تېر شي (١١) تل پرې زړه سواندى وي( ١٢) د دوستۍ حقوق يې پوره کړي (١٣) پر ژمنو يې ولاړ وي ( ١٤) ډالۍ يې ومني (١٥) لورونې يې بېرته ورپوره کړي(١٦) له نېکيو يې مننه وکړي( ١٧) مرسته او لاسنيوى يې ښه وګڼي (١٨) کورنۍ يې وساتي (١٩) اړتيا يې پوره کړي (٢٠) چې بې لارې شي،سمه لار ور وښيي( ٢١) سلام يې ځواب کړي (٢٢) خبره يې بده نه ګڼي(٢٣) بخشش يې ښه وګڼي (٢٤) سوګند يې رښتيا وبولي(٢٥) له دوستانو سره يې دوست وي (٢٦) چې پر بل ظلم کوي،له ظلمه يې منع کړي او چې مظلوم شي،له بل يې د حق په اخستو کې ورسره مرسته وکړي او ځان ته يې يوازې پرېنږدي . ( الاختصاص : ٢٣٣- او کنزالفوائد  ١\٣٠٦)

 

سلامشوره

ðتر سلامشورې بل غوره ملاتړ نشته .(تحف العقول: مواعظ النبي) 

ðڅوک تر مشورې وروسته،هيڅکله نه هلاکېږي . ( اثنى عشريه: ١٦ مخ )

ðرسول اکرم ته وويل شو:”حزم  او احتياط څه ته وايي؟” و يې ويل :”د راى له خاوندانو سره سلا مشوره کول او د هغوى منل .” (سفينة البحار ١ / ٧١٨ )

ðله چاچې خپل مؤمن ورورسلامشوره وغواړي او هغه ورته ګټور نصيحت ونه کړي؛نوخداى به ترې عقل واخلي .(سفينة البحار ٢ / ٥٩٠ )

ðله داړن سره سلامشوره مه کوه،چې د وتو لار درباندې تنګوي . له بخيل سره هم سلامشوره مه کوه،چې تا له خپلې موخې پاتې کوي او له حريص سره هم مشوره مه کوه،چې هيلې درته ښکلې انځوروي. (دصدوق خصال : باب الثلاثه، ٥٣ حديث )

ðمشوره د پښېمانۍ او د نورو د پړې پر وړاندې ټينګه کلا او ډال دى . ( نثرالدر ١ /١٨٣)

ð له نورو سره مشوره ډاډمن ملاتړ دى .( بحار ٧٥/١٠٠)

ðله عقلمنو مشوره وغواړئ اوله مشورو يې سر مه غړوئ،چې  پېښيمانه به شئ .( بحار ٧٥/١٠٠)

ðله چا سره،چې په کومه مساله کې مشوره وشوه ؛نو په اړه يې امين دى او هغه ورته امانت سپارل شوې ده .(ترمذي)

ðله عقلمن زړه سواندي سره مشوره،د ودې او برکت لامل او د خداى له لوري توفيق دى؛نو پرتا ده،چې له همدغسې تن سره مشورې وکړې او له مشورې سره يې مخالفت مه کوه،چې ورک به شې . ( لمحاسن ٢\٦٠٢)

 

مصيبت ( کړاو )

ðبنده ته چې مصيبت ورسي او و وايي: ((انا لله و انا اليه راجعون))؛ خدايه ! د دې مصيبت اجر راکړه اوتردې غوره يې بدله راکړه او خداى به همداسې وکړي .( نووي ١ / ٦٩٧ )

ð د خپل ورور په مصيبت او کړاو مه خوشحالېږه (که داسې دې وکړل)؛نو شونې ده،چې خداى هغه له مصيبته وژغوري او تا پرې اخته کړي . (ترمذي)

 ð دوه ځانګړنې دي،چې که د چا په برخه شوې؛نو د دنيا او اخرت خير به يې په برخه شوى وي : د کړاو پر مهال صبر کول او چې نعمت ورورسي، شکر پرې کاږي . (مجموعه ورام ٢/ ٢٤٧)

ð که پر کړاو اخته مو وليدل؛نو په زړه کې د خداى شکر وباسئ؛خو داسې نه چې هغوى يې واوري؛ځکه چې خپه کېږي . (الکافي ٢/ ٩٨)

ðڅلور څيزونه د جنت له زېرمو دي : (١) د اړتيا پټول( ٢) د صدقې پټول ( ٣) د ناروغۍ پټول او ( ٤) د کړاوونو پټول . (الامالي للمفيد : ٨)

ðمؤمن د مصيبت پر مهال پر”ورانه” وهل،د بدلې د پوپنا کېدو لامل يې ګرځي . ( مسکن الفوائد : ٥١مخ )

ðپه زغم د غوسې د غړپ تېرول او په صبر د مصيبت د ګوټ زغمل د خداى لوري ته ښې لارې دي .( الکافي ٢\١١٠)

ðهغه به د خداى په رڼا کې وي،چې دا څلور ځانګړنې ولري : ( ١) پر (( لا (اله) – الا (الله) – محمد رسول الله)) يې ټينګې منګولې لګولې وي (٢) د مصيبت پر مهال ووايي : (( انالله وانا اليه راجعون )) (٣) نعمت چې ورورسي،ووايي: ((الحمدلله رب العلمين))(٤) او چې ګناه وکړي، ووايي : ((استغفرالله ربي واتوب اليه. ( من لايحضره الفقيه ١\١٧٥)

ðکه کوم  يو پر مصيبت اخته شوئ ؛نو زما د نشتوالى مصيبت درياد کړئ،چې له سترو مصيبتونو دى . ( وسايل ٣\٢٦٨)

ðڅوک چې له ور رسېدلي مصيبته شکايت وکړي؛نو له خپل پالونکي به يې شکايت کړى وي . ( تفسيرالقمي ١\٣٨١)

ðڅوک چې مؤمن ورور ته د وررسېدلي مصيبت تسلي ووايي؛نو خدای ورته شنې جامې وراغوندي،چې د قيامت پر ورځ به يې (چې ټول بربنډ وي) د ښکلا لامل شي . (مستدرک الوسايل  ٢\ ٣٤٩)

ðخداى تعالى وايي : کوم بنده،چې له بدني،مالي يا اولادني مصيبت سره مخ کړم او په ښکلي صبر (=جميل) يې وزغمي؛نو زه ترې حيا کوم (چې د قيامت پر ورځ) ورته تله کېږدم او يا يې کړنليک راپرانځم . (مستدرک الوسايل ٢\٣٤٩)

ð څوک چې سهار کړي؛خو له دنيا (او پېښو يې) غوسه وي،په واقع کې پر خداى غوسه شوى دى او چې له وررسېدلي کړاوه شکايت وکړي؛ نو په حقيقت کې له خدايه يې شکايت کړى دى .( تفسير القمي ١/ ٣٨١)

ðخداى چې د کوم بنده خير وغواړي؛نو په همدې دنيا کې سزا ورکوي او که (په دنيا کې) کوم بنده ته بدي وغواړي؛نو د ګناهونو له امله يې سزا نه ورکوي او په قيامت کې يې ورکړي . ( شيباني ٣\٣٤٤)

ðڅومره چې کړاو ستر وي؛نو اجر يې هم ستر وي،د خداى چې کوم بنده خوښ شي؛نو پر کړاو يې اخته کوي؛نو که پرې خوښ و،خداى ترې خوښېږي او که پرې ناخوښه و؛نو خداى ترې هم ناخوښېږي . (شيباني  ٣\٣٤٤)

ð د مؤمن نر او ښځه تل د ځان،اولاد او مال پر کړاو اخته کېږي،چې له خداى سره د کتو پر مهال يې ګناه تر غاړې نه وي . ( شيباني٣\٣٤٤)

ðمؤمن ته هر څه خير دي،که لورنه پرې وشي؛نو شکر کاږي،چې دا ورته خير دى او که څه کړاو ورورسي،صبر پرې کوي،چې دا هم ورته خير دى .  ( المعجم ١\ ١١٥)

ðڅوک چې مؤمن ورور ته د وررسېدلي کړاو تسلي ورکړي؛نو خداى ورته په قيامت کې جنتي وياړنې جامې وراغوندي .(مسکن الفواد: ١١٥مخ )

 

معاشرت

ð پوهان وپوښتئ،له حکيمانو سره ناسته پاسته وکړئ او له نشتمنو سره ملګرتوب وکړئ . ( النوادرللراوند ي: ٢٦مخ )

 

مينه

ðپه هغو لومړنيو څيزونو،چې  له خدايه پرې سرغړاوى وشو دا دي : دنيا پالنه،مقام پالنه،نسپالنه،ډېر خوب، هوساېنه او له ښځو سره مينه. ( الکافي : ٢\٢٨٩)

ðاسلام بربنډ دى او حيا يې جامه ده،وقار ښکلا يې ده، صالح کړه وړه شخصيت يې دى او تقوا يې ستن  ده . هر څيز يو بنسټ لري،چې د اسلام بنسټ زما له کورنۍ سره مينه درلودل دي .  ( الکافي : ٢\٤٦)

ðپالونکي مې راته د اوو ځانګړنو حکم کړى دى . ( ١) له نشتمنو سره مينه او ورنږدېدل ( ٢) د(( لاحول ولاقوة الا بالله)) ډېر ويل (٣) ( له خپلوانو سره) زړه سوى،که څه هم اړيکه يې راسره پرېکړې وي (٤) (په مادياتوکې ) تر لاس لاندې ته ووينم، نه له ځانه پورته  ته (٥) د خداى په لارکې د هيچا پړه راباندې اغېز و نه کړي (٦) حق ووايم که څه هم تريخ وي (٧) او هېڅکله له چا څه و نه غواړم) . (الاصول الستة عشرمن الاصول الا ولية :٢٤مخ )

ðڅوک چې له “آل محمد”سره په مينه کې ومري،بښلى مړ شوى دى. پوه شئ ،څوک چې له ” آل محمد” سره په مينه کې ومري؛نو له توبې سره مړ شوى دى .څوک چې له “آل محمد”سره په مينه کې ومري ؛نو په پوره ايمان مؤمن به مړ شوى وي .څوک چې له “آل محمد” سره په مينه کې ومري،د مرګ پرښته او ورپسې نکير او منکر ورته د جنت زېرى ورکوي .څوک چې له “آل محمد” سره په مينه کې ومري، داسې جنت ته بېول کېږي؛لکه ناوې،چې مېړه کره وړل کېږي .څوک چې له “آل محمد” سره په مينه کې ومري،خداى ورته د خپلې لورنې له مخې يوه پرښته د قبر زيارت کونکې ټاکي .څوک چې له “آل محمد” سره په مينه کې ومري؛نو زما پرسنتو به له نړۍ تللى وي .پوه شئ څوک چې له “آل محمد”سره په دښمنۍ کې ومري؛د قيامت پر ورځ به په داسې حال کې محشر ته راشي،چې د سترګوپه منځ کې به يې ليکل شوي وي : ((دخداى له رحمته نهيلى.))پوه شئ څوک چې له “آل محمد” سره په دښمنۍ کې ومري؛هېڅکله به د جنت بوى ،بوى نه کړي .

 وګورئ : ( ١) دامام فخررازي تفسير٢٧\١٦٥ ) – ( ٢) د ابن عربي تفسير ٢\٢١٩) ( ٣) دقرطبي تفسير ١٦\٢٢  -( ٤) دثعلبي تفيسر ٥\١٥٧) – ( ٥) دمقريزى ، فضل ال البيت : ١٢٨مخ .( ٦) دشيخ سليمان قندوزى ،ينابيع المودة ٢\٣٣٢) . ( ٧) د ابن صباغ مالکى الفصول المهة : ١\ ٥١٣) . ( ٨) دزمخشرى الکشاف : ٣\٤٦٧)

 

ستاېنه

ðڅوک چې د خپل مؤمن ورور مخامخ صفت او  تر شا غيبت کوي؛نو د ځان او هغه ترمنځ يې د حرمت او درناوي پرده څيرې کړې ده . ( الامالي للصدوق : ٥٨١)

ðپاک خداى زما ورور “علي بن ابيطالب” ته بې شمېره فضايل ورکړي؛نو څوک يې چې يو فضيلت ولولي يا ووايي او ايمان پرې لري؛ نو خداى يې ټول تېر او راتلو نکي ګناهونه بښي او څوک چې د هغه يو فضيلت وليکي؛نو تر هغه چې دا ليکنه پاتې وي،ټولې پرښتې ورته بښنه غواړي او څوک يې،چې يو فضيلت واوري؛نو اورېدل شوي ګناهونه به يې وبښل شي او څوک چې د”علي” ليکل شوى فضيلت وويني؛نو ليدل شوي ګناهونه يې بښل کېږي .

وګورئ : ( ذهبي،ميزان الاعتدال ٣\٤٦٦ .لسان الميزان : ٥\٦٢)خوارزمي ، مناقب ٣٢مخ – شيخ سليمان قندوزى حنفي ١\ ٣٦٤- ګنجي شافعي ، کفاية الطالب ٢٥٢مخ – فرايد السمطين ١\مجلسي بحارالانور: ٢٦\ ٢٢٩)

 

سړيتوب او انسانيت

ð (د حلالو لاس ته راوړ او لګولو له پلوه) د شتمنۍ سمونه په سړيتوب او انسانيت کې شمېرل کېږي .(من لايحضره الفقيه ٣\١٦٦)

ðشپږ څيزونه په سړيتوب کې شمېرل کېږي،چې درې يې د اوسېدو لپاره دي : د قرآن لوستل،د الهي جوماتو جوړول او(د خداى لپاره) له وروڼوسره دوستي کول او درې د سفر لپاره دي :سخاوت،ښه خوى او بې ګناه ټوکې کول . (وسايل الشيعه ١١ \٤٣٦)

ðد سړي حسب او  اصليتوب په دين،عقل،شرافت،ښه خوى،عزت او تقوا کې رانغښل شوى دى( نه په خېل او ټبر کې). ( الکافي ٨\٧٩)

ðچا چې د مړينې پر مهال پوره وصيت نه وي کړى؛نو سړيتوب او عقل يې نيمګړى دى .(من لايحضره الفقيه٤\١٨٧  

ðڅوک چې له خلکو سره په راکړه ورکړه کې تېرى و نه کړي او ورسره پر کړې وعدې وفا وکړي؛نو سړيتوب يې پوره،عدالت يې څرګند، دوستي ورسره لازم او غيبت يې حرام شوى دى . ( الخصال ١\٢٠٨)

ðد چاچې (د دنيا لپاره) غم او خپګان ډېر شي؛ نو بدن يې ناروغېږي او څوک چې بداخلاقه شي؛نو ځان ته عذاب ورکوي او څوک چې نورو ته کنځلې وکړي؛نو خپل سړيتوب له لاسه ورکوي .(وسايل الشيعه ١٢\٢٤٠)

 

خلک

ðد خلکو د بدۍ پر وړاندې له بدۍ ډډه وکړئ؛ځکه د بې پتۍ اوعزت له منځه وړو لاملېږي .( وسايل ١٢\٢٤١)

ðڅوک چې د خلکو خوشحالول تر الهي غوسې غوره وګڼي(؛نو) خلکو،چې هغه ستايه (يوه ورځ يې) رټي او څوک چې الهي لارښوونې د خلکو تر خپګان غوره وبولي؛نو خداى يې د هر دښمن د دښمنۍ او د هر کينه کښ د کينې او د هر ظلم پر وړاندې مرستندوى دى او خداى ورته بس دى .(الکافي ٢\ ٣٧٢)

ðانسان ته يې يو عيب بس دى،چې د خلکو (له عيبو) سترګې پټې کړي او ځان ته يې پام شي او خپل ملګرى په هغو چارو کې و نه ځوروي،چې ور پورې اړه نه لري .( الکافي ٤\٤٦٠)

ð ډېر عادلين هغه دي،چې : څه چې ځان ته خوښوي،خلکو ته هم خوښ کړي او چې ځان ته يې نه خوښوي،خلکو ته يې هم خوښ نه کړي . ډېر ځيرک هغه دي،چې مرګ ډېر يادوي . ډېر غافل هغه دي،چې د دنيا د حالاتو له اوښتو راوښتو پند وا نه خلي .ارزښتمن هغه دى،چې دنيا ته پر ارزښت قايل نه وي.  ډېر پوه هغه دي،چې پر خپلې پوهې د نورو پوهه هم ورزياتوي .مېړني هغه دي،چې پر ځاني غوښتنو برلاسي وي . عزتمن هغه دي،چې پوهان يې عزتمن وي اوناپوهه يې ټيټ وي .کينه کښ له ډېرې لږي برخې برخمنېږي . بخيل تر ټولو ډېر لږ  سوکاله وي . ډېر بخيل هغه دى،چې د خداى فرايض نه ورکوي . حق ته ډېر وړ هغه دي،چې پرې پوهېږي . فاسقان ډېر بې عزته خلک دي . مملوک(او ترلاس لاندې) ډېر بې وفا دي .واکمن ډېر ناملګرى او نادوسته او طماع او تمه کوونکي ډېر نشتمن وي . غنيان هغه دي ،چې د حرص په لومه کې ښکېل نه وي . د ايمان له پلوه د ښه خوى خاوندان اوچت خلک دي او پرهېزګارن عزتمن خلک دي .ستر خلک هغه دي،چې کوم کار ورپورې اړه نه لري،لاسوهنه پکې نه کوي .(په ګناه نه کولو کې) ډېر محتاط خلک هغه دي ،چې شخړې نه کوي،که څه هم په حقه وي . د سړيتوب له پلوه هغه ډېر ټيټ دي،چې دروغ ووايي . (کبرجن) واکمن ډېر بدمرغه وي او کبرجن د خلکو ډېر بد ايسي . ډېر زيارکښ هغه دي ،چې ګناهونه پرېږدي.حکيمان هغوى دي،چې له ناپوهو وتښتي . نېکمرغه هغه دي، چې له عزتمنو سره ناسته پاسته وکړي . ډېر عقلمن هغه دي،چې له خلکو سره نرمي او ښه چلن کوي .په هغوى پسې تورونه لګېږي،چې له بدکارانو سره ملګرتوب کوي . ډېر سرغړانده هغه دي،چې بې ګناه ووژني يا چاچې وهلى نه وي،و يې وهي . ښه عفوه کوونکى هغه دى، چې د وسمنۍ پر مهال عفوه کوي . ناپوهه غيبت کوونکى ډېر ګناهګار دى . ډېرخوار هغه دى،چې خلک سپک کړي . ښه زغمناک هغه دى،چې خپله غوسه تېره کړي . ډېر صالح هغه دى،چې خلکو ته نېک وي او غوره هغه دى،چې خلکو ته ګټور وي . (من لايحضره الفقيه  ٤\ ٣٩٤)

 

مړينه

ðمرګ عبرت اخستو ته بس دى . ( تحف العقول : ٣٥مخ )

ðپاک خداى وايي: ما هېڅکله پخپلو چارو کې د خپل مؤمن بنده د مړينې په اړه شک نه دى کړى؛ځکه زه يې ليدل غواړم؛خو د هغه مړينه ښه نه ايسي؛نو مړينه يې ځنډوم (يايې مقام ورښيم،چې بد ايسېدنه يې له منځه ولاړه شي ) . (الکافي ٢\ ٢٤٦)

 [ تبصره : خداى له شکه پاک دى؛خو دلته شک په مجازي مانا کارول شوى، چې بشري ذهن پرې پوه شي يا تمثيلي استعاره ده،په دې باب وګ : مجلسي:فى مرآة العقول فى شرح اخبار الرسول ٩\٢٩٧مخ ]

ðمؤمن د مړينې پر مهال “ملک الموت” ته داسې درېږي؛لکه مريى،چې خاوند ته او تر هغه لاس نه ورلاندې کوي،چې سلام پرې واچوي او د جنت زېرى ورکړي . ( من لا يحضره الفقيه ١\ ١٣٥)

ðد مؤمن عزت دادى،چې په بيړه ښخ شي.(من لايحضره الفيقه : ١\ ١٤٠)

 ðعلي! بنده چې ومري،خلک وايي:چې څه يې پرېښي ؟ او پرښتې وايي: څه يې لېږلي ؟ ( پورته ٤/٣٦٢)

ðڅوک چې د خپلې زمانې “امام” ونه پېژني او ومري؛نو په جاهلي (او بې ايمانه) مرګ به مړشوى وي .(بحارالانوار ٤\٣٦٢)

ðپر چاچې د کوم مشر (او امام) د بيعت مسووليت نه وي ورترغاړې او ومري ؛نو په جاهلي مړينه به مړشوى وي . (بحارالانوار ٢٣\٩٤)

 

پراخي

ðپوه شه!په صبر (الهي) مرسته تر لاسه کولاى شې او پراخي له سختۍ سره مل ده؛نو په يقين له سختۍ سره اساني ده او په واقع کې له هرې سختۍ سره اساني ده . ( وسايل  ١٥\٢٦٣)

 

ګومان

ðپوه شه چې ډار،کنجوسي او حرص د بدګومانۍ لامل دي . (من لايحضره الفقيه  ٤\٤٠٦)

ðځان له بدګومانۍ وژغورئ؛ځکه ناوړه دروغ دي .( وسايل ٢٧\٥٩)

ðڅوک چې غواړي په پاکۍ او سپېڅلتيا له خداى سره وګوري؛نو بايد واده وکړي او څوک چې د لګښت له امله واده و نه کړي ؛نو په يقين د خداى (په فضل) به بدګومانه شوى وي . (من لايحضره الفقيه٣\٣٨٥)

ðله دنيا سره مينه د هرې ګناه بنسټ دى او پر خداى ښه ګومان د هر عبادت بنسټ دى . ( مستدرک الوسايل ١٢\٤٠)

ðله کينې،پال نيونې،تېري،بدګومانۍ او چغلۍ ډډه وکړئ . (مستدرک الوسايل  ١٢ \٨٧)

 

بې لاري

ðڅوک چې زما د سنتو پر خلاف عمل کوي؛نو بې لارې شوى دى او کړه وړه يې پو پنا کېدو ته راکاږي . (وسايل الشيعه ١\١٠٩)

ðتر ځان وروسته مې د امت لپاره له درېوڅيزونو ډارېږم : (١) تر پوهې وروسته بې لاري (٢) په فتنو کې ښويېدل(٣) او د ګېډې او عورت شهوت . ( الکافي : ٢\٧٩)

ðهر بدعت بې لاري ده او د هرې بې لارۍ پايله اور دى . (الکافي  ١\٥٦)

 

ګناه

ðدګناه وړوکوالي ته مه ګوره؛بلکې وګوره،چې له چا دې سرغړولى دى . ( مکارم الاخلاق:مخ ٤٦٠)

ðله درې سترو ګناهونو ځان وژغورئ :(١) کينه ( ٢) حرص (٣) او دروغ. ( الخصال ١\ ١٢٤)

ðهرومرو له تمې ځان وژغورئ؛ځکه ډېر حرص له زړه سره ګډېږي او له دنيا سره مينه پر زړه ټينګ مهر لګوي او له دنيا سره مينه د هرې ګناه کونجي،د هرې تېروتنې سرچينه او د ټولو ثوابونو د له منځه تلو لامل دى .( مستدرک الوسايل ١٢\٧٠)

ð څوک چې ګناه کوي ؛نو له روزۍ بې برخې کېږي . ( کنز ٦/٤٧٣)

ð ګناهونه دې کم کړه،چې ساه اېستل دې اسان شي . (کنز ١٥/٨٥٥)

ðله اوو نابودوونکيو ګناهونو ځان وژغورئ . وپوښتل شو: رسول الله ! دا کومې دي ؟ ويې ويل : له خداى تعالى سره شرک ، د بې ګناه  انسان وژنه ،د سود خوړل ، د يتيم د مال خوړل،له جهاده تېښته ،پاکلمنې او له فساده ناخبره ښځې تور نول . (بخاري : ٢٧٦٧ ح )

ðله ساده او کوچنيو ګناهونو ځان وژغورئ؛ځکه په اړه يې پوښتل کېږئ .(ابن ماجه – بيهقي –الدارمي)

ðزنا چې ډېره شي،ناڅاپي مړينې زياتېږي . ډنډۍ وهل،چې دود شي، خداى خلک په سوکړې اخته کوي . خلک،چې زکات ور نه کړي؛ځمکه ترې له کرنې،محصولاتو او کانو خپل برکتونه سمپوي .که په پرېکړو او قضاوت کې تېرى او په ظلم کې د يو بل لاسنيوى وشي او وعده ماتول دود شي؛خداى د خلکو دښمنان پرې برلاسوى . که نازړه سوى دود شي؛ نو شتمني د اشرارو لاسونو ته لوېږي . که پر نېکيو امر او له بديو منع ونشي او خلک زما د کورنۍ په نېکانو پسې ولاړ نشي،خداى پرې ډېر ناوړه خلک برلاسوي،پر دې مهال يې که نېکان (هم) دعاوکړي؛نو نه قبلېږي .( الکافي ٢\٣٧٤)

ðګناهونه نعمتونه بدلوي،ظلم  د پښېمانۍ او د حرمت د له منځه وړو لامل دى،وژنه د کينې لامل دى،شراب څښل روزي تنګوي،زنا د ناڅاپي مړينو لامل دى.د زړه سوي نه کول،د دعا د نه قبلېدولامل دى او د موروپلار عاق کول،عمر لنډوي او د لمانځه پرېښوول خواري او بدمرغي راولي . (مستدرک الوسايل ١٢\٣٣٤)

ðدرې ګناهونه دي،چې سزا يې ژر انسان ته ورترغاړې کېږي او تر آخرته نه ځنډېږي : ( ١) د موروپلار عاق کېدل ( ٢) پر خلکو تېرى ( ٣) او ناشکري .( مستدرک الوسايل ١٢\ ٣٦٠)

ðپه ګناه کې څلور څيزونه تر خپلې ګناه ډېر ناوړه دي : (١) (خپلې ګناه ته)سپک کتل(٢) (په ګناه کولو) وياړل(٣) (د ګناه په پاکولو) خوشحالېدل او (٤) (پرګناه) ټينګار کول . (مستدرک الوسايل ١١\٣٤٨ )

ðابوذره!د ګناه کوچنيتوب ته دې مه ګوره،د هغه (ستريا) ته وګوره، چې سرغړاوى دې ترې کړى،ځان ته دې جرات ورکړى،چې سرغړاوى ترې وکړې . ( مستدرک الوسايل ١١\ ٣٤٩)

ðهيڅوخت ګناه وړه او سپکه مه بوله او د سترو ګناهونو له کولو ډډه وکړه؛ ځکه بنده چې د قيامت پر ورځ خپلو ګناهونو ته ګوري؛نو په ژړا کې يې له سترګو وينې څاڅي .خداى وايي : پر هغه ورځ،چې چا نېک يا بد کار کړى وي،حاضر ويني او هيله کوي،چې کاشکې د هغو او ناوړه کړنو ترمنځ يې ډېر واټن واى . (مستدرک الوسايل ١١\٣٥٠)

 ðيو شر هم کم مه ګڼئ،که څه هم کوچنى درته ښکاره شي او يو خير هم ډېر مه ګڼئ،که څه هم لوى درته ښکاره شي؛ځکه له استغفار سره يوه ګناه (هم) ستره نه ده او پر ګناه ټينګار کولو سره  يوه ګناه(هم ) کوچنۍ نه ده . ( من لايحضره الفقيه : ٤\١٧ )

ðخداى درې څيزونه په درېوڅيزونو کې پټوي : (١) خپله خوښي په اطاعت کې ( ٢) خپله غوسه له هغه نه په سرغړاوي کې ( ٣) او خپل ولي (او دوست) پخپلو مخلوقاتو کې؛نو هېڅکله يو الهي عبادت هم ټيټ او خوار مه ګڼئ . څوک څه پوهېږي په کوم يوه عبادت کې الهي رضا نغښتې ده.يوه ګناه هم کوچنۍ مه ګڼئ او څوک څه پوهېږي،چې خداى په کومه ګناه غوسه کېږي او نه ښايي د خداى کوم بنده ته ټيټ وګورئ او بې ارزښته يې وبولئ؛ځکه څوک  څه پوهېږي کوم بنده د خداى “ولي” دى . ( بحارالانوار ٧٢\١٤٧)

ðله اوه ګونو وژونکيو ګناهونو ځان وژغورى 🙁 ١) له خداى سره شرک (٢) کوډې کول (٣) ناحقه وژنه(٤) سود خوړل (٥) د پلار مړي مال خوړل  ( ٦) د جګړې له ډګره تېښته (٧) او (له ګناه) پر بې خبرو پاکلمنو مؤمنو ښځمنو ناروا تورونه لګول . ( الخصال ٢\ ٣٦٤)

ðله ګناه توبه ګار د داسې چاپه څېر دى؛لکه ګناه،چې يې نه وي کړي . (عيون اخبارالرضا ٢\٧٤)

ðابوذره! خداى،چې کوم بنده ته کوم خير ور ډالۍ کوي؛نو ګناهونه يې ورته تل په سترګو کې انځوروي .(مستدرک الوسايل ١٢\١٣٨)

 

غوږ

ðد سترګې او غوږ روغتيا ته مو پام وسه . ( دعائم لاسلام  ١\ ٣٢٦)

ðعلي! خداى راته حکم وکړ،چې ځان ته دې رانږدې کړم او در و يې بښم ،چې ياد يې کړې او د ((وتعيها اذن واعيه = اورېدونکى غوږ  يې په ياد ساتي)) آيت ستا په باب نازل شوى دى .

 (فتح الباري :١٣\٤٣٩،جامع البيان لابن جريرالطبرى : ٢٩ \٦٩ ،تفسير الرازي : ٣٠ \ ١٠٧ = تفسير “ابن کثير” : ٤\٤٤١= الدرالمنثور ٦\٢٦٠= تفسير الالوسي : ٢٩ \ ٤٣)

 

غوښه

ðغوښه وخورئ،چې (پر بدنو مو) د غوښې د راټوکېدو لامل دى او څوک چې څلوېښت ورځې غوښه ونه خوري،بد خويه کېږي؛نو ښه غوښه پرې وخورئ او څوک چې څومره “وازده” وخوري؛نو بدن يې په هومره درد اخته کېږي . (المحاسن ٢\٤٦٥)

ðيو پېغمبر، پاک خداى ته له خپلې بدني کمزوۍ شکايت وکړ. ورته يې وحې وکړه چې:غوښه له شيدو سره پخه کړه؛ځکه برکت او شفا مې پکې ايښې ده . ( بحارالانوار ٥٩\٢٩٤)

 ðغوښه د دنيا او آخرت خواږه خواړه او اوبه د دنيا او آخرت خواږه څښاک دي . ( عيون اخبارالرضا ٢\٣٥)

ðپر چاچې څلوېښت ورځې تېرې شي او غوښه و نه خوري (که بېوسى وي)؛نو “قرض الحسنه” دې واخلي او غوښه دې وخوري .( الکافي  ٦\٣٠٩)

ðهره جمعه خپلې کورنۍ ته څه مېوه او غوښه واخلئ ،چې د جمعې په رارسېد و خوشحاله شي . ( من لايحضره الفقيه  ١\٤٢٣)

ðخداى پر تاسې”قرباني” ددې لپاره کېښووه،چې مسکينانو ته غوښه ورکړئ؛نو (تر قربانۍ) وروسته هغوى ته غوښه ورکړئ،(چې ويې خوري). (من لايحضره الفقيه ٢\٢٠٠)

 

ګوښه کېناستل

ðزما په دين کې رهابنيت او ګوښه کېناستل،ناواده توب او چوپتيا نشته .( الخصال  ١\١٣٧)

 

ځېل

ðعلي! له ځېله ځان وساته ،چې پيل يې ناپوهي او پاى يې پښېماني ده. ( تحف العقول : ١٣ مخ )

ðله ځېله ډډه وکړئ؛ځکه پېل يې ناپوهي او پاى يې پښېماني ده . (تحف العقول : مخ ١٤٩ )

 

لعنت

ðخداى سودخور، د سود شاهدان او ( د سود د سند) پر ليکونکي، چې پوهېږي (دا سود دى) لعنت کړي دي . (مستدرک الوسايل ١٣\٣٣٦)

ðڅوک چې يو څه (يا کوم تن) لعنت کړي؛خو د لعنت وړ نه وي ؛نو لعنت يې بېرته همده ته ورګرځي .( بحارالانوار ٧٥\١٩)

ðخداى دې هغوى لعنت کړي،چې د “اسامه بن زيد” له لښکره سرغړونه وکړي .(يعقوبي تاريخ٢\١١٣- السيرة الحلبية ٣\٢٢٨- تاريخ مدينه دشق ٨\٦٢)

ðزما په امت کې،چې بدعتونه راښکاره شي؛نو بايد عالم خپله پوهه راڅرګنده کړي ( چې پوهې د بدعت مخه ونيسي) او که داسې و نه کړي؛نو دخداى لعنت دې ورباندې وي . (الکافي ١\٥٤)

ðمؤمن چې بې عذره دروغ ووايي؛نو اويا زره پرښتې پرې لعنت وايي او له زړه يې بدبوى راپورته کېږي،چې عرش ته وررسي او د عرش وړونکي پرې لعنت وايي او خداى ددې دروغو له امله په کړن ليک کې ورته د اويا زناوو سزا ليکي،چې ډېره لږه يې له خپلې مورسره د زنا سزا وي . (مستدرک الوسايل : ٩\٨٦)

 

لواط

ðڅوک چې له کوم هلک سره لواط وکړي،د قيامت پر ورځ به په داسې حال کې جنب محشر ته راشي ،چې د دنيا اوبو به نه وي پاک کړى . خداى به ورته سخت غوسه وي او لعنت به يې کړي او هستوګنځى يې دوزخ دى،چې څه ناوړه هستوګنځى دى.( الکافي ٥\٥٤٤)

ðڅوک چې کوم هلک د شهوت له مخې ښکل کړي،خداى به يې د قيامت پر ورځ په خوله کې اورينه کيزه وچواي . (الکافي ٥\ ٥٤٨)

ðڅوک چې ښځه،هلک يا سړى وطې کړي؛خداى هغه د قيامت پر ورځ داسې پاڅوي، چې له يوې مردارې  ډېر بد بويه وي،چې خلک يې له بده بويه ځورېږي،څوجهنم ته ننوځي .( جامع الاخبار : ١٤٦)

 

زنا – بدلمني

ðتر ما وروسته،چې زنا ډېره شي؛نو ناڅاپي مړينې هم ډېرېږي . (الكافي  ۵\۵۴)

ðزنا د انسانانو د بېوزلۍ او د ښارونو د ويجاړۍ لامل ګرځي .(من لايحضره الفقيه۴\۲۰ )

ðزنا او خير په يو كور كې نه راټولېږي . ( الجفريات : ۹۹)

ðزنا پينځه ځانګړنې لري : ( ۱) ابرو له منځه وړي . ( ۲) د بېوزلۍ لاملېږي (۳) عمر  لنډوي  ( ۴) د لورين خداى د غوسې لاملېږي ( ۵) او انسان همېشه دوزخي كوى . خداى ته د دوزخ له اوره پناه وړو. ( الكافي  ۵\۵۴۲)

ðڅلور څيزونه دي،چې كه هر يو يې يو كور ته ننوځي؛نو كور  ورانوي او بركت ورته نه ننوځي :خيانت،غلا،شراب خوړل او زنا . ( وسايل الشیعة  ۲۸\۲۴۲)

ðيوازې ارموني دي،چې پېغمبران او زامن يې وژني . (كامل الزيارات : ۷۹مخ )

ðځمكه خداى تعالى ته له درېو څيزونوسختې چغې وهي: (۱)هغه وينه،چې په حرامو تويه شي.( ۲) د هغه غسل اوبه،چې د زنا له امله پر ځمكه تويه شي (۳) او تر لمرخاته مخكې خوب . ( الحضال ۱\ ۱۴۱)

ðد قيامت پر ورځ زناكار د دوزخيانو پر سر راولي او له شرمځي يې يو څاڅكى تویېږي،چې دوزخيان يې له بدبويۍ تنګېږي او د عذاب پرښتوته وايي : دا څه بدبوى دى،چې موږ يې تنګ كړي يو؟ (الجعفريات : ۹۹)

ðسړى د زنا او غلا پر مهال مؤمن نه دى . ( الكافي ۲\ ۲۸۴)

 

نبوي کورنۍ

ðد شورى سورت د ٢٣ آيت : [ قُل لَّا اسأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَى= زه له تاسې پر خپل رسالت هېڅ بدله نه غواړم؛خو (زما) له خپلوانو (= اهلبيتو) سره مينه (هرومرو غواړم) ]  په باب د “سعيد بن منصور”په سننو کې له “سعيد بن جبير” روايت دى : راغلي،چې “قربى” خپله رسول الله ( صلى ا لله عليه واله وسلم ) دى .

 “ابن المنذر”،”ابن حاتم” او “مردويه” په خپلو تفاسېرو کې او “طبراني” په “معجم الکبير”کې له “ابن عباس” روايت کړى،چې : د قل لا اسئالکم الى ……… آيت،چې نازل شو؛نو”رسول الله” وپوښتل شو،چې پر موږ ستا له کومو خپلوانوسره مينه کول واجب شوي دي ؟ورته يې وويل : علي،فاطمه او دوه زامن يې (حسن اوحسين) .

ð”ابن ابي حاتم” له “ابن عباس” د[ ومن يقترف حسنة – او څوک چې “ښه عمل” وکړي ] آيت په باب روايت کړى،چې : دا ښه عمل د حضرت محمد( صلى الله عليه وآله وسلم) له کورنۍ او ځوځات سره مينه ده . په آيت کې له (( حسنة)) مطلب له اهلبيتو سره مينه ده .

  ð”احمد”،”ترمذي”،”نسائي” او”حاکم” له”عبدالمطلب بن ربيعه” روايت کړى،چې رسول الله (ص) وويل : پر خداى قسم !  د چا په زړه کې تر هغه وخته (ايمان) نه ننوځي،څو د خداى او زما لپاره (زما له کورنۍ) سره مينه و نه لري .

 ð”مسلم”،”ترمذي” او”نسائي” له حضرت”زيدبن ارقم” روايت کړى : په رښتياچې پېغمبر اکرم وويل : له خدايه ووېرېږئ (هسې نه) زما له کورنۍ او ورسره له مينې شا وګرځوئ .

ðاو په “صحيح مسلم” ( ٧باب ،د حضرت “علي بن ابيطالب” فضايل ، پينځم حديث)کې “مفصل” له حضرت “زيدبن ارقم” روايت کړى،چې (پېغمبراکرم ) وويل :له خدايه ووېرېږئ، دا يې درې ځل وويل .

ð “ترمذي” او “حاکم” له  حضرت “زيدبن ارقم” روايت کړى،چې رسول اکرم وويل : زه درته دوه څيزونه (امانت) پرېږدم، که تر ما وروسته پرې منګولې ښخې (او عملي يې) کړئ؛نو هېڅکله به بې لارې نشئ، چې هغه د خداى کتاب (قرآن) او زما د اهلبيتو ځوځات ( عترت) دى او هيڅکله له يو بله نه بېلېږي،څو په “حوض” کې ماته راشي؛نو وګورئ (چې تر ما وروسته) له دې دواړو(امانتونو) سره څه ډول چلن کوئ ؟

 ð”عبد بن حميد” په خپل مسندکې له “زيدبن ثابت” روايت کوي چې : پېغمبر اکرم وويل : زه په تاسې کې داسې څه پرېږدم،که منګولې مو پرې ولګولې (او عمل پرې وکړئ)؛نو تر ما وروسته به هېڅکله بې لارې نشئ،چې هغه “کتاب الله” ( قرآن ) او زما “ځوځات” – زماکورنۍ – دي او دوى هېڅکله له يوبله نه بېلېږي ،څو په “حوض” کې ماته راشي .

 ð”احمد” او “ابويعلي” له حضرت “ابي سعيد الخدري” روايت کړى،چې رسول الله(ص)  وويل : نژدې دى،چې  وبلل شم او دا بلنه ومنم او زه په تاسې کې دوه څيزونه پرېږدم ،چې “د خداى کتاب” (قرآن) او زما “ځوځات” (زما کورنۍ) دي،بېشکه چې لورين او خبير خداى خبر کړى يم ،چې دا دواړه هېڅکله له يوبله نه بېلېږي،څو په  “حوض”کې ماته راشي ؛نو وګورئ، چې تر ما وروسته ورسره څه ډول چلن کوئ ؟

ðزما د اهلبيتو مثال د”نوح” د بېړۍ په څېر دى،څوک چې پکې کېناست وژغورل شو او چاچې ترې سرغړونه وکړه؛نو پوپنا شو. (بحارالانوار ٢٣\١٢٣)

ð”ترمذي” او”طبراني” له “ابن عباسه” روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) وويل : له خداى سره د ډېرو درکړل شويو پېرزوينو له امله  مينه ولرئ او له ما سره د خداى لپاره او زما لپاره،زماله کورنۍ سره مينه ولرئ .

ð”شيخ قندوزي” (ينابيع المودة ٢٤١ مخ) روايت کوي چې: پېغمبراکرم ( ص) وويل : له “آل محمد” سره يوه  ورځ دوستي او مينه تر يوه کاله عبادته غوره ده .

 ð “امام بخاري” له حضرت ابي بکر(رض) روايت کوي،چې پېغمبراکرم (ص) وويل : د پېغمبر په پار کورنۍ يې وپالئ. (ارقبوامحمدا فى اهلبيته)

 ð”طبراني” او”حاکم” له حضرت”ابن عباس” څخه روايت کوي، چې رسول اکرم (ص) وويل: د”عبدالمطلب” اولادې ! تاسې ته مې له خدايه د درې څيزونو ټينګېدا غوښتې ( چې دا دي ): ستاسې ناپوهه، پوه کړي،بې لارې مو پرلارې کړي او تاسې د بخشش خاوندان او زړه سواندي وګرځوي؛نو که کوم سړى (خپل ټول عمر) په ولاړه د”رکن” او”مقام” ترمنځ پر لمانځه او روژې تېر کړي او بيا ومري او زما له اهلبيتو سره يې دښمني وي (؛نو متعال خداى) به يې په اور کې وغورځوي .

ð “طبراني” له “ابن عباس” روايت کوي،چې پېغمبراکرم (ص) وويل : څوک چې له “بني هاشمو” او “انصارو” سره دښمني لري؛کافر دى او له عربوسره دښمني نفاق دى .

ð”ابن عدى” په “الکامل” کتاب کې له حضرت “ابي سعيد خدري” نه روايت کوي،چې پېغمبر  اکرم ( ص)  وويل :څوک چې زموږ له کورنۍ سره دښمني وکړي؛نو منافق دى .

    ð”ابن حيان” او”حاکم” له حضرت “ابي سعيد” روايت کوي، چې پېغمبراکرم وويل : پر هغه (خداى) قسم،چې زما ساه يې په لاس کې ده، څوک چې زموږ له کورنۍ سره دښمني وکړي؛نو”الله تعالى” به يې  اور (دوزخ ) ته وغورځوي .

  ð “طبراني” له  حضرت”امام حسن مجتبى” روايت کوي ،چې “معاويه بن حديج” ته يې وويل : له موږ سره له دښمنۍ ډډه وکړه، په رښتيا چې پېغمبر اکرم  وويل : له موږ سره  کينه کښ به د قيامت پر ورځ د اور په کمچينوله “حوضه” راستنول کېږي .

ð”ابن عدى” او”بيهقي” په “شعب الايمان” کې له حضرت علي (ک) روايت کړى،چې پېغمبر اکرم وويل : څوک چې زموږ کورنۍ او انصار نه پېژني؛نو له دې درېو ډلو به وي : يا به منافق وي يا ارمونى او يا ناپاکه اولاد(،چې د خپلې مور په مياشتني عادت کې به پرګېډه شوى وي )

 ð”طبراني” په “الاوسط” کتاب کې له حضرت “ابن عمر” نه روايت کوي، چې د پېغمبر اکرم وروستۍ خبره دا وه چې : زما د کورنۍ په اړه،زما ځايناستي اوخليفه واست .

يعنې تاسې ته چې خپل”اهلبيت” امانت پرېږدم ؛نو ستاسې چلن به ورسره څنګه وي .

 ð “طبراني” په “الاوسط” کتاب کې له حضرت “امام حسن” روايت کړى، چې بېشکه پېغمبر اکرم وويل : له موږ سره مينه پر ځان لازمه وبولئ ؛نو په رښتيا،څوک چې له خداى سره ويني او زموږ د کورنۍ مينه ورسره وي ؛نوزموږ په شفاعت به جنت ته ولاړشي او پر هغه قسم، چې ځان مې د هغه د ځواک په لاس کې دى،بنده ته به هله خپلې کړنې ګټورې شي ،چې زموږ پر حق پوهېدلى وي .

ð “طبراني” په “الاوسط” کتاب له حضرت “جابر بن عبدالله” روايت کوي، چې (يوه ورځ ) رسول اکرم ( ص) د ويناپه ترڅ کې وويل : خلکو!څوک چې زموږ له کورنۍ سره کينه لري؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ “يهودي” راپاڅوي .

 ð “طبراني” په “الاوسط” کتاب کې له حضرت “عبدالله بن جعفر” څخه روايت کړى، چې رسول الله ( ص) وويل : بني هاشمو! له خدايه مې غوښتي،چې تل تاسې په هوساېنه او زړه سوي کې واست ،بې لارې مو پر لارې او ډارن مو په امن کې وي او وږي مو ماړه کړي . پر هغه قسم ، چې ځان مې د هغه په واک کې دى،هغه به خوندي او په امن کې وي ،چې له ما سره د مينې له امله،له تاسې سره مينه ولري او تاسې هيلمن ياست، چې زماپه شفاعت به جنت ته ننوځئ ؛خو د عبدالمطلب (ټوله) اولاده داسې نه ده.

 ð”ابن ابي شېبه” او”سداد” په خپلو مسندو کې،”حکيم” “ترمذي” په “نوادرالاصول” او”ابويعلي” او”طبراني” له “سلمه بن الاکوع” څخه روايت کوي،چې رسول اکرم وويل : [؛لکه څنګه چې] ستوري اسمانوالو ته (د) امان (لامل) دي؛  (نو همداراز )”اهلبيت” مې امت ته امان دي .

 ð”البزاز” له حضرت “ابي هريره” (رض)  روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) وويل :په رښتيا چې په تاسې کې مې دوه څيزونه پرېښي (که لاروي يې وکړئ؛نو)هېڅکله به بې لارې نشئ(،چې هغه) “د خداى کتاب” (قرآن) او زما”عترت” او “ځوځات” دي او دوى هېڅکله تر هغه يو له بله نه بېلېږي،څو په “حوض” کې راسره يو ځاى شي .

  ð”البزاز” له “حضرت علي” (ک) روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) وويل : د ساه اخستل مې نږدې شوي دي (مړينه مې رارسېدلې) په رښتيا،چې په تاسې کې مې دوه درانه څيزونه پرېښي؛”د خداى کتاب” (قرآن) او”کورنۍ” مې (دا دواړه له بې لارۍ د ژغورنې لامل دي)؛نو په رښتيا،چې تاسې به (تر هغه چې لاروي يې کوئ) بې لارې نشئ .

ð”طبراني” په “المعجم الصغير”(٧٨مخ) کې له حضرت “ابوذرغفاري” (رض) روايت کوي، چې رسول اکرم (ص) وويل ‌: په تاسې کې زما کورنۍ (اهلبيت) داسې ده؛لکه د “نوح” په قوم کې يې بېړۍ ؛نوڅوک چې پکې سپور شو؛وژغورل شو او چاچې سرغړاندي وکړه ( او لرې شو) هلاک شو او په تاسې کې زما کورنۍ په “بني اسرائيلو”کې د”باب حطه” ( د توبې او انابې ور) په څېر ده؛نو څوک چې ورننووتل؛وبښل شول .

 ð “طبراني” په “الاوسط” کتاب کې له حضرت“ابي سعيدالخدري” (رض) روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) وويل : په رښتيا چې زما کورنۍ د “نوح” د بېړۍ په څېر ده،څوک چې پکې سپاره شو؛وژغورل شو او چاچې سرغړونه وکړه؛نو غرق شو او په رښتيا،چې په تاسې کې زما کورنۍ (اهلبيت) په “بني اسرائيلو”کې د “باب حطه” په څېر ده ؛څوک چې ورننووت (؛نو) وبښل شو.

 ð “طبراني” له حضرت “عمر”( رض) روايت کړى،چې پېغمبر اکرم وويل : د هرې مور اولاد پلار ته منسوبېږي؛خو بې د فاطمې له اولادې ؛ نوپه رښتيا،چې زه يې خپلوان او پلار يم .

 ð “طبراني” له حضرت فاطمې بي بي روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : د هرې مور اولاد يې پلار او خپلوانو ته منسوبېږي؛خو د فاطمې له اولادې پرته (چې) زه يې “ولي” او “خپل” يم .

 ð “حاکم” له حضرت “جابر” روايت کوي ،چې پېغمبراکرم (ص) وويل : د هرې مور اولاد پلرني ټبر ته منسوبېږي؛خو د فاطمې اولاد،چې زه يې ولي ، ټبر او خپلوان يې يم .

 ð “طبراني” له “جابر” روايت کوي،چې حضرت”عمربن خطاب” (رض) د حضرت “علي” د لور د نکاح پر وخت وويل :=ولې راته مبارکي نه وايئ ،چې له رسول اکرم مې اورېدلي،چې ويې ويل ‌: د قيامت پرورځ  ټول سببونه او نسبونه پرې کېږي ؛خو بې زما له سبب او نسبه .

 ð “طبراني” له “ابن عباس” روايت کوي چې پېغمبر اکرم وويل :  د قيامت پر ورځ……..))

 ð “ابن عساکر” په خپل تاريخ کې له حضرت “ابن عمر” روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : د قيامت پر ورځ هر سبب او زومولي پرې کېږي؛خو نه زما نسب او زومولي .

يادونه : دا حديث “ابن کثير”په خپل تفسير( ٧/٣٧)،”ابن حجر”په “الصواعق المحرقه” ( ٢٣٤مخ ) او په “فتح البيان في تفسيرالقرآن” ( ٦/ ٢٦١٩ )کې هم رااخستل شوى دى .

 ð “حاکم” له حضرت “ابن عباس” روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : ستوري د ځمکې اوسېدونکي له ډوبېدو خوندي ساتي او زما کورنۍ،زما امت له اختلاف او خپرېدو خوندي ساتي او که کوم ټبر يا ډله زما له اهلبيتو سره مخالفت وکړي؛نو اختلاف به يې پخپله ورترغاړې شي او د ابليس په ګوند کې به وي .

 ð “حاکم” ( المستدرک ٣/١٥٠) له حضرت انس نه روايت کوي، چې پېغمبر اکرم وويل : خداى راسره زما د اهلبيتو په اړه ژمنه کړې،چې که هر يو يې پر “توحيد”اقرار وکړي؛نو  له واره ورته ويل کېږي،چې خداى به يې پرعذاب نه کړي .

ð”ابن جرير” په خپل تفسير( ٣٠/٢٣٢) کې ددې آيت (پالونکى دې ورته دومره دربښي،چې راضي شي)  په اړه له ابن عباسه روايت کوي، چې هله به پېغمبر اکرم راضي شي،چې له کورنۍ يې يو هم اور( دوزخ )  ته ولاړ نشي.

ð”حاکم حسکاني” (شواهدالتنزيل ٢/ ٣٤٥) له پېغمبراکرم (ص) روايت کوي، چې دومره مې د امت شفاعت کوم،چې د خداى له لوري غږ وشي : محمده ! راضي شوې! بيا وايم : هو.

ð او له حضرت ابن عباسه په بل روايت کې راغلي،چې خداى تعالى دپېغمبر اکرم  ځوځات جنت ته ننباسي .

 ð “البزاز”،”ابويعلي”،”العقيلي”،”طبراني” او”ابن شاهين” په سننو کې له حضرت “ابن مسعود” روايت کوي ،چې پېغمبر اکرم  وويل : په رښتيا چې “فاطمه” يوه پرهېزګاره او پاکلمنې وه ؛نو ځکه يې خداى تعالى پر ځوځات اور حرام کړ.

ð “طبراني” له حضرت “ابن عباس” روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) حضرت فاطمې ته وويل : په رښتياچې ته او اولاد به دې د دوزخ له اوره لرې واست .

 ð”ترمذي”( صحيح   ١٩٩مخ ) له “حسن”  او “جابره”  روايت کوي،چې پېغمبر اکرم ( ص) وويل : خلکو! په رښتيا،چې ما تاسې ته دوه څيزونه پرېښي،که منګولې پرې ښخې کړئ (؛نو) هېڅکله به بې ﻻرې نشئ او هغه “د خداى کتاب” (قرآن) او زما”ځوځات” او اهلبيت دي . (بغوى؛مصابيح السنة :٢٠٦مخ)

 ð”خطيب بغدادي” په خپل تاريخ (٢\١٤٦)کې له حضرت علي(ک) روايت کړى،چې پېغمبر اکرم وويل : زه به مې د خپل امت او د اهلبيتو د مينوالو شفاعت کوم .

 ð “طبراني” له حضرت ابن عمر څخه روايت کوي : رسول اکرم وويل : زه به په خپل امت کې تر ټولو ړومبى د خپلو اهلبيتوشفاعت کوم.

ð “طبراني” له حضرت “مطلب بن عبدالله بن حنطب”  نه روايت کوي: پېغمبر اکرم په “جحفه” کې وويل : زه تر تاسې ړومبى يم؟ ويې ويل : هو رسول الله ! بيا يې وويل :زه به تاسې د دوو څيزونو؛ قرآن او عترت (او زما اهلبيتو)په باب وپوښتم (دا مطلب “ابن اثير”په “اسدالغابه” (٣\١٤٧)کې په لنډ تفسير سره هم را اخستى دى)

 ð “طبراني” له حضرت ابن عباسه  روايت کوي،چې پېغمبراکرم وويل: (دقيامت پر ورځ)بنده ﻻ قدم نه وي پورته کړى،چې څلورو څيزونه ترې پوښتل کېږي :

١- خپل عمر دې په څه کې تېرکړى دى .

٢- تنه(ياځواني) دې په کومه ﻻر کې لګولې وه.

٣- شتمني دې له کومې ﻻرې تر ﻻسه کړې اوچېرته دې لګولې ده.

٤_ او(په زړه کې دې ) زموږ له کورنۍ سره مينه درلوده (که نه)؟

ð “ديلمي” له حضرت على روايت کوي،چې پېغمبر اکرم به ويل : لومړى تن، چې د “حوض” پر غاړې به راته راځي ،زما له اهلبيتو به وي .

  ð”ديلمي” له حضرت علي (ک)روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : خپل اولادونه پر درېوڅيزونو وروزئ :

١- له خپل پېغمبر سره په مينه .

٢- د پېغمبر اکرم  له کورنۍ سره په مينه .

٣- د قرآن پر لوستو او ورباندي په پوهېدو. په رښتيا، د چاچې له قرآن سره مخه وي؛نو په قيامت کې به (د الهي رحمت) تر سيوري لاندې، د هغه له انبياوو او اصفياوو سره وي،چې پر هغه ورځ به بې له الهي پېرزوينواوعنايت بل سيورى نه وي .

ð “ديلمي” له حضرت علي (ک) روايت کوي،چې پېغمبراکرم وويل : (په قيامت کې ) پر( پل) صراط به د هغوى قدمونه تر ټولوټينګ وي، چې زما له اهلبيتو او اصحابوسره يې ډېره مينه وي .

 ð “ديلمي” له حضرت علي (ک) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : په قيامت کې به د څلورو ډلو شفاعت وکړم :

١- هغوى چې زما د ځوځات عزت  وکړي .

٢- هغوى چې زما د ځوځات اړتياوې لرې کړي .

٣- هغوى چې په اضطراري او د اړتيا پر وخت يې لاسنيوى وکړي .

٤- د هغوى رښتيني دوستان،چې په زړه اوخوله يې ورسره مينه وي .

 ð “ديلمي” له حضرت “ابي سعيد” څخه روايت کوي ،چې پېغمبر اکرم وويل  : پر هغوى به خداى ډېر غوسه وي،چې ځوځات مې ځوروي .

ð “ديلمي” له حضرت “ابي هريرة” روايت کوي ،چې پېغمبر اکرم وويل : بېشکه چې خداى تعالى به ( پر شپږو تنو) غوسه شي : 

١- څوک چې په مړه ګېډه ډوډۍ وخوري .

٢- څوک چې حق ته له غاړې اېښوونې غافل وي .

٣- څوک چې د خپل پېغمبر له سنتو( دود او لارې ) بې پروا وي .

٤- څوک چې د يو څه ذمه واري او مسؤوليت پر غاړه واخلي او بيا خپله ژمنه ماته کړي او عذرکوي او له خپلې ذمې اوږې سپکوي .

٥- څوک چې د پېغمبرله ځوځات سره کينه لري .

٦- او څوک چې د ګاونډيو حق ناليدلى ګڼي او ځوروي يې .

 ð “ديلمي” له حضرت “ابي سعيد” څخه روايت کوي،چې پېغمبراکرم (ص) وويل :زما اهلبيت او انصار وپالئ،د هغوى نېکانو ته  ورمات شئ او له بديو يې تېر شئ .

 ð”ابونعيم” په “الحلية” کتاب کې له حضرت “عثمان بن عفان” (رض) روايت کوي،چې پېغمبراکرم (ص) وويل : څوک چې د “عبدالمطلب” له کومې اولادې سره مرسته وکړي او هغه يې په نړۍ کې له جبرانولو بېوسې وي؛نوزه به يې په قيامت کې نېکي جبيره کړم .

 ð”خطيب” له حضرت “عثمان بن عفان”(رض) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم  وويل : څوک چې د”عبدالمطلب” له ځوځات سره څه خير ښېګڼه وکړي ؛نو پر ما(لازم ) دي ،چې په قيامت کې د کتنې  پر وخت يې نېکي جبيره کړم .

 ð “ابن عساکر”له حضرت علي  (ک) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم (ص) وويل : چاچې د خدمت له لارې زما پر کوم اهلبيت حق ورترغاړې کړ؛ نو زه به يې په قيامت کې د  کړنې مکافات ورکړم .

 ð”باوردي” له حضرت “ابي سعيد”څخه روايت کوي،چې پېغمبراکرم وويل : په رښتيا چې درته (داسې څه) پرېږدم،که منګولې پرې ښخې کړئ ( ؛نو) هېڅکله به بې لارې نشئ،چې ( هغه ) د خداى کتاب (قرآن) د‌ى،چې يو سر يې د خداى په لاس کې دى او بل به يې له تاسې سره وي او بل زما د اهلبيتو عترت (ځوځات) دى او دا دواړه (قرآن – اهلبيت ) له يو بل نه بېلېږي ،څو د حوض (ترغاړې ) له ماسره يوځاى شي .

 ð “احمد” او “طبراني” له حضرت “زيد بن ثابت” (رض) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : په رښتيا چې زه په تاسې کې دوه ځايناسي پرېږدم (،چې يو يې) د خداى کتاب (قرآن) دى،چې د اسمان او ځمکې ترمنځ ځوړنده رسۍ ده (او بل يې) زما ځوځات او اهلبيت دي او دا  دواړه (قرآن – اهلبيت ) هېڅکله يو له بله نه بېلېږي،څو په (حوض) کې ماته راشي .

 ð “ترمذي”،”حاکم” او”بيهقي” په”شعب الايمان” کې له حضرت عايشې (رضى الله عنها) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم ( ص) وويل : شپږ ډلې مې لعنت کړي او همداراز خداى او هر پېغمبر،چې دعا يې قبوله شوې :

١- څوک چې د خداى په کتاب کې څه ورزيات کړي .

٢- د الهي ارادې دروغجن ګڼونکي .

۳- د خداى حرام حلال وګڼي .

۴- خداى چې زماځوځات ته څه حرام کړي وي ،ورته يې حلال کړي .

۵- او زما د سنتو پرېښوونکي دي .

 ð”الدارقطبي” په “الافراد” او”خطيب” په “المتفق” کې له حضرت علي (ک) روايت کړى ،چې پېغمبر اکرم ( ص) وويل : خداى ما او هر پېغمبر،چې دعا يې قبوله ده ، شپږ ډلې لعن کړي دي :

١- څوک چې د خداى په کتاب (قرآن ) کې څه ورزيات کړي .

٢- د الهي قضا او قدر دروغجن ګڼونکي .

٣- څوک چې زماسنتوته شا او بدعت او بې لارۍ ته مخ کړي.

٤- خداى چې زماعترت او اهلبيتوته څه حرام کړي وي،حلال کړي .

٥- څوک چې زماپر امت په زوره حکومت وکړي ،ددې لپاره چې خداى خوار کړي، عزتمن او خداى عزتمن کړي،خوارکړي .

٦- او هغه عرب،چې تر اسلام وروسته مرتد شي .

 ð “حاکم” او”ديلمي” له حضرت “ابي سعيد” نه روايت کوي،چې پېغمبر اکرم  وويل : څوک چې دا درې څيزونه وپالي ؛نو متعال خداى به دين او دنيا يې وساتي او چاچې ونه پالل؛نو خداى به يې (د دين ،دنيا او آخرت) هيڅ څيز و نه ساتي .١- د اسلام حرمت او پت . ٢- زما حرمت او پت . ٣- زما د کورنۍ حرمت او پت .  

ð“ديلمي” له حضرت علي (ک)روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : عرب ډېرغوره خلک دي  او”قريش” په عربوکې ډېرغوره دي او په قريشوکې د “هاشم” اولاده ډېره غوره ده .(ابن هشام؛سيرة ٢/ ٩٦٨د آلمان چاپ ) 

ðتاسې ته مې دوه څيزونه پرېښوول،که منګولې پرې ولګوئ ؛نو هېڅکله به بې لارې نشئ،چې هغه د خداى کتاب (قرآن) او زما سنت يې دي . (امام احمدحنبل؛ مسند٣/١٤)

ðماتاسې ته دوه ګران بيه څيزونه پرېښوول،چې هغوى د خداى کتاب (قرآن) او زما(اهلبيت) دي .  هغوى يو له بله نه بېلېږي ان تردې،چې ماته د “کوثر حوض” ته راشي .

تبصره : دا دواړه احاديث يو د بل مخالف نه؛بلکې يو د بل تفسير دي ؛ ځکه ((عترتي اهلبيتي ))، د پېغمبر اکرم سنت دي .

ðهغه به د قيامت پر ورځ ډېر نوراني وي ،چې له”نبوي کورنۍ” سره مينه لري .( شواهدالتنزيل ٢/٣١٠ )

ðهغه ته زما شفاعت  لازم شوى،چې زما له اولادې سره په لاس ،ژبه او شتمنۍ مرسته وکړي .( جامع الاخبار: ١٦٣٩)

ðله بنده چې لومړى څيز پوښتل کېږي،هغه زموږ د اهلبيتو دوستي ده. ( بحار ٧/ ٢٦٠ )  

ðهغه به پر”پل صراط”ټينګ قدمونه اخلي، چې زما له کورنۍ سره يې ډېره مينه وي . ( بحار ٨/٦٩ )

ðڅوک چې د”محمد” له کورنۍ سره په مينه کې مړشي (؛نو) شهيد به مړشوى وي .( العمدة: مخ ٥٤)

ðله حضرت ابوهريرة (رضى الله عنه) روايت دى،چې پېغمبر  اکرم ويلي : په رښتيا چې ما په تاسې کې دوه څيزونه پرېښي ( که لاروي يې وکړئ)هيڅکله به بې لارې نشئ ؛(او هغه) د خداى کتاب (قرآن) او زما “عترت” او”ځوځات” دى او دوى هېڅکله يو له  بله نه بېلېږي،څو په “حوض” کې ماته راشي (احياء الميت؛جلال الدين السيوطي)   

ðله عبدالله بن زبير (رض) روايت دى،چې پېغمبر اکرم ويلي دي:”اهلبيت”؛ د “نوح” د بېړۍ په څېر دي،څوک چې پکې سپور شو (؛نو) وژغورل شو او چاچې پرېښووه(؛نو) ډوب (او هلاک) شو. (احياالميت؛جلال الدين السيوطي)

ðپه تاسې کې زما “اهلبيت” د “نوح” د بېړۍ په څېر دي،څوک چې پکې سپاره شول (؛نو) وژغورل شول او څوک چې ترې وروسته پاتې شي (؛نو) پوپنا کېږي . ( دسيوطي جامع الصغير )

ðله حضرت ابي سعيد الخدري (رض) څخه روايت دى،چې پېغمبراکرم (ص) ويلي :په تاسې کې زما “اهلبيت”؛په “بني اسرائيلو” کې د”باب حطه” په څېر دي؛که څوک ورننووت؛نو وبښل  شو.(  احياء الميت؛جلال الدين السيوطي)

ðله امام حسن (رض ) نه روايت دى، چې پېغمبر  اکرم (ص) ويلي : د هر څيز بنسټ وي او د اسلام بنسټ د رسول الله له اصحابو او اهلبيتو سره مينه  ده . (احياء الميت: حلال الدين السيوطي) 

ðد چاچې زما کورنۍ ښه نه ايسي؛نو منافق يا ارمونى يا يې د مور د ناپاکۍ پر وخت پرګېډه شوى دى .( وسايل ٢\٣١٩)

ðزه تاسې ته دوه ګرانبيه څيزونه پرېږدم؛که منګولې مو پرې ولګولې؛ نو هېڅکله به بې لارې نشئ،چې هغه “کتاب الله” او “زما د کورنۍ ځوځات”دى او دوى د “کوثر” تر حوضه يو له بله نه بېلېږي. (الدرالمنثور  ٢\٢٨٥)

ðاهلبيت مې د “نوح” د بېړۍ په څېر دي،څوک چې پکې سپور شو؛نو وژغورل شو او چاچې ترې سر غړونه وکړه؛هلاک او ډوب شو. (المستدرک على الصحيحين  ٢\٣٤٣)

ðزما اهلبيت په بني اسراييلو کې د “باب حطه”په څېر دي،چاچې ورته رجوع وکړه ؛نو وبښل شو. (المعجم الاوسط : ٦\٨٥ – الصغير: ٢\٢٢ ) (“باب حطه” د “مسجدالاقصى” يو ور دى،چې “بني اسرائيل” به د توبې لپاره پرې ور ننووتل او سجدې يې کولې) .

ðستوري د اسمانوالو د امنيت لامل دي او اهلبيت مې د ځمکوالو د امنيت لامل دي .( المعجم الکبير: ٧ \٢٢)

ðد چاچې له “حسين” سره مينه وي؛نو ورسره به د خداى مينه وي . (بحار ٤٣/ ٢٦١)

ð”مهدي” د جنتيانو طاووس دى .( منتخب  الاثر: مخ ١٦ ) 

ð”حسن” زما دى او زه دهغه يم ؛نو څوک چې ورسره مينه ولري، د خداى به ښه ايسي  . ( بحار ٤٣/٣٠٦ )

 

امام مهدي عليه السلام

ðمهدي  زموږ له اهلبيتو دى . ( دامام احمد حنبل مسند١\٨٤)

ðمهدي زما له ځوځات او د فاطمې له اولادې دى . (د ابي داوود سنن  ٢\٣١٠)

ðکه د دنيا يوه شپه پاتې (هم) وي؛نو له اهلبيتو به مې يو تن په هغه شپه کې واکمني وکړي .( المعجم الکبير١٠ \١٣٣)

ð”مهدي” زما له ځوځاته دى او مخ يې د ځلانده ستوري په څېر دى . (ميزان الحکمه : ١١٦٤ح )

ð”مهدي” ته سترګې پر لارېدل، زما د امت غوره کړه وړه  دي . ( کمال الدين: مخ ٦٤٤)

ð”مهدي”  زموږ له اهلبيتو دى .( منتخب الاثر: مخ ١٨٠)

 

 

 حضرت فاطمه الزهرا

ð فاطمه زما د تن ټوټه ده . ( بحار ٤٣/٢٣)

ðبېشکه خداى د فاطمې په غوسه،غوسه کېږي او پر خوشحالى يې خوشحالېږي . ( بحار ٤٣/٣٢٠ )

ð”فاطمه” راته تر ټولو ګرانه ده . ( بشارة المصطفى: مخ ٧٠)

ðپېغمبر اکرم (صلی الله عليه و اله وسلم) حضرت علي(ک) ته وويل : علي! پوهېږې فاطمه ولې فاطمه نومول شوې ده؟ حضرت علي وويل: ولې فاطمه نومول شوې ده؟ پېغمبر اکرم (صلی الله عليه و اله) وويل: داځکه فاطمه او لارويان يې د دوزخ له اوره ژغورل شوي دي .

وګورئ:(ينابيع المودة،١٩٤مخ،ذخاير العقبى ٢٦مخ،فرايد السمطين ٢\٥٨ ، ٣٨٤ حديث، کنز العمال١٢\١٠٥ – ١١٢ مخونه ٣٤٢٢٧ حديث، نورالابصار ٥١،٥٤ مخونه ،مناقب اهل البيت ١\٢٠٨، الاصابة ٨ټوک،اعلام النساء ٤ ټوک، تذکرة سبط ابن جوزي ٢٧٥،٢٨٥ مخونه ،صحيح ترمذي ٥ ټوک د فضايل فاطمه برخه)

ðپه رښتيا چې لور مې فاطمه پرښته ده او د نورو ښځو په څېر يې جامې نه راځي او ځکه فاطمه نومول شوې،چې خداى هغه او لارويان يې د دوزخ له اوره ژغورلي دي .

(فرايد السمطين ٢\٥٨ ، ٣٨٤،محب الدين طبري ذخاير العقبى ٢٤ مخ)

ðرسول اکرم (صلی الله عليه و اله) حضرت علي (ک) ته وويل:درې څيزونه درکړ ل شوي،چې ما او بل چاته نه دي ورکړل شوي، چې دا دي:

١- ته مې زوم يې او د رسول الله په شان خُسر لرې او زه دداسې چا زوم نه يم چې خُسر مې ستا په شان وي .

٢- ته د صديقې په څېر مېرمن لرې،چې لور مې ده؛خو زه داسې مېرمن نه لرم .

٣- تا ته د حسن او حسين په څېر زامن درکړاى شوي،حال داچې زه د هغوى په څېر زامن نه لرم؛خو بيا هم تاسې زما او زه ستاسې يم .

پورتنې روايت په لاندنيو کتابو کې هم راغلى دى.

د بغداد تاريخ ٢\٢٥٩، مستدرک حاکم ٣\١٦٠، استيعاب ٢\٧٥١، حلية اولياء ٢\٤١،( دا څلور کتابونه د بيروت چاپ دي)

ðله حضرت عمر (رض) روايت شوى چې : پېغمبر اکرم(صلی الله عليه و اله) وويل : په قيامت کې به هر سبب او نسب غوڅېږي؛خوبې زما له سبب و نسب ،د هر مور اولاده خپل پلار ته منسوبه وي؛خو بې د فاطمې له اولادې، چې زه يې پلار يم .

په فرايد السمطين (٢\٧٧ – ٣٩٧،٣٩٨ حديث) ،مقتل خوارزمي:( ٦\٨٩) ،معجم الکبير:(١\١٢٤- ١٠٤ حديث) ، کنزالعمال:(٦\٢٢٠) او ذخاير العقبى:( ١٢١ مخ) کې هم  پورتنى روايت جرير بن عبدالحميد له شيبة بن نعام روايت کړى.

ðفاطمه زما د وجود يوه ټوټه ده، چاچې غوسه كړه؛نو زه يې په غوسه كړى يم،په رښتيا،چې خداى يې پرخپګان خپه كېږي او پر خوشحالۍ يې خوشحالېږي .

 ( مسند احمد بن حنبل  2/223 ،٧\٣٢٨،– صحيح بخاري  5/92 – صحيح مسلم  4/1902 – سنن ابي داود  2/226 سنن ترمذي  5/688 – معجم كبير طبري2/52 – مستدرك حاكم  3/154 – السنن الكبري  7/307 – شرح السنه  7/232 – مقتل خوارزمي  2/53 – فرايد السمطين ټ 245،کنزالعمال ٧\١١١،صواعق ١٩٥مخ،نزهةالمجالس٢\٢٢٨،کفايةالطالب : ٢١ مخ، نورلابصار ٤٥مخ،خصايص نسايي٣٥ مخ،ذخاير العقبى ٣٩ مخ،ينابيع الموده ١٧١مخ ٥٥ باب)

ðعلي!خداى درته فاطمه غوره كړه او ټوله ځمكه يې د هغې مهر كړه، كه څوك ورسره دښمني او كينه ولري او پر ځمكه ګرځي؛نو ګرځېده به يې حرام وي . ( مقتل خوارزمي  2\66 ، فرايد السمطين  2\95 ).

ðفاطمه پاکلمنې ده او خپله لمن يې له هر راز چټليو پاکه وساتله؛نو خداى پر هغې او اولادې  يې د دوزخ اور حرام کړ.

(مستدرک حاکم٣ /١٥٢ تاريخ خوارزمي ٣/٥٤_ ذخاير العقبى ٤٨ مخ_کفايه ا لطالب ٢٢٢مخ_ احياء الميت سيوطي ٢٥٧مخ_ نورالابصار ٤٥مخ _صواعق المحرقه ١١٢مخ.)

ðحضرت عمران حصين (رض) له حضرت پېغمبر اكرم (صلی الله عليه و اله) سره يو ځاى د حضرت فاطمې كور ته ولاړل . پېغمبر اكرم وويل : فاطمې! اجازه ده،چې له دې سړي سره درننوځم . بيا پېغمبر اكرم  ورته د پردې كولو امر وكړ . حضرت فاطمې وويل :درد،زغم او لوږه لرم . پېغمبر اكرم ورته وويل : خوښه نه يې،چې د دنيا د ټولو ښځو بي بي وسې؟ فاطمې وويل : ايا مريم د خپل وخت د ښځو بي بي نه وه؟ پېغمبر اكرم ورته وويل :حضرت مريم د خپل وخت بي بي وه او ته د ټولو ښځو بي بي يې،ستا مېړه په دنيا او اخرت كې ستر او غوره دى . ( بخاري مناقب فاطمه 7/83 ، مستدرك الصحيين 3/151 ، صحيح مسلم 22/127 )

                                                          

حسنين

ðدا دواړه مې اولاد دي او د لور زامن مې دي،لويه خدايه! زه ورسره مينه كوم، ته هم ورسره مينه ولره، څوك چې ورسره مينه لري، له هغوي سره هم مينه ولره. ( دترمذي سنن 5/322 )

ð خپل هيبت او سيادت مې حسن ته،زړورتيا او شجاعت مې حسين ته و بښله . ( طبراني الاوسط – هيثمي مجمع الزوايد)  

ð فاطمه د جنت د ښځو بي بي ده او حسن او حسين د جنت زلمي دي .

(صحيح ترمذي٢/٣٠٦_مستدرک حاکم٣/١٥١_مسند احمدحنبل ٥/٣٩١_ حلية الاولياء٤/١٩٠_اسدالغابه ،٥/٥٧٤_کنزالعمال٦/٢١٧)

ð حسن او حسين مې په دنيا کې د سترګو تور دي .

(مسنداحمدحنبل٣\٨٥،٩٣،١١٤،١٥٣_صحيح ترمذي٢\٣٠٦_ مسند طيالسي ٨\١٦٠ _ حليه اولياء ٥\٧٠_ خصايص نسايي ٣٧مخ_ فتح البارى ٨\١٠٠ _کنوزالحقايق ١٦٥مخ_مجمع الزوايد ٩\١٨١)

ð پېغمبر اكرم وايي:حسن او حسين د جنت دوه زلمي او ښاغلي دي .

(مسنداحمدحنبل٣\٦٢،٨٢_صحيح ترمذي١٣\١٩١_مشکل الاثار٣\٩٣٩_مستدرک حاکم ٣\١٦٦_حليه الاولياء ٥\٧١_ بغداد تاريخ ٤\٢٠٤_فصول المهمه١٣٦مخ_تذکره سبط٢٤٣مخ_خصايص نسايې٣٦مخ،المعجم الکبير١٣١مخ_مصابيح السنه٢٠٧مخ_ ابن عساکر تاريخ ٢\٥٦_کنزالعمال١٣\٦٠٠_صواعق المحرقه١٣٥مخ_اسدالغابة٢\١١)

ðپېغمبر اكرم حضرت علي،حضرت فاطمې،امام حسن او امام حسين ته وويل: څوک چې در سره په جنګ کې وي؛ نو زه به هم ورسره په جنګ کې يم او څوک چې درسره په سوله کې وي؛ نو زه به هم ورسره په سوله کې يم .

( مسنداحمدحنبل ٢/٤٤٢_ صحيح ابن ماجه ١٤مخ _ مستدرک حاکم ٣/١٤٩ _   ذخايرالعقبى ٢٥ مخ _ صحيح ترمذي ٢/٣١٩_ تاريخ بغداد ٧/ ١٣٦، ١٣٧_ ٤/٢٠٨_ اسدالغابه ٥/٥٢٣_ کنزالعمال ٦/٢١٦_ جمع الجوامع سيوطي ٦/٢١٦_ کفاية ا لطالب ١٨٩ مخ _ مناقب خوارزمي ٩٠ مخ _ فصول المهمه ١١ مخ _ صواعق ا لمحرقه ١١٢ مخ، تاريخ ابن عساکر ٤/٣١٦_ تاريخ ابن کثير ٢/ ١٨٩)

 

د امت غوره مېرمن

ðخديجه د دې امت له غوره مېرمنو ده . ( تذكرة الخواص سبط ابن جوزي 352 مخ )

ð ام المومينن عايشه بي بي له حضرت پېغمبر اكرم (صلی الله عليه و اله) روايت کوي،چې ما ته هيڅوك د خديجې په شان نشې كېداى . په داسې وخت كې يې زه رښتينى وبللم او پر ما يې ايمان راوړ،چې ټول كافر  ول او دروغجن يې بللم او خپله ټوله شتمني يې راكړه او خداى زما ځوځات له اولادې يې وګرځاوه. (تذكره الخواص سبط ابن جوزي353 مخ )

 

له حضرت علي سره مينه

ðله (علي) سره مينه ګناهونه(داسې) سوځوي؛لکه اور چې لرګي سوځوي . ( کنز ٢١/٣٣)

ðد چا چې زه “مولى”يم؛نو(علي) هم مولى يې  دى .( تاريخ دمشق ١/ ٣٦٦)

ðد قيامت پر ورځ يوازې د”علي” لارويان بريالي دي . (عيون اخبار الرضا ٢/ ٥٢)

ð د”علي” ډله د خداى ډله ده . ( موسوعة امام علي ٨/١١٥ )

ðخلکو! له “علي” سره مينه ولرئ . ( بحار ٣٩/٢٦٥)

ðد احد د غزا پر ورځ ناست وم او د خپل تره “حمزه” له كفن او ښخولو نوى خلاص شوى وم،چې جبرئيل راغى او راته يې وويل : محمده! خداى تعالى وايي : لمونځ مې فرض كړ او پر ناروغ مې ( په شرايطو) كېنښود، روژه مې فرض كړه او پر ناروغ مې كېنښوه،حج مې فرض كړ؛ خو پر بېوزلي مې كېنښود،چې وس يې نه لري،زكات مې فرض كړ او پر هغه مې كېنښود،چې د زكات د وركړې شرايط پرې نه عملي كېږي؛خو د”علي بن ابيطالب” مينه مې پر هر چا او هرو شرایطو کې فرض كړه . (بحارالانوار  ۲۷ \ ۱۲۹)

 

اصحاب

 ð زه تر تاسې مخکې په (کوثر) حوض کې يم، ستاسې چې ځينې سړي راولي؛نو زه يې پر لور ورځم، چې له حوضه يې خړوب کړم (؛خو) له ما څخه يې لرې کوي؛نو وايم : پالونکيه (دا خو مې) اصحاب دي! ويل کېږي : نه پوهېږې،چې تر تا وروسته يې څه وکړل!!! (څه پېښې او بدعتونه يې رامنځ ته کړل)

(د امام احمد حنبل مسند لومړى ټوک ٢٣٥، ٢٥٣، ٣٨٤، ٤٠٢، ٤٠٦، ٤٠٧، ٤٣٩، ٤٥٣، ٤٥٥ مخونه.صحيح بخاري ٤/ ١١٠ – ٥/ ١٩١ او ٢٤٠ مخونه، صحيح مسلم ١/ ١٥٠  ، سنن ابن ماجه ٢/ ١١٦ ، سنن ترمذي ٤/ ٣٨، سنن نسايي ٤/ ١١٧ ، د حاکم مستدرک ٢/ ٤٤٧ ، فتح الباري: ١١/ ٣٣٣، البدايه والنهايه ٩/ ٢٣١)

ð په قيامت کې پر حوض ولاړ يم او ځينې اصحاب راڅخه لرې کوي او مخونه يې رانه اړوي؛نو وايم : پالونکيه،زما اصحاب! زما اصحاب (دي)!!! ويل کېږي : نه پوهېږې،چې تر تا وروسته يې څه وکړل!!!

مسندابن راهويه: ٢/ ٤٣ –الطبقات الکبراى لابن سعد ٨/ ٧٦، سنن بيهقي ١٠/ ١١٤، شرح العقيده الطحاويه ٤٣١

ð (عثمان بن مظعون چې ومړ؛نو پېغمبر اکرم يې له مخه کفن لرې کړ او د سترګو ترمنځ تندى يې ورته ښکل کړ، ډېر يې وژړل بيا يې وويل: ) عثمانه! پرحال دې خوښي،نه دنيا درنه څه ګټه واخسته او نه تا له دنيا.(انساب الاشراف ١/ ٢٥٨، بحارالانوار ٧٩/ ٩١ )

ð”حذيفه د يمان زوى” د رحمان خداى له غوره کړاى شويو او په تاسې کې په حلالو او حرامو ډېر سترګور رهبر دى او “عمار ياسر” له مخکښانو او د الهي درشل له نږدې وګړيو دى او “مقداد بن اسود” د مجتهدانو په ليکه کې دى او هر څه يو اتل لري او “عبدالله بن عباس” د قرآنې پوهې اتل دى . (بحار الانوار ٢٢/ ٣٤٣ )

ð په اسمان او ځمکه کې تر “ابوذر” ډېر رښتين نشته، يوازې ژوند کوي، يوازې به مري او يوازې به راپاڅول کېږي او يوازې به جنت ته ولاړ شي . (بحارالانوار ٢٢/ ٣٤٣)

 

ماعون

ðڅوک چې خپل ګاونډ ته د اړتيا وړ وسيلې (ماعون) له ورکړې لاس واخلي؛خداى يې په قيامت کې له خپل خيره يې بې برخې کوي او ځان ته يې پرېږدي او څوک چې ځان ته پرېښوول شي؛نو څه بد حال به لري! (من لايحضرالفقيه ٤\١٣)

 

مبارزه

ðڅوک چې د خداى په لار کې مبارزه پرېږدي؛ خداى ورته په ژوند کې د خوارۍ،فقر او د هغه دين د پوپنا کېدو جامې وراغوندي .( الکافي ٥\٢)

ð غوره مبارز هغه دى،چې له خپل دننني نفس سره مبارزه وکړي . (الجعفريات : ٧٨ )

ð غوره مبارزه هغه دى،چې سهار راپاڅي؛خو پر چا د تېري نيت ورسره نه وي .( الجعفريات : ٧٨)

  ðپه جنت کې د يو وره نوم “باب المجاهدين” دى، د خداى د لارې مبارزين به په دې وره په داسې حال کې جنت ته ننوځي،چې تورې به يې راځوړندې وي،پرښتې به ورته ښه راغلاست وايي؛خو نور خلک به(لا) د قيامت په مواقفو (او تمځايو) کې منتظر وي . (تهذيب الا حکام : ٦\١٢٣)

 

شخړه

ðخداى دې هغوى لعنت کړي،چې خپل دين له حرامو لارو تر لاسه کړي؛ يعنې په دين کې شخړه کوي . ( الجعفريات : ١٧١)

ðهغه خورا پرهېزګار دى،چې شخړه پرېږدي،که څه هم په حقه وي . (روضة الواعظين ٢\ ٤٣٢)

ðڅوک چې په دين کې شخړه کوي،پاک خداى د اويا پېغمبرانو په خوله لعنت کړي دي او کافر شوى دی . څوک چې د خداى په آيتونو کې شخړه کوي او خداى (په قرآن کې) وايي : يوازې کافران د خداى په آيتونو کې شخړه کوي . (وسايل ٢٧\ ١٩٠)

 

مجازات

ðڅلور ګناهونه تر نورو چټک په سزا رسېږي : هغه سړى،چې تا ورسره احسان کړى؛خو په ځواب کې يې ناشکري او ګستاخي کړې ده.هغه چې تا ورباندې تېرى نه دى کړى؛خو هغه درباندې کړى .هغه چې خپله کړې ژمنه دې ورسره پوره کړې؛خو هغه درسره خيانت وکړي او هغه سړي، چې زړه سوی کړي؛خو هغوى ورسره اړيکه پرې کړې ده. (الامالي للطوسي : ٤٥٠)

 

غونډې

ðناستې مو د خداى په نامه او د هغه پر استازي په درود ويلو پيل کړئ،چې له حسرت او وبال خلاص اوسئ . (الکافي  ٢\ ٤٩٧)

ð د ناستې راز او امانت خوندي ساتلى بويه؛خو نه د هغو ناستو چې : د ناحقه وينې تويولو،پر ناموس د تېري او ناحقه د شتمنيو د لوټلو په اړه پکې پرېکړې کېږي .( وسايل الشيعه ١٢\١٠٥)

ðد مؤمن له حقوقو يو دا هم دى،چې غونډې ته راننوځي؛نو ناست دې ورته په څنګ ځاى ورکړي،چې خبرې کوي،ورته دې مخ کړي او چې راولاړ شو؛خداى پاماني دې ورسره وکړي (،چې عربان پردې مهال هم سلام اچوي ) . ( مستدرک الوسايل  ٨\٣٢٠)

ðهر څيز يو شرافت لري او د ناستې شرافت په دې کې دى،چې مخ پر قبله کېنئ . ( مستدرک الوسايل  ٨\ ٤٠٦)

ðابوذره! په غونډو کې امانت ساتى وسه او(پوه شه،چې ) چې د خپل ورور راز ويل خيانت دى؛نو ډډه ترې وکړه . (مستدرک الوسايل: ٨\٣٩٨)

ðغونډې او ناستې امانت دي (چې څه پکې وويل شي؛نو بايد راز يې وساتل شي)؛خوکه ددې چارو په اړه پرېکړه کېده ؛نو بايد راز يې پټ ونه ساتل شي :

١- په هغه غونډه کې چې د ناحقه وينې تويولوپه اړه مشوره وشي .

٢- په هغه غونډه کې چې د چا د بې عفتۍ مشوره وشي .

٣- په هغه غونډه کې چې د چا پرشخصي مال خېټې اچولو يا مال ضايع کولو ته مشوره وشي . (ابوداوود )

 

پور

ðد پور ډېر ستړى غم وي . ( الکافي ٥\١٠١)

ðپور،په ځمکه کې د خداى کړۍ ده؛نو خداى چې کوم بنده خواروي، دا کړۍ ورترغاړې کوي .( الکافي ٥\ ١٠١)

ð د يو څيز  په “پور” ورکول، د هغه تر “صدقې” ورکولو غوره دي. (کنز ٦ /٢١٠)

ð هغه مو غوره  دى ،چې خپل پورونه ورکوي . ( کنز ٦ /٢٢١ )

ð د پور وعده په خپل وخت راځي او پر هغه دې افسوس وي،چې وعده وکړي ؛ خو عمل پرې و نه کړي . ( کنز ٣/٣٤٧ )

ðله پوره ځان وساتئ،چې د شپې غم او د ورځې خواري ده . (بحار ١٠٣/١٤١)

ðڅوک چې مؤمن ته پور ورکړي او د بېرته ورکړې تر وخته ورته وګوري؛ نو شتمني به يې پاکه او برکتي شوې وي او پرښتې به ورته دعا کوي .( اعلام الدين : ٣٩٠ مخ )

ðڅوک چې چاته پور ورکړي او پوروړي ته وګوري؛نو هره ورځ ورته د ورکړې پور هومره صدقه ليکل کېږي . ( مستدرک الوسايل  ١٣\ ٤١٢)

که پوروړى مو په سخته کې وي او ورته وګورئ؛نو خدای به درته هره ورځ د پور تر لاسولو پورې د پور د صدقې هومره ثواب درکوي. (وسايل ١٨/ ٣٦٨)

ð شتمن،چې د “پور” ورکړه ځنډوي (؛نو) ظلم دى .(فقيه ٤/٣٨٠)

ðد ډوډۍ او خمبيرې  پور ورکونه مه سپموئ،چې د نېستۍ لاملېږي . (مستدرک الوسايل ١٢\٤٣٦)

 

قسم

ðيوازې پر “الله” قسم وخورئ،چاچې پر”الله” قسم وخوړ؛نو بايد رښتيا ووايي او مقابل لورى يې بايد ومني او که نه د خداى (د رحمت له سيوري) به وتلى وي . (الکافي٧\٤٣٨ )

ðقريشو! بايد هڅه وکړئ او که نه تر لاس لاندې مو په سوداګرۍ کې درنه وړاندې کېږي،په سوداګرۍ کې برکت دى او خداى يو سوداګر هم تر هغه نه نشتمنوي،چې پر خداى قسمونه نه خوري . ( مستدرک الوسايل  ١٣\ ٩)

 

غچ ،کسات

ðڅوک چې له غچه ډارېږي،پر خلکوله تېري دې ځان وساتي . (الکافي٢\ ٣٣٥)

ðخلکو! غچ او حق مو واخلئ او يو موټى شئ . (الا مالى للمفيد : ٥٣٠)

ðزه هغه ته حيران يم،چې خپله مېرمن وهي،حال داچې په خپله هم د وهلو وړ دى . مېرمنې مو په کوتک مه وهئ،چې قصاص لري؛خو ( که لازم شي،د تنبيه لپاره) يې په لوږه او جامو پرې سختي راولئ،چې سمې شي،چې په دنيا او آخرت کې موګټه په برخه شي .(مستدرک الوسايل ١٤\٢٥٠ )

ðهغه بنده خداى ته ډېر ګران دى،چې د غچ او د خپل حق د اخستو وس لري ؛خو بيا هم عفوه کوي . (بيهقي)

 

قضاوقدر

ðيوازې  دعا الهي قضا و قدر اړولاى شي . (مکارم الاخلاق : ٣٨٨)

ðپه هرالهي قضاوقدرکې مؤمن ته خير دى .(مستدرک الوسايل ٢\٤١١)

ðد الهي کتاب په رالېږلو او د استازيو په منلو: نېکمرغي هغه ته ده، چې ايمان راوړي او پرهېزګاري وکړي او بدمرغي هغه ته ده،چې دروغ يې وګڼي او کافران شي او داچې خداى د مؤمنانو ولايت پر غاړه اخلي، علم د مخه شو او د قلم (رنګ) وچ شو او الهى قضا لاسليک شوه او قدر( او اراده ) يې پاى ته ورسېده. ( تفسير القمي  ٢\٢١٠ )

 

قوم

ðد قوم امام،خداى ته د هغوى پلاوى دى؛نو په خپلو لمونځونو کې، خپل ډېرغوره مخکې کړئ .( المستدرک الوسايل : ٦\٤٧١)

ðد قوم مشر،چې درته راغى؛نو درناوى يې وکړئ .( الکافي :٢\٦٥٩)

ðډېرناوړه قوم هغه دى،چې:پر نېکيو امر نه کوي او له بديو منع (پر نېکيو امر کوونکيو اوله بديو پر منع کوونکيو تورونه تپي)،د خداى لپاره د “قسط” لپاره نه راپاڅي،تر الهي تړونه ورته طلاق او بېلتون غوره دى،د خداى له مننې ورته د واکمن لاروي ړومبۍ ده، دنيا پر دين غوره ګڼي، ګناه کول،شهوتپالي او پر شبهاتو بوختيا حلاله ګڼي. (مستدرک الوسايل  ١١\٣٧٠)

 

غښتلتيا

ðابوذره! که غواړې، چې ډېرغښتلى وسې؛نو پر خداى توکل وکړه او که غواړې ډېر عزتمن اوسې؛نو پرهېزګار وسه . (مستدرک الوسايل  ١١\٢١٧)

 

غوسه کول

ðغوسه شيطاني لمبه ده .( ميزان : ١٤٧٠١ ح )

ðچې غوسه شوې ؛نو کېنه په ناسته غوسه سړېږي . (  کنز: ٧٦٩٤ح )

ð غوسه د زړښت نيم لاملونه دي . ( کنز ٣/٤٩ )

ð چې غوسه شوې ؛نو چوپ شه . ( کنز ٣/٤٨ )

ðمه غوسه کېږه . ( بخاري )

ðغوسه د شيطان له لورې ده (دغوسې پر مهال د شيطان د برلاسۍ له امله الهي پولي ماتېږي)شيطان له اوره پيدا شوى؛نو داچې اور په اوبو مړکېږي؛نوځکه څوک چې غوسه شي؛نو اودس دې وکړي . ( ابوداوود )

ðد خداى پر وړاندې ښه ګوټ،دغوسې دى،چې انسان يې د خداى لپاره وکړي .( احمد )

ðپهلوان دا نه دى،چې خپل سيال پر ځمکه راڅملوي؛بلکې حقيقى پهلوان هغه دى ،چې دغوسې پر مهال،خپله غوسه کابوکړي . ( بخاري – مسلم )

ðکه په ولاړه غوسه شوئ؛نوکېنئ،چې غوسه مو سړه شي او کنه پښې غځولي څملئ . ( احمد – ترمذي)

ðخلکو ته (دين) زده کړئ او په زده کړه کې اساني کوئ،سختي او بدغوني مه کوئ  او چې غوسه شوئ؛نوچوپ شئ .( احمد – طبراني )

ðغوسه ايمان داسې له منځه وړي؛لکه “سرکه”، چې “شات” له منځه وړي .( الکافي ٢\٣٠٢)

ðچې کله هم غوسه شوئ؛نو اودس وکړئ .(مستدرک الوسايل ١\ ٣٥٣ )

ðتر  ښځې اوغوسې د شيطان ستر لښکر نشته . ( الکافي ٥\٥١٥)

ðخداى او زه پر هغه ښځې غوسه کېږو،چې بې له کورنۍ يې څوک کور ته راننوځي،خوراک څښاک ترې (هم) وکړي او د کور پر راز يې هم پوه شي . (مستدرک الوسايل ١٤\٣٣٣)

ðايمان په درېو ځانګړنو پوره کېږي : ( ١) خپله خوشحالي او ښادي په باطلو (چارو) نه خرابوي ( ٢) په غوسه کې د حق له کړۍ نه وځي او ( ٣)  د قدرت پر مهال هغه څه ته لاس نه اوږدوي،چې نه يې دي . (الکافي  ٢\٢٣٩)

  ðڅوک چې په غوسه کې له زغمه کار واخلي؛نو د خداى مينه پرې لازمېږي .( مشکاة الانوار : ٣٠٩مخ )

ðله غوسې او تمبلۍ ځان وژغورئ،که غوسه شوې (؛نو) حق نشې زغملاى اوکه تمبل شوې؛حق نشې ادا کولاى؛نو پر چاچې غوسه برلاسې شوه،هوساېنه ترې خپل ټغر راټولوي . (مستطرفات السرائر: ٦١٥)

ðد زغمناک درې نښې دي : ( ١) نه تمبلېږي ( ٢) نه غوسه کېږي ( ٣) له خپل پالونکي شکايت نه کوي ؛ځکه د تمبلۍ پرمهال د(نورو) حقوق ضايع کوي،چې غوسه شي،شکر نه باسي او له خپل پالونکي،چې شکايت وکړي ؛نو ګناه به يې کړې وي .( علل الشرايع ٢\٤٩٨)

ðډېر بد انسان هغه دى،چې ژر غوسه کېږي او ډېر وروسته خوشحالېږي .( کنز ٨/٤٣٥) 

ðخداى چې کله بنده ته غوسه شي؛نو په زړه کې ورته د خندا نغمې اچوي . ( عدة الداعي : ١٦٨)

ðځينې خلک ډېر نه غوسه کېږي او(چې غوسه شي) ژر يې غوسه سړېږي . ځينې ژر غوسه کېږي او ژر يې هم غوسه سړېږي . ځينې ژر غوسه کېږي او ډېر وروسته يې غوسه سړېږي؛پوه شئ، په دوى کې هغه ډېر غوره دى،چې ډېر غوسه کېږي او ژر يې غوسه سړېږي او پوه شئ،چې په دوى کې هغه ډېر ناوړه دى،چې ژر غوسه کېږي او ډېر وروسته يې غوسه سړيږي. (ترمذي ٩\٤٣. احمد ٣\١٩)

ðپېغمبر اکرم هېڅکله هم د دنيا لپاره نه غوسه کېده او چې د حق لپاره به غوسه شو؛نو چا نه پېژانده او هېڅ څيز يې تر هغه غوسه نه شوه سړولاى،چې غچ يې نه و اخستاى .

په (تخريج زين الدين ابى الفضل العراقى الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالى ٣ / ١٧) کې کښلي دي :

ð پوه شئ چې غوسه د بنيادم په زړه کې لمبه ده،د غوسه ناک د سترګو سوروالى او د غاړې د رګونو پړسوب او ….يې نه ګورئ . (ناصف ٥/ ٢٩٨ – ٢٩٩ )

ðد غوسې په حال کې د دوو تنو ترمنځ قضاوت (او پرېکړه) مه کوئ . (شيباني ٤/ ٥٥ )

ð د اغلاق (سختې غوسې ته ويل کېږي،چې انسان پکې له سم فکر کولو بې وسې وي.)پر حال طلاق او د مريي ازادول نه واقع کېږي . (المعجم المفهرس لالفاظ الحديث النبوي ٤/ ٢٥)

ðابوذره! پر ورور دې له غوسې کولو ډډه وکړه؛ځکه د خداى د غوسې او بېلتون کړنې نه خوښېږي . ابوذره ! له غوسې کولو دې منع کوم؛نو که اړ شوې،تر درېو ورځو ډېر مه غوسه کېږه،که څوک له خپل مسلمان ورورسره د غوسې پر مهال ومري؛نو د دوزخ اور ورته وړ دى .( مشکاة الانوار : ٢٠٩)

ð خلکو ته (دين) زده کړئ او په زده کړه کې اساني کوئ ، سختي او بدغونتوب مه کوئ او چې غوسه شوئ؛نوچوپ شئ .(احمد–طبراني)

ðد خداى پر وړاندې ښه عزت،د غوسې دى،چې انسان يې خداى ته تېره کړي . ( احمد )

ð غوسه ايمان داسې خرابوي؛لکه سرکه چې شات خرابوي. (الکافي ٢/ ٣٠٢)

[ په مراة العقول ( ١٠ / ١٤١) کې دي:د شاتو له خرابېدو مطلب دا دى،چې سرکه د شاتو  خوږوالى له منځه وړي او له ګډېدو يې يو بل څه منځ ته راځي،چې شات نه دي او غوسه هم له ايمان سره نه يو ځاى کېږي او د ايمان ګټې له منځه وړي. ]

ð ښحې او غوسه د شيطان سترې لښکرې دي .( الکافي ٥ / ٥١٥)

ð کفر درې ستنې لري:(دنيا ته) لېوالتيا،ډار،(پر الهي ارادې) ناخوښي او غوسه .( الکافي ٥ / ١٦٢)

ð غوسه د شيطان د اور يوه لمبه ده.( جامع الاخبار: ١٦٠ مخ)

ðکه غوسه شې؛نو اودس وکړه . (مستدرک الوسايل ١/ ٣٥٣ )

ð پر هغه خداى ډېر غوسه دى،چې زما وينه تويه کړي او اهلبيت مې وځوروي . (عيون اخبار الرضا ٢/ ٢٧ )

ð خداى بنيادم ته وايي: د غوسې پر مهال مې ياد کړه،چې زه دې  هم د خپلې غوسې پر مهال ياد کړم،چې د پوپنا کېدو پر وخت دې هلاک نه کړم . ( مستدرک الوسايل ١٢/ ١٥)

  ðپر هغه د خداى محبت لازمېږي،چې غوسه وزغمي. (مشکاه الانوار: ٣٠٩)

ð چاچې غوسه تېره کړه؛نو خداى يې زړه له ايمانه ډکوي او څوک چې له کوم تېري تېر شو؛نو خداى به يې په دنيا او اخرت کې عزتمن کړي . (الامالي للطوسي: ١٨٢)

 ð يو ځل  حضرت “عايشه” بي بي پر پېغمبر اکرم غوسه وه،پېغمبر اکرم ورته وويل:شيطان درته راغلى دى .( شيباني ٣/ ٢٤٦)

ðيوسړي پېغمبر اکرم ته وويل : ما ته سپارښتنه وکړه. آنحضرت ورته وويل : مه غوسه کېږه . سړي څو ځل خپل خبره وکړه او هر ځل ورته پېغمبراکرم وويل: مه غوسه کېږه. (نووي ١/ ٥٣٣ . شيباني ٣/ ٢٤٧ )

 ð پېغمبر اکرم خپل اصحابو ته وويل : پهلواني څه ته وايي؟ ورته يې وويل : پهلوان هغه دى،چې څوک يې را څه نملوي . آنحضرت ورته وويل:نه! هغه پهلوان دى،چې د غوسې پر مهال خپله غوسه سړه کړي . (شيباني ٣ / ٢٤٦)

ð څوک چې خپله غوسه وزغمي،حال داچې غوسه کړاى شي؛نو پاک خداى پرې د قيامت پر ورځ غږ کوي،چې له “حورالعين” غوره کړه. (نووي ١ / ٧٩)

ð که غوسه شوې او ولاړ يې (؛ نو) کېنه او که پر ولاړه دې غوسه سړه نه شوه؛نو څمله . (ابوداوود: ٢/ ٢٤٩، ٤٧٨٣ حديث. احمد: ٥/ ١٥٢ )

ðمسلمان ته روا نه ده،چې تر درېو ورځو ډېر له خپل مسلمان ورور سره کينه ولري او که څوک تردې مودې زيات په  غوسه وي او مړ شي؛نو دوزخ ته ځي.( ابوداوود: ٤/ ٢٧٩ – ٤٩١٤ حديث)

 

نېکچاري

ðپر خداى تعالى ايمان،نېکې چارې او د حرامو پرېښوول،د خداى تر هر څه ښه ايسي . ( النوادرللراوندي : ٣٦)

ðپه يقين چې د کړنو ارزښت يوازې په نيتونو پورې دى . (مستدرک الوسايل : ١\٩٠)

 ðد خداى تعالى،چې ښې کړنې ښه ايسي؛نو يو يې هم د مؤمنانو د زړه خوشحالول دي .( الکافي ٢\١٨٩)

ðد خداى تعالى پر وړاندې لاندې کړنې غوره  دي .( ١) له خلکو سره په انصاف چلن ( ٢) د خداى په لار کې له وروڼو سرښندنه (٣) او په ګردوحالاتو کې دخداى يادول .( الکافي ٢\ ١٤٥)

ðژوند او مړينه مې دواړه ستاسې په خير دي : په ژوند مې راسره خبرې کوئ او زه يې هم درسره کوم  او په مړينه مې هره دوشنبه اوپنجشنبه شپه ستاسې کړنې راوړاندې کېږي؛نو نېکې چارې مو،چې کړې وي، د خداى شکر کاږم او کومه ګناه مو،چې کړې وي،له خدايه درته بښنه غواړم . ( وسايل الشيعه : ١٦١١٠ )

ðڅوک چې بې له پوهې کوم عمل ترسره کړي ؛نو شر يې تر خير ورته ډېر دى .( الکافي: ١\٤٤)

ðپه ښو کړنو،ځان (له دوزخه) وژغورئ (اوپوه شئ،چې) لمونځ ډېره غوره کړنه ده او يوازې مؤمن خپل اودس ساتي (مؤمن تل پر اوداسه وي) .( مستدرک الوسايل  ١\ ٢٨٩)

ðبې عمله وينا او بې نيته عمل او وينا،عمل او نيت ،چې (زما) له سنتوسره اړخ ونه لګوي ؛ارزښت نه لري . ( الکافي ١\٧٠)

ðعلي! دا مضبوط او ټينګ دين دى ؛نو په نرمۍ پکې ننوځه او په کرکه د خداى عبادت مه کوه؛ځکه افراطي انسان(کله تېز اوکله ټکنى) موخې ته نه رسي او په نيمايي لار کې پاتې کېږي؛نو داسې کار کوه، ګنې چې په زړښت کې مړ شې او داسې په ډار وسه،چې ګنې سبا مرې . (الکافي ٢\ ٨٧)

ðهر حق يو حقيقت لري او بنده هله د اخلاص حقيقت ته رسېداى شي،چې د کړي کار په مقابل کې ستاېنه يې ښه نه ايسي .( مستدرک الوسايل : ١\ ١٠١)

ðد فرايضو تر ادا کو وروسته،د خلکو تر منځ پخلاينه ډېر غوره چار دى،داچې د خير(خبره) وکړې او خير ترې راولاړ شي . (بحارالانوار ٧٣\٤٣)

ðخداى تعالى وايي : هغوى دې په خپلو کړنو ډډه نه وهي (نه دې ډاډمنېږي)،چې  زما لپاره يې (ښې) چارې کړې وي ؛ځکه که هغوى ټول عمر زما په عبادت کې په زحمت تېر کړي،بيا هم نيمګړي او مقصر دي؛ ځکه زما د عبادت حق نشي پوره کولاى او په جنت کې مې د عزت او نعمت ذات (اوحقيقت ته او همداراز) زما ترڅنګ لوړو درجو ته نشي رسېداى ؛خو زما پر رحمت دې ډډه ولګوي او زما لورنې ته دې هيلمن وي او ښه ګومان دې ولري،چې په دې ترڅ کې به زما رحمت (د هغوى نيمګرې) جبران کړي او زما د احسان په پايله کې به هغوى د خوښۍ(او رضوان) پړاو ته ورسېږي او زما بښنه به ورته د بښنې جامې ورواغوندي؛ځکه زه لوراند او لورين خداى يم .(الکافي ٢\٧١)

 

کورنۍ ته هڅاند

ðهغه بې له حسابه جنت ته ننوځي،چې خپلې کورنۍ ته کار کول عار ونه ګڼي.( مستدرک الوسايل ١٣\٤٨)

ðکورنۍ ته او په کورکې کار کول لاندې ځانګړنې لري : ( ١) د سترو ګناهونو کفاره ده( ٢)د خداى غوسه سړوي (٣) د جنتي حورو مهر دى (٤) او د حسناتو او درجو د لوړاوي لامل دى .(بحارالانوار  ١٠١\ ١٣٢)

 ðد خپلې کورنۍ  خدمتګار،د صديق،شهيد يا د داسې چا په څېر دى،چې خداى ورته د دنيا او آخرت ښه غواړي .( جامع الاخبار: ١٠٢)

ð خپلې کورنۍ ته هڅاند داسې دى؛لکه د خداى د لارې مجاهد. (بحار: ١٠٣)

ðڅوک چې خپلې کورنۍ ته د حلال رزق په هڅه کې وي ؛نو[زيار يې] د خداى په لارکې شمېرل کېږي . (روضة الواعظين: مخ ٥٠١)

 

د نن کار سبا ته پرېښوول

ðابوذره!د نن کار سبا ته مه پرېږده،چې نن خو همدا ستا ده اوسبا دې نه ده او که سبا ( دې هم) وي؛نو د نن په څېر وسه او که سبا دې نه وه ؛نو پښېمانه به نه يې،چې لږ کار دې کړى دى . ( الامالي للطوسي :٥٢٥)

ðابوذره! که مړينې او بهير ته يې وګورې؛نو له هيلو او تېروتنو به بېزاره شې .  (پورته)

ðابوذره! ګهيځ چې راويښ شوې؛نو له ځان سره دې د مازيګر خبرې مه کوه او چې مازيګر شو؛د ګهيځ  خبرې مه کوه . (پورته)

ðعلي! څوک چې فرض حج نن او سبا ته پرېږدي او مړ شي ؛ نو خداى به يې د قيامت پر ورځ يهودي يا نصراني راپاڅوي. (مستطرفات السرائر: ٦٢٠مخ )

 

وژنه

ðوژنه ، دښمني او کينه راولاړوي . ( مستدک الوسايل : ١٣ \ ٤٦٠)

ðدوه مسلمانان،چې په داسې ځای کې پر یو بل توره راوباسي،چې سنتو روا کړي نه وي ؛نو وژونکى او وژل شوى دواړه په اورکې دي . وپوښتل شو:په وژونکي خو پوه شو؛نو وژل شوى ولې؟ آنحضرت ورته وويل؛ځکه هغه هم غوښتل،چې ويې وژني .(علل الشرايع ٢\٤٦٢)

ðد ښه کار له پاسه ښه کار شته او څوک چې د خداى په لار کې ووژل شي؛نو تر دې اوچت ښه کار نشته او ډېراوچت عاقېدل هغه دى ،چې څوک مور يا پلار ووژني،چې تر دې ډېر ټيټ بدکار نشته .( الکافي : ٢\٣٤٨)

ðد خداى پر وړاندې هغه ډېر سرغړاند دى،چې هغه څوک ووژني ،چې دى يې نه  دی وژلی ( او بې ګناه دی) او هغه څوک ووهي،چې دى يې نه وي وهلى. ( الکافي : ٧\٢٧٤)

ðد خداى پر وړاندې د بني بشر ډېرې ناوړې چارې دادي: (١) د کوم پېغمبر وژنه( ٢) د کعبې ويجاړول،چې خداى ( د خلکو ) قبله کړې ده (٣) د ښځې په زيلانځ کې په حرامو د څاڅکي تويول .( من لايحضره الفقيه : ٤\٢٠)

 

کعبه

ðعلي! ته دکعبې په څېر يې ،(خلک ) بايد په تا پسې راشي، نه دا چې ته ورپسې ورشې .( اسد الغابة ٤\٣١، ينابيع المودة ٢\٨٥)

 ðپاک خداى له هر څيزه يو څيز غوره کړى دى،له ځمکې يې مکه او له مکې يې “مسجدالحرام” او له مسجدالحرامه يې هغه برخه غوره کړې،چې کعبه پکې ده .( مستدرک الوسايل ٩ \ ٣٤٧)

ð (خداى ته سوچه او بېخي) غاړه ايښوول د ايمان ښکلا ده؛ لکه چې طواف کول  د کعبې ښکلا ده .(مستدرک الوسايل ٩\٣٧٥)

ð (د خداى) پر کور  دې آفرين وي!(اى کعبې) ته څومره ستره يې!او د خداى پر وړاندې څومره درنه يې!؛خو پر خداى قسم ! تر تا خداى ته مؤمن ډېر دروند او عزتمن دى؛ځکه ته يو درناوى لرې ( چې هغه د کعبې درناوى کول دي)؛خو مؤمن درې درناوي لري :(١) شتمني او (٢) وينه يې خوندي وساتل شي (٣)او نه ښايي بد ګومان پرې وشي . (مشکاة الانوار:٧٨)

 

کفر او کفران

ðحذيفه! تر ما وروسته تاسې ته د خداى حجت “علي بن ابيطالب” دى. پر هغه کفر او سترګې پټول ،پر خداى کفر  دى او څوک ورسره په مقام کې شريکول، له خداى سره شرک دى او په اړه یې شک، د خداى په اړه شک کول دي؛اوړېدل ترې،له خدايه اوړېدل دي،انکار ترې له خدايه انکار دى او ايمان پرې پر خداى ايمان درلودل دي .( الامالي للصدوق : ١٩٧)

ðڅلور څيزونه د کفر ارکان دي : (دنيا ته) لېوالتيا،ډار،عصبانيت او غوسه . ( بحارالانوار ٦٩ \١٠٥)

ðد ايمان او کفر ترمنځ (پوله) لمونځ (کول) دي .( ثواب لااعمال : ٢٣١)

 ðمؤمن نرم،ساده پال،باوقار او د ښه خوى خاوند دى او کافر توند،تريخ ،بې ادبه ،بد اخلاقه او بدمعاش دى .( الامالي للطوسي : ٣٦٦)

ðدنيا د مؤمن زندان او د کافر جنت دى . (التمحيص : ٤٨)

ðعلي! ددې امت لس ډلې پر خداى کافرې شوې دي : چغلګر،پالي  او بې غېرته . څوک چې په ناروا سره له ښځې سره د شا له خوا کوروالى وکړي . څوک چې له څاروي سره کوروالى وکړي.څوک چې د فتنې پيدا کولو لپاره هڅې کوي،پر محاربينو ( او دټولني پر ناافوونکيو) د وسلې پلورل .څوک چې زکات نه ورکوي . د چاچې حج له وسې پوره وي او و يې نه کړي او مړ شي . علي! وسمن چې حج و نه کړي ؛ نوکافر دى . (الخصال ٢\٤۵٠)

ðعلي ډېر غوره بشر دى،څوک چې یې و نه مني؛نو کافر دي . (کنزالعمال (١١\٦٢٥،الکامل ﻻبن عدى۴/۱۰،دبغداد تاريخ: (٧\ ٤٣٣، الموضوعات ﻻبن الجوزي: ١\٣٤٧،سيراعلام النبلا٨\٢٠٥) ميزان الاعتدال :١ \٤٧١، البداية والنهاية:(٧\٣٩٥) ذهبي تاريخ اﻻسلام(٢٦\٧٧)

 

کمال

ðد ټولو ناکارو چارو نه کول او د ټولو ښو چارو کول(دمسلمان) د دين کمال دى. (الکافي ٢\٨٤)

ðسخاوت د مؤمن کمال دی . (مستدرک الوسايل ١٥\٢٥٧)

 

ډنډۍ وهل

ðپه کوم ځاى کې،چې ډنډۍ وهل دود شوه؛نو خداى به يې پر سوکړې او زيان اخته کړي .  (اﻻمالي للصدوق:٣٠٨)

لوږه

ðلوږه د حکمت رڼا ده او مړښت له خدايه د لرې کېدو ﻻمل دى او له خداى سره نږدېوالى له نشتمنوسره په دوستۍ او نژديکت کې تر ﻻسه کېداى شي . (روضة الواعظين ٢\٤٥٧)

ðزړونه مو په ډېرو خوړو او څښلو مه مړه کوئ؛ځکه زړونه هم د کر د ځمکې په څېر دي،چې په زړه کې مو د پوهې او معرفت رڼا مړه کوي . څوک چې د شپې لږه وخوري او لمونځ وکړي؛نو څنګ ته يې جنتي حورې راځي . (بحارﻻنوار:٦٧\٧١)

ðډېر داسې روژه تيان شته،چې له روژې يې بې له لوږې او تندې هېڅ نه په برخه کېږي . (اﻻمالى للطوسي : ١٦٦)

ðهغه به پر ما ايمان نه وي راوړى،چې د شپې موړ ويده شي؛خو ګاونډى يې وږى وي . (الکافي ٢\٦٦٨)

ðپه مړه خېټه خوراک د پيس د ناروغۍ ﻻمل دی .(اﻻمالى للصدوق : ٥٤٣)

ðګېډه ډېر شري او مضر لوښى دى،چې انسان يې ډکوي . (بحاراﻻنوار ٦٣\٣٣٠)

ðڅوک چې مؤمن وږي ته خواړه ورکړي؛نو خداى به ورته له جنتي مېوو روزي ورکوي او څوک چې تږى موړ کړي؛نو خداى به پرې سرتړلي جنتي شراب وڅښي اوڅوک چې بربنډ مؤمن ته جامې ورکړي؛نو څو جامې يې پرتن وي، په الهي ضمانت کې به وي . پر خداى قسم ! د مؤمن د اړتيا لرې کول تر يوې مياشتې روژې او اعتکافه غوره دي . (قرب اﻻسناد: ٥٧)

ðد هغې سيمې خلک چې د شپې (ارام اوماړه) ويده کېږي؛خو وږي پکې وي؛نو په قيامت کې ترې خداى د خپل رحمت نظر اړوي . (الکافي: ٢\٦٦٨)

 

ژړا

ðله الهي ډاره،ډېر فکر او ژړا وکړئ . (علام الدين :١٤٦)

ðد پلارمړي  په ژاړ عرش لړزېږي . ( ثواب لااعمال : ٢٠٠)

ðپر هغه دې خوښي وي،چې خداى ورته ګوري او پر خپلې کړې ګناه چې یوازې همدا ترې خبر و، د خداى له وېرې وژاړي . ( الامالي للمفيد : ٦٧)

ðابوذره!پاک خداى وايي : پر عزت او دبدبې مې قسم،چې عابدان هيڅ خبر نه دي،چې ژړا څومره راته ارزښتمنه ده . زه ژړاند ته په رفيق اعلى [ = هغه ځاى دى چې پېغمبران په “عليين  اعلی” کې پکې ناست دي : الوافي : ٣\٧١٠]کې داسې ماڼۍ جوړوم،چې څوک يې سارى نه لري .( مستدرک الوسايل  ١١\٢٤٥)

ð ( له زړه نه) خندا د بدن د پوپنا کېدو لامل دى او د خداى له وېرې ژړا،له اوره د ژغورنې لامل دى .( مستدرک الوسايل  ١١\٢٤١)

ðد خداى له وېرې ژړا،د رحمت کونجي،د عبادت د منلو نښه او د دعا د قبلېدو “ور” دى . ( مستدرک الوسايل ١١\ ٢٤٧)

ðبنده،چې د خداى له وېرې وژاړي ؛نو ګناهونه يې داسې تويېږي؛ لکه پاڼې،چې له ونې رژېږي او د خپلې زوکړې د ورځې په شان وي .( پورته منبع)

ðد هرې کړنې د ارزښت ثواب څرګند دى؛خو د اوښکې څاڅکى د خداى غوسه سړوي او که په کوم امت کې څوک د خداى له وېرې وژاړي؛نو خداى به يې له امله پر امت (هم)ولورېږي .(مستدک الوسايل  ١١\٢٤٠)

ðهغه څاڅکى خداى ته خورا ګران دى،چې په تياره شپه کې د خداى له وېرې وڅاڅي او بې له خدايه يې څوک ونه ويني .  (مستدرک الوسايل  ١١\٢٤٤)

ðپاک خداى له پرښتو سره پر پينځو تنو وياړي :(١) د خداى د لارې پر مبارزينو(٢) پر نشتمنو(٣) پر هغوى چې د خداى لپاره متواضع او عاجز  وي ( ٤) پر هغو شتمنو،چې نشتمنو ته ډېره ورکړه کوي؛خو منت پرې نږدي(٥) او پر هغه چې په خلوت او ګوښه کې د خداى له وېرې ژاړي .( جامع الاخباره : ٩٦مخ )

  

د قرآن لوستل

ðپه واقع کې مؤمن،چې قرآن لولي (؛نو) خداى ورته د خپل رحمت په نظرګوري .( مستدرک الوسايل ٤\٢٥٧)

ðد قرآن لوستونکى (قاري) او اورېدونکى يې په بدله کې سره مساوي دي .( مستدرک الوسايل ٤\٢٦١)

ðهر څه يوه ښکلا لري او د قرآن ښکلا “ښه اواز” دى . (الکافي ٢\١٦١)

ðسلمانه!قرآن لوله؛ځکه لوستل يې د ګناهونو کفاره،له اوره ژغورونکى او له عذابه خوندېينه ده .( جامع الاخبار: ٣٩)

ðقرآن په عربي لحن او غږ  ولولئ او له دې ډډه وکړئ،چې د فاسقانو او فاجرانو د نغمو په څېر يې ولولئ .( الکافي  ٢\٦١٤)

ðچاچې د قرآن لوستل د ځان د ژوند کولو لپاره وسيله کړى وي ؛ نو په قيامت کې به د هډوکو د ډانچې په څېر راشي،چې هيڅ غوښه به پرې نه وي .( وسايل الشيعه ٦\١٨٣)

 

قرآن

ðقاريانو! د خداى کتاب،چې پر الهي پولو پوه شوي ياست؛ مراعات يې کړئ؛ځکه زه او تاسې د قرآن په اړه پوښتېدوني يو،زه د رسالت د تبليغ په باب او تاسې د هغه څه په اړه ،چې له قرآن او زما له سنتو پوهېدلي ياست ! (الکافي ٢\٦٠٢)

ðپر هر چا د خداى حق دى،چې قرآن زده کړي او تدبر پکې وکړي . (مستدک الوسايل ٤\٢٣٣)

ðکه فتنې درباندې د شپې د تيارو په څېر راخپرې شوې؛نو قرآن ته پناه يوسئ؛ځکه قرآن سپارښتنه کوي،چې قبلېږي هم.  (وسايل الشيعه ٦\١٧١)

ðد خلکو په زړونو کې د قرآن له تفسيره (بل) لرې څيز نشته ؛نو ځکه مخلوق پکې حيران دى؛خو هغه څيزونه،چې خداى وغواړي (خلک به پرې وپوهوي) . ( بحارالانوار  ٨٩ \ ١٠٠ )

ðعلي له قرآن سره دى او قرآن له علي سره دى او دا دواړه له يوبله نه بېلېږي،څو په (کوثر) حوض کې ماته راشي .( دحاکم نېشاپوري مستدرک : ٣\١٣٥،(صحة الذهبي فى التلخيص : ٣\ ١٣٤ معجم الاوسط ٥\ ١٣٥  فيض القدير: ٤\ ٤٧٠)

ðپه تاسې کې يو څوک دى،چې له قرآنه به د سمې پوهېدنې،تفسير او تاويل لپاره وجنګېږي؛لکه چې يې زه د نازلېدو،ټينګښت او وحېتوب لپاره وجنګېدم او هغه “علي بن ابيطالب دى”. (د حاکم نیشاپوري مستدرک : ٣\ ١٢٢-  دامام احمد حنبل مسند : ٣\٣٣)

ðپر نورو خبرو د قرآن غوراوى داسې دى؛لکه چې خداى پر خپلو مخلوقاتو غوره دى .( مستدرک الوسايل ٤\٢٣٧)

ðد قرآن د ښوونکي او زده کوونکي لپاره ټول موجودات ان کب په سمندر کې بښنه غواړي . ( مستدرک الوسايل ٤\ ٢٣٥)

ðپه تاسې کې هغه غوره دى،چې قرآن زده کړي او نورو ته يې وښيي . (مستدرک الوسايل ٤\٢٣٥ )

ð قرآن الهي دسترخوان دى؛نو څومره چې کړاى شئ،ترې يې زده کړئ . ( مستدرک الوسايل : ٤\٢٣٢)

ðد قرآن حافظان او د شپې پاڅېدونکي زما د امت اشراف دي . (وسايل  ٨\١٥٥ )

ðزه حيران يم،چې کله قرآن لولم (؛نو) ولې نه زړېږم .(وسايل ٦\١٧١)

ðپه کوم زړه کې،چې قرآن وي،پاک خداى يې نه په عذابوي.  (مستدرک وسايل ٦\١٦٧)

ðد قرآن حافظین د جنتيانو عارفان دي،مجتهدين (او زیارکښ) د جنتيانو مخکښان دي او استازي د جنتيانو ښاغلي دي .(الکافي ٢\٦٠٦)

ðبې له انبيا وو او استازيو، د قرآن قاريان د انسانيت او سړيتوب په لوړو درجو کې پراته دي؛نو د قاريانو حقوق مه ضايع کوئ؛ځکه دوى د بريمن او زورور خداى پر وړاندې لوړې درجې لري .(الکافي ١\ ٦٠٣)

ðقرآن له بې لاريو د سمې لارښوونې لامل او رڼا دى،چې پټ څيزونه پرې وګورې،د ګناهونو بښونکى دى،په تياروکې رڼا ده،په پېښو کې بله ډېوه دى،له هلاکته ساتونکى دى . له خطرونو ژغورونکى دى، د فتنو څرګندوونکى دى او انسان له دنيا څخه آخرت ته رسوي او په هغه کې مو د دين کمال دى اوهېڅوک ترې مخ نه اوړي او چې وا يې  ړاوه ؛ نو اور ته به ځي .( الکافي  ٤\٦٠٠ )

ðد قرآن حافظ تر ټولو ډېر په پټه او ښکاره متواضع،لمونځ کوونکى اوروژه تي دى بيا آنحضرت (ص) په لوړغږ وويل : د قرآن حافظه ! د قرآن له امله تواضع وکړه،چې پاک خداى دې سر لوړی کړي او ځان د هغه لپاره مه عزتمنوه،چې خداى به دې خوار کړي،د قرآن حافظه! د خداى لپاره ځان په قرآني لارښوونو سمبال کړه،چې خداى دې پرې سمبال کړي او قرآن د وسيلې په توګه مه کاروه،چې په خلکو کې ښه معلوم شې،که نه خداى به دې خوارکړي . ( وسايل الشيعه ٥\١٨٣)

ðڅوک چې قرآن زده کړي؛خو عمل پرې نه کوي او له دنيا سره مينه او ښکلا پرې غوره وبولي؛نو د الهي غوسې وړ به وي او د يهودو او نصاراوو په کتار کې به (وشمېرل) شي،چې د خداى کتاب ته يې شا کړه ( او عمل يې پرې ونه کړ ). څوک چې قرآن د ځانښوونې او دنيا غوښتنې لپاره ولولي؛نو د قيامت پر ورځ به له خداى سره په داسې بڼه ګوري،چې يوازې به د هډوکو (تشه) ډانچه وي او غوښې به پرې نه وي او قرآن به يې له شا څخه مخې ته ټېل وهي،چې جهنم ته یې ورسوي او له نورو دوزخيانو سره اور ته وغورځېږي او څوک چې قرآن لولي او عمل پرې ونه کړي؛نو ړوند به محشر ته راشي ؛نو وايي : پالونکيه! زه دې ولې ړوند پاڅولم،زه خو لېدونکى وم؟ ځواب ورکول کېږي :زما آيتونه او نښې در ورسېدې؛خو هېرې دې کړې او په دې توګه ته هم نن هېر شوى يې؛ نو حکم رارسي ،چې جهنم ته يې يوسئ او څوک چې قرآن د خداى د خوښې او د پوهې د لاس ته راوړو لپاره ولولي؛نو د ټولو پرښتو،انبياوو او استازيو بدله ورته ډالۍ کېږي .(وسايل الشيعه ٦\١٨٣)

ð په تاسې کې غوره هغه دى،چې قرآن زده کړي اونورو ته يې وښيي . (مستدرک ٤/٢٣٥ )

ð کورونه  مو د قرآن په لوستو رڼاکړئ .( وسائل ٦/٢٠٠ )

ð قرآۤن ته کتل  عبادت دى . ( بحار ٩٢/١٩٩ )

ðد  چاچې دا ښه ايسي،چې له خپل پالونکي سره خبرې وکړي ؛نو قرآن دې ولولي . ( ميزان الحکمه : ١٦٤٩٧ح )

 

قدر او منزلت

ðهغه مؤمن خداى ته د قدر او مقام له اړخه غوره دى،چې د نېکۍ ناشکري يې وشي . ( الجعفريات : ١٨٩)

ðپه قيامت کې هغوى د خداى پر وړاندې د لوړ مقام خاوندان دي، چې تر ټولو ډېر د خداى  د بندګانو خيرغواړي وي .( الکافي ٢\٢٠٨)

ðما ته د “علي” مرتبه داسې ده؛لکه د سر مې،چې بدن ته ده. (ذخائر العقبى ٦٤مخ،جامع الصغير: ٢\١٧٧،کنزالعمال: ١١\ ٦٠٣، فيض القدير : ٤\ ٤٧ ،د بغداد تاريخ : ٧\١٢،ابن مردويه اصفهاني؛مناقب على بن ابيطالب : ١٠٧مخ)

ðد علي مقام راته داسې دى؛لکه د”هارون”،چې “موسى” ته و؛خو په دومره توپير،چې تر ما وروسته بل پېغمبر نشته . (صحيح بخاري ٤\ ٢٠٨، صحيح مسلم ٧\ ١٢٠ ،د ابن ماجه سنن ١\ ٤٣ ،دترمذي سنن ٥\٣٠٢)

ðد علي مقام راته داسې دى؛لکه د روح مې چې تنې ته دى . ( ذخائر العقبى ٦٣مخ )

ðعلي مې د ځان په څېر دى،لاروي يې زما لاروي ده او سرغړاوى ترې زما څخه سرغړاوى دى . (د ابن مردويه اصفهاني مناقب علي : ١٠٨مخ ، د شيخ سليمان قندوزى حنفي ينابيع المودة : ١\ ١٧٣)

 

سوکړه- قحطي

ðامت مې تر هغه په خير کې دى،چې خيانت و نه کړي او امانت ساتى وي او زکات ورکړي او که داسې نه وي؛په  قحطۍ او کړاو اخته کېږي . (ثواب الاعمال ٢٣٦مخ )

 

قبر

ð که څوک غواړي د قبر له عذابه وژغورل شي؛نو زما له اهلبيتو سره دې مينه ولري . (فضل آل البيت للمقريزى : ١٣مخ )

ðخداى تعالى دې پر هغه بنده ولورېږي،چې له خدايه ډېره حيا کوي (او د حيا حق پر ځاى کوي)او خپل سر او منځپانګه يې ساتي (؛يعنې خپل فکر، سترګې،غوږ او خوله ساتي) او خپله ګېډه او دننه يې (له حرامو مالونو او شهوته)ساتي او د قبر او سختيو ياد يې ورسره وي  او اُخروي ژوند( او د کړنو محاسبه ،سزا او بدله )شته . (مستدرک الوسايل : ٨\٤٦٢)

ðزما او له کورنۍ سره مې مينه په اوو ځايونو کې ګټوره ده،چې ډېر ډار او هيبت پکې دى : ( ١) د مړينې پر مهال ( ٢) په قبر کې (٣) له قبره د راپاڅېدو پرمهال ( ٤) دکړنليک د اخستو پر مهال ( ٥) د حساب پر مهال ( ٦) د قيامت په محکمه کې( ٧) او له”صراط”ځنې په تېرېدو کې . (بحارالانوار  ٧\ ٢٤٧)

ðڅوک مې چې تر مړينې وروسته د قبر زيارت وکړي، د هغه په څېر به وي،چې په ژوندون يې زما پر لور هجرت کړى وي ؛نو که مو و نه کړاى شو؛نو له لرې راباندې سلام واچوئ،چې ماته را رسي .(تهذيب الاحکام  ٦\٣)

ðزما د قبر او منبر ترمنځ واټن د جنت له باغونو يو باغ دی . (بحارالانوار  ٩٧\١٩٢)

ðڅوک چې زما د قبر ترڅنګ سلام راباندې واچوي؛ اورم يې او چې له لرې يې راباندې واچوي رارسي . ( اوائل المقالات : ٧٣)

 ðقبر د آخرت لومړى کور او پړاو دى،څوک چې له دې پړاوه بريالى ووت؛نو ورپسې پېښې ورته اسانې دي اوکه ناکام ترې راووت؛نو ورپسې پېښې (هم) له دې کمې نه دي . (الدعوات : ٢٥٩)

ðڅوک چې د ويدېدو پر مهال د(تکاثر)سورت لولي؛د قبر له فتنوخوندي کېږي . (الکافي٢ \ ٦٢٣)

ðڅوک چې زما د قبر زيارت وکړي،جنت پرې واجبېږي . (سنن الدارقطني ١\٢٤٤،فيض القدير ٦\١٨١، الدرمنثور ١\٢٣٧، ميزان الدعتدال ٤\٢٢٦)

 

فقه او فقهاء

ðهر څيز يو بنسټ لري او “فقه” ددې دين بنسټ دى .(عوالي الاللي ٤\ ٥٩)

ðفقهاء تر هغه چې دنيا ته ننووتي نه وي،د پېغمبرانو امينان دي . وپوښتل شو : په دنيا کې د ننووتو مانا څه ده ؟ آنحضرت ورته وويل :د زمانې د (ظالمو) واکمنو لاروي او که دا کار يې وکړ؛نو د خپل دين د ساتنې لپاره ترې ډډه وکړئ .( الکافي ١\٤٦)

ðڅوک چې زما د امت لپاره په خپلو ديني چارو کې څلوېښت اړين احاديث زده کړي؛نو خداى تعالى به يې د فقهاوو اوعالمانو په لړ کې راپاڅوي .( عوالي الاللي : ١\ ٩٥)

ðپرهېزګاران (د قوم) ښاغلي او فقها يې مخکښان دي او ناسته پاسته ورسره عبادت دى .( الامالي لطوسي : ٢٢٥)

ðزما دامت دوې ډلې دي،که سمې وې؛نو امت مې سمېږي او چې فاسدې شي؛نو امت مې فاسدېږي : فقها او واکمن : (الخصال  ١\ ٣٦)

ðخداى دې هغه بنده خوشحاله کړي،چې خبره مې واوري،ياده يې کړي او نااورېدلي ته يې ووايي.ډېر داسی دي،چې پخپله پوهان نه دي؛خو پوهه لېږدوي او ډېر داسې (هم) دي،چې پوهه تر ځان پوهو ته رسوي . (تفسير القمي ٢\ ٤٤٦)

ðمؤمن (فقيه) چې مړ  شي؛نو اسلام ته داسې زيان رسي ،چې هيڅ څيز يې جبرانولاى نشي او ټول زيارتونه او جوماتونه،چې عبادتونه يې پکې کړي، پرې ژاړي . ( الکافي  ١ \ ٣٨)

 

فضيلت اوغورواى

ðپه دنيا او آخرت کې تر پېغبرانو وروسته  غوره خلک هغه دي ،چې خداى تعالى پرې ګران وي او دوى هم د خداى لپاره يو بل ته ګران وي . (مستدرک الوسايل ١٢\٢٢٠)

ðعقلمن ډېرغوره خلک دي .( بحارالانوار ١\١٦٠)

ðد ايمان له پلوه،د ښه خوى خاوندان غوره خلک دي . (مشکاة الانوار : ٢٢٣)

ðد مرتبې او مقام له اړخه هغه مؤمن خداى ته غوره دى،چې د نېکۍ پر وړاندې يې ناشکري وشي .( الجعفريات : ١٨٩ مخ )

 

 

 

فقر او نيستي

ðخداى تعالى (ځينو) بندګانو ته بېوزلي په امانت ورکړې؛نو چاچې پټه کړه،خداى ورته د هغه انسان بدله ورکوي،چې د ورځې روژه او د شپې پرتهجدو ولاړ وي او څوک چې دا (امانت) هغه ته ووايي،چې اړتيا يې پوره کولاى شي او ور پوره یې نه کړي؛نو لکه چې وژلى يې دى؛خو نه په توره او تېغ؛بلکې خپه او “زړه ماتى” کړى یې دى،چې دا هم وژنه ده . ( الکافي٥\ ١٣٣)

ðنږدې وه،چې فقر پر کفر واوړي او نږدې وه،چې کينه په قضاوقدر کې ادلون بدلون راولي! ( الکافي ٢\٣٠٧)

ðخيانت د بېوزلۍ لاملېږ ي .( الکافي ٥\١٣٣)

ðد ياقوتو ګوته پر ګوته کړئ،چې فقر له منځه وړي .(الکافي ٦\٤١٧)

ðهغه حقيقي مؤمن دى،چې نشتمن پخپلو شتمنۍ کې شريک کړي او د ځان په اړه له خلکو سر ه په انصاف کې وي . (الکا في ٢\ ١٤٧)

ðپوه شئ څوک چې مسلمان نشتمن ته ټيټ وګوري؛نو په واقع کې يې د خداى حق ته سپک کتلي او پاک خداى يې په قيامت کې خواروي ؛ خو داچې توبه وباسي .( بحارالانوار : ٦٩\٣٨)

ðڅوک چې د نشتمن مسلمان درناوى وکړي؛نو په قيامت کې،چې خداى ويني،ترې خوښ به وي . ( پورته منبع )

ðپه قيامت کې به نشتمن،شتمنو ته وايي : پالونکيه!هغوى راباندې تېرى وکړ،هغه حقوق يې رانه کړل،چې تا يې پرې ورکړه فرض کړې وه . (ارشاد القلوب  ١\ ٣٦)

ðبېوزلي،چې د چا ګرېوان نه خوشې کوي؛نو “لاحول ولاقوة الابالله” دې دومره ووايي،چې خوشې يې کړي . (المحاسن ١\٤٢)

ð(ګدا) نشتمن،چې خپلې اړتياوې وايي؛نو خبرې يې مه پرېکوئ،که (ځينو) مسکينانو دروغ نه ويل؛نو چاچې يې غوښتنه نه منلاى؛نو بريالى کېداى نشو .( الکافي ٤\١٥)

ðګدا نشتمن مه پرېږدئ،که څه هم ناڅیز څه ورکړئ . (الکافي ۴ / ۱۵)

ð (په محکمه کې) د ګدا نشتمن شهادت نه قبلېږي . (تهذيب الاحکام : ٦\ ٢٤٣)

ðدوه چارې مې ښې نه ايسي،چې بل راسره پکې شريک شي : په اودس کولو کې،چې د لمانځه يوه برخه مې ده او په خپل لاس مې ګدا ته له خپلې صدقې  ورکړه،چې د رحمان خداى ( د رحمت) لاس ته رسي . (الخصال ١\ ٣٣)

 ðګدا چې خپلې اړتياوې څرګندوي؛نو د”نړۍپالونکى” استازى دى، چې خلک وازمېيي ؛نو چاچې ورسره مرسته وکړه؛لکه چې له خداى سره يې مرسته کړې وي . چاچې پرېښود؛نو په حقيقت کې يې خداى پرېښى دى .( الجعفريات : ٥٧)

ðبېوزلي تر شتمنۍ غوره ده ؛خو که څوک یې د زيان زغم لرلاى شي او په سختيو کې هم له خلکو سره مرسته وکړي . (بحارلانوار ٦٩\٥٦)

ð بېوزلي سور مرګ دی . وپوښتل شو:مطلب مو له پیسو بېوزلي ده؟ آنحضرت(ص)ورته وویل: نه ! د دينه نيستي سور مرګ دى . (بحارالانوار  ٦٥\٢١٥)

ð بېوزلي مې د وياړ لامل دى او پر نورو انبياوو پرې وياړم . (بحار  ٦٩\٣١) 

ðخدايه! مسکين مې ژوندى لرې او مسکين مې مړ کړې او له مسکينانوسره مې راپاڅوې . ( بحارالانوار ١\١٩٨ )

ð تر شتمنۍ وروسته بېوزلي او تر بېوسۍ وروسته ګناه کول څومره ناوړه چارې دي او تر دې هغه ډېره ناوړه چار ده،چې څوک خداى لمانځي؛ خو بيا يې عبادت پرېښى وي . (الکافي : ٢\٨٤)

 

ځانمني

ðتر ځانمنۍ بوږنوونکی څيز نشته . (من لايحضره الفقيه ۴ \ ۳۷۱)

ðوياړنه او ځانمني د حسب او نبېري آفت دى . ( الكافي ۲\۳۲۸)

ðترځانمنۍ ډېر ډارن يوازېتوب نشته . ( بحارالانوار  ۷۴\۶۶)

ðكه نه واى،چې مؤمن ته تر ځانمنۍ (او كبر،چې ما ګناه نه ده كړې) ګناه كول غوره دى؛نو خداى خپل مؤمن بنده ته دګناه كولو فرصت نه وركاوه .(الامالي للطوسي : ۵۷۱)

 

ملاماتوونکي لاملونه

ðڅلور څيزونه د انسان ملاماتوي : (١)واکمن،چې ګناه کوي او لارښوونې يې منل کېږي (٢) هغه مېرمن،چې مېړه يې پالي؛خو دا ورسره خيانت کوي (٣) هغه بېوزلي،چې خاوند يې ورته د حل لار نشي مونداى(٤) او ناوړه ګاونډى،چې اوږد ګاونډيتوب دې ورسره وي . (بحارالانوار  ٦٩ \٤٢)

 

بلنه

ðدرې څيزونه جفا ګڼل كېږي :  (۱)  داچې څوک له چا سره ملګرتوب كوي؛خو نوم او تخلص يې و نه پوښتي ( ۲) داچې څوك دې وبلي ؛خو ويې نه منې اوكه و يې ومني ( او ورشي؛خو) څه ترې و نه خورې  (۳) او مېړه،چې له لوبو او ملاعبې پرته له خپلې مېرمن سره كوروالى كوي . (قرب الا سناد : ۷۴مخ )

ðد خپل امت حاضرو او غايبو ته سپارښتنه كوم ،چې د مسلمان بلنه ومني،كه څه هم پینځه ميله لرې وي ؛ځكه دا ( بلنه ) د دين يوه برخه ده . (الكافي : ۶\ ۲۷۴)

ðهغه ډېر بېوسى دى،چې خپل مؤمن ورور يې خوړو ته وبلي؛نو بې له كوم علته ورنشي . ( المحاسن ۲\ ۴۱۱)

ðڅوك چې بلنه و نه مني؛نو د خداى او د هغه د استازي سرغړونه یې كړې ده او د خداى او استازي يې هغه وليمه بده ايسي،چې شتمن پکې وي او بېوزلي ورته رابلل شوي نه  وي . ( بحارالانوار  ۷۲\ ۴۴۸ )

 

تېراېستنه

ðمسلمان چل او ټګۍ والا نه دى . ( عيون اخبارالرضا ۲\ ۵۰)

ðڅوك چې له مسلمان سره ټګي وكړي او يا له چا سره خيانت وكړي؛نو له موږه نه دى .( الامالي للصدوق : ۲۷۰مخ )

ðڅوك چې له مسلمان سره په راكړه وركړه كې ټګي وكړي؛نو له موږه نه دى او د قيامت پر ورځ به له يهودو سره راپاڅي؛ځكه څوك چې خلك تېر باسي؛نو مسلمان نه دى . (اعلام الدين : ۴۱۴)

ðڅوك چې له مسلمان سره ټګي وكړي يا  ورته زيان ورسوي يا ورسره چل وكړي؛نوله موږه نه دى . ( صحيفة الرضا :۴۳مخ )

ðڅوك چې له خپل مسلمان ورورسره چل ول وكړي؛نو خداى د هغه له روزۍ بركت اخلي او ژوند يې فاسدوي او ځان ته يې پرېږدي . ( وسايل الشیعة ۱۷\ ۲۸۳)

 

دنيا

ðله دنيا سره مينه د ټولو ګناهونو سرچينه ده . (التحصين لا بن فهد الحلى : ۲۷ مخ )

ðدنيا يوه “مرداره” ده،چې غوښتونكي يې سپي دي . (مصباح الشريعه : ۱۳۷مخ )

ðكه دنيا يوه “مړۍ” واى او مسلمان خوړه او بيا يې ((الحمدلله )) ويل؛نو دا وينا ورته تر دنيا او څه چې پکې دي،غوره وه . (الامالي للطوسي : ۶۱۰ )

ðپوه شئ،چې دنيا يو ژور سمندر دى،چې ډېر پکې ډوب شوي؛خو “آل محمد” د  هغوی د ژغورنې بېړۍ ده. (تفسير الامام العسكري : ۴۳۲)

ðدنيا او پيسو تر تاسې مخكې له منځه يووړل او تاسې به هم هلاك كړي .( مشكاة الانوار : ۲۶۵مخ )

ðدنيا مؤمن ته زندان او د سختۍ ځاى دى او كافر ته جنت او دسوكالۍ ځاى دى . ( مشكاة الانوار : ۲۶۶)

ðله دنيا سره مينه؛د هرې سرغړونې جرړه او د هرې ګناه بنسټ دى . (تنبية الخواطر ٢/ ١٢٢)

ðدنيا د مؤمن زندان او د کافر جنت دى .( تحف العقول : مخ ٥٣)

ð دنيا د آخرت کرونده ده . ( عوالى اللئالى ١/٢٦٧)

ð له دنيا سره مينه د هرې تېروتنې او ګناه سرچينه ده . (کنز ٣/١٩٢)

ð زړونه مو د دنيا په ياد مه بوختوئ . ( کنز ٣/١٩٨)

 

ملګرى

ðعقل د سړي ملګرى او ناپوهي يې دښمنه ده . ( المحاسن ۱ \ ۱۹۴ )

ðد علم زده کوونکی زما ملګرى دى او تر پرښتو هم  راته ډېر ګران دى او چا يې چې عزت وكړ؛نو زما عزت به يې كړى وي او چاچې زما عزت وکړ؛نو د خدای عزت به يې كړى وي او چاچې د خداى عزت وكړ؛نو جنت پرې واجبېږي؛ځكه خداى ته بې له علمه بل هيڅ هم ګران نه دي او د خداى يوساعت علمي بحث تر لس زر كلن عبادته ښه ايسي او د قيامت پر ورځ دې د علم پر زده كړي خوشحالي وي . (مستدرك الوسايل ۱ \ ۳۰۰ )

 

دوستي

ðليده كاته دوستي زياتوي . ( مستدرك الوسايل ۱۰ \ ۳۷۴)

ðسړى له هغه سره وي،چې ښه یې ايسي .(مستدرك الوسايل ۱۲\ ۲۲۰)

ðد ايمان ډېره ټينګه رسۍ د خداى لپاره دوستي او دښمنى ده او (همداراز) د خداى له دوستانو سره دوستي او له دښمنانو يې بېزاري ده. ( الكافي ۲ \ ۱۲۵)

ðمسلمان كه درې ځانګړنې ولري؛نو د خپل مسلمان ورور ملګرى يادېږي : ( ۱) د ليدنې پر وخت ورسره په ورين تندي مخ شي ( ۲) د ناستې پر مهال ورته ځاى وركړي ( ۳) او كوم ښه نوم يې،چې خوښېږي، پرې ياد يې كړي .( مستدرك الوسايل ۱۰ \ ۳۷۴)

 

له قحطۍ د ژغورنې لاملونه

ðامت به مې تل په خير كې وي كه دا ( لاندې) ځانګړنې ولري او كه و يې نه لري؛په قحطۍ او كمبودۍ به اخته شي:له يو بله سره مينه ولري، يو بل ته ډالۍ وركړي،امانت خپل خاوند ته وسپاري،له حرامو ډډه وكړي،مېلمه پال وي،لمونځ وكړي او زكات وركړى . (وسايل الشيعة ۱۵\ ۲۵۴)

 

ليده كاته او زيارت

ðڅوك چې د خپل مسلمان ورور كتو ته كور ته يې ورشي؛نو خداى تعالى ورته وايي: زما مېلمه يې او مېلمستيا دې پر ما ده ؛ځكه چې مينه دې ورسره درلوده؛ نو جنت مې درته واجب كړ. ( الكافي ۲\ ۱۷۶)

ðڅوك مې،چې تر وفات وروسته زيارت وكړي؛نو داسې دى،چې پر ژوند مې ماته مهاجر شوى وي او كه و يې نه شو كولاى؛نو سلام دې راباندې واچوي؛ځكه رارسي . ( تهذيب الاحكام ۶\۳)

ðڅوك چې هره جمعه د خپل موروپلار يا يوه قبر ته ولاړ شي او ورباندې د “ياسين” سورت ووايي؛ نو خداى تعالې ترې د هغه سورت د هر ټكي هرمره ګناهونه بښي . ( بحارالانوار  ۸۹\۲۹۳)

ðد خپلو مړيو زيارت ته ورشئ او درود او سلام پرې ووايئ؛ځكه زيارت يې درته پند او عبرت دى . ( مجموعة ورام ۱\ ۲۸۸)

 

دينار او درهم ( پيسې)

ðڅوك چې د پيسې بنده شي؛نو ډېرسخت ملعون دى .(الخصال ۱\ ۱۲۹ )

ðداسې وخت به راشي،چې ګېډې به د خلكو خداى يې وي، ښځې به يې قبله وي،پيسي به يې دين وي او شتمني به يې شرف وي، ايمان به تش په نوم وي،اسلام به يې يوازې په ظاهره وي او د قرآن به يوازې ليك پاتې وي،جوماتونه به يې اباد؛خو زړونه به يې له لارښوونې تش او ويجاړ وي،عالمان به يې د ځمكې ډېر ناوړه خلك وي؛نو پر داسې مهال به خداى هغوى پر څلورو بلاوو اخته كړي :  (۱)  د واكمن په ظلم (۲) اوږده قحطۍ (۳) ظلم او ( ۴) د قاضيانو ظلم. اصحاب پردې خبرې حيران شول او ويې پوښت : رسول الله! ايا هغوى بوتنمانځي دي؟  آنحضرت ورته وويل : هو! هره پيسه ورته يو بوت دى . (بحارالانوار : ۲۲\ ۴۵۳)

 

دين

ðزما دوست جبرئيل راته وويل : دا دين د ونې په څېر دى،چې ډډ يې ثابت دى او لمونځ يې ريښي دي،زكات يې اوبه دي،روژه يې ښاخونه دي،پاڼې يې ښه خوى دى او له حرامو ډډه كول يې مېوه ده او؛لكه څرنګه چې دا ونه يوازې په مېوه بشپړېږي؛نو ايمان هم يوازې له حرامو په ډډه كولو بشپړېږي . ( بحارالانوار  ۶۸\۲۰۷)

ðجبرئيل راته راغى او ويې ويل : احمده! اسلام لس برخې لري او څوك چې له دې كومه برخه ونه لري؛نو ناكامېږي : د((لا اله – الا الله )) شهادت،چې دا كلمه ده.لمونځ،چې د پاكۍ او سپېڅلتيا لامل دى . زكات،چې دا فطرت دى . روژه ،چې دا پناه ځى دى .حج ،چې دا شريعت دى . جهاد ،چې داعزت دى.پر نېكيو امر،چې دا وفا ده.له بديو منع ،چې دا دليل دى .په جماعت لمونځ ،چې دا صميميت دى اواطاعت،چې دا مصونيت دى . ( علل الشرايع ۱\ ۲۴۹)

ðله دينوالو سره ناسته پاسته د دنيا او آخرت د دشرف لامل ده . ( الكافي  ۱\ ۳۹)

ðد دين ډېر ناوړه مرستندويان دا دي :  (۱) ځاني غوښتنې (۲)  د حريص ګېډه ( ۳) او ډېر شهوت . ( الكافي ۶\ ۲۶۹)

ðڅوك چې د خداى د غوسې په بيه كوم واكمن له ځانه راضي كړي؛ نو د خداى له دينه وتلى دى . ( الكافي ۲\ ۳۷۳)

ðانسان د خپل دوست او ملګري پر دين وي؛نو بايد له خدايه ووېرېږي او وګوري،چې له چا سره ملګرى كېږي . ( مستدرك الوسايل ۱۲\ ۳۱۲)

ðڅوك چې خپلې ژمنې نه پوره كوي؛نو دين نه لري . ( النوادر للراوندي : ۵مخ )

ðخداى تعالى وايي : څوك چې زما خبرې پخپله ګټه تفسيروي؛نو پر ما يې ايمان نه دى راوړى او څوك چې ما له خپل مخلوق سره ورته او تشبيه كوي؛نو زه يې نه يم پېژندلى او څوك چې زما په دين كې قياس وكړي؛نو دين نه لري  . ( عيون اخبارالرضاء ۱\ ۱۱۶)

 

رښتيا

ðرښتيا ويل  د خبرې ښكلا ده . ( بحار ۶۸\ ۹)

ðكه چا دا څلور ځانګړنې درلودې؛نو كه څه هم له سره تر پښو ګناهكار وي؛نو خداى به يې ورته په ثوابونو واړوي : (۱) رښتيا ويل (۲) حياء ( ۳) ښه خوى (۴) او شكر اېستنه . (الكافي ۲\ ۱۰۷)

 

ربا

ðتر ځان وروسته مې امت ته له “حرامو”،”پټ شهوت ” او “سوده”  ډارېږم . ( الكافي ۵\ ۱۲۴)

ðسودخور،سودوركوونكى، د سود ليكونكى او پرې شاهد په ګناه كې يو شان دي . ( من لايحضرالفقيه ۳\ ۲۷۴)

ðد مسعود زويه ! څوك چې له خپلې مور سره زنا وكړي؛نو خداى ته دا تر هغه ډېره اسانه ده،چې د ږدن دانې هومره سود وخوري . ( مستدرك الوسايل ۱۳\ ۳۳۱)

ðسود خوړل ډېر ناوړه كسب دى . ( مجموعة ورام ۲\ ۹۲)

ðڅوك چې سود وخوري؛نو خداى يې د سود هومره اور په ګېډه كې اچوي او څوك چې له سوده څه شتمني تر لاسه كړي؛نو چې د بڅري هومره ورسره وي،خداى عمل یې نه قبولوي او تل به پرې د خداى او پرښتو لعنت وي . ( ثواب الاعمال : ۲۸۵)

ðڅوك چې راكړه وركړه كوي؛نو پينځوځانګړنو ته دې يې پام وي او كه دا كار و نه كړي؛نو غوره ده،چې نه وپيري او نه يې وپلوري او هغه دا دي : ربا،قسم خوړل،د جنس دعيب پټول،د پلورنې پر مهال يې صفت كول او د پېرنى پر مهال يې بد ويل . (الكافي  ۵\ ۱۵۰)

 

د رجب مياشت

ðڅوك چې د رجب په مياشت كې يوه ورځ روژه شي؛نو جنت پرې واجبېږي . ( اقبال الاعمال : ۶۳۴)

ðرجب يوه ستره مياشت ده،چې د ښو كارونو ثواب يې دوه ګرايه كېږي اوڅوك چې پکې يوه ورځ روژه شي؛نو د داسې چا په څېر به وي،چې يوكال يې روژه نيولې وي . ( فضايل شهررجب : ۴۹۸مخ )

 

د روژې مياشت

ðخلكو! خدای د رمضان میاشت درته ځانګړې كړې ده او تاسې يې پکې نناېستي ياست او تر ټولو مياشتو غوره ده او داسې يوه شپه پکې ده، چې تر زرو مياشتو غوره ده او خدای پر هغه شپه د جهنم ورونه تړي او د جنت ورونه پرانستل كېږي؛نو څوك چې په دې شپه پوه شو او ونه بښل شو؛نو خداى له خپل رحمته لرې كړی دی او چاچې خپل مور و پلار وليدل او و نه بښل شو؛نو خداى له خپل رحمته لرې كړی دى . څوك چې زما نوم واخلي او صلوات (او درود ) راباندې و نه وايي ؛نو خداى نه دى بښلى اوله خپل رحمته يې لرې كوي .

ðخلكو! د روژې مياشت چې راوخېژي؛نو سرغړانده شيطانان (په ځنځيرونو) تړل كېږي او د اسمان،جنت او رحمت ورونه پرانستل كېږي او د جهنم ورونه تړل كېږي او دعاوې قبلېږي او خداى تعالى د روژه ماتي پر مهال يو ډېر شمېر د دوزخ له اوره ژغوري او د دې مياشتې په هره شپه كې جارچې غږ كوي،چې: اړمن يا بښنه غوښتونكى شته؟ (الكافي ۴ \ ۶۷)

ðپېغمبراكرم (ص) “جابر بن عبدالله انصاري” (رض) ته وويل : د روژې په مياشت كې،چې څوك د ورځې روژه او د شپې په يوه برخه کې عبادت وكړي او خپله ګېډه او شرمځى پاك وساتي او د خپلې ژبې خيال هم ورسره وي،د روژې پر پاى ته رسېدو له ګناهونو پاكېږي . جابر وويل : رسول الله! څومره ښه حديث دې ووايه . آنحضرت ورته وويل : خوشرطونه یې ډېرسخت دي . ( الكافي ۴\ ۸۷)

ðد روژې مياشتې د وروستيو لسو ورځو اعتكاف د دوو حجونو او دوو عمرو انډول دى.( من لايحضره الفقيه ۲۵\۱۸۸)

ðخداى د رمضان په مياشت كې روژه فرض كړې ده او مؤمن،چې د خداى رضا ته پکې روژه ونيسي؛نو پاک خداى يې ګناهونه داسې بښي؛لكه له موره،چې زېږېدلى وي . (تهذيب الاحكام ۴\ ۱۵۲)

 

روژه

ðروژه د جهنم د اور ډال دى .( الكافي ۴\۶۲)

ðپه ژمي كې روژه، يو مبارك غنيمت دى . ( وسايل الشیعه ۱۰\۴۱۴)

ðروژه يو ډال دى؛يعنې د دنيا د آفتونو او د اخرت د عذاب خنډ دی . (مصباح الشريعة : ۱۳۵)

ðپه ګرمۍ كې روژه د خداى په لار كې جهاد دى .(مستدرك الوسايل ۷ \ ۵۰۵)

ðڅوك چې روژه تي ته روژه ماتى وركړي؛نو د روژه تي په ثواب كې شرېكېږي،بې له دې،چې د روژه تي له ثوابه څه كم شي . (مصباح المتهجد: ۶۲۶)

ðڅوك چې د خداى په لار كې يوه ورځ روژه ونيسي؛نو د يوكال د روژې نيولو هومره ورته ثواب وركول كېږي . ( من لايحضره الفقيه : ۲\ ۸۶)

ðڅوک چې د شعبان په میاشت کې شپږ ورځې روژه شي؛نو خدای ترې اویا بلاوې تمبوي.( وسایل: ۱۰ / ۴۹۸ )

ðد خداى په راز كې روژه ونيسئ . وپوښتل شو : د خداى راز څه دى ؟ آنحضرت ورته وويل : يوم الشك ( دشك ورځ ) . (وسايل الشيعة ۱۰ \ ۳۱۰)

ðاسمانونه د شعبان د مياشتې په هره پنجشنبه كې پاكېږي او پرښتې وايي: پالونكيه! ددې ورځې روژه تي وبښې او دعا يې قبوله كړې؛نو ځكه څوك چې يوه ورځ روژه ونيسي؛نو خداى يې بدن پر اور حراموي . (وسايل الشیعة ۱۰ \۴۹۳)

ðشعبان زما او رمضان د خداى مياشت ده؛نو څوك چې زما په مياشت كې يوه ورځ روژه شي؛نو زه يې په قيامت كې شفاعت كوم او څوك چې د رمضان روژه ونيسي؛نو پاک خداى د دوزخ له اوره یې ژغوري . (وسايل الشیعة ۱۰ \ ۵۱۲)

ðپاک خداى پرښتو ته دنده وركړې،چې روژه تيانو ته دعا وكړي . (مستدرك الوسايل ۷\۴۹۷)

ðد روژه تي خوب عبادت او ساه اخستل يې تسبيح ده . (مستدرك الوسايل ۷\ ۴۹۷)

ðهر څه زكات لري او روژه د بدن زكات دى .(مستدرك الوسايل۷\۴۹۸)

ðخداى تعالى د انسانانو بدلې لس ګرايه كوي؛خو بې له روژې،چې وايي:روژه زما لپاره ده او پخپله یې بدله وركوم . (مستدرك الوسايل ۷\ ۵۰۲)

ðروژه يوازې ماته ده او زه يې  بدله ورکوم .(جواهر السنته : ١٢٠ مخ)   

ðروژه تي که ويده هم وي؛خوچې د مسلمان غيبت يې نه وي کړى ؛نو د عبادت په حال کې دى . (تحف العقول: مواعظ النبي) 

ðڅوک چې خداى ته يوه ورځ نفلي روژه ونيسي؛نو”الله” به يې جنت ته ننباسي.( وافي : ٢ ټ او کتاب الصيام: ٦ مخ)

ðد”روژه تي”خوب عبادت او ساه اېستل يې تسبيح ده. (وسائل : کتاب الصوم  ٢ حديث )

ðخداى پرښتې روژه تيانو ته د دعا لپاره ګومارلي دي . (سفينة البحار ٢ /٦٤)  

ðد هر “روژه تي” دعا قبلېږي . (اثنى عشريه : ١٦مخ )         

ðهر څيز يو “ور” لري اوروژه د عبادت “ور” دى .(اثنى عشر يه :١٦ مخ )

ðپشمنى کول د ورځې روژه اسانوي او غرمنى خوب مو د شپې پاڅون ته چمتو کوي . (وافي: ٢ ټ ،کتاب الصيام: باب فضل السحور ،٣٦ مخ )

ð”روژه تي” دوه خوشحالۍ لري :يوه يې د روژه ماتي پر وخت او بله يې له خپل پالونکي سره د کتنې پرمهال . (پورته منبع)

ðد جنت په “ريان”  وره يوازې روژه تيان ننوځي .(پورته منبع)

ðهر څيز زکات لري او د بدن زکات روژه ده.(روضة الواعظين/ ٣٥٠)

ðروژه ونيسئ او د روژې ورځې دې د خوراک څښاک ورځې په څېر نه وي . (جامع الا خبار/٩٤)

 ð”شعبان” زما او”رمضان” د خداى مياشت ده؛نوڅوک چې يوه ورځ زما په مياشت کې روژه شو؛نو زه به يې دقيامت پر ورځ شفيع شم او چا،چې د رمضان مياشت روژه ونيوه؛نو د دوزخ له اوره بچ شو.( امالي صدوق : ٩١ مجلس ،٥حديث)

ðڅوک چې د ثواب  لپاره يوه ورځ نفلي روژه ونيسي؛نو بښنه يې لازمېږي  . (امالي صدوق: مجلس ٢ حديث .)

ðڅوک چې د خداى په لار کې يوه ورځ روژه شي؛نو خداى يې مخ د اويا کالو واټن هومره له دوزخه لرې کوي .(صحيح بخاري : ٢٨٤٠ حديث) 

ðروژه ونيسه،چې هيڅ  چار(عمل) د هغې په څېر نه دى .(سنن نسائي)

(٣٨٣) “روژه تي” چې چټي خبرې او چارې پرېنږدي؛ نوخداى يې لوږې او تندې ته اړنه دى .(صحيح بخاري )

(٣٨٤)”د قدر شپه” د رمضان په وروستيو لسو طاقو شپوکې ولټوئ . (صحيح بخاري )                  

ðپشمنى وکړئ؛ځکه برکت پکې دى .(  صحيح بخاري او مسلم )

ðپينځه څيزه روژه ماتوى : ١ – دروغ ويل ٢- غيبت کول ٣ –  خبرې وړل راوړل ( چغلي ) ٤ – پر شهوت ليده کاته ٥ – په دروغو قسم  خوړل . (نهج الفصاحه ١٤٥٩ حديث )

ðروژه ونيسئ،چې روغتيا ومومئ .(نهج الفصاحه : ٨٥٤ حديث )

ðروژه نيمايي زغم دى . ( نهج الفصاحه : ١٨٥٥ )

ðروژه يو ډال دى؛خو چې په دروغو اوغيبت يې ماته نه کړي . (نهج الفصاحه : ١٨٨٦ مخ ) 

ðد”روژه تي” خوب عبادت،چوپتيا يې تسبيح او د کړنو(ثواب يې) دوه ګرايه دى؛دعا يې قبلېږي او ګناهونه يې بښل کېږي . (نهج الفصاحه:٣١٣٩ )

ðد “روژه تي”  دعا نه ردېږي .( مسنداحمد ٢/٧)

ðڅوک چې روژه تي ته روژه ماتى ورکړي (؛نو) د روژه تي هومره ثواب يې کېږي . (سنن الکبرى ٤/٢٤٠ )

ðروژه ، د دوزخ د اور پر  وړاندې يو ډال دى .  ( بحار ٤/ ٦٣٢)

 

غازي

ðد هر نعمت پوښتنه كېږي؛خو داچې غازي يا حاجي ترې ګټه واخلي . (من لايحضره الفقيه ۲\ ۲۲۱)

ðچاچې څوك حج ته ولېږه يا يې كوم غازي سمبال كړ يا يې د كورنۍ اړتياوې ورته لرې كړې يا روژتي ته روژه ماتى وركړي؛نو په ثواب كې ورسره شريك دى،بې له دې،چې له ثوابه يې څه كم شي .(مستدرك الوسايل ۷\۳۵۴)

ðڅوك چې د مؤمن غازي غيبت وكړي يا يې وځوروي او يا يې د كورنۍ اړتياوې لرې نه کړي؛نو د قيامت پر ورځ ورسره دښمني كېږي او ښه كړه وړه يې پوپنا كېږي بيا په اور كې غورځېږي او دا ټول تر هغه وخته پورې وي ،چې غازي د خداى د امر لاروى وي . ( ثواب الاعمال : ۲۵۶)

ðڅوك چې دغازي “ليك” ورسوي؛نو د هغه په څېر دى،چې مریى يې ازاد كړی وي او د غازى په ثواب كې شريك (هم) دى.  ( الكافي ۵\۸ )

 

رسوايي

ðپه دنيا كې رسوايي د آخرت تر رسوايۍ ډېره اسانه ده. (الاحاديث الطول للطبراني : ۱۰۶مخ )

 

د مسلمانانو چارو ته پاملرنه

ðڅوك چې ګهيځ له خوبه راپاڅي او د مسلمانانو د چارو د سر ته رسولو پام ورسره نه وي او څوك چې د چا چغه اوري،چې : مسلمانانو! خو دى يې ځواب ور نه کړي (؛نو) مسلمان نه دى.خلك د خداى كورنۍ ده او خداى ته هغه ډېرګران دى،چې كورنۍ ته يې ګټور وي او كورنۍ يې خوشحاله كړي . ( الكافي۴\۶۷)

ðڅوك چې اړمن ته څه صدقه ورسوي؛نو څومره،چې صدقه وركوونكى ثواب وړي؛نو دى يې هم وړي ،بې له دې،چې د صدقه وركوونكي له ثوابه څه كم شي . ( بحارالانوار  ۹۳\ ۱۷۵)

 

بډې

ðله بډو ډډه وكړئ؛ځكه محض كفر دى او ورته بېخي د جنت بوى نه رسي .( بحارالانوار ۱۰۱\ ۲۷۴)

 

رنګونه

ðپه جاموكې سپين رنګ ډېر ښكلى دى؛نو مړيو ته مو سپن كفونه واغوندئ . ( الكافي  ۳\ ۱۴۸)

ðسرخي د شيطان ښكلا ده او د شيطان سور رنګ ښه ايسي . (عوالي الآلي ۱\ ۷۵)

 

ورځې

ðباد ته كنځل مه كوئ؛ځكه د خداى استازى دى او همداراز غره، زمانې ،ورځو او شپو ته كنځل مه كوئ؛ځكه ګناه كوئ او دا كنځل ورګرځي .( من لايحضرالفقيه ۱\۵۴۴)

ðڅوك چې غواړي،د خپلې ورځې نحس (بدمرغي) لرې كړي ؛نو خپله ورځ دې په صدقه وركولو پيل كړي؛ځكه پاک خداى پرې د ورځې نحس له منځه وړي . ( الكافي ۴\۶)

ðپاک خداى په ورځو كې ځان ته د جمعې ورځ غوره كړې ده .( وسايل الشيعة ۷\۳۸۱)

ðد جمعې ورځ د ټولو ورځو ښکلې ده،د ښو كارونو كول پکې څو ګرايه كېږي،ګناهونه له منځه وړي،د درجو د لوړاوي لامل ګرځي،دعا پکې قبلېږي،غوسې پکې لرې كېږي،غټې غوښتنې پکې پوره كېږي، زيات شمېر پکې د دوزخ له اوره لرې او ژغورل كېږي او څوك چې پردې ورځ دعا وكړي او حق او درناوى یې وپېژني؛نو خداى تعالى پر ځان لازموي،چې د دوزخ له اوره به يې لرې او ژغوري او كه د جمعې پر شپه يا ورځ مړ شي؛نو له دنيا به شهيد مړ شوی وي او خوندي به راپاڅي او څوك چې د جمعې ورځ سپكه وګڼي او درناوى يې ونه كړى او حق يې پر ځاى نه كړي؛نو خداى پر ځان لازموي،چې د جهنم په اوركې به يې غورځوي؛خو دا چې توبه وكاږي . (الكافي ۳\ ۴۱۴)

 

روزي

ðد سبا د روزۍ غم مه خوره؛ځکه هر ګهيځ خپله روزي راوړي . ( بحار ٧٧/٦٧)

ðامانت روزي زياتوي او خيانت د بېوزلۍ لاملېږي .(الكافي ۵\۱۳۳)

ðله كارغه درې خويونه زده كړئ : (۱) پټ كوروالى (۲) د روزۍ ګټلو لپاره ګهيځ پاڅېدل (۳) او احتياط . ( وسايل الشيعة ۲۰\۱۳۳)

ðڅوك چې بل ته خواړه وركړي؛نو د اوښ په كوپان كې د چړې تر ننووتو ژر يې روزي وررسي. ( وسايل الشیعة۲۴\۲۹۱)

ðد غاښونو منځونه مو پاك كړئ ،چې دا چار روزي زياتوي.  (وسايل الشیعة ۲۴\۴۲۲)

ðپه حقيقت كې انسان په ګناه كولو له روزۍ بې برخې كېږي.   (مستدرك الوسايل ۵\ ۱۷۸)

ðد صدقې  په وركړه پر ځان روزي راكېباسئ . (قرب الاسناد:۵۶مخ )

ðد روزۍ لاس ته راوړو ته واده وكړئ .(مستدرك الوسايل۱۴\ ۱۷۳)

ðڅوك چې لږې روزۍ ته ټيټ وګوري؛نو پاک خداى يې له ډېرې روزۍ بې برخې كوي . ( فقه الرضا : ۳۳۸ )

ðخلكو! په حقيقت كې روزي وېشل شوې ده؛نو نه ښايي څوك له خپل حقه تېرى وكړي او له خپلې برخې زياته وغواړى؛نو ځكه روزي په ښه شان لاس ته راوړئ . ( مستدرك الوسايل ۱۳ \ ۲۹ )

ðد ورځې په سر كې خوب د بد اخلاقۍ او ناغېړۍ لامل ، غرمنی خوب نعمت،تر ماسپښين وروسته خوب حماقت او د ماښام او ماسخوتن د لمونځو ترمنځ خوب له روزۍ د بې برخې كېدو لامل دی .(مستدرك الوسايل ۵\ ۱۱۳)

ðد چاچې روزي لږه او په ځنډ شوه؛نو بايد له خدايه بښنه وغواړي . (بحارالانوار ۴۶\ ۲۰۱)

ðد صدقې په وركړه،روزي راكېباسئ . ګهيځ پاڅېدل د بركت لامل دى، نعمتونه په تېره بيا روزي زياتوي . ښېګڼه  د روزۍ كونجي ده او ښه خبره روزي زياتوي . ( بحارالانوار  ۷۳\۳۱۸)

 

غوړي

ðغوړي وچوالى او غونجوالى له منځه وړي .( مكارم الاخلاق : ۷۱\)

 

د خوب ليدل

ðد خوب ليدل به دې يوازې هغه مؤمن ته وايې،چې له كينې او تېري لرې وي . ( الكافي ۸ \ ۳۳۶)

ðپه اخره زمانه كې د مؤمن خوبونه ليدل ټول رښتيا كېږي او د چاچې خوب ډېر رښتيا وي؛نو خبره يې هم رښتيا وي او خوب ليدل درې ډوله دی : ( ۱) د خداى له لوري زېرى (۲) انسان،چې د ورځې په كوم فكر كې وي ( ۳) او د شيطان خپه كول؛نو خراب خوب مو،چې وليد؛چا ته يې مه وايئ،راولاړ شئ او لمونځ وكړئ .(بحارالانوار ۵۸\  ۱۸۱)

ðخوب په درې  ډوله دى : (۱) د خداى له لوري زېرى ( ۲) دشيطان  له لوري غم وخپګان (۳) او څه چې انسان له ځان سره زمزمه كوي او په خوب كې يې ګوري . ( بحارالانوار  ۵۸\۱۹۱)

ðد رښتياوو ښه خوب د خداى  له لوري يو زېرى او د نبوت يوه برخه ده. ( بحار ۵۸\۱۹۲)

ðعلي! څوك چې ويده شي؛نو روح يې خپل “نړۍ پال” ته ځي؛نو چا چې د خپل “نړۍ پال” پر وړاندې څه وكتل؛نو هغه حق دى،بيا ځواكمن او بريمن خداى يې روح بدن ته د ورستنېد و امر كوي او روح د ځمكې او اسمان ترمنځ ګرځي او څه چې دلته ګوري؛نو هغه د پرېشانۍ خوبونه دي . ( روضة الواعظين ۲\۴۹۲)

 

څوكۍ او مقام

ðڅوك چې علم ددې لپاره زده كړي،چې ناپوهان يې ژوند ورجوړكړي او يا پر عالمانو ووياړي او يا خلك پر ځان راټول كړي،چې زه مو مشر يم؛نو هستوګنځى يې جهنم دى؛ځكه مقام او رياست يوازې له وړ سره يې ښايي؛نو چاچې خلک پر ځان راټول كړل او ترده پوه پکې و؛نو خداى به ورته د قيامت پر ورځ و نه ګوري . ( الاختصاص : ۱۵۱)

ðنرمي د حكمت بنسټ دى . پالونكيه! چاچې زما د امت د كوم څيز مسؤوليت پرغاړه واخست او له امت سره يې نرمي وكړه؛نو ته ورسره نرمي وكړې او چاچې زما له امت سره سختي وكړه؛نو ته پرې سختي وكړې . ( عوالي الا للي ۱\ ۳۱۷)

ðكه د كوم امت پالندويي د داسې چا پرغاړه وي،چې تر هغه بل پوه او وړ هم وي؛نو چارې به يې تر هغه په خورا ناوړه توګه تر سره كېږي،چې (حکومت ته) ډېر پوه وټاكي او ولايت ،رياست نه  دى . ( بحار  ۳۱\۴۱۷)

ðالله پاك زما پالونكى دى او د هغه په شتون كې زه حكومت  نه لرم ، زه دهغه استازی يم او زما په حضور كې هېڅوك د حكومت حق نه لري او زه،چې د چا مولى يم؛نو علي يې هم دى او د هغه په شتون كې هېڅوك د حكومت حق نه لري . ( كنزالفوائد ۱\۳۳۲)

 

ريا او د ځان مشهورول

ðدوزخ او دوزخيان د ريا كار له لاسه چغې وهي .(بحارالانوار ۲۹ \۳۰۵)

ðجنت وايي:زه پر هر كنجوس او ريا كار حرام يم . (بحارالانوار ۶۹\۳۰۵)

ðخداى تعالى جنت په هر رياكار او رياكارې حرام كړی دى . ( مستدرك الوسايل  ۱\ ۱۰۶)

ðپر لومړۍ ورځ  د ولیمې وركړه سنت، پر دويمه ورځ ښه (كار) دى او تردې ډېره نو ريا او د ځان مشهورول دي . (الكافي ۵\۳۶۸)

ðخداى تعالى د رياكار دعا نه قبلوي . ( الجعفريات : ۱۷مخ )

ðد رياكار درې نښې دي : ( ۱) د يوازېتوب پر مهال لټ او ناغېړه وي (۲) له چا سره،چې وي؛نو خړوب او تاند دى (۳) او دا يې ښه ايسي،چې په هر كار كې وستايل شي . (بحارالانوار  ۶۹\۲۰۶)

ðريا كار څلور نښې لري : ( ۱) د خلكو په مخ كې د ښه كار پر كولو حريص وي  (۲) چې ځان ته وي؛نو لټېږي  (۳) هر كارچې كوي؛نو ښه يې ايسي،چې وستايل شي (۴) او په سختۍ ځان ښه ښيي.( بحار ۱\ ۱۲۲)

ðڅوك چې د خلكو د ليدو او ښودانې لپاره لمونځ وكړي يا ځان پاك سوتره وښيي يا ريا ته روژه ونيسي او يا د نامه مشهورولو ته حج  ته ولاړ شي او څوك چې ځانښوونې ته د پاک خداى کوم حكم تر سره كړي؛ نو مشرك دى او خداى د رياكار كړه وړه  نه قبلوي .(تفسيرالقمي ۲\۴۷)

ðڅوك  چې د خلكو په مخ كې داسې ځان ښيي،چې د خداى د احكامو له مخې كړه وړه تر سره كوي او په خلوت او ګوښه توب كې هغه څه كوي،چې د خداى ښه نه ايسي؛نو د قيامت پر ورځ به له خداى سره په داسې حال كې ليده كاته كوي ،چې خداى به ورته غوسه وي .( قرب الاسناد: ۴۵)

ðڅوك چې ماڼۍ ريا او مشهورېدو ته جوړوي؛نو پاک خداى به يې د قيامت پر ورځ له اومې ځمكې تېروي،چې هغه بل اور دى او بيا هغه په غاړه كې یې  وراچوي او جهنم ته يې غورځوي او د جهنم پر تل سربېره،پر ټولو عذابونو يې اخته كوي ؛خو داچې توبه وكاږي . رسول اكرم وپوښتل شو : څرنګه ريا او شهرت ته ماڼۍ جوړوي؟ ورته يې وويل : له وسې پورته او داچې پر ګاونډيانو او وروڼو ووياړي . (الامالي للصدوق : ۴۲۶)

ðخداى ته د ذلت او خوارۍ د څادر له اغوستو پناه وغواړئ . رسول اكرم وپوښتل شو: دا څه دي؟ ورته يې وويل : دا په دوزخ كې ریاکارانو ته ځانګړې ځای  دی، رياكار ته د قیامت پر ورځ داسې غږ كوي : فاجره! خيانتكاره ! او رياكاره ! كړه وړه دې له منځه ولاړل او ثواب دې پوپناه شو او ځه ولاړشه او ثواب دې له هغه واخله، چې عبادت دې ورته كاوه . (مستدرك الوسايل : ۱\ ۱۰۶)

ðتاسې ته د ډېر ناوړه څيز په اړه وېرېږم،چې “وړوكى شرك” دی. اصحابو کرامو رسول اکرم  وپوښته : وړوکی شرک څه ته وايي؟ ورته يې وويل : ريا وړوكى شرك دى . پاک خداى،چې د قيامت پر ورځ ټولو بندګانو ته د كړنو بدله وركوي؛نو ريا كارانو ته وايي : هغو ته ورشئ ، چې په دنيا كې مو ورته ريا كوله؛نو له هغوى بدله واخلئ ايا هغو درته بدله دركوي كه نه ؟  ( عدة الدا : ۲۲۸ )

ðپېغمبر اكرم د قيامت له ورځې د ژغورنې په اړه وپوښتل شو. ورته يې وويل : په حقيقت كې ژغورنه په دې كې ده ،چې خداى و نه غولوئ؛ځكه هغه هم تاسې غولوي او څوك چې خداى غولوي؛نو په خپله غولېږي، ايمان يې له منځه ځي او ځان تېر باسي . وپوښتل شو: خداى يې څنګه غولوي ؟ ورته يې وويل : چې خداى ورته د کوم کار حكم كړى ،بل ته یې كوي ؛نو له خدايه ووېرېږئ او ريا مه كوئ ؛ځكه ريا له خداى سره شرك دى او د قيامت پر ورځ رياكار ته داسې غږكېږي : كافره! فاجره! خيانتکاره ! او زيانمنه! كړه وړه دې پوپنا او ثواب دې باطل شو،نن د ژغورنې لار نه لرې؛نو ولاړ شه او بدله دې له هغه وغواړه،چې كار دې ورته كاوه . ( تفسير العياشي ۱\ ۲۷۳)

 

ژبه

ðكه كوم څيز شوم وي ؛نوهغه به ژبه وي . ( الكافي ۲\ ۱۱۶)

ðد ژبې په ساتلو كې د انسان هوساېنه وي او چوپتيا د انسان د سلامتۍ او روغتيا لامل دى . ( مستدرك الوسايل ۹\ ۳۰)

ðپاک خداى ژبه داسې په عذابوي،چې د بدن نور غړي هغسې نه په عذابوي .ژبه وايي : پالونكيه ! زه دې داسې پر عذاب كړم،چې نور دې  زما په څېر پر عذاب نه كړل ؟ بيا ورته ويل كېږي : تا داسې خبره كړې، چې د ځمكې ختيځ او لويديځ ته ورسېده او له امله يې په حرامو وينه تويې شوه،مالونه لوټ شول او پر ناموسونو تېرى وشو، پر خپل عزت او جلال مې قسم،چې د بدن يو غړى مې هم دغسې په عذاب كړى نه دى . ( الكافي ۲\ ۱۱۵)

ðخداى دې پر هغه ولورېږي،كه خبره وكړي؛نو غنيمت يې وګڼي اوكه چوپ شي؛نو روغ رمټ پاتې شي. ژبه هغه څيز دى،چې ډېره د انسان په واك كې ده او پردې پوه شئ،چې ټولې خبرې د انسان پر ضد دي؛خو د خداى ياد يا پر نېكيو امر اوله بديو منع يا د مؤمنينو ترمنځ جوړجاړى، بيا حضرت معاذ بن جبل (رض) وپوښتل :رسول الله!په خبرو هم نيول كېږو؟ آنحضرت ورته وويل : داسې وخت راځي،چې خلك به پړمخې په اوركې لوېږي؛خوهغوى چې خپلې ژبې يې ساتلې وي؛نو څوك چې غواړي روغ رمټ پاتې شي،پر خپله ژبه دې څارن وي،چې څه پرې وايي. ( اعلا م الدين : ۳۳۵)

ðد انسان ايمان هله سمېږي،چې زړه یې سم شي او زړه يې هله سمېږي، چې ژبه يې سمه شي؛نو څوك چې غواړي، له خداى سره داسې ليده كاته وكړي،چې لاسونه يې د مسلمانانو له وينې او مالونو پاك وي او ژبه يې د هغوى له بې پته كولو خوندي وي؛نو هرومرو دې دا كار وكړي . (عوالي الاللي ۱\۲۷۸)

ðكه كوم” شر” وي ؛نو هغه به پر ژبه كې وي . ( بحار ۶۸\ ۲۸۹)

ðد هر ويونكي ژبه يو څارن لرى؛نو انسان بايد له خدايه وډارېږي او وګوري ،چې څه وايي . ( بحار ۶۸\۲۷۷)

ðژبه دې وساته؛ځكه دا صدقه ده،چې ځان ته دې وركړې  بيا يې وويل : انسان هله د ايمان پر حقيقت پوهېداى شي،چې خپله ژبه وساتي . (الكافي ۲\ ۱۱۴)

ðد مؤمن ژغورنه د خپلې ژبې په ساتلو كې ده . ( الكافي ۲\ ۱۱۴)

ðكوم بنده،چې ځان څلوېښت ورځې د خداى لپاره مخلص او نږه كړ؛ نو خداى تعالى به يې د حكمت چينې له زړه څخه پر ژبه جاري كړي . (بحارالانوار ۶۷\ ۲۴۲)

ðبدغونى او بدژبى جنت ته نه ځي . ( ابوداوود)

ðمؤمن نه چا ته پېغور ورکوي ،نه بد ژبى وي،نه کنځلې کوي او نه بد وايي . (ترمذي)

ðد قيامت پر ورځ د خداى پر وړاندې د مقام له پلوه هغه ډېر بد دى ، چې خلک ترې د بد ژبۍ له وېرې يې ځان ساتي (او له خبرو اترو يې تښتي) . (بخاري– مسلم )

ðښه او خوږه خبره (هم) يو ډول صدقه ده .( بخاري )

ðڅوک چې له ما سره ژمنه وکړي،چې خپله ژبه اوعورت به ساتي؛نو زه ورسره د جنت ژمنه کوم .( بخاري )

ðڅوک چې چوپ شو؛نو ژغورل شوى دى .(ترمذي–احمد- الدارمي– بيهقي)

ðژغورنه په درېو څيزونو کې نغښتې ده: د ژبې کابو کول،خپل کور خپل هستوګنځى کول او پر خپلو ګناهونو خداى ته ژړل . (احمد –ترمذي)

ðله بدانو سره تر ناستې ګوښي کېناستل غوره دي او له چا سره ښې خبرې اترې تر چوپتياغوره دي او تر ناوړو خبرواترو،چوپېدل غوره دي. ( بيهقي )

ðد انسان د اسلام کمال او ښه توب په دې کې دى،چې له بې ځايه او بې ګټو خبرو ډډه وکړي . ( مالک،احمد،ابن ماجه،ترمذي،بيهقي)

ðچغلګراو د خبرلېږدى جنت ته نشي تلاى .( بخاري –مسلم )

ð د انسان آرامي د خپلې ژبې په خونديتوب کې نغښتې ده . (ميزان: ١٧٨٨ح )

ðهغه دې خوښ وي،چې ژبه يې په واک کې وي او پر خپلو تېروتنو وژاړي . ( کنز ١٥/٧٢٧)

ð د بني آدم ډېرى ګناهونه پر ژبه کې نغښتل شوي دي .( مجمع الزوائد ١٠ /٢٩٩)

ð مؤمن نه چا ته پېغور ورکوي،نه بد ژبى وي،نه کنځلې کوي اونه بد وايي . (ترمذي)

ð هر ګهيځ د بدن ټول غړي په عاجزۍ ژبې ته وايي (د خداى بنده،پر موږ ولورېږه)او زموږ په اړه له خدايه ووېرېږه؛ځکه موږ په تا پورې تړلي يو،که ته ښه او سمه وې؛نو موږ به هم ښه او سم يو،که تېروتې؛نو موږ به هم تېروځو.  (ترمذي)

ð ژغورنه په درېو څيزونو کې نغښتې ده:د ژبې کابو کول،خپل کور خپل هستوګنځى کول او پر خپلو ګناهونو خداى ته ژړل . ( احمد –ترمذي)

ð ما ته مې د اصحابانو يوه خبره هم مه کوئ؛ځکه  ښه مې ايسي،چې درسره په مخېدو کې يې د ټولوپه اړه زړه پاک وي.  (ابوداوود) 

ð اى چې پر ژبه مو ايمان راوړى ؛خو لا تر اوسه مو زړه ته نه دى ننووتى! د مسلمانانوغيبت مه کوئ او پټ عيبونه يې مه راسپړئ؛ ځکه که داسې وکړئ؛نو خداى به هم له تاسې سره همدغسې وکړي،چې د رسوايۍ اوسپکاوۍ لامل به موشي . (ابوداوود)

 

زكات

ðزكات ګناهونه له منځه وړي . ( المحاسن۱\ ۲۸۶)

ðزكات چې ور نه کړ شي؛نو ځمكه (له خلكو) خپل بركتونه منع كوي . (الكافي۳\۵۰۵)

ðڅوك چې د خپلې مېرمن مهر او هم د خپل مال فرضي زكات وركړي؛نوكنجوس نه دى . ( معاني الاخبار: ۲۴۵)

ð واقعي كنجوس هغه دى،چې د خپل مال فرض زكات نه وركوي . (الكافي ۴\ ۴۶)

ðڅوك چې خپل زكات وركړي؛نو مال يې زياتېږي . (تهذيب الاحكام ۴\ ۱۱۲)

ðزما امت به تر هغه په خير او ښو وي، چې يو له بل سره خيانت ونه كړي او امانت خپل خاوند ته وسپاري او زكات وركړي او كه داسې يې ونه كړل؛نو پر قحطۍ او كمبودۍ به اخته شي . ( صحيفة الرضا : ۴۳مخ )

ð ډېرسخي هغه دى،چې د خپل مال زكات وركړي . (اعلام الدين: ۳۲۲)

ðروژه د بدن زكات دى .( من لايحضر الفقيه ۲\ ۷۵)

ðد كوم مال،چې زكات ور نه كړ شي؛نو ملعون دى . (الكافي ۲\ ۲۵۸)

ðايمان د شرك پاكوونكى او لمونځ له كبره لرېوالى دى او زكات د روزۍ د زياتېدو لامل ګرځي . ( جامع الاخبار: ۱۲۳)

ðزكات د اسلام ګومبزه (طاق) دى . ( مستدرك الوسايل ۷\۱۰)

ðپه وچه او سمندر كې يو مال هم نه پوپنا كېږى؛خو داچې زكات يې ور نه كړ شي؛نومالونه موپه زكات خوندي كړئ،ناروغان مو په صدقه درمل كړئ او په دعا د بلاوو ډولونه لرې كړئ . ( الجعفريات : ۵۳)

ðڅوك چې له دې شپږو چارو،يو هم ترسره كړي؛نو دا كړه هڅه كوي، چې كوونكى يې جنت ته ننباسي او وايي:پالونكيه ! دې وګړي په دنيا كې زه كړى يم، كړنې دا دي :زكات ،حج ، روژه ، د امانت وركړه او د خپلوۍ پالنه . (الامالي للمفيد : ۲۲۷)

 

د چا لمونځ نه قبلېږي

ðد اتو تنو لمونځ نه قبلېږي 🙁 ۱) تښتېدلى مريى،چې خپل خاوند ته نه وي راستون شوى . (۲) هغه ناکاره ښځه،چې مېړه يې پرې غوسه وي  (۳) څوك چې د زكات د ورکړې خنډګرځي(۴) څوك چې اودس نه كوي  (۵) بالغه ښځه،چې بې ستره لمونځ كوي(۶) د هغه جماعت امام ،چې په ناخوښۍ او زور ورپسې لمونځ كوي (۷) هغه چې د خپلو تشو او ډكومتيازو مخه نيسى(۸)او مست  ( الحضال ۲\۴۰۷)

 

ځمكه

ðڅوك چې ونه وكري يا څاه وباسي يا شاړه ځمكه اباده كړي؛نو د خداى او د هغه د استازى پور به يې وركړى وي . (الكافي ۵ \ ۲۸۰)

ðڅوك چې په ناحقه كومه ځمكه غصب كړي؛نو د قيامت پر ورځ مؤظف دى،چې خاوره يې تر محشره په اوږو يوسي . (تهذيب الاحكام : ۶\۲۹۴)

ðځمكه مې ځان ته د سجدې ځاى او پاكوونكې كړې ده . (وسايل الشيعة  ۳\۳۵)

 

تېرى– ظلم

ðظلم او تېرى د مړانې آفت دى .( الحضال ۲\ ۴۱۶)

ðكه يو غر پر بل تېرى وكړي؛نو پاك خداى ظالم غر پوپنا كوي . (الجعفريات : ۱۴۷)

ðله ظلمه ډډه وکړئ ؛ځکه ظلم د قيامت د ورځې تيارې دي . ( کافي ٢/ ٣٣٢)

ðپر هغه ظالم د خداى غضب زښت ډېر وي،چې پر داسې چا تېرى کوي،چې بې له خدايه بل ملاتړ نه لري .( کنز: ٧٦٠٥ح)

ðد ظلم عاقبت تر هر څه ډېر ګړندى دى . (الحضال ۱\۱۴)

ðد درېو ګناهونو سزاګانې تر آخرته پورې نه ځنډېږي او چټكې رسېږي : ( ۱) څوك چې موروپلار عاق كړى وي .(۲) پر خلكو تېرى (٣) او ناشكري . ( الامالي للمفيد: ۲۳۷)

ðله ظلمه ډډه وكړئ،چې د قيامت د ورځې تپې تيارې ورسره ملې دي  . ( الكافي ۲\ ۳۳۲)

ðظلم د پښېمانۍ لامل دى . ( مستدرك الوسايل ۱۲\۱۰۳)

ðله ظلمه ډډه وكړئ؛ځكه زړونه مو ويجاړوي . (صحیفة الرضا ۷\۴۸)

ðظلم پردې څيروي . ( مستدرك الوسايل ۱۲\۳۳۴)

ð[ په قيامت كې] مظلوم د ظالم له  دينه له هغې اندازې ډېر غواړي ، چې ظالم د مظلوم له دنيا اخستي و.(اعلام الدين : ۱۷۴مخ )

ðخداى تعالى ظالم ته دومره مهلت وركوي،چې له ځان سره ووايي :د خداى هېر شوى يم ؛خو چې وخت يې راشي؛نو ناڅاپه يې په سخت عذاب اخته كوي . ( كنزالفوايد :۱۳۵)

ðڅوك چې ګهيځ راپاڅي او پر نورور د تېري هوډ ورسره نه وي؛نو پاک خداى يې تېر ګناهونه بښي . ( الكافي ۲\ ۳۳۲)

ðدا غوره جهاد دى،چې څوك ګهيځ راپاڅي او پر چا د تېري هوډ ورسره نه وي .(مستدرك الوسايل . ۱۲ ۹۶)

ðډېر ژر به ظالمان د خپل ظلم پايله وويني،ظالم لعنت او سخت عذاب ته او مظلوم د خداى مرستې او ثواب ته سترګې پر لار وي . ( مستدرك : ۱۲\ ۹۹)

 

سپارښتنې

ðعلي! په دعا كولو درته سپارښتنه كوم ؛ځكه چې قبلېږي، په شكر اېستو درته سپارښتنه كوم؛ځكه نعمت پرې ډېرېږي او تا پر  وعدې  له وفا نه كولو او له هغه سره له مرستې او چل وله منع كوم ؛ځکه د چل ول په ناوړه لومه كې يوازې په خپله چلي نښلي او له تېري دې منع كوم؛ځكه پر چا چې تېرى وشي؛نو خداى د مظلوم مرستندوى دى . (وسايل الشيعة ۷\ ۲۹ )

ðتاسې ته سپارښتنه کوم : پرهېزګاري وکړئ،زيار وباسئ،امانت ساتى وسئ، اوږدې رکوع او سجدې کوئ،د شپې پاڅېږئ،خواړه ورکوئ او په ډاګه سلام اچوئ . (الاختصاص ، ٢٥مخ )

 

له اسلامه وتلي

ð له اسلامه به هغه وتلى وي چې : ( ۱) بيعت مات كړي ( ۲) د بې لارۍ بېرغ اوچت كړي (۳) [ د خلكو د اړتيا وړ] پوهه پټه كړي ( ۴) كوم مال په ظلم  ونيسي ( ۵) پوهېږي،چې پلانى ظالم دى؛خو په ظلم كې ورسره مرسته كوي . ( بحارالانوار : ۲\ ۶۷)

 

ښېرا

ðځان د مظلوم له ښېرا وساتئ؛ځكه له ورېځو پورته خېژي،چې پاک خداى يې وويني؛نو خداى وايي: هغه (ښیرا) راپورته كړئ، چې قبوله يې كړم .د خپل پلار د دعا او ښېرا په څارنه كې وسئ، چې له تېرې توري ډېره ژر قبلېږي . (الكافي ۲\ ۵۰۹)

 

مظلوم

ðپه حقيقت كې د درېو تنو دعا قبلېږي : ( ۱) د مظلوم ( ۲) د مسافر ( ۳) او زوى ته د پلار. ( الجعفريات : ۱۸۷ )

ðزه او علي ددې دوو ګوتو په څېر يو[ بيا يې خپلې دوه ګوتې سره غبرګې کړې] او زموږ لارويان او د مظلوم مرستندويان به له موږ سره وي . ( بحارالانورا : ۶۵\۱۹ )

 

زهد

ð ډېر زاهد هغه دى،چې له حرامو ځان وساتي . (مشكاة الانوار:۸۶مخ )

ðكه څوك غواړي د مريمې د زوى عيسى عليه السلام زهد وګوري؛نو “ابوذر” دې وويني . ( روضة الواعظين  ۲\ ۲۸۵)

ðدنيا ته لېوالتيا خپګان زياتوي او نه لېوالتيا د بدن  او روح د ارامۍ لاملېږي . ( الحضال ۱\۷۳)

ðانسان هله په خپل زړه كې د ايمان په خوږو پوهېږي،چې د دنيا خواړه ورت توپير نه لري . ( الكافي ۲\ ۱۲۸)

ðغوره عبادت دنيا ته نه لېوالتيا (او زهد) دى .(ارشاد القلوب ۱\۱۵۸)

ðابوذره! پاک خداى،چې د كوم بنده خير وغواړي؛نو پر دين یې پوهوي او له دنيا يې بې لېواله کوي او پر خپلو عيبونو يې پوهوي ابوذره! څوك چې په دنيا كې زاهد وي؛نو خداى يې په زړه كې حكمت ځايوي او پر ژبه يې ورته جاري كوي او د دنيا پر بديو، دردونو او درملنو يې پوهوي او د سلام له نړۍ په جنت كې د سلامتۍ كور ته ځي . (مستدرك الوسايل  ۱۲\ ۴۲ )

ðابوذره! په دنيا كې،چې دې خپل مسلمان ورور زاهد وموند؛نو خبرې ته یې غوږ كېږده؛ځكه پر ژبه يې حكمت جاري كېږي . ابوذر رسول اكرم وپوښت : ډېر زاهد څوك دى ؟ ورته يې وويل :څوك چې قبر او د بدن ورستنېدل هېر نه كړي او “فاني” د “باقي” لپاره پرې ږدي . څوك چې “سبا” په ورځو كې و نه شمېري او مړيو ته د كتو پر مهال ځان ته وګوري . بيا يې وپوښت : كوم مؤمن تر ټولو ځيرك دى؟ ورته يې وويل : څوك چې تر ټولومرګ ډېر يادوي او ځان يې ورته ښه چمتو كړی وي . (مستدرك الوسايل  ۲\۱۰۱)

 

ښكلا

ðپه حقيقت كې خداى ښكلى دى او ښكلا يې خوښېږي . (عوالي الاللي ۱\۴۳۶)

 

ځيركي

ðد مؤمن له ځيركۍ وډار شئ؛ځكه د خداى په رڼا یې ويني ( له باطلو د حق د بېلولو وس لري).

ð ډېر ځيرك هغه دى،چې له ځان سره حساب وكړي او تر مرګ وروسته ځان ته فعاليت وكړي او هغه ډېر احمق دى،چې په خپلو ځاني غوښتنو پسې ولاړ  شي او تل له خدايه دنيوي هيلې غواړي . (بحار ۶۷\۶۹)

ð ځيرك هغه دى،چې ځان ټيټ وشمېرې او تر مړينې وروسته لپاره كار وكړي . ( عدة الداعى : ۳۴مخ )

 

جګړه مار

ðڅوك چې پر نورو توره راباسي؛نو وينه يې تويه ولاړه .( نزهة الناظر: ۱۶۰)

 

خداى ته سجده كول

ðڅوك چې خداى ته سجده وكړي (؛نو) يوه ګناه يې بښل  كېږي او يوه درجه لوړېږي . ( ثواب الاعمال : ۳۴)

ðابوذره! په پټه سجدې كول،خداى ته د نږدېوالي ډېره غوره لار ده. ( الامالي للطوسي : ۵۲۹)

ðد قيامت پر ورځ يوه  ډله په ځلنده جامو كې راځي،چې په څېرو كې به يې رڼا وي او د خپلو سجدو له نښو به پېژندل كېږي،ليكه ليكه راځي او د خداى پر وړاندې درېږي،چې پېغمبران، پرښتې، شهيدان او صالحان پرې وياړي : حضرت عمر بن خطاب رسول اكرم وپوښت : دا څوك دي ؟ ورته يې وويل :دا زما لارويان دي،چې علي يې امام دى . (بحارالانوار  ۷\۱۸۰)

 

ګهيځ پاڅېدل

ðپه ګهيځ پاڅېدو كې بركت دى؛ټول نعمتونه په تېره بيا روزي زياتوي . ( بحارالانوار  ۷۳\ ۳۱۸)

 

خبرې او حديث

ðيو له بل سره علمي كتنې او خبرې اترې كوئ او احاديث وویاست؛ځكه د احاديثو ويل زړه ځلوي.په حقيقت كې زړونه د تورو په څېر زنګ نيسي؛نو په احاديثو يې وځلوئ . (الكافي ۱\ ۴۱)

ðډېره غوره خبره (( لا اله – الالله )) او غوره دعا “الحمدلله” ده . (مستدرك الوسايل ۵\۳۶۳)

ðخدايه! پر ځايناستو مې ولورېږه. وپوښتل شو: هغه څوك دي؟ ورته يې وويل : هغه چې تر ما وروسته راځي او زما احاديث اوسنت روايتوي .( من لايحضره الفقيه۴\۴۲۰)،معانی الاخبار۳۷۴ – ۳۷۵،جامع بیان العلم ابن عبدالبر ۱/  ۵۵ ،اخبار اصبهان ابونعیم ۱/ ۸۱ ، الفتح الکبیر سیوطي ۱ / ۲۳۳، کنزالعمال ۱۰/ ۱۲۸ )

ðخلكو! څه چې له ما درته روايت شوي وي او له قرآن سره یې اړخ لګاوه؛نو زما دي او که نه يې لګاوه؛نو نه دي .(مستدرك الوسايل : ۱۷\۳۰۴، مستدرک حاکم نیشاپوري: ۱/ ۷۷)

ðتردې به ډېره غوره صدقه نه وي،چې  ښه خبره وكړې،چې بندي پرې ازادشي،يا دې خپل مؤمن ورور ته څه خير ورسي او يا ترې كوم زيان او ظلم لرې كړې . (مستدرك الوسايل ۷\۲۶۴)

ðهغه دې خداى ښاد كړي،چې زما خبره واوري بيا يې ياده كړي او نا اورېدليو ته يې ووايي.داسې هم دي،چې څوك پخپله (عالم او) پوه نه وي؛خو پوهه (نورو ته) لېږدوي او داسې هم وي،چې څوك پوهه تر ځان ډېرو پوهانو ته رسوي . (د امام احمد حنبل مسند١\ ۴۳۷)

ðپاک خداى دې پر هغه ولورېږي،چې د خير خبره وكړي او غنيمت يې وګڼي او يا پر خواشيني صبر وكړي او تسليم پاتې شي . (المحاسن ۱\ ۱۵)

ðښه خبره (هم ) صدقه ده . ( مكارم الاخلاق : ۴۶۷)

ðچټي خبرې پرېږدئ او دومره ويل درته بس دي،چې ستا اړتيا پرې پوره كېږي . ابوذره ! ژبه د اوږده بند وړ ده . ابوذره! په حقیقت کې خداى د هر وياند له ژبې سره دى؛نو باید الهي تقوا اختيار كړي او پوه شي،چې څه وايي .  (الامالي للطوسي : ۵۳۵)

ðموږ پېغمبرانو ته لارښوونه شوې،چې له خلكو سره يې د عقل هومره خبرې وكړو . ( الكافي: ۱\ ۲۳)

ðڅوک چې بې له “سلامه” خبرې پيل کړي ؛نوځواب يې مه ورکوئ . (کافي ٢/٦٤٤)   

ðکه څوک له وړ او اهل  سره خبرې و نه کړي ،داسې دى،چې له نااهله  سره خبرې کوي . (دسيوطي جامع الصغير)

ð څوک چې پر خداى او قيامت ايمان لري ؛نو بايد يا ښه خبره وکړي  يا چوپ شي .( مسند احمد ٢/ ١٧٤ )

ð د يوه بنده د بشپړ ايمان نښه داده،چې په هره خبره کې “ان شاء الله” (که خداى وغواړي ) ووايي .( کنز ١٠/٢٦٦)

ð زياتې او چټي خبرې پرېږدئ .  ( بحار ٧٧/٨٧ )

ðبېشکه ځينې شعرونه حکمت او ځينې ويناوې د کوډو په څېر دي . (الامالي  صدوق: مخ ٤٩٥)

 

د خداى پرتم

ðڅوك چې خداى تعالى وپېژني او د پرتم خاوند يې وبولي؛نو خپله خوله له خبرو او ګېډه له خوړو منع كوي او خپل نفس په روژه او لمونځ كابو كوي . ( مستدرك الوسايل : ۱۲\ ۱۶۷)

پړه

ðكوم ورور دې،چې په څه ستونزه كې ښکېل وي؛نو پړه پرې مه اچوه؛ځكه خداى به پرې ولورېږي او تا به پرې اخته كړي.( الامالي للمفيد : ۲۶۹)

ðڅوك چې كومه ناوړه چاره خپره كړي؛نو د ناوړه چارو د بنسټګر په څېر به وي او څوك چې کوم مؤمن د هغه د تېروتنې له امله ورټي؛نو تر هغه به نه مري،چې پر همدې تېروتنه نه وي اخته شوی . ( منية المريد : ۳۳۱)

ðڅوک چې مصيبت ځپلي ته ووينې او ووايي ،چې د خداى شکر دى، چې زه يې له دې کړاوه ژغورلى يم او زه يې له تا (مصيبت ځپلي) او تر نورو ډېرو مخلوقاتو لوړ ګڼلى يم ؛نو پر خداى حق دى، چې دا به پرهماغه مصيبت اخته کوي . (مستدرک الوسايل : ٧\١٨٤)

 

لوبې

ðپه څلورو څيزونو  زړه  داسې فاسدېږي او نفاق پکې راټوكېږي؛لكه اوبه،چې د ونې د ودې لامل ګرځي : (۱) لوبې او چټي كار ( ۲) فحاشي (۳) ظالم واكمن ته خدمت كول (۴) او تفريحي ښكار. ( وسايل : ۸\۴۸۱)

ðمؤمن ته يوازې درې لوبې روا دي،چې دا دي : (۱) پر اس د سپرېدو بوختيا ( ۲) نښه ويشتل ( ۳) او له خپلې مېرمنې سره لوبې او ټوكې كول . ( الكافي ۵\۵۰)

ðپر لوبو بوخت شئ؛ځکه ښه مې نه ايسي ستاسې په دين کې سختي او تاوتريخوالى وليدل شي . ( کنز: ٤٠٦١٦)

ðخپلو اولادونو ته لامبو او غشي وېشتل ورزده کړئ . (طرايف االحکم ٢/١١٧)

 

مولا  او مشر

ðد چاچې زه مولى او مشر يم ؛نو علي يې هم دى . خدايه ! له دوستانو سره يې دوست وسه او له دښمنانو سره يې دښمن او له ملاتړو سره يې مرستندوى  او چاچې ځان ته پرېښود؛نو خوار يې كړې . (سنن ترمذي . ۵\۲۹۷)

 

د اوبو وركړه

ðپينځه څيزونه دي،كه څوك يې ټول يا يو وكړي؛نو جنت  پرې واجبېږي ( ۱) تږي څاروي ته اوبه وركول ( ۲) پښې یبل تر يو ګام پورې وړل ( ۳) د وږي ځېګړ مړول ( ۴) د بربنډ پټول ( ۵) او د منونكي مريي ازادول  ( بحار الانوار  ۱۰۱ \۶۵)

 

چوپتيا

ð له بدانو سره تر ناستې ځان ته کېناستل غوره دي او له نېکانو سره کېناستل تر يوازېتوبه غوره دي او له چاسره ښه خبرې اترې تر چوپتيا غوره دي او تر ناوړو خبرو اترو،چوپېدل غوره دي . (بيهقي)

اوږده چوپتيا او ښه خوى د خداى په تله کې دوه درنې کړنې دي،پر هغه ذات قسم،چې زه يې په واک کې يم،چې دا دواړه د مخلوقاتو په کړنو کې بې ساري څيزونه دي .(بيهقي)

ð د انسان د اسلام کمال او ښه توب په دې کې دى،چې له نااړينو او بې ګټوخبرو ډډه وکړي . (مالک،احمد،ابن ماجه،ترمذي، بيهقي)

ðډېر چوپ وسه . ( وسايل ١٥\٢٨٩)

ðروغتيا او سلامتي لس برخې لري،چې نهه يې چوپتيا ده؛خو دا چې خداى ياد شي او يو يې له بې عقلوسره د ملګرتوب پرېښوول دي . (مستدرک الوسايل ٨ \ ٣٣٧)

ðچوپ مؤمن ته ورنږدې شئ؛ځکه حکمت القا او ورغورځول کېږي . مؤمن خبرې لږې کوي او کړه يې ډېر وي او منافق خبرې ډېرې کوى؛خو عمل يې لږ وي . ( تحف العقول : ٣٩٧)

ðډېر چوپ وسه؛ځکه دا چار شيطان لرې کوي او د ديني چارو په سمون کې درسره مرسته کوي . ( الخصال  ٢\٥٢٦)

 ðد علم لومړى پړاو چوپتيا،دويم يې اورېدل،درېم پرې عمل کول او څلورم يې خپرول دي . ( دعائم الاسلام : ١\٨٢)

ðپوره يوه ورځ تر شپې پورې چوپتيا لازم نه ده . (الامالي للصدوق ٣٧٨)

ðخداى تعالى راته د “معراج” پرشپه وويل : احمده ! يو عبادت هم راته د چوپتيا او روژې هومره ګران نه دى؛نو څوک چې روژه ونيسي او خپله ژبه وساتي؛نو د داسې چا په څېر دى،چې لمانځه ته درېږي او څه ونه وايي؛خو زه ورته د لمانځه د درېدو بدله ورکوم؛خو نه د عابدانو ثواب! (مستدرک الوسايل ٩ \١٩ )

ðايا تاسې ته دوه مهم اسان او له اجره ډک کارونه وښيم ،چې خداى تعالى ثواب يې بل چاته نه ورکوي؟ : (١) اوږده چوپتيا .( ٢) ښه خوى .  (ارشادالقلوب : ١٠٤)

ðچوپتيا پراخه خزانه ده،د زغمناک ښکلا او د ناپوهه پرده ده. (بحارالانوار ٦٨\٢٩٤)

ðانسان د ژبې په ساتلو کې په راحت کې وي او د ژبې چوپتيا د انسان د روغتيا لامل وي .( مستدرک الوسايل ٩\٣٠)

ðچوپتيا تر ناوړو خبرو او ښې خبرې تر چوپتيا ښې دي . (الامالي للطوسي : ٥٣٥)

ðاوږده چوپتيا اوښه خوى،د خداى په تله کې دوه درنې کړنې دي. پر هغه ذات قسم،چې زه يې په اختيار کې  يم،چې دا دواړه د مخلوقاتو په کړنو کې بې سارې څيزونه دي . (بيهقي )

ðاوږده چوپتيا او ښه خوى دوه ارزښتناكه او اسانه چارې دي ،چې د خداى پر وړاندې يې هيڅ څيز بدله نه لري . (مستدرك الوسايل ۹\۲۲)

ðمؤمن مو،چې چوپ وليد؛نو ورنږدې شئ،چې حكمت ترې راخوټېږي . ( تحف العقول : ۳۹۷)

 

 

د واکمن ماڼۍ

ðد واكمنو له ماڼۍ ځان وساتئ؛څوك چې ورته ډېرنږدې وي ؛نو له خدايه به ډېر لرې وي او چا،چې واكمن پر خداى ړومبى وګاڼه؛نو خداى ترې ډاډېنه اخلي او لالهاندوي يې. (وسايل الشيعة : ۱۷ \ ۱۸۱)

 

ملعون

ðڅوک چې دا درې چارې وکړي؛نو ملعون دى . ( ١) څوک چې د خلکو په دمه ځاى کې تش يا ډک اودسماتى وکړي ( ٢) څوک چې د چا د اوبو د وار مخه ونيسي . ( ٣) څوک چې د خلکو سمه لار بنده کړي. ( الکافي : ٢\٢٩٢)

 

پت

ðڅوک چې ځان د خلکو له بې پتولو وساتي (؛نو) خداى به يې په قيامت کې وبښي او څوک چې ځان پر خلکو له غوسې خوندي کړي (؛نو) خداى تعالى به يې د قيامت له عذابه وژغوري . (الکافي ٢\٣٠٥)

ðڅوک چې د يو مسلمان ورور د بې پتولو مخه ونيسي؛نو هرومرو جنت ورته واجبېږي . ( وسايل ١٢ \٢٩٢)

ðد مسلمان ابرو ستر ارزښت دى . ( مستدرک الوسايل ٩\ ١١٩ )

 

اور

ðدوزخ ته به زما د امت د تلو ډېرى لامل دوه خالي څيزونه وي : (1) ګېډه او( ٢) شرمځايونه . ( الکافي ٢\٧٩)

ðڅوک چې له يو مشر (امام ) سره ژمنه ماته کړي؛نو په قيامت کې به په کږه خوله راپاڅي ،چې دوزخ ته  ولاړ شي . (الکافي ٢\٣٣٧)

 

داسې وخت به راشي

ðپر خلکو به داسې زمانه راشي،چې د دنيا تر لاسه کولو لپاره به  باطن یې چټلېږي  “برسېرن” به يې ښه وي؛خو دا کړنې به يې د ثواب په نيت نه وي او دين به يې ريا شي او په تن کې به يې له خدايه ډارنه وي . خداى تعالى به دغسې خلک ډله ييز مجازات کړي او؛لکه څنګه چې ډوب شوي دعا کوي (،چې وژغورل شي ) ؛نو د دوى به هم دعاوې نه قبلېږي . ( الکافي ٢\٢٩٦)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،چې د قرآن به يوازې ظاهر او د اسلام به يوازې نوم پاتې وي،چې خلک پرې (مسلمان) يا دېږي ،حال دا چې تر ټولو خلکو به له اسلامه لرې وي،جوماتونه به يې ودان ؛خو د لارښوونې له اړخه به وېجاړ وي ،د هغې زمانې فقهاء به د ځمکې ډېر ناوړه فقهاء وي،فتنې به له همدوى پيلېږي اوپر همدوى به پاى ته رسي او بېرته به همدوى ته ورګرځي . ( الکافي ٨\ ٣٠٨)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،چې د پاچايانو حج به د تفريح، د شتمنو به د سوالګرۍ او د بېوزليو به د ګدايۍ لپاره وي . ( تهذيب الاحکام ٥\٤٦٢ )

ðداسې وخت به راځي،چې خلک به اذان ويل کمزوريو ته پرېږدي،حال داچې (نه پوهېږي) د مؤذنانو د تن غوښې پر اور حرامې دي .(وسايل ١٦\١٤٠)

ðداسې وخت به راشي،چې خلک به برسېرن بنيادمان وي؛خو زړونه به يې د شيطانانو زړونه وي او د وږي لېوه په څېر به داړن وي،له ناوړو چارو به نه منع کېږي . که ورپسې ولاړ شئ؛نو شمکنوي دې او که خبرې ورسره وکړې (؛نو) دروغجن دې بولي او که ترې لرې شې؛نو غيبت دې کوي،د هغوى تر منځ “سنت”بدعت ګڼل کېږي او “بدعت” سنت . د هغوى ترمنځ زغمناک،وعده ماتى او خاين يې زغمناک دي، مؤمن پکې کمزورى (او خوار) او فاسق پکې شريف (او عزتمن) دى،کوچنيان يې خړ سري او ښځمنې يې چليانې دي، زاړه  یې پر نېکو امر او له بديو منع نه کوي،ملګرتوب ورسره خواري او رسوايي ده او څه ترې غوښتل د ډېرې احتياجۍ لاملېږي، خداى په دغسې زمانه کې له اسمانه په موقع باران نه اوروي؛خو بې موقع پرې ورېږي او ډېر ناوړه وګړي پرې واکمنوي، چې په  ډېر ناوړه عذاب يې وربړوي؛ داسې چې د زامنو يې سرونه پرې کوي او ښځې يې په وينځتوب نيسي،نېکان به يې دعا کوي؛خو نه به قبلېږي . (مستدرک الوسايل ١١\ ٣٧٥)

ðداسې وخت به راشي،چې د خلکو به خپلې ګېډى معبود وي او ښځې به يې قبلې وي او پيسې به يې دين وي او شتمني به يې شرف وي او “ايمان” به يوازې په نوم . اسلام به يوازې په ظاهره او د قرآن به يوازې زده کړه پاتې وي،جوماتونه به آباد دي؛خو زړونه به يې د هدايت او لارښوونې له اړخه ويجاړ وي،پوهان به یې د ځمکې ډېر ناوړه خلک وي، په داسې زمانه کې خداى خلک په څلورو بلاوو اخته کوى : ( ١)  د واکمن په ظلم ( ٢) اوږده وچکالي (٣) د چارواکيو ظلم (٤) او د قاضيانوظلم .( مستدرک الوسايل ١١\ ٣٧٦)

ðداسې وخت به راشي،چې خلک به له عالمانو داسې تښتي؛لکه پسه چې له لېوه . په داسې وخت کې به يې خداى په درېو څيزونو اخته کړي : (١) له مالونو يې برکت اخستل کېږي(٢) ظالم پرې واکمنېږي(٣)له دنيا به بې دينه ځي . (مستدرک الوسايل ١١\٣٧٦)

ðزما دې پر هغه (ذات) قسم وي،چې زه يې په حقه رالېږلى يم، داسې وخت به راشي،چې خلک به شراب حلال ګڼي او څښاک به ورته وايي،پر هغوى دې د خداى،پرښتو او ټولو خلکو لعنت وي،چې زه ترې کرکجن يم او هغوى هم له ما کرکجن دي .( مستدرک الوسايل  ١٧\٥٦)

 

ملګرتوب

ðحواريونو حضرت عيسى عليه السلام ته وويل : روح الله ! د چا ملګرتوب وکړو؟ورته يې وويل : له هغه چا سره،چې کتل يې درته خداى دريادوي او خبرې يې ستاسې پوهه زياتوي اوکړه يې تاسې اخرت ته هڅوي . ( الکافي ٢\١٣١)

ðله دينوالو سره ناسته پاسته د دنيا او آخرت د شرافت لاملېږي . (الکافي : ٣٩)

ðخداى وايي : د آدم اولادې! ما د ګهيځ تر لمانځه وروسته څه ساعت او مازېګر تر لمانځه وروسته (هم) څه ساعت در يادکړئ ،چې زه دې د ټولو ستونزو  بسیا شم . ( تهذيب الاحکام : ٢\١٣٨)

 

هيله

ðابوذره! ښه دې ايسي،چې جنت ته ولاړشې ؟ ورته مې وويل :هو مور و پلار مې درځار! حضرت (ص) ورته وويل : هيلې دې لنډې کړه او مړينه دې مخې ته ودروه اوپه رښتيا او له حق خدايه حيا وکړه . ( وسايل  ١\٣٠٤)

ðالله پاک مو هله پالندوى دى،چې مړينه مو سترګو ته او هيله مو شا ته وي،چې په دې حال کې مو نېکمرغي په برخه وي او که ددې پر عکس وي؛نو شيطان به مو پالندوى وي او بدمرغي به مو په برخه شي . (وسايل : ٢\٤٣٥)

ðددې امت لومړى سمونه په زهد او يقين کې ده؛خو کنجوسي او هيلې به يې وروستۍ ورکاوى وي . ( وسايل : ٢\٤٣٧)

ðپېغمبر اکرم(ص) خلکو  ته حکم  ورکړ:(( که په تاسې کې څوک له خدايه  څه  وغواړي؛نو تر ټولو خلکو  دې خپله هيله وشلوي او بې له خداىه دې بل ته هيله ونه لري،څو يې خداى غوښتنه ورکړي.))  (اصول کافي :2 ټوک)

ðزه مې خپل امت ته له هوس او اوږدو هيلو وېرېږم،چې ډېر ناوړه څيزونه دي . هوس حق ته د رسېدو مخه نيسي او اوږدې هيلې (له انسانه) آخرت هېروي . ( وسايل ٢\٤٣٨)

ðابوذره! د نن کار سبا ته مه پرېږده؛ځکه نن يې اوسبا نه يې او که د سبا چلن دې د نن په څېر وي؛نو پښېمانه به نشې،چې لږ کار دې کړى . ابوذره!که د کار پاى او د اخرت د لارې مسير ووېنې؛نو هيلې او چلونه به يې (د ځان) دښمن وګڼې.ابوذره! ګهيځ،چې پاڅېدې؛د مازيګرخبرې مه کوه او مازيګر مهال د سبا ګهيځ په باب فکر مه کوه . (مستدر ک الوسایل : ٢\١٠٧ )  

 

ازار

ðد مؤمن له ځانګړنو دي چې : ورکړه به یې ډېره وي، ازار به يې لږ وي او له  نشتمنو سره به يې لاسنيوى وي . (بحارلاانوار  ٦٤\٣١٠)

ðپر نورو زړه وسېځه که څه هم په يو ګوټ اوبو وي او که و یې نه ځوروې ؛نو دا به ډېر اوچت زړه سوى وي . ( بحارالانوار ٧١\١٠٣)

 

ازمېښت

ðستر ازمېښتونه،سترې بدلې لري؛نو د خداى چې څوک خوښ وي؛ په ستر کړاو  یې اخته کوي؛نو څوک چې په کړاو خوښ و؛نو خداى ترې راضي کېږي او چې خپه شي؛نو خداى هم ترې خپه کېږي .(الکافي ٢\٢٥٣)

بلا

ðد ((بسم الله الرحمن الرحيم  لاحول ولاقوة الابالله العلى العظيم)) په دعا ويلو هره بلا لرې کېږي . ( الکافي ٢\٥٧٣ )

ðد صدقې په ورکړه خپله ورځ پيل کړئ؛ځکه بلا پر صدقې برلاسېداى نشي. ( الکافي ٤\٦)

ðڅوک چې دنيا ته مخه کړي؛نو ترې ناکامېږي،څوک چې بلا وپېژني؛ نو پرې صبر کوي او چې ويې نه پېژني،هلاکېږي .( الکافي ٨ \ ٨١)

ðپه دعا هر ډول بلا ګانې وتمبوئ . ( وسايل  ٧\٤٢)

ðناروغان مو د صدقې په ورکړه درمل کړئ،هر ډول بلا په دعا وتمبوئ او مالونه مو د زکات په ورکړه خوندي کړئ؛ځکه الوتونکي هله  ښکار کېږي،چې د خداى تعالى په تسبيح ويلو کې يې ناغېړي کړې وي. (وسايل : ٩\ ٢٩ )

ðخداى تعالى مؤمن بنده ته داسې بلاوې ساتي؛لکه يوه کورنۍ،چې خپل مشر ته ښه خواړه ساتي . ( وسائل : ٩ \ ٣٨٠)

ðبلا پر بنده راځي؛نو هغه خپل خداى رابولي او له بلا د ځان ژغورنې لپاره دعا کوي او خداى وريادېږي؛نو خداى  يې ژغوري او د قيامت تر ورځې پورې “بلا او دعا” سره مل دي . ( مستدرک الوسايل  ٢\٤٣٤)

ðځان ساتنه او پرهېز د ناوړه تقدير او برخليک مخه نه نيسي؛خو دعا يې مخه نيسي؛نو مخکې تردې،چې بلا درباندې راشي؛نو دعا ترې ړومبۍ کړئ؛ځکه پاک خداى په دعا راغلې بلا او راتلونکې بلاوې لرې کوي .( مستدرک : ٥\١٧٦ )

ðپه پټه صدقه ورکول،ګناهونه داسې تتوي؛لکه اوبه چې اور مړ کوي او پردې سربېره اويا ډوله بلاوې هم تمبوي . (مستدرک ٧\١٨٤)

ðچې کله زما په امت کې لاندې چارې دود شي؛نو خداى به پرې توندې سيلۍ،د ځمکې ښويېدل او مسخ بلاوې راکوزي کړي( ١) شتمني يې،چې په واک کې وي او يو يې ووايي : که څوک شتمني لري؛نو ځواکمن دى (٢) خيانت،ولجه وګڼل شي(٣) زکات،زيان وګڼل شي (٤)مېړه په خپلې مېرمنې پسې ولاړ شي او مور يې ورباندې لعنت ووايي(٥) له خپل ملګري سره ښه کوي؛خو له خپل پلار سره جفا کوي (٦) په جوماتو کې په جګو غږونو خبرې کوي (٧) سړي ته له دې امله احترام کوي،چې ترې ډارېږي(٨)د هرې ډلې مشر به د هغوى ډېر ټيټ او پرېوتى سړى وي(٩) ورېښمنې جامې به اغوستل کېږي( ١٠) شراب په څښل کېږي(١١)مجسمې به جوړېږى ( ١٢) موسيقي به اورېدل کېږي (١٣) او د امت وروستي به پر لومړيو لعنت  وايي. (طوسي؛ الامالي ٥١٥ ، الخصال : ٢\ ٥٠٠)

 

 

خداى چې له بنده خوښ شي

ðخداى (ج) وايي : مسلمان ته چې د دنيا او اخرت دواړو ښېګڼې وغواړم؛نو ورته عاجز زړه ، د خداى په ياد بوخت زړه ، د کړاوونو پر وړاندې زغمناک بدن او داسې مېرمن ورکوو،چې په ليدو يې خوښېږي او مال او ځان يې خوندي ساتي .( الکافي ٨\٨١)

 

د بدمرغۍ نښې

ðد بدمرغۍ نښې دادي : ( ١) وچ سترګي ( ٢) سخت زړي(٣) د شتمنۍ لاس ته راوړو ته  ډېر حرص ( ٤) او پر ګناه ټينګار.(الجعفريات : ١٦٨مخ )

 

آفتونه

ðچې کله آفتونه او ستونزې راکېوځي؛نو جوماتيان ترې خوندي ژغورل کېږي . ( مستدرک الوسائل ٣\٣٥٦)

ðوياړ او ځانمني د کورني شرافت آفتونه دي . ( الکافي ٢\٣٢٨)

ðدروغ د خبرو آفت دى، هېر د علم آفت دى . سستي د عبادت آفت دى. تکبر د ښکلا آفت دى.منت د بخشش آفت دى.د مړانې آفت ظلم دى او کينه د علم آفت دى .( الکافي ٢\ ٣٢٨،تحف العقول:١٠ )

ðپاک خداى چې کوم بنده د کورنۍ،شتمنۍ او اولاد له نعمته برخمن کړى وي او وايي : ((ماشاء الله لاقوة الابالله ))؛نو بې له مرګ بل هيڅ آفت به پکې ونه ويني . ( المحاسن ١\ ١٦)

 

پيدايښت

ðمتعال خداى يوه ډله په خپل رحمت له خپل رحمته،پر نورو د رحمت لپاره پيدا کړه او ځانګړنه يې دا ده،چې د خلکو اړتياوې به لرې کوي؛ نو څوک چې کړاى شي له هغوی اوسي؛نو دغسې چارې دې کوي . (مستدرک الوسايل ١٢\٤٠٢)

ښوونه

 ðڅوک چې نورو ته د قرآن د ښوونې لپاره څه مزدوري تر لاسه کړي ؛ نو همدا يې د قيامت د ورځې بدله ده .( تهذيب الاحکام٦\٣٧٦)

ðد ښوونکي يا پوهې په غونډه کې د جاهليت د پېر په څېر خپاره واره مه کېنئ؛بلکې مخکى ولاړ شئ او په يو بل پسې کېنئ . (مستدرک الوسايل٨\٤-٣)

ðد ښو چارو ښوونکي ته له خدایه پر ځمکه څاروي،په سمندر کې کبان، په هوا کې شته موجودات، اسمانوال او ځمکوال بښنه غواړي او ښوونکى او زده کوونکى په بدله کې يو برابر دي .(بحارالانوار ٢\ ١٧)

ð علي زما د سنتو راژوندى کوونکى،زما د امت ښوونکى،زما حجت، تر ما وروسته غوره ځايناستى،زما د اهلبيتو مشر او ما ته ډېر ګران دى . ( بحارالانوار ٢٨ \٢٢١)

ðڅوک چې چا ته کومه مسئله وروښيي؛نو خاوند شوى به یې وي ؛ نو رسول اکرم وپوښتل شو: هغه پلورلای شي ؟ آنحضرت ورته وويل : نه خو  پر نېکيو امر او له بديو يې منع کولاى شي .( عوالي الاللي ٤\ ٧١)

 ðڅوک چې د علم د زده کړې لپاره ددې لپاره له کوره ووځي،چې په پوهې باطل پر حق واړوي(باطل له منځه يوسي او حق يې ځايناستى کړي) يا بې لارى پرې سمې لارې ته راکاږي ؛نو دا کار يې لکه د يوعابد څلوېښت کاله عبادت دى . ( بحارلاانوار : ١\١٨١)

 

مزدوري

 ðکارګر ته د مزدورۍ نه ورکول،له سترو ګناهونو دي . (مستدرک الوسايل ١٤\٣١)

ðخداى تعالى د قيامت پر ورځ ټول ګناهونه بښي؛خو چاچې د خپلې ښځې مهر نه وي ورکړى او چاچې د مزدور،مزدوري خوړلې وي او څوک چې ازاد انسان وپلوري (؛نو دا ګناهونه نه بښل کېږي) . ( الکافي ٥\٣٨٢)

 

ځانګړې اجازه

ðيو شمېر يهوديان پېغمبر اکرم ته راغلل او پوه يې ترې وپوښتل : هغه اوه کومې اجازې دي،چې پاک خداى په پېغمبرانوکې تا ته او په امتونو کې يوازې ستا امت ته ورکړې دي . ورته يې وويل : خداى ماته د فاتحې سورت ، اذان ، په جومات کې په جمعه لمونځ کول،د جمعې ورځ،پر مړي د جنازې لمونځ کول،په جهر د ګهيځ،ماښام او ماسخوتن د لمونځونو کول را ډالۍ کړي دي او زما امت ته يې اجازه ورکړې،چې د ناروغيو او سفر (د شرايطو په پامنيوي سره)  پر مهال فرضي عبادات سپک تر سره کړي او د امت ګناهګاران مې له شفاعته برخمن شي . (الاختصاص : ٣٩ مخ )

 

احتکار

ðڅوک چې تر څلوېښتو ورځو زيات خواړه احتکار کړي؛نو د جنت بوى پرې حرامېږي،حال داچې د جنت بوى د پينځوسوکلو واټنه بوى کېږي .( مستدرک الوسايل١٣\٢٧٣ )

ðکاسب له روزۍ برخمن دى؛خو محتکر د خداى له لعنته . (الاستبصار  ٣\١١٤)

ðپېغمبر اکرم احتکار حرام او پر محتکر يې لعنت ووايه او و يې ويل:هغه ملحد دى،چې د مسلمانانو  په  بازار کې احتکار کوي. (الطباطبايي محمد حسين؛محمد في مراه الاسلام :83 مخ.

ðڅوک  چې  مال  د ګرانېدو لپاره 40 ورځې احتکار کړي؛خداى ترې  بې  زاره  دى ابن عبد ربه؛ العقدالفريد:5 ټوک،119مخ، دارالکتب العلميه بيروت ،1987م.

 ðسوداګرو! سر مو جګ کړئ !لار مو روښانه ده،تاسې ټول به د قيامت پر ورځ  فاسق او خيانت کوونکي راپاڅېږئ؛خو هغوى، چې ريښتينولي يې په تجارت کې جامه  کړې وي. قطب محمد علي؛ نظام الاسلام السياسي : مطبعه الوفا مصر،1406 ه،ق _1986 م ..

ðخداى تعالى بندګان لري،چې هغوى ته يې نعمت وربښلى او تر هغه چې بښنه لري؛نو نعمت به يې په لاسو کې وي او هغه مهال، چې بخيلان شي؛نو نعمت به ترې واخستل شي او نورو ته به ورکړل شي. السنهوري عبدالرزاق؛ فقه الخلافه :39 مخ،الهيته المصريه للکتاب، 1989 م..

ðڅوک چې سود وخوري؛نو خداى به يې د خوړلې سود هومره ګېډه د دوزخ له اوره ډکه کړي او که چېرته شتمني ترې وساتي؛نو خداى به يې يو عمل هم قبول نه کړي او تر هغه چې يو پوټى سود ورسره وي؛نو خداى او پرښتې پرې لعنت وايي.)) بدوى عبدالرحمان؛دورالعرب في تکوين الفکر الاروبي :5 مخ. لويس برنارد؛ اهتمام الانګليز بالعلوم العربيه : 4_3 مخونه.

 

 

اخلاص

ðهر  حق ته يو حقيقت وي او بنده هله د اخلاص حقيقت ته رسېداى شي، چې د کړې چار له امله يې ښه نه ايسي،چې وستايل شي. (مستدرک الوسايل ١\١٠١)

ðکه بنده څلوېښت ورځې د خداى لپاره اخلاص وکړي؛نو پر ژبه به يې له زړه څخه د حکمت چينې راوبهېږي . (بحارالانوار ٦٧\٢٤٢)

ðجبرييل راته د “صفا” او “مروه”د غرونو په منځ کې راغى او و يې ويل : ((محمده ! ستا د امت پر هغه چا دې خوښې وي،چې د اخلاص له مخې ووايي : بې له “الله” بل “خداى او معبود” نشته.)) ( ثواب الاعمال  ٥مخ )

 

ښه خوى

ðد قيامت پر ورځ چې د انسان کړنې تلل کېږي؛نو ښه خوى به يې خورا دروند وي . ( الکافي ٢\٩٩ )

ðکه څوک د پښو له نوکه د تندي تر وېښتانو پورې له ګناه ډک وي؛ خو که (لاندې)څلور خويونه ولري؛نو پاک خداى به يې ګناهونه پر ثواب واړوي .( ١) رښتيا ويل (٢)حيا (٣) ښه خوى (٤) او شکر. (الکافي  ٢\١٠٧)

ðښه خوى نيم دين دى . ( وسائل ١٢ \ ١٥٤)

ðنېک خوىه وسئ؛ځکه ددې ځانګړنې خاوند هرومرو جنتي دى . له بد خویۍ ځان وژغورئ ؛ځکه بدخويه هرومرو دوزخي دى . (وسايل١٢ \ ١٥٢)

ðانسان زياتره په “الهى تقوا” او “ښه خوى”جنت ته ننوځي . (الکافي  ٢\ ١٠٠)

ðښه خوى، د خوړو ورکړې او د مسلمانانو د وينې ساتنې ته ايمان وايي . (وسايل ٢٤\ ٢٩٠)

ðد خداى د ولي خټه له سخاوت او ښه خوى سره اغږل شوې ده . (مستدرک الوسايل ٧\١٣)

ðد ښه خوى خاوند،د عابد روژه تي په څېر ثواب وړي .( الکافي ٢\١٠٠)

ðپوه شه،چې ښه خوى ګناهونه داسې له منځه وړي؛لکه لمر،چې يخ ويلي کوي او بد اخلاقي، ښې چارې داسې پو پناکوي؛لکه سرکه،چې شات خرابوي . ( بحارالانوار ٧٢\ ٣٢١)

ðپاک خداى بد خویه انسان ته د توبې د توفيق له ورکړې ډډه کوي. وپوښتل شو: څرنګه يا رسول الله ؟ ورته يې وويل : توبه چې وکاږي ؛ نو تر مخکېنۍ ګناه ډېره غټه ګناه کوي . (بحارالانوار ٧٠ \ ٢٩٩ )

 ðناوړه خوى د بداخلاقه سړي د پوزې پېزوان دی،چې واګې يې د شيطان په لاس کې دي،د بديو لوري ته یې راکاږي او بدي هغه په دوزخ کې غورځوي . ( مستدرک الوسايل ١٢\٧٦)

ð په مؤمنانو کې هغه تر ټولوغوره دى،چې خوى يې تر نورو ښه وي . (ابوداوود -الدارمي )

ð د قيامت پر ورځ د کړنو په تله کې تر ټولو دروند څيز ښه خوى دى . (بيهقي)

ðپه تاسې کې د ايمان له پلوه تر ټولوغوره،د ښه خوى خاوند دى . (تحف العقول: ٤٥مخ)

ð ښه خوى مينه زياتوي . ( مشکاة الانوار: مخ ٧٠ )

ðد کړنوپه تله کې ،تر ښه خوى درانده بل څه نشته  . ( عيون اخبارا لرضا  ٢/٣٧ )

ðبېشکه چې خداى رفيق او نرم چلنه دى اوپه هرکارکې نرمي خوښوي . ( کنز: مخ ٥٣٧٠)

ð مؤمن په ښه خوى د شپې د تهجد کوونکيو او همېشنيو روژه تيانو مقام ته رسي . ( ابوداوود )

ð زه مبعوث شوى يم ،چې (په ټولنه کې) اخلاقي ځانګړنې د کمال تر بريده ورسوم .(الموطا- احمد )

ðد ښه خوى خاوند تر ټولو بشپړ مؤمن دى . ( ابوداوود – الدارمي)

 

ادب

ðښه ادب د سليم عقل شتون راښيي .( ارشادالقلوب  ١\١٩٩)

ðتر ادب  ښه ميراث نه شته . ( دنهج البلاغې شرح ١٠ \ ١٢٢ )

 

 

آذان

ðد چا چې اولاد وشي ؛نو په ښي غوږ کې دې ورته اذان او په کېڼ کې دې ورته اقامه ووايي،چې له شيطانه خوندي وي .(مستدرک الوسايل  ١٥\١٣٧)

 

ميراث

ðوژونکى،چې د وژل شوي وارث وي؛نو ميراث يې نشي وړاى . (الکافي ٧\١٤١)

ðکه د لوی لاس د وژنې ديه (بيه) واخستل شي؛نو دا د نورو مالونو په څېر په ارث کې شمېرل کېږي . ( تهذيب الاحکام ٩\ ٣٧٧)

 

واده

ðڅوک چې غواړي زما په څېر وي ؛نو زما د سنتو لاروي دې وکړي او يو سنت مې  واده دى .( الکافي ٥\٤٩٦)

ðڅوک چې واده وکړي؛نو نيم دين يې ساتل کېږي او د نيم نور لپاره دې له خدايه ووېرېږي . ( الکافي ٥\٣٢٨)

ðله خپل سيال سره واده او کوروالى وکړئ او خپل څاڅکي ته وړ ځاى غوره کړئ . ( الکافي ٥\٣٣٢)

ðپه واده روزي ولټوئ   .( مستدرک الوسايل ١٤\١٧٣)

 

اسلام او د مسلمانانوحقوق

ðد مسلمانانو له حقوقو يو دا هم دى،چې که څوک په سفر وځي؛نو خپل دوستان دې خبر کړي او د دوستانو له حقوقو دادي،چې د راستنېدو پر وخت دې ليدو ته یې ورشي . (الکافي ٢\١٧٤)

ðله مسلمان ورور سره د سړي دوستي په درېوځانګړنو ولاړه ده : ( ١) په ورين تندي ورسره ليده کاته کوي(٢) په غونډه کې ځاى ورکوي (٣) او په ډېر غوره نوم يادوي يې . (الکافي ٢\٦٤٣)

ðڅوک چې د خپل مسلمان ورور په خبرو کې ولوېږي،داسې به وي؛ لکه چې پرمخ يې وهلى وي .( مشکاة الانوار ١٨٩مخ )

ðڅوک چې د خپل مسلمان ورور کور ته ننوځي،تر راوتو پورې پرې امير وي . ( الکافي ٢\٦٥٩)

ðد چاچې له مسلمان ورور سره دوستي وي ؛نو لازم ده ،چې نوم،د پلار نوم،ټبر نوم او د کورنى نوم ترې وپوښتي؛ځکه واجب حق او سمه وروري،ددې څيزونو پوښتل دي او که داسې و نه کړي؛نو پېژندګلو او پوهه يې احمقانه ده . (مصادقة الاخوان : ٧٢)

  ðد مړ مسلمان درناوى،د ژوندي مسلمان په څېر دى . (تهذيب الاحکام : ١\٤١٩)

ðپر يو بل د مسلمان له حقوقو يو دا(هم ) دى،چې که تر څنګ یې کېني؛نو ځاى ورکوي .( مکارم الاخلاق : ٢٥مخ )

 ðڅوک چې د مسلمان ورور کتو يا پوښتنې ته ورشي؛نو پاک خداى ورته وايي:ښه راغلې او جنت دې هستوګنځى دى .(مستدرک الوسايل :١٠ \٥٨١)

ðکه د خپل مسلمان ورور زړه دې خوشحاله کړ؛نو بښنه دې واجبېږي . (کشف الغمه ١\٥٨١)

ðڅوک چې په وسله خپل مسلمان ورور وګواښي؛نو د پرښتو لعنت دې ورباندې وي،چې وسله یې نه وي لرې کړي . (النوادر للراوندي : ٣٣مخ )

ðد مسلمان پر يوبل له حقوقو دي چې : ( ١) د ليدو پر وخت د سلام اچول ( ٢) د پرنجي پر وخت ورته د روغتياهيله کول (٣) که ناروغ شي پوښتنې ته يې ورتلل (٤) بلنه يې ومني (٥)چې مړ شي شهادت پرې ورکړي (٦) څه چې ځان ته خوښوي،هغه ته يې هم خوښ کړي (٧) او چې ورسره حاضر نه و؛ نو خير يې وغواړي . (الاختصاص٢٣٣مخ )

ðڅوک چې خپل مسلمان ورور ته عفوه وکړي او ترې تېر شي؛نو پاک خداى به له ده تېر شي .(مستدرک الوسايل ٩\٧ )

 

د خوړو ورکړه

ðڅوک چې نورو ته خواړه ورکوي؛نو خداى تعالى يې هرومرو بښي . (الکافي ٤\٥٢)

ðيوه سړي رسول اکرم  وپوښت : کوم کار تر نورو غوره دى؟ ورته يې وويل : د خوړو ورکړه او غوره خبرې کول . (الماحسن ۱/ ۲۹۲)

ðښه خوى،د خوړو ورکړه او د وينې د تویېدنې مخنيوي د ايمان يوه برخه ده . ( بحارالانوار  ٦٧\٣٩٢)

ðجنت د مبارک حج بدله ده. رسول اکرم وپوښتل شو:مبارک حج څه دى ؟ورته يې وويل :غوره خبرې کول او د خوړو ورکړه. (عوالي الاللي ٤\٣٣ )

ðخداى تعالى وايي:څوک چې په مړه ګېډه وېده شي اومسلمان ورور يې وږى وي؛نو پر ما یې بیخي ايمان نه  دى راوړى .(بحاالانوار ٧١\٣٨٤)

 ðقسم پر خداى،چې د مؤمن د اړتيا لرې کول  تر روژې نيولو او يوې مياشتې اعتکافه ښه دى .(مصادقة الاخوان:۴۲)

 

مشري او چارواکي

ðکوم سړى،چې دا درې ځانګړنې ولري ،چارواکي ورته روا ده : ( ١) داسې پرهېزګاري ولري،چې له ګناه يې وژغوري (٢)صبرناک وي، چې پر خپلې غوسې برلاس شي (٣) او له خپل چاپېريال سره د لوراند پلار په څېر چلن وکړي .(الکافي ١\٤٠٧)

 ðد عادل واکمن يو ساعت لاروي تر اويا کالو عبادته غوره ده . (الکافي  ٧\١٥٧)

ðڅوک چې ومري؛خو د خپلې (زمانې) امام يې نه وي پېژندلى؛نو په جاهليت کې به مړ شوى وي . ( الکافي ١\٣٧٧)

ðڅوک چې ومري ؛خو مشر پرې مشري و نه کړي ؛نو په جاهليت کې به مړ شوى وي . ( دامام احمد مسند ٤\ ٩٦)

ðڅوک چې ومري؛خو له مشر سره د بيعت مسؤوليت ورترغاړې نه وي؛نو په جاهليت کې مړ شوى .( صحيح مسلم ٦\٢٢)

ðڅوک چې ومري؛خو د مشر د اطاعت مسؤوليت يې پر غاړه نه وي اخستى؛نو په جاهليت کې به مړ شوى وي . (د امام احمد حنبل مسند٣\ ٤٤٦)

ð حضرت جابر بن سمرة وايي : يوه ورځ رسول اکرم ( ص) وويل : روزګار پاى ته نه رسي؛خو داچې “دولس خلفا” حکومت وکړي  بيا يې څه وويل : زه پرې پوه نه شوم .پلار مې وپوښته؛راته يې وويل : دا ټول به له قريشو وي . ( صحيح بخاري  ٨\١٢٨)

 

پرنېکيو امر و له بديومنع

ðامت مې،چې “پر نېکو د امر او له بديو د منع” په باب ناغېړي وکړي؛نو له خداى سره به يې د جګړې شپېلۍ غږولې وي .(الکافي  ٥\٥٩)

ðډېر ناوړه قومونه هغه دي،چې د نېکيو پر کوونکيواو د بديو پر منع کوونکيو تورونه تپي . ( مستدرک الوسايل  ١١\ ٣٧٠)

ðد خپل امت يو څوک مې په خوب کې وليد،چې د عذاب پرښتې پرې له هرې لورې راټولې وې بيا يې ورپسې پر نېکيو امر او له بديو منع راغلل او د عذاب له پرښتو يې وژغوره او له پرښتوسره يې ملګری کړ . (مشکاة الانوار : ٤٨ مخ )

ðد خداى رسول ته وويل شول : موږ تر هغه پر نېکيو امر نه کوو،څو مو پخپله ټولې نېکۍ پر ځان عملي کړې نه وي او تر هغه له بديو منع نه کوم،څو مو تر ټولو بديو لاس نه وي وينځلى . پېغمبر اکرم ورته وويل: داسې مه کوئ،ان که پر ټولو نېکيو مو عمل نه وي کړى؛خو پر نېکيوامر وکړئ اوکه تر ټولو بديو مولاس نه وي اخستى؛خو بيا هم له بديو منع وکړئ . ( ارشادالقلوب  ١\١٤ )

ðتر ما وروسته،چې”زنا” راښکاره شي ؛نو ناڅاپي مړينې به ډېرېږي او چې ډنډۍ وهل ډېر شي؛نو خداى هغوى په سوکړې او زيان اخته کوي او چې د زکات ورکړه منع شي؛نو ځمکه د کرنې،مېوو او کانو له پلوه له خپل برکته لاس اخلي او چې د خداى احکام واړول شي : له ظلم او دښمن سره لاسنيوى ډېرېږي او چې ژمنې ماتې شي؛خدای پرې دښمن برلاسوي او چې زړه سوى له منځه ولاړ شي؛نو شتمني د بدانو په لاس کې لوېږي؛نو غوره خلک چې دعا ګانې  کوي؛نه به قبلېږي . (علل الشرايع ٢\٥٦٤)

ðيو سړي پېغمبراکرم وپوښت : په اسلام کې څه غوره دي ؟ ورته يې وويل : پر خداى تعالى ايمان . بيا يې وپوښت : تر ده څه غوره دي ؟ ورته يې وويل :زړه سوى . ورپسې ویې پوښت : تر زړه سوي څه غوره دي؟ ورته يې وويل : پر نېکيو امر او له بديو منع . سړي بيا وپوښت : خداى پر کومې کړنې غوسه کېږي؟ ورته يې وويل: د خپلوۍ د اړيکو په شلولو . بيا يې وپوښت : تردې ډېر بد څه دي؟ورته يې وويل : پر بديو امر او له نېکيومنع کول . ( الکافي  ٥\٥٨)

ðدا به څرنګه وي،هغه وخت چې ښځې مو فاسدې او ځوانان مو فاسقان شي او (حال داچې ) پر نېکيو امر او له بديو منع به نه کوئ؟ وپوښتل شو: داسې ورځ به راشي ؟ آنحضرت ورته وويل : هو او تر دې ډېر بد به څرنګه وي،هغه وخت چې پر بديو امر او له نېکيو منع کوئ ؟ وپوښتل شو : رسول الله! داسې ورځ به هم راشي؟ آنحضرت ورته وويل : هو !  او تردې به ډېر بد څرنګه وي ،هغه وخت چې ووينئ (ښه = معرفو)) به (( بد= منکر)) او بد به ښه شوي وي .(تهذيب الاحکام : ٦\ ١٧٧)

 

امنيت

ðامنيت او روغتيا دوې (داسې ) لورنې دي،چې ناشکري يې کېږي . (بحارالانوار  ٧٨\١٧٠)

ðامنيت او روغتيا ناپېژندل شوي نعمتونه دي .(روضة الواعظين ٢\٤٧٢)

نهيلى

ðخداى تعالى له هغه بنده په تعجب کې دى،چې د خپل پالونکي پراخه رحمت ويني؛خو له رحمت او بښنې يې نهيلېږي.(ارشادالقلوب ١\ ١٠٩)

 

انتظار

ðپه جومات کې لمانځه ته انتطار اېستل عبادت دى؛خو دا چې غيبت پکې و نه کړي . ( الکافي ٢\٣٥٦)

ðتر لمانځه وروسته ورپسې لمانځه ته انتظار اېستل،د جنت يوه زېرمه ده . (تهذيب الاحکام ٢\ ٢٣٧)

ðزما د امت ډېر غوره کړه،د خداى له لوري پراخۍ ته سترګې پر لارېدل دي . (عيون اخبار الرضا ٢\٣٦)

ðپراخۍ ته سترګې پر لارېدل غوره عبادت دى . (بحارالانوار: ٥٢\١٢٥٩)

 

زغم

ðزغم او تېرېدنه تر غچ اخستنې ډېره خوندوره ده . (مستدرک الوسايل : ١١\٢٩٠)

پند

ðمړينه غوره پند ورکونه ده.عقل غوره لارښود دى . پرهېزګاري غوره توښه ده.عبادت غوره بوختيا ده .خداى غوره ملګرى دى او قرآن غوره وينا ده .( مصباح الشريعة : ١١٣مخ)

ðقبرونو ته ورشئ او اخرت درياد کړئ او مړيو ته غسل ورکړئ ؛ ځکه لمبول يې ثواب لري او ښکاره پند دى او پر جنازو لمونځونه وکړئ،چې غمګين مو کړي؛ځکه غمګين د خداى د رحمت تر سيورې لاندې دى . (مجموعة ورام ١\٢٨٨)

ðرسول اکرم جبرئيل ته وويل : ما ته نصيحت وکړه . جبرئيل ورته وويل: محمده ! څنګه چې غواړې هماغسې ژوند وکړه؛ خو په پاى کې مرې  او څه چې غواړې،خوښ دې وي؛خو په پاى کې بايد ترې بېل شې او هر کار چې غواړې و يې کړه؛خو په پاى کې به دې له خداى سره ليده کاته وشي او پوه شه،چې لمونځ د مؤمن شرف دى او عزت يې دادى،چې ځان د خلکو د پت او ابرو له تويولو وژغوري .(الخصال  ١\٧)

 

فکر

 ðفکر کول بې سارى عبادت دى . (من يحضره الفقيه ٤\٣٧١)

ðپه جنازې پسې چې ځې؛نو په فکر کولو او له خدايه په وېرې بوخت وسه او پوه شه ،چې ته به هم ورسره يو ځاى شې . (پورته منع )

ðپه فکر کولو دوه رکعته لنډ لمونځ د ټولې شپې تر لمانځه غوره دى . (ثواب الاعمال : ٤٤مخ )

ðکورونه مو جوماتونه کړئ او زړونه مو مهربان کړئ او ډېر فکر وکړئ او د خداى له وېرې ډېر وژاړئ او په نړۍ کې د مېلمه په څېر وسئ او خداى ډېر ياد کړئ . (ارشادالقلوب  ١\٩٤)

انفاق او لګښت

 ðدرې څيزونه د ايمان حقيقت دى : په تنګلاسۍ کې لګښت،له خلکو سره په انصاف چلن او زده کوونکي ته د علم زده کړه .(بحارالانوار  ٢\١٥)

ðڅوک چې مېلمه ته يو درهم لګښت وکړي؛نو داسې به وي؛لکه د خداى په لارکې،چې يې زر زر ديناره لګولي وي (درهم د دينار لسمه برخه دى او هر دينار د سرو يو شرعي مثقال دى) . (ارشادالقلوب : ١\ ١٣٨)

 

اولياء الله

ðد خداى دوستان(اولياءالله)چوپ وي،چې چوپتيا يې د خداى ياد دى، ګوري؛خو کتل يې پند وي،خبرې کوي او خبرې يې حکمت وي،پر لار ځي او تګ يې په خلکو کې د برکت لامل وي او که د ژوند نېټه يې ټاکل شوې نه وه؛نو ارواح يې په تنو کې د عذاب له وېرې او اجر ته د لېوالتيا لپاره نه پاتې کېدل .( الکافي ٢/ ٢٧٣)

ðد ايمان ډېره ټينګه ريښه دا ده،چې د مسلمان دوستي او دښمني يوازې د خداى لپاره وي او همداراز د خداى له دوستانو سره دوستي او د خداى له دښمنانو سره دښمني یې هم يوازې د خداى لپاره وي . (الکافي ٢\١٢٥ )

ðپه حقيقت کې د خداى د ځانګړيو بندګانو چوپتيا د خداى ياد دى، کتل يې عبرت دى.خبرې يې حکمت دى،پر لارې تګ يې برکت دى او که د مړينې نېټه يې ټاکل شوې نه وه؛نو اروا به يې هڅېکله په تن کې د خداى  د عذاب له وېرې او ثواب ته د لېوالتيا لپاره نه ارامېده . (الکافي  ٢\ ٢٣٧)

 

ايمان

ðپوهه د ايمان ډېره غوره مرستیاله ده .( کافي ١\٤٨ )

ðبنده چې خپله ژبه وساتي؛نو د ايمان په حقيقت به پوه شي . (کافي  ٢\١١٤)

ðله خلکو سره ښه چلن کول نيم ايمان دى .( ٢\١١٧)

ðاودس او پاکوالى نيم ايمان دى .( النوادرللراوندي : ٤مخ )

ðڅوک چې توکم پالی وي یا ورته توکم پالي وشي؛نو له غاړې يې د ايمان کړۍ وتلې ده . ( الکافي ٢\٣٠٨)

ðسړى چې زنا کوي ؛نو د ايمان روح ترې بېلېږي بيا يې وويل : دا د خداى کلام دى ،چې هغه يې په خپل روح تائيد کړ،چې همدا د خداى روح دى،چې له سړي بېلېږي . ( الکافي ٢\ ٢٨٠)

ðايمان په درېو څيزونو بشپړېږي : د خوښۍ پر مهال خوشحالي يې باطلو ته نه راکاږي ،د غوسې پر وخت يې غوسه له حقه نه لرې کوي او د وسمنۍ پر وخت د چا مال ته لا س نه اوږدوي .( الکافي ٢\٢٣٩)

ðايمان څلور نښې لري : د خداى پر وحدانيت اقرار کول،پر خداى ايمان، د خداى پر کتابو ايمان او په الهي استازيو ايمان درلودل . (بحارالانوار  ١٠ \١١٩ )

 ðاى هغو،چې پر ژبه مو ايمان راوړى او زړه مو په ايمان سوچه کړى نه  دى! د مسلمانانو بد مه واست،عيبونه يې مه راسپړئ،څوک چې دا کار وکړي ؛نو خداى به يې عيبونه راښکاره کړي او خداى،چې د چا بدي رابربنډې کړي؛نو که په خپل کور کې هم وي،رسوا به يې کړي .( الکافي  ٢\ ٣٥٤)

ðعلي ! د مؤمن له ځانګړنو دا دي چې: د فعال فکر خاوند دى . اساسي او بنسټيز ذکر کوي . ډېر پوهېږي . د ستر زغم خاوند دى . ښه بحث کوي او د متقابل احترام خاوند دى . سينه يې تر ټولو پراخه ده . ځان ډېرکوچنى ګڼي . خندا يې موسکا ده . راټولېدنه يې ښوونه ده . غافلو ته يې وريادوي .د ناپوهانو ښوونکى دى . چاچې ازار کړى وي،دى يې نه ازاروي .څه چې ورپورې اړه نه لري،لاسوهنه پکې نه کوي . د نورو پر کړاو نه خوشحالېږي . د چاغيبت نه کوي . له محرماتو بېزاره دى. شبهاتوته نه ننوځي . ډېر لوروونکى دى . لږ تکليف رسوونکى او د بې کسو ملاتړ دى . د پلار مړيو پلار دى .خوشحالي يې په څېره کې وي او غوسه يې په زړه کې . له خپل فقره خوشحاله او تر شاتو ورته خوږ دى . د سختيو پر وړاندې سختېږي . د چا رازونه  نه رابرسېروي اوپردې نه څيري .خپلې کړنې په ځير ترسره کوي . کاته يې خواږه دي . نرمي يې په مړانه ده اوچوپ دى . که د ناپوهۍ چلن ورسره وشي يا څوک ورسره بدي کوي ؛نو زغمناک دى . د لويانو درناوى کوي او پر کوچنيانو لورنه. امانت ساتى دى او له خيانته لرې . تقوا او پرهېزګاري يې ملګرې ده . حيا يې تړون دى . څارن او لږ  تېروځي . مؤدب دى  او خبرې يې له حکمته ډکې دي . عذر مني او د چا غيبونه نه راسپړي . دروند،زغمناک، راضي او شکر اېستونکى دى . لږې خبرې کوي او رښتيا وايي . صميمي او پاکلمنى دى . زغمناک،ملګرى،ځانساتى او با شرفه دى . لعنت ويوونکى، دروغجن،غيبت کوونکى،کنځل  مار، کينه کښ او کنجوس نه دى . خوشحالوونکی او ورين تندى دى،ژر نه خپه کېږي او چټي انسان نه دی . په هر کار کې ډېر غوره يې غواړي . ډېر ښکلي خويونه غواړي . خداى يې ملاتړ دى او په توفيق يې تاييدېږي هم . له وسمنۍ سره سره اسان نيونکى دى او په يقين هوډ نيسي . له خپل دښمن سره بې انصافي نه کوي اوڅه چې يې خوښېږي ، د ښويېدو لامل يې نه ګرځي. په سختيو کې زغمناک دى . پر چا تېرى نه کوي .څه چې يې زړه غواړي،نه يې کوي .نیستي يې شعار وي .زغم يې مخ روڼى وي . لګښت يې لږ وي او له نوروسره لاسنيوى کوي . ډېرې روژې نيسي ، لمونځ کوي او لږ ويده کېږي . ډارن نه وي،کړه يې پاک سوتره وي . د وسمنۍ پر مهال له نورو تېرېږي او بښي يې.پر وعده ولاړ وي . روژې ته لېوال وي . په عاجزۍ لمونځ کوي . کارونه يې ښه وي؛لکه چې څوک پرې څارن دى . سترګې يې ښکته وي . د غځېدلي لاس خاوند وي . د ګدا لاس تش نه پرېږدي .څه چې لاس ته راوړي، کنجوسي پرې نه کوي . تل پر خپلې ورورۍ ولاړ وي . د نېکۍ مانا وي . خبرې  یې ښکلې او په عين حال کې لږې خبرې کوي . له چا سره ژوره دښمني نه کوي او نه يې له چا سره دوستي د پوپناکېدولامل ګرځي .  د خپل دوست باطلې چارې او خبرې نه مني او نه د خپل دښمن پر حق چارو او خبرو سترګې پټوي . څه نه زده کوي؛خو داچې ياد او عملي يې کړي . غوسه او کينه يې لږه؛خو شکر اېستنه يې ډېره وي . د ورځې د خپلې روزۍ په لټه کې وي او د شپې پر خپلو ګناهونو ژاړي .که دنيوي چارې کوي؛نو په خورا ځيرکۍ يې کوي او که اخروي کوي؛نو خورا پرهېزګار وي او په کاروبار کې ټګي نه کوي . په مهربانۍ د خپل ورور له تېروتنې سترګې پټوي او اوږده دوستي کوي . (بحارالانوار ٦٤\٣١٠)

 

بازار

ðد مسلمانانو بازار یې د جومات په څېر  دى؛نو څوک چې ژر راشي تر شپې پورې پکې د کاروبار لومړيتوب لري . (بحارلانوار  ٨٠\٣٨٢)

 

سوداګري

ðروزي لس برخې لري،چې نهه يې په راکړه ورکړه او يوه يې په نورو کې ده . ( من لايحضره الفقيه ٣\١٩٢)

ðخیر ښېګڼه لس برخې لري،چې ډېره غوره يې راکړه ورکړه ده؛خو(په دې شرط) چې په حق وي . (من لايحضره الفقيه٣\١٩٢)

ðبايد هڅه وکړئ؛ځکه دوستان مو په راکړه ورکړه کې درباندې برلاسېږي . قريشو! په سوداګرۍ کې برکت دى او خداى تعالى بې له قسم خور سوداګر بل سوداګر نه نشتمنوي.  (مستدرک الوسايل١٣ \٩)

ðد ټوکرانو سوداګري مستحبه ده اود غنمومکروه ده ؛ځکه په دې کې احتکار او مسلمانانو ته زيان دى اوکه څوک احتکار و نه کړي؛نو سوداګري ورته حرامه نه ده . (دعائم الاسلام ٢\١٦)

ðهر سوداګر ګناهګار دى او هر ګناهګار په دوزخ کې دى؛خو هغه سوداګر چې په حق راکړه ورکړه وکړي .(من الايحضره اولفقيه ٣\١٩٤)

ðډارن سوداګر بې برخې کېږي او د زړور روزي پراخېږي . ( مستدرک الوسايل١٣\ ٢٩٤)

 

بښنه

ðڅوک چې ګهيځ راپاڅي او پر چا د ظلم کولو نيت ورسره نه وي؛نو خداى يې ټول ګناهونه بښي . ( الکافي ٢\ ٢٣٢)

 ðڅوک چې خپل اودس نوى کوي؛نو خداى يې په وار وار  بښي . (مستدرک الوسائل ١\ ٢٩٥)

ðجومات د اخرت له بازارونو دى ؛نو بيه يې بښنه او ډالۍ يې جنت دى.  ( طوسي؛الامالي: ١٣٩ )

ð څوک چې ټولو نارينه وو او ښځمنو مؤمنانو ته د بښنې دعا وکړي ؛ نو د هغوى د شمېر هومره ورته نېکي ليکل کېږي . (طبراني- الکبير)

ðڅوک چې يوه ورځ  د الهي ثواب لپاره مستحبه روژه ونيسي ؛نو بښنه پرې لازمېږي . (پورته)

ðمېلمه چې راځي؛نو خپله روزي له اسمانه راوړي او چې خواړه وخوري ،خداى د کوربه ټول ګناهونه بښي .( الکافي ٦\٢٨٤)

ðڅوک چې دپنجشنبې پر ورځ او د جمعې پر شپه جومات جارو کړي او د سترګې د يوه کونج هومره خاورې ترې پاکې کړي،خداى يې بښي . (ثواب الاعمال : ٣١مخ )

ðڅوک چې د مړي د جنازې لمونځ وکړي؛نو پر ده او يازره پرښتې لمونځ کوي او پاک خداى يې تېر ګناهونه بښي . (مستدرک الوسائل ٢\٢٤٥)

ðپر مړي چې څلوېښت تنه د جنازې لمونځ وکړي او خداى ته د مړي شفاعت وکړي؛نو خداى هغه مړى بښي.(مستدرک الوسائل ٢\ ٢٩٢)

ðڅوک چې پخپله بستره کې ارام پرېوځي او شهادت ورکړي،چې ((لا اله – الالله )) او هم ووايي چې: پر “الله” مې ايمان راوړى او له طاغوته بېزار يم ؛نو خداى تعالى يې ټول ګناهونه بښي . (مستدرک الوسايل ٤\١٨)

ðڅوک چې د قدر پر شپه پوه شي او عبادت پکې وکړي؛نو پاک خداى يې تېر او راتلونکي ګناهونه بښي .(مستدرک الوسايل ٧\ ٤٥٥)

ðڅوک چې مړ شي او له خداى سره يې د ذرې هومره شرک نه وي کړی؛ نو په رښتيا،چې پاک خداى يې بښي . (بحارالانوار ٦\٥)

ðچا ته چې خپل مسلمان ملګرى راشي او د درناوي لپاره يې بالښت ورته کېږدي؛نو پاک خداى دغه (مېلمه پال) بښي.   (مکارم الاخلاق : ٢١ )

ðګناهګار بنده،چې راولاړ شي او په ځير اودس او بيا دوه رکعته لمونځ وکړي او له خدايه بښنه وغواړي؛نو پاک خداى يې بښي .( عوالي الاللي  ١\ ٩٧)

ð څوک چې د غچ اخستو له وسې سره سره بښنه وکړي (؛نو) خداى به يې په سختۍ کې وبښي .( کنز ٣/٣٧٣ )

ðعفوه،بنده ته يوازې عزت وربښي؛نو عفوه وکړئ،چې خداى مو عزتمن کړي .   ( مستدرک ٧/١٦٠ )

ðيو بل ته تېر شئ،چې کينې موله منځه ولاړې شي .( ميزان : ١٣١٧٦ح)

ðهغه بنده خداى ته ډېرګران دى،چې د غچ او خپل حق د اخستو وسه لري ؛خو بيا هم عفوه کوي .( بيهقي )

ðايا د دنيا او اخرت ډېر غوره مخلوقات دروښيم ؟ که چا درباندې تېرى وکړ؛نو و يې بښه . که چا درسره اړيکه پرې کړه؛نو ته يې ورسره مه پرېکوه . څوک چې درسره بدي کوي ؛ ته ورسره نېکي وکړه او څوک چې  تا بې برخې کوي ؛نو څه وروبښه .( الکافي ٢\ ١٠٧)

 ð يو بل ته هرومرو تېر شئ؛ځکه تېرېدنه د وګړي عزت زياتوي؛نو يو بل ته تېر شئ ،چې خداى مو عزتمن کړي . ( الکافي ٢\١٠٨)

ðسپارښتنه درته کوم،چې الهي تقوا ولرې او له خلکو تېر شې . (مستدرک الوسايل ٩\٨)

 

بدمرغي او نېکمرغي

ðڅلور څيزونه د انسان له بدمرغيو څخه دي :ناوړه ګاونډى،ناکاره ښځه . کوچنى کور او د سپرلى ناکاره وسيله.   (مکارم الاخلاق : ١٢٦مخ)

ðبدمرغه هغه دى،چې د خپلې مور په ګېډه کې بدمرغه کېږي او نېکمرغه هغه دى،چې د خپلې مور په ګېډه کې نېکمرغه کېږي.  (تفسيرقمي  ١\٢٢٧)

تبصره : د حديث مانا دا ده،چې د مور ګېډه د انسان په نېکمرغۍ او بدمرغۍ کې دومره اغېز لري او د مور دنده دومره درنه ده، نه داچې له روايته د “جبر” د لارې مفهوم واخلو .

ðد مسلمان سړي له نېکمرغيو يو هم د سپرلۍ ښه وسېله ده.    ( الکافي  ٦\٥٣٦)

ðد مسلمان سړي له نېکمرغيو يوه دا ده ،چې اولاد يې ورته،مېرمن يې ښکلې او دينپاله وي . (قرب الاسناد : ٣٧مخ )

ðد سړي له نېکمرغيو يو هم د صالح اولاد درلودل دي . (عدة الداعي : ٨٦)

ðپينځه څيزونه له نېکمرغيو څخه دي 🙁 ١) نېکه ښځه ( ٢) نېک اولاد (٣) نېک دوستان ( ٤) داچې د وګړي روزي د اوسېدانې په ښار کې یې وي ( ٥) او له “آل محمد”سره مينه (مستدرک الوسايل ١٣\٢٩٢)

ðد مسلمان له نېکمرغیو یوه دا ده،چې کور یې پراخه وي . (الماحسن ۲ / ۶۱۱ )

ðد خداى د دوستۍ او نېکمرغۍ نښه دا ده،چې مړينه د انسان په سترګو کې وي او هيلې يې ترشا کېږي او د شيطان د دوستۍ او بدمرغۍ نښه دا ده،چې هيلې د انسان په سترګو کې وي او مړينه يې ترشا کېږي . رسول اکرم وپوښتل شو: څوک ډېر ځيرک مؤمنان دى؟ ورته يې وويل : هغوى چې مړينه ډېره يادوي او تر ټولو ډېر ورته چمتو وي . (وسايل ٢\٤٣٥)

بدعت

ðخداى د بدعتي توبه نه قبلوي. رسول اکرم وپوښتل شو: څرنګه ؟ ورته يې وويل : ځکه له دې کار سره له زړه مينه لري . ( الکافي ١\٥٤)

ðهر بدعت بې لاري ده او ټولې بې لارۍ په دوزخ کې دي ( دا روايت ټول اسلامي مذاهب مني ) .( الکافي ١\ ٥٦ )

ðمسلمانانو! ډېره غوره لارښوونه،د محمد(عليه اسلام ) لارښوونه ده  او ډېرې غوره خبرې د خداى کتاب دى او ډېر ناوړه کار په دې کې لاسوهنه ده؛په دې پوه شئ،چې هر بدعت بې لاري ده او د ټولو بې لاريو پايله د دوزخ اور دى . (الامالي للمفيد ١٨٧مخ )

 ðتل پر آثارو او سنتو عمل کول، که څه هم لږ وي،د خداى پر وړاندې غوره دي او پر دې سربېره،تر دې هم ډېرګټور دي،چې بدعت رامنځ ته کړي يا “هوى او ځاني غوښتنو” ته مخه کړي؛پوه شئ چې بدعت او “هوى پالنه” د بې لارۍ لامل دي او هره بې لاري بدعت دى او د  هر بدعت پايله د دوزخ اور دى . ( مستدرک الوسايل١٢\٣٢٥)

ðخلکو! زه به ژر له تاسې ولاړ شم او د غيبو نړۍ ته ځم. درته سپارښتنه کوم،چې له کورنۍ سره مې ښه وکړئ او له بدعتونو مو ډاروم؛ځکه هر بدعت بې لاري ده او بېشکه،چې هر بې لارې په دوزخ کې دى . ( کفاية الاثر: ٤٠مخ )

ðلاروي وکړئ او بدعت مه پرېږدئ ؛ځکه هر بدعت بې لاري ده او هر بې لارې په دوزخ کې دى . ( دعائم الاسلام ١\٨٩)

ðبېشکه چې لږ سنت تر ډېرو بدعتو غوره دى . (نهج الحق : ٢٨٩مخ )

ðله بدعت اېښوونکيو سره خبرې او ناسته ولاړه مه کوئ؛ځکه خلک به درته د هماغه په څېر ويني،بيا رسول اکرم وويل :سړى د خپل ملګري اودوست پر دين وي . (الکافي ٢\ ٣٧٥)

ðتر ما وروسته مو،چې شکي او بدعتي وليد،خپله بېزاري ترې په ډاګه کړئ او ډېر لعن (پرې ووايي) او و يې رټئ او ورسره خبرې مو (يوازې او يوازې) مبارزه وي او ويې ډاروئ،چې تمه و نه کړي،چې اسلام خراب کړي او خلک ترې وډاروئ او له بدعته يې هيڅ مه زده کوئ،چې خداى به په دې کار ثوابونه درکړي او په آخرت کې به مو درجې لوړوي . ( الکافي ٢\ ٣٧٥)

 

شر او بدي

ðايا ډېر ناوړه خلک دروښيم؟ ورته وويل شو : هو رسول الله! ورته يې وويل : څوک چې له خلکو سره دښمني وکړي او خلک يې دښمن وګڼي. ايا تر دې هم ډېر ناوړه دروښيم؟ځواب يې ورکړ: هو! آنحضرت ورته وويل :څوک چې عذر منونکى نه وي او معذرت غوښتنه و نه مني او له ګناه تېر نشي . بيا يې وويل : ايا تر دې هم ډېر ناوړه دروښيم؟ خلکو وويل : هو ! آنحضرت وويل : هغه چې له شره يې خوندي نه وى او د ښو هيله ترې نه کېږي . ( من لايحضره الفقيه ٤\٤٠٠ )

 

برابري

ðهغه حقيقي مؤمن دى،چې له خپلې شتمنۍ غريب ته څه ورکړي او له خلکو سره په انصاف چلن وکړي . ( الکافي ٢\١٤٧)

ðډېرې غوره کړنې له خلکو سره په انصاف چلن کول او د خداى په لار کې د ورورۍ ورکړه ده او په هر حال د خداى ياد دى .(الکافي: ٢\١٤٥)

ðمؤمن پر مؤمن د خداى له لارې اوه واجب حقوق لري 🙁 ١) يو بل ته په درنه سترګه کتل(٢)له زړه ورسره مينه درلول ( ٣) له خپلې شتمنۍ ورته ورکړه ( ٤) غيبت يې حرام ګڼل (٥) د ناروغۍ یې پوښتنه(٦) په جنازه کې يې ګډون کول (٧) او تر مړينې وروسته يې يوازې په ښو يادول .( من لايحضره الفقيه : ٤\٣٩٨)

 

د رسول اکرم ورور

ðعلي! ته پر دنيا او آخرت زما ورور يې . ( بحارالانوار  ٨\١٨٥)

 

برکت

ðخواړه مو په اندازه کړئ ؛ځکه په اندازه خوړو کې برکت وي . (الجعفريات : ١٦٠ مخ )

ðاولادونه له اولادنيو مېندو وغواړئ؛ځکه چې په رحمونو کې يې برکت وي .( الکافي  ٥\٤٧٤)

ðبرکت لس برخې لري،چې نهه يې په سوداګرۍ کې او يوه يې په نورو کې ده .( الخصال ٢\ ٤٤٥)

ðښوروا مو،چې خوړه؛نو له څنډې يې وخورئ؛ځکه پورته برخه يې برکت دى .( صحيفة الرضا : ٥١مخ )

ðد ناروغ پوښتونکى د خداى په برکت کې غوټې وهي او چې کېني؛ نو پکې ډوبېږي . ( کنزالفوائد ١\ ٣٧٩)

ðپه راکړه ورکړه کې برکت دى . ( مستدرک الوسايل ١٣\٩)

ðد کورنۍ د کوم غړي،چې د کوم پېغمبر وي ؛نو هغه تل په برکت کې وي .( دعائم الاسلام ٢\ ١٨٨)

ðخپلو کورو ته چې ننوځئ؛نو سلام واچوئ؛ځکه دا کار پر کور برکت نازلوي او له کور سره د پرښتو د مينې لاملېږي . (بحارالانوار ٧٣\٧)

ðد ډوډۍ کوچنى ټيکلى جوړوئ،چې په هر يوه کې برکت دى . ( الکافي  ٦\٣٠٣)

ðڅوک چې مسلمان ورور خپل حق ته له رسېدو منع کړي؛نو خداى هغه د روزۍ له برکته بې برخې کوي؛خو داچې توبه وباسي . (من لايحضره الفقيه ٤\١٥)

ðپه ټولي کې برکت دى او د يوه خواړه دوو تنو ته او دوو خواړه څلورو تنو ته بسنده دي .( مستدرک الوسايل ١٦\٢٣٠)

 

کينه او دښمني

ð له کينې ډډه وکړئ؛ځکه نېکي داسې خوري؛ لکه اور،چې خس سوځوي . (ابوداود)

 ð کينه دين توږي . ( احمد- ترمذي)  

ð ما ته په اوونۍ کې په دوشنبه او پنجشنبه د امت کړنې راوړاندې کېږې؛نو هر مؤمن بښل کېږي؛خو هغوى چې ترمنځ يې کينه وي او ورته ويل کېږي :دواړه تر هغه پرېږدئ،چې زړونه يې له کينې پاک شوي نه وي. (مسلم)

ð خلکو! په يقين شيطان په کينه آدم له جنته راوېست؛نو کينه مه کوئ،چې نېکې چارې مو پوپنا کوي او ګامونه مو ښويوي . آدم په يوې تېروتنې له جنته وشړل شو،حال داچې خداى غوره کړى و؛نو له تاسې سره به څه وکړي،حال داچې تاسې،تاسې ياست؟ (مستدرک الوسايل ١٢/ ١٦ )

ð”د خداى لورنې دښمنان لري” . وپوښتل شو،چې دا څوک دي؟ آنحضرت ورته وويل : خداى چې چا ته څه ورکړي وي؛نو د ده ورسره کينه وي . (تخريج زين الدين ابى الفضل العراقى الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالي ٣ / ١٧)

ðکينه ښېګڼې داسې سېځي؛لکه اور چې خس سوځوي . (تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالي ٣ / ١٧)

ð “ژر دى،چې د امتونو درد او ناروغۍ زما امت ته هم ورسي” اصحابو وپوښت : دا څه دي؟ آنحضرت ورته وويل: غرور، مستي، نه مړښت، پر دنيا سيالي،له يو بل لرې کېدل او خپلمنځي کينه،تر هغه چې يو سرغړاند راپورته او بيا ګډ وډي شي. (تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالي ٣ / ١٧)

ð د وړاندنيو امتونو ناروغۍ؛لکه کينه او….. درننووتي دي.  (پورته منبع)

 ðکينه يوازې په دوو ځايو کې سمه ده : ( ١) خداى،چې چا ته شتمني او دا وسه ورکړې وي،چې د خداى په لار کې يې ولګوي . ( ٢) خداى،چې چا ته حکمت ( او پوهه) ورکړې وي او له مخې يې پرېکړې کوي او نورو ته يې هم ورزده کوي . (ناصف ٣ / ٥٧ – ٥٨)

ðکينه يوازې په دوو ځايو کې ښايي : ( ١) خداى،چې چا ته قرآن ورکړى وي او شپه و ورځ پرې بوخت وي . ( ٢) خداى،چې چا ته شتمني ورکړې وي او شپه و ورځ يې لګوي . (نووي ١ / ٧٤٢)

ðد ايمان ډېره ټينګه ريښه داده،چې دوستي او دښمني يوازې د خداى لپاره وي او پردې سربېره،د خداى له دوستانوسره دوستي او له دښمنانو سره يې دښمني هم يوازې د خداى لپاره وي . ( المقفعة : ٣٣مخ )

ðکينه او دښمني دين له منځه وړي او د دوو تنو ترمنځ اړيکه ويجاړوي.  (مستدرک الوسايل ١٢\٢٢٥ )

ðد خداى لپاره دوستي او دښمني فرض ده . ( جامع الاخبار: ١٢٨)

ðد ايمان اصل دا دى،چې دوستي او دښمني يوازې د خداى لپاره وي . ( مستدرک الوسايل : ١٢\٢٢٨ )

ðڅوک چې له خلکو سره دښمني کوي (؛نو) خلک له ده سره دښمني کوي .( من لايحضره الفقيه ٤\٤٠٠)

ðکه په چا کې درې څيزونه وي (؛نو) له ما څخه نه دى او زه هم له هغه څخه نه يم : ( ١) د چا چې له علي سره کينه وي ( ٢) زما له کورنۍ سره يې کينه وي ( ٣) او وايي چې ايمان خو (تش) خبرې دي .( بحار الانوار ٢٧\ ٢٢٧)

ðد چاچې علي ښه ايسي؛نو زه به خوښېږم او د چا چې علي بد ايسي ؛ نوله ما سره به يې دښمني وي . ( کشف اليقين : ٢٢٦)

ðد چاچې له “حسنينو” سره کينه وي ؛نو د قيامت پر ورځ به داسې راپاڅي،چې پر تنې به يې غوښه نه وي او زه به يې شفاعت نه کوم . (کامل الزيارات : ٥١مخ )

ðڅوک چې د ورځې(٢٥)ځل مؤمنانو(نارينه او ښځمنو)ته دعا وکړي؛ نو پاک خداى يې له زړه کينه لرې کوي او که خداى وغواړي؛ په “اولياءالله” کې يې شمېري . (الجعفريات :٢٢٣)

ðعلي!زه چې مړ شم؛نو هغه کينې به رابرسېره شي،چې ځينو په دښمنۍ درته په زړه کې اچولي دي او له خپل حقه به دې منع کړي . (الصراط المستقيم٢\١١٦)

ðکينه او ايمان د يوه تن په زړه کې نه ځايېږي.(مستدرک الوسايل ١٢\٣٩٤)

ðنږدې وه،چې بېوزلي د کفرلامل شي او نږدې وه،چې کينه پر قضا وقدر برلاسى شي . ( الکافي٢\ ٣٠٧)

ð کينه او ايمان په يوه زړه کې نه ځايېږي .(مستدرک الوسايل٩\٨١)

ðکينه کښ تر ټولو خلکو لږخوند وړي .(مستدرک الوسايل ١٢\١٩)

ð خوب هېچاته مه وايه ؛خو هغه مؤمن چې کينه کښ او ظالم نه وي . (الکافي ٨\٣٣٦)

ðدښمني او کينه تر تاسې د ړومبنيو ټولو قومونو دردونه دي،چې پرتاسې يې يرغل کړى دى . ( وسايل ١٥\٣٦٧)

ðکينه کښ  له ډېرو لږوخوندونو برخمنېږي . ( فقيه ٤/ ٣٩٤ )

ðله کينې ډډه وکړئ؛ځکه نېکي داسې خوري؛لکه اور،چې خس سوځوي . ( ابوداوود)

 

بنده او بندګي

ðخداى تعالى وايي : کوم بنده،چې غواړم جنت ته يې ننباسم؛نو پر بدني کړاوونو يې اخته کوم ؛ځکه دا کار يې د ګناهونو کفاره ده او که نه مرګ يې سختوم،چې ما ته په راتګ کې له ګناه پاک وي (؛نو) بيا يې جنت ته ننباسم . (الکافي ٢\٤٤٦)

ðخداى تعالى وايي : کوم بنده چې دوزخ ته ننباسم؛نو بدني روغتيا يې ور پر برخه کوم؛البته که دا ټولې غوښتنې يې له ما څخه وي او که داسې نه وي (؛نو) هغه د خپلې زمانې د واکمن له ډاره خوندي ساتم (که دا غوښتنې يې له ما وي) او که داسې نه وي؛نو روزي يې پراخوم (که دا غوښتنې يې له ما وي) او که داسې نه وي (؛نو) مړينه يې اسانوم،چې ما ته راځي،چې هيڅ ښه کار مې پر وړاندې نه لري (؛نو) بيا يې دوزخ ته ننباسم .( الکافي : ٢\٤٤٦)

ðکوم بنده،چې په پټه مؤمنو نارينه وو او ښځو ته دعا وکړي؛نو پرښته وايي : څه دعا يې،چې وکړه،هماغه تاته هم ده او کوم بنده،چې په پټه مؤمنونارينه وو او ښځو ته  دعا وکړي؛نو خداى تعالى،چې د پيدايښت له پيله تر قيامت  پورې مؤمنو نارينه واو ښځو ته څه ورکړي ، ده ته يې هم ورکوي  .( وسايل ٧\١١٥)

ðکوم بنده،چې د “کوچني اختر” په شپه شپږ رکعته لمونځ وکړي (؛نو) دا يې د ټولې کورنۍ د شفاعت لاملېږي،که څه هم جهنم پرې واجب وي . (وسايل ٨\٨٦)

ðڅوک چې د يوې کورنۍ زړه خوشحاله کړي؛نو خداى له دې خوښۍ يو موجود راپنځوي،چې د قيامت پر ورځ يې مخې ته راځي او هر ځل چې کومه سختي ويني (؛نو) ورته وايي : ته څوک يې؟ پر تا خو دې د خداى رحمت وي، که ټوله دنيا راته واى؛نو ستا په څېر مې پکې څه نه ليدل،بيا وايي:((زه هماغه ښادي يم،چې په پلاني زړه کې دې اچولې وم .))  ( وسايل ١٦\٣٥٥ )

ðخداى تعالى وايي : هغه مې غوره بندګان دي،چې د خداى لپاره  يو د بل دوستان وي او زړونه يې په جوماتونو پورې تړلي وي او ګهيځ مهال استغفار وايي؛دوى داسې کسان دي،چې کله وغواړم، ټول ځمکمېشتي مجازات کړم؛نو هغوى رايادوم او سزا نه ورکوم . ابوذره! په جومات کې هره ناسته بې ګټې ده ؛خو له دې درېو کارونو پرته : د لمونځ کوونکي د قرآن لوستل،د خداى ياد او د پوهې زده کړه . (بحارالانوار ٧٤ \ ٨٨)

 

جنت او دوزخ

ðجنت د مېندو تر پښو لاندې دى . ( کنز: ٤٥٤٣٩ ح )

ð تاسې له ماسره د شپږوڅيزونو ضمانت وکړئ ؛زه به درته د جنت ضمانت وکړم: ١- تل په خبروکې رښتيا وايئ. ٢- خپلې کړې ژمنې پوره کړئ.٣- درسپارل شوى امانت بېرته په ښه توګه ورکړئ .٤- عورت مو له حرامو وساتئ .٥-د څه له ليدو،چې منع شوي ياست،سترګې ترې پټې کړئ . ٦- او لاسونه مو هغو ځايو ته مه ورغځوئ،چې ترې منع شوي ياست (په ناحقه چاته زيان مه رسوئ او د چا پرمال تېرى مه کوئ او…) (احمد –بيهقي)

ð جنت (ته تلل) له سختيو سره اغږل شوي او همداراز دوزخ ( ته تلل ) له هوسونو سره . ( کنز ٣/ ٣٣٢)

ð جنت د سخيانو کور دى . ( کنز ٤/٢٠٨)

ð د مجاهدينو تورې دجنت کونجيانې دي . ( کنز ٤/٢٩٨ )

ð څوک چې د جنت تلو ته لېوال وي (؛نو) د ښو چارو په کولوکې دې بيړه وکړي .  ( کنز ١٥/٨٦٤)

ðچلي،بخيل او منت اېښووونکى جنت ته نه ځي . (ترمذي)

ðپه جهنم کې يو ځاى دى،چې يوازې د”حسين بن علي” او “يحيي بن زکريا” ( عليهم السلام ) وژونکي به پکې پراته وي . (ثواب الاعمال : ٢١٦)

ðجنت په کړاوونو او جهنم په شهوتونو پوښل شوى دى . (د نهج البلاغې شرحه ١٠ \ ١٦)

ðدنيا پالي،ځانپالي،نسپالي او شهوتپالي څلورځانګړنې دي، چې که امتي مې ترې ځان وژغوري؛نو جنت پرې لازمېږي . (مستدرک الوسايل  ١٢\١١٠)

ðجنت (د خداى په لارکې) د تورو تر سيوريو لاندې دى. ( د نهج البلاغې شرحه ٨\٦)

ðپالونکي چې مې جنت ته بوتلم (؛نو) جبرئيل راته وويل :جنت او دوزخ ته لارښوونه وکړه،چې ځان دروښيي . آنحضرت وويل : په جنت کې چې څه نعمتونه وو او همداراز دوزخ او د هغه عذاب مې هم وليد. جنت اته ورونه درلودل او پر هر يو څلور کلمې کښل شوې وې،که څوک پوه شي او عمل پرې وکړي ؛نو تر دنيا او څه چې پکې دي، ورته غوره دي او جهنم اوه ورونه درلودل اوپه هر يوه درې کلمې کښل شوې وې،که څوک پوه شي او عمل پرې وکړي ؛نو تر دنيا او څه چې پکې دي،ورته غوره دي، بيا جبرئيل راته وښوول : محمده! پر ورونو چې څه کښل شوي ولوله؛نو ما ولوستل .  پر لومړي ور کښل شوي ول : بې له “الله” بل خداى او معبود نشته،محمد د خداى استازى او علي يې ولي دى .هر څه ته يوه چاره شته او د ژوند چاره په څلورو ځانګړنو کې ده : قناعت،د حق لورنه،د کينې پرېښوول او د نېکانو ملګرتيا. پر دويم ور کښل شوي وو: هر څه ته چاره شته او د آخرت د خوشحالۍ لپاره څلور ځانګړنې دي: پر پلار مړيو د خواخوږۍ لاسونه راکاږل ،پر کونډو زړه سوى ،د مؤمنانو د ستونز و د لرې کولو لپاره هڅه او بېوزليو او خوارانو سره ليده کاته . پر درېم ور يې کښلي وو:هر څه ته يو چاره شته او په نړۍ کې د روغتيا لپاره څلور ځانګړنې دي :لږې خبرې کول،لږ وېدېدل،پر لارې لږ تګ او لږ خوړل .پرڅلورم وره يې کښلي  وو: څوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځې ايمان لري؛نو بايد د خپل مېلمه درناوى وکړي . څوک چې پر خدای او د قیامت پر ورځ ایمان لري،بايد د خپل ګاونډي درناوى وکړي .څوک چې پر خدای او د قیامت پر ورځ ایمان لري،بايد د خپل موروپلار درناوى وکړي او څوک چې پر خدای او د قیامت پر ورځ ایمان لري،بايد يا ښې خبرې وکړي يا چوپ وي . پر پينځم وره يې کښلي ول : څوک چې غواړي ظلم پرې ونشي ؛نو پر نورو دې ظلم نه کوي او څوک چې غواړي کنځل ورته و نشي ؛نو نورو ته دې کنځلې نه کوي او څوک چې غواړي خوار او ذليل نشي؛نو نور دې نه خواروي او څوک چې غواړي په دنيا او اخرت کې د خداى پر رسۍ منګولې ښخې کړي؛نو و دې وايي چې : ((یوازې “الله” حق او وړ معبود دی،محمد یې استازی او علي يې ولي دی )) پر شپږم وره يې کښلي وو: که څوک غواړي پراخه قبر غواړي؛نو جوماتونه دې جوړ کړي اوکه څوک غواړي د ځمکې چينجي يې و نه خوري؛ د جوماتونو مينوال دې وي او د چاچې دا ښه ايسي،چې تنه يې تازه پاتې شي؛نو جوماتونه دې جارو کړي او که څوک غواړي په جنت کې خپل هستوګنځى وويني؛نو جوماتونه دې فرش کړي. پراوم وره يې کښلي ول: زړه په څلور ځانګړنو رڼا کېږي : د ناروغ پوښتنه کول،په جنازه کې ګډون کول ،د کفن اخستل او د پور ورکړه. پر اتم وره يې کښلي وو: که څوک غواړي په دې وره ننوځي،بايد څلورځانګړنې ولري : سخاوت،ښه خوى،د صدقې ورکړه او د خداى د بندګانو نه ځورل . د جهنم پر لومړي وره يې کښلي وو:خداى ته هيلمن نېکمرغه شول ، له خدايه وېرېدونکي خوندي شول او څوک چې بې له خداىه له بل چا ووېرېدل او د “غيرالله” په هيله مغرور شول ( ؛نو ) پوپنا شول . د جهنم پر دويم وره کښل شوي وو: که څوک غواړي د قيامت پر ورځ لوڅ او بربنډ نه وي؛نو په نړۍ کې دې بربنډ اولوڅ پټ کړي او که څوک غواړي د قيامت پر ورځ تږى نه وي؛نو په نړۍ کې دې تږي په اوبو ماړه کړي او که څوک غواړي د قيامت پر ورځ وږى نه وي؛نو په نړۍ کې دې وږې ګېډې مړې کړي . د جهنم پر درېم وره کښل شوي وو: پر دروغجنو دې د خداى لعنت وي . پر کنجوسو دې د خداى لعنت وي . پر ظالمانو دې د خدای لعنت وي . د جهنم پرڅلورم وره يې کښلي وو:څوک چې اسلام سپک وګڼي؛نو خداى يې خواروي او څوک چې زما کورنۍ سپکه وګڼي؛نو خداى يې خواروي او خداى د ظالمانو ملاتړي خواروي.پر پينځم وره يې کښلي وو: په ځاني غوښتنو پسې مه ځئ؛ ځکه له ايمان سره اړخ نه لګوي او څه چې درپورې اړه نه لري،خبرې پرې مه کوه،چې د خداى له رحمته به بې برخې کېږي او د ظالمانو مرستندوى کېږه مه . د جهنم پر شپږم وره يې کښلي وو: زه پر مجتهدينو (او هڅا ندو) حرام يم . پر صدقه ورکوونکيو حرام يم . پر اوم وره يې کښلي وو: مخکې تر دې،چې حساب درسره وشي،له ځان سره حساب وکړئ.مخکې تر دې،چې ورټل شئ؛ځان ورټئ.خداى تعالى ته تر ورتلو مخکې،هغه وبلئ ؛ځکه هلته يې بيا نشئ بللاى . ( بحارلانوار ٨\١٤٥)

ð د چا په زړه کې چې د بڅري هومره کبر وي (؛نو) جنت ته نشي تلاى . (بخاري – مسلم )

ð څوک چې پر درېو څيزونو ګروهمن وي،جنت ته ننوځي : الله پاک خپل پالونکى، اسلام خپل دين،محمد (ص) خپل پېغمبر  وګڼي او څلورمه ځانګړنه يې د خداى په لار کې جهاد دى،چې د ځمکې او اسمان هومره لويه ده .

ð بنده چې لمونځ کوي او له خدايه جنت نه غواړي او د جهنم له اوره ورته پناه نه وړي،پرښتې وايي: له دوو مهمو څيزونو (؛يعنې) جنت او دوزخ يې غفلت وکړ . (الجعفريات :٤٢ )

ð درې تنه جنت ته نه ځي: شرابخور او پر کوډو ګروهمن او له خپلوانو سره اړيکه پرې کوونکى.( بحار ٧١ / ٩٠ )

ð په جنت کې يو مقام دى،چې يوازې د عادل واکمن ،زړه سواندي او زغمناک اولادوال په برخه کېږي . (الخصال ١/ ٩٣)

ð د قرآن حافظان او پوهان د جنتيانو عارفان دي،مجتهدين يې لارښوونکي دي او استازي د جنتيانو ښاغلي دي . (الکافي ٢/ ٦٨٥)

ðد چا په زړه کې،چې د ږدن دانې هومره “ايمان” وي؛نو دوزخ ته به ولاړ نشي . ( وسايل  ١٦\٧)

ðد جنت زېرمې دا څلور څيزونه دي : د اړتيا پټول،د صدقې پټول،د ناروغۍ پټول او د کړاو پټول .(الامالي للمفيد: ٨مخ )

ðڅوک چې د شپې د تهجدو لپاره پاڅي؛نو بې حساب و کتابه جنت ته ننوځي . ( بيهقي )

ðدرې تنه جنت ته نشي تلاى : (١) شرابخور .( ٢) کوډګر.(٣) او سخت زړى ( پر چا نه زړه سوى ) . ( پورته ١٧ \١٤٨)

ðنېکان لومړى جنت ته ننوځي .( الکافي٤\٢٨)

ðڅوک چې جنت ته د رسېدو لپاره وژاړي،جنت ته ننوځي او څوک چې د دنيا لپاره وژاړي ؛نو دوزخي کېږي . ( الجعفريات : ١٩٢)

ðد اوداسه پر مهال مو سترګې پرانځئ، په دې هيله ،چې د  دوزخ اور و نه وينئ . ( من لايحضره افقيه ۱\ ۵۰ )

ðډېرى دوزخيان كبرجن دي . ( وسايل الشیعة ۱۵\ ۳۷۸)

ðكه څوك غواړي د جهنم له اوره وژغورل شي؛نو چا ته يې،چې پور وركړى،ورته دې مهلت وركړي يا دې بېخي ورته له خپل حقه تېر شي . (وسايل الشیعة ۱۸ \ ۳۶۷)

ðڅوك چې”سود”وخوري؛نو خداى تعالى يې ګېډه د خوړلي سود هومره له اوره ډكوي . ( بحار  ۷۳\ ۳۶۴)

  ð درې تنه جنت ته نه ننوځي: شرابخور،پالي او  اړيک شلوونکى . (وسايل ٢٥/ ٣٠٤ )

ðعلي! د مرګ پرښته ،چې له فاجره ساه اخلي؛نو د اور سيخونه ورسره وي، چې له ډېر عذابه يې جهنم هم چغې وهي.علي له ځايه راولاړ شو او  ويې پوښتل: رسول الله ! ايا په امت كې به دې څوك پردې بلا اخته كېږي؟ ورته يې وويل: هو! ظالم واكمن،د پلار مړي د مال خوړونكى او پر دروغو د شهادت ويونكي (به پرې اخته كېږي).  ( بحار ۳۹ \ ۱۹۷ )

ðعلي! پر هغه مهال به څرنګه يې،چې د جهنم پر غاړه به ولاړ يې او د “صراط” پر لوري به ځې او خلكو ته ويل كېږي،چې تېر شئ او ته به جهنم ته وايې،چې دا زما دى او دا ستا دی ؟ علي وويل : رسول الله ! هغه څوك دي ؟ حضرت ورته وويل :هغوى ستا لارويان دي او چې چېرې يې،هغوى درسره دي . ( بحارالانوار  ۳۹\ ۱۹۷ )

ðڅوك چې،علي ته كنځلې وكړي؛نو ما ته يې كړي دي او چا چې ماته كنځلې وكړې؛نو خداى ته به يې كنځلې كړې وي او خداى ته كنځلې كوونكى د دوزخ اور ته ننوځي او ستر عذاب ورته سترګې پر لار دى . (بحارانوار  ۲۷\ ۲۲۷ )

ðټول سوداګر فاجر دي او د فاجرو ځاى جهنم دى؛خو څوك چې یې په حق وپېري اوپه حق يې وپلوري . (من لا يحضره الفقيه۳ \ ۱۹۴)

ðد ښه خوى خاوندان واست؛ځكه جنت د ښه خوى پايله ده او له ناوړه اخلاقو ډډه وكړئ؛ځكه پايله يې جهنم دى . (وسايل الشيعة ۱۲\ ۱۵۳)

ðسخاوت د جنتي ونو يوه ونه ده،چې ښاخونه يې په دنيا كې راځوړند دي؛ نو څوك چې يې پر يوه ښاخ ونښتل؛نو دا ښاخ يې جنت ته بوځي او بخل په دوزخ كې يوه ونه ده،چې ښاخونه يې په دنيا كې راځوړند دي؛نو چا چې يې په دنيا كې په يوه ښاخ يې ځان ځوړند كړ؛نو دا ښاخ يې دوزخ ته بوځي . (قرب الاسناد: ۵۵مخ )

 

خپلسري

ðغيرتمندي د ايمان نښه ده او خپلسري او بې غيرتي د نفاق نښه ده . (السنن الکبرى ،البيهقي ١٠\ ٢٢٦)

 

ناروغ او پوښتنه يې

ð که کړاى شئ؛نو يوه ورځ ترمنځ يا په هرو څلورو ورځو کې يو ځل د ناروغ پوښتنې ته ورشئ . (الامالي للطوسي: ٦٣٩)

ð د بني هاشمو پوښتنه کول لازم او ليده کاته ورسره (نبوي) سنت دي.(بحارالانوار ٩٣/   ٢٣٤)

ðڅوک چې د ناروغ پوښتنې ته ولاړ شي؛نو له اسمانه پرې په نامه ورته غږ کېږي : پلانکيه! ښه کار دې وکړ او ښه راغلاست،چې بدله دې جنت دى .( الکافي ٣/ ١٢١ )

  ð څوک چې د ناروغ پوښتنې ته ورشي او څه ساعت ورسره کېنې؛ نو خداى ورته د داسې زرو کالو د عبادت او عمل بدله ورکوي،چې د سترګو د رپ  هومره يې پکې له خداى سرغړوى نه وي کړي . (پورته)

ð څوک چې د ناروغ پوښتنې ته ورشي؛نو په واقع کې خداى يې په خپل رحمت کې رانغاړي .( بحارالانوار ٦٦/ ٣٨٢)

ðبلنه ومنئ،د ناروغ پوښتنې ته ولاړ شئ،ډالۍ ومنئ او پر مسلمېنو تېرى ونه کړئ . (مستدرک الوسايل ٢/ ٧٤ )

ð د ناروغ څلور ځانګړنې  :١) قلم ترې پورته کېږي . ٢) خداى پرښتو ته امرکوي : د روغتيا په حال کې چې ورته هره نېکي ليکل کېده ،هماغه ورته وليکئ .  ٣ )  ناروغي يې د بدن هر غړي ته غځېږي اوګناه يې څنډل کېږي . ٤)  نو که (د ناروغۍ په حال کې ) ومړ؛هم بښل شوى او که ژوندی پاتې شو؛نو هم بښل شوى دی .  (جامع الاخبار:١٩١ مخ)

ðڅوک چې د ناروغ پوښتنې ته ځي (؛نو) خپل کور ته تر راستنېدو پورې د جنت په لار کې قدمونه ږدي . ( کنز ٩/٩٥ )

ð د ناروغ پوښتنه وکړه،که څه هم يوميل ( څه کم دوه کيلومتره)لار وي  ( بحار ٧٧/٥٢ )

ðد  ناروغانو پوښتنې ته ورشئ او په جنازو پسې ولاړ شئ،چې آخرت دريادوي . ( مستدرک ١/١١٩ )

ðد ناروغ پوښتونکى د جنت په لارو کې قدمونه اخلي . (محازات النبويه:١١٣ مخ ) 

ðکه په بنيادم کې دا درې څيزونه نه واى؛نو هيڅ څيز ته يې سر نه ټيټاوه : ناروغي،بېوزلي او مړينه . دا درې واړه پکې دي؛خو بيا هم ګستاخ دى . (الخصال  ١\١١٣)

ðله هغه مؤمنه په تعجب کې يم،چې د خپلې ناروغۍ په باب اندېښمن دى؛ځکه که پوهېداى،چې د ناروغۍ له امله يې څومره ثوابونه کېږي؛نو ښه به يې ايسېداى،چې له خداى سره د ليده کتو تر وخته پورې ناروغ واى .( التوحيد : ٤٠٠ مخ )

ðناروغي ګناهونه پاکوي .( مستدرک الوسايل ٢\ ٦٥ )

ðد ناروغۍ ساعتونه،دګناهونو د بښنې ساعتونه دي .(الجعفريات  ٢٤٥)

ðد خپګان او ناروغۍ ساعتونه د ګناهونو کفاره ده . (بحارلانوار  ٦٤\٢٤٤)

ðمؤمن تل ناروغ او خپه وي او چې کله روغ شي؛نو کومه ګناه به يې ورترغاړې نه وي . ( بحارالانوار ٦٤\ ٢٤٤)

ðد سترګو د درد په څېر بل درد نشته .(وسايل ١٨\٣١٨)

ðوالګى(زکام) د خداى له سرتېرو یو سرتېرى دى،چې د ناروغۍ لوري ته يې ورلېږي ،چې له منځه  يې يوسي . (الکافي ٨\٣٨٢)

ðدرملنه وکړئ؛ځکه چاچې درد رالېږلى؛نو درمل يې هم رالېږلي دي . (مستدرک الوسايل ١٦\٤٤٠)

ðهېښنده ده،چې د ناروغۍ له امله له خوړو پرهېز(او ډډه) کوي ؛خو د جهنم له ډاره له ګناه ځان نه ساتي .( مکارم الاخلاق ١٤٧)

 ð د قرآن سپارښتنه درته کوم؛ځکه چې ګټوره شفا او برکتي دوا ده . (تفسير الامام العسکري : ١٣مخ )

ðد سپېلنو بېخ او لښتې دارو( او د عفونت ضد) دي، په دانو کې يې د دوه اويا ناروغيو شفا ده؛نو په “سپېلنو” او “کندر” د ځان درمل وکړئ.  ( طب الائمه : ٦٧ )

 

بدله او اجر

ðڅوک چې وخوري او شکر وکاږي؛نو بدله يې داسې ده؛لکه د الهي بدلې په هيله،چې روژه نيسي . ( الکافي ٢\ ٩٤)

ðد ښه خوى د خاوند بدله داسې ده؛لکه روژتي،چې پر عبادت بوخت وي .( الکافي ٢\ ١٠٠)

ðبېوزلي په خلکو کې د خداى يو امانت دى؛نو چاچې پټه وساتله ؛ نو خداى ورته د روژتي د عبادت هومره اجر ورکوي .(الکافي ٢\٢٦٠)

ðڅوک چې په سلامتيا او روغتيا کې شکر وکاږي؛نو خداى ورته د هغه چا بدله ورکوي،چې په کړاوونو کې صبر کوي . ( الکافي ٢\٩٥)

ðد اذان او اقامې ترمنځ د مؤذن ثواب د هغه شهيد هومره دى،چې د خداى په لارکې پر خپلو وينو ککړ دى . ( روضة الواعظين ٢\٣١٣)

 

تقوى او پرهېزګاري

ðاسلام لوڅ او بربنډ  دى او حيا يې جامه ده،مړانه يې ښکلا ده ، صالح کړه يې ځوانمردي  ده اوستنه يې پرهېزګاري ده او د هر څه لپاره يو بنسټ وي،چې د اسلام بنسټ زموږ له کورنۍ سره مينه ده .(الکافي ٢\٤٦)

ðڅوک چې واکمن تر خداى غوره وبولي؛نو خداى ترې پرهېزګاري لرې کوي .( وسايل  ١٧\١٨١)

ðپه دين کې مو غوره څيز پرهېزګاري ده. ( وسايل ٢٠ \ ٣٥٧)

ðد دين کمال د پرهېزګارۍ په درلودو کې دى .(مستدرک الوسايل : ١١\٢٦٨)

ðابوذره! د دين بنسټ پرهېزګاري او سر يې اطاعت دى . ابوذره! که غواړې ډېر عابد وسې؛نو پرهېزګار وسه؛ځکه پرهېزګاري غوره دينپالي ده . ( مستدرک الوسايل ١١\٢٧٠)

ðيوه پرهېزګاري هم د خداى له حرامو ځان ژغورنې ته نشي رسېداى . (من لايحضرالفقيه ٤\٣٧١)

ðپرهېزګاري ډېره ښه توښه ده . ( وسايل ١٥\٢٤١)

ðامت به مې په پرهېزګارۍ او ښه خوى جنت ته ننوځي .(مستدرک الوسايل ٨\٤٤١)

ðکه څوک غواړي عزتمن وي؛نو له خدايه دې ووېرېږي .(مستدرک الوسايل ١١\ ١٦٧)

ðاوچته خبره د تقوى کلمه ده . (بحارالانوار ٢١\ ٢١٠)

ðاسلام بر بنډ دى او جامې يې پرهېزګاري ده . (بحارالانوار ٢٧\٨٢)

ðفرايض عملي کړه،چې ډېر پرهېزګار وسې او د خداى پر درکړې برخې خوښ وسه،چې ډېر غني وسې . ځان دې د خداى له حرامو وژغوره،چې ډېر پرهېزګار وسې،له ګاونډي سره دې ښه چلن کوه،چې مؤمن وسې او له دوست سره دې ښه ملګرتوب کوه،چې مسلمان وسې . (الامالي للمفيد : ٣٥مخ )

 ðپرهېزګاران ښاغلي دي او فقهاء مشران دي او ورسره ملګرتوب عبادت دى . ( الامالي للطوسي : ٢٢٥)

ðيوازې پرهېزګاران د علي پر ولايت ټينګ او ثابت پاتې کېږي . (تفسير العياشي ١\ ١٠٠)

ðڅوک چې له الهي پولو وا نه وړي ؛نو ژوند به يې ځواکمن وي او د خپلو دښمنانو په سيمو کې به په امنيت کې وي . (بحارلانوار ٦٧\٢٨٣)

 

پاکي

ðهر څه په اوبو پاکېږي؛خو اوبه په هيڅ څيز نه پاکېږي .(الکافي ٣\١٠ )

ð حضرت “اسما‌ء د عميس لور” رسول اکرم وپوښته : ما د حسن (رض) د زوکړې پر وخت د فاطمې بي بي نه وينه وليده ،نه حيض او نه نفاس ؟ آنحضرت ورته وويل : نه پوهېږې، چې فاطمه سپېڅلې ده او د حيض او زوکړې وينه يې نه ليدل کېږي . (صحيفة الرضا: ٩٠مخ . ذخاير العقبى : ٤٤مخ . نورالابصار: ١٨١مخ )

ðد قرآن لار پاکه کړئ . رسول اکرم وپوښتل شو: د قرآن لار کومه ده؟ ورته يې وويل : ستاسې خولې. بيا وپوښتل شو:څرنګه؟ ورته يې وويل: په مسواک . ( الدعوات : ١٦١)

 

مور و پلار

ð د مور و پلار بې احترامي او ترې سرغړوى، عمر  لنډوي. (مستدرک الوسايل: ١٢/ ٣٣٤)

ð مور و پلار ته په مينه کتل عبادت دى .( الجعفريات : ١٨٧)

ðپه عبادت کې شمېرل کېږي : عالم ته ليدل،عادل واکمن ته ليدل،په مينه مور و پلار ته کتل او هغه ورور ته کتل، چې د خداى لپاره يې ښه ګڼې . ( الامالي للطوسى)

ð له مور و پلار سره نېکي او زړه سوى د قيامت د ورځې حساب اسانوي . (بحارالانوار ٧١/ ١٢٧)

ðدرې سترې ګناوې دا دي : (١ )  له خداى سره شرک . (٢)  له مور و پلار سرغړونه. (٣ )  پر ناحقه شاهدي ورکول . (بخاري : ٢٦٥٤  حديث )

ðله مور و پلار سره ښه وکړه،چې جنت ته ولاړ شې او که هغوى عاق کړى یې او جفا کار یې؛نو له اور سره جوړ جاړى وکړه . (الکافي  ٢\٣٤٨)

 ð مور و پلار مو ستاسې جنت اودوزخ دي . ( ابن ماجه )

ðد مور و پلار له عاق او نفرته ځان وژغورئ؛ځکه د جنت بوى،چې تر زر کاله واټن وروسته پوزې ته رسي؛نو د مور و پلارعاق شوى،سخت زړى،بوډا زنا کار او هغه ګاونډي ته نه رسي،چې وياړمني او کبرجنې جامې اغوندي؛ځکه ستريا او کبر يوازې له نړۍ پال خداى سره ښايي . (الکافي ٢\٣٤٩)

ð حضرت ابن مسعود (رض) وايي : رسول اکرم مې وپوښت:  د خداى کوم يو عمل ډېر ښه خوښېږي؟ راته يې وويل : په خپل وخت لمونځ .بيا مې وپوښت : تر دې وروسته بيا بل څه عمل ؟ راته يې وويل : له مور وپلار سره نېکي کول .ومې پوښت :چې بيا څه ؟ راته يې وويل : د خداى په لارکې جهاد کول .( الخصال ١\ ١٦٣)

ðعلي! مور و پلار ته په مينه، قرآن او کعبې ته کتل عبادت دي. (وسايل ٦\٢٠٥)

ðدرې ګناهونه د چټک عذاب لامل دي،چې عذاب يې بېخي نه ځنډېږي : عاقول،پر خلکو تېرى او د نېکۍ ناشکري (ښه هېرونه ) . (الامالي للطوسي :١٣مخ )

ðګناهونه نعمتونه اړوي .کينه د پښېمانۍ لاملېږي . وژنه خپګان راولي . ظلم پردې څيري .شرابخوري روزي کموي .زنا پوپنا کېدنه او نابودي ګړندۍ کوي . سخت زړي او زړه سوى نه کول، د دعا د منل کېدو مخه نيسي . عاقول عمر لنډوي او لمونح نه کول د خوارۍ لاملېږي . (مستدرک الوسايل ١٢\ ٣٣٤)

ðد خداى رضا د مور و پلار په خوښۍ او غوسه يې د هغوى په غوسه کې نغښتل شوې ده .( مستدرک الوسايل ١٥\ ١٧٤)

ðيو سړى رسول اکرم ته راغى او د مور و پلار د نېکۍ په اړه يې وپوښت :حضرت ورته درې وارې وويل : له مورسره دې نېکي وکړه او درې ځل يې وويل :له پلار سره دې هم نېکي وکړه (او له موره يې پيل کړه ) . ( مشکاة الانوار : ١٥٩)

ðد خداى په لار کې ډېر غوره لګښت پر موروپلار لګول دي. (مستدرک الوسايل ١٥\٢٠٤)

ðله مور و پلار سره ښه کول او زړه سوى د قيامت حساب اسانوي . (تفسيرالعياشي ٢\ ٢٠٨)

ðله خداى سره شرک کول،(د مور و پلار) عاقېدل او دروغ ستر ګناهونه دي .( ارشادالقلوب ١\ ١٨٥)

ðله خلکو سره ښه چلن کول،له کړاو ځپليو سره ملګري،له مور و پلار سره مينه کول او تر لاس لاندې سره احسان کول، هغه ځانګړنې دي،چې که څوک يې ولري؛نو د قيامت پر ورځ به يې خداى د خپل رحمت تر سيوري لاندې راولي او جنت ته به يې ننباسي.( بحارالانوار  ٦٦\٣٨٦)

ðيو سړى رسول اکرم ته راغى او و يې پوښت : مړو شويو مور و پلار ته څه خېر ښېګڼه رسي؟ ورته يې وويل: هو! پر هغوى درود ويل (ورته لمونځونه کول) بښنه ورته غوښتل پر ژمنو يې وفا کول،د دوستانو يې عزت کول او زړه سوى . (مستدرک الوسايل ٢\ ١١٤)

ðيوسړى رسول اکرم ته راغى او و يې پوښته : تکړه ځوان يم او د خداى په لارکې مې جهاد خوښېږي؛خو مور مې نه پرېږدي . پېغمبر اکرم ورته وويل :مور ته دې ولاړشه . پر هغه قسم ،چې زه يې پېغمبر کړى يم، له تا سره دې د مور يو شپه مينه،د خداى په لار کې تر يوه کال جهاد غوره ده . ( الکافي ٢\ ١٦٣)

ð مور و پلار ته په مينه کتل  عبادت دى .( تحف العقول : ٤٦)

ð خداى  له خپل مور و پلارسره د نېکۍ کوونکيو عمر زياتوي . ( کنز ١٦/٤٦٥)

ð څوک چې د خپلې مور تندى ښکل کړي (؛نو) ځان به يې له اوره ژغورلى وي . ( کنز ١٦/٤٦٢ )

ð  له مور و پلارسره د ښه چلن او نېکۍ له امله،خداى د انسان عمر زياتوي .( ابن منيع- ابن عدى )

ð د مور و پلار تر مړينې وروسته ورته د بښنې دعاوکړئ،له چاسره يې چې ژمنه کړې وي؛پوره يې کړئ او د خپلوانو عزت يې وکړئ اوحقوق يې ورکړئ . ( ابن حبان )  

ð له خداى سره شرک،د موروپلار ځورونه،ناحقه وژنه او د دروغو شاهدي ستر ګناهونه دي . ( بخاري )

ðخوښ دې هغه وي،چې له موروپلارسره نېکي کوي او خداى يې عمر زياتوي . ( کنز :٤٥٤٨٣ح )  

ðد پالونکي خوښي د مور و پلار په خوښۍ کې نغښتې ده . ( کنز ٤٥٥٥١ح ) 

ðله خپلو پلرونوسره نېکي وکړئ ،چې اولادونه مو درسره نېکي وکړي. ( کنز ١٦/٤٦٦)

ð پر پلار د اولاد يو حق داهم دى،چې ښه نوم پرې کېږدي اوښه يې وروزي .(بيهقي)

ðد قيامت پر ورځ هغه د نېکانو ښاغلى دى،چې له خپل موروپلار سره تر مړينې وروسته نېکي وکړي . ( سفينة  البحار/٢ /٦٨٧)

ðو مې ليدل،چې د جنت پر “وره” ليکل شوي وو،چې : ته پر هر بخيل ، رياکار،عاق او چغلګرحرام يې. (جامع الاخبار: ٩٨ مخ )

ðچاچې خپل مور و پلار خپه کړل؛نو سر غړونه يې ترې کړې ده . (بحارالانوار٧٧/٥٨)

ðخداى دې پر هغه موروپلار ورحمېږي،چې خپل اولادونه هڅوي ، چې ورسره  مرسته وکړي . (جامع الاخبار: ٩٨ مخ )

ðپر هغه موروپلار دې د خداى لعنت وي،چې خپل اولادونه هڅوي ، چې سرغړونه  ترې وکړي .(جامع الاخبار: ٩٨ مخ )

 ðخداى د هغه عمر زياتوي،چې له خپل موروپلار سره نېکي کوي . (روضة  الواعظين: ٣٦٨ مخ )                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         

ðپه مينه  موروپلارته کتل عبادت دى .(تحف العقول : مواعظ النبي)

ð د خداى پوره خوشحالي د مور و پلارپه خوشحالۍ کې او غوسه يې د هغوى په خپګان کې ده . (جامع الاخبار: ٩٨ مخ )

ðيوسړي رسول اکرم  ته وويل : له چا سره نېکي وکړم ؟ ورته يې وويل : له خپلې مورسره دې . بيا له چاسره ؟ورته يې وويل:له خپلې مورسره.بيا له چاسره.ورته يې وويل : له خپلې مورسره،(څلورم ځل يې) وپوښتل چې له چاسره نېکي وکړم؟  ورته يې وويل : له خپل پلار سره . ( جامع الاخبار ٩٨ مخ )

ðرسول اکرم (ص ) له مورسره پرنېکۍ کولو درې ځل سپارښتنه کړې او له پلارسره يو ځل . ( جامع الاخبار:٩٨ مخ )

ðيوسړي له رسول اکرم (ص) وپوښتل،چې پر اولاد دپلارڅه حق دى ؟ ورته يې وويل : په نامه دې يې نه يادوي . مخکې دې ترې نه ځي او نه دې ترې مخکې کېني او ورته دې د کنځلولامل نشي [له خلکوسره دې داسې چلن و نه کړي،چې پلار ته يې کنځلې وکړي] (اصول کافي ٣ټوک – باب البر باالوالدين ، ٥  او٩  احاديث  )

ðپر پلار د اولاد درې حقه دي :(١)ښه نوم دې پرې کېږدي. (٢)  لوست دې ورته وښيي. (٣) چې بالغ شو؛نوښځه دې ورته وکړي  (روضة  الواعظين : ٣٦٩ مخ )

ðاولاد چې د مور و پلار حقوق پوره نه کړي؛نو ترې عاقېږي،دغسې که هغوى هم د صالح اولاد حقوق  پوره نه کړي؛نو له اولاده عاقېږي . (خصال صدوق : باب الاثنين -٦٧ – حديث .)

 

 

 پوښتنه

ðله خلکو سره دوستي او مينه کول نيم عقل دى .ښه پوښتل نيم علم دى اوپه لګښت کې منځلاري نيم ژوند دى . (بحارالانوار : \٢٢٤)

ðعلم خزانې لري،چې پوښتنه کول يې کونجي ده ؛نو وپوښتئ ،چې خداى درباندې ولورېږي؛ځکه په پوښتنه څلور تنه د ثواب خاوندانېږي:  پوښتونکى ،ښوونکى اورېدونکى او د دوی مينوال .(صحيفة الرضا : ٤٢مخ )

ð ښه پوښتنه،نيم علم دى . ( تحف : مخ ٥٦ )

ð د علم په زده کړه کې د پوښتنې د اهميت په اړه وايي:((که پوښتنه نه واى ( ؛نو) پوهه له منځه تله.)) (المعجم : ٢\ ٣٨٢)

 

طبابت

ðايا داسې دعا دروښيم ،چې جبرائیل راښوولې ده،چې طبيب او درملو ته مو اړتيا پيدا نشي؟ اصحابو وويل : هو رسول الله ! آنحضرت وويل : د باران اوبه راواخلئ او ورباندې ((فاتحة الکتاب= د حمد سورت))،قل اعوذ برب الناس او بيا اويا ځل تسبيح د(سبحان الله) ووايئ او بيا له دې اوبو پرله پسې اوه ورځې هرګهيځ اوماښام وڅښئ . ( بحارالانوار : ٥٩ \٢٦٩)

 

پستي

ðعلي! له کوز فطرۍ لرې وسه؛ځکه دا کار کفر دى او د کفر پايله دوزخ دى او نېکي،د راز ساتنه او ستريا خپله کړه؛ځکه دا درې چارې ګناهونه داسې اوبه کوي؛لکه لمر،چې واوره اوبه کوي . خداى تعالى وايي : زه “الله” يم،چې بې له ما بل خداى او معبود نشته، پر عزت او جلال مې قسم،چې کوز فطرته جنت ته نه ننباسم .( الجعفريات : ١٥١)

ðمؤمن اسان نيوونى او عزتمن دى او منافق محتاط او کوز فطرته دى . ( وسايل : ١٢\ ١٨)

 

پښېماني

ðد  قيامت د ورځې پښېماني ډېره ناوړه پښېماني ده . (الکافي ٨\ ٨١)

ðپښېماني توبه ده . ( وسايل١٦\٦٢)

ðظلم د پښېمانى لاملېږي .(مستدرک الوسايل ١٢ \ ١٠٣)

 

پناه وړل

ðباد ته کنځل مه کوئ؛ځکه هغه زېرى ورکوونکى، ګواښنګرى او بلاربوونکى دى . له خدايه يې ښه والى وغواړئ او له بديو يې خداى ته پناه يوسئ . ( العياشي تفسير ٢\٢٣٩)

ðله رټل شوي شيطانه خداى ته پناه يوسئ؛ځکه څوک چې خداى ته پناه يوسي،هغه ورته پناه ورکوي؛نو د شيطان له وسوسو او تورونو خداى ته پناه يوسئ . ( دالامام العسکرى تفسير ٥٨٤ مخ )

ðله خدايه له ناوړه ګاونډي پناه غواړم؛ځکه د اوسېدانې په ځاى کې مخامخ یاست او رعایت یې په پام کې نیسې؛نو که تا په ښو وويني بد يې راځې او که په بدو کې دې ووينې؛نو خوشحالېږي . (مشکاة الانوار : ٢١٤مخ )

ðخدايه ! له تا له بېوزلۍ او خپرو ورو چارو پناه غواړم .(الکافي ٤\٤٦٤)

ðخدايه! له تا له هغې ښځې پناه غواړم،چې تر زړښت مخکې مې زوړ کړي .( الکافي ٥\٣٢٦)

 ðخدايه ! له تا له دې څلورو څيزونو پناه غواړم : هغه پوهه،چې ګټوره نه وي .هغه زړه،چې عاجز نه وي .هغه نفس،چې نه مړېږي اوهغه دعا چې نه قبلېږي .(مستدرک الوسايل ٥\٦٩)

 

جامې

ðڅوک چې ځان ښکلولاى شي؛خو د خدا ى لپاره د تواضع له مخې، ښکلا ته شا کړي؛نو خداى به ورته د ستريا جامې واغوندي . ابوذره ! پېړې جامې اغونده؛ځکه چې وياړنه او کبر درکې لار پيدا نه کړي . (وسايل  ٥\ ٥٤)

ðجامې چې اغوندم؛نو وايم : د خداى شکر،چې پر داسې جامو يې پټ کړم،چې په خلکو کې د ښکلا لامل دى . پالونکيه ! دا جامې مې برکتي کړې، چې پکې ستا رضا او د جوماتونو آبادي ولټوم . ( الجعفريات : ٢٢٤)

ðله دنيا خوراک څښاک او سپکې جامې غوره کړه . (مستدرک الوسايل   ١٢\ ٤٨)

ðڅوک چې وياړمنې جامې اغوندي؛نو خداى يې د جهنم تل ته غورځوي او د “قارون” ملګرى کوى يې؛ځکه قارون لومړى تن و ،چې مغرور شو او خداى تعالى هغه او کور يې په ځمکه کې ډوب کړ او څوک چې مغرورشي؛نو د خداى له مطلق ځواک سره به يې په جګړې لاس پورې کړى وي . ( من لا يحضره الفقيه ٤\١٣)

ðڅوک چې وياړمنې جامې واغوندي؛نو بېخي کبرجنېږي او د کبرجن سزا هرومرو جهنم دى .(مستدرک الوسايل ١٢\٣٠ )

  ðڅوک چې په دنيا کې د شهرت جامې واغوندي؛نو خداى په آخرت کې ورته د خوراۍ جامې اغوندي . (رجال الکشى : ٣٩٢)

ðدوه نارينه او دوه ښځې هيڅ حق نه لري،چې بربنډ له يوبل سره راشه درشه ولري او یو ځای وي . ( وسايل ٢\ ٣٤٢)

 

پېغمبران

ðخداى ګرد انبياء او رسولان په بشپړو عقلونو استولي دي او عقلونه يې د خپلو امتونو تر ټولو عقلونو غوره دي . (الکافي ١\ ١٢ )

ðموږ د انبياوو ټولي ته لارښوونه شوې،چې له خلکو سره يې د پوهې هومره خبرې اترې وکړو. ( الکافي ١\ ٢٣)

  ðزموږ د انبياوو د ټولي سترګې بېدېږي؛خو زړونه مو نه او لکه څرنګه، چې خپله مخه ګورو،دغسې خپله شا هم وينو.(بحارالانوار ١١\ ٥٥)

ðموږ د انبياوو ټولي ته؛لکه څنګه چې د فرايضو د ترسره کولو لپاره لارښوونه شوې،دغسې له خلکو سره د ښه چلن لارښوونه هم شوې ده . (بحارالانوار  ٧٢\ ٥٣)

 

تړون،ژمنه او وعده

ðڅوک  چې امانت ساتى نه وي،ايمان نه لري او څوک چې پر وعده وفا نه کوي ( ؛نو) دين نه لري .( النوادر للراوندي : ٥مخ )

ðبېشکه چې خداى له هر څاروي او بوټي زموږ د دوستۍ ژمنه اخستې؛ نو چا چې ومنله سپېڅلى شو او چاچې و نه منله ؛نو تريو او تريخ شو.(وسايل ٢٥\ ١٧٨)

ð وعده يو ډول پور دى (چې بايد پوره يې کړئ) . (طبراني)

ðڅوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځ ايمان لري؛نو بايد پر خپلې وعدې وفا وکړي .( الکافي ٢\٣٦٣)

ðد منافق درې نښې دي : ( ١) په خبرو کې دروغ وايي ( ٢) پر وعده وفا نه کوي (٣) او چې اعتماد پرې کېږي؛نو خيانت کوي . (مستدرک الوسايل ١٤ \١٣)

ðڅوک چې پر خپله ژمنه ولاړ نه وي؛نو بېخي دين نه لري . (النوادر للراوندي :٥)

ðڅوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځ ايمان لري؛نوخپله ژمنه دې ترسره کړي . ( الکافي:  ٣٦٤) 

ðوعده يو ډول پور دى (،چې بايد ور يې کړئ) (؛نو) جنت ته نشي تلاى . ( بخاري – مسلم )

ðکه څوک لمونځ کوي،روژه نيسي او خيال کوي،چې مسلمان دى ؛ خو چې درې ځانګړنې ولري؛نو منافق دى : ( ١) په امانت کې خيانت ( ٢) په خبرو کې دروغ ( ٣) او پر وعده وفا نه کول .( الکافي ٢\٢٩٠ )

 

بريا

ðپوه شه،چې بريا له زغم،پراخۍ اوسختۍ سره اغږل شوې ده . (من لا يحضره الفقيه ٤\٤١٢)

ðبريا په پرېکنده هوډ اوپه لر فکرۍ کې نغښتې ده . ( بحار ٧٧/١٦٥)

ð”بريا” تل له “زغم”  سره ده . ( کنز ٣/٢٧٥)

 

سپکاوى

ðپاک خداى وايي :څوک چې زما مؤمن بنده سپک کړي ؛نو له ما سره به يې په دښمنۍ لاس پورې کړى وي .( الکافي ٢\٣٥١)

ðد معراج پر شپه راسره خداى د پردې تر شا خبرې وکړې او راته يې وويل :محمده ! څوک چې د خداى ولي سپک کړي؛نو زه به يې جګړې ته رابللى يم او زه هم ورسره جنګېږم . ( الکافي ٢\ ٣٥٣)

ðڅوک چې مؤمن خوار او سپک کړي ؛نو خداى به يې سپک کړي . (بحارالانوار ٦٦\٣٨٢)

ðزه،خداى او هر پېغمبر،چې دعا يې قبوله شوې،پر دې څلورو تنو لعنت وايو:څوک چې د خداى پر کتاب څه ورزيات کړي.څوک چې د خداى  تقدير  دروغ وګڼي.څوک،چې خدای درندو کړيو دسپکولو هڅه کوي او د خداى سيک کړيو د درنولو لپاره هڅه کوي او څه چې خدای زما اهل بیتو ته حرام کړي،هغه ورته حلالوي .( بحارلانوار ٢٧\ ٢٢٥ )

ðڅوک چې مؤمن سپک کړي او يا ورته د بېوزلۍ او تنګلاسۍ له امله ټيټ وګوري؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ د پله له سره دوزخ ته راوغورځوي .( عيون الرضا ٢\ ٧٠)

ðد چا په مخکې چې څوک يو مؤمن سپک کړي او هغه يې د ملاتړ وس لري او دا کار و نه کړي؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ د ټولو مخلوقاتو په مخ کې خوار کړي . (د نهج البلاغې شرحه ٩\٦٩)

ðيوولس ورځې يې هره ورځ لس کمچنيې واهه؛خو چې په وهلو ونه شوه او پوه شول،چې دا منسب نه مني؛نو لاس يې ترې واخست . امام احمد بن حنبل به،چې هر وخت دا پېښه راپريادوله ؛نو ژړل به يې او هم وګ :سيد مصطفى حسيني دشتي؛معارف ومعاريف،د ابوحنيفه ترنامه لاندې . ( ٢) سالنامه فجر افغانستان .(٣) تاريخ ومحاکمه .

“منصور”،چې څومره قسمونه تکراول؛نو هومره به امام همه ورته تکرارول .دغسې له “اربيع بن يوسف حاجب” څخه روايت دى، چې : “منصور” مې وليد،چې له امام ابوحنيفه سره يې په توندۍ خبرې کولى او ابوحنيفه ويل :”له خدايه ووېرېږه او له هغه پرته پر خپل امانت مه ګوماره. پر خداى قسم،چې زه د خوښۍ په حال کې ځان خوندي نه بولم، غوسه کې خو لا څه .))

 “خطيب بغدادي” په دې اړه روايت کوي چې: د وروستي اموي چارواکي؛ “مروان بن محمد” په واکمنۍ کې د “عراقينو” والي له امام ابوحنيفه (ره) وغوښتل ،چې د کوفې قاضې شه ؛خو ورسره يې ونه منله؛نو بيا يې د استاد او شاګرد ترمنځ علمي مناظرې شوې او دا راښيي،چې په اسلامي فرهنګ کې د استعدادونو ودې ته څومره مخه پرانستې ده او دا موږ ته په ښوونيز ډګر کې څرګنده بېلګه ده.

 امام ابوحنيفه (ره) کله هم د خلافت له غاصبانو سره جوړجاړى نه و کړى. منصور عباسي واکمن،امام ابوحنيفه له کوفې نه بغداد ته راوغوښت او د قضايي چارو د  ورسپارلو وړانديز يې ورته وکړ ؛خو امام ورسره ونه منله . منصور ورته وويل : پرخداى قسم ،چې دا امر به هرومرو منې . امام  ورته وويل :پر خداى قسم ،چې وبه يې نه منم .( ١) حضرت انس بن مالک ( رض) .( ٢) په کوفه کې له عبدالله بن ابى ( رض) سره ( ٣) په مدينه کې له سهل بن سعد ساعدي سره  ( ٤) اوپه مکه کې له ابو طفيل بن ورشه سره ابوحنيفه په فقه کې د اهل حديثو پر خلاف له ځيرتيا کار اخسته او هم يې په فقهي چارو کې عقلي استدلال کاراوه او پردې سربېره،د نبوي کورنۍ له مينوالو څخه و؛نو ځکه په دې لاملونو د هغه زمانې د حديث پوهانو ورسره کينه وه .

د “الامام الاعظم” د مناقبو په کتاب کې د امام ابوحنيفه له خولې ويل شوي دي چې :((محدثان؛ځکه راسره دښمني کوي،چې موږ د اهلبيتو پر فضايلو اعتراف کوو او مينوال يې يو . ))

  امام ابوحنيفه د امام باقر اوامام جعفر صادق له تکړه او ذهينو شاګردانو  څخه و،چې د پوهې په تر لاسه کولو کې يې خورا زيار اېسته .

 

مجاهد فقيه

ðابوحنيفه،نعمان د ثابت زوى،د زوطي لمسى او د ماه کړوسى يا نعمان بن ثابت بن مو زبان (طاووس ) بن هرنو په ٨٠ س په کوفه کې زېږېدلى او په ( ١٥٠ ) س د بغداد  په زندان کې شهيد شوى . ابوحنيفه په کوفي فقيه مشهور و او نيکه (زوطي) يې د کابل  د پروان و،پلار يې (ثابت) حضرت على ( ک) هم ليدلى و او د هغه ځوځات ته يې د خير او برکت دعا کړې وه . امام ابوحنيفه په اصل کې سوداګر و او ورسره يې له علم او پوهې سره ډېره مينه وه.لومړى يې د کلام علم ته مخه کړه او بيا په فقهي زده کړو بوخت شو . امام ابوحنيفه په تابعينو کې شمېرل کېږي او د رسول اکرم (ص) له څلورو تنو اصحابو سره يې ليدلي او روايتونه يې ترې هم کړي دي .

 

علي (ک) ته د پېغمبراکرم سپارښتنې

  ðعلي !  د يقين له آثارو دا دي، چې د چا خوشحالولو ته څښتن له ځانه خپه نه کړې او د چا ستاېنه د هغه نعمت لپاره و نه کړي،چې څښتن دركړې او څوک هغه څه ته و نه رټې،چې خداى  ترې  ژغورلى يې؛ځكه روزي نه د حريصانو حرص راماتوي او نه د چا ناخوښي د انسان روزي پر شا تمبوي . خداى  په خپل حكمت او فضل هوسا او خوشحالي،په يقين او رضا (قضا او قدر) كې اېښې او غم او خپګان يې په شك او نارضايتۍ كې . (تحف العقول)

 ðهېڅ  فقر تر ناپوهۍ ناوړه نه دى . (تحف العقول).

 ðهېڅ  مال تر عقله ګټور نه دى . (تحف العقول)

ðهېڅ  يوازېتوب تر ځان خوښۍ وېروونكى نه دى . (تحف العقول)

ðهېڅ  مرسته تر سلا مشورې غوره نه ده. (تحف العقول)

ðهېڅ  عقل د عاقبت انديشۍ په څېر نه دى . (تحف العقول)

ðهېڅ حسب او نسب د  ورين تندي په څېر  نه دى او هېڅ عبادت د فكر كولو په څېر  نه دى . (تحف العقول)

 ðعلي! د  وينا  آفت  دروغ،د پوهې آفت هېره،د عبادت آفت سستي،د سخاوت آفت منت،د مېړانې آفت تېرى، د ښكلا آفت كبر او ځان خوښي ده او د حسب او نسب آفت  وياړپلورنه يا وياړنه ده. (تحف العقول)

ðعلي ! تل رښتين وسه . هېڅكله  له خولې دروغ  مه راباسه . هېڅكله خيانت مه کوه،له خداى  داسې  وېرېږه،چې ګواكې په سترګو يې وينې. مال او ځان له دينه ځار كړه،ځان پر ښو اخلاقو سمبال او له بديو يې وژغوره. (تحف العقول)

 ðعلي ! درې ځانګړنې څښتن ته خورا ارزښت لري :

1_ د فرضو ترسره كول : د الهي واجباتو ترسره كوونکي تر ټولو ستر عابدان دي .

 2_ګناه نه کول : له ګناه ځان ژغورونکي تر ټولو ستر پرهېزګاران دي.

 3 _قناعت : د څښتن پر وركړه قناعت كوونکي تر ټولو بې نيازه انسانان دي . (تحف العقول)

ðعلي!درې اخلاقه ستايل شوي دي : له هغوى سره تګ راتګ او مړى  ژوندى کول،چې درسره يې پرېښې وي . هغه  ته ورکړه،چې ته يې محروم كړى او هغه څوک بښل،چې تېرى يې درباندې كړى وي . (تحف العقول)

ðعلي !  درې كارونه غوره دي :خلكو ته په خپله انصاف وركول، له ديني ورور سره مساوات او په هر حال كې څښتن يادول . (تحف العقول)

ðعلي ! درې كسان د څښتن مېلمانه دي : هغه چې د څښتن لپاره د مؤمن كتنې ته ځي. هغه چې تر لمانځه وروسته دعا كوي او د بل لمانځه د راتګ په تمه وي او هغه چې د حج او يا عمرې لپاره كعبې ته راځي؛نو  پر څښتن  دي،چې د خپل مېلمه پالنه وكړي او اړتياوې يې پوره كړي. (پورته منبع)

ðعلي!د درېو كارونو اجر هم  په دنيا او هم په اخرت كې وركول كېږي:حج؛ بېوزلي له  منځه  وړي . صدقه  بلا پر شا تمبوي او پيوستون يا زړه سوی عمر زياتوي . (پورته منبع)

ðعلي ! درې ځانګړنې دي،چې که څوك يې ونه لري؛نو يو عمل يې هم نه قبلېږي : تقوا؛چې له ګناه يې وساتي.پوهه او عقل،چې له خلكو سره پرې جوړ جاړى  وكړي . (پورته منبع)

ðعلي! درې كسان د قيامت پر ورځ د څښتن د عرش تر سيوري لاندې  دي :

څه چې ځان ته خوښوي، بل ته يې هم خوښ كړي.

چې د يو كار ترسره كولو ته تر هغه ګام وا نه خلي،څو ورته معلوم شوی نه وي،چې په دې  كار كې د څښتن رضا شته  كه نه.

چې د خلکو هغه نيمګړتياوو ته ګوته و نه نيسي،چې په خپله پکې وي او تل د خپل عيب په سمونې پسې وي او په نورو كې د خبرو رااېستو وخت و نه لري. (پورته منبع)

ðعلي ! درې  څيزه د خير ورونه  دي : سخاوت،پسته  ژبه او په غم كې زغم . (پورته منبع)

 ðعلي !  په تورات كې څلور څيزه له څلورو سره اوږه پر اوږه دي : هغه چې د دنيا حريص وي؛نو څښتن ته به غوسه وي . چاچې له مصيبته ګيله وكړه؛ نو له څښتنه به يې كړې وي او چاچې د شتمن درناوى  د شتمنۍ لپاره وكړ؛نو په درېو كې دوه برخې دين به يې له منځه تللى وي او څوك چې له دې امته دوزخ ته ولاړ؛نو هغه به وي،چې د څښتن پر آيتونو يې ملنډې وهلې وي . (پورته منبع)

او همداسي څلور څيزه  د څلورو څيزونو په څنګ كې راغلي دي:د واک خاوند له مشورې پرته مستبدېږي؛نو پښېمانه به شي . (پورته منبع)

 هر عمل مكافات لري : بېوزلي ستر مرګ دى .پوښتنه وشوه : د درهم او دينار لوږه؟ ويې ويل: نه ! د دين فقر. (پورته منبع)

ð علي ! د قيامت پر ورځ بې له درې سترګو ټولې ژړنې دي : هغه چې څښتن ته ويښې وي . په حرامه نه وي پرانستل شوې او د څښتن له وېرې يې ژړلې وي . (پورته منبع)

 ðعلي ! هغه څومره بختور دى،چې څښتن يې وويني،چې د داسې ګناه لپاره ژاړي،چې بې له څښتنه ترې هېڅ څوك هم نه وي خبر. (پورته منبع)

ðعلي ! درې څيزونه د هلاكت او درې څيزونه د خلاصون لامل دي :هوس، کنجوسي او ځان خوښي،چې لاروي يې وشي  او د خلاصون لاملونه : په هوساېنه او غضب کې عدالت.په بېوزلۍ او شتمنۍ کې منځ لاري. په پټه اوښكاره له څښتنه داسې وېره؛لکه چې وينې يې . (پورته منبع)

 ðعلي! په درېو ځايونو كې دروغ ښه دي : د جګړې په ډګر كې،ښځې ته د ژمنې پر مهال او د خلكو د سمونې لپاره. (پورته منبع)

 ðعلي ! په درېو ځايونو كې رښتيا ښه نه دي : مېړه ته يې د مېرمن د بدو ويلو پر مهال . چغلي او د هغه چا تكذيب ته،چې ښه عمل پر دروغو رانقلوي . (پورته منبع)

ðعلي!څلور چارې سر نه نيسي: په مړه ګېډه خوراک ،په رڼا كې څراغ ، په تروه ځمكه كې كښت او له نا اهل سره احسان . (پورته منبع)

 ðعلي! څلورو كسانو ته تر ټولو مخکې د عمل سزا وركول كېږي :هغه چې د نېكۍ ځواب په بدۍ  وركوي . هغه چې ته ورسره بد نه كوې؛خو تېرى كوي . هغه همژمنى،چې تړون ماتوي او هغه خپلوان،چې ته ورسره په ورين تندي چلېږې او هغه په تريو تندي . (پورته منبع)

 ðعلي ! د  راستۍ، شكر،حيا او ورين تندي د خاوند اسلام پوره دى. (پورته منبع)

 ðعلي ! له خلكو لږه تمه درلودل،نقده بې نيازي او له خلكو ډېره تمه،ذلت او حاضر فقر دى . (پورته منبع)

ðعلي ! روژه ، لمونځ او زكات د مؤمن درې نښې دي. (پورته منبع)

ðمخامخ غوړه مالي، تر شا غيبت او په مصيبت كې شماتت،د ځان ښودنې درې نښې دي . (پورته منبع)

ðتر لاس لانديو سره جبارانه چلن،له پورتني سرغړونه او له ظالمانو سره مرسته،د ظالم درې نښې دي . (پورته منبع)

ðريا كار درې نښې لري :په ډله كې خوښ،ځان ته ځاى كې سست او په هر كار د ډېرې ستاېنې تمه . (پورته منبع)

ðمنافق درې نښې لري: په چارو كې د ناغېړۍ تر پولې سستي، ناغېړي د تباهۍ تر پولې او تباهي د ګناه تر پولې . (پورته منبع)

ðمسافرت عاقل ته غوره نه دى؛خو كه درې موخو ته وي : د معاش لاس راوړو ته،د معاد په چارو كې سمونې ته او حلال خوند ته . (پورته منبع)

 ðعلي ! د نوې مياشت د ليدو پر مهال درې ځل ” الله اكبر ” ووايه او بيا ووايه : شكر د هغه څښتن چې زه او ته يې پېدا كړو او ستا د وهلو لپاره يې منزلونه وټاكل او نړيوالو ته يې د خپل عظمت او قدرت نښې كړې. (پورته منبع)

ðعلي! ځان چې په هېنداره كې ګورې؛نو درې ځل تكبير ووايه او بيا دا دعا ووايه:خدايه!لكه هماغسې،چې دې ښكلې څېره راكړې، ښكلى سيرت او خوى هم راكړه. (پورته منبع)

 ðعلي ! له سخت كار سره،چې مخ شوې ؛نو ووايه : خدايه ! د محمد او آل  په پار  يې اسان كړې . علي وايي: پېغمبر اکرم  مې وپوښته : هغه خبرې څه وې،چې پالونکي آدم ته ور و ښودې (بقره-37) ؟ راته يې وويل:علي ! په رښتيا چې څښتن آدم په “هندوستان” او “حوا” په “جده” كې راكوزه كړه او هغه په “اصفهان” كې و او ابليس د “ميسان” په سيمه كې . په جنت كې هم تر “مار” او “تاووس” غوره څه نه  وو؛ مار د څاروي په څېر څلور بول و،چې شيطان پکې ورننووت او آدم يې تېرايست؛څښتن هم پر “مار” پر قهر شو او پښې يې ترې واخستې او ورته يې وويل:”ستا خواړه مې خاورې كړې او په ګېډه به ګرځې او پر هغه به څښتن و نه رحمېږي،چې پر تا ورحمېږي او “تاووس” ته ددې لپاره پر قهر شو،چې “ابليس” ته يې د هغې ونې لار ښوولې وه ؛نو د”تاووس” پښې او غږ يې خراب كړ. آدم سل كاله په “هند” كې و او تل يې ژړل . څښتن،جبرئيل ورولېږه او ورته يې وويل: آدمه ! لوى څښتن درباندې تر سلامونو وروسته وايي: آدمه ! مګر په خپلو لاسونو مې جوړ نه کړې ؟ خپل روح مې در پو نه کړ؟ خپلې پرښتې مې درته سجده نه کړې؟ آيا  حوا مې ستا مېرمنه نه کړه؟ آيا ته مې په جنت كې مېشت نه کړې؟ آدمه !دا دومره ژړا ګانې د څه دي ؟ دا ټكي پر خوله راوله،چې خداى دې  وبښي:ووايه چې پاك يې ته،بې له تا  بل د عبادت وړ نه دى،بد مې كړي او پر ځان مې تېرى كړى، توبه مې ومنه،چې ډېر توبه منونكى او لورين يې . (پورته منبع)

ðعلي! كه په خپل سامان كې دې مار وليد؛نو مه  يې وژنه،چې درې ځل ورننوځي او كه په څلورم ځل ورننووت؛نو و يې وژنه،چې كافر دى. (پورته منبع)

 ðعلي ! كه د لارې پر سر دې  مار وليد ؛نو  و يې  وژنه؛ځكه له پېري سره مې  تړون كړى،چې د مار په بڼه راښكاره نشي. (پورته منبع)

 ðعلي! بدمرغي څلور ځانګړنې لري:پوچې سترګې، دروند  زړه ، اوږدې هيلې او له دنيا سره مينه. (پورته منبع)

ðعلي ! مخامخ چې دې  ستاېنه وشوه ؛ نو ووايه : خدايه ! ما تر دې غوره كړې؛ لكه څنګه چې دوى زما په باب فكر كوي . هغه ګناهونه مې وبښې،چې دوى ترې خبر نه دي او ما د دوى په خبرو و نه نيسي. (پورته منبع)

ðعلي! د كوروالي پر مهال ووايه : خدايه موږ او اولاد مو له شيطانه وساتې او که څښتن اولاد دركړ؛نو تر  پايه به له شيطانه په امان كې وي . (پورته منبع)

ðعلي! بدن د زيتونو په تيلو غوړوه،چې 40 شپې به له شيطانه خوندي يې.

 ðعلي ! د مياشتې په سر او نيمايي كې كوروالى مه کوه؛ پخپله ګورې،چې ډېرى په دې شپو کې پر مېرګيو اخته کېږي . (پورته منبع)

 ðعلي!چې څښتن اولاد دركړ؛ نو په ښي غوږ كې يې اذان او په کيڼ غوږ كې يې اقامه ووايه،چې شيطان هېڅكله تاوان ور و نه رسوي. (پورته منبع)

 ðعلي! غواړې تر ټولو ناوړه خلك دروښيم ؟ ورته مې وويل:هو ! را ته يې وويل :څوك چې ګناه نه بښي او د خلكو له تېر وتنو نه  تېريږي.آيا غواړې تر دوى هم ناوړه دروښيم؟ ورته مې وويل : هو !  و يې ويل : هغه چې نه يې خلك له شره خوندي وي او نه يې د خېر په تمه وي . (پورته منبع)

ðحمام ته لغړ مه ننوځه،چې لعنت پرې ويل شوى او هم يې پر ورکتونکي. (پورته منبع)

ðګوتمه پر كټه او منځنۍ ګوته مه په ګوته كوه،چې د “لوط” د قوم  دود دى؛خو کچه ګوته مه بې ګوتې کوه. (پورته منبع)

ðڅښتن خوښېږي،چې بنده يې ووايي : خدايه ! ګناوې مې و بښې،چې بې له تا بل بښونكى نشته؛نو د څښتن له لوري خطاب راځي : زما پرښتو!بنده مې پوه شوى،چې بې له ما بل بښونکى نشته؛نو  ګواه وسىء، چې ګناوې مې وروبښلې. (پورته منبع)

ðګوره چې دروغ  و نه وايې؛ځکه دروغ  د مختورۍ او رښتيا د مخروڼۍ لامل  دي؛ رښتيا مبارك او دروغ  شوم دي . (پورته منبع)

ðله غيبت او چغلۍ ځان وساتئ؛غيبت روژه ماتوي او چغلي د قبر د عذاب لامل دى . (پورته منبع)

ðله اړتيا پرته پر څښتن قسم مه خوره او په رښتيا يا په دروغو د څښتن پر نوم قسم مه خوره؛ځكه څښتن پر هغه نه رحمېږي،چې پر نوم  يې قسم خوري . (پورته منبع)

ðد روزۍ غم مه  خوره،د هرې سبا روزي به راورسي . (پورته منبع)

ðله ځېل تېښته کوه،چې  پېل يې ناپوهي او پاى يې پښېماني ده. (پورته منبع)

ðمسواك وهل مه هېروه،چې د خولې د پاكۍ،د څښتن  د رضا او د سترګو د روښانۍ لامل دى . (پورته منبع)

 ðخلال كول د پرښتو مينه راماتوي . هغوى چې تر خوړو وروسته خلال نه کوي؛ نو د خو لې بوى يې  پرښتې خپه كوي . (پورته منبع)

ðغوسه مه کوه او چې غوسه شوې؛نو کېنه او له ځان سره سوچ  وكړه،سره له دې،چې څښتن پر بندګانو واک لري؛خو ورسره حلم كوي او په تېروتنو يې نه نيسي . (پورته منبع)

ðهغه چې ځان ته لګوې؛نو د څښتن لپاره يې ولګوه ه؛نو له څښتن سره به يې ومومې. (پورته منبع)

ðله كورنۍ،ګاونډيانو او ټولو سره پر ورين تندي چلن كوه،چې د څښتن په نزد لوړو درجو ته ورسې . (پورته منبع)

ðهغه چې ځان ته يې نه خوښوې؛نورو ته يې هم مه خوښوه.هغه چې ځان ته غواړې؛نورو ته يې هم غواړه، چې عادل شئ او پر اسمانوالو او ځمكنيو ګران شئ . (پورته منبع)

 

 حكمتونه

په يوه اوږد حديث كې راغلي دي : مشهور راهب “شمعون بن لاوي بن يهودا”(نېکه يې د حضرت عيسى (ع) له حواريونو و )،پېغمبر اکرم ته راغى او پوښتنې يې وكړې،چې د ټولو ځواب يې واورېد،ايمان  يې راووړ او د پېغمبر اکرم رسالت يې تصديق كړ.ددې حديث  يوه برخه :

شمعون وويل : عقل څه دى؟ څرنګه دى ؟ څه چې ترې راولاړېږي او څه چې ترې نه راولاړېږي ؟ او ډولونه يې بيان كړئ ؟

پېغمبر اکرم ورته وويل : عقل د ناپوهۍ عقال (زنګونبند) دى،چې د اوښ له زنګونبند سره تشبيه شوى دى.نفس هماغه تر ټولو چټل ځناور دى ،كه زنګونبند ور وا نه چول شي؛ نو خپلسرى به شي . څښتن عقل پېدا كړ او حكم يې ورته وكړ:راشه . راغى . بيا يې ورته حكم وكړ : ولاړ شه  او عقل ولاړ . څښتن وويل : پر عزت او جلال مې قسم،چې تر تا  مې  مطيع او ستر مخلوق نه دى پېدا كړى . بيا له عقله،حلم راولاړ شو،(ورپسې ) له حلمه،علم او له علمه وده، له ودې عفاف (عفت نفس)،له عفافه،ځان ژغورنه او له ځان ژغورنې، حيا، له حيا وقار او له وقاره پر خېر ټينګار او له شره كركه او د ناصح لاروي را ولاړشوي . دا لس عنوانه (چې له عقله راولاړ شوي) له هر يوه لس نور هم راولاړېږي .

 

د حلم آثار او څانګې

1- ښايسته چلن 2_له نېکانو سره ناسته 3_ له پستۍ سرغړونه4_ ذلت ته غاړه نه اېښوول 5_له نېكۍ سره مينه 6_لوړو درجو ته ورنږدېدل 7_ګذشت يا تېرېدنه 8_ ګوزاره 9_احسان 10_ چوپتيا .

دا هغه ځانګړنې دي ،چې عاقل يې  د حلم له لارې لاس ته راړي .

 

د علم څانګې

1_په نېستۍ كې بسياېنه2_په بخل كې بښنه ( كېداى شي انسان طبعاً بخيل وي؛خو د علم له مخې سخاوت وكړي) 3_ په خوارۍ كې پرتم ( د علم وقار به ورسره وي،سره له دې د خلكو سترګه به ترې نه سوځي) 4_ په ناروغۍ كې روغتيا 5_ په لرې كې نږدې 6_ په سماجت كې حيا 7_ په ټيټوالي كې رفعت يا لوړوالى 8_ په ټيټال كې شرف 9- حكمت 10_ ګټه او مقام .

 دا هغه ګټې دي،چې عاقل يې د علم له لارې لاس ته راوړي  او څومره بختور دى هغه ،چې  هوښيار وي او هم پوه.

 

د ودې څانګې

1_زغم 2_ هدايت يا لارښوونه3_ نېك چلن 4_ تقوا 5_ منال 6_ تعادل 7_ منځ لاري 8- ثواب 9_ كرم 10_ د څښتن د دين پېژندل .

دا هغه ګټې دي ،چې د ودې له لارې د عاقل لاس ته راځي او څومره بختور دى هغه ،چې له روښانې لارې لاس نه اخلي .

 

د عفاف څانګې

1_څه چې لري،ورباندې راضي وي 2_ ځان وړوكى ګڼل 3_ ګټه 4_ هوساېنه5_ تر لاس لاندې سره  زړه سوی6-  ځان ټيټ شمېرل 7_ يادونه 8_ فكر 9_ بښنه 10_ سخاوت .

 

د مړه خواينې يا  ځان ساتنې څانګې

1_ صلاح 2 _ تواضع 3_ تقوا 4_توبه 5_فهم  6_ ادب 7_ احسان 8_مينه ناكېدل 9-خېر رسول 10_ له شره ځان ساتل .

 

د حيا څانګې

1_نرمي 2_لورنې 3 او 4_ په پټه او ښكاره دواړو كې څښتن ته پام 5_ روغتيا 6_ له شره ګوښه كېدل 7_روڼ مخي يا د ورين تندي درلودل 8_ پراخ لاسي 9_ برى 10_ نېکنومي يا د ښه نوم درلودل .

 

 

د وقار څانګې

1-پېرزوېنه 2_دورانديشي (لرليد) يا د پراخ فکر درلودل3_ امانت ساتنه 4_ خيانت نه کول5_ رښتيا ويل 6_ پاكلمني 7_د مال اصلاح 8- له دښمن سره مقابلې ته چمتوالى 9_ له بديو منع 10_ د بې عقله كارونو پرېښوول .

 

پر خير د ټينګار څانګې

1_ د بدو چارو پرېښوول 2_ له حماقته لرېوالى3_له ګناه لاس اخستل 4_ يقين 5_ له خلاصون سره علاقه6_ د رحمان څښتن لاروي 7_ د دليل او برهان درناوى8_ له شيطانه لرېوالى 9_د عدل منل 10_ حق ويل .

 

له شره د كركې څانګې

1_وقار 2_صبر 3_ په كړنلار كې زغم 4_ د هدايت يا لارښوونې دوام 5_ پر څښتن ايمان  6_ د خلكو درناوى  7_ اخلاص 8_ د بې ځايه چارو پرېښوول 9_نصرت 10_پر ګټورو چارو لاس پورې كول .

 

د ناصحانو د لاروۍ څانګې

1_ د عقل ډېروالى 2_د عقل تكامل يا بشپړتيا 3_ ښه پاى 4_ له ملامتيا خلاصون 5_ منل 6_دوستي 7-ورين تندى 8_په چارو كې مخكښي 9_انصاف 10_ د څښتنه د لاروۍ ځواک .

 

د ناپوهه نښې

شمعون وويل : د ناپوهه نښې هم راته ووايئ .

پېغمبر اکرم ورته وويل : که ورسره ملګرى شى؛نو و به دې كړوي . كه ترې ځان راټول كړې؛كنځلې به درته وكړي . كه څه درسره وکړي؛نو د كړنو منت به درباندې كوي او كه څه وركړې؛نو نامننه كوي . كه راز ورته ووايې؛رابرسېروي يې او كه راز درته ووايي؛نو  پر رابرسېرنې به دې تورن كړي . كه كوم ځاى ته ورسي؛نو ځان ترې وركېږي.كه بينوا شي؛ نو د څښتن له نعمتونو انكار كوي او د ګناه پروا نه کوي . په ښادۍ كې پړي شلوي،په غم كې نهيلېږي .خندا يې پر کټ کټ وي او ژړا يې پر سورو. پر نېكانو ملنډې وهي . څښتن پرې ګران نه وي او په پام كې يې نه نيسي،له څښتنه حيا نه کوي او نه يې رايادوي . كه و يې ستايې؛نو درنه خوشحاله وي او له دروغو به درته فضايل جوړ كړي .كه خپه دې كړ؛نو ټولې نېكۍ به دې ورسره په سيند لاهو وي او څه چې يې پر خوله راځي، درته يې وايي .

 

د اسلام نښې

وويې ويل : د اسلام نښې را ته ووايئ .

 رسول اکرم وويل : ايمان ،علم او عمل .

و يې پو ښت : د ايمان ،علم او عمل نښې راته ووايه .

 

ايمان  نښې

پېغمبر اکرم وويل : ايمان  څلور نښې لري : د څښتن پر يو والي اقرار. پر څښتن،كتابونو او پېغمبرانو يې د زړه له كومې اعتقاد يا ګروهنه .

 

 د علم نښې

علم څلور نښې لري : پر څښتن علم ،د پر دوستان علم ،پر الهي واجباتو علم او ورته پام  او څرنګه ،چې پكار وي، هماغسې تر سره شي .

عمل دادى : لمونځ ،روژه ،زكات او اخلاص .

 ويې پوښت : رښتين، مؤمن، د پراخې سينې خاوند، توبه ګار ، شكر اېستونكي ، خاشع، صالح، ناصح، باوري، خلص، زاهد، نېک، پرهېزګار، د متكلف،ظالم،رياكار، منافق،حسود،اسراف كوونكي، غافل ،خاين ،تمبل ، دروغجن او فاسق نښې څه دي ؟

 

د رښتين نښې

پېغمبر اکرم وويل : رښتين څلور نښې لري :خبره يې له واقعيت سره سمون خوري . د څښتن زيرى او ژمنه تصديقوي . پر ژمنه ولاړ وي او تړون نه ماتوي .

 

د مؤمن نښې

د مؤمن نښې : لورنه،فهم او حيا.

 

د پراخې سينې خاوند نښې

د پراخې سينې خاوند څلور نښې دي : په سختيو كې زغم ،د نېكو چارو هوډ،خاکساري او صبر .

 

د توبه ګار نښې

توبه ګار څلور نښې لري : يوازې څښتن ته كار كوي. باطل ته شا اړول. له حقه لاس نه اخستل او د خير په چارو كې بيړه او حرص.

د شكر كوونكي نښې

شكر كوونكى څلور نښې لري : په نعمت كې شكر،په غم كې صبر ، پر قسمت قناعت او بې له څښتنه د بل ستاېنه نه کوي.

 

د خاشع نښـې

خاشع څلور نښې لري : په پټه او ښكاره دواړو كې څښتن ته پام، نېك كارونه کوي او له څښتن سره  د زړه خبرې كول .

 

د صالح نښې

صالح هم څلور نښې لري : پاك زړه ، د عمل سمونه ،سم كسب او خپل ټول كارونه اصلاح ساتي .

 

د ناصح نښې

ناصح څلور نښې لري : قضاوت يې پر حقه وي او مخكې له دې،چې حق ترې وغوښتل شي،حق حقدار ته وركوي . څه چې ځان ته غواړي، نورو ته يې هم غواړي او پر هېچا تېرى نه کوي .

 

د يقين لرونکي نښې

يقين لرونکي شپږ نښې لري : د څښتن پر وجود يقين وكړي او پرې ايمان راوړي . يقين ولري،چې مرګ حق دى او ترې ووېرېږي . يقين ولري،چې قيامت حق دى او د هغه ورځ له رسوايۍ وډار شي. يقين ولري،چې جنت حق دى او ورته پر تمه وي .يقين ولري،چې دوزخ حق دى او ترې د خلاصون لپاره څرګند كارونه وكړي او يقين ولري، چې حساب حق دى او له ځان سره حساب وكړي .

 

د مخلص نښې

مخلص څلور نښې لري : زړه يې روغ رمټ وي (د شرك ،كفر،كينې او….له ناپاكيو پاك وي ) غړي يې روغ وي (بې ازاره وي او ګناه يې پرېښې وي ) خير رسول او شر نه رسول .

 

د زاهد نښې

زاهد لس نښې لري : حرام يې ښه نه ايسي . له شهوته ځان ساتي . واجبات تر سره كوي.كه مريى وي؛نو  لاروي كوي او كه بادار وي؛نو ظالم نه وي . په زړه كې يې كينه نه وي .چاچې ورسره بدي كړي وي، دى ورسره ښه كوي . چا ته يې چې تاوان رسولى وي، ګټه ور رسوي او له ظالمه تېر شي او څښتن ته تواضع وكړي .

 

د نېک انسان نښې

 نېك انسان لس نښې لري : دوستي،دښمني، بېلتون،خوشحالي، عمل، رغبت،وېره ،پاكي ،اخلاص  او حيا يې د څښتن لپاره وي .

 

د تقوا لرونکي نښې

 ساهو او تقوا لرونكى شپږ نښې لري : له څښتنه ووېرېږي .د څښتن له نيوكې ووېرېږي . شپه و ورځ داسې سبا كوي؛لکه څښتن پر سترګو ويني . دنيا ورته ارزښت و نه لري او د ورين تندي له امله د دنيا څه هم ورته ستر نه وي .

 

د متکلف نښې

متكلف څلور نښې لري : په خوشې او بې ګټو خبرو خوله خوځوي . له  خپل ځانه له پورته سره په شخړه كې وي . د هغه څه تمه لري،چې هېڅكله به نه ور رسي او خپل وخت پر هغه څيزونو تېروي،چې ورته ګټه نه لري .

 

د ظالم نښې

ظالم څلور نښې لري : پر مافوق د نافرمانۍ له لارې ظلم كوي . تر لاس لاندې ځوروي .د حق دښمن دى او پر ښكاره تېرې كوي .

 

د رياکار نښې

رياكار څلور نښې لري : د خلكو په مخ كې په الهي كار كې بيړه او په خلوت كې لټي . په ټولو چارو كې تمه لري،چې خلك يې وستايي او ټولې چارې يې نامه ګټنې ته وي .

 

د منافق نښې

منافق څلور نښې لري : باطن يې فاجر٫،ژبه يې له زړه ،وينا يې له كړو او باطن يې له ظاهر سره سمون نه خوري.

 

د کينه کښ نښې

کينه کښ(حسود) څلور نښې لري : د هغه چا غيبت  كوي،چې دى ورسره حسد كوي . غوړه مالي،په مصيبت كې شماتت (څلورم كېداى شي د راوي له قلمه غورځېدلاى وي )

 

د اسراف کوونکي نښې

اسراف كوونكى څلور نښې لري: پر باطل وياړنه،د هغه څه خوړل،چې په لاس كې يې نه وي .د خېر له چارو سره مينه نه لري او پر هغو چارو نيوكې كوي،چې ګټه يې پکې نه وي .

 

د غافل نښې

غافل څلور نښې لري : پر زړو ړوند، سرګرمي يا بوختياوې ،هېرول او تېروتنه.

 

د لټ نښې

لټ څلور نښې لري : د لټۍ تر پولې په كار كې سستي .د تباهۍ او د كار د خرابېدو تر پولې لټي، د ګناه تر پولې تباهي او ملالت.

 

د دروغجن نښې

دروغجن څلور نښې لري : په خپله رښتيا نه وايي . نور هم رښتين نه بولي.چغلي كوي او تور لګوي .

 

د فاسق نښې

فاسق څلور نښې لري : سرګرمي يا بوختياوې،لغو،دښمني او بهتان (تول لګونه).

 

د خاين نښې

خاين څلور نښې لري : له څښتنه سرغړونه، د ګاونډي ځورول،  له خپلوانو سره كينه او له سرغړونې سره مينه .

شمعون وويل : ما ته دې  شفا  راكړه او له ړندېدو دې وژغورلم اوس راته لارښوونه وکړه .

پېغمبر اکرم ورته وويل : شمعونه ! ته په پيريانو او انسانانو كې دښمنان لرې ،چې در پسې دي او درسره په جګړه كې دي،چې دين درنه پټ كړي.د “انس” له ډلې دښمنان هغه دي،چې په اخرت كې درته ګټه نه لري،د څښتن له ثواب سره علاقه نه لري او ټوله هڅه يې دا وې ،چې پر خلكو نيوكې وكړي  او هېڅكله ځان نه ملامتوي .

 په پېريانوكې دى دښمنان شيطان او لښكرې يې دي . كه د اولاد د مړينې پر مهال د صبر غلا كولو ته درپسې راغى؛نو ورته وايه : البته ژوندي مرګ ته  ژوندي دي، زما د وجود ټوټه جنت ته ځي او زه پر دې كار خوښ يم . او كه درته يې وويل : مال دې له لاسه ولاړ؛نو ورته ووايه : د هغه څښتن شكر،چې را يې كړ او وا يې خست  او زكات يې يووړ او نور د زكات پوروړې نه يم . كه درته يې وويل :خلك پر تا تېرې كوي او ته ورته هېڅ هم نه وايې؛نو  ورته ووايه : د قيامت پر ورځ به ورسره ګورم. كه درته ووايي : نېكۍ دې څومره زياتې دي،چې تا ځان ليدى  كړي؛ نو ورته ووايه : بدۍ مې تر نېكيو ډېرې دي .  كه درته يې وويل: ولې مال دې خلكو ته  وركوې؟ ورته ووايه :هغه چې له خلكو اخلم،ډېر دی .  كه درته يې وويل : څومره ډېر لمونځ كوې .ورته ووايه :تر لمانځه مې غفلتونه ډېر دي .  كه درته يې وويل : خلك درباندې څومره تېرى كوي؟ ورته ووايه : هغوى ډېر زيات دي،چې ما پرې ظلمونه کړي .  كه درته ووايي:څومره د عمل خاوند يې؟ ورته ووايه : ډېرې ګناوې مې كړې دي .

 كه درته ووايي : له دنيا سره مينه نه لرې. ورته ووايه  :پر هغه  چې نو ر غره شوي زما ښه نه راځي.

 شمعونه ! له نېکانو سره ناسته پاسته كوه او د يعقوب، يوسف او داوود په څېر د پېغمبرانو لاروي كوه .

څښتن ،چې لاندېنۍ پوړ پېدا كړ؛ نو پر ځان  ونازېد او ويې  ويل : څه كړاى شي پر ما بر لاس شي ؟ څښتن ځمكه پېدا كړه او بيا  يې هواره كړه،چې ارامه  شوه بيا ځمكې وياړ وكړ او ويې ويل : څه به پر ما بر لاسى شي ؟ څښتن غرونه پېدا كړل او د ميخونو په څېر  يې د ځمكې پر ملا ور وټومبل ،چې ميشته يې  وخو زاول .ځمكه رام شوه او ارامه . بيا غرونو پر ځمكه ځان پورته وګاڼه او غره وويل : څوك به پر ما بر لاسى شي؟خداى اوسپنه پېدا كړه او غرونه يې څېرې كړل . اوسپنې پر غرونو كبر وكړ او ويې ويل : څوك به پر ما برلاسى شي ؟ څښتن اور پېدا كړ ، چې اوسپنه يې ويلې كړه او اوبه يې كړه.اور غره شو او هغه هم وويل : پر ما به څوك برلاسى شي؟ څښتن اوبه پېدا كړې او اور يې پرې مړ كړ. اوبه غره شوې او ويې ويل :څوك به پر ما بر لاسى شي؟ څښتن باد پېدا كړ او د اوبو څپې يې په حركت كړې.باد غره شو  او و يې ويل : څوك به پر ما برلاسى شي ؟ څښتن انسان پېدا  كړ او انسان هم هغسې ځايونه جوړ كړل ،چې نه پرې باد اغېز لري او نه  نور څه . باد رام شو؛خو انسان سرغړونه پيل كړه او ويې ويل: له ما بل ځواکمن څوك دى؟ څښتن مرګ پېدا كړ او انسان يې پرې رام كړ . مرګ ځان ته غره شو. د څښتن له اړخه خطاب راغى : پر ځان مه نازېږه ،چې په دوزخيانو او جنتيانو كې به در نه سر پرې كړم او نور به دې  ژوندى  پرېنږدم.

بيا پېغمبر اکرم  وويل: حلم  پر غضب بر لاسېږي،مينه پر كينه او صدقه پر ګناه. (تحف العقول)

 

د يمن د والي کولو پر مهال

حضرت معاذ بن جبل ته د پېغمبر اکرم (ص)  سپارښتنې

ðمعاذه ! د هغه سيمې خلكو ته قرآن وښيه،پر ښاېسته او نېكو اخلاقو يې وروزه . نېك او بد هر يو په خپل ځاى كې وټاكه ( ښو او بدو ته په يوه سترګه مه ګوره ). د څښتن حكم پرې پلى كړه. د څښتن په كار او مال كې له هېچا مه وېرېږه؛ځكه نه ولايت ستا دى او نه مال (چې هغه په خپله خوښه مصرف كړې)امانتونه يې بېرته وركړه،كه لږ وي او كه ډېر.د مدارا او ګذشت كړنلار له لاسه مه وركوه؛خو  د چا حق تر پښو لاندې نه کړې او هغه ناپوهه دى،چې وايي : د څښتن له حقه تېر شوم.كه په كوم كار كې له نيوكې وېره وي؛نو مخكې له مخكې د هغه كار مصلحت او حكمت خلكو ته بيان كړه.چې بې ځايه نيوكې درباندې نه کوي . د جاهليت ټول دودونه له منځه يوسه،بې له هغوى چې اسلام تاييد كړي وي.  اسلام ټكى ټكى خلكو ته وښيه .خپل ځان ډېر پر لمانځه بوخت كړه،چې د دين د اصولو تر منلو وروسته تر ټولو غوره ركن دى . خلكو ته د څښتن او اخرت يادونه وكړه،د وعظ او نصيحت لاروي كوه،چې د څښتن خوښو كارونو ته لا پسې نور هم غښتلى شى . د اسلامي ښوونو خپرولو ته هرې لورې ته ښوونكى ولېږه . د هغه څښتن عبادت وكړه،چې ورستنېدل دې يې پر لور دي او د څښتن په كار كې د هېچا له رټنې مه وېرېږه . تا ته له څښتن د وېرې ،رښتيا ويلو،پر ژمنه او تړون درېدنه، امانت ساتنه،خيانت نه كول،پسته ژبه ، سلام كول ،د ګاونډي خيال ساتل،پر پلار مړيو زړه سوی،نېک عمل ،د هيلو لنډوالی ،له اخرت سره مينه ،له حسابه وېره،د ايمان لاروي،په قرآن كې تدبر ،غوسه سړې اوبه اړول، او د تواضع  سپارښتنې كوم . ګوره ،چې كوم مسلمان ته كنځلې ونه کړې او د ګناهكار لاروي ونه کړې . له عادل امامه سرغړونه و نه کړې . رښتين مه تكذيبوه. دروغجن مه دروغجنوه او په هر ځاى كې چې يې،څښتن مه هېروه .د هرې پټې او ښكاره ګناه  په خاطر توبه وباسه  معاذه!كه داسې نه واى،چې كاته مو د قيامت له ورځې مخكې واى؛ نو خپل وصيت به مې درته لنډ كړى واى؛خو  داسې  وينم،چې نور به يو بل ونه وينو.معاذه ! ځان پوه كړه ، چې په تاسې كې به تر ټولو هغه پر ما ګران وي،چې هماغسې،چې رانه بېل  شوى وي، را سره وويني. (تحف العقول)

 

د پېغمبر اکرم (ص) غوره ويناوې

ðهر څه شرف لري او د غونډې شرف مخ پر قبل ناسته ده. (تحف العقول)

ðڅوك چې غواړي تر ټولو پر څښتن ګران وي؛نو له څښتن دې ووېرېږي . (تحف العقول)

ðڅوك كه غواړي په خلكو كې تر ټولو پياوړى وي؛نو پر خداى دې توكل كوي . (تحف العقول)

ðڅوك چې غواړي تر ټولو مړه خوا ووسي؛نو څه چې د څښتن په لاس كې دي،د خپلو لاسونو په پرتله دې پرې ډېر اعتماد وکړي . (تحف العقول)

ðبيا پېغمبر اکرم (ص) وويل : آيا غواړئ تر ټولو بد خلك در وښيم؟

ورته وويل شول : هو را و يې ښيه !

هغوى،چې له خلكو بېل اوسي، له خلكو سره مرسته نه کوي او خپل مريى په كوړو (دورو) وهي.

پېغمبر اکرم (ص) وويل : تر دوى نه بد هم در وښيم ؟

ورته وويل شول : هو را و يې ښيه !

 هغوى،چې د نورو له تېروتنو نه تېريږي او د خلكو عذر نه مني.

پېغمبر اکرم (ص)  وويل: تر دوى دوى بد هم در وښيم ؟

ورته وويل شول :  هو را و يې ښيه .

 هغه چې نه يې خلك خير ته په تمه وي او نه يې له شره په امان كې وي .

پېغمبر اکرم وويل : تر دوى بد هم در وښيم ؟

ورته وويل شول : هو را و يې ښيه .

هغه چې له خلكو سره دښمن وي او خلك له هغه سره دښمن. (تحف العقول)

ðحضرت عيسى (ع) د بني اسرايلو په يوه غونډه كې د يوې وينا په ترڅ كې وويل : د يعقوب پرګې!حكميانه خبرې بې عقلو ته مه كوئ ، چې پر خبره ظلم دى؛خو  كه حكميانه خبره مو يې اهل ته ونه کړې؛نو پرهغوى مو ظلم كړى دى . (تحف العقول)

ðخلكو! تاسې د نېكمرغۍ پر لار يو لړ نښې لرئ؛ورته پام وكړي،تاسې يو نهايي موخه لرئ ،ورته ځان ورورسوئ . (تحف العقول)

ðمؤمن تل دوې وېرې لري : له تېر شوي وخته وېره،چې خداى به په هغې كې څه كوي او له راتلونكي ويره ،چې الهي قضا او قدر به پکې څرنګه وي؛نو بنده بايد له خپل وجوده خپل ځان ته ،له دنيا څخه د اخرت لپاره ،له ځوانۍ څخه بوډاتوب ته او له ژونده د مرګ لپاره ګته واخلي.قسم پر هغه څښتن ،چې ژوند مې يې په لاس كې دى،تر مرګ وروسته د بښنې او رضايت غوښتو وخت نه دى او تر دې دنيا وروسته يوازې  دوزخ دى او جنت . (تحف العقول)

 

 

پوهه،ناپوهي او عقل

ðد پوهې زده كړې ته ملا وتړئ،چې زده كړه يې حسنه ،وينا يې تسبيح، څېړنه پکې جهاد،ناپوه ته يې ورښوول صدقه او خپرول يې پر څښتن د ګرانېدو لامل دى؛ځكه پوهه د حلال او حرام  لارښوونكې،زده كوونكي يې جنت ته بوځي ،په يوازېتوب كې مل،په غربت كې ملګرې،په سخته كې لارښونكې،د دښمن پر وړاندې وسله او دوستانو ته سينګار او ښكلا ده. خداى په پوهه قومونو ته ترقي وركوي ،د خېر په چارو كې يې مخكښوي، په چارو كې بركت راځي،د ټولو په سترګو كې وي او ټول خلك به يې تقليد كوي ،پرښتې ورسره دوستي كول غواړي او بله دا چې علم د سترګو رڼا او د زړونو قوت دى .

خداى به عالم د خپلودوستانو په منزل كې مېشت کړي او په اخرت كې به يې د نېكانو ناسته په برخه كړي . (تحف العقول)

ðعلم د خداى د پېژندنې،لاروۍ او عبادت وسيله ده .په علم د څښتن يووالي ته رسېداى شو.له خپلوانو سره نېكي كولاى شو، حلال له حرامو بېلولاى شو او بالاخره علم د د عقل څراغ دى . (تحف العقول)

ðڅښتن نېكمرغو ته پوهه وركوي او بدمرغه به هغه وي،چې څښتن علم نه وي وركړى . (تحف العقول)

ðهوښيار هغه دى،چې ناپوهه ته يې وربښي،له ظالمه تېر شي،تر لاس لاندې کسانو باندې لورين وي،په نېكۍ كې تر چا مخكښ وي،خبرې ته پام كوي او بيا يي له خولې راوباسي،د فتنې پر مهال څښتن ته پناه وړي او خوله او لاس ساتي او چې فضيلت وويني؛ غنيمت يې ګڼي او هېڅكله حيا له لاسه نه وركوي . (تحف العقول)

ðجاهل هغه دى،چې  خپل ملګرى ځوروي،تر لاس لاندې کسانو باندې لورين نه وي،خبرې ته پام نه کوي او له خولې يې راباسي،خبره يې بېځايه او چوپتيا يې غفلت وي او چې فتنه راشي؛نو ځان به پکې ډوب كړي او چې فضيلت راشي؛نو لټ به شي . نه له پخوانۍ ګناه پښيمانه وي او نه په راتلونكې كې له ګناه كولو پروا لري . په نېکو چارو كې لټ وي،چې يې له لاسه وركړي وي،چورت نه خرابوي . (تحف العقول)

 

د پېغمبر اکرم (ص) موعظې

ðولې وينم،چې د دنيا مينه د ځينو پر زړونو برلاسې شوې،چې ګوندې مرګ په دنيا كې نورو ته ليكل شوى او د حق مراعاتول پر نورو واجب شوي دي او د مړو كيسې،چې اوري؛نو ورته تللي مسافر ښكاري،چې يو څو ورځې وروسته به بېرته دې دنيا ته راستانه شي.مړي خاورو ته سپارئ،ميراث يې خورئ،تاسې  ژوندي ياست؛خو له تېرو عبرت نه اخلئ؟ د څښتن د كتاب هره موعظه مو شاته اچولې او هېره كړې مو ده (او داسي د غفلت پر خوب ويده ياست،چې ته وا) د هر بد عاقبت له شره په امان كې ياست .

 له هغه ناوړو پېښو وېرېږئ ،چې  په لار كې دي او څومره بختور دى هغه چې له څښتن وېره يې د خلكو له وېرې وژغوري .  (تحف العقول)

 

بختور

ðڅومره بختور دى هغه چې كسب يې پاك،باطن يې ښايسته او ظاهر او اخلاق يې نېك وي .  (تحف العقول)

ðڅومره بختور دى هغه چې د زيات مال بښنه او د اضافه خبرې ساتنه کوي . (تحف العقول)

ðڅومره بختور دى هغه چې د څښتن پر وړاندې تواضع ولري او بې  له دې،چې زما له سنته سروغړوي،له حلالو  تېر شي او له مباحو خوندونو تېر شي او زما له سنته له سرغړونې پرته  د دنيا له  زر او زېوره سترګې پټې كړي او تر ما وروسته زما د كورنۍ د نېكانو لاروي وكړي او له فقهاوو او حكيمانو سره ناسته پاسته ولري او پر بېوزليو ورلورېږي . (تحف العقول)

ðڅومره بختور دى هغه چې پر حلاله يې وګټي او پر حلاله يې ولګوي او پر مسكينانو رحم او ورته بښنه وكړي او له متكبرانو، وياړپلوريو،پر دنيا له مينانو،زما په دين او په سنت كې له بدعت اېښوونكيو ځان لرې وساتي.

ðڅومره بختور دى هغه ،چې له خلكو سره پر ښه اخلاقو چلن كوي، په ستونزو كې يې لاس نيوى وكړي او خپل شر ترې راواړوي. (تحف العقول)

 

په حجة الوداع كې د پېغمبر اکرم (ص)  خطبه

د څښتن شكر او ستاېنه يې كوم،مرسته ترې غواړم،د بښنې يې غوښتونكى يم،درشل ته يې توبه كوم.له اماره نفس او له ناوړه چارو ترې پناه غواړم .چا تهچې څښتن هدايت او لارښوونه وكړه؛ نو بل به بې لارې نه  کړي او څوک چې د خپلو ناوړه چارو له امله څښتن بې لارى كړ؛نو  لارښوونكې به و نه لري .

د څښتن بندګانو! تاسې ته له خدايه د پروا سپارښتنه كوم او له نه مو لاروۍ ته مو رابلم  او په هغه كې مو ،چې سلا وي له څښتنه پكې برى غواړم . هغه څه چې درته وايم ښه ورته غوږ شئ؛ځكه  نه پوهېږم ،چې بل كال ته به مو دلته په همدې ځاى كې بيا وينم كه نه !

خلكو! لكه هماغسې،چې دا ورځ (حج) او د مکې ښار محترم دى ستاسې وينه او پت هم محترم دى . د بل د وينې او د پت د تويېدو حق تر هغه نه لرئ،څو د څښتن ليدو ته راشئ .

خلكو ! درته مې وويل او خدايه ! ته مې شاهد وسه .

 له چا سره ،چې د چا امانت وي،هغه دې بېرته وركړي . د جاهليت د وخت ټول سودونه له اعتباره غورځوم او تر ټولو لومړى د خپل تره “عباس بن عبدالمطلب” ربا له اعتباره غورځوم . څوك د جاهليت د وخت د وينې غوښتنه نشي كړاى او د هغه وخت لومړى وينه،چې بښم، د خپل د تره د زوى “عامر بن ربيعه بن حارث بن عبدالمطلب” ده.د كعبې د خدمت  کوونې او د حاجيانو له خړوبولو پرته،د جاهليت د وخت نور ټول منسبونه له اعتباره غورځېدلي دي . په لوی لاس قتل قصاص لري او  لوی لاس ته ورته وژنه سل اوښان ديه لري او تردې ډېر غوښتل د جاهليت د وخت دود دى .

 خلكو ! شيطان له دې نهيلى شوى،چې نور يې په دې سيمه كې د څښتن په نامه عبادت وشي او يوازې هيله يې داده ،چې د هغو ګناهونو له امله پر تاسې خپل عبادت وكړي،چې تاسې يې وړې شمېرئ . خلكو ! نسی كفر دى (له خپل وخته بل وخت ته د حرامو مياشتو ځنډول) كافران له دې لارې خپلې بې لارۍ زياتوي . يو كال حرامې مياشتې حراموي او بل كال يې حلالوي ،چې له الهي حرامو مياشتو سره يې تطبيق كړي . ( إِنَّمَا النَّسِيءُ زِيَادَةٌ فِي الْكُفْرِ يُضَلُّ بِهِ الَّذِينَ كَفَرُواْ يُحِلِّونَهُ عَامًا وَيُحَرِّمُونَهُ عَامًا لِّيُوَاطِؤُواْ عِدَّةَ مَا حَرَّمَ اللّهُ فَيُحِلُّواْ مَا حَرَّمَ اللّهُ زُيِّنَ لَهُمْ سُوءُ أَعْمَالِهِمْ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ(توبه _37)= رښتيا خبره همدا ده،چې نسى [= د حرامو مياشتو بېځاى او ځنډول] د (مشركانو) په كفر كې زياتوالى دى،چې کافران پرې بې لارې كېږي،هغه په يو كال كې حلالوي او(بل ) كال يې حراموي،چې د خداى د حرامو شويو مياشتو شمېر پوره كړي او په پايله كې څه چې خداى حرام كړي،(پر ځان) حلا ل كړي،د هغو ناوړه كړه ورته ښايسته كړاى شوي دي او خداى د كافرانو ټولي ته سمه لار نه ښيي .

 څښتن په قران كې وايي : إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ عِندَ اللّهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِي كِتَابِ اللّهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَات وَالأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ فَلاَ تَظْلِمُواْ فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ وَقَاتِلُواْ الْمُشْرِكِينَ كَآفَّةً كَمَا يُقَاتِلُونَكُمْ كَآفَّةً وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ = په حقيقت كې د مياشتو شمېر له هماغه ورځې،چې خداى اسمانونه او ځمكه پيدا كړي،په الهي كتاب كې دولس دي؛څلور مياشتې يې حرامې دي (،چې جنګ جګړه پکې منع ده) دا سم ثابت (الهي) قانون دى؛ نو ځكه په دې مياشتو كې پر ځان ظلم مه کوئ (او له هر ډول وينې تويونې ډډه وكړئ ) او (د جګړى پر وخت) ټول له مشركانو سره وجنګېږئ؛لكه څنګه چې هغوى ټول له تاسې سره جنګېږي او پوه شئ،چې خداى د پرهېزګارانو مل دى. (توبه/36)

چې څلور مياشتى يې حرامى دي : ذوالقعده ،ذوالحجه او محرم پرله پسى او رجب ترې بېله ده .

خلكو! درته مې وويل . خدايه  ته مې شاهد وسه .

خلكو ! ښځې پر تاسې او تاسې پر هغوى حقونه لرئ او هغه دا چې څوك خپلې بسترې ته رانننباسي،پر خپله لمنه داغ و نه لګوي او ستاسې له اجازې پرته څوك كور ته رانننباسي او كه عفت يې له لاسه وركړ؛نو څښتن حق دركړى،چې سختي ورسره وكړئ او په خپله بستره كې ځاى ور نه کړئ (او كه نرمۍ ځواب ور نه کړ؛نو ) و يې وهئ؛خو  نه ډېر دردناك؛نو كه درسره يې ومنله؛نو خوراك او څښاك يې پر تاسې دى؛ښځې له تاسې سره د څښتن امانتونه دي او د قرآن د حكم له مخې ورسره كوروالى درته حلال شوى؛نو د هغوى په هکله له څښتنه ووېرېږئ او ورسره نېكي زما سپارښتنه ده .

خلكو ! مؤمنان سره ورونه دي او د ورور مال بل ته حلال نه دى؛خو د هغه په خپله خوښه .

خدايه ! ته شاهد وسه ،چې خلكو ته مې وويل .

 خلكو! ګورئ چې تر ما وروسته بېرته  پخواني كفر ته ستانه نشئ،سره لاس و ګريوان نشئ او د يو بل وينه تويه نه کړئ . ما تاسې ته يادګار پرېښى دى؛نو كه منګولې مو پرې ولګولې؛ نو هېڅكله به بې لارې نشئ : د  څښتن كتاب او زما كورنۍ.

 خدايه  !  ته شاهد وسه،چې خلكو ته مې وويل .

 خلكو ! ستاسې څښتن يو ،پلار مو يو،ټول د آدم اولاده او له خاورې پېدا شوي ياست.په تاسې كې به هغه پر څښتن ګران وي ،چې تر ټولو يې تقوا ډېره وي .عرب  پر عجم غوراوى نه لري؛ خو چې تقوا يې ډېره  وي .

 خدايه  ! شاهد وسه ،چې خلكو ته مې وويل .

هغوى چې دلته دي؛دا خبرې دې هغو ته وكړي،چې نه دي راغلي . خلكو! څښتن هر وارث ته په ارث کې برخه ټاكلې ده؛وارث ته تر درېمې برخې وصيت كول  نه دي په كار .

 د كورنۍ ماشوم د كور په خاوند پورې اړه لري او د زنا كوونكي  په برخه کې د ډبرو ګوذارونه دي .

هر اولاد،چې له خپل پلاره انكار وكړي او مريي،چې له خپل بادار پرته بل انتخاب كړي؛ نو څښتن،ټولې پرښتې او  ټول خلك به پرې لعنت وايي او څښتن به يې يوه غوښتنه هم نه مني .(تحف العقول)

 

د پېغمبر اکرم (ص)  لنډې خبرې

ðمړينه غوره واعظ،تقوا غوره بې نيازي،عبادت غوره مشغله ، قيامت غوره د ستنېدنې ځاى او څښتن غوره ثواب وركوونكى دى . (تحف العقول)

ðدوه نېكې ځانګړنې دي،چې ترې غوره نشته: پر څښتن ايمان او د څښتن بندګانو ته ګټه  رسول . (تحف العقول)

ðدوه بدې ځانګړنې دي،چې هېڅ  هم ترې بد نشته : شرك او د څښتن د بندګانو ته خېر نه رسول . (تحف العقول)

ðيو سړي رسول اکرم (ص) ته وويل:د څښتن استازيه ! داسې نصيحت راته وكړه،چې خدای مې پرې ګټه را ورسوي . پېغمبر اکرم: مرګ ډېر يادوه،چې د دنيا مينه دې له زړه وباسي،د څښتن شكر كوه،چې نعمت دې زيات كړي او دعا ډېره كوه؛ځكه  د دعا د قبلېدو له وخته خو خبر نه يې.ظلم مه کوه؛ځكه خداى په قرآن كې وايي:خداى هغوى ته برى وركوي ،چې پرې ظلم شوى وي. خلكو ! ستاسې ظلم يوازې ستاسې په تاوان دى.( فَلَمَّا أَنجَاهُمْ إِذَا هُمْ يَبْغُونَ فِي الأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ يَا أَيُّهَا النَّاس إِنَّمَا بَغْيُكُمْ عَلَى أَنفُسِكُم مَّتَاعَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ثُمَّ إِلَينَا مَرْجِعُكُمْ فَنُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ=( نو) چې خداى هغوى وژغوري (؛نو بيا) په ناحقه پر ځمكه سرغړونه كوي. خلكو! دا سرغړونه ستاسې په خپل زيان ده،د دنيا له ژونده خوندونه (اخلئ؛ خو) بيا مو ستنېدل يوازې زموږ لوري ته دي؛نو څه چې تاسې تل كول،له هغو به مو خبركړو .(يونس 23) له مكر او دوكې ځان ژغوره ؛ځكه په قرآن كې راغلي:مكر او ناروا دسيسه يوازې د خاوند په نصيب كېږي. (فاطر43) (تحف العقول)

ðډېر ژر به د واكمنۍ حرص واخلئ؛خو  ډېر ژر به مو د پښېمانۍ لامل شي.واكمني هغه مور ده،چې اولاد ته ښې شېدې وركوي؛ خو  ډېر بد يې له تي غوڅوي. (تحف العقول)

ðهغه قوم،چې خپل واك ښځو ته وركوي؛نو د نېكمرغۍ څېره به و نه ويني. (تحف العقول)

ðوپوښتل شول :كوم ملګرى تر ټولو غوره دى ؟ هغه چې د څښتن د په ياد كې وې،ملګرى دې وي او چې درنه څښتن هير شو در په ياد يې كړي . (تحف العقول)

ðوپوښتل شول : تر ټولو بد خلك كوم دي؟ فاسد عالمان . (تحف العقول)

ðڅښتن مې راته د نهو څيزونو سپارښتنه کړې : اخلاص؛ په پټه او ښكاره . عدالت؛په هوسايۍ او غضب كې.منځ لاري؛ په  فقر او غنا كې . وبښم هغه ،چې پر ما يې ظلم كړى وي. تګ  راتګ له هغه سره، چې ځان يې رانه شلولى وي. د سكوت پر مهال فكر،په وينا كې ذكر او په كتو كې عبرت . (تحف العقول)

ðعلم په ليكلو اېل كړئ . (تحف العقول)

ðپه تېزه تګ د مؤمن وقار له منځه وړي . (تحف العقول)

ðد مال خاوند بې ګناهان کله داسې تورنوي ،چې د هغه جرم تر غله زياتېږي . (تحف العقول)

ðپه ځاى سخي پر څښتن ګران دى . (تحف العقول)

ðچې واكمنان مو نېك سيرته،شتمن مو بښونكي او چار مو په  مشوره وي؛نو  د ځمكى سر درته د ځمكې تر تله غوره وي؛خو چې واكمنان مو بد سيرته ، شتمن مو بخيلان او چارې مو د ښځو په لاس كى وي؛نو د نس خاورې به درته د ځمكې تر سره غوره وي . (تحف العقول)

ðڅوك چې تل دا درې نعمتونه ولري؛نو د دنيا نعمتونه پرې پاى ته رسېدلي دي: روغتيا،د دښمن له شره امان او د يوې شپې ورځې رزق او كه څلورم نعمت؛يعنې ايمان هم ورسره شي؛نو د دنيا او آخرت نعمتونه پرې پاى ته رسېدلي دي . (تحف العقول)

ðپر هغه عزيز،چې اوس ذليل شوى،هغه شتمن،چې اوس بېوزله شوى او هغه عالم،چې په ناپوهو كې راښکېل شوى وي،ورحمېږئ. (تحف العقول)

دوه ځانګړنې ډېرو ته د فتنې لامل دي : روغتيا او بېكاري (يا هوسايي). (تحف العقول)

ðد انسان په خټه كې اغږل شوي،چې هغه يې ښه راځي،چې ورسره نېكي كوي او هغه يې بد ايسي،چې ورسره بدي كوي.   (تحف العقول)

ðموږ پېغمبرانو ته دنده راكړل شوې،چې له هر چا سره د هغه د عقل هومره خبرى وكړو. (تحف العقول)

ðپر هغوى لعنت ويل شوى،چې د خپلو دندو پېټي پر بل وراچوي. (تحف العقول)

ðعبادت اوه برخې لري،چې تر ټولو غوره يې د حلال رزق ګټل دي . (تحف العقول)

ðبنده نه په عبادت كې مجبور او بې اراده دى او نه په ګناه كولو كې. څښتن مغلوب او مقهور دى،څښتن خپل بندګان سرايله نه دي پريښي، پر هر هغه قدرت برلاسى دى،چې بنده ته يې وركړى او په خپله د هر هغه څه خاوند دى،چى بنده ته يې وركړى دى او خداى ته هر څه اسان دي. (تحف العقول)

 ðپېغمبر اکرم د خپل زوى “ابراهيم” په وير كې وويل: (( زه ستا پر مړينه ډېر زيات خپه يم؛خو هېڅكله به داسې څه و نه وايم،چې پالونکى مې پرې رانه خپه شي.)) (تحف العقول)

ðښكلا  په ژبه كې ده. (تحف العقول)

 ð ( د علم د ناشكرۍ او د الهي قهر د راتګ پر مهال ) علم له خلكو نه اخلي؛بلكې عالم ترې اخلي،چې پرې د عالمانو په څېر (عالمان نه وي ) واكمنان شي او معارف او ديني مسايل له هغوى پوښتي او هغوى هم پرې نه پوهېږي؛خو ځواب وركوي،په خپله بې لارې دي او نور هم بې لارې كوي . (تحف العقول)

ðزما د امت تر ټولو ستر جهاد د “مهدي آخرالزمان” راتګ ته تمه ده. (تحف العقول)

ðزما په امت كې تر ټولو هغه بختور دى،چې: د دنيا متاع  يې لږه وي،  لمونځ كوي،په خلوت كې عبادت كوي، وركنومى ژوند كوي،د اړتيا هومره  يې روزي وي  او په همدى حال د عمر تر پاى پورى وي او ډېر ميراث ترې پاتې نشي . (تحف العقول)

ðپر مؤمن غم،خپګان او درد د هغه د ګناه  د كفارې لپاره راځي . (تحف العقول)

ðڅوك چې غواړي هر خواړه وخوري؛ودې خوري او هره جامه،چې اغوستل غواړي؛وا دې يې غوندي او په هره سپرلۍ كې،چې سپرېدل غواړي؛سپور دې شي؛نو څښتن دې ورته د رحمت په سترګه نه ويني(څو له دې هوسپالنې لاس واخلي) (تحف العقول)

ðوپوښتل شو:په دنيا كې تر ټولو د چا کړاو ډېر دى . ويې ويل :د پېغمبرانو او څوك چې په دې  لار كې ثابت قدمه وي . پر مؤمن د ايمان هومره بلاوې راځي،د چا چې ايمان كامل او عمل يې نېك وي؛نو کړاوونه او سختۍ يې هم ډېرې وي او د هغه چې ايمان لږ وي؛کړختونه يې هم لږ وي . (تحف العقول)

ðكه دنيا خداى ته د مچ  د وزر هومره ارزښت هم درلود؛نو كافر او منافق ته به يې په دنيا كې پيڅاڼى هم نه و وركړى. (تحف العقول)

ð هېڅ عمل به نه وي،چې اور ته د نږدېدو لامل ګرځي او تاسې مې ترې خبر كړي نه ياست او ژغورلي مې ترې نه ياست او داسې عمل به  نه وي، چې جنت ته  د ننووتو لامل وي او تاسې ته مې نه وي ښوولى او يا مې ورته  رابللي نه ياست . روح الامين راغى او زما زړه ته يې الهام وكړ،چې هېڅ بنده تر هغې مخكې  مړ نشي،څو يې خپله روزي بشيړه نه وي خوړلي؛نو د روزۍ لاس ته راوړو ته نېك لاري وسئ ( په ناوړه چارو يې لاس ته مه راوړئ ) پام مو وي،چې د روزۍ ځنډ د دې لامل نشي،چې خدايي قسمت له حرامو لاس ته راوړئ ،چې حلاله روزي يوازې په حلاله ګټل كېږي. (تحف العقول)

ðڅښتن د دوو غږونو دښمن دى : په مصيبت كې چغې او سورې او په نعمت كې شپيلي. (تحف العقول)

ð له بندګانو د څښتن د خوښۍ نښې دوې دي : د  نرخونو ارزاني او د واكمن عدالت او له بندګانو د څښتن د ناخوښۍ نښې د نرخونو ګراني او د واكمن ظلم دى. (تحف العقول)

ðڅوك چې  دا څلور ځانګړنې ولري؛نو د څښتن په ستر نور كې به وي : له ګناهونو ژغورونکى يې، د څښتن د يووالي شهادت او زما رسالت وي. ب : په مصيبت كې يې پر خوله انا لله و انا اليه راجعون وي . پر نعمت كې يې الحمدالله پر خوله وي. په ګناه كې يې پر خوله استغفرالله واتوب اليه وي . (تحف العقول)

ðڅوك چې څلور خويونه ولري؛نو له  څلورو نعمتونو به بې برخې نشي : څوك چې استغفار كوي؛نو له بښنې به بې برخې نشي.څوك چې شكر ايستونكې طبع ولري؛نو د نعمت له ډېروالي بې برخې نشي.څوك چې توبه ګار وي؛ نو د توبې له قبلېدو به محروم نشي او څوك چې دعا كوي؛ نو د حاجت له پوره كېدو به بې برخې نشي  . (تحف العقول)

ðعلم په داسې خزانه كې دى ،چې كونجي يې پوښتنه ده . (تحف العقول)

ðپر تاسې دې څښتن ورحمېږي؛وپوښتئ،چې په تاسې كې به څلور كسان د پوښتنې اجر وړي : پوښتونكى، ويونكى، اورېدونكى او هغه ،چې له دوى سره مينه لري . (تحف العقول)

ðعلماء وپوښتئ ! له حكيمانو سره خبرې وكړئ او له بېوزليو سره ناسته پاسته وكړئ . (تحف العقول)

ð له ما سره د علم فضيلت د عبادت تر فضيلته ډېر دى . (تحف العقول)

ð تقوا غوره  لار ده. (تحف العقول)

ðڅوك چې نه پوهېږي او فتوا وركړي؛نو  د ځمكې او اسمان پرښتې پرې لعنت وايي . (تحف العقول)

ðستر غمونه ستر ثوابونه لري .پر څښتن چې هر بنده ګران وي؛نو راګېروي يې او څوك چې پر كړخت راضي وي؛ نو څښتن به ترې راضي وي او څوك ،چې ترې ناراضي وي؛نو څښتن به ترې ناراضي وي . (تحف العقول)

ðيو سړي له پېغمبر اکرمه د نصيحت غوښتنه وكړه. ورته يې وويل:كه وكړول شې او په اور كې هم واچول شې؛نو شرك و نه کړې؛خو دا چې د ځان د خلاصون لپاره داسې خبره وكړې،چې له زړه دې نه وي .د مور و پلار حكم  منه. مړه وي او كه ژوندي،ورسره نېكي كوه او كه در نه يې وغوښتل ،چې له مال او عياله لاس واخله؛نو و يې وكړه، چې دا د ايمان  يوه برخه ده. (تحف العقول)

 ðپه لوى لاس واجب لمانځه ته مه شا کوه او چا چې داسې وکړل؛نو له الهي  ژمنې او امانه وځي . (تحف العقول)

ðله شراب او هر مستونكي ځان وژغوره،چې د هر شر كونجي ده. (تحف العقول)

ðد “بني تميم” له ټبره “ابواميه” پېغمبر اکرم ته وويل: ((خلک څه ته رابلئ؟)) پېغمبر اکرم:زه او لارويان  مې  په بصيرت او بشپړه پوهه خلك څښتن ته رابلو،هغه چا ته رابلو يې،چې كه د سختۍ په و خت كې ترې مرسته وغواړې؛نو سختي به دې اسانه کړي،كه په غم او خپګان كې ترې  مرسته  وغواړې؛نو ملګرتيا به دې وكړي او كه په تنګ لاسۍ كې ترې  وغواړې؛نو بې نيازه به دې  كړي.سړي ورته يې وويل : محمده ! ما ته نصيحت وكړه. پېغمبراکرم: غوسه مه کوه. سړى : نور نصيحت هم راته و كړه .پېغمبر اکرم:چې ځان ته يې خوښوې؛ نورو ته هم يې خوښوه. سړى : نور نصيحت هم راته  وكړه.پېغمبر اکرم:كنځلې مه کوه ،چې درته ونشي. سړى : نور نصيحت هم راته وكړه. پېغمبر اکرم : د هغوى له اهل سره په  احسان او نېكۍ مه ستړى كېږه، چې له دنيا به وروسته پاتې شې . سړى : نور نصيحت  هم راته  وكړه . پېغمبر اکرم: له خلكو سره مينه وكړه ،چې مينه درسره وشي. له كورنۍ او خلكو سره پر ورين تندي چله،سينه پراخه كړه او په لار په كبر مه ګرځه . (تحف العقول)

ðبوډا زناکار،ظالم شتمن،ځېلي سوالګر(چې  د مچۍ په څېر   نښتى وي) د څښتن دښمنان دي . (تحف العقول)

ðڅوك چې د فقر تظاهر كوي؛نو  فقير به شي.له خلكو سره په سړه سينه چلن نيم ايمان دى او له خلكو سره ګوزاره نيم ژوند دى. پر څښتن تر ايمان وروسته، څه چې ډېر ارزښت لري،له خلكو سره ګوزاره ده. (تحف العقول)

ðتر بوت نمانځنې وروسته له څه چې ډېر په سخته ژغورل شوى يم، له خلكو سره خوله وهل دي. (تحف العقول)

ðهغه له موږه نه دی،چې له مسلمان سره درغلي كوي او تاوان  ورسوي  (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم اکرم د “خيف” په جومات كې (په “منى” كې يوه سيمه ده) پاڅېد او و يې ويل : خداى دې هغه خوشحاله لري،چې  زما خبرې  واوري او هغوى ته يې ور واوروي،چې نه يې وي اورېدلي. داسې عالمان شته،چې تر خپل ځانه ښه عالم ته څه وروښيئ او داسې عالمان شته ،چې تر ځانه ناپوهو ته علم ور ورسوي . (تحف العقول)

ðدرې څيزه دي،چې د مؤمن زړه به يې په هكله خيانت ته چمتو نشي: څښتن ته په عمل كې اخلاص،د مسلمانانو امامانو ته خېر غوښتنه او د جماعت ملازمت يې . (تحف العقول)

ðمسلمانان سره وروڼه دي،وينې يې سره يوشان دي،ټول د دښمن پر وړاندې يو مټ دي،په هغوى کې تر ټولو وړوكى،چې تړون وتړي؛ نو ټول بايد پرې ولاړ وي. (تحف العقول)

 ðهمداچې مسلمان له “ذمي كافر” (هغه اهل كتاب،چې د اسلام د حكومت تر سيورى لاندې  ژوند كوي)سره معامله وكړي؛نو و دې وايي : خدايه ! ما ته پکې خېر راكړې او كه مسلمان له مسلمان سره معامله وكړي؛نو و دې وايي :خدايه! ما او هغه ته پکې خېر راكړې. (تحف العقول)

 

ð پر څښتن هغه بنده ګران دى،چې خوله يې تل خېر ته خلاصېږي . (تحف العقول)

ðدرې حالته دي،چې څوك ولري؛نو د ايمان  ټولې ځانګړنې به لري : په خوشحالۍ كې پر باطل لاس پورې نه کړي،غوسه كې د حق له پولې پښه وا نه ړوي او د قدرت پر مهال له خپل حقه زياته غوښتنه ونه کړي. (تحف العقول)

ðڅوك چې په ناحقه كوم مقام ته ورسېد؛نو ظالم دى. (تحف العقول)

ðپه لمانځه كې د قرآن ويلو ثواب تر نورو حالتونو ډېر دى.ذكر تر صدقې غوره او صدقه تر روژې؛خو  روژه  حسنه او نېک كار دى . (تحف العقول)

ðبې عمله خبره ښه نه راځي او كړه وړه بې تر نيته ګټور نه وي  او كړه وړه او نيت بې تر سنت او دينې لارې ګټه نه لري. (تحف العقول)

ðهوساېنه او ارامتيا د څښتن كار دى او بيړه د شيطان . (تحف العقول)

ðهغه دې د دوزخ تيارى نيسي،چې علم د زده كړې موخه يې دا وي، چې له بې عقلو سره پرې خوله ووهي،پر علماوو ځان  دروند وتلي،خلك وغولوي او خلك يې درناوى  وكړي. (تحف العقول)

ð هغه چې خلك ځان ته رابلي او په ناروا د يوه رياست دعوا وكړي؛نو تر هغې به څښتن ورته د رحمت په سترګه نه ګوري ،چې له دې كاره يې لاس نه وي اخستى او توبه يې نه وي کړي. (تحف العقول)

ðحضرت “عيسى بن مريم” خلكو ته وويل: ځان پر څښتن ګران كړئ . پوښتنه وشوه : څرنګه ؟ و يې ويل :د څښتن له حكمه له سرغړوونكيو سره د جګړې له لارې . چې مو خپه کړل؛نو څښتن مو خوشحاله کړ. پوښتنه وشوه :روح الله! له چا سره ناسته پاسته ولرو؟ ويې ويل: له هغه سره،چې په ليدو يې څښتن در ياد شي،خبرې يې ستاسې عمل ډېر كړي او كړه وړه يې تاسې اخرت ته وهڅوي . (تحف العقول)

ðپه تاسې كې بخيل او هغه چې ورانه خوله خوځوي،بېخي ماته ورته نه دى  . (تحف العقول)

ðبد اخلاقي شوم عمل دى . (تحف العقول)

ðد چا چې پر هغه څه چرت نه وي خراب،چې خلكو ته يې وايي او يا خلك يې ورته وايي؛نو يا ارمونى دى او يا له شيطانه زوکړى دى . (تحف العقول)

څښتن پر “بدژبي بې حياء” جنت حرام كړى دى .وپوښتل شو : مګر په خلكو كې هم شيطان شته؟ و يې ويل : هو ! مګر قرآن مو نه دى لوستى،چې څښتن شيطان ته وايي:له هغوى سره؛يعنې له لارويانو سره دې په مال او اولاد كې ګډون وكړه.( اسراء 64) (تحف العقول)

ðكه ګټه دې ورسوله؛نو ګټه به درورسي ،چا چې د پېښو لپاره زغم او صبر نه و چمتو كړى؛نو پاتې به وي .كه كنځلې مو وكړې؛ نو كنځلې به درته وشي . چاچې پريښوول؛ نو پرې به ښوول شي.يو وپوښتل :نو څه وكړو؟ (چې په امان كې شو)  ويې ويل: عرض او پت دې د قيامت تر ورځى پورې هغوى ته پور وركړه (؛يعنې كنځلې مه کوه او كه چېرې ستا پت په ناحقه تويې شو؛نو د قيامت پر ورځ به دې زېرمه شي؛البته دا حديث نور تفسيرونه هم لري؛خو تر ټولو مناسب يې همدا و.) (تحف العقول)

ð آيا  نه غواړئ د دنيا او اخرت تر ټولو غوره اخلاق  دروښيم؟ له هغوى سره تګ راتګ کوه،چې درسره يې پرېښي وي. وركړه ورته كوه،چې ته يې بې برخې كړى يې او هغه وبښه،چې پر تا يې تېرى كړى دى. (تحف العقول)

ðيوه ورځ پېغمبر اکرم  له يو ځايه تېرېده،چې ځينو د زور ازميېلو ته تيږه ګوزاروله،چې پېغمبر اکرم ورته وويل: په تاسې كې تر ټولو ستر مېړنى هغه دى،چې په قدرت كې بښنه وكړي. (تحف العقول)

ðد هغه به ايمان  بشپړ وي ،چې اخلاق يې غوره وي. (تحف العقول)

ðښه اخلاق،انسان د “روژه تي لمونځ كوونكي” مقام ته رسوي. (تحف العقول)

ðوپوښتل شول: تر ټولو غوره نعمت،چې څښتن ته وركول شوى، څه دى ؟ويي ويل: ښه اخلاق. (تحف العقول)

ðنېک اخلاق د ملګرتيا بنسټونه غښتلي كوي. (تحف العقول)

ðورين تندى كينه له منځه وړي. (تحف العقول)

ðپه تاسې كى تر ټولو هغه غوره دى،چې تر ټولو يې اخلاق ښه وي ،چې خلك له هغه او هغه له خلكو سره ملګرى وي. (تحف العقول)

ðلاسونه درې ډلې دي: اخستونكي،وركوونكي او ساتونكي،چې تر ټولو غوره يې وركوونكي لاسونه دي . (تحف العقول)

ðحياء دوه ډوله ده:يوه د عقل له مخې وي او بله د حماقت له مخې ، چې د عقل له مخې حياء د علم نښه ده او د حماقت له رويه حياء د ناپوهۍ نښه ده. (تحف العقول)

ðهغه غيبت نه لري، چې حياء نه لري. (تحف العقول)

هغه چې پر خداى او قيامت ايمان  لري؛نو  پر كړې ژمنه به عمل كوي.

* امانت ساتنه روزي راوړي او خيانت فقر او تنګ لاسي. (تحف العقول)

ðموروپلارته په مينه كتل هم عبادت دى . (تحف العقول)

ðسخته بلا(چې ترې څښتن ته پناه وړل پكار دى) داده : انسان بې له دې،چې د دفاع قدرت ولري،راوړي يې او ورمېږ ترې غوڅ كړاى شي يا د دښمن په لاس كې بندي شي او يا كوم فاسق پر خپله مېرمن وويني. (تحف العقول)

ðد مؤمن لپاره؛علم ملګرى،حلم وزير،عقل لارښوونكى، صبر د خلكو بولندوی،سازش پلار،احسان ورور،نسب حضرت آدم،حسب تقوا او ځواني د مال اصلاح ده. (تحف العقول)

ðيو سړي پېغمبر اکرم ته شيدې او شات راوړل،چې و يې څښي. پېغمبراکرم ورته وويل:دواړه  د څښلو دي،چې پر يو قناعت كېداى شي  دواړه  نه څښم ؛خو  تحريموم يې هم نه ؛بلكې  د څښتن لپاره خاکساري كوم او څوك چې د څښتن لپاره تواضع وكړي؛نو څښتن به يې درجه لوړه كړي او چاچې تكبر وكړ؛نو څښتن به يې را وغورځوي . څوك چې په ژوند كې منځ لاري كوي؛نو څښتن به ورته روزي وركړي او چاچې بې ځايه بدخرڅي كوله؛نو بې برخې به يې كړي او څوك چې ډېر د څښتن په ياد كې وي؛نو  ثواب به وركړي . (تحف العقول)

ðد قيامت پر ورځ به هغه تر ټولو پر ما ګران وي،چې تر ټولو رښتين، امانت ساتى،تړون نه ماتونكى،د ښو اخلاقو خاوند او خلكو ته نږدې وي. (تحف العقول)

ðچې د ناكاره ستاېنه پيل شي؛نو عرش په لړزېدو شي او څښتن غوسه شي . (تحف العقول)

ðيو سړي وپوښتل : دورانديشي او محكم كاري څه ده؟ پېغمبراکرم : د نظر له خاوند سره مشوره او مشورې ته يې غاړه ايښوول. (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم  وويل : رقوب خلك څوك دي؟ ورته وويل شول : هغه ، چې مړ شي او ولاد ترې پاتې نشي .پېغمبر اکرم  وويل: نه ! حقيقي رقوب هغه دى ،چې مړ شي او اولاد ترې مخكې تللى وي  او هغه يي د  څښتن په حساب پريښى وي ، كه څه هم زيات اولاد ترې پاتې وي . (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم  وپوښتل : صعلوك څوك دى ؟ ورته وويل شول : هغه  چې مال نه لري . پېغمبر اکرم  وويل : واقعي صعلوك هغه دى،چې تر ځانه يې مخكې د خداى لپاره مال نه وي لېږلى،كه څه هم ډېره شتمتي يې پاتې وي . (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم  وپوښتل : صرعه څوك دى ؟ ورته وويل شول : هغه پهلوان،چې  څوك يې را پرځولى نه شي.پېغمبر اکرم  وويل : نه ! واقعي پهلوان هغه دى ،چې شيطان يې په سوك پر سينه ووهي ،چې غوسه يې كړي؛خو هغه څښتن ياد كړي او د حلم په زور خپله غوسه راوپرځوي. (تحف العقول)

ðهغه چې بې علمه كار كوي؛نو تر رغونې به يې خرابول ډېر وي. (تحف العقول)

ðپه جومات كې لمانځه ته په تمه ناسته تر هغه پورې عبادت دى ،چې غيبت يې نه وي کړى. (تحف العقول)

ðپه بستره كې د روژه تي ملاسته هم عبادت دى ترهغې،چې غيبت يې نه وي کړى. (تحف العقول)

ðهغه چې  ناوړه كار (ګناه ) خپروي؛نو  ګناه به يې د كولو هومره وي او چا،چې مؤمن يو كار ته ورټه؛نو تر هغه به نه مري،چې هغه كار ترې نه وي شوى. (تحف العقول)

ðدرې ډوله خلك دي،كه و يې نه هم ځوروې؛نو و به  دې  ځوروي : ښځه،نوكر اوبې ارزښته(؛يعنى دوى پر خپل حق نه راضي كېږي) (تحف العقول)

ðدرې څيزه د بدمرغۍ نښې دي : د سترګو وچوالى،د زړه دروندوالى ، مال ته ډېر حرص او پر ګناه ټينګار. (تحف العقول)

ðيو سړي وويل : ما ته نصيحت وكړه.پېغمبر اکرم وويل : غوسه مه کوه.سړى:نور نصيحت هم راته  وكړه . پېغمبر اکرم وويل :راڅملوونکي ته پهلوان نه وايي؛بلكې پهلوان هغه دى،چى په خپله غوسه برلاسى شي . (تحف العقول)

ðد هغه چا ايمان  كامل دى،چې اخلاق يې تر ټولو ښه وي . (تحف العقول)

ðګوزاره چې په هر كار كې وي؛نو كار ته  ښكلا وركوي او بدچلن د هر كار ښكلا له منځه وړي . (تحف العقول)

ðما ته له خلكو سره د ګوزارې دنده راكړل شوې؛لكه د رسالت د تبليغ دنده،چې راكړل شوې. (تحف العقول)

ðكارونه مو پټ ترسره كوئ،چې خلك د هر نعمت له خاوند سره حسد كوي. (تحف العقول)

ðايمان  دوې برخې دى : صبر او شكر . (تحف العقول)

ðپر ژمنه وفا ايمان  دى . (تحف العقول)

ðپه بازار كى خوراك پستي ده. (تحف العقول)

ðد چاچې د تل لپاره تر ټولو ستر همت اخرت وي؛نو څښتن به يې مړه خوا كړي،كارونه به يې اسان كړي او تر هغه به له دنيا نه ځي،څو يې خپله ټوله روزي نه وي خوړلې او د چاچې د تل لپاره تر ټولو ستر همت دنيا وي؛نو څښتن به ورته فقر سترګو ته رامخې ته كړي،چارې به يې نه ترسره كېږي او د خپلى روزۍ تر خلاصېدو مخكې به له دې دنيا ولاړ شي . (تحف العقول)

ðڅښتن چې چا ته د ثواب ژمنه وركړه؛نو هرومرو به يې وركړي؛خو هغوى ته يې،چې د عذاب ژمنه وركړې؛نو مختار دى،چې پر خپله ژمنه وفا وكړي كه نه . (تحف العقول)

ð آيا  هغه دروښيم،چې په اخلاقو كې تر ټولو زيات ما ته وي؟ ورته وويل شول : هو! پېغمبر اکرم : هغه چې اخلاق يې تر ټولو ښه،علم يې تر ټولو زيات،له خپلوانو سره تر ټولو ښه وي او غوسه او هوساېنه كې انصاف ولري . (تحف العقول)

ðهغه به افضل وي،چې تر خوړو وروسته شكر وباسي ،روژه نيسي او چوپ وي . (تحف العقول)

ðله مؤمن سره د خداى لپاره دوستي، د ايمان تر ټولو لوړه درجه ده . هغه چې دوستي،دښمني او راكړه وركړه يې د څښتن لپاره وي؛نو غوره ټاكل شوى به وي . (تحف العقول)

ðپر څښتن تر ټولو هغه ګران دى،چې د بندګانو لپاره يې ګټور وي؛ هغوى چې څښتن يې په  زړه كې له نېکۍ او نېکانو سره مينه اچولي وي. (تحف العقول)

ðله هغوى سره احسان وکړئ،چې احسان يې درسره كړى وي كه نه يې شئ كړاى؛نو مننه ترې وكړئ ،چې مننه هم احسان دى . (تحف العقول)

ðهغه چې له ګوزارې بې برخې وي؛نو له هر ډول خيراته به هم بې برخې وي . (تحف العقول)

ðله ورور سره مو بې ځايه ټوكې مه کوه او پر کړې ژمنه عمل وکړه. (تحف العقول)

ðد دين،ادب او خوړو،هغه حرمتونه دي،چې هر مؤمن يې بايد رعايت كړي . (تحف العقول)

ðمؤمن به تل موسكى وي او ټوكمار او منافق به تل بړوس وي . (تحف العقول)

ðډالۍ درې ډوله ده : د انعام،ملګري او خداى  لپاره . (تحف العقول)

ðبختور هغه دى،چې د آخرت په پار ددې دنيا له خوندونو لاس واخلي. (تحف العقول)

ðڅوك چې سبا د خپل عمر برخه ګڼي؛نو له مرګ سره يې بد چلن كړى دى. (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم وويل :څنګه به ياست،چې ښځې مو فاسدې او ځوانان مو فاسق شي؟ او بر نېکيو امر او له بديو منع پرېږدئ؟وويل شو: رسول الله ! آيا  داسې  ورځ به راځي ؟ پېغمبر اکرم : هو! تردې به بده ورځ هم راځي او هغه به داسې وي ،چې له نېكو چارو به منع كوئ او بديو ته به رابلئ؛نو هله به څه كوى؟ وويل شو: رسول الله ! آيا  داسې ورځ به راځي ؟ پېغمبر اکرم : هو ! تردې  به بده ورځ هم راځي او هغه به داسي وي ،چې ښو ته به بد او بدو ته به ښه واست؛نوهله به څه كوئ؟ (تحف العقول)

ðچې فال دې بد راوخوت؛نو اعتنا پرې مه کوه،چې ګومان دې بد شو؛نو  قضاوت مه کوه  او چې حسد دې وكړ؛ نو  ورپسې مه ځه. (تحف العقول)

ðكه خوب ليدل درنه  واخستل شول؛نو مه وارخطا كېږه ؛ ځكه په علم كې له راسخانو د خوب ليدل اخستل كېږي . (تحف العقول)

ðزما په امت كې كه دوې ډلې سمې شوې؛نو ټول به سم شي او كه فاسد شول؛نو ټول به فاسد شي.وپوښتل شو: دا څوك دي؟ پېغمبراکرم: فقهاء او واكمنان . (تحف العقول)

ð تر ټولو هوښيار هغه دی،چې تر ټولو زيات له څښتنه ووېريږي او تر ټولو زيات يې لاروي وي . (تحف العقول)

ðتر ټولو بې عقله هغه دى،چې له سلطانه ډېر ووېرېږي او تر ټولو زيات يې لاروي  وكړي . (تحف العقول)

ðدرې څيزه زړه وژني : له بدچلنو سره ناسته پاسته او ښځو سره مجلس او خبرې او له  زورورو سره تګ را تګ . (تحف العقول)

ðيو قوم ته،چې څښتن په قهر شي او عذاب پرې رالېږي؛نو نرخونه يې ګران،عمرونه يې لنډ،سوداګر يې زيانمن شي،مېوې يې چنجي نيسي، د نهرونو اوبه يې لږې شي،باران پرې نه ورېږي  او اشرار پرې برلاسي شي . (تحف العقول)

ðتر ما وروسته،چې زنا ډېره شي؛نو ناڅاپه به مرګونه هم زيات شي، چې كم پلورنه وكړي؛نو وچکالي به راشي او چې زكات ور نه كړي؛ نو ځمكه به ترې خپل بركتونه؛يعنې كښت او معدنونه واخلي او چې په قضاوت كې بې عدالتي وكړي؛نو له تېري او ظلم سره به يې لاس يو كړى وي او چې تړونونه مات كړي؛نو څښتن به پرې دښمن واكمن كړي او چې له خپلوانو سره يې  اړيکې پرې کړې؛نو شتمني به يې اشرار لوټ كړي او چې پر نېکيو امر او له بديو منع ونه کړي او زما د كورنۍ د نېکانو لاروي ونه کړي؛نو څښتن به پرې تر ټولو بد خلك برلاسي كړي؛نو بيا به يې دعاګانې هم نه قبلېږي . (تحف العقول)

ðسترګې دې د دنيا هغه متاع ته مه وراړوه ،چې ځينو ته مې وركړې ده چې دا آيت نازل شو؛نو  پېغمبر اکرم وويل : د چا زړه،چې د څښتن په تسل ارام نشي؛نو څښتن به يې په دنيا پسې ړوند كړي او څوك چې د بل مال ته سترګې خړې كړي؛نو خپګان به يې اوږد شي او د څښتن پر قسمت به غوسه وي او د څښتن نعمتونه به ورته په خوراك و څښاك كې راغونډ شي؛ځکه به ناپوهي كوي او د الهي نعمتونو كفران به كوي، هڅه او هلې ځلې يې بې ځايه ځي او عذاب به يې رانږدې شي. (تحف العقول)

ðجنت ته به نه ننوځي؛خو دا چې مسلمان وي . (تحف العقول)

 ðحضرت ابوذر وپوښتل : اسلام څه دى؟پېغمبر اکرم : اسلام  بربنډ دى،چې جامه يې تقوا،ستر يي هدايت،كړنلار يې ژوند،خټه يې پارسايي،كمال يې ګروهه او مېوه يې صالح عمل دى . (تحف العقول)

ðهر څه ستنه (بنياد) لري او د اسلام ستنه له اهل بيتو سره مينه ده . (تحف العقول)

ðڅوک چې د كوم مخلوق د رضا لپاره څښتن خپه كړي؛نو څښتن به پرې هماغه مخلوق واكمن كړي . (تحف العقول)

ðڅښتن ځينې خلك د نورو خلكو د اړتياوو پوره كولو ته پېدا كړي دي،چې د خير په چارو وياړي،سخاوت ورته ځواني ښكاري او څښتن ته  نېک اخلاق ګران دي . (تحف العقول)

ðيوه ورځ به راشي،چې كه د خلكو دنيا ښه وي؛نو د دين تباهۍ ته به ارزښت نه وركوي . (تحف العقول)

ðپېغمبراکرم : زما امت،چې دا پينځلس كړنلارې خپلې كړې؛نو عذاب به پرې راشي.وپوښتل شو:هغه كومې دي؟ و يې ويل : هغه مهال،چې شتمني او غنيمت مستحق ته ورنه کړل شي . امانت ورته غنيمت ښكاره شي . زكات ورته جريمه ښكاره شي . سړى د ښځې د خولې مني او مور وځوروي . له ملګري سره وفا او له پلار سره جفا وكړي . په جوماتو كې چغې شي . د خلكو د شر له وېرې يې درناوى وشي .د قوم مشر د قوم تر ټولو رذيل وي . ورېښمنې جامى واغوندي . شراب وڅښي . ډمې پکې  راپېدا شي . د امت وروستني،د امت ړومبيو ته كنځلې وكړي؛نو د درېو بلاوو په تمه دې شي:سور باد،مسخ (د خلقت په چپه كېدل) او فسخ ( په ځمكه كې ننووتل). (تحف العقول)

ðدنيا د مؤمن زندان او د كافر  جنت دى . (تحف العقول)

ðداسې ورځ به راشي،چې خلك به داړونكي لېوان شي او كه څوك داسې نشي؛نو داړونكي لېوان به يې وداړي . (تحف العقول)

ðپه آخره زمانه كى به ډاډمن ورور او حلال درهم تر ټولو لږ وي(تحف العقول).

ðپر بدګومانۍ ځان د خلكو له شره وساتئ (پر بدو خلكو اعتماد مه  كوئ). (تحف العقول)

ðټول خيرونه په عقل لاس ته راوړئ او هغه چې عقل نه لري، دين هم نه لري . (تحف العقول)

ðپه يوه ډله كې د يو سړي ستاېنه وشوه،ټولې ځانګړنې يې بيان شوې، چې پېغمبر اکرم وپوښتل :په عقل کې څرنګه دى؟ ورته وويل شول : رسول الله! موږ  يې د ډېرو عبادتو او نېکيو ستاېنه كوو او ته يې عقل پوښتې؟ پېغمبراکرم : احمق د خپل حماقت له امله ځان ته ستونزې جوړوي،ان دا ستونزې د فاجر تر فسقه هم غټې وي . خلك د عقل له امله لوړو درجو ته رسي او يا د څښتن درګاه ته رسي. (تحف العقول)

ðڅښتن عقل درې برخى پېدا كړ؛نو څوك يې چې ټولې برخې لري؛ نو عقل به يې پوره وي او څوك يې،چې يوه برخه هم نه لري؛له عقله به پلى وي : خداى ښه پېژندل،ښه لاروي يې کول او د حكم په پلي كولو كې يې  صبر. (تحف العقول)

ð د نجران يو با وقاره او خوږ ژبى انصاري مدينې ته راغى .و يې ويل: رسول الله! دا نصراني څومره هوښيار دى؟ پېغمبر اکرم غوسه شو او ويې ويل : چوپ شه!هوښيار هغه دى،چى څښتن ښه وپېژني او حكم ته يې غاړه كېږدي . (تحف العقول)

ðيو بل ته لاس وركړئ،چې روغبړ كينه او دښمني توږي . (تحف العقول)

ðمؤمن بې له دروغو او خيانته هره ځانګړنه درلوداى شي. (تحف العقول)

ðځينى شعرونه له حكمته ډك وي او ځينې تلپاتې وي. (تحف العقول)

ðپېغمبراکرم حضرت ابوذر وپوښته : د ايمان كومه كړۍ تر ټولو كلكه ده؟ ابوذر (رض) : څښتن او استازى يې ښه پوهېږي . پېغمبر اکرم : د څښتن لپاره دوستي،دښمني او كينه . (تحف العقول)

ðد بنيادم له نېکمرغيو: په چارو كې له خدايه خيرغوښتل او قضا ته يې غاړه ايښوول دي . (تحف العقول)

ðد بنيادم له بدمرغيو:له څښتنه د خير د غوښتو پرېښوول او پر تقدير يې ناخوښي ده . (تحف العقول)

ðپر ګناه پښېماني په خپله توبه ده. (تحف العقول)

ðهغه چې د قرآن حرام حلالوي؛نو پر قرآن ايمان نه لري . (تحف العقول)

ðيو سړي پېغمبر اکرم ته وويل : ماته نصيحت وكړه.پېغمبر اکرم : ژبه دې كابو ساته . سړى : نور نصحيت هم راته وكړه. پېغمبر اکرم : خو بې له ژبې بل څه هم څوك جنت يا دوزخ ته ورننباسي؟(تحف العقول)

ðنېک كارونه د بدو مرګونو مخنيوى كوي . (تحف العقول)

ðصدقه د څښتن د عذاب مخه نيسي . (تحف العقول)

ðزړه سوی عمر زياتوي . (تحف العقول)

ðد خير هر كار صدقه ده . (تحف العقول)

ðد دنيا نېکان د آخرت نېکان دي او د دنيا بد د آخرت بد دي او لومړى به  نېکان جنت ته ننوځي . (تحف العقول)

ðڅښتن،چې خپل بنده ته کوم نعمت وركوي،خوښېږي او اغېز يې په كې وويني او هغوى چې د فقر تظاهر كوي، د څښتن تر ټولو بد ايسي. (تحف العقول)

ðښه پوښتنه نيم علم دى او ګوزاره نيم ژوند. (تحف العقول)

ðانسان چې زوړ شي؛نو دوې ځانګړنې په كې ځوانې شي: حرص او هيله . (تحف العقول)

ðحياء د ايمان  برخه ده. (تحف العقول)

ðد قيامت پر ورځ به  څوك له خپل ځايه ونه خوځېږي څو ترې ددې څلورو څيزونو پوښتنه نه وي شوې: عمر،چې په كومه لار كې دې تېر كړى.ځواني،چې څرنګه دې تېره كړې او زموږ د اهلو بيتو د مينې په باب . (تحف العقول)

ðهغه چې په معامله كى پر خلكو ظلم نه کوي،په وينا كى يې دروغ نه وي،له وعدې سر نه غړوي؛نو سړيتوب يې پوره،عدالت يې ښكاره، اجر يې ثابت اوغيبت يې حرام دى . (تحف العقول)

ðد مؤمن هر څه محترم دي . (تحف العقول)

ðزړه سوی وكړئ ان كه په يو سلام وي. (تحف العقول)

ð ايمان؛ پر ژبه اقرار، پر زړه اعتقاد او پر غړيو عمل ته وايي . (تحف العقول)

ðشتمني د مال زياتوالي ته نه؛بلكى حقيقي شتمني د روح بې نيازۍ ته وايي. (تحف العقول)

ð له شره ځان ساتنه صدقه ده. (تحف العقول)

ðزما د امت د عاقل لپاره څلور څيزه په كار دي : علم ته غوږ ايښوول،په مغزو كې يې ساتل او خپرول يې . (تحف العقول)

ðځينې ويناوې جادويي دي،ځينى علمونه جهل وي او ځينې ويناوې د ژبې بېوسي وي. (تحف العقول)

ðسنت دوه ډوله دى : واجب سنت،چې تر ما وروسته پرې عمل لازم او پرېښوول يې بې لاري ده او بل مستحب سنت،چې عمل پرې ثواب لري او پرېښوول يې عذاب نه  لري . (تحف العقول)

ðچا چې د سلطان خوشحالولو ته څښتن خپه كړ؛نو له دينه وتلى دى. (تحف العقول)

ð نېک چلن تر نېكۍ غوره دى او تر بدو بد د بد چلن خاوند دى . (تحف العقول)

ðهغه چې څښتن يې د ګناه له ذلته د لاروۍ عزت ته راواړوي؛نو بې له شتمنۍ به يې شتمن كړي،بې ټبره به يې عزيز كړي،بې ملګري به يې ارام كړي . څوك چې له څښتنه ووېرېد؛نو څښتن به ترې ټول ووېروي او څوك چې له څښتنه نه وېرېږي؛نو څښتن به يې له هر څه ووېروي . څوك چې د څښتن په لږه روزي راضي شي؛نو څښتن به ترې په وړوكي عمل راضي شي.څوك ،چې د حلالې روزۍ له ګټلو شرم ونه کړي؛نو خرڅ به يې سپك،خيال به يې ارام  او اولاد به يې پر هوسا وي . څوك چې له دنيا زړه  وشلوي؛نو څښتن به يې په زړه كې د حكمت چينې روانې كړي. (تحف العقول)

ðپه دنيا كى زهد او پارسايي : د هيلو لنډول،د هر نعمت شكر او له هغه څه چې څښتن حرام كړي دي ځان ساتل . (تحف العقول)

ð د خير هېڅ  كار د ريا لپاره مه  کوه او له شرم او حياء پښه مه اوړه . (تحف العقول)

ðامت ته مې له درېو څيزونو وېرېږم : بخل چې ورته لاس پر سينه ودرېږي . هغه هوس،چې لاروي  يې وشي. مشر،چې په خپله بى لارې وي. (تحف العقول)

ðد چاچې غوسه ډېره وي، بدن به يې ډېر ناروغ وي .څوك چې پخپله بد وي؛نو پخپله به په عذاب كې وي او څوك چې له خلكو سره په جګړه كې وي؛ نو شرف او ستروالى به يې پر سيند لاهو وي . (تحف العقول)

ðهغه زما د امت تر ټولو بد دى،چې له وېرې يې درناوى وشي او هغوى له ما څخه نه دي، چې له وېرې يې درناوى كېږي . (تحف العقول)

ðزما امتي نه دى،چې تل يې ټول فكر و ذكر بې له څښتنه وي؛نو له څښتنه بېل دى . مسلمان نه دى،چې د مسلمانانو چارو ته ملا نه تړي او هغه ،چې ذلت ته ځان سپاري، زما له كورنۍ څخه نه دى . (تحف العقول)

ðد حضرت معاذ زوى،چې مړ شو؛نو پېغمبر اکرم  ورته دا ليك  وليكه: له محمد رسول الله نه معاذ بن جبل ته! سلام دې پر تا وي ، ستاېنه د هغه خداى كوم ،چې بې له هغه بل څښتن نشته !اما بعد: اورېدلي مې دي،چې د خپل زوى په وير كې،چې د څښتن په حكم مړ شوى،بې صبري كوې،زوى دې د څښتن له نعمتو او امانت يې و،چې تاته يې درسپارلى و،يوې مودې ته يې دركړى و او چې اجل يې راورسيد؛نو درنه يې واخست . انالله و انا اليه راجعون . پام دې وسه، چې ډېره بې صبري دې اجر تباه نه کړي . هله چې د خپګان ثواب ته ورسې؛ نو  پوه به شې،چې  دا ثواب تر هغه خپګانه ډېر زيات دى،چې څښتن د مصيبت پر مهال خپل بنده ته ټاکلى و. پوه شه،چې چغې او سورې مړى نه را ژوندى كوي او نه تقدير بدلولاى شي؛نو صبر وكړه او الهي وعدې ته په تمه شه . معاذه ! پر داسې  خبره خواشينى يې،چې د ټولو ګرېوان ته به لاس وراچوي . د څښتن درود او رحمتونه دې  پر تا وي . (تحف العقول)

ðد قيامت له نښو د قرآن د قاريانو ډېروالى،د فقهاوو كموالى،د اميرانو ډېروالى،د رښتينو لږوالى،د بارن ډېروالى او د بوټو كموالى دى. (تحف العقول)

ðد هغوى حاجتونه ماته راورسوئ،چې ماته نشي را رسېداى؛ څوك چې د هغه  نيازمند حاجت،واكمن ته ورسوي،چې واکمن ته نشي رسيداى؛ نو څښتن به يې د قيامت پر ورځ پر صراط پښى و نه خويوي. (تحف العقول)

ðدوې خبرې غريبې دي : له بې عقله حكيمانه خبره؛نو مه يې منئ او له حكيمه بې ځايه خبره ؛نو ترې تېر شئ. (تحف العقول)

ðله منافقانه فروتنۍ ځان لرې ساتئ،چې يوازې تن پکې متواضع وي؛ نه زړه. (تحف العقول)

ðډالۍ قبوله كړئ او عطر تر ټولو غوره ډالۍ ده . (تحف العقول)

ðاحسان يوازې له دين پال او له كورنۍ سره يې روا دى. (تحف العقول)

ðد بېوسو جهاد حج دى . (تحف العقول)

ðد ښځې جهاد له مېړه سره په مينه چلن دى . (تحف العقول)

ðلورنه نيم دين دى. (تحف العقول)

ðمنځلارى به هېڅكله فقير نشي  . (تحف العقول)

ðصدقه روزي زياتوي . (تحف العقول)

 

 لس ډلې

 ð حضرت معاذ بن جبل (رض) وايي : له پېغمبر اکرم سره د “ابو ايوب انصاري” په کور کې ناست وم،ومې پوښت: [ يَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ فَتَأْتُونَ أَفْوَاجًا = پر هغه ورځ چې [د قيامت] په “شپېلۍ” كې پوكى وشي؛ نو تاسې به ډله ډله (محشر ته) راځئ. (النباء\١٨ ) له دې آيته موخه څه ده ؟ پېغمبراکرم(ص) وويل:((زما په امت کې به لس ډلې وي، چې تر نورو به ځانګړي مخونه لري او راروان به وي( او دا دي: ) بيزو،خنزير(څېرې يې) اړول شوي، ړوند، ګونګ او کوڼ، خپلې ژبې به ژوي او له خولې به يې مردار بوي روان وي او ټول به ترې کرکه کوي . تر مرداراو سخا شوي څيز به بدبوى کوي . د اور تنګې جامې به يې اغوستې وي .لاسونه او پښې به يې غوڅې وي او د اور پر دارونو به راځوړندوي . لومړۍ ډله چغلګر دي،دويمه ډله حرامه خواره دي،درېمه ډله سود خواره دي،څلورمه ډله په قضاوت کې تېري کوونکي دي، پينځمه ډله له ځانه راضي او ځانمني دي،شپږمه ډله بې عمله قاضيان او علماء دي او اومه ډله د ګاونډيانو ځوروونکي دي،اتمه ډله ظالم ته جاسوسي کوونکي دي،نهمه ډله شهوتپال او هغه دي،چې په خپلو مالونو کې يې د خداى حق نه ورکاوه  او لسمه ډله کبرجن دي .[ مجمع البيان ١\ ٤٢٣) .

 

عادلانه چلن

ðڅوک چې د لسو کسانو څارنه پرغاړه واخلي او ورسره عادلانه چلن ونه کړي،د قيامت پر ورځ به داسې راروان وي،چې لاس،پښې او سر به يې ((د تبرى)) په سوري کې وي.   (صدوق،عقاب الاعمال ،٥٩٢مخ ).

ðد عادل مشر يو ساعت مشري تر اويا کالو عبادته غوره ده او کوم حد او قانون ،چې د خداى لپاره اجرا کړي؛د څلوېښت ورځو تر باران اورېدلو غوره دى. ( فروع کافي ٧ / ١٧٥ )

 

د بدچاريو پايلې

ðزنا چې ښکاره شي؛نو ناڅاپي مړينې زياتېږي . په تله کې چې څيزونه  له اصلي وزنه کم تول او وپلورل شي؛نو خداى پر خلکو قحطي راولي . خلک چې د خپلو مالونو زکات نه ورکوي؛نو خداى له ځمکې برکتونه اخلي او کرنې،مېوې او کانونه نه رابرسېروي .د خپلوۍ اړيکې، چې پرې شي او دا خوى دود شي؛ نو شتمني د اشرارو لاس ته ورځي او پر نېکيو امر او له بديو منع ته،چې شاشي؛نو خداى به پر داسې قوم اشرار واکمن کړي او نېکان يې،چې څومره دعاګانې کوي؛نو نه به قبلېږي. (وسايل ١١\٥١٣)

ðڅوک چې د ګناه کولو پر مهال له خندا شين وي؛نو دوزخ ته په ننووتو کې به  په کړيکو ژاړي . (مشکاة الانوار \٣٦٤- وسايل ١١\١٦٤].

ðد قيامت پر ورځ به خداى له درېو کسانو سره، نه خبرې کوي او نه ورته پاملرنه او پاک به يې هم نه کړي او دردوونکى عذاب به ورته چمتو شوى وي؛زوړ او بوډا زناکار،ظالم واکمن اومغرور نشتمن.(کافى٢\ ٣)

 

توبه ګار

ðخداى ته بې له توبه ګارې ښځې او سړي بل محبوب نشته . (سفينة البحار١\١٢٧ ) ( اخبارالرضا٢\٢٩).

 ðتوبه ګار د خداى محبوب او دوست دى  .( جامع السعادات ٣\٥١)

 

 د ګناه جبرانول

ðچېرې،چې ياست،له خدايه وېرېږه او له خلکو سره په ورين تندي چلن کوه؛ ګناه چې دې وکړه؛نو نېک کار وکړه، چې ګناه له منځه وړي . (بحار  ٧١\٢٤٢وسايل ٢٢\٣٨٤) .

ðپېغمبر اکرم وپوښتل شو:د غيبت د ګناه کفاره څه ده ؟ورته يې وويل : د چاغيبت،چې دې کړى وي، له خدايه ورته بښنه وغواړه . (وسائل ١٥/٥٨٣).

ðڅوک پېغمبر اکرم(ص) ته راغى او ويې ويل: (ګناهونه مې ډېر او نېکې کړنې مې لږې دي.) ورته يې وويل: ((ډېرې سجدې کوه؛ځکه سجدې ګناهونه د ونو د پاڼوغوندې څنډي.)) (بحار ٨٥\ ١٦٢ ،ميزان الحکمه ٣\٤٧٧) .

ðپېغمبر اکرم وپوښتل شو: (تر توبې وروسته ) به څه زما ګناهونه له منځه يوسي؟ورته يې وويل:((اوښکې،خضوع او ناروغي.)) (ميزان الحکمه ٣\٤٧٤)

ðيو څوک پېغمبراکرم ته راغى،و يې ويل : د جاهليت په پېر کې مې لور وشوه؛و مې روزله او سينګار مې کړه او په څاه کې مې واچوله؛وروستۍ خبره يې دا وه:((پلارجانه!))؛خو اوس ډېر پېښمانه يم،ددې ګناه کفاره څرنګه ورکړم؟ پېغمبر اکرم ورته وويل: (( مور دې ژوندۍ ده.)) و يې ويل : نه . پېغمبراکرم ورته وويل : (( ترور دې شته ؟)) ويې ويل : هو.پېغمبراکرم وويل:((نېکي ورسره وکړه؛ځکه ترور د مور په  شان وي او ورسره نېکي به ستا د ګناه کفاره شي.)) (کافي ٢\١٦٢) .

 

تر ټولو ناوړه انسان

  ðپېغمبراکرم(ص) اصحابو کراموته وويل : (( ايا تاسې ته تر ټولو ناوړه انسانان در وپېژنم ؟)) ومو ويل : رسول الله! خبر مو کړه! ويې وويل:(( تر ټولو ناوړه هغه دى،چې تورونه لګوي،پوچه خوله خوځوي،ځان ته خواړه خوري او بښنه نه کوي،خپل مريى وهي،د چا  ښځه چې نورو ته پناه يوسي (؛يعنې لګښت يې ورنه کړي او ښځه يې اړه شي،چې نورو ته پناه يوسي  (بحار ٧٢\١١٥).

 

 منافق وپېژنئ

ðکه په چا کې درې ځانګړنې وي؛نو منافق به وي،که څه هم  روژه ونيسي،لمونځ وکړي او ګومان کوي،چې مسلمان دى: په امانت کې به خيانت کوي،په خبرو کې به دروغ وايي او پرخپله ژمنه په وفا نه کوي. [کافي ٢\٢٩]

د امت سمونه

ðکه د دين عالمان فاسد شول؛نو خلک هم فاسدېږي . [بحار:بيروت چاپ ٧٤ \ ١٥٤] .

  ðزما د امت عوام به سم  او اصلاح نشي؛خو داچې د امت مخور سم او اصلاح شي. وپوښتل شو،څوک د امت مخور (خواص) دي؟ و يې ويل: څلور ډلې دي: چارواکي، پوهان،عابدان او سوادګر. پوښتنه وشوه دا څرنګه کېداى شي؟ ويې ويل : واکمن د خلکو شپون وي، شپون چې لېوه شي؛نو رمه به څرنګه څروي؟ عالمان د خلکو طبيبان او رنځپوهان دي . طبيب چې ناروغ شي؛ نو څوک به د ناروغانو درملنه کوي . د خداى عابدين خلکو ته لارښوونه کوي،که لارښوونکي بې لارې وي؛نو څوک به پر لارويو ته لارښوونه کوي ؟ سوادګر د خلکو امينان دي، چې کله امين خيانت وکړي؛ نو پر چا اطمينان وکړو؟)) [المواعظ العدديه]. 

 

ريا

ðپه کوم عمل کې چې لږه ريا هم وي؛نو خداى يې نه مني. (بحار٧٢\ ٣٠٤)

ð که يوه پوه وپوښتل شي او په ځواب يې پوهېږي او وريې نه کړي ؛نو په قيامت کې به يې پر خوله د اور ټاپه ووهل شي . (مجمع البيان ١\ ٢٤) (سفينه البحار ٢\ ٤٧٥).

فطري دين

ðماشوم،چې وزېږي؛نو په خټه کې يې اسلام اغږل شوى او تر زوکړې وروسته ډول ډول رنګونه؛لکه يهوديت،نصرانيت او بې لاري  پرې د موروپلار لخوا ورتپل کېږي . (نورا لثقلين ٤\ ١٨٤)

 

د اولاد لاسنيوى

ðخداى دې پر هغه بنده ولورېږي،چې په نېکمرغۍ او سوکالۍ کې له خپل اولاد سره لاسنيوى او مينه کوي او په روزنه او پالنه کې يې له هيڅ څيزه دريغ نه کوي. (مستدرک الوسايل ٢\ ٦٢٦)

  ðخداى دې پرهغه مور وپلار ولورېږي،چې له اولادونو سره يې په نېکمرغۍ کې لاسنيوى کوي .(فروع کافي ٢\٤٨)

 

له کورنۍ سره غوره چلن

ð غوره هغه دى،چې له  خپلې کورنۍ سره غوره چلن ولري او زه هم همداسې يم. (وسايل ١٤\ ١٢٢)

ðڅوک چې پراخه ژوند لري؛خو پرخپلې کورنۍ تنګسه راولي؛نو له موږ به نه وي . (وسايل ٥\ ١٣٥)

 

د ماشوم ژړا

ðپېغمبر اکرم د ماسپښين د لمانځه په جمع کې وروستي دوه رکعته په بيړه وکړل . خلکو تر لمانځه وروسته وپوښت :کومه پېښه شوې،چې دومره په بيړه مو لمونځ خلاص کړ.؟ پېغمبر(ص) وويل : آيا تاسې د ماشوم ژړا وانه ورېده! (فروع کافي ٦\ ٤٨).

بډې

ðخداى دې پر بډيخور،بډي ورکوونکي او پر منځګړي يې لعنت وکړي. (وسايل ١٢باب )

 

له درې څيزونو وېره

 ðتر ځان وروسته په درې څيزونو پر خپل امت وېرېږم؛تر پوهې وروسته بې لاري،د فتنو بې لاري او تر نامه لاندې (د ناسمو غوښتنو) شهوت.[عيون الاخبار ٢\ ٢٦].

ðپه خپل امت کې له درېو څيزونو وېرېږم :د بخل  لاروي،د ځاني هوسونو منل، په بې لارې مشر پسې تلل.(سفينة البحار ٢/ ٧٤)

 

حلاله روزي

ðيو تن پېغمبر اکرم ته راغى،و يې ويل:غواړم دعا مې قبوله شي. ورته يې وويل:خپل خواړه دې پاک کړه او ګېډې ته حرام خواړه اچوه،څوک چې غواړي دعا يې قبوله شي؛نو بايد له حلالې لارې روزي لاس ته راوړي. (سفينة البحار ١/ ٤٤٦)

ðد حلالې روزۍ ګټل پر هر مسلمان سړي او ښځې فرض دي.(بحار ١٠٣\٩)

ðخدايه ! په ډوډۍ کې موږ ته برکت راکړې او زموږ او د ډوډۍ ترمنځ بېلتون مه راولې،که ډوډۍ نه وي؛نو لمونځ به مو نه وي کړى، روژه به مو نه وي نيولې او خپل فرايض به  مو نه وي ادا کړى. (فروع کافي ٥\ ٧٣) .

 

ډېرښت

ðد نامشروع شتمنيو راټولول،د حق له ورکړې ډډه کول او په زېرمو کې يې کېښوول،په مالونوکې تکاثر (ډېرښت) دى .(نور الثقلين ٥\٦٦٢ )

 

سفر

ðڅوک چې د خپل دين د ساتنې لپاره له يوې ځمکې بلې ځمکې ته د يو څپک هومره سفر وکړي؛نو د جنت وړ به وي (او په جنت کې به) د محمد او ابراهيم عليهما السلام يار وي. (نور الثقلين ٢\ ٥٤١)

 

نېک چاري

ðڅوک چې په پټه نېک کار کوي؛نو اويا ځل  ثواب به وګټي . څوک چې ګناه خپروي،رټل شوى به وي او څوک چې ګناه پټه کړي؛نو خداى به يې وبښي.(کافي ٢\ ٣٥٦) .

 ðخدايه! تا ته له ټګ انډيواله پناه دروړم؛ځکه نېک کار،چې ګوري، پټوي يې او که بدکار وويني؛نو په ډاګه کوي يې. (نهج الفصاحه \ ١٠١)

 

ګناهکار

ðګناهګار،چې وستايل شي؛نو د خداى عرش په  لړزېدو شي او خداى غوسه کېږي. (سفينة البحار ٢ \ ٥٢٨)

 ðڅوک چې ګناهګار وي،ښايي پر مخ يې خاورې وشيندئ .(وسايل ١٢\ ١٣٢)

 

له مسلمان سره خيانت

ðيوه ورځ پېغمبر اکرم(ص) د مدينې په بازارکې ګرځېده؛ يو سړى يې وليد،چې مېوې او کجورې پلوري.پېغمبر اکرم وويل : څومره ښې مېوې دي! وحې ورته وشوه : ترمال لاندې يې وګوره !پېغمبر اکرم لاس ورلاندې کړ؛نو ډېرې مردارې مېوې يې راووېستې او پلورونکي ته يې وويل : له مسلمانانو سره د خيانت لپاره دې هر څه راټول کړي دي . (وسايل ١٢ /  ٢٠٩ )

 

رهبانيت منع دى

ðخداى زه د “رهبانيت” دين ته نه يم رالېږلى؛بلکې زه يې يواسان عبادت ته رالېږلى يم؛روژه نيسم،لمونځ کوم او له ښځې سره کوروالى هم کوم؛نو د چا چې زما لار خوښه وي؛هرومرو به پرې روان وي.(وسايل ١٤\ ٧٤)

 

د مؤمن او کافر توپير

 ðمؤمن خپله ګناه د يوې سترې تيږې په شان ګڼې او وېرېږي چې پر سر يې راونه لوېږي او کافر خپله ګناه د ماشي هومره ويني، چې له پوزې يې تېر شي . ( غررالحکم؛ ميزان الحکمه ٣\ ١٨٢) .

 

 د لمانځه ثواب

 ðلمونځ د روانو اوبو په شان دى .انسان،چې لمونځ کوي؛نو د دوو لمونځونو په وخت کې يې کړي ګناهونه له منځه وړي . (وسايل ٣\٧)

 ðڅوک چې په لمانځه کې لټي وکړي او ورته سپک ګوري؛نو خداى به يې پر پينځلسو ګناهونو اخته کړي،چې دا دي : د عمرلنډوالى. د روزۍ کمېدل .له څېرې يې د صالحانو د رڼا لرې کېدل .د کړنو لپاره يې د اجر نه شتوالى. د دعا نه قبلېدل يې. د صالحانو له دعا ګټه نه شي اخستاى.په ذلت به مري. په تنده او لوږه کې به مري.د خداى له لوري به ورته پرښته وټاکل شي،چې په قبرکې يې په عذاب کړي. قبر به يې تنګ وي.په قبرکې به يې تپه تياره وي.د خداى له لوري به ورته پرښته وټاکل شي،چې د خلکو په مخ کې يې له مخه راکاږي.په قيامت کې به ورسره سخت حساب وشي.خداى به ورته پام نه کوي او پر سخت عذاب به ککړ شي . ( سفينة البحار٢\ ٤٤ )

 

وړ  مشر

ðهغه مشر او امام وړ دى،چې درې ځانګړنې ولري : تقوا، چې له ګناه يې وساتي.حلم،چې غوسه يې يخې اوبه واړوي او مهرباني،چې تر لاس لانديو سره د پلار په څېر مهربانه وي .(کافي 1 /407)

 

د پېغمبر اکرم د لارښوونې او روزنې مثال

ðزما د  لارښوونې او روزنې مثال د هغه باران دى،چې پر بېلابېلو سيمو ورېږي؛ځينې ځمکې پاکې او چمتو وي،چې اوبه  په ځان کې ساتي او ډول ډول کښتونه پکې کېږي؛خو ځينې ځمکې سختې وي،چې اوبه نه زغمي؛ بلکې اوبه پرې د پاسه ډنډېږي او خلک له هغو اوبو د خپلو پټو د خړوبولو او يا څښاک ګټه اخلي؛خو ځينې ځمکې وچې کلکې او شګلنې دي،چې نه په ځان کې اوبه ساتي او نه د کښت وړ دي،چې دا خبره د هغو په هکله ده،چې زما د لارښوونې تر اورښت لاندې دي،چې په ګټه اخستو کې يو له بل سره توپير لري . ( المحجة البيضاء : ١٩ مخ )

 

د عالمانو ډولونه

ðعالمان دوې ډلې دي: يوه هغه ډله ده،چې پر خپل علم عمل کوي، چې دا ډول عالمان د قيامت پر ورځ  له ناوړو پېښو خوندي دي. بله ډله پر علم عمل  نه کوي،چې دا ډله پوپنا شوې ده او د قيامت پر ورځ به داسې راپاڅي،چې د بدن  وروست بوى يې دوزخيان هم کړوي . د قيامت پر ورځ به هغه تر ټولو پښېمانه او عذاب يې سخت وي،چې خلک يې دين او خداى ته رابلي او دا بلنه يې اغېزمنه هم وي او هغوى جنت ته ولاړ شي،چې همده ورته سمه لار ښوولې؛خو په خپله ځکه دوزخ ته ولاړ شي،چې پر خپل شته علم يې، چې نورو ته ښوولى،عمل نه وي کړى؛ځکه د ځاني غوښتنو لاروي مې کړې او اوږدې هيلې يې اخرت ته له پام،معنوياتو او حق ته له رسېدو ژغوري .(اصول کافي؛لومړى ټوک،٥٥ مخ )

 

ګاونډ

ðرسول اکرم ته وويل شول : ((پلانۍ ښځه لمونځ کوي او روژه نيسي؛خو ګاونډيان ترې پوزې ته راغلي دي.)) د خداى استازي ورته وويل:((ځاى يې د دوزخ په اور کې دى . هغه ايمان نه دى راوړى،چې ګاونډى يې ترې تنګ وي. څوک چې ګاونډى وځوروي؛خداى به پرې د جنت بوى حرام کړي او دوزخي به يې کړي، چې دوزخ ډېر بد ځاى دى.)) (بحار الانوار٧٤ /١٥٠)

ðکه د ګاونډي نيمګړتيا مو وليده؛نو کوښښ وکړئ پرده پرې واچوئ او پوه شئ،چې د ښکلا او ښېګڼو څرګندول او پر بدو پرده اچول، الهي ځانګړنه ده  او د بديو  بربنډول د شيطان کار دى . (بحار الانوار٧٤ /١٥)

ðچا چې د اړتيا پر مهال ګاونډي ته خپل لوښي ور نه کړل؛خداى به د قيامت پر ورځ خپل خير ور نه کړي .(٥٩)

 

د جنتيانو د روح په څېر بدن

ðحضرت عايشه بي بي وايې : د خداى رسول ته مې وويل:تر تا وروسته له واره تشناب ته ولاړم،چې بې د مشکو له بوى پکې هيڅ څه هم نه ول. پېغمبر اکرم راته وويل : ((زموږ د پېغمبرانو بدنونه د جنتيانو د روح په څېر ‏دي اوڅه چې ترې راوځي،ځمکه راکاږي يې.)) (د سنن النبي کتاب)

 

په سلو کې نهه نوي برخې عقل يې پېغمبر اکرم ته ورکړ

ð چې خداى عقل جوړ کړ ؛نو ورته يې وويل : شا ته ولاړ شه! عقل شا ته ولاړ و بيا څښتن ورته وويل : يو مخلوق مې هم ستا هومره پر ماګران نه دى،چې دا مهال یې د هغې (عقل) نهه نوي برخې ماته راکړى او هغه يوه پاتې برخه يې پر خپلو نورو ټولو بندګانو وويشله .)) (سنن النبي)

 

زه د نېکو اخلاقو لپاره مبعوث شوى يم

ð زه د غوره او له نېکو اخلاقو سره مبعوث شوى يم . (سنن النبي)

ð اخلاق مو ښه کړئ؛ځکه زه خداى په ښو خويونو مبعوث کړى يم . (سنن النبي)

 

د صبر او ايمان تړاو

ðد صبر او ايمان تړاو؛لکه د سر او تې دى . (سنن النبي)

رسول الله ته ورته انسان

ð  آیا درته ووايم ،چې په تاسې کې څوک تر ټولو زيات ماته ورته دى؟ اصحابو وويل : ويې وواست؟ پېغمبر اکرم(ص): هغه چې اخلاق يې نيک او له خلکو سره يې چلن تر ټولو نرم وي او تر ټولو زيات پرخپلو دينى ورونو مهربان وي،د حق ملګرى وي او تر ټولو زياته خپله غوسه کابو کړي،بښونکى وي او خوشحاله او که خپه وي، انصاف او عدالت رعايت کړي. (سنن النبي)

 

حقيقي لارويان اوبې لاري

  ðپوه شئ د هرعبادت لپاره يو شدت او افراط وي،چې وروسته بيا دا حالت پر فطرت او هوسايۍ اوړي؛نو د چاچې د عبادت شدت زما د سنتو پر خلاف عمل کوي؛نو بې لارى شوى دى،عمل يې بې ځایه تللى او ځان يې هم تباه کړى دى . (سنن النبي)

ðخلکو! پوه شئ ،چې زه هم لمونځ کوم او هم خوب! روژه نيسم او روژه ماتى هم کوم،خاندم اوکله ژاړم هم ؛نو چا،چې زما له روښانه سنت مخ واړاوه؛نوله ما څخه نه دى . (سنن النبي)

 

پینځه نبوي سنتونه

ðپینځه څيزه به تر مرګه پرېنږدم، چې تر ما وروسته سنت شي: پر ځمکه ډوډۍ خوړل ،له مریانو سره پر لوڅ خره سپرلي ، اوزې لوشل،وړينې جامې اغوستل او پر ماشومانو سلام کول . (سنن النبي)

 

له خلکو سره جوړجاړى

ð هماغسې،چې موږ پېغمبرانو ته دنده راکړل شوې،چې په خلکو کې واجبات دود کړو؛نو هماغسې دنده راکړ شوې ،چې له خلکوسره ګوزاره او جوړجاړې ‏هم وکړو. (سنن النبي)

 

 

له فقيرانوسره مینه

ðخداى حکم راکړى،چې له بېوزليوسره مينه ولرم . (سنن النبي)

 

دعا

ðدعا د مؤمن وسله ،د دين ستنه او د اسمانو او ځمكې رڼا ده . (فلاح المسايل : ۲۸مخ)

ðبښنه غوښتل  ډېره غوره دعا ده . (الكافي ۲\ ۵۰۴)

ð ډېر بېوسې هغه دى،چې دعا نشي كولاى او ډېر كنجوس هغه دى ، چې د سلام په ځوابولو كې كنجوسي كوي . ( وسايل الشيعه ۱۲ \۶۱)

ðچا ته چې د دعا ور پرانستلل شي؛نو خداى تعالى يې دعا هرومرو قبلوي . ( مستدرك الوسايل ۵\ ۱۶۸)

ðدعا د خداى ډېره ښه ايسي . ( مستدرك الوسايل ۵\ ۱۶۹)

ðپرهېز او ډډه كول د تقدير خنډېداى نشي؛خو دعا يې خنډېداى شي؛ نو د بلا تر راكېوتو وړاندې دعا وكړئ؛ځكه خداى په دعا هره راكېوتې اور اكېوتوونكي بلا لرې كوي . (الدعوات : ۲۸۴)

ð (( لا اله – الا الله )) غوره وينا ده او ((الحمدالله))  غوره دعا ده . (المحاسن  ۱\ ۱۶۱)

ðكه بلا د خداى ټينګه قضا هم وي؛نو دعا يې ستنولاى شي . ( وسايل الشیعة ۷\ ۴۳)

ðپه لمر پرېوتو كې د اسمان او جنت ورونه پرانستل كېږي او دعا قبلېږي؛نو پر هغه دې خوښي وي ،چې پردې مهال نېکې چارې  كوي . (روضة الواعظين ۲ \ ۳۱۸)

ðپر هغه دې خوشحالي وي،چې په كړنليك كې يې تر هرې ګناه لاندې يو (( استغفرالله )) كښل شوی وي . ( محاسبة النفس : ۱۵مخ )

ðقضا يوازې په دعا، قضا شي ( او بس ) . ( مكارم الا خلاق : ۳۸۸)

ðد څلورو تنو دعا نه ستنېږي او د اسمانو ورونه پرانستل كېږي او الهي عرش ته رسېږي : (۱) زوى ته د پلار دعا (۲) ظالم ته د مظلوم ښېرا (۳) حاجي تر راستنېدو پورې (۴) او روژه تي،تر روژه ماتي پورې . (الكافي : ۲\ ۵۱۰)

ð دعا د خداى د رحمت کونجي ده .  ( کنز ٢ /٦٢)

ðغايب ته چې دعا کوې (؛نو) خداى يې  ژر قبلوي . ( سنن ابى داود ١/٣٤٣)

ðهغه ډېر بېوسې دى،چې ان  له خدايه په دعا او غوښتو کې هم بېوسې وي . ( کنز: ٦٤)

ð دعا  د مؤمن وسله ده . ( کافي ٢/٤٦٨ )

ð د يو ورور په حق کې شا پر شا دعا کول قبلېږي . ( کنز ٢/٩٨)

ð دعا د انسانه بلا ګانې تمبوي .( کنز ٢/٦٣)

 

د پېغمبر اکرم دعا

ðدآدم د اولادې ټول زړونه ديوه زړه په څېر د رحمان (خداى) د دوو ګوتو ترمنځ دي،څنګه يې چې خوښه شي،هماغسې يې ګرځوي؛نو پېغمبر اکرم وويل : (( دزړونو ګرځوونکيه! زموږ زړونه د خپلې بندګۍ پر لور وګرځوه .)) (سنن النبي)

ðخدايه ! اخلاق مې نېک کړې .خدايه! له بدو اخلاقومې لرې کړې . (سنن النبي)

ðد خداى رسول،چې ويده کيده ؛نو دا دعا ‏يې ويله (( اللهم با سمک احيا وباسمک اموت – خدايه!ستا په نامه ژوندى کېږم اوستا په نامه مړکېږم)) او چې له خوبه راپاڅېده؛نو دا دعا یې ویله ((الحمدالله الذى احيانى بعد ما اماتنى واليه النشور – د هغه خداى شکر ،چې ‏تر مرګ وروسته یې بېرته راژوندى کړم او ټول به د هغه پر لوري  راغونډېږو)). (سنن النبي)

ðپېغمبر اکرم(ص) تبې او درد ته دا دعا ويله :(( د لوى خداى په نامه د رګ رګ له شره مې وساتې،چې وينه پکې تېزه بهېږي ‏او د دوزخ  د اور له شره ‏پناه غواړم.)) (سنن النبي)

ð پر رسول اکرم،چې خپګان راته؛نو دوه رکعته لمونځ يې کاوه  او ويل یې:((خدايه! ما پر هغه څه عمل وکړ،چې تا پرې حکم کړى و؛نو ته هم راسره پرکړې ژمنه عمل وکړه.)) (سنن النبي)

ð آيا نه غواړئ،‏هغه دعا درزده کړم،چې ‏جبرئيل رازده کړې،چې نور طبيب او درمل ته اړتيا پيدا نه کړئ؟ اصحابووويل :وښاياست. آنحضرت(ص) ‏وويل:((د باران اوبه راواخلئ، ‏اويا ځل ((سوره حمد))،اويا ځله ((قل اعوذ برب الفلق )) اويا ځله (( قل اعوذبرب الناس))،اويا ځله پرې ((پر محمد او آل يې درود )) او اويا ځله ((سبحان الله)) وواست او اوه ورځې پرله پسې يې سهار ماښام وڅښئ.)) (سنن النبي)

ðد څښتن له استازي به،چې څه هېرشول؛نو تندى يې په ورغوو کې کېښود او بيا يې ويل : (( اللهم لک الحمد،يا مذکرالشى و فاعله ذکرنى ما نيست ؛يعنې خدايه!حمد او ستاېنه ستا ده . اى د هر څه يادوونکيه! راياد کړه څه مې،چې هېرکړې دي . (سنن النبي)

 

دسپرېدو پر مهال دعا

ð په سفرونو کې چې آنحضرت (ص) ‏ پر‏ څه سپور و؛نو درې ځله يې الله اکبر او د ((سُبْحانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ)) آيت يې ترپایه لوسته  او ویل یې : (( خدايه!په دې سفر کې له تا نېکي او پرهېزګاري غواړم او هغه کار درڅخه ‏غواړم،چې د خوشحالۍ لامل دې ګرځي . خدايه!دا سفر راته اسان او لرېوالى يې راته نږدې کړه . خدایه! ته په سفر کې له موږ سره او په کورونو کې مو ځايناستى يې،خدايه!د سفر د غم او کړاو او د کور د غم اوخپګانه درته پناه دروړم .)) (سنن النبي)

ð له چې سفره راستنېده؛ نو ويل يې : ((‏حال داچې خداى ته مې توبه کړې، ‏عبادت ‏او ‏مننه یې کوم ،چې خپل کور ته راستون شوم .)) (سنن النبي)

ðپر آنحضرت (ص) چې به په سفر کې شپه‏ شوه؛نو ‏ويل یې : ((ځمکې!زما او ستا پالونکی خدای دی‏، ستا له شره او د هر هغه څه له شره،چې پر تا روان دى،خداى ته پناه وړم او همداسې د هر داړونکي ، چيچونکي مار او لړم او د هر موجود له شره،چې په دې دښته کې دي خداى ته پناه وړم . (سنن النبي)

 

د نويو جامو اغوستو پر مهال دعا

ðد هغه خداى شکر او ستاېنه ،چې پر هغه څه يې وپوښلم،چې پرې خپل عورت پټ کړم او په خلکو کې پرې ځان سینګار ‏کړم . (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم چې هر کله نوې جامې واغوستې؛نو پاڅېده او مخکې له دې،چې له کوره ووځي ‏ويل یې : ((خدايه! ستا له لارې ‏مې ځان وپوښه او تا ته مخه کوم‏ او ستا پر رسۍ منګولې لګوم،پر تا مې توکل ‏دى . خدايه! ته مې ډاډ‏ اوهيله يې . خدايه!مهمات مې کافي کړې او‏ څه ته مې،چې پام نه وي او ته پرې ښه پوهېږې،راسره پکې ملاتړ شې، بې له تا بل خداى نه شته . خدايه! تقوا مې د لارې توښه کړې او ومې بښه او هر لوري ته مې،چې مخه کړه،خير او ښېګڼه راپېښه کړې . (سنن النبي)

 

له مجلسه د پاڅېدو پرمهال دعا

ðآنحضرت (ص)،چې ‏له کوم مجلسه پاڅېده؛نو ويل يې : ((خدايه!له هر ډول عيب او نيمګړتيا پاک يې،حمد او ستاېنه يوازې ستا ده، شهادت ورکوم،چې بې له تا بل خداى نشته . له تا بښنه غواړم او تا ته درستنېږم . (سنن النبي)

 

جومات ته د ننووتو او وتو دعا

 ðد خداى رسول،به چې جومات ته ننووت؛نوويل ‏يې : ((اللهم افتح لى ابواب رحمتک ‏خدايه!د رحمت ورونه راپرانځې)) او د وتو پرمهال ‏يې ويل:(( اللهم افتح لى ابواب رزقک خدايه د روزۍ ورونه ‏راپرانځې. (سنن النبي)

ðد خداى رسول ‏چې به جومات ته ننووت؛نو ويل ‏يې:(( د خداى په نامه او خدايه! پر محمد او آل يې درود ووايه ،ګناهونه مې وبښې او د رحمت ورونه راته پرانځې.)) او له جوماته د وتو پرمهال يې ويل : (( د خداى په نامه . خدايه! پر محمد او آل يې درود ووايه،ما وبښه او د فضل اوکرامت ورونه راپرانځې.))

 

د ويدېدو پرمهال دعا

ðپېغمبراکرم،چې ويدېده؛نو پر ښي اړخ ‏ويدېده،ښى لاس ‏يې تر مخ لاندې اېښووه اوبيا ‏يې ويل : ((خدايه! پر هغه ورځ  مې وساتې،چې ‏بندګان دې له قبرونو راپاڅوې .)) (سنن النبي)

د دسترخوان دعا

ð آنحضرت(ص) ته يې، چې د سترخوان خپور کړ؛نو ‏ويل یې : ((خدايه! ته پاک يې! هغه څومره ښکلي دي‏،چې موږ ‏پرې ازمېيې . ته پاک يې، ‏هغه نعمتونه څومره ډېر دي،چې رابښلي دې دي . ته پاک يې،څومره نعمتونه دې رابښلي . خدايه! موږ، مؤمنو ‏او مسلمانو بېوزلیو ‏ته پراخه روزي ورکړې .)) (سنن النبي)

 

د دسترخوان د برکت دعا

ðآنحضرت(ص) ‏ته ‏يې چې دسترخوان هوار کړ؛نو ‏‏ويل یې : ((د خداى په نامه،اى خدايه!‏دا نعمتونه راته له مشکوره نعمتونو ‏وګرځوې او د جنت له نعمتونو سره يې يو ځاى کړې .)) (سنن النبي)

 

خوړو ته د لاس نږدې کولو د مهال دعا

ðپېغمبراکرم(ص)‏،چې خوړو ته لاس وراوږداوه؛نو ويل يې :((د خداى په نامه .خدايه!‏څه چې دې راروزي راکړې،‏برکت پکې واچوې او د هغې پر ځاى نوره روزي راکړې .)) (سنن النبي)

 

د دسترخوان ټولولو پرمهال دعا

ðد خداى د رسول له مخې ‏يې،چې ډوډۍ ټولوله؛نو ويل یې:  (( خدايه! ډېر نعمتونه دې ‏راکړل،هغه دې پاک کړل،برکت دې پکې واچاوه،موږ دې ماړه کړو،د هغه خداى ځانګړې ستاېنه،چې روزي يې راکړه؛خو ‏په خپله روزۍ ته اړتيا نه لري .)) (سنن النبي)

 

 

د خوړو او شيدو پر مهال دعا

ðد خداى رسول ‏چې څه خوړل يا څښل؛نو ويل ‏يې:((خدايه په دې خوړو کې برکت واچوې او ترې غوره راکړې .)) (سنن النبي)

ðد شيدو څښلو پر مهال ‏يې ويل : (( خدايه! دا شيدې رامبارکې کړه او تر هغې ‏مې رزق زيات کړه .)) (سنن النبي)

 

د تازه ميوې د ليدو پرمهال دعا

ðد خداى رسول،چې تازه مېوه ليده؛نو ښکل کوله يې او پر سترګو او خوله ‏يې کېښووه او بيا ‏يې ويل : (( خدايه !؛لکه ددې مېوې د ليدو په پيل کې،چې دې په روغتيا کې راښووه ؛نو په پاى کې يې هم په روغتيا کې راوښيې.)) (سنن النبي)

 

تشناب ته د ننووتو دعا

ðآنحضرت(ص)،چې تشناب ته ‏ننووت؛نو ويل يې:((خدايه!د پليت ، نجس ،خبيث او ناپاکه شيطان له شره پناه دروړم . خدايه!غم او خپګان رانه لرې کړې او له رټل شوي شيطانه پناه راکړه.)) او چې اودسماتي ته ‏کېناسته؛نو ‏ويل یې:(( خدايه!خپګان او ناپاکي رانه لرې کړې او له پاکانو مې کړې.))

د مدفوع د وتو پر مهال ‏يې ويل : ((خدايه! لکه هماغسې،چې دې د روغتيا په حالت کې پاک خواړه راکړل؛نو د روغتيا په حالت کې يې رانه فضلات هم وباسه.)) (سنن النبي)

 

 

 

د خداى ستاېنه

ðپېغمبراکرم(ص)،چې تشناب ته ته؛نو کله ‏يې داسې هم ويل : (( د هغه خداى ستاېنه او شکر‏ دى،چې د انسان ساتونکى او د حاجتونو پوره کوونکې دې.)) (سنن النبي)

 

له تشنابه د راوتوپر مهال دعا

ðله تشنابه،چې راوته؛نو لاس ‏يې پر ګېډه راکښه ‏‏او ‏‏ويل یې : ((د هغه خداى شکر ‏او ستاېنه،چې د خوړو کړوونکي فضلات يې له رانه واېستل او له خوړو‏ پاتې قوت يې راکې پرېښود،‏دا ‏ ستر نعمت دى،چې ‏څوک یې هم په اندازه کولو وسمن او قادر نه دی .)) (سنن النبي)

 

له هديرې د تېرېدو پر مهال دعا

ðله هديرې ‏د تېرېدو پر مهال ‏يې ويل : ((د مؤمنانو له اړخه دې پر تاسې سلام او درود وي،موږ به هم هله له تاسې سره یو ځای شو،چې خداى غوښتل‏.)) (سنن النبي)

 

د قبر د زيارت دعا

ðد خداى رسول ‏له ځينو يارانو سره د بقیع هديرې ته ته او درې ځل ‏يې ويل : (( السلام عليکم يااهل الديار)) سلام دې پر تاسې وي‏،چې ويده ياست. ‏درې ځلې ‏يې ويل : ((رحمکم الله)) پر تاسې دې د خداى رحمت ‏وي . (سنن النبي)

 

د خوشحالۍ او خپګان پرمهال دپېغمبراکرم دعا

ðهره خوشحالوونکې خبره،چې د خداى رسول ته رارسېده؛نو ويل يې: ((الحمدالله لله على هذه النعمه‏ ،ستاېنه او شکر‏ د هغه خداى دى،چې دا نعمتونه يې ‏راکړل.)) او چې خپه به شو؛نو ويل ‏يې : ((الحمدالله على کل حال ،په هر حال کې د خداى شکراوستاېنه ده.))

 

د خوښ څيز د ليدو پر مهال دعا

ðد آنحضرت(ص)،چې څه خوښ وو او و به يې ليد؛نو ‏ويل یې: (حمد او ستاېنه ځانګړې د هغه خداى ده،چې پر خپل نعمت يې نيمګړى خلاص کړى.))

 

دروژه ماتي پر مهال دعا

 ðپېغمبر اکرم(ص) ‏د روژه ماتي پر مهال ويل : ((خدايه!تا لپاره مو روژه ونيوه او ستا پر راکړي رزق مې ماته کړه؛نو روژه مو قبوله کړه،تنده ماته شوه،د بدن رګونه ډک شول؛خو د روژې ثواب پر ځاى پاتې دی.)) (سنن النبي)

 

د سهار تر لمانځه وورسته دعا

 ðپېغمبراکرم(ص)،چې د سهار لمونځ وکړ؛نو پر ‏لوړ ‏غږ‏ يې دا دعا کوله ، چې نورو يارانو ‏يې هم ‏اورېده : ((خدايه هغه دين وساتې،چې زما د ساتلو ‏وسيله دې ګرځولې.)) او درې ځل يې وويل : ((خدايه !په کومه دنيا کې چې اوسېږم راته يې اصلاح کړې.)) او درې ځل ‏يې ويل : ((خدايه! آخرت ته مې ورستنېدل مې‏ دي، راته يې ښه کړې .)) درې ځل ‏يې ويل : ((خدايه! له غوسې دې رضا ته او له سزا ‏دې بښنې ته پناه وړم.)) او په پاى کې ‏يې ويل : ((خدايه پناه دروړم،څه چې ‏ راوبښې، څوک يې مخه نشي نيولای او د‏ څه چې ته مخه ونيسې؛نو څوک يې نشي راکولای او د هر هڅوونکي هڅه بې ‏له تا  بې ګټې ده)) (سنن النبي)  

 

په سجده کې دعا

 ðپېغمبراکرم،چې تندى د سجدې لپاره پر ځمکه کېښود؛ نو ‏‏ويل یې: ((خدايه! زما په نزد له ګناهونو مې ستا رحمت ستر دى او له اعمالو مې ستا رحمت ته ‏هيله ډېره ده؛نو خدايه!ګناهونه ‏مې وبښه. اى هغه ژونديه،چې مرګ او نيستي ستا لپاره نه ده .)) (سنن النبي)

 

له لمانځه د راستنېدو پر مهال دعا

ðپېغمبراکرم به،‏چې له لمانځه راستون شو؛نو تندى به يې پر ښي لاس مسح کړ او‏ ويل یې : (( خدايه!ټولې ستاېنې ستا ‏دي،بې تا بل خداى نشته، چې له ښکاره او پټو ‏خبر وي .خدايه ! پټې او ښکاره فتنې او غمونه رانه ‏لرې کړه. )) اوبيا يې وويل : (( ‏په امت کې مې،چې ‏چا دا کار وکړ؛نو ‏څه يې،چې له خدايه وغوښتل؛ور به يې کړي .)) (سنن النبي)

 

په هر لمانځه پسې دعا

ð حضرت انس بن مالک(رض) وايي : پېغمبر(ص) تر لمانځه وروسته ويل : ((خدايه!له هغه علمه پناه غواړم،چې ګټه نه لري،له هغه زړه،چې خشوع نه لري،له هغې ګېډې،چې مړه نشي او له هغې دعا،‏چې و نه منل شي . خدايه زه له دې څلورو څيزونو پناه غواړم.)) (سنن النبي)

 

د نوي کال پرمهال د پېغمبر اکرم دعا

 ðپېغمبر اکرم به د محرم پر لومړۍ ورځ دوه رکعته لمونځ کاوه او تر  لمانځه وروسته به ‏يې لاسونه  پورته کړل او درې ځلې ‏ يې دا دعا وويله  : (( خدايه! ته پخوانی معبود او دا کال نوى دی؛نو خدايه! په دې کال کې له تاغواړم،چې د شيطان له شره مې خلاص کړې،پر اماره نفس مې برلاس کړې او پر هغه مې بوخت کړې،چې تا ته مې در نژدې کوي . اى کريمه! اى د جلال او اکرام خاونده! اى د هغو اډانه،چې ډډوېږدى (تکيه) نه لري، اى د هغوى د چغو اورېدونکيه،چې اورېدونکی نه لري،اى د هغوى پناه،چې پناه نه لري،اى د هغوى خزانې،چې خزانه نه لري،اى نېک بښونکيه،اى سترې هيلې،اى د بېوزليو عزته،اى ‏د پوپنا‏ شويو ژغورونکیه، اى د هلاک شويو ژغورونکيه،اى احسان کوونکيه، ته هغه خداى يې،چې د شپې تياره ،د ورځې رڼا، د سپوږمۍ او لمر ځلا، د اوبو غږ،د اورونو غږ ټول درته سجده کوي . خدايه ! ته شريک نه لرې . خدايه ته موږ له هغه غوره کړې،چې خلک ‏مو‏ په باب فکر کوي او ‏هغه ګناهو‏نه مو وبښه،چې څوک ترې خبر نه دي . خداى، چې مو مل وي ؛نو همدا راته بس دى او په خدای مې  ‏توکل ‏دی . هغه د ستر عرش خاوند دی،زه پرې ايمان لرم او له دې خبرې بې له هوښياراونو بل څوک خبر نه دي،چې ټولې چارې د خداى له لوري دي . خدايه زړونه مو ونه خوځى،راباندې ولورېږه،چې يوازې ته بښونکى يې.)) (سنن النبي)

 

د شعبان پر پینځلسم (پينځلسي) د پېغمبر(ص) دعا

ð پېغمبراکرم د شعبان پر پینځلسمه شپه دا دعا کوله : ((خدايه! په زړونو کې مو له تا دومره وېره واچوې،چې د ګناه د مخنيوي لامل وګرځي او په دومره عبادت مې بوخت کړې،چې ستا د رضا لامل وګرځي او دومره يقين راوبښې،چې د دنيا ټولې سختۍ را اسانې شي . خدايه! څو‏ ژوندي يو؛سترګې،غوږونه او ځواک ‏مو ګټور کړې او ‏زموږ وارثان یې وګرځوې .‏له دښمنانو مو غچ واخله او‏ پرې مو برلاسي کړه . خدايه ‏په دين کې مو غم را نه وړې او دنيا راته غم او د علم پاى و نه ګرځوې او هغوى راباندې برلاسي نه کړې،چې راباندې ‏رحم نه لري ؛نو ستا رحمت ته هيلمن یم، اى تر ټولومهربانه.)) (سنن النبي)

  

د شعبان پر پینځلسمه دپېغمبر(ص) بله دعا

 د پېغمبر(ص) د يوې مېرمنې د خولې خبره ده،چې پر هغه شپه زما وار و؛ نو د خداى رسول له بسترې ‏داسې پاڅېد،چې پرې پوه نه شوم، ‏راپاڅېدم ؛نو ښځينه غيرت مې راوپارېد او فکر مې وکړ،چې ګنې د خداى رسول د بلې ښځې کوټې ته تللى. ناڅاپه مې پرې سترګې ولګېدې، چې د خداى رسول د جامو غوندې پر خاورو پروت دى او په سجده کې وايي : (( خدايه!تل ستا د درشل فقير يم،اړ دې يم،تل له تا وېرېږم او له تا پناه غواړم؛نو ته مې هم نوم د نېکانو ‏له لړه و نه باسې،په جسم کې مې بدلون را نه ولې،په ‏سختو ازمېښتونو ‏کې مې راښکېل نه کړې او ومې بښې.))

بيا يې وويل : د خداى رسول ‏له سجدې سر راپورته کړ او بېرته سجدې ته ولاړ او دا ځل يې په سجده کې وويل : ((خدايه! جسم او روح دواړه مې درته پر سجده دي او زړه مې پر تا ايمان لري او دا هماغه دواړه جنايت کوونکي لاسونه دي (،چې تا ته په سجده دي) ستره خدايه،چې د هر ستر کار د کولو هيله يوازې له تا کېدای شي،ستر ګناهونه ‏مې وبښه، چې بې له ستر خداىه بل څوک د سترو ګناهونو د بښلو وس نه لري.)) سر یې له سجدې راپورته کړ او بيا سجدې ته ولاړ؛ وا مې ‏ورېدل،چې ويې ويل : (( خدايه،ستا له عذاب،غضب او سزا څخه ستا تېرېدنې،‏بښې،رضا،خوشحالۍ او عفوې ته پنا دروړم، هو څښتنه! له تا څخه تا ته پناه دروړم،ته هماغه يې ،چې خپله ستاېنه دې وکړه او ته له دې ډېر ستر يې ،چې خلک فکر کوي.))‏له سجدې یې سر راپورته کړ او په څلورم ځل بیا په سجده شو او ويې ويل : (( خدايه! ستا د وجهې له رڼا درته پنا دروړم،چې اسمانونه او ځمکې پرې روښانه شوې،تيارې پرې له منځه تللي او لومړني او آخرني کارونه دې پرې اصلاح کړي،له دې وېرې،چې غضب دې راباندې رانازل نه کړې او يا داچې عذاب دې راباندې ‏نازل نشي . خدايه! د نعمت د ورکېدو،د ناڅاپه عذاب،له ناروغۍ او ستا له غوسې او عذابه پناه غواړم .خدايه! پر هغه چې کړاى شي، و مې رټې او هېڅ داسې ځواک ‏نشته؛خو داچې ستا د سپېڅلي ذات په مټ به وي .)) د خداى رسول مې،چې پر دې حال وليد؛نو پر خپل حال  مې پرېښود او ‏حال داچې ساه مې تله راتله،‏کوټې ته مې راغلم  پېغمبر اکرم هم ‏ راغى او ويې ويل: ((ولى دې ساه ځي راځي؟)) ورته مې وويل: زه په تاسې پسې در ووتم اوستاسې کړه مې وليدل .  پېغمبراکرم وویل : ((خبره يې،چې نن د څه شپه ده؟نن ‏د شعبان دپینځلسمې شپه ده،چې پکې د انسان اعمال،روزي او د مرګ اجل ټاکل کېږي . خداى په دې شپه د ټولو ګناهونه بښي؛خو مشرک، باجګير،بې رحمه،شرابخور، هغه پر خپله ګناه ټينګار کوي، بې ځايه ګړېدونکې،غيب ويونکې او کاهن په دې شپه نه بښي.))  (سنن النبي)

 

د مياشتې د ليدو پر مهال دعا

ðد خداى د رسول سترګې،چې به پر مياشت ولګيدې؛نو لاسونه ‏يې پورته کول او ‏ویل یې : ((د خداى په نامه . خدايه! د دې مياشتې هلال راته د ايمان او روغتيا له امنيت سره يو ځاى کړې  او اسلام راته ګټور شي(او اى مياشتې!) زما او ستا پالونکی ‏هماغه ایکي يو خداى دی.))  (سنن النبي)

 

د روژې د مياشتې د ليدو پرمهال دعا

ðد خداى رسول،چې به د روژې مياشت وليده؛ نو مخ پر قبله ‏درېده او ‏ويل یې : ((خدايه ددې مياشتې هلال راته د امنيت ايمان،روغتيا،پر اسلام د عمل،نيک عاقبت او د ناروغيو پر وړاندې ‏د دفاع او د لمانځه،روژې او د قرآن د تلاوت مياشت وګرځوې .خدايه!‏‏توفيق راکړې،چې ددې مياشتې اعمال ترسره کړو او دا مياشت رانه خوشحاله کړې او راته ‏پکې روغه سټه هم راکړې او ‏څو دا مياشت په خير پای ته رسي،چې په خير ‏دې بښلي يو.)) (سنن النبي)

 

٣٦٠ ځل ستاېنه او شکر

ðپېغمبراکرم  وويل : (( د بني آدم په بدن کې ٣٦٠ رګونه دي،چې ١٨٠ رګونه يې متحرک یا خوځنده او ١٨٠ يې ساکن دي؛نو که ‏متحرک رګونه ساکن او ساکن متحرک شول؛نو انسان ته به خوب ور نشي.))

ځکه پېغمبراکرم د ورځې ٣٦٠ ځل ويل : (( الحمدالله کثيرا ًعلى کل حال)) او چې شپه رارسېده ؛نو ‏هماغومره بيا یې پورتنى ذکر وايه. (سنن النبي)

 

د قرآن د حفظولو لپاره دعا

 ð خدايه ! ‏څو‏ ژوندى يم؛ته راباندې ولورېږه،چې ځان له ګناه ‏لرې کړم او هغه څه ته ملا وتړم،چې ته پرې خوشحالېږې . خدايه!؛لکه دې چې قرآن رازده کړ،زړه مې يې ساتونکی کړې،چې ته پرې راضي يې او ما ته د قرآن د تلاوت توفيق راکړې . خدايه! سترګې مې پرې روښانه،سینه مې پرې پراخه،زړه مې پرې ګواه او بدن ته مې پر قرآن د عمل توفيق ورکړې او ددې چارو په ترسره کولوکې راسره مرسته وکړې؛ځکه‏ ټول ځواکونه ‏ستا له اړخه دي.)) (سنن النبي)

 

د دښمن له شره د امان لپاره دعا

 ðموږ د کفارو پر زړونو پردې اچولي،چې په قرآن نه پوهېږي او غوږونه يې درانه دي او( ته اى زما رسوله !) چې يوازې خداى په قرآن کې يادوې؛نو هغوى له نفرته تا ته شا کوي . خدايه! ستا دې پر هغه جمال او جلال قسم وي،چې په حجابونو کى پټ دى او د کمال پر هغه نور قسم درکوم،چې عرش يې رانغښتی او پر عزت او شرافت دې قسم، چې د قدرت په عرش  کې دې ځاى لري او پر هغه څه قسم درکوم ، چې په ملکوت کې دې پرې قدرت واکمن دى .خدايه!‏ چې حکم دې تل پلي کېږي او حکم او قضاوت دې نه راستنېدونکى دى، زموږ او د دښمن ترمنځ يوه پرده راوړې،چې تېرې تورې او نيزې يې د شلولو قدرت و نه لري . اى سخت بريدمنه! چې قدرت دې تر ټولو زيات دى،‏له هغوى مې وساتې،چې د غشيو او بلاوو خولې يې زما پر لور رااړولي . اى هغه خدايه، چې د يعقوب غم دې لرې کړ؛نو زماغم هم لرې کړه. خدايه،چې د يعقو‌ب ناروغي دې ورغوله؛نو زما رنځ هم لرې کړه . خدايه! برى تل ستا دى؛نو ما هم پر خپل دښمن برلاس کړه. (سنن النبي)

 

په سهار کې دعا

 ðدرې جملې ټولو پېغمبرانو له آدامه تر خاتمه لاس پر لاس وګرځولې او پېغمبر(ص) به هر  هر سهار دا دعا ويله : (( خدايه! زه له تا هغه ايمان غواړم،چې زړه مې تل له تا سره وي او له تا هغه يقين غواړم،چې پوه شم،هغه څه رارسي،چې تا راته ټاکلي وي .خدايه! پر هغه مې خوشحاله کړې، چې تا راته ټاکلي دي.)) (سنن النبي)

 

د مياشتې د ليدوپرمهال دعا

ð د خداى د رسول سترګې،چې به پر مياشتې ولګېدې؛نو ‏‏ويل یې : ((اى لاس پرسينه مخلوقه،چې د اسمان په ملکوتو کې له الهي تقدير سره د ګرځېدو په حال کې يې،زما او ستا پالونکی ‏خداى دی . خدایه! دا مياشت راته د ايمان ،اسلام او روغتيا مياشت وګرځوې؛ نو هماغسې،چې تا ددې مياشت پيل راوښود؛نو ددې مياشت پاى هم راوښيه او‏ ‏ مبارکه مياشت یې وګرځوې،چې زموږ ګناهونه پکې وبښې او  درجه مو پکې لوړه کړې . خدايه ستا خيرات ستر دی.)) (سنن النبي)

 

د رجب د مياشتې د ليدو پرمهال دعا

ð پېغمبراکرم،چې به د رجب مياشت وليده؛نو‏ ويل یې : ((خدايه! دا مياشت راته د اسلام ايمان،امنيت او روغتيا مياشت وګرځوې. سپوږمۍ ! زما او ستا پالونکى ‏ایکي يو خداى دی .)) (سنن النبي)

 

د شعبان د مياشتې د ليدو پرمهال دعا

ðپېغمبراکرم‏ د رجب د مياشتې د ليدو پرمهال ويل : ((خدايه! د رجب او شعبان مياشت پر موږ مبارکه کړه او په خير د روژې مياشت راورسوې او په هغه مياشت کې د روژې په نيوو،له نامحرمو د سترګې په پټولو،روژه او عبادت کولو کې راسره مرسته وکړې او په هغه مياشت کې مې يوازې لوږه او تنده په نصيب نه کړې .)) (سنن النبي)

 

دمياشتى د ليدو پرمهال دعا

ðدپېغمبراکرم سترګې،چې به د مياشتې په هلال ولګېدې؛نو درې ځل يې (( الله اکبر)) درې ځل (( لااله لاالله )) وایه او بيا یې ويل:(( د خداى شکر ،چې پلانۍ مياشت يې خلاصه کړه او نوې مياشت يې پيل کړه.)) (سنن النبي)

 

خداى ته پناه وړل

ð دا دعا له پېغمبراکرم رانقل شوې : اى خدايه! د ځان او اولاد لپاره مې د بدې قضا پر قدره پناه دروړم . (سنن النبي)

ðخدايه! له هغې شتمنۍ ‏پناه غواړم،چې ‏د ګناه لامل مې شي،له هغه فقره،چې د هېرېدنې لامل مې شي،له ځاني غوښتنو،چې غافل مې کړي، هغه عمل،چې خوار مې کړي او هغه ګاونډي،چې پر عذاب مې کړي.)) (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم وويل: ((خدايه!ما دې د فرمانونو پلي کوونکى،پر ژمنو دې ايمان راوړونکى،له خلقه دې نهیلى،درسره انس نيوونکى،له تا وېروېدونکى ،ستاپر قضا راضي ،پر بلاوو دې صبر کوونکى،پر نعمتو دې شکر ايستونکى،له ذکره دې خوند اخستونکى،پر کتاب دې خوښ ،په شپه او ورځ کې دې يادونکى،مرګ ته ‏تل چمتو‏،‏ليدو ته دې لېواله، د دنيا دښمن او د آخرت دوست وګرځوې او چې له الهي ‏رسولانو سره دې څه ژمنه ‏کړې،را یې کړې او‏ د قيامت پر ورځ مو سرښکته نه کړې. رښتيا ده،چې ته تل پر خپله خبره ولاړ يې.)) (سنن النبي)

 

محمدي دعا

ðخدايه! له هغه اولاده پناه دروړم،چې پر ما واکمن شي او له هغه ماله،چې ‏د تباهۍ لامل مې شي او له هغې مېرمنې،چې له زړېدو مخکې مې زوړ کړي،له هغه ملګري،چې ټګي راسره وکړي،‏سترګې يې ما ومني او زړه يې نه او که خير وويني پټ يې کړي او که شر وويني،ښکاره ‏يې کړي او له تا د ګېډې له درده پناه غواړم .)) (سنن النبي)

 

د لارښوونې دعا

ðخدايه!له تا پناه غواړم،چې ستا له غنا سره محتاج شم او ستا د هدايت له شتوالي سره بې لارې او ستا له عزت سره  ذليل شم …. خدايه! له تا ددې خبرې پناه غواړم،چې د زور خبره وکړم و،ظلم وکړم او يا ځانمنی شم . (سنن النبي)

 

د برښنا،ورېځو او تالندې پر مهال دعا

  ðد خداى رسول،چې ‏د برښنا او د تالندې غږ واورېد؛‏‏ويل یې: ((خدايه! مخکې له دې،چې ومې بښې؛نو پر خپل غضب او عذاب مې هلاک نه کړې.)) (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم به چې د تالندې غږ اورېد، ويل يې : ((پاک او سپېڅلى دى هغه خداى،چې تالنده يې هم حمد،ستاېنه او تسبيح کوي .)) (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم،چې به وريځ ليده؛نو هر کار ‏يې،چې درلود،‏ هغه ‏يې پرېښود او ويل يې : ((خدايه! ‏له شره یې درنه ‏پناه غواړم.)) او چې وريځې ولاړې ؛نو د خداى شکر ‏يې کاوه او چې باران به پر ورېدو شو؛نو ويل ‏يې:((خدايه! ګټور يې راته وګرځوې.)) (سنن النبي)

 

د پېغمبر(ص) دعا

حضرت ام سلمه وايي : د خداى رسول پخپلو دعا ګانوکې ډېر ويل : (( اى د زړونو اړوونکيه،‏زړه مې پر دين ټینګ ‏کړې .)) (سنن النبي)

 

د بد خلقۍ آفتونه

  ðد خداى له لوري جبرئيل راغى او راته يې وويل : محمده ! ُخلق دې خوږ کړه ؛ځکه بد  ُخلق د دنيا او آخرت خير له منځه وړي او بيا يې وويل : پوه شئ،چې په تاسې کې هغه ماته دى،چې اخلاق يې تر ټولو ښه وي. (سنن النبي)

 

د يارانو خوشحالول

ðخداى د هغه دښمن دى،چې په تريو تندي له بل انسان سره ملاقات کوي . (سنن النبي)

 

د خوړو له زېرمولو ډډه کول

  ðد خداى رسول(ص) خپلې يوې مېرمنې ته وويل : ((آيا ته مې نه وې ژغورلې،چې د سبا لپاره څه مه زېرموه؛ځکه خداى به هر چا ته خواړه ورورسوي . (سنن النبي)

 

د يو بل په ليدوخوشحالېدل

 ðد پېغمبرانو او صديقانو له اخلاقو يو دا دى ،چې کله يو بل وويني؛ نو خوشحالي يې له خبرې راورېږي او يو بل ته لاسونه ورکوي . (سنن النبي)

 

يارانو ته سپارښتنه

ðد خداى رسول(ص) خپلو يارانو ته وويل : خپلې بدۍ ماته مه واست؛ ځکه ‏خوښ يم په داسې حال کې مو ووينم،چې په زړه کې درته هيڅ کینه ‏ونه لرم. (سنن النبي)

 

ست

ðزموږ د پېغمبرانو ‏په ژوند کې بې ځايه ستونه او تکلفونه نشته . (سنن النبي)

 

له خلکو سره له شخړې ژغورل شوى و

 ‏ðړومبى څيز،چې پالونکي ‏مې ترې وژغورلم، له خلکو سره شخړه ده. (سنن النبي)

 

اوه ځانګړنې

 ðخداى ګومارلى يم،چې اوه ځانګړنې ‏ولرم : ټول ښکاره او پټ کارونه مې د خداى لپاره وکړم . چاچې راباندې ظلم کړى،ترې تېر شم او هغه وبښم،چې زه يې بې برخې ‏کړى يم او له هغو سره راشه درشه وکړم،چې راسره يې نه کوي . چوپتيا مې تفکر ته او کتل مې د عبرت اخستو لپاره وي.  (سنن النبي)

 

فقيرانه ژوند

ðخدايه! په فقر او بېوزلۍ کې راته ژوند راکړې او په نېستۍ ‏کې مې له دنيا یوسې او له نشتمنو ‏سره مې راپاڅوې. (سنن النبي)

 

فقيرانو ته زکات او صدقه

ðراته دنده راکړل شوې،چې له شتمنو زکات او صدقه واخلم او فقيرانو ته يې ورکړم . (سنن النبي)

 

زه خداى روزلى يم

ðزه خداى روزلى يم اوعلي ما روزلى دى . خداى ګومارلى يم،چې بښنه او نېکي وکړم او له بخل اوظلم يې ژغورلی يم . (سنن النبي)

 

د هر څه بښنه

ðکه چا له موږ څه وغوښتل او درلودل مو؛نو ور به يې کړو. (سنن النبي)

 

شپږ ناوړه ځانګړنې

  ðخداى راته شپږ ځانګړنې خوښې نه کړې او ما هم هغه د خپل ځايناستو او د هغوى لارويانو ته خوښې نه کړې : په لمانځه کې لوبې، روژه پر خوله سپکې سپورې او بدرد ويل،تر صدقى وروسته منت اېښوول،جنب جومات ته ورننووتل،د شتمنوخلکو کورونو ته کتل او په هديره کې خندل . (سنن النبي)

 

سرتېرو ته سپارښتنه

 ðد خداى په نامه د خداى په لار کې وجنګېږئ،مکر او خيانت مه کوئ،له وژل شويو پوزې مه ‏غوڅوئ،ماشومان اوهغه مه وژنئ،چې په غرونو کې عبادت کوي،د کجورو ونې مه سېځئ او په اوبو يې مه لاهو کوئ،مېوه يي ونې مه غوڅوئ،پټو ته اور مه اچوئ؛ځکه تاسې ‏نه پوهېږئ،‏کېداى شي حاجت ورته پيدا کړئ او له حلالو ځناورو يوازې هغه چې خورئ؛نو بې له هغې ونه وېروئ او چې له دښمن سره مخامخ شوئ؛نو ورته د مسلمانېدو،له جګړې د لاس اخستواو يا د مالياتو ورکولو وړانديز ورکړئ؛نوکه هر يو يې درسره ومانه؛نو تاسې هم له جګړې لاس واخلئ. (سنن النبي)

 

څلور ګران کسان

ðخداى راته وحې وکړه،چې له څلورو تنو سره مينه وکړم : علي، ابوذر،سلمان اومقداد. (سنن النبي)

 

له علي سره مينه ولره

  ðجبرئيل راغى او ويې ويل : خداى  حکم درکړى،چې له على سره مينه ولرې او نور هم دې کار ته راوهڅوې. (سنن النبي)

 

د چا د  تېرايستو سوچ مه کوه

  ðڅومره مو،چې له لاسه کېږي،د چا د غولولو فکر په ماغزو کې رانه وړئ ؛ ځکه دا زما سنت دى او چاچې زما سنت راژوندى کړه؛نو زه يې راژوندى کړى يم او چاچې زه راژوندى کړم؛په جنت کې به له ما سره وي. (سنن النبي)

 

د وېښتانو د ږمنځولو ګټې

ðپېغمبراکرم(ص) خپل وېښتان له لاندې او پاس اړخه درې ځله ږمنځول او ويل يې :(( ږمنځه وهل د انسان هوش زياتوي او بلغم له منځه وړي.)) (سنن النبي)

 

د برېتو کمول

ðد برېتو کمول زما سنت دی،چې شونډه ترې ښکاره شي. (سنن النبي)

ðزرتشتيانو ږيره وهله او برېت يې پرېښوول،چې زيات شي؛خو موږ خپل برېت وهو او ږيره پرېږدو. (سنن النبي)

 

ښايسته بوي ثواب لري

ðعلي! هره جمعه عطر پورې کوه؛ځکه سنت دي او چې ښه بوى درنه ځي؛نو درته ثواب لري . (سنن النبي)

ðدوست مې جبرئيل راته وويل،چې يوه ورځ وروسته پر ځان عطر وهه او د جمعې پر ورځ عطر وهل مه هېروه. (سنن النبي)

 

د ځمکې ګواهي

ðپېغمبراکرم،چې به يو ځاى ته ولاړ؛څو‏ دوه رکعته لمونځ یې پکې  نه و کړى؛ له هغه ځایه به نه راته او ويل يې : ((غواړم دا ځاى مې په لمونځ کولو ګواه وي . (سنن النبي)

 

د مخه ښې پر مهال دعا

  ðمؤمنان،چې په سفر وتل؛نو پېغمبراکرم يې مخه ښې ته راته او ورته يې ويل:((خداى دې تقوا ستاسې توښه او لار کړي او درته دې خیر شي او روغ رمټ مو راوګرځوي .)) (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم(ص) له يوسړي سره خداى پاماني وکړه او داسې دعا يې ورته وکړه:((دين دې پر خداى سپارم او د هغه په امان کې يې ږدم او خداى دې تقوا ستاسې توښه کړي او مخې ته دې خير شه .)) (سنن النبي)

 

د نفس د پاکوالي لامل

ðيوسنت دا دى‏،چې يوه ډله پر سفر وځي؛نو له ځان سره د سفر خرڅ او خواړه یوسي؛ځکه دا عمل د اخلاقو د نېکۍ او د نفس د پاکۍ لامل ګرځي. (سنن النبي)

 

د مؤمن نښه د پېغمبرانو سنت

 ðپېغمبراکرم وايي : همسا نيول د مؤمن نښه او د پېغمبرانوسنت دی. (سنن النبي)

 

د سپينوجامو سپارښتنه

 ðد پېغمبراکرم زیاتره جامې سپينې وې او ويل يې : ((ژوندیو ته مو سپینې جامې ورواغوندﺉ او مړي مو پکې کفن کړئ.)) (سنن النبي)

 

په جامه کې ساده ګي

ðپېغمبراکرم يوه زړه او پيوندي چپنه هم درلوده،چې کله کله يې اغوسته او ويل يې:((زه مریى يم او د مریانو جامې اغوندم.)) (سنن النبي)

 

څوک چې مې له سنته مخ واړوي؛له ما څخه نه دى

ðپېغمبراکرم حضرت ابوذر ته وصيت وکړ:(( ابوذره!کلکې جامې اغوندم،پر خاورو کېنم،تر خوراک وروسته ګوتې څټم،پر بې کتې خره سپرېږم او له ځان سره بل هم کېنوم،چې له سنتو مې مخ واړوي؛نو له ما څخه نه دی.)) (سنن النبي)

 

سپين چرګ يې ساتلى و

ðسپين چرګ مې ملګرى دى او دښمن يې د خداى دښمن دی. هغه د خپل خاوند ساتنه کوي او په شاوخو کې د اوو نورو کورو ساتنه هم کوي . (سنن النبي)

 

د پېغمبراکرم د سترګو رڼا

 ðلمونځ مې د سترګو رڼا او اوخوند مې په ښځو کې دى. (سنن النبي)

 

غوره خلک

ðپوه شئ ،چې په تاسې که تر ټولو ‏غوره هغه دی ،چې له خپلو ښځو سره مهربانه وي او زه په تاسې کې تر ټولوغوره يم.  (سنن النبي)

 

تر ابراهيم هم غيرتي

ð پلار مې،ابراهيم ‏غيرتي و،چې زه تر هغه هم غيرتي يم . (سنن النبي)

 

درې حلالې لوبې

ðدرې ‏لوبې حرامې نه دي : لينده کارول،د ښوونې لپاره له اس سره لوبې ‏او له ښځو سره لوبې،چې سنت دي . (سنن النبي)

 

د لمانځه فرمان

ð پراهل بيتو‏،چې تنګسه راتله؛نو د خداى رسول ‏وويل: ((پاڅېږﺉ او لمونځ وکړئ؛ځکه خداى پر دې کار ‏ ګومارلى يم او وايي : خپل اهل بيت دې لمانځه ته راوبله او ته پرې صبر وکړه او موږ له تا روزي نه غواړو او پوه شه،چې ښه راتلونکې ‏د پرهېزګارانو ده.)) (سنن النبي)

 

اهل بيتو ته د خداى ځانګړي نعمتونه

ðزموږ د اهل بيتو ځواني په دې کې ده : څوک چې پر موږ ظلم کوي، ترې تېرېږو او چاچې بې برخې کړي يو،بښو يې. (سنن النبي)

ð موږ اهل بيتو ته اوه څيزونه راکړل شوي،چې پخوانيو ته نه دي ورکړل شوي او نه به چا ته ورکړل شي : په زړه پورې څېره او ورين تندى،روښانه وينا او بلاغت،مړانه او اتلولي،علم او حکمت او له ښځو سره مينه . (سنن النبي)

 

له خدایه شرم

ðپېغمبراکرم حضرت ابوذر ته وصيت وکړ:(( ابوذره!له خدایه وشرمېږه،پر خداى قسم! تشناب ته،چې ځم؛نو ‏سر پټوم ؛ځکه له هغو دوو پرښتو شرمېږم،چې راسره دي.)) (سنن النبي)

ðله خدايه بشپړه حياء وکړئ .( مصباح الشريعة \ ٨٦)

 

د ډوډۍ خوړلو ‏آداب

ðپېغمبراکرم(ص) ‏د ډوډۍ خوړلو‏ پر مهال پښې راټولولې؛لکه لمانځه ته،چې کېناسته او کله به زنګون کېږد هم کېناسته او ويل يې:(( زه مریى ‏ يم او د مریانو په څېر ‏ډوډۍ خورم او د هغوى په څېر کېنم.)) (سنن النبي)

 

ډېرګرم خواړه

ðخداى موږ ته اور خوړلو ته نه دى راکړى اوګرمه ډوډۍ برکت نه لري؛نوخواړه مو ساړه کړئ . (سنن النبي)

 

فالوده

ðيوه ورځ يارانو ورته فالوده راوړه،پېغمبراکرم ورسره وخوړه او بيا يې وپوښت : ((دا خواړه له څه جوړېږي؟)) ورته وويل شول: له غوړيو او شاتو. ویې ویل:(( ښه خواړه دي.)) (سنن النبي)

 

د خوړو د لوښي برکت

ðد خوړو لوښی يې پخپلو ګوتو پاکاوه او ويل يې : ((په لوښي کې د پاتې خوړو برکت ډېر وي.)) (سنن النبي)

ðآنحضرت(ص) ‏په لاس کې اوبه څښلې او ويل يې : ((تر ټولو پاک لوښی لاس دی.)) (سنن النبي)

 

د خوړو وخت

ð‏څو پوره وږي شوي نه يو؛نو ډوډۍ نه خورو او د خوړلو پر مهال‏ ځان پوره نه مړوو . (سنن النبي)

 

تواضع

 ðحضرت ابن خولي(رض) په يوه لوښي کې د څښتن استازي ته ‏شات او شيدې راوړې؛نوآنحضرت(ص) ‏ورته وويل:((دوه ډوله څښاک په يو لوښي کې؟!))‏له خوړو يې ډډه وکړه او ويې ويل : ((خوړل يې درته نه حراموم؛خو ویاړ ‏او مباهات مې هم نه دي . د دنيا د مال د ډېروالي له امله د قيامت د ورځې حساب کتاب ته وارختا يم،‏‏تواضع مې خوښه ده؛ځکه ‏که څوک د خداى په لار کې تواضع ‏وکړي؛نو خداى به يې رتبه او درجه لوړه ‏کړي.)) (سنن النبي)

 

په هرې مړۍ پسې شکر

ðرسول اکرم په هرې مړۍ ويل : ((خدايه!ستاېنه ځانګړې ستا ده،چې خواړه دې راکړل او په اوبو دې ماړه کړو؛نو ستاېنه او حمد يوازې ستا دې، بې له دې،چې ستا ناشکري وکړم او يا له تا لاس واخلم او يا دا چې ځان بې له تا بې نيازه وبولم.)) (سنن النبي)

 

سرکه

ðسرکه ښه خواړه دي . خدايه! سرکه راته مبارکه کړې؛ځکه تر ما مخکې هم د پېغمبرانو خوراک هم و. (سنن النبي)

ðسرکه او زيتون د پېغمبرانو خواړه دي . (سنن النبي)

 

د څارويو پښتورګي يې نه خوړل

ðحضرت علي وايي: د خداى رسول د څارويو پښتورګي نه خوړل ؛ خو خوړل يې نورو ته نه حرامول او ويل يې:(( ځکه یې نه خورم،چې پښتورګي د ځناورو متيازو ته نږدې دي.)) (سنن النبي)

 

دخوړو پر مهال‏ يې پڼې اېستې

ðد خوړو پر مهال مو پڼې وباسئ ؛ځکه ‏هم سنت دى او هم  پښې‏مو آراموي. (سنن النبي)

 

حلوا

ð آنحضرت(ص) ‏ته يې حلوا راوړه؛خو و يې نه خوړه.ورته وويل شول: پېغمبره! ولې حلوا حرامه ده؟ ويې ويل:((حرامه نه ده؛خو زه نه غواړم ځان په داسې خوړو روږدى کړم.)) (سنن النبي)

 

 ‏سخته ناورغي

‏ð د پېغمبراکرم تبه وه،حضرت ابوسعيد خدري پر هغه ټوټه لاس کېښود،چې پر پېغمبر(ص) پرته وه او‏ د پېغمبر(ص) پر تبه پوه شو. ورته يې وويل:اى د خداى رسوله! ډېره ‏تبه لرې ! آنحضرت‏(ص) وويل:((موږ داسې يو،بلاوې راباندې سختې او اجرونه او ثوابونه مو دوه ګرایه ‏دي.)) (سنن النبي)

 

د جنابت غسل

ðجبرئيل راته حکم ‏کړ‏ى،چې د اوداسه او د جنابت د غسل پر مهال ‏ګوته په ګوته کې وچورلوم. (سنن النبي)

ðجبرئيل راته حکم کړی،چې د جنابت د غسل پر مهال په خپل نامه کې هم ګوته ووهم. (سنن النبي)

 

لمونځ

ð ابوذره!خداى زما د سترګو رڼا په لمانځه کې اېښې‏او‏ راباندې ګرانه کړې یې ده؛لکه ‏خواړه یې،چې پر وږي او اوبه پر تږي ګرانې کړي دي . (سنن النبي)

ðبيا يې وويل: وږى پرخوړو او تږى پر اوبو مړېږي؛خو زه په لمانځه نه مړېږم. (سنن النبي)

ðقسم پر هغه خداى،چې زه يې پېغمبر کړم،جبرئيل له اسرافيل څخه او هغه هم له خداى راته راوړي :‏که څوک د روژې د مياشتې په وروستۍ شپه لس رکعته لمونځ وکړي او په هر رکعت کې يوځل سوره (حمد) اولس ځل د((قل هو الله احد)) سورت او په رکوع او سجده کې لس ځل ((سبحان الله والحمدالله ولااله الا لله والله اکبر)) ووايې او تر دوو رکعتونو وروسته ‏سلام  واړوي او تر لس رکعتو‏ وروسته زر ځل ((استغفرالله)) ووايي او ورپسې سجدې  ته ولاړ شي او ووايي : (( يا حى يا قيوم  يا ذى الجلال ولاکرام يا رحمن الدنيا ولآخره وحيهما،يا رحيم الرحمن،يا اله اولالين ولاخرين اغفرلنا ذنوبنا وتقبل منا ملا ئنا وحيامنا وقيامنا)) او بيا يې ددې لمانځه او چا چې وکړ د ثواب په باب ډېرې خبرې وکړې،‏‏ويې ويل : دا لمونځ يوازې خداى ماته او زما امت ته راډالۍ کړ ،چې له ما مخکې يوه پېغمبر ته يې هم ورنه کړ.)) (سنن النبي)

ðد کمکي او لوی اختر پر ورځ یې د خداى رسول ته وويل:څه به وشي،چې په خپل جومات کې لمونځ وکړئ ؟پېغمبر اکرم وويل:(( خوښ يم ټول بدن مې اسمان ته وښيم.)) (سنن النبي)

ð علي! تر فرض لمانځه ‏ وروسته د آيت الکرسي ويلوسپارښتنه درته کوم ؛ځکه ‏دا کار يوازې پېغمبران ،صديقين او شهيدان کوي . (سنن النبي)

ð پېغمبراکرم(ص)‏‏د ويدېدو ‏پر مهال آيت الکرسي ويله او ويل ‏يې : ((جبرئيل ‏راغى او ويې ويل : محمده!چې ويدېږې؛نو پيريان درباندې جادو کوي؛نو تر ويدېدو مخکې آيت الکرسي وايه.)) (سنن النبي)

 

د ګناهونوکفاره

ðد خداى رسول به رمضان او شعبان دواړو‏مياشتو کې روژه ‏و او دا دواړې مياشتې ‏يې سره نښلولې؛خو نور ‏يې له دې کاره ژغورل او ويل ‏يې : (( دا دواړې مياشتې د خداى مياشتې دي او پکې روژه نيول د ګناهونوکفاره ده.)) (سنن النبي)

 

په خپل لاس مرسته

ðزه به څو څيزونه پرېنږ‏دم : پر بې کتې خره سپرېدل،له مریانو سره پر پوزي ناسته او ورسره خوړل او په خپل لاس بېوزلي ‏ته صدقه ورکول. (سنن النبي)

 

هغه آیت چې فضیلت یې تر زر آيتونو ډېر دی

ðآنحضرت(ص)‏،چې ‏مسبحات نه و ويلي،نه ويدېده او ويل يې:((په دې آيتونوکې يو آيت دى،چې فضيلت يې تر زر آيتونو زيات دى.)) ورته وويل شول : مسبحات کوم سورتونه دي؟پېغمبراکرم وویل: ((حديد، حشر ،صف ،جمعه او  تغابن)) (سنن النبي)

 

سورة اعلى

ð پرآنحضرت (ص) ‏د((سبح اسم ربک الاعلى )) آيت ګران و او ویې ويل :(( مکائيل ‏لومړى تن و،چې د سبح اسم ربک الاعلى سورت یې ووايه.)) (سنن النبي)

 

تلاوت

ðآنحضرت(ص) د قرآن تر  لوستو مخکې ويل: اعوذبالله من الشيطان الرجیم . (سنن النبي)

ð‏جبرئيل راته امر وکړ،چې قرآن پر ولاړه تلاوت کړم . (سنن النبي)

 ðجبرئيل راته امر کړى،چې قرآن پر ولاړه ووايم ،چې په رکوع کې د خداى حمد او په سجده کې يې تسبيح او پر ناسته دعا وکړم. (سنن النبي)

 

د ښايست شکر

 ðد خداى رسول،چې به هېندارې ‏ته کتل،داسې یې ويل : ((د خداى شکرونه او ستاېنه،چې زما پيدايښت يې بشپړ کړ او زما څېره يې ښکلې پيدا کړه او د نورو د نيمګړتياوو پر وړاندې يې راته ښايست راوباښه او د اسلام لارښوونه یې راته وکړه‏ او د نبوت له لارې یې راباندې ‏منت کېښود.)) (سنن النبي)

ðد خداى رسول،چې هندارې ته کتل؛نو ويل ‏يې:(( د خداى شکرونه او ستاېنه،چې زه يې ښکلى پيدا کړم او د نورو د نيمګړتياوو پر وړاندې‏ يې ښايست راکړ.)) (سنن النبي)

 

جامې

ðآنحضرت(ص)،چې جامې اېستې؛نو له کيڼ اړخه ‏يې اېستې او د جامو اغوستو پر مهال ‏يې ‏د خداى ستاېنه او شکر کاوه.بيا يې يو بېوزلی ‏راغوښته او‏ زړې جامې يې ورته ورکولې او ويل یې : ((‏که چا د خداى د رضا لپاره يو بېوزلي ‏ته خپلې جامې ورکړې؛نو که د جامو خاوند ژوندى وي که مړ،څو‏ دا جامې د بېوزلي ‏پر غاړه وي؛نو د جامو خاوند به د خداى په پناه کې وي .)) (سنن النبي)

 

د امام حسن اوحسين لپاره د پېغمبر(ص) تعويذ

ðحضرت علي وايي : پېغمبر اکرم حسن او حسين ته داسې تعويذ وکړ: (( د لوراند او لورین څښتن په نامه،ځان،مال ، دين ،کورنۍ، اولاد د کار پايله او‏ څه چې مې پالونکي ‏راکړي،ټول د خداى عزت، عظمت، جبروت،سطلنت، رحمت، رافت، مغفرت،قدرت او قدرت  سره ږدم او د خداى له الفت،عزت ،احسان او نعمت سره به د خداى د رسول په لوري او‏ څه چې له خداى غواړم، پناه وروړم . پناه غواړم ،له هر زهرجن اوله بې زهره ځناوره،له پېري او انسانه او څه چې پرځمکه حرکت کوي او ترې بهر راوځي او د هغه څيز له شره پناه غواړم،چې له اسمانه راوري او څه چې پورته خيژي او د هر ځناور له شره،چې واک يې زما په لاس کې دی . ‏په رښتيا،چې پالونکی مې په سمه دى او هغه هر کار کړاى شي او بې له هغه بل ځواک نشته او د خداى درود دې زمونږ پر بادار حضرت محمد او د هغه پرکورنۍ وي.)) (سنن النبي)

ðحضرت جابر بن عبدالله انصاري(رض) وايي : آنحضرت(ص) وویل: ((جبرئيل راته وويل،چې هر وخت ووايه : الحمد الله رب العالمين.)) (سنن النبي)

 

د شعبان مياشت

ðد پېغمبراکرم  يارانو د پېغمبر په مخکې د شعبان مياشتې د فضائلو خبره رامنځ ته کړه،چې پېغمبر اکرم وويل : (( ډيره مبارکه مياشت ده اوهغه زما مياشت ده .)) (سنن النبي)

 

د خداى او د پېغمبر مياشت

ðپېغمبراکرم وويل : شعبان زما مياشت او رمضان د خداى مياشت ده. (سنن النبي)

 

غوره دعا

ðپېغمبراکرم(ص) وويل :تر ټولوغوره دعا زما وي او تر ما مخکې د پېغمبرانو دعا ده او هغه دا ده : (( لا اله الله له وحده وحده وحده لا شريک له،له الملک  و له لحمد،يحيى ويميت وهو حى لايموت بيده الخير وهوعلى کل شی قدير)) بيا يې وويل : دا د دعا يوازې الهي تمجيد او تقديس دی.)) (سنن النبي)

 

د پېغمبر(ص) شفقت

 ðپېغمبراکرم ‏په يوه اوږده حديث کې وويل : (( هر نبي او پېغمبر خپل قوم ته ښيرې وکړې؛خو‏ دعا یې د خپل امت لپاره د قيامت پر ورځ شفاعت ګرځولې ده .)) (سنن النبي)

 

د فضيلت د بيان پرمهال د پېغمبراکرم ادب

ðد خداى رسول،چې ‏د خپل فضيلت  يادونه وکړه؛نو ‏ويل یې:سره له دې،چې زه دا فضيلت لرم؛خو پر چا پرې ویاړنه‏ نه کوم .))

 

د مؤمن ذکر

ðيو سنت دا دى ،چې هر مؤمن د “غدير د اختر” پر ورځ سل ځله دا ذکر ووايي : الحمدالله الذى جعل کمال دينه وتمام نعمته بولاية اميرالمؤمنين على بن ابى طالب . (سنن النبي)

 

د ساداتو د زيارت سنت

ðد بني هاشمو عیادت فرض او واجب دى او زيارت یې سنت دی . (سنن النبي)

 

د پېغمبر(ص) د وجود رڼا

 ðړومبى څيز،چې خداى وپنځاوه،زما رڼا وه،چې له خپلې رڼا ‏يې جوړه او د خپل عظمت له جلاله يې رابېله کړه .)) (سنن النبي)

 

 

 

ړومبى مخلوق

ðخداى زه او اهل بيت له ‏ داسې خټې او خمبيرې جوړ کړو،چې ‏څوک يې  هم ترې نه و جوړ کړي  او موږ د خداى تر ټولو ړومبي مخلوقات يو. (سنن النبي)

 

په زړه پورې څېره

ð‏يوسف تر ما ښکلى و؛خو زما څېره ترې په زړه پورې ده. (سنن النبي)

 

د خداى او پېغمبر ترمنځ يوه پرده

 ð (د معراج په شپه) پر براق (يو ډول اس )سپور شوم او داسې پردې ته ورسېدم،چې هاخوا ترې خداى و. (سنن النبي)

ð(د معراج پر شپه) خداى مې د زړه په سترګو وکوت او زما او د هغه ترمنځ يوازې الهي جلال واټن و. (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم وويل:(دمعراج پر شپه)،چې اووم اسمان ته ورسېدم؛نو راسره ټولې پرښتې او جبرئيل ودرېدل او پاتې شوې او زه هم د خداى حجاب ته ورورسېدم؛ اويا حجابو ته ورننووتم،چې له يو حجابه تر بل حجابه د عزت،قدرت، بها،کرامت،کبريا، عظمت، نور، ظلمت او وقار نور حجابونه ول‏ څو د جلال حجاب ته ورورسېدم ؛نو‏ خداى ته مې عبادت وکړ او ودرېدم. (سنن النبي)

 

د خداى او پېغمبراکرم ټاکلى وخت

ðزه له خداى سره يو وخت لرم،چې هيڅ پرښته او پېغمبر،چې خداى يې زړه پر ايمان ازميېلى،دهغه د تحمل قدرت نه لري .)) (سنن النبي)

 

پېغمبراکرم ته د خداى ډالۍ

ðداسې ورځ يا شپه ‏نه وه،چې پکې د خداى له اړخه راته ډالۍ نه راتله . (سنن النبي)

 

د پوهانو فضيلت

ð  پر خلکو د پوهانو فضيلت داسې دى؛لکه زه يې، چې پر تاسې پر ډېر ټيټ  لرم . )) (وګورئ: الجامع الصغیر، د منادي له شرح سره ۴۳۲/۴)

 

اسلام

د خداى  استازی  وايي : (( خداى هغوى عزتمن کړل،چې اسلام يې ومانه؛حال دا چې تر اسلامه مخکې خوار وو او په  اسلام  يې  ډېرې طبقاتي او توکمېزې دبدبې له منځه يووړې او اسلام وويل :” که سپين دي  که  تور،عرب وي  که  عجم، ټول  د “آدم”  اولاده  ده او خداى  “آدم” له خاورې پیداکړى،چې د قيامت پر ورځ  به تر ټولو هغه پر خداى ګران وي،چې تر ټولو يې تقوا زياته  وي”. )) (فروغ کافي ۲/ ۲۱)

 

د پېغمبراکرم مناظره

ðد “برهان” په  تفسير کې روايت شوى،چې د خداى استازى د کعبې په څنګ کې ناست و،چې  يوه  ډله،چې”وليد د مغېره مخزومي زوى”،”ابوبختري د هشام زوى”، “ابوجهل د هشام زوى”،”عا صم د وائل سهمي زوى”،”عبدالله د بني اميه مخزومي زوى” او نور پکې هم ول،له  پېغمبراکرمه راتاو شول . رسول الله  خپل  يو يار ته د خداى کتاب لوسته او د خداى حکم يې ورته څرګنداوه . هغوى يو بل ته وويل : (( د “محمد” دين  ‌ډېر  پر مخ  روان دى او خبرو يې  خورا پلويان پیدا کړي؛ نو راځئ تنګ  يې کړو او پر وړاندې يې دلايل  راوړو او خبرې  يې رد کړو،چې  د يارانو په  مخ  کې مقام یې راټيټ شي او خبرې يې له  ارزښته ولوېږي،له خپلې بې  لارۍ  لاس واخلي او پښېمانه شي او که  له دې لارې مو وکړاى شول مخه يې ونيسو؛نو ښه ترښه  که نه؛نو په توره به ورسره مبارزه وکړو.)) خبره چې تردې راورسېده؛ابوجهل وويل:

((څوک به دا کار پر غاړه  واخلي او له  “محمد” سره به خبرې واړوي را واړوي او مات يې کړي .))

 “عبدالله بن ابي اميه”  وويل : (( دا کار ماته راوسپارئ، چې اصيل او شريف يم او پخې خبرې کوم.))

“ابوجهل” وويل: (( درسره منو يې ،ټول  پېغمبر  ته ولاړ شئ.))  “عبدالله” خپلې خبرې پيل کړى : (( محمده ! غټې غټې خبرې کوې او وايې،چې د خداى پېغمبر يې؛خو موږ دا وايو،چې د هستۍ له خداى سره نه ښايي ستا په څېر استازى او پېغمبر  ولري؛ځکه ته خو زموږ په څېر عادي بشر يې او پر موږ هیڅ  امتياز نه لرې،زموږ په څېر خورې،څښې او په بازار او کوڅو کې روان يې . دا  د “روم”  او “فارس” پاچايان دي،چې خورا زياتې شتمنۍ لري؛غټې غټې ماڼۍ لري او ډېر مريان لري؛نو نړۍ پال،چې تر ټولو پاچايانو ستر دى او ټول يې  بندګان دي؛ نو ښايي استازى يې له هغوى غوره  وي؟؛نو که وغواړي پېغمبر راولېږي؛نو شتمن رالېږي،نه بېوزلی او فقير، چې وايي دا قرآن  د  خداى له لوري دى؛نو ولې د دوو سترو ښارونو پر سترو خلکو نازل نه شو؟ او ولې په مکه کې پر شتمنو؛ “وليدبن مغېره” او يا په “طايف” کې  پر “عروة بن مسعود ثقفي” نازل نه شو؟!))

 د “عبدالله”  خبره، چې تردې ځايه راورسېده؛نو د خداى استازي ورته وويل: (( د خدای بنده ! خبرې  دې  پاى  ته ورسېدې؟))

 عبدالله : ((هو ! ؛خو دا مې هم واوره،چې پر تا به  ايمان را نه وړو؛خو داچې د مکې په سيمه کې  چينې راوخوټوې؛ځکه  مکه یوه  دره  ده ، چې هواره یې کړې او پکې چينې راوخوټوې،چې موږ ورته اړين يو او د کجورو او انګورو باغونه ولرې،چې هم ترې په خپله ګټه واخلې او هم ترې نورو ته ګټه ورسوې او هم  اسمان ټوټې ټوټې کړې او پر موږ يې راګوذارکړې؛لکه څنګه چې ته په خپله وايي :”که  د اسمان ټوټې پرې راکوزې شي؛نو هغوى به وايي،چې يوازې  راغونډې شوې وريځې دي” او کېداى شي موږ هم هماغه خبره ورته وکړو. که دا ټول کارونه وکړې؛نو بيا به هم پر تا ايمان را نه وړو؛خو دا چې خداى او پرښتې يې راوړې او زموږ  پر وړاندې يې ودروې، چې له نږدې يې ووينو او د سرو زرو کور ولري او  موږ ته هم  پکې برخه راکړې او موږ غني کړې؛ځکه ته په خپله وايې :”انسان،  چې ځان غني وليد؛نو سرغړنه کوي” او  يا دا چې  اسمان ته  والوزې او يوازې اسمان ته د الوتو له امله  هم درباندې ايمان نه راوړو؛بلکې د خداى له لوري بايد موږ ته  ليک راوړې،چې پکې يې ليکلې وي :” دا ليک  د خداى له  لوري “عبدالله  بن اميه مخزومي” او  يارانو ته يې دى، چې پر “محمد بن عبدالله” ايمان راوړئ؛ ځکه هغه  زما پېغمبر دى او ويناوې يې رښتينې وګڼئ ؛ځکه خبرې يې زما ويناوې دي “.محمده ! څه مو، چې  وويل،که و دې کړل؛ نو بيا هم نه پوهېږم، چې ايمان به  درباندې راوړو او که نه او که اسمانو ته مو هم يوسې؛نو کېداى شي ووايو جادو دې را باندې کړى دى . ))

 رسول الله صلی الله علیه و اله وويل : (( خدايه ! ته د هرې خبرې اورېدونکى يې او له  هر څه خبر يې !! بيا يې وويل:

 ((را به شو ستاسې خبرې ته،چې و دې ويل: د “روم”  او “فارس”  پاچايان خپل استازي  له  شتمنو او زورورو ټاکي، چې کار یې په  خپل ځاى کې سم دى؛خو کار یې د  خداى له  کار سره  توپير لري  او خداى په  خپل  کار کې ځانګړى تدبیر لري او هغه خو څه  ستاسې  پر لار روان نه دى او نه به  روان شي او هغه، هغسې کوي،چې خوښه يې وي او که د خداى پېغمبرانو ماڼۍ درلودې،چې  پکې يې خاني کوله او يا خدمت ته يې مريان درلودل،چې پرې  غره  ول؛نو پر دې  کارونو له خلکو لرې کېدل او دې کار به  د نبوت مقام بې ګټې کړى و او د خلکو لارښوونه به سمه نه ترسره کېده ؟! او ستا دا خبره، چې که  ته پېغمبر وې؛ نو پرښته به هم درسره وه،چې ستا پر نبوت يې شاهدي ويلې واى،چې ستاسې دا خبره  ډېره  حیرانونکې ده ؛ځکه پرښته په سترګو نه ليدل کېږي او که ويې وينئ؛نو بيا  به  ووياست،چې دا خو پرښته نه ؛بلکې بشر دى؛ځکه که پرښته هم ځان دروښيي؛نو د بشر په  بڼه یې ښيي،چې وکړاى شئ ، ورسره خبرې وکړئ  او پر نبوت مې درته شاهدي  درکړي؛نو که  داسې  وکړي بيا به هم  باور نه کوئ  او وياست به،چې دا پرښته نه ده او بشر دى،چې ستا په ګټه شاهدي  ورکوي او دا چې  پر ما د کوډو تور لګوئ  او وايئ،چې  پر تا جادو  شوى؛نو دا بې بنسټه  خبره  ده،څنګه  ماته  داسې خبره کوئ،حال دا چې په عقل او پوهه  کې تر تاسې غوره او پوخ يم. آيا له هماغه پيله  تاسې له ماکومه تېروتنه  ليدلې او يا  له  ما  مو دروغ  اورېدلي او  يا مو له ما داسې کار ليدلى،چې پر عقل سم نه وي؛نو تاسې خپله ووايئ، چې داسې انسان له  داسې کړنو سره  پر خپل ځان متکي دى او که پر الهي او معنوي قدرت ؟!  او يا دا چې وايئ: قرآن ولې د دوو ښارونو پر دوو سترو خلکو نازل نه شو او د دې  خبرې ځواب مو هم روښانه دى؛ځکه خداى عظمت او انساني کمال په شتمنۍ کې نه ويني؛لکه  چې تاسې يې وينئ، هغه د دنيا شتمنۍ ته لږ شانته ارزښت هم نه ورکوي؛لکه څنګه  چې تاسې ورته قايل ياست او هغه  له چا نه ډارېږي؛ لکه چې تاسې له زورورو ډارېږئ او په  درنه سترګه ورته ګورئ او دغه ډول کسان  هر ډول مقام ان نبوت ته هم  وړبولئ  او دا چې  وياست هله به درباندې ايمان راوړو، چې چينې وبهوې؛نو دا خبره د عقل،تفکر  او منطق  پر بنسټ نه ده ؛ځکه داسې معجزې غواړئ،چې  د عملي  کېدو وړ نه دي او که يوه  برخه يې هم  تر سره شي؛نو پر پېغمبرۍ دليل  کېداى نه شي (؛ لکه د باغونو او ويالو درلودل) “محمدرسول الله” تردې غوره  دى،چې د خلکو له  ناپوهۍ ناوړه  ګټه  واخلي او په  څه چې نبوت تصديقېداى نه شي،خپله مشري پرې ثابته کړي او يو لړ داسې معجزې غواړئ،چې که ترسره شي؛ تاسې به په خپله هلاک شئ،حال دا چې پېغمبر خو معجزه د حقيقت  د جوتېدو لپاره کوي،نه د خلکو د هلاکېدو لپاره،چې  پردې غوښتنه خپل هلاکت غواړئ او خداى هغه نه کوي، چې خپل بنده پرې هلاک کړي او ستاسې يو لړ داسې معجزې او غوښتنې،چې د کېدو وړ نه دي (؛لکه د خداى او پرښتو ليدل او د خداى له لوري د ليک راوړل) لنډه دا چې ستاسې دا ټولې خبرې پلمې دي،چې اوس د ټولو ځوابو ته  غوږ شئ.

دا چې ته وايي: ته بايد باغونه ولرې،چې اوبه پکې روانې وي او چينې راوبهوې،چې ستا ددې غوښتنو سرچينه ناپوهي ده؛ځکه ته د معجزو له رازه بې خبره يې او که زه دا هر څه  وکړم، چې ته يې وايي؛ نو آياستا په ګومان به پېغمبر يم؟ ستا دا غوښتنې هم دې ته ورته دي، چې که ووايې که پاڅېږې او روان شې؛نو درسره به ومنم،چې پېغمبر يې؟ آيا ته او ياران دې په “طایف” کې باغونه نه لرئ؟ او آيا په هغو باغونو کې اوبه روانې نه دي؛نو آيا د هغو په درلودو پېغمبران شوي ياست،چې زه هم په درلودو یې پېغمبر شم؟ او دا چې ته وايې اسمان ټوټې کړه او راګوذار يې کړه؛نو په دې حال کې به هرو مرو هلاکېږئ. په دې غوښتنو غواړئ،د خداى استازى تاسې هلاک کړي؟خو څه چې انګېرئ، هغه ترې خورا مهربان دى، هغه مو نه هلاکوي؛بلکې د خداى له لوري  ﻻرښوونې ته مو  دﻻيل درښيي؛خو دې حقيقت ته مو پام وي،چې د پالونکي دﻻيل د خپلو بندګانو په خوښه نه دي ،چې هرڅه وغواړي،ترسره يې کړي؛ځکه انسان ښايي په دې اړه خپل خير او شر و نه پېژني او داسې څه وغواړي،چې  په  خير يې نه  وي . عبدالله! تر اوسه دې داسې طبيب ليدلى،چې د ناروغ  په خوښه  ورته درمل  ورکړي  او ايا داسې قاضي دې ليدلى،چې د دعوا د لوري په خوښه  له مدعي او شاکي دليل وغواړي؟ او ته چې وايې: موږ ته  خداى او پرښتې راوړه،چې پر نبوت دې راته شاهدي ورکړي؛نو دا کار هم ځکه نه کېدونکى دى، چې خداى خو څه  د انسان په څېر نه دى،چې وليدل شي،روان شي او تاسې يې  ووينئ  او د سرو زرو د کور درلودل خو څه زما پر نبوت دليل کېداى نه شي او آيا  تا اورېدلي،چې  د “مصر” باچايان د سروزرو کورونه لري؟

 عبدالله : هو!

رسول الله : آياهغوى د سروزرو د کورونو په درلودو د نبوت د مقام خاوندان شول؟

 عبدالله :نه!

 رسول الله: نو د سروزرو کور درلودل هم نه شي کړای  “محمد” د نبوت  مقام  ته  ورسوي او ته،چې وايې، اسمان ته والوزه او له هغه ځايه راته له  خدايه ليک راوړه ؛نو دا کارهم نه کېدونکى دى او دا يوازې  پلمه  ده؛ځکه اسمان ته ختل تر راکوزېدو سخت دي؛نو ته، چې په خپله وايې : اسمان ته پرختو به درباندې ايمان را نه وړو؛بلکې له اسمانه، چې راکوزشوې  او له ځان سره دې ليک راوړ؛نوايمان به راوړو؛نو اسمان ته پرختو، چې راباندې ايمان رانه وړئ؛نو له اسمانه پر راکوزېدو به راباندې څنګه ايمان راوړئ او بيا ته په وروستيو خبروکې په خپله هم اعتراف کوې،چې که  دا ټول کارونه وکړې؛نو بيا هم معلومه نه ده، چې ايمان به درباندې راوړو او که نه؛نو ته دداسې حجت پر وړاندې اينډه  او ځېل کوې؛نو ځواب موهماغه دى، چې خداى وايي:

 ((ورته ووايه، محمده!  خداى (له هغه) پاک او سپېڅلى دى (چې تاسې يې فکرکوئ ) او زه هم يوازې يو بشر پېغمبر يم؛ نو له  ماسره نه ښايي چې خداى ته حکم وکړم او په خپله خوښه ترې معجزې وغواړم.)) (د برهان تفسير )

 

له تېرو به لاروي وکړئ

ðپېغمبر اکرم “خيبر” ته د تګ پر مهال،چې د “ذات انواط” نومي ونې ته ورسېد،چې د مشرکانو ونه وه او خپلې وسلې يې پکې راځوړندولې. د پېغمبر يارانو وويل: د خداى استازيه ! موږ ته هم يوه “ذات انواط” وټاکه ؛ لکه چې مشرکان يې لري. رسول اکرم وويل: سبحان الله ! دا غوښتنه مو د موسى د قوم په څېر ده،چې ويې ويل:موږ  ته هم  يو داسې خداى وټاکه، چې د ليدو وړ وي؛ لکه هغوى چې خدايان لري بيا پېغمبراکرم وويل: پر خداى قسم،چې له تېرو به  لاروي  وکړئ. (صحيح ترمذي  ٦/ ٢٩ )

ðد خداى استازي وويل:(( یوازې احسان او نیکي د انسان عمر ډېرولاى شي او یوازې ښيرا او ناوړه کړه الهي تقدیر اړوي او ګناهونه انسان له الهي نعمتونو بې برخې کوي .))

(ابن ماجه۱/ ۲۴)،(حاکم؛ مستدرک ۱/ ۹۳ ) او احمد حنبل؛ مسند ۵/ ۲۷۷ او ۲۸۰، ۲۸۲ ) حاکم په مستدرک کې ددې روايت سموالى تاييدوي او ذهبي هم پرې نيوکه نه ده کړې .

 

د پېغمبر اکرم  ليکونه

 

د ايران پاچا ته ليک

ð ((د لوراند او لورين څښتن په نامه. له ((محمدرسول الله)) نه د “ايران”  پاچا “خسرو پرويز” ته؛ سلام دې پر هغه وي،چې پر خداى او استازي يې ايمان راوړي او ګواهي ورکړي،چې بې له خدايه بل خداى نۀ شته او “محمد” بنده يې او خلکو ته استازى يې دى،چې هغوى ،چې  ژوندي زړونه لري،له خداى او قيامته ووېروي او  پر کافرانو د خداى د عذاب وعده پرېکنده کړي؛نو اسلام راوړه، چې په امن کې شې او که سرغړونه دې وکړه؛نو د “مجوس” قوم ګناه به دې پر غاړه وي)) ( تاريخ يعقوبي2/77 )

 

 

“نجاشي” د حبشې  پاچا ته ليک

ð ((د لوراند او لورين څښتن په نامه . د ((محمدرسول الله)) له لوري د  حبشې ستر پاچا”نجاشي” ته؛سلام دې پر تا وي؛پر ډاډ ورکوونکي او ساتونکي خداى درود وايم او ګواهي ورکوم “عيسى” د “مريمې” زوى،د خداى روح  او کلمه ده،چې پاکلمنې پېغلې مريمې ته يې ورکړ او خداى “عيسى” له خپل روح پيدا کړ؛لکه څرنګه چې “آدم” يې په خپل لاس جوړ کړ. زه تا غني خداى او لاروۍ ته يې رابولم او له تا غواړم زما لاروى شې او پر هغه  خداى ايمان راوړې،چې  زه يې را لېږلى يم،چې زه پېغمبر يم. د خپل تره زوى؛”جعفر” او يو شمېر مسلمانان مې در لېږلي،چې درشي؛نو و يې منه  او  تکبر مۀ کوه،چې زه تا او لښکر دې خداى ته رابولم.د خداى له  پيغامه مې خبر کړې او نصيحت مې درته وکړ،نصيحت مې ومنه او درود دې پر هغه وي، چې د هدايت لاروى شي .)) (تاريخ طبري2/294 )

 

په مدينه کې د پېغمبراکرم منشور

ðد لوراند او لورين خداى په نامه. دا تړون دى د “محمدرسول الله” له لوري،له مؤمنانو،قريشو او د يثرب مسلمانانو سره او څوک،چې لاروي يې وي او ورسره يو ځاى شي او په جګړه کې ورسره برخه اخلي. دوى له نورو بيل واحد امت دي. مؤمنان بايد په خپلو منځو کې هيڅ بيوزلى و نۀ لري او په ورين تندي له خپلې شتمنۍ مسلمان ته څه ورکړي او پور يا د ويني تاوان يې ورکړي،يا په فکري مرستې د ستونزې هواري ته يې لار پيدا کړي.يو مؤمن دې هم،د بل مؤمن له همژمني سره بې د هغه له هوکړې،تړون نۀ کوي .پرهيزګار مؤمنان دې د هغو پر خلاف يو لاس شي، چې سرغړونه وکړي، پر نا حقه باج غواړي او يا فساد کوي،ان  که دا فساد کوونکى مو زوى وي . هېڅ مسلمان دې بل مسلمان د کافر د غچ له امله نۀ وژني او له کافر سره دې د مسلمان پر خلاف مرسته نۀ کوي. الهي امان يو دى او له ټولو بېوزله مسلمان کړاى شي،په نوم يې پناه ورکړي او مؤمنان له نورو خلکو بيل،په يو بل پورې تړاو لري.هغه يهود،چې له موږه لاروي کوي، په حقوقو کې مساوي دي او بايد تېرى پرې و نۀ شي او ملاتړ يې وشي.هېڅ مشرک قرشي ته د مال او ځان پناه مۀ ورکوئ او له مؤمنه يې مۀ خلاصوئ.هر مسلمان،چې ددې تړون مادې منلې وي او پر خداى او قيامت ايمان لري؛نو هېڅ قاتل ته به پناه نۀ ورکوي او مرسته يې نۀ کوي. د شخړو د حل مرجعيت خداى او استازى يې دى. د جګړې پر مهال يهودان له مسلمانانو سره د جګړې په لګښت کې شريک دي .يهود پر خپل دين  او مسلمانان او خپلوان يې پر خپل دين دي او چا،چې تېرى يا ګناه وکړه؛نو يوازې ځان او کورنۍ به يې هلاکه کړې وي او يهودان دې بې د”محمد” له اجازې نۀ وځي او د غچ جريمه دې نۀ پرېږدي.يهودان دې خپل لګښت کوي او مسلمانان دې خپل او له يو بل سره دې د هغو پر ضد مرسته نۀ کوي، چې له دې تړونوالو سره په جګړه کې وي او ترمنځ  دې يې يو بل ته زړۀ پاک او نيت ښه وي.څوک دې له خپل همژمني سره ناوړه چار نۀ کوي.د هغه ملاتړي شئ،چې تېرى پرې کېږي او د “يثرب” ښار تړونوالو ته حرام دى.هره شخړه او يا وژنه،چې ددې تړون په همژمنو کې وشي او  فساد ترې راولاړېږي؛نو د شخړې د حل مرجعيت خداى او استازى يې “محمد” دى .قرشيانو او هغو ته پناه ور نۀ کړئ،چې ورسره يې مرسته کړې وي.که پر “يثرب” يرغل وشو؛نو بايد ټول ترې دفاع وکړي.که مسلمانان او يهود سولې ته راوبلل شول؛نو په ورين تندي دې ورسره ومني؛خو نۀ له هغه سره،چې د خداى له دين سره جګړه کوي. ددې تړون همژمني ظالمان او بدچاري نۀ دي.څوک،چې له مدينې ووت؛په امان کې دى او څوک،چې راننوت هم په امان کې دى؛خو هغه،چې تېرى و او يا بدچار وکړي.( سيره ابن هشام :138_134 مخونه)

 

د دين آفت

ðد هر څيز لپاره آفت وي،چې تباه کوي يې او د دين آفت، نالايقه او ناوړه مشران دي . (نهج الفصاحه ٤٧٨)

 

 د ښېګڼو سرچينه

پېغمبراکرم(ص) وايي : ((پوهه او پراخه سينه د ټولو ښېګڼو سرچينه ده)).( سفينه البحار : حلم )

 

امانت ساتنه

ðد چا ډېرو لمونځونو،روژې،حج ،زكات،مستحباتو او شپې زمزمو ته مه ګورئ؛بلکې رښتيا ويلو او امانت ساتنې ته يې و  ګورئ .( الاختصاص : ۲۲۹ )

 

چې نه کار هلته څه کار

ðد يو چا د اسلام له نښو (يوه) داده،څه چې ورپورې اړه نه لري، خبرې پکې نه كوي . ( مستدرك الوسايل : ۹ \ ۳۴ )

 

 

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

محمدي ښوونځى

 

د پېغمبراکرم (ص) د  ويناوو، موعظو، ليکونو، سپارښتنو، سنتونو … پښتو ټولګه

 

 

 

څېړنه

 

اجرالدين اقبال

 

د (( ديني ملي)) خوځښت پلويانو ته،

چې د راتپل شويو خوځښتونو له پايلو ستړي ستومانه شوي

او روڼ سباوون ته سترګې پر لار دي.

 

 

 

 

 

لړليک

د اسلامي نړۍ حديثي ټولګې.. 42

(الف) د اهل سنتو د احاديثوغوره کتابونه : 42

د”امام بخاري” لنډه پېژندنه. 42

“صحيح مسلم”. 43

د”امام مسلم” لنډه پېژندنه. 44

“جامع ترمذي”. 44

د”امام ترمذي” لنډه پېژندنه. 45

“سنن ابوداود”. 45

د امام “ابوداود” لنډه پېژندنه. 46

“سنن نسائي”. 46

د”امام نسائي” لنډه پېژندنه. 47

“سنن ابن ماجه”. 48

د”امام ابن ماجه” لنډه پېژندنه. 48

“سنن دارمي”. 49

“الموطا”. 49

“دامام احمد بن حنبل مسند”. 49

د “اماميه شيعه وو” د احاديثوغوره  کتابونه. 50

“اصول کافي”. 50

د”شيخ  کليني” لنډه پېژندنه. 50

د شيخ صدوق لنډه پېژندنه. 51

“تهذيب الاحکام”. 51

د شيخ طوسي لنډه پېژندنه. 51

“استبصار”. 52

“بحارالانوار”. 52

د شيخ مجلسي لنډه پېژندنه. 52

“وافي”. 53

د ملامحسن فيض کاشاني لنډه پېژندنه. 53

“وسايل الشيعه”. 53

د حرعاملي لنډه پېژندنه. 54

بسم الله… 55

خويونه. 55

بدخویه. 55

ناوړه وګړي.. 55

بخيل. 56

کشران او مشران.. 57

الهي لارښوونې.. 57

ټلوالي.. 57

الهي تقوا 57

ځورول. 58

هديره 58

ګهيځ.. 58

حرص…. 58

نېکمرغه. 59

کار. 59

ښه چلن.. 60

نېک چارى زوى.. 61

لاس… 61

قناعت.. 62

توکل. 62

ټوکې.. 62

سخي.. 63

ورین تندی.. 63

ملګري.. 63

لیده کاته. 64

پاکوالى.. 64

استغفار. 64

عاجزي.. 64

نسپالي.. 65

پلور پېر. 65

د خدای وېره 65

ښکلا.. 65

زغمناک… 66

ریا 66

ښه بوی.. 67

سوداګر. 67

اسراف… 68

یووالی.. 69

راز ساتنه. 69

حق.. 69

شهید. 70

امن او روغتیا 70

امین.. 71

غوره وګړي.. 71

لاروی.. 72

ډار اچول. 72

زړښت.. 72

عزت.. 73

پاسوالي.. 75

ځاني غوښتنې.. 75

ناپوهي.. 76

نشتمني.. 76

ایمان.. 77

ناشکري.. 78

ځوان.. 78

ناوړه چارې.. 78

د پت دفاع.. 78

خوار او ذلیل. 79

نوم بدي.. 79

سفر. 79

په سفر کى د نورو حق ته پاملرنه. 80

له څارویو سره نېکي.. 80

رښتین.. 81

دښمن.. 83

بېځایه رټنه. 83

خپلمنځي جوړجاړى.. 83

روغتيايي احاديث.. 84

مسواک… 85

سلام  اچول. 87

د ګاونډي حق.. 89

اولاد. 90

اخر وخت او قیامت.. 92

د جمعې د ورځې خطبه. 94

شمع. 94

اذان.. 94

بډې.. 95

وصیت.. 95

انګېرنې.. 95

لارښود. 95

جهاد. 95

قریش… 96

واکمني.. 97

کرنه. 97

د کهف سورت.. 98

لوڼې.. 99

د اسلامي ټولنې د وګړيوخپلمنځي اړيکې.. 99

عیال. 100

د غونډې آداب.. 100

شعر. 101

پرنجى او پړمخکۍ.. 102

ځان سینګارول. 102

نامحرمو ته کتل. 103

د ايمان نښې.. 103

وفا 104

الهي تقدير. 104

اړتیا پټه ساتل. 104

ساتېري.. 105

متقي شتمن.. 105

نفقه. 105

سخي او بخیل. 105

سخاوت.. 106

بدګوماني.. 107

دروغ.. 108

قیامت.. 111

منځلاري.. 113

الفت او مينه. 114

امانت.. 115

امت.. 117

اسلامي مذاهب.. 118

لاروي.. 120

عاجزي او تواضع. 121

کنځل کول. 121

غيبت.. 123

غيرت.. 126

فتوا 127

کنځلې.. 128

فراغت.. 129

هېر. 130

پرښتې.. 131

خواړه 131

مسافر. 134

غصب.. 134

غفلت.. 135

غنيمت ګنل. 136

عورت (ستر). 138

عيب.. 139

عطر. 143

عفت.. 143

عقل. 144

د خير غوښتنه. 146

تمه. 146

عاقبت.. 147

عبادت او بنده 147

عُجب ( وياړنه). 150

عدالت.. 151

عذاب.. 152

عذاب ژغورنه. 154

طلاق.. 154

زړه سوى.. 156

صلوات.. 158

سوله. 160

صدقه. 161

د مؤمن پاڼه. 163

زغم او صبر. 164

ګهېځ.. 167

شيطان.. 168

شهوت.. 170

شهادت.. 170

شوخي.. 171

پېژندنه. 171

توره 173

ښکار. 173

شکر او مننه. 173

سپارښتنه (شفاعت). 174

مياشتې.. 176

وينځل. 177

شريک او برخوال. 177

شرک… 178

شرافت.. 179

شراب.. 179

شرابخور. 181

مړانه او شجاعت.. 181

بيړه 181

ورته والى = يو شان والى.. 182

شبهات.. 183

شاهدي ورکول. 183

خوشحالول. 184

خوړل. 185

د مؤمن خوشحالول. 186

سخت زړي.. 186

نښې.. 187

د فيزيولوژيکي انګېزو په اړه احاديث.. 191

د بشري نوعي د پايښت په اړه احاديث.. 192

مور. 193

د اروايي او روحي انګېزو په اړه احاديث.. 194

د سيالۍ د انګېزې په اړه 195

د مالکيت انګېزه 196

د انګېزې او عاطفې تر منځ اړيکه. 197

د انګېزو تر منځ  شخړه 197

د انګېزو کابو کول. 200

د غريزې بې لاري.. 208

مينه. 210

(الف) له خداى تعالى سره مينه. 210

( ب ) له پېغمبر اکرم سره مينه. 211

( ج) له خلکو سره مينه. 211

( د) د  خداى له پنځوليو سره مينه. 215

( ه) له اولاد سره مينه. 215

( و ) جنسي مينه. 217

( ز) له شتمنۍ سره مينه. 217

کينه. 218

آخرت گروهنه. 218

حيا 219

پر عواطفو برلاسي.. 223

پر کبر برلاسي.. 223

غم او پر خپګان برلاسي.. 224

د غم پرمهال دعا 227

دغم له منځه وړونکی.. 229

حسي ادارک… 229

له حس اخوا ادراک… 229

فکر کول. 232

بنسټګر. 234

د فکر کولو تېروتنې.. 235

زده کړه 237

د يادولو لارې چارې.. 240

تقليد او لاروي.. 240

ازمېښت او تېروتنه. 241

شرطي سازي Conditioning.. 242

اندنه او فکر کولوته هڅونه. 242

دزده کړې اصول. 243

بدله ورکول. 249

په زماني واټن کې زده کړه 250

تکرار. 250

رغنده سيالي.. 251

په پوښتنې د پام راړول. 252

په مثال او تشبيه د پام رااړول. 253

انځورول. 255

امبريالوژي (جنين پوهنه). 257

کوچني.. 259

د خوړو اداب.. 259

ځوان ته د پېغمبراکرم نصيحت.. 260

شخصيت.. 260

د مېرمنې د ټاکنې غوره کچه. 262

دوستي.. 262

زړه 263

بنيادم. 265

ځان ساتنه. 266

اروايي روغتيا 266

کرهڼه. 268

ورهڼه. 268

ډاډمني او روغتيا 269

ځواک… 270

اروايي درمل. 271

د اولاد روزنه او درناوى يې.. 276

لوڼې.. 285

د جګړې د بنديانو ملاتړ. 287

ښځه. 288

د ښځمنوملاتړ. 290

له دوه ځانو(اميندوارو) ښځوملاتړ. 293

واده، سم کوروالى او د اولاد پر زوکړه اغېزمن لاملونه. 297

ايمان.. 303

له ظالم سره مرسته. 305

وفا 305

الهی تقدیر. 305

تر مړينې وروسته ژوند. 305

دوه مخي.. 306

اسانخوښی – راحت طلبي.. 309

یقین او زهد. 309

مسکین.. 309

احسان.. 310

غوره کړنې.. 311

ناوړه کړنې.. 311

خپلمنځي اړیکې.. 313

تله. 313

ډار. 314

تسبيح.. 314

تسليت.. 315

په جنازه کې ګډون.. 315

د عقايدو څارنه. 316

تقيه. 316

کبر. 317

تکلف… 318

تکليف… 318

کنجوسي.. 318

يوازېتوب.. 320

غښتليتوب.. 320

توبه. 322

توفيق.. 323

د نورو سپکاوى.. 323

تور. 324

ثواب.. 324

کوډګر. 325

جبر او اختيار. 325

ټولى.. 326

غوړه مالي.. 327

د سترګو وهل ( نظرېدل ). 327

حج.. 328

حجامت.. 328

حد او پولې.. 329

حرام اوحلال. 329

حساب.. 331

حسرت.. 331

حق اوحقيقت.. 332

حقوق.. 333

شفاعت.. 333

د مؤمن حقوق.. 333

پر مسلمان د مسلمان حقوق.. 334

حکمت.. 335

حماقت.. 337

څاروي.. 337

کورنۍ.. 338

خبر. 339

خداى.. 340

زړه وژونکي.. 340

تاوتريخوالى.. 340

خوشحالي.. 341

ژغورنه. 342

خندا 344

خوب.. 345

خواري.. 347

غوښتل. 347

نېکي.. 348

خواړه 350

لمر. 352

خطاطي.. 352

په ژوند کې بسياېنه. 353

خپلوان.. 353

خياطي – ګنډل. 354

خيانت.. 354

خير. 357

شتمني.. 358

درمل. 360

پوهه. 360

ښوونکى.. 366

د عالم مړينه. 367

عالمان.. 367

ورمندون- قضاوت ( منځګړتوب). 367

نېک… 368

وصيت.. 369

اودس… 369

واکمني.. 370

وليمه. 370

هجرت.. 371

ډالۍ.. 371

ګاونډى.. 372

د شرافت لامل. 372

د ورکاوي لاملونه. 372

د خداى ياد. 373

د مرګ ياد. 374

مرسته. 375

پلارمړى (يتيم). 376

يقين.. 377

د خداى وحدانيت (توحيد). 379

يهود. 379

ډوډۍ.. 380

نبوت.. 380

نجوا ( پسپسکې). 381

نرمي.. 381

نږدېوالى.. 383

نصيحت او خيرغوښتنه. 383

نعمت.. 384

ښېرا 385

لمونځ.. 385

د شپې لمونځ.. 388

اوبه. 390

نهيلي.. 390

اړتيا 391

نيت.. 391

چل. 392

مېلمه. 393

ورکاوى.. 394

بېوسي.. 395

نوک… 395

ناپوهه. 396

نفلونه. 396

نوم. 397

لیک… 397

مړه خوا 398

وېښته. 398

مؤمن.. 399

لورنه. 403

مهر. 404

مسئووليت.. 404

نشه يي توکي.. 405

جومات.. 405

مسلمان.. 406

سلامشوره 407

مصيبت ( کړاو ). 408

معاشرت.. 411

مينه. 411

ستاېنه. 413

سړيتوب او انسانيت.. 414

خلک… 415

مړينه. 417

پراخي.. 418

ګومان.. 419

بې لاري.. 419

ګناه. 420

غوږ. 423

غوښه. 424

ګوښه کېناستل. 425

ځېل. 425

لعنت.. 425

لواط.. 426

زنا – بدلمني.. 427

نبوي کورنۍ.. 428

امام مهدي عليه السلام. 447

حضرت فاطمه الزهرا 447

حسنين.. 451

د امت غوره مېرمن.. 453

له حضرت علي سره مينه. 453

اصحاب.. 454

ماعون.. 455

مبارزه 456

شخړه 456

مجازات.. 457

غونډې.. 457

پور. 459

قسم. 460

غچ ،کسات.. 460

قضاوقدر. 461

قوم. 461

غښتلتيا 462

غوسه کول. 462

نېکچاري.. 468

کورنۍ ته هڅاند. 470

د نن کار سبا ته پرېښوول. 471

وژنه. 472

کعبه. 473

کفر او کفران.. 474

کمال. 475

ډنډۍ وهل. 475

ژړا 477

قرآن.. 479

قدر او منزلت.. 483

سوکړه- قحطي.. 484

قبر. 484

فقه او فقهاء. 486

فضيلت اوغورواى.. 487

فقر او نيستي.. 488

ځانمني.. 490

ملاماتوونکي لاملونه. 491

بلنه. 491

تېراېستنه. 492

دنيا 493

ملګرى.. 494

دوستي.. 494

له قحطۍ د ژغورنې لاملونه. 495

ليده كاته او زيارت.. 495

دينار او درهم ( پيسې). 496

دين.. 497

رښتيا 498

ربا 498

د رجب مياشت.. 499

د روژې مياشت.. 500

روژه 501

غازي.. 506

رسوايي.. 506

د مسلمانانو چارو ته پاملرنه. 507

بډې.. 507

رنګونه. 507

ورځې.. 508

روزي.. 509

غوړي.. 510

د خوب ليدل. 510

څوكۍ او مقام. 511

ريا او د ځان مشهورول. 512

ژبه. 515

زكات.. 519

د چا لمونځ نه قبلېږي.. 521

ځمكه. 521

تېرى– ظلم. 522

سپارښتنې.. 523

له اسلامه وتلي.. 524

ښېرا 524

مظلوم. 524

ښكلا.. 526

ځيركي.. 526

جګړه مار. 527

خداى ته سجده كول. 527

ګهيځ پاڅېدل. 528

خبرې او حديث.. 528

د خداى پرتم. 530

پړه 530

لوبې.. 531

مولا  او مشر. 532

د اوبو وركړه 532

چوپتيا 532

د واکمن ماڼۍ.. 535

ملعون.. 535

پت.. 535

اور. 536

داسې وخت به راشي.. 536

ملګرتوب.. 539

هيله. 539

ازار. 541

ازمېښت.. 541

بلا.. 541

خداى چې له بنده خوښ شي.. 543

د بدمرغۍ نښې.. 544

آفتونه. 544

پيدايښت.. 544

ښوونه. 545

مزدوري.. 546

ځانګړې اجازه 546

احتکار. 547

اخلاص…. 548

ښه خوى.. 549

ادب.. 551

ميراث.. 552

اسلام او د مسلمانانوحقوق.. 552

د خوړو ورکړه 554

مشري او چارواکي.. 555

پرنېکيو امر و له بديومنع. 556

امنيت.. 558

نهيلى.. 559

انتظار. 559

زغم. 559

پند. 559

فکر. 560

انفاق او لګښت.. 561

اولياء الله… 561

ايمان.. 562

بازار. 565

سوداګري.. 566

بښنه. 567

بدمرغي او نېکمرغي.. 569

بدعت.. 571

شر او بدي.. 573

برابري.. 573

د رسول اکرم ورور. 574

برکت.. 574

کينه او دښمني.. 575

بنده او بندګي.. 579

جنت او دوزخ.. 581

خپلسري.. 588

ناروغ او پوښتنه يې.. 588

بدله او اجر. 591

تقوى او پرهېزګاري.. 592

پاکي.. 594

مور و پلار. 594

پوښتنه. 600

طبابت.. 601

پستي.. 601

پښېماني.. 602

جامې.. 603

پېغمبران.. 604

تړون،ژمنه او وعده 605

بريا 606

سپکاوى.. 606

مجاهد فقيه. 609

علي (ک) ته د پېغمبراکرم سپارښتنې.. 610

حكمتونه. 620

د حلم آثار او څانګې.. 621

د علم څانګې.. 621

د ودې څانګې.. 622

د عفاف څانګې.. 622

د مړه خواينې يا  ځان ساتنې څانګې.. 622

د حيا څانګې.. 622

د وقار څانګې.. 623

پر خير د ټينګار څانګې.. 623

له شره د كركې څانګې.. 623

د ناصحانو د لاروۍ څانګې.. 624

د ناپوهه نښې.. 624

د اسلام نښې.. 625

ايمان  نښې.. 625

د علم نښې.. 625

د رښتين نښې.. 626

د مؤمن نښې.. 626

د پراخې سينې خاوند نښې.. 626

د توبه ګار نښې.. 626

د شكر كوونكي نښې.. 626

د خاشع نښـې.. 627

د صالح نښې.. 627

د ناصح نښې.. 627

د يقين لرونکي نښې.. 627

د مخلص نښې.. 628

د زاهد نښې.. 628

د نېک انسان نښې.. 628

د تقوا لرونکي نښې.. 628

د متکلف نښې.. 629

د ظالم نښې.. 629

د رياکار نښې.. 629

د منافق نښې.. 629

د کينه کښ نښې.. 630

د اسراف کوونکي نښې.. 630

د غافل نښې.. 630

د لټ نښې.. 630

د دروغجن نښې.. 631

د فاسق نښې.. 631

د خاين نښې.. 631

د يمن د والي کولو پر مهال. 634

حضرت معاذ بن جبل ته د پېغمبر اکرم (ص)  سپارښتنې.. 634

د پېغمبر اکرم (ص) غوره ويناوې.. 635

پوهه،ناپوهي او عقل. 637

د پېغمبر اکرم (ص) موعظې.. 639

بختور. 640

په حجة الوداع كې د پېغمبر اکرم (ص)  خطبه. 641

د پېغمبر اکرم (ص)  لنډې خبرې.. 645

لس ډلې.. 674

عادلانه چلن.. 675

د بدچاريو پايلې.. 676

توبه ګار. 677

د ګناه جبرانول. 677

تر ټولو ناوړه انسان.. 678

منافق وپېژنئ.. 678

د امت سمونه. 679

ريا 679

فطري دين.. 680

د اولاد لاسنيوى.. 680

له کورنۍ سره غوره چلن.. 680

د ماشوم ژړا 681

بډې.. 681

له درې څيزونو وېره 681

حلاله روزي.. 681

ډېرښت.. 682

سفر. 682

نېک چاري.. 683

ګناهکار. 683

له مسلمان سره خيانت.. 683

رهبانيت منع دى.. 684

د مؤمن او کافر توپير. 684

د لمانځه ثواب.. 684

وړ  مشر. 685

د پېغمبر اکرم د لارښوونې او روزنې مثال. 685

د عالمانو ډولونه. 686

ګاونډ. 686

د جنتيانو د روح په څېر بدن.. 687

په سلو کې نهه نوي برخې عقل يې پېغمبر اکرم ته ورکړ. 687

زه د نېکو اخلاقو لپاره مبعوث شوى يم. 688

د صبر او ايمان تړاو. 688

رسول الله ته ورته انسان.. 688

حقيقي لارويان اوبې لاري.. 689

پینځه نبوي سنتونه. 689

له خلکو سره جوړجاړى.. 689

له فقيرانوسره مینه. 690

دعا 690

د پېغمبر اکرم دعا 692

د نويو جامو اغوستو پر مهال دعا 694

له مجلسه د پاڅېدو پرمهال دعا 695

جومات ته د ننووتو او وتو دعا 695

د ويدېدو پرمهال دعا 696

د دسترخوان دعا 696

د دسترخوان د برکت دعا 696

خوړو ته د لاس نږدې کولو د مهال دعا 697

د دسترخوان ټولولو پرمهال دعا 697

د خوړو او شيدو پر مهال دعا 697

د تازه ميوې د ليدو پرمهال دعا 698

تشناب ته د ننووتو دعا 698

د خداى ستاېنه. 699

له تشنابه د راوتوپر مهال دعا 699

له هديرې د تېرېدو پر مهال دعا 699

د قبر د زيارت دعا 699

د خوشحالۍ او خپګان پرمهال دپېغمبراکرم دعا 700

د خوښ څيز د ليدو پر مهال دعا 700

د سهار تر لمانځه وورسته دعا 700

په سجده کې دعا 701

له لمانځه د راستنېدو پر مهال دعا 701

په هر لمانځه پسې دعا 702

د نوي کال پرمهال د پېغمبر اکرم دعا 702

د شعبان پر پینځلسم (پينځلسي) د پېغمبر(ص) دعا 703

د شعبان پر پینځلسمه دپېغمبر(ص) بله دعا 704

د مياشتې د ليدو پر مهال دعا 706

د روژې د مياشتې د ليدو پرمهال دعا 706

٣٦٠ ځل ستاېنه او شکر. 707

د قرآن د حفظولو لپاره دعا 707

د دښمن له شره د امان لپاره دعا 708

په سهار کې دعا 708

د مياشتې د ليدوپرمهال دعا 709

د رجب د مياشتې د ليدو پرمهال دعا 709

د شعبان د مياشتې د ليدو پرمهال دعا 710

دمياشتى د ليدو پرمهال دعا 710

خداى ته پناه وړل. 710

محمدي دعا 711

د لارښوونې دعا 711

د برښنا،ورېځو او تالندې پر مهال دعا 712

د پېغمبر(ص) دعا 712

د بد خلقۍ آفتونه. 713

د يارانو خوشحالول. 713

د خوړو له زېرمولو ډډه کول. 713

د يو بل په ليدوخوشحالېدل. 713

يارانو ته سپارښتنه. 714

ست.. 714

له خلکو سره له شخړې ژغورل شوى و. 714

اوه ځانګړنې.. 714

فقيرانه ژوند. 715

فقيرانو ته زکات او صدقه. 715

زه خداى روزلى يم. 715

د هر څه بښنه. 715

شپږ ناوړه ځانګړنې.. 715

سرتېرو ته سپارښتنه. 716

څلور ګران کسان.. 716

له علي سره مينه ولره 717

د چا د  تېرايستو سوچ مه کوه 717

د وېښتانو د ږمنځولو ګټې.. 717

د برېتو کمول. 717

ښايسته بوي ثواب لري.. 718

د ځمکې ګواهي.. 718

د مخه ښې پر مهال دعا 718

د نفس د پاکوالي لامل. 719

د مؤمن نښه د پېغمبرانو سنت.. 719

د سپينوجامو سپارښتنه. 719

په جامه کې ساده ګي.. 719

څوک چې مې له سنته مخ واړوي؛له ما څخه نه دى.. 719

سپين چرګ يې ساتلى و. 720

د پېغمبراکرم د سترګو رڼا 720

غوره خلک… 720

تر ابراهيم هم غيرتي.. 720

درې حلالې لوبې.. 721

د لمانځه فرمان.. 721

اهل بيتو ته د خداى ځانګړي نعمتونه. 721

له خدایه شرم. 722

د ډوډۍ خوړلو ‏آداب.. 722

ډېرګرم خواړه 722

فالوده 722

د خوړو د لوښي برکت.. 723

د خوړو وخت.. 723

تواضع. 723

په هرې مړۍ پسې شکر. 724

سرکه. 724

د څارويو پښتورګي يې نه خوړل. 724

دخوړو پر مهال‏ يې پڼې اېستې.. 724

حلوا 725

‏سخته ناورغي.. 725

‏ دوه ګرایه ‏دي.)) (سنن النبي). 725

د جنابت غسل. 725

لمونځ.. 726

د ګناهونوکفاره. 727

په خپل لاس مرسته. 728

هغه آیت چې فضیلت یې تر زر آيتونو ډېر دی.. 728

سورة اعلى.. 728

د ښايست شکر. 729

جامې.. 729

د امام حسن اوحسين لپاره د پېغمبر(ص) تعويذ. 730

د شعبان مياشت.. 731

د خداى او د پېغمبر مياشت.. 731

غوره دعا 731

د پېغمبر(ص) شفقت.. 731

د فضيلت د بيان پرمهال د پېغمبراکرم ادب.. 732

د مؤمن ذکر. 732

د ساداتو د زيارت سنت.. 732

د پېغمبر(ص) د وجود رڼا 732

ړومبى مخلوق.. 733

په زړه پورې څېره 733

د خداى او پېغمبر ترمنځ يوه پرده 733

د خداى او پېغمبراکرم ټاکلى وخت.. 734

پېغمبراکرم ته د خداى ډالۍ.. 734

د پوهانو فضيلت.. 734

اسلام. 734

د پېغمبراکرم مناظره 735

له تېرو به لاروي وکړئ.. 742

د پېغمبر اکرم  ليکونه. 743

د ايران پاچا ته ليک… 743

“نجاشي” د حبشې  پاچا ته ليک… 744

په مدينه کې د پېغمبراکرم منشور. 744

د دين آفت.. 746

د ښېګڼو سرچينه. 747

امانت ساتنه. 747

چې نه کار هلته څه کار. 747

 

 

د څېړونکي خبرې

موږ ته د رسول الله صلى الله عليه و آله وسلم احاديث د سني او شيعه راويانو له لارې رارسېدلي دي،چې د راټولېدو، کره کتنې او په بېلابېلو ټولګو کې يې راټولول يو ارزښتمن “ديني-تاريخ” چار دى او د ديني او پوهنتوني زده کړيالانو د فرهنګي کچې د لوړولو لپاره ددې څېړنې راټول شوي مطالب تر يوه بريده د اسلامي مذاهبو ترمنځ د “حديث” په اړه تفاهم او يو خوله توب راښيي،په دې هيله،چې تر دې وروسته نوى کهول په ډاډمنه توګه د اسلامي مذاهبو له روايتونو ګټنه وکړي او خپله علمي تنده پرې ماته  کړي او د پرديو د فرهنګي يرغل پر وړاندې له ديني غښتلي فرهنګي ملاتړه برخمن شي .

 

په درنښت ورور مو؛

اجرالدين اقبال

١٣٨٨ل د جدي شپږمه

د ١٤٣١ س  د محرم الحرام لسمه

 

 

                             

بسم الله الرحمن الرحيم

 

د اسلامي نړۍ حديثي ټولګې

(الف) د اهل سنتو د احاديثوغوره کتابونه :

١- “صحيح بخاري”:

ددې کتاب مؤلف “محمدبن اسماعيل بخاري” (رحمة الله عليه) دى، چې د اهل سنتو معتبر حديثي کتاب دى .”امام بخاري” دا کتاب په شپاړسوکلو کې تاليف کړى،چې اوه  زره پینځه سوه دري شپېته (٧٥٦٣) احاديث لري .

 

د”امام بخاري” لنډه پېژندنه

“محمدبن اسماعيل بن مغيره بن احنف جعفي”،چې په “امام بخاري” مشهور دى،کنيه يې “ابوعبدالله” دى او د”شوال” پر اولسم ١٩٤ س زېږېدلى دى .

د “امام بخاري” د احاديثو کتاب په “صحيح بخاري” مشهور دى او د اهل سنتو له “صحاح سته وو” ځنې دى،چې ورته تر قرآن وروسته صحيح کتاب  ويل کېږي .

 “امام بخاري” خپل کتاب ته د “الجامع الصحيح المسند من حديث رسول الله وسننه وايامه” نوم  غوره کړى؛خو په خلکو کې په “صحيح بخاري” مشهور دى . 

د”امام بخاري” کتاب اوه زره پینځه سوه دري شپيته ( ٧٥٦٣) حديثونه  لري،بې تکراره پکې دوه زره شپږسوه دوه ( ٢٦٠٢) ا حاديث دي،چې له شپږسوو زرو ( ٦٠٠٠٠٠)  احاديثو يې را اېستي دي .

“امام بخاري” ډېر شاګردان درلودل؛لکه “مسلم بن حجاج” د”صحيح مسلم”  خاوند،”ابوعبدالرحمان النسائي” ‎‎ د”سنن نسائي” خاوند، “ابوعيسى ترمذي” د “سنن ترمذي” خاوند،”ابن قتيبه”،”ابوزرعه الرازي”،”ابوحاتم الرازيان”  او نور….

د “امام بخاري” نورو آثارو؛لکه “الادب المفرد” ، “الاسماو الکني”، “تاريخ صغير”،”تاريخ اوسط”،”تاريخ کبير”،”ثلاثيات بخاري” او”السنن” ته   اشاره کړاى شو.

“امام بخاري” د کمکي اختر پر شپه پر ٢٥٦س “سمر قند” ته نږدې د”خرتنګ” په کلي کې وفات شو.

 

“صحيح مسلم”

  ددې کتاب مؤلف “مسلم بن حجاج نيشابوري” (رحمة الله عليه) دى،چې اهل سنتو ته  تر “صحيح بخاري” وروسته معتبر کتاب دى،چې د دولس زرو(١٢٠٠٠) احاديثو ټولګه ده .

 

د”امام مسلم” لنډه پېژندنه

“مسلم بن حجاج بن مسلم القشيري نيشابوري” (رحمة الله عليه) پر ٢٠٤س په “نيشابور”کې وزيږېد،کنيه  يې “ابوالحسن” او لقب يې “امام الحافظ” و . د امام مسلم له آثارو مشهور کتاب “صحيح مسلم” دى، چې تر”صحيح بخاري” وروسته د اهل سنتو په “صحاح سته وو” کې معتبر کتاب ګڼل کېږي .

“امام مسلم” خپل کتاب ،چې دولس زره (١٢٠٠٠) احاديث لري، د پینځه ويشت کلوپه موده کې وليکه .

 د کتاب ځانګړنې يې دادي : ښه اوډون شوی او بې له نېمګړتيا او زياتوالي لنډ شوي او احاديث يې په څلورو واسطو له “رسول الله” روايت کړي دي او د راويانوله پلوه احاديث يې د ډاډ وړ دي . 

د “مسلم” نورو آثارو؛لکه “المسندالکبير” ، “الجامع” ، “الکني والاسماء”، “اوهام المحدثين” او”طبقات التابعين” ته  اشاره کړاى شو .

“مسلم بن حجاج” پر ٢٦١س  د “رجب” پر پینځه ويشتمه په “نيشابور”کې وفات شو.

 

“جامع ترمذي”

چې په”صحيح ياسنن ترمذي” مشهور دى . ددې کتاب مؤلف “محمدبن عيسى ترمذي” دى،چې له علماوو او فقهاوو يې پکې د احکامو اوغېر احکامو احاديث راغونډکړي دي .  

        

د”امام ترمذي” لنډه پېژندنه

نوم يې “محمدبن عيسى بن سوره بن موسى السلمي الترمذي” دى،چې په ٢٠٩س کې په “ترمذ” کې زېږېدلى.  

 “ترمذي”،چې په کومه پېړۍ کې ژوند کاوه،د احاديثو د علم د پرمختګ پېړۍ وه،چې په پايله کې “ترمذي” له ډېرو پوهانو د حديث علم زده کړ او له هغو يې روايتونه وکړل،چې د “امام بخاري” شاګردي يې هم  کړې ده او له “بخاري” او”مسلم بن حجاج” دواړو يې احاديث روايت کړي دي .

د “ترمذي” له آثارو : د”الجامع الکبير” کتاب دى،چې په “صحيح ترمذي” يا”سنن ترمذي”مشهور دى او نور کتابونه يې”الشمائل النبويه”،”التاريخ”او”العلل”دي .

“ترمذي” د عمر په پاى کې پر سترګو ړوند شو او پر ٢٧٩س  په “ترمذ” کې ومړ .

 

“سنن ابوداود”

مؤلف يې “سليمان بن اشعث” دى،چې پر “ابوداودسجستاني” مشهور دى،دا کتاب څلورزره اته سوه ( ٤٨٠٠) احاديث لري،چې ډېرى يې فقهي دي . 

 

د امام “ابوداود” لنډه پېژندنه

نوم يې “سليمان بن اشعث بن اسحاق بن بشير بن شداد بن عمران السجستاني الازدى” دى،چې په اصل کې د”سيستان” دى او پر ٢٠٢ س کې زېږېدلى دى . “ابوداود” په احاديثو کې د خپلې زمانې له مخکښانو و، چې “ابوعبدالله نسائي” [ د سنن نسائي ليکوال ]  او ډېرو ترې  روايتونه کړي دي .

د “ابوداود” له  آثارو د احاديثو کتاب دى،چې په “سنن ابي داود”مشهور دى،چې د اهل سنتوله “صحاح سته و” دى .

“ابوداود” په خپل  کتاب کې څلورزره اته سوه ( ٤٨٠٠) احاديث راټول کړي،چې له پينځو سوو زرو( ٥٠٠٠٠٠) احاديثو يې چوڼلي او هغه احاديث يې راوړي،چې فقهاوو پرې استدلال کړى او فقهي احکام پرې ولاړ  دي . د “ابوداود” له نورو آثارو “المراسيل” او”کتاب الزهد” ته اشاره کړاى شو . “ابوداود” پر ٢٧٥س  په “بصره” کې وفات شو.

 

“سنن نسائي”

مؤلف يې “ابوعبدالرحمان احمدبن علي بن شعيب نسائي” دى،چې د احاديثوله پلوه د”سنن ابي داود”او”صحيح ترمذي” سره ډېر نږدې دى .                   

 

د”امام نسائي” لنډه پېژندنه

نوم يې “احمدبن علي بن شعيب” او  په “شيخ الاسلام” مشهور دى، کنيه يې  “ابوعبدالرحمان” دى اوپر ٢٢٥ س د “خراسان” په “نسا” کې پيداشوى بيا “مصر” ته تللى او هلته اوسېدلى او په فقه او حديث کې د زمانې  له مخکښانو و.

ويل شوي چې : (( د”دمشق” پر لور په سفرکې “نسائي”  د حضرت “علي” (ک) او “معاويه” بن ابي سفيان په هکله وپوښتل شول،هغه حضرت “علي” (ک)  پر”معاويه” بن ابي سفيان غوره وباله،چې په پايله کې معتصبينو  له جوماته دباندې  وغورځاوه او له دمشقه ووت .))

د “نسائي” له آثارو د هغه د احاديثو کتاب دى،چې په “سنن نسائي” مشهورشوى او “المجتبى” هم ورته  وايي . 

د “نسائي” له نورو آثارو “خصائص اميرالمؤمنين علي” ، “مسندعلي”،”مسند مالک” ، “الضعفاء” او”المترکين” ته اشاره کړاى شو .

“نسائي” د خپل عمرپه پاى کې مکې ته ولاړ او پر ٣٠٣س  هملته ومړ.    

 

 

“سنن ابن ماجه”

مؤلف يې “محمد بن يزيد بن ماجه قزويني” دى،چې احاديث يې د فقهي مسائلو پر بنسټ اوډون شوي او څلور زره درې سوه يوڅلوېښت (٤٣٤١) احاديث لري .

 

د”امام ابن ماجه” لنډه پېژندنه

نوم يې “ابوعبدالله محمد بن يزيد ماجه قزويني” دى،چې پر ٢٠٩س  د “ايران” په “قزوين” کې زېږېدلى دى .

د “ابن ماجه” له آثارو ځنې د احاديثو مشهور کتاب “سنن ابن ماجه” دى، چې د اهل سنتوله “صحاح سته وو” څخه دى

 کتاب يې په “فقه” کې د اوډون له پلوه غښتلى دى او کوم احاديث يې، چې راوړي،د فقهي مسائلو له مخې يې ترتيب کړي او تکراري حديث پکې نه  ليدل کېږي او له نوروځانګړنو يې  ښه ترتيب اوباب بندي  ده .

“ابن ماجه” په خپل کتاب کې څلور زره درې سوه يوڅلوېښت ( ٤٣٤١)  حديثونه  نقل کړي،چې درې زره دوه ( ٣٠٠٢)  حديث يې په نورو  “صحاحو”کې راغلي او يو زر درې سوه نهه دېرش (١٣٣٩)حديثونه  په نورو صحاحو کې نه دي راغلي .

د “ابن ماجه”  له نورو آثارو د “تفسيرالقرآن” او”تاريخ قزوين” نومونه يادولاى شو. “ابن ماجه” پر ٢٧٣ س  وفات شو.

 

“سنن دارمي”

مؤلف يې “عبدالله بن عبدالرحمان بن فضل بن بهرام بن عبدالصمد” دى، چې کتاب يې پر “الجامع الصحيح” مشهور دى .

“الموطا”

مؤلف يې “مالک بن انس بن مالک اصبحي حميري” دى،کنيه  يې “ابوعبدالله”  او د “اهل سنت او جماعت” له څلورو امامانو دى .”امام مالک” دا کتاب د عباسي خليفه؛”منصور”په غوښتنه ليکلى دى .

 

“دامام احمد بن حنبل مسند”

 مؤلف يې “ابوعبدالله احمدبن محمدبن حنبل شيباني” دى او د “اهل سنت او جماعت” له مخکښانو دى او په “مسند” کتاب کې يې دېرش زره احاديث دي .

 

 

 

د “اماميه شيعه وو” د احاديثوغوره  کتابونه

“اصول کافي”

د “محمد بن يعقوب کليني رازي” تاليف دى،چې د خپل عمر وروستي  شل کاله يې په “بغداد”کې تېر کړل اوهماغلته ومړ او دا کتاب يې په “بغداد” کې وليکه . هغه ړومبى امامي محدث دى،چې د ديني رواياتو په راټولولو،نظم ،ترتيب او تبويب يې پيل وکړ.

 کتاب يې تقريبا شپاړلس زره حديث لري،چې د”شيعه وو” معتبر حديثي کتاب ګڼل کېږي  او درې برخي لري : د “عقايدو اصول”،”فقهي احکام” او “خطبې او موعظې”،چې د”الروضة” په نامه يادېږي .

 

د”شيخ  کليني” لنډه پېژندنه

کليني د اماميه شيعه وو يو  فقهي شخصيت دى،چې د “ايران” په “رى” کې زېږېدلى  او ډېر عمر يې په “بغداد” کې تېر کړى او په “فقه” او”حديث” کې ترې آثار پاتې دي . 

٢-“من لايحضره الفقيه”:

 مؤلف يې “ابوجعفرمحمدبن علي بن بابويه قُمي” دى،چې په “شيخ صدوق” مشهور دى . دغه کتاب پينځه زره نهه سوه شل ( ٥٩٢٠) حديثونه  لري،چې د “محمد بن زکريا” د کتاب “من لايحضره الطبيب” په سياق يې ليکلى دى .

 

د شيخ صدوق لنډه پېژندنه

“شيخ صدوق” د شيعه مذهب له سترو پوهانو څخه دى ،چې پر٣٠٦س په قُم کې زېږېدلى او پر”شيخ صدوق” مشهور دى . په “رى” او “خراسان” کې ا وسېدلى او پر ٣٨١ س په “رۍ” کې وفات شو. په اسلامي علومو،تاريخ او شعر کې ترې تقريباً درې سوه (٣٠٠) کتابونه پاتې دي .

 

“تهذيب الاحکام”

 مؤلف يې “محمد بن حسن طوسي” دى،چې په “شيخ طائفه” مشهور دى؛ هغه د شيعه فقهاوو رئيس دى او د ډېرو اسلامي علوموپه هکله يې معلومات درلودل، کتاب يې ديارلس زره پينځه سوه نوي ( ١٣٥٩٠)  حديثونه  لري .

 

د شيخ طوسي لنډه پېژندنه

“شيخ طوسي” د اماميه شيعه وو فقيه او ليکوال  دى،پر ٣٨٥ س کال زيږېدلى  او له خراسانه “بغداد” ته ولاړ،چې هلته څلوېښت کاله پاتې شو او بيا “نجف” ته ولاړ او پر ٤٦٠ س کې په “نجف” کې ومړ. 

 

“استبصار”

 مؤلف يې هم  “ابوجعفرمحمدبن حسن طوسي” دى  او پينځه زره پينځه سوه يوولس (   ٥٥١١) احاديث لري .

 

 

 “بحارالانوار”

مؤلف يې “محمد بن باقربن محمد تقي مجلسي” دى،چې په خپله زمانه کې د فقې او تفسير ستر عالم و او د “شيخ بهايي” شاګردي يې هم کړې ده .”مجلسي”په خپل کتاب کې په نورو کتابوکې خپاره واره احاديث راغونډ کړل . په کتاب کې يې اعتقادي،تاريخي،د انبياوو او امامانو قيصې او بېل بېل فقهي بابونه شته .

 

د شيخ مجلسي لنډه پېژندنه

“شيخ مجلسي” د اماميه شيعه وو له پوهانو دى،چې پر١٠٣٧ س په “اصفهان” کې زېږېدلى د احاديثو ډېره برخه يې په “فارسي” ژباړل شوې او په اسلامي علومو او تاريخ کې ترې ډېر آثار پاتې دي .

 

“وافي”

مؤلف يې “محمد بن مرتضى” دى،چې په “ملامحسن فيض کاشاني” مشهور دى او په يوولسمه هجري قمري پېړۍ کې د اماميه وو له سترو پوهانو څخه و.

 کتاب يې د “کافي”، “من لايحضره الفقيه”،”تهذيب” او”استبصار” د کتابو ټولګه ده.همداراز ددې کتابونو خپاره واره احاديث يې راټول کړي، په دې توپير،چې تکراري احاديث يې چاڼ کړي دي .

 

د ملامحسن فيض کاشاني لنډه پېژندنه

“ملامحسن فيض کاشاني” په يوولسمه هجرى پېړۍ کې د اماميه وو له سترو علماوو څخه دى،په فقه،حديث،تفسير او فلسفه کې د نظر خاوند دى او تر اتياو( ٨٠) پورې کتابونه يې تاليف کړي ،”ملا محسن” پر١٠٩١ س په “کاشان” کې ومړ.

 

“وسايل الشيعه”

  مؤلف يې “محمدبن حسن شامي” دى،چې په “حُر عاملي” مشهور دى ده په خپل کتاب کې هغه احاديث راټول کړي،چې په څلورمه هجري قمري پېړۍ کې د شيعه و د احاديثوپه کتابو کې راغلي او روايتونه يې پرې ورزيات کړل او د فقهي مسايلو له مخې يې اوډلي دي .

 

د حرعاملي لنډه پېژندنه

“حر عاملي” د شيعه مذهب فقيه او تاريخپوه دى،چې پر ١٠٣٣ س  په “لبنان” کې زېږېدلى او”عراق” او “خراسان” ته يې سفرونه کړي او د عمر تر پايه په “خراسان” کې پاتې شو .

 

 

بسم الله

ð “بسم الله الرحمن الرحيم”د هرې ليکنې کونجي ده.(کنز : ٢٤٩٠ حديث)

 

خويونه

ðپه مؤمنانو کې هغه تر ټولوغوره دى،چې خوى يې تر نورو ښه وي . (ابوداوود – الدارمي )

ðمؤمن په ښه خوى د شپې د تهجد کوونکيو او همېشنيو روژه تيانو مقام ته رسي .( ابو داوود)

ð څوک چې امانت ساتى نه وي ،مؤمن نه دى او څوک چې پر خپله ژمنه وﻻړ نه وي؛نو دين نه لري . (بيهقي)

 

بدخویه

ðڅوک چې بدخويه وي (؛نو) ځان يې په عذاب کړى دى .(بحار ٧٣/ ٢٩٨)

ناوړه وګړي

ðزما په امت کې ډېر ناوړه(ناخوښه) هغه دى،چې خلک يې د زيان رسونې له وېرې درناوى کوي . ( تحف العقول : مخ ٥٨ )

ðهغه ډېر ناوړه دى،چې خپل آخرت په دنيا پلوري . ( مکارم الاخلاق: مخ ٤٣٣)

ðڅوک چې مسلمان وغولوي،يا ورته زيان ورسوي يا ورته دسيسه جوړکړي ( ؛نو) له ما څخه نه دى . ( تحف العقول : مخ ٤٢)

ðد خداى ډېر غوره بندګان هغه دي،چې په ليدو يې انسان ته خداى ور يادېږي او ډېر ناوړه يې هغه دي،چې چغلي کوي او دوستان سره بېلوي اوپه دې لټه کې وي،چې د خداى د بندګانو پاکې لمنې په يو ډول ګناه ککړې کړي او يا يې په کړاو او پرېشانۍ اخته کړي .( بيهقي )

ðاى چې پر ژبه موايمان راوړى؛خو لا مو زړه ته نه دى ننووتى! د مسلمانانو غيبت مه کوئ او پټ عيبونه يې مه راسپړئ ؛ځکه که داسې وکړئ؛ نو خداى به هم درسره همدغسې وکړي،چې د رسوايۍ او سپکاوى لامل به مو شي .( ابوداوود)

 

بخيل

 ð بخيل له “خداى” او خلکو لرې او “اور” ته نږدې دى . (بحار٧٣/ ٣٠٨)

ðډېر بخيل هغه دى،چې په “سلام” اچولوکې بخل کوي . ( کنز ٢ / ٦٤ )

 

کشران او مشران

ð هغه له ما څخه نه دى،چې پرکوچنيانو و نه لورېږي  او د مشرانو حق ونه پېژني . ( کنز: ٥٩٧٠ مخ)

ðڅوک چې له کوچنيو سره په مينه او له لويانوسره په درناوي چلن و نه کړي؛نو له موږ ځېنې نه دى . ( “ترمذي” – “ابوداود”)

 ðهر ځوان،چې د بوډا عزت او درناوى وکړي؛نو خداى به ورته په بوډاتوب کې داسې څوک وګوماري،چې عزت يې وکړي . (ترمذي)

 

الهي لارښوونې

ð الهي لارښوونې پر ځاى کړئ،چې “الله”درباندې ولورېږي  (ميزان: ٧٠٠٩ مخ)

 

ټلوالي

ð دچاچې له هرې ډلې سره مينه وي (؛نو) خداى به يې د قيامت پر ورځ له هماغې سره راپاڅوي . ( کنز: مخ ١٠ )

ð (په قيامت کې به) له هغه سره يې،چې ښه دې ايسي . (امالى مفيد، مخ ١٥٢ )

الهي تقوا

ð څوک چې غواړي په خلکو کې عزتمن وي ؛نو”الهي تقوا” دې غوره کړي . (بحار ٧٠ / ٢٩١)

 

ځورول

ðچا چې مؤمن وځوراوه ؛نو زه يې ځورولى يم . ( بحار ٦٧/ ٧٢٩  )

ð دخداى بندګان مه ځوروئ . ( کنز: ٤٣٧٤٠ ح )

ð غوره انسان هغه دى،چې مسلمانان يې د لاس او ژبې له ازاره خوندي وي . ( وسائل/٨ ٥٩٨ )

 

هديره

ð هديرو ته ولاړشئ،چې آخرت دريادوي . ( کنز ١٥/٦٤٦ )

 

ګهيځ

ð ګهيځ ژر په خپلې روزۍ اونورو اړتياوو پسې ولاړشئ،چې ګهيځ له وخته پاڅېدل برکتي اوله برياسره مل دي . ( کنز ٤/ ٤٨ )

ð د سهار خوب  روزي کموي . ( کنز ٦ / ٤٧٣ )

 

حرص

ðهغه  ډېر شتمن دى،چې د حرص په لومه کې نه وي نښتى.(مستدرک ١٢/ ٥٩ )

نېکمرغه

ðډېر نېکمرغه هغه دى،چې له عزتمنو سره ناسته ولاړه لري .( بحار ٧٤/١٨٥)

ð هغه نېکمرغه دى،چې د خپلو عيبونوکره  کتنه  ولري  او کړه  وړه  يې د نورو له عيب لټولو منع کړي . ( کنز ١٦/ ١٤٢)

 

کار

ðد خداى عزتمن او ستر کارونه ښه ايسي او سپک او کوچني يې نه . ( المعجم الکبير ٣/ مخ ١٣١)

ð همېشنى اوپرله پسې کار د خداى ښه ايسي،که څه هم لږ وي . (کنز ٣ / ٥٧ )

ð د کار سم پاى ته رسول،د هر کارکچه ده . ( کنز ١٥ / ٦٩٤ )

ð د ښه کار کول  تر پيلولويې  ښه دى .( بحار ٦٩ / ٤٠٥ )

ð پر ښه کار ګومارنه،د کوونکي هومره ثواب لري .(کنز ٦/ ٣٦٠)

ð که کوم کار چې دې کاوه؛نولومړى يې پاى وسنحوه او راتلونکى يې  وګوره . ( کنز ٣/ ٩٩)

ð هر کار،چې دې زړه غواړي،ويې کړه؛خو بېشکه چې بدله او سزا به يې ګورې . ( حلية الاولياء ٣/ ٢٥٣)

ðبېشکه هغه  د خداى تعالى ښه ايسي،چې کوم کار کوي او ښه يې پاى ته ورسوي . ( ميزان الحکمه: ١٤٣٧١ح ) 

ð څوک چې ناوړه کار وکړي (؛نو پر اخرت سربېره ) په دې نړۍ کې هم سزا ويني. ( کنز: ٤٣٧١٣ح )  

ðهغه دې خوښ وي،چې کار و کسب يې له حرامو پاک وي . ( يعقوبي تاريخ ٢/ ٥٩ )

ðڅوک چې بې له پوهې کوم کار کوي؛نو زيان يې تر سمونې ډېر دى . (تحف العقول: مخ ٤٧ )

 

ښه چلن

ðڅوک چې نرم طبيعته نه وي ؛نو تر ټولو ښو به بې برخې وي.  ( صحيح مسلم )

ðپه حقيقت کې زه د ښوکارونو او خويونو بشپړولو ته مبعوث شوى يم.  ( بحار ١٦/ ٢١٠ )

ðله خلکوسره نرم چلن  نه کول،په حقيقت کې تر ټولو نېکيو بې برخي ده . ( وسائل ١١/ ٢١٤ )

ðڅوک چې مؤمن خوشحاله کړي؛نوپه حقيقت کې زه يې خوشحاله کړى يم . ( کافي ٢/ ١٨٨)

ðپه ورين تندي له خپل ورورسره مخامخ شه .( بحار ٧٤/ ١٧١)

ðخلکو سره ښه چلن کول نيم دين دى او ورسره دوستي او نرمي کول نيم ژوند دى . ( الکافي  ٢\١١٧)

ðډېر عاقل هغه دى،چې له خلکو سره خورا ښه چلن کوي . (من لايحضره الفقيه  ٤\٣٩٤)

ðدرې ځانګړنې دي،چې که په چاکې نه وي،کړنې يې نه پوره کېږي 🙁 ١) داسې تقوا،چې له ګناه يې منع نه کړي (٢) داسې خوى،چې له خلکو سره پرې ښه چلن وکړي (٣) او داسې زغم،چې د ناپوهانو ناپوهي پرې وزغمي . ( الکافي  ٢\١١٦)

ðماته مې پالونکي له خلکو سره د ښه چلن په اړه  دغسې امر کړى؛لکه د فرايضو يې،چې کړى دى .( الکافي ٢\١١٧)

ðله ښځوسره ښه چلن وکړئ .(نهج الفصاحه)

 

نېک چارى زوى

ð بېشکه نېک چارى زوى د جنت يو ګل دى . ( کافي ٦ /٣ )

 

لاس

ð پاسنى لاس (بخشش ورکونکى) تر کوزني لاس (بخشش اخستونکي) غوره دى . ( کنز ٦ / ٣٦٣ )

ðكه څوك غواړي شتمن وي؛نو پر هغه دې ډېر ډاډه وي،چې د خداى په لاس كې وي،نه پر هغوچې له نورو سره وي . (الكافي  ۲\ ۱۳۹ )

ðيو بل ته لاس وركړئ؛ځكه دا كار دوستي زياتوي . (مستدرك الوسايل  ۹\ ۵۷)

 

قناعت

ð قناعت نه تمامېدونکې پانګه ده . ( وسائل ١١/ ٢٢٠ )

ðقناعت د برکت لامل دى . ( الجعفريات : ١٢٢)

ðلږه غوښتنه، د قناعت ښکلا ده . (جامع الاخبار: ١٢٢)

ðقناعت ناپايه زېرمه ده .( ارشادالقلوب  ١\١١٨)

ðد خداى پر ورکړې روزۍ قناعت کول،د انسان سترګې يخوي .( مستدرک الوسايل  ١٥\ ٢٢٤)

ðابوذره!هغه غني دى،چې د خداى پر ورکړې روزۍ قناعت يې کړى دى . ( يوت  ١٥\٢٢٧)

 

توکل

ð د چا چې غښتلتيا ښه ايسي؛نو پر خداى دې توکل وکړي . ( بحار ٧١/١٥١ )

ټوکې

ð زه په ټوکو کې يوازې حق وايم (؛يعنې باطلې او ناسمې خبرې به پکې نه وي) (ترمذي)  

ð له (بېځايه) ټوکو ډډه وکړئ؛ځکه د نورو پر وړاندې مو سپکوي . ( وسائل ٨/ ٤٧٨)

  ð حضرت انس روايت کوي : چا له رسول اکرم (ص) سپرلۍ ته اوښ وغوښت . آنحضرت ورته وويل :زه درته يو جونګى درکوم .سړي وويل : جونګى به څه کړم ؟ آنحضرت ورته وويل: اوښ خو له اوښه وي (؛يعنې هر جونګى اوښ وي؛نو هر اوښ،چې درکړ شي ؛نو جونګى به وي .)   ( “ترمذي” – “ابوداوود”)

 

سخي

ð علي! سخي وسه .( مشکاة الانوار: مخ ٤٠٥ )

ðسخي يې خداى او بندګانو ته نږدې وي او بخيل يې له خداى او بندګانو او(همداراز) له جنته لرې او دوزخ ته نږدې وي،بېشکه خداى ته “ناپوهه”سخي تر”عابده” بخيله ډېر ګران دى .(ترمذي)

 

ورین تندی

ð ورين تندى کينه له منځه وړي .( بحار ٧٤/ ١٧٢)

 

ملګري

ð انسان له خپل ملګري  اغېزمنېږي  .( مستدرک: مخ ٦٢)

ð له ناوړه ملګري سره تر ناستې يوازېتوب ښه دى .( مواعظ عدديه :٥٠ مخ)

ð له احمق سره له دوستۍ ډډه وکړئ؛ځکه د ګټې پر ځاى زيان درسوي . ( کنز ١٦/ ٢٦٧)

ðيوازېتوب تر ناوړه ملګري غوره دى .( بحار ٧٧/ ١٧٣)

 ðښه ملګرى د عطار په څېر دى، که له خپلو عطرو څه در نه کړي (؛نو) له بويه خو يې ګټه دررسي . (سنن ابي داوود )

ð له ناوړه ملګري ځان وژغوره،چې ته پرې پېژندل  کېږې . (کنز ٩/ ٤٣)

  

لیده کاته

ð له نورو سره ليده کاته مينه او دوستي ټينګوي . (ميزان  ٧٩٣٩ ح )

ð ورځ ترمنځ ليده کاته کوئ،چې مينه مو زياته شي.( کنز ٩/ ٣٠ )

ðله خپلوانوسره ليده کاته،د قيامت د ورځې حساب اسانوي او د ناوړه مړيني مخه نيسي . ( بحار ٧٤/ ٩٤)

 

پاکوالى

ð پاکوالى  د ايمان نښه ده . ( بحار ٦٢/ ٢٩١)

 

استغفار

ð استغفار ګناهونه له منځه وړي . ( کنز ١/ ٤٧٦)

 

عاجزي

ðعاجزي د لمانځه ښکلا ده .(بحار ٧٧/ ١٣١)

ð څوک چې خداى ته عاجزي او تواضع وکړي (؛نو) خداى يې مرتبې لوړوي . ( کنز ٣/ ٥٠ )

 

نسپالي

ð له نسپالۍ سخت زړي راولاړېږي .( کنز ٣/ ١٨٢)

 

پلور پېر

ð پلورونکى،چې د پښېمان پېرودونکي له معاملې تېر شي ( پلورل شوى مال بېرته واخلي) (؛نو) خداى به يې  د قيامت پر ورځ له ښويېدنې تېرشي . ( کنز ٤/ ٩٠)

د خدای وېره

ð څوک چې له خدايه ډارېږي(؛نو) خداى به يې وېره په ټولو څيزونوکې واچوي . ( ترغيب ٤ /٢٦٧)

 

ښکلا

ð بېشکه چې خداى ښکلى دى او”ښکلا” يې ښه ايسي .(صحيح مسلم ١/ ٦٥)

ðځان ساتنه د بلا ښکلا ده.تواضع د نسب د اصيلولۍ ښکلاه  ده. فصاحت د خبرې ښکلا ده.عدالت د ايمان ښکلا ده. ډاډ د عبادت ښکلا ده.ياد اوساتنه د روايت ښکلا د. ياد د پوهې ښکلا ده. ښه ادب د عقل ښکلا ده. پراخه تندى د زغم ښکلا ده. سرښندنه او ایثار د زهد ښکلا ده. د منت پرېښوول د نېکۍ ښکلا ده او عاجزي د لمانځه ښکلا ده . (بحارالانوار ٧٤\١٣٣ )

ð د يو چا د اسلام ښکلا او کمال په دې کې دى،چې د چټي او بې مانا ويناوو او چارو يې لاس اخستى وي .(“ابن ماجه” او”بيهقي”)

 

زغمناک

ð زغمناک د “دنيا او اخرت” ښاغلى دى . ( کنز ٣/ ١٢٩ )

 

ریا

ðبېشکه چې “الله تعالى” پر ټولو رياکارانوجنت حرام کړى دى . ( کنز ٣ / ٤٧٣) 

ðښه کار په ريا مه کوه اوهېڅ کار د حيا له امله مه پرېږده.(بحار ٦٨ / ١٥٤)

ðريا (د ځانښوونې لپاره د ښه کار ترسره کول ) “وړوکى شر ک” دى . ( مسند احمد )

ðڅوک چې د ځان مشهورولو لپاره کوم کار کوي؛نو خداى يې مشهوروي او څوک چې نورو ته  د ځانښوونې لپاره څه کوي؛نو خداى هغه نورته ښه ښيي . ( بخاري – مسلم )

ðستر عابدان يا قرآن لوستونکي،چې نورو ته د ځانښوونې لپاره ښې کړنې کوي؛نو په دوزخ کې به دغم او خپګان په څاه کې ولوېږي،چې په خپله دوزخ ترې  د ورځې څلور سوه وارې پناه غواړي . (ترمذي)

ðڅوک چې ښې چارې وکړي او خلک يې وستايي؛نو دې مؤمن ته بېړنى زېرى دى . ( مسلم )

ð څوک چې ځانښوونې ته لمونځ کوي،روژه نيسي او صدقه ورکوي ؛ نو شرک دى .( مسند احمد)

ðڅوک چې خپل لمونځ دومره اوږدوي،چې خلک ورته وګوري،چې څومره اوږد لمونځ کوي؛نو “خفي شرک” دى .  (ابن ماجه)

 

ښه بوی

ðښه بوی زړه قوي کوي .( فروع ٦/ ٥١٠ )

 

سوداګر

ðمسلمان رښتينى امانت ساتى سوداګر په قيامت کې له شهيدانوسره دى . ( کنز: ٩٢١٦)

ðد قيامت پر ورځ رښتينى سوداګر د عرش ترسيورې لاندې دى . ( کنز: مخ ٩٢١٨)

ðڅوک چې د مسلمانانو په بازارو کې [روغه او رښتينې] راکړه ورکړه کوي،د خداى په لار کې د مجاهد په څېر دى او زموږ په بازارو کې محتکر د خداۍ له کتابه  د منکر په څېر دى.دسيوطي جامع الصغير٣٢٧ )                  

ðرښتين او امين سوداګر(په قيامت کې) له پېغمبرانو،رښتينو او شهيد انو سره دى .(ترمذي، الدارمي، الدارقطني )

 

چغلګري ( د خبرې وړل راوړل )

ð په تاسې كې هغه ډېر ناوړه دى،چې چغلي كوي،ډنډورې خپروي،دوستان يو له بله بېلوي او په بې ګناهو كې عیبونه او ټكې پيدا كوي .( الكافي ۲\ ۲۶۹)

ðابوذره! چغلګر په اخرت كې ان يوه شېبه هم له الهي عذابه نه خلاصېږي . ( وسايل ۱۲\۳۰۷)

ðله پينځو څيزونو ډډه وكړئ : ( ۱) كينه ( ۲ ) پال نيونه (۳)   ظلم (۴) بدګوماني ( ۵) او چغلي . ( عوالي الاللي ۱\ ۲۸۹ )

 ðهغوى د خداى ډېر غوره بندګان  دي،چې په ليدو يې انسان ته خداى وريادېږي او ډېر ناوړه يې هغوى دي،چې چغلي کوي او دوستان سره بېلوي او په دې لټه کې دي،چې د خداى د بندګانو پاکلمنۍ په يو ډول ګناه ککړې کړي او يا يې په کړاو او پرېشانۍ اخته کړي .  (بيهقي)

ðچغلګر به جنت ته ولاړ نشي. ( الترغيب ٣/ ٤٩٥)

 

اسراف

ðڅوک چې اسراف کوي ،خداى به يې نشتمن کړي . ( الحياة ٤/٢٠ )

 

یووالی

ðله ټولنې سره وسئ؛ځکه لېوه له رمې لرې پسه خوري . (مسنداحمد ٦/ ٤٤٦)

  ðاختلاف مه کوئ؛ځکه ړومبنيو مو اختلاف وکړ؛نو هلاک شول . ( کنز: ٨٩٤ح )

 

راز ساتنه

ðد خپل ورور د راز  رابرسېرول خيانت دى؛نوله دې کاره لاس واخلئ . ( بحار ٦٨/ ١٥٤)

ðد خپلو چارو سر ته رسولو ته له راز والۍ مرسته وغواړئ .( د نهج البلاغې شرح  ۱۱\ ۲۲۱)

ðد نېکۍ څلور خزانې دي : (۱) د اړتيا پټول (۲) په پټه صدقه وركول (۳) د ناروغۍ پټول (۴) او د كړاو پټول . ( الامالي للمفيد : ۸مخ )

ðڅوک چې په دنيا کې پر خپل ورور پرده واچوي (؛نو) خداى به په قيامت کې پرې پرده  واچوي . ( ترغيب وترهيب ٢/  ٢٣٩)

 

حق

ðډېر پرهېزګار هغه دى،چې “حق”ووايي،په ګټه يې وي که په زيان .( امالي صدوق : مخ ٢٧)  

ðحق ووايه او د خداى لپاره د پړې اچوونکيو له پړې مه ډارېږه .(کنز: ٤٣٥٥٥ح)

ðد خداى په لارکې د ګرموونکيو له پړې مه وېرېږئ . ( معاني الاخبار: مخ ٣٣٥)

ðحق ووايه،که څه هم تريخ وي . ( الخصال : مخ ٥٢٦)

ð”حق” دروند او تريخ دى او”باطل” سپک او خوږ . ( مکارم الاخلاق: مخ ٤٦٥)

ðته چې د چا حق په پام کې نيسې؛خو هغه يې نه نيسي؛نو د دوستۍ وړ نه دى .(يعقوبى تاريخ : مخ ٦٦)

 

شهید

ðشهيد تر ټولو ړومبى جنت ته ننوځي . ( ميزان الحکمة: ٢٦٣٥)

ðڅوک چې د خپل مال په ساتنه کې ومري؛نو شهيد دى .(دعائم الاسلام: ١/ ٣٩٨)

ðڅوک چې په اوداسه ويده شي اوپه هماغه شپه ومري؛نو د خداى په نزد شهيد دى . ( بحار ٧٦/ ١٨٣)

امن او روغتیا

ðامن اوروغتیا دوه نعمتونه دي،چې شکر يې نه پرېښوول کېږي . ( الخصال: مخ ٣٤)

 

امین

ðڅوک چې “امين” نه وي ؛نو ايمان نه لري . (بحار ٧٢/ ١٩٨)

 

مجاهدین

ðد خداى د لارې مجاهدين د جنتيانو مشران دي .( بحار ٨ / ١٩٩)

ðڅوک چې له خپل ورور سره مرسته وکړي اوګټه ورورسوي؛نو د خداى د لارې د مجاهدينو هومره ثواب وړي.  ( ثواب الاعمال: مخ ٢٨٨) 

 

غوره وګړي

ð خلکو ته ګټور ډېر غوره دى .( بحار ٧٥/ ٢٣)

ðغوره هغه دى،چې تاسې ښه کار ته راوبلي .( الخيروالبرکة:  ١٣٥مخ)

ðخداى دې پر هغه ولورېږي،چې خپله ژبه وساتي،خپله زمانه او وخت وپېژني او پر سمه لار ګام کېږدي . (  کنز: ٦٨٩٤ح )

ðخداى ته هغه بنده ډېر ګران دى،چې بندګانو ته يې ډېر ګټور وي . ( تحف العقول: ٤٩ ح )

ðڅوک چې خپل پېټى په خپله يوسي؛نوپه حقيقت کې له کبره لرې کېږي . ( مکارم الاخلاق: مخ ١١٠ )

 

لاروی

ðبېشکه هغه مې لاروى دى،چې په ماپسې  ولاړ شي او زما په پله پل کېږدي او زموږ کړه وړه عملي کړي . ( بحار ٦٨ / ١٥٤)  

ډار اچول

ðيو مسلمان هم مه ډاروئ ؛ځکه ډارول يې ستر ظلم دى .(کنز ٤٣٧٠٩ ح)

 

زړښت

ð”بوډازناکار”،”ظالم واکمن” او”نشتمن کبرجن” هغه ډلې دي،چې خداى ورسره خبرې نه کوي او د قيامت پر ورځ پرې رحم نه کوي او دردناک عذاب ورته سترګې پر ﻻر دی . (الکافي ٢\٣١١)

ðڅوک چې د بوډا پر فضيلت ځان پوه کړي او د عمر له امله يې درناوی وکړي،پاک خداى(ج)به هغه د قيامت د ورځې له ډاره خوندي کړي . (ثواب اﻻعمال:١٨٩)

ðد مؤمن بوډا درناوى د الهي ﻻرښوونو درناوى دى. (وسايل ١٢\٩٩)

ðپه يقين،چې خداى(ج)ته تر کنجوس عابد بوډا،په ګناهونو کې ډوب سخي ځوان ډېرګران دي . (جامع اﻻخبار ١١٢)

ðزما ناپوهه،شتمن،ظالم بوډا او نشتمن کبرجن ښه نه ايسي. (مستدرک الوسايل ١٢\٣٢)

ðله بوډاګانوسره مو تل برکت مل وي . ( بحار ٧٥/ ١٣٧)

ðد بوډا د دنيا غوښتنې حس ځوان دى . ( ورام ١/ ٢٧٨)

ð انسا ن بوډا کېږي؛خو له شتمنۍ او د عمر له زياتوالي سره يې حرص ډېرېږي . ( بخاري – مسلم )

ð د بوډا زړه له دنيا سره په مينه او په اوږدو هيلو ځوان وي .( بخاري-مسلم)

ðد بوډا مسلمان درناوى د خداى له درناويو دى .(الکافي  ٥\١٦٥)

 

عزت

له خلکو سره  له شخړې ډډه وکړئ،چې غفلت رابرسېروي او عزت له منځه وړي . (بحارالانوار ٧٢/ ٢١٠)

ð تواضع د عزت لامل ده؛نو تواضع وکړئ،چې خداى مو لوړ پوړي کړي او صدقه د شتمنۍ د زياتوالي لامل ده؛نو صدقه ورکړئ،چې خداى درباندې ولورېږي او بښنه د انسان د عزت لامل ده؛نو له خلکو تېر شئ، چې خداى مو عزتمن کړي . (مستدرک الوسايل ٧/ ١٦٠)

ð د چا چې خداى مل او ملګرى وي؛نو نه ډارېږي او څوک چې خداى عزتمن کړي؛نو نه  خوارېږي .( مشکاه الانوار :١٢٥)

ðډېر عزتمن هغه دى،چې څه ورته ګټور نه وي پرېږدي يې. ( الامالي صدوق : مخ ٧٣)

ðد خلکو عزت وکړئ،چې  عزت مو وکړي .( مشکاة الانوار: مخ ١١٤)

ðڅوک چې عزت غواړي؛نوله ګناه دې ځان لرې ساتي .(بحار ١٧/ ٤٨)

ðد قوم مشر،چې درته راغى؛نو عزت يې وکړئ .( الکافي  ٨\٢١٩)

ð در کړ شوې ډالۍ ومنئ ؛ځکه يوازې “خر” ډالۍ بېرته ستنوي .(په دې روايت کې د کرامت ظاهري مفهوم ډالۍ ورکول برېښي ) . ( وسايل  ١٢\١٠٣)

ðمسلمان چې خپل غمځپلي مسلمان ورورته تسلي او ډاډ ورکړي ؛ نو خداى يې د احترام په جامو پوښي . ( مستدرک الوسايل  ٢\٣٥١)

ðڅوک چې خپل مسلمان ورور په کومه خبره خوشحاله او کړاو يې لرې کړي؛نو تل به د خداى تر پراخه سيورې لاندې وي او تر هغه چې پر دې چار بوخت وي؛د خداى رحمت به پرې وي .(ثواب الاعمال : ١٤٨ )

ðڅوک چې د خوار مسلمان عزت وکړي؛نو د قيامت پر ورځ،چې يې له خداى سره ليده کاته وي؛خداى به ترې خوښ وي .(من لايحضره الفقيه٤\ ١٣ )

ðخداى تعالى وايي :څوک چې زما مؤمن بنده ازاروى؛نو له ماسره جګړه کوي او څوک چې یې عزت وکړي؛نو له غوسې به  مې خوندي وي . (عدة الااعي : ١٦٥مخ )

 

پاسوالي

ðد خداى په لار کې يوه ورځ پاسوالي،تر يوې مياشتې د ويښې شپې تېرونې او روژه نيونې غوره ده. ( عوالي اللآ لي ١/ ٨٧)    

 

ځاني غوښتنې

ðزه خپل امت ته له دوو څيزونو ډېر وېرېږم ؛ځاني غوښتنې او اوږدې هيلې . ( سفينة البحار ٢/٧٢٨)  

ðله ځاني غوښتنو سره مبارزه وکړئ،چې زړونه مو حکمت زده کړي . (ميزان : ٢٧٦٧ح )

ðڅوک چې د  ځاني غوښتنوپه لارکې ډېرې هلې ځلې کوي؛نو له زړه يې د ايمان خواږه اخستل کېږي .( تنبيه الخواطر ٢ / ١١٦)

ðد خپل امت په اړه تر ټولو بلاوو ډېرپه “هوى” [د نفساني غوښتتې [ او “طول  امل” [ د ډېرو هيلو خيال پلونه [ ډارېږم . (بيهقي )

ð د خپل امت په اړه تر ټولو بلاوو ډېر په “هوى”[ځاني غوښتنو] او”طولا مل” [خيال پلوونو]  ډارېږم . (بيهقي)

ð د خپل امت په اړه تر ټولو بلاوو ډېر په “هوى”[ځاني غوښتنو] او”طولا مل” [خيال پلوونو]  ډارېږم . (بيهقي)

ðهغه د خداى د لارې مجاهد دى،چې د الهي اطاعت په لار کې له ځان سره مبارزه وکړي .(اعلام الدين : ٢٦٥مخ )

ðغوره جهاد دادى،چې انسان له خپل دننني نفس سره مبارزې ته راپورته شي .( معاني الاخبار : ١٦٠مخ )

ð نفس دې  ناوړه دښمن دى . (چې خپل نفس دې کابو کړ؛نو ستر دښمن دې کابو کړى) ( بحار ٧٠/٣٦)

 

ناپوهي

ðدا ناپوهي ده، چې خپله پوهه ټوله رابرسېره کړې .( تنبيح الخواطر ٢/ ١٢٢)

نشتمني

ðڅوک چې ځان فقير او نشتمن ښيي ( ؛نو) نشتمنېږي . (تحف : ٤٢ )   

ðد خلکو شتو ته له تمې ډډه وکړئ،چې دا يو ډول نيستي او فقر دى . (بحار ٦٩/ ٤٠٨)

 

ایمان

ðغوره ايمان دا دى،چې پوه شې خداى درسره په هر ځاى کې دى . ( کنز : مخ ٦٦)

 ðايمان د کميس په څېر دى،چې کله يې څوک اغوندي اوکله يې وباسي . (دسيوطي جامع الصغير)

ðد خداى لپاره دوستي او دښمني،ژبه د “الله” په ذکر بوختول،څه چې ځان ته خوښوې،نورو ته يې هم خوښ کړې او څه چې ځان ته نه خوښوې؛نورو ته يې هم خوښ نه کړې؛نو دا د ايمان غوره مرتبې دي . (مسند احمد)

٩٤٥-د زنا،غلا،شرابخورۍ،لوټ،وژنې او خيانت پرمهال په وګړي کې “ايمان” نه وي؛نو ځکه مؤمنانو! له دې ځانګړنو ځان وساتئ .  ( صحيح بخاري- مسلم )

ð د اسلام بنسټ پر پينځو ستنو درول شوى دى :

 (١)پردې حقيقت شاهدي ورکول،چې  بې له “الله”بل خداى او معبود نشته،محمد (ص) يې بنده او استازى يې دى . (٢) لمونځ کول (٣) د زکات ورکول (٤ ) د خداى د کور حج کول (٥  ) د رمضان د مياشتې روژه نيول .( بخاري – مسلم )

ð ايمان څه له پاسه اويا څانګې لري،چې تر ټولو غوره يې د “لا اله – الا الله”ويل او ټيته يې له لارې د خڼدونو لرې کول دي او”حيا” د “ايمان” يوه څانګه ده . ( بخاري  – مسلم )

ðپېغمبراکرم (ص) د ايمان په اړه وپوښتل شو؟ويې ويل : هله مؤمن يې،چې په خپلو ښو کړنو درته خوشحالي اوپه ناوړو درته رنځ او خپګان پيدا شي . ( احمد)

 

ناشکري

ðتر ټولو ګناهونو د نعمت د ناشکرۍ سزا ډېر ژر وي .(وسائل ١١/٥٤١)

ðد نعمت له ناشکرۍ ځان وساتئ،چې ناشکري د بدمرغۍ لامل دى . (تفسيرالامام العسکري : ٤٤٧)

  

ځوان

ðبېشکه د خداى هغه ځوان ښه ايسي،چې ځواني يې د الهي لارښوونو په عملي کولو کې تېره کړ ې وي .( ميزان ٥/ ٩)

 

ناوړه چارې

ðله هغه  چار ډډه وکړه،چې د عذر غوښتو لاملېږي .(الدعوات: مخ ١٠ )

 

د پت دفاع

ðڅوک چې د مؤمن ورور د پت دفاع وکړي؛نودا به يې د دوزخ د اور ډال شي . ( الامالي طوسي: مخ ١١٥)

ðڅوک چې واوري،چې يو تن نارې سورې وهي : مسلمانانو! زما چاره وکړئ؛خو ستونزه يې اواره نه کړي؛نو مسلمان نه دى .( کافي ٢/ ١٦٢)

ðڅوک چې د غيبت او بدوينۍ پر وړاندې د خپل ورور دفاع وکړي؛نو پر خداى يې حق دى،چې له اوره يې ازاد کړي . (بيهقي) 

 

خوار او ذلیل

ðهيڅ مسلمان ته روا نه ده،چې ځان خوار او ذليل کړي .(يعقوبى تاريخ : مخ ٦٧)

نوم بدي

ðله نوم بدو سره ناسته ولاړه د انسان د نوم بدۍ لامل دى .(مستدرک ٢/ ٦٥)

سفر

ðلومړى د سفر ملګرى ومومئ او بيا سفر وكړئ . ( الكافي  ۴\ ۲۸۶)

ðسفر د عذاب يوه برخه ده؛نو په سفر كې،چې مو چارې پاى ته ورسېدې؛نو بايد په بيړه خپلې كورنۍ ته راستانه شئ . (بحار الانوار  ۷۳\ ۲۲۲)

ðسفر وکړئ،که په سفرکې موشته لاس ته رانه وړل؛نو(تجربي)عقل خو به مو زيات شي .( مکارم الاخلاق : مخ ٢٤٠)

ðسفر وکړئ،چې روغتيا ومومئ او روزي ترلاسه کړئ .( بحار ٨١/ ١٧٣)

ðدرې ناوړه خلك دادي 🙁 ۱) چې ځان ته سفر كوي (۲) ډالۍ نه مني ( ۳) او خپل مرىى وهي . ( الامان : ۵۳)

ðدا د سفر د ملګري حق دى،كه ناروغ شو؛نو ملګري دې يې ورته تر درېو ورځو پورې سفر وځنډوي . ( الكافي  ۲\ ۶۷)

ðاواز  او شعر د مسافر توښه ده؛خو چې ناسزا پکې نه وي . ( من لايحضره الفقيه  ۲\۲۸۰)

 

په سفر کى د نورو حق ته پاملرنه

ðانصارو له وريجو ډکه کاسه د خداى رسول ته ډالۍ راوړه، پېغمبر (ص) حضرت سلمان، مقداد او ابوذر  هم راوغوښتل،هغوى ډېر ژر له خوړو لاس واخست او بښنه يې وغوښته،د خداى رسول ورته وويل : ((تاسې خوڅه ونه خوړل؟!په تاسې کې،چې زه پر هر چا ګران يم ؛نو ډېره دې وخوري .))

 

له څارویو سره نېکي

ðد معراج پر شپه جنت ته ولاړم،هلته مې د هغه سپي خاوند وليد،چې خپل سپي ته يې اوبه  ورکړې وې .( بحار ٦٢/ ٦٥)  

ðڅاروي مه مثله کوئ،څوک يې چې  مثله کړي،خداى پرې لعنت وايي . (اصول کافي)

ðزړه سوى وکړئ،ان که د چوغکې د حلالو په باب هم وي (؛نو) خداى به درباندې د قيامت پر ورځ ورحمېږي .(صحيح بخاري)

ðکه څوک يوه چوغکه خوشې او بې ګټې [اخستو] ووژنې(؛نو) د قيامت پر ورځ به همدا چوغکه خداى(ج) ته عرض وکړي : پالونکيه! زه پلاني خوشې ووژلم،زه يې ګټنې ته نه يم وژلې. (صحيح بخاري)

ðمېږي يو پېغمبر وچيچه او په امر يې د مېږيو ځاله وسوځول شوه. خداى ورته وحې ولېږله،چې ته خو يوازې يومېږي وچيچلې؛خو تا يو تسبيح ويونکى امت وسېځه . [بخاري : ٣٠١٩ح]

 

رښتین

ðله تاسې رښتينى به موپه قيامت کې راته ډېر نږدې وي . (بحار ٧٧/ ٦٧)

ðرښتيا پر ځان لازم کړئ او تل رښتين وسئ؛ځکه رښتيا ويل (انسان ته) سمه او ښه لار ورښيي او سمه لار يې جنت ته رسوي او داچې انسان تل رښتيا ووايي او رښتيا ويل يې خوى وي؛نو د “صديقيت” او “رښتينولۍ” مقام ته رسي او د “الله” پر وړاندې د رښتينو په ډله کې شمېرل کېږي . تل له دروغو ځان وساتئ؛ځکه په دروغو روږدېدل، (انسان )بدې لارې ته راکاږي او بده لار دوزخ ته تللې او انسان،چې په دروغو روږد شي او دروغ ويل يې خوى شي؛نو د خداى پر وړاندې په دروغجنو کې ليکل کېږي . ( بخاري – مسلم )

ðتل رښتين وسئ،چې خداى مو د رښتنيو په ډله کې وشمېري او دروغجن مه واست،چې خداى مو په دروغجنو کې ونه ليکي . ( بخاري – مسلم )

ðيوه ورځ رسول اکرم (ص) اودس کاوه او اصحابو،چې د اودس اوبه پر خپلو مخونو او تنو اچولې؛آنحضرت ورته وويل : دا کار ولې کوئ ؟ هغوى ورته وويل : ((د خداى او له استازي سره يې د مينې له امله.)) آنحضرت ورته په ځواب کې وويل : څوک چې په دې خوشحالېږي،چې له “الله” او رسول سره يې حقيقي مينه لري؛نو پرې لازمه ده،چې تل رښتيا ووايي،په ورسپارلي امانت کې خيانت و نه کړي او له ګاونډ يانوسره ښه چلن وکړي .(بيهقي)

ð تل رښتين وسئ،چې خداى مو د رښتيو په ډله کې وشمېري او دروغجن مه  وسئ،چې خداى مو په دروغجنوکې ونه ليکي .( بخاري – مسلم)
ð رښتين او امين سوداګر(په قيامت کې) له پېغمبرانو،رښتينو  او شهيدانوسره دى .  (ترمذي،الدارمي، الدارقطني)

 

دښمن

 ð حضرت جبرائيل په هيڅ څيز كې ماته له خلكوسره په دښمنۍ كې د نه زیاتي هومره سپارښتنه نه ده كړې (له خلكو سره په دښمنۍ كې به زیاتی نه كوئ) . ( الكافي  ۲\ ۳۰۲)

ðزما د دښمن دوست ،زما دښمن ګنل کېږي .( بحار ٧٧/١٧٤)

ðد هر چا خپل عقل ملګرى او ناپوهي يې دښمنه ده.( بحار ٧٧/ ١٧٤)

 

بېځایه رټنه

ðخپل ورور دې هغه ته د ورپېښو ستونزو له امله مه رټه؛ځکه شونې ده،چې خداى پرې ولورېږي او وژغورل شي او ته په خپله پر هماغه کړاو اخته شې .( وسائل ٢/ ٩١٠)

 

خپلمنځي جوړجاړى

ðتر فرضو پر ځاى کولو وروسته د خلکو ترمنځ جوړجاړى غوره چار دى . (سفينة البحار٢/٤٠ )  

ðد خلکو ترمنځ جوړجاړى تر ټولو لمونځونو او روژو غوره دى . (سفينة البحار ٢ /٤٠)

ðپر مصلح دروغ نشته . (اصول کافي: ٤ ټ ،باب اکذب ،٢٤  حديث)

ðڅوک چې د دوو تنو ترمنځ جوړجاړى کوي؛نوکه ښه خبره وکړي يا د ښو نسبت وکړي (که څه هم واقعيت ونه لري؛نو) دروغحن نه دى. (عشريه : ١٨ مخ .)

 

روغتيايي احاديث

ðهوږه وخورئ،چې درملنه مو وشي؛ځکه د اويا دردونو شفا ده . (سفينة البحار ١ / ١٣٩ )

ðانګوردانه دانه وخورئ،چې دا خوندور خوراک دى . (سفينة البحار ١/ ٥٣٥ )

ðپه سباناري کې کجورې وخورئ،چې د ګېډې چينجي وژني.(صحيفة الرضا : ٤٩ او٥٨ احاديث)

ð کدو ډېر پخوئ؛ځکه خپه زړه خوشحالوي .(عيون اخبارالرضا:٣٠باب)

ðانار وخورئ؛ځکه هره دانه يې په معده کې زړه خوشحالوي او شيطان تر څلوېښتو ورځو پورې لرې کوي .( اخبار الرضا: ٣٠ باب )

ðوڅکې(مميز) وخورئ ؛ځکه :

١) صفرا لرې کوي ٢ ) بلغم له  منځه وړي . ٣ ) رګونه ټينګوي . ٤ ) ذهني کمزوري له منځه وړي . ٥ ) خوى ښه کوي . ٦ ) خوله پاکوي . ٧ ) اوغم له  منځه وړي . (روضة الواعظين : ٣١٠مخ )

ð ناروغ ته پرنجى د روغتيا او د بدن د راحت نښه ده.( الکافي ٢/ ٦٥٦)

ðفراغت او روغتيا دوه نعمتونه دي،چې ډېرى خلك پرې ازميېل کېږي . ( بحارالانوار  ۷۸\۱۷۰)

ðتر څلورو څيزنو مخكې له څلورو څيزو مه غافلېږه : ( ۱) ځواني دې تر زړښت مخكې ( ۲) روغتيا دې تر ناروغۍ مخكې (۳) شتمني دې تر نشتمنۍ مخكې ( ۴) او ژوند دې ترمړينې مخكې. ( الخصال  ۱\۲۳۸)

ðامنيت او روغتيا هغه نعمتونه دي،چې  شكر يې(معمولا) نه اېستل كېږي . ( بحارالانوار  ۷۸ \ ۱۷۰)

 

مسواک

ðخولې مو د قرآن لارې دي ؛نوپه مسواک يې پاکې کړئ . (محجة : ١/٢٩٦ )

ð مسواک وکاروئ !مسواک وکاروئ . ( کنز: ٢٦١٧٠ ح )

ðپه مسواک کارولو خوله پاکېږي او خداى خوشحالېږي .(کنز:٢٦١٥٦ح)

ðد خپلوغاښونو منځونه پاک کړئ . ( بحار ٦٢/ ٢٩١)

ð د مسواک وهلو ( ١٢ ) ځانګړنې دي :

١ ) خوله پاکوي .٢) خداى خوشحالېږي .٣ ) غاښونه سپينوي .٤ ) خيرى له منځه وړي . ٥ ) بلغم کموي . ٦ ) خوراک ته اشتها پيداکوي . ٧ ) نېکي ډېروي . ٨ ) له سنتو سره اړخ لګوي . ٩ ) پرښتي پرې شاهدې وي . ١٠ ) ورۍ ټينګوي . ١١ ) د قرآن  د لوستو لار وينځي . ١٢ ) دوه رکعته لمونځ،چې مسواک ورته وهل شوى وي تر هغو اويا رکعتو لمانځه غوره دى،چې مسواک ورته نه وي وهل شوى .(خصال: باب الواحد الى اثنى اعشر ٦ مخ )

ð ( قرآن چې لولئ؛نو)خولې مو د قرآن لارې دي؛نو په مسواک کارولو يې خوږ بويه کړئ (او پوه شئ،چې) خداى ته تر مسواک وهلو وروسته دوه رکعته لمونځ تر اويا رکعتو بې مسواکه لمانځه غوره دى (همداراز)مسواک غاښونه سپينوي او د خرابۍ مخه يې نيسي او ورۍ ټينګوي،د خولې لاړې کموي،خوړو ته اشتها زياتوي،د عبادت بدله زياتوي،په سنتو عمل کول دي او له پرښتو سره ملګرتوب دى او(پردې سربېره)د پالونکي د خوشحالۍ لامل ګرځي . ( الدعوات : ١٦٠)

ðڅلور څيزونه د الهي استازيو له سنتو دي : ( ١) عطر ( ٢) له خپلې مېرمن سره مينه ( ٣) مسواک ( ٤) نکريزې ( اخصال : ١\٢٤٢)

ðکه پر امت مې نه سختېداى؛نوامر مې کاوه،چې په هر لمانځه کې مسواک وکاروي . ( الکافي : ٣\٢٢)

ðخوله مو په خلالولو پاکه کړئ . (الوسايل  ١٦\٣١٧)

 

سلام  اچول

ðلومړى سلام واچوئ او بيا خبرې وکړئ؛خو چا چې تر سلام اچولو مخکې خبرې پيل کړې؛نو ځواب يې مه ورکوئ . (اصول کافي/٤ټوک باب تسليم ١ او٢ حديثونه )

ðسلام د خداى تعالى يو نوم دى او پخپلو کې يې دود کړئ . مسلمان،چې پر يو قوم تېرېږي او سلام پرې واچوي؛نوکه د سلام ځواب يې ورنه کړي؛نو تر هغه  ډېر غوره او سپېڅلى به يې ځواب ورکړي . (روضة  الواعظين : ٤٥٩ مخ )

ð ډېر بخيل هغه دى،چې په سلام اچولوکې بخل کوي . (روضة الواعظين : ٤٥٩ مخ )

ðسلام اچول او نېکې خبرې د بښنې له لاملونو څخه دي . (جامع الا خبار:١٠٤ مخ )

 ð يو له بل سره په سلام او روغبړ ملاقات وکړئ اوپه دعا بېل شئ .( طرايف الحکم: لومړى /٢١٧)
ðهغوى خداى او استازي(ص) ته يې  ډېره نږدې دي،چې خپلې خبرې په سلام ويلو پيلوي .( اصول کافي/ ٤ټوک، باب التسليم،٣ حديث ) .

ðړومبى سلام اچوونکى له کبره لرې دى .(ميزان الحکمه: ٨٨٤٨ح )

ðڅوک چې تر نورو ړومبى سلام پيل کړي؛نوله کبره به خلاص وي . (بيهقي)

ð مؤمن خپلې خبرې په سلام پېلوي . ( ميزان: ١٤٣٨ )

ðخداى او استازي ته يې هغه ډېر وړ دی،چې لومړى سلام واچوي . ( الكافي ۲\ ۶۴۴)

ðلومړى سلام بيا كلام؛نو چاچې تر سلام مخكې خبرې پيل كړې؛نو ځواب يې مه وركوئ . ( وسايل الشيعة  ۱۲\۵۶)

ðهغه ډېر بېوسې دى،چې دعا نه كوي او هغه ډېر كنجوس دى،چې سلام نه اچوي . ( الا مالى للطوسي : ۸۸)

ðوړ ده،چې سپور  پر (پلي) سلام واچوي .(مستدرك الوسايل ۸\ ۳۷۲)

ðڅوك چې له غونډې پاڅېد؛نو نور دې په سلام ورسره خداى پاماني وكړي . ( الجعفريات : ۲۲۹ )

ðپه دنيا كې زړه سوى وكړئ،كه څه هم په يو سلام اچولو وي . (جامع الاخبار : ۸۸مخ )

ðسلام اچول مستحب او ځواب يې فرض دى . ( الكافي ۲\ ۶۴۴)

ðسلام د پاک خداى له نومونو دى؛نو پخپلو كې يې ښكاره كړئ . ( په لوړغږ سلام اچوئ )  . ( روضة الوا عظين ۲\۴۵۹)

ðپه جنت كې داسې ځايونه دي،چې ظاهر يې له باطنه او باطن يې له ظاهره ليدل كېږي او زما هغه امتيان به پکې اوسېږي،چې ښه خبرې كوي،وږي مړوي،په لوړ غږ سلام اچوي او د شپې،چې خلك ويده وي؛نو لمونځ كوي بيا يې وويل : كله هم پر مسلمانانو له سلام اچولو ډډه مه كوئ . ( الواغظين  ۲\ ۳۷۱)

 

د ګاونډي حق

ðهغه به زما پر”نبوت” ايمان نه وي راوړى،چې په مړه خېټه شپه تېره کړي او ګاونډى يې وږى وي . (اصول کافي٤ټوک،باب الحوار،١٤ حديث)

ð د ګاونډيانو په باب سپارښتنه درته کوم . ( کنز ٩/٤٩ )

ðپر خداى قسم!مؤمن نه دى (درې ځل يې وويل)،چې ګاونډى ځوروي. ( صحيح بخاري)

ðمؤمن نه دى،چې په مړه خېټه وېده شي او ترڅنګ  ګاونډى يې وږى وي .(بيهقي)

ðتر  کور اخستو لومړى يې ګاونډ وګوره بيا کور او تر سفر مخکې د خپل سفر ملګرى پيدا کړه . ( سنن ابي داود ٢/ ١٤٧ )

ð څوک چې پر خداى او قيامت ايمان لري ؛نو د خپل ګاونډي عزت دې کوي .( مسند احمد ٤/ ٣١)

ðد ګاونډي ځوروونکى به جنت ته نه ننوځي .( اثنى عشريه : ١٥ مخ )

 ðجبرئيل تل ماته دګاونډي په باب سپارښتنه کوله(ان تردې)،چې ګومان مې وکړ،دوى به په خپلو کې له يو بله ميراث يوسي. ( صدوق:مجلس ٦٦ ،لومړى حديث .)

ðدګاونډي درناوى؛لکه د مور درناوى دى .(کافي :٤ټوک،باب حق الجوار ،٢حديث .)

ðګاونډيان  درې ډوله دي :ځېنې درې حقه لري؛(١) داسلام  حق  (٢) دګاونډيتوب حق (٣) دخپلوۍ حق .ځينې يې دوه حقه لري ؛(١) اسلام  (٢) دګاونډيتوب حق.ځينې يې يوحق لري او هغه کافر دى،چې (يوازې) د ګاونډيتوب حق لري . (روِضة  الواعظين :٣٨٩ مخ )

ðڅوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځ ايمان لري؛نو د خپل ګاونډي عزت دې وکړي .(ا ثنى عشريه: ١١ مخ )

ðله څلورو خواوو تر څلوېښتوکورونو پورې ګاونډيان شمېرل کېږي . (اصول کافي: ٤ټوک،باب حدالجوار،لومړى حديث )

 

اولاد

 ðخپلو کوچنيانو ته د “لااله الاالله” کلمه ورزده کړئ او د مړينې پر وخت يې هم ورتلقين اوپه خوله کې ورکړئ . (بيهقي)

 ð د خپلو اولادونو درناوى وکړئ او ښه په ادب يې وروزئ .(ابن ماجه)

ðپر خپلو اولادونو مو د پېغمبرانو نومونه کېږدئ؛”عبدالله” او”عبدالرحمن” ډېر غوره نومونه دي .

ðله اولادونوسره مو په عدالت چلن وکړئ؛که دا موښه ايسي،چې هغوى درسره په نېکۍ او لطف چلن وکړي .( سفينة  البحار:٢ / ٦٨٤ )

ð صالح اولاد خو د خداى له لوري يو ګل دى،چې په خپلو بندګانو کې يې ويشي . ( الکافي ٦ / ٢ )

ð د صالح اولاد درلودل د سړي په نېکمرغيو کې ګڼل کېږي.(الکافي٦/ ٣)

ð مهربانې لوڼې غوره اولاد دى،چې تل د مور و پلار په چوپړ کې وي، مينه ناکې،برکتي او پاکې وي . ( الکافي ٦/ ٥)

ð غوره اولاد مو لوڼې دي . (مکارم الاخلاق: ٢١٩)

 ð پر دې امت د “علي” حق؛ لکه پر اولاد د پلار حق دى . (تاريخ مدينه دمشق ٤٢/ ٣٠٨ – ميزان لاعتدال ٣/ ٣١٦ )

ð اولادونو ته مو لامبو او غشى ويشتنه زده کړئ .( الکافي ٦/ ٤٧ )

ð پر پلار د اولاد حق دا دى : که زوى و؛نو له مور سره دې په ورين تندي چلن کول او درناوى دې يې کوي،ښه نوم دې پرې کېږدي،قرآن دې ور وښيي، پاک دې کړي او لامبو دې ورزده کړي او که نجلۍ وه؛ نو له مور سره دې په ورين تندى چلن کوي او درناوى دې يې کوي . ښه نوم دې پرې کېږدي،د “نور سورت” دې ورياد کړي او د “يوسف” سورت دې نه ورښيي او (په عمومې ځايونو کې) دې يې د خلکو کتو ته نه راښکاره کوي او ژر دې ورته مېړه وکړي او که نوم يې ورباندې “فاطمه” ايښې وه؛نو کنځلې دې ورته نه کوي،لعنت دې پرې نه وايي او نه دې يې وهي . ( الکافي ٦/ ٤٨ )

 

 اخر وخت او قیامت

ðزما دې پر هغه ذات قسم وي،چې زما  ساه يې  په لاس کې ده؛قيامت تر هغه نه راځي،څو خپل مشر ووژنئ او په خپلو کې په جګړه  شئ او دنيا مو ډېرو ناوړو ته مېراث شي . (سنن ابي داود)

ðيو په بل پسې د اسلام لارښوونې څنډې ته کېږي او مشران بې لارې کوونکي کېږي او ورپسې درې دجاله راښکاره کېږي.(د حاکم مستدرک)

ðکه چارې نا اهلوته وسپارل شي (؛نو) قيامت ته سترګې پر لار وسئ . ( صحيح بخاري )

ðتر هغه چې  پر ځمکه د”الله”نوم يادېږي (؛نو) قيامت نه راځي. (صحيح مسلم )

ðپر تاسې به داسې وخت راشي،چې نه به له چا سره حلالې پيسې وي او نه به ديني ورور وي،چې څو شېبې کېنې او مينه ورسره وکړي او نه به کوم (نبوي) سنت عملي کېږي . (سيوطي:جامع الصغير)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،چې که څوک پر خپل دين ټينګ ولاړ وي؛ نو لکه  د اورسکروټه يې،چې په لاس کې نيولې وي . (سنن ترمذي)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،چې څوک به د”بېوسۍ” او”بدکارۍ” ترمنځ اختيارمن وي؛نو پر داسې مهال  بايد”بېوسي” پر “بدکارۍ” غوره وګڼې .  ( سيوطي : جامع الصغير)

ðتر ما وروسته به داسې مشران وي،چې واکمنۍ ته به جنګېږي او يو بل به وژني . (دسيوطي  جامع الصغير)

ðداسې وخت به راشي،چې رښتين به دروغجن او دروغجن به رښتين،امين به خائن اوخائن به امين ګڼل کېږي .ژر به فتنې راپېښې شي،چې “ناست”وګړي به پکې تر “ولاړ”  غوره وي  او “ولاړ” به تر “روان” غوره وي او تلونکي به تر ځغاستونکي غوره وي [څوک چې په فتنوکې ډېره لږه برخه لري،ورته غوره ده ] او څوک چې په فتنو پسې ولاړ شي؛نو هلاک به يې کړي؛نوځکه چا چې پټنځى وموند؛پکې دې پټ شي. [ بخاري : ٧٠٨١ ح]

ðپرخلکو به داسې وخت راشي،چې ورته به بې توپېره وي،چې مال يې له کومه لاس ته راوړى،حلال دى  که حرام ؟قيامت ته نږدې دا ډېر لږ پېښېږي،چې د مؤمن خوب سم ونه خېژي؛ځکه د مؤمن خوب د نبوت له ( ٤٦) برخو يوه برخه دى او څه چې د نبوت په باب وي،بېخي پکې دروغ نه وي . [بخاري : ٧٠٧١ ح]

 

د جمعې د ورځې خطبه

ðڅوک چې د جمعې پر ورځ د امام په خطبه کې خبرې کوي،د هغه خره په شان دى،چې څوکتابونه پرې بار وي . (دامام احمدحنبل مسند)

 

شمع

ðڅوک چې نورو ته د ښېګڼو ښوونه کوي او خپل ځان هېروي،د شمعې په څېر دى،چې ځان سوځوي او نور رڼا کوي .(دسيوطي جامع الصغير)

 

اذان

ðاذان،چې اورئ[؛نو په خپل زړه کې يې] داسې يې ووياست؛لکه چې مؤذن يې وايي . ( صحيح بخاري )

ðد اذان او اقامت ترمنځ دعا نه ردېږي . (سنن ابي داود)

ð [د لمانځه په جماعت کې دې]ستاسې تر ټولو ښه قاري امامت وکړي او ډېر ښه مو يې اذان ووايي .(من لايحضره الفقيه )

ðاذان مو،چې تر غوږ شو؛نو د مؤذن په څېر يې ووايئ. (بخاري : ٦١١ح )

 

بډې

ðخداى لعنت کړي:بډې ورکونکى او بډيخور او منځګړى يې. ( مستدرک الوسايل  ١٧\ ٣٥٥)

 

وصیت

 ðشتمن مسلمان دې د خپلې شتمنۍ په باب وصيت وکړي او روا نه ده، چې دوه شپې پرې تېرې شي او وصيت يې نه وي ليکلى . [بخاري :٢٧٣٨ح ]

انګېرنې

ðانګېرنې په درېو څيزونو کې دي:اس،ښځه او کور.(بخاري : ٢٨٥٨ح)

 

لارښود

ðتر هغه د لارښود د خبرو اورېدل او د لارښوونو منل لازمي دي، چې پر ګناه يې امر نه وي کړې؛نوکه امر يې  وکړ(؛نو) نه ښايي خبرې يې واورېدل شي او لارښوونې يې ومنل شي. ( بخاري : ٢٩٥٥ح)

 

جهاد

ðيوسړى پېغمبر اکرم ته راغى او جهاد ته د تلواجازه يې وغوښته. آنحضرت ( ص) ورته وويل : موروپلار دې ژوندي دي ؟ ويې ويل : هو! رسول الله ورته وويل : ستا جهاد د هغوى خدمت کول دي .  [ بخاري : ٣٠٠٥ح]

ðخلکو! “جهاد” د جنت له ورونو يو “ور”دى،چې خداى تعالى يې خپلو ځانګړو بندګانو ته پرانځي . (عوالي الاللي :٢\٩٨)

ðجهاد وکړئ،چې اولادونو ته مو سر لوړي پرېښې وي.(الکافي : ٥\٨)

ðډېر کنجوس هغه دى،چې په سلام اچولو کې کنجوسي کوي او ډېر بښاند هغه دى،چې خپل ځان او شتمني د خداى په لارکې وبښي. (الجعفريات : ٧٦مخ )

ðامت ته مې دپينځو څيزونوسپارښتنه کوم : (١) اورېدل .( ٢) اطاعت کول . (٣) مهاجرت کول .( ٤) جهاد . ( ٥) او ډله ييزکارونه کول . څوک چې بل د جاهليت د زمانې دود ته راوبلي؛نو خداى د جهنم په يوه قبرکې يې ننباسي . ( مستدرک الوسايل  ١١\٩)

 

قریش

ðحضرت “انس” (رض) وايي : نبي اکرم (ص) وويل :زه د قريشو د زړونو د لاس ته راوړنې لپاره ورکړه کوم؛ځکه چې جاهليت ته نږدې دي . ( بخاري: ٣١٤٦ ح)

واکمني

ðتاسې واکمنۍ ته د رسېدولپاره هڅه کوئ؛خو د قيامت پر ورځ به پښېمانه شئ . واکمني شيدوره ده(زيات خوندونه لري)؛خو پرېکون (مړينه) يې خورا ناوړه د‌ى .

  [ بخاري : ٧١٤٨ح]

 (الف) نو خداى چې کوم بنده ته د اولس مسؤوليت ورترغاړې کړي؛خو په نصيحت او خيرغوښتنې کې يې لنډون  او تقصير وکړي؛نو جنت به بوى نه کړي .

(ب) واکمن ته،چې د مسلمانانو د ټولي مسؤوليت ورترغاړې شي او د خيانت په حال کې ومري؛نو خداى پرې جنت حراموي . [بخاري : ٧١٥٠او٧١٥١احاديث ]

ðحضرت “جابربن سمرة” (رض ) وايي: پېغمبراکرم (ص) وويل : دولس تنه به اميران شي بيا يې څه وويل؛خو ما وا نه ورېدل پلار مې وايي : رسول اکرم (ص) وويل : هغو‌ى ټول به له قريشو وي .[بخاري : ٧٢٢٢- ٧٢٢٣ احاديث ]

 ðکه څوک واکمن په داسې څيز خوښوي،چې خداى پرې خپه  کېږي؛نو د خداى له دينه وتلى دى .

 

کرنه

 ðڅوک چې څه وکري او مرغان يې (هم) ترې وخوري؛نو صدقه ورته حسابېږي .(٢٩٩٧ح – نهج الفصاحة )

 ð شنو ته ليدل ، د سترګو کاته زياتوي .(٣١٥٨ح – نهج الفصاحة )

 ð شنو،روانو اوبو او ښکلي مخ ته کتل سترګې روښانوي . ( ١٢٩١ح – نهج الفصاحة  )

ð مسلمان،چې ونه کېنوي يا تخم وکري اوکوم انسان، الوتونکى يا څاروى يې څه ( مېوه) وخوري؛نو صدقه ورته حسابېږي .( بخاري : ٣٢٢٠ حديث ح – نهج الفصاحة )  

ðڅوک چې کومه ونه کېنوي ؛نوخداى ورته د ونې د مېوې هومره بدله ليکي .(٢٦٧٤ ح – نهج الفصاحة)

ðڅوک چې ونه وکري؛نو هر ځل چې ترې انسان يا د خداى مخلوق څه وخوري؛نو صدقه ورته حسابېږي .(٢٩٢١حديث – نهج الفصاحة )

ðپسرلى مو چې وليد(؛نو)قيامت ډېر ډېر رايادوئ.(جهان بيني اسلامي،استاد مطهري)

ðمؤمن چې ونه يا څه وکري،چې انسان،مارغان يا څاروي يې ترې وخوري ؛نو ورته صدقه ده . ( مستدرک الوسايل  ١٣\٤٦٠)

 

د کهف سورت

ðڅوک چې د جمعې پر ورځ د”کهف سورت” ولولي (؛نو) دوو جمعو ترمنځ ورته (په زړه کې ځانګړې) رڼا پيدا کېږي . (بيهقي)

 

لوڼې

ð د چاچې لور وزېږي او په قدر يې وپوهېږي او و يې نه ځوروي او د مينې او چلن تر مخې يې له زامنوټيټه ونه ګڼي؛نو خداى به ورته په بدل کې جنت په برخه کړي .  ( احمد- دحاکم مستدرک )

 ðد چاچې درې لوڼې يا درې خويندې يا دوې خويندې يا دوه لوڼې وي او ښه يې وروزي اوښه چلن ورسره وکړي او واده يې هم کړي ؛نو جنت ورپه برخه دى .( ابوداود- “ترمذي” ) 

 ðپه ډاليو ورکولو کې مو له اولادونوسره يوشان چلن وکړئ او که په دې باب مې څوک غوره ګاڼه؛نو هغه به ښځې وې (؛يعنې که مساوات او يوشانوالى لازم نه و؛نو امر مې کاوه،چې تر زامنو،لوڼو ته زيات ورکړئ) ( د سعيدبن منصورسنن – “طبراني” الکبير)

 

د اسلامي ټولنې د وګړيوخپلمنځي اړيکې

 ðد اسلامي ټولنې وګړي د يوې تنې د غړيو په څېر دي،که سترګه يې درد وکړي؛ټول بدن يې دردېږي اوکه سر درد شي؛نو ټول بدن ورسره دردېږي .( مسلم )

ð مسلمان پر مسلمان پينځه حقونه لري : ١- د سلام ځوابول  ٢- د ناروغۍ  پوښتل . ٣- په جنازه کې يې ګډون کول ٤- بلنه منل .٥- د”پرنجي” پر مهال يې “يرحمک الله” ويل . ( بخاري – مسلم )

 

عیال

ðمخلوق  د الله تعالى “عيال” دى؛نو هغه خداى ته ډېرغوره دى،چې له عيال سره ښه چلن کوي . (بيهقي)

ð ټول مخلوقات د خداى عيال دى؛نو د خداى په بندګانوکې تر ټولو هغه غوره دى،چې له عيال سره يې ډېره مينه لري .(بيهقي)

 

د غونډې آداب

ð د دوو ترمنځ بې له اجازې يې مه کېنه.( د ابوداود سنن )

ðڅوک چې له غونډې ووت او راستون شو؛نو له نورو سره پر خپل ځاى د کېناستو وړ دى . (مسلم)

ðڅوک چې په دې خوشحالېږي،چې خلک يې درناوي ته راپورته شي؛ نو ځان ته دې په دوزخ کې ځاى جوړ کړي .( “ترمذي” – “ابوداود”)

ðلکه عجم،چې درناوي ته يو بل ته راپاڅي؛نو دغسې زما درناوي ته مه راپاڅئ . ( ابوداوود)

 

 

شعر

ð ځينې ويناوې کوډې،ځينې پوهې ناپوهۍ او ځينې شعرونه حکمت دي . ( مستدرک الوسايل ٦/ ١٠٠)

 ð شعر په خپله يو ډول خبرې اوکلام دى،ښه يې ښه او بد يې بد دی . (الدارقطني )

ð (د منځپانګې له پلوه) ځينې  شعرونه حکمت دي . (بخاري)

ð رسول اکرم (ص) وويل :”لبيد بن ربيعه” ښه رښتينى شعر ويلى ((الاکل شى ماخلاالله باطل)؛پوه شئ،چې بې له”الله هر څه فنا کېدونکي دي .  ( بخاري – مسلم )

ð”عمرو بن شرير”له خپل پلار “شريربن سويد ثقفي” روايت کوي،چې په يوه سفرکې په رسول اکرم (ص)  پسې پر سپرلۍ سپور وم، آنحضرت راته وويل : د “اميه بن صلت” شعرونه دې ياد دي؟ ورته مې وويل : هو! راته يې وويل : و يې وايه . ما ورته يو بيت ووايه . بيا يې راته وويل:و يې وايه، ما يو بيت ووايه . بيا يې وويل : و يې وايه . بيا مې ورته تر سلو بيتو پورې وويل . ( مسلم )

ðاو په يو روايت کې راغلي،چې آنحضرت وويل:”اميه” د اشعارو له پلوه اسلام ته ډېر نږدې شوى و اوپه بل روايت کې (فتح الباري ١٥/٤٣٠ ) يې وويل : (( امن شعره وکفرقلبه ) شاعري يې مسلمانه؛خو زړه  يې کافر پاتې شوى دى .

 

پرنجى او پړمخکۍ

ðپړمخکۍ،چې درشي؛نو پر خوله لاس کېږدئ؛ځکه شيطان پکې ننوځي . ( مسلم)

 

ځان سینګارول

ð د خداى دا ښه ايسي،چې پر بنده يې د لورنې اغېزې څرګندې وي . (“ترمذي” )

ð ښه وخورئ،وڅښئ او نورو ته هم صدقه ورکړئ او ښه واغوندئ؛خو چې “اسراف” کبر او د ځانښوونې نيت پکې نه وي . (نسائي – ابن ماجه)

ð وېښتان مو سم کړئ او پاکې جامې واغوندئ . ( احمد- نسائي )

ð ساده ژوند کول د ايمان يوه څانګه ده .(ابوداوود)  

ðد فطري دين څلورځانګړنې دي :  ١- سنتول .٢- تر نامه لاندې د وېښتانوخريېل . ٣- د برېتولنډول . ٤- د نوکانو پرې کول . ٥- تخرګونو وېښته خريېل .  

ð هرڅوک دې د خپلو وېښتانوعزت وکړي .(؛يعنې خپل وېښتان ښه وساتئ.) (ابوداوود )

ð له حضرت عبدالله بن عمروعاص(رض) روايت دى،چې رسول اکرم (ص) به خپله ږيره په اوږدو او لنډو جوړوله . (ترمذي)

 

نامحرمو ته کتل

ð رسول اکرم (ص) علي ته وويل : علي ! که ناڅاپه دې پر نامحرمې نظر ولوېد؛نوڅه باک نه لري؛خو دويم ځل کتل درته روا نه دي . ( احمد- “ترمذي” – ابوداوود)

 

د ايمان نښې

ð خداى چې تر ما مخکې په کوم امت کې پېغمبر معبوث کړى؛ نو يو شمېر وړ مرستندويان او اصحاب يې درلودل ،چې پر دود به يې تلل او لارښوونې به يې عملي کولې بيا داسې شول،چې ناوړه يې ځايناستي کېدل ؛داسې چې څه يې ويل،عمل يې پرې نه کاوه او داسې چارې يې کولې،چې دنده يې نه وه؛نوڅوک چې په خپل مټ ور پسې راپاڅي او جهاد وکړي؛نو مؤمن دى او څوک چې يوازې پر ژبه يې مقابله وکړي؛نو هم مؤمن دى او څوک چې (له ژبني جهاده هم بېوسې و) او يوازې په زړه يې ورسره جهاد وکړ(؛يعنې د زړه له کومې يې ورسره کرکه لرله)هم مؤمن دى؛خوکه دغسې (درې) ځانګړنې يې نه لرلې ؛نو د ږدن د دانې هومره”ايمان”پکې نشته. (مسلم)

ðد بنده ايمان هله سمېږي،چې زړه يې سم شي او زړه پر ژبه سمېږي ؛ نو له خداى سره داسې ليده کاته وکړئ،چې د مسلمانانو شتمنیو ته مو لاس نه  وي غځولى او پر ژبه مو نه وي بې پته کړي .(بحارالانوار ٦٨\ ٢٩٢)

 

وفا

ð دين نصيحت (اخلاص،زړه سوى او وفا) دى . و موپوښتل: له چا سره زړه سوى او وفا؟راته يې وويل : له الله تعالى،له استازي (ص) سره يې، د مسلمانانو له مشرانو او تر ټولو مسلمانو پرګنوسره .  (مسلم )

 

الهي تقدير

ð رقيه او تعويذ،دارو،درمل او هغه چارې،چې ستونزې او کړاوونه پرې لرې کېږي؛دا ټول په الهي تقديرکې شمېرل کېږي. (احمد،”ترمذي”،ابن ماجه)

 

اړتیا پټه ساتل

 ð د خداى بېوزلى او ګڼ اولادى  بنده خوښېږي؛خو چې عفت ولري (؛يعنې بېوزلي يې دې ته نه اړباسي،چې له نامشروع لارو څه لاس ته راوړي؛دغسې نورو ته هم خپله بېوزلي نه څرګندوي). (ابن ماجه)

ð څوک چې وږى وي يا څه ته اړتيا لري؛خو څوک يې پر ځان خبر نه کړل ؛ نو د يو کال د حلال رزق ورکړه يې د خداى په ذمه ده . (بيهقي)

 

ساتېري

ð له ارام پالنې او ساتېرۍ ځان وژغوره؛ځکه د خداى ځانګړي بندګان دغسې نه دي . (احمد)

  

متقي شتمن

ð د خداى متقي،شتمن او نامشهور بنده خوښېږي .(؛يعنې له شتمنۍ او تقوا سره سره يې ځان مشهورکړى نه دى .)

ð په نړۍ کى د خداى له احکامو لاروي وکړه (متقى وسه) او په هرې بدۍ پسې نېکي وکړه،چې ورباندې ووينځل شي او د خداى له بندګانوسره ښه چلن  وکړه. (“احمد”– “ترمذي” – “الدارمي”)

 

نفقه

ð د يتيم (پلارمړي) پر سر لاس راکاږه او بېوزليو ته خواړه ورکړه. (احمد)  

ðنورو ته نفقه ورکړئ،چې خداى يې تاسې ته درکړي .( بخاري– مسلم)

 

سخي او بخیل

ðسخي،خداى او بندګانو ته يې نږدې وي او بخيل له خداى او بندګانو يې او(همداراز) له جنته لرې او دوزخ ته نږدې وي،بېشکه خداى ته “ناپوهه سخي” تر “عابد بخيله” ډېرګران دى . (ترمذي)

ð د بنده په زړه کې کله هم حرص،بخل اوايمان نه يو ځاى کېږي . (نسايي)

 ðچلي،بخيل او منت اېښوونکى جنت ته نه ځي . (ترمذي)

 

سخاوت

ðعلي! سخي وسه،چې سخيان د خداى ښه ايسي.كه څوك درته د كومې اړتېا لرې كولو ته راغى؛نو اړتيا يې لرې كړه؛نو که څه هم هغه د بخشش وړ نه و؛خو ته د بخشش وركولو وړ يې .( مشكاة الانوار : ۲۳۳)

ðسخي انسان خداى،خلكو او جنت ته نږدې او له اوره لرې وي اوكنجوس له خداى،خلكو او جنته لرې  او اور ته نږدې وي.( مستدرك الوسايل : ۷ \۱۳)

ð سخي هغه دى،چې خپله شتمني د خداى لپاره وبښي او څوك چې د خداى د احكامو د مخالفت په لار كې بخشش وركړي؛ نو د خداى غوسه اوغصب به يې پر اوږو كړی وي او پر ځان به ډېر كنجوس وي .( بحار الانوار: ۶۸\۳۵۵)

ðد سخي خواړه شفا دي او د كنجوس د ناروغۍ لامل دي. ( بحارالانوار  ۶۸\۳۵۷)

ðسخاوت يوه ونه ده،چې بېخ يې په جنت كې او څانګې يې تر دنيا راغلي دي؛نو څوك يې چې كومه څانګه ونيسي؛نو د جنت لوري ته يې راكاږي . ( وسايل  ۹\۱۹ )

ðد “اولياء الله” فطرت (او خټه) له سخاوت او ښه خوى سره اغږل شوې ده . ( مستدرك الوسايل ۷\۱۳)

ðمنت ايښوول د سخاوت آفت دى . ( الحضال  ۲\ ۴۱۶)

ð ډېرسخي هغه دى،چې د خپلې شتمنۍ زكات وركړي او ډېر بخيل هغه دى،چې د فرض زكات له وركړې ډډه  وكړي .(مشكاة الانوار  ۲۳۱مخ )

ð اسلام د كنجوسۍ په څېر بل هيڅ څيز نه پوپنا كوي . (الكافي ۴\ ۴۵)

 

بدګوماني

ðپر يو بل له بدګومانۍ ډډه وکړئ،چې دا ډېره دروغجنه خبره ده،د يوه بل کمزورۍ مه وايئ او د ځووپه شان د يو بل عيبونه مه راسپړئ،پر يوبل مه ګواښېږئ، يو له بل سره کينه مه لرئ او مه ورسره دښمني کوئ اومه يوبل ته شا کړئ؛بلکې دخداى بندګانو! يو له بل سره وروڼه وسئ . (بخاري – مسلم )

ðڅوک چې نرم خويه نه وي؛نو تر ټولو ښو به بې برخې وي . (مسلم)

ðبدغونى او بدژبى جنت ته نه ځي. ( ابوداود)

ðد خلکو له بدګومانۍ ځان وژغورئ . ( تحف العقول : مخ ٥٤)

دروغ

ð د مؤمن په طبيعت کې بې له “خيانت” او”دروغو” بل هر څه  ورننووتاى شي. ( احمد –بيهقي)

ð څوک چې دروغ وايي؛نو پرښتې يې د خولې له بدبويۍ يوميل لرې کېږي .(ترمذي)  

ð دا ډېر ستر خيانت دى ،چې له ورور سره دې دروغ ووايئ،حال داچې هغه درته رښتيا وايي . (ابوداوود)  

ð په دروغو شاهدي ويل له “شرک بالله” سره مساوي ده. (ابوداوود– ابن ماجه) 

 ð څوک چې په دروغو د چا مال تر لاسه کړي يا يې ضايع کړي؛نو له خداى سره په داسې حال کې ويني،چې پر “جذام” به اخته وي . (ابوداوود)

ð حضرت”عبدالله بن عامر” روايت کوي،چې يوه ورځ آنحضرت (ص) زموږکره راغلى و  او مور مې راته غږکړ: راشه،چې څه درکړم . آنحضرت مې مور ته وويل : زوى ته دې څه ورکوې ؟ مور مې ورته وويل : کجورې . آنحضرت ورته وويل : پام مو وسه،که خبره دې عملي نه کړې؛نو په کړن ليک کې دې دروغ ليکل کېږي . (ابوداوود- بيهقي)

ð څوک چې د خلکو خندولو ته په خبرو کې دروغ وايي؛نو پر هغوى دې افسوس وي؛نو پر هغوى دې افسوس وي .(احمد- ترمذي – ابوداوود – الدارمي )

ð له چا سره،چې په کومه مسئله کې مشوره وشوه؛نوپه اړه يې امين او ورته امانت سپارل شوې ده. (ترمذي)

ð څوک چې خبرې کوي او شاوخوا ته يې وکتل (؛نوپوه شه)چې خبرې يې امانت دي . (ترمذي– ابوداوود)

ðدروغجن ځکه دروغ وايي،چې ځان ورته کوچنى ښکاري. (مستدرک ٢/١٠٠) 

ðدروغجن ته همدا بس دي،څه چې اوري،وايي يې .(مسلم)  

ðڅوك چې په لوى لاس راپورې دروغ وتړي؛نو دوزخ يې ځاى دى .( كشف الغمه : ۴۶۰ )

ðزياتې ټوكې كول ابرو له منځه وړي، ډېر دروغ او خندا ايمان پوپنا كوي او ډېر دروغ ويل انسان بې ارزښته كوي . (روضة الواعظين : ۲ ۴۱۹ )

ðهر ډول دروغ ويل ګناه ده ؛خو دا چې يو مؤمن ته ګټه ورسي يا پرې له دې نه شر لرې كېږي ( مستدرك الوسايل  ۹\ ۹۵ )

ðدروغ د خبرې آفت دى . ( بحارالانوار  ۶۶\ ۳۸۹)

ðد نارينه ايمان هله بشپړېږي،څه چې ځان ته خوښوي،خپل مؤمن ورور ته يې هم خوښ كړي او په ټوكو كې هم له دروغو ډډه وكړي. ( بحارالانوار ۶۶\ ۳۸۹)

ð دروغ د نفاق له ورونو يو ور دى . ( مجموعة ورام  ۱\۱۱۳)

ðڅوك چې په موږ اهلبيتو پورې دروغ وتړى؛نو د قيامت پر ورځ ړوند او په يهودي دين راپاڅي او كه د دجالو پر مهال وي؛نو ايمان پرې راوړي .( بحارالانوار  ۲\۱۶۰)

ðدروغ ويل په درېو ځايوكې سم دي:(۱) خپلې مېرمن ته د مېړ ه دروغ ويل (۲)د هغه سړي دروغ ويل،چې دوه تنه سره پخلا كوي (۳) اوخپل دښمن ته د چارواكي دروغ ويل؛ځكه په جګړه كې چل روا دى. (الجعفريات  ۱۷۰ مخ )

ðله دروغو ځان وژغورئ ؛ځکه انسان مختورى کوي .( تحف العقول : مخ ١٤)

ð دروغ ويل انسان مختورى کوي او چغلي د قبر عذاب راوړي .( کنز ٣/ ٦١٩ )

ð دروغ ويل ،روزي کموي . ( ميزان: ١٧١٦٣ ح )

ðدروغ ويل خيانت دى . ( بحار ٧٢/ ١٩٢)

ðد يو چا دروغ ويلو ته همدا بس دى،چې څه يې اورېدلي وي، ويې وايي .( مکارم الاخلاق : مخ ٤٦٧)

ðيو ستر دروغ دادي،انسان چې په خوب کې څه نه وي ليدلي؛خو ووايي چې ليدلي مې دي .[ بخاري : ٧٠٤٣ ح]

ðپر دروغوشاهدي ورکول له خداى سره د شرک سره برابره ده . ( ابو داوود – ابن ماجه )

ðدروغجن دروغ نه وايي؛خو داچې په ځان کې ټيټوالى احساسوي. (بحار ٧٢\٢٤٩ )

ð دروغجن د خپل نفس د خوارېدو له امله دروغ وايي. (بحار ٧٢ټ)

 

قیامت

ðخداى د قيامت پر ورځ درېو تنو ته نه ګوري او ورته دردوونکى عذاب دى :

 ١- بوډا زناکار.٢- دروغجن واکمن.٣- کبرجن شتمن . (مسلم )

ð په قيامت کې به غږ  وشي : چاچې خداى ته څه کړي؛خو بل هم ورسره شريک کړي؛نو ثواب دې يې له هماغه واخلي؛ځکه خداى د ټولو شريکانو له ګډونه  غني او مړه خوا دى . (احمد)

ð”خوله انصاري” (رضى الله عنها) روايت کوى،چې رسول اکرم وويل: ځينې خلک په ناحقه د مسلمانانوپر مالونوخېټه اچوي؛نوځکه يې د قيامت پرورځ اورپه برخه کېږي . [ بخاري : ٣١١٨ ح]

ð زه او قيامت ددې دووګوتو په څېر(يو بل ته نږدې) يو. (بخاري،مسلم)

ðهر څوک تر مرګ وروسته هرومرو پښېمانېږي؛ځکه که”ښه” وي؛ نو پښېمانه وي،چې ولې مې تر دې ﻻ ډېر ښه کارونه ونه کړل او که “بد” وي؛ نو پښېمانه وي،چې ولې مې ترې ﻻس نه اخسته .(ترمذي)

ð په قيامت کې به د مؤمنانو قيامت(او پاڅون)خورااسان وي،ان تردې چې د يو فرض لمانځه د وخت هومره به لنډ وي .(بيهقي)

ð څوک چې د شپې تهجدو ته پاڅي؛نو بې حساب وکتابه جنت ته ننوځي. (بيهقي)

ð د قيامت پر ورځ به پېغمبران،اسلامي عالمان اوشهيدان شفاعت کوي .(ابن ماجه )

 ð له معمولي او کوچنيو ګناهونو ځان وژغورئ؛ځکه په اړه يې پوښتل کېږئ. ( “ابن ماجه” ، “بيهقي”،”الدار مي”)

ð د خداى چې کوم بنده ښه ايسي؛نو له دنيا يې داسې خوندي ساتي؛ لکه چې خپل ناروغ له اوبو څښلوخوندي ساتئ.(په دې شرط،چې اوبه ورته زيانمنې وي) ( احمد -ترمذي)

ðد قيامت پر ورځ ښه خوى تر ټولو ارزښتمن څيز دى،چې د کړنو په تله کې ايښوول کېږي . ( الکافي  ٢\٩٩)

ðله تېري ډډه وکړئ،چې د قيامت د ورځې د تيارو لامل دى .(الکافي ٢\ ٣٣٢)

ðد قيامت ځمکه له اوره ده؛خو بې له هغه ځايه،چې د مؤمن سيورى پرې وي او( په دنيا کې) د مؤمن صدقې دا سيورى رامنځ ته کړى . (وسايل  ٩\٣٦٩)

ðهغوى د قيامت پر ورځ دخداى تعالى پر وړاندې ډېر ناوړه خلک دي، چې خلک يې له شره خونديتوب له امله درناوى کوي .(الکافي : ٥\٣٢٦)

 

منځلاري

ðد نبوت د پينځه څلوېښتمې برخې يوه برخه ښه ډالۍ،ښه خوى او منځلاري ده.( الخصال  ١\١٧٨)

ðله خلکو سره مينه،نيم عقل او نرمي نيم ژوند دى او منځلارى له ستونزو سره نه مخېږي . ( الجعفريات : ١٤٩)

ðد انسان د ژغورنې درې څيزونه : ( ١) په پټه او ښکاره له خدايه ډار ( ٢)په خوشحالۍ او غوسه کې عدالت کول (٣) او په شتمنۍ او نېستۍ کې منځلاري . او درې څيزونه پوپنا کوونکي دي : ( ١) په ځاني غوښتنو پسې تلل .( ٢) کنجوسي،چې پر انسان برلاسې شي ( ٣) او کبرکول . (احکايات : ٩٧)

ðڅوک چې د ژوند په لګښتي چارو کې منځلاري کوي،پاک خداى يې روزي خوندي کوي او څوک چې اسراف وکړي ؛نو خداى يې بې برخې کوي .( الکافي  ٤\٥٤)

ðعلي! په تا کې د عيسى د مريمې د زوى څه يوونکي شته؛يوې ډلې ستا په مينه کې زياتى وکړ،چې هلاکه شوه،بلې ډلې ستا په دښمنۍ کې زياتى وکړ،چې هغه (هم) هلاکه شوه او چې کومې منځلاري وکړه ؛نو وژغورل شوه . (الامالي للطوسي : ٣٤٤)

ðخداى چې کومې کورنۍ ته ښه وغواړي؛نو په دين کې ورته ژوره پوهه ورکوي،په ژوند کې ورته نرمي وربښي او په چارو کې يې منځلاري په برخه کوي او کوچنيان يې د مشرانو درناوى کوي او که ونه غواړي؛نو پر خپل حال يې پرېږدي .( الجعفريات : ١٤٩مخ )

ðعلي! په تا کې دعيسى (ع) څه يوونکي شته؛يهودانو ورسره دومره دښمني وکړه،چې ان په مور يې ورته تورونه وتپل او نصاراوو ورسره دومره مينه وکړه،چې داسې ځاى ته يې ورساوه،چې د هغه لپاره نه و . (شواهدالتنزيل  ٢\٢٢٨)

 

الفت او مينه

ð مسلمانان د لورنې،مينې او نرمۍ له پلوه پخپلو کې د يوې تنې په څېر دي،که يو غړى يې په درد شي؛نو نور هم ورسره دردېږي . (بخاري –مسلم)

ð مؤمن د مينې مورينه  ده؛نو که څوک له نوروسره مينه نه لري او نور يې هم له ده سره نه لري؛نو هېڅ ډول خېر پکې نشته. (بيهقي-احمد)

 

 

 

امانت

ðامانت ساتنه د روزۍ لامل دى او له نورو سره خيانت،بېوزلي اونېستي راولي .( تحف العقول: ٤٥)

ðد قيامت پر ورځ زړه سوى او امانت ساتنه د “صراط” دوه  خواوې دي؛نو زړه سواند او امانت ساتى،چې ترې تېرېږي،په بيړه د جنت پر لور ځي او په امانت کې خاين او سخت زړى،چې ورته ورسي؛نو له دې دواړو کړنو بېخې څه ګټه نه ويني او له صراطه د جهنم پر لور ورکږېږي . ( الکافي : ٢\ ١٥٢)

 ðپر چا چې اطمينان لرئ؛خپل امانت ورکړئ،که څه هم ښه يا بد وي . (الکافي : ٦٣٦)   

ðڅوک چې په امانت کې خيانت وکړي؛له موږه نه دى.(الکافي٥\ ١٣٣)

ðچا چې درباندې اعتماد کړى؛نو امانت يې وروسپاره او چاچې درسره خيانت کړى؛نو ته ورسره خيانت مه کوه.(تهذيب الاحکام٦\٣٤٨)

ðڅوک چې مړي ته غسل ورکوي؛نو بايد امانت يې وساتي،چې د امانت ساتلو په بدل کې يې د بدن د هر وېښته په مقابل کې د هر مريي د ازادولو هومره ثواب دى او همداراز پاک خداى يې سل درجې لوړوي . رسول اکرم وپوښتل شو: د مړي د امانت ساتنې مفهوم څه دى ؟ ورته يې وويل : عورت،نيمګړې او عيبونه يې پټ کړي او که دا کار و نه کړي ؛نو ټول ثواب يې پوپنا کېږي او خداى به يې په دنيا  او آخرت کې نيمګړې اوعيبونه رابرسېره کړي . ( وسايل  ٢\٤٩٧)

ðزما امت به تر هغه په خیر او ښو وي ،چې له يو بل سر خيانت و نه کړي او امانت خپل خاوند ته وروسپاري،زکات ورکړي،لمونځونه وکړي او مېلمه پال وي او که دا چارې و نه کړي؛نو په وچکالۍ او قحطۍ به اخته شي . ( وسايل  ٩\٢٥ )

ðڅوک چې امانت سپک وګڼي؛داسې چې په بېرته ورکړه کې يې ټکنى  کړی وي ؛نو له موږه نه دى . ( مستدرک الوسايل  ١٤\ ١٢)

ðد چا ډېرو لمونځونو،روژو،حج تلو،د زکات ورکړې،ښو چارو  ډېرښت او د شپې زمزمو ته مه ګورئ؛بلکې رښتيا ويلو او د امانت سپارلو ته يې وګورئ . (الاختصاص : ٢٢٩ مخ)

ðشپږ کړنې دي که چا يوه وکړه؛نو په قيامت کې دا کړنه هڅه کوي،چې نوموړى جنت ته ننباسي اووايي : خدايه ! دې وګړي زه په دنيا کې تر سره کړې يم او هغه دا دي :لمونځ ،زکات ،حج،روژه ، د امانت ورکړه او زړه سوى . ( الامالي للمفيد: ٢٢٧مخ )

ðڅوک چې رښتینولي،امانت ساتنه،حيا او ښه خوى ولري؛نو ايمان يې بشپړ دى، که څه هم سر تر پا يه ګناهګار وي . (التمحيص : ٦٧مخ )

ðڅوک چې په نړۍ کې په امانت کې خيانت وکړي او خاوند ته يې  ور و نه سپاري؛نو که مړ شي د رسول الله پر امت به نه وي مړ شوی  او له خداى سره به په داسې حال کې ليده کاته کوي،چې پرې غوسه وي . (من لايحضرالفقيه ٤\١٥)

 

امت

ðچې کله مې په امت کې بدعتونه راښکاره شول؛نو د عالم دنده ده، چې خپل علم راښکاره کړي او که داسې ونه کړي؛نو خداى به يې لعنت کړي . ( الکافي ١\٥٤)

ðزما د امت د غوره وګړيو ځانګړنې دا دي :په مسافرت کې روژه نه نيسي،د  مسافرت لمونځ کوي او په ورين تندي نېکي کوي او چې کله هم کوم ناوړه کار وکړي ؛نو بښنه غواړي او د امت مې ډېر ناوړه هغه دي،چې په مېلو چړچو کې ژوند کوي،ښه خواړه خوري،ښې جامې اغوندي او په خبرو کې رښتيا نه وايي . ( الکافي٤\ ١٢٧)

ðد امت غوره وګړي مې په لږو اوبو اودس کوي .(مستدرک الوسايل  ١\ ٣٤٩)

ðجبرئيل راباندې د شپې په پاڅون او تهجدو دومره سپارښتنه وکړه، چې ګومان مې وکړ،چې ډېر غوره امتي به مې هېڅکله نه ويدېږي (وسايل ٨\١٥٤)  

ðچې کله خداى زما پر امت غوسه شي او عذاب پرې نه راکوزوي؛نو قيمتي پرې راوړي او عمرونه يې لنډېږي،سوداګر لږه ګټه کوي،مېوې ښه وده نه کوي اوسيندونه نه ډکېږي،باران پرې نه اوري او ډېر ناوړه وګړي پرې واکمنېږي .( الکافي ٥\٣١٧)

ðما ته په اوونۍ کې پر دوشنبه او پنجشنبه د امت کړنې راوړاندې کېږي؛نو هر مؤمن بښل کېږي؛خو هغه چې ترمنځ يې کينه وي او ورته ويل کېږي : دواړه تر هغه پرېږدئ،چې زړونه يې له کينې پاک شوي نه وي . ( صحيح مسلم )

ðزما د يارانو مثال په خوړو کې د مالګې په څېر دی،چې بې مالګې خواړه خواږه او خوندور نه  وي . (جامع الصغيرسيوطي)

ðزما امت د باران په څېر دى؛نه پوهېږي،چې پيل يې خير دى او که پاى . (دامام احمدحنبل مسند)

 

اسلامي مذاهب

ð امت به مې پر “درې اويا” ډلوو واېشل شي،چې يوازې  يوه يې ژغورل کېږي . (المعجم الکبير ١٩/٣٧٧)

ð خوارج د دوزخيانو سپي دي . (د ابن ماجه سنن ١/ ٦١)

ð”قدريه”زما د امت “مجوسيان” دي،که ناروغ شي،پوښتنې ته يې مه ورځئ او که ومري؛په جنازه کې يې ګډون مه کوئ . ( سنن ابي داوود ٢/ ٤١٠   شرح مسلم للنووي ١/ ١٥٤)

[ تبصره: قدريه د جبر د مسلک لارويان دي،چې ګروهمن دي،نړۍ په مازې جبر اداره کېږي او موږ پکې هيڅ اراده نه لرو. دا فکر امويانو په اسلام کې خپور کړ.]

ð زما د امت دوه ډلې له اسلامه برخمنې نه دي :”مرجئه” او “قدريه” . (الخصال ١/٧٢)

[ تبصره:مرجئه هغې ډلې ته وايي،چې يوازې په زړه کې ايمان بسيا بولي؛نه کړنې.]

ð علي ! زما په امت کې ستا مثال د”عيسى د مريمې د زوى” په څېر دى؛ چې قوم يې پر وړاندې درې ډلى شو: يوه ډله مؤمنان ول،چې هماغه حواريون ول . يوې ډلې ورسره دښمني راواخسته،چې هماغه يهوديان ول  او يوې ډلې يې په اړه “غلو” وکړه او بې ايمانه شول . زما امت هم ستا په اړه درې ډلې کېږي : يوه ډله په تا پسې ځي،چې هماغه مؤمنان دي . يوه ډله دې دښمنان دي،چې ستا په اړه هماغه شکمن دي او يوه ډله ستا په اړه غلو کوي او هغه به ستا منکران وي  او على! ته،ستا لارويان او د دوى مينوال په جنت کې دي او دښمنان او غاليان به دې په اور کې وي .(بحار الانوار: ٢٥/ ٢٦٤ -المناقب،الموفق الخوارزمي ٣١٧ مخ، مجمع الزوايد ٩/ ١٧٣  المعجم الاوسط ٦ / ١٣٥٤  کنزالعمال ١/ ٢٢٣ )

 

لاروي

ð د الهي لارښوونو منل سترګې يخوي . (مستدرک الوسايل  ١١/ ٢٥٧)

ð ډېره ناوړه ډله هغه ده،چې د الهي احکامو د سرغړونه په باب يو له بل سره ژمنه وکړي . ( مستدرک الوسايل ١٦/ ٤٥)

ð په کومو چارو کې چې د خداى له احکامو سرغړاندې کېږي؛نو د مخلوق لاروي روا نه ده . (د نهج البلاغى شرح ١٦ /١٥٨)

ð په علي پسې تلل د خوارۍ لامل دى او سرغړونه ترې کفر دى . په دې اړه رسول اکرم وپوښتل شو،چې څرنګه؟ آنحضرت ورته وويل: علي تاسې د حق پر لار بيايي؛نو که پېغور ورکړئ،خوارېږئ او که سرغړونه ترې وکړئ،پر خداى کافرانېږئ . ( الکافي ٢/ ٣٨٨)

ðمتعال خداى پر تاسې زما اطاعت فرض کړى دى او زما له سرغړونې يې منع کړي ياست او پر تاسې يې زما لاروي او تر ما وروسته د”علي بن ابيطالب” لاروي لازمه کړې ده؛لکه چې پر تاسې يې زما اطاعت فرض کړى او زما له حکمه سرغړونه يې منع کړې او هغه يې زما ورور،وزير، وصي او وارث کړى دى . (په حقيقت کې) هغه له ما څخه دى او زه له هغه څخه يم، دوستي ورسره ايمان او دښمني ورسره کفر دى،دوست يې زما دوست او دښمن يې زما دښمن دى او هغه، د هغه مولى دى،چې زه يې مولى يم  او زه د هر نارينه او ښځمنې مسلمان مولى يم او زه او علي د دې امت پلرونه يو. (بحارالانوار ٢٩/ ٢٦٣)

 

عاجزي او تواضع

د تواضع  ځانګړنه ده چې :انسان په غونډه کې له خپل ځايه کوز کېني،څوک چې  ګوري،سلام پرې اچوي،له شخړې ځان ژغوري،که څه هم په حقه وي او داچې ښه يې نه ايسي،چې په نېکۍ او تقوا وستايل شي. (الجعفر يات : ١٤٩)

ð په همسا تګ (هم) د تواضع له نښو ده،په هر قدم اخستو زر نېکي ورکول کېږي او زر درجې يې لوړوي . ( بحارالانوار ٧٣/ ٢٣٤ )

ð تواضع د اصل و نسب ښکلاه ده . ( جامع الاخبار : ١٢٢)

 ðڅوک چې د خداى لپاره تواضع وکړي؛خداى يې مقام لوړوي .( مستدرک الوسايل ١١/ ٢٩٧ )

ð څوک چې درې ځانګړنې ولري،” الهي لقاء” ته رسي او له هر وره، چې وغواړي جنت ته ننوځي : د چا چې ښه خوى وي،په پټه او ښکاره له خدايه وډار شي او شخړې ته شا کړي،که څه هم په حق وي .(الکافي ٢/ ٣٠٠)

 

کنځل کول

مؤمن ته کنځلې کول فسق دى. (من لا يحضره الفقيه ٣/ ٥٦٩)

 

فصاحت

موږ اهلبيتو ته اوه ځانګړنې راکړل شوي،چې تر موږ وړاندېنيو ته پوره نه دي ورکړل شوي : ( ١) ګهيځ پاڅېدل (٢) فصاحت ( ٣) ستريا ( ٤) مړانه ( ٥) زغم ( ٦) پوهه ( ٧) او له خپلې مېرمنې سره مينه. ( الجعفريات  ١٨٢ )

ð فصاحت د خبرې ښکلا ده . (جامع الاخبار : ١٢٢)

 ðمسواک وهل د نارينه فصاحت زياتوي . (مکارم الاخلاق : ٤٨ مخ)

 

ديني پوهه

 ðهغه عبادت بې ارزښته دى،چې پکې پوهه او اندنه نه وي.   ( الجعفريات : ٢٣٨ )

ð خلکو ! په پوره دين او ژورې پوهې حج ته ولاړ شئ . (مستدرک الوسايل ١٠ / ١٧٣ )

ð ديني پوهه تر لاسه کول غوره عبادت دى . (منية المريد ٣٧٤ )

ð هر څيز يو بنسټ لري او د دې دين بنسټ ديني پوهه ده. (عوالي الاللي ٤/ ٥٩)

ð په حقيقت کې يوازې په مؤمن کې پينځه څيزونه راټولېداى شي،چې خداى جنت ورته لازم کړي : په زړه کې رڼا،په اسلام کې پوهه،په دين کې ورع ( د ټولو ښو کارونو کولو او د ټولو بدو چارو نه کولو ته ورع وايي)،له خلکو سره مينه کول او ښه خوى .(بحار الانوار ١/ ٢١٩)

ð څوک چې ديني پوهه ولري،څومره ښه سړى دى،که د کومې اړتيا لپاره ورته ورشې،په ګټه يې  ده او که ور نه شي،په خپله ګټه يې ده. (مستطرفات السرائر: ٥٧٨ )

ð ايا د پوره ديني پوهې خاوند (= فقيه) درته وښيم؟ هو يا رسول الله! ويې ويل : هغه چې خلک له الهي رحمته نهيلي نه کړي او د خداى له مکر (او غوسې) يې خوندي نه کړي،هغه چې خلکو ته د ګناه جواز ورنه کړي او قرآن يوې بلې لارې ته د لېوالتيا لپاره پرېنږدي؛ځکه په هغه علم کې څه خير نشته،چې په ژورې پوهې ولاړ نه وي او په هغه عبادت کې هم خېر نشته،چې د ژورې پوهې پر بنسټ نه وي او (همداراز) په کومو لوستو کې،چې تدبر نه وي،(هغه هم) ارزښت نه لري . (الجعفريات ٢٣٨ مخ )

 

غيبت

ð غيبت د انسان دين تر هغه خوړونکې ناروغۍ ډېر ژر له منځ وړي،چې په ګرد بدن کې خپرېږي . ( الکافي ٢/ ٣٥٦)

ðمؤمن ته پر مؤمن تېرى حرام دى او ورته حرام دي،چې يوازې يې پرېږدي يا يې غيبت وکړي يا يې ناوړه ځواب کړي . ( الکافي ٢/ ٢٣٥ )

ð له غيبته ډډه وکړئ،چې تر زنا يې ګناه ډېره ده؛ځکه د”زنا کار” توبه قبلېږي؛خو غيبت  کوونکى تر هغه نه بښل کېږي، چې غيبت شوى يې و نه بښي . (مجموعه  ورام  ١/ ١١٥)

ð پر ښځو مو د زنا تور مه تپئ؛ځکه دا کار طلاق ته ورته دى او (هم) له غيبته ځان وژغورئ؛ځکه دا کار کفر کولو ته ورته دى او پوه شئ،چې تور او غيبت زرکلنې کړنې پوپناه کوي . ( جامع الاخبار: ١٥٧ )

ðچاچې له تنه د حيا جامې راواېستې؛نو غيبت يې روا دى(؛يعنې د بې حيا غيبت روا دى.) (الاختصاص : ٢٤٢ )

ð څوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځې ايمان لري؛په هغه غونډه کې ناسته نه بويه،چې کوم مشر ته پکې  کنځلې يا د کوم مسلمان غيبت کېږي . ( تفسير القمي ١/ ٢٠٤)

ð د قيامت پر ورځ يو څوک خداى ته حاضر وي او کړنليک يې ورکوي؛خو خپلې نېکې کړنې پکې نه ويني . وايي: خدايه! دا خو زما کړنليک نه دى؛ځکه خپل عبادات پکې نه وينم. ورته ويل کېږي: پالونکى دې نه تېروځي او هېر هم نه لري،نېکې کړنې دې د خلکو د غيبت له امله له منځه ولاړې بيا يو بل راولي او کړنليک يې ورته ورکوي،چې ډېرې نېکۍ پکې ويني؛نو وايي : خدايه! دا خو زما کړنليک نه دى؛ځکه ما خو دا ټولې نېکې چارې نه دي کړي،ورته ويل کېږي : پلاني ستا غيبت وکړ؛نو ځکه يې ټولې نېکۍ په تا پسې وليکل شوې .( جامع الاخبار ١٤٧ )

ð هغه دروغ وايي،چې انګېري له حلالو زېږېدلى،حال داچې تل په غيبت د خلکو په غوښو خوړلو بوخت دى . له غيبته ډده وکړئ،چې د دوزخ د سپيو خوراک دى . ( الامالي للصدوق ٢٠٩)

ð د قبر عذاب له چغلۍ،غيبت او دروغو راولاړېږي. (مستدرک الوسايل ٩/ ١٢١)

ð څوک چې د مسلمان نارينه او ښځې غيبت وکړي،خداى تعالى يې تر څلوېښتو شواروزو پورې لمونځ او روژه نه قبلوي؛خو داچې غيبت شوى يې وبښي.( جامع الاخبار ١٤٦)

ð څوک چې د مسلمان غيبت وکړي؛نو لکه څوک يې،چې په لوى لاس وژلى وي . (مستدرک الوسايل ٩ / ١٢٥)

ð د معراج په شپه مې ځېني سړي وليدل،چې شونډې يې د خلکو د غيبت له امله په اورينو بياتي ګانو غوڅول کېدې . (مستدرک الوسايل ٩ / ١٢٦ )

ð په”معراج” کې مې پر داسې وګړيوسترګې ولګېدې،چې د مسو په څېر په تکو سرو نوکانو يې خپل مخونه او سينې توږلې،په اړه يې له جبراييل وپوښت؛راته يې وويل:دوى په دنيا کې د خلکوغوښې خوړې (د خداى د بندګانوغيبت يې کاوه) او د هغوى پر پت او ابرو يې لوبې کولې .( ابوداوود )

ð غيبت تر زنا ډېر ناوړه او درنه ګناه ده (؛ځکه) خداى زناکار په توبه بښي؛خو غيبت کوونکي،چې څو له غيبت شوي عذر نه وي غوښتى؛ نو نه يې بښي .(بيهقي)

ðغيبت دې ته وايي،چې د خپل ديني ورور په باب داسې څه ووياست،چې نه يې  خوښېږي . ( کنز ٣/ ٥٨٦ )

ð د يوچا د غيبت جبرانول دا دي ،چې له خدايه ورته بښنه وغواړې . ( کنز ٣/٥٨٨ )

 

غيرت

ðغيرت له ايمانه راولاړېږي اوکنځلې له ناوړه خويه . (الجعفريات ٩٥)

ð ابراهيم غيرتي و او زه ترې ډېر غيرتي يم او خداى دې د بې غيرتو مسلمانانو او مؤمنانو پوزې پرې کړي . (الکافي ٥ / ٥٣٦ )

ð حضرت”سعد بن عباده” رسول اکرم ته وويل : که له خپلې مېرمنې سره مې سړى وليد؛نو د څلورو ګواهانو تر راوستو پورې ورته وګورم؟ آنحضرت ورته وويل: هو!سعد وويل : پر هغه قسم،چې ته يې په حقه پېغمبر کړى يې،چې په وس کې مې وي؛نو تر هغه ړومبى به يې کار پوره کړم . پېغمبر اکرم وويل: واورئ،چې مشر مو څه وايي،هغه غيرتي دى او زه ترې ډېر غيرتي يم او متعال خداى تر ما ډېر غيرتي دى . (شيباني ٣ / ٢٤٥ )

ð حضرت عايشې بي بي له پېغمبراکرم سره غيرت(او کينه) کوله؛په خپله وايي: يوه شپه پېغمبر اکرم رانه ووت،غيرت مې راولاړ شو،چې شونې ده د مېرمنې کره تللى وي . پېغمبر اکرم راغى او ويې ليدل،چې زه څه کوم،راته يې وويل :غيرت دې راولاړ شوى دى؟ ورته مې وويل: زما په څېر څنګه پر تا په څېر کينه ونه کړي؟ پېغمبراکرم ورته وويل: شيطان دې درته راغلى دى. (شيباني ٢/ ٢٤٦)

ðهمداراز له حضرت عايشې بي بي روايت شوى دى چې :حضرت “صفيه” بي بي خورا  ښه پخوونکې وه، يوه ورځ پېغمبر زما کره واو “صفيې” بي بي ورته خواړه راوړل؛نو زه ورته دومره په کينه کې شوم؛ لکه څوک چې له يخنۍ لړزېږي او د هغې لوښى مې مات کړ او بيا پښېمانه شوم او پېغمبر اکرم ته مې وويل:ددې کار کفاره څه ده؟راته يې وويل : د لوښي په څېر يې لوښى او د خوړو په څېر يې خواړه. (شيباني ٢/ ٢٤٦)

ð غيرت (او کينه) دوه ډوله ده : ( ١) يو ډول د خداى خوښېږي او بله نه،په ريبت کې کينه د خداى خوښېږي او په غير ريبت کې نه. (ناصف ٤ / ٣٧١ )

[ ريبت : په هغه ځاى کې چې شک  او د شر او بدۍ نښې لېدل کېږي]

 

فتوا

ð څوک چې بې علمه خلکو ته فتواوې ورکوي،د اسمان او ځمکې پرښتې پرې لعنت وايي. ( کمال الدين ١ / ٢٥٦ )

 ð څوک چې چارې يو له بل سره پرتله کوي او احکام ترې استنباطوي،بې علمه فتواوې ورکوي او ناسخ و منسوخ،محکم او متشابه نه پېژني،هلاکېږي او نور هم هلاکوي . ( الکافي ١ / ٤٣ )

[ تبصره: په دې اړه د “زبير بن بکار” د “الموفقيات” کتاب ٧٥ مخ وګورئ]

 

کنځلې

ð مؤمن ته کنځلې کول د فسق لامل دى،جګړه ورسره  کفر دى،غوښه خوړل (غيبت کول) يې ګناه  او د مالونو حرمت يې د وينې د حرمت په څېر دى . ( الکافي ٢/ ٣٥٩ )

ð څوک چې کوم پېغمبر ته کنځلې وکړي بايد ووژل  شي او څوک چې د پېغمبر  صحابي ته کنځلې وکړي بايد په کمچينه ووهل شي. (مستدرک الوسايل ١٨ / ١٧٢ )

ð څوک چې علي ته کنځلې  وکړي؛نو ما ته يې کړي اوچاچې ماته کنځلې وکړې؛نو خداى ته يې کړي دي او څوک چې خداى ته کنځلې وکړي،دوزخ ته ننوځي او پر سخت عذاب اخته کېږي . (مستدرک  على الصحيحين ٣/ ١٢١ )

ð خلکو ته کنځلې مه کوئ،چې ترمنځ مو دښمني راولاړه نشي. ( الکافي. ٢/ ٣٦٠ )

ðمړيو ته کنځلې مه کوئ،چې ژوندي (خپلوان) يې خپه نشي . (الدعوات ٢٧٨)

ðمؤمن ته کنځلې کول د انسان د هلاکت لامل دى . ( الکافي ٢/ ٣٥٩ )

ð که کنځلې انځورېداى؛نو خورا ناوړه انځور به يې  درلود. ( الکافي ٢/ ٣٢٤ )

[ تبصره: دا مثال د عامو خلکو د پوهېدو لپاره ويل شوى دى،وګورئ: دملا صالح ما زندراني  د اصول کافي شرح ٩/ ٣٦١ ]

ð ايا هغه دروښيم،چې ماته بېخي ورته نه دى؟ ورته وويل شو: هو يا رسول الله ! ويې ويل: بد ژبى کنځل مار،چې کنجوس،کبرجن،کينه کښ سخت زړى او له هر ډول نېکۍ لرې دى او انسان يې له يوه شره هم خوندي نه دى . (الکافي ٢ / ٢٩١)

ðمؤمن ناوړه وينا نه کوي،لعنت نه وايي،سپکې سپورې او کنځلې نه کوي .( شيباني ٤/ ١٧٨   ناصف ٥/ ٣٧)

 

فراغت

ð روغتيا او فراغت دوه نعمتونه دي،چې ډېرى خلک پرې ازمېيل کېږي .( الخصال ١/ ٣٤ )

ð روغتيا او فراغت دوه نعمتونه دي،چې انسان ترې غافل او بې پروا دى . ( من لا يحضره الفقيه ٤/ ٣٨١)

ð زه د درې ډلو ضامن يم : څوک چې په دنيا کې له نېستۍ سره مخ شوى وي او د شتمنېدو لپاره څه لار نه لري . څوک چې پر کوم کړاو اخته شي او خلاصېداى ترې نشي او څوک چې پر بې پايه خپګان اخته شوى وي . (بحارالانوار ٧٠/ ٨١)

ð دنيا خو يو ساعت ده؛نو له خدايه په اطاعت کې يې تېره کړئ او الهي اطاعت ته د ورننووتو لار،په خلوت کې ده،چې انسان تل پر تفکر بوخت وي او خلوت هله وي،چې انسان قناعت وکړي او د ژوند له ډېر لګښته لاس واخلي او تفکر هم په فراغت تر لاسه کېږي او د فراغت بنسټ په زهد ولاړ دى،چې تقوا پوره زهد دى او تقوا ته د ننووتو لار له خدايه ډار دى او د ډار نښه،د خداى د مقام درناوى،د خداى د لارښوونو منل او له محرماتو يې ډډه کول دي او د الهي ډار بله نښه پوهه ده؛لکه چې پاک خداى وايي:په واقع کې له بندګانو يوازې پوهان له هغه ډارېږي . ( مصباح الشريعه: ٢٢)

 

هېر

ð هېر د پوهې آفت دى . (الخصال ٢/ ٤١٦)

ð څوک چې پر ما درود ويل هېر کړي؛نو د جنت لار به يې ورکه کړې وي.( الامالي للطوسي: ١٢٤)

ð ډېر ناوړه هغه بنده دى،چې کبر وکړي او مغرور شي او خداى هېر کړي .( بحار الانوار ٧٣/٢٠٣ )

ð څوک چې د خوړو په پيل کې د((بسم الله الرحمن الرحيم)) ويل هېر کړي؛نو د خوړو په پاى کې دې د “توحيد” سورت ووايي . (بحارالانوار ٨٩/ ٣٥٣ )

ðپينځه څيزونه دي،چې “هېر” له منځه وړي او “ياد” زياتوي او د خولې لاړې کموي 🙁 ١) مسواک ( ٢) روژه ( ٣) د قرآن لوستل ( ٤) شات ( ٥) اللبان (کندر) . (مکارم الاخلا ق : ١٦٦)

پرښتې

ð خداى چې کوم بنده ته خير وغواړي؛نو جنتي پاسواله پرښته ورته رالېږي، چې پر سينه يې لاس راکاږي او سينه يې پراخوي او د زکات ورکړې ته يې هڅوي . (وسايل الشيعه ٩/ ٢٠ )

 ð خداى له بربنډتوبه منع کړي ياست؛نو له الهي عزتمنو پرښتو حيا وکړئ،چې کړنې مو ليکي؛خو يوازې د اودسماتي،جنابت او غسل پر مهال مو (ځان ته) پرېږدي . (بحارالانوار ٥٦ / ٢٠٠)

 

خواړه

ðحلال  خواړه  زړه رڼا کوي .( الحکم الزاهرة ١/ ٤٨٢)

ðد فاسقانو خواړه مه خورئ .( بحار ٧٧/ ٨٤)

ðخواړه مو په مالګه پيل او پاى ته ورسوئ؛ځکه دا کار د جذام، لېونتوب او پيس په څېر د دوه اويا بلاوو مخه نيسي.(الکافي: ٦\٣٢٦)

ðڅوک چې خدای وپېژني او د شان خاوند يې وبولي؛نو خپله خوله دې د(بې ځايه او بې ګټې) خبرو او ګېده دې له خوړو منع کړي او ځان دې روژه تي او د شپې پاڅېدو ته په زحمت کړي . (الکافي ٢/ ٢٣٧ )

ðخواړه مو په تول کړئ؛ځکه برکت پکې وي .( الکافي ٥ / ١٦٧)

ð خواړه هله پوره کېږي،چې څلور ځانګړنې ولري : حلال وي،زيات لاسونه پکې وي،په پيل کې “بسم الله الرحمن الرحيم” او په پاى کې يې “الحمدالله” وويل شي. (الکافي ٦ / ٢٧٣ )

ð سړى چې له خپلې کورنۍ سره پر دسترخوان کېني او د خداى په نامه په خوړو پيل وکړي او په “الحمدالله” يې پاى ته ورسوي؛نو د دسترخوان (پلوشې او برکت) پورته خيژي،چې وبښل شي . ( الکافي ٦/ ٢٩٦)

ð (اصلي) خواړه (؛لکه غنم،جوار اوربشې او…)يوازې ګناهګاران احتکار او زېرموي . (من لا يحضره الفقيه ٣/ ٢٦٦ )

 ð حيران يم هغه ته چې د درد او ناروغۍ له ډاره له (ځينو) خوړو پرهېز کوي؛نو ولې د اور له ډاره له ګناه کولو پرهېز نه کوي (او ځان نه څاري) ؟ (من لايحضره الفقيه ٣ / ٣٥٩)

ð د خوړو پر مهال مو څپلۍ او بوټان وباسئ؛ځکه دا ښکلى دود او د پښو د ارامۍ لامل دى . (وسايل ٥ / ٩٦ )

ð تر خوړو وروسته خلال وکړئ؛ځکه د غاښونو د روغتيا او بنده ته د روزۍ د جلبولو لامل دى . (مستدرک الوسايل ١٦/ ٣١٧)

ð په حقيقت کې تر خوړو مخکې او وروسته اودس کول،د بدن د شفا او روغتيا او د روزۍ د برکتي کېدو لامل ګرځي. (المحاسن ٢/ ٤٢٤)

ðڅوک چې “لږ خورى” وي ؛نو بدن يې روغ رمټ پاتې کېږي او چې ډېرخورى وي؛نو بدن يې رنځور او زړه يې سختېږي .(مجموعه ورام ٢/ ٢٢٩)

ðزړه په ډېر خورۍ مه وژنئ؛ځکه زړونه دکښت په څېر دي،چې که اوبه پرې ډېرې شي؛نو خرابوي يې .(  جامع الاخبار: ٢١٤ مخ )

ðخواړه په مالګه پيل او هم پاى ته ورسوئ؛ځکه د ( ٧٢ ) دردونو شفا پکې ده . ( بحارالانوار٧٧/٥٨)

 

د خوړلو څښلو آداب

 ðتر خوړو وړاندې او وروسته د لاسونو او خولې وينځل د برکت لامل دي .( “ترمذي” – “ابوداوود”)

ð که د خوړو پر وخت د “الله”نوم وانه خستل شي؛نو شيطان پکې د ځان ګډون روا بولي.( صحيح مسلم )  

ð د سړو خوړو خوړل ډېر برکتي وي . (الدارمي )

ðډډه مې چې وهلي وي ؛نو خواړه نه خورم . ( صحيح بخاري)

ð د اوښ په څېر په يوې ساه اوبه مه څښئ؛بلکې دوه درې ځل پکې ساه واخلئ،تر څښلو مخکې “بسم الله” او وروسته ترې حمد او د خداى شکر ووياست. (ترمذي)

ð رسول اکرم د څښلو په لوښي کې  پوکى منع کړى دى . (ابوداوود – ابن ماجه )  

ð تر خوړو وروسته دعا دا ده : د هغه خداى ستاېنه ده،چې  پر موږ يې خواړه وخوړل اوبه يې راباندې وڅښلې او له مسلمانانو يې کړو.(“ترمذي” – ابوداوود )

 

مسافر

 ðپه دنيا کې داسې وسه؛لکه چې مسافر يې او ځان په مړيو کې وشمېره.( الامالي للطوسي: ٣٨١ )

ðمسافر چې ناروغ شي؛نو دواړو لوريو او مخکې او شاته چې وګوري او څوک  و نه ويني؛نو پاک خداى يې تېر ګناهونه بښي.( ارشاد القلوب ١/ ١٩٠)

ðپه نړۍ کې د مسافر يا لاروي په څېر ژوند وکړه. (صحيح بخاري)

 

غصب

ð څوک چې ځمکه پر ناحقه غصب کړي،د قيامت پر ورځ مکلفېږي،چې خاوره يې پر اوږو کړي . ( وسايل  ٢٥/ ٣٨٨)

ð څوک چې په ناحقه يو لوېشت ځمکه تصرف کړي،پاک خداى به يې ددې ځمکې اوه پوړه ترغاړې کړي،چې په قيامت کې په همدې حال راپاڅېږي . (مستدرک الوسايل  ١٧ / ٩١ )

 ð په يقين چې خداى هره ګناه بښي؛خو د هغه ګناهونه نه بښي،چې:

(1) په دين کې بدعت راولي. (2) د کارګر مزدوري ورنه کړي . (3)چې ازاد انسان (د مريي په توګه) وپلوري .(عيون الاخبار الرضا ٢/ ٣٣)

ð که څوک درې ځانګړنې ولري (؛نو) ايمان يې پوره کېږي : (1)که خوشحال وي؛نو خوشحالي يې ناحقو ته اړ نه باسي. (2) که غوسه وي؛ نو غوسه يې له حقه وانه ړوي (3) او چې د واک خاوند وي،هغه څه ته لاس اوږد نه کړي،چې ورته نه دي .( المحاسن ١/ ٦ )

 

غفلت

ðتر اړتيا ډېر خواړه مه خورئ؛ځکه زړه سختوي،چې همدا سختوالى زړه مسموموي،غړي د خداى له بندګۍ سستوي او غوږونه او زړه (او همت) د پند او موعظې له اورېدو منع کوي،له ډېرو کتو ډده وکړئ؛ ځکه د ځاني غوښتنو تخم کري او د غفلت لاملېږي .( اعلام الدين: ٣٣٩ )

ð غفلت په درېو څيزونو کې دى  : د خداى له ياده غفلت .د ګهيځ له لمانځه تر لمر راختو پورې غفلت او د مړينې تر وخته د انسان پخپل دين کې غفلت.( جامع الاخبار : ١٣١)

ð څوک چې د غافلانو په منځ کې خداى يادوي؛لکه په تښتېدونکيو کې چې د خداى د لارې مجاهد وي . (الکافي ٢/ ٥٠٢ )

ð څوک چې هر شپه د قرآن لس آيتونه لولي؛نو نوم يې په غافلانو کې نه ليکل کېږي . (الکافي ٢/ ٦١٢ )

ðجنت ته ننووتم؛نو ومې ليدل،چې ډېرى جنتيان “بُلبلې” دي،د ُبلبلې په اړه پېغمبر اکرم وپوښتل شو. ورته يې وويل: څوک چې په خير کارونو کې عقلمن او له ناوړو کارونو غافل وي او د مياشتې درې ورځې روژه نيسي.(قرب الاسناد ١/ ٣٧ )

ð هغه  ډېر  غافل دى،چې د دنيا د حالاتو له ادلون بدلونه پند نه اخلي او هغه تر ټولو ډېر ستر انسان دى،چې دنيا ته په کوم ارزښت قايل نه وي. ( بحارالانوار ٧٠/ ٨٨)

ð د ماښام او ماسخوتن ترمنځ دوه رکعته نفل لمونځ خداى ته د انسان د ګرانېدو لاملېږي .( تهذيب الامکام ٢/  ٢٤٣ )

 

غنيمت ګنل

ð د زړه د نرمښت پر مهال دعا غنيمت وګڼئ؛ځکه د (الهي) رحمت لامل ده.( الدعوات : ٣٠)

ð د پسرلي ساړه غنيمت وګڼئ؛ځکه څه چې له ونو سره کوي،هماغه مو له بدنونو سره کوي او د مني له سړو ځان وژغورئ؛ځکه  څه چې له ونو سره کوي،هماغه مو له بدنونو سره کوي .( بحارالانوار ٥٩/ ٢٧١)

 

حضرت عمار (رض)

ð واى پر عمار،چې تېري کوونکې ډله به يې ووژني،عمار به هغوى د جنت لوري ته رابلي او هغوى به عمار اور ته رابلي .( د امام احمد حنبل  مسند ٣/ ٩١ ،صحيح بخاري ١/ ١١٥١، د “حاکم” مستدرک ٢/ ١٤٩، فتح البارى ١/ ٤٥١ ،د “ابن کثير” السيرة النبويه ٢/ ٣٠٧ )

ð عمار له حق سره دى او حق له عمار سره،چېرې چې حق وي،عمار به هم وي . (الطبقات الکبرى ٣/ ٢٦٢، تايخ مدينه دمشق ٤٣/ ٤٧٦)

 

عمر

ðزړه سوى عمر اوږدوي او پټه صدقه د خداى د غوسې اور  وژني . (وسايل ٩/ ٣٩٧)

ð يوازې دعا قضا و قدر اړوي او يوازې له نورو سره نېکي کول عمر اوږدوي او په يقين انسان،چې ګناه کوي،له روزۍ بې برخې کېږي . (مستدرک الوسايل ١٥/ ١٧٨)

ð خلکو! روزي اېشل شوې او څوک له خپلې برخې تېرى نشي کړاى ؛ نو ځکه يې د لاس ته راوړو لپاره ښه عمل وکړئ او عمر محدود دى او هېڅوک تر ټاکل شوي عمره زيات عمر نشي کړاى؛نو د مړيني او د کړنو د حسابۍ د رارسېدو له مخه (د آخرت د توښې راټولو لپاره) وځغلئ. (مستدرک الوسايل ١٣/ ٢٩)

ð څوک چې غواړي پاک خداى يې عمر ډېر او روزي پراخه کړي؛نو زړه سوى دې وکړي . (الکافي ٢/ ١٥٦)

ð پر اوږد عمري نېکعمله دې خوښي وي او داچې پالونکى يې ترې خوشحاله دى؛نو لوري ته يې ستنېدنه هم  ښه ده. پر اوږد عمري بدعمله دې افسوس وي او داچې پالونکى يې ترې خپه دى؛نو ورستنېدنه يې هم ناوړه (او سخته) ده.( روضه الواعظين  ٢/ ٤٧٥)

ð څوک چې خپل پاتې عمر په نېکيو تېر کړي؛نو د تېروګناهونو په باب نه نيول کېږي؛خو که څوک پاتې عمر په ګناه تېر کړي؛نو د وړاندې او وروسته ګناهونو په باب نيول کېږي .( الامالي للصدوق ٥٧ مخ)

 

عورت (ستر)

ð مورو پلار دې د اولاد عورت ته نه ګوري او همداراز اولاد دې د پلار عورت ته نه ګوري .( وسايل ٢/ ٥٦)

ð زما له اهلبيتو به يو سړى ووژل شي او (لوڅ لغړ) به راوځړول شي، کومې سترګې چې عورت يې وويني؛نو جنت به ونه ګوري . ( بحارالاانوار ٤٦/ ٢٠٩)

[ تبصره: دا روايت د حضرت زيد بن على (رض) په باب دى،چې د امام باقر د حيثيت او درناوي لپاره راپاڅېد او شهيد شو او امام ابوحنيفه ددې غورځنګ غړى و،په دې باب وګورئ : د افغانستان له ملي راډيو تلويزيونه  د امام اعظم په نامه په ١٣٨٦ل  کې خپور شوى سريال .]

 

عيب

ð جبرئيل تل راته ويل،چې بدي په بدۍ مه ځوابوه دا خو لا څه چې پيلوونکى يې وسې . (الکافي ٢/ ٣٠٢)

ðڅه چې پخپله پرېښوواى نشې (؛نو) نور خلک دې نه ټپسوروي او څه چې ورپورې اړه نه لري،خپل ملګرې دې نه ځوروي . (الامالي للمفيد:٢٧٨)

 ð په يوه ښار کې يوه ډله وه،چې پخپله يې عيبونه درلودل؛خو د خلکو د عيبونو په اړه چوپه خوله وو؛نو خداى هم د هغوى عيبونه را و نه سپړل  (او نا ليدلي يې وګڼل) او په ښار کې يوه ډله وه،چې په خپله يې عيبونه نه درلودل؛خو د خلکو عيبونه يې راسپړل؛نو خداى هم د هغوى عيبونه راوسپړل،چې تر مړينې په همدې (راسپړل شويو عيبونو) وپېژندل شي. (الامالي للطوسي : ٤٤)

ð اى هغې ډلې،چې پر ژبه مو ايمان راوړى او له زړه نه! د مؤمنانو د نيمګړتياوو او عيبونو د راسپړلو په لټه کې مه وسئ؛ځکه څوک چې د خپل ورور عيب راسپړي،خداى يې هم عيب راسپړي او خداى چې د چا عيبونه راوسپړي؛نو رسوا کوي يې،که څه  هم پټ او د کور دننه يې وي . ( المؤمن : ٧١)

ð علي! يوازې مؤمن درسره مينه لري او يوازې د منافق بد ايسې .( امام احمد حنبل مسند ١/ ٥٤ – صحيح مسلم ١/ ٦٠ د ابن ماجه سنن ١/ ٤٢  – د نسايي سنن ٨/ ١٦٦ – شرح مسلم للنوي ٢/ ٦٢ – د قرطبي تفسير ٧/ ٤٤ )

ð علي! ته به له ناکثانو،قاسطانو او مارقانو سره وجنګېږې.

(د حاکم نيشاپوري مستدرک ٣/ ١٥٩  _ کنزالعمال ١١/ ٢٩٢  – مجمع الزوايد ٥/ ١٨٦ – علل الدارقطي ٥/ ١٤٨ – الاستيعآب ٣/ ١١١٧ – اسدالغابه ٤/ ٣٣ – البدايه والنهايه ٧/ ٣٣٧ – ميزان الاعتدال ١/ ٢٧١)

[ تبصره: ناکثان بيعت ماتي ول،چې د جمل په جګړه کې وو . قاسطان؛ يعنې ظالمان،د صفين په جګړه کې او مارقان خوارج وو،چې د نهروان په جګړه کې له علي(ک) سره وجنګېدل،رسوا او ابدي بدمرغه شول .

خوشحال بابا وايي :

چې په جنګ کې د علي له لوري ومړل

په هغوى ګواهي ده، چې مرحوم دي. ]

 

ð علي! ته صديق اکبر او فاروق يې،چې حق او باطل بېلولاى شې،ته د مؤمنانو مشر يې او شتمني د کافرانو مشره ده. ( ذخائر العقبى ٥٦ مخ  – کنزالعمال ١١/ ٦١٦ –  المعجم الکبير ٦/ ٢٦٩ – سير اعلام النبلا ٢٣/ ٧٩ – الاستيعاب ٤/ ١٧٤٤ – تاريخ الاسلام ٤٦ / ٣٩١  – ينابيع الموده ٢/ ٣١٧ )

ð څوک چې زما اطاعت وکړي؛نو د خداى به يې کړى وي او څوک چې زما و نه مني؛نو د خداى به يې نه وي منلي او څوک چې د علي اطاعت وکړي؛ نو زما اطاعت به يې کړى وي او څوک چې د علي اطاعت و نه کړي؛ نو زما به يې نه وي کړى .(د حاکم نيشاپوري مستدرک ٣ / ١٢١)

ð ابوبکره! زما او د علي لاس په عدالت کې يو برابر دى .

 ( د بغداد تاريخ ٥/ ٢٤٠ – ميزان العتدال ١/ ١٤٦  – تاريخ مدينه دشمق ٤٢/ ٣٦٩ – د خوارزمي مناقب ٢٩٦ مخ  – السيره الحلبيه ٢ / ٢١١ – ينابيع الموده ٢/ ٢٣٦  – بحارالانوار ٤٠/ ١١٩ )

ð علي! ته د اور وېشونکى يې . ( د ابن مغازلي شافعي مناقب ٦٧ مخ)

[ تبصره: د دې روايت په هکله امام احمد حنبل وايي:على د جنت او  دوزخ وېشونکى دى؛ځکه دوست يې جنتي مؤمن دى او دښمن يې منافق دوزخي دى .]

   ð دعلي يادول عبادت دى .

 ( الجامع الصغير ١/ ٦٦٥- البدايه والنهايه ٧/ ٣٩٤ – کنزالعمال ١١/ ٦٠١ –  د ابن مردوديه مناقب على ٧٥ مخ – دابن مغازلي شافعي مناقب ٢٠٦ )

ð د علي مخ ته کتل عبادت دى .

( د ابن مغازلي شافعي،مناقب، ٢٠٦ مخ –الاصابه ٨/ ٣٠٨ – اسدالغابه ٥/ ٥٤٧ –د حاکم مستدرک ٣/ ١٤١ – المعجم الکبير ١٨/ ١٠٩ – کنزالعمال ١١/ ٦٠٠)

ð علي له حق سره دى او حق له علي سره او چېرې،چې علي وي،حق هم هلته دى .

( سنن ترمذي ٥/ ٢٩٧ – د حاکم مستدرک ٣/ ١٤٤– د فخررازي تفسير ١/ ٢٠٥ – د ذهبي تاريخ الاسلام ٣/ ٦٣٥ )

 

شات

ð شات ( د خولې بد) بوى او تبې رغوي .( مستدرک الوسايل ١٦/ ٣٦٦)

ð خداى شات برکتي کړي او د دردونو شفا يې پکې اېښې او اويا پېغمبرانو ته يې مبارک کړي دي .( مکارم الاخلاق ١٦٥)

ðخداى په شاتو کې برکت اېښى او د دردونو شفا ده او اويا پېغمبرانو متبرک کړي دي . ( مستدرک الوسايل  ١٦\٣٦٧ )

ð درې څيزونه دي،چې حافظه غښتلې کوي او بلعم له منځه وړي : د قرآن لوستل،د شاتو او کندر خوړل .( مستدرک الوسايل: ١٦ / ٣٦٧)

ðد حجامت په نشتر يا د شاتو په شربت کې شفا ده.(مستدرک الوسايل : ١٦/ ٣٦٧)

ðخداى په شاتوکې برکت اېښى،شات د دردونو شفا ده او اويا پېغمبر انو برکتي ګڼلي دي . ( صحيفة الرضا: ٢٠٧ حديث )

 

عطر

ستاسې له نړۍ مې يوازې ښځه او عطر ښه ايسي .( الکافي ٥ / ٣٢١)
[ تبصره: د دې روايت مخاطبين هغه اصحاب وو،چې رهبانيت او ګوښه کېناستوته لېوال وو]

ð عطر زړه غښتلى کوي .( الکافي ٦/ ٥١٠)

ð خپل حبيب جبرئيل راته وويل : ورځ ترمنځ عطر وکاروه او د جمعې د ورځې عطر کارول مه هېروه . ( الکافى ٦/ ٥١١)

ð بايد هر يو د جمعې پر ورځ عطر وکاروي، که څه هم د مېرمن له بوتله مو وي . ( الکافي  ٦/ ٥١١)

ðهره ښځه،چې عطر وكاروي او له کوره بهر ووځي؛نو كور ته د بېرته راستنېدو پورې پرې لعنت ويل كېږي . ( الكافي ۵\ ۵۱۸)

 

عفت

د خداى حياناک،زغمناک او پاکلمنى انسان خوښېږي،چې له ګناهونو او مکروهاتو ځان ژغوري . (الکافي ٢/ ١١٢)

ð لومړي جنت ته ننووتونکي دا دي : شهيدان،هغه تر لاس لاندې،چې د خپل واکمن لارښوونې مني او زړه يې پرې سوځي او عابد پاکلمنى، چې له ګناهونو او مکروهاتو ځان ژغوري . (الامالي للمفيد: ٩٩)

 ð عفاف او پاکلمني د ازمېښتونو او سختيو ښکلا ده . (بحارالانوار ٧٤ / ١٣٣)

ð له پلرونو سره مو ښه وکړئ،چې زامن مو درسره ښه وکړي او د خلکو له ښځو سترګې پټې کړئ،چې ښځې مو پاکلمنې او عفيفې وي. ( وسايل  ٢٠/ ٣٥٦)

 

عقل

ðعقل لومړنى موجود و،چې پاک خداى پيدا کړ. ( من لايحضر الفقيه ٤\٣٦٨)

ðعقل د هر انسان  د ژوند اړم دى .( کافي ١/٢٩ ) 

ðد “تدبير” په څېر “عقل” نشته .( المحاسن ٢/ ٦٠١)

ðعاقل بايد له خپلې زمانې با خبروي .(مکارم الاخلاق : ٤٧٢)

ðدچا د عقل د کچې د څرګندتيا پورې دې د چا مسلماني تاسې هک پک نه کړي .( مسندالشهاب ٢/ ٨٨)

ð خداى تر عقل بل غوره څيز خلکو ته نه دى ورکړى،دعقلمن خوب د ناپوهه تر شپې پاڅېدو او لمونځ يې دخداى په لار (؛لکه جهاد،حج او….) کې د ناپوهه تر مسافرته غوره دى او خداى هر پېغمبر او استازى په عقل پوره رالېږلى او عقلونه يې د خپلو امتونو تر ګردو عقلونو غوره وو.( الکافي ١/ ١٢)

ð ناپوهي سخته نيستي او عقل ګټوره شتمني ده.( الکافي ٢/ ٦٤٣)

 ð له خلکو سره مينه کول نيم عقل دی .( الکافي ٢/ ٦٤٣)

ð تر ايمان وروسته دعقل بنسټ له خلکو سره مينه کول او هر نېک چاري او بدچاري ته “خيرغواړي” ده. (وسايل ١٦/ ٢٩٥)

ð خداى عقل وپنځاوه او ورته يې وويل: ستون شه؛نو ستون شو بيا يې وويل : مخ کړه؛نو مخ يې کړ،بيا يې ورته وويل : تر تا ګران مې نه دى پنځولى ( پېغمبر اکرم زياتوي 🙂 خداى تعالى محمد (ص) ته د عقل نهه نوي برخې ورکړې او يوه يې پر خلکو ووېشله .(بحارالانوار ١/ ٩٧ )

ð له عقلمن سره مشوره وکړئ او مخالفت ورسره مه کوئ،چې پښېمانه به شئ . (مستدرک الوسايل ٨ / ٣٤٤)

ð پر عقلمن لازم ده،چې پر خپلې زمانې پوه وي،خپل شان ته مخ کړي او خپله ژبه وساتي . ( بحارالانوار ٦٨/ ٢٧٩ )

ð ډېر عقلمن هغه دى،چې له خلکو سره ډېره نرمي (او ښه چلن) وکړي او ډېر خوار هغه دى،چې خلک سپک کړي .( ٧٢ / ٥٢ )

 ðعقل پر درېو برخو وېشل شوى دى،که چا درلودې؛عقل يې پوره دى او که نه عاقل نه دى : د خداى تعالى ښه پېژندنه،ښه طاعت او مننه او پر الهي لارښوونو ښه زغم.( الخصال ١/ ١٠٢ )

 

د خير غوښتنه

ðڅوک چې له خدايه خير وغواړي او د خد اى په ورکړه خوشحاله وي؛ نو هرومرو خدای ورته ګتور څيزونه ورکوي . (الکافي ٨/ ٢٤١)

 

تمه

ðله تمې ډډه وکړئ؛ځکه حرص او تمه زړه خرابوي او پر زړه د دنياغوښتنې ټاپه لګوي.تمه د ټولو ګناهونو کونجي او د ټولو سرغړونو مشره ده او ټولې نېکې چارې له منځه وړي . (بحارالانوار ٧٤/ ١٨٤)

ð په حقيقت کې تمه ښويه ډبره ده،چې ان د پوهانو پښه هم پرې ښويېږي .(مجموعه ورام ١/ ٤٩ )

ð تمه ګر ډېر نشتمن دى . (مستدرک الوسايل: ١٢/٦٨)

  ð د بدمرغۍ له نښو دي : وچ سترګتوب،سخت زړي،د دنيا راټولونې ډېر حرص او پر ګناه ټينګار کول . (الکافي ٢/ ٢٩٠)

 ð يو سړى رسول اکرم (ص) ته راغى او ورته يې وويل : څه راته وښيه ! ورته يې وويل : پر تا (لازم) دي،څه چې له خلکو سره دي ( په اړه يې) نهيلى وسې ( او زړه پرې مه تړه)،چې غنا (خو له واره) حاضره ده . له تمې ډده وکړه، چې سملاسي نيستي ده . سړي  بيا يې وويل: نور څه هم راوښيه ! ورته يې وويل : کوم کار ته چې دې ملا تړله؛نو د پاى په اړه يې ښه غور او تدبر وکړه؛نو که په خير دې و،و يې کړه او که پاى يې په هلاکېدو وه؛نو ډده ترې وکړه. (الوافي  ٤/ ٤١٧)

 

عاقبت

 ðمؤمن د روح قبضولواو د “ملک الموت” تر راښکاره کېدو پورې له (خپل) ناوړه عاقبته په ډار کې وي او الهي رضا ته په رسېدو يقين نه لري .( تاويل الايات الظاهرة: ٥٢٤)

 

عبادت او بنده

ð ډېر غوره هغه دى،چې له عبادت سره مينه ولري او ټينګ يې په غېږ کې نيولى وي او د زړه له کومي ورته ګران وي او په پوره وسې يې ترسره کړي او يو وخت ورته وټاکي،چې پکې ورته مهمه نه وي،چې دنيوي څه تنګسه يا پراخي پرې راځي . ( الکافي ٢/ ٨٣ )

ðڅوک چې خداى ډېر ياد کړي (؛نو) خداى ته به ګران وي .(کافي ٢/٤٩٩)

ðپټ عبادت غوره عبادت دى .( کنز ٣/ ٦٧٣)

ð يوساعت فکر کول ،تر شپېتو کالو عبادته غوره دى . ( کنز ٣/ ١٠٦ )

ð ځانمني د اويا کالو عبادت له منځه وړي .( کنز ٣/٥١٤)

ðپه مينه دعالم مخ ته کتل عبادت دى .( النوادر: مخ ١١٠)

ðپه جومات کې لمانځه ته په تمه کېناستل عبادت دى . (ميزان الحکمه : ٨٣٠٤ ح )

ðڅوک چې د خپل مؤمن ورور اړتيا ترسره کړي ؛نو د داسې چا په څېر به وي،چې ټول عمر يې پرعبادت تېرکړى وي . (الامالي طوسي : ٤٨١ )

ð د لا (اله) الا (الله) د کلمې ويل غوره عبادت دى . (التوحيد: ١٨ مخ)

 ð عبادت اويا برخې دى،چې مهم يې د حلالې روزۍ تر لاسه کول دي . (الکافي  ٥/ ٧٨)

ð ډېر پټ عبادت ته ډېره بدله ورکول کېږي .( وسايل ١/ ٧٩)

  ðد دين د پوهېدو لپاره هڅه کول غوره عبادت دى . (بحارالانوار ١/ ٢١٧)

 ð پراخۍ ته سترګې پر لارېدل غوره عبادت دى .(کمال الدين  ١/ ٢٨٧)

ð سکون او ارامي د عبادت ښکلا ده . (جامع الاخبار: ١٢٢)

ð سستي د عبادت آفت دى .( الخصال ٢/ ٤١٦)

ðقيامت به هله درېږي چې : ګناهګارانو ته پاملرنه وشي او ښه راغلاست ورته وويل شي. منصفان کمزوري شي  او (دلقکها) نژدي شي او عبادت خلکو ته اوږد او سختېږي،د صدقې ورکړه زيان او په امانت کې خيانت کول ګټه وبولي او (په خپل ګومان) لمونځ کول يې (پر خداى) منت اېښوول وي . (بحارالانوار ٦/ ٣١٥)

ð خداى تعالى وايي:کوم بندګان،چې جنتي کوم؛نو په جسمي ناروغۍ يې اخته کوم يا مرګ پرې سختوم،چې راته له ګناه پاک راشي بيا يې جنت ته ننباسم .( الکافي ٢/ ٤٤٦)

 ð صالح بنده ته چې کنځلې وشي؛نو په ځواب کې وايي : زه روژه يم، سلام پر تا! کنځلې درته نه کوم . خداى تعالى وايي: بنده مې د بل بنده له شره روژې ته پنا يووړه؛نو ما هم د دوزخ له اوره وژغوره .(الکافي٤/ ٨٨)

ð خداى تعالى وايي :زه له هغه بنده حيا کوم،چې د دعا لاسونه پورته کړي او د فيروزې غمى يې په ګوته کړى وي؛خو نهيلى يې ستون کړم . (وسايل ٥/ ٩٥)

ð زه د هغه بنده د مړينې اساني او له اوره ژغورنه تضمينوم،چې د لمانځه وختونه او د لمر (راختو او لوېدو) موقعيت څاري . (مستدرک الوسايل  ٣/ ١٤٨)

ð داسې بنده هم وي،چې د يوې ګناه لپاره زر کاله نيول شوى وي؛خو مېرمنې به يې په جنت کې په نازو نعمت کې وي . ( الکافي ٢/ ٢٧٢)

 

عبرت اخستل

ð په دنيا کې د عبرت اخستونکي انسان ژوند د ويده انسان د ژوند په څېر دى،چې ګوري؛خو نه يې لمسوي او له زړه پر دنيا د غولېدو دودونه بد ګڼي،چې د الهي عذاب وړ دي او ځان ترې پاکوي او هغه پر ځان عملي کوي،چې خداى پرې خوشحالېږي  او ( په دنيا  د زړه نه تړلو) په اوبو ټول هغه ځايونه وينځي،چې دنيا ته د بلنې له امله (په زړه کې ورته) ښکلى انځور شوي . عبرت،عبرت اخستونکى له درېو څيزونو برخمنوي : په دې پوهېدل،چې څه کوي،په څه چې پوهېږي،عملي کوي يې او په څه چې نه پوهېږي،پوهېږي . (مصباح الشريعه: ٢٠١)

 

عُجب ( وياړنه)

ð وياړنه د خېل آفت دی . (الکافي ٢/ ٣٢٨)

ð که مؤمن ته تر وياړنې ګناه غوره نه واى ( په دې غاورتوب،چې ګناه نه کوي)؛نو خداى  بېخي د ګناه کولو لپاره د خپل مؤمن بنده لاس ازاد نه پرېښود.( مشکاْةالانوار ٣١٤)

ð خداى تعالى وايي : مؤمن بنده مې د فرايضو په کولو راته نږدېوالى مومي،په بل هېڅ څيز دا چار نشي کړاى او په يقين مؤمن بنده مې د عباداتو يو وره ته مخه کوي؛خو زه يې پرې تړم،چې ځانمنى نشي او پوپناه يې  نه کړي . (التوحيد ٣٩٨)

ð “موسى بن عمران” ( ع) ابليس ته وويل : هغه کومه ګناه ده،چې که بنيادم يې وکړي؛نو ته پرې برلاسي مومې؟ ويې ويل : که ځانمنى شي او خپلې کړنې ډېرې وبولي او خپل ګناهونه په سترګو کې لږ  وبرېښوي . (الکافي ٢/ ٣١٤)

 ð خداى حضرت “داوود” عليه السلام ته وويل : داووده! ګناهګارانو ته زېرى ورکړه او نېکان وډاروه . “داوود” ويل : خدايه! څرنګه دا کار وکړم؟ ورته يې وويل :ګناهګارانو ته ځکه زېرى ورکړه،چې زه يې توبه قبلوم او ګناهونه يې بښم او نېکان ځکه وډاروه،چې پخپلو کړنو ځانمني نشي .

ð درې ګناهونه د هلاکت لامل دي : کنجوسي په ځاني غوښتنو پسې تلل او ځانمني . (الحکايات ٩٧ )

 

عدالت

ð له عادل واکمن سره يو ساعت تېرول تر اوياوو کالو عبادته غوره دى او پر ځمکه،چې د خداى لپاره حد جاري شي؛نو تر څلوېښتو ورځو باران  ورېدو غوره دى . (وسايل ٢٨/ ١٢ )

ð د يو ساعت عدالت جاري کول،د هغو اويا کالو  تر عبادته اوچت دى،چې د شپې پکې په تهجدو بوخت وي او د ورځې روژه وي او د خداى په نزد د يو ساعت ظلم کولو سزا د شپېتو کالو ګناه کولو تر سزا ډېره ده. (مشکاة الانوار: ٣١٦)

ð ډېرعادل هغه دى،څه چې ځان ته خوښوي،نورو ته يې هم خوښ کړي او څه چې ځان ته بد ګڼي،نور ته يې هم بد وګڼي . (معاني الاخبار ١٩٥)

ð عدالت د ايمان ښکلا ده . ( بحارالانوار ٧٤/ ١٣٣)

ð يو ساعت د”عدالت خپرول” تر يوه کال عبادته غوره دي . (مستدرک  ١١/ ٣١٧)

ðحضرت “جابر بن عبدالله” (رضى الله عنه) وايي : يوه ورځ رسول اکرم ( ص) په “جعرانه” نومې ځاى کې غنيمتونه وېشل . چا ورته وويل : عدالت وکړه! رسول اکرم ( ص) ورته وويل : که عدالت ونه کړم (؛نو) بدمرغېږم . [ صحيح بخاري : ٣١٤٨ح]

 

عذاب

خداى په قيامت کې له درېو ډلوعذاب لرې کوي :څوک چې پر الهى قضا و قدر راضي وي . څوک چې پر مسلمانانو زړه سواند وي  او څوک چې نورو ته د خير يه چارو لار ورښيي . (مستدرک الوسايل ١٢/ ٤٣١)

ð پېغمبر اکرم د “حاتم طايي” زوى ته وويل : خداى تعالى ستا له پلاره د سخاوت له امله يې سخت عذاب لرې کړ. (مستدرک الوسايل ١٥/ ٢٦٠)

ð څوک چې د خلکو پت ته له لاس غځولو ډډه وکړي؛نو خدای يې په قيامت کې له عذابه ژغوري او څوک چې پر خلکو له خپلې غوسې ځان وژغوري،پاک خداى يې له الهي عذابه ساتي .( الکافي ٢/ ٣٠٥)

ð د بني اسرائيلو پر يوه ټبر د شپې الهي عذاب راپرېووت او چې  سهار شو؛څلور ډلې يې ځپلې وې : سازيان،ډمان، د خوړو زېرموونکي (محتکرين) او سودخواره . (مستدرک الوسايل ١٣/ ٢٧٣)

 ð  خداى ژبې ته داسې عذاب ورکوي،چې د بدن نورو غړيو ته يې نه ورکوي : ژبه خداى ته وايي : ما ته ولې داسې عذاب راکوې،چې نورو ته يې نه ورکوې ؟ ورته ويل کېږي: له تا داسې خبره راووته،چې ختيځ او لويديځ ته ورسېده او له امله يې (د بې ګناه) وينه تويه شوه او مال په حرامو غصب شو او ناموس څيري شو. پر عزت او پرتم مې قسم! زه به دې هرومرو پر داسې عذاب اخته کړم،چې د انسان د بدن يو غړى به هم پرې اخته نه کړم. (المجتبي: ٢٥)

  ð خدای به هغه زړه په عذاب نه کړي،چې د قرآن لوښى وي . ( الامالي للطوسي: ٦ )

 ðپر هغه قسم،چې زه يې زېرى ورکوونکى نبي رالېږلى يم،چې خداى موحد په اور نه کړوي او (هم) موحدين سپارښت کوي،چې قبلېږي هم. (الامالي للصدوق : ٢٩٥)

ð خداى چې پر کوم امت غوسه شي او عذاب پرې نه راولي؛نو داسې چارې ورسره کوي :نرخونه ورته لوړوي،عمرونه يې لنډوي،سوداګري يې ګټه نه لري،د مېوو حاصلات يې ښه نه وي،سيندونه يې له اوبو نه ډکېږي، باران پرې نه اوري او ډېر ناوړه (واکمن) پرې واکمنېږي. ( الکافى ٥/ ٣١٧)

 

عذاب ژغورنه

ðدرې څيزونه د ژغورنې لامل دي : ( ۱) په پټه او ښكاره له خدايه وېره(۲) په خوښۍ او غوسه كې عدالت كول (۳) او په شتمنۍ او بېوزلۍ دواړو كې منځلاري او درې  څيزونه د پوپنا كېدو لامل دي : (۱) په ځاني غوښتنو پسې تلل(۲) كنجوسي كول (۳) او ځانمني.(الحكايات : ۹۷مخ )

ðدرې څيزونه د ژغورنې لامل دي : ( ۱) ژبه دې وساته (۲) پر ګناهونو دې وژاړه  (۳) او د كور دې  خادم وسه . ( بحار ۶۸ \ ۲۷۹)

 

طلاق

ð خداى ته هغه کور ډېر ګران دى،چې په واده اباد شي او هغه کور يې ډېر بد ايسي، چې په طلاق وران شي . (الکافي ٥/ ٣٢٨)

ð کومه ښځه،چې بې دليله له مېړه طلاق اخلي؛نو د جنت بوى پرې حرام دى .( روضة الواعظين ٢/ ٣٧٦ )

ð طلاق  ډېر (کږلي) منفور حلال دى .( مستدرک الوسايل ١٥/ ٢٨٠ )

  ð واده وکړئ او طلاق مه ورکوئ؛ځکه په طلاق د خداى عرش لړزېږي . (عوالي الاللي ٢/ ١٣٩)

 

 

ضمانت او تضمين

ð څوک چې (له ګناه) د خولې او عورت د ساتنې تضمين راکړي؛ نو جنت ورته تضمينوم . (وسايل ١٦/ ١١٠)

 ð چاچې د حج په اړه د کوم مړي د وصيت ضمانت کړى وي او بې عذره ورته شا کړي؛نو پاک خداى يې لمونځ،روژه او دعا نه قبلوي او په هر شواروز کې ورته سل ګناهونه ليکي،چې ډېره وړه يې له مور و لور سره د زنا هومره ده. (جامع الاخبار: ١٥١)

ð څوک چې د مسلمان ورور د اړتيا د لرې کولو تضمين وکړي؛نو خداى يې اړتياوو ته تر هغه نه ګوري،چې د خپل مسلمان ورور اړتيا يې نه وي لرې کړي . (الجعفريات : ١٩٨)

ðد خداى له فرائضو غفلت مه کوئ،څه چې درته تضمين شوي،پرې بوخت شئ (اخرت ته پاملرنه فرض او د انسان روزي تضمين شوې ده)  (ارشاد القلوب ١/ ٦١)

ðپاک خداى وايي : څوک چې پوهېږي،ګټه او تاون د خداى په لاس کې دى او له ما د کومې اړتيا لرې کول وغواړي؛نو ورته يې پوره کوم .( ثواب الاعمال : ١٥٣)

ð څوک چې له خپلې دنيا سره مينه لري؛نو خپل اخرت ته به يې زيان رسولى وي . (کنزالفوائد ١/ ٦١ )

 

زړه سوى

 ð په زړه سوي کې غوره چار (د خپلوانو) نه ازارول دي .(قرب الاسناد : ١٥٦ )

ðڅوک چې غواړي عمر يې اوږد او روزي يې پراخه شي؛نو پرهېزګاري او زړه سوى دې وکړي . ( الزهد : ٣٩ مخ)

ð جبرئيل خبر کړم،چې د جنت بوى له زر کاله لرې واټنه بويېږي؛خو د موروپلار عاق شوى،سخت زړه او بوډا زناکار به يې بوى نه کړي .( بحارالانوار  ٧١/ ٩٦ )

ð څوک چې د زړه سوي او خپلوانو ته د رسېدو لپاره کوم ګام واخلي؛ نو خدای ورته د سلو شهيدانو ثواب ورکوي او هر ګام ته يې څلوېښت زره نېکۍ ليکي او څلوېښت زره ګناوې يې هم پاکوي او همدومره درجې يې لوړوي او؛لکه داسې دى،چې په پوره زغم يې  يوازې خداى ته عبادت کړى دى . ( بحارالانوار ٧١/ ٨٩)

ð په قيامت کې زړه سوى او امانت ساتنه د صراط پر دواړو غاړو (د دېوال په څېر) وي،چې زړه سواند او امانت ساتى ترې تېرېږي او اور ورته زيان نشي رسولاى . (مستدرک الوسايل ١٥/ ٢٤٠ )

ð څوک چې يو څيز راته تضمين کړي،څلور څيزونه ورته تضمينوم :  زړه خوږى دې وي،چې د خپلوانو ورسره مينه پيدا شي،روزي يې زياتېږي،عمر يې اوږدېږي او خداى يې هغه جنت يې ننباسي،چې وعده يې ورسره کړې . (عيون اخبار الرضا ٢/ ٣٧ )

ð درې څيزونه له اخلاقي مکارمو دي : هغه ته ورکړه،چې ته يې بې برخې کړى يې . له هغه سره اړيکه،چې درسره يې اړيکه پرې کړې او د هغه چا بښل،چې تېرى يې درسره کړى وي  . (مستطرفات السائر :  ٦٥١)

ð زړه سوى سيمې ابادوي،عمرونه اوږدوي،که څه هم اوسېدونکي يې نېکان نه وي . (مستدرک الوسايل ١٥/ ٢٤١ )

ð زړه سوى عمر اوږدوي او نيستي له منځه وړي . (الجعفريات : ٥٥)

ðان که په يو سلام اچولو هم وي؛نو زړه سوى وکړئ . (الجعفريات ١٨٨)

 ð  تر ټولو ښو چارو ډېر ژر د زړه سوي بدله تر لاسه کېږي . (الکافي ٢/ ١٥٢)

ð ډېر داسې قومونه دي،چې نېکان نه دي؛خو زړه سوى لري او (په پايله کې) شتمني يې ډېرېږي او عمرونه يې اوږدېږي؛نو که نېکان وي، څنګه به وي؟( الکافي ٢/ ١٥٥)

ð د خپل امت حاضر او غايبو او هغوى ته چې تر قيامته زېږېږي، وصيت کوم،چې زړه سوى وکړي،که څه هم يوه کلنه لار وي؛ځکه زړه سوى ديني چار دى . ( الکافي ٢/ ١٥١)

ðڅوک چې غواړي رزق يې پراخه او عمر يې اوږد شي؛نو پر خپلوانو دې زړه سوى وکړي . ( صحيح بخاري – صحيح مسلم )

 ð څوک چې له خپلوانو سره ښه چلن نه کوي او زړه سوى پرې  نه کوي ؛ نوجنت ته نشي تلاى . ( صحيح بخاري – صحيح مسلم )

 

صلوات

ð څوک چې ووايي،خداى دې محمد (ص) ته د هغه وړ اجر ورکړي؛نو زر ورځې به يې اويا ليکوال په کار اچولي وي (؛ځکه ددې کار ثواب دومره ډېر دى،چې يو تن يې په زرو ورځو کې په کړنليک کې ليکي).  (بحار الانوار ٩١/ ٦٣)

ð خداى تعالی پرښتې لري،چې پر ځمکه ګرځي او زما د امت سلامونه او درودونه رارسوي . ( وسايل الشيعه ١٤ / ٣٣٨)

ðهغه ډېر کنجوس دى،چې زما نوم واخستل شي؛خو درود راباندې ونه وايي .( کنز: ٢١٤٤ح )

ðپر ما “درود” ويل،د”پل صراط” رڼا ده .( کنز: ٢١٤٩)

ðبېشکه د خداى پرښتې په نړۍ کې ګرځي او ماته مې د امت سلامونه او درودونه رارسوي .( سنن نسائي – دارمي )

ð څوک چې پر ما صلوات ويل هېر کړي؛نو د جنت لار يې ورکه کړې ده.( بحارالانوار ٩١/ ٥٣)

ð څوک چې پر ما صلوات ووايي؛خو پر کورنۍ مې ونه وايي؛نو جنت به بوى نه کړي،حال داچې د جنت بوى له پينځو سو کالو واټنه بويېداى شي . ( الامالي للصدوق : ٢٠٠)

ð صلوات په لوړ غږ ووياست؛ځکه نفاق له منځ وړي . (الکافى: ٢/ ٤٩٣)

ð دعا هله قبلېږي،چې پر ما او اهلبيتو مې صلوات وويل شي.(بحار ٩١/ ٦٦)

 ð پر ما صلوات مو،د دعا د قبلېدو،د پالونکي د خوشحالۍ او د کړنو د قبلېدو لامل دى . (بحار ٩١/ ٦٨)

ð څوک چې په کومه ليکنه کې پر ما صلوات وليکي؛نو څو چې دا ليکنه وي، پرښتې به ورته بښنه غواړي (اللهم صل على محمد و على آل محمد )  (بحار ٩١ / ٧١)

ðد هرې دعا او اسمان ترمنځ يوه پرده ده او دا پرده هله لرې كېږي،چې پر پېغمبر او كورنۍ يې درود ( صلوات ) وويل شي او كه  دا كار و نشي؛ نو دعا بېرته راګرځي . ( بحارالانوار ۲۷\ ۶۰ )

ð پر ما او اهلبيتو مې صلوات ويل د نفاق د منځه وړو لامل دى. (الکافي ٢/ ٤٩٢)

ðڅوک چې راباندې صلوات ووايي؛نو خداى او پرښتې پرې صلوات وايي؛ نو که څوک لږ صلوات وايي يا ډېر!!! (الکافي ٢/ ٤٩٢)

ðڅوک چې راباندې يو صلوات ووايي؛خداى ورته لس صلواته رالېږي،لس ګناهونه يې بښي او لس درجې يې لوړوي .(مستدرک الوسايل ٥/ ٣٣٧)

ð نيمګړى صلوات راباندې مه وائئ : وپوښتل شو: څرنګه؟ آنحضرت ورته وويل: دا چې “اللهم صل على محمد” ووياست،حال داچې بايد “اللهم صل على محمد و على آل محمد” ووياست.

(شرف النبي ٢٤٨ مخ – “الصواعق المحرقه” ٢/ ٤٣٠ – حاشيه الطحاوي على مواتي الفلاح ١/ ٨ )

 ð اصحابو کرامو پېغمبراکرم وپوښت : پر تا باندې په سلام اچولو پوه شو؛خو صلوات درباندې څرنګه دى؟ ورته يې وويل:” اللهم صل على محمد و على آل محمد کما صليت على ابراهيم و آل  ابراهيم.”

 (صحيح مسلم ٢/ ١٦ – سنن ابن ماجه ١/ ٢٩٣ – صحيح بخاري ٤/ ١١٨)

[ تبصره: زموږ ځيني ويناوال او ليکوال يوازې ((صلى الله عليه وسلم)) وايي او ليکي،حال داچې د پېغمبر څرګنده لارښوونه ده،چې بايد ((صلى لله عليه و اله وسلم)) وويل او وليکل شي . ]

 

سوله

ð سوله د مسلمانانو ترمنځ روا ده؛خو نه هغه وخت،چې حرام حلال يا حلال حرام شي . (من لا يحضره الفقيه ٣/ ٣٢)

ð که پر کوم مسلمان ورور مو مينه راغله؛نو ورته يې څرګنده کړئ؛ ځکه چې د اړيکو د ټينګښت لامل ګرځي.(النوادر للراوندي ١٢ مخ)

ð د خلکو پخلاينه تر يو کال روژې نېونې او لمونځ کولو غوره ده. (وسايل ١٨/  ٢٤٠ )

 

صدقه

ð د صدقې په ورکړه (له اسمانه) روزي راکوزه کړئ . ( فقيه ٤/ ٣٨١)

ðخپلوان دې،چې اړمن وي ؛نو نورو ته صدقه ورکول څه پکار؟( فقيه ٤/ ٣٨١) 

ðصدقه د بديو اويا ورونه تړي .( بحار ٩٦/١٣٢)

ðد صدقې په ورکړه،خپل ناروغان له ناروغۍ وژغورئ . (بحار ٩٦/ ١١٨)

ðغوره صدقه داده،چې يو مسلمان پوهه تر لاسه کړي او بل مسلمان ته يې  وښيي .( کنز: ١٦٣٥٧ح )

ðپټه صدقه ورکول،د خداى غوسه سړوي .(بحار ٩٦/ ١٣٠)

ð صدقه د ناوړه مړينې مخه نيسي. (الکافي ٤/ ٢)

ð د صدقې ورکړه مال ډېروي او صدقه ورکړه،چې خداى درباندې ولورېږي.( الکافي ٤/ ٩)

ð د بېوسي لاسنيوى،له غوره صدقو ځنې ده .( الکافي ٥/ ٥٥)

 ð تر خپلې اړتيا د زياتو څيزونو ورکړه،غوره صدقه ده. (وسايل ٩/ ٤٦١)

ðشتمني د صدقې په ورکړه نه لږېږي؛نو بخشش وکړئ او مه ډارېږئ. (مستدرک الوسايل ٧/ ١٥٣)

ð صدقه د ناوړو پېښو مخه نيسي. (مستدرک الوسايل ١٢/ ٣٤٣)

ð د قيامت ځمکه سره ده؛خو بې د مؤمن د سيوري له ځاى،چې  صدقو يې دا سيورى جوړ کړى دى . (الکافي  ٤/ ٣ )

ð ګهېځ مو په صدقه پېل کړئ؛ځکه بلاوې ترې نشي تېرېداى.( مفتاح الفلاح ١٦٤)

  ðخداى د صدقې له ورکوونکي اويا ډوله ناوړه مړينې او بلاوې لرې کوي، چې لږ تر لږه يې غم او خپګان دى . (مستدرک الوسايل ٧/ ١٦١)

ð ګدا چې د شپې درته راشي؛نو مه يې ځوابوئ .( الکافي ٤/ ٨ )

ð که خپلوان مو اړ ول،نورو ته د صدقې ورکړه روا نه ده. (مستدرک الوسايل ٧/ ١٩٦)

 ð مسکين د نړۍ پال استازى دى،چې خلک پرې و ازمېيي؛څوک چې څه ورکړي؛نو خداى به هم پرې ولورېږي او څوک چې يې ځواب کړي،خداى به يې بې برخې کړي . (مستدرک الوسايل ٧/ ١٩٩)

ð د اړتياوو د څرګندولو پر مهال د ګدا خبرې مه پرېکوئ، پرېږدئ، چې پوره خبرې وکړي او له حاله يې خبر شئ.(مستدرک الوسايل ٧/ ١٩٩)

ð ناروغان مو د صدقې په ورکړه ورغوئ او شتمني مو د زکات په ورکړه وساتئ .  (مستدرک الوسايل ٧/ ١٩٩)

ð توحيد نيم دين دى او د روزۍ د لاس ته راوړو لپاره صدقه ورکړئ ( د صدقې د ثواب کچه د وګړي په توحيد پورې اړه لري)  (التوحيد ٦٨)

ðله خلکو سره ښه چلن صدقه ده . ( روضة الواعظين  ٢\٣٨٠)

ðزه داسې صدقه درښيم،چې د خداى او استازي يې ښه ايسي او هغه د مرور پخلا کول دي .( مجموعه ورام ١/٦ )

 

د مؤمن پاڼه

ð د علي مينه،د مؤمن د کړنليک عنوان دى .

 (الجامع الصفين ٢/ ١٨٢ – کنزالعمال ١١/٦٠١ – فيض القدير ٤/ ٤٨١ – د بغدادتاريخ ٥/ ١٧٧ – تاريخ مدينه دمشق ٥/ ٢٣٠ – لسان الميزان ٤/ ٤٧١ – ينابيع الموده ١/ ٢٧٢ ، مناقب ابن مغازلي ٢٤٣ –  النصايح الکافيه ٩٤ مخ)

ð تر مرګ وروسته د مؤمن د کړنليک لومړى سرليک،دده په اړه د خلکو نظر دى،که ښه و (؛نو) ښه دى او که بد و؛بد دى او مؤمن ته (تر مرګ وروسته) لومړى ډالۍ داده،چې خداى يې هغه او د جنازې ګډونوال بښي . ( الامالي للطوسي ٤٦ مخ)

 

زغم او صبر

ð زغم  او وقار دوې ښې ځانګړنې دي . ( صحيح مسلم)  

ð چارې په وقار ترسره کول،د خداى له لوري دي او پکې بيړه کول د شيطان له لوري دي . (ترمذي)

ð ښه خوى،چارې په وقار او ډاډ ترسره کول او منځلاري د پېغمبرۍ (نبوت) د څلروېشتمې برخې يوه برخه ده . (ترمذي)

ðزغم  نيم ايمان دى .( بحار ٨٢/١٣٧)

ð “زغم” ايمان ته داسې دى؛لکه سرچې تنې ته وي . ( کنز ٣/٢٧١)

ð له دوو خويونو ځان وساتئ : له نه زغم او ناغېړۍ . (فقيه ٤/٣٥٥)

ðزغم اوحوصله د خداى ده او بيړه د شيطان . ( المحاسن ١/٢١٥٩)

ðزغم او وقار(مړانه) دوه ښه ځانګړنې دي . ( صحيح مسلم )

ðپوهه د مؤمن ملګرې ده،زغم يې وزير دى،عقل يې دليل او حجت دى،کړنه يې لارښود دى،لورنه يې پلار دى،نېکي يې ورور دی او زغم يې د لښکر بولندوی دی . ( بحارالانوار  ٦٦\٣٦٧)

ðپرهېزګاري عزت دى،زغم ښکلا ده او صبر د سپرلۍ ډېره غوره وسيله ده .( مستدرک الوسايل  ١١\٢٦٣)

ðزه زغم ته مرکز،کړنې ته کان او صبر ته هستوګنځى يم . (پورته سرچينه ١١\٢٨٩)

ðافسوس کول زغم  ته زيان او آفت دى . ( بحارالانوار  ٦٦\٣٨٩)

ðد خداى تعالى حياناک،زغمناک اوعفاف ښه ايسي. (الکافي ١\١١٢)

ðد مؤمن ايمان هله بشپړېږي،چې دا درې ځانګړنې ولري :زغم چې له ناپوهۍ يې منع کړي . تقوا چې له ګناه يې وژغوري او لورنه،چې دوستي يې ښه کړي . ( مستدرک الوسايل  ١١\٨٨)

ðکه په چا کې درې څيزونه نه وي؛نو هيڅ کړه يې نه ټینګېږي : تقوا چې له ګناه يې منع کړي .خوى چې له خلکو سره چلن وکړي او  زغم، چې د ناپوهه ناپوهي ورته پرمخ ووهي .( الحضال  ١\ ١٤٥ )

ðصبر نيم ايمان دى .( ارشادالقلوب  ١\ ١٢٧) 

ðڅوک چې د خپلې مېرمنې پر ناوړوخويونو صبر وکړي؛نو خداى به ددې صبر لپاره ورته د شاکرانو هرمره ثواب ورکړي . (مکارم الاخلاف : ٤٣١)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،که څوک پر خپل دين صبر وکړي؛نو د داسې چا په څېر به وي،چې سکروټه  يې په ورغوي کې نيولې وي .  ( بحارالانوار  ٢٨\٤٧)

ðپر تنګلاسۍ صبرکول او پراخۍ ته هيلمنېدل تر خيانت او له ناوړو پايلو يې غوره دي . ( مستدرک الوسايل  ١١\٤٧)

ðڅوک چې د روزګار کړکېچونو ته د صبر چمتوالى نه  لري؛نو بېوسېږي . ( الکافي ٨\ ٨٦ )

ð څوک چې پر مصيبت صبر وکړي (؛نو) خداى يې بدله ورکوي . ( فقيه ٤/٣٧٧)

ð صبر درې ډوله دى : پر مصيبت صبر،پر طاعت صبر او له ګناه کولو صبر. (الکافي ٢/ ٩١)

ð صبر د سپرلۍ غوره وسله ده .مستدرک الوسايل ١١/ ٢٨٣

 ð خداى وايي : د بنيادم د ټولو کارونو اجر له لسو تر اوه سو ګرايه دى؛ خو صبر چې (يوازې) ماته دى؛نو زه يې بدله ورکوم او د صبر ثواب د خداى د علم په زېرمتون کې دى او صبر؛يعنې روژه. (وسايل ١٠/ ٤٠٤)

ð پر خداى ايمان هله پوره کېږي،چې بنده پينځه ځانګړنې ولري : پر خداى توکل،خداى ته د چارو ورسپارل،د خداى حکم ته غاړه اېښوول، د خداى پر قضا راضي کېدل او پر الهي کړاوو او ازمېښتونو صبر کول . ( بحارالانوار ٧٤/ ١٧٩ )

ð خداى تعالى روزي د (واقعي) لګښت په کچه او صبر د کړاو د سختۍ په کچه راکوزوي . ( بحارالانوار ٧٩/ ٧٣)

ðچې کله ( په قيامت کې) د حساب دفترونه پرانستل کېږي او د عدالت تلې درېږي؛نو کړاو ځپلي ته نه تله وي او نه د حساب دفتر او دا آيت لوستل کېږي:” انما يوفى الصابرون امرهم بغير حساب” ؛ بېشکه چې صابرانو ته پوره بې حسابه اجر ورکول کېږي .(مشکاة الانوار ٣٠٠ مخ)

 

ګهېځ

 ð څوک چې د ګهيح له لمانځه تر لمر راختو پورې د خپل لمانځه پر ځاى کېنې؛نو خداى يې د دوزخ له اوره ساتي.(من لا يحضره الفقيه١/ ٥٠٤)

ð بنده چې سهار کړي او پر چا د تېري نيت ورسره نه وي؛پاک خداى يې ټول ګناهونه بښي . (الکافي ٢/ ٣٣٤)

ð خداى وايي: د آدم زويه! د ګهيځ تر لمانځه څه ساعت وروسته او د مازېګر تر لمانځه څه ساعت وروسته ما ياد کړه،چې د ټولو چارو کفايت دې وکړم . (بحارالانوار ٨٣/ ٢٩٧)

 ð بنده چې سهار کړي او په تن روغ رمټ او روزۍ ګټلو ته خوندي وي؛ نو داسې دى،چې دنيا (ورته مخه کړي او) غوره کړى يې دى .( الامالي للصدوق : ٣٨٥ )

ð کوم امتي مې،چې سهار کړي او موخه يې “غيرالله” وي؛نو د خداى (له بندګانو) څخه نه دى . (المحاسن ١/ ٢٠٤)

ð د چاچې دنيا د شپې او ورځې ستره بوختيا وي؛نو پاک خداى نيستي ورته په سترګو کې ږدي او چارې يې ورته جړوي او له دنيا همدومره ګټه اخلي،چې خداى ورته ټاکلې ده او د چاچې آخرت ګهيځ او ماښام ستره بوختيا وي؛نو پاک خداى په زړه کې غنا ورته ځايوي او چارې يې سموي . (الکافي ٢/ ٣١٩)

 

شيطان

ð مؤمن،چې پر خپلو پينځو لمونځونو ټينګ وي؛نو شيطان ترې ډارېږي؛خو که لمونځ پرېږدي؛شيطان پرې برلاسېږي او لويو ګناهونو ته يې راکاږي .( الکافي ٣/ ٢٦٩)

ð څوک چې د اولاد خاوند شي؛نو بايد په ښي غوږ کې يې اذان او کيڼ کې يې اقامه ووايي؛ځکه دا چار يې له شړل شوي شيطانه ساتي. (الکافي ٦/ ٢٤)

ð که څوک له خپلو ويلو يا، چې په اړه يې څه ويل کېږي،چرت يې پرې خراب نه وي؛نو  يا بې لارې يا د شيطان ملګرى او شريک دى . (الکافي ٢/ ٣٢٣)

ð په حقيقت کې شيطان له تاسې په کوچنيو ګناهونو خوښېږي او هغه ګناه نه بښل کېږي،چې کوونکى يې کوچنۍ وګڼي او ووايي:په دې (وړې) ګناه خو به ونه نيول شم . (مستدرک الوسايل ١١/ ٣٤٧)

 ð ابليس چې کله ( له خپل مقامه) کوز راوشړل شو؛خداى ته يې وويل : ستا پر عزت،جلال او ستريا قسم! د آدم ځوځات به پرېنږدم،څو يې روح له تنې بېل شي.( بحار ٦/ ١٦)

ð خلکو! په واقع کې (نامحرم ته په) بده کتل شيطاني کتل دي،که داسې مو وکړل؛نو له خپلې مېرمن سره کوروالى وکړئ . (من لا يحضره الفقيه ٤/ ١٩)

 ð په جماعت لمانځه چې درېږئ،ليکې مو سمې کړئ او يو بل ته جوخت ودرېږئ،چې شيطان درباندې برلاس نشي .( تهذيب الاحکام ٣/ ٢٨٣)

ð په کورونو کې کوترې مه ساتئ او د ورځې يې دباندې الوځوئ؛ځکه په کورونو کې يې ځالې د شيطان ځاى دى.( وسايل ٥/ ٣١٨ )

ð څوک چې ما په خوب کې وويني؛نو سم خوب يې ليدلى دى،په حقيقت کې شيطان په خوب او وېښه کې زما او زما د وصيانو په بڼه کېداى نشي.( بحار ٣٠/ ١٣٢)

ðبېشکه شيطان خپله پوزه د بنيادم پر زړه ږدي،که د خداى د ياد (بوى) يې بوى کړ (؛نو) تښتي او که د خداى د هېرې (بوى) يې حس کړ؛ نو زړه يې ښوى تېروي،چې ورته “وسواس خناس وايي” ( شيطان باطل او چټي فکرونه د انسان زړه ته اچوي)  (بحار ٦٠/ ١٩٤ )

 ð په حقيقت کې شيطان په انسان کې داسې ننوځي؛لکه وينه،چې په رګونو کې روانه وي . ( بحار ٦٠/ ٢٦٨)

ð که شيطانان د بنيادمانو له زړونو ګردچاپېره نه ګرځېداى؛نو انسانانو د اسمان ملکوت ( او باطن) کتل . (تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي ٣ / ٩ )

 

شهوت

ðتر دې وروسته مې خپل امت ته له درې څيزونو ډېر ډارېږم : حرامې بوختياوې ،پټې شهوتپالنې او سود. (الکافي ٥/ ١٢٤)

ð پر هغه دې خوښي وي،چې نغذ شهوت د ناليدلي وعدې (قيامت) لپاره پرېږدي . (الاختصاص : ٢٣٣)

ð شهوت مو لږ کړئ،چې د فقر زغمل درته اسان وي او ګناهونه مو لږ کړئ، چې له مړينې سره مخامخېدنه درته اسانه شي.(ارشاد القلوب ١/ ٦١)

 

شهادت

ð ( دخداى په لار کې) شهادت ډېره اوچته مړينه ده.(بحار٩٧/ ٨)

 ðڅوک چې په رښتيا شهادت غواړي؛نو که شهيد هم نشي؛نو خداى ورته د شهادت اجر ورکوي . (عوالي الاللي ١/ ١٠١)

ð څوک چې د خپل غصب شوي حق د لاس ته راوړو په ترڅ کې ومري ؛ نو شهيد دى . (الکافي ٥/ ٥٢)

ð پاک خداى لومړى د پېغمبرانو بيا پوهانو او ورپسې د شهيدانو سپارښت مني،چې منل کېږي هم . (بحار ٨/ ٣٤)

ð  چې  قيامت شي؛نو د پوهانو د قلم ارزښت د شهيدانو له وينې سره پرتله کوي؛نو (په پايله کې) د پوهانو د قلم رنګ د شهيدانو پر وينه لوړاوى مومي.(الخصال ١/  ١٥٦)

 

شوخي

ð شپږچارې په مړانه کې شمېرل کېږي، چې درې په سفر او درې په حضر کې دي :

الف – د حضر چارې : د “کتاب الله” لوستل،د خداى د جوماتونو ابادول او دخداى لپاره ورروي کول .

 ب_ د سفر درې چارې : له خپلې توښې پراخ لاسي،ښه خوى او داسې ټوکې چې ګناه پکې نه وي . (صحيفة الرضا ٥١ مخ)

 ð ډېرې ټوکې ابرو، ډېره خندا ايمان او ډېر دروغ د انسان مقام له منځه وړي .( الکافي ٢/ ٦٠٦)

  ð علي! ډېرې ټوکې مه کوه؛ځکه ارزښت او پرتم دې له منځه وړي . ( عوالي الاللي ١/ ١٠١)

 

پېژندنه

ðڅوک چې زما اهلبيت ونه پېژني،له درېو حالتو به وتلى نه وي : يا منافق دى يا ارمونى دى يا په مياشتني عادت کې د مور په ګېډه شوى دى . ( مستدرک الوسايل ٢/  ٢٠ )

ð څوک چې د خپلې زمانې مشر ونه پېژني؛نو په جاهلي مړينه به مړ شوى وي .( الکافي ١/ ٣٧٧ )

ð پر حق پېژاندي دې خداى ولورېږي .( العدد القويه: ٥)

 ð علي!که ته نه واى؛نو تر ما وروسته مؤمنان نه پېژندل کېدل .

(مغازلي مناقب ٧٠ مخ، الطرائف ١/ ٧٧، عيون رضا الرضا ٢/ ٤٨، العمدة ٢٩٢، بحار ٣٨/ ١٤٩)

ðزه او علي ددې امت پلرونه يو،چاچې زموږ حق وپېژاند؛نو خدای يې پېژندلى او څوک چې له موږ انکار وکړي؛نو له خداى يې انکار کړى دى.

 ( ينابيع الموده، ١/ ٣٧٠، د الوسي تفسير ٢٢/ ٣١ ، شرح احقاق الحق سيد مرعسي ١٥/ ٥١٨)

ð څوک  چې دې درناوى وکړي؛نو خداى به يې د قيامت د ورځې له ډاړه خوندي کړي . (الکافي ٢/ ٦٨٥ )

  ðپه ژبه اقرار کول،له زړه پېژندنه او په غړيو عمل کولو ته ايمان وايي. ( بحار الانوار ٦٦/ ٦٣ )

ðايمان لس برخې لري :پېژندنه،طاعت، علم، عمل، ورع،کوښښ، يقين، صبر ، ( په الهي  قضا و قدر) راضي کېدل او تسليم؛نو که يو يې هم  نه وې د ايمان جوړښت به نيمګړى وي . (بحارالانوار ٦٦/ ١٧٥)

ð ( ګېدې مو) مه مړوئ؛ځکه په زړونو کې مو د پېژندنې رڼا مړه کوي. (بحارالانوار ٦٣/ ٣٣١)

 ð تر مرګ وروسته مې امت ته له درېو څيزونو ډارېږم : تر پېژندنې وروسته بې لاري .په فتنو کې ښويېدنه .د ګېډې او عورت شهوتپالي. (الکافي ٢/ ٧٩)

 

توره

ð ټول خيرونه په تورو او د تورو تر سيورې لاندې دي (چې د خداى په لار کې پرې جهاد وشي) او خلکو (دين هم) يوازې په توره او جهاد ټينګېږي،تورې د جنت او دوزخ کونجياني دي.( الکافي ٥/ ٢)

 

ښکار

ðڅوک چې ښکار ته ولاړ شي(له خدايه)غافلېږي . (بحارالانوار ٦٢/ ٢٨١)

ð علي ! زړه په درېو څيزونو سختېږي : دچټي څيزونو اورېدل .تفريحي ښکار او د واکمن دفتر ته تلل . ( روضة الواعظين ٢/ ٤١٤)

 

شکر او مننه

ð پر چاچې لورنې وشي؛نو “الحمدالله” دې ووايي.( وسايل ٧/ ١٧٤)

ð څوک چې د خلکو منندوى نه وي؛نو د خداى مننه هم نشي پر ځاى کولاى . ( الامالي للطوسي : ٣٨٣ )

  ð خداى د منندوى لورونې نورې هم ورډېروي . (الکافي ٨/ ٨١)

 ð ايمان پوره دوه نيمې برخې دى : صبر او  مننه .( بحار الانوار ٧٤/ ١٥٣ )

 ð مؤمن ته حيران يم،په حقيقت کې الهي قضا و قدر يې په خير دى، که  پر کړاو اخته شي،صبر کوي او که لورنه پرې وشي؛نو شکر کاږي. (المؤمن : ٢٧)

ð د شاکر خواړه ورکونکي اجر د هغه روژتي په څېر دى،چې د خداى لپاره يې روژه نيولې وي او څوک چې د روغتيا پر مهال منندوى وي؛نو بدله يې د ناروغ او زغمناک کړاو ځپلي په څېر ده. د لورول شوي د منندوى ثواب د هغه قانع د ثواب هومره دى،چې له هغې لورنې بې برخې شوى دى . ( الامالي للطوسي : ٣٨٣ )

ð څوک چې له خلکو مننه ونه کړي؛نو د خداى شکر به يې نه وي پرځاى کړى . ( مواعظ عدديه : ٣٧ ) 

ð هغه ډېر ښه شکر اېستونکى دى،چې له خلکو سره ډېره مننه وکړي. (کنز ٣/٢٢٦)

 

سپارښتنه (شفاعت)

څوک چې زما له ځوځات سره په لاس،ژبه او شتمنۍ لاسنيوى وکړي، سپارښتنه يې راباندې لازمېږي .(مستدرک الوسايل ١٢/ ٣٧٦)

ð څوک چې زما قبر ته راشي؛نو سپارښت يې راباندې لازمېږي .

 ( الدرمنثور ١/ ٢٣٧ ، سنن الدارقطني ٢/ ٢٤٤ ، جامع الصغير ٢٠/ ٦٠٥، مجمع الزوايد ٤/ ٢)

ðد قيامت پر ورځ  د څلورو تنو شفاعت كوم،كه څه هم د ځمكې د اوسېدونكيو هومره ګناهونه يې كړي وي : زما د اهلبيتو مرستندوى. څوك چې د پرېشانۍ پر مهال يې اړتياوې لرې كړي . څوك چې له زړه او خولې ورسره مينه ولري او څوك چې په لاس دفاع وكړي . ( وسايل الشیعة : ۱۶\۳۳۳)

ð څوک چې خپل فرض لمونځ ځنډوي او په وروستي وخت کې يې کوي،په قيامت کې زما له سپارښنې بې برخې دى . (مستدرک الوسايل ٣/ ٩٧)

  ð په حقيقت کې زما سپارښتنه د خپل امت د ګناهګارانو لپاره ده. ( ان که ستر ګناهونه يې هم کړي وي)  (من لا يحضره الفقيه ٣/ ٥٧٤)

ð څوک چې خپل لمونځ سپک ګڼي،سپارښتنه مې ورته نه رسي او حوض ته مې راتلاى نشي . ( الکافي ٦/ ٤٠٠)

ðپه قيامت کې د څلورو تنو شفاعت کوم : څوک چې تر ما وروسته زما د ځوځات درناوى کوي،چې د هغوى اړتياوې پوره کوي،چې هغوى ته د ورپېښو ستونزو په هوارولوکې هڅې کوي او چې هغوى له زړه اوخولې ښه ګڼي . (بشارةالمصطفى :٣٦)

ðزما شفاعت د امت  د ګناهكارانو په برخه كېږي؛نه د هغوى چې شرك او ظلم يې كړی وي . ( روضة الواعظين  ۲\ ۵۰۱)

ðزما شفاعت د بې انصافه ظالم نه په برخه كېږي .(مستدرك الوسايل ۱۲\۹۹)

 مياشتې

ðڅوک چې د اختر او د پينځلسي پر شپه ويښ وي؛نو زړه به يې پر هغه ورځ نه مري،چې زړونه مړه وي .( وسايل ٧/ ٤٧٨)

ð رجب د خداى مياشت ده،شعبان زما مياشت او رمضان زما د امت مياشت ده. (وسايل ٨/ ٩٨)

ð خيراتونه د شعبان په مياشت کې خپرېږي .(وسايل ١٠/ ٣١٥)

ð څوک چې د شعبان په مياشت کې پر خداى د ايمان او الهي اجر له امله روژه ونيسي؛نو بښل کېږي . ( وسايل ١٠/ ٤٧٨)

ð د شعبان په هره پنجشنبه کې اسمانونه ښکلي کېږي؛نو پرښتې وايي: خدايه! نننى روژه تي وبښه او دعا يې قبوله کړه،څوک چې په دې مياشت کې يوه ورځ روژه شي،پاک خداى يې بدن پر اور حراموي . (وسايل ١٠/ ٤٩٣)

ð شعبان زما مياشت او رمضان د خداى مياشت ده؛نو څوک چې زما په مياشت کې روژه ونيسي،د قيامت پرورځ به يې سپارښتګر يم او څوک چې د خداى په مياشت کې روژه ونيسي،خداى تعالى يې د قبر په هيبت کې مل او ملګرى کېږي .( وسايل ١٠/ ٥٠٦)

 

وينځل

ð څوک چې تر خوړو وړاندې وروسته لاسونه ووينځي؛نو ژوند به يې هوسا او بدن به يې له ناروغۍ خوندي وي . (مفتاح الفلاح ١٧٢)

 

شريک او برخوال

ð که په ختيځ کې څوک ووژل شي او په لويديځ کې يې څوک پر وژنې خوښ وي؛نو د قاتل په څېر دى او د وينې په تويولو کې يې برخوال دى . (بحارالانوار ١٠١/ ٣٨٤)

ð څوک چې د کوم ښه چار لپاره د چا سپارښت وکړي يا پر نېکيو امر او له بديو منع وکړي،يا د کوم ښه چار لپاره چا ته لار وښيي؛نو پکې برخوال دى او څوک چې د ناوړه کار د کولو حکم يا وړانديز وکړي؛نو پکې برخوال دى . (مستطرفات السرائر: ٦٤٣ )

ð لکه شريکباڼى،چې يو له بل سره حساب کوي او آمر،چې تر لاس لاندې سره محاسبه کوي؛نو بنده چې تر دې سخته له ځان سره محاسبه وکړي؛نو هله به مؤمن شي . (محاسبه النفس ١٣ مخ)

 

شرک

 ð د مشرکانو عبادتځايونو ته د هغوى د اختر په ورځو کې مه ورځئ؛ ځکه الهي قهر پرې  نازلېږي . (الجعفريات : ٨٢ )

 ð خداى (د حجاز) جزيره له شرکه پاکه کړه؛خو چې طالع ليدل او پال نيونه يې خلک بې لارې نه کړي .(بحار ٥٥/ ٢٧٧)

 ð زه مې د امت د ګناهګارانو سپارښت کوم؛خو چې شرک او تېرى يې نه وي کړى . (الخصال ٢/ ٣٥٥)

ð چاچې شرک نه وي کړى او ومري؛نو که ښه وي يا بد،جنت ته ځي. (التوحيد ١٩ )

 ð پر تاسې له وړوکي شرکه ډېر ډارېږم . ورته وويل شو: دا څه دي؟ آنحضرت وويل: ريا او ځانښوونه .(د نهج البلاغې شرح ٢/ ١٧٩ )

ðڅلور تنه دي،چې خپلې کړنې بايد له سره ونيسي (مخکېني ګناهونه يې بښل شوي دي): ناروغ،چې روغ شي . مشرک،چې مسلمان شي او حاجي ،چې حج وکړي . (مستدرک الوسايل ٢/ ٦١)

ðڅوک چې خپل لمونځ دومره اوږدوي،چې خلک ورته وګوري،چې څومره اوږ د لمونځ کوي؛نو دا “خفي شرک” دى.   ( ابن ماجه )

ðپه قيامت کې به غږ وشي : چاچې د خداى لپاره څه کړي؛خو بل يې (هم) ورسره شريک کړى؛نو ثواب دې يې له هماغه واخلي؛ځکه خداى د ټولو شريکانو له ګډونه غني اومړه خوا دى .)) ( مسند احمد)

 

شرافت

ð له دينوالو سره ناسته ولاړه،د دنيا او آخرت د شرافت لامل ده . (الکافي ١/ ٣٩ )

ð جبرئيل راته وويل : محمده! څنګه چې غواړې،ژوند وکړه؛خو په پاى کې مرې . څه چې غواړې مينه ورسره ولره،چې هغه به (هم) له لاسه ورکړې . څه چې غواړې ويې کړه (؛خو پوه شه،چې له خداى سره) به دې ليده کاته وشي . د مؤمن  شرف د شپې لمونځ دى او عزت يې د خلکو له ابرو تويولو ډډه کول دي .  (بحارالانوار ٨٤/ ١٤١)

  ð بې تواضع شرافت،بې پرهېزګارۍ کرامت او عزت او بې نيته عمل ګټور نه دي . (وسايل ١/ ٤٨)

ð د انسان شرافت او ارزښت په دين او مړانې کې يې دى . (الکافي ٨/ ٧٩)

 

شراب

ð څوک چې پر هغه دسترخوان کېني،چې شراب پرې اېښي وي؛نو ملعون دى . ( المحاسن ٢/ ٥٨٥)

ð څوک چې پر خداى او اخرت ايمان لري،نه ښايي پر هغه دسترخوان کېني،چې شراب پرې اېښي وي . (الخصال ١/ ١٦٣)

ð په واقع کې شراب د ټولو ګناهونو ريښه ده . ( الکافي ٦/ ٤٠٢)

ð د شرابخور پوښتنه نه بويه،په جنازه کې يې ګډون نه بويه،شاهدي يې نه بويه او چې مرکه وکړي،واده ورسره مه بويه او نه بويه،چې څه ورسره امانت کېښوول شي. (الکافي ٦/ ٣٩٦)

 ð څوک چې تل شراب خوري،په قيامت کې د بوتنمانځي په څېر د خداى حضور ته ورځي . (الکافي ٦/ ٤٠٤ )

ð خداى درې تنو ته د رحمت په نظر نه ګوري : منت اېښوونکى،مور و پلار چې عاق کړى وى او شرابخور.(مستدرک الوسايل ١١/ ٣٦٩ )

ð شراب څښل د روزۍ مخه نيسي.( ١٢/ ٣٣٤)

ð په يوه زړه کې شراب او ايمان (دواړه) نه ځايېږي . (بحارالانوار٧٦/ ١٥٢)

ðهره نېشه ييز (څيز) حرام دى؛نو د څه چې زيات نېشه ييز وي،لږ يې هم حرام دي . (الکافي6/408)

ðخداى لعنت کړي :شراب،شراب ساز، د شرابو ساتونکي، ساقي، شرابخور او   شرابو لېږدوونکى او هغه چې شراب ورته وړي . (مستدرک الوسايل  ١٧\٧٥)

ðپېغمبر اکرم د شراب په جوړولو کې دغه لعنت کړي دي : ((د انګورو بڼوال (باغوان)،د شرابو جوړونکي،وړونکي، پلورونکي، پېرونکي ، سوادګر، منځګړي، شراب ورکوونکي او شرابخور . (وسايل ١٢ \٦٥)

 

شرابخور

ðد شرابوعملي که د نشې په حال کې ومري؛نو له خداى سره به د بوت نمانځي او مشرک په څېر وويني . ( مسند احمد)

 

مړانه او شجاعت

ð ظلم د مړانې آفت دى .(الخصال ٢/ ٤١٦ )

 ð ښه مېړنى هغه دى،چې پر خپلو ځاني غوښتنو برلاسى وي . ( من لا يحضره الفقيه ٤/ ٣٩٤ )

ð موږ اهلبيتو ته اوه ځانګړنې ډالۍ شوي دي،چې تر موږ وړاندې وروسته (دا ټولې يوځاى) چا ته نه دي ورکړل شوي: ګهيځ پاڅېدل، فصاحت،ستريا،مړانه،پوهه ،( له پوهې سره) عمل، له خپلې مېرمنې سره مينه . (بحارالانوار٦٦/ ٤٠٣ )

 

بيړه

ð په حقيقت کې خلک خو بيړې پوپنا کړل او که (د چارو په کولو او هوډ نېونه کې) يې درنګ کولاى؛نو هېڅوک نه پوپنا کېده.( المحاسن ١/ ٢١٥ )

ðحوصله او ارامي د خداى او بيړه د شيطان ده . (مشکاه الانوار: ٣٣٤)

ð په حقيقت کې ښې چارې،چې په بيړه وشي؛نو د خدای خوښېږي. (الکافي ٢/ ١٤٢ )

 ð له خلکو سره په چلن کې له بيړې ډده وکړئ،ښايي هغه مؤمن وي او پوه نشئ . حوصله او نرمي وکړئ او (پوه شئ)،چې بيړه کول د شيطان يوه وسله ده او د خداى نرمي او حوصله ډېره ښه ايسي . (علل الشرايع ٢/ ٥٢٣)

 

ورته والى = يو شان والى

ð ښځې چې ځان نارينه و ته ورته کوي او نارينه يې ښځو ته ورته کوي؛نو خداى پرې لعنت وايي . ( الکافي ٥/ ٥٥٢)

 ð څوک چې د پېغمبرانو په څېر ژوند غواړي او مړينه يې د شهيدانو په څېر وي او د رحمان خداى په پيدا کړي باغ کې مېشت شي؛نو بايد علي خپل امام وبولي او له دوستانو سره يې دوست وي او په هغو امامانو پسې ولاړ شي؛ځکه هغوى زما ځوځات او کورنۍ ده او زما له خټې پيدا شوي دي . خدايه! زما پوهېدنې او پوهه يې روزي کړه! زما د امت پر هغوى دې افسوس وي،چې ورسره مخالفت وکړي،خدايه زما سپارښت يې مه په برخه کوه . (الکافي ١/ ٢٠٨ )

 

شبهات

  ð څوک چې په شبهاتو کې له ورننووتو ډډه وکړي؛نو خپل دين يې ژغورلى دى .  (بحارالانوار ٢/ ٢٥٩ )

 ð ابوذره!په واقع کې پرهېزګاران هغوى دي،چې له هغو څيزونو ډډه کوي،چې ډارېږي شبهې ته به پکې ننوځي . (مستدرک الوسايل ١٧/ ٣٢٣)

 ðحلال او حرام څرګند شوي دي او شبهات يې په منځ کې دي؛نو چا چې شبهات پرېښوول؛نو ځان به يې پر حرامو له اخته کېدو کولو ساتلى وي او څوک چې پر شبهاتو لګيا شي، په پاى کې به پوه نشي؛خو حرام به يې کړي وي . (الکافي ١/ ٦٧)

ð دخداى لاندې څيزونه خوښېږي :د شهوتونو په رادننه کېدو کې تېزې سترګې. د شبهاتو په راکېووتو کې پوره عقل . سخاوت که څه هم د څو کجورو ورکړه وي او مړانه که څه هم د يو مار وژل وي . (بحارالانوار ٦١/ ٢٦٩ )

 

شاهدي ورکول

ð څوک چې د قاضي پر وړاندې په دروغو شاهدي ورکوي؛نو شاهدي يې لا پاى ته نه وي رسېدلې،چې په دوزخ کې ورته هستوګنځى چمتو شوى وي او همداراز د هغه هم،چې شاهد وي؛خو شاهدي پټوي . ( الکافي ٧/ ٣٨٣ )

ð دروغجن شاهد د بې لارو او ناوړو په ليکه کې دى . (دمائم الاسلام ٢/ ٥٠٨)

 ð د هغه ګدا شاهدي نه منل کېږي،چې په ډاګه ګدايي کوي . ( تهذيب الاحکام  ٦/ ٢٤٣)

 

د ماښام خواړه

ðد ماښام د ډوډۍ خوراک مه پرېږدئ، که څه هم د لږې کجورې هومره وي، په يقين وېرېږم، چې امت مې د ماښامنۍ په پرېښوولو (ژر) زوړ شي؛ځکه ماښامنۍ زوړ او ځوان ته قوت وربښي. (وسايل ٢٤/ ٣٣٠ )

 ðڅوک چې دوې شپې سر پر سر ماښامنۍ و نه خوري؛نو بدن يې کمزورى کېږي،چې تر څلوېښتو ورځو پورې يې بېرته پوره کولاى نه شي.( بحارالانوار ٦٣/ ٣٤٥)

 

خوشحالول

 ð د مؤمنانو خوشحالول،د خداى ډېر ښه ايسي . ( الکافي ٢/ ١٨٩)

ðڅوک چې غواړي له ما سره يو ځاى شي او په قيامت کې يې زما شفاعت په برخه شي؛نو زما پر اهلبيتو دې صلوات ووايي او هغوى دې خوشحاله کړي .( وسايل ٧/ ٢٠٣)

ð بنده چې کومه کورنۍ خوشحاله کړي؛نو خداى له دې خوشحالۍ يو مخلوق راپنځوي،چې که دا بنده د قيامت پر ورځ له څه ستونزې يا عذاب سره مخ شي؛ورته مخې ته راځي او وايي :”ولي الله” مه ډارېږه؛ نو بنده دې مخلوق ته وايي : خداى دې درباندې ولورېږي؛که دنيا راسره واى؛نو له تا ځار وه؟هغه ورته وايي : زه د هماغه پلاني کورنۍ خوشحالي يم . (ثواب الاعمال ١٤٩)

ð مسلمان ورور ته روژه ماتى ورکړه او خوشحالول يې تر (ثوابي) روژې درته ستر دى . (الجعفريات ٦٠ مخ )

ð د مسلمان ورور خوشحالول د بښنې لامل دى .( کشف الغمه ١/ ٥٥٢)

 

خوړل

ð په مړه خېټه خوړل د (پيس)برګي ناروغۍ رامنځ ته کوي . ( الامالي للصدوق ٧٤٣)

ð لوږه د رڼا حکمت دى او مړښت له خدايه د لرېوالي لامل دى . (بحارالانوار ٦٣/ ٣٣١)

 ð د مکې د سيمې هومره سره راکړل شول؛خو پالونکي ته مې وويل: دومره نه غواړم؛بلکې غواړم يوه ورځ موړ او بله وږى وسم؛که موړ  وم، تا به ستايم او شکر به دې باسم او که وږې وم  دعا به کوم او تا به يادوم . (الکافي ٨/ ١٣١)

 

د مؤمن خوشحالول

ðڅوک چې مؤمن خوشحاله کړي؛نو زه به يې خوشحاله کړى يم او چاچې زه خوشحاله کړم؛نو خداى يې خوشحاله کړى دى . (سفينة البحار ٢ / ٧٣١)

ðخداى ته تر ټولو غوره چار د مؤمنانو خوشحالول دي .(اصول کافي :٣ټوک – باب ادخال السرورعلى المؤمنين : ١ او٤ حديث )

ðڅوک چې د خپل مؤمن ورور د دنيا له سختيو يوه سختي لرې کړي ؛ نو خداى به يې د آخرت له سختيو يوه سختي لرې کړي . (اثنى عشريه : ١١ مخ )

ðخداى ته ډېرې غوره کړنې دا دي : ١) مؤمن خوشحاله کړې . ٢) لوږه ترې لرې کړې . ٣) له غمونو يې وژغورې .  (اصول کافي : ٣ ټوک، باب ادخال السرور،  ١١  حديث )

ðتر لمانځه وروسته ډېر غوره عمل د مؤمنانو خوشحالول دي . (سفينة البحار: ١ټوک ،٦١٤ او٣٥٢ مخونه  )

ðبنده هغه مهال خداى ته ډېر نږدې وي،چې مؤمن بنده يې خوشحاله کړي . (سفينة البحار: ١ټوک ٦١٤او٣٥٢ مخونه)

 

سخت زړي

ð د چاچې سخت زړي ښه نه ايسي؛نو پر پلار مړي دې ولورېږي،چې د خداى په حکم يې زړه يې نرم شي؛ځکه پلار مړى د حقوقو خاوند دى. (من لا يحضره الفقيه ١/ ١٨٨)

ð د ډېرخور بدن ناروغېږي او زړه يې سختېږي .( الدعوات  ٧٦ مخ)

ð خواړه مو د خدای په ياد،دعا او صلوات پای ته رسوئ او ورپسې (سملاسي) مه څملئ،چې زوړنه مو سختوي .(الدعوات :76 مخ)

ð سخت زړى له خدايه ډېر لرې وي .( الامالي للطوسي ٣ مخ)

ð د بدمرغيو له نښو دي : (له ژړا) د سترګو وچوالى،د زړه سختي،د دنيا د راټولو سخت حرص او پر ګناه کولو ټينګار.( الکافي ٢/ ٢٩٠)

ð تاسې پر (مړيو) خپلوانو له خاورو اچولو منع کوم؛ځکه د سخت زړۍ لاملېږي او څوک چې سخت زړى شي له پالونکي لرې کېږي .(علل الشرايع ١/ ٣٠٤)

 

نښې

ð د يوه اوږده حديث په ترڅ کې راغلي چې : مسيحي مشهور راهب “شمعون بن لاوي” [چې نيکه يې د حضرت عيسى عليه السلام له حواريونو و] رسول اکرم ته راغى او پوښتنې يې وکړې،چې ځينې يې دا دي : د اسلام نښې راته ووايه . ورته يې وويل:ايمان،علم او عمل . ويې ويل : د ايمان، علم  او عمل نښې راته ووايه . ورته يې وويل: ايمان څلور نښې لري : د “الله تعالى” پر “توحيد” اقرار کول،له زړه يې پر خداى، کتابو او استازيو ګروهه درلودل . علم هم څلور نښې لري : پر خداى علم،د خداى د دوستانو پېژندل،پر الهي فرايضو پوهېدنه  او پرې څارنه،چې سم تر سره شي او له لاسه  و نه وځي. عمل دا دى: لمونځ،روژه،زکات او اخلاص (،چې دا په زړه پورې اړه لري)او همدا راز ويې پوښتل : د رښتين نښې راته ووايه . ويې ويل : څلور نښې لري چې دا  دي : چې د واقعيت له مخې خبرې  وکړي،د خداى زېرى او ژمنې تاييد او تصديق کړي،ژمنه پوره کړي او تړون مات نه کړي . د مؤمن نښې راته ووايه . ويې ويل : مهرباني،پوهېدنه او حيا. د زغم نښې راته ووايه.ويې ويل: په نادودو کې صبر کول، ښو چارو ته هوډ کول،عاجزي او حوصله.د توبه ګار نښې راته ووايه. ويې ويل: بې له ټګۍ برګۍ د خداى لپاره کار کول،باطلو ته شا کول،له حقه لاس نه اخستل او خير ته حرص کول . د منندوى نښې راته ووايه . و يې ويل :  پر نعمت شکر اېستل، پر کړاو صبر،پر قسمت قناعت،د غير الله درناوى نه کول . د خاشع نښې راته ووايه . ويې ويل : په پټه او ښکاره د الهي لارښوونو لاروي او څارنه،د ښو چارو کول،د قيامت په باب فکر کول او له خداى سره مناجات . د صالح نښې راته ووايه. ويې ويل: خپل زړه دې نږه کړي،خپل کړه او کسب دې سم کړي او ټولې چارې دې سمې روغې رمټې کړي. د ناصح نښې راته ووايه . ويې ويل :  په حق پرېکړه وکړي،د خلکو حق دې ورکړي،بې له دې،چې څه ترې وغواړي،څه چې ځان ته غواړي،هماغه نورو ته هم وغواړي او پر هېچا تېرى ونه کړي . د باوري خلکو نښې راته ووايه . ويې ويل : د خداى پر شتون باور وکړي او ايمان پرې راوړي،يقين وکړي،چې مرګ حق دى او ترې وډار شي،يقين وکړي،چې د قيامت ورځ حق ده او د هغې ورځې له رسوا کېدو وډار شي. يقين ولري،چې جنت حق دى او شوق ورسره ولري، يقين ولري،چې دوزخ حق دى او په ښکاره ترې دژغورنې لپاره هڅه وکړي،يقين وکړي چې حساب حق دى او له ځان سره محاسبه وکړي. د مخلص نښې راته ووايه . ويې ويل: (د شرک،کفر او کينې له چټليو) د زړه روغ رمټ ساتل، د غړيو روغ رمټ ساتل(چې څوک نه ځوروي او ګناه پرېږدي) خير رسول او د شر نه رسول . د زاهد نښې راته ووايه . ويې ويل: حرامو ته نه لېوالتيا،(له شهوتونو) ډډه کول،د فرايضو ترسره کول،که تر لاس لاندې وي،د  اطاعت او لاروۍ ښه دود وپېژني او که برلاس وي؛نو تر لاس لاندې خلکو سره د چال چلن پر دود پوه وي او تعصب ونه لري،په زړه کې يې کينه نه وي ،که څه  هم چا ورسره بد کړي وي؛نو دى ورسره نېکي وکړي،سره له دې،چې زيان يې وررسولى وي،دى ورته ګټه ورسوي،له ظالم تېر شي او د خداى د حق لپاره تواضع وکړي . د نېک انسان نښې راته ووايه . ويې ويل : د خداى په لار کې دوستي،د خداى په لار کې دښمني،د خداى لپاره ملګرتوب،د خداى لپاره بېلتون،د خداى لپاره غوسه،د خدای لپاره خوشحالي،د خداى لپاره کړنه،خداى ته لېوالتيا او د خداى لپاره ډار،پاکي،اخلاص،حيا څارنه او احسان کول . د پرهېزګار نښې راته ووايه . ويې ويل : له خدايه وډار شي او له عذابه ځان وژغوي،داسې ماښام سهار کړي؛لکه چې هغه يې ويني،دنيا مهمه ونه ګڼي او د ښه خوى له امله دنيا ستره ونه بولي. د متکلف نښې راته ووايه . ويې ويل : په چټي چارو کې شخړه نه کول،تر ځان لوړ سره جګړه ماري نه کول،څه ته چې رسېداى نشي، ورته تمه نه درلودل . د ظالم نښې راته ووايه . ويې ويل : تر لاس لاندې په زور وځوروي،د حق دښمن او په څرګنده تېرى او (له ظالمانو سره مرسته) کوي . د ريا کار نښې راته ووايه . ويې ويل : د خلکو په مخ کې په خدايي کار کې حرص کول؛خو چې ځان ته شي؛نو ناغېړي کوي،دا يې ښه ايسي،چې خلک يې ټولې چارې وستايي او د خپلې نېکنامۍ لپاره هڅه کوي . د منافق نښې راته ووايه . ويې ويل : باطن يې ناکاره وي،ژبه يې له زړه سره، وينا يې له کړنې سره او دننه يې له برسېره سره اړخ نه لګوي. د کينه کښ نښې راته ووايه . ويې ويل : غيبت،غوړه مالي او په مصيبت کې شماتت . د اسرافکار نښې راته ووايه. ويې ويل: په باطلو وياړي،د هغه څه خوړل (او لګول)، چې په لاس کې يې نه وي. د هغه څه اخستل او خوړل،چې له شان سره يې مناسب نه وي . دغافل نښې راته ووايه. و يې ويل: د زړه ړوندوالى،تېروتنه،لوبې او هېره يې نښـې دي . د لټ نښې راته ووايه . ويې ويل : د لنډون تر پولې په چارو کې لټي کول،د کار د خرابۍ او پوپنا کېدو تر پولې لنډون،د ګناه له پولې اوښتل (او د فرايضو پرېښوول) او ستړيا . د دروغجن نښې راته ووايه. ويې ويل: په خپله رښتيا نه وايي،نور رښتين نه ګڼي،چغلي کوي (خبر وړي راوړي) او تورونه تپي. د فاسق نښې راته ووايه . و يې ويل : لوبې  کول،چټي چارې کول،دښمني کول او تور لګول .د خاين (او بې عدالته) نښې راته ووايه . و يې ويل : له خدايه سرغړاندي،د ګاونډي ځورونه،له نږدې خلکو سره کينه درلودل او سرغړاندۍ ته لېوالتيا.( د جنتي ژباړه ،تحف العقول ٢١ مخ.)

 

د فيزيولوژيکي انګېزو په اړه احاديث

ð بنيادم يوازې په درې څيزونو کې حق لري : ( ١)کور،چې پکې و اوسېږي . ( ٢) جامې،چې وا يې غوندي . ( ٣) اوبه او ډودۍ . ( شيباني ٤/ ١٤٢)

ð مسلمانان په دريو څيزونو کې برخوال دي :” اوبه ، واښه، اور” . (ابوداود،کتاب البيوع ٤٧٧ ٣ ګڼه حديث)

ð که څوک موږ ته کار کوي؛نو ښځه دې وکړي،که خادم نه لري، خدمتګار دې ونيسي،که کور نه لري،جوړ دې يې کړي . (ابوداود،کتاب الخراج والادراه ٢٩٤٩ ح)

ð که ناروغ مو څه ته اشتها درلوده؛نو وريې کړئ . (ابن ماجه لومړى ټوک، ١٤٣٩ حديث)

ð تر اودسماتي وروسته دعا: د خداى شکر دى، چې دا رنځ يې رانه لرې کړ او ارام يې کړم . ( ابن ماجه لومړى ټوک، ٣٠١ حديث)

ð که له تاسې هر يو خپله ورځ په ډاډه زړه او روغه سټه او ورځنيو خوړو پيل کړئ(؛نو)داسې ده،چې لکه ټوله دنيا ورکړ شوې وي .( ترمذي، کتاب الزهد ٩ / ٢٠٨ )

ð بنيادم تر خپلې ګېډې بدتر لوښى نه دى ډک کړى، بنيادم ته همدومره خواړه بس دي، چې ملا يې پرې سمه شي (انرژي واخلي) او که خوله يې و نه نيواى شوه ؛نو د معدې له څلورو برخو دې درې برخې خوړو اوبو او سا اېستو ته پرېږدى . (او يوه برخه دې مړوي.)  (ترمذي  ٢/ ٢٢٤)

 

د بشري نوعي د پايښت په اړه احاديث

ð واده کول زما له سنتو دي؛نو څوک چې زما پر سنتو عمل و نه کړي، له ما ځنې نه دى.واده وکړئ؛ځکه زه پر امتونو ستاسې پر ډېرښت وياړم،د چاچې له وسې پوره وي؛ واده دې وکړي او چې بېوسى وي روژه دې ونيسي؛ځکه روژه د شهوت مخه نيسي . ( ابن ماجه لومړى ټوک ١٨٤٦ حديث)

ð له مهربانې او زېږندونکې ښځې سره واده وکړئ؛ځکه زه پر ملتونو ستاسې پر ډېرښت وياړم . ( ابو داود ٢ټ / ٢٠٥٠ ح)

ð له تاسې چې هر يو کوروالى کوئ؛نو صدقه ده.( مسلم ٧/ ٩١ او ٩٢ مخونه)

ð له حضرت “جابر بن عبدالله” روايت دى،چې : پېغمبر اکرم تر ګوتو وهلو او ملاعبې مخکې کوروالى منع کړى دى . ( ابن قيم الجوزيه: الطب السبوي ٢٣٤ مخ)

ð د پېغمبر اکرم په يوه ځاى کې دمه شوه،يو صحابي کونج ته ولاړ او د يو مارغه هګۍ يې راوړه. مارغه د پېغمبراکرم او اصحابو پر سر په الوتو شو. آنحضرت ويل : تاسې کوم يو دا مارغه ځورولى دى؟ يوه ويل : ما يې هګۍ راوړې . آنحضرت ورته وويل: بېرته يې يوسه او په بل روايت کې راغلي،چې پرې ولورېږه او هګۍ يې بېرته يوسه . (احمد ١/ ٤٠٤ )

 

مور

ð يو سړي د خپلې مور د بدخويۍ په اړه پېغمبر اکرم ته شکايت وکړ؛ خو په ځواب کې يې ورته وويل : چې نهه مياشتې يې پر ګېده وې؛نو بدخويه نه وه! سړي وويل : هغه بدخويه ده. آنحضرت ورته وويل: او چې دوه کاله شيدې يې درکړې؛نو داسې نه وه! سړي وويل: هغه بدخويه ده. هغه وخت چې ستا لپاره د شپې نه ويدېده او د ورځې يې تنده تېروله؛نو داسې نه وه . سړي وويل : بدله مې يې ور پوره کړه. پېغمبر اکرم وويل : څه دې ورته ورکړل؟ويې ويل: پر شا مې حج ته بوتله. ورته يې وويل:ان د لنګوال د يو درد بدله دې هم نه ده ورکړې . ( زمخشري،کشاف تفسير: ٢/ ٤٤٥)

ðمور ته دې پام وسه! مورته دې پام اوسه! مورته دې پام اوسه! بيا دې پلار ته او ورپسې څوک چې درته نږدې وي .(نهج الفصاحه : ١٠٩ مخ)

 

د اروايي او روحي انګېزو په اړه احاديث

ðهر زوکړي پر “فطرت” زېږوي او دا مور و پلار يې دي،چې هغه يهودي، مسيحي او مجوسي کوي؛لکه څنګه چې څاروي،پوره څاروي زيږوي،ايا پکې نيم پوزې ګورئ؟ حضرت ابوهريره وويل : که غواړئ، ويې لولئ: فطرة الله التى فطر الناس عليها .

(بخاري – مسلم، ابوداود او ترمذي (شيخ منصورعلي ناصف، التاج الجامع  في احاديث الرسول ٥ / ١٩٦)

ð هر انسان په فطرت زېږي،تر هغه چې خولى يې پرې وازېږي؛نو په دې وخت کې يې مورو پلار يهودي او نصراني کوي . (احمد ٣/ ٤٣٥ )

ð له حضرت “حذيفه بن يمان” روايت دى،چې پېغمبر اکرم موږ ته دوه حديثونه وويل،چې د يو عملي کول مو وليدل او د بل عملي کېدو ته سترګې پر لار يو. موږ ته يې وويل : امانت د خلکو د زړونو په تل کې کېناست بيا قرآن نازل شو او له قرآنه يې زده کړل او له سنتو يې زده کړل . (بخاري – مسلم  او نووي: ١/ ٢٢٢)

ð پالونکي مې راته امر وکړ،نن يې چې راته څه وښوول،تاسې ته يې(هم) دروښيم، چې نه پوهېږئ:”بنده ته مې،چې څه شتمني بښلې (ورته) حلاله ده او ما خپل ټول بندګان حنيف (مؤحد او پر دين ولاړ)  پيدا کړي دي؛خو شيطانان ورته ورغلل او له خپل دينه يې بې لارې کړل او څه چې مې ورته رواکړي ول،پرې يې حرام کړل او ورته يې وويل داسې څه د خداى سيالان کړئ،چې په اړه يې ما کوم دليل نه دى نازل کړى .) (مسلم  او شيباني ٤/ ٣٢)

 

د سيالۍ د انګېزې په اړه

ð زه تر تاسې مخکې ځم او زه درباندې ګواه يم،پر خدای قسم،چې همدا اوس خپل (د کوثر) حوض وينم،د ځمکې د زېرمو کونجيانې راکړل شوې . پر خداى قسم،ستاسې په باب مې له دې وېره نه ده، چې تر ما وروسته به مشرکان شئ؛بلکې له دې مې وېره ده، چې د دنيا په اړه به په سيالۍ کې اخته شئ .( بخاري او مسلم ( شيباني ٤ / ١٨٣)

ð پر خدای قسم،زه پر تاسې له فقره نه ډارېږم؛بلکې له دې ډارېږم،چې دنيا درباندې پراخه شي؛لکه چې پر ړومبنيو مو پراخه شوې وه او د هغوى په څېر پکې په سيالۍ اخته شئ او د هغوى په څېر مو پوپنا کړي.  (بخاري،کتاب، فرض الخمس باب الجزية والموادعة)

ð يوازې په دوو څيزونو کې سيالي وکړئ : چا ته چې خداى قرآن وربښلى وي او شپه و ورځ پرې لګيا وي، لارښوونې يې عملي کوي؛نو يو څوک ووايي،چې کاشکې د پلاني په څېر ما ته هم راکړل شوي واى، چې د هغه په څېر مې عمل کولاى او بل هغه چې خداى ورته شتمني ورکړي وي او انفاق او صدقه ترې ورکوي؛نو يو بل ووايي چې: کاشکې د هغه په څېر ماته هم راکړ شوې واى،چې ما هم صدقه ورکولاى . ( د امام احمد حنبل مسند ٤/ ١٠٥ )

ð له حضرت “عبدالله بن عمر” نه روايت دى چې:پېغمبر به اس د سيالۍ لپاره چمتو کاوه . ( بخاري، مسلم، ابوداود،ترمذي، نسايي شيباني ٢/ ١٦٣ )

 

د مالکيت انګېزه

ð که بنيادم د سرو دوه سيندونه درلوداى بيا يې هم ښه اېسېدل،چې درېم هم ولري،يوازې خاوره ده،چې بنيادم مړولاى شي(او بس) او خداى د توبه ګار توبه قبلوي . (ترمذي، ابواب الزهد ٩/ ٢٠٥ )

ð زوړ زړه له دوو څيزونو سره په مينه کې ځوان وي : اوږد ژوند او ډېره شتمني .( پورته منبع )

 

د انګېزې او عاطفې تر منځ اړيکه

ð خدايه! له لوږې پناه دروړم؛ځکه ناړه ملګرې ده . (ابوداود، نووي ، ٢/ ١٠١٣ مخ)

ð خداى تعالى وايي : روژه زما لپاره ده او زه يې په خپله بدله ورکوم، روژه تي ته دوه خوشحالۍ دي،يو د روژه ماتي پر وخت او بل له خپل پالونکي سره د ليدو پر مهال . (نسايي ٤/ ١٥٩ )

ðمسلمان ورور ته روژه ماتى ورکول او زړه يې خوښول تر (ثوابي ) روژې نيولو ورته ډېرثواب لري .(الجعفريات : ٦٠مخ)

 

د انګېزو تر منځ  شخړه

ð زما مثال د هغه سړي په څېر دى،چې اور بل کړي او همداچې شاو خوا يې رڼا شي؛نو پتنګان او حشرات پکې ځانونه غورځوي،دى يې شړي؛خو هغوى بيا هم ځان اور ته غورځوي،دا دى زما او ستاسې مثال. زه تاسې د ملا له بنده نيسم او له اوره مو لرې کوم او وايم : پام! پام،چې اور دى!؛ خو تاسې مې ټېل وهئ او ځانونه پکې اچوئ .(مسلم ١٥/ ٤٩ )

ð هغه ځيرک دى،چې خپل نفس کابو کړي او تر مرګ وروسته  نړۍ ته کار وکړي او هغه بېوسه دى،چې خپل نفس د خپلو هوسونو او غوښتنو تابع کړي او له خدايه هيلې غواړي .( ترمذي،احمد او ابن ماجه (شيباني ٤/ ١٨٤ )

ð دنيا ښه او خوږه ده او تاسې پکې د خداى ځايناستي ياست،چې وويني،څرنګه چلن کوئ؛نو له دنيا او ښځو ډډه وکړئ؛ځکه د بني اسرائيلو لومړۍ فتنه (او ازمېښت) له ښځو وه. مسلم،نووي ١/ ١٠٣، ١٠٤ )

ð زما تر مړينې ورسته ښځې نارينه و ته ډېره زيانمنه فتنه ده . بخاري، مسلم ( نووي ١/ ٢٩٠)

ð پر تاسې له دې څيزونو ډېر ډارېږم : شهوت، پيسې، ګېډه، عورت او بې لارې کوونکې فتنې .( شيباني: ٤ / ٣٠٩)

ð له دنيا مې ښځه او عطر خوښېږي او لمونځ مې د سترګو رڼا ده. (نسائي،احمد او حاکم ( ناصف التاج الجامعه ٢ / ٢٧٩)

ð د حضرت عثمان بن مظعون(رض) ښځه په جړو وېښتانو حضرت عايشې بي بي ته راغله . عايشې بي بي ورته وويل: ولې داسې يې؟ ښځې ورته وويل :مېړه مې د ورځې روژه وي او د شپې پر عبادت بوخت وي . پېغمبر اکرم چې راغى(؛نو) عايشې بي بي ورته دا کيسه وکړه : رسول اکرم چې حضرت عثمان وليد، ورته يې وويل : عثمانه! رهابنيت راباندې فرض شوى نه دى؛خو ايا زه درته بېلګه نه يم؟ پر خداى قسم! زه تر تاسې ټولو له خدايه ډېر ډارن يم او تر هر چا يې ډېر پولې او حدود په پام کې نيسم اوعملي کوم . (احمد ٦ / ٢٦٤)

ð درې تنه د پېغمبر اکرم د ښځو کورونو ته ورغلل،چې د پېغمبر د عبادت په اړه وپوښتي؛نو چې خبر شول،هغه يې ډېر لږ وګاڼه؛نو ويې ويل : موږ له پېغمبر سره توپير لرو، د هغه وړاندې وروسته ګناهونه بښل شوي دي،وروسته يې يو وويل :بيا زه ټوله شپه پر لمانځه او عبادت تېروم . بل وويل : زه مدام روژه يم . درېمني يې وويل: زه هم له خپلې ښځې ګوښه کېږم او کله به هم ورسره کوروالى ونه کړم . په دې ترڅ کې پېغمبراکرم راغى او ويې ويل : دا ستاسې خبرې  وې؟ پر خداى قسم  زه تر تاسې ټولو له خدايه ډېر ډارن او پرهېزګار يم؛خو کله روژه يم او کله نه،لمونځ کوم  او د شپې چې ويده کېږم،له ښځو سره کوروالى هم کوم؛نو چاچې زما له سنتو مخ واړاوه؛نو له ما ځنې نه دى . (بخاري،مسلم او نسايي (ناصف ٢ / ٢٧٨)

ð عبدالله! ځينې ورځې روژه نيسه او ځينې ورځې يې خوره، د شپې په يوه برخه کې عبادت کوه او په يوه کې يې ويده کېږه؛ځکه بدن دې هم درباندې حق لري،سترګې دې هم درباندې حق لري او ښځه دې هم درباندې حق لري .( بخاري : ١٩ ټ / ٥١٩٩ ح، مسلم (منذري ٦٢٨ ح)

ð پېغمبر اکرم د دنيا پرېښوول منع کړي دي . (نسايي،کتاب النکاح باب النهي عن التبتل (٦/٥٩)

ð  دين اسان دى او کله هم څوک له دين سره ځان نه اړموي ؛خو دا چې مغلوب شي؛نو منځلاري خپله کړئ او نږدې شئ او خوشحاله وسئ او له ګهيځ ،مازيګر او لږ څه له شپې مرسته وغواړئ . او په بل روايت کې راغلي چې : او نږدې شئ او ګهيځ او مازيګر او لږه شپه( په عبادت کې تېره کړئ)منځلاري،خپله کړئ،چې (موخې ته) ورسئ . (بخاري (نووي ١ / ١٦٨)

امام نووي ( ١/ ١٦٨) ددې حديث په تفسېر کې وايي : د دې حديث مانا داده،چې د خداى عبادت پر داسې مهال وکړئ،چې بدن مو روغ رمټ او طبيعت مو جوړ وي،چې خوند ترې واخلئ او ستړي نشئ؛لکه څنګه چې مسافر په ګهيځ،مازيګر او د شپې په يوې برخه کې لار وهي او نور وخت استراحت کوي،چې بې ستړيا خپلې موخې ته ورسي. د نږدې شئ مانا داده،چې که يو کار پوره نشئ کولاى؛نو ورته خو  نږدې يې کړئ.

 ð پېغمبراکرم جومات ته راننووت،ويې ليدل،چې د دوو تنو تر منځ يوه رسۍ غځول شوې وه. ويې ويل : دا د څه لپاره؟ورته وويل شو،چې دا کار زينب کړى دى،چې کله بې حاله شي؛نو هغه به نيسي . پېغمبر وويل : رسۍ ايله کړئ او لمونځ مو په سم حال او  ښېرازۍ کې وکړئ او چې ستړي شئ؛استراحت وکړئ . (بخاري او مسلم ( نووي ١ / ١٦٩)

 

د انګېزو کابو کول

( الف) د حلالو له لارې کابو کول

خلکو! ستر يوازې الله دى او يوازې پاک قبلوي، ستر خدای مؤمنانو ته هماغه ويلي،چې استازيو ته يې ويلي دي . ويلي يې دي :” استازيو! له پاکو څيزونو وخورئ او نېکې چارې وکړئ” او ويلي يې دي : “مؤمنانو! له پاکو څيزونو مو چې روزي درکړې،وخورئ”.بيا آنحضرت د يوه سړي مثال راوړ،چې اوږده لار يې وهلې،ستړي او په دوړو خيرن لاسونه اسمان ته پورته کوي او پالونکيه! پالونکيه! وايي . حال داچې خواړه، څښاک او اغوستن يې حرام دي او په حرامو موړ شوى دى؛نو ددغسې وګړيو دعا خو نه قبلېږى؟

(“مسلم” او “ترمذي” (شيباني ٢/ ١٣٧ – ١٣٨) “احمد” او “دارمي”.)

ðاو ځينې وګړي په ناحقه د خداى مال ته لاس ورغځوي او د قيامت پر ورځ يې برخه اور دى .( “بخاري” او “ترمذي” (شيباني ٤/ ١٣٨)

ð حلال څرګند دي،حرام هم څرګند دي او د دوى ترمنځ شکمنې چارې دي،چې ډېرى خلک د هغوى (په حلالو او حرامو) نه پوهېږي؛نو څوک چې له شبهاتو ځان وساتي؛خپل دين او پت يې ساتلى دى او څوک چې  په شبهاتو کې ولوېد؛په حرامو کې لوېږي؛لکه د هغه شپانه په څېر،چې (خپله رمه) د پاڼ پر غاړې څروي او نږدې وي،چې ولوېږي . پوه شئ،چې هر پاچا څر ځاى لري او د خداى څر ځاى د هغه حرام دي .(بخاري، مسلم ، ابوداود، “ترمذي” او نسايي (شيباني ٤/ ١٣٨)

ð زنا کار د زنا پر مهال مؤمن نه دى . غل د غلا پر مهال مؤمن نه دى. شرابخور د شراب څښلو پر مهال مؤمن نه دى او د هغه قيمتي څيز لوټونکى د لوټلو پر مهال مؤمن نه دى،چې د خلکو سترګې وراوړي. (بخاري،مسلم،ابوداود، ترمذي،نسايي ( شيباني ٤/ ٣٠٩ – ٣١٠)

(ب ) په منځلارۍ د اړتياوو د پوره کولو دود

ð وخورئ،وڅښئ او واغوندئ؛خو له پولو مه اوړئ (اسراف مه کوئ) او کبرجن مه وسئ.[بخاري ( ناصف ، ٣ / ١٦٣)]

ð د دوو تنو خواړه،درېو ته (او په بل روايت کې څلورو تنو) ته بس دي  او د درېو تنو خواړه څلورو ته بس دي او په بل روايت کې د څلورو تنو خواړه اتو تنو ته بس دي . (شيباني ٢/ ١٣٠)

(ج) د جنسي انګېزې کابو کونه

ðد ځوانانو ټوليه! د هر يو،چې له وسې پوره وي؛نو واده وکړئ؛ځکه واده له حرامو د ژغورنې لامل دى،چې (انسان) پاکلمنى کوي او چې څوک وس نه لري،روژه دې ونيسي؛ځکه روژه شهوت لرې کوي . (بخاري ١٩/ ١٢٩ – احمد ١/ ٤٤٧)

ðپېغمبر اکرم : عکافه! مېرمن دې شته؟ ورته يې وويل : نه . ((وينځه دې شته؟)) ورته يې وويل: نه . ورته يې وويل: شتمني دې شته ؟ ورته يې وويل : هو! پېغمبر وويل : ((نو ته د شيطان له وروڼو يې، که نصراني وې؛ نو د هغوى يو راهب به وې؛خو زما سنت واده دى . په تاسې کې ډېر ناوړه “بې واده” دي او دا ډېر ناوړه،مړى مو (هم) بې واده دی . ايا له شيطان سره لوبې کوئ،ښځې صالحانو ته د شيطان تېرې تورې دي؛خو واده والا له چټليو خوندي دي .”عکافه” افسوس درباندې! “ايوب”،”داوود”،”يوسف” او “کرسف” مېرمنې درلودې ))وپوښتل شو: کرسف څوک  و؟ آنحضرت ورته وويل: (( يو سړى و، چې د سمندر پر غاړې يې درې سوه کاله عبادت کاوه،د ورځې روژه او شپه يې پر لمانځه تېروله بيا پر يوې ښځې مين شو او د خداى عبادت يې پرېښود او پر ستر خداى کافر شو بيا يې خداى له تېرو تېر شو او د هغه توبه يې ومنله .”عکافه”! پر تادې افسوس وي،واده وکړه او که نه له مذبذبانو به يې.( احمد ٥ / ١٦٣ – ١٦٤)

ð که د چا دين او خوى مو ښه ايسېده او (د خور لور) غوښتنې (او مرکې) ته مو راغى؛نو وريې کړئ،که داسې ونه کړئ؛نو پر ځمکه به ګډوډي او فساد خپور شي. (ترمذي٥ / ٣١٥  ابن ماجه ، باب النکاح)

ð د نجلۍ چې مياشتنى (عادت) راغى؛نو سمه نه ده (چې داسې جامې واغوندي،چې) بدن يې ترې معلوم شي؛خو بې له مخ او لاسونو يې . (ابوداود،کتاب اللباس ٤/ ١٤٠٤ حديث)

ðعلي!پرله پسې مه ګوره؛ځکه  لومړى کتل دې حق دي؛ خو دويم ځل نه![ ابوداوود،ترمذي” ( شيباني ٣/ ٤١ – ٤٢) ]

ð که کومه ښځه مو خوښه شوه او په زړه کې مو کېناسته؛نو ولاړ شئ او له خپلې مېرمن سره کوروالى وکړئ ؛ځکه دا چار په زړه کې راپيدا شوى اغېز له منځه وړي . [مسلم،ابوداوود،ترمذي او نسايي ( ناصف ٢/ ٣٣١)]

(د) د غوسې د انګېزې کابو کول

ð يوه مسلمان  ته هم روا نه ده،چې بل مسلمان وډاروي . (شيباني ٤/ ٩١، ناصف ٥/ ١٨ )

ð څوک چې مؤمن ته زيان ورسوي،خداى به هغه ته زيان ورسوي او څوک چې له مؤمن سره دښمني وکړي،خداى به له هغه سره دښمني وکړي . (پورته سرچينه)

ðملعون دى هغه چې مؤمن ته زيان ورسوي يا ورسره چل وکړي .( پورته سرچينه)

ð هغه مسلمان دى،چې مسلمانان يې له لاس او ژبې خوندي وي . ( ناصف ١/ ٢٧)

ð د قيامت پر ورځ د مؤمن په تله کې بې تر ښه خوى بل دروند څيز نشته، د خداى تعالى د سپکو سپورو ويونکى نه خوښېږي. ( شيباني ٤/ ١٧٨  ناصف ٥/ ٦٢)

ð مسلمان د مسلمان ورور دى،خيانت ورسره نه کوي،دروغ ورته نه وايي او يوازې يې نه پرېږدي،پر مسلمان د مسلمان ټول څيزونه حرام دي؛پت او آبرو يې،شتمني يې او وينه يې . تقوا دلته ده، د يو چا بدۍ ته دومره بس دى،چې خپل مسلمان ورور سپک وګڼي.  (نووي١/٢٥٠)

ð مفلس پېژنئ! ورته يې وويل : هغه چې پيسې او شتمني ونه لري. آنحضرت ورته وويل :  هغه مې د امت مفلس دى،چې د قيامت پر ورځ  له  لمونځ،روژې او زکات سره راشي او بلخوا يوه ته يې کنځلې کړې وي، په بل پسې يې تور تړلى وي،د يو يې مال خوړلى وي او د يوه بل يې وينه تويه کړې وي او بل يې وهلى وي؛نو  دوى هر يو ته د هغه نېک کارونه ورکول کېږي او که په اړه يې له پرېکړې کولو وړاندې نېکې چارې پاى ته ورسي؛نو له هغوى ګناهونه را اخستل کېږي او پرده وربارېږي؛نو بيا يې په اور کې غورځوي . (نووي ١/٤١)

ð پوهېږئ،چې غيبت څه ته وايي؟ ورته يې وويل :خداى او پېغمبر يې ښه پوهېږي . آنحضرت ورته وويل : دا چې ورور يې داسې څه ووايي، چې ښه يې نه ايسي . يو وپوښتل : ان که داسې څه (هم) وي،چې په هغه کې وي؟آنحضرت ورته وويل : که څه هم ستا ويلي پکې وي؛نو د هغه دې غيبت کړى او که ستا ويلي پکې نه وي؛نو تور دې ور پورې تړلى دى . ( شيباني ٣/ ٢٤٨)

ðهغوى چې ايمان مو راوړى او ايمان مو د زړه تل ته نه دى رسېدلى،مسلمان مه ازاروئ،مه يې رټئ او عيبونه يې مه راسپړئ؛ ځکه څوک چې د مسلمان ورورعيبونه راوسپړي،خداى تعالى به يې عيبونه راوسپړي او خداى، چې د چا عيبونه راوسپړي؛نو رسوا به يې کړي،که څه هم په خپل کور کې وي .( شيباني ٣/ ٤١)

ðد خبرې وړونکى راوړونکی (چغلګر) جنت ته نشي تلاى . (شيباني ٣/ ٢٤٩  نووي، ٢/ ١٠٥٢)

ðکه دوه مسلمانان د يو بل پر وړاندې توره راوکاږي؛نو قاتل او مقتول دواړه په اور کې دي . آنحضرت وپوښتل شو: قاتل خو سمه ده؛نو مقتول ولې؟ ورته يې وويل : هغه هم هڅه کوله،چې هغه بل ووژني او په بل روايت کې راغلي دي چې : د هغه بل هم نيت و،چې دا بل ووژني. (شيباني ٤/ ٢٨ او ٢٩ )

ð له حضرت”عبدالله بن مسعود”(رض) نه روايت دى،چې پېغمبراکرم ويلي دي : مسلمان ته کنځلې کول فسق او جګړه کول ورسره کفر دى . ( پورته سرچينه )

ð تر ما وروسته کفر ته وا نه وړئ او د يو بل څټونه غوڅ نه کړئ . (شيباني: ٤/ ٢٩)

ð او که د اسمان او ځمکې اوسېدونکي د مؤمن په وينه تويولو کې برخه اخلي؛نو خداى ټول په اور کې غورځوي .( ناصف ٢/ ٤ )

ð د مسلمان تر وژنې خداى ته د دنيا له منځه وړل ډېراسان دي .( پورته سرچينه)

ð د قيامت پر ورځ تر هر څه وړاندې د وينې د مسئالې په اړه پرېکړه کېږي .(پورته سرچينه)

ð له ما سره به په دې شرط بيعت کوئ چې  له خداى سره به شرک نه کوئ،غلا مه کوئ،زنا مه کوئ او کوم نفس،چې خداى حرام کړى وي، په ناحقه مه وژنئ.( شيباني ١/ ٢١)

ð له اوو پوپنا کوونکيو ځان وژغورئ : ( ١) له خدای سره له شرکه (٢) کوډې کول (٣) په ناحقه د حرام کړي هغه نفس وژنه   ( ٤) سود خوړل ( ٥) د يتيم د مال خوړل ( ٦) له جهاده تېښته ( ٧) پر پاکلمنو ښځو تور . (ناصف ٤/ ٩٣)

ð څوک چې “اهل ذمه ووژني”؛نو د جنت بوى به بوى نه کړي. (ابوداود)

(ه)  د ملکيت د انګېزې کابو کول

ðمړښت د ډېرې شتمنۍ په درلودو کې نه؛بلکې (واقعي) مړښت د نفس په غنا کې دى .

ð له ظلم ډډه وکړئ؛ځکه ظلم د قيامت د ورځې تيارې دي. له سختې کنجوسۍ ځان وژغورئ؛ځکه ستاسې ړومبني يې پوپنا کړي دي، هغوى يې اړ کړل،چې د يو بل وينه تويه کړي او د يو بل حرام حلال کړي . ( شيباني ٤/ ٣١٠)

ð بدمرغه هغه دى،چې د پيسو او جامو بنده وي،که دا ورته ورکړل شي؛نو خوښېږي او که ور نه کړل شي؛نو خوشحاله نه وي . ( نووي ١/ ٤١٧)

ð د ډېر جايداد د لاس ته راوړو هڅه مه کوئ،چې دنيا ته لېوالېږئ . (نووي ١/ ٤٢٥)

ð د صدقې ورکول شتمني نه کموي .( نووي ١/ ٤٧٨)

ð خداى تعالى ويلي دي : د آدم اولادې!انفاق وکړه،چې انفاق درسره وشي . ( نووي ١/ ٤٧٤)

ð هره ورځ پر بندګانو دوې پرښتې راکېوځي،يوه يې وايي : خدايه! نفقه ورکوونکي ته بدله ورکړه او بله يې وايي: خدايه ممسک زيانمن کړه . ( ناصف ٢/ ٥٠٤)

 ðمسلمان،چې بربنډ مسلمان په جامو پټ کړي؛نو خدای به شنې جنتي جامې ورواغوندي او هر مسلمان،چې وږی مسلمان موړ کړي؛نو خدای به پرې جنتي مېوې وخوري او هر مسلمان،چې تږى مسلمان خړوب کړي؛نو خدای به پرې جنتي سرپوښ شراب وڅښي.( ناصف ٢/ ٤١ او ٤٢ مخونه)

 

د غريزې بې لاري

ðپر امت مې د “لوط” د قوم له کانې ډېر ډارېږم . (ترمذي،الحدود ٦/ ٢٤١)

ðخداى دې هغه په لعنت کړي،چې  له کوم څاروي سره کوروالى کوي، خداى دې هغه په لعنت کړي،چې د “لوط” د قوم چار ې کوي .( دا يې درې ځل وويله) .(احمد ١/ ٣١٧ –بيهقي٨/ ٢٢٤)

ðڅوک چې له محرمې سره کوروالى وکړي (؛نو) و يې وژنئ.  ( بيهقي: ٨ / ٢٣٧)

ð نارينه چې ځان د ښځو په څېر کوي او ښځې،چې ځان د نارينه وو په څېر کوي؛نو رسول الله پرې لعنت ويلى دى .( نووي٢/ ١١٢١)

 

 

مينه

(الف) له خداى تعالى سره مينه

ð له خداى سره ځکه مينه کوئ،چې پېرزوينې درباندې کوي..،او له ما  سره له دې امله مينه ولرئ،چې له خداى سره يې لرئ او له اهلبيتو سره مې له ما سره د دوستۍ له امله مينه ولرئ .(ترمذي،ابواب المناقب: ١٣/ ٢٠١،ناصف 3/249، شيباني3 / 294)

ð ستا مينه او له هغه سره مينه مې روزي کړه،چې ستا پر وړاندې د مينې وړ وي .(ترمذي، ابواب الدعا: ١٣/ ٢٧)

ðله تا مينه غواړم او هم له هغه سره مينه غواړم،چې له تا سره مينه لري او ( همداراز له هغو کړنو سره مينه،چې ستا له مينې سره مې نږدې کوي.) ( ناصف ١/ ٢٤٧ او ٢٤٩)

ð داود (عليه السلام) پخپلو دعاګانو کې ويل : خدايه! له تا غواړم،چې درسره  مينه ولرم،له هغه سره مينه ولرم،چې له تاسره مينه لري او داسې کړه وړه،چې مينې ته مې در رسوي .

ð خدايه! داسې مې کړې،چې تر ځان، کورنۍ او سړو اوبو راته ګران اوسې . (ترمذي، ابواب الدعاء ١٣/٢٧)

ð د هغه به ايمان پوره شوى وي،چې دوستي هم د خداى لپاره وکړي او دښمني هم د خداى لپاره او نفقه هم د خداى لپاره ورکړي .( ناصف ٥/٧٨)

ð د خداى لپاره دوستي او دښمني کول،ډېر غوره کړه وړه دي . ( ناصف ٥/٧٨)

 

له پېغمبر اکرم سره مينه

له تاسې يو هم ايمان نه لري؛خو داچې زه ورته تر پلاراولاد او ټول خلکو ګران يم . (بخاري ١ / ١١٤  مسلم ٢/ ١٥ )

ð که په چا کې دا درې څيزونه وي؛نو د ايمان خواږه به يې څکلي وي.

( ١) تر هر څه ورته خداى او  پېغمبر يې ډېر ګران وي .

( ٢)  له چا سره مينه يې يوازې د خداى لپاره وي .

( ٣)  لکه چې نه يې خوښېږي په اور کې وغورځول شي (دغسې يې) ښه نه ايسي،چې کفر ته واوړي .( ناصف ٥/ ٧٨)

ð له چا سره،چې زما مينه وى؛نو په جنت کې به راسره وي .( ناصف ١/ ٤٧)

 

له خلکو سره مينه

ð  مؤمن مينه ناک دى او چې داسې نه وي (؛نو) خير پکې نشته. (احمد  ٢ / ٤٠   ٥/ ٣٣٥)

ð له يو څيز سره مينه انسان ړوند و کوڼ کړي .(ناصف ٥ / ٨٤ )

ð پر هغه خداى قسم،چې ساه مې يې په واک کې ده،جنت ته به ولاړ نشئ؛ خو داچې مؤمنان شئ او هله به مؤمنان شئ،چې يو له بل سره  مينه ولرئ،ايا د خپلمنځي مينې د پيدا کولو لاره چاره دروښيم؟پر سلام اچولو مو ترمنځ مينه پيدا کېږي .(شيباني ٢/ ٢٣)

ð خلکو!واورئ،خبر اوسئ او پوه شئ،چې د خداى داسې بندګان هم شته،چې نه پېغمبران دي او نه شهيدان؛خو دوى ته سيالي ورځي،چې څنګه هغوى له خداى سره د نږدې مقام خاوندان دي . يو بېدياني وپوښتل : هغه څوک دي؟ آنحضرت ورته وويل: هغوى چې يو له بل سره د خپلوۍ اړيکې نه لري؛خو د خدای لپاره يو له بل سره مينه او اخلاص لري،خداى هغوى د قيامت پر ورځ د رڼا پر منبرونو کېنوي،څېرې او جامې به يې له رڼاګانو وي،د قيامت پر ورځ،چې خلک ډارېږي،هغوى هيڅ ډار نه لري،هغوى “اوليا الله” (د خداى دوستان) دي،چې نه ډار لري او نه خپګان  . (احمد ٥/ ٣٤٣ )

ð  له هغو اوو ډلو،چې په قيامت کې د خداى (د رحمت) تر سيوري لاندې وي، يوه يې دا هم ده چې : دوه تنه،چې د خداى لپاره يو له بل سره دوستي ولري او پردې دوستۍ يو له بل سره ملګري وي او پر همدې يو بله له بېل شي . (ناصف ١/ ٢٣١ – ٢٣٢ ،نووي ١/ ٥٤٧ او ٦٥٩ مخونه)

ð يو سړى د خپل ورور کتو ته بلې سيمې ته روان شو،خداى ورته په لار کې يوه پرښته کېنوله،سړى چې ورورسېد؛نو پرښتې وپوښت : چېرې ځې؟ سړي وويل : د خپل وررو ليدو ته ځم . پرښتې وپوښت : څه حق دې ورباندې دى،چې ترې اخلې يې ؟سړي وويل : نه بلکې د خداى لپاره مې دوست دى،پرښتې وويل : نو پوه شه،چې زه درته د خداى استازې يم . درته ووايم،چې د خداى لپاره دې ور سره دوستي ده؛نو ته هم د خداى دوست يې.(ناصف ٥ /٨٢)

ð هله به مؤمن شې،چې څه ځان ته خوښوې،خپل ورورته يې هم خوښ کړې.( ناصف ١١/ ٢٦)

ð څه چې ځان ته خوښوې؛نو خلکو ته يې هم خوښ کړه،چې مسلمان شې.( ناصف ٥/ ١٦٦ او ١٦٧ مخونه)

ðمؤمنان په دوستۍ کې داسې يوه تنه ده،چې يو غړى يې دردمن شو؛ نو نور غړي هم ورسره ناکراره وي . (نووي ١/ ١٣٨ ، ٢/ ٦٣٢)

ð څوک چې ښې چارې وکړي او خلک يې وستايي؛نو مؤمن ته بېړنى زېرى دى . ( مسلم )

ð مؤمنان يو بل ته د هغه ماڼۍ په څېر دي،چې اجزاوو يې يو بل تينګ کړي وي .( احمد ٤ / ٤٠٤)

ð حضرت “سعد بن ربيع انصاري” له حضرت “عبدالرحمن بن عوف” سره ورور شو. “سعد” ورته وويل : زه ډېر شتمن انصاري  يم او شتمني درسره نيموم،دوې ښځې لرم،کومه چې دې خوښېږي راته ووايه،چې طلاقه يې  کړم او چې عدت يې پوره شو، درواده يې کړم. حضرت”عبدالرحمن”ورته وويل : خداى دې ستا پر اولاد او شتمنۍ برکت کېږدي، بازار مو چېرته دى؟ “عبدالرحمن” په بازار کې په راکړه ورکړه لګيا شو،ښځه يې وکړه او د مديني له شتمنو شو. ناصف(٣/ ٤٠١ – ٤٠٢ )

 ðيو بل ته لاسونه ورکړئ،چې کينې مو له منځه ولاړې شي،يو بل ته ډالۍ ورکړئ،چې مينه مو پيدا شي او دښمنۍ مو لرې شي . ( امام مالک؛ موطا: ١٦٤٢ حديث)

ðخلک د خدای عيال دى او خداى ته هغه ډېر ګران دى،چې له عيال سره يې نېکي وکړي . (بيهقي،شعب الايمان:مشکاة المصابيح ٣/ ١٣٩، ٤٩٩٨ حديث)

ðدنيا ته بې پروا وسه،چې د خدای ښه ايسې او څه چې خلک لري، ورته بې پروا وسه،چې د خلکو ښه ايسي.( نووي ١/ ٤٢٠)

ðد خداى چې کوم بنده خوښېږي؛نو “جبرئيل” راوغواړي او ورته وايي: پلانى مې خوښېږي؛نو ته يې هم خوښ کړه او “جبرئيل” دې يې هم  خوښ کړي او په اسمان کې غږ کړي :”پلانى د خداى خوښېږي؛نو تاسې يې هم خوښ کړئ”؛نو اسمانوال يې هم خوښ کړي، ورپسې يې پر ځمکه محبوبيت او ګرانښت خپرېږي او د خداى،چې کوم بنده ښه نه ايسي؛نو “جبرئيل” راغواړي او ورته وايي: پلانى مې دښمن دى؛نو ته يې هم دښمن وګڼه او “جبرئيل” يې دښمن وګڼي او اسمانوالو ته غږ کړي، چې” پلانى د خداى ښه  نه ايسي؛نو تاسې يې هم دښمن وګڼئ” او اسمانوال يې دښمن ګني؛نو بيا يې په اړه پر ځمکه کرکه او نفرت خپرېږي .( ناصف ٥/ ٧٩)

 

د  خداى له پنځوليو سره مينه

ð مسلمان چې نيالګى کېنوي يا دانه وکري او الوتونکي،انسانان او څاروي يې ترې وخوري،دا ورته صدقه شمېرل کېږي.(ناصف ٢/ ٢٣٠ )

ðيو سړى روان و او سخت تږى شو،يوې څاه ته ورسېد؛ورکوز شو، اوبه يې وڅښلې  او ترې راووت،و يې ليدل، چې يو سپي له ډېرې تندې ژبه را اېستلې او لمده خټه څټي،سړي له ځانه سره وويل:”دا سپى زما هومره تږى دى”؛نو(بيا) څاه ته کوز شو او خپله پڼه يې له اوبو ډکه کړه او په خوله کې يې ونيوه او راپورته شو او سپى يې خړوب کړ. خداى تعالى يې د کار منندوى شو او ويې باښه . اصحابو وويل: ايا د څارويو د خدمت لپاره موږ ته هم اجر راکول کېږي . آنحضرت وويل : د هر تږي ځيګر د خړوبولو لپاره بدله شته. (بخاري:الادب،٢٢ح، ٢٢٢ مخ، ابوداوود، الجهاد ٣ټ، ٢٥٥٠ح)

 

له اولاد سره مينه

ð رسول اکرم حضرت “حسن بن علي” ښکل کړ. “ازع بن حابس تيمي” هلته ناست و؛ ويې ويل :زه لس اولادونه لرم او يو مې هم نه دى ښکل کړى . رسول اکرم  ورته وويل : څوک چې ونه لورېږي،لورنه به پرې ونشي.( ناصف ٥/ ٧)

 ð يو بېديانى پېغمبر اکرم ته راغى او ورته يې وويل : تاسې کوچنيان ښکلوئ! موږ خو يې نه ښکلوو.پېغمبر اکرم ورته وويل: زه څه وکړم،چې خداى ستا له زړه مينه او لورنه اېستې ده.(ناصف ٥ /٧ )

ð حضرت “براء” وايي : پېغمبر اکرم مې وليد،چې “حسن” يې پر اوږو کړی دى او وايي: خدايه! دى راته ګران دى، تا ته دې هم ګران وي . (ناصف ٣/ ٣٥٧)

ð د پېغمبر سترګې پر “حسن” او “حسين” ولګېدې . ويې ويل: خدايه! دا دواړه راته ګران دي،تا ته دې هم ګران وي . (ناصف ٣/ ٣٥٨)

ðحضرت “بُريره” وايي : پېغمبر اکرم راته وينا کوله او”حسن” او “حسين”،چې دواړه سرې اجامې اغوستې وې، په تګ کې پر ځمکه هم لوېدل؛راغلل : پېغمبر اکرم له منبره راکوز شو او دواړه يې په څنګ کې ونيول او پر زنګانه يې کېنول،بيا يې ورته وويل : خداى رښتيا ويلي چې : شتمني او اولاد مو  فتنه (او ازمېينه) ده،سترګې مې پر دوى ولګېدې، چې روان دي او لوېږي،طاقت مې ونشو، داسې چې خبرې مې پرېښووې او په څنګ کې مې ونيول . ( ناصف ٣/ ٣٥٨)

ð څوک چې لور ولري او ژوندى يې ښخه نه کړي او سپکه يې نه کړي او و يې نه رټي او خپل زوى ترې غوره ونه بولي؛نو خداى تعالى يې جنت ته ننباسي. ( ناصف ٣/ ٣٥٨)

ð انسان چې خپل اولاد وروزي،تر يو من صدقه ورکولو ورته غوره ده.(ناصف ٥/ ٨)

ðاولاد ته د خپل پلار ډېره غوره ډالۍ داده،چې ښه ادبناکه يې وروزي. (ناصف ٥/ ٨)

ð”ادب” زوى ته د پلار غوره ميراث  دى . (پورته سرچينه)

 

( و ) جنسي مينه

ð عاشقانو ته مې د واده په څېر لار نه ده ليدلې.( ابن ماجه ١ / ١٨٤٧ حديث)

 

( ز) له شتمنۍ سره مينه

ð زوړ زړه له دوو څيزونو سره په مينه کې ځوان دى : اوږد عمر او ډېره شتمني. (ناصف : ٥/ ١٦٣)

ð مال او شتمني زما د امت د ازمېښت وسيله ده .(ترمذي)  

ð له شتمنۍ او مقام سره مينه ،د انسان دين ويجاړوي .(ترمذي)

ð هر امت يوه فتنه لري او زما د امت فتنه شتمني ده. (ناصف  ٥/ ١٦٣)

ð که بنيادم د پيسو دوه درې سيندونه درلوداى؛نو د درېمې په لټه کې به هم و.يوازې خاوره د انسان نس ډکولاى شي او خداى د توبه ګار توبه قبلوي.( ناصف ٥/ ١٦٢)

کينه

ð د وړاندنيو امتونو په درد؛يعنې کينه اخته شوي ياست.(تخريج زين الدين ابى الفضل العراقى الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالى ٣ / ١٧)

 

آخرت گروهنه

ð”هر څوک چې ومري؛نو پښېمانېږي . وپوښتل شو : ولې؟ آنحضرت ورته وويل : که  نېک چارى و؛نو پښېمانېږي،چې ولې يې  تردې ډېرې ښې چارې نه دي کړي او که بد چارى و؛نو ولې يې ترې لاس نه اخسته . ( ناصف ٥ / ٢٠٣ )

[ دا حديث پردې سربېره،چې انسان د الهي احکامو مننې ته هڅوي، له ګناهونو او بدو چارو يې ډاروي .]

ðد دنيا په غوښتو کې اخروي زيان دى او د آخرت په غوښتو کې دنيايي زيان دى ؛نو په دنيا کې زيانمن شئ؛ځکه دا زيان د آخرت تر زيانه ښه دى . ( الکافي : ٢\١٣١)

 ð زه داسې څه وينم،چې تاسې يې نه وينئ او داسې څه اورم،چې تاسې يې نه اورئ . اسمان وژړل او حق لري،چې وژاړي . د اسمان په لوېشت لوېشت کې پرښتې خداى ته په سجده پرتې دي . پر خداى قسم ! که پر څه چې پوهېږم،تاسې هم پوه شئ. ډېر لږ به خاندئ او ډېر به ژاړئ او له خپلو مېرمنو سره به له کوروالي خوند نه اخلئ او له خپلو کورونو مو اېستلې او خداى ته مو پناه وړه.(ناصف ٥/ ٢٠٤ او ٢٠٥ مخونه)

ð لکه څنګه چې شيدې تيونو ته نه ځي،دغسې څوک چې د خداى له ډاره وژاړي؛نو هېڅکله دوزخ ته نه ځي.( ناصف ٥/ ٢٠ )

ð زه چې هر کار کوم،پکې نه دوه زړى کېږم؛خو د خپل مؤمن بنده په ساه اخستو کې دوه زړى کېږم،د هغه مړينه ښه نه ايسي او زما د هغه خپګان .( ناصف ١/ ٣٣٨ )

ð د خوندونو،مزو او خوښيو ويجاړوونکى (مرګ) ډېر يادوئ. ( ناصف ١/ ٣٣٨ )

 

حيا

ðله وړاندنيو پېغمبرانو،چې کومې خبرې رارسېدلي دي،يوه يې دا ده چې : که حيا دې نه درلوده؛نو څه چې غواړې ويې کړه.( ناصف ، ٥/ ٥٩)

ð حيا د ايمان له څانګو ده.( نووي ١/ ٥٦٢ )

  ð حيا ټول خير دى . (نووي ٣/ ٥٦١ )

ð حضرت “ابوسعيد خدري” وايي:پېغمبر اکرم تر سترمنې نجلۍ هم ډېر حياناک و، چې څه يې کتل؛خو چې ښه يې نه اېسيدل ؛نو له څېرې يې پوهېدو. (نووي ١/ ٥٦٢)

ð حضرت “عبدالله بن مسعود” له رسول اکرم (ص) نه روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : ((له خدايه بايد؛لکه چې ښايي حيا وکړئ)). ورته مو وويل : د خداى شکر دى موږ حيا کوو.راته يې ويل: داسې نه ده؛ بلکې  له خدايه حقيقي حيا دا ده، چې سر او څه چې پکې دي او ګېډه او څه چې پکې دي،وساتئ . مړينه او ورستنېدنه درياد کړئ او څوک چې اخرت غواړي؛نو د دنيا ګاڼه او ښايست دې پرېږدي او څوک چې داسې وکړي؛نو له خدايه به يې؛لکه څنګه چې ښايي،حيا کړې وي . ( ناصف ٥ / ٥٩ – ٦٠ مخونه)

ð”حيا او ايمان” تل يو له بل سره وي،که يوه نه وي؛نو هغه بل به يې هم نه وي . (پورته سرچينه)

 ð “حيا” يوازې خېر او ښه راولي . (بخاري – مسلم )

ð خلکو د مخکېنيو پېغمبرانو له ويناوو زده کړي،چې که شرم او حيا درکې نه وي ؛نوهر څه کړاى شې. ( بخاري )

ð له حضرت “عبدالله بن مسعود” نه روايت دى، چې رسول اکرم (ص) وويل :له خدايه داسې حيا وکړئ؛لکه چې د حيا حق دى. وپوښتل شو:الحمدلله موږ خو له خدايه حيا کوو. ورته يې وويل: دومره کافي نه ده (؛يعنې د حيا پر مفهوم،چې پوهېدلي ياست،دومره محدوده نه ده)؛ بلکې له خدايه د حيا حق دادى،څه مو چې په سر او مغزو کې وي،و يې ساتئ . ګېډه او څه چې پکې دي، و يې ساتئ (؛يعنې ماغزه له ناوړه افکارو او ګېډه له حرامو خوړو وساتئ) او مړينه بيا ورپسې د قبرحالات را پر زړه کړئ اوچا چې اخرت خپله موخه وټاکله؛نو د دنيا له سوکالۍ او ساتېرۍ لاس پر سرېږي او ددې څو ورځو دنيوي ژوند پر ځاى تلپاتې راتلونکى ژوندغوره ګڼي؛يعنې چاچې دا ټولې چارې ترسره کړې؛ نو پوه دې شي، چې  د “الله” د حيا حق به يې ادا کړى وي . (ترمذي)  

ð هر دين ځان ته يوه ځانګړنه لري ؛خو د اسلام ځانګړې نښه “حيا”  ده . (مالک – ابن ماجه – بيهقي)

ðحياء دوه ډوله ده : د عقل حيا او د بې عقلۍ حيا؛علم (او پوهه ) د عقل حيا ده او ناپوهي د بې عقلۍ حيا ده .  (سنن ابو داود )

ðاسلام لوڅ لغړ دى؛خو جامې يې حيا،ښکلا يې وقار،مړانه يې صالح عمل او ستنې يې پرهېزګاري ده او هر څه يو بنسټ لري،چې د اسلام بنسټ زما له اهلبيتو سره مينه ده . ( بحارالانوار : ٧٤ \٨٤)

ðحيا دوه ډوله ده : هوښياره حيا او احمقه حيا،چې پوهه هوښياره حيا ده او ناپوهي احمقه حيا ده . ( الکافي : ٢\١٠٦)

ðکه په چا کې څلور ځانګړنې وي او له سر تر پښو په ګناهونوکې ډوب وي؛نو خداى به ورته هغه پر ثوابونو واړوي،چې دادي 🙁 ١) رښتيا ويل . ( ٢) حيا .( ٣) ښه خوى . (٤)مننه . (التمحيص : ٦٧مخ )

ðابوذره ! له خدايه حيا وکړه،پر هغه خداى قسم،چې ساه مې يې په لاس کې ده،زه چې اودسماتي  ته ځم ؛نو راباندې له ګومارل شويو دوو پرښتو ځينې ځان له حيا نه په جامو کې رانغاړم  او حيا ترې کوم . ( وسايل : ١\ ٣٠٤)

ðايمان او حيا په يوه ليکه کې دي،که يو يې لرې شي؛نو هغه بل يې هم لرې کېږي .( مجموعه ورام  ٢\٨٢)

ðڅوک چې له خپلې مخې د حيا پرده لرې کړي؛نو غيبت يې څه ممانعت نه لري .( کشف الريبة : ٣٦مخ )

ðڅوک چې له حيا بې برخې شي؛نو ټول شر دى . (مصباح الشريعة : ١٨٩)

ðډېرې غوره ښځې مو هغوى دي،چې کله مېړه ته ورشي؛نو د حيا پرده لرې واچوي . ( مستدرک الوسايل  ١٤\١٦٠)

ðله خدايه ډېره حيا وکړئ . ( نهج البلاغې شرح  ١٩ \٤٧)

ðخداى تعالى دې پر هغه بنده ولورېږي،چې په حقه ترې حيا کوي او هغه داچې خپل سر او څه افکار،چې پکې دي او(همداراز) خپله ګېډه او شهوت وساتي او قبر او عذاب يې  ياد کړي او (همداراز) ياد يې وي، چې په اخرت کې د خداى لوري ته ورستنېږي . ( مشکاة الانوار : ٢٣٤)

ð “حيا او ايمان” تل يو له بل سره وي،که يوه نه وي؛نو هغه بل به يې هم نه وي . ( بيهقي )

ð”حيا”يوازې خير او ښه راولي . ( بخاري- مسلم )

 

پر عواطفو برلاسي

ð خپلمنځي کينه مه کوئ! يو بل ته مه شا کوئ او د خداى بندګانو! په خپلو کې وروڼه وسئ .( ابوداوود: الاداب ٤/ ٢٧٨)

ðپېغمبر اکرم کله هم د ځان لپاره غچ نه اخسته؛خو چې د خداى حريم به لتاړل کېده؛نو بيا يې کسات اخسته .(شيباني ٤ / ٢٢٦ )

 

پر کبر برلاسي

  د چا په زړه کې چې د بڅري هومره کبر وي،جنت ته نشي تلاى . يو سړي وويل : د انسان دا خوښېږي ،چې جامې (څادر) يې ښکلې وي . آنحضرت ورته وويل : ستر خداى ښکلى دى او ښکلا يې خوښېږي؛خو تکبر د حق نه منل او د خلکو سپک ګڼل دي .( شيباني: ٤ / ١٥٠ .   نووي: ٢/ ١٠٨٣ )

ð خداى تعالى وايي : کبريا يې مې څادر او عزت مې پرتوګ دى؛نو چا چې پردې دواړو راسره شخړه وکړه؛په عذابوم يې.( شيباني ٤/ ١٥ )

ð څوک چې ومري او تکبر او خيانت (يې نه وي کړى) او پور پرې نه وي؛نو جنت ته ځي. (شيباني ٤/ ٣٠٦)

 ðخداى راته وحې کړې،چې عاجز وسئ،چې يو بل و نه نګوئ او (هم) وياړ ونه کړئ . (نووي ٢ / ١٠٩٢ – ١٥٩ حديث)

ð يو چا وياړنې جامې اغوستې وې او وېښتان يې ږومنز کړي ول او په نازو نخرو پر لار روان و،چې ناڅاپه ځمکې تېر کړ او تر قيامته به پکې ډوب روان وي . ( شيباني ٤ / ١٥٢ )

ðڅوک چې لمن په ځان پسې راکاږي او په کبر پر لار روان وي؛نو خداى ورته د قيامت پر ورځ نه ويني.( نووي ١/ ٦٣٠ )

 

غم او پر خپګان برلاسي

ð مؤمن به تر هغه په غم او خپګان کې وي،چې ګناه يې نه وي پرېښي  .( الکافي ٢/ ٤٤٥)

ð د چاچې غمونه ډېرشي؛نو بدن يې ناروغېږي . ( تحف : مخ ٥٨)

ðرنځونه او مصيبتونه د ثوابونوکونجيانې دي .( بحار ٨٢/ ١١٥)

ðڅوک چې پر دنيا زړه نه تړي؛نو مصيبتونه ورته اسانېږي . (بحار/ ٧٧ ١٧١)

ðدنيا ته لېوالتيا غم اوخپګان زياتوي او ورته نالېوالتيا او زهد د جسم او روح  د ارامۍ لامل دى .( الخصال  ١\ ٧٣)

ðحضرت آدم خداى ته د نفس او خپګان له وسوسو شکايت وکړ. جبرئيل راکېووت او ورته يې وويل : آدمه ! (( لاحول ولاقوة الابالله )) ووايه ؛نو چې آدم وويله، د نفس اوخپګان وسوسه يې لرې شوه .

ðپر جنازو لمونځ وکړه؛ځکه دا کړنه مو خپه کوي او په خدايي چارو کې خپګان ښه بدله لري . ( الامالي للطوسي : ٢٩مخ )

 ðڅوک چې کړاى شي؛نو زړه دې يې ژړغونى وي او که نه يې شي کړاى؛نو زړه دې په خپګان کې ساتي.(مستدرک الوسایل  ۱۱ / ۲۴۰ )

ðد خداى چې کوم بنده ښه وايسي؛ نو په زړه کې يې د خپګان څپه اچوي ؛ځکه خپه زړه د خداى خوښېږي او همداراز څوک چې د خداى له وېرې وژاړي؛نولکه څنګه چې شيدې تيونو ته بېرته ننووتاى نشي؛ دغسې دى هم اور ته ننووتاى نشي او چې خداى پر چا غوسه وي؛ نو په زړه کې يې د خندا يوساز اچوي؛ځکه خندا زړه وژني او خداى د ښځو قهقه نه خوښوي .( عدة الداعي : ١٦٨٩)

ð د دنيا غوښتنه غم او خپګان زياتوي او زهد د زړه او بدن د ارامۍ لامل ګرځي.( الخصال ١/ ٧٣)

ð يوازې د دين لپاره غم او خپګان خوړل سم دى (نه د نورو څيزونو لپاره) (بحارالانوار : ١٠٠/ ١٤٢)

ðخدايه! له غم و خپګانه پناه دروړم . (المعجم المفهرس لا لفاظ الحديث النبوي ١/٤٦١)

 ðد پېغمبر اکرم يوې لور پېغمبر ته پيغام راولېږه،چې ماشوم يې مرګونى  دى او يو ځل راشه. پېغمبر اکرم پيغام راوړونکي ته وويل : ورشه او  ورته ووايه : څه چې خداى واخلي يا ورکړي،په خداى پورې اړه لري او هر څه د هغه پر وړاندې ټاکلى عمر لري او ورته ووايه،چې زغمناکه وسه او له خدايه يې اجر وغواړه.( نووي ١/ ٦٩٨ )

ð د چاچې اولاد ومري،خداى تعالى(پرښتو ته) وايي: زما د بنده اولاد مو واخست؟وايي : هو! خداى ورته وايي : د زړه مېوه مو يې واخسته؟ پرښتې وايي: هو! خداى وايي : بنده مې څه وويل : پرښتې وايي: ته يې وستايلې او استرجاع (رجوع) يې وکړه. پاک خداى ورته وايي: بنده ته مې په جنت کې کور جوړکړه او د حمد نوم پرې کېږده.( نووي ١/ ٦٩٧)

ð رسول اکرم د حضرت “سعد بن عباد” پوښتنې ته ورغى، حضرت “عبدالرحمن بن عوف” حضرت “سعد بن ابي وقاص” او حضرت “عبدالله بن مسعود” (رضي الله عنهم) هم ورسره ول . پېغمبر اکرم وژړل او حاضرينو هم ورسره وژړل . آنحضرت وويل : غوږ ونيسئ! خداى څوک د سترګو په ژړا او د زړه په خپګان  نه په عذابوي؛بلکې پخپله ژبه يې عذابوي يا پرې لورېږي .(نووي ١/ ٦٩٩ )

ðحضرت”انس” وايي : د پېغمبر اکرم زوى “ابراهيم” مرګونى و،چې پېغمبر اکرم راغى او اوښکې يې له سترګو روانې شوې . حضرت “عبدالرحمن بن عوف” وويل : ته هم اى رسول الله !؟ آنحضرت ورته وويل : د عوف زويه! ژړا رحمت دى . بيا يې وويل : سترګې اوښکې تويوي او زړه خپه کېږي؛خو يوازې هغه څه وايم،چې خداى پرې راضي کېږي . ابراهيمه! په بېلتون دې غمجن يم . (نووي ١/ ٧٠٠ )

 

د غم پرمهال دعا

ðد خداى رسول،چې به خپه و؛نو دا دعا یې ویله،چې د خرج دعا نومېږي‏ :((خدايه! پر هغه نظر دې ما وڅاره ،چې ‏کله هم نه ويده کېږي‏ او پر هغو  کلکوستنو‏ مې وساته،چې ‏‏کله هم نه را نړېږي او پر خپل قدرت دې پر ما ولورېږه او په هغه اميد،چې تا ته يې لرم، هلاک مې نه کړې. ماته دې ډېر نعمتونه راکړل؛خو ما دې سم شکر و نه کړ او څومره بلاوې،چې دې پر ما نازلې کړې؛خو ما پرې صبر و نه کړ . خدايه! چې زه دې د ناشکريو پر وړاندې ‏له نعمته بې برخې نه کړم . اى هغه خدايه،چې زه دې د کړخت پر مهال د بې صبرۍ له امله خوار نه کړم . خدايه ! ‏ودې ليدم،چې ګناه ته زړور يم؛خو رسوا دې نه کړم، له تا غواړم،چې پر محمد او آل يې درود ووايې .خدايه! دنيا مې له دين سره د يارۍ لامل وګرځوې او پرهېزګاري مې د آخرت د سعادت لامل وګرځوې . خدايه! هغه نعمتونه،چې دې راکړي او له سترګو مو پټ دي، را ته و یې ساتې او څه چې دې راکړي او راسره دي؛نو د هغه نعمتونو ساتل راته مه پرغاړه کوه . خدايه،چې د بندګانو ګناهونه درته زیان نه دررسوي او د بندګانو بښل درنه هيڅ نه کموي؛نو هغه راته راکړه،چې ‏له تا‏ هیڅ نه کموي او هغه راوبښه،چې تا ته هيڅ ضرر نه دررسوي ،چې يوازې ته بښونکى او مهربان خدای يې . اى خدايه! له تا په نږدوکې پراختيا ، صبر،پراخ رزق،روغتيا او د ټولو نعمتونو د شکر ایستنې ‏توفيق غواړم. (سنن النبي)

ðد خداى رسول،چې خپه و يا غم پرې راغی؛نو دا دعا ‏يې ويله:((يا حى ياقيوم ،يا حيا لايموت،يا حى،لا اله الا انت،کاشف الهم،مجيب دعوة المضطرين،اسالک بان لک الحمد لا اله الا آفت المنان بديع السماوات ولارض ذوالجلال ولاکرام ،رحمان الدنيا ولاخره ورحيمها، رب ارحمنی رحمة تفينني بهاعن رحمة من سواک ، يا اللهم الرحمن – اى ژوندي خدايه! ‏اى تلپاتې خدايه! ‏اى هغه ژوندیه،چې نيستي نه لري، اى ژونديه !‏ بې له تا بل خداى نشته،چې يوازې ته د هر کړکېچ او غم له منځه وړونکى او د بېوزلیو‏ د دعا منونکى يې، بې له تا بل خداى نشته  له تا يې غواړم؛ځکه ‏شکر‏ اوستاېنه يوازې تا ته ځانګړې ده. بې له تا بل خداى نشته،د نعمتونو ورکونکى او د ځمکې او اسمانونو جوړوونکى او د اکرام او جلال خاوند يې او يوازې ته په دنيا او آخرت کې لوراند ‏او لورین ‏يې،پر ما ولوريږه،چې د نورو له لورنې ‏مړه خوا شم،اى تر ټولو مهربانه . پېغمبر اکرم وويل : ((هر مسلمان،چې درې ځل دا دعا وويله؛نو خداى به يې غوښتنه ورکړي،خو ‏دا چې د ګناه او د زړه سوي د پرېکولو ‏لپاره وي.))  (سنن النبي)

 

ð څوک چې په تشويش او غم اخته شي؛نو و دې وايي : (( اللهم انى عبدک،ابن عبدک،ابن امتک ناصيتي بيدک….رسول اکرم وپوښتل شو:موږ هم دا دعا ووايو؟ورته يې وويل:هو! څوک چې دا اوري؛نو ښايي چې زده يې کړي .  ( احمد : ١\ ٣٩١)

 

دغم له منځه وړونکی

ðپر بدن غوړي مږل غم اوخپګان له منځه وړي . (سنن النبي)

 

حسي ادارک

ðله دنيا سره مينه د هرې ګناه او ښويېدنې بنسټ دى او له يوه څيز سره مينه دې ړندوي او کڼوي . (شيباني ٢/ ١١٠ )

 

له حس اخوا ادراک

ð خلکو! زه ستاسې (د جماعت) امام يم؛نو په رکوع،سجده، قيام او لمونځ پوره کولو کې له ما مه مخکې کېږئ،زه تاسې له مخې او شا وينم  ( ناصف ١/ ٢٦٠ )

ð (د لمانځه)ليکې مو سمې او منظمې کړئ؛ځکه چې زه مو له شا وينم.  (نووي ٢/ ٧٩٦ )

ðخداى راته ځمکه راغونډه کړه او ما يې ختيځونه او لوېديځونه وليدل او د امت واکمني به مې ور ورسي.(شيباني ٤/ ٢٤٠ )

ðقريشو،چې زما د “اسراء” او “معراج” کيسه دروغ وګڼله؛ نو په “حجر” کې ودرېدم او خداى راته “بيت المقدس” ښکاره کړ او ما ورته کتل او نښې او ځانګړنې يې مې ورته ويلې. (ناصف ٣/ ٢٦٠ )

ð پېغمبراکرم د مړيو غږونه اورېدل،چې په قبرونو کې به عذابېدل . حضرت “ابن عباس” وايي : پېغمبر اکرم پر دوو قبرونو تېر شو او ويې ويل : دا دواړه په عذاب دي . د کبيره ګناهونو لپاره نه په عذابېږي . بيا يې زياته کړه : بلې!يو يې چغلي کوله (خبرې يې وړې راوړې) او بل يې ځان له متيازو نه ساته .(  ناصف ١ / ٨٦ )

ð حضرت “انس” وايي : پېغمبر اکرم د يو قبر غږ واورېد او ويې ويل : دا څوک مړ شوى دى؟ورته يې وويل : په جاهليت کې مړ شوى دى. آنحضرت يې له اورېدو خوښ شو او و يې ويل: که نه ډارېدم ،چې يو بل ښخ  نه کړئ،دعا مې کوله،چې خداى درته د قبر عذاب واوروي . ( ناصف ١ / ٣٧٨)

ð زه تر تاسې ړومبى ځم او پر تاسې ګواه يم او پر خداى قسم،چې همدا اوس خپل ( د کوثر ) حوض وينم . د ځمکې د خزانو کونجيانې راکړل شوې، تاسې ته مې له دې ډار نه دى،چې مشرکان به شئ؛بلکې له دې امله دی،چې يو له بل سره به د دنيا د د سيالۍ لپاره راپورته شئ . (ناصف  ٥ / ٢٠٤ )

ð حضرت “انس” وايي : پېغمبراکرم پر لمانځه ولاړ و،چې يو ساه نيولى سړى راغى او ويې ويل:  ((الله اکبر،د سپېڅلي او برکتناک خداى ډېره ستاېنه )). پېغمبر اکرم،چې لمونځ وکړ ( ؛نو) ويې ويل : کوم يوه دا خبره وکړه؟ خلک چوپ شول او څه يې و نه ويل : پېغمبر اکرم وويل : هغه بده خبره نه ده کړې . سړي وويل :ما دا خبره وکړه . پېغمبر اکرم وويل : دولس پرښتې مې ولېدې،چې د خداى حضور ته دې خبرې وړو ته يو له بل سره سيالي کوله . (شيباني  ٢ / ٦٧ – ٦٨ )

ð حضرت “حنظله اسيدي”(رض)،چې د پېغمبر اکرم له کاتبانو و، آنحضرت ته وويل : ستاسې په حضور کې،چې يو او د دوزخ او جنت په باب راته خبرې کوئ؛نو داسې وي؛لکه چې په سترګو يې وينو او چې له تا ولاړ شو او له خپلې مېرمنې،عيال او ژوند سره بوخت شو؛نو ډېرى دا خبرې هېروو. رسول اکرم ورته وويل : پر هغه قسم،چې زما ساه يې په واک کې ده، له ماسره،چې په کوم حال او ياد کې ياست او دوام ورکړئ؛ نو پرښتې به په خپلو بسترو،کوڅې او سړک کې درته لاسونه درکړي؛ خو حنظله! د بنيادم د هر ساعت لپاره يو حالت وي او دا يې درې ځل وويله . (شيباني  ١ / ٣٢)

ðد مؤمن له ځيرکۍ ډډه وکړئ؛ځکه مؤمن د خداى په رڼا ګوري. پېغمبر اکرم بيا دا آيت ولوست : او په دې کې په نښو پوهېدونکيو ته نښې دي . ( شيباني ١ / ١٤٦ )

ð رسول اکرم د يوه انصاري باغ ته ننووت،يو اوښ يې وليد،د اوښ سترګې،چې پر پېغمبر اکرم ولګېدې؛نو و يې ژړل . پېغمبر اکرم ورغى او اوښکې يې ورپاکې کړې . اوښ ژړا بس کړه . آنحضرت وويل :  دا اوښ د چا دى؟ يو ځوان انصاري راغى او و يې ويل :زما دى . آنحضرت وويل : ددې بې ژبې څاروي په باب له خدايه نه ډارېږې،چې خداى درکړى دى؟ اوښ راته شکايت وکړ،چې ته يې ځوروې او ستړى کوې . (ابوداوود ٣ /٢٣، ٢٥٤٩ حديث) 

 

فکر کول

ðيو ساعت فکر کول تر يوه کال عبادته غوره دى . (غزالي؛احياء العلوم الدين ٤/ ٤٢٣)

ð د خداى په پنځول شويو کې فکر وکړئ او د خداى د ذات په اړه فکر مه کوئ؛ځکه څنګه چې ښايي؛هغسې يې نشئ پېژنداى .

ð پېغمبر اکرم (ص) “اشج عبدالقيس” ته وويل : په تا کې دوې ځانګړنې دي، چې د خداى او پېغمبر يې خوښېږي :هوښياري او تاني.(صحيح مسلم ١/ ١٨٩)

ðپېغمبر اکرم،حضرت “معاذ بن جبل” “يمن” ته ولېږه او ورته يې وويل : څرنګه به قضاوت کوې؟ ورته يې وويل : د خداى د کتاب له مخې.  پېغمبر اکرم ورته وويل: که د خداى په کتاب کې يې حکم نه و؟ ورته يې وويل: د رسول الله د سنتو له مخې . پېغمبر اکرم ورته وويل : که په دې کې يې (هم) حکم نه و؟ورته يې وويل : په خپل اجتهاد. آنحضرت ورته وويل: د خداى شکر دى، چې خپل استازى يې بريالى کړ. (ناصف  ٣/ ٦٦)

ð که واکمن اجتهاد وکړي او اجتهاد يې سم وي؛نو دوه اجره لري او که پکې تېر وځي ؛نو يو اجر لري . (ناصف  ٣/ ٦٦)

ðپه فکر سره دوه لنډ لمونځونه کول تر يوې شپې پر لمانځه تېرولو غوره دى . ( ثواب لاعمال : ٤٤مخ )

ðيوساعت فکر کول،تر يوې شپې پر لمانځه تېرولو غوره دى.(الزهد : ١٥مخ )

ðيوساعت فکر کول تر يوه کال عبادته غوره دى او هغه د تفکر مقام ته رسي،چې خداى د معرفت او پوهې په رڼا او توحيد ځانګړی کړی وي .( بحارالانوار ٦٨\ ٣٢٥)

ðپه دنيا کې د مېلمه په څېر وسئ او جوماتونه خپل کورونه کړئ او هڅه وکړئ،چې زړه مو نرم شي او د خداى له ډاره ډېر فکر او ژړا وکړئ . مړينه او وروسته ترې په قيامت کې سختي پخپلو سترګو کې انځور کړئ .( پوه شئ،چې) داسې څيز جوړوئ،چې پکې به و نه اوسېږئ او داسې څيز راټولوئ،چې و به يې نه خورئ؛نو د هغه خدای له پولو مه اوړئ،چې ورګرځئ . ( اعلام الدين : ٣٦٥مخ )

ðد مرګ ياد د پند اخستو لپاره،د آخرت ياد د تفکر لپاره،ورع (غوره چارو کول او د ناوړو چارو نه کول) د عبادت لپاره،د ګناه پرېښوول د بښنې لپاره او نصيحت د دعالپاره کافي دي . په چا کې چې دا يوه ځانګړنه وي؛نو د انبياوو له لومړۍ ډلې سره جنت ته ننوځي.(جامع الاخبار: ١٣٠ مخ )

ðتفکر د نېکيو هنداره،د ګناهونو کفاره،د زړونو رڼا،خلاقيت،د آخرت ښو ته رسېدل،د چارو پر پايلو خبرېدنه او د پوهې زياتېدنه ده او داسې ځانګړنه ده،چې په څېر يې خداى نه لمانځل کېږي .( بحارالانوار : ٦٨\٣٢٥)

 

بنسټګر

ð که څوک په اسلام کې د يوه ښه دود (تيږه) کېږدي؛نو اجر يې ده او هغو ته رسېږي،چې پردې دود روان وي . بې له دې،چې د لارويانو له اجره څه کم شي او (همداراز) څوک، چې په اسلام کې د ناوړه دود (تيږه) کېږدي؛نو ګناه يې دده او هغو پر غاړه ده،چې د دې دود لارويان وي،بې له دې چې د لارويانو له ګناه څه کمه شي. (حافظ، منذري، د صحيح مسلم لنډيز: ١٤٥ مخ، ٣٣ حديث)

 

د فکر کولو تېروتنې

( الف) : په پټو سترګو لاروي اوهام او خرافات

ð د وخت زامن کېږئ مه او مه وياست :که خلکو راسره ښه وکړل؛نو زه هم ورسره ښه کوم او که تېرى يې راباندې وکړ؛نو زه هم پرې تېرى کوم؛ بلکې ځان داسې روږدى کړئ،چې که خلکو درسره ښه کول؛نو ښه ورسره کوئ او که بد يې درسره کول؛نو تاسې ورسره بدي او تېرى مه کوئ .(ترمذي ٨ / ١٧٠ )

ð لمر و سپوږمۍ د خداى له نښو دوې نښې دي او د چا د مړينې يا زوکړې لپاره په تندر نه نيول کېږي .( منذري  ١/ ٤٤٥)

ð څوک چې وړاندويوني يا رمال ته ورشي او ويناوې يې ومني؛نو پر محمد(عليه السلام)،چې څه نازل شوي،پرې کافر دی .(المعجم المفهرس الفاظ الحديث النبوي  ٤/ ١٩٦)

ð څوک چې د نجوم علم زده کړي؛نو په واقع کې يې د کوډو يوه برخه زده کړې ده. ( المعجم المفهرس الفاظ الحديث النبوي  ١٢/ ٤٣٥)

[ تبصره : استاد يوسف قرضاوي (الرسول والعلم، دارالصحوه،٥٤ او ٥٥ مخونه) ليکي: دلته د نجوم علم له زده کړې  مراد دادى، چې پر خاوريني نړۍ او راتلونکيو پېښو د ستوريو حرکتونه اغېزمن دي،چې داسمه نه ده؛خو د ستور پوهنې بحث ځان ته بنسټونه او طريقې لري او  پر علمي مشاهداتو ولاړ دى .

 ( ب) د دلايلو نه چمتو والى:

ðپه څه چې نه پوهېږئ؛نو نه ښايي و يې وياست . ( المعجم المفهرس الفاظ الحديث النبوي  ٤/  ٣١٦ )

 ð له ګومان ډډه وکړئ؛ځکه ګومان ډېره دروغ خبره ده. (المعجم المفهرس الفاظ الحديث النبوي  ٤/ ٨٧)

ðڅوک چې په ناپوهۍ کې فتوا ورکړي؛نو ګناه يې د فتوا ورکوونکي پر غاړه ده. (ناصف  ١/ ٧٣)

[يعنې په ديني يا دنيوي چارو کې چې د چا پوښتنې ځواب کړې او پوښتونکى هماغسې وکړي؛نو ګناه يې د ځواب ويونکي پر غاړه ده.

پېغمبر اکرم نه يوازې له بې دليله فتوا ورکولو منع کړي يو؛بلکې له نورو هغو خبرو يې هم منع کړي يو،چې د سموالي په اړه يې ډاډمن نه يو. “ابومسعوده” وپوښتل شو: له رسول اکرم  دې (( وايي)) په اړه څه نه دي اورېدلي،چې څه لارښوونه يې کړې ده؟ ورته يې وويل :سړي ته ناوړه مرکوب دى .( امام احمد حنبل؛مسند ٤/ ١١٩، ٥/ ٤٠١)

 يعنې چې څوک داسې خبره وکړي،چې له سموالي يې ډاډه نه وي . په دې حديث کې خلک په پټو سترګو له نورو له اورېدل شويو منع شوي دي .)

دغسې د روڼ فکر کولو لپاره پخپلو کې بحث او خبرې اترې کول يوه لار ده،چې انسان له تېروتنو ژغوري او پر حقيقت يې برلاسوي . په دې اړه پېغمبر اکرم وايي : څوک چې له خدايه خير وغواړي (؛نو)نه ناکامېږي او څوک چې مشوره وکړي (؛نو) نه پښېمانېږي.(فيض القدير ٥/ ٤٤٢)

 

زده کړه

ð علم زده کړئ او خلکو ته يې وروښيئ. فرايض زده کړئ او خلکو ته يې وروښيئ. قرآن زده کړئ او خلکو ته يې وروښيئ. (دارمي ١/ ٢٢٧)

ð خلک يا پوهان دي يا زده کړي او بې له دې د دوو چارو خير نشته . ( دارمي ١/ ٢٥٢)

 ð پوه شئ،چې دنيا لعنت شوې ده او څه چې پکې دي (هم) لعنت شوي دي؛خو د خداى ياد او مثالونه يې،پوه او زده کړي . (ترمذي ٩/ ١٨٩. ابن ماجه ٢/٤١١٢ حديث)

 ðڅوک چې د پوهې د لاس ته راوړو لپاره لار ووهي؛نو خداى ورته د جنت پر لور لار هواروي .(ناصف ١/ ٦٢- ٦٣ . نووي ٢/ ٩٥٢)

ð څوک چې دعلم په لټه کې بهر ووځي، تر راستنېدو پورې د خداى په لار کې وي . (نووي ٢/ ٩٥٤)

ð څوک چې دعلم د زده کړې لپاره لار وهي (؛نو) خداى ورته د جنت پر لور لار هواروي،پرښتې ورته پخپله خوښه وزرونه غوړوي، اسمانوال او ځمکوال،ان په سمندرونو کې کبان ورته بښنه غواړي .( ناصف ١/٦٣. نووي ٢/ ٩٥٥)

ð هوښياره خبره د مؤمن يو ورک شوى څيز دى؛نو په هر ځاى کې يې چې ومونده؛دهغه ده. (شيباني ٣/ ١٣٧ )

ð که انسان ومري؛نو د کړنو ريښې يې پرې کېږي؛خو د درېو څيزونو يې نه : جاريه صدقه،هغه علم چې خلک ترې ګته اخلي او صالح اولاد، چې ورته دعا وکړي .( نووي  ٢/ ٩٥٣)

ð پرعابدانو د عالمانو لوړاوى؛لکه د سپوږمۍ،چې  پر ستوريو دى. عالمان د پېغمبرانو وارثان دي . پېغمبرانو دينار او درم (پيسې) په ميراث نه دي پريښي؛بلکې علم يې په ميراث پرېښى دى؛نو چا چې علم زده کړ، ډېره ګټه به يې کړې وي . (نووي  ٢/ ٩٥٥)

 ðپر عابد د عالم لوړاوى؛لکه ستاسې پر ډېر ټيټ زما لوړاوى . (نووي٢/ ٩٥٤ )

 ð د قيامت پر ورځ درې ډلې سپارښت کوي : پېغمبران، عالمان او بيا شهيدان . (ناصف ١/ ٦٥)

ð خلکو ته د نېکيو پر ښوونکيو خداى،پرښتې، اسمانوال، ځمکه وال ان ميږي په ځالو او کبان (په سمندر) کې درود وايي.(ترمذي ١٠/ ١٥٨ )

ðد عالم چې کړه وړه ښه وي او(خلکو ته) ښوونه وکړي،د اسمانو په ملکوت کې په ستريا يادېږي .(ترمذي ١٠/ ١٥٨)

ðزه په حقيقت کې د ښوونې لپاره رالېږل شوى يم .(المعجم ٤/ ٣٢٦)

ð خداى زه ددې لپاره نه يم رالېږلى،چې خلک پر کړاو اخته کړم او ستونزې راولاړې کړم؛بلکې د ښوونې او اسانۍ راوستو لپاره يې رالېږلى يم .( شيباني ٤/ ٢٥٧)

ð خداى دې هغه سړى خوشحاله کړي،چې زما خبره واوري او هماغسې،چې يې اورېدلې،نورو ته ورسوي؛ځکه ډېر داسې وګړي شته،چې زما خبره وررسي(؛نو) اورېدونکى به پرې ښه پوهېدونکى وي .

ð له حضرت ابوبکر (رض) څخه روايت دى،چې پېغمبر اکرم ويلي دي: حاضران دې يې غايبانوته ورسوي؛ځکه حاضر  يې ښايي داسې چاته ورسوي،چې پر هغه خبره تر رسوونکي ښه پوه شي.( ناصف ١/ ٦٦)

ð له “ابو زيد عمرو بن اخطب انصاري” (رضى الله عنه) روايت دى، چې يوه ورځ رسول اکرم د سهار تر لمانځه وروسته پر منبر تر لمر لوېدو پورې وينا وکړه،چې يوازې لمانځه ته راکېووت او په دې موده کې يې موږ له هغه څه خبر کړو،چې  موږ ته وو او وي به؛نو ځکه هغه په موږ کې ډېر پوه دى،چې دا وينا يې ښه يادې کړې وې . ( نووي ٢/ ١٢٦٢)

ðحضرت “ابوذر” وايي: رسول اکرم په داسې حال کې له موږه ولاړ،چې که کوم الوتونکي په هوا کې الوت کړى و؛نو په اړه يې يو څه موږ ته راښوولي وو. (احمد ٥/ ١٥٣)

حضرت “سلمان فارسي” وايي : چا ورته وويل : ستاسې پېغمبر ټول څيزونه ان ټټۍ ته تلل دروښوول! سلمان ځواب ورکړ: هو! آنحضرت موږ منع کړو،چې مخ پر قبله به اودسماتى نه کوئ ،په ښي لاس به استنجا نه کوئ او پر درېو ډبرو (لوټو) به ځان پاکوئ او په خرشنو،غوشيانو او هډوکي به  يې نه پاکوئ . (ابوداود ١/ ٧ )

 

د يادولو لارې چارې

ð د نبي اکرم په احاديثو کې د يادولو څلورو لارو ته اشاره شوې ده: تقليد او لاروي،ازمېښت او تېروتنه،شرطي سازي، تفکر او فکر کول.

 

تقليد او لاروي

ðحضرت”ابوحازم بن دينار” وايي : يو ځل پېغمبراکرم پر منبر لمانځه ته ودرېد او تکبير يې ووايه او لا هماغسې پر منبر ولاړ و،چې خلکو ورپسې تکبير ووايه،بيا پېغمبر اکرم رکوع وکړه او ورپسې راکوز شو او بېرته پورته شو،تردې چې د منبر په  څنګ کې يې سجده وکړه بيا پورته شو،تردې چې لمونځ يې پوره کړ. وروسته يې خلکو ته مخ کړ او ويې ويل :دا کار مې ځکه وکړ،چې په ما پسې اقتدا وکړئ او لمونځ مې ياد کړئ .

ðروايت دى،چې پېغمبراکرم د لوى اختر پر ورځ پر اوښ سپور شيطان ويشته، ويې ويل : دا ځکه چې خپل مناسک راڅخه زده کړئ؛ځکه نه پوهېږم،ښايي دا مې وروستى حج وي . ( احمد: ٣/ ٣١٨، ٢٢٧، ٣٦٦، ٣٧٨)

 

ازمېښت او تېروتنه

ð حضرت”طلحه بن عبدالله” وايي: له حضرت پېغمبر اکرم سره پر يو شمېر خلکو تېر شو،چې د کجورو پر ونو وو. آنحضرت پوښتنه وکړه : دوى څه کوي؟ ورته يې وويل : تلقيح کوي،نر په ښځه کې ږدي او ونه بلاربېږي .آنحضرت وويل: ګومان نه کوم، چې دا کار به ګټور وي . دا خبره هغوى ته ورسول شوه؛نو کار يې پرېښود.رسول  اکرم يې خبر کړ. آنحضرت وويل: که دا کار ورته ګټور وي؛ ودې يې کړي،ما خو يوازې ګومان وکړ؛نو په ګومان مې مه نيسئ؛بلکې د خداى له لوري مې چې درته څه ويل؛نو ويې منئ؛ځکه زه کله هم پر خداى دروغ نه تړم . او په بل روايت کې راغلي چې: تاسې په خپلو دنيوي چارو په خپله ښه پوهېږئ . ( صحيح مسلم ١٥/ ١١٦ – ١١٨ مخونه)

د پېغمبر اکرم دا وينا، چې “که درته ګټور وي، و يې کړي” او  “تاسې په خپلو دنيوي چارو ښه پوهېږئ”،په واقع کې شخصي تجربې او د ازمېښت او تېروتنې له لارې زده کړې ته اشاره ده او له دې لارې انسان نويو پوښتنو ته نوي ځوابونه برابرولاى شي او د خپلو ستونزو د هواري لپاه ګټورې حل لارې زده کولاي شي .

پېغمبر اکرم په زده کړه کې د شخصي تجربې اهميت ته اشاره کړې ده.

 ðله حضرت “ابوسعيد” څخه روايت شوى،چې پېغمبراکرم وويل : هر زغمناک ښويېدنه او هر حکيم تجربه لري .( ناصف ٥/ ٦٤)

[تبصره: ځکه هر حکيم يوازې د تجربې له لارې خپل حکمت ته رسي او دا تجربى يې د ډېرو ازمېښتونو له لارې تر لاسه کړي دي . ]

 

شرطي سازي Conditioning

مؤمن له يوې سوړې دوه ځل نه چيچل کېږي .( ناصف التاج الجامع للاصول في احاديث الرسول: ٥/ ٧٠. شيباني: ٤/ ٣٠٧)

 

اندنه او فکر کولوته هڅونه

 ð پېغمبراکرم وويل:(( هغه به کومه ونه وي،چې پاڼې يې نه رژېږي او د مسلمان په څېر وي،څوک يې ځواب راکوي؟)) د خلکو پام بېديانيو ونو ته شو.حضرت”عبدالله بن عمر” وويل : حدس مې وواهه،چې دکجورې ونه وي؛خو له شرمه مې ونه ويل . اصحابو وويل : رسول اکرمه! تاسې يې په خپله ووياست .آنحضرت وويل: ((د کجورې ونه . )) (بخاري  ١\ ٦١ )

ðپېغمبراکرم وپوښتل : ((پوهېږئ،چې مفلس څوک دى؟ يارانو يې وويل : موږ خو هغه ته مفلس وايو،چې نه پيسې لري او نه شتمني . آنحضرت ورته وويل :((زما د امت مفلس هغه دى،چې د قيامت پر ورځ له ځانه سره لمونځ ،روژه او زکات راوړي؛خو بلخوا يې چاته کنځلې کړې وي، پر يو چا يې تور تپلى وي ، د يوه يې مال خوړلى وي،د يوه يې وينه تويه کړې وي او يو يې وهلى وي؛نو د دې چارو له امله له ښو کارونو او ثوابونو يې ده او هغه ته ورکړي او ثوابونه يې،چې پاى ته ورسېدل، مخکې له دې،چې په اړه يې پرېکړه وشي،د هغوى له ګناهونو را اخستل کېږي او پرده وربارېږي او بيا يې په اورکې اچوي .))

 ( نووي :١\٢٤١)

ðحضرت “جابر” روايت کړى :له يوې ډلې اصحابو سره سفر ته ولاړم، په لار کې د يوه سرمات او بيا محتلم شو.د سفر  ملګري يې وپوښتل:روا ده چې تيمم وکړم؟هغوى ورته وويل:نه (؛نو) سرماتي غسل وکړ،چې له امله يې ومړ او چې کله رسول اکرم ته راغلل او پېښه يې ورته وويله (؛نو) آنحضرت وويل:((هغه يې وواژه، د هغوى خداى  دې يې ووژني،چې نه پو هېدل؛نو ولې يې نه پوښتل،پوښتل خو د ناپوهۍ درمل وي.))  (ابوداوود:لومړى ټوک ، ٣٢٦ حديث )

 

دزده کړې اصول

(١) انګېزه.

(الف) په هڅونه اوګواښنه د انګېزې راولاړول :

ðله حضرت”ابوذرغفاري” روايت دى،چې (د اسلام د بلنې په لومړيو ورځو کې) پېغمبر اکرم وويل : ((جبرئيل راغى او زېرى يې راکړ،چې که له امته دې څوک ومري او له خداى سره يې څوک شريک نه وي نيولى (؛نو) جنت ته ځي.)) ورته مې وويل : که زنا يې کړې وې، که غلايې کړې وي ؟ آنحضرت وويل:(( که زنا او غلا يې هم کړې وي ؟ بيا مې ورته وويل : ((که زنا او غلا يې هم کړې وي ؟آنحضرت وويل:((که زنا يې کړې وي،که غلا يې کړې وي؟ اوڅلورم ځل يې وويل:((که څه هم د ابوذر نه خوښېږي)).(ناصف ١\٣١)

ðپېغمبر اکرم مسلمانان د عبادت کولو او له لويو ګناهونو ځان ژغورنې ته هڅول :((هر بنده چې پينځګوني لمونځونه وکړي،د رمضان د مياشتې روژه ونيسي او زکات ورکړي او له اوو سترو ګناهونو ځان وژغوري؛ نو د جنت ورونه ورته پرانستلل کېږي او ورته ويل کېږي : په سلامتي ورننوځه.)) (ناصف  ٢\٥-٦مخونه )

ð[ اوه سترګناهونه دادي : (١) له خداى سره شرک ( ٢) په ناحقه د حرام نفس وژنه ( ٣) د يتيم د مال خوړل ( ٤) سود خوړل ( ٥) کوډې کول (٦) د جهاد له ډګره تېښته ( ٧) پرمړوښو پاکلمنو مېرمنو تورونه لګول .]

ðپېغمبراکرم مسلمانان د ښوچارو کولو او د ناوړه چاره نه کولو ته هڅولي دي : (( خداى تعالى ( په لوح محفوظ کې ) ښې او بدې چارې کښلي بيا يې ( پرښتو او خلکو ته) ويلي دي؛نو څوک چې د ښه کار د کولو هوډ وکړي ؛خو ويې نه کړي؛ نوخداى ورته پوره يو ښه کار ليکي اوکه هوډ يې وکړ او ويې کړ؛نو خداى ورته لس ښه کارونه او تر اوياوو پورې ثواب ليکي؛بلکې څو څو ګرايه او که د ناوړې چارې هوډ وکړي؛ خو ويې نه کړي؛نو خداى ورته يو پوره ښه کار ليکي او که هوډ يې وکړي او ويې کړي؛نوخداى ورته يوازې يو بد کار ليکي.)) (ناصف ١\٥٢)

ðپېغمبراکرم وايي:((ايمان په هيله نه دى؛بلکې ايمان هغه دى،چې په زړه کې څړيکه ووهي او عمل (يې ګواه وي او) تاييد يې کړي،ځينو خلکو داسې الهي بښنې ته سترګې نيولې وي،چې يو ښه چار يې هم نه وي کړى او ومري او وايي : پر خداى يې ښه ګومان لاره،حال داچې دروغ وايي،که پر خداى يې ښه ګومان درلوداى؛نو ښې چارې به يې کولاى.)

 ( البهي الخولي؛آدم عليه السلام: فلسفه تقويم الانسان واخلا قه: ١٨٥٠ مخ .)

ðکه مؤمن له هغې سزا خبر واى،چې له خداى سره ده ؛نو هيچا يې جنت ته تمه نه کوله او که کافر له هغه رحمته خبر واى،چې له خداى سره دى ؛ نو هيڅ کافر يې له جنته نه نهيلېده .)) ( نووي  ١\ ٤٠٠ )

( ب) په کيسه دانګېزې راولاړول .

د کيسې ويل د انسان پام رااړوي؛نو ځکه پېغمبراکرم له دې دوده کار اخستى دى،چې په نبوي احاديثوکې يې بېلګې ليدل کېږي . حضرت “ابوهريره” له رسول اکرمه روايت کوي چې :

ð ((يو سړي به خلکو ته پورونه ورکول او خپل مريي ته يې وويل : که کوم پوروړي ته تلې او ليده دې،چې لاس يې تنګ دى؛نو ترې تېرېږه، ښايي خداى هم له موږه تېر شي او دا سړى،چې ومړ؛نوخداى وباښه ))

 ( نووي : ٢\٩٤٥)

ð (( يوه ښځه له دې امله دوزخ ته ولاړه،چې يوه پيشو يې تړلې وه، نه يې په خپله خواړه ورکول او نه يې پرېښووه،چې واښه وخوري.))

( شيباني  ٢\١١٤)

ð((له شرابو ځان وژغورئ؛ځکه د ټولو ګناهونو ريښه ده . په پخوانيو زمانو کې يوه بې لارې ښځه پر يوه سړي مينه شوې وه،ښځې خپله وينځه ورپسې ولېږله،چې دشهادت لپاره دې راشي . سړى له وينځې سره راغى او په هر وره به،چې ننووته؛نو وينځې ورپسې ورتاړه، څو هغې کوټې ته ننووت،چې ښکلې ښځه له مريي سره ناسته وه او د شرابو منګوټى يې په څنګ کې و. ښځې وويل : رښتيادرته ووايم،ما ته د شهادت ويلو لپاره نه يې رابللى؛بلکې د کوروالي لپاره مې راغوښتى يې،يا داچې له دې شرابو يو جام وڅښې او يا دا مريي ووژنې.سړي ورته وويل:له شرابو يو جام راکړه.ښځې پرې يو جام شراب وڅښل.سړي وويل:نور هم راکړه او دومره يې وڅښل،چې په پايله کې له ښځې سره څملاست او مريى يې هم وواژه؛نو له شرابو ځان وژغورئ؛ځکه پر خداى قسم،چې شراب او ايمان سره نه يو ځاى کېږى؛خو داچې يو بل لرې کړي .))  ( ناصف  ٣\ ١٤٤)

ð (( درې تنه پر لار روان ول،چې باران پرې راکېووت،په غره کې يو غارته ننووتل،ناڅاپه له غره ډبره راولوېده او د غار خوله يې ټپه کړه او دوى پکې بند پاتې شول . يوه بل ته وويل : هر يو دې فکر وکړي،چې د خداى لپاره يې کوم کار کړی دى او د هماغه له مخې دې خداى ته دعا وکړي،چې که دا ډبره لرې شي او ووځو. يوه وويل: خدايه!ما خو بوډاګان مور وپلار او يو شمېر واړه درلودل،چې پالنه يې راپرغاړه وه ، د شپې چې راتلم ؛نو شيدې مې لوشلې او لومړى به مې مور و پلار ته ورکولې،چې و يې خوري او بيا خپلو کوچنيو اولادونوته . يو ځل راباندې ناوخته شو او کورته،چې راغلم؛نو مور و پلار مې وېده ول او شيدې مې، چې ولوشلې او مور و پلار ته راغلم؛ نو زړه مې ونه شو،چې راويښ يې کړم او دا مې هم زړه نه منل،چې تر هغوى وړاندې يې پر خپلو کوچنيانو وڅښم . اولادونو مې راته زارۍ کولې،چې ګهيځ شو؛نو که ما دا کار يوازې ستا د رضا لپاره کړى و؛نو يوه درېمڅه راته پرانځه،چې اسمان خو وګورو.خداى ورته دا کار وکړ او اسمان يې وکوت .

بل وويل : خدايه! د خپل تره پر لور مين وم او د کوروالي هيله مې ترې وکړه؛خو راسره يې ونه منله . ما ورته سل ديناره ورکړل او په ډېرو زاريو مې راضي کړه،چې کېناستم،چې خوند ترې واخلم ويې وويل: د خداى بنده! له خدايه وډار شه او مهر مې يوازې په حلالو پرانځه .زه راولاړشوم . اوس نو خدايه که داکار مې يوازې ستا د رضا لپاره کړى وي؛ نو دا ډبره خو لږه نوره هم څنګ ته کړه او ډبره څنګ ته شوه .

درېم وويل : خدايه ! يو کارګر مې د يوې پيمانې وريجو په بدل کې نيولى و،چې کار يې پاى ته ورساوه،ويې ويل :مزدوري مې راکړه.ما يې مزدوري ورکړه ؛خو هغه وويل ،چې: دا لږه ده او و يې نه منله، ما هماغه يوه پيمانه وريجې وکرلې،چې د حاصلاتو په پلورلو يې ما له شپنو سره د غواوو پاده وپېرله . هغه کارګر راته دويم ځل راغى او ويې ويل: له خدايه وډار شه(او مزدوري مې راکړه) ورته مې وويل: ولاړ شه دا غواګانې سره بوځه . کارګر وويل : له خدايه وډار شه اوملنډې راباندې مه وهه .ورته مې وويل : ملنډې درباندې نه وهم . ځه ولاړ شه او بو يې ځه او هغه ولاړ او له ځان سره يې بوتلې . اوس نو خدايه! که دا کار مې يوازې ستا د رضا لپاره کړى وي؛نو د غار خوله راته بېخي پرانځه،چې همداسې وشول او دباندې راوتل او ولاړل . (ناصف  ١\ ٥٢- ٥٤مخونه ) 

 

 بدله ورکول

تجربي څېړنو ښوولې،چې په زده کړه کې د بدلې ورکړه،خورا اهميت لري؛ خو پېغمبراکرم لا د مخه ددې دود سپارښتنه کړې وه .

ð د کارګر د خولې تر وچېدو وړاندې يې مزدوري ورکړئ . (ابن ماجه : ٢\٢٤٤٣ حديث )

ð چا چې درسره نېکي وکړه،بدله يې ورکړئ او که د بدلې لپاره مو څه نه درلورل؛نو تر هغه ورته دعا وکړئ،چې ګومان مو راشي،چې بدله مو يې ورکړه . (نووي  ٢\١١٧٥مخ  – احمد ١\٢١٤ )

ðپه هره شپه کې داسې يو ساعت شته که مسلمان پکې د دنيا او آخرت له چارو څه خير وغواړي؛نو خداى يې ورته هرومرو ورکوي(نووي : ٢\٨٤١)

ðد جمعې پر ورځ داسې يو ساعت شته،چې که مسلمان پکې پر لمانځه ولاړ وي او له خدايه څه وغواړي؛نو هرومرو يې ورکوي.( آنحضرت په خپل لاس د دې وخت لږ والى و‌ښود. (شيبا ني ٣ \٣١٤)

ðد قدر شپه د روژې  مياشتې په وروستيو لسو په طاقو کې ولټوئ . (ناصف : ٢\٨١)

ðخداى نرم خويه دى او نرمي يې خوښه ده او نرمۍ ته هغه څه ورکوي، چې سختوالى  ته يې نه ورکوي . ( المعجم   ٢\٢٨٤)

ðهڅېکله څوک پر مخ مه وهئ . ( سنن احمد٣\ ٣٢٣ )

 

په زماني واټن کې زده کړه

ðحضرت “عبدالله بن مسعود” وايي : پېغمبراکرم زموږ د ستړيا له وېرې په هر وڅو ورځو کې راته موعظه کوله . (بخاري  ١\ ٦٨ ) 

زياتوي : له پېغمبره مو د قرآن لس آيتونه زده کول او تر هغه مو ورپسې لس آيتونه نه زده کول،څو مو دا لس زده کړي نه وو. شريک ته وويل شو: يعنې عمل مو پرې کاوه؟ويې ويل : هو! (محمد سعيد رآفت؛ الرسول المعلم ونهجه فى التعليم ، ١٤٣ مخ )

تکرار

ðحضرت “انس” وايي : پېغمبر اکرم،چې خبرې کولې؛نو درې ځل يې ويلې،چې ښه پرې وپوهول شي . ( ناصف  ١\ ٧١.  نووي  ١\ ٦٦٤ )

ðد قرآن حافظ د هغه په څېر دى،چې اوښ يې تړلى وي،که و يې څاري، پاتې کېږي او که پرانځې يې او خوشې يې کړي؛نو ځي .(المعجم ١\ ٢٤ )

 ðبنده چې ګناه وکړي؛نو پر زړه يې تور ټکى راپيدا کېږي،که له ګناه يې لاس واخست او بښنه يې وغوښته او توبه يې وکړه،زړه يې پاکېږي؛خو که تکرار يې کړه؛نو دا ټکى ډېرېږي او لا ډېرېږي،ان چې ټول زړه يې ونيسى .دا هماغه زنګ دى،چې پاک خداى ويلي دي : نه؛بلکې څه يې چې کول، زړونو يې زنګ ونيو . (شيبا ني  ١\ ١٩٤)

 

رغنده سيالي

ðد قرآن په ډېرو آيتونو کې د “ايمان” ترڅنګ “عمل” راغلى دى او پېغمبراکرم به د رغنده سيالۍ له لارې يارانو ته زده کړه کوله . حضرت “کلده ابن حنبل” وايي : ((پېغمبر اکرم ته ورغلم او سلام مې پرې وانه چاوه . پېغمبر راته وويل:ستون شه او بيا راننوځه اووايه : پر تاسې سلام،  اجازه ده ،چې راننوځم .)) ( نووي  ١\٦٧٤)

 ðپوهه په زده کړه ترلاسه کېږي او زغم په زغملو او څوک چې “ښه” غوره کړي؛ ورته ورکول کېږي او څوک چې هڅه وکړي ځان له بدۍ وژغوري (؛نو) ژغورل کېږي .)) (تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي لا حاديث کتاب احياء  علم الدين غزالي ٣\١٧٦)

٦_پاملرنه په زده کړه کې ډېر مهم عامل دى؛ځکه انسان،چې څه ته پام نه وي اړولى، زده کولاى يې نشي.

( الف ) د پام اړونې لپاره له روانو پېښو ګټنه :

ð ((پېغمبراکرم له يوه بازاره تېرېده او خلک يې دواړو لوريو ته تلل (په دې ترڅ کې) د آنحضرت سترګې پر يوه مړه “غوږبوچي” سېرلي ولګېدې، آنحضرت له غوږه ونيو او را پورته يې کړ او و يې ويل: څوک به دا په يو درهم واخلي؟ورته وويل شول : په هيڅ يې هم نه اخلو، څه پرې وکړو؟ آنحضرت ورته وويل : خوښېږي مو،چې مال مو (همداسې وړيا) وي؟ ورته يې وويل : پر خداى قسم،چې ژوندى هم و؛ نو غوږ بوچى و، اوس خو لا مړ دى . ( آنحضرت  ورته وويل : پر خداى قسم ! دا څيز،چې تاسې ته بې ارزښته دى ؛نو خداى ته دنيا تر دې هم بې ارزښته ده.))

( نووي  ١\٤١٤)

ðپېغمبراکرم ته يې يو شمېر بنديان راوستل .په دوى کې يو تيخور ماشوم هم و ،چې مور يې په منډه ورته ځان راورساوه. را و يې نيو او په سينې پورې يې جوخت ونيو او تى يې ورکړ. پېغمبراکرم وويل : په نظر مو دا ښځه به دې تياره وي،چې خپل ماشوم په اور کې وغورځوي؟ ورته مو وويل : نه پر خداى ! آنحضرت وويل : ښځه چې پر خپل ماشوم مهربانه ده؛نو خداى تر دې ډېر پر خپلو بندګانو مهربان دى .( نووي ١\٣٨٠- ٣٨٤)

 

په پوښتنې د پام راړول

ðايا له هغه مو خبر نه کړم،چې د دوزخ اور پرې حرام دى؟پر هر نرم خويه ښه سړي . (نووي  ١\ ٥٣٤)

ðدا کومه مياشت ده؟ورته ومو ويل: خداى او استازى يې ښه پوهېږي . آنحضرت چوپ شو او ګومان مو وکړ،چې پر مياشت به بل نوم ږدي؛ ويې ويل : ولې ذيحجه نه ده؟ ورته مو وويل: ده . و يې وويل : دا کوم ښار دى؟ ورته مو وويل : خداى او استازى يې ښه پوهېږي . (آنحضرت چوپ شو او ګومان مو وکړ،چې پر ښار به بل نوم ږدي . و يې ويل : بلده ( مطلب بلدالحرام يا مکه مکرمه) نه دى؟ ورته مو وويل : دى . نن څه ورځ ده ؟ ورته مو وويل :خداى او استازى يې ښه پوهېږي . حضرت چوپ شو او ګومان مو وکړ،چې بل نوم به پرې ږدي . ويې ويل : ولې د قربانۍ (او لوى اختر) ورځ نه ده ؟ ورته مووويل : هو ده. و يې ويل : ستاسې ځان، مال او پت پر يو بل داسې حرامې (او محترمې ) دي؛لکه دا ورځ،چې په دې ښاراو مياشت کې حرامه ده . ( نووي  ١\ ٢٣٧)

يادونه : دغسې په تېرو عنوانو کې دوو احاديثو ته ځير شئ : پوهېږئ چې مفلس څوک دى ؟پوهېږئ چې غيبت څه ته وايي؟

 

په مثال او تشبيه د پام رااړول

ðپاک خداى،چې زه د کومې لارښوونې او معرفت لپاره رالېږلى يم ، مثال يې د هغه باران په څېر دى،چې پر ځمکه وورېږي او د ځمکې هغه برخه،چې(ېبروره) حاصلخيزه وي،اوبه جذب کړي او بوټي او واښه راوټوکوي او يوه برخه يې،چې سخته وي؛نو اوبه پر ځان ډنډ کړي او خلک ترې ګټه واخلي،څښي يې او کر پرې کوي او يوه برخه يې،چې ښوره وي؛نو نه پکې اوبه ډنډېږي او نه پکې بوټي او واښه راټوکېږي . دا د هغه چا مثال دى،چې د خداى په دين کې پوه وي او زه چې خداى د څه لپاره رالېږلى يم، ګټه ورورسوي او په خپله (هم) پوه شي او نورو ته يې هم وښيي او د هغه چا مثال چې ګټه ترې وانخلي او د خداى لارښوونه ونه مني،چې زه  ورته رالېږل شوى يم .)) (نووي ١\١٣٥)

امام نووي ( ١\ ١٨٦ ) د حديث په تشريح کې وايي : ((په دې حديث کې رسول اکرم ،د خداى له لوري راوړې لارښوونه او معرفت له ګټور باران سره تشبيه کړى؛ځکه لکه څنګه چې باران ځمکه راژوندۍ کوي؛نو لارښوونه او معرفت هم زړونه را ژوندي کوي او څوک چې له دې لارښوونو او معرفته برخمنېږي،د پاکې او ېبرورې ځمکې سره يې تشبيه کړې،چې اوبه جذبوي او بوټي ترې راټوکېږي او څوک چې پوهه تر لاسه کوي او نورو ته يې (هم) ښيي؛خو په خپله ترې ګټه نه اخلي، له سختې ځمکې سره تشبيه کړې،چې اوبه نه جذبوي؛بلکې پکې ډنډېږي او خلک ترې ګټمن کېږي؛خو په خپله يې (نه جذبوي او) نه مني او بوټي او واښه ترې نه راټوکېږي او څوک چې نه علم زده کوي او نه عمل کوي، له ښوره ناکې ځمکې سره يې تشبيه کړي،چې نه اوبه ډنډوي او نه بوټي او واښه رازرغونوي او دا ډېر ناوړه انسانان دي،چې نه چاته ګټه رسوي او نه په خپله ګټمن کېږي . ))

ðهغه چې الهي پولې ساتي او هغه چې يې ماتوي،د هغه ډلې په څېر دى،چې په بېړۍ کې د ځاى پر سر پچه اچوي،چې د ځينو د بېړۍ پاس او د ځينو لاندې برخه رسېږي،هغوى چې په لاندې برخه کې اوبو اخستو ته پر بېړۍ د ناستوخلکو له منځه تېرېږي،ويې ويل: دا چې پاس ناست خلک په تکليف نشي؛نو ښه ده په خپله برخه کې سورى وکاږو.اوس که پر بېړى پاس خلک،دوى پرېږدي،چې سورى وباسي؛نو ټول به ډوب او پوپناه شي؛خو که مخه يې ونيسي؛نو ټول به له ډوبېدو وژغورل شي .

 ( نووي  ١\٢١٠ )

 [ تبصره : د ناوړه کار کول،نه يوازې کوونکي ته زيان رسوي؛بلکې ټولنه هم زيانمنوي،دغسې ټولنې ته د ناوړو چارو د مخنيوي هم ګټه رسي او دا په دې مانا ده،چې د ټولنې د ساتنې لپاره ګرده ټولنه، له فسادسره د مبارزې مسوؤله ده،چې دا مفهوم په پورته حديث کې ښه انځورشوى دى .]

ðد ښه او بد ملګري مثال د”عطر پلور” او “پښ” (اهنګر) په څېر دى. عطر پلور درته يا څه عطردرکوي يا يې ته ترې پېرې او يا يې له ښه بويه برخمنېږې او پښ دې جامې سوځوي او يا يې بدبوي دررسي . (نووي  ١\ ٣٣٩ ) .

 

انځورول

٧-په ورو زده کړه : 

پېغمبر اکرم ته له “ثقيفه” يو پلاوى راغى . پېغمبر اکرم ورته په جومات کې ځاى ورکړ،چې ډېر تر اغېز لاندې راشي . هغوى دا شرط کېښود، چې زکات  به نه ورکوي،په جهاد کې به ګډون نه کوي او رکوع اوسجده (لمونځ) به (هم) نه کوي . پېغمبراکرم ورته وويل : زکات مه ورکوئ،په جهاد کې برخه مه اخلئ ؛خو په هغه دين کې خير نشته،چې رکوع پکې نه وي.(شيبا ني  ٣\٢٤٠)

ðپېغمبراکرم حضرت “معاذ” ته وويل : ((ته کتابيانو ته ځې؛نو هغوى دې ته راوبله،چې يوازې “الله” حق معبود دى او “محمد” يې استازى دى .که و يې منله؛نو ورته ووايه،چې په شواروز کې پينځه وخته لمونځ فرض دى او که دا يې ومنله؛نو ورته ووايه،چې خداى پرې صدقه فرض کړې ده،چې شتمن دې يې نشتمنو ته ورکړي او که دا يې درسره ومنله؛ نو هغوى ته چې کومې شتمنۍ خورا ګرانې وي، ترې مه اخله او د مظلوم  له ښېرا وډار شه؛ځکه د مظلوم اوخداى ترمنځ پرده نشته .)) (ناصف  ٢\٣٢٢)

په دې حديث کې سپارښتنه شوې،چې دا ټولې چارې به په يوه ځل نه کوې ؛بلکې په ورو ورو او په تدريج د اهميت له مخې به پرمخ ځې .

 

 

 

 

امبريالوژي (جنين پوهنه)

ð((داسې نه ده،چې ټولې اوبه به اولاد کېږي .))( محمد علي البار؛ الوجيز فى علم الاجنة القرآني:١٤مخ )

ð ((انسان د نر او ښځې د څاڅکو له يوځاى کېدو پيدا کېږي .)) ( پورته : ٢٠ \٢١مخونه )

ð ((څاڅکى چې په زيلانځ کې شي؛خداى پرښته رالېږي،پرښته وايي : پالونکيه!شکل نيولې يا نه نيولې؟ که ووايي:شکل نه نيولې؛نو زيلانځ دا پرنډه (زيانوي او) دباندې يې غورځوي .)) (محمد علي البار خلق الانسان بين الطب والقرآن : ٢٠ \٢١٠ مخونه )

ðله حضرت “ابن مسعود” روايت دى،چې پېغمبر اکرم وايي: ((ستاسې د هر يو پيدايښت داسې دى،چې څلوېښت ورځې د خپلې مور په ګېډه کې څاڅکى ياست بيا همدومره موده د”علقه” په بڼه ياست،ورپسې همدومره موده د “مضغه” په بڼه پاتې کېږئ بيا پرښته رالېږل کېږي او ساه پکې اچوي او د څلورو څيزونو امر ورته کېږي (چې ويې ليکي ) : ( ١) روزي يې ( ٢) د عمر نېټه يې ( ٣) کړه وړه يې (٤) بدمرغي يا نېکمرغي يې . ))  ( نووي  ١\ ٣٦٥)

[ تبصره:د جنين پوهنې له مخې هم دجنين حرکت د درېمې مياشتې په وروستيو او د څلورمې مياشتې په سرکې پيلېږي .]

ð ((مخ مې هغه ته پرخاوره ږدم،چې په خپل قدرت يې پيدا کړم او غوږ او سترګې يې ورته پيدا کړې.))  (المعجم ٢\ ٤١٥)

[پورته حديث له جنين پوهنې سره اړخ لګوي،چې په جنين کې تر ليدو مخکې اورېدل راپيدا کېږي .]

ð((د نرڅاڅکى سپين او د ښځې ژېړ وي؛نو دا دواړه،چې يو ځاى شي او د نر څاڅکى د ښځې پر څاڅکي برلاس شي؛د خداى په حکم،زوى راوړي؛خو که د ښځې څاڅکى د نر پر څاڅکي برلاس شي؛ د خداى په حکم ،نجلۍ راوړي)) (مسلم٣ \٢٢٧)

ðپېغمبراکرم (ص) ته د “بني فزاره” يو سړى راغى او و يې ويل : مېرمن مې تور زوى زېږولى دى . پېغمبر(ص)ورته وويل:(اوښ لرې؟) سړي ورته وويل : هو! آنحضرت ورته وويل : (رنګ يې څنګه دى؟) سړي ورته وويل : سور دى . آنحضرت ورته وويل : په وېښتانو کې يې ايرو رنګي شته؟ورته يې ويل: ځينې يې شته . آنحضرت ورته وويل : ولې داسې شوې دي؟ سړي ورته وويل : ښايې ارثي وي . آنحضرت ورته وويل: ((ښايي دا هم ارثي وي .)) ( ناصف شيباني: ٤\ ١٧٢)

ð څاڅکى چې په زيلانځ کې ځاى ونيسي؛نو خداى پکې ددې او آدم ترمنځ هرډول تړاو ټينګوي . (محمد علي البار؛ خلق الانسان بين الطب والقرآن : ١٩٧مخ )

ð خپلو څاڅکو ته(وړ مېرمنې) غوره کړي او له خپلو سيالانو ښځې وکړي او خپلو سيالانو ته يې ور هم کړئ . ( المعجم ٦\ ٤٧٤ )

 

کوچني

ð((کوچنيانو ته مو په اوه کلنۍ کې د لمونځ کولو امر وکړئ او په لس کلنۍ کې يې دې کار ته تنبيه کړئ او بسترې يې بېلې کړئ.)) (ابوداوود : ١\٤٩٥ ، احمد ٢\ ١٨٠)

 ðپر درېو مسوؤليت نشته :(١) ويده،چې راويښ شوى نه وي ( ٢) ماشوم ،چې محتلم شوى نه وي ( ٣) لېونى ،چې روغ شوى نه وي .))

 ( ناصف  ٢\ ٣٢٨)

 

د خوړو اداب

ð((په ښي لاس خوراک څښاک کوئ؛ځکه په کيڼ لاس شيطان خوراک څښا ک کوي .))  (ابوداوود ٣\ ٣٤٩ .ترمذي ٧ \ ٣٠٥ – او ٣٠٦)

ð ((د خوړو په پيل کې”بسم الله” ووايئ او په ښي لاس د خپلې مخې خواړه خورئ .)) ( المعجم ١\٧٣)

 

ځوان ته د پېغمبراکرم نصيحت

ð ((ځوانه! څو ټکي درښيم : د خداى درناوى وکړه،چې خداى دې هم درناوى وکړي . د خداى درناوى وکړه،چې هغه به دې په مخ کې وي،که څه غواړې؛له خدايه يې وغواړه او که مرسته (هم) غواړې؛له خدايه يې غواړه او پوه شه،که ټول خلک راټول شي،چې ګټه درورسوي؛نو در و به يې نه رسوي؛خو هماغه څه چې خداى درته ليکلي وي او که ټول خلک راټول شي،چې زيان درورسوي؛خو نه يې شي دررسولاى؛خو څه چې خداى درته کښلي وي، قلمونه بند شوي او رنګونه وچ شوي دي .)) ( المعجم: ١\ ٤٨١)

 

شخصيت

ðما خپل ټول بندګان حنيف (الله لمانځونکي) پېدا کړي دي؛خو شيطان ورپسې وﻻړ او له دينه يې واړول . (ناصف ٤\١٣٨)

ð حلال (هم)څرګند دي اوحرام هم . (شيباني٤\١٣٨)

ðانسان په خپل فطرت حلال او حرام،حق او باطل،ښه او بد،فضيلت او ذلت درکولاى شي.حضرت “وابصه بن سعيد” وايي: رسول اکرم (ص)ته وﻻړم،راته يې وويل:((راغلې،چې نېکي او بدي وپوښتې؟ورته مې وويل: هو! راته يې وويل: ((خپل زړه وپوښته، په څه چې زړه (تسکين اوارام ) مومي،نېکي ده او په څه چې ونه مومي او په سينه کې ناکراره وي ، که څه هم په اړه يې درته خلک هره فتوا درکړي(؛نو)ګناه ده.))

( نووي : ٥٠ ٥ا و٥٠٦ )

ðکه څوک ددې لپاره کار کوي،چې لاس يې چاته اوږد نشي او ځان له خلکوبې اړې کړي(؛نو)دا هلې ځلې يې د خداى په ﻻر کې دي او که کار يې د بېوسې موروپلار او کوچنيو اوﻻدونولپاره وي(؛نو بيا هم) د خداى په ﻻر کې دي؛خوکه ددې لپاره کار کوي،چې شتمني يې ډېره شي او ځان خلکو ته وښيي او ووياړي(؛نو دا هلې ځلې يې)د شيطان په لارکې دي . ( تخريج زين الدين العراقي ٢\٦١)

ðخداى له ګردې ځمکې يو موټى خاوره راواخسته او آدم(ع) يې ترې جوړ او پيدا کړ؛نو ځکه يې اوﻻد د ځمکې په څېر دى؛ځينې سره،ځينې سپين،ځينې تور،ځينې ددې ټولو ګډوله دي،ځينې نرم،ځينې تريخ زيږه،ځينې ناپاکه او ځينې پاک دي . (ناصف ٤\٣٩ )

ð خلک هم د سرو سپينو په څېر دي،که ديني پوهه ولري؛نو هغوى چې په جاهليت کې غوره ول؛نو په اسلام کې هم غوره دي . (ناصف ٥\٨١)

ðڅومره مو چې له وسې پوره و،له کومو څيزونو،چې مې منع کړي ياست،ځان ترې وژغورئ او د کومو څيزونو مې،چې درته ﻻرښوونه کړې،عملي يې کړئ . ( ناصف١\٤٤)

ðموږ د پېغمبرانو ټولي ته ﻻرښوونه شوې،چې خلک پخپلو ځايو کې کېنوو او د عقل هومره يې ورسره خبرې وکړو. ( تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي: ١\٥٧)

ð خداى چې د چا خير وغواړي؛نو په دين يې پوهوي،زه په حقيقت کې وېشونکى يم او دا خداى دى،چې لوروي او پېرزو کوي يې . (ناصف: ١\٦١)

 

د مېرمنې د ټاکنې غوره کچه

ðله ښځوسره،چې واده کېږي؛نو له دې څلورو څيزونو،يو پکې لامل وي 🙁 ١) شتمني يې ( ٢) کورنۍ يې (٣) ښکلا يې ( ٤) دينوالي يې. ته د هغې د دينولۍ له امله ورسره واده وکړه . ( المعجم ٢\ ١٦٦)

ðيو تن پېغمبرا کرم(ص)  ته راغى او د خپل واده په هکله يې ورسره سلا مشوره وکړه. پېغمبراکرم(ص) ورته وويل:واده وکړه؛خو له متدينې ښځې سره.  (وسايل ١٤\٣٠)

 

دوستي

ðبنيادم د خپل دوست او ملګري په دين دى؛نو ځير شئ،چې له چا سره دوستي کوئ . (نووي ١\اتم حديث ٣٦٨مخ )

 

زړه

ðګناهونه (يو يو) زړونو ته داسې وروړاندې کېږي؛لکه پوزى،چې له يوې پاډې يا پټې اوبدل کېږي؛نو کوم زړه چې ګناهونه ومني يو تور ټکى پکې پيدا کېږي او چې و يې نه مني؛سپين ټکى پکې منځ ته راځي او داسې سپېنېږي؛لکه ښويه ډبره،چې تر اسمانو او ځمکې ټينګه پر ځاى وي او هيڅ فتنه او ګناه ورته زيان نه شي رسولاى اوبل دومره تک تورګرځي؛لکه نسکوره کوزه،چې بې له خپلو ځاني غوښتنو بل هيڅ ښه او بد نه پېژني . (صحيح مسلم : ٢\١٧١- ١٧٣.دامام احمد مسند : ٥ \ ٣٨٦)

ð زړونه څلور ډوله دي : (١)لوڅ لغړ زړونه دي،چې څراغ ته ورته يو څه پکې بلېږي .( ٢)په پردو کې رانغښتي زړونه دي ( ٣) نسکوره زړونه ( ٤) دوه اړخيز زړونه دي .لومړى ډول د مؤمن زړه دى ،چې څراغ يې د مؤمن خپله رڼا ده.دويم ډول د کافر او درېم د منافق زړه دى او په دوه اړخيز زړه کې هم ايمان دى او هم نفاق . د ايمان مثال يې د شنو دى،چې له ښو اوبو جوړ شوى دى او د نفاق مثال يې زوه ده،چې له خيريو او وينې جوړ دى،که هر يو پر بل برلاس شي؛نو هماغه (ايمان يا نفاق ) پر زړه برلاسېږي .)) ( احمد  ٣\ ٧)

ðخداى ستاسې څېرو او شتمنيو ته نه ګوري؛بلکې زړونو او کړنو ته مو ګوري . ( ناصف  ١\٥٥)

ðله درېو ډلو سره ناسته ولاړه زړه وژني : (١) له پستوخلکو سره ( ٢) له ښځوسره خبرې( ٣) او له  شتمنو سره . ( الکافي ٢\ ٦٤١)

ðد زړه ړوندوالى،ډېر ناوړه ړوندوالى دى . ( بحارالانوار ٦٧\٥١)

ðد دين (د پاسوالۍ) لپاره ناوړه مرستندويان دادي : (١) ډارن زړه (٢) ډېر خوره ګېده ( ٣) او ډېر شهوت . ( الکافي ٦\٢٦٠)

ðد مؤمن زړه،چې له الهي ډاره لړزېږي،ګناهونه يې  د ونې د پاڼو په څېر رژېږي . (بحارالانوار67/394)

ðد بدمرغۍ له نښو (دي) :د سترګو وچوالى،د زړه سختوالى،د دنيا غوښتنې، حرص او پر ګناه ټينګار .( الکافي  ٢\٢٩٠)

ðدنيا تر هغه پای ته نه رسي،چې : د مؤمن زړه (له کړاو او سختۍ) ويلې شي او مؤمن د مړ پسه په څېر خوار شي.(مشکاة الانوار : ٢٨٨)

ðد خداى،چې کوم بنده ښه و ايسي؛په زړه کې يې ورته د خپګان څه څپه کېنوي؛ځکه د خداى خپه زړونه ښه ايسي او جهنم ته يې نه ننباسې، چې له ډاره يې داسې ژاړي؛لکه شيدې،چې د مور له تيونو راوځي او د خداى،چې کوم بنده ښه نه ايسي؛په زړه کې يې ورته د خندا څه څپې اچوي؛ځکه (د زړه له کومې)خندا زړه وژني او خداى هغوى ښه نه ګڼي ، چې له زړه خندوني وي . ( وسايل : ٧\٧٦)

ð د زړه ماتوالى د خداى رحمت دى؛نوپه دې وخت کې دعا غنيمت وګڼه . ( کنز ٢/١٠٢ )

ð بى حکمته  زړه کنډه واله دى .( کنز ١٠ /١٤٧)

ð زړونه مو د دنيا په ياد مه بوختوئ . ( کنز ٣/١٩٨)

ðپه رښتيا چې “الله تعالى” ستاسې تنو او څېرو ته نه ګوري؛ بلکې زړونو ته مو ګوري .(سنن ابي داوود)

ðد بنده په زړه کې کله هم حرص،بخل او ايمان نه يو ځاى کېږي . (نسايي)

 

بنيادم

ðخداى له تاسې د جاهليت کبر او غرور او پر پلرونو وياړنه له منځه يووړل[ اوس تاسې په دوه ډوله ياست] پرهېزګار مؤمن او ګناهګار مؤمن . تاسې د آدم اولاده ياست او آدم له خاورې و.( ناصف :٦٠-٦١مخونه )

ðپوه شئ،چې بنيادمان په بېلا بېلو پوړيو پيدا شوي دي : ځينې مؤمن زيږي،مؤمن ژوند کوي او مؤمن مريې.ېځيني کافر زيږي،مؤمن ژوند کوي (؛خو) کافر مري او ځينې کافر زيږي،کافر ژوند کوي (؛خو) مؤمن مري .  ( ناصف  ٥\ ٢٨٩)

 

ځان ساتنه

ðخلکو!خداى مو يو دى او پلارمو هم يو دى . پوه شئ،چې عرب پر ناعرب او ناعرب پر عرب،سپين پر تور او تور پر سپين غوره نه دى؛ خوپه تقوا.) ) ( احمد ٥\ ٤١١)

ð هېڅوک پر يو بل غوره نه دى؛خوپه دين يا تقوا (اوپه بل روايت کې)  ؛خو چې دين يا کړه يې ښه وي . ( احمد ٤\٤٥- ١٥٨٠مخونه )

ð پرهېزګار ډېر خداى ته عزتمن دى . (نووي  ١\١٠٣)

ð (( خداى ته د قيامت پر ورځ د ښه قدوقامت سړى راځى؛خو خداى ورته د ماشي د وزره هورمره ارزښت نه ورکوي او ويې ويل:ولولئ : د قيامت پر ورځ به ارزښت ور نه کړم.)) ( ناصف  ٤\١٧٢)

 

اروايي روغتيا

ð له چاسره،چې د آخرت غم وي،خداى يې زړه غني کوي او پرېشاني يې لرې کوي او دنيا ورته په خپله مخه کوي او له چا سره،چې د دنيا غم وي؛ پاک خداى نيستي يې ورته په مخ کې ږدي او ټولى يې پرېشانوي او له دنيا ورته يوازې هومره رسي،چې ورته ټاکل شوې ده؛نو شپه و ورځ په نېستۍ تېروي .بنده،چې کله هم خداى ته مخه کړي؛خداى ورته په مينه د مؤمنانو زړه تابع کوي او خداى ورته په بيړه ټولې ښېګڼې رسوي .))  ( شيباني ٤\ ١٨٤)

ðڅوک ضمانت راکوي،چې له خلکو به څه نه غواړي،چې زه ورته د جنت ضمانت ورکړم ؟حضرت ثوبان وويل :زه! او بيا مې له هېچا څه ونه غوښتل . ( ابوداوود ٢\ ١٢١) 

ð پر خداى قسم، چې زما ساه يې په واک کې ده،که تاسې هر يو خپله رسۍ واخلئ او پر شا خس راوړئ ؛نو دا ورته تر دې غوره ده،چې چاته ورشئ او څه ترې وغواړئ،که څه درکړي يا درنه کړي .)) ( ناصف ٢\ ٣٥)

ðد خپلو اولادونو درناوى وکړئ اوښه يې وروزئ .)) (ابن ماجه، الادب ٢ټوک، ٣٦٧١ حديث.)

ðپه روايت کې راغلي،چې د يوې نجلۍ نوم “عاصيه”(سرغړانده) وه، رسول اکرم يې نوم واړاوه او “جميله” يې ونوموله.)) ( ناصف : ٥\٢٦٧)

ðتاسې هر يو پالندوى ياست او د تر لاس لاندې پر وړاندې مسوول.د خلکو مشر،د هغوى پالندوى او د خپلو تر لاس لاندې پر وړاندې مسؤول دى؛نارينه د خپلې کورنۍ پالندوى او د خپلو ترلاس لاندې پر وړاندې مسؤول دى . مېرمن د خپل مېړه د کور پالندويه او د کورنۍ پر وړاندې مسؤوله ده . مريى د خپل خاوند د شتمنۍ پالندوى او پر وړاندى يې مسؤول دى؛نو تاسې هر يو پالندوى ياست او د خپلو تر لاس لاندې پر وړاندې مسوول ياست.)) ( ناصف  ٣\٤٧- ٤٨)

ðواقعي وسمني په ډېرې شتمنۍ درلودو کې نه ده؛بلکې په دې کې ده،چې انسان مړه خوا وي .)) (ناصف  ٥\١٦٦)

ðتر ځان ټيټو ته ووينئ،نه تر ځان لوړو ته او دا کار ددې لاملېږي،چې د خداى درکړي لورنې ناڅيزه ونه بولئ .))  (ناصف  ٥\١٦٦)

ðد خداى پر درکړي قسمت راضي وسه،چې ډېر مړه خوا وسې .))

( ناصف ٥ \١٦٦- ١٦٧)

ð مؤمن ته چې څه غم،خپګان،رنځ،ناروغي او اندېښنه رسي؛ نو له امله يې خداى ورته ګناهونه بښي .)) ( شيباني ٣\٣٤٣)

ð د خپل لاس ګټلي خواړه ډېرغوره دي،داوود(ع) د خپل لاس ګټلي خوړل .)) ( نووي  ١\ ٤٧١)

 

کرهڼه

ðکه قيامت شي او د چا په لاس کې نيالګى وي او د ولاړېدو وس يې نه وي،چې ويې کري (؛نو بيا دې هم ) دا کار وکړي . (احمد ٣\ ١٨٣ – ١٧٤ ، ١٩١ .)

 

ورهڼه

ð بوخت مؤمن د خداى ښه ايسي. (تخريج زين الدين عراقي لا حاديث کتاب احيا علوم الدين للغزالي ٢\ ٦١ )

ð د خداى هغه ښه ايسي،چې کار سم سوتره ترسره کوي.)) (بيهقي؛شعيب  للاايمان ؛طبراني )

ð خداى ته تر بېوسې مؤمنه،ځواکمن مؤمن غوره دى .)) (نووي ١\ ١٠٠ )

ðسود خوړل،ډېر ناوړه کسب دى .( الکافي ٨\٨١)

ðد روزۍ تر لاسه کول ( د لمانځه،روژى او…عبادتونو)په څېر يو فرضي،چار دى .( بحارالانوار  ١٠٠ \١٧)

ðڅوک چې په نارواوو څه لاس ته راوړي،خداى به يې فقير او نشتمن کړي.( الامالي للطوسي : ١٨٢)

ðله ناروا لارو د مال لاس ته راوړنه به هغه دوزخ ته راکاږي .( مستدرک الوسايل ١٣\٢٢)

ðد سپي ( پېر و پلور) ډېر ناوړه کسب دى .( بحارالانوار  ١٠٠ \٥٦)

 

ډاډمني او روغتيا

ð پرهېزګار ته شتمني بده نه ده؛خو روغتيا ورته تر شتمنۍ غوره ده او ډاډمني په خپله يوه لورنه ده.)) (ابن ماجه: ٢\ ٢١٤١حديث احمد: ٥\ ٣٨١)

ðڅوک چې ګهيځ کړي او ډاډمن وي او پر تن روغ(هم) او د خپلې ورځې خواړه  هم ولري؛نو داسې به وي؛لکه چې ټوله دنيا ورته ورکړ شوې وي . ( شيباني ٤\٤٥ )

ðکه الله پاک د کومې کورنۍ خير ښېګڼه وغواړي؛نو ورته د لورنې او ډاډ لار ورښيي؛خو که څوک له لورنې بې برخې شي؛نو له خير او ښېګڼې به بې برخې شوى وي .(مستدرک الوسايل  ١١\ ٢٩٣)

ðډاډ د خداى له لوري دى او بيړه د شيطان . ( وسايل : ٢٧ ١٦٩)

ðتر ډاډمنۍ اونرمۍ بل څه خداى ته ګران نه  دي .( بحارالانوار ٧٢ \ ١٤٨)

ð خدايه! بدن،غوږ او سترګې مې روغې رمټې لرې، بې له تا وړ معبود نشته . (تخريج …: ١\ ٣١٩ )

ðله خدايه يقين او روغتيا وغواړئ؛ځکه تر يقين وروسته،روغتيا غوره څيز دى،چې چاته ورکول کېږي . (ابن قيم الجوزية:الطب النبوي ٢٠٢مخ )

 

ځواک

ð څه مو چې په ځواک کې وي،پر وړاندې يې چمتو کړئ . (او ويې ويل : پوه شئ چې له ځواکه مطلب غشي ويشتل دى او دا يې درې ځل وويل . (منذري  ٢\ ١١حديث)

 

اروايي درمل

ðپه بدن کې يوه ټوټه ده،که روغ رمټه وي؛نو ټول بدن روغ پاتې کېږي او که فاسده شي؛ټول بدن فاسدېږي او هغه ټوټه زړه دى (شيباني ١\٣٢)

ðکوم ګناهونه،چې سړى د خپلى مېرمنې،شتمنۍ، اولاد، خپل ځان او ګاونډي په اړه کوي؛نوپه روژه، لمونځ، صدقې(يا زکات) او”پر نېکيو په امر او له بديو په منع” څنډل کېږي .(المعجم المفهرمن… ٥\٦٢)

ðکه څوک پر پينځوڅيزونو ټينګ ودرېږي او ايمانوال هم وي؛نو جنت ته ځي :څوک چې پينځه وخته لمونځ پرخپل وخت په اودس او په رکوع او سجدو پر ځاى کړي،په رمضان کې روژه ونيسي،چې د وسې يې وي،حج وکړي،د زړه له کومي زکات ورکړي او امانت پر ځاى کړي. “ابودردا” وپوښتل شو: له امانته موخه څه ده ؟ويې ويل : د جنابت غسل .)) ( ابوداود ١١\٤٢٩ )

ðپېغمبراکرم،به چې له کومې ستونزې سره مخ شو؛نو لمونځ به يې کاوه . ( ابوداود ٢\١٣٩١حديث )

ð بلاله! په لمانځه مو خاطر جمع کړه . ( مسند احمد ٥\٣٦٤)

ð څوک چې ښه اودس وکړي؛د بدن ګناهونه يې ان تر نوکانو لاندې وځي . (نووي ٢\ ١٠٦٢)

ðپينځګوني لمونځونه او د جمعې لمونځ تر جمعې پورې،چې څومره ګناهونه يې کړي پاکوي؛خو چې سترګناهونه يې نه وي کړي . (ناصف ١\١٣٥)

ð ((خداى وويل : هر عمل د هر چا خپل دى؛خو روژه زما ده او زه يې اجر ورکوم،روژه ډال دى؛نو روژه تي دې له کنځلو او شخړو ډډه وکړي،که چا ورته کنځل وکړه يا يې ورسره شخړه کوله؛نو ورته دې ووايي : زه روژه يم .)) ( نووي ٢\١٢١٦)

ðحج او عمره وکړئ،چې دا دواړه فقر او ګناهونه داسې له منځه وړي؛لکه د اهنګر بټۍ،چې اوسپنه او سره سپين نږه کوي او جنت د قبول حج بدله ده . (ناصف ٢\١٠٧)

ðستر خداى وايي : زه د بنده په ګومان يم،که ياد مې کړي؛نو زه ورسره يم .که په زړه کې مې ياد کړي؛نو زه يې هم په خپل زړه کې يادوم . که په غونډه کې مې ياد کړي؛نو زه يې د هغوى تر غونډې په غوره غونډه کې يادوم .که راته يو لوېشت رانږدې شي،زه يو ګز ورنږدېږم،که په قدم وهلوراته نږدېږي؛زه ورته په منډ منډه ورځم .(شيباني  ٢\ ١٠٥ )

ðپه هغو کورنو کې،چې خداى پکې يادېږي او د هغې،چې نه يادېږي، مثال يې د ژوندي او مړه انسان دى .( نووي ٢\ ٢٧ حديث ١٤٣٥مخ )

ðد ورځې د سلو تسبيح ويلو پر وړاندې مسلمان ته زر ثوابونه ليکل کېږي يا يې زر ګناهونه رژېږي . ( نووي ٢\٢٤ حديث )

ðڅوک چې تر هر لمانځه وروسته لاندې ټکي ووايي؛نوګناهونه يې بښل کېږي،که څه هم د سمندر د ځګ هومره وي 🙁 ١) سبحان الله ٣٣ ځله ( ٢) الحمدلله ( ٣٣) ځله ( ٣) الله اکبر ٣٣ ځله او ورپسې ووايي :  لا( اله ) – الا( الله ) وحده لا شريک له،له الملک وله الحمد وهو على کل شئ قدير. (نووي : دويم ټوک ، ١٢ حديث )

ð (( که لا ( اله ) – الا (الله ) العلى العظيم ،لا (اله ) – الا (الله ) الحليم الکريم ، لا ( اله ) – الا (الله ) سبحان الله رب العرش العظيم ، الحمد لله رب العالمين  ووايي؛نو خداى به دې وبښي،که څه هم بښل شوى اوسې .)) ( ناصف ٥\٩١)

ðقرآن ولولئ؛ځکه قرآن د قيامت پر ورځ قرآن لوستونکيو ته سپارښتنه کوي . ( نووي  ١\نهم حديث)

ðپېغمبر اکرم لېونتوب په قرآن رغولى دى .”ابي بن کعب” وايي: پېغمبر اکرم ته يې يو ليونى راووست . آنحضرت په لاندې قرآني آيتونو تعويذ کړ او داسې روغ رمټ شو؛لکه بېخي،چې ناروغ نه و:(١) “فاتحة الکتاب” او د”بقرې” سورت لومړى څلور آيتونه (٢) والهکم اله واحد و … او “اية الکرسي” .( ٣) د بقرې سورت درې وروستي آيتونه . (٤) دآل عمران،(( شهدالله انه لا اله الا هو …)) آيت .(٥)  د اعراف سورت (( ان ربکم …)) آيت .(٦) د مؤمنون سورت وروستۍ برخه ((فتعالى لله الملک الحق … )) (٧) د جن سورت ((وانه تعالى جدربنا….)) آيت .( ٨)د صافات لومړي لس آيتونه . (٩) د حشر سورت درې وروستي آيتونه. (١٠) او په ((قل هوالله احد)) او معوذتين . (سعيد حوا؛الرسول : ٢٨ او ٢٨٢ مخونه .) 

ðحضرت “عبدالله بن مسعود” روايت کړى : ((پېغمبراکرم لمونځ کاوه، چې په سجده کې لړم وچيچه . آنحضرت وويل : پر لړم دې د خداى لعنت وي،چې پر پېغمبر او ناپېغمبر رحم نه کوي بيا يې مالګوبى راوغوښت او چيچل شوى ځاى يې پکې کېښود او”قل هو الله احد” او معوذتين يې تر هغه لوسته ،چې درد ارام شو.)) (ابن قيم الجوزية؛ الطب النبوي ، ١٦٧مخ )

ðقرآن غوره درمل دي . (ابن ماجه : دويم ټوک ، ٣٥٠١حديث)

ðدعا هماغه عبادت دى،آنحضرت بيا دا آيت ولوست : ((مَنْ عَمِلَ سَيِّئَةً فَلَا يُجْزَى إِلَّا مِثْلَهَا وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُوْلَئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ يُرْزَقُونَ فِيهَا بِغَيْرِ حِسَابٍ= څوك چې بدكار وكړي؛ نو د خپلو كړنو هومره بدله وركول كېږي او څوك چې نېكې چارې وكړي؛ نارينه وي که ښځه؛خو چې ايمان ولري؛نو جنت ته ننوځي او هلته به ورته بې حسابه روزي ورکړاى شي . (غافر/40) ))

مَا يُجَادِلُ فِي آيَاتِ اللَّهِ إِلَّا الَّذِينَ كَفَرُوا فَلَا يَغْرُرْكَ تَقَلُّبُهُمْ فِي الْبِلَادِ =  يوازې هغوى زموږ په آيتونو كې شخړه كوي،چې (دكينې له امله) كافران شوي دي؛نو په ښارونو كې د هغوى ښکته او پورته کېدل (او د قدرت ښوونه) دې يې تا و نه غولوي!(غافر/4)  ( ناصف : ٥\١٠٩)

ðستاسې ستر او لوړ مقامى خداى حياناک دى او  چې بنده يې پر لور لاسونه پورته کړي او هغه (ذات) يې تش لاسى راوګرځوي،حيا کوي .( ناصف  ٥\١١ )

ðهر مسلمان،چې د ځمکې پر مخ خداى ته دعا وکړي؛پاک خداى يې غوښتنه ورکوي يا د هغه هومره بدي ترې لرې کوي؛خو په دې شرط،چې دعا يې د ګناه يا د خپلوۍ د اړيکو د پرې کولو لپاره نه وي . له ناستو يوه وپوښتل :نو ډېره دعا وکړو؟ آنحضرت ورته وويل : خداى هم ډېره دعا قبلوي . ( ناصف ٥\١١٠ )

ðدعا د راکېوتې او ناراکېوتې بلا لپاره ګټوره ده؛نو د خداى بندګانو، دعا و کړئ ! ( ناصف  ٥\١١٠)

ðڅوک چې دعا وکړي،دعا يې قبلېږي يا په همدې دنيا کې يې ورته ورکوي،يا د آخرت لپاره يې ورته سپموي،يا څومره دعاووې يې چې کړې وي،ګناهونه يې بښي؛خو په دې شرط،چې دعا يې د ګناه يا د خپلوۍ د اړيکو د پرې  کولو لپاره نه وي يايې بيړه نه وي کړي .(شيبا ني: ٢\٦٠ – ٦١  )

ðيوازې دعا ده،چې (الهي) قضا ګرځوى او يوازې ښه کول دي،چې عمر ډېروي .  (ناصف  ٥\١١١)

ð پر هغه قسم،چې ساه مې يې په واک کې ده،که ګناه مو نه کوله ؛ خداى تاسې (له منځه) وړئ او نور خلک يې راوستل،چې ګناه وکړي او له خدايه بښنه وغواړي او هغه يې وبښي. (نووي ١\١١حديث )

ðبنيادمان ټول ګناهګاران دي؛خو هغه غوره ګناهګاران دي ،چې توبه وکاږي . (شيباني  ١\٢١٣ )

ðخداى تعالى د خپل مؤمن بنده په توبه خوشحالېږي . (شيباني ١\٢١١ ) 

 

د اولاد روزنه او درناوى يې

ðما ته خداى ادب راښوولى دى . ( مکارم اخلاق ١\٣٤)

ðښه ادب اولاد ته د پلار غوره ډالۍ ده . ( دحاکم مستدرک ٤\٢٩٢)

ðپر پلار د اولاد دا حق دى : (١) ښه ادب ورزده کړي ( ٢) ښه نوم پرې کېږدي (٣) او د خپلې مور درناوى وکړي . (٤) قرآن وروښيي .( که زوى وي)، لامبو ورزده کړي،(که لور وي)،د نور سورت ورزده کړي او يوسف سوره ور ونه ښيي اوپر کور يې کېننوي او ژر ورته مېړه وکړي . (مجمع الزوايد ٨/٤٧)

ðنارينه د خپلې ښځې او اولاد پالندوى او پر وړاندې يې مسوول دى . (صحيح بخاري  ٩\٧٧ )

 ðله صالحو کورنيو او خېلونو سره واده وکړي؛ځکه اولاد ته د موروپلار خويونه لېږدول کېږي . ( آثارالصادقين : ٧ \ ٤٧٠)

ðښه خوى دښه ارث دليل دى . (غررالحکم : ٣٧٩مخ )

ðاولاد په لومړيو اووکلونو کې د موروپلار ښاغلى (او نازولى) دى او په دويمو اوو کلو کې يې مطيع او غاړه ايښوونکى دى(؛يعنې د موروپلار تر روزنې لاندې دى،چې امر او منع ورته وکړي) او په درېمو اوو کلو کې د موروپلار وزير او مشاور دى؛که خوى يې په ( ٢١) کلنۍ کې ښه و(؛نو ډېره ښه ) او که نه زړه پرې مه تړه او ته د خداى پروړاندې معذور يې . ( کافي ٦\٤٦)

ðاولادونه مو زموږ د ځيګر ټوټې دي،ماشومان يې زموږ واکمن دي . (بحارالانوار  ١٠٤ \ ٩٧)

ðاولادونه مو په درېو خويونو وروزئ : ( ١) له پېغمبر او (٢) د پېغمبرله کورنۍ سره په مينه ( ٣) او د قرآن لوستل .( کنزالعمال ١٦ \٤٥٦)

ðهر څيز يو بنسټ لري او د اسلام بنسټ زما له اهلبيتو سره مينه ده. (بحارالانوار  ٢٧ \٩١)

ðاولاد( ٧) کاله ښاغلى،اوه کاله بنده او ( ٧) کاله وزير دى .(کافي ٦\٤٦)

ðپه قيامت کې لا چا ګام نه وي اخستى،چې پوښتل کېږي : عمر دې په څه کار کې تېرکړى او ځواني دې څنګه تېره کړې؟ (يعقوبي تاريخ ٢/٩٠ )

 ðابوذره!پينځه څيزونه تر پينځو مخکې غنيمت وګڼه : تر زړښت مخکې ځواني او. ( بحار الانوار ٧٧ \ ٧٥)

ðد اولاد نېکمرغي يا بدمرغي د مور په زيلانځ کې جوړېږي. ( کنزالعمال؛ خبر: ٤٩ او يعقوبي تاريخ : ٢\ ٩٤)

ðښځه چې دوه ځانې شي؛نو دومره ستر اجر لري،چې څوک پرې نه پوهېږي . ( بحارالانوار  ١٠٤\ ١٠٦) 

ðښځې چې اولاد وزېږاوه؛نو لومړي خواړه دې يې کجورې وي (؛ځکه) که تر دې غوره خواړه واى ؛نو پاک خداى به د”عيسى” (عليه السلام ) د زوکړې پر مهال پر”مريم” خوړلي واى.)) (مستدرک الوسايل  ٢\٦١٩)

ðپاک خداى وايي: پر عزت،دبدبه او مقام مې قسم! که ښځه د ماشوم د زوکړې پر ورځ کجورې وخوري؛نو که اولاد يې زوى وي که لور، هرومرو به زغمناکه وي  (بحارالانوار  ١٠٤\ ١١٦)

ðماشوم مو چې وزيږېد؛نو په سپينه ټوکر کې يې ونغاړئ. (بحارالانوار  ٤٤\ ٢٥٠ )

ðماشوم مو چې وزيږېد؛په ښي غوږ کې ورته اذان او په کيڼ کې ورته اقامه او…ووايئ . (امام احمد حنبل؛مستد: ٦\٩ )

ðخاوره د ماشومانو پسرلى دى . (کنزالعمال١٦/٤٥٨.مجمع الزوايد: ٨/١٥٩)

ðحضرت عايشه بي بي وايي :ماشومان به يې پېغمبراکرم ته راوستل، آنحضرت به ورته مبارکي ويله او څه يې په خوله کې ورکول . (صحيح مسلم : ١٤ \١٢٧)

ðپر اولادونو مو د پېغمبرانو نومونه کېږدئ او “عبدالله” ،”عبدالرحمن” غوره نومونه دي.)) ( بحارالانوار  ١٠٤ \ ٩٢)

ðکه د “محمد” نوم مو کېښود؛نو مه يې وهئ او بې احترامي يې مه کوئ . ( مجمع الزوايد : ٨\ ٤٨ )

ðصالح اولاد،د خداى له لوري خوږبويه ګل دى،چې پر خپلو بندګانو يې وېشلى دى . ( کافي  ٦\٢)

ðحضرت “ابورافع” پېغمبر اکرم ته د “ابراهيم” د زوکړې زېرى راووړ؛ پېغمبر اکرم په زېري کې يو مريى وروباښه .(طبري تاريخ ٢\٣٦٢)

ðپه ځينو روايتونو (کافي٦\٣٢) کې راغلي، چې پر اولاد مو تر زوکړې مخکى نوم کېږدئ اوپه ځينو (بحار: ٤٤\٢٥٠ ) کې د زوکړې لومړى ورځ ښوول شو ې ده .

ðهر زيږېدلى د خپلې عقيقې ګرو دى . (بحارالانوار ١٠٤ \١٢١)

ðهر ځل چې ماشوم د مور تى روي؛نو مور ته يې په کړنليک کې د حضرت “اسماعيل” د اولادې د يو مريي د ازادولو هومره ثواب ليکل کېږي .( وسايل١٥ \ ١٧٥)

ðد ماشوم ژړا د اورېدو پر مهال به پېغمبر اکرم لمونځ  لنډاوه. (کافي  ٦\٤٨ )

ðله ماشومانو سره مينه وکړئ او په مهربانۍ ورسره وچلېږئ .(من يحضره الفقيه : ٢ \١٥٧)

ðڅوک چې د مشرانواحترام و نه کړي او پر کوچنيانو و نه لورېږي؛نو له ما څخه نه دى . ( د حاکم مستدرک ٤\١٩٧)

ðله اولاد سره دې نېکي وکړه،چې د موروپلار په څېر درباندې حق لري. (محجة البيضاء٣\٤٣٦)

ðحضرت موسى عليه السلام د دعا پر مهال خداى ته وويل : خدايه! تاته ډېرې اوچتې کړنې کومې دي؟خداى ورته وويل : له ماشومانو سره مينه . (بحارالانوار  ١٠٤\ ٩٧)

ðپېغمبر اکرم به ماشوم هم له ځان سره  سپراوه . ( کنزالعمال ٦\٢٨٩)

 ðماشومان به له پېغمبر اکرم کره تلل او د هغه د څښلواو اوداسه له لوښي يې اوبه څښلې او د تبرک لپاره يې پر سر او مخ مښلې او پېغمبراکرم به هم ترې نه منع کول . (محجة البيضاء ٤ \ ١٤٥ )

ðعلي ما روزلى دى . (سنن النبي : ٨٠ مخ )

ðله چا سره،چې ماشوم وي؛نو د ماشومتوب چلن دې ورسره وکړي . (وسايل١٥ \٢٠٣)

ðڅوک چې خپل اولاد خوشحاله کړي؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ خوشحاله کړي .(بحارالانوار  ٤٣ \ ٩٩)

ðرسول اکرم به د اصحابو له زامنو سره لوبې او ټوکې کولې او په خپل غېږ کې يې کېنول .(نهاية المسؤ ل فى رواية الرسول : ١\٣٤٠)

ðپېغمبراکرم د لمانځه لپاره جومات ته روان و،په لار کې کوچنيان پر لوبو بوخت ول،د پېغمبر اکرم په ليدو يې لوبې يې بس کړې او ورمنډې يې کړې،پېغمبراکرم په مينه ومنل او دوى پر پېغمبر ورختل او په خوشحالۍ يې ويل :(( کُن جَمَلى= اوښ مې شه)) پېغمبر هم په عاجزۍ ټيټ شو او پر اوږو او شا يې سپاره کړل او ورسره په لوبو شو. ياران د پېغمبراکرم له ځنډه اندېښمن شول . حضرت “بلال”،پر حال د پوهېدو لپاره راغى او دا حال يې،چې وليد؛نو کوچنيان يې منع کول؛خو پېغمبر اکرم منع کړ او ورته يې وويل : ددې کوچنيانو تر خپګان راته د لمانځه د وخت تنګول ښه دي.کوچنيان حاضر نه ول،چې له پېغمبره راکوز شي . پېغمبر اکرم حضرت “بلال” ته وويل : زما کور ته ولاړ شه او څه راوړه،چې کوچينان پرې راضي کړم . حضرت “بلال” ورته اته “غوزان” راوړل . پېغمبر اکرم په موسکا کوچنيانو ته وويل : اوښ مو په اتو غوزانو پلورئ؟ کوچنيانو په خوشحالۍ غوزان واخستل او له پېغمبره راکوز شول (؛نو په دې وخت کې)رسول اکرم وويل : ((خداى دې زما پر ورور “يوسف” ولورېږي،چې په څو شمېر ليو درهمو يې وپلوره او زه يې په اتو غوزانو.))  (عوفي جوامع الحکايات:محمد بن قاسم روش الاخبار، راهنماى پدران ومادران : ٢\٥٤)

ðد خپل اولاد درناوى وکړئ او په ښو خويونو يې وروزئ . (مکارم الاخلاق  ١\٤٢٦ )

 ðمور وپلار ته نه ښايي،چې خپلو اولادونو ته ووايي،چې احمق ياست يا نه پوهېږئ .  ( کافي  ٦\ ٥٠ )

 ðجنت ته د کنځل مار تګ حرام دى . (محجة  البيضاء ٥ \ ٢١٥)

ðاولادونه مو په ښو نومونو ياد کړئ،په ناسته کې ځاى ورکړئ او په تريو تندي ورسره چلن مه کوئ .( جامع الاخبار: ١٢٤ مخ )

 ðپينځه څيزونه به تر ژونده پرېنږدم،چې يو يې پر کوچنيانو سلام اچول دي،چې تر ما وروسته سنت (او دود) شي او خلک يې عملي کړي. ( بحارالانوار : ١٦ \ ٢١٥ )

 ðپېغمبر اکرم له کوچنيانو هم بيعت اخسته .( صحيح  مسلم  ١٤\ ١٢٦ )

ðکوچنيان مو په اوه کلنۍ کې لمانځه ته اړکړئ  اوکه په لس کلنۍ کې يې لمونځ نه کاوه؛نو غوږ يې تاو کړئ . (د ابي داوود سنن ١\ ١٣٣)

 ðلښته مو د کور په هغه ځاى کې ځوړنده کړئ،چې ستاسې کورنۍ يې ويني؛ځکه دا په خپله د هغوى د تاديب (ګواښنې) وسيله ده .(د طبراني معجم الکبير: ١٠ \٢٨٤. عقل الفريد : ٢\ ٤٢٠ )

ðڅوک چې پرخپله ژمنه ونه درېږي؛نو دين نه لري . (بحار ٧٥ \٩٦ )

ðله خپل کوچني سره مو پر کړې ژمنه وفا وکړئ . (مستدرک الوسايل ٢\٤٢  )

ðحضرت “عبدالله بن ربيعه” وايي :کوچنى وم او پېغمبراکرم راکره راغى،لوبو ته تللم او مور مې راته غږ کړ،چې راشه کجورې درکوم. پېغمبر چې دا خبره واورېده؛نو مور ته مې يې وويل : که کجوره ورنه کړې ؛نو په کړ نليک کې دې يو دروغ کښل کېږي .(حلبية سيرة٣\١٢٩. بحار: ١٠٤ \٩٢ )

ðلکه څنګه چې ستاسې خوښېږي،چې اولاد او نور درسره په نېکۍ او مهربانۍ چلن وکړي؛دغسې مو د خپلو اولادونو ترمنځ  په نېکۍ او مينه کې عدالت وکړئ . ( کنزالعمال١٦\٤٤٤)

ðاولادونو ته مو يو رنګ بخشش ورکړئ،په ورکړه کې توپير واى؛نو ښځمنو ته مې زيات څه ورکول . (کنزالعمال ١٦\٤٤٤)

ðيو سړى له خپل زوى او مريي سره پېغمبراکرم ته راغلل او رسول الله ته يې وويل : ګواه وسه،دا مريي مې خپل دې زوى ته وباښه .پېغمبر اکرم ورته وويل : تر ټولو اولادونو سره دې دا کار کړى ؟ورته وويل : نه ! پېغمبراکرم ورته وويل : زه ورته ناشاهدېږم که څه هم يوه سوې ډوډۍ وي . ( کنزالعمال ١٦\ ٤٤٦)

ðيو سړى له پېغمبراکرم سره ناست و،په دې کې يې کوچنى زوى راغى، سړي ښکل کړ او پر زنګانه يې کېناوه،ورپسې يې کوچنۍ لور يې راغله ؛خو ښکل يې نه کړه او خپلې مخې ته يې کېنوله . رسول اکرم چې دا پېښه وليده؛ورته يې وويل : ولې دې د اولاد ترمنځ په عدالت چلن ونه کړ؟ ( مجمع الزوايد٨ \١٥٦)

ðخداى دې پر هغه ولورېږي،چې له خپل اولاد سره په نېکۍ کې لاسنيوى وکړي .په دې اړه وپوښتل شو؟ ورته يې وويل : کوچنيان،چې پخپله خوښه کوم کارونه او دندې ترسره کوي،و يې مني او چې ورته سختې وي،ترې تېر شي او تېرى پرې و نه کړي او ګناه ته يې اړ نه کړي او دروغ ورته  ونه وايي او…)  ( کافي  ٦ \٥٠)

 ðحضرت “عبدالله بن جعفر” د کوچنيانو او څه نور مختصر څيرونه پلورل، چې پېغمبر اکرم پرې تېر شو؛ورته يې وويل : خدايه! په راکړه ورکړه کې يې برکت کېږدې .(مجمع الزوايد٩ \ ٢٨٦)

ðپېغمبراکرم حضرت “رافع بن حذيج”،چې تکړه غشى ايشتونکى کوچنى و،له ځان سره د “احد” جګړې ته بوت .(دطبري تاريخ : ٢\ ١٩١)

ð حضرت”سعد بن جبتة” يو کوچنى و،چې د “خندق” په جګړه کې يې په مړانه وجنګېد؛نو پېغمبر اکرم يې پر سر لاس راکښه او دعا يې ورته وکړه : پاک خداى دې د هغه پر اولاد او ځوځات برکت کېږدي . (حاکم؛مستدرک ٢\ ٦٩)

ðکوچنيان مو چې اوه کلن  (او په بل روايت کې) لس کلن شول؛نو بېل يې ويده کوئ . (بحارالانوار  ١٠٤ \ ٦٨)

 ðپر پلار د اولاد حق دى،چې ليکل،غشي ويشتل او لامبو ورزده کړي او پاک حلال خواړه پرې وخوري .(کنزالمعال  ١٦ \ ٤٤٣ )

ðد “بدر” هغه اسيران،چې د فديې د ورکړې وس نه لري ؛نو د انصارو زامنو ته دې ليک ورزده کړي .( ابن سعد؛طبقات  ٢\١٦ )

لوڼې

ðلوڼې مو غوره اولاد دى .( بحارالانوار ١٠٤ \٩١ )

ðڅوک چې خپلې لوڼې (يا لور) وروزي،لورنه پرې وکړي؛هرومرو پرې جنت واجبېږي . (مجمع الزوايد ٨\١٥٧)

ðلوڼې څومره ښه اومهربانې دي .( کافي ٦\٥)

ðلور خوږبويه ګل دى،چې روزي يې پر خداى ده.(بحارالانوار ١٠٤\٩٧)

ðکه څوک له بازاره څه وپېري او کور ته يې د ښځې او اولادونو لپاره راوړي؛ نو د هغه په څېر به وي ،چې نشتمنو ته يې د صدقې بار وړى وي او بايد،چې لومړى يې لوڼو او ښځو ته ورکړي او څوک چې خپله لور خوشحاله کړي؛لکه د”اسماعيل”د اولادې مريى يې،چې ازاد کړى وي . (بحارالانوار ١٠٤ \٦٩)

ðڅوک چې لور ولري او و يې نه شړي او و يې نه رټي او زوى ترې غوره ونه ګڼي؛خداى يې جنتي کوي . ( ازدواج دراسلام : ١٣٦)

ðرسول اکرم به چې له سفره راستون شو؛نو خپله لور”فاطمه” به يې ښکلوله او همداراز “فاطمه” به چې پېغمبراکرم ته راتله؛نو ورته به جګېده او د هغې لاس يې ښکلاوه او پر خپل ځاى يې کېنوله . (د ابي داوود سنن ٤\٣٥٥)

ðپېغمبراکرم د زرو يوه غاړه کۍ “امامة” (د ابي العاص بن ربيع لور او د پېغمبر اکرم لمسۍ ته  ور تر غاړې کړه  . ( دابن سعد طبقات : ٨\٤٠ )

ðخداى پر نجونو تر هلکانو مهربان دى،څوک چې لور يا له خپلو محارمو کومه ښځه خوشحاله کړي؛نو پاک خداى به يې په جنت کې خوشحاله کړي . ( وسايل  ١٥\١٠٤)

ðڅوك چې يوه يا دوه لوڼې لري،د قيامت پر ورځ به له ماسره ددې دوو ګوتو په څېر وي (دواړې ګوتې يې غبرګې کړې ) . ( مستدرك : ۱۵\ ۱۱۶)

ðغوره اولاد مو سترمنې لوڼې دي،څوك چې يوه لور لري؛نو پاک خداى دا ورته د جهنم د اور ډال ګرځوي او څوك چې دوې لوڼې لري؛نو پاک خداى يې له امله جنت ته ننباسي او څوك چې درې لوڼې يا درې خويندې لري؛نو صدقه او جهاد پرې نه كېږي .(روضة الواعظين : ۲\ ۲۶۹)

ðغوره اولاد مهربانه لور ده،چې د انسان ملګرې ده او د ناروغۍ پر مهال غمخوره او همېشه د خير كار ته چمتو ده . (مستدرك الوسايل  ۱۵\ ۱۱۵)

ðڅوك چې يوه لور لري؛نو هغه ته تر زرو حجونو،زرو جهادونو، زر قربانيو او د زرو مېلمنو تر پالنې غوره ده . (پورته منبع  ۱۵\۱۱۵)

ðڅوک چې خپله لور ښه وروزي او ديني دندې ښه ورزده کړي او له شتو الهي لورنو يې برخمنه کړي دا چار ورته شرف او پرده ده،چې د دوزخ له اوره يې ژغوري . ( کنزالمعال : ٤٥٣٩١حديث )

ðکورنۍ ته د ډالۍ ورکړه؛لکه له بېوزليو سره،چې مرسته کول وي او په وېش کې يې لومړى له لوڼو پيل کړئ او بيا يې زامنوته . (بحار: ١٠١ \٩٤)

 

د جګړې د بنديانو ملاتړ

 ð غوره خيرات هغه دى،چې هغه بندي ته ورکړ شي،چې سترګې يې له لوږې ټېغې وتلې وي . (جامع احاديث ٨ \٣٨٦ )

ðخيرات ورکړئ،چې لس ځانګړنې لري :

(الف) د پلارمړيو د پالنې توفيق .(ب) پر بنديانو لورنه . (المواعظ العدديه : ٢٢٠ مخ )

ðغوره صدقه د ژبې صدقه ده،چې بندي پرې ازاد شي او وينه پرې خوندي شي .( کنزالعمال  ٣\٢٧)

ðڅوک چې بندي ته خواړه ورکړي؛د خداى د رحمت تر سيورې لاندې به وي .(المواعظ العدديه : ٧٥مخ )

ðخلکو! د عبدالمطلب اولاده مو چې بندي ونيوه؛نو مه يې وژنئ؛ځکه په زور يې جګړې ته راوستى دى . ( مستدرک  ٢\٢٥١)

 

ښځه

ðغواړې چې له ډېرې غوره خزانې دې خبر کړم ؟ (چې داده) پرهېزګاره ښځه،چې ورته ګورې (؛نو) خوشحالېږې او د خپل مېړه خبره مني او پسې شا يې امانتونه وساتي .  (نهج  الفصاحة ٤٥٦ ح)

ðمېړه پالنه د ښه ښځې جهاد دى . ( مستدرك الوسايل ۸\۸)

ðغوره مېړه هغه دى،چې پر خپلو ځاني غوښتنو برلاسى وي . (مستدرک: مخ ٣٤٥)

ðکه “علي” پيدا شوى نه واى [؛نو) دفاطمې سيال به نه و. (کنوزالحقائق: مخ ١٤٢)

ðله کومې ښځې،چې خپل مېړه راضي وي او پر همدې حال مړه شي ؛نو جنت ته به ځي . ( ترمذي)

ðمؤمنې ته خياطي او ګنډل څه ښه بوختيا ده . (مستدرك الوسايل ۱۳\۱۸۶)

ðپه حقيقت كې ښځه د ګوډۍ په څېر ده،چې که څوك يې لري،نه ښايي  چې ضايع يې كړي . ( الكافي ۵\۵۱۰)

ð(په دنيا پالنه كې) په ښځې پسې تلل د پښېمانۍ لامل دى .( الكافي  ۵\۵۱۷)

ðڅنګه څوك خپله مېرمن وهي،حال داچې غواړي بيا يې په غېږ كې ونيسي . ( الكافي  ۵\۵۰۹ )

ðمسلمان نارينه ته ښه روزي داده : داسې مېرمن ولري،چې ورته ګوري، پرې خوشحالېږي او د مېړه په غيابو كې يې شتمني ساتي، خيانت ورسره نه كوي او خبره يې مني . (الكافي ۵\ ۳۲۷ )

 ðښکلې ښځه،چې په ناوړه كوركې لويه شوې وي،ترې ډډه وکړئ . ( مستدرك الوسايل ۱۴\۱۶۴)

ðښځه چې د مېړه بې اجازې له كوره دباندې ووځي؛نو تر بېرته راتلو پورې يې پر مېړه لګښت لازم نه دى . ( الكافي : ۵\ ۵۱۴)

ðڅوك چې له كومې ښځې سره  د هغې د ښكلا له امله واده كوي؛نو يوازې د ښكلا خير يې ور رسي او كه يوازې د شتمنۍ له امله ورسره واده كړي؛نو پاک خداى يې همدا ښځه ډډه او تكيه كوي؛نو څومره به ښه وي،چې په دينوالې ښځې پسې شئ . ( تهذيب الاحكام ۷\۳۹۹)

ðروژه تي،چې د ښځې بدن ته داسې وګوري،چې له جامو يې د بدن اندامونه او هډوكي وويني؛نو روژه يې ماته شوې ده .( وسايل الشيعة  ۱۰\۱۲۹)

ðښځه او (د نارينه بې لارۍ ته) غوسه د ابليس ښه سرتېري دي.(الكافي ۵\۵۱۵)

ðښځه چې د نفاس پر مهال ومري،د قيامت پر ورځ يې “ګناه ليك” نه پرانستل كېږي (او بې حسابه جنت ته ځي) . (مستدرك الوسايل ۲\۵۰)

ðنارينه،چې ځان د ښځو په څېر او چې ښځه ځان د نارينه وو په څېر كوي؛ خداى پرې لعنت او پرښتې پرې امين وايي . (مستدرك الوسايل ۵\ ۲۴۰)

 

د ښځمنوملاتړ

ðد دووکمزوريو د حق له لتاړلو مو ژغورم :

( الف ) پلارمړى ( ب) ښځې . ( نهج الفصاحه : ١٩٣مخ )

ðد خپلې ښځې خدمت کول يو ډول احسان دى .(نهج الفصاحه : ٣٠١مخ )

ðپه تاسې کې غوره هغه دي،چې خپلو ښځو ته غوره دي . (نهج الفصاحه : ٣١١مخ )

ðپه تاسې کې غوره هغه دى،چې خپلو ښځو او لوڼو،ته غوره وي . (نهج الفصاحه : ٣١٨)

ðد ښځو په اړه له خدايه وډارشئ؛ځکه هغوى درسره د بنديانو ( په توګه) دي .(پورته سرچينه : ٩ مخ )

ðپر مېړه د ښځې حق دى،چې کله خواړه خوري؛پر هغې يې هم وخوري او چې ځان ته جامې ګنډي،هغې ته يې هم وګنډي . پرمخ دې يې نه وهي او يوازې له کوره وتلو يې منع کولاى شي .(نهج الفصاحه: ٢٩٢)

ðپه تاسې کې ډېر غوره هغه دى،چې خپلې کورنۍ ته غوره وي . زه له تاسې ټولو خپلې کورنۍ ته غوره يم . عزتمن د ښځو درناوى کوي او بې عزته وګړي، ښځې سپکوي .( نهج الفصاحه : ٣١٨)

ðخداى او استازى(ص) يې له هغه بېزاره دي،چې خپله ښځه دومره وځوروي،چې ښځه ورته خپل حقوق وبښي او طلاق ترې واخلي. (بحارالانوار : ٧٣ \٣٦٦)

ðکور ته چې ننوځئ ؛نو پر مېرمن مو سلام واچوئ او که (ښځه) نه لرئ؛ نو ووايئ :”السلام علينا من ربنا”؛يعنې پر موږ دې د پالونکي له لوري سلام وي . ( تحف العقول : ١١٥)

ðخداى ټول ګناهونه بښي؛خو د ښځو مهر،چې ور نه کړئ؛دا ګناه نه بښي . (مستدرک الوسايل : ٢\٥٠٨)

ðاولادونو ته مو د ډالۍ په ورکړه کې له مساواته کار واخلئ،که وغواړم،چې څوک غوره وګڼم ؛نو هرومرو مې ښځې غوره ګڼلې .( نهج الفصاحه : ٣٦٥مخ .)

ðڅوک چې د خپلې مېرمنې مهر ور نه کړي؛نو د خداى پر وړاندې “زنا کار” دى .(عقاب الاعمال : ٤٦مخ )

ðخداى ټول ګناهونه بښي؛خو ددوو تنو نه : ( ١) چې د کارګر باړه او مزدوري ورنه کړي.(٢) چې د خپلې ښځې مهر ور نه کړي .( بحارالانوار : ١٠٣مخ )

ð حضرت جبرئيل راته د ښځو په اړه تل سپارښتنه کوله،تردې چې ګومان مې وکړ،چې بې له “زنا” ورته طلاق نه شو ورکولاى .( بحار ١٠٠ \ ٢٥٣)

ðمېړه چې خپله مېرمن په زنا تورنه کړي؛نو ټولې کړنې يې داسې ضايع  کېږى؛لکه مار چې خپل پوټکى وباسي او د بدن د وېښتو هومره ګناهونه ورته ليکل کېږي .(مستدرک الوسايل  ٣\١٦٦)

ðغوره اولاد مو لوڼې دي . ( بحار ١٠١\ ٩١)

ðتل جبرئيل راته د ښځو سپارښتنه کوله،تردې چې ګومان مې وکړ، چې د طلاق وړ نه دي .( وافي : ١\٩٦) 

ðخداى درته د ښځو په اړه د نېکۍ سپارښتنه کوي؛ځکه هغوى ستاسې  ميندې،لو ڼي اوتوړۍ  دي .( نهج الفصاحه : ١٠٩)

ðخداى تر نارينه وو پر ښځو ډېر لورين دى او سړى چې د خپلوانو له يوې ښځې سره نېکي وکړي او خوشحاله يې کړي؛خداى به يې د قيامت پر ورځ خوشحاله کړي . (فروع کافي ٦\٦)

ðخلکو! ښځې پر تاسې حق لري او تاسې پر هغوى؛حق مو دا دى،چې څوک کور ته راننباسي،خپل لمن ناپاکه نه کړي او که عفت يې له لاسه ورکړ؛نو خداى حق درکړى،چې زور پرې راولئ ؛بستره ترې بېله کړئ (او که دا نرم غبرګون ګټور نه شو؛نو په وهلو يې تنبيه کړئ؛خو نه دردناکه،که  ويې منله اوغاړه يې کېښوه؛نو عادي خواړه او اغوستن يې ستاسې پر غاړې دي . ښځې ستاسې په لاسو کې د خداى امانت دى . د قرآن په حکم مو ترې خوند اخستل پر ځان حلال کړي دي؛نوپه اړه يې له خدايه وډار شئ او په باب يې زما سپارښتنه ومنئ . (تحف العقول : ٣٣  مخ )

ðڅوک چې خپله مېرمن دومره وځوروي،چې ښځه خپل مالي حقوق ورپرېږدي (اوطلاق واخلي)؛نوخداى دې سړي ته يوازې د دوزخ په اور راضي کېږي؛ځکه لکه څنګه چې خداى د پلار مړيو په باب غوسه کېږي، د ښځوپه اړه هم غوسه کېږي . ( بحار  ٧٢\ ٣٦٥)

 

له دوه ځانو(اميندوارو) ښځوملاتړ

ðښځې ته د”دوه ځانۍ”له پيله د ماشوم د تي ورکولو تر وروستۍ شېبې پورې د هغه په څېر اجر دى،چې د خداى په لار کې پاسوالي کوي او که ښځه په دې موده کې مړه شي؛نو اجر يې د “شهيد” اجر دى.(بحارالانوار  ١٠١ \٩٧)

ð (دوه ځانوښځو!)خوشحاله نه ياست،له تاسې يوه،چې له خپل مېړه دوه ځانې وي او مېړه ترې خوښ وي؛د هغه ثواب ولري،چې د ورځې روژه وي او د شپې پر عبادت بوخت وي او چې ماشوم يې وزېږېد؛نو هر څاڅکى شيدې،چې يې له تيونو راوځي او هر ځل،چې يې تيونه رودل کېږي؛ ورته ثواب دى او که د خپل ماشوم لپاره د شپې ويښه وي؛نو اجر يې د هغه په څېر دى،چې د خداى په لار کې يې اويا زره بندګان ازاد کړي وي . (نهج الفصاحه : ١٠٥)

ðپر هغه خداى قسم،چې زه يې په حقه زېرى ورکوونکى او وېرونکى استازى رالېږلى يم!کومه ښځه،چې له خپل مېړه دوه ځانې شي،د زوکړې تر وخته د خداى د رحمت تر سيورې لاندې وي او د زېږون  د درد پر وړاندې د خداى په لار کې د بنده د ازادولو (هومره) اجر لري او د شيدو ورکولو پر مهال په هر ځل تي رودلو،خداى ورته د قيامت پر ورځ ځلانده رڼا ورډالۍ کوي،چې ټول خلک ورته حيران وي او د شيدو ورکولو پر مهال د هغه په څېر وي،چې د ورځې روژه او د شپې پر عبادت بوخت وي . ( مستدرک  ٢\٦٢٣)

ðد مسلمان نارينه د نېکمرغۍ لاملونه دادي :

 ( ١) صالحه ښځه ( ٢) لوى کور ( ٣) د سپرلۍ ښه وسيله ( ٤) صالح اولاد ( ٥) او د ښځې بختورتوب په دې کې دى،چې لومړى اولاد يې لور وي .( بحارالانوار : ١٠١ \ ٩٨ )

 

د کوچنيانو ملاتړ

ðاولاد په لومړيو اووکلو کې (د موروپلار) ښاغلي دى.په دويمو اووکلو کې (د موروپلار) مطيع او منونکي دى اوپه درېمو اوو کلو کې (د موروپلار) وزير او ورسره د مشورې لورى دى .(مکارم الاخلاق : ١١٥)

ðد پلرونو له لاسه د آخرې زمانې پر اولادونو افسوس ! وويل شو: رسول الله! مطلب مو مشرک پلرونه دي؟و يې ويل: نه؛بلکې مؤمن پلرونه دي ،چې خپلو اولادونو ته ديني فرايض نه ورښيي او که هغوى په خپله ددين احکام زده کوي .مخه يې نيسي (او حال داچې) که څه دنيوي ګټه ورته راوړي،ترې خوشحاله وي .زه له هغوى بېزاره يم او هغوى له ما .( مستدرک الوسايل : ٢\٦٢٥)

ðپېغمبراکرم يو سړى وليد،چې دوه کوچني اولادونه ورسره ول؛يو يې ښکل کړ او بل نه . پېغمبر اکرم د سړي پردې ناروا چار نيوکه وکړه او ورته يې وويل: ولې دې له اولاد سره يوشان چلن نه کوې . (مکارم الاخلاق  : ١١٣ مخ )

ðخداى دې پر هغه ولورېږي،چې په نېکۍ کې له خپل اولاد سره لاسنيوى وکړي . وپوښتل شو : څنګه؟ آنحضرت ورته څلور لارښوونې وکړئ . ( ١) د کوچني،چې څه له وسې پوره وي او و يې کړي؛نو ترې ويې مني .( ٢) د کوچني له وسې،چې څه پوره نه وي ،ترې ونه غواړي .( ٣) ګناه اوسر غړونې ته يې اړ نه کړي .(المحجة البيضاء  ٣\٤٤٣)

ðاولادونو ته مو لا مبو او غشي ويشتنه او ښځو ته د تار ورېشل ورزده کړئ . ( نهج الفصاحه : ٤١٣)

ðڅوک چې خپل اولاد ښکل کړي،خداى ورته نېکي ورکوي،څوک چې خپل اولاد خوشحاله کړي؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ خوشحاله کړي او څوک چې خپل اولاد ته قرآن ورزده کړي؛نو په قيامت کې اولاد موروپلارته غږ کوي او داسې جامې ورکوي،چې له رڼا يې د جنتيانو بدنونه ښکاري . ( کافي : ٦\٤٩ )

ðاولادونه مو په درېو ځانګړنو وروزئ : له خپلو انبياوو او له اهلبيتو سره يې پر دوستۍ او د  قرآن لوستل . ( الجامع الصغير: ١\ ٥١٩)

ðکه سړى خپل اولاد وروزي،تر دې ورته غوره ده،چې د ورځې “يونيم کيلو” خيرات ورکړي .( مستدرک  ٢\٦٢٥)

ðد خپلو اولادونو احترام وکړئ او په ادب او ښه دود ورسره چلن وکړئ،چې ګناهونه مو وبښل شي . ( وسايل ١٥\١٩٥)

ðيوسړى پېغمبراکرم ته راغى او و يې ويل : کله مې هم کوچنى نه دى  ښکل کړى،چې بېرته ولاړ؛نو پېغمبراکرم وويل: زما په نظر دا سړى دوزخي دى . ( فروع کافي ٦\٥٠ )

ðڅوک چې خپل کوچنى اولاد خوشحاله کړي،خداى د قيامت پر ورځ د هغه تر خپلې خوښې پورې خوشحالوي . (ميزان الحکمه : ١٠ \ ٦٦٩)

ðڅوک چې د مور او اولاد ترمنځ يې بېلتون راولي،خداى يې د قيامت پر ورځ د هغه او دوستانو ترمنځ بېلتون راولي . (نهج الفصاحه : ٥٧٥مخ )

 

واده، سم کوروالى او د اولاد پر زوکړه اغېزمن لاملونه

ðخلکو! خداى تاسې له ( ٢٤) څيزونو منع کړي ياست :(چې يو يې) مېړه دې له خپلې مېرمن سره د مياشتيني عادت پرمهال کوروالى نه کوي؛ځکه که ښځه دوه ځانې شي؛نو ماشوم به په جذام يا پيس اخته وي،چې يوازې ځان به پړ ګنئ. ( بحار ١٠٠ \٢٨٣)  

ðله نږدې خپلوانو سره واده مه کوئ؛ځکه اولاد به مو کمزورى وي . (المحجة البيضاء : ٣\ ٩٤)

ðد پېغمبر اکرم دا نه خوښېده،چې سړى تر محتلمېدو وروسته(او تر غسل مخکې) له خپلې مېرمن سره کوروالى وکړي؛ځکه شونې ده،چې اولاد يې لېونى وي؛نو يوازې ځان به پړ ګڼي.(وسايل :١٤ \٩٩)

ðماشوم ته د مور شيدې غوره خواړه دي . (وسايل ١٥\١٨٨ )

ðبهي وخورئ او يو بل ته يې ډالۍ ورکړئ؛ځکه سترګې رڼوي او په زړونوکې مينه پيدا کوي او پر دوه ځانو ښځو بهي وخورئ،چې ماشوم ښکلى کوي او په بل حديث کې راغلي چې: ماشوم نېک خويه کوي .( بحار ٦٣\١٧٦)

ðنه ښايي څوک د هرې مياشتې پر لومړۍ شپه،نيمايي شپه او وروستى  شپه له خپلې مېرمن سره کوروالى وکړي ؛ځکه دا خطر شته چې دهغې شپې اولاد ناقص العقل وي . ( وسايل  ١٤ \٩٠ )

ðغرمنى چې دې وخوړه او په خېټه موړ وې؛نو له مېرمن سره دې کوروالى مه کوه؛ځکه که اولاد دې وشي ؛نو لوڅ لغړ به وي .له خپلې مېرمن سره دې د لوى اختر پر شپه کوروالى مه کوه؛ځکه که اولاد دې ترې وشي ؛نو څلور ګوتى يا شپږګوتى به وي .

ðانسان ته نه ښايي د کوروالي پر مهال د خپلې مېرمنې عورت ته وګوري؛ځکه شونې ده د ماشوم د ړوندوالي لامل شي .(وسايل  ١٤ \٨٥)

ðڅوک دې د کور والي پر مهال خبرې نه کوي؛ځکه شونې ده،چې اولاد يې ګونګ اوکوڼ شي . ( وسايل  ١٤ \٨٧ )

ðله مېرمن سره دې په ولاړه کوروالى مه کوه؛ځکه دا د څارويو چار دى او که اولاد دې وشي؛نو شونې ده،چې په توشک به متيازې کوي.( بحار : ١٠٠ \٢٨١)

ðکه اولاد دې وزېږېد؛نو په ښي غوږکې ورته “اذان” او په کيڼ کې ورته “اقامه”ووايه،چې دشيطان له زيانه خوندي وي .(تحف العقوال :١٣ مخ )

ðماشوم مو د تي ورکولو لپاره کم عقلې او هغې ښځې ته مه ورکوئ چې د سترګو ناروغي لري؛ځکه شيدې سرايت کوي.(وسايل : ١٥ \١٨٨ )                                                                                                       

ðپه کوروالي کې د خپلې مېرمنې شرمځای ته کتل مکروه دي؛ځکه د اولاد د ړندېدو لاملېږي . په کوروالي کې خبرې کول مکروه دي؛ ځکه د اولاد  د ګونګېدو لاملېږي او همداراز تر اسمان لاندې (ازاده فضا) کوروالى هم مکروه دى . ( وسايل الشيعه ٢٠ \١٢٢)

ðد تازه او وچو انځرو خوړل په انسان کې د کوروالي وس زياتوي . (مستدرک الوسايل ١٦\٤٠٤)

ðد سر د وېښتانو ږومنځول “وبا” له منځه وړي، روزي زياتوي او د ډېر کوروالي لاملېږي .( ثواب الاعمال : ٢٢مخ )

ðښه بوى زړه غښتلى کوي او د ډېر کوروالي لاملېږي . (قرب الاسناد : ٧٨مخ )

ðله خپلې مېرمنې سره د مياشتې پر لومړى،په پينځلسمه او د مياشتې پر وروستۍ شپه کوروالى مه کوه او که څوک داسې وکړي؛ نو شونې ده اولاد يې لېونى شي.( الکافي ٥\٤٩٩)

ðعلي! خپله ناوې دې،چې کور ته راوسته او څنګ ته دې کېناسته ؛ نو پڼې يې راوباسه او پښې يې ومينځه او دا اوبه يې د کور له وره بهر تويې کړه؛که داسې وکړې؛نو خداى به ستا له کوره د بېوزلۍ اويا زره لاملونه لرې کړي،هغه اويا زره څيزونه به ستا کورته راننباسي،چې د برکت لاملېږي او اويا پرښتې رالېږي،چې د ناوې پر سر دې والوځي، تردې چې د کور هر کونج ته دې برکت ورسي او ناوې دې،څو په دې کور کې وي، له لېونتوب او جذامه خوندي وي  او په لومړۍ اونۍ کې دې ناوې د لبنياتو، سرکې، دڼيا او تروو مڼو له خوړو منع کړه. حضرت علي پېغمبر(ص) ددې منع په اړه وپوښت؟ رسول اکرم ورته وويل : ځکه دا څلور څيزونه زيلانځ (رحم) شنډ اوسړوي او کومه ښځه،چې بچي رانه وړي،هغه پوزى ترې غوره دى،چې د کوټې په يوه کونج کې پروت وي . علي ( ک) وپوښتل : ولې دې له سرکې خوړو منع کړم ؟ ورته يې وويل : ځکه د سرکې په خوراک حيض پوره نه پاکېږي او دڼيا په بدن کې حيض رالمسوي او زېږون سختوي او تروه مڼه حيض له منځه وړي او د ناروغۍ لاملېږي .علي ! له مېرمن سره دې د مياشتې په سر، منځ او پاى کې کوروالى مه کوه؛ځکه د ښځې او اولاد په لېونتوب اوجذامېدو کې چټکتيا راولي.علي! له مېرمن سره دې تر ماسپښين وروسته کوروالى مه کوه؛ځکه پيدا کېدونکى اولاد يې بېړنى (تلوار ګرندى) کېږي او د شيطان بېړنى انسان خوښېږي . علي! له مېرمن سره دې د کوروالي پر وخت خبرې مه کوه؛ځکه که اولاد دې وشي؛نوګونګېږي او هېڅوک دې د کوروالي پر وخت د خپلې مېرمن شرمځي ته نه ګوري او بايد خپلې سترګې ښکته واچوي؛ځکه شرمځي ته کتنه د اولاد د ړوندوالي لامل ګرځي . علي! هيڅ وخت د بلې ښځې په شهوت له خپلې مېرمن سره کوروالى مه کوه؛ځکه که اولاد رامنځ ته شي؛نو احتمال لري چې نرښځى يا احمقه ښځه شي .علي! که څوک له خپلې مېرمنې سره د جنابت پر حال په بستره کې پروت وي؛نو قرآن دې نه لولي؛ځکه له دې وېرېږم،چې له اسمانه پرې اور راښکته شي او ويې سوځوي (شيخ صدوق په دې اړه وايي :احتمال لري دسجدې آيتونولوستل وي؛ نه د نورو) . علي ! له مېرمن سره په داسې حال کې کوروالى کوه،چې ستا او يا د هغې پر تن جامې وي او دواړه تر پردې لاندې لوڅ لغړ مه وسئ؛ځکه ډېر شهوت تر منځ مو د دښمنۍ لاملېږي او طلاق ته مو راکاږي . علي! له مېرمن سره دې په ولاړه کوروالى مه کوه؛ځکه دا د”خره”کار دى اوکه اولاد دې وشي؛نو تر مرګه به بېوزلى وي .علي ! له مېرمن سره دې د اذان او اقامې ترمنځ کوروالى مه کوه ؛ځکه که اولاد دې وشي د وينو د تويولو حرص به ورسره وي . علي ! مېرمن دې چې دوه ځانې او اميندواره شوه ؛نو بې اودسه ورسره کورالى مه کوه ؛ځکه اولاد به دې تنګ نظرى او کنجوس وي . علي! له مېرمن سره دې د”شعبان” په نيمايي کې کوروالى مه کوه؛ځکه اولاد به دې بدبين،بدرنګ اوپرمخ به يې رټې وي .علي! له مېرمن سره دې د”شعبان” په دوو وروستيو ورځوکې کوروالى مه کوه؛ځکه اولاد به دې باجګير او د ظالمانو ملاتړ به وي او څوک به يې له لاسه يې هلاک شي .علي! له مېرمن سره دې پر بام کوروالى مه کوه؛ځکه اولاد به دې منافق،رياکار او بدعتي وي . علي له مېرمنې سره دې دسفر پر شپه کوروالى مه کوه ؛ځکه که اولاد په دې خپله شتمني په ناسمه لار کې لګوي بيا رسول اکرم دا آيت ولوست : ((په رښتيا اسراف کوونکي دشيطان وروڼه دي .))علي ! کله چې د درې شواروزو لپاره پر سفر ځې ؛نو له مېرمن سره دې کوروالى مه کوه؛ځکه اولاد به دې ستا پر ضد د هر ظالم مرستندوى وي . علي! له مېرمن سره دې د دوشنبې پر ورځ کوروالى کوه؛ځکه اولاد به دې د خداى د کتاب حافظ شي او د خداى په مقدارتو به راضي کېږي .علي ! که له مېرمن سره دې دسه شنې پر ورځ کوروالى وکړ؛نو اولاد به دې د (( لا اله – الا الله اومحمد رسول الله)) تر شهادت وروسته،خداى شهادت روزي کړي،په مشرکانو به يې ونه ځوروي او خداى به هغه خوږبويه،خوږ ژبى،زړه سواند اوسخي کړي،غيبت به نه کوي،دروغ به نه وايي او تورونه به نه تپي . علي! که له مېرمن سره دې د پنج شنبې پر شپه کوروالى وکړ او اولاد دې وشي؛نو “واکمن” يا “عالم”کېږي او که د پنجشنبې پر ماسپښين ورسره کوروالى وکړې او اولاد دې وشي؛نو تر زړښت پورې ورته شيطان نه نږدې کېږي او پالندوى کېږي او خداى به يې د دين او دنيا سلامتي ور پر برخه کړي .علي! که له مېرمن سره دې د جمعې پر شپه کوروالى وکړ اولاد  به دې مشهور او عالم کېږي او که پر همدې شپه تر ماسخوتن وروسته کوروالى وکړې اولا به د دې که خداى وغواړي؛نابغه شي .علي! له مېرمن سره دې د شپې په لومړيو کې کوروالى مه کوه اولاد به دې شونې ده،چې کوډګر شي او دنيا پر آخرت غوره وګڼي . علي ! دا وصيت مې ياد لره؛لکه څنګه چې جبرئيل راته ويلي و او ياد کړى مې دى . (الامالي للصدوق : ٥٦٦مخ ، ٩٤ مجلس )                  

 

ايمان

ðد اسلام بنسټ پر پينځو ستنو درول شوى دى : ( ١) پردې حقيقت شاهدي ورکول،چې بې له “الله” بل خداى او معبود نشته؛ محمد(ص) يې بنده او استازى دى . ( ٢) لموانځ کول . ( ٣) د زکات ورکول . ( ٤) د خداى د کور حج کول .( ٥) د رمضان د مياشتې روژه نيول . ( صحيح بخاري –  صحيح مسلم)

ðايمان څه له پاسه اويا څانګې لري،چې تر ټولو غوره يې د ((لا اله – الا الله )) ويل او ټيټه يې له لارې د خنډونو لرې کول دي او “حيا” د “ايمان” يوه څانګه ده . ( صحيح  بخاري . صحيح مسلم )

ðپېغمبراکرم د ايمان په اړه وپوښتل شو؟ ويې ويل : هله مؤمن يې ، چې په خپلو ښو کړنودرته خوشحالي او په ناوړو درته د رنځ اوخپګان پيداشي . (د امام احمد حنبل مسند)

ðهله به مؤمن يې،چې تر پلار اولاد او نورو خلکو له ماسره ډېره مينه ولرې . (بخار- مسلم )

ðهله به مؤمن يې،چې ځاني غوښتنې دې زما په لارښوونو پسې ولاړې شي . (بغوى في شرح السنة . مشکات)

ðهله به مؤمن يې،څه چې ځان ته خوښوې؛نورو ته يې هم خوښ کړې . ( بخاري – مسلم )

ðپه ايمان راوړو به جنت ته ولاړ شئ او هله به ايمانوال شئ،چې يو له بل سره مينه ولرئ او مينه په خپلمنځي سلام دودولو ډېرېږي . ( مسلم )

ðمسلمان هغه دى،چې مسلمانان يې د لاس او ژبې له ازاره خوندي وي او مؤمن هغه دى،چې خلک ترې د خپل ځان ومال په اړه خوندېينه احساس کړي . (ترمذي – نسايي)

ðپر خداى قسم! مؤمن نه دى (درې ځل يې وويل)،چې ګاونډى ځوروي . (صحيح بخاري)

ðپه مؤمن بنده کې چې پينځه ځانګړنې وي؛نو ايمان يې بشپړېږي :

 (١) پرخداى توکل . ( ٢) خداى ته د چارو ورسپارل .( ٣) د خداى حکم ته غاړه اېښوول . ( ٤) په الهي تقدير رضا او ( ٥) او د خداى د رالېږلو کړاوونو پر وړاندې زغم؛ځکه څوک چې د خداى لپاره دوستي او دښمني او د خداى په لار کې بخشش وکړي او د خداى لپاره لاس واخلي؛نو ايمان يې بشپړېږي .( اعلام  الدين : ٣٣٤)

ðد يو چا د اسلام ښکلا او کمال په دې کې دى،چې د چټي او بې معنا ويناوو او کړنو يې لاس اخستى وي .(ابن ماجه–ترمذي او بيهقي)

ðچاچې بدکار وليد؛نو په لاس دې يې مخنيوى وکړي؛که وسه يې نه وه؛نو پر ژبه يې سم کړي او که دا يې هم له وسې پوره نه و؛نو په زړه کې دې ورسره کرکه  ولري،چې دا (د زړه کرکه) د ايمان ډېر اوچته مرتبه ده. (صحيح مسلم)

ðڅوک چې امانت ساتى نه وي،مؤمن نه دى اوڅوک چې ولاړ نه وي ؛ نو دين نه لري . (بيهقي)

 

له ظالم سره مرسته

ðهغه به له اسلامه وتلى وي ،چې پوهېږې له ظالم سره مرسته کوي . (بيهقي)

وفا

ðدين نصيحت (اخلاق ،زړه سوى او وفا) دى . و مو پوښت،چې له چاسره زړه سوى او وفا ؟ راته يې وويل : له الله تعالى ، له استازي سره،د مسلمانانوله مشرانو او د ټولو مسلمانانو له پرګنوسره .(صحيح مسلم )

 

الهی تقدیر

ðرقيه او تعويذ،دارو، درمل او هغه چارې چې ستونزې او کړاوونه پرې لرې کېږى ؛دا ټول په الهي تقديرکې شمېرل کېږي .(احمدترمذي – ابن ماجه )

 

تر مړينې وروسته ژوند

ðزه اوقيامت ددې دوو ګوتو په څېر (يوله بل سره نږدې) يو. ( صحيح بخاري – صحيح مسلم)

ðپه قيامت کې به د مؤمنانو قيام (اوپاڅون) خورا اسان وي ان تردې ، چې ديو فرض لمانځه د وخت هومره به لنډ وي . (بيهقي )

ðخداى د قيامت پر ورځ درېو تنو ته نه ګوري او ورته دردونکى عذاب دى . ( ١) بوډا  زناکار ( ٢) دروغجن واکمن (٣) کبرجن شتمن . ( مسلم )

ðد قيامت پر ورځ به پېغمبران،اسلامي عالمان او شهيدان شفاعت کوي . ( ابن ماجه)  

ðپه قيامت کې به بني آدم لا له ځايه پښه نه وي پورته کړى،چې د پينځوڅيزنو په اړه به وپوښتل شي :

 (١)خپل ژوند دې په کومه لار کې تېرکړى دى .(٢) ځواني دې په کومو بوختياووکې لګولې وه . (٣) شتمني دې له کومه او څنګه لاس ته راوړې وه . (٤) او په کومولاروکې دې لګولې وه  او (٥) پر خپلې پوهې دې څنګه عمل کړى و. (ترمذي)

 

دوه مخي

ðدوه مخي د قيامت پر ورځ ډېر ناوړه دي،چې ځينو ته يو ډول او نورو ته بل ډول خبرې کوي .(صحيح بخاري – صحيح مسلم )

ðد قيامت پر ورځ د دوه مخو په خولو کې دوه اورينې ژبې وي . (ابوداوود )

ðلکه څنګه چې اوبه د ونې د ودې لامل دى،دغسې څلور څيزونه په زړه کې نفاق راټوکوي او فاسدوى يې : ( ١)اپلتې او چټيات ( ٢) خپلسري او بدلمني (٣) (د ظالم) واکمن خدمت کول او (٤) تفريحي ښکار . (الخصال : ١\٢٢٧)

ðغيرت کول،د ايمان (نښه) ده او چټيات د نفاق .(بحارالانوار٦٨\ ٣٤٢)

ðخداى تعالى حضرت علي (ک) د ايمان او نفاق ترمنځ نښه ګرځولى؛ نو د چاچې خوښېږي،مؤمن به وي او څوک چې ورسره دښمني  کوي، منافق به وي .(بشارة المصطفي :٣٣مخ )

ðڅوک چې خداى ډېر يادوي؛نو د خداى خوښېږي؛نو له “اور” او “نفاقه” ورته د ژغورنې دوه برائته ليکل کېږي . (الکافي ٢\ ٤٩٩)

ðبدن چې تر زړه ډېره عاجزي وښيي؛نو زموږ پر وړاندې دوه مخي او نفاق دى .( الکافي ٢\ ٣٩٦)

ðله موږ (اهل البيتو) سره مينه،ايمان او دښمني راسره نفاق دى. (کفاية الاثر : ٩٨ مخ )

ðد منافق مثال د نوې رسېدلې کجورې په څېر دى، چې خاوند يې په خپل کور جوړونه کې ترې ګټه اخلي؛نو په کوم ځای کې،چې غواړي يې،سمه نه درېږي؛نو ځاى يې بدلوي؛خو بيا هم سمه نه درېږي او په پاى کې يې سوځوي . (الکافي ٢\٣٩٦)

ðعلي! څوک چې درسره د قيامت تر ورځې پورې مينه لري؛نو مؤمن دى او څوک چې درسره په زړه کې  کينه لري؛نو منافق دى.(د فرات الکوفي تفسير : ٣٠٩مخ )

ðمؤمن د خپلې کورنۍ په خوښه خواړه خوري او د منافق کورنۍ يې د منافق په خوښه خوري .(مفتاح الفلاح : ١٧٥)

ðمؤمن لږ خور او منافق ډېرخور دى . (وسايل : ٢٤\٢٠٤) 

ðمؤمن لږې خبرې کوي او ډېر کار او منافق ډېرې خبرې کوى او کم عقله وي .( تحف العقول ١\٢٢١)

ðپه منافق کې دوه ځانګړنې نه ځايېږي : اسلامپوهنه او د مخ ظاهري ښکلا يې . ( تفسيرالقمي ١ \٢٢١)

ðد منافق څرګنده نښه له علي (ک) سره دښمني ده . (ترمذي ٥\٢٩٨ او  ذخايرا لعقبى : ٩١مخ )

ðعلي د مؤمن به درسره مينه وي او د منافق به درسره دښمني . ( د امام احمد حنبل مند : ١\٨٤) صحيح مسلم : ١\٦٠) سنن ابن ماجه : ١\٤٢)

ðزه مې پر خپل امت له مؤمن او مشرکه باک نه لرم؛ځکه خداى مؤمن د خپل ايمان له امله منع کوي او مشرک هم د خپل شرک له امله  خواروي؛ خو زه  پر تاسې له هغه دوه مخي منافقه ډارېږم ،چې په زړه منافق او پر ژبه پوه دى،چې کوم څيزونه وايي،ښه مو ايسي او چې چارې کوي،ښه مو نه ايسي.( بحارالانوار ٣٣\٥٨٨)

 

اسانخوښی – راحت طلبي

ðله اسانخوښۍ- راحت طلبۍ او چړچو ځان وژغوره؛ځکه د خداى ځانګړي بندګان دغسې نه دي .(د امام احمد حنبل مسند)

 

 

یقین او زهد

ðد امت لومړنى خير او نېکي مې “يقين” او”زهد” دى او لومړنۍ ويجاړي يې بخل او د دنيا حرص دى .(بيهقي)

ðزهد دې ته نه وايي،چې حلال څيزونه پر ځان حرام کړې او خپله شتمني ضايع کړې؛بلکې  د زهد اصلي کچه داده،چې پر هغه څه دې يقين ډېر وي،چې له الله تعالى سره دي،نه له تا سره او بل داچې له کړاوونو سره د مخامخېدو پرمهال يې درته په اړه د اخروي ثواب لېوالتيا پيدا شي . (ترمذي– ابن ماجه)

ð د امت لومړنى خير او نېکي “يقين” او “زهد” دى او لومړنى ويجاړي يې بخل او د دنيا حرص دى .(بيهقي)

 

مسکین

ðخدايه ! مسکين مې وساته،مسکين مې مړ کړه او په قيامت کې مې د مسکينانو په ډله کې پا څوه(حشر کړه) . (ترمذي– بيهقي – ابن ماجه )

ðخدايه! آل محمد(نبوي کورنۍ) ته د کفايت او بسيايني هومره رزق په برخه کړه .( بخاري – مسلم )

 

احسان

*نورو ته نفقه ورکړئ،چې خداى يې تاسې ته درکړي.(بخاري – مسلم )

ðپه خير او نېکو چارو کې نورو ته مه ګورئ،که درسره احسان وکړي، تاسې به يې هم ورسره وکړئ او که تېرى او بدي درسره وکړي ؛نو تاسې هم ورسره هماغسې وکړئ؛بلکې هوډ ونيسئ،که نورو درسره احسان وکړ، تاسې يې هم ورسره وکړئ که تېرى او بدي هم درسره وکړه،بيا به هم ورسره احسان اونېکي کوو او د بديو لار به نه نيسو . (ترمذي)

ð څوک چې زما د يو امتي اړتياوې لرې کړي او نيت يې خوشحالول وي؛ نو زه به يې خوشحاله کړى يم او څوک چې ما خوشحاله کړي؛نو خداى يې خوشحاله کړى دى او څوک چې خداى خوشحاله کړي؛نو جنت ته يې ننباسي. (بيهقي)

ðهېڅ ډول نېکي سپکه مه ګڼئ؛نوکه څه نه لرئ،چې مسلمان ورور ته يې ډالۍ کړئ؛ نو په خندا او ورين تندي ورسره مخ شه او چې غوښه دې پخوله؛ نواوبه پکې ډېرې کړه،چې ښوروا يې ګاونډي ته هم ډالۍ کړې . (ترمذي)

 

غوره کړنې

ðخداى ته تر ټولوغوره کړنې دادي،چې د بنده دوستي او دښمنى يوازې د خداى لپاه وي . (ابوداود)

ðخداى تعالى ته غوره کړنې دادي : ( ١) هغه ايمان ،چې شک ورته لار نه وي کړې ( ٢) هغه جهاد،چې کينه ورته نه وې ننووتې (٣) او قبول شوى حج .( الامالي للمفيد: ٩٩ )

ðد تږي خړوبول غوره چار دى .( الکافي : ٢\٢٦٠)

ðالهي فرايض عملي کړئ،چې ډېر پرهېزګاران شئ.(الکافي ٢\٨٢)

ðيوه ډله چې راغونډه شي او خداى ياد کړي ؛نو شيطان او دنيا ترې تښتي . شيطان دنيا ته وايي : ګورې چې څه کوي ؟ دنيا ورته په ځواب کې وايي : پرېږده يې،که بېل شول،( د دنيا غوښتنې کړئ ) ورته په غاړه کې اچوم . ( مستدرک الوسايل : ٥\٢٨٩)

ð ډېر غوره هغه دي،چې خلكو ته ګټور وي او ډېر ناوړه هغه دي ، چې خلك وځوروي او تر دې بدتر هغه دى،چې د شر له ډاره يې خلك احترام كوي او تر دې خو لا ډېر بدتر هغه دى،چې خپل دين د بل په دنيا وپلوري  ( الاختصال : ۲۴۳)

 

ناوړه کړنې

ðپه هغه ټولي كې رحمت نه راكوزېږي،چې پر خپلوانو يې زړه سوى پرې كړی وي . ( مشكاة الانوار : ۱۶۶)

ðڅوک چې ناوړه کار خپروي؛نولکه په خپله،چې يې کوي . (کافي ٢\٣٥٦)

ð د قيامت پر ورځ ډېر ناوړه هغه دي،چې خلك يې د شر له وېرې احترام کوي . (بحار : ۷۲\۲۸۳)

ð زما د امت ډېر ناوړه هغه وګړي دي،چې خلك يې د شرله وېرې يې احترام كوي، هغه به زما (له امته) نه وي،چې د شرله ډاره يې خلك درناوى كوي .( الحضال :۱\۱۴)

ðکنجوسي او بد اخلاقي د مسلمان ځانګړنې نه دي . (الخصال ١\ ٧٥)

ðد خداى پر وړاندې دا درې چارې خورا ناوړه دي،چې بني آدم يې هېڅکله نه کوي 🙁 ١) که څوک کوم پېغمبر ووژني ( ٢) کعبه ويجاړه کړي،چې خداى د خلکو قبله کړې ده (٣) او په حرامو له ښځې سره زنا وکړي . ( من لايحضره الفقيه ٤\٢٠ )

ðګناهونه،نعمتونه اړوي،تېرى د پښېمانۍ لامل دى،وژنه د بدمرغۍ د راكېوتو لامل دى،ظلم پر دې څېر وي او شرابخوري د روزۍ مانع كېږي، زنا مړينه رانږدې كوي او زړه سوى نه كول د دعا د نه قبلېدولامل ګرځي،د موروپلار (له خوا) عاقېدل عمر لنډوي او لمونځ نه كول د خوارۍ لامل ګرځي . ( مستدرك : ۱۲\ ۳۳۴)

ðرسول اکرم وويل : ايا ډېر ناوړه خلک دروښيم ؟ اصحابو وويل : هو! آنحضرت (ص) وويل:څوک چې د لاسنيوي او مرستې مخه نيسي،خپل مريى (ترلاس لاندې)وهي؛نو اصحابو ګومان وکړ،چې خداى له دې هم  ناوړه  موجود نه دى پیدا کړی . بيا آنحضرت(ص) وويل : ايا تردې ناوړه درته وښيم : اصحابو وويل: هو! آنحضرت(ص)  وويل : هغه چې د خير هيله ترې نه کېږي او له شره يې هم خوندي نه يې . بيا اصحابو ګومان وکړ،چې خداى خو به تر دې بل ناوړه موجود نه وي پيدا کړى . آنحضرت(ص) وويل : تردې ناوړه مو خبر کړم : اصحابو وويل: هو! آنحضرت (ص)  وويل : د هغه په مخکې، چې د مؤمنانو نوم واخستل شي؛ نو ورته کنځل کوي او لعنت پرې وايي او چې مؤمنان يې ياد کړي؛نو کنځلې ورته کوي او لعنت پرې وايي . ( الکافي ٢\ ٢٩٠ )

 

 

خپلمنځي اړیکې

ðمسلمانان د لورنې،مينې او نرمۍ له پلوه په خپلو کې د يوې تنې په څېر دي،که يو غړى يې په درد شي ؛نو نور هم ورسره دردېږي . ( بخاري – مسلم )

 

تله

ðتېر امتونه د دووځانګړنو په درلودو پوپناه شوي،چې يو يې پيمانه (کنډه) او بل يې تله وه . (مستدرک الوسايل  ١٣\٢٣٣)

 

ډار

ðعلي! له ډارن سره مشوره مه کوه؛ځکه د چارې لار درباندې تنګوي . (من لايحضره الفقيه  ٤\ ٤٠٩ )

ðعلي! پوه شه چې ډار،کنجوسي او حرص يوه غريزه ده،چې په ټولو کې د بدګومانۍ لامل دى . (علل الشرايع ٢\ ٥٥٩ )

ðنشپاتي وخورئ؛ځکه زړه غښتلى کوي او ډارن زړه وروي.( الکافي ٦ \ ٣٥٧)

ðد خداى رسول ته تردې بل هيڅ څيز هم ګران نه دى،چې څوک د خداى په لارکې “وږي ډارځپلي” ته پناه ورکړي . ( الکافي ٨ \١٢٩ )

ðمؤمن د”تېر” او”راتلونکې” دوو ډارو ترمنځ پروت دى .(مستدرک الوسايل  ١١\٢٢٦)

ðمؤمن تل له ناوړه عاقبته ډارېږي او د خداى د رضا په باب تر هغه يقين نه لري،څو يې روح له تنه وتلى او د مرګ پرښته يې ليدلې نه وي . ( تاويل الايات الظاهره : ٥٢٤ مخ )

 

تسبيح

ðتسبيح په قيامت کې د کړنو نيمه تله ده او “الحمد الله” تله ډکوي . ( الجعفريات : ١٦٩ مخ )

ðډېر په تکبير،تهليل (لا اله – الا الله )،تسبيح، حمد او د “لاحول ولا قوة الا بالله” ويلو بوخت وسئ،چې دا “باقيات صالحات” دي . (مستدرک الوسايل: ٥\٣٢٧)

 

تسليت

ðڅوک چې غمځپلي ته ډاډېنه ورکړي؛خداى به په قيامت کې ورېښميني جامې وراغوندي . ( الکافي ٣\٢٠٥)

ðڅوک چې غمځپلي ته تسليت ووايي؛نو خداى ورته د غمځپلي هومره ثواب ورکوي؛بې له دې چې د غمځپلي له ثوابه څه کم شي . ( قرب الا سناد: ٢٥مخ )

ðڅوک چې بورې ښځې ته تسليت ووايي؛نو خداى به په جنت کې ښکلې جامې وراغوندي .( مستدرک الوسايل ٢\٣٤٩)

ðتسليت ورکونه جنت ته د تلو لامل دى .( ثواب الاعمال : ١٩٨مخ)

څوک چې مصيبت ځپلي ته تسليت ووايي؛نود هغه هومره ثواب ګټي . (کنز ١٥/ ٦٥٨) 

 

په جنازه کې ګډون

ðڅوک چې د يو مسلمان جنازې ته ولاړ شي؛نو پرښتې يې د بېرته راستنېدو تر ځايه ملګرتوب کوي . ( جامع الاخبار: ١٦٦مخ )

 

د عقايدو څارنه

ðزه د خلکو د زړونو د راسپړلو او ګېډې څيرلو لپاره ګومارل شوى نه يم . ( الجامع الصغير ١\ ٤٠٣)

 

تقيه

ðبې تقيې مؤمن د بې سره تنې په څېر دى . (تفسيرالامام العسکرى: ٣٠٢مخ )

ðتقيه د الهي دين يوه برخه ده ؛نو څوک چې تقيه نه کوي؛دين نه لري . (مستدرک الوسايل  ١٢\٢٥٢) 

ðڅوک چې “تقيه”نه کوي ،ايمان نه لري . ( تفسيرالعيا شي  ١\١٦٦)

ðپرخداى قسم که “تقيه” نه واى؛نو هېچا به د شيطان په دولت کې د خداى عبادت نه واى کړى . پوښتنه وشوه، چې د شيطان دولت؛يعنې څه؟ ورته يې وويل : که “لارښود مشر” واکمن وي ؛نو د حق دولت دى او که “بې لارې مشر” واکمن وي؛نو د شيطان دولت دى . ( د سليم بن قيس کتاب : ٨٩٥مخ )

ðکه خداى غوښتاى؛نو تقيه يې درباندې حراموله او په صبر يې درته سپارښتنه کوله . پوه شئ،چې له موږ سره د مينې درلودو او زموږ له دښمنانو سره د دښمنۍ تر فرضېدو وروسته، ستاسې د ځان،شتمنيو، پوهې او وروڼو د حقوقو دساتنې لپاره تر “تقيي” بل ستر فرض نشته . (وسايل  ١٦\٢٢٤)

ðکه څوک له چا،پر يوې مسئالې د پوهېدو لپاره څه وپوښتي؛خو پټه يې کړي،حال داچې بايد رابربنډه يې کړي او د “تقيي” ځاى هم نه وي؛نو خداى  به يې د قيامت پر ورځ په اورينه کيزه دوزخ ته ولېږي. (تفسيرالامام العسکري٤٠٢مخ )

 

کبر

ðبېشکه ستر کبر،خلکو ته ټيټ کتل او د حق بې ارزښته کول دي . په دې اړه وپوښتل شو. آنحضرت وويل:په حق نه پوهېږي او وړ ته يې پېغورونه ورکوي؛نو څوک چې دا کار وکړي؛له خداى سره به يې په جګړه لاس پورې کړى وي . (الکافي  ٢\ ٣٠١)

ðابليس رانجه،لاړې او  نسوار لري،چې چرت يې رانجه دي،دروغ يې د خولې لاړې دي او کبر يې  نسوار دى .( معاني الاخبار: ١٣٨)

ðډېرى دوزخيان کبرجن دي . ( وسايل  ١٥\٣٧٨)

 ðڅوک چې وياړنې جامې واغوندي؛نو کبرجن دى،چې هستوګنځى يې دوزخ دى . ( مستدرک الوسايل  ١٢\ ٣٠)

ðڅوک چې ومري؛خو په زړه کې يې د ذرې هومره کبر وي؛نو د جنت بوى به بوى نه کړي؛خو داچې تر مړينې مخکې يې توبه کړې وي . (مستدرک الوسايل ١٢ \٣٤)

ðد چا په زړه کې،چې د کوچنۍ ذرې هومره “کبر” وي؛نوجنت ته به ولاړ نشي. پوښتنه وشوه: که په موږ کې د چا دا ښه ايسي،چې جامې او کارونه يې ښه وي؛نو کبرجن دى؟ آنحضرت : خداى په خپله ښکلى دى او ښکلا يې خوښېږي؛خو کبر د  حق تر پښو لاندې کونه او د خلکو خوارول دي . (منية المريد: ١٧٥مخ)

ð کبرحن ،خداى خواروي .( بحار ٧٣/٢٣١)

 

تکلف

ðد متکلف څلور نښې دي : په هغه څه کې شخړې کوي،چې ورپورې اړه نه لري،له خپل پورته سره لانجې کوي او په هغه څه پسې درومي، چې نه وررسي .( راوي په روايت کې څلورمه نښه نه ده ښوولې.) ( بحارالانوار : ١\١٢١)

تکليف

ðدرې تنه له مکلفيته معاف شوي : ويده تر راوېښېدو، لېونى تر عقلمنېدو او کوچني تر بالغېدو پورې . ( الطرائف  ٢\٤٧٣)

 

کنجوسي

کنجوسي اسلام تباه کوي . ( الکافي ٤\ ٤٥)

ðکنجوسي او ايمان کله هم په يوه زړه کې نه ځايېږي.(الحضال ١\٧٥)

ðد سخي خواړه “شفا” ده؛خو د کنجوس خواړه د “ناروغۍ” لامل دى . ( بحارالانوار  ٦٨\٣٥٧ )  

ðکوم درد ترکنجوسۍ بدتر دى ؟ (فقه الرضا : ٢٧٦مخ )

ðله کنجوس سره مشوره مه کوه؛ځکه خپلې موخې ته په رسېدو کې دې خنډېږي .( علل الشرائع  ٢\٥٥٩)

ðکنجوسي د دوزخ له ونو يوه ونه ده،چې ښاخونه يې په دنيا کې راځوړند دي؛نو څوک چې کنجوس وي،يو ښاخ يې نيسي او دا ښاخ يې جهنم ته راکاږي .( الامالي للطوسي : ٤٧٤مخ )

ðکنجوسي او بد اخلاقي په مسلمان کې نه ځايېږي . ( معدن الجواهر : ٢٥مخ )

ðکنجوس په اسمانو او ځمکې کې  اوکږلى (مبغوض) دى . ( الکافي : ٤\٣٩)

ðهغه حقيقي بخيل دى،چې د خپلې شتمنۍ فرضي زکات او د خپلې مېرمنې مهر نه ورکوي؛خو په بل ځاى کې يې چټي لګوي .(من لايحضره الفقيه ٢\٦٢)

ðريښتنى کنجوس هغه دى،چې زما د نامه په اورېدو،پر ما درود نه وايي . ( معاني الاخبار:٢٤٦)

ðکنجوس له خداى،خلکو او جنته لرې او دوزخ ته نږدې دى.( روضة الواعظين ٢\٣٨٤)

ðله کنجوسه ځان وژغوره؛ځکه يوه ناروغي پکې ده،چې په عزتمنو کې نشته . ( دلائل الامامه : ٤مخ )

 

يوازېتوب

ðښه ملګرى تر يوازېتوبه او يوازېتوب له بدانو سره تر کېناستو غوره دى . ( وسائل ١٢\ ١٨٨)

 

غښتليتوب

ðدا اتل نه دى،چې پهلوانان راسملوي؛بلکې اتل هغه دى،چې پرخپلې غوسې برلاس شي اوتېره يې کړي . (مستدرک الوسائل ٩\١٢)

ðپر خداى توکل کوونکي ډېر غښتلي خلک دي .(جامع الاخباره:١١٧مخ )

ð ډېر غښتلى هغه دى،چې د خوشحالۍ پر وخت خوښي يې ګناه او خوشې کار ته رانه کاږي او چې غوسه وي؛نو غوسه يې له حق خبرې لرې نه باسي .( مه لايحضره الفقيه ٤\٤٠٧)

 

وسمني او شتمني

ðڅومره ناوړه (چار) دى،چې انسان تر شتمنۍ وروسته د بېوزلي چلن کوي او په مسکينۍ کې سرغړونې کوي او تردې دواړو کړنو خو هغه ډېره ناوړه ده،چې عابد خپل عبادت پرېږدي . (الکافي ٢\٨٤)

ðشتمني؛الهي تقوا ته څومره ښه مرستندويه ده .( الکافي ٥\٧١)

ðڅه چې د خلکو په لاس کې وي،ترې نهيلى وسه؛ځکه په دې حال کې به شتمن يې . ( من لايحضره الفقيه  ٤\٤١٠)

ðشتمن چې په ورکړه کې ځنډکوي؛نو ظلم دى .(وسايل الشعيه ١٨\ ٣٣٣)

ðناپوه بوډا،ظالم شتمن او بېوزلى کبرجن مې نه خوښېږي . (الزهد : ٥٨مخ )

ðاړين مؤمن،شتمن ته د خداى استازى دى؛نو استازى،چې بې د خپلې اړتيا له پوره کولو ستون شي؛نو پاک خداى ګناهونه نه بښي او خداى پر شتمن شيطانان واکمنوي،چې چيچي به يې . (مستدرک الوسايل ١٢\٤٣٤)

ðپر هغه دې د خداى لعنت وي،چې د شتمن درناوى د شتمنۍ له امله کوي يا بېوزلى د بېوزلۍ له امله سپک ګڼي،چې دا د منافق خوى دى، چې په اسمانو کې د خداى او پېغمبرانو دښمن دى،دعا يې نه قبلېږي او اړتيا وې يې نه لرې کېږي . (ارشادالقلوب  ١\ ١٩٤)

ð د وسايلو ډېرښت شتمني نه ده؛بلکې اصلي شتمني د زړه مړښت دى. (صحيح بخاري)

ðخداى تعالى ستاسې تنو او شتمنيو ته نه ګوري؛زړونو او کړنو ته مو ګوري. (صحيح مسلم)

 

توبه

ðله ګناه توبه کوونکى داسې دى،چې هيڅ ګناه يې نه وي کړي . ( کنز : ١٠١٧٤ ح )

ðتر دې بل هېڅ څيز د خداى ښه نه ايسي،چې يو ځوان له خپلې ګناه پښېمانه شي او توبه  وکاږي . ( مشکاة الانوار: مخ ١٥٥) 

ðتوبه د ګناهګار ژغورنې ته بريالى شفيع  ده. ( بحار ٣/٣٠٦)

ðيو هم د مړيني هيله مه کوئ؛ځکه وګړى يا”ښه” دى؛که ژوندى پاتې شي،ښايي پر نېکيو يې ورزياتې شي  او يا “بد” دى ؛نوکه ژوندى پاتې شي،ښايي توبه وکاږي . ( بخاري : ٧٢٣٥ ح )

ðد توبې ور د شپېلۍ د پوکي تر وخته پرانستلى دى . (وسايل الشيعه  ١٦\٩٠)

ðتوبه ګار د داسې چا په څېر دى؛لکه هيڅ ګناه يې،چې نه وي کړي . (عيون اخبار الرضا٢\٧٤)

ðهر درد ته درمل شته او د ګناهونو درمل استغفار دى . (ثواب الاعمال : ١٦٤)

ðيوازې استغفار مړي ته ډېره ارزښتمنه ډالۍ دى . (الجعفريات : ٢٢٨)

ðاستغفار غوره دعا ده .( الکافي ٢\٥٠٤)

ðد مرګ ياد غوره موعظه ده.د آخرت ياد غوره تفکر دى . عاجزي غوره عبادت دى . د ګناهونو پرېښوول غوره استغفار دى او نصيحت غوره دعا ده؛نو په چا کې چې يوه دا ځانګړنه وي؛نو د پېغمبرانو له لومړي ټولي سره به جنت ته ننوځي . ( جامع الاخبار: ١٣٠ )

 

توفيق

ðلږ توفيق تر ډېرعقله غوره دى . ( فيض القدير٤\٦٨٨)

ðتوکل د بد فال کفاره ده . ( الکافي ٨\١٩٨)

 

د نورو سپکاوى

ð څوک چې نورسپک کړي (؛نو) پخپله (هم ) ډېر په سپکو کې شمېرل کېږي .( بحار ٧٥/١٤٢)

ðهغه تر ټولو خوار دى،چې نور خوار کړي .(من لايحضره الفقيه٤\ ٣٩٤)

ðخداى تعالى وايي : پر هغه دې افسوس وي،چې د خداى ولي او دوست سپک کړي او څوک چې داسې وکړي؛نو له ماسره به يې جګړه کړې وي .  ( مشکاة الانوار: ١٠٧مخ )

ð (د معراج په حديث کې راغلي : ) د جهنم پر څلورم وره درې جملې ليکل شوي : ( ١) څوک چې اسلام سپک کړي ؛نو خداى يې سپکوي . ( ٢) څوک چې د پېغمبر اهلبيت سپک وګڼي؛نو خداى يې سپکوي . (٣) څوک چې له ظالم سره د خداى پر مخلوقاتو په ظلم کې لاسنيوى وکړي ؛ نو خداى به يې ذليل کړي . ( الفضايل : ١٥٢)

 

تور

ðغيبت کول؛يعنې د يو څيز يادول،چې د غيب شوي ښه نه ايسي . رسول اکرم وپوښتل شو:که هغه حق وي (؛نو) څنګه کېږي ؟ ورته يې وويل: که “باطل” ووايې (؛نو) هغه خو “تور” دى . (عوالي الا للي : ١\٤٣٧)

ðڅوک چې له تورنو سره کېني؛نو تر ټولو ډېر د تور وړ دى .(من لايحضره الفقيه ٤\٣٩٤)

ðډېر ناوړه هغه دى،چې خداى تعالى په خپلو پېښوکې تورن کړي . (پورته  ٤\٣٦٢)

ðخلکو! په ما پسې تورونه ډېر شوي؛نو څوک چې په ما پسې په لوى لاس دروغ وتړي؛نو ځاى يې جهنم دى . (دسليم بن قيس کتاب : ٦٢٠مخ )

ðلکه څنګه چې يې تر ما په مخکنيو پېغمبرانو پسې دروغ تړل؛نو په ما پورې به يې هم وتړي؛نو چې چا درته زما “حديث” راووړ او د خداى له کتاب سره يې اړخ لګاوه؛نو زما حديث به وي اوکه نه؛نه به وي .( قرب الا سناد : ٤٤مخ )

 

ثواب

ðڅوک چې د پوهې او علم د زده کړې لپاره لار ووهي؛نو خداى به يې لار جنت ته ورسيخه کړي . ( الکافي  ١\٣٤)

ðڅوک چې د خداى په لار کې (په اخلاص) يوه ورځ،روژه شي؛نو خداى به ورته د يو کال روژې نيولو ثواب ورکړي .(ثواب الاعمال : ٥)

 

کوډګر

ðمسلمان کوډګر بايد ووژل شي؛خوکافر کوډګر نه . (الکافي  ١\ ٣٤)

ðله اوو پوپنا کوونکيو څيزونو ځان وساتئ :

 ( ١) له خداى سره شرک . ( ٢) کوډې . ( ٣) په ناحقه د انسان وژله . ( ٤) د پلار مړي د مال خوړل . ( ٥) سود خوړل . ( ٦) پر ناخبرو مؤمنو ښځو د زنا تور پورې کول .(٧) اوله جګړې تېښته.(وسايل الشيعه ١٥\٣٣٠ )

ð رسول اکرم د کوډګر په اړه وپوښتل شو.ورته يې وويل:په کوډو يې چې دوو عادلو نارينه وو شاهدي ورکړه؛نو وينه يې حلاله ده .(وژل يې روا دي) . ( تهذيب الاحکام  ٦\ ٢٨٣)

 

جبر او اختيار

ðد امت دوه ډلې مې له اسلامه څه ګټه نشي وړاى : ( ١) مرجئه ( څوک چې ګروهمن وي،چې انسان څومره ګناه وکړي؛نو دين ته يې زيان نه رسي) . ( ٢) جبريون ( د جبر لارې لارويان ) . ( ثواب الاعمال : ٢١٢)

ðاويا پېغمبرانو جبريون لعنت کړي دي . رسول اکرم وپوښتل شو: جبريون څوک دي ؟ ورته يې وويل : هغوى چې انګېري خداى پرې د هغوى ګناهونه او عذابونه په زورتپلي دي .( الطرائف  ٢\٣٤٤)

ðد امت دوه ډلې مې له اسلامه څه ګټه نشي وړاى : ( ١) غلات (مبالغه کوونکي)  او ( ٢) د جبرلارويان . ( الخصال 72/1 : ٢١٢)

ðهر امت مجوسي (زرتشتي) لري او زما د امت مجوسيان د جبر لارويان دي . ( کنزالفوائد ١\١٢٣ )

 

ټولى

ðڅوک چې د مسلمانانو له ټولي بېل شي؛نو له غاړې يې د اسلام رسۍ لرې شوې . رسول اکرم وپوښتل شو: څوک د مسلمانانو ټولى دى؟ ورته يې وويل : د “حق لارويان”که څه هم لږ وي . (الامالي للصدوق : ٣٣٣مخ )

ðڅوک چې له ما جلاشي؛نو له خدايه به جلا شوى وي او څوک چې له “علي” بېل شي ؛نو له مابه جلا شوى وي . (الغارات  ٢\ ٣٥٦)

ðپه (جمع/جماعت) لمونځ تر ځان ته لمانځه پينځه ويشت ځله غوره دى . ( وسايل الشيعه  ٨\ ٢٨٩)

ðڅوک چې تر ما وروسته له “علي” جلا شي؛په قيامت کې به مې ونه ويني او زه به يې هم ونه وينم . (کمال الدين  ١\٢٦٠ )

ðڅوک چې د جماعت د لمانځه لپاره جومات ته روان شي؛نو هر قدم ته يې اويا زره ثوابونه ليکل کېږي او اويا زره درجې لوړېږي او که په همدې حال کې ومري؛نو خداى تعالى اويا زرو پرښتو ته دنده ورکوي، چې قبرته يې د ليدو لپاره ورشي او خوشحال يې کړي او په يوازېتوب کې يې ملګرې شي او د قيامت تر ورځې پورې ورته بښنه وغواړي . (من لايحضره الفقيه ٤\١٧)

 

غوړه مالي

ðد غوړه مالانو پر مخ خاورې وشيندئ . (من لايحضره الفقيه٤\١١)

ðد پوهې له لاس ته راوړو پرته،د مؤمن خوى دا نه دى،چې غوړه مالي وکړي اوکينه ولري . ( مستدرک الوسائل٩\٨١)

 

د سترګو وهل ( نظرېدل )

ðخرافات،طالع ليدل او فال نيول نشته؛خو د سترګو وهل (نظرېدل) حق  دي . ( الجعفريات : ١٦٨مخ )

ðد سترګو وهل حق دي؛نو څوک چې د خپل مؤمن ورور يو څيز حيران کړي؛ نو سملاسي دې خداى ياد کړي؛ځکه که خداى ياد کړي؛ نو زيان به ورته نه رسوي .( طب الائمه : ١٢١مخ )

ðسترګې وهل يو حقيقت دى او که پر کوم څيز،چې الهي مشيت شوى وي؛ نو بيا هم د سترګو وهل پرې اغېز لري . (عوالي الاللي ١\١٤٦)

 

حج

ðحج  وکړئ،چې شتمن شئ . ( المحاسن ٢\٣٤٥)

 ðخلکو! پر بشپړ دين او له اسلامه له پوهې سره،حج ته ولاړ شئ او بې توبې له مواقفو يې مه راګرځئ . ( مستدرک الوسايل  ٨ \ ٤٥)

ðجنت د مبرور حج بدله ده.رسول اکرم وپوښتل شو: مبرور حج؛يعنې څه ؟ ورته يې وويل : په خوله ښې خبرې کول او د خوړو ورکړه . ( عوالي الاللي  ٤\٣٣)

 

حجامت

ðحجامت د وينې د ناروغۍ دوا ده .حمام کول د بلغم د ناروغۍ دوا ده  او پلى تلل د صفرا د ناروغۍ دوا ده . ( من لايحضره الفقيه ١\ ١٢٦)

ðبې له مړينې،حجامت د ټولو دردونو د شفا په سر کې دى . (طب الائمه : ٥٧مخ )

ðپر سباناري حجامت کول دوا ده او پر مړه ګېډه حجامت کول د ناروغۍ لامل دى او د هرې مياشتې پر اوولسم اوسه شنبې حجامت کول د بدن د روغتيا لاملېږي او جبرئيل راته دومره د حجامت کولوپه اړه سپارښتنه وکړه،چې ګومان مې وکړ واجب دى . (بحارالانوار٥٩ \١٢٦)

ðڅوک چې تل د چهارشنبې او شنبې پر ورځو حجامت کوي؛نو نه ښايي له ځان پرته بل څوک يې پړکړي . (دعائم الاسلام  ٢\١٤٥)

 

حد او پولې

ðپر ځمکه چې د خداى لپاره حد اجرا شي (؛نو) تر څلوېښتو ورځو باران ( ورېدو) غوره دى . ( الکافي : ٧\١٧٥)

ðمخکېني ځکه پوپنا شول،چې پر بېوزليو يې حد اجر کاوه او پر مخور او اشرافو نه . ( دعائم الاسلام ٢\ ٤٤٢)

ðخداى تعالى پولې ټاکلې دي او څوک چې له کومې پولې واوړي؛نو سزا ورکوي . ( مستدرک الوسايل  ١٨ \٩ )

ðشبهه چې درته پيدا شوه؛نو حدود مه جاري کوئ او د درنو خلکو له تېروتنو تېر شئ؛خو داچې له کومې الهي پولې اوښتى وي . ( مستدرک الوسايل  ١ \ ٢٦ )

 

حرام اوحلال

ðخلکو! حلال مې تر قيامته حلال دي .(مستدرک الوسايل١٢ \٢١٧)

ðعبادت اويا ډوله دى،چې ډېر غوره يې د حلالۍ روزۍ لاس ته راوړل دي . ( الکافي : ٥\ ٧٨)

ðعبادت  اويا ډوله دى،چې غوره يې د حلال مال لاس ته راوړل دي . (الکافي  ٥\ ٧٨ )

ðچاچې د حلال مال لاس ته راوړو لپاره ځان ستړى کړى وي او بيا ويده شي؛نو خداى بښلى به ويده شوى وي . (لامالي للصدوق : ٢٨٩ )

ðخداى تعالى د معراج پر شپه وويل: احمده ! عبادت لس ډوله دى ، چې نهه يې دحلال مال لاس ته راوړل دي . (مستدرک الوسائل  ١٣ /٢٠ )

ðامت به مې ژر پر څو اويا ډلو وېشل کېږي،په دوې کې به ډېره ناوړه ډله هغه وي،چې په چاروکې د خپل نظر له مخې قياس کوي او په دې کار حلال،حراموي او حرام ،حلالوي . (بحارالانوار  ٢\٣١٢)

ðخداى خپل بندګان پيدا کړل او ترمنځ يې حلاله روزي ووېشله او حرام يې ور وړاندې کړل ؛نو چاچې له حرامو څه وخوړل؛نو هومره يې له حلال ماله کمېږي او څوک چې حرامخور وي ؛نو په قيامت کې ورسره حساب کېږي . (بحارالانوار  ٥\ ١٤٦)

ðد حلال خور پر سر پرښته درېږي او تر هغه ورته بښنه غواړي،څو له دې کاره لاس واخلي او همداراز و يې ويل : کوم بنده،چې حرامه مړۍ وخوري؛نو څو يې په ګېډه کې وي،په اسمانو او ځمکې کې پرښتې پرې لعنت وايي او خداى هم ورته نه ګوري او څوک چې حرامه مړۍ وخوري؛ نو خداى پرې غوسه کېږي؛نو که توبه وباسي،خداى يې توبه قبلوي او که تر توبې مخکې ومري؛نو د جهنم وړ دى . (بحارالانوار  ٦٣\٣١٤)

ðموږ ټول (اهلبيت) په چارو پوهېدنو،حلال او حراموکې د يو بل په څېر يو. ( الاختصاص : ٢٦٧مخ )

 

حساب

ðمخکې له دې،چې حساب درسره وشي؛له ځان سره حساب وکړئ . (الفضايل : ١٥٢)

ðله بنده چې د قيامت پر ورځ د لومړي څيز حساب اخستل کېږي،دا دى،چې ورته وويل شي: ايا بدن دې روغ رمټ و؟ (مجموعة ورام ١\٤٤)

ðرسول الله وويل : د چاچې کړنې حساب شي (؛نو) په عذابېږي. وپوښتل شو: د خداى تعالى دا خبره “چې د هغوى حساب به اسان وي”په څه مفهوم ده ؟ ورته يې وويل : د خبرې مفهوم دا دى،چې خداى له خپلوبندګانو تېرېږي . (معاني الاخبار :٢٦٢مخ )

 

حسرت

ðپه قيامت کې به هغه تر ټولو ډېر افسوس کوي،چې خپل اودس د بل پر پوټکي وويني . ( من لايحضره الفقيه  ١\ ٤٨)

 

حق اوحقيقت

ðحق او رښتيا ووايه که څه هم تريخ وي (او د خلکو) ښه نه ايسي . (بيهقي)

ð حقيقي مؤمن هغه دى،چې له خپلې شتمنۍ بېوزليو ته (څه) وبښي يا له خلکو سره په انصاف چلن کوي . ( الکافي  ٢\ ١٤٧)

ðرسول الله د بدر پر وژل شويو ودرېد او په يوه څاه کې يې واچول او ورته يې وويل :په څاه کې لوېدليو! پالونکي مو،چې راسره ژمنه کړې، ترسره شوه، ايا له تاسې سره د خداى ژمنه پوره شوه ؟ ورته وويل شو: رسول الله له مړيو سره خبرې کوئ؟حضرت ورته وويل : که هغوى د خبرو اجازه درلوداى (؛نو) ويل يې: هو! پرهېزګاري ډېره غوره توښه ده . ( من لايحضره الفقيه : ١\١٨٠)

ðبېشکه پر هر څه حقيقت او پر هر ښه کار رڼا پرته وي؛نو څه چې له قرآن سره اړخ لګوي، و يې منئ او څه چې ورسره مخالف وي، پرې يې ږدئ  . ( الکافي  ١\٦٩)

ðڅوک چې خپله ژبه وساتي؛نو د ايمان پر حقيقت به پوه شي.(الکافي  ٢\١١٤)

ðد هر حق لپاره يو حقيقت وي او يو بنده هم د اخلاص حقيقت ته رسېداى نشي؛خو داچې کوم  کار وکړي او نه يې خو ښېږي،چې وستايل شي . ( مستدرک الوسايل  ١\ ١٠١)

ðظالم واکمن ته د حق  خبرې ويل غوره جهاد دى . (عوالي الاللي ١\٤٣٢)

 

حقوق

ðمؤمنان په خپلمنځي حقوقوکې د ږومنځې د غاښو په څېر يو له بل سره برابر دي؛خو په کړنو کې يو له بل سره توپير لري او هر سړى د خپل ملګري پر دين وي؛نو ځير دې شي،چې له چا سره ملګرتوب کوي . (مستدک الوسايل : ١\١٠١)

ðلکه څنګه چې پلار پر اولاد حق لري؛دغسې “علي” پر مسلمانانو حق لري .( بشارة المصطفى : ٢٦٩ مخ )

 

شفاعت

ðرسول اکرم حضرت “اسامه” ته وايي :د قضاوت په غونډه کې، چې کېناستې؛نو له ما څه مه غواړه؛ځکه د حق په اجرا کې شفاعت کارسازى نه دى . ( مستدرک الوسايل ١٧ \٣٥٨)

 

د مؤمن حقوق

ðمؤمن ته روا نه ده،چې تر درېو ورځو زيات له خپل مؤمن ورور سره اړيکې پرې کړي . ( بحارالانوار  ٧٢\ ١٨٩)

ðخداى تعالى له مؤمن سره تر هغه مرسته کوي،چې له بل مؤمن سره د لاسنيوي په فکر کې وي او څوک چې په دنيا کې د خپل مؤمن ورور ستونزې هوارې کړي؛نو خداى به يې په آخرت کې اويا ستونزې هوارې کړي .( بحارالانوار : ٧١\٣١٢)

ðکله هم خپل کمزوري وروڼه ټيټ مه ګڼئ؛ځکه څوک چې مؤمن ورور ټيټ وګڼي؛نو خداى دى او هغه مؤمن په جنت کې نه راغونډوي؛خو دا چې توبه وکاږي .(مستدرک الوسايل ٩\١٠٤)

ðمؤمن پر مؤمن اوه واجب حقوق لري،چې دادي :

 ( ١) په درنه سترګه وروګوري . ( ٢) له زړه ورسره مينه ولري . (٣) په خپله شتمنۍ کې يې شريک وبولي . (٤) غيبت يې و نه کړي . (٥) چې ناروغ شو،پوښتنې ته يې ورشي. (٦) په جنازه کې يې ګډون وکړي. ( ٧) اوتر مړينې وروسته يې په ښو ياد کړي .(من لايحضرالفقيه ٤\٣٩٨)

 

پر مسلمان د مسلمان حقوق

ðمسلمان پر بل مسلمان ورور (٣٠) حقوق لري ،چې ددې حقوقو بار ترې نه سپه کېږي؛خو داچې پوره يې کړي ياوبښل شي (او هغه دادي ) : ( ١) له ښويېدنې يې تېر شي. (٢) پر اوښکو يې زړه وسوځوي . (٣) له ګناهونو يې تېرشي . (٤) عذر يې ومني . (٥) پرېنږدي،چې غيبت يې وکړي . (٦) تل ورته نصيحت کوي . (٧) پر بديو يې پرده اچوي .( ٨) خپله دوستي ورسره وساتي . (١٠) په ناروغۍ کې يې پوښتنه وکړي . ( ١١) پر مړي يې شاهدي ووايي . (١٢) بلنه يې ومني  (١٣) ډالۍ يې ومني . (١٤) ليدو ته يې ورشي . ( ١٥) له ډالۍ يې مننه وکړي . (١٦) مرسته يې ښه وګڼي . (١٧) مېرمن يې  وپالي . (١٨) اړتياوې يې لرې کړي . (١٩) غوښتنې يې ومني . (٢٠) د پرنجي پر وخت ورته روغتيا وغواړي . ( ٢١) چې بې لارې شو؛نو سمه لار وروښيي . (٢٢) د سلام ځواب يې ورکړي . (٢٣) ښه خبرې ورسره وکړي . (٢٤) له اخلاصه ورسره ښه وکړي . ( ٢٥) قسم يې ومني . (٢٦) د هغه دوست خپل دوست او دښمن يې خپل دښمن وګڼي . (٢٧) په ظلم او مظلوميت دواړو کې ورسره مرسته وکړي؛يعنې د ظلم  پر وخت ورسره مرسته وکړي،چې له ظلمه يې منع کړي او چې مظلوم شي؛ نو د حق په اخستوکې ورسره لاسنيوى وکړي .(٢٨) ځان ته يې نه پرېږدي او ذليل يې نه کړي . ( ٢٩) هر ښه،چې يې ښه ايسي؛نو هغه ته دې يې هم ښه وګڼي. (٣٠) او څه چې ځان ته نه خوښوي؛هغه ته دې يې هم نه خوښوي . (وسايل الشيعه  ١٢\ ٢١٢)

ðپر مسلمان واجب دي،چې کله پر سفر وځي؛نو خپل وروڼه دې خبر کړي او چې راستون شي،پر دوستانو يې لازم دي،چې کتو ته يې ورشي. ( الکافي  ٢\١٧٤)

 

حکمت

ðخداى تعالى زما د اهلبيتو پر ژبه د حکمت څراغونه جاري کړي دي . (مستدرک الوسايل  ٦ \ ١٩٧)

ðله خداى تعالى څخه وېره د حکمت بنسټ دى .(وسايل الشيعه: ١٥ \٢٢١)

ðزه د حکمت “ښار”يم او علي يې “ور”دى ؛نو که څوک غواړي،دې ښار ته راننوځي؛نو له “وره” دې يې راننوځي .(الامالي للصدوق: ٢٦٩)

ðابوذره! چې و دې ليدل،ورور دې دنيا ته شا کړې؛نو خبرې ته يې غوږ کېږده؛ځکه پر ژبه يې حکمت جاري کېږي . (الامالي للطوسي : ٥٣١مخ )

ðپوهان وپوښتئ،له حکيمانو سره راشه درشه ولرئ او له بېوزليو سره ملګرتوب کوئ .( مشکاة الانوار : ١٣٤)

ðحکمت د مؤمن ورک شوى (څيز) دى؛نو چېرې يې،چې ومومي؛نو اخلي يې .( بحارالانوار ٢\٩٩)

ðخلکو! حکمت، د حکمت نااهلو ته مه ورکوئ ،چې تېرى به مو پرې کړى وي او هم حکمت له اهلو يې مه منع کوئ،چې تېرى به مو پرې کړى وي . ( اعلام الدين : ٣٣٦)

ðپر هغه دې خوښي وي،مخکې تردې چې د بل پر عيبو او نيمګرتياوو پسې ګرځي،د ځان په سمون بوخت وي او خپله شتمني د ګناه په لار کې نه لګوي او پر کمزوريو او بېوزليو يې زړه سوځي او له فقهاوو او حکيمانو سره يې ملګرتوب وي .( بحارالانوار  ١\ ٢٠٥)

ðنرمي د حکمت بنسټ دى . پالونکيه! څوک چې زما د امت له چارو څه پر ذمه واخلي او نرمي ورسره وکړي؛نو ته (هم) ورسره نرمي وکړه او څوک چې ورسره سختي کوي؛نو ته هم ورسره سختي وکړه. (مستدرک الوسايل  ١١\٢٩٥)

ðحکمت زما د اهلبيتو پر ژبه جاري شوى دى .( من لايحضره الفقيه ١\ ٥٣٥)

 

حماقت

ðله احمق سره له واده ډډه وکړئ؛ځکه ناسته يې بلا ده  او اولادونه يې ضايع کېږي . ( الجعفريات : ٩٢مخ )

ðعياشي او  مزې چړچې کول ډېر ناوړه حماقت دى . ( الکافي ٨\٨١)

ðڅوک چې له چا سره ملګرتوب کوي؛نو د هغه پلار،ټبر او نبيره دې وپوښتي؛ځکه دا چار له رښتينې دوستۍ او واجبو حقوقو څخه دى او بې له دې ملګرتوب يې احمقانه دى . (مصادقة الاخوان : ٧٢مخ )

ðابوذره! هله به د ايمان حقيقت ته ورسې،چې ګرد خلک په ديني چارو کې احمق او په دنيوي چارو کې عاقل وويني. (بحارالانوار  ٧٤\٨٤)

 

څاروي

ðپسه غوره څاروى دى .( الکافي ٦\٥٤٤)

ðد شرابو بيه ،د ظلم مهر او د کوټه سپي (ناښکاري) بيه حرامه ده . (وسايل  ١٧\٩٤)

ðخداى تعالى له موږه د هرڅاروي او بوټي په باب ژمنه اخستې؛نو چا چې دا ژمنه ومنله؛نو پاک او سپېڅلى شو او چاچې و نه منله ؛نو تريو تريخ شو. ( وسايل  ٢٥\١٧٨)

ðد پسونو پنډ غالى پاک کړئ ،پر پوزو يې لاس راکاږئ ،چې جنتي څاروي دي .( المحاسن  ٢\٦٤١)

ðد روزۍ له لسو برخو،نهه يې په سوداګرۍ اوپاتې يوه يې په پسه کې ده.( وسايل ١٧\١٠ )

 

 

کورنۍ

ðکورنۍ جوړه کړه ځکه روزي زياتوي . ( قرب الاسناد : ١١مخ )

ðزړه سوى د شتمنۍ لاملېږي او په کورنۍ کې مينه مړينه تمبوي . (عوالي الاللي ٣\٢٨٢)

ðعلي! د کورنۍ د غم خوړل د جهنم د اور مانع ګرځي،له خالقه اطاعت له عذابه خونديتوب دى او د خداى په اطاعت کې صبر،جهاد کول دي، چې تر شپېتو کالو عبادته غوره دى او د مړينې غم د ګناهونو کفاره ده . (جامع الاخبار: ٩١مخ )

ðپه جنت کې داسې يو مقام دى،چې يوازې عادل واکمن، زړه سواند او زغمناک عيالوار وررسېداى شي .( الخصال  ١\٩٣)

ð بندګان ټول د خداى کورنۍ ده؛نو هغه پکې ورته ډېر غوره دى،چې کورنۍ ته يې ډېر ګټور وي .( قرب الاسناد : ٥٦مخ )

ðعلي! پوه شه،چې خداى تعالى بندګانو ته روزي ورکوي او (په اړه يې) غم تا ته کوم زيان نه لري او همداراز د بندګانو روزۍ ته هم کومه ګټه نه لري؛خو( د غم ) له امله يې تا ته ثواب درکوي او بېشکه تر ټولو ښه غم،د کورنۍ لپاره غم دى .( جامع الاخبار: ٩١مخ )

ðعلي! څوک چې د خپلې کورنۍ په چوپړ کې وي؛نو متعال خداى يې له واره د شهيدانو په شمېر کې ليکي او هره شپه و ورځ  ورته د زرو شهيدانو ثواب ورکوي او همداراز يې هر قدم ته د حج او عمرې ثواب وربښي او د بدن هر رګ  ته يې په جنت کې ښار ورکوي .(بحارالانوار  ١٠١\١٣٢)

ðعلي! د کورنۍ خدمتګار يا صديق دى يا شهيد دى او يا داسې سړی دى،چې خداى ورته د دنيا او اخرت خير غوښتى دى .(جامع الاخبار: ١٠٢مخ )

 

خبر

ðښه سړى،ښه خبر راوړي او بد سړى بد خبر راوړي . (مشکاة الانوار : ٣٢٤)

ðعلي! ته د خداى حجت،باب الله،خداى ته د رسېدو لار،ستر خبر، نېغه لار او غوره بېلګه يې . ( عيون اخبارالرضاء ٢\٦)

 

خداى

ðتر متعال خداى هېڅوک هم ډېر غيور نه دى . (بحار ٦\١١٠)

ðخدا ى پاک وايي :”ستريا” مې څادر دى؛نو څوک چې په کبر زما په “ستريا” کې راننوځي ،په اورکې يې سوځوم . (منية المريد : ٣٣٠ مخ )

ðتوحيد نيم دين دى . ( التوحيد : ٦٨مخ )

 

زړه وژونکي

ð ( ١) له کنجوسو سره ناسته ( ٢) له ( نامحرمو ) ښځوسره خبرې او (٣) له شتمنو سره ملګرتوب زړه وژني . ( مشکاة الانوار : ٢٠٥مخ )

 

تاوتريخوالى

ðد پاک خداى او استازي يې پر خداى ايمان او له بندګانو سره يې په نرمۍ چلن ډېر ښه ايسي او له خداى سره شرک او له بندګانوسره يې تاوتريخوالى د خداى د غوسې لامل ګرځي .( بحارالانوار  ٧٢\٥٤)

ðنرمي د ښه انګېرنې لامل دى او تاوتريخوالى د شومۍ لامل دى . (الکافي ٢\١١٩ )

ðکه بد اخلاقي او تاوتريخوالى په انساني بڼه پيدا شوى واى؛نو ناوړه څيز به ترې نه و . ( الکافي ٢\٣٢١)

ðنرمي هر څه ښکلي کوي او حماقت هر څه ناوړه انځوروي؛نو څوک چې د نرمۍ له نعمته برخمن وي؛نو د دنيا او اخرت ښه ورکړ شوي دي او څوک چې ترې بې برخې شي؛نو د دنيا او اخرت له ښو بې برخې شوى دى. ( الجعفريات : ١٤٩)

 

خوشحالي

ðڅوک چې د خداى د غوسې په بيه خلک خوشحالوي؛نو پاک خداى به يې ستايونکى پر ملامتګر واړوي .( الکافي ٢\٣٧٢)

ðله بندګانو نه د خداى د خوشحالۍ نښه داده،چې واکمن يې عادل او د نرخونو ارزاني وي او پر بندګانو د خداى د غوسې نښه دا ده،چې واکمن يې ظالم او نرخونه ګران وي .( الکافي ١\١٦٢)

ðله چاچې خداى راضي وي او څه ترې وغواړي؛نو تر مړينې مخکې  يې ورکوي .(وسايل ١\٥٤)

ðڅوک چې په لږې روزۍ خوشحاله وي؛نو پاک خداى ترې په لږو کړو راضي کېږي .( تحف العقول : ١٠٧)

ðڅوک چې د خداى په ورکړې روزي خوشحاله وي؛نو سترګې يې روښانېږي .( التمحيص : ٥٣)

ðڅوک چې د خداى د غوسې په بيه واکمن خوشحاله کړي(؛نو) د خداى له دينه وتلى دى . (عيون اخبارالرضا ٢\٦٩)

ðڅوک چې خلک د خداى د غوسې په بيه خوشحالوي(؛نو) پاک خداى هغه خلکو ته ورپرېږدي او څوک چې خدای د خلکو د غوسې په بيه خوشحالوي؛نو خداى هغه د خلکو له شره ژغوري . ( اعلام الدين : ٣٣٤)

 

ژغورنه

ðهر بنده،چې د لمانځه وخت مهم  بولي؛نو زه يې تضمينوم،چې  ساه يې په اسانه ووځي،تشويش او کړاوونه يې لرې کېږي او د جهنم له اوره به ژغورل کېږي . ( الامالي للمفيد: ١٣٦مخ )

ðد مؤمن ژغورنه د ژبې په ساتنه کې نغښتل شوې ده . ( الکافي ٢\١١٤)

ðکه غواړې په نېکمرغۍ کې ژوند وکړې او مړينه دې شهادت وي او د قيامت پر ورځ وژغورل شې او د قيامت په سوځنده دښته کې تر سيورې لاندې او د بې لارۍ پر ورځ سمه لارښوونه غواړې (؛نو) قرآن زده کړه؛ ځکه هغه د رحمن (خداى) کلام دى،له شيطانه خوندي دى او په تله کې د دروندوالي لامل دى .(مستدرک الوسايل ٤\٢٣٢)

ðکه څوک غواړي،د ژغورنې په بېړۍ کې سپور شي او پر ټينګه کړۍ منګولې ښخې کړي او د خداى په رسۍ پورې ځوړند شي؛نو تر ما وروسته دې “علي” ښه وګڼي له دښمنانو سره دې يې دښمني وکړي او د اولاد په لارښوونو پسې دې يې ولاړ شي . (د حاکم حسکاني شواهد التنزيل  ١\١٦٨)

ðابوذره!څوک چې چوپ شي؛نو ژغورل کېږي؛نو چوپ وسه او هڅه کوه،چې بېخي دروغ ونه وياست .( سايل ١٢\٢٥١)

ðحلال اوحرام بېخي څرګند دي؛خو د دوى تر منځ شبهات شته؛نو که چا ترې ډډه وکړه،له حرامو ژغورل کېږي؛خو که څوک په شبهاتو کې ورګډ شو؛نو په حرامو به ککړشوى وي .( الکافي ١\٦٧)

ðڅوک چې پوهه د پوهې له اهله واخلي او عمل پرې وکړي؛نو ژغورل کېږي او څوک چې په پوهې دنيوي ګټې تر لاسه کوي؛نو يوازې همدا برخمنېدل به يې وي .(تهذيب الاحکام٦\٣٢٨)

ðپه رښتيا، ژغورنه په دې کې ده،چې خداى و نه غولوئ چې ( ددې په غبرګون کې)هغه هم تاسې تېرباسي؛نو ځکه څوک چې خداى تېرباسي؛ نو خداى هم هغه تېرباسي او ايمان ترې اخلي او که پوه شي؛نو ځان تېرباسي . وپوښتل شو: خداى څنګه تېرباسي ؟ آنحضرت ورته وويل : د کوم کار،چې خداى ورته ويلي،بل ته يې کوي؛نو د ريا لپاره له خدايه ووېرېږئ؛ځکه ريا له خداى سره شرک دى او د قيامت پر ورځ ريا کار ته په څلورو نومونوغږ کوي : کافره! فاجره! وعده خلافه ! او زيانکاره! کړه وړه دې له منځه ولاړل او بدلې دې پوپناه شوې،نن درته بېخي د ژغورنې لار نشته ؛نو ثواب دې له هغه وغواړه، چې ريا دې ورته کوله . (تفسير العياشي ١\ ٢٨٣)

 

خندا

ðله ډېرې خندا ډډه وکړئ ؛ځکه زړه وژني . (ميزان الحکمه : ١٠٦٨٥ح)

ðخپل زړونه په لږې خندا او لږوخوړو ژوندي وساتئ. (محجة البيضاء: ٥/١٥٤)

ðډېره خندا د ورکاوي لامل دى . (مستدرک الوسايل ٨\٤١٧ )

ðله ډېرې خندا ډډه وکړئ ؛ځکه زړه وژني او د مخ رڼا له منځه وړي . (معاني الاخبار: ٣٣٥ )

ðڅوک چې په خندا ګناه کوي؛نو په ژړا به جهنم ته ننوځي.(ثواب الاعمال :٢٢٣ )

ðډېرې ټوکې؛پت،ډېره خندا؛ايمان او ډېر دروغ د انسان ارزښت له منځه وړي . ( الامالي للصدوق : ٢٧مخ )

ðخندا زړه وژني او د ښځو کړس کړس خندا د خدای ښه نه ايسي . (وسايل  ٧\٧٦)

ðپاک خداى ماته شپږ څيزونه ناوړه ګڼلي،چې زه دا څيزونه خپلو وصي اولادونو ته او (همداراز) لارويانو ته مکروه ګڼم : ( ١) په لمانځه کې چټي کارونه ( ٢) په روژه کې کوروالى ( ٣)تر صدقې وروسته منت ايښوونه  (٤) په جنابت کې جومات ته ننووتل ( ٥) په مستراح کې خبرې کول .( ٦) اوپه هديره کې خندا. (فضائل الاشهرالثلاثة : ٧٦مخ )

 

خوب

ðد  حضرت “سليمان” عليه السلام مور ،سليمان ته وويل : زويه ! ځان د شپې له ډېرخوبۍ وژغوره؛ځکه دا چار د قيامت پر ورځ د تش لاسۍ لامل دى . ( من لايحضره الفقيه ٣\٥٥٦)

ðځمکه درې څيزونو ته چغې وهي،چې په څېر يې نورو ته نه وهي : هغه وينه،چې تويول يې حرام دي او پر ځمکه تويه شي،د زناکار د غسل اوبه،چې پر ځمکه تويې شي او څوک چې تر لمرخاته مخکې پر ځمکه ويده شي .( الخصال  ١\١٤١)

ðپه لومړي ځل له خدايه په شپږوڅيزونوسرغړاوى وشو : (١) له دنيا سره مينه ( ٢) له رياست (واکمنۍ) سره مينه (٣) له خوړو سره مينه(٤) له خوب سره مينه ( ٥) له راحت کولو سره مينه ( ٦) او له ښځوسره مينه . ( الکافي ٢\٢٨٩)

ðخوب د مړينې ورور دى . ( بحارالانوار  ٧٣\١٨٩)

ðد خوب پرمهال د (( الهکم التکاثر)) دسورت لوستل د قبر له عذابه د ژغورنې لامل دى .( الکافي ٢\٦٢٣)

ðد ورځې په سر کې خوب د بد اخلاقۍ لامل دى . قيلوله (غرمه مهال) خوب يو نعمت دى . تر ماسپښين وروسته خوب حماقت دى او د ماښام او ماسخوتن ترمنځ خوب له روزۍ د بې برخې کېدو لامل دى . (الجعفريات : ١٥٧)

ðد روژه تي خوب عبادت او ساه راکښل يې د خداى تسبيح ده. (روضة الواعظين  ٢\٣٥٠ )

ðکه د کوچنيانو او کمزوريو خوب نه واى؛نو د ماسخوتن د نفل لمونځونو وخت مې د شپې تر درېمې ځنډاوه. (علل الشرايع ٢\٣٦٧)

ðعلي! پوهېږې چې ځمکه تر لمر خاته مخکې د عالم له خوبه سختې چغې وهي او خداى ته شکايت کوي ؟ (دعائم الاسلام ١ \١٥٣)

ðغوره مو “اولى النهى” دي . وپوښتل شو:څوک دي؟ و يې وويل : هغوى چې د رښتياوو خوبونه ويني،ښه خوى لري،خواړه ورکوي،په  لوړ غږ سلام اچوي، خلک د شپې ويده وي؛خو دى عبادت کوي . (مستدرک الوسايل ٦\٣٣٤)

ðله خوبه،چې راوېښ شوئ ؛نو تر هغه لوښي ته لاس مه وړئ،څو مو مينځلى نه وي ( يا مو اودس نه وي کړى ) . (دنهج البلاغې شرح  ٢٠ \٢٧)

ðکه په خوب کې شيطان تېر اېستئ؛نو چاته يې مه وايئ.( بحارالانوار  ٥٨\ ١٧٤)

 

خواري

ðڅوک چې زما مؤمن بنده سپک کړي؛نو له ماسره به يې په جګړې لاس پورې کړى وي .( الکافي ٢\٣٥١)

 ðډېر هوښيار هغه دى،چې له خلکو سره ښه  چلن وکړي او (خلکو ته درانه وګوري) او ډېر خوار هغه دى،چې خلک سپک وګڼي. (بحارالانوار  ٧٢\٥٢)

ðچاچې مؤمن ته د بېوزلۍ او تنګلاسۍ له امله يې ټيټ وکتل؛نو خداى به يې د جهنم له پله اور ته ورګوزار کړي . (عيون اخبارالرضا ٢\٧٠)

ðد چا په مخ کې،چې يو مؤمن سپک (او ورټل) شي او دى يې د ننګې له  وس سره سره دفاع و نه کړي؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ د ټولو بندګانو په مخ کې سپک او خوار کړي . ( دنهج البلاغې شرح \ ٦٩)

 

غوښتل

ðکه څوک غواړي ډېر غني وي؛نو څه چې د خداى په لاس کې وي، ورته ډېرهيلمن وي،نه هغه چې له نورو سره وي . (الکافي :٢\١٣٩)

ðد مسعود زويه ! هيلې دې لنډې کړه؛داسې چې ګهيځ ووايې،چې تر مازيګره به نه يم او مازيګر ووايې،چې تر سهاره به نه يم او هوډ وکړه،چې ځان له دنيا بېل کړې . (مستدرک الوسايل ٢\١٠٨)

ðکه څوک د آدم (ع) علم  او د “نوح” (ع) فهم ( او پوهېدنې ) ته ګوري ؛نو علي ته دې وګوري . ( بحارالانوار ٣٩\٣١)

ðخداى تعالى يو څيز ځان ته خوښوى؛خو خپلو مخلوقاتو ته  يې نه خوښوي؛د خپلو بندګانو ګدايي نه خوښوي؛خو له ځانه غوښتل خوښوې او د خداى دا ډېر ښه ايسي،چې بنده ترې يو څيز وغواړي ؛ نو له خدايه د هغه د فضل په غوښتنه كې حيا مه كوئ ان كه د څپلۍ پياړمه وي . ( الكافي  ۴\ ۲۰ )

ðله خلكو غوښتنه د انسان له خپلې ابرو او پت سره معامله ده؛ نو سړى بايد ځير شي،چې ابرو يې پاتې كېږي او که ځي . ( الجعفريات : ۵۶)

 

نېکي

ð “نېکي” عمر زياتوي او “دعا” قضا وقدر بدلوي . (بحارالانوار ٩٠\ ٢٩٦)

ðد نېکۍ درې زېرمې دادي :د رنځونو پټول،ناروغي او صدقه ورکول . ( بحار ٨٢/١٠٣)

ð يوازې “نېکي” د انسان عمر زياتولاى شي . ( بحار ٧٧ /١٦٦)

ðبشپړه نېکي هغه ده،چې څه په ښکاره کوې،په پټه يې هم وکړې . (کنز: ٥٢٦٥ح ) 

ð هغه دې خوښ وي ،چې خداى ورته په لاسونوکې د نېکۍ کونحيانې اېښي وي . ( کنز ١٥/٧٦٩)

ðپه نړۍ کى د خداى  د احکامو لاروي وکړه (متقي وسه) او په هرې بدۍ پسې نېکي وکړه،چې پرې له منځه ولاړه شي او د خداى له بندګانوسره ښه چلن وکړه . ( احمد-ترمذي– الدارمي)

ðهيڅ ډول نېکي سپکه مه ګڼئ؛نو که څه نه لرئ،چې مسلمان ورور ته يې ډالۍ کړئ ؛نو په خندا او ورين تندي ورسره مخامخ شه او چې غوښه دې پخوله؛نو اوبه پکې ډېرې کړه،چې ښوروا يې ګاونډي ته هم ډالۍ کړې . (ترمذي)

ðڅوک چې د نېکۍ وړتيا لري که نه لري،نېکي ورسره وکړه؛ځکه که وړتيا نه لري؛نو ته خو د کرامت او لورنې وړتيا لرې .(وسايل ١٦\٢٩٥)

ðنېکي د ناوړو پېښو د مخنيوۍ لاملېږي او صدقه د پالونکي غوسه سړوي .( قرب الاسناد : ٣٧مخ )

ðد ښه کار پاى ته رسول تر پيلېدو يې ډېر مهم دي . (مستدرک الوسايل  ٧\٢٣٧)

خواړه

 ðپه مړښت او د جنابت په حال کې خوراک د برګي (پيس) د ناروغۍ لاملېږي .( روضة الواعظين٢\ ٣٠٨- الامالي للصدوق : ٥٤٣)

ðپه کيڼ لاس خوراک جفا ده .( الجعفريات : ١٦٢)

ðد عدسو(خوراک) مبارک او سپېڅلي خواړه دي،چې زړه نرموي، اوښکې زياتوي او خداى اويا پېغمبرانو ته مبارک کړي،چې وروستى  يې “عيسی دمريمې” زوى و .( الدعوات : ٤٨\)

ðڅوک چې خاورې وخوري او مړ شي؛نو “ځان وژنى” به وي .( الکافي ٦\٢٦٦)

ðڅوک چې “هوږه” او “پياز” وخورى؛نو زموږ جومات ته دې نه رانږدېږي .( عوالي الاللي  ١\ ١٠٣)

ðڅوک چې “انار” وخوري (؛نو) زړه يې نوراني کېږي او تر څلوېښتو ورځو پورې ترې شيطان لرې کېږي .( سايل ٢٥\١٥٣)

ðڅوک چې بې له بلنې خواړه وخوري؛نو خواړه يې په ګېډه کې د اور په لمبه اوړي او کومو خوړو ته چې بلل شوي ياست،بې له اجازې يې نورو ته مه ورکوئ .( دعائم الاسلام  ٢\١٠٨ )

 ðخواړه مو چې وخوړل؛نو خپلې ګوتې وڅټئ؛ځکه برکت پکې دى . (مستدرک الوسائل  ١٦\٢٨٦)

ðڅوک چې هره ورځ (٢١) دانې مميز وخوري؛نو بې له مرګونې ناروغۍ؛په نورو به اخته نشي. (دعائم الاسلام ٢\١٤٨)

ðڅوک چې غټه مړۍ په خوله کوي؛نو پاک خداى به يې په همدومره غټې ناروغۍ اخته کړي . د “غوا” غوښه د ناروغۍ لامل دى؛خو غوړي او شيدې يې دوا ده . (عائم الاسلام  ٢\ ١١١)

 ðڅوک چې د خوب پر مهال اوه کجورې وخوري؛ نو د کولنجو (بادو) له ناروغۍ به خوندي وي او د ګېډې چينجي يې له منځه وړي . (مستدرک الوسايل  ١٦ \٤٦١)

ðڅوک چې کومه مېوه وخوري او”بسم الله” ووايي؛نو زيان نه ور رسوي . ( مستدرک الوسايل  ١٦  \ ٤٦١)

ðڅوک چې خاوره وخوري ؛نو ملعون دى . ( بحارالانوار  ٥٧ \ ١٥٣)

ðغوښه وخورئ؛ځکه په بدن کې د غوښې د راټوکېدو لامل دى؛څوک چې څلوېښت ورځې غوښه و نه خوري؛نو بدخويه کېږي او څوک چې “وازده” يا “لم” وخوري؛نو په هومره ناروغۍ اخته کېږ ي . ( المحاسن  ٢\ ٤٦٥)

ðڅوک چې له “عدسو” (شاکلول) سره د “کدو حلوا” وخوري؛نو د خداى د يادولو پر مهال يې زړه نرمېږي او د کوراوالي قوت يې زياتېږي.  

ðڅوک چې سود وخوري ؛نو پاک خداى يې په هماغه اندازه په ګېډه کې اور ننباسي او څوک چې له دې ماله څه لاس ته راوړي؛نو خداى يې يو عمل  هم نه قبلوي او تر هغه چې ددې مال يو ذره هم ورسره وي؛ نو خداى او پرښتې پرې لعنت وايي . ( ثواب الاعمال : ٢٨٥)

ð خواړه ګډ وخورئ او مه خپرېږئ ؛ځکه په ګډ خوراک کې برکت دى . (بحار ٦٢/٢٦١ )

ð له ډېرخورۍ ډډه وکړئ .( الحياة ٤/٢٠٦)

ðچې وږى شوې (؛نو) خواړه وخوره  او لا،چې موړ شوى نه يې؛نو پرې يې ږده . ( بحار ٦٢/٢٩٠)

 

لمر

ðکومې اوبه،چې په لمر تودې شوې وي،نه پرې اودس وکړئ او نه غسل او نه يې مينځلو ته وکاروئ ؛ځکه د برګي (پيس) د ناروغۍ لاملېږي . ( الکافي ٣\١٥)

ðلمر څلور ځانګړنې لري : ( ١) رنګ اړوي ( ٢) بوى بدوي .(٣) جامې خرابوي او ( ٤) دناروغۍ لاملېږي . (وسايل ١٢\ ١١٠ )           

 

خطاطي

ðښه ليک،د روزيو له کونجيانو دى . ( بحارالانوار  ٧٣\٣١٨)

ðمشواڼۍ دې ډکه کړه،قلم کوږ نيسه،”ب” اوږده ليکه ، د سين غاښونه بېل ليکه، د ميم منځ مه ډکوه،”الله” په ښه ليک کښه او “رحمن” اوږد او “رحيم” په ظرافت وليکه او قلم دې پر کيڼ غوږ کېده، چې ورک يې نه کړې  .( منية المريد: ٣٤٩)

 

په ژوند کې بسياېنه

ðپر هغه دې خوشحالي وي،چې مسلمان وي او روزي يې هم کافي وي . ( الکافي  ٢\١٤٠)

 

خپلوان

ðکه کوم خپلوان دې اړ وي ؛نو د صدقې ورکړه بل چا ته روا نه ده . ( من لايحضره الفقيه ٤\٣٦٨)

ðپه جنت کې يو مقام دى،چې يوازې عادل واکمن،پر خپلوانو زړه سواند او زغمناک عيالوار ورته رسېداى شي . (الحضال ١\ ٩٣)

ðزړه سوى د لوراند خداى له لوري يوه څانګه ده؛نو څوک چې پر خپلوانو زړه وسوځوي؛نو خداى ورسره اړيکه ټينګوي او څوک چې يې و نه سوځوي؛خداى هم ورسره اړيکه پرېکوي . (کشف الغمه ١\ ٥٥٣)

ðله خپلوانو سره اړيکې ټينګې کړئ،که څه هم په يو ځل سلام اچولو وي .(تحف العقول : مخ ٥٧)

ð له خپلوانوسره دې “ليده کاته” کوه،که څه هم يو کال مسافرت ته اړشوې . (بحار ٧٤/١٠٣)

ð خپلوانو ته مو پام وسه،خپلوانو ته مو پام وسه . ( کنز: ٦٩١٣ ح )

ð څوک چې له خپلوانوسره اړيکې پرې کړي؛نوجنت ته نشي تلاى . (عوالى اللئالى ١/ ٢٧٠ )

 

خياطي – ګنډل

ðخياطي مؤمنې ته ښه بوختيا ده . ( الجعفريات : ٩٨مخ )

ðخياطي صالح ښځې ته ښه تفريح ده . ( وسايل الشيعه ١٧ \ ٢٣٧)

 ðخياطي د نېکانو نارينه وو کار دی .( مستدرک الوسايل ١٣\٢٢٦)

 

خيانت

ðامانت ساتنه روزي زياتوي او خيانت د بېوزلۍ لاملېږي . (الکافي  ٥\١٣٣)

ðدسيسه،چل او خيانت انسان جهنم ته راکاږي .(مستدرک الوسايل ٩\٨٠)

ðخاين او خاينې ته د شاهدۍ ورکولو اجازه نشته .(مستدرک  ٧١\٤٣٤)

ðله مسلمان سره خيانتګر له موږه نه دى .(ثواب الاعمال : ٢٨٦مخ )

ðڅلور څيزونه دي،چې که کوم کور ته لار پيدا کړي؛نو ويجاړوي يې او برکت يې له منځه وړي : ( ١) خيانت ( ٢) غلا(٣) شرابخوري .( ٤)  زنا. ( الامالي للطوسي : ٤٣٩)

ðکه څوک په کومه معامله کې له خيانته خبر وي؛نو په معامله کې د خيانتکار په څېر دى او څوک چې حق ته په رسېدو کې د مسلمان ورور مخه ونيسي؛نو روزي پرې حرامېږي؛خو هله چې توبه وباسي . (من لايحضره الفقيه ٤\١٥)

ðابوذره! څه چې په غونډه کې وينې او واورې ؛نو دا درسره امانت دى او د مسلمان ورور د راز رابرسېرول ورسره خيانت دى .( وسايل الشيعه : ١٢\ ٣٠٧)

ðپه پوهه او علم کې د يو بل “خيرغواړي” او ناصح وسئ؛ ځکه په علم کې خيانت،په مال کې تر خيانت سخت عذاب لري او د قيامت پر ورځ يې خداى په اړه تاسې پوښتي . (الامالي للطوسي : ١٢٦)

ð خپل باوري اعتمادي هېڅکله يې مه تورنوه او پر يو ځل ازمېيل شوي خاين هم هېڅکله باور مه کوه .( قرب الاسناد: ٤١مخ )

ðڅوک چې د خپل مؤمن ورور د اړتيا د لرې کولو لپاره هڅه کوى؛خو د هغه “خيرغواړى” او ناصح نه وي؛نو په حقيقت کې د خداې او د هغه له استازي سره يې خيانت کړی .( الکافي  ٢\ ٣٦٢)

ðڅوک چې د خپل ګاونډي ان يوه لوېشت ځمکه لاندې کړي؛نو پاک خداى به د ځمکې د کړۍ هومره غاړه کۍ ورپرغاړې کړي . (الامالي للصدوق : ٤٢٧)

ðکه څوک په دنيا کې کوم امانت خيانت کړي او تر مړينې وړاندې يې بېرته ورنه کړي؛نو بې له اسلامه به پر بل دين مړ شوى وي او خداى به په غوسه ورسره وويني . ( من لايحضره الفقيه ٤\ ١٥)

ðڅوک چې امانت ته سپک ګوري؛داسې چې د بېرته ورسپارلو تر وخته يې ولګوي ؛نو له موږه نه دى او همداراز څوک چې د مسلمان په مال او کورنۍ کې خيانت وکړي؛نو له موږه نه دى .( الاختصاص : ٢٤٨)

ð که چا درسره خيانت(هم) کړى وي ،ته يې ورسره مه کوه . (وسائل ١٢/ ٢٠٢)

ðڅوک چې د نورو په امانت کې خيانت کوي له ما ځينې نه دى . ( بحار ٧٥/١٧٢)

ðدا خيانت دى،چې ملګرى دې تا په هر خبره کې رښتونى وګڼې؛خو ته ورته دروغ وايې . (هماغه)

 

خير

ðڅوک چې انګېري،چې “خير و شر” بې د خداى له ارادې کېږي؛نو د پاک خداى واکمني به يې تر پوښتنې لاندې نيولې وي .(الکافي ٢\ ١٤٢)

ðد “زړه سوي” بدله تر ټولو ښو کارونو ډېر ژر رسي.(الکافي ٢\١٥٢)

ðد ښو چارو ګومارونکى؛لکه پخپله کوونکى داسې دى . (الکافي ٤\٢٧)

ðعلي!خبره يوازې په عمل ارزښت مومي او همداراز ظاهر په باطن، شتمني په بخشش،رښتيا ويل په وفا،فقه په پرهېزګارۍ،صدقه په نيت،ژوند په روغتيا او هېواد په امنيت او ښادۍ ارزښت مومي . (من لايحضره الفقيه ٤\ ٣٦٨)

ð ډېرغوره هغه دى،چې تر ټولو مخکې جومات ته ننوځي او تر ټولو وروسته راووځي .( مستدرک الوسايل٣\٣٦٢)

ð ډېر غوره هغه دى،چې خلک ترې ګټور شي او ډېر ناوړه هغه دى،چې خلک وځوروي او هغه تردې لا ډېر ناوړه دى،چې خلک يې د شر له امله احترام کوي او تر دې هغه خورا ناوړه دى،چې خپل دين د بل په دنيا وپلوري . (مستدرک الوسايل ١٢\ ٧٧)

ðبدعت ډېر ناوړه چار دى او هغه ډېر غوره چار ده،چې د خداى د رضا لپاره وشي . ( بحارالانوار  ١٠ \ ١١٠ )

ðډېره غوره چار،پرېکنده هوډ کول دى .( بحار  ٢١\٢١٠ )

ðڅوک چې (قرآن) تر نورو ډېر سم  لوستاى شي؛نو د جماعت امام دې شي او په حاضرو کې دې ډېر غوره اذان ووايي .(من لايحضره الفقيه ١\ ٢٨٥)

 

شتمني

ðد کومې شتمنۍ،چې زکات ور نه کړل شي؛نو ملعونه ده . (الکافي ٢\٢٥٨)

ðد خپلې شتمنۍ سمونه د مړانې يوه نښه ده .(من لايحضره الفقيه٣\ ١٦٦)

ðد مړي له شتمنۍ يې لومړى کفن وپېرئ بيا يې پورونه ورکړئ، ورپسې يې وصيت عملي کړئ او بياچې څه پاتې شول؛نو هغه يې ميراث شو .( تهذيب الاحکام ٦\١٨٨)

ðڅوک چې په ناحقه د مؤمن شتمني غصب او لاندې کړي او ځان ته يې ځانګړې کړي؛نو پاک خداى ترې مخ اړوي او له کړنو ان  په ښو چارو يې هم غوسه وي او په کړنليک کې يې ورته نه ليکي؛خو هله چې توبه وکاږي او غصب کړاى شوې شتمني بېرته خپل خاوند ته وسپاري . (ثواب الاعمال ٢٧٣)

ðعلي ! د مؤمنينو مشر دى او شتمني د منافقينو مشره ده . (الامالي للطوسي : ٣٥٥)

ðشتمني زما د امت فتنه ده . ( روضة الواعظين ٢\ ٤٢٩)

ðد آدم اولاد زړېږي؛خو دا خويو نه پکې ځوانېږي : ( ١) د شتمنۍ حرص (٢) او د عمر حرص .( روضة الواعظين ٢\ ٤٢٧)

ðڅوک چې ددې باک نه لري،چې خپله شتمني له کومه لاس ته راوړي ؛ نو خداى هم پروا نه لري،چې له کومه ځايه يې جهنم ته ننباسي .( عدة الداعي : ٨٢مخ )

ð شتمني د الهي تقوا د تر لاسي غوره مرستندوى ده .تحف العقول :٤٩)

ðمال او شتمني زما د امت د ازمېښت وسيله ده .(ترمذي)

ðله شتمنۍ او مقام سره مينه،د انسان دين ويجاړوي . (ترمذي– الدارمي)

ðد وسايلو ډېرښت شتمني نه ده؛بلکې اصلي شتمني د زړه غنا ده . (صحيح بخاري )

ðبې عدالته واکمن ،د شتمنۍ د حق نه ورکوونکى شتمن او کبرجن بېوزلى، لومړني دوزخ ته ننووتونکي دي . (عيون اخبارالرضا ٢\٢٨)

ðتر ځان وروسته مې امت ته د درې څيزونو په اړه وېرېږم : دا چې قرآن څنګه چې دى،بې له هغه يې تاويل کړي،عالم په “خوګانو” لټولو پسې شي او داچې مال يې ډېر شي،سرغړونه او بې پروايي وکړي او ددې کړنو چاره داده : د قرآن په اړه يې پر “محکماتو” عمل وکړئ او پر “متشابهاتو” يې ايمان راوړئ . د عالم راستنېدو ته سترګې پر لار وسئ او په خوګانو پسې يې مه ګرځئ او همداراز د شتمنۍ لپاره يې شکر وباسئ او لازم حق يې پوره کړئ . (الخصال  ١\١٦٤)

ðخداى ته غوره کړنې دادي : ( ١) هغه ايمان،چې شک پکې نه وي . (٢) ناستومان جهاد او مبارزه .( ٣) او حج،چې سوچه (د خداى لپاره) وشي او هغوى چې لومړى جنت ته ننوځي دادي :(١) شهيد( ٢) هغه مريى ، چې د خداى ښه عبادت کوي او د خپل پالندوى ناصح او خيرغواړى وي .

 

درمل

ðدرد او درمل درې څيزه دي .دردونه دا دي :”وينه”،”صفرا” او “بلغم”. حجامت د وينې درمل دى . حمام کول د صفرا او پلي تګ د بلغمو درمل دى . ( من لايحضره الفقيه  ١\ ١٢٦)

ðد دردونو علاج وکړئ؛ځکه د درد رالېږونکي درمل هم رالېږلي دي . (الدعوات : ١٨٠ مخ )

 

پوهه

ðپر هر مسلمان د علم زده کړه فرض ده او پوه شئ،چې د علم زده کوونکى د خداى تعالى ښه ايسي . ( الکافي ١\ ٣٠ )

ðڅوک چې د علم د زده کړې لپاره لار ووهي؛نو پاک خداى ورته د جنت لار هواروي او پرښتې يې تر پښو لاندې په خوشحالۍ خپل وزرونه غوړوي او څه چې په اسمان او ځمکه کې دي، ان “کب” ورته په سمندر کې بښنه غواړي او عالم پر عابد دومره غوره دى؛لکه مياشت،چې يې د “بدر” (څوارلسمې)په شپه پر ستورو لري او عالمان د پېغمبرانو وارثان دي .(الامالي للصدوق : ٦٠ مخ )

ðحواريونو حضرت عيسى ( ع) ته وويل : روح الله! له چاسره ناسته پاسته وکړو؟حضرت ورته وويل : له هغه سره،چې ليدل يې خداى دريادوي ،خبرې يې ستاسې کړه وړه زيات کړي او کړنې يې تاسې آخرت ته ورمات کړي . ( الکافي  ١\ ٣٩ )

ðدوه وږي دي،چې هېڅکله نه مړېږي 🙁 ١) د دنيا غوښتونکى ( ٢) او د علم زده کوونکى؛نو څوک چې له دنيا د حلالو هومره ګټه واخلي؛نو روغ رمټ پاتې کېږي او څوک چې بې له دې وخوري؛نو ورکېږي؛خو هله چې توبه وکاږى يا حرام ورته بېرته وګرځوي او څوک چې له عالمه،علم زده کړي او عمل پرې وکړي؛نو ژغورل کېږي او څوک چې تر لاسه کړې پوهه  د دنيا لاس ته راوړو وسيله کړي؛نو له علمه يې برخه همدا ده .

ðعلم د ايمان ښه وزير دى . زغم د علم ښه وزير دى . ملګرتوب د زغم ښه وزير دى  او صبر د ملګرتوب ښه وزير دى . ( الجعفريات : ٨٨مخ )

ðخداى ته ډېره پوهه تر ډېر عبادته غوره ده . (وسايل الشيعه٢٠\ ٣٥٧)

ðپوه په ناپوهانو کې داسې دى؛لکه په مړيو کې ژوندى . (الامالي للمفيد : ٢٨ مخ  )

ðپه مؤمن کې د غوړه مالۍ او کينې خوى يوازې د علم د زده کړې پر مهال وي .( مستدرک الوسايل ٩\ ٨١)

ðپينځه څيزونه دي،چې سپمول او ستنول يې روا نه دي : اوبه، مالګه، امنيت، اور او علم  . ( الجعفريات : ١٧٢)

ðڅوک چې د عالم کتنې او ليدو ته ورشي؛لکه چې زما ليدو ته راغلى او څوک چې له عالم سره روغبړ وکړي؛لکه چې له ماسره يې روغبړ کړى او څوک چې له عالم سره ناسته وکړي،د هغه په څېر دى،چې له ماسره يې ناسته کړې وي او څوک چې په دنيا کې زما ملګرى وي؛نو د قيامت پر ورځ به هم زما ملګرى وي او څوک چې د علم د زده کړې پر مهال مړ شي؛ نو شهيد حسابېږي .(مستدرک الوسايل ١٧ \٣٠٠ )

ðپه مينه د عالم مخ ته کتل عبادت دى . ( الجعفريات : ١٩٤)

ðد علم زده کړى نه مري؛خو داچې له خپلې هڅې برخمنېږي . (بحارالانوار  ١\ ١٧٧ )

ðپر قرآن پوهېدنه او د تاويل پېژندنه او تفسير يې غوره نعمت دى، چې خداى يې کوم بنده ته ورکوي . ( بحار ١\ ٢١٧)

ðعلم زده کړئ،که څه هم په “چين” (لرې واټن کې هم) وي . (روضة الواعظين  ١\ ١١)

ðعالم او زده کړى،په ثواب کې شريک دي،عالم دوه ثوابه او زده کړى يو ثواب وړي او بې له دې دوو کارونو،په بل کار کې خير نشته . (بحار ١\ ١٧٣)

ðعالمان دوه ډلې دي : هغه عالم،چې له خپل علمه ګټه اخلي او ژغورل کېږي او هغه عالم،چې له خپل علمه ګټه نه اخلي او ورکېږي . دوزخيان د هغه عالم له بدبويه تنګېږي،چې پر خپل علم يې عمل نه دى کړى . په دوزخيانو کې به هغه ډېر پښېمانه وي،چې يو څوک يې د خداى لوري ته رابللى وي او د هغه بلنه يې منلې وي او د خداى (د احکامو) لاروي يې کړې وي او خداى جنتي کړى هم وي ؛خو بلونکى د بې عملۍ او د ځاني غوښتنو او اوږدو هيلو له امله دوزخ ته ولاړ شي؛ځکه د ځاني غوښتنو لاروي،انسان له حقه منع کوي او اوږدې هيلې د اخرت د هېرولو لاملېږي . ( الکافي ١\ ٤٤)

ðپاک خداى له علمي مباحثه کوونکيو سره يو ساعت ناسته تر هغو زرو شپو لمونځ کولو ښه ګڼي،چې زر رکعته لمونځ پکې وکړي او همداراز تر زر غزاګانو او د ټول قرآن تر لوستو.(بحار ١\٢٠٣)

ðپه علمي مباحثو کې يو ساعت ناسته درته تر هغه يوکال عبادته غوره ده، چې د ورځې روژه يې او د شپې لمونځونه کوي او د عالم مخ ته کتل درته د زر بندګانو تر ازادولو غوره دي . ( بحار ١\٢٠٣)

ðکه مؤمن مړ شي او يوازې يو مخ (پاڼه) علمي مطلب ترې پاتې شي؛ نو په قيامت کې به دغه مخ د هغه او اور ترمنځ مانع شي او پاک خداى به د هغه د هر ټکي په مقابل کې يو ښار ورکړي،چې ددې دنيا اوه ځل هومره به وي او مؤمن،چې يو ساعت د عالم تر څنګ کېني؛نو خداى تعالى غږ کوي : داچې زما د دوست ترڅنګ کېناستې؛نو پر عزت او جلال مې قسم،چې په جنت کې به دې د هغه ملګرى کړم او ( په دې اړه) هيڅ باک نه لرم . ( الامالي للصدوق : ٣٨)

ðد خداى يو ساعت علمي مباحثه تر لسو زرو کالو عباداتو ښه ايسي او د قيامت پر ورځ دې د علم پر زده کړي خوشحالي وي .(مستدرک الوسايل ١٧ \٣٠٠ )

ðڅوک چې له خپله کوره ووځي او د علم په يو باب پسې وي؛نو پاک خداى يې،هر قدم ته د يو پېغمبر ثواب ليکي او هر ټکى،چې اوري يا ليکي،په جنت کې ورته يو ښار ورکوي . د علم زده کړى پر خداى،پرښتو او پېغمبرانو ګران وي . علم يوازې د نېکمرغو ښه ايسي؛نو د قيامت پر ورځ دې دعلم د زده کړې پر حال خوشحالي وي . پاک خداى د هغه هر قدم ته د “بدر د غزا” د شهيدانو ثواب ليکي او خداى ته ګران دى او د چاچې علم ښه ايسي؛نو جنت ورته واجبېږي او ګهيځ او ماښام د خداى په رضا کې ډوب وي او له دنيا تر هغه نه ځي،چې له “کوثر حوض” يې څښلې وي او له جنتي مېوو وخوري او په جنت کې به له حضرت خضر(ع) سره وي او دا ټولې (ځانګړنې) ددې آيت له امله دي،چې : ((خداى مؤمنانو ته غوراوى ورکوي او هغوى ته چې علم ورکړل شوى، د درجوخاوندان دي )) . ( بحارالانوار  ١\١٧٨)

ðچاچې علم زده کړ او بيا يې پرې خبرې و نه کړې،د هغه په څېر دى، چې زېرمې کوي اوڅه ترې نه بښي . (دسيوطي جامع الصغير)

ðپه کوچنيوالي کې د علم زده کړه؛لکه پر ډبره کښل دي او څوک چې په زړښت کې علم زده کوي؛لکه  پر اوبو يې،چې ليکي . ( دسيوطي جامع الصغير )

ð”زه” د علم ښار يم او “علي” يې “ور” دى ؛نو څوک چې علم غواړي؛ نو له وره دې ورننوځي .( کنز ٣٢٨٩٠ح )

ðعلم او پوهه زده کړئ،که څه هم چين ته په تګ اړ  شئ . (محجة ١/ ٢١ )

ð د علم  زده کړى ،د خداى دوست دى . ( جامع الاخبار ١١٠ / ١٩٥ )

ð له زانګو  تر قبره علم زده کړه . ( تفسيرالقمي ٢/ ٤٠١ )

ð په ناپوهانوکې د پوهې زده کړى؛لکه په مړيوکې ژوندى دى . (بحار ١/١٧٢)

ð د پوهانو د سپرلۍ وسيله يې د شهيدانو له وينې سره وسنجوله او پرې درنه شوه . ( کنز ٢ / ١٦)

ðله چاچې دې کوم ټکى زده کړ؛نو بنده يې شوې .(امالي الآلي١ /  ٢٩٢)

ð په علمي غونډوکې ګډون  عبادت دى .( العلم والحکمة : ٨٠٩ح )

ð څوک چې علم زده کړي او عمل پرې وکړي؛نوخداى به هغه څه وروښيي ،چې پرې نه پوهېږي .( کنز ١٠ / ١٣٢ )

ðڅوک چې زده کړې ته يوساعت خواري ونه زغمي؛نو تل به د ناپوهۍ په خوارۍ کې پاتې شي .( بحار ١/ ٧٧)

ðد علم زده کوونکى د خداى په فضل کې رانغښتل شوى دى .( عوالى اللآلي ١/ ٢٩٢) 

ðڅوک چې د علم په زده کړې پسې وي؛نوجنت به يې په لټه کې وي . (ميزان الحکمه : ١٣٧٨٤ح)

ðد قيامت پر  ورځ هره پوهه خپل خاوند ته وبال وي؛خو داچې عمل يې پرې کړى وي .( ميزان الحکمه: ١٤٠٢٢ح )

ðهغه پوهه،چې ونه کارول شي،د داسې خزانې په څېر ده،چې لګښت ترې ونشي. ( ميزان : ١٤٠٠٩ح )

ðلوى خداى چې عالم ته پوهه ورپېرزو کړي؛نو ژمنه يې ترې اخستې، چې نه به يې  پټوي . (پورته)

 

ښوونکى

ðپه حقيقت کې زه ښوونکى رالېږل شوى يم . ( کنز٢٨٨٧٣ح )

ð دخپلو ښوونکيو پر وړاندې عاجز او متواضع وسئ . (المعجم الاوسط  ١٦/ ٢٠٠ / ٦١٨٦ )

ð د خپل ښوونکي درناوى وکړئ . ( کنز ١٠ /٢٥٠ )

 

د عالم مړينه

ðدعالم مړينه نه جبرانېدونکى مصيبت او نه ډکېدونکې تشه ده. (منتخب ميزان :  ٤٤ ٧٧ح )

 

عالمان

ðپه ځمکه کې عالمان د اسمان د ستوريو په  څېر دي،چې [خلک ] پرې په وچو او د سمندر په تپو تيارو کې لار مومي،چې ستوري پرېووځي ؛ ډېر لارموندونکي ورک شي  . ( دامام احمد حنبل مسند)

 

ورمندون- قضاوت ( منځګړتوب)

ðدوو تنو،چې درنه منځګړتوب او قضاوت وغوښت؛نو تر هغه چې دې د دواړو خبرې نه وي اورېدلي،ترمنځ يې پرېکړه مه کوه؛ځکه که د دواړو خبرو ته غوږ ونيو؛نو حکم درته څرګندېږي . (من لايحضرالفقيه : ٣\١٣)                     

ðڅوک چې د ورځې ( ٢٥) ځل مؤمنو نارينه وو او ښځمنو ته دعا وکړي (؛نو) خداى يې زړه له کينې خالي کوي او د نېکانو په ډله کې يې ليکي،ان شاءالله. (الجعفريات : ٢٢٣مخ )

ðد هغه پر حال دې خوښي وي،چې ښه خوى ولري او خټه يې پاکه وي . دننه يې سمه او دباندې يې (هم) ښکلى وي؛تر خپل لګښت زيات (څيزونه د خداى په لار کې لګوي) له زياتو خبرو ډډه کوي او له خلکوسره په انصاف چلن کوي . ( الکافي  ٢\١٤٤)

ðد هغه پر حال دې خوښي وي،چې د قيامت پر ورځ يې تر هرې ګناه لاندې يو “استغفرالله” وي .( بحارالانوار ٥\٣٢٩)

ð په تاسې کې هوښيار غوره دي . رسول الله (ص) وپوښتل شو :دا څوک دي ؟ ورته يې وويل : د ښه خوى خاوندان،زغمناک،له مورو پلارسره نېک چلي،ګاونډيانو او پلارمړيو ته يې پام وي،خواړه ورکوي،په ډاګه سلام اچوي او د شپې،چې خلک ويده وي،لمونځ کوي ( وسايل الشيعه : ١٥\١٩١)

 

نېک

ðڅوک چې صالح دوستان او نېک اولاد ولري (؛نو) له نېکمرغيو به يې وي . ( مستدرک الوسايل ٩ \ ١٥٥)

ðڅوک چې د خپل موروپلار تر مړينې وروسته،له هغوى سره نېکي وکړي؛نو په قيامت کې به د “نېکانو مشر” وي . (پورته منبع ١٣\٤١٤)

ðله خدايه ډارن نېک،ډېرعاقل دى او بې غمه ګناهګار،ډېر ناپوه دى . ( بحارالانوار : ١\١٣١)

 

وصيت

ðڅوک چې بې وصيته ومري(؛نو بې ايمانه او) په جاهلي مرګ به مړشوى وي .( المجموع للنوي ١٥\٣٦٦)

ðمسلمان چې څه لري،حق نه لري،چې دوه شپې صبر وکړي او ويده شي او خپل وصيت ونه ليکي . ( بحراي  ٨\١٢٦)

 

اودس

ðتازه اودس کوه،چې له “پل صراطه” د ورېځې په څېر تېر شې .(بحار ٧٦/٤)

ðدرې کړنې د ګناهونو د بښنې لامل دي : ( ١) په ځيرتيا پوره اودس کول ( ٢) د جماعت لمانځه ته تلل او ( ٣) تر لمانځه وروسته،بل لمانځه ته انتظار اېستل . ( مستدرک الوسايل ١\ ٣٥٢)

ðاودس تر اوداسه د مخه ګناهونه له منځه وړي . ( فقه القرآن  ١\ ٤٢)

ðڅوک چې ښه او پوره اودس وکړي؛نو وړ دى،چې ستره الهي خوښه يې په برخه شي . ( مستدرک الوسايل  ١\ ٣٥)

ðپه قيامت کې به زما امت د نورو امتونو په منځ کې د اودس د نښو له امله سپين مخى راپاڅي . ( دعائم السلام  ١\ ١٠٠ )

ðاودس د ايمان يوه برخه او مسواک د اوداسه يوه برخه ده .( مستدرک الوسايل  ١\ ٣٦٤)

ðپاک خداى وايي :د چاچې په يوه حدث (ناپاکۍ) اودس مات شي او و يې نه کړي ؛نو له ماسره يې جفا کړې ده او تر اودس ماتي وروسته، چې چا اودس وکړ او دوه رکعته لمونځ يې و نه کړ ؛نو له ماسره به يې جفا کړې وي؛خو څوک چې تر اودس ماتي وروسته اودس او دوه رکعته لمونځ وکړي او دعا وکړي او زه يې ديني يا دنيوي دعا قبوله نه کړم ؛ نو ما به ورسره جفا کړي وي،حال داچې زه جفاکار خداى نه يم . (ارشادالقلوب  ١\ ٦٠ )

 

واکمني

ðڅوک چې درې ځانګړنې ولري، د واکمنۍ وړ دى : ( ١) داسې تقوا،چې له ګناه يې منع کړي.( ٢) داسې زغم ،چې له غوسې يې وژغوري .(٣) او د مهربان پلار په څېر له خلکو سره چلن ولري . (الکافي  ١\٤٠٧)

 

وليمه

ðوليمه په پينځو ځايو کې ده : ( ١) واده ( ٢) د اولاد زوکړه  (٣) د زوى سنتول (٤) د کور اخستل او ( ٥) له مکې د حاجي راستنېدنه .( الخصال  ١\٣١٣)

 

هجرت

ðمهاجر هغه دى،چې له ګناهونو هجرت وکړي او الهي محرمات پرېږدي . (سنن النبي)

ðڅه چې د خداى نه خوښېږي،پرېښوول يې غوره هجرت دى.  (کنز ٤٦٢٦٣ح )

 

ډالۍ

ðډالۍ ومنئ او عطر غوره ډالۍ ده،چې وړل راوړل يې اسان او بوى يې ښه دى .( تحف العقول : ٦٠مخ )

ðډالۍ ورکړئ ؛ځکه کينې پاکوي او دښمنۍ له منځه وړي . (الکافي ٥\١٤٣)

ðد ليدوکتو پر مهال لاسونه او ډالۍ ورکړئ؛ځکه لاسونه ورکول مينه زياتوي او ډالۍ کينې له منځه وړي .( مستدرک الوسايل١٣\ ٢٠٥)

ð بلنه ومنئ او د چا ډالۍ مه ورستنوئ . ( مسنداحمد١/٤٠٤)

ð يو بل ته ډالۍ ورکړئ،چې کينې له منځه وړي .( الکافي ٥‌/١٤٤)

ðغوره ورور مو هغه دى،چې عيبونه مو در ډالۍ کړي . (تنبيه الخواطر ٢/١٢٣)

 

 

ګاونډى

ðد کور د مخې،شا،ښي او کيڼ لوريو تر څلوېښتو کورونو پورې ګاونډ شمېرل کېږي .( الکافي٢\٦٦٧)

ðپوه شئ ،څوک چې ګاونډى يې له شره خوندي نه وي (؛نو) پر خداى او د قيامت پر ورځې ايمان نه لري(او بايد) ګاونډى يې،چې ترې پور غواړي، ور يې کړي،که ګاونډي ته يې څه خير (او خوښي) ورسي؛نو پرې خوشحاله شي او که کوم کړاو ورورسېد؛نو تسلي ورکړي . د کور په جوړولوکې يې ځمکه لاندې نه کړي(که په کوم کارکې ورته څه زيان و)؛ نو هغه دې نه ځوروي يا دې ترې اجازه واخلي،که مېوه يې وپېرله؛ نو ور دې يې کړي اوکه ور يې نه کړي؛نو د هغه له سترګو پټ دې يې خپل کور ته يوسي او اولاد ته يې داسې څه ور نه کړي ،چې د ده پر اولاد  غوسه شي . ( روضة الواعظين ٢\٢٨٨)

 

د شرافت لامل

ðله دينوالو سره ناسته پاسته د دنيا او اخرت د شرافت لامل دى. (الکافي١\٣٩)

 

د ورکاوي لاملونه

ðدرې څيزونه په ورکاوي کې راځي :کنجوسي ،د ځاني غوښتنو لاروي او کبرکول .( وسايل الشيعه ١\١٠٢)

ðد “لوط” قوم د لسو ځانګړنوله امله پوپناه شو،چې دا دي : ( ١) لواطت کول ( ٢) يو بل ته يې ارموني ويل (٣) کوترې الوځول (٤) ساز وسرود کول(٥) شراب څښل(٦) د ږيرو وهل(٧) د اوږدو برېتو پرېښوول (٨) شپېلي وهل (٩)چکچکې وهل(١٠) د ورېښمينو جامو اغوستل او زما امت يوه بله ډېره ناوړه ځانګړنه هم لري : ښځې به يې له ښځو خپل شهوت سړوي . ( دسيوطي جامع المغير: ٢\١٥٥)

 

 

د خداى ياد

ðپه يقين،ګهيځ او ماښام د خداى يادول،د خداى په لار کې تر تورو ماتولو غوره دي .( وسايل ٧\١٥٠ )

تبصره : امام صادق ( الکافي : ٢\٥٢٢) ددې روايت په اړه وايي :چې تر لمر ختو مخکې او تر لمر پرېوتو وروسته داسې شېبې وي،چې دعا پکې قبلېږي .

ðڅوک چې په بازار کې د خلکو د غفلت او بوختيا پر مهال خداى ياد کړي (؛نو) خداى ورته زر نېکۍ ليکي او د قيامت پر ورځ ورته داسې بښنه ورډالۍ کوي،چې د هيچ بشر په زړه کې نه تېرېږي .(عدة الداعي: ٢٥٧مخ )

ðڅوک چې خداى ډېر يادوي(؛نو د خداى (هم) خوښېږي . (بحارالانوار٦٦\٣٤٩)

ðد خداى ياد،د ايمان نښه، له دوه مخۍ پرېکون، د شيطان پر وړاندې مورچه او د اور پر وړاندې خوندېينه ده . (مستدرک الوسايل ٥\٢٨٥)

ðبې د خداى له ياده ډېرې خبرې مه کوئ؛ځکه زړه سختوي او سخت زړى له خدايه ډېر لرې وي .( مشکاة الانوار: ٥٦مخ )

ðڅوک چې (په رښتيا) د خداى ومني او احکام يې عملي کړي (؛نو) هغه به يې ياد کړى وي،که څه هم لمونځ ،روژه او د قرآن لوستل يې لږ وي او څوک چې د خداى و نه مني (او له احکامو يې سرغړونه وکړي؛نو) هغه به يې هېر کړى وي،که څه هم لمونځ،روژه او د قرآن لوستل يې ډېر وي .( معاني الاخبار: ٣٩٩مخ )

 

د مرګ ياد

ðد خوندونو ورانوونکى ډېر درياد کړئ،وپوښتل شو: دا څه دي؟ آنحضرت (ص) ورته وويل : د مرګ ياد او هغه ډېر ځيرک مؤمن دى،چې مرګ ډېر يادوي او ډېر تيارى يې ورته نيولى وي .(الجعفريات : ١٩٩مخ )

ðغوره زهد،غوره عبادت او غوره تفکر،د مرګ يادول دي؛نو څوک چې مرګ ډېر يادوي؛نو خپل قبر به د جنت په يوه باغ کې ومومي . ( جامع الاخبار : ١٦٥)

ðزړونه د اوسپنې په څېر زنګ نيسي؛خو د قرآن په لوست او د مرګ په يادونه جلا مومي . ( د نهج البلاغې شرح : ١٠ ٢٣)

ðمرګ،چې د خوندونو له منځه وړونکى دى،ډېر ياد کړئ . (محجة ٨ /٢٣٩ )

ð تر مرګ وړاندې مرګ ته چمتو وسئ . ( کنز١٥/٥٤٢)  

 

مرسته

ðڅوک چې د مؤمن مرسته وکړي (؛نو) خداى يې ( ٧٣) کړاوونه لرې کوي،چې يو يې په دنيا او نور يې د قيامت پر ورځې،چې د ستر کړاو ورځ ده او د هر چا خپل ځان ته پام وي (نه نورو ته) (لرې کوي) . ( الکافي  ٢\١٩٩ )

ðخداى پر هغه لورېږي،چې له خپل اولاد سره په ښو چارو کې لاسنيوى وکړي .( الکافي ٦\٥٠)

ðڅوک چې د خداى د رضا لپاره د مسلمان ورور د اړتيا د لرې کولو لپاره وځغلي؛لکه زر کاله چې يې د خداى داسې خدمت کړى وي،چې د سترګو د رپ هومره يې  ترې سرغړونه نه وي کړې .( کنزالفوائد١\ ٣٥١)

ðڅوک چې له کمزوري او بېوزلي سره مرسته وکړي(؛نو) خداى ورسره مرسته کوي او د قيامت پر ورځ ورته پرښتې ټاکي،چې له اورينو کندو او هيبتناکو تمځايو په تېرېدو کې ورسره داسې مرسته وکړي،چې دود او تپ يې ور ونه رسي او روغ رمټ او خوندي له “صراط” پله جنت ته تېر شي .( د الامام العسکري تفسير : ٦٣٥مخ )

ðڅوک چې له ظالم سره په ظلم کې له پوهې سره مرسته کوي؛نو په حقيقت کې له ايمانه وتلى دى .( کنزالفوائد ١\ ٣٥١)

 

پلارمړى (يتيم)

ðد يتيم پر سر لاس راکاږه او بېوزليو ته خواړه ورکړه . (احمد)

ðڅوک چې له خپلې شتمنۍ د پلارمړي لګښت پر غاړه واخلي،چې له اړتيا خلاص شي ( او مادي خپلواکۍ ته ورسي) ؛نو په يقين چې جنت پرې واجبېږي .(من لايحضره الفقيه ٤\٣٧١)

ðڅوک چې د مهربانۍ له مخې د پلامړي پر سر لاس راکاږي؛نو چې څومره وېښتان يې ترلاس لاندې ول(؛نو) په قيامت کې ورته هومره رڼاګانې ورکوي .(من لايحضرالفقيه ٤\٣٧١)

ðډېر ناوړه خواړه  د پلامړي د مال خوړل دي . ( الکافي ٨\٨١)

ðعرش د پلارمړي د ژړا پر وخت لړزېږي؛نو خداى وايي : دا څوک مې (هغه) بنده ژړوي،چې په وړوکتوب کې مې ترې موروپلار اخستي ول؟ په عزت او دبدبې مې سوګند،چاچې له ژړا چوپ کړ؛نو جنت ورته واجبوم .(ثواب الاعمال : ٢٠٠مخ )

ðهغه ډېر غوره کور دى،چې د يتيم پکې عزت کېږي . (اثنى عشريه :١٨ مخ )

ðڅوک چې په مينه د يتيم پر سر لاس راکاږي؛نوخداى به يې په قيامت کې د ټولو وېښتانو هومره رڼا ور ډالۍ کړي . (بحارالانوار٧٧/٥٨)

ðيتيم او پلار مړي ته د مهربان پلار په څېر وسه او پوه شه څرنګه يې،چې کرې،هماغسې به يې رېبې . (بحارالانوار٧٧/١٧٢)

ðزه په جنت کې له هغه سره ددې دوو ګوتو[د شهادت ګوته يې له منځنۍ ګوتې سره نزدې کړه ]په څېر يم ،چې د پلار مړي د روزنې او نفقې مسووليت پرغاړه واخلي . (سفينة  البحار٢/٧٣١)   

ðيتيم،چې وژاړي ؛نوعرش ورته لړزېږي . (سفينة البحار٢/٧٣١)

ðد پلار مړي د مال خوړل ستره ګناه ده،چې خوړونکى به يې په دوزخ کې وي . (سفينة البحار٢/٧٣١ مخ)

 

يقين

ðيقين غوره څيزدى،چې زړه ته اچول شوى دى .(بحارالانوار٦٧\١٧٣)

ðسرښندنه د انسان د يقين ښکلا ده . ( جامع الااخبار: ١٢٢مخ )

ðيقين پوره ايمان دى .( ارشاد القلوب ١\١٢٧)

ðد يقين دوه رکعته سپک لمونځ،تر يوې شپې عبادت غوره دى . (الجعفريات : ٣٥مخ )

ðد ژبې، وينا،په غړيوکړنه او د زړه يقين ته ايمان وايي . (عوالي الاللي  ١\٨٣)

ðبې يقينه عبادت ارزښت نه لري .( معدن الجواهر: ٣٩مخ )

ðيقين، غنيتوب او عبادت بوختيا ته بس دى .( الکافي ٢\ ٨٥)

ðڅوک چې د خداى تعالى پر بدلې ورکولو يقين لري؛نو ځان د نفقې ورکولو ته سخي ګرځوي او خداى وايي :څه چې لګوئ،خداى يې بدله درکوي او هغه ډېر غوره روزي ورکوونکى دى .( وسايل ٩\١٨)

ðيقين لرونکى انسان شپږ نښې لري : (١) يقين لري،چې خداى حق دى؛ نو ايمان راوړي . (٢) يقين لري،چې مړينه حق ده؛نو له هغه (چار) ډډه کوي (چې د مړينې د ډار لاملېږي . (٣) يقين لري،چې په قيامت کې راژوندي کېدل حق دي؛نو د هغه له رسوايۍ وېرېږي .(٤)يقين لري،چې جنت حق دى؛نو ورته لېوال او مينوال وي .(٥)يقين لري،چې اور حق دى؛ نو له ژغورنې يې څرګندې هڅې کوي . (٦) يقين لري،چې د قيامت د ورځې حساب حق دى(؛نو) له ځان سره (په همدې دنيا کې) محاسبه کوي .( تحف العقول : ١٨ مخ )

ðد يقين کمزوري داده،چې د خداى په خپګان خلک له ځان خوښ کړې او د خداى د ورکړې روزۍ له امله خلک وستايې او داچې خداى څه نه دي درکړي،خلک ورټې .( بحارالانوار ٧٤\١٨٧)

 

د خداى وحدانيت (توحيد)

ðتوحيد نيم دين دى او د صدقې په ورکړه روزي تر لاسه کړئ .( وسايل : ٩\٣٧١)

ðتوحيد د جنت په بيه دى .( بحارالانوار ٣\٣)

ðد توحيد،ظاهر په باطن کې او باطن يې په ظاهر کې دى . ظاهر يې توصيف او ويل کېداى شي؛خو ليدل کېږي نه او باطن يې داسې دى، چې پټ نه دى .په هرځاى کې لټول کېږي او داسې ځاى به نه وي،چې د سترګو رپ هومره ترې خالي وي،بې له محدوديته حاضر او بې له ورکېدوغايب دى .( بحارالانوار  ٤\٢٦٣)

تبصره :ددې روايت د شرح لپاره وګ :

(الف):حکيم سبزواري؛شرح الاسماالحسنى ١\١٣٣).

(ب) علامه طباطبايي ،تفسيرالميزان ٦\١٠٣)

 

يهود

ðپر يهودي او نصراني سلام واچوئ؛خو پر شرابخور نه او که پر تاسې يې سلام واچاوه؛ځواب يې مه ورکوئ . (بحارالانوار ٧٦\١٥١)

ðڅوک چې زما له اهلبيتو سره دښمني وکړي؛خداى به يې د قيامت پر ورځ د ړانده يهودي په څېر راپاڅوي .(جلال الدين سيوطي احياء الميت بفضائل اهل البيت : ١٨مخ )

 

ډوډۍ

ðخدايه ! ډوډۍ راته مبارکه کړې او زموږ او د ډوډۍ ترمنځ بېلتون مه راوله،که ډوډۍ نه واى،روژه مو نه شوه نيواى،لمونځ مو نه شو کولاى او د خداى فرض مو نه شول پوره کولاى .( الکافي ٦\٢٨٧)

ðد ډوډۍ درناوى وکړئ .( بحار ٦٢/٢٧٩ )

ðډوډۍ په چاړه نه؛بلکې په لاس پرې کوئ .( الکافي 304/6)

ðد ډوډۍ عزت کوئ . وپوښتل شو: څنګه ؟ آنحضرت (ص) ورته وويل : ډوډۍ يې،چې راوړه،بل څه ته انتظار مه باسئ او د ډوډۍ له عزت (دا هم) دى،چې له ((وبرېده)) نه شوه . (الکافي ٦\٣٠٣)

 

نبوت

ðتر ما وروسته بې له زېري ورکوونکيو کوم نبوت نشته . رسول الله ! زېري ورکوونکي څوک دي ؟ورته يې وويل : رښتيني خوبونه! (بحارالانوار  ٥٨\١٩٢)

ðخلکو! تر ما وروسته پېغمبر او زما له سنتو وروسته بل سنت نشته ؛ نو چاچې د نبوت دعوا وکړه؛نو بلنه او بدعت يې په اور کې دى؛نو و يې وژنئ او څوک چې ورپسې ولاړ شي،په اورکې به وي .(وسايل ٢٨\٣٣٧)

ðعلي! نه خوشحالېږې،چې ته زما ورور او زه ستا ورور  وسم او مقام دې راته داسې وي؛لکه د هارون (ع) چې موسى (ع) ته و؛خو په دې توپير،چې تر ما وروسته بل پېغمبر نشته.( صحيح بخاري : ٤\٢٠٨) دامام احمدحنبل مسند١\١٧٠ . صحيح مسلم : ٧\١٢٠)

 

نجوا ( پسپسکې)

ðکه درې تنه وئ؛نو نه ښايي دوه تنه يې،له درېم سره بېل پسپسکې وکړي ؛ځکه هغه خپه کوي . ( مستدک الوسايل  ٨\٣٩٩ )

ðکه دوو تنو په خپلو کې پسپسکې کولې؛نو مه ورځئ. (الجامع الصغير ١\١٢٥)

ðنه ښايي((په درېو تنو کې دې)) دوه تنه په خپلو کې پټې خبرې وکړي . ( کنز: ٢٤٨٦٠ ح )

 

نرمي

ðپه نرمۍ کې پرېماني او برکت دى او څوک چې له نرمۍ بې برخې شي (؛نو) له خيره به بې برخې شوى وي .( الکافي ٢\١١٩)

ðنرمي نيم ژوند دى .( مستطرفات السرائر: ٥٥٠ مخ )

ðنرمي ښه انګېرل دي او تاوتريخوالى شوم دى .( الکافي ٢\١١٩ )

ðکه نرمي د مخلوق په بڼه انځورېداى؛نو ډېر ښکلى مخلوق به ترې نه و. ( الکافي  ٢\١٢٠ )

ðنرمي يو څيز پسولي؛خو له څه چې لرې شي،بد رنګوي يې .( الکافي  ٢\١١٩)

ðنرمي د حکمت بنسټ دى . خدايه! څوک چې زما د امت څه چارې پر غاړه واخلي او له امت سره په نرمۍ وچلېږي؛نو ته هم ورسره په نرمۍ وچلېږه او چاچې پرې سختى کوله؛نو ته هم ورسره سختي کوه .( عوالي الاللي  ١\٣١٧)

ðکه څوک څلور ځانګړنې ولري؛خداى ورته په جنت کې کور جوړوي : (١) چې پلار مړي ته هستوګنځى ورکړي .( ٢) پر بېوزلو ولورېږي . (٣) پر موروپلار مينه وکړي (٤) تر لاس لاندې سره نرمي وکړي .(وسايل  ١٦\٣٣٧)

ðپه حقيقت کې خداى رفيق (او نرم) دى او نرمي خوښوي او نرمۍ ته داسې څه بښي،چې زور او سختۍ ته يې نه بښي . (الزهد : ٢٨ مخ )

ðعلم،ايمان،ته ښه مرستندوى دى او زغم،ايمان ته ښه مرستندوى دى او نرمي زغم ته ښه مرستندوى دى او نرمخويي چلن ته ښه مرستندويه ده. ( قرب الاسناد ٢\٣٢مخ )

 

نږدېوالى

ðابوذره! د بنده پټه سجده کول،خداى ته د نږدېوالي غوره لار ده . (الامالي للطوسي : ٥٢٩)

ðهېچاته (هم د خداى په خپګان) مه ورنږدېږئ،چې له خدايه به بېل شئ . ( الکافي ٨\٨١)

ðله هغه “بلونکي” سره مه کېنئ،چې تاسې (دغو څيزونو ته) رابولي : (١) له يقينه شک ته . ( ٢) له اخلاصه ريا ته . (٣) له تواضع نه تکبر ته . (٤) له دوستۍ او نصيحته دښمنۍ ته .( ٥) او له زهده ،دنيا غوښتنې ته؛ بلکې هغه “عالم”ته ورنږدې شئ،چې تاسې د پورته څيزونو پوټه (او عکس) ته رابولي؛يعنې : ( ١) له تکبره،تواضع ته ( ٢) له ريا اخلاص ته (٣) له شکه يقين ته (٤) له دنيا غوښتنې زهد ته (٥) او له دښمنۍ،دوستۍ او نصيحت ته . هغه (عالم) خلکو ته د وينا او وعظ صلاحيت لري،چې ددې پورته څيزونو له آفتونو په رښتيا ووېرېږي او د وينا (او وعظ) پر نيمګړتياوو برلاس وي،سم له ناسم،ناروغۍ،ځاني القاات او فتنې يې او ځاني غوښتنې وپېژني . (عدة الداعي : ٧٨مخ )

 

نصيحت او خيرغوښتنه

ðدين (ټولو ته) نصيحت او خير غواړي ده . رسول اکرم (ص) وپوښتل شو: چا ته؟ ورته يې وويل : خداى ته،استازي ته يې،ديني امامانو او مسلمانو پرګنو ته . ( الامالي للطوسي :٨٤مخ )

ðڅوک چې خپل  ځان د خپل مشر(او امام) لاروۍ او د هغه خير غوښتنې ته راهڅوي؛نو خداى به يې په رفيق اعلى (،چې د مرسلو پېغمبرانو،صديقانو او شهيدانو ځاى دى) کې له موږ سره يوځاى کړي . ( الکافي ١\٤٠٤)

ðخداى د قيامت پر ورځ له درېو ډلو عذاب لرې کوي 🙁 ١) په الهي قضا راضي ( ٢) د مسلمانانو ناصح او خيرغواړى (٣) او د نېکو چارو لارښوونکى . (مستدرک الوسايل ١٢\٤٣١)

 

نعمت

ðپر چاچې لورنې څرګندې شي؛نو”الحمدالله رب العالمين” دې ډېر ووايي . (الکافي  ٨\٩٣)

ðمؤمن ته د قبر فشار،د هغو نعمتونوکفاره ده،چې ضايع کړي يې دي . (بحارالانوار ٦٨\٥٠ )

ðپر چاچې خداى د “توحيد” لورنه لورولې وي؛نو بدله يې جنت دى . (بحارالانوار ٣\٥)

ðپر خداى  تر ايمان وروسته غوره نعمت دادى،چې خداى چاته د”کتاب الله” علم او پر تاويل يې ورته پوهه ورکړې وي .( بحارلانوار ١ \ ٢١٧)

 

 

ښېرا

ðځان د مظلوم له ښېرو وساتئ،چې له ورېځو پورته خېژي او خداى يې ويني . بيا وايي : پورته يې راوړئ،چې قبولې يې کړم او د پلار له ښېرو ډډه وکړئ،چې له تورې تېرې دي (ژر قبلېږي).(الکافي: ٢\٥٠٩)

 

کتل

ð د عالم مخ ته په مينه کتل عبادت دى .( مستدرک الوسايل : ٩ ١٥٢)

ð له عالمانو سره ناسته او علي،کعبې،قرآن او موروپلار ته کتل عبادت دي .( کشف الغمة ٢\٢٦٨)

ð علي ته کتل عبادت دى . (حاکم نيشاپوري؛مستدرک : ٣\١٤١) ( البداية و النهاية : ٧/٣٩٤)

ðعلي! په دنيا کې د مؤمن درې تفريح دي : ( ١) د دوستانو او ورونو ليده کاته ( ٢) روژه تي ته روژماتى ورکول ( ٣) او د شپې په پاى کې تهجد اوعبادت . ( مصادقة الاخوان : ٣٤)

 

لمونځ

ð داسې لمونځ کوه؛لکه چې د خپل عمر وروستى لمونځ کوې .  (وسايل  ٥\٤٦٤)

ð په قيامت کې لومړى د لمانځه پوښتنه کېږي؛نو که پوره يې ادا کړى وي (بريالى کېږي) او که نه اور ته غورځول کېږي .(عيون اخبارالرضا ٢\٣٧)

ð لمونځ ( د نورو کړنو په منځ کې) د کېږدۍ د ستنې په څېر دى،که ستنه سمه ولاړه وي؛نو تنابونه،مېخونه او پردې ګټورې وي او که ماته شي؛نو تنابونه،مېخونه او پردې ګټه نه لري .(وسايل  ٤\٣٣)

ð لمونځ د کړنو تله ده؛چاچې پوره وکړ،پوره بدله يې ورکول کېږي . (وافي  ٧\٣٠ )

ð لمونځ د دين ستن ده او ړومبى کړنه ده،چې له بني بشره ليدل کېږي؛ نو که پوره سم و؛نورې کړنې يې هم ليدل کېږي اوکه نه و؛نو نورې کړنې يې په پام کې نه نيول کېږي .( تهذيب الاحکام ٢\٢٣٧)

ð لمونځ د دين ستن ده . (المسايل الصاغانية : ١١٨ )

ð د کفر او ايمان ترمنځ يوازې د لمانځه پرېښوول دي .(ثواب الاعمال : ٣٢١)

ð بنده چې په سپکه لمونځ کوي(ښه يې نه ادا کوي او چټک يې کوي) خداى خپلو پرښتو ته وايي : زما بنده وينئ؟؛لکه چې ګومان کوي،اړتياوې يې بې له ما بل څوک پوره کوي،نه پوهېږي،چې د ټولو اړتياوو پوره کول يې زماپه واک کې دي .( الکافي ٣\٢٦٩)

ð (په جومات کې يو سړي د رسول اکرم په مخ کې په بيړه لمونځ وکړ، چې سجدې يې سمې ونه کړې،پېغمبر اکرم  وويل:) د کارغه په څېر يې (پرځمکه) ټونګې ووهلې،که په دغسې لمونځ کولو ومړ؛ نو د محمد (ص) پر دين به نه وي مړ شوى .( المحاسن  ١\٧٩)

ð لمونځ په لوى لاس مه پرېږده؛ځکه په دې کار د”اسلام ملت” ترې بېزاره وي .( الکافي ٣\٤٨٨)

ð څوک چې لمونځ په هماغه خپل وخت و نه کړي؛نو له لمانځه يو تور سيورى پورته خېژي او وايي:زه دې ضايع کړم!خداى دې داسې ضايع کړه؛لکه زه يې چې ضايع کړم .

ð بنيادم چې پينځګوني لمونځونه په خپل وخت کوي؛نو شيطان ترې ډارېږي او تښتي؛خو چې ضايع يې کړي،شيطان پرې جرائت کوي او د سترو ګناهونو کولو ته يې اړباسي. (الامالي للصدوق : ٤٨٤)

ð سبا په قيامت کې هغه ته زما شفاعت نه په برخه کېږي،چې فرض لمونځ له خپل وخته ځنډوي .(روضة الواعظين ٢\٣١٩)

 ð خداى وايي : د آدم زويه! څه ساعت د ګهيځ تر لمانځه وروسته او څه ساعت د مازيګر تر لمانځه وروسته ما ياد کړه چې څه درته مهم دي،در يې کړم .( تهذيب الاحکام : ٢\ ١٣٨)

ð پوه شئ،چې لمونځ د ځمکې پرمخ د الهي نعمت دسترخوان دى؛نو خداى يې د ورځې پينځه ځل هغوى ته غوړوي،چې د خداى رحمت غواړي . (مستدرک الوسايل : ٣\١٥)

ðد خداى د بنده او کافر ترمنځ توپير په لمونځ کولو يا نه کولو کې دى . ( سنن الکبرى ٢/٣٨٦)

ð لمونځ ،د مؤمن رڼا ده . ( کنز ٧/٢٨٨ )

ðلمونځ د هر خير کونجي ده . ( کنز ٢/٦٢)

ðبيشکه چې لمونځ،خداى ته د مؤمن د نږدېوالي لامل دى .(کنز : ١٨٩٠٧ح )

ðخداى د هغه چا لمونځ نه قبلوي،چې بدني حضور لري؛خو له زړه  نه . (بحار ٨٤/٢٤٢)

ðداسې لمونځ وکړه؛لکه چې وروستى لمونځ دې وي؛ځکه په داسې لمانځه کې خداى ته نږدېوالى وي .(بحار ٧٨/ ٢٠٠)

ðزما په امت کې نه شمېرل کېږي،چې خپل لمونځ سپک ګڼي. ( ميزان : ١٠٤٠٥ ح )

ð لمونځ  شيطان مختورى کوي . (الصلاة فى الکتاب : ٤١٥ح )

 

د شپې لمونځ

ð د مؤمن شرافت د شپې په لمانځه کې دى .(عوالي الاللي ١\ ١٣٥٢)

ð د شپې لمونځ،د قبر په تياره کې د خپل خاوند څراغ دى . (بحارالانوار  ٨٤\١٦٠ )

ð د شپې لمونځ رڼا ده؛نو پر تا د شپې لمونځ دى؛نو چاچې د شپې ډېر لمونځ کاوه،د ورځې به يې څېره ښه ښکلې وي .(مستدرک الوسايل  ٦\٣٣٧)

ð مېرمن،چې خپل مېړه د شپې لمانځه ته راپاڅوي او تر اوداسه وروسته لمونځ وکړي؛نو د داسې”مېړه او مېرمن” په ليکه کې شمېرل کېږي،چې خداى ډېر يادوي . (وسايل٧\٢٥٧)

ð څوک چې د شپې لمونځ کوي؛نو پايلې يې دا دي : ( ١) پالونکى ترې خوشحالېږي .(٢) د پرښتو ورسره مينه پيدا کېږي .(٣) د پېغمبرانو د سنتو عملي کول دي .( ٤) دپوهې رڼا يې ده. ( ٥) د ايمان اصل او بنسټ به يې غښتلى کړى وي .(٦) بدن پرې راحت مومي . ( ٧) د شيطان به بد ايسي . ( ٨) د دښمنانو پر وړاندې يې وسله ده. (٩) دعا يې قبلېږي .(١٠) کړنې يې (د خداى په درشل کې) قبلېږي . ( ١١) روزي يې برکتي کېږي . (١٢) د ملک الموت پر وړاندې د شفاعت لامل يې وي . (١٣) په قبر کې يې څراغ وي . (١٤) دا اړخونو بالښت به يې وي .( ١٥) منکر او نکير ته يې ځواب وايي .(١٦) په قبر کې تر قيامته يې ملګرى وي .(١٦) او چې قيامت راورسي؛نو د شپې لمونځ  يې : ( الف) : پرسر  سيورى او تاج وي  ( ب) د بربنډ بدن جامې وي .( ج) او رڼا يې وي،چې مخه ورته رڼا کوي (د) د هغه او اور تر منځ به پرده وي (ذ) د خداى پر وړاندې به يې د ايمان دليل وي( ذ) د نېکو کړنو د دروندوالي لامل به يې وي .(ر) له صراطه د تېرېدو اجازه ليک به يې وي .( ز) او د جنت کونجي به يې وي .(ارشاد القلوب  ١\١٩١)

 

اوبه

ð اوبه د دنيا او آخرت د څښاک آغلې (ښکلې) دي  .(طب النبي :٢٣مخ )

ð (د ورځې) په ولاړه اوبه څښه،چې روغتيا ته دې ګټورې دي. (مستدرک الوسايل ١٧\٨)

ð څوک چې د شپې په ولاړه اوبه وڅښي؛نو پر ناعلاجه ناروغۍ اخته کېږي . ( مستدرک الوسايل١٧\٩ )

ðاوبه په غړپ غړپ وڅښئ؛په يو وار اوبه څښل د ځيګر ناروغۍ رامنځ ته کوي . ( الکافي : ٦\٣٨١)

 

نهيلي

ð خداى د قيامت پر ورځ نهيلي تورمخي راپاڅوي او ورته ويل کېږي : دوى له الهي رحمته نهيلي ول . (النوادر للراوندي : ١٨ مخ )

ð په ګناه پسې د سترګو تر رپ چابکه،استغفار وکړئ او که و مو نه کړ؛ نو انفاق وکړئ او که دا مو و نه کړ؛نو خپله غوسه تېره کړئ،که دا مو ونه کړه؛نو خلکو ته څه ورکړئ او که دا مو و نه کړل؛نو له خلکو سره احسان وکړئ او که دا مو و نه کړ؛نو پر ګناه ټينګار پرېږدئ او که دا مو و نه کړ،د خداى په هيله استغفار وکړئ او هېڅکله دخداى له رحمة مه نهيلېږئ . ( مستدرک الوسايل  ١٢\١٢٤)

 

اړتيا

ð څلور څيزونه د جنت له زېرمو دي : ( ١) د اړتياپټول ( ٢) د صدقې پټول ( ٣) د ناروغۍ پټول ( ٤) د ګناه پټول . ( الامالي للمفيد:٨مخ )

ð اړتيا انسان ته د خداى امانت دى؛نو چاچې له ځان سره وساتله ؛ نو خداى ورته د لمونځ کوونکيو بدله ورکوي . ( الکافي ٢\٢٦١)

 ð څوک چې د خپل وروراړتياوې پوره کړي (؛نو) خداى يې پخپله اړتيا وې لرې کوي . ( سنن ابي داود ٢/٤٥٤)

ðخداى چې د کوم بنده خير وغواړي (؛نو) د نورو خلکو د اړتياوو لرې کولو مرجع يې ګرځوي . ( فردوس ١/٢٤٣)

 

نيت

ð بې عمله وينا،بې نيته او بې وينا عمل او (همداراز)عمل او نيت، چې له سنتو سره اړخ ونه لګوي (؛نو څه) ارزښت نه لري . ( الکافي  ١\٧٠)

ð د مؤمن نيت تر کړنې يې غوره دى او د کافر نيت تر کړنې يې بدتر دى او هر څوک د خپل نيت له مخې عمل کوي . (الکافي ٢\٨٤)

ð په حقيقت کې د کړنو ارزښت يوازې په نيتونو پورې اړه لري . (تهذيب الاحکام  ١\٨٣)

ð ابوذره! هڅه کوه،چې د هر څه لپاره نيت ولرې ان د ويدېدو او خوړو لپاره . ( وسايل  ١\٤٨)

ðکه څوک نيت وکړي،چې خپله کړې ژمنه به ترسره نه کړي (؛نو) ژمنه يې ماته کړې . ( کنز ٦/ ٢٢١)

ðد مؤمن نيت، تر  کړنو يې غوره دى . ( کافي ٢/ ٨٤ )

ðپه هر څيز کې ښه نيت لره،ان که په خوب اوخوړو کې وي . (مکارم الاخلاق : ٦٤٢)

 

چل

ðپه يقين د ژغورنې لار مو دا ده،چې له خداى سره چل مه کوئ،چې خپله به تېر وځئ؛ځکه څوک چې خداى تېر باسي؛نو همدى به وغولېږي او ايمان به يې زايل (او لرې) شي،که پوه شي؛نو ځان به يې غولولى وي.  (الامالي للصدوق : ٥٨١)

 

مېلمه

ðکوم کور ته چې مېلمه ولاړ نشي؛نو پرښتې هم نه ورننوځي . (جامع الاخبار: ١٣٦)

ðمېلمه د جنت  لار او لارښوونکى دى . (جامع الاخبار: ١٣٦)

ðڅوک چې زکات ورکړي او د مېلمه درناوى وکړي او په سختيو کې بخشش وکړي؛نو د کنجوسۍ له آفتونو به خوندي وي .(مستدرک الوسايل ٧\٣٢)

ðد مېلمه درناوى او خواړه ورکول له اخلاقي ځانګړنو دي . (الجعفريات : ١٥٤)

ðمېلمه چې د چا پر کور ننوځي،روزي يې رارسي او چې وځي؛نو د کوربه ګناهونه هم دباندې وځي ( کوربه له ګناهونوپاکېږي) (پورته :١٥٤)

ðڅوک چې کوم ښار ته ننوځي؛نو تر هغه د خپلو دينوالو مېلمه شمېرل کېږي،چې له ښاره ووځي .(علل الشرايع ٢\ ٣٨٤)

ðد مېلمستيا له احکامو دي،چې مېلمه به بې د کوربه له اجازې مستحبه روژه نه نيسي . ( الکافي ٤\١٥١)

ðمېلمستيا درې شواروزه ده او تردې ډېره په صدقه کې شمېرل کېږي، چې کوربه يې مېلمه ته ورکوي او نه ښايي مېلمه کوربه ستړى کړي،چې  پرېږدي يې يا يې وشړي . (الکافي٦\٢٨٣، جامع الاخبار: ١٣٦)

ðمېلمه د کوربه کور ته له خپلې روزۍ سره راننوځي او چې وځي؛نو د کوربنو ګناهونه له منځه ځي .( بحار ٧٥/٤٦١)

ðکوم کور ته چې مېلمه ولاړ نشي؛نو پرښتې هم نه ورننوځي .(بحار ٧٥/٤٦١)

ðمېلمه ته ځان ډېر مه کړوئ .( کنز: ٢٥٨٧٥ح )

ðڅوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځ ايمان لري؛نو د خپل مېلمه عزت دې وکړي .( جامع الاخبار: مخ ٣٧٧ )

 

ورکاوى

ðد دې امت سمېدل (او صلاح) په زهد او يقين  کې او پوپنا کېدل  يې په کنجوسۍ او اوږدو هيلو کې وي . ( الخصال ١\ ٧٩)

ð (د زړه له کومې) خندا د پوپنا کېدو لامل دى .(مستدرک الوسايل ٨ \٤١٧)

ðپه دوو څيزونو زما د امت ښځمنې پوپنا کېږي : په سرو او نريو جامو او د امت نارينه مې د علم په پرېښوولو او مال راغونډولو ورکېږي . (ارشادالقلوب  ١\١٨٣)

ðخداى تعالى وايي : کوم بنده،چې زما ومني؛نو هغه بل چا ته نه پرېږدم او چې څوک زما ونه مني؛نو خپل ځان ته يې ورپرېږدم،چې که په کومه کنده کې تري تم شي؛نو څه پروا يې نه لرم .(من لايحضره الفقيه ٤\٤٠٣)

 

بېوسي

ðله بېوسي سره مرسته دې له غوره صدقاتو ده . ( الکافي ٥\٥٥)

ðډېره ستره بېوسي داده،چې له چا سره دې پر ملګرتوب خوښه راشي؛ نو د نوم،نسب او د اوسېدو د ځای پوښتنه ترې و نه کړې . (مسايل علي بن جعفر : ٣٣٠ مخ )

ðډېره ستره بېوسي دا ده،چې څوک دې خوړو ته راوبولي؛خو بې دليله ور نشې .(المحاسن ٢\٤١١)

ð ډېر بېوسې هغه دى،چې له دعا کولو عاجز وي او ډېر کنجوس هغه دى،چې په سلام اچولو کې کنجوسي کوي . (الامالي للمفيد : ٣١٧)

 

نوک

ðڅوک چې د جمعې پر ورځ خپل نوکان غوڅوي؛نو ګوتې يې نه خرابېږي .( الجعفريات : ٢٩ مخ )

ðد نوکانو غوڅول،انسان پر سختو ناروغيو له اخته کولو ژغوري او د روزۍ د پراخۍ لامل يې ګرځي .( الکافي ٦\٤٩٠)

ðنارينه وو!خپل نوکان پرې کړئ (او ښځمنو ته يې وويل:) خپل نوکان پرېږدئ،چې ښکلا مو ده . (دعائم الاسلام ١\١٢٤)

ðڅوک چې د جمعې پر ورځ خپل نوکان پرېکوي،پاک خداى د هغه له ګوتو دردونه وباسي او شفا ورکوي . (النوادر للراوندي : ٢٣مخ )

 

ناپوهه

ðدوه غرېبې کلمې دي،چې ويې زغمئ : د ناپوهه د حکمت خبره ومنئ او د حکيم له ناپوهه خبرې تېر شئ . ( من لايحضره الفقيه ٤\٤٠٦)

ðناپوهي ډېره سخته نيستي ده او عقل ډېره ګټوره شتمني ده . (الکافي  ١\٢٥)

ðعاقل هغه دى،چې د خداى ومني،که څه هم (ظاهراً) بدرنګه وي او ناپوهه هغه دى،چې د خداى و نه مني که څه (ظاهراً) ښکلى وي،ډېر عقلمن غوره خلک دي .( بحارالانوار ١\١٦٠)

ðعقل يوه کېزه ده،چې پر ناپوهۍ لګول کېږي .(مستدرک الوسايل  ١١\٢٠٩)

 

نفلونه

ðخداى تعالى وايي : څوک چې زما د کوم دوست سپکاوى وکړي؛نو له ماسره به يې جګړه اعلان کړې وي او بنده د فرايضو پر ادا کولو سربېره، په نفلو او مستحبي کړنو (هم) ما ته تردې رانږدېداى شي،چې ښه يې وګڼم؛نو زه يې غوږونه کېږم،چې پرې يې واوري او سترګې يې کېږم، چې پرې وګوري او ژبه يې کېږم،چې خبرې وکړي او لاسونه،چې کار پرې وکړي ،که دعا وکړي،قبلوم يې او که وغواړي،ورکوم يې .(الکافي  ٢\٣٥٢)

ðد امت کړنې مې راوړاندې شوې او و مې لېدې،چې زياترو يې نيمګړتيا درلوده؛نو هر فرض لمونځ ته مې دوه مستحبه کېښوول ،چې په کولو يې د وګړي فرض لمونځ قبول شي؛ځکه خداى حيا کوي،چې د خپل بنده له کړنې درېمه قبوله نه کړي .( وسايل  ١٠ \٤٢٦)

 

نوم

ðاولادونو ته مو غوره ډالۍ،پرې ښه نوم ايښوول دي . (النوادرللراوندي :  ٦مخ )

ðکه پر زوى مو د “محمد” نوم کېښود؛نو احترام يې وکړئ او په ناسته کې ځاى ورکړئ او بد يې مه ګڼئ . ( عيون اخبارالرضا ٢\٢٩ )

ðد کورنۍ د کوم غړي،چې د کوم پېغمبر نوم وي؛نو دا کوربه تل برکتي وي .( دعائم الاسلام ٢\١٨٨)

ðڅوک چې درې زامن لري او پر يو يې د “محمد” نوم نه وي ايښى ؛ نو له ماسره يې جفا کړې ده .( الامالي للطوسي : ٦٨٢)

 

لیک

ðښکلى ليک،د حق څرګندوالى لاپسې زياتوي . ( کنز: ٢٩٣٠٤ )

ð د نورو د ليک ځوابول،د سلام د ځوابولو په څېر لازم دي . ( کنز ١٠ /٢٤٣)

ðعلم په ليک کې را ايسارکړئ . ( ميزان الحکمه : ١٧٣٢٤ح )

ðد يوې ليکنې ارزښت په پاى کې يې نغښتى دى .( کنز ١٠/٢٤٣)

ðد ليک ځوابول،د سلام د ځوابولو په څېر واجب دي . (الجامع الصغير ٢\ ١٤)

ðڅوک چې د غازي ليک (کورته يې) ورسوي؛لکه چې مريى يې ازاد کړى او د جهاد په ثواب کې ورسره شريک دى . ( الکافي : ٥)

 

مړه خوا

ðتر وسې ( له نورو) څه مه غواړه . ( مستدرک الوسايل ٧\٢٢٤)

ðڅوک چې خلکو ته خپلې ستونزې رابرسېره کړي؛نو ځان يې رسوا کړ، غوره غنا له نورو نه غوښتل دي اودا ډېر ناوړه فقر دى،چې څوک په زوره عاجزي کوي  . (پورته)

 

وېښته

ðښکلي وېښتان  ښکلا ده .( الکافي ٢\٦١٥)

ðښکلي وېښتان الهي پوښ دى؛نو عزت يې وکړئ . (الجعفريات :١٥٦)

 

مؤمن

ðمؤمن د عطارپه څېر دى،که ورسره کېنې ګټه در رسوي اوکه پرلار هم ورسره ولاړ شې (بيا هم) ګټه دررسوي اوکه په چاروکې ورسره ګډون وکړې (؛نو هم) ګټه دررسوي . (دسيوطي جامع الصغير)

ðمؤمن د شاتو د مچۍ په څېر دى،چې يوازې پاک خوري او پاک پر ځاى پرېږدي . (دسيوطي جامع الصغير)

ðمؤمنين د اخلاص له مخې پر يو بل درجې او لوړاوى مومي . (تنبيه الخواطر ٢/١١٩)

ðهله به مؤمن يې،چې  تر پلار اولاد او نورو خلکو له ما سره ډېره مينه ولرې .( بخاري – مسلم )

ðهله به مؤمن يې،چې ځاني غوښتنې دې زما په لارښوونو پسې ولاړې شي . ( بغوى فى شرح السنة– مشکاة )

ð د ښه خوى خاوند تر ټولو بشپړ مؤمن دى .(ابوداوود- الدارمي)

ðهله به مؤمن يې،څه چې ځان ته خوښوې ،نوروته يې هم خوښ کړې . ( بخاري-مسلم )

ðمؤمن د مؤمن هېنداره ده اومؤمن د مؤمن ورور دى؛زيان ترې لرې کوي ،پاسوالي او ملاتړ يې کوي .( “ابوداود”- “ترمذي” )

ðشونې ده،چې مؤمن ډارن او بخيل شي؛خو نه دروغجنېږي.  (بيهقي)

ð مؤمن خداى ته تر مقربو پرښتو هم عزتمن دى .( کنز ١/١٦٤)

ð مؤمن ځيرک او هوښيار دى . ( ميزان : ١٤٥٠ )

ð مؤمن د مؤمن هېنداره ده .(کنز: ٦٧٣ح)

ð مؤمن هېڅکله له يوې سوړې دوه ځل نه چيچل کېږي .(صحيح البخاري ٧ / ١٠٣ )

ð مؤمن د مؤمن ورور دى او په يو حال کې هم نصيحت ترې نه سپموي . ( کنز ١ /١٤٢)

ðد مؤمن د کړنليک عنوان د علي بن ابي طالب دوستي ده . (کنز ١١/ ٦٠١)

ðمؤمنان د يو بل وروڼه دي . ( بحار ٧٧/٢٦٩)

ðمؤمن چې د مؤمن ورور په چوپړ کې وي ؛نو تردې لوړ مقام نه ترلاسه کېږي .( مستدرک ١٢/٤٢٩ )

ðمؤمن د مينې او الفت پلازمينه او مرکز دى؛نوکه څوک له نورو سره مينه او دوستي نه لري او نور يې هم ورسره نه لري؛نو په هغه کې هېڅ ډول خير نشته . ( بيهقي – احمد )

ðد مؤمن په طبيعت کې له “خيانت” او “دروغو” پرته بل هر څه ورننووتلاى شي .( احمد- بيهقي)

  ðمؤمن،مؤمن ورور ته د هيندارې په څېر دى،چې حاضر نه وي؛نو زړه يې پرې سوځي او چې حاضر وي،څه چې يې نه خوښېږي،ترې لرې کوي او په غونډه کې ځاى ورکوي . (النوادر للراوندي : ٨مخ )

ðد مؤمن له ځيرکۍ ډډه وکړئ،چې په الهي رڼا يې ګوري . (الکافي  ١\٢١٨)

ðد مؤمن ژغورنه، د ژبې په ساتنه کې يې نغښتې ده . (الکافي ٢\١١٤)

ðنشتمنو ته د شتمنۍ زياته ورکړه او له خلکو سره په انصاف چلېدل،د حقيقي مؤمن ځانګړنې دي .( الکافي ٢\١٤٧)

ðمؤمن د کجورې د ونې په څېر دى،چې پاڼې يې په اوړي او ژمي کې نه تويېږي .( الکافي ٢\٢٣٥)

ðدعا د مؤمن وسله،د دين ستن او د اسمانو او ځمکې رڼا ده . (الکافي  ٢\٤٦٨)

ðمؤمن په الهي ادب مؤدب شوى،د پراخۍ پر مهال ډېر څه لګوي او چې تنګلاسى شي؛لګښت يې لږ وي .( الکافي ٤\١٢)

ðمؤمن پر مؤمن (اوه) واجب حقوق لري 🙁 ١) په درنه سترګه وروګوري (٢) له زړه نه ورسره مينه ولري(٣) له خپلو شتمنيو يې ورکړي(٤) غيبت يې حرام بولي(٥) د ناروغۍ  پر مهال يې پوښتنې ته ورځي(٦) په جنازه کې يې برخه اخلي(٧) او تر مرګ وروسته يې يوازې په ښو يادوي .(من لايحضرالفقيه ٤\٣٩٨)

ðمؤمن ته چې (تر مړينې وروسته) لومړۍ ډالۍ ورکول کېږى،داده، چې پخپله او هغوى چې په جنازه کې يې ګډون کړى بښل کېږي .(وسايل ٣\١٤٤)

ðمؤمن هغه دى،چې نور مؤمنان په خپل ځان او شتمنۍکې د اعتماد او ډاډ وړ وبولي .( وسايل ١٢\٢٧٨)

ðمؤمن د ځمکې په څېر دى،چې خلک ترې ګټه اخلي او ازاروي يې او څوک چې د خلکو پر جفا زغم و نه کړي؛نو د خداى رضا نشي تر لاسه کولاى؛ځکه د خداى خوښي د خلکو له جفا سره اغږل شوې ده . (بحارالانوار ٦٨\٤٢٢)

ðکه له تاسې څوک ناوړه کار وويني؛نو په لاس دې يې سم کړي، که داسې نشي کړاى؛په ژبه دې يې سم کړي او که دا يې هم نشو کړاى؛نو په زړه کې دې پرې ناخوښه وي او که داسې هم نه وي؛نو ايمان يې خورا کمزورى دى .( مستدرک الوسايل ١٢\١٩٢)

ðد مؤمن له  اخلاقي ځانګړنو دي 🙁 ١) (د جماعت) په لمانځه کې حاضر وي( ٢) د زکات په ورکړه کې بيړه کوي . (٣) بېوزليو ته خواړه ورکوي . (٤) پر پلار مړي د لورنې لاس راکاږي . ( ٥) جامې يې ( زړې؛خو) پاکې وي(٦) د بدن ( په تېره بيا د عورت) په ساتلوکې ډېره ځيرنه کوي( ٧) په خبرو کې دروغ نه وايي( ٨) پر خپله ژمنه درېږي (٩) که اعتماد پرې وشي؛خيانت نه کوي(١٠) په خبرو کې رښتيا وايي ( ١١) دشپې راهبان (١٢) او د ورځې زمريان وي ( ١٣) د ورځې روژه تيان (١٤) او د شپې پر لمانځه ولاړوي ( ١٥) نه کوم ګاونډى ځوروي (١٦) او نه يې کوم ګاونډي له لارې ځورېږي (١٧) پر لار په وقار او تواضع روان وي ( ١٨) د بېوزليو لاسنيوونکي وي (په انفاق او صدقه ورسره مرسته کوي) (١٩) د مؤمنانو په جنازو کې ګډون کوي . خداى دې موږ او تاسې په پرهېز کارانو کې وشمېري . ( الکافي ٢\ ٢٣٢)

 

لورنه

ð پر نورو ولورېږئ،چې درباندې لورنه وشي؛نور وبښئ،چې وبښل شئ . (کنز ٣/١٦٤ )

ð ستا تر ګناهونو د خداى بښنه ډېره ده [؛نو] هيڅکله د خداى له رحمته مه نهيلېږه. ( کنز ٤/ ٢١٤)

ðڅوک چې پر خلکو ونه لورېږي؛نوخداى به پرې ونه لورېږي . ( عوالي الآلي ١/٣٦١٩

ðڅوک چې پر خلکو ونه لورېږي؛نو خداى به پرې هم و نه لورېږي . (بخاري– مسلم)

ðڅوک چې پر نورو ونه لورېږي؛نو خداى به پرې و نه لورېږي .( بخاري – مسلم )

ðڅوک چې پر خلکو ونه لورېږي؛نو خداى به پرې و نه لورېږي . ( مستدرک الوسايل ٩\٥٥)

ðڅوک چې پر کوچنيانو لورين نه وي او د مشرانو درناوى نه کوي او زموږ حق ونه پېژني؛نو له موږ ځنې نه دى .( الامالي للمفيد: ١٨ مخ )

مهر

ðخداى د قيامت پر ورځ هره ګناه بښي؛خو له دې درېو ګناهونو پرته ( ١) دخپلې مېرمنې د مهر نه ورکول ( ٢)  د کارګر حقوق نه ورکول (3) ازاد انسان د مريي په توګه پلورل .( الکافي ٥\٣٨٢)

 

مسئووليت

ðتاسې ټول (د تر لاس لانديو وګړيو،خپلې کورنۍ او ټولنې) پالندويان او مسؤولين ياست او په دې اړه به وپوښتل شئ . (منيةالمريد : ٣٨)

ðڅوک چې سهار راپاڅي او د مسلمانانو د چارو سمونې او د ستونزو هواري  ته يې لاسونه رابډ نه وهي؛نو مسلمان نه دى .( الکافي :١٦٣)

ðڅوک چې د چا اواز واوري،چې مسلمانانو ! (راورسئ) او ستونزه مې لرې کړئ! ؛خو دې بلنې ته يې ځواب و نه وايي (او مرسته ورسره ونه کړي؛نو) مسلمان نه دی .( الکافي ٢\ ١٦٤)

 

نشه يي توکي

ðهر نشه ييز څيز حرام دى؛نو د يو څه چې ډېر مقدار د نشه کولو لامل ګرځي ؛نو لږ يې هم حرام دى .( الکافي ٦\٤٠٨)

 

جومات

ðبلاوې،کړاوونه،آفتونه او سختۍ چې راشي؛نو جوماتوال ترې خوندي او په امان کې وي . ( الجعفريات : ٣٩)

ðاوه تنه به هغه ورځ د الهي رحمت تر سيورې لاندې وي ، چې بې له دې به هيڅ سيورى نه وي ( ١) عادل واکمن ( ٢) هغه ځوان،چې د خداى پر عبادت بوخت وي (٣) هغه چې په ښي لاس صدقه ورکړي ؛خو کيڼ يې ترې خبر نشي ( ٤) هغه چې په يوازېتوب کې خداى ياد کړي او له وېرې يې سترګې له اوښکو ډکې شي(٥) څوک چې مؤمن وګوري او ورته ووايي،چې يوازې د خداى لپاره راته ګران يې (٦) هغه چې له جوماته ووځي او نيت يې داوي،چې بيا ورته راشي(٧) او هغه چې ښکلې ښځه  يې ځان ته راوبولي؛خو دى ورته وايي،چې له ” نړى پالونکي” خدايه وېرېږم . ( الخصال ٢\٣٤٣)

ðابوذره ! په جومات کې بې له لمونځ کولو،خداى يادولو او پوهې تر لاسه کولو ناستى خوشې دى . ( مستدرک الوسايل ٣\٣٧١)

ðجوماتونه،د آخرت له بازارونو وي،پيسې يې بښنه او څيزونه يې جنت دى .( الامالي للطوسي : ١٣٩ )

ðجومات ته،چې  ننوځئ؛نو دوه رکعته لمونځ پکې وکړئ .(وسايل  ٥\٢٩٣)

ðجوماتونه مو هغسې مه ښکلي کوئ؛لکه چې يهوديانو او مسيحيانو خپلې صومعې او کليساوې ښکلې کړې دي .(مستدرک الوسايل٣\ ٣٧)

 

مسلمان

ðمسلمان هغه دى،چې نور مسلمانان يې له لاس او ژبې خوندي وي . مسلمان پر مسلمان حق لري چې 🙁 ١) د کتنې پر مهال پرې سلام واچوي (٢) د پرنجي پر مهال ورته روغتيا وغواړي(٣) په ناروغۍ کې يې پوښتنې ته ورشي(٤) بلنه يې ومني(٥) په جنازه کې يې ګډون وکړي (٦) څه چې ځان ته خوښوې،هغه ته يې هم خوښ کړي،څه چې يې بدې ايسي،هغه ته يې هم بد و ايسي(٧)چې حاضر نه وي،خير غواړى يې وي او څوک نه پرېږدي،چې غيبت يې وکړي ( ٨) پر غم يې خپه شي .( ٩) عيبونه او نيمګړې يې پټې کړي (١٠) له تېروتنو يې تېر شي (١١) تل پرې زړه سواندى وي( ١٢) د دوستۍ حقوق يې پوره کړي (١٣) پر ژمنو يې ولاړ وي ( ١٤) ډالۍ يې ومني (١٥) لورونې يې بېرته ورپوره کړي(١٦) له نېکيو يې مننه وکړي( ١٧) مرسته او لاسنيوى يې ښه وګڼي (١٨) کورنۍ يې وساتي (١٩) اړتيا يې پوره کړي (٢٠) چې بې لارې شي،سمه لار ور وښيي( ٢١) سلام يې ځواب کړي (٢٢) خبره يې بده نه ګڼي(٢٣) بخشش يې ښه وګڼي (٢٤) سوګند يې رښتيا وبولي(٢٥) له دوستانو سره يې دوست وي (٢٦) چې پر بل ظلم کوي،له ظلمه يې منع کړي او چې مظلوم شي،له بل يې د حق په اخستو کې ورسره مرسته وکړي او ځان ته يې يوازې پرېنږدي . ( الاختصاص : ٢٣٣- او کنزالفوائد  ١\٣٠٦)

 

سلامشوره

ðتر سلامشورې بل غوره ملاتړ نشته .(تحف العقول: مواعظ النبي) 

ðڅوک تر مشورې وروسته،هيڅکله نه هلاکېږي . ( اثنى عشريه: ١٦ مخ )

ðرسول اکرم ته وويل شو:”حزم  او احتياط څه ته وايي؟” و يې ويل :”د راى له خاوندانو سره سلا مشوره کول او د هغوى منل .” (سفينة البحار ١ / ٧١٨ )

ðله چاچې خپل مؤمن ورورسلامشوره وغواړي او هغه ورته ګټور نصيحت ونه کړي؛نوخداى به ترې عقل واخلي .(سفينة البحار ٢ / ٥٩٠ )

ðله داړن سره سلامشوره مه کوه،چې د وتو لار درباندې تنګوي . له بخيل سره هم سلامشوره مه کوه،چې تا له خپلې موخې پاتې کوي او له حريص سره هم مشوره مه کوه،چې هيلې درته ښکلې انځوروي. (دصدوق خصال : باب الثلاثه، ٥٣ حديث )

ðمشوره د پښېمانۍ او د نورو د پړې پر وړاندې ټينګه کلا او ډال دى . ( نثرالدر ١ /١٨٣)

ð له نورو سره مشوره ډاډمن ملاتړ دى .( بحار ٧٥/١٠٠)

ðله عقلمنو مشوره وغواړئ اوله مشورو يې سر مه غړوئ،چې  پېښيمانه به شئ .( بحار ٧٥/١٠٠)

ðله چا سره،چې په کومه مساله کې مشوره وشوه ؛نو په اړه يې امين دى او هغه ورته امانت سپارل شوې ده .(ترمذي)

ðله عقلمن زړه سواندي سره مشوره،د ودې او برکت لامل او د خداى له لوري توفيق دى؛نو پرتا ده،چې له همدغسې تن سره مشورې وکړې او له مشورې سره يې مخالفت مه کوه،چې ورک به شې . ( لمحاسن ٢\٦٠٢)

 

مصيبت ( کړاو )

ðبنده ته چې مصيبت ورسي او و وايي: ((انا لله و انا اليه راجعون))؛ خدايه ! د دې مصيبت اجر راکړه اوتردې غوره يې بدله راکړه او خداى به همداسې وکړي .( نووي ١ / ٦٩٧ )

ð د خپل ورور په مصيبت او کړاو مه خوشحالېږه (که داسې دې وکړل)؛نو شونې ده،چې خداى هغه له مصيبته وژغوري او تا پرې اخته کړي . (ترمذي)

 ð دوه ځانګړنې دي،چې که د چا په برخه شوې؛نو د دنيا او اخرت خير به يې په برخه شوى وي : د کړاو پر مهال صبر کول او چې نعمت ورورسي، شکر پرې کاږي . (مجموعه ورام ٢/ ٢٤٧)

ð که پر کړاو اخته مو وليدل؛نو په زړه کې د خداى شکر وباسئ؛خو داسې نه چې هغوى يې واوري؛ځکه چې خپه کېږي . (الکافي ٢/ ٩٨)

ðڅلور څيزونه د جنت له زېرمو دي : (١) د اړتيا پټول( ٢) د صدقې پټول ( ٣) د ناروغۍ پټول او ( ٤) د کړاوونو پټول . (الامالي للمفيد : ٨)

ðمؤمن د مصيبت پر مهال پر”ورانه” وهل،د بدلې د پوپنا کېدو لامل يې ګرځي . ( مسکن الفوائد : ٥١مخ )

ðپه زغم د غوسې د غړپ تېرول او په صبر د مصيبت د ګوټ زغمل د خداى لوري ته ښې لارې دي .( الکافي ٢\١١٠)

ðهغه به د خداى په رڼا کې وي،چې دا څلور ځانګړنې ولري : ( ١) پر (( لا (اله) – الا (الله) – محمد رسول الله)) يې ټينګې منګولې لګولې وي (٢) د مصيبت پر مهال ووايي : (( انالله وانا اليه راجعون )) (٣) نعمت چې ورورسي،ووايي: ((الحمدلله رب العلمين))(٤) او چې ګناه وکړي، ووايي : ((استغفرالله ربي واتوب اليه. ( من لايحضره الفقيه ١\١٧٥)

ðکه کوم  يو پر مصيبت اخته شوئ ؛نو زما د نشتوالى مصيبت درياد کړئ،چې له سترو مصيبتونو دى . ( وسايل ٣\٢٦٨)

ðڅوک چې له ور رسېدلي مصيبته شکايت وکړي؛نو له خپل پالونکي به يې شکايت کړى وي . ( تفسيرالقمي ١\٣٨١)

ðڅوک چې مؤمن ورور ته د وررسېدلي مصيبت تسلي ووايي؛نو خدای ورته شنې جامې وراغوندي،چې د قيامت پر ورځ به يې (چې ټول بربنډ وي) د ښکلا لامل شي . (مستدرک الوسايل  ٢\ ٣٤٩)

ðخداى تعالى وايي : کوم بنده،چې له بدني،مالي يا اولادني مصيبت سره مخ کړم او په ښکلي صبر (=جميل) يې وزغمي؛نو زه ترې حيا کوم (چې د قيامت پر ورځ) ورته تله کېږدم او يا يې کړنليک راپرانځم . (مستدرک الوسايل ٢\٣٤٩)

ð څوک چې سهار کړي؛خو له دنيا (او پېښو يې) غوسه وي،په واقع کې پر خداى غوسه شوى دى او چې له وررسېدلي کړاوه شکايت وکړي؛ نو په حقيقت کې له خدايه يې شکايت کړى دى .( تفسير القمي ١/ ٣٨١)

ðخداى چې د کوم بنده خير وغواړي؛نو په همدې دنيا کې سزا ورکوي او که (په دنيا کې) کوم بنده ته بدي وغواړي؛نو د ګناهونو له امله يې سزا نه ورکوي او په قيامت کې يې ورکړي . ( شيباني ٣\٣٤٤)

ðڅومره چې کړاو ستر وي؛نو اجر يې هم ستر وي،د خداى چې کوم بنده خوښ شي؛نو پر کړاو يې اخته کوي؛نو که پرې خوښ و،خداى ترې خوښېږي او که پرې ناخوښه و؛نو خداى ترې هم ناخوښېږي . (شيباني  ٣\٣٤٤)

ð د مؤمن نر او ښځه تل د ځان،اولاد او مال پر کړاو اخته کېږي،چې له خداى سره د کتو پر مهال يې ګناه تر غاړې نه وي . ( شيباني٣\٣٤٤)

ðمؤمن ته هر څه خير دي،که لورنه پرې وشي؛نو شکر کاږي،چې دا ورته خير دى او که څه کړاو ورورسي،صبر پرې کوي،چې دا هم ورته خير دى .  ( المعجم ١\ ١١٥)

ðڅوک چې مؤمن ورور ته د وررسېدلي کړاو تسلي ورکړي؛نو خداى ورته په قيامت کې جنتي وياړنې جامې وراغوندي .(مسکن الفواد: ١١٥مخ )

 

معاشرت

ð پوهان وپوښتئ،له حکيمانو سره ناسته پاسته وکړئ او له نشتمنو سره ملګرتوب وکړئ . ( النوادرللراوند ي: ٢٦مخ )

 

مينه

ðپه هغو لومړنيو څيزونو،چې  له خدايه پرې سرغړاوى وشو دا دي : دنيا پالنه،مقام پالنه،نسپالنه،ډېر خوب، هوساېنه او له ښځو سره مينه. ( الکافي : ٢\٢٨٩)

ðاسلام بربنډ دى او حيا يې جامه ده،وقار ښکلا يې ده، صالح کړه وړه شخصيت يې دى او تقوا يې ستن  ده . هر څيز يو بنسټ لري،چې د اسلام بنسټ زما له کورنۍ سره مينه درلودل دي .  ( الکافي : ٢\٤٦)

ðپالونکي مې راته د اوو ځانګړنو حکم کړى دى . ( ١) له نشتمنو سره مينه او ورنږدېدل ( ٢) د(( لاحول ولاقوة الا بالله)) ډېر ويل (٣) ( له خپلوانو سره) زړه سوى،که څه هم اړيکه يې راسره پرېکړې وي (٤) (په مادياتوکې ) تر لاس لاندې ته ووينم، نه له ځانه پورته  ته (٥) د خداى په لارکې د هيچا پړه راباندې اغېز و نه کړي (٦) حق ووايم که څه هم تريخ وي (٧) او هېڅکله له چا څه و نه غواړم) . (الاصول الستة عشرمن الاصول الا ولية :٢٤مخ )

ðڅوک چې له “آل محمد”سره په مينه کې ومري،بښلى مړ شوى دى. پوه شئ ،څوک چې له ” آل محمد” سره په مينه کې ومري؛نو له توبې سره مړ شوى دى .څوک چې له “آل محمد”سره په مينه کې ومري ؛نو په پوره ايمان مؤمن به مړ شوى وي .څوک چې له “آل محمد” سره په مينه کې ومري،د مرګ پرښته او ورپسې نکير او منکر ورته د جنت زېرى ورکوي .څوک چې له “آل محمد” سره په مينه کې ومري، داسې جنت ته بېول کېږي؛لکه ناوې،چې مېړه کره وړل کېږي .څوک چې له “آل محمد” سره په مينه کې ومري،خداى ورته د خپلې لورنې له مخې يوه پرښته د قبر زيارت کونکې ټاکي .څوک چې له “آل محمد” سره په مينه کې ومري؛نو زما پرسنتو به له نړۍ تللى وي .پوه شئ څوک چې له “آل محمد”سره په دښمنۍ کې ومري؛د قيامت پر ورځ به په داسې حال کې محشر ته راشي،چې د سترګوپه منځ کې به يې ليکل شوي وي : ((دخداى له رحمته نهيلى.))پوه شئ څوک چې له “آل محمد” سره په دښمنۍ کې ومري؛هېڅکله به د جنت بوى ،بوى نه کړي .

 وګورئ : ( ١) دامام فخررازي تفسير٢٧\١٦٥ ) – ( ٢) د ابن عربي تفسير ٢\٢١٩) ( ٣) دقرطبي تفسير ١٦\٢٢  -( ٤) دثعلبي تفيسر ٥\١٥٧) – ( ٥) دمقريزى ، فضل ال البيت : ١٢٨مخ .( ٦) دشيخ سليمان قندوزى ،ينابيع المودة ٢\٣٣٢) . ( ٧) د ابن صباغ مالکى الفصول المهة : ١\ ٥١٣) . ( ٨) دزمخشرى الکشاف : ٣\٤٦٧)

 

ستاېنه

ðڅوک چې د خپل مؤمن ورور مخامخ صفت او  تر شا غيبت کوي؛نو د ځان او هغه ترمنځ يې د حرمت او درناوي پرده څيرې کړې ده . ( الامالي للصدوق : ٥٨١)

ðپاک خداى زما ورور “علي بن ابيطالب” ته بې شمېره فضايل ورکړي؛نو څوک يې چې يو فضيلت ولولي يا ووايي او ايمان پرې لري؛ نو خداى يې ټول تېر او راتلو نکي ګناهونه بښي او څوک چې د هغه يو فضيلت وليکي؛نو تر هغه چې دا ليکنه پاتې وي،ټولې پرښتې ورته بښنه غواړي او څوک يې،چې يو فضيلت واوري؛نو اورېدل شوي ګناهونه به يې وبښل شي او څوک چې د”علي” ليکل شوى فضيلت وويني؛نو ليدل شوي ګناهونه يې بښل کېږي .

وګورئ : ( ذهبي،ميزان الاعتدال ٣\٤٦٦ .لسان الميزان : ٥\٦٢)خوارزمي ، مناقب ٣٢مخ – شيخ سليمان قندوزى حنفي ١\ ٣٦٤- ګنجي شافعي ، کفاية الطالب ٢٥٢مخ – فرايد السمطين ١\مجلسي بحارالانور: ٢٦\ ٢٢٩)

 

سړيتوب او انسانيت

ð (د حلالو لاس ته راوړ او لګولو له پلوه) د شتمنۍ سمونه په سړيتوب او انسانيت کې شمېرل کېږي .(من لايحضره الفقيه ٣\١٦٦)

ðشپږ څيزونه په سړيتوب کې شمېرل کېږي،چې درې يې د اوسېدو لپاره دي : د قرآن لوستل،د الهي جوماتو جوړول او(د خداى لپاره) له وروڼوسره دوستي کول او درې د سفر لپاره دي :سخاوت،ښه خوى او بې ګناه ټوکې کول . (وسايل الشيعه ١١ \٤٣٦)

ðد سړي حسب او  اصليتوب په دين،عقل،شرافت،ښه خوى،عزت او تقوا کې رانغښل شوى دى( نه په خېل او ټبر کې). ( الکافي ٨\٧٩)

ðچا چې د مړينې پر مهال پوره وصيت نه وي کړى؛نو سړيتوب او عقل يې نيمګړى دى .(من لايحضره الفقيه٤\١٨٧  

ðڅوک چې له خلکو سره په راکړه ورکړه کې تېرى و نه کړي او ورسره پر کړې وعدې وفا وکړي؛نو سړيتوب يې پوره،عدالت يې څرګند، دوستي ورسره لازم او غيبت يې حرام شوى دى . ( الخصال ١\٢٠٨)

ðد چاچې (د دنيا لپاره) غم او خپګان ډېر شي؛ نو بدن يې ناروغېږي او څوک چې بداخلاقه شي؛نو ځان ته عذاب ورکوي او څوک چې نورو ته کنځلې وکړي؛نو خپل سړيتوب له لاسه ورکوي .(وسايل الشيعه ١٢\٢٤٠)

 

خلک

ðد خلکو د بدۍ پر وړاندې له بدۍ ډډه وکړئ؛ځکه د بې پتۍ اوعزت له منځه وړو لاملېږي .( وسايل ١٢\٢٤١)

ðڅوک چې د خلکو خوشحالول تر الهي غوسې غوره وګڼي(؛نو) خلکو،چې هغه ستايه (يوه ورځ يې) رټي او څوک چې الهي لارښوونې د خلکو تر خپګان غوره وبولي؛نو خداى يې د هر دښمن د دښمنۍ او د هر کينه کښ د کينې او د هر ظلم پر وړاندې مرستندوى دى او خداى ورته بس دى .(الکافي ٢\ ٣٧٢)

ðانسان ته يې يو عيب بس دى،چې د خلکو (له عيبو) سترګې پټې کړي او ځان ته يې پام شي او خپل ملګرى په هغو چارو کې و نه ځوروي،چې ور پورې اړه نه لري .( الکافي ٤\٤٦٠)

ð ډېر عادلين هغه دي،چې : څه چې ځان ته خوښوي،خلکو ته هم خوښ کړي او چې ځان ته يې نه خوښوي،خلکو ته يې هم خوښ نه کړي . ډېر ځيرک هغه دي،چې مرګ ډېر يادوي . ډېر غافل هغه دي،چې د دنيا د حالاتو له اوښتو راوښتو پند وا نه خلي .ارزښتمن هغه دى،چې دنيا ته پر ارزښت قايل نه وي.  ډېر پوه هغه دي،چې پر خپلې پوهې د نورو پوهه هم ورزياتوي .مېړني هغه دي،چې پر ځاني غوښتنو برلاسي وي . عزتمن هغه دي،چې پوهان يې عزتمن وي اوناپوهه يې ټيټ وي .کينه کښ له ډېرې لږي برخې برخمنېږي . بخيل تر ټولو ډېر لږ  سوکاله وي . ډېر بخيل هغه دى،چې د خداى فرايض نه ورکوي . حق ته ډېر وړ هغه دي،چې پرې پوهېږي . فاسقان ډېر بې عزته خلک دي . مملوک(او ترلاس لاندې) ډېر بې وفا دي .واکمن ډېر ناملګرى او نادوسته او طماع او تمه کوونکي ډېر نشتمن وي . غنيان هغه دي ،چې د حرص په لومه کې ښکېل نه وي . د ايمان له پلوه د ښه خوى خاوندان اوچت خلک دي او پرهېزګارن عزتمن خلک دي .ستر خلک هغه دي،چې کوم کار ورپورې اړه نه لري،لاسوهنه پکې نه کوي .(په ګناه نه کولو کې) ډېر محتاط خلک هغه دي ،چې شخړې نه کوي،که څه هم په حقه وي . د سړيتوب له پلوه هغه ډېر ټيټ دي،چې دروغ ووايي . (کبرجن) واکمن ډېر بدمرغه وي او کبرجن د خلکو ډېر بد ايسي . ډېر زيارکښ هغه دي ،چې ګناهونه پرېږدي.حکيمان هغوى دي،چې له ناپوهو وتښتي . نېکمرغه هغه دي، چې له عزتمنو سره ناسته پاسته وکړي . ډېر عقلمن هغه دي،چې له خلکو سره نرمي او ښه چلن کوي .په هغوى پسې تورونه لګېږي،چې له بدکارانو سره ملګرتوب کوي . ډېر سرغړانده هغه دي،چې بې ګناه ووژني يا چاچې وهلى نه وي،و يې وهي . ښه عفوه کوونکى هغه دى، چې د وسمنۍ پر مهال عفوه کوي . ناپوهه غيبت کوونکى ډېر ګناهګار دى . ډېرخوار هغه دى،چې خلک سپک کړي . ښه زغمناک هغه دى،چې خپله غوسه تېره کړي . ډېر صالح هغه دى،چې خلکو ته نېک وي او غوره هغه دى،چې خلکو ته ګټور وي . (من لايحضره الفقيه  ٤\ ٣٩٤)

 

مړينه

ðمرګ عبرت اخستو ته بس دى . ( تحف العقول : ٣٥مخ )

ðپاک خداى وايي: ما هېڅکله پخپلو چارو کې د خپل مؤمن بنده د مړينې په اړه شک نه دى کړى؛ځکه زه يې ليدل غواړم؛خو د هغه مړينه ښه نه ايسي؛نو مړينه يې ځنډوم (يايې مقام ورښيم،چې بد ايسېدنه يې له منځه ولاړه شي ) . (الکافي ٢\ ٢٤٦)

 [ تبصره : خداى له شکه پاک دى؛خو دلته شک په مجازي مانا کارول شوى، چې بشري ذهن پرې پوه شي يا تمثيلي استعاره ده،په دې باب وګ : مجلسي:فى مرآة العقول فى شرح اخبار الرسول ٩\٢٩٧مخ ]

ðمؤمن د مړينې پر مهال “ملک الموت” ته داسې درېږي؛لکه مريى،چې خاوند ته او تر هغه لاس نه ورلاندې کوي،چې سلام پرې واچوي او د جنت زېرى ورکړي . ( من لا يحضره الفقيه ١\ ١٣٥)

ðد مؤمن عزت دادى،چې په بيړه ښخ شي.(من لايحضره الفيقه : ١\ ١٤٠)

 ðعلي! بنده چې ومري،خلک وايي:چې څه يې پرېښي ؟ او پرښتې وايي: څه يې لېږلي ؟ ( پورته ٤/٣٦٢)

ðڅوک چې د خپلې زمانې “امام” ونه پېژني او ومري؛نو په جاهلي (او بې ايمانه) مرګ به مړشوى وي .(بحارالانوار ٤\٣٦٢)

ðپر چاچې د کوم مشر (او امام) د بيعت مسووليت نه وي ورترغاړې او ومري ؛نو په جاهلي مړينه به مړشوى وي . (بحارالانوار ٢٣\٩٤)

 

پراخي

ðپوه شه!په صبر (الهي) مرسته تر لاسه کولاى شې او پراخي له سختۍ سره مل ده؛نو په يقين له سختۍ سره اساني ده او په واقع کې له هرې سختۍ سره اساني ده . ( وسايل  ١٥\٢٦٣)

 

ګومان

ðپوه شه چې ډار،کنجوسي او حرص د بدګومانۍ لامل دي . (من لايحضره الفقيه  ٤\٤٠٦)

ðځان له بدګومانۍ وژغورئ؛ځکه ناوړه دروغ دي .( وسايل ٢٧\٥٩)

ðڅوک چې غواړي په پاکۍ او سپېڅلتيا له خداى سره وګوري؛نو بايد واده وکړي او څوک چې د لګښت له امله واده و نه کړي ؛نو په يقين د خداى (په فضل) به بدګومانه شوى وي . (من لايحضره الفقيه٣\٣٨٥)

ðله دنيا سره مينه د هرې ګناه بنسټ دى او پر خداى ښه ګومان د هر عبادت بنسټ دى . ( مستدرک الوسايل ١٢\٤٠)

ðله کينې،پال نيونې،تېري،بدګومانۍ او چغلۍ ډډه وکړئ . (مستدرک الوسايل  ١٢ \٨٧)

 

بې لاري

ðڅوک چې زما د سنتو پر خلاف عمل کوي؛نو بې لارې شوى دى او کړه وړه يې پو پنا کېدو ته راکاږي . (وسايل الشيعه ١\١٠٩)

ðتر ځان وروسته مې د امت لپاره له درېوڅيزونو ډارېږم : (١) تر پوهې وروسته بې لاري (٢) په فتنو کې ښويېدل(٣) او د ګېډې او عورت شهوت . ( الکافي : ٢\٧٩)

ðهر بدعت بې لاري ده او د هرې بې لارۍ پايله اور دى . (الکافي  ١\٥٦)

 

ګناه

ðدګناه وړوکوالي ته مه ګوره؛بلکې وګوره،چې له چا دې سرغړولى دى . ( مکارم الاخلاق:مخ ٤٦٠)

ðله درې سترو ګناهونو ځان وژغورئ :(١) کينه ( ٢) حرص (٣) او دروغ. ( الخصال ١\ ١٢٤)

ðهرومرو له تمې ځان وژغورئ؛ځکه ډېر حرص له زړه سره ګډېږي او له دنيا سره مينه پر زړه ټينګ مهر لګوي او له دنيا سره مينه د هرې ګناه کونجي،د هرې تېروتنې سرچينه او د ټولو ثوابونو د له منځه تلو لامل دى .( مستدرک الوسايل ١٢\٧٠)

ð څوک چې ګناه کوي ؛نو له روزۍ بې برخې کېږي . ( کنز ٦/٤٧٣)

ð ګناهونه دې کم کړه،چې ساه اېستل دې اسان شي . (کنز ١٥/٨٥٥)

ðله اوو نابودوونکيو ګناهونو ځان وژغورئ . وپوښتل شو: رسول الله ! دا کومې دي ؟ ويې ويل : له خداى تعالى سره شرک ، د بې ګناه  انسان وژنه ،د سود خوړل ، د يتيم د مال خوړل،له جهاده تېښته ،پاکلمنې او له فساده ناخبره ښځې تور نول . (بخاري : ٢٧٦٧ ح )

ðله ساده او کوچنيو ګناهونو ځان وژغورئ؛ځکه په اړه يې پوښتل کېږئ .(ابن ماجه – بيهقي –الدارمي)

ðزنا چې ډېره شي،ناڅاپي مړينې زياتېږي . ډنډۍ وهل،چې دود شي، خداى خلک په سوکړې اخته کوي . خلک،چې زکات ور نه کړي؛ځمکه ترې له کرنې،محصولاتو او کانو خپل برکتونه سمپوي .که په پرېکړو او قضاوت کې تېرى او په ظلم کې د يو بل لاسنيوى وشي او وعده ماتول دود شي؛خداى د خلکو دښمنان پرې برلاسوى . که نازړه سوى دود شي؛ نو شتمني د اشرارو لاسونو ته لوېږي . که پر نېکيو امر او له بديو منع ونشي او خلک زما د کورنۍ په نېکانو پسې ولاړ نشي،خداى پرې ډېر ناوړه خلک برلاسوي،پر دې مهال يې که نېکان (هم) دعاوکړي؛نو نه قبلېږي .( الکافي ٢\٣٧٤)

ðګناهونه نعمتونه بدلوي،ظلم  د پښېمانۍ او د حرمت د له منځه وړو لامل دى،وژنه د کينې لامل دى،شراب څښل روزي تنګوي،زنا د ناڅاپي مړينو لامل دى.د زړه سوي نه کول،د دعا د نه قبلېدولامل دى او د موروپلار عاق کول،عمر لنډوي او د لمانځه پرېښوول خواري او بدمرغي راولي . (مستدرک الوسايل ١٢\٣٣٤)

ðدرې ګناهونه دي،چې سزا يې ژر انسان ته ورترغاړې کېږي او تر آخرته نه ځنډېږي : ( ١) د موروپلار عاق کېدل ( ٢) پر خلکو تېرى ( ٣) او ناشکري .( مستدرک الوسايل ١٢\ ٣٦٠)

ðپه ګناه کې څلور څيزونه تر خپلې ګناه ډېر ناوړه دي : (١) (خپلې ګناه ته)سپک کتل(٢) (په ګناه کولو) وياړل(٣) (د ګناه په پاکولو) خوشحالېدل او (٤) (پرګناه) ټينګار کول . (مستدرک الوسايل ١١\٣٤٨ )

ðابوذره!د ګناه کوچنيتوب ته دې مه ګوره،د هغه (ستريا) ته وګوره، چې سرغړاوى دې ترې کړى،ځان ته دې جرات ورکړى،چې سرغړاوى ترې وکړې . ( مستدرک الوسايل ١١\ ٣٤٩)

ðهيڅوخت ګناه وړه او سپکه مه بوله او د سترو ګناهونو له کولو ډډه وکړه؛ ځکه بنده چې د قيامت پر ورځ خپلو ګناهونو ته ګوري؛نو په ژړا کې يې له سترګو وينې څاڅي .خداى وايي : پر هغه ورځ،چې چا نېک يا بد کار کړى وي،حاضر ويني او هيله کوي،چې کاشکې د هغو او ناوړه کړنو ترمنځ يې ډېر واټن واى . (مستدرک الوسايل ١١\٣٥٠)

 ðيو شر هم کم مه ګڼئ،که څه هم کوچنى درته ښکاره شي او يو خير هم ډېر مه ګڼئ،که څه هم لوى درته ښکاره شي؛ځکه له استغفار سره يوه ګناه (هم) ستره نه ده او پر ګناه ټينګار کولو سره  يوه ګناه(هم ) کوچنۍ نه ده . ( من لايحضره الفقيه : ٤\١٧ )

ðخداى درې څيزونه په درېوڅيزونو کې پټوي : (١) خپله خوښي په اطاعت کې ( ٢) خپله غوسه له هغه نه په سرغړاوي کې ( ٣) او خپل ولي (او دوست) پخپلو مخلوقاتو کې؛نو هېڅکله يو الهي عبادت هم ټيټ او خوار مه ګڼئ . څوک څه پوهېږي په کوم يوه عبادت کې الهي رضا نغښتې ده.يوه ګناه هم کوچنۍ مه ګڼئ او څوک څه پوهېږي،چې خداى په کومه ګناه غوسه کېږي او نه ښايي د خداى کوم بنده ته ټيټ وګورئ او بې ارزښته يې وبولئ؛ځکه څوک  څه پوهېږي کوم بنده د خداى “ولي” دى . ( بحارالانوار ٧٢\١٤٧)

ðله اوه ګونو وژونکيو ګناهونو ځان وژغورى 🙁 ١) له خداى سره شرک (٢) کوډې کول (٣) ناحقه وژنه(٤) سود خوړل (٥) د پلار مړي مال خوړل  ( ٦) د جګړې له ډګره تېښته (٧) او (له ګناه) پر بې خبرو پاکلمنو مؤمنو ښځمنو ناروا تورونه لګول . ( الخصال ٢\ ٣٦٤)

ðله ګناه توبه ګار د داسې چاپه څېر دى؛لکه ګناه،چې يې نه وي کړي . (عيون اخبارالرضا ٢\٧٤)

ðابوذره! خداى،چې کوم بنده ته کوم خير ور ډالۍ کوي؛نو ګناهونه يې ورته تل په سترګو کې انځوروي .(مستدرک الوسايل ١٢\١٣٨)

 

غوږ

ðد سترګې او غوږ روغتيا ته مو پام وسه . ( دعائم لاسلام  ١\ ٣٢٦)

ðعلي! خداى راته حکم وکړ،چې ځان ته دې رانږدې کړم او در و يې بښم ،چې ياد يې کړې او د ((وتعيها اذن واعيه = اورېدونکى غوږ  يې په ياد ساتي)) آيت ستا په باب نازل شوى دى .

 (فتح الباري :١٣\٤٣٩،جامع البيان لابن جريرالطبرى : ٢٩ \٦٩ ،تفسير الرازي : ٣٠ \ ١٠٧ = تفسير “ابن کثير” : ٤\٤٤١= الدرالمنثور ٦\٢٦٠= تفسير الالوسي : ٢٩ \ ٤٣)

 

غوښه

ðغوښه وخورئ،چې (پر بدنو مو) د غوښې د راټوکېدو لامل دى او څوک چې څلوېښت ورځې غوښه ونه خوري،بد خويه کېږي؛نو ښه غوښه پرې وخورئ او څوک چې څومره “وازده” وخوري؛نو بدن يې په هومره درد اخته کېږي . (المحاسن ٢\٤٦٥)

ðيو پېغمبر، پاک خداى ته له خپلې بدني کمزوۍ شکايت وکړ. ورته يې وحې وکړه چې:غوښه له شيدو سره پخه کړه؛ځکه برکت او شفا مې پکې ايښې ده . ( بحارالانوار ٥٩\٢٩٤)

 ðغوښه د دنيا او آخرت خواږه خواړه او اوبه د دنيا او آخرت خواږه څښاک دي . ( عيون اخبارالرضا ٢\٣٥)

ðپر چاچې څلوېښت ورځې تېرې شي او غوښه و نه خوري (که بېوسى وي)؛نو “قرض الحسنه” دې واخلي او غوښه دې وخوري .( الکافي  ٦\٣٠٩)

ðهره جمعه خپلې کورنۍ ته څه مېوه او غوښه واخلئ ،چې د جمعې په رارسېد و خوشحاله شي . ( من لايحضره الفقيه  ١\٤٢٣)

ðخداى پر تاسې”قرباني” ددې لپاره کېښووه،چې مسکينانو ته غوښه ورکړئ؛نو (تر قربانۍ) وروسته هغوى ته غوښه ورکړئ،(چې ويې خوري). (من لايحضره الفقيه ٢\٢٠٠)

 

ګوښه کېناستل

ðزما په دين کې رهابنيت او ګوښه کېناستل،ناواده توب او چوپتيا نشته .( الخصال  ١\١٣٧)

 

ځېل

ðعلي! له ځېله ځان وساته ،چې پيل يې ناپوهي او پاى يې پښېماني ده. ( تحف العقول : ١٣ مخ )

ðله ځېله ډډه وکړئ؛ځکه پېل يې ناپوهي او پاى يې پښېماني ده . (تحف العقول : مخ ١٤٩ )

 

لعنت

ðخداى سودخور، د سود شاهدان او ( د سود د سند) پر ليکونکي، چې پوهېږي (دا سود دى) لعنت کړي دي . (مستدرک الوسايل ١٣\٣٣٦)

ðڅوک چې يو څه (يا کوم تن) لعنت کړي؛خو د لعنت وړ نه وي ؛نو لعنت يې بېرته همده ته ورګرځي .( بحارالانوار ٧٥\١٩)

ðخداى دې هغوى لعنت کړي،چې د “اسامه بن زيد” له لښکره سرغړونه وکړي .(يعقوبي تاريخ٢\١١٣- السيرة الحلبية ٣\٢٢٨- تاريخ مدينه دشق ٨\٦٢)

ðزما په امت کې،چې بدعتونه راښکاره شي؛نو بايد عالم خپله پوهه راڅرګنده کړي ( چې پوهې د بدعت مخه ونيسي) او که داسې و نه کړي؛نو دخداى لعنت دې ورباندې وي . (الکافي ١\٥٤)

ðمؤمن چې بې عذره دروغ ووايي؛نو اويا زره پرښتې پرې لعنت وايي او له زړه يې بدبوى راپورته کېږي،چې عرش ته وررسي او د عرش وړونکي پرې لعنت وايي او خداى ددې دروغو له امله په کړن ليک کې ورته د اويا زناوو سزا ليکي،چې ډېره لږه يې له خپلې مورسره د زنا سزا وي . (مستدرک الوسايل : ٩\٨٦)

 

لواط

ðڅوک چې له کوم هلک سره لواط وکړي،د قيامت پر ورځ به په داسې حال کې جنب محشر ته راشي ،چې د دنيا اوبو به نه وي پاک کړى . خداى به ورته سخت غوسه وي او لعنت به يې کړي او هستوګنځى يې دوزخ دى،چې څه ناوړه هستوګنځى دى.( الکافي ٥\٥٤٤)

ðڅوک چې کوم هلک د شهوت له مخې ښکل کړي،خداى به يې د قيامت پر ورځ په خوله کې اورينه کيزه وچواي . (الکافي ٥\ ٥٤٨)

ðڅوک چې ښځه،هلک يا سړى وطې کړي؛خداى هغه د قيامت پر ورځ داسې پاڅوي، چې له يوې مردارې  ډېر بد بويه وي،چې خلک يې له بده بويه ځورېږي،څوجهنم ته ننوځي .( جامع الاخبار : ١٤٦)

 

زنا – بدلمني

ðتر ما وروسته،چې زنا ډېره شي؛نو ناڅاپي مړينې هم ډېرېږي . (الكافي  ۵\۵۴)

ðزنا د انسانانو د بېوزلۍ او د ښارونو د ويجاړۍ لامل ګرځي .(من لايحضره الفقيه۴\۲۰ )

ðزنا او خير په يو كور كې نه راټولېږي . ( الجفريات : ۹۹)

ðزنا پينځه ځانګړنې لري : ( ۱) ابرو له منځه وړي . ( ۲) د بېوزلۍ لاملېږي (۳) عمر  لنډوي  ( ۴) د لورين خداى د غوسې لاملېږي ( ۵) او انسان همېشه دوزخي كوى . خداى ته د دوزخ له اوره پناه وړو. ( الكافي  ۵\۵۴۲)

ðڅلور څيزونه دي،چې كه هر يو يې يو كور ته ننوځي؛نو كور  ورانوي او بركت ورته نه ننوځي :خيانت،غلا،شراب خوړل او زنا . ( وسايل الشیعة  ۲۸\۲۴۲)

ðيوازې ارموني دي،چې پېغمبران او زامن يې وژني . (كامل الزيارات : ۷۹مخ )

ðځمكه خداى تعالى ته له درېو څيزونوسختې چغې وهي: (۱)هغه وينه،چې په حرامو تويه شي.( ۲) د هغه غسل اوبه،چې د زنا له امله پر ځمكه تويه شي (۳) او تر لمرخاته مخكې خوب . ( الحضال ۱\ ۱۴۱)

ðد قيامت پر ورځ زناكار د دوزخيانو پر سر راولي او له شرمځي يې يو څاڅكى تویېږي،چې دوزخيان يې له بدبويۍ تنګېږي او د عذاب پرښتوته وايي : دا څه بدبوى دى،چې موږ يې تنګ كړي يو؟ (الجعفريات : ۹۹)

ðسړى د زنا او غلا پر مهال مؤمن نه دى . ( الكافي ۲\ ۲۸۴)

 

نبوي کورنۍ

ðد شورى سورت د ٢٣ آيت : [ قُل لَّا اسأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَى= زه له تاسې پر خپل رسالت هېڅ بدله نه غواړم؛خو (زما) له خپلوانو (= اهلبيتو) سره مينه (هرومرو غواړم) ]  په باب د “سعيد بن منصور”په سننو کې له “سعيد بن جبير” روايت دى : راغلي،چې “قربى” خپله رسول الله ( صلى ا لله عليه واله وسلم ) دى .

 “ابن المنذر”،”ابن حاتم” او “مردويه” په خپلو تفاسېرو کې او “طبراني” په “معجم الکبير”کې له “ابن عباس” روايت کړى،چې : د قل لا اسئالکم الى ……… آيت،چې نازل شو؛نو”رسول الله” وپوښتل شو،چې پر موږ ستا له کومو خپلوانوسره مينه کول واجب شوي دي ؟ورته يې وويل : علي،فاطمه او دوه زامن يې (حسن اوحسين) .

ð”ابن ابي حاتم” له “ابن عباس” د[ ومن يقترف حسنة – او څوک چې “ښه عمل” وکړي ] آيت په باب روايت کړى،چې : دا ښه عمل د حضرت محمد( صلى الله عليه وآله وسلم) له کورنۍ او ځوځات سره مينه ده . په آيت کې له (( حسنة)) مطلب له اهلبيتو سره مينه ده .

  ð”احمد”،”ترمذي”،”نسائي” او”حاکم” له”عبدالمطلب بن ربيعه” روايت کړى،چې رسول الله (ص) وويل : پر خداى قسم !  د چا په زړه کې تر هغه وخته (ايمان) نه ننوځي،څو د خداى او زما لپاره (زما له کورنۍ) سره مينه و نه لري .

 ð”مسلم”،”ترمذي” او”نسائي” له حضرت”زيدبن ارقم” روايت کړى : په رښتياچې پېغمبر اکرم وويل : له خدايه ووېرېږئ (هسې نه) زما له کورنۍ او ورسره له مينې شا وګرځوئ .

ðاو په “صحيح مسلم” ( ٧باب ،د حضرت “علي بن ابيطالب” فضايل ، پينځم حديث)کې “مفصل” له حضرت “زيدبن ارقم” روايت کړى،چې (پېغمبراکرم ) وويل :له خدايه ووېرېږئ، دا يې درې ځل وويل .

ð “ترمذي” او “حاکم” له  حضرت “زيدبن ارقم” روايت کړى،چې رسول اکرم وويل : زه درته دوه څيزونه (امانت) پرېږدم، که تر ما وروسته پرې منګولې ښخې (او عملي يې) کړئ؛نو هېڅکله به بې لارې نشئ، چې هغه د خداى کتاب (قرآن) او زما د اهلبيتو ځوځات ( عترت) دى او هيڅکله له يو بله نه بېلېږي،څو په “حوض” کې ماته راشي؛نو وګورئ (چې تر ما وروسته) له دې دواړو(امانتونو) سره څه ډول چلن کوئ ؟

 ð”عبد بن حميد” په خپل مسندکې له “زيدبن ثابت” روايت کوي چې : پېغمبر اکرم وويل : زه په تاسې کې داسې څه پرېږدم،که منګولې مو پرې ولګولې (او عمل پرې وکړئ)؛نو تر ما وروسته به هېڅکله بې لارې نشئ،چې هغه “کتاب الله” ( قرآن ) او زما “ځوځات” – زماکورنۍ – دي او دوى هېڅکله له يوبله نه بېلېږي ،څو په “حوض” کې ماته راشي .

 ð”احمد” او “ابويعلي” له حضرت “ابي سعيد الخدري” روايت کړى،چې رسول الله(ص)  وويل : نژدې دى،چې  وبلل شم او دا بلنه ومنم او زه په تاسې کې دوه څيزونه پرېږدم ،چې “د خداى کتاب” (قرآن) او زما “ځوځات” (زما کورنۍ) دي،بېشکه چې لورين او خبير خداى خبر کړى يم ،چې دا دواړه هېڅکله له يوبله نه بېلېږي،څو په  “حوض”کې ماته راشي ؛نو وګورئ، چې تر ما وروسته ورسره څه ډول چلن کوئ ؟

ðزما د اهلبيتو مثال د”نوح” د بېړۍ په څېر دى،څوک چې پکې کېناست وژغورل شو او چاچې ترې سرغړونه وکړه؛نو پوپنا شو. (بحارالانوار ٢٣\١٢٣)

ð”ترمذي” او”طبراني” له “ابن عباسه” روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) وويل : له خداى سره د ډېرو درکړل شويو پېرزوينو له امله  مينه ولرئ او له ما سره د خداى لپاره او زما لپاره،زماله کورنۍ سره مينه ولرئ .

ð”شيخ قندوزي” (ينابيع المودة ٢٤١ مخ) روايت کوي چې: پېغمبراکرم ( ص) وويل : له “آل محمد” سره يوه  ورځ دوستي او مينه تر يوه کاله عبادته غوره ده .

 ð “امام بخاري” له حضرت ابي بکر(رض) روايت کوي،چې پېغمبراکرم (ص) وويل : د پېغمبر په پار کورنۍ يې وپالئ. (ارقبوامحمدا فى اهلبيته)

 ð”طبراني” او”حاکم” له حضرت”ابن عباس” څخه روايت کوي، چې رسول اکرم (ص) وويل: د”عبدالمطلب” اولادې ! تاسې ته مې له خدايه د درې څيزونو ټينګېدا غوښتې ( چې دا دي ): ستاسې ناپوهه، پوه کړي،بې لارې مو پرلارې کړي او تاسې د بخشش خاوندان او زړه سواندي وګرځوي؛نو که کوم سړى (خپل ټول عمر) په ولاړه د”رکن” او”مقام” ترمنځ پر لمانځه او روژې تېر کړي او بيا ومري او زما له اهلبيتو سره يې دښمني وي (؛نو متعال خداى) به يې په اور کې وغورځوي .

ð “طبراني” له “ابن عباس” روايت کوي،چې پېغمبراکرم (ص) وويل : څوک چې له “بني هاشمو” او “انصارو” سره دښمني لري؛کافر دى او له عربوسره دښمني نفاق دى .

ð”ابن عدى” په “الکامل” کتاب کې له حضرت “ابي سعيد خدري” نه روايت کوي،چې پېغمبر  اکرم ( ص)  وويل :څوک چې زموږ له کورنۍ سره دښمني وکړي؛نو منافق دى .

    ð”ابن حيان” او”حاکم” له حضرت “ابي سعيد” روايت کوي، چې پېغمبراکرم وويل : پر هغه (خداى) قسم،چې زما ساه يې په لاس کې ده، څوک چې زموږ له کورنۍ سره دښمني وکړي؛نو”الله تعالى” به يې  اور (دوزخ ) ته وغورځوي .

  ð “طبراني” له  حضرت”امام حسن مجتبى” روايت کوي ،چې “معاويه بن حديج” ته يې وويل : له موږ سره له دښمنۍ ډډه وکړه، په رښتيا چې پېغمبر اکرم  وويل : له موږ سره  کينه کښ به د قيامت پر ورځ د اور په کمچينوله “حوضه” راستنول کېږي .

ð”ابن عدى” او”بيهقي” په “شعب الايمان” کې له حضرت علي (ک) روايت کړى،چې پېغمبر اکرم وويل : څوک چې زموږ کورنۍ او انصار نه پېژني؛نو له دې درېو ډلو به وي : يا به منافق وي يا ارمونى او يا ناپاکه اولاد(،چې د خپلې مور په مياشتني عادت کې به پرګېډه شوى وي )

 ð”طبراني” په “الاوسط” کتاب کې له حضرت “ابن عمر” نه روايت کوي، چې د پېغمبر اکرم وروستۍ خبره دا وه چې : زما د کورنۍ په اړه،زما ځايناستي اوخليفه واست .

يعنې تاسې ته چې خپل”اهلبيت” امانت پرېږدم ؛نو ستاسې چلن به ورسره څنګه وي .

 ð “طبراني” په “الاوسط” کتاب کې له حضرت “امام حسن” روايت کړى، چې بېشکه پېغمبر اکرم وويل : له موږ سره مينه پر ځان لازمه وبولئ ؛نو په رښتيا،څوک چې له خداى سره ويني او زموږ د کورنۍ مينه ورسره وي ؛نوزموږ په شفاعت به جنت ته ولاړشي او پر هغه قسم، چې ځان مې د هغه د ځواک په لاس کې دى،بنده ته به هله خپلې کړنې ګټورې شي ،چې زموږ پر حق پوهېدلى وي .

ð “طبراني” په “الاوسط” کتاب له حضرت “جابر بن عبدالله” روايت کوي، چې (يوه ورځ ) رسول اکرم ( ص) د ويناپه ترڅ کې وويل : خلکو!څوک چې زموږ له کورنۍ سره کينه لري؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ “يهودي” راپاڅوي .

 ð “طبراني” په “الاوسط” کتاب کې له حضرت “عبدالله بن جعفر” څخه روايت کړى، چې رسول الله ( ص) وويل : بني هاشمو! له خدايه مې غوښتي،چې تل تاسې په هوساېنه او زړه سوي کې واست ،بې لارې مو پر لارې او ډارن مو په امن کې وي او وږي مو ماړه کړي . پر هغه قسم ، چې ځان مې د هغه په واک کې دى،هغه به خوندي او په امن کې وي ،چې له ما سره د مينې له امله،له تاسې سره مينه ولري او تاسې هيلمن ياست، چې زماپه شفاعت به جنت ته ننوځئ ؛خو د عبدالمطلب (ټوله) اولاده داسې نه ده.

 ð”ابن ابي شېبه” او”سداد” په خپلو مسندو کې،”حکيم” “ترمذي” په “نوادرالاصول” او”ابويعلي” او”طبراني” له “سلمه بن الاکوع” څخه روايت کوي،چې رسول اکرم وويل : [؛لکه څنګه چې] ستوري اسمانوالو ته (د) امان (لامل) دي؛  (نو همداراز )”اهلبيت” مې امت ته امان دي .

 ð”البزاز” له حضرت “ابي هريره” (رض)  روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) وويل :په رښتيا چې په تاسې کې مې دوه څيزونه پرېښي (که لاروي يې وکړئ؛نو)هېڅکله به بې لارې نشئ(،چې هغه) “د خداى کتاب” (قرآن) او زما”عترت” او “ځوځات” دي او دوى هېڅکله تر هغه يو له بله نه بېلېږي،څو په “حوض” کې راسره يو ځاى شي .

  ð”البزاز” له “حضرت علي” (ک) روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) وويل : د ساه اخستل مې نږدې شوي دي (مړينه مې رارسېدلې) په رښتيا،چې په تاسې کې مې دوه درانه څيزونه پرېښي؛”د خداى کتاب” (قرآن) او”کورنۍ” مې (دا دواړه له بې لارۍ د ژغورنې لامل دي)؛نو په رښتيا،چې تاسې به (تر هغه چې لاروي يې کوئ) بې لارې نشئ .

ð”طبراني” په “المعجم الصغير”(٧٨مخ) کې له حضرت “ابوذرغفاري” (رض) روايت کوي، چې رسول اکرم (ص) وويل ‌: په تاسې کې زما کورنۍ (اهلبيت) داسې ده؛لکه د “نوح” په قوم کې يې بېړۍ ؛نوڅوک چې پکې سپور شو؛وژغورل شو او چاچې سرغړاندي وکړه ( او لرې شو) هلاک شو او په تاسې کې زما کورنۍ په “بني اسرائيلو”کې د”باب حطه” ( د توبې او انابې ور) په څېر ده؛نو څوک چې ورننووتل؛وبښل شول .

 ð “طبراني” په “الاوسط” کتاب کې له حضرت“ابي سعيدالخدري” (رض) روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) وويل : په رښتيا چې زما کورنۍ د “نوح” د بېړۍ په څېر ده،څوک چې پکې سپاره شو؛وژغورل شو او چاچې سرغړونه وکړه؛نو غرق شو او په رښتيا،چې په تاسې کې زما کورنۍ (اهلبيت) په “بني اسرائيلو”کې د “باب حطه” په څېر ده ؛څوک چې ورننووت (؛نو) وبښل شو.

 ð “طبراني” له حضرت “عمر”( رض) روايت کړى،چې پېغمبر اکرم وويل : د هرې مور اولاد پلار ته منسوبېږي؛خو بې د فاطمې له اولادې ؛ نوپه رښتيا،چې زه يې خپلوان او پلار يم .

 ð “طبراني” له حضرت فاطمې بي بي روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : د هرې مور اولاد يې پلار او خپلوانو ته منسوبېږي؛خو د فاطمې له اولادې پرته (چې) زه يې “ولي” او “خپل” يم .

 ð “حاکم” له حضرت “جابر” روايت کوي ،چې پېغمبراکرم (ص) وويل : د هرې مور اولاد پلرني ټبر ته منسوبېږي؛خو د فاطمې اولاد،چې زه يې ولي ، ټبر او خپلوان يې يم .

 ð “طبراني” له “جابر” روايت کوي،چې حضرت”عمربن خطاب” (رض) د حضرت “علي” د لور د نکاح پر وخت وويل :=ولې راته مبارکي نه وايئ ،چې له رسول اکرم مې اورېدلي،چې ويې ويل ‌: د قيامت پرورځ  ټول سببونه او نسبونه پرې کېږي ؛خو بې زما له سبب او نسبه .

 ð “طبراني” له “ابن عباس” روايت کوي چې پېغمبر اکرم وويل :  د قيامت پر ورځ……..))

 ð “ابن عساکر” په خپل تاريخ کې له حضرت “ابن عمر” روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : د قيامت پر ورځ هر سبب او زومولي پرې کېږي؛خو نه زما نسب او زومولي .

يادونه : دا حديث “ابن کثير”په خپل تفسير( ٧/٣٧)،”ابن حجر”په “الصواعق المحرقه” ( ٢٣٤مخ ) او په “فتح البيان في تفسيرالقرآن” ( ٦/ ٢٦١٩ )کې هم رااخستل شوى دى .

 ð “حاکم” له حضرت “ابن عباس” روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : ستوري د ځمکې اوسېدونکي له ډوبېدو خوندي ساتي او زما کورنۍ،زما امت له اختلاف او خپرېدو خوندي ساتي او که کوم ټبر يا ډله زما له اهلبيتو سره مخالفت وکړي؛نو اختلاف به يې پخپله ورترغاړې شي او د ابليس په ګوند کې به وي .

 ð “حاکم” ( المستدرک ٣/١٥٠) له حضرت انس نه روايت کوي، چې پېغمبر اکرم وويل : خداى راسره زما د اهلبيتو په اړه ژمنه کړې،چې که هر يو يې پر “توحيد”اقرار وکړي؛نو  له واره ورته ويل کېږي،چې خداى به يې پرعذاب نه کړي .

ð”ابن جرير” په خپل تفسير( ٣٠/٢٣٢) کې ددې آيت (پالونکى دې ورته دومره دربښي،چې راضي شي)  په اړه له ابن عباسه روايت کوي، چې هله به پېغمبر اکرم راضي شي،چې له کورنۍ يې يو هم اور( دوزخ )  ته ولاړ نشي.

ð”حاکم حسکاني” (شواهدالتنزيل ٢/ ٣٤٥) له پېغمبراکرم (ص) روايت کوي، چې دومره مې د امت شفاعت کوم،چې د خداى له لوري غږ وشي : محمده ! راضي شوې! بيا وايم : هو.

ð او له حضرت ابن عباسه په بل روايت کې راغلي،چې خداى تعالى دپېغمبر اکرم  ځوځات جنت ته ننباسي .

 ð “البزاز”،”ابويعلي”،”العقيلي”،”طبراني” او”ابن شاهين” په سننو کې له حضرت “ابن مسعود” روايت کوي ،چې پېغمبر اکرم  وويل : په رښتيا چې “فاطمه” يوه پرهېزګاره او پاکلمنې وه ؛نو ځکه يې خداى تعالى پر ځوځات اور حرام کړ.

ð “طبراني” له حضرت “ابن عباس” روايت کوي،چې رسول اکرم (ص) حضرت فاطمې ته وويل : په رښتياچې ته او اولاد به دې د دوزخ له اوره لرې واست .

 ð”ترمذي”( صحيح   ١٩٩مخ ) له “حسن”  او “جابره”  روايت کوي،چې پېغمبر اکرم ( ص) وويل : خلکو! په رښتيا،چې ما تاسې ته دوه څيزونه پرېښي،که منګولې پرې ښخې کړئ (؛نو) هېڅکله به بې ﻻرې نشئ او هغه “د خداى کتاب” (قرآن) او زما”ځوځات” او اهلبيت دي . (بغوى؛مصابيح السنة :٢٠٦مخ)

 ð”خطيب بغدادي” په خپل تاريخ (٢\١٤٦)کې له حضرت علي(ک) روايت کړى،چې پېغمبر اکرم وويل : زه به مې د خپل امت او د اهلبيتو د مينوالو شفاعت کوم .

 ð “طبراني” له حضرت ابن عمر څخه روايت کوي : رسول اکرم وويل : زه به په خپل امت کې تر ټولو ړومبى د خپلو اهلبيتوشفاعت کوم.

ð “طبراني” له حضرت “مطلب بن عبدالله بن حنطب”  نه روايت کوي: پېغمبر اکرم په “جحفه” کې وويل : زه تر تاسې ړومبى يم؟ ويې ويل : هو رسول الله ! بيا يې وويل :زه به تاسې د دوو څيزونو؛ قرآن او عترت (او زما اهلبيتو)په باب وپوښتم (دا مطلب “ابن اثير”په “اسدالغابه” (٣\١٤٧)کې په لنډ تفسير سره هم را اخستى دى)

 ð “طبراني” له حضرت ابن عباسه  روايت کوي،چې پېغمبراکرم وويل: (دقيامت پر ورځ)بنده ﻻ قدم نه وي پورته کړى،چې څلورو څيزونه ترې پوښتل کېږي :

١- خپل عمر دې په څه کې تېرکړى دى .

٢- تنه(ياځواني) دې په کومه ﻻر کې لګولې وه.

٣- شتمني دې له کومې ﻻرې تر ﻻسه کړې اوچېرته دې لګولې ده.

٤_ او(په زړه کې دې ) زموږ له کورنۍ سره مينه درلوده (که نه)؟

ð “ديلمي” له حضرت على روايت کوي،چې پېغمبر اکرم به ويل : لومړى تن، چې د “حوض” پر غاړې به راته راځي ،زما له اهلبيتو به وي .

  ð”ديلمي” له حضرت علي (ک)روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : خپل اولادونه پر درېوڅيزونو وروزئ :

١- له خپل پېغمبر سره په مينه .

٢- د پېغمبر اکرم  له کورنۍ سره په مينه .

٣- د قرآن پر لوستو او ورباندي په پوهېدو. په رښتيا، د چاچې له قرآن سره مخه وي؛نو په قيامت کې به (د الهي رحمت) تر سيوري لاندې، د هغه له انبياوو او اصفياوو سره وي،چې پر هغه ورځ به بې له الهي پېرزوينواوعنايت بل سيورى نه وي .

ð “ديلمي” له حضرت علي (ک) روايت کوي،چې پېغمبراکرم وويل : (په قيامت کې ) پر( پل) صراط به د هغوى قدمونه تر ټولوټينګ وي، چې زما له اهلبيتو او اصحابوسره يې ډېره مينه وي .

 ð “ديلمي” له حضرت علي (ک) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : په قيامت کې به د څلورو ډلو شفاعت وکړم :

١- هغوى چې زما د ځوځات عزت  وکړي .

٢- هغوى چې زما د ځوځات اړتياوې لرې کړي .

٣- هغوى چې په اضطراري او د اړتيا پر وخت يې لاسنيوى وکړي .

٤- د هغوى رښتيني دوستان،چې په زړه اوخوله يې ورسره مينه وي .

 ð “ديلمي” له حضرت “ابي سعيد” څخه روايت کوي ،چې پېغمبر اکرم وويل  : پر هغوى به خداى ډېر غوسه وي،چې ځوځات مې ځوروي .

ð “ديلمي” له حضرت “ابي هريرة” روايت کوي ،چې پېغمبر اکرم وويل : بېشکه چې خداى تعالى به ( پر شپږو تنو) غوسه شي : 

١- څوک چې په مړه ګېډه ډوډۍ وخوري .

٢- څوک چې حق ته له غاړې اېښوونې غافل وي .

٣- څوک چې د خپل پېغمبر له سنتو( دود او لارې ) بې پروا وي .

٤- څوک چې د يو څه ذمه واري او مسؤوليت پر غاړه واخلي او بيا خپله ژمنه ماته کړي او عذرکوي او له خپلې ذمې اوږې سپکوي .

٥- څوک چې د پېغمبرله ځوځات سره کينه لري .

٦- او څوک چې د ګاونډيو حق ناليدلى ګڼي او ځوروي يې .

 ð “ديلمي” له حضرت “ابي سعيد” څخه روايت کوي،چې پېغمبراکرم (ص) وويل :زما اهلبيت او انصار وپالئ،د هغوى نېکانو ته  ورمات شئ او له بديو يې تېر شئ .

 ð”ابونعيم” په “الحلية” کتاب کې له حضرت “عثمان بن عفان” (رض) روايت کوي،چې پېغمبراکرم (ص) وويل : څوک چې د “عبدالمطلب” له کومې اولادې سره مرسته وکړي او هغه يې په نړۍ کې له جبرانولو بېوسې وي؛نوزه به يې په قيامت کې نېکي جبيره کړم .

 ð”خطيب” له حضرت “عثمان بن عفان”(رض) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم  وويل : څوک چې د”عبدالمطلب” له ځوځات سره څه خير ښېګڼه وکړي ؛نو پر ما(لازم ) دي ،چې په قيامت کې د کتنې  پر وخت يې نېکي جبيره کړم .

 ð “ابن عساکر”له حضرت علي  (ک) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم (ص) وويل : چاچې د خدمت له لارې زما پر کوم اهلبيت حق ورترغاړې کړ؛ نو زه به يې په قيامت کې د  کړنې مکافات ورکړم .

 ð”باوردي” له حضرت “ابي سعيد”څخه روايت کوي،چې پېغمبراکرم وويل : په رښتيا چې درته (داسې څه) پرېږدم،که منګولې پرې ښخې کړئ ( ؛نو) هېڅکله به بې لارې نشئ،چې ( هغه ) د خداى کتاب (قرآن) د‌ى،چې يو سر يې د خداى په لاس کې دى او بل به يې له تاسې سره وي او بل زما د اهلبيتو عترت (ځوځات) دى او دا دواړه (قرآن – اهلبيت ) له يو بل نه بېلېږي ،څو د حوض (ترغاړې ) له ماسره يوځاى شي .

 ð “احمد” او “طبراني” له حضرت “زيد بن ثابت” (رض) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : په رښتيا چې زه په تاسې کې دوه ځايناسي پرېږدم (،چې يو يې) د خداى کتاب (قرآن) دى،چې د اسمان او ځمکې ترمنځ ځوړنده رسۍ ده (او بل يې) زما ځوځات او اهلبيت دي او دا  دواړه (قرآن – اهلبيت ) هېڅکله يو له بله نه بېلېږي،څو په (حوض) کې ماته راشي .

 ð “ترمذي”،”حاکم” او”بيهقي” په”شعب الايمان” کې له حضرت عايشې (رضى الله عنها) روايت کوي،چې پېغمبر اکرم ( ص) وويل : شپږ ډلې مې لعنت کړي او همداراز خداى او هر پېغمبر،چې دعا يې قبوله شوې :

١- څوک چې د خداى په کتاب کې څه ورزيات کړي .

٢- د الهي ارادې دروغجن ګڼونکي .

۳- د خداى حرام حلال وګڼي .

۴- خداى چې زماځوځات ته څه حرام کړي وي ،ورته يې حلال کړي .

۵- او زما د سنتو پرېښوونکي دي .

 ð”الدارقطبي” په “الافراد” او”خطيب” په “المتفق” کې له حضرت علي (ک) روايت کړى ،چې پېغمبر اکرم ( ص) وويل : خداى ما او هر پېغمبر،چې دعا يې قبوله ده ، شپږ ډلې لعن کړي دي :

١- څوک چې د خداى په کتاب (قرآن ) کې څه ورزيات کړي .

٢- د الهي قضا او قدر دروغجن ګڼونکي .

٣- څوک چې زماسنتوته شا او بدعت او بې لارۍ ته مخ کړي.

٤- خداى چې زماعترت او اهلبيتوته څه حرام کړي وي،حلال کړي .

٥- څوک چې زماپر امت په زوره حکومت وکړي ،ددې لپاره چې خداى خوار کړي، عزتمن او خداى عزتمن کړي،خوارکړي .

٦- او هغه عرب،چې تر اسلام وروسته مرتد شي .

 ð “حاکم” او”ديلمي” له حضرت “ابي سعيد” نه روايت کوي،چې پېغمبر اکرم  وويل : څوک چې دا درې څيزونه وپالي ؛نو متعال خداى به دين او دنيا يې وساتي او چاچې ونه پالل؛نو خداى به يې (د دين ،دنيا او آخرت) هيڅ څيز و نه ساتي .١- د اسلام حرمت او پت . ٢- زما حرمت او پت . ٣- زما د کورنۍ حرمت او پت .  

ð“ديلمي” له حضرت علي (ک)روايت کوي،چې پېغمبر اکرم وويل : عرب ډېرغوره خلک دي  او”قريش” په عربوکې ډېرغوره دي او په قريشوکې د “هاشم” اولاده ډېره غوره ده .(ابن هشام؛سيرة ٢/ ٩٦٨د آلمان چاپ ) 

ðتاسې ته مې دوه څيزونه پرېښوول،که منګولې پرې ولګوئ ؛نو هېڅکله به بې لارې نشئ،چې هغه د خداى کتاب (قرآن) او زما سنت يې دي . (امام احمدحنبل؛ مسند٣/١٤)

ðماتاسې ته دوه ګران بيه څيزونه پرېښوول،چې هغوى د خداى کتاب (قرآن) او زما(اهلبيت) دي .  هغوى يو له بله نه بېلېږي ان تردې،چې ماته د “کوثر حوض” ته راشي .

تبصره : دا دواړه احاديث يو د بل مخالف نه؛بلکې يو د بل تفسير دي ؛ ځکه ((عترتي اهلبيتي ))، د پېغمبر اکرم سنت دي .

ðهغه به د قيامت پر ورځ ډېر نوراني وي ،چې له”نبوي کورنۍ” سره مينه لري .( شواهدالتنزيل ٢/٣١٠ )

ðهغه ته زما شفاعت  لازم شوى،چې زما له اولادې سره په لاس ،ژبه او شتمنۍ مرسته وکړي .( جامع الاخبار: ١٦٣٩)

ðله بنده چې لومړى څيز پوښتل کېږي،هغه زموږ د اهلبيتو دوستي ده. ( بحار ٧/ ٢٦٠ )  

ðهغه به پر”پل صراط”ټينګ قدمونه اخلي، چې زما له کورنۍ سره يې ډېره مينه وي . ( بحار ٨/٦٩ )

ðڅوک چې د”محمد” له کورنۍ سره په مينه کې مړشي (؛نو) شهيد به مړشوى وي .( العمدة: مخ ٥٤)

ðله حضرت ابوهريرة (رضى الله عنه) روايت دى،چې پېغمبر  اکرم ويلي : په رښتيا چې ما په تاسې کې دوه څيزونه پرېښي ( که لاروي يې وکړئ)هيڅکله به بې لارې نشئ ؛(او هغه) د خداى کتاب (قرآن) او زما “عترت” او”ځوځات” دى او دوى هېڅکله يو له  بله نه بېلېږي،څو په “حوض” کې ماته راشي (احياء الميت؛جلال الدين السيوطي)   

ðله عبدالله بن زبير (رض) روايت دى،چې پېغمبر اکرم ويلي دي:”اهلبيت”؛ د “نوح” د بېړۍ په څېر دي،څوک چې پکې سپور شو (؛نو) وژغورل شو او چاچې پرېښووه(؛نو) ډوب (او هلاک) شو. (احياالميت؛جلال الدين السيوطي)

ðپه تاسې کې زما “اهلبيت” د “نوح” د بېړۍ په څېر دي،څوک چې پکې سپاره شول (؛نو) وژغورل شول او څوک چې ترې وروسته پاتې شي (؛نو) پوپنا کېږي . ( دسيوطي جامع الصغير )

ðله حضرت ابي سعيد الخدري (رض) څخه روايت دى،چې پېغمبراکرم (ص) ويلي :په تاسې کې زما “اهلبيت”؛په “بني اسرائيلو” کې د”باب حطه” په څېر دي؛که څوک ورننووت؛نو وبښل  شو.(  احياء الميت؛جلال الدين السيوطي)

ðله امام حسن (رض ) نه روايت دى، چې پېغمبر  اکرم (ص) ويلي : د هر څيز بنسټ وي او د اسلام بنسټ د رسول الله له اصحابو او اهلبيتو سره مينه  ده . (احياء الميت: حلال الدين السيوطي) 

ðد چاچې زما کورنۍ ښه نه ايسي؛نو منافق يا ارمونى يا يې د مور د ناپاکۍ پر وخت پرګېډه شوى دى .( وسايل ٢\٣١٩)

ðزه تاسې ته دوه ګرانبيه څيزونه پرېږدم؛که منګولې مو پرې ولګولې؛ نو هېڅکله به بې لارې نشئ،چې هغه “کتاب الله” او “زما د کورنۍ ځوځات”دى او دوى د “کوثر” تر حوضه يو له بله نه بېلېږي. (الدرالمنثور  ٢\٢٨٥)

ðاهلبيت مې د “نوح” د بېړۍ په څېر دي،څوک چې پکې سپور شو؛نو وژغورل شو او چاچې ترې سر غړونه وکړه؛هلاک او ډوب شو. (المستدرک على الصحيحين  ٢\٣٤٣)

ðزما اهلبيت په بني اسراييلو کې د “باب حطه”په څېر دي،چاچې ورته رجوع وکړه ؛نو وبښل شو. (المعجم الاوسط : ٦\٨٥ – الصغير: ٢\٢٢ ) (“باب حطه” د “مسجدالاقصى” يو ور دى،چې “بني اسرائيل” به د توبې لپاره پرې ور ننووتل او سجدې يې کولې) .

ðستوري د اسمانوالو د امنيت لامل دي او اهلبيت مې د ځمکوالو د امنيت لامل دي .( المعجم الکبير: ٧ \٢٢)

ðد چاچې له “حسين” سره مينه وي؛نو ورسره به د خداى مينه وي . (بحار ٤٣/ ٢٦١)

ð”مهدي” د جنتيانو طاووس دى .( منتخب  الاثر: مخ ١٦ ) 

ð”حسن” زما دى او زه دهغه يم ؛نو څوک چې ورسره مينه ولري، د خداى به ښه ايسي  . ( بحار ٤٣/٣٠٦ )

 

امام مهدي عليه السلام

ðمهدي  زموږ له اهلبيتو دى . ( دامام احمد حنبل مسند١\٨٤)

ðمهدي زما له ځوځات او د فاطمې له اولادې دى . (د ابي داوود سنن  ٢\٣١٠)

ðکه د دنيا يوه شپه پاتې (هم) وي؛نو له اهلبيتو به مې يو تن په هغه شپه کې واکمني وکړي .( المعجم الکبير١٠ \١٣٣)

ð”مهدي” زما له ځوځاته دى او مخ يې د ځلانده ستوري په څېر دى . (ميزان الحکمه : ١١٦٤ح )

ð”مهدي” ته سترګې پر لارېدل، زما د امت غوره کړه وړه  دي . ( کمال الدين: مخ ٦٤٤)

ð”مهدي”  زموږ له اهلبيتو دى .( منتخب الاثر: مخ ١٨٠)

 

 

 حضرت فاطمه الزهرا

ð فاطمه زما د تن ټوټه ده . ( بحار ٤٣/٢٣)

ðبېشکه خداى د فاطمې په غوسه،غوسه کېږي او پر خوشحالى يې خوشحالېږي . ( بحار ٤٣/٣٢٠ )

ð”فاطمه” راته تر ټولو ګرانه ده . ( بشارة المصطفى: مخ ٧٠)

ðپېغمبر اکرم (صلی الله عليه و اله وسلم) حضرت علي(ک) ته وويل : علي! پوهېږې فاطمه ولې فاطمه نومول شوې ده؟ حضرت علي وويل: ولې فاطمه نومول شوې ده؟ پېغمبر اکرم (صلی الله عليه و اله) وويل: داځکه فاطمه او لارويان يې د دوزخ له اوره ژغورل شوي دي .

وګورئ:(ينابيع المودة،١٩٤مخ،ذخاير العقبى ٢٦مخ،فرايد السمطين ٢\٥٨ ، ٣٨٤ حديث، کنز العمال١٢\١٠٥ – ١١٢ مخونه ٣٤٢٢٧ حديث، نورالابصار ٥١،٥٤ مخونه ،مناقب اهل البيت ١\٢٠٨، الاصابة ٨ټوک،اعلام النساء ٤ ټوک، تذکرة سبط ابن جوزي ٢٧٥،٢٨٥ مخونه ،صحيح ترمذي ٥ ټوک د فضايل فاطمه برخه)

ðپه رښتيا چې لور مې فاطمه پرښته ده او د نورو ښځو په څېر يې جامې نه راځي او ځکه فاطمه نومول شوې،چې خداى هغه او لارويان يې د دوزخ له اوره ژغورلي دي .

(فرايد السمطين ٢\٥٨ ، ٣٨٤،محب الدين طبري ذخاير العقبى ٢٤ مخ)

ðرسول اکرم (صلی الله عليه و اله) حضرت علي (ک) ته وويل:درې څيزونه درکړ ل شوي،چې ما او بل چاته نه دي ورکړل شوي، چې دا دي:

١- ته مې زوم يې او د رسول الله په شان خُسر لرې او زه دداسې چا زوم نه يم چې خُسر مې ستا په شان وي .

٢- ته د صديقې په څېر مېرمن لرې،چې لور مې ده؛خو زه داسې مېرمن نه لرم .

٣- تا ته د حسن او حسين په څېر زامن درکړاى شوي،حال داچې زه د هغوى په څېر زامن نه لرم؛خو بيا هم تاسې زما او زه ستاسې يم .

پورتنې روايت په لاندنيو کتابو کې هم راغلى دى.

د بغداد تاريخ ٢\٢٥٩، مستدرک حاکم ٣\١٦٠، استيعاب ٢\٧٥١، حلية اولياء ٢\٤١،( دا څلور کتابونه د بيروت چاپ دي)

ðله حضرت عمر (رض) روايت شوى چې : پېغمبر اکرم(صلی الله عليه و اله) وويل : په قيامت کې به هر سبب او نسب غوڅېږي؛خوبې زما له سبب و نسب ،د هر مور اولاده خپل پلار ته منسوبه وي؛خو بې د فاطمې له اولادې، چې زه يې پلار يم .

په فرايد السمطين (٢\٧٧ – ٣٩٧،٣٩٨ حديث) ،مقتل خوارزمي:( ٦\٨٩) ،معجم الکبير:(١\١٢٤- ١٠٤ حديث) ، کنزالعمال:(٦\٢٢٠) او ذخاير العقبى:( ١٢١ مخ) کې هم  پورتنى روايت جرير بن عبدالحميد له شيبة بن نعام روايت کړى.

ðفاطمه زما د وجود يوه ټوټه ده، چاچې غوسه كړه؛نو زه يې په غوسه كړى يم،په رښتيا،چې خداى يې پرخپګان خپه كېږي او پر خوشحالۍ يې خوشحالېږي .

 ( مسند احمد بن حنبل  2/223 ،٧\٣٢٨،– صحيح بخاري  5/92 – صحيح مسلم  4/1902 – سنن ابي داود  2/226 سنن ترمذي  5/688 – معجم كبير طبري2/52 – مستدرك حاكم  3/154 – السنن الكبري  7/307 – شرح السنه  7/232 – مقتل خوارزمي  2/53 – فرايد السمطين ټ 245،کنزالعمال ٧\١١١،صواعق ١٩٥مخ،نزهةالمجالس٢\٢٢٨،کفايةالطالب : ٢١ مخ، نورلابصار ٤٥مخ،خصايص نسايي٣٥ مخ،ذخاير العقبى ٣٩ مخ،ينابيع الموده ١٧١مخ ٥٥ باب)

ðعلي!خداى درته فاطمه غوره كړه او ټوله ځمكه يې د هغې مهر كړه، كه څوك ورسره دښمني او كينه ولري او پر ځمكه ګرځي؛نو ګرځېده به يې حرام وي . ( مقتل خوارزمي  2\66 ، فرايد السمطين  2\95 ).

ðفاطمه پاکلمنې ده او خپله لمن يې له هر راز چټليو پاکه وساتله؛نو خداى پر هغې او اولادې  يې د دوزخ اور حرام کړ.

(مستدرک حاکم٣ /١٥٢ تاريخ خوارزمي ٣/٥٤_ ذخاير العقبى ٤٨ مخ_کفايه ا لطالب ٢٢٢مخ_ احياء الميت سيوطي ٢٥٧مخ_ نورالابصار ٤٥مخ _صواعق المحرقه ١١٢مخ.)

ðحضرت عمران حصين (رض) له حضرت پېغمبر اكرم (صلی الله عليه و اله) سره يو ځاى د حضرت فاطمې كور ته ولاړل . پېغمبر اكرم وويل : فاطمې! اجازه ده،چې له دې سړي سره درننوځم . بيا پېغمبر اكرم  ورته د پردې كولو امر وكړ . حضرت فاطمې وويل :درد،زغم او لوږه لرم . پېغمبر اكرم ورته وويل : خوښه نه يې،چې د دنيا د ټولو ښځو بي بي وسې؟ فاطمې وويل : ايا مريم د خپل وخت د ښځو بي بي نه وه؟ پېغمبر اكرم ورته وويل :حضرت مريم د خپل وخت بي بي وه او ته د ټولو ښځو بي بي يې،ستا مېړه په دنيا او اخرت كې ستر او غوره دى . ( بخاري مناقب فاطمه 7/83 ، مستدرك الصحيين 3/151 ، صحيح مسلم 22/127 )

                                                          

حسنين

ðدا دواړه مې اولاد دي او د لور زامن مې دي،لويه خدايه! زه ورسره مينه كوم، ته هم ورسره مينه ولره، څوك چې ورسره مينه لري، له هغوي سره هم مينه ولره. ( دترمذي سنن 5/322 )

ð خپل هيبت او سيادت مې حسن ته،زړورتيا او شجاعت مې حسين ته و بښله . ( طبراني الاوسط – هيثمي مجمع الزوايد)  

ð فاطمه د جنت د ښځو بي بي ده او حسن او حسين د جنت زلمي دي .

(صحيح ترمذي٢/٣٠٦_مستدرک حاکم٣/١٥١_مسند احمدحنبل ٥/٣٩١_ حلية الاولياء٤/١٩٠_اسدالغابه ،٥/٥٧٤_کنزالعمال٦/٢١٧)

ð حسن او حسين مې په دنيا کې د سترګو تور دي .

(مسنداحمدحنبل٣\٨٥،٩٣،١١٤،١٥٣_صحيح ترمذي٢\٣٠٦_ مسند طيالسي ٨\١٦٠ _ حليه اولياء ٥\٧٠_ خصايص نسايي ٣٧مخ_ فتح البارى ٨\١٠٠ _کنوزالحقايق ١٦٥مخ_مجمع الزوايد ٩\١٨١)

ð پېغمبر اكرم وايي:حسن او حسين د جنت دوه زلمي او ښاغلي دي .

(مسنداحمدحنبل٣\٦٢،٨٢_صحيح ترمذي١٣\١٩١_مشکل الاثار٣\٩٣٩_مستدرک حاکم ٣\١٦٦_حليه الاولياء ٥\٧١_ بغداد تاريخ ٤\٢٠٤_فصول المهمه١٣٦مخ_تذکره سبط٢٤٣مخ_خصايص نسايې٣٦مخ،المعجم الکبير١٣١مخ_مصابيح السنه٢٠٧مخ_ ابن عساکر تاريخ ٢\٥٦_کنزالعمال١٣\٦٠٠_صواعق المحرقه١٣٥مخ_اسدالغابة٢\١١)

ðپېغمبر اكرم حضرت علي،حضرت فاطمې،امام حسن او امام حسين ته وويل: څوک چې در سره په جنګ کې وي؛ نو زه به هم ورسره په جنګ کې يم او څوک چې درسره په سوله کې وي؛ نو زه به هم ورسره په سوله کې يم .

( مسنداحمدحنبل ٢/٤٤٢_ صحيح ابن ماجه ١٤مخ _ مستدرک حاکم ٣/١٤٩ _   ذخايرالعقبى ٢٥ مخ _ صحيح ترمذي ٢/٣١٩_ تاريخ بغداد ٧/ ١٣٦، ١٣٧_ ٤/٢٠٨_ اسدالغابه ٥/٥٢٣_ کنزالعمال ٦/٢١٦_ جمع الجوامع سيوطي ٦/٢١٦_ کفاية ا لطالب ١٨٩ مخ _ مناقب خوارزمي ٩٠ مخ _ فصول المهمه ١١ مخ _ صواعق ا لمحرقه ١١٢ مخ، تاريخ ابن عساکر ٤/٣١٦_ تاريخ ابن کثير ٢/ ١٨٩)

 

د امت غوره مېرمن

ðخديجه د دې امت له غوره مېرمنو ده . ( تذكرة الخواص سبط ابن جوزي 352 مخ )

ð ام المومينن عايشه بي بي له حضرت پېغمبر اكرم (صلی الله عليه و اله) روايت کوي،چې ما ته هيڅوك د خديجې په شان نشې كېداى . په داسې وخت كې يې زه رښتينى وبللم او پر ما يې ايمان راوړ،چې ټول كافر  ول او دروغجن يې بللم او خپله ټوله شتمني يې راكړه او خداى زما ځوځات له اولادې يې وګرځاوه. (تذكره الخواص سبط ابن جوزي353 مخ )

 

له حضرت علي سره مينه

ðله (علي) سره مينه ګناهونه(داسې) سوځوي؛لکه اور چې لرګي سوځوي . ( کنز ٢١/٣٣)

ðد چا چې زه “مولى”يم؛نو(علي) هم مولى يې  دى .( تاريخ دمشق ١/ ٣٦٦)

ðد قيامت پر ورځ يوازې د”علي” لارويان بريالي دي . (عيون اخبار الرضا ٢/ ٥٢)

ð د”علي” ډله د خداى ډله ده . ( موسوعة امام علي ٨/١١٥ )

ðخلکو! له “علي” سره مينه ولرئ . ( بحار ٣٩/٢٦٥)

ðد احد د غزا پر ورځ ناست وم او د خپل تره “حمزه” له كفن او ښخولو نوى خلاص شوى وم،چې جبرئيل راغى او راته يې وويل : محمده! خداى تعالى وايي : لمونځ مې فرض كړ او پر ناروغ مې ( په شرايطو) كېنښود، روژه مې فرض كړه او پر ناروغ مې كېنښوه،حج مې فرض كړ؛ خو پر بېوزلي مې كېنښود،چې وس يې نه لري،زكات مې فرض كړ او پر هغه مې كېنښود،چې د زكات د وركړې شرايط پرې نه عملي كېږي؛خو د”علي بن ابيطالب” مينه مې پر هر چا او هرو شرایطو کې فرض كړه . (بحارالانوار  ۲۷ \ ۱۲۹)

 

اصحاب

 ð زه تر تاسې مخکې په (کوثر) حوض کې يم، ستاسې چې ځينې سړي راولي؛نو زه يې پر لور ورځم، چې له حوضه يې خړوب کړم (؛خو) له ما څخه يې لرې کوي؛نو وايم : پالونکيه (دا خو مې) اصحاب دي! ويل کېږي : نه پوهېږې،چې تر تا وروسته يې څه وکړل!!! (څه پېښې او بدعتونه يې رامنځ ته کړل)

(د امام احمد حنبل مسند لومړى ټوک ٢٣٥، ٢٥٣، ٣٨٤، ٤٠٢، ٤٠٦، ٤٠٧، ٤٣٩، ٤٥٣، ٤٥٥ مخونه.صحيح بخاري ٤/ ١١٠ – ٥/ ١٩١ او ٢٤٠ مخونه، صحيح مسلم ١/ ١٥٠  ، سنن ابن ماجه ٢/ ١١٦ ، سنن ترمذي ٤/ ٣٨، سنن نسايي ٤/ ١١٧ ، د حاکم مستدرک ٢/ ٤٤٧ ، فتح الباري: ١١/ ٣٣٣، البدايه والنهايه ٩/ ٢٣١)

ð په قيامت کې پر حوض ولاړ يم او ځينې اصحاب راڅخه لرې کوي او مخونه يې رانه اړوي؛نو وايم : پالونکيه،زما اصحاب! زما اصحاب (دي)!!! ويل کېږي : نه پوهېږې،چې تر تا وروسته يې څه وکړل!!!

مسندابن راهويه: ٢/ ٤٣ –الطبقات الکبراى لابن سعد ٨/ ٧٦، سنن بيهقي ١٠/ ١١٤، شرح العقيده الطحاويه ٤٣١

ð (عثمان بن مظعون چې ومړ؛نو پېغمبر اکرم يې له مخه کفن لرې کړ او د سترګو ترمنځ تندى يې ورته ښکل کړ، ډېر يې وژړل بيا يې وويل: ) عثمانه! پرحال دې خوښي،نه دنيا درنه څه ګټه واخسته او نه تا له دنيا.(انساب الاشراف ١/ ٢٥٨، بحارالانوار ٧٩/ ٩١ )

ð”حذيفه د يمان زوى” د رحمان خداى له غوره کړاى شويو او په تاسې کې په حلالو او حرامو ډېر سترګور رهبر دى او “عمار ياسر” له مخکښانو او د الهي درشل له نږدې وګړيو دى او “مقداد بن اسود” د مجتهدانو په ليکه کې دى او هر څه يو اتل لري او “عبدالله بن عباس” د قرآنې پوهې اتل دى . (بحار الانوار ٢٢/ ٣٤٣ )

ð په اسمان او ځمکه کې تر “ابوذر” ډېر رښتين نشته، يوازې ژوند کوي، يوازې به مري او يوازې به راپاڅول کېږي او يوازې به جنت ته ولاړ شي . (بحارالانوار ٢٢/ ٣٤٣)

 

ماعون

ðڅوک چې خپل ګاونډ ته د اړتيا وړ وسيلې (ماعون) له ورکړې لاس واخلي؛خداى يې په قيامت کې له خپل خيره يې بې برخې کوي او ځان ته يې پرېږدي او څوک چې ځان ته پرېښوول شي؛نو څه بد حال به لري! (من لايحضرالفقيه ٤\١٣)

 

مبارزه

ðڅوک چې د خداى په لار کې مبارزه پرېږدي؛ خداى ورته په ژوند کې د خوارۍ،فقر او د هغه دين د پوپنا کېدو جامې وراغوندي .( الکافي ٥\٢)

ð غوره مبارز هغه دى،چې له خپل دننني نفس سره مبارزه وکړي . (الجعفريات : ٧٨ )

ð غوره مبارزه هغه دى،چې سهار راپاڅي؛خو پر چا د تېري نيت ورسره نه وي .( الجعفريات : ٧٨)

  ðپه جنت کې د يو وره نوم “باب المجاهدين” دى، د خداى د لارې مبارزين به په دې وره په داسې حال کې جنت ته ننوځي،چې تورې به يې راځوړندې وي،پرښتې به ورته ښه راغلاست وايي؛خو نور خلک به(لا) د قيامت په مواقفو (او تمځايو) کې منتظر وي . (تهذيب الا حکام : ٦\١٢٣)

 

شخړه

ðخداى دې هغوى لعنت کړي،چې خپل دين له حرامو لارو تر لاسه کړي؛ يعنې په دين کې شخړه کوي . ( الجعفريات : ١٧١)

ðهغه خورا پرهېزګار دى،چې شخړه پرېږدي،که څه هم په حقه وي . (روضة الواعظين ٢\ ٤٣٢)

ðڅوک چې په دين کې شخړه کوي،پاک خداى د اويا پېغمبرانو په خوله لعنت کړي دي او کافر شوى دی . څوک چې د خداى په آيتونو کې شخړه کوي او خداى (په قرآن کې) وايي : يوازې کافران د خداى په آيتونو کې شخړه کوي . (وسايل ٢٧\ ١٩٠)

 

مجازات

ðڅلور ګناهونه تر نورو چټک په سزا رسېږي : هغه سړى،چې تا ورسره احسان کړى؛خو په ځواب کې يې ناشکري او ګستاخي کړې ده.هغه چې تا ورباندې تېرى نه دى کړى؛خو هغه درباندې کړى .هغه چې خپله کړې ژمنه دې ورسره پوره کړې؛خو هغه درسره خيانت وکړي او هغه سړي، چې زړه سوی کړي؛خو هغوى ورسره اړيکه پرې کړې ده. (الامالي للطوسي : ٤٥٠)

 

غونډې

ðناستې مو د خداى په نامه او د هغه پر استازي په درود ويلو پيل کړئ،چې له حسرت او وبال خلاص اوسئ . (الکافي  ٢\ ٤٩٧)

ð د ناستې راز او امانت خوندي ساتلى بويه؛خو نه د هغو ناستو چې : د ناحقه وينې تويولو،پر ناموس د تېري او ناحقه د شتمنيو د لوټلو په اړه پکې پرېکړې کېږي .( وسايل الشيعه ١٢\١٠٥)

ðد مؤمن له حقوقو يو دا هم دى،چې غونډې ته راننوځي؛نو ناست دې ورته په څنګ ځاى ورکړي،چې خبرې کوي،ورته دې مخ کړي او چې راولاړ شو؛خداى پاماني دې ورسره وکړي (،چې عربان پردې مهال هم سلام اچوي ) . ( مستدرک الوسايل  ٨\٣٢٠)

ðهر څيز يو شرافت لري او د ناستې شرافت په دې کې دى،چې مخ پر قبله کېنئ . ( مستدرک الوسايل  ٨\ ٤٠٦)

ðابوذره! په غونډو کې امانت ساتى وسه او(پوه شه،چې ) چې د خپل ورور راز ويل خيانت دى؛نو ډډه ترې وکړه . (مستدرک الوسايل: ٨\٣٩٨)

ðغونډې او ناستې امانت دي (چې څه پکې وويل شي؛نو بايد راز يې وساتل شي)؛خوکه ددې چارو په اړه پرېکړه کېده ؛نو بايد راز يې پټ ونه ساتل شي :

١- په هغه غونډه کې چې د ناحقه وينې تويولوپه اړه مشوره وشي .

٢- په هغه غونډه کې چې د چا د بې عفتۍ مشوره وشي .

٣- په هغه غونډه کې چې د چا پرشخصي مال خېټې اچولو يا مال ضايع کولو ته مشوره وشي . (ابوداوود )

 

پور

ðد پور ډېر ستړى غم وي . ( الکافي ٥\١٠١)

ðپور،په ځمکه کې د خداى کړۍ ده؛نو خداى چې کوم بنده خواروي، دا کړۍ ورترغاړې کوي .( الکافي ٥\ ١٠١)

ð د يو څيز  په “پور” ورکول، د هغه تر “صدقې” ورکولو غوره دي. (کنز ٦ /٢١٠)

ð هغه مو غوره  دى ،چې خپل پورونه ورکوي . ( کنز ٦ /٢٢١ )

ð د پور وعده په خپل وخت راځي او پر هغه دې افسوس وي،چې وعده وکړي ؛ خو عمل پرې و نه کړي . ( کنز ٣/٣٤٧ )

ðله پوره ځان وساتئ،چې د شپې غم او د ورځې خواري ده . (بحار ١٠٣/١٤١)

ðڅوک چې مؤمن ته پور ورکړي او د بېرته ورکړې تر وخته ورته وګوري؛ نو شتمني به يې پاکه او برکتي شوې وي او پرښتې به ورته دعا کوي .( اعلام الدين : ٣٩٠ مخ )

ðڅوک چې چاته پور ورکړي او پوروړي ته وګوري؛نو هره ورځ ورته د ورکړې پور هومره صدقه ليکل کېږي . ( مستدرک الوسايل  ١٣\ ٤١٢)

که پوروړى مو په سخته کې وي او ورته وګورئ؛نو خدای به درته هره ورځ د پور تر لاسولو پورې د پور د صدقې هومره ثواب درکوي. (وسايل ١٨/ ٣٦٨)

ð شتمن،چې د “پور” ورکړه ځنډوي (؛نو) ظلم دى .(فقيه ٤/٣٨٠)

ðد ډوډۍ او خمبيرې  پور ورکونه مه سپموئ،چې د نېستۍ لاملېږي . (مستدرک الوسايل ١٢\٤٣٦)

 

قسم

ðيوازې پر “الله” قسم وخورئ،چاچې پر”الله” قسم وخوړ؛نو بايد رښتيا ووايي او مقابل لورى يې بايد ومني او که نه د خداى (د رحمت له سيوري) به وتلى وي . (الکافي٧\٤٣٨ )

ðقريشو! بايد هڅه وکړئ او که نه تر لاس لاندې مو په سوداګرۍ کې درنه وړاندې کېږي،په سوداګرۍ کې برکت دى او خداى يو سوداګر هم تر هغه نه نشتمنوي،چې پر خداى قسمونه نه خوري . ( مستدرک الوسايل  ١٣\ ٩)

 

غچ ،کسات

ðڅوک چې له غچه ډارېږي،پر خلکوله تېري دې ځان وساتي . (الکافي٢\ ٣٣٥)

ðخلکو! غچ او حق مو واخلئ او يو موټى شئ . (الا مالى للمفيد : ٥٣٠)

ðزه هغه ته حيران يم،چې خپله مېرمن وهي،حال داچې په خپله هم د وهلو وړ دى . مېرمنې مو په کوتک مه وهئ،چې قصاص لري؛خو ( که لازم شي،د تنبيه لپاره) يې په لوږه او جامو پرې سختي راولئ،چې سمې شي،چې په دنيا او آخرت کې موګټه په برخه شي .(مستدرک الوسايل ١٤\٢٥٠ )

ðهغه بنده خداى ته ډېر ګران دى،چې د غچ او د خپل حق د اخستو وس لري ؛خو بيا هم عفوه کوي . (بيهقي)

 

قضاوقدر

ðيوازې  دعا الهي قضا و قدر اړولاى شي . (مکارم الاخلاق : ٣٨٨)

ðپه هرالهي قضاوقدرکې مؤمن ته خير دى .(مستدرک الوسايل ٢\٤١١)

ðد الهي کتاب په رالېږلو او د استازيو په منلو: نېکمرغي هغه ته ده، چې ايمان راوړي او پرهېزګاري وکړي او بدمرغي هغه ته ده،چې دروغ يې وګڼي او کافران شي او داچې خداى د مؤمنانو ولايت پر غاړه اخلي، علم د مخه شو او د قلم (رنګ) وچ شو او الهى قضا لاسليک شوه او قدر( او اراده ) يې پاى ته ورسېده. ( تفسير القمي  ٢\٢١٠ )

 

قوم

ðد قوم امام،خداى ته د هغوى پلاوى دى؛نو په خپلو لمونځونو کې، خپل ډېرغوره مخکې کړئ .( المستدرک الوسايل : ٦\٤٧١)

ðد قوم مشر،چې درته راغى؛نو درناوى يې وکړئ .( الکافي :٢\٦٥٩)

ðډېرناوړه قوم هغه دى،چې:پر نېکيو امر نه کوي او له بديو منع (پر نېکيو امر کوونکيو اوله بديو پر منع کوونکيو تورونه تپي)،د خداى لپاره د “قسط” لپاره نه راپاڅي،تر الهي تړونه ورته طلاق او بېلتون غوره دى،د خداى له مننې ورته د واکمن لاروي ړومبۍ ده، دنيا پر دين غوره ګڼي، ګناه کول،شهوتپالي او پر شبهاتو بوختيا حلاله ګڼي. (مستدرک الوسايل  ١١\٣٧٠)

 

غښتلتيا

ðابوذره! که غواړې، چې ډېرغښتلى وسې؛نو پر خداى توکل وکړه او که غواړې ډېر عزتمن اوسې؛نو پرهېزګار وسه . (مستدرک الوسايل  ١١\٢١٧)

 

غوسه کول

ðغوسه شيطاني لمبه ده .( ميزان : ١٤٧٠١ ح )

ðچې غوسه شوې ؛نو کېنه په ناسته غوسه سړېږي . (  کنز: ٧٦٩٤ح )

ð غوسه د زړښت نيم لاملونه دي . ( کنز ٣/٤٩ )

ð چې غوسه شوې ؛نو چوپ شه . ( کنز ٣/٤٨ )

ðمه غوسه کېږه . ( بخاري )

ðغوسه د شيطان له لورې ده (دغوسې پر مهال د شيطان د برلاسۍ له امله الهي پولي ماتېږي)شيطان له اوره پيدا شوى؛نو داچې اور په اوبو مړکېږي؛نوځکه څوک چې غوسه شي؛نو اودس دې وکړي . ( ابوداوود )

ðد خداى پر وړاندې ښه ګوټ،دغوسې دى،چې انسان يې د خداى لپاره وکړي .( احمد )

ðپهلوان دا نه دى،چې خپل سيال پر ځمکه راڅملوي؛بلکې حقيقى پهلوان هغه دى ،چې دغوسې پر مهال،خپله غوسه کابوکړي . ( بخاري – مسلم )

ðکه په ولاړه غوسه شوئ؛نوکېنئ،چې غوسه مو سړه شي او کنه پښې غځولي څملئ . ( احمد – ترمذي)

ðخلکو ته (دين) زده کړئ او په زده کړه کې اساني کوئ،سختي او بدغوني مه کوئ  او چې غوسه شوئ؛نوچوپ شئ .( احمد – طبراني )

ðغوسه ايمان داسې له منځه وړي؛لکه “سرکه”، چې “شات” له منځه وړي .( الکافي ٢\٣٠٢)

ðچې کله هم غوسه شوئ؛نو اودس وکړئ .(مستدرک الوسايل ١\ ٣٥٣ )

ðتر  ښځې اوغوسې د شيطان ستر لښکر نشته . ( الکافي ٥\٥١٥)

ðخداى او زه پر هغه ښځې غوسه کېږو،چې بې له کورنۍ يې څوک کور ته راننوځي،خوراک څښاک ترې (هم) وکړي او د کور پر راز يې هم پوه شي . (مستدرک الوسايل ١٤\٣٣٣)

ðايمان په درېو ځانګړنو پوره کېږي : ( ١) خپله خوشحالي او ښادي په باطلو (چارو) نه خرابوي ( ٢) په غوسه کې د حق له کړۍ نه وځي او ( ٣)  د قدرت پر مهال هغه څه ته لاس نه اوږدوي،چې نه يې دي . (الکافي  ٢\٢٣٩)

  ðڅوک چې په غوسه کې له زغمه کار واخلي؛نو د خداى مينه پرې لازمېږي .( مشکاة الانوار : ٣٠٩مخ )

ðله غوسې او تمبلۍ ځان وژغورئ،که غوسه شوې (؛نو) حق نشې زغملاى اوکه تمبل شوې؛حق نشې ادا کولاى؛نو پر چاچې غوسه برلاسې شوه،هوساېنه ترې خپل ټغر راټولوي . (مستطرفات السرائر: ٦١٥)

ðد زغمناک درې نښې دي : ( ١) نه تمبلېږي ( ٢) نه غوسه کېږي ( ٣) له خپل پالونکي شکايت نه کوي ؛ځکه د تمبلۍ پرمهال د(نورو) حقوق ضايع کوي،چې غوسه شي،شکر نه باسي او له خپل پالونکي،چې شکايت وکړي ؛نو ګناه به يې کړې وي .( علل الشرايع ٢\٤٩٨)

ðډېر بد انسان هغه دى،چې ژر غوسه کېږي او ډېر وروسته خوشحالېږي .( کنز ٨/٤٣٥) 

ðخداى چې کله بنده ته غوسه شي؛نو په زړه کې ورته د خندا نغمې اچوي . ( عدة الداعي : ١٦٨)

ðځينې خلک ډېر نه غوسه کېږي او(چې غوسه شي) ژر يې غوسه سړېږي . ځينې ژر غوسه کېږي او ژر يې هم غوسه سړېږي . ځينې ژر غوسه کېږي او ډېر وروسته يې غوسه سړېږي؛پوه شئ، په دوى کې هغه ډېر غوره دى،چې ډېر غوسه کېږي او ژر يې غوسه سړېږي او پوه شئ،چې په دوى کې هغه ډېر ناوړه دى،چې ژر غوسه کېږي او ډېر وروسته يې غوسه سړيږي. (ترمذي ٩\٤٣. احمد ٣\١٩)

ðپېغمبر اکرم هېڅکله هم د دنيا لپاره نه غوسه کېده او چې د حق لپاره به غوسه شو؛نو چا نه پېژانده او هېڅ څيز يې تر هغه غوسه نه شوه سړولاى،چې غچ يې نه و اخستاى .

په (تخريج زين الدين ابى الفضل العراقى الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالى ٣ / ١٧) کې کښلي دي :

ð پوه شئ چې غوسه د بنيادم په زړه کې لمبه ده،د غوسه ناک د سترګو سوروالى او د غاړې د رګونو پړسوب او ….يې نه ګورئ . (ناصف ٥/ ٢٩٨ – ٢٩٩ )

ðد غوسې په حال کې د دوو تنو ترمنځ قضاوت (او پرېکړه) مه کوئ . (شيباني ٤/ ٥٥ )

ð د اغلاق (سختې غوسې ته ويل کېږي،چې انسان پکې له سم فکر کولو بې وسې وي.)پر حال طلاق او د مريي ازادول نه واقع کېږي . (المعجم المفهرس لالفاظ الحديث النبوي ٤/ ٢٥)

ðابوذره! پر ورور دې له غوسې کولو ډډه وکړه؛ځکه د خداى د غوسې او بېلتون کړنې نه خوښېږي . ابوذره ! له غوسې کولو دې منع کوم؛نو که اړ شوې،تر درېو ورځو ډېر مه غوسه کېږه،که څوک له خپل مسلمان ورورسره د غوسې پر مهال ومري؛نو د دوزخ اور ورته وړ دى .( مشکاة الانوار : ٢٠٩)

ð خلکو ته (دين) زده کړئ او په زده کړه کې اساني کوئ ، سختي او بدغونتوب مه کوئ او چې غوسه شوئ؛نوچوپ شئ .(احمد–طبراني)

ðد خداى پر وړاندې ښه عزت،د غوسې دى،چې انسان يې خداى ته تېره کړي . ( احمد )

ð غوسه ايمان داسې خرابوي؛لکه سرکه چې شات خرابوي. (الکافي ٢/ ٣٠٢)

[ په مراة العقول ( ١٠ / ١٤١) کې دي:د شاتو له خرابېدو مطلب دا دى،چې سرکه د شاتو  خوږوالى له منځه وړي او له ګډېدو يې يو بل څه منځ ته راځي،چې شات نه دي او غوسه هم له ايمان سره نه يو ځاى کېږي او د ايمان ګټې له منځه وړي. ]

ð ښحې او غوسه د شيطان سترې لښکرې دي .( الکافي ٥ / ٥١٥)

ð کفر درې ستنې لري:(دنيا ته) لېوالتيا،ډار،(پر الهي ارادې) ناخوښي او غوسه .( الکافي ٥ / ١٦٢)

ð غوسه د شيطان د اور يوه لمبه ده.( جامع الاخبار: ١٦٠ مخ)

ðکه غوسه شې؛نو اودس وکړه . (مستدرک الوسايل ١/ ٣٥٣ )

ð پر هغه خداى ډېر غوسه دى،چې زما وينه تويه کړي او اهلبيت مې وځوروي . (عيون اخبار الرضا ٢/ ٢٧ )

ð خداى بنيادم ته وايي: د غوسې پر مهال مې ياد کړه،چې زه دې  هم د خپلې غوسې پر مهال ياد کړم،چې د پوپنا کېدو پر وخت دې هلاک نه کړم . ( مستدرک الوسايل ١٢/ ١٥)

  ðپر هغه د خداى محبت لازمېږي،چې غوسه وزغمي. (مشکاه الانوار: ٣٠٩)

ð چاچې غوسه تېره کړه؛نو خداى يې زړه له ايمانه ډکوي او څوک چې له کوم تېري تېر شو؛نو خداى به يې په دنيا او اخرت کې عزتمن کړي . (الامالي للطوسي: ١٨٢)

 ð يو ځل  حضرت “عايشه” بي بي پر پېغمبر اکرم غوسه وه،پېغمبر اکرم ورته وويل:شيطان درته راغلى دى .( شيباني ٣/ ٢٤٦)

ðيوسړي پېغمبر اکرم ته وويل : ما ته سپارښتنه وکړه. آنحضرت ورته وويل : مه غوسه کېږه . سړي څو ځل خپل خبره وکړه او هر ځل ورته پېغمبراکرم وويل: مه غوسه کېږه. (نووي ١/ ٥٣٣ . شيباني ٣/ ٢٤٧ )

 ð پېغمبر اکرم خپل اصحابو ته وويل : پهلواني څه ته وايي؟ ورته يې وويل : پهلوان هغه دى،چې څوک يې را څه نملوي . آنحضرت ورته وويل:نه! هغه پهلوان دى،چې د غوسې پر مهال خپله غوسه سړه کړي . (شيباني ٣ / ٢٤٦)

ð څوک چې خپله غوسه وزغمي،حال داچې غوسه کړاى شي؛نو پاک خداى پرې د قيامت پر ورځ غږ کوي،چې له “حورالعين” غوره کړه. (نووي ١ / ٧٩)

ð که غوسه شوې او ولاړ يې (؛ نو) کېنه او که پر ولاړه دې غوسه سړه نه شوه؛نو څمله . (ابوداوود: ٢/ ٢٤٩، ٤٧٨٣ حديث. احمد: ٥/ ١٥٢ )

ðمسلمان ته روا نه ده،چې تر درېو ورځو ډېر له خپل مسلمان ورور سره کينه ولري او که څوک تردې مودې زيات په  غوسه وي او مړ شي؛نو دوزخ ته ځي.( ابوداوود: ٤/ ٢٧٩ – ٤٩١٤ حديث)

 

نېکچاري

ðپر خداى تعالى ايمان،نېکې چارې او د حرامو پرېښوول،د خداى تر هر څه ښه ايسي . ( النوادرللراوندي : ٣٦)

ðپه يقين چې د کړنو ارزښت يوازې په نيتونو پورې دى . (مستدرک الوسايل : ١\٩٠)

 ðد خداى تعالى،چې ښې کړنې ښه ايسي؛نو يو يې هم د مؤمنانو د زړه خوشحالول دي .( الکافي ٢\١٨٩)

ðد خداى تعالى پر وړاندې لاندې کړنې غوره  دي .( ١) له خلکو سره په انصاف چلن ( ٢) د خداى په لار کې له وروڼو سرښندنه (٣) او په ګردوحالاتو کې دخداى يادول .( الکافي ٢\ ١٤٥)

ðژوند او مړينه مې دواړه ستاسې په خير دي : په ژوند مې راسره خبرې کوئ او زه يې هم درسره کوم  او په مړينه مې هره دوشنبه اوپنجشنبه شپه ستاسې کړنې راوړاندې کېږي؛نو نېکې چارې مو،چې کړې وي، د خداى شکر کاږم او کومه ګناه مو،چې کړې وي،له خدايه درته بښنه غواړم . ( وسايل الشيعه : ١٦١١٠ )

ðڅوک چې بې له پوهې کوم عمل ترسره کړي ؛نو شر يې تر خير ورته ډېر دى .( الکافي: ١\٤٤)

ðپه ښو کړنو،ځان (له دوزخه) وژغورئ (اوپوه شئ،چې) لمونځ ډېره غوره کړنه ده او يوازې مؤمن خپل اودس ساتي (مؤمن تل پر اوداسه وي) .( مستدرک الوسايل  ١\ ٢٨٩)

ðبې عمله وينا او بې نيته عمل او وينا،عمل او نيت ،چې (زما) له سنتوسره اړخ ونه لګوي ؛ارزښت نه لري . ( الکافي ١\٧٠)

ðعلي! دا مضبوط او ټينګ دين دى ؛نو په نرمۍ پکې ننوځه او په کرکه د خداى عبادت مه کوه؛ځکه افراطي انسان(کله تېز اوکله ټکنى) موخې ته نه رسي او په نيمايي لار کې پاتې کېږي؛نو داسې کار کوه، ګنې چې په زړښت کې مړ شې او داسې په ډار وسه،چې ګنې سبا مرې . (الکافي ٢\ ٨٧)

ðهر حق يو حقيقت لري او بنده هله د اخلاص حقيقت ته رسېداى شي،چې د کړي کار په مقابل کې ستاېنه يې ښه نه ايسي .( مستدرک الوسايل : ١\ ١٠١)

ðد فرايضو تر ادا کو وروسته،د خلکو تر منځ پخلاينه ډېر غوره چار دى،داچې د خير(خبره) وکړې او خير ترې راولاړ شي . (بحارالانوار ٧٣\٤٣)

ðخداى تعالى وايي : هغوى دې په خپلو کړنو ډډه نه وهي (نه دې ډاډمنېږي)،چې  زما لپاره يې (ښې) چارې کړې وي ؛ځکه که هغوى ټول عمر زما په عبادت کې په زحمت تېر کړي،بيا هم نيمګړي او مقصر دي؛ ځکه زما د عبادت حق نشي پوره کولاى او په جنت کې مې د عزت او نعمت ذات (اوحقيقت ته او همداراز) زما ترڅنګ لوړو درجو ته نشي رسېداى ؛خو زما پر رحمت دې ډډه ولګوي او زما لورنې ته دې هيلمن وي او ښه ګومان دې ولري،چې په دې ترڅ کې به زما رحمت (د هغوى نيمګرې) جبران کړي او زما د احسان په پايله کې به هغوى د خوښۍ(او رضوان) پړاو ته ورسېږي او زما بښنه به ورته د بښنې جامې ورواغوندي؛ځکه زه لوراند او لورين خداى يم .(الکافي ٢\٧١)

 

کورنۍ ته هڅاند

ðهغه بې له حسابه جنت ته ننوځي،چې خپلې کورنۍ ته کار کول عار ونه ګڼي.( مستدرک الوسايل ١٣\٤٨)

ðکورنۍ ته او په کورکې کار کول لاندې ځانګړنې لري : ( ١) د سترو ګناهونو کفاره ده( ٢)د خداى غوسه سړوي (٣) د جنتي حورو مهر دى (٤) او د حسناتو او درجو د لوړاوي لامل دى .(بحارالانوار  ١٠١\ ١٣٢)

 ðد خپلې کورنۍ  خدمتګار،د صديق،شهيد يا د داسې چا په څېر دى،چې خداى ورته د دنيا او آخرت ښه غواړي .( جامع الاخبار: ١٠٢)

ð خپلې کورنۍ ته هڅاند داسې دى؛لکه د خداى د لارې مجاهد. (بحار: ١٠٣)

ðڅوک چې خپلې کورنۍ ته د حلال رزق په هڅه کې وي ؛نو[زيار يې] د خداى په لارکې شمېرل کېږي . (روضة الواعظين: مخ ٥٠١)

 

د نن کار سبا ته پرېښوول

ðابوذره!د نن کار سبا ته مه پرېږده،چې نن خو همدا ستا ده اوسبا دې نه ده او که سبا ( دې هم) وي؛نو د نن په څېر وسه او که سبا دې نه وه ؛نو پښېمانه به نه يې،چې لږ کار دې کړى دى . ( الامالي للطوسي :٥٢٥)

ðابوذره! که مړينې او بهير ته يې وګورې؛نو له هيلو او تېروتنو به بېزاره شې .  (پورته)

ðابوذره! ګهيځ چې راويښ شوې؛نو له ځان سره دې د مازيګر خبرې مه کوه او چې مازيګر شو؛د ګهيځ  خبرې مه کوه . (پورته)

ðعلي! څوک چې فرض حج نن او سبا ته پرېږدي او مړ شي ؛ نو خداى به يې د قيامت پر ورځ يهودي يا نصراني راپاڅوي. (مستطرفات السرائر: ٦٢٠مخ )

 

وژنه

ðوژنه ، دښمني او کينه راولاړوي . ( مستدک الوسايل : ١٣ \ ٤٦٠)

ðدوه مسلمانان،چې په داسې ځای کې پر یو بل توره راوباسي،چې سنتو روا کړي نه وي ؛نو وژونکى او وژل شوى دواړه په اورکې دي . وپوښتل شو:په وژونکي خو پوه شو؛نو وژل شوى ولې؟ آنحضرت ورته وويل؛ځکه هغه هم غوښتل،چې ويې وژني .(علل الشرايع ٢\٤٦٢)

ðد ښه کار له پاسه ښه کار شته او څوک چې د خداى په لار کې ووژل شي؛نو تر دې اوچت ښه کار نشته او ډېراوچت عاقېدل هغه دى ،چې څوک مور يا پلار ووژني،چې تر دې ډېر ټيټ بدکار نشته .( الکافي : ٢\٣٤٨)

ðد خداى پر وړاندې هغه ډېر سرغړاند دى،چې هغه څوک ووژني ،چې دى يې نه  دی وژلی ( او بې ګناه دی) او هغه څوک ووهي،چې دى يې نه وي وهلى. ( الکافي : ٧\٢٧٤)

ðد خداى پر وړاندې د بني بشر ډېرې ناوړې چارې دادي: (١) د کوم پېغمبر وژنه( ٢) د کعبې ويجاړول،چې خداى ( د خلکو ) قبله کړې ده (٣) د ښځې په زيلانځ کې په حرامو د څاڅکي تويول .( من لايحضره الفقيه : ٤\٢٠)

 

کعبه

ðعلي! ته دکعبې په څېر يې ،(خلک ) بايد په تا پسې راشي، نه دا چې ته ورپسې ورشې .( اسد الغابة ٤\٣١، ينابيع المودة ٢\٨٥)

 ðپاک خداى له هر څيزه يو څيز غوره کړى دى،له ځمکې يې مکه او له مکې يې “مسجدالحرام” او له مسجدالحرامه يې هغه برخه غوره کړې،چې کعبه پکې ده .( مستدرک الوسايل ٩ \ ٣٤٧)

ð (خداى ته سوچه او بېخي) غاړه ايښوول د ايمان ښکلا ده؛ لکه چې طواف کول  د کعبې ښکلا ده .(مستدرک الوسايل ٩\٣٧٥)

ð (د خداى) پر کور  دې آفرين وي!(اى کعبې) ته څومره ستره يې!او د خداى پر وړاندې څومره درنه يې!؛خو پر خداى قسم ! تر تا خداى ته مؤمن ډېر دروند او عزتمن دى؛ځکه ته يو درناوى لرې ( چې هغه د کعبې درناوى کول دي)؛خو مؤمن درې درناوي لري :(١) شتمني او (٢) وينه يې خوندي وساتل شي (٣)او نه ښايي بد ګومان پرې وشي . (مشکاة الانوار:٧٨)

 

کفر او کفران

ðحذيفه! تر ما وروسته تاسې ته د خداى حجت “علي بن ابيطالب” دى. پر هغه کفر او سترګې پټول ،پر خداى کفر  دى او څوک ورسره په مقام کې شريکول، له خداى سره شرک دى او په اړه یې شک، د خداى په اړه شک کول دي؛اوړېدل ترې،له خدايه اوړېدل دي،انکار ترې له خدايه انکار دى او ايمان پرې پر خداى ايمان درلودل دي .( الامالي للصدوق : ١٩٧)

ðڅلور څيزونه د کفر ارکان دي : (دنيا ته) لېوالتيا،ډار،عصبانيت او غوسه . ( بحارالانوار ٦٩ \١٠٥)

ðد ايمان او کفر ترمنځ (پوله) لمونځ (کول) دي .( ثواب لااعمال : ٢٣١)

 ðمؤمن نرم،ساده پال،باوقار او د ښه خوى خاوند دى او کافر توند،تريخ ،بې ادبه ،بد اخلاقه او بدمعاش دى .( الامالي للطوسي : ٣٦٦)

ðدنيا د مؤمن زندان او د کافر جنت دى . (التمحيص : ٤٨)

ðعلي! ددې امت لس ډلې پر خداى کافرې شوې دي : چغلګر،پالي  او بې غېرته . څوک چې په ناروا سره له ښځې سره د شا له خوا کوروالى وکړي . څوک چې له څاروي سره کوروالى وکړي.څوک چې د فتنې پيدا کولو لپاره هڅې کوي،پر محاربينو ( او دټولني پر ناافوونکيو) د وسلې پلورل .څوک چې زکات نه ورکوي . د چاچې حج له وسې پوره وي او و يې نه کړي او مړ شي . علي! وسمن چې حج و نه کړي ؛ نوکافر دى . (الخصال ٢\٤۵٠)

ðعلي ډېر غوره بشر دى،څوک چې یې و نه مني؛نو کافر دي . (کنزالعمال (١١\٦٢٥،الکامل ﻻبن عدى۴/۱۰،دبغداد تاريخ: (٧\ ٤٣٣، الموضوعات ﻻبن الجوزي: ١\٣٤٧،سيراعلام النبلا٨\٢٠٥) ميزان الاعتدال :١ \٤٧١، البداية والنهاية:(٧\٣٩٥) ذهبي تاريخ اﻻسلام(٢٦\٧٧)

 

کمال

ðد ټولو ناکارو چارو نه کول او د ټولو ښو چارو کول(دمسلمان) د دين کمال دى. (الکافي ٢\٨٤)

ðسخاوت د مؤمن کمال دی . (مستدرک الوسايل ١٥\٢٥٧)

 

ډنډۍ وهل

ðپه کوم ځاى کې،چې ډنډۍ وهل دود شوه؛نو خداى به يې پر سوکړې او زيان اخته کړي .  (اﻻمالي للصدوق:٣٠٨)

لوږه

ðلوږه د حکمت رڼا ده او مړښت له خدايه د لرې کېدو ﻻمل دى او له خداى سره نږدېوالى له نشتمنوسره په دوستۍ او نژديکت کې تر ﻻسه کېداى شي . (روضة الواعظين ٢\٤٥٧)

ðزړونه مو په ډېرو خوړو او څښلو مه مړه کوئ؛ځکه زړونه هم د کر د ځمکې په څېر دي،چې په زړه کې مو د پوهې او معرفت رڼا مړه کوي . څوک چې د شپې لږه وخوري او لمونځ وکړي؛نو څنګ ته يې جنتي حورې راځي . (بحارﻻنوار:٦٧\٧١)

ðډېر داسې روژه تيان شته،چې له روژې يې بې له لوږې او تندې هېڅ نه په برخه کېږي . (اﻻمالى للطوسي : ١٦٦)

ðهغه به پر ما ايمان نه وي راوړى،چې د شپې موړ ويده شي؛خو ګاونډى يې وږى وي . (الکافي ٢\٦٦٨)

ðپه مړه خېټه خوراک د پيس د ناروغۍ ﻻمل دی .(اﻻمالى للصدوق : ٥٤٣)

ðګېډه ډېر شري او مضر لوښى دى،چې انسان يې ډکوي . (بحاراﻻنوار ٦٣\٣٣٠)

ðڅوک چې مؤمن وږي ته خواړه ورکړي؛نو خداى به ورته له جنتي مېوو روزي ورکوي او څوک چې تږى موړ کړي؛نو خداى به پرې سرتړلي جنتي شراب وڅښي اوڅوک چې بربنډ مؤمن ته جامې ورکړي؛نو څو جامې يې پرتن وي، په الهي ضمانت کې به وي . پر خداى قسم ! د مؤمن د اړتيا لرې کول تر يوې مياشتې روژې او اعتکافه غوره دي . (قرب اﻻسناد: ٥٧)

ðد هغې سيمې خلک چې د شپې (ارام اوماړه) ويده کېږي؛خو وږي پکې وي؛نو په قيامت کې ترې خداى د خپل رحمت نظر اړوي . (الکافي: ٢\٦٦٨)

 

ژړا

ðله الهي ډاره،ډېر فکر او ژړا وکړئ . (علام الدين :١٤٦)

ðد پلارمړي  په ژاړ عرش لړزېږي . ( ثواب لااعمال : ٢٠٠)

ðپر هغه دې خوښي وي،چې خداى ورته ګوري او پر خپلې کړې ګناه چې یوازې همدا ترې خبر و، د خداى له وېرې وژاړي . ( الامالي للمفيد : ٦٧)

ðابوذره!پاک خداى وايي : پر عزت او دبدبې مې قسم،چې عابدان هيڅ خبر نه دي،چې ژړا څومره راته ارزښتمنه ده . زه ژړاند ته په رفيق اعلى [ = هغه ځاى دى چې پېغمبران په “عليين  اعلی” کې پکې ناست دي : الوافي : ٣\٧١٠]کې داسې ماڼۍ جوړوم،چې څوک يې سارى نه لري .( مستدرک الوسايل  ١١\٢٤٥)

ð ( له زړه نه) خندا د بدن د پوپنا کېدو لامل دى او د خداى له وېرې ژړا،له اوره د ژغورنې لامل دى .( مستدرک الوسايل  ١١\٢٤١)

ðد خداى له وېرې ژړا،د رحمت کونجي،د عبادت د منلو نښه او د دعا د قبلېدو “ور” دى . ( مستدرک الوسايل ١١\ ٢٤٧)

ðبنده،چې د خداى له وېرې وژاړي ؛نو ګناهونه يې داسې تويېږي؛ لکه پاڼې،چې له ونې رژېږي او د خپلې زوکړې د ورځې په شان وي .( پورته منبع)

ðد هرې کړنې د ارزښت ثواب څرګند دى؛خو د اوښکې څاڅکى د خداى غوسه سړوي او که په کوم امت کې څوک د خداى له وېرې وژاړي؛نو خداى به يې له امله پر امت (هم)ولورېږي .(مستدک الوسايل  ١١\٢٤٠)

ðهغه څاڅکى خداى ته خورا ګران دى،چې په تياره شپه کې د خداى له وېرې وڅاڅي او بې له خدايه يې څوک ونه ويني .  (مستدرک الوسايل  ١١\٢٤٤)

ðپاک خداى له پرښتو سره پر پينځو تنو وياړي :(١) د خداى د لارې پر مبارزينو(٢) پر نشتمنو(٣) پر هغوى چې د خداى لپاره متواضع او عاجز  وي ( ٤) پر هغو شتمنو،چې نشتمنو ته ډېره ورکړه کوي؛خو منت پرې نږدي(٥) او پر هغه چې په خلوت او ګوښه کې د خداى له وېرې ژاړي .( جامع الاخباره : ٩٦مخ )

  

د قرآن لوستل

ðپه واقع کې مؤمن،چې قرآن لولي (؛نو) خداى ورته د خپل رحمت په نظرګوري .( مستدرک الوسايل ٤\٢٥٧)

ðد قرآن لوستونکى (قاري) او اورېدونکى يې په بدله کې سره مساوي دي .( مستدرک الوسايل ٤\٢٦١)

ðهر څه يوه ښکلا لري او د قرآن ښکلا “ښه اواز” دى . (الکافي ٢\١٦١)

ðسلمانه!قرآن لوله؛ځکه لوستل يې د ګناهونو کفاره،له اوره ژغورونکى او له عذابه خوندېينه ده .( جامع الاخبار: ٣٩)

ðقرآن په عربي لحن او غږ  ولولئ او له دې ډډه وکړئ،چې د فاسقانو او فاجرانو د نغمو په څېر يې ولولئ .( الکافي  ٢\٦١٤)

ðچاچې د قرآن لوستل د ځان د ژوند کولو لپاره وسيله کړى وي ؛ نو په قيامت کې به د هډوکو د ډانچې په څېر راشي،چې هيڅ غوښه به پرې نه وي .( وسايل الشيعه ٦\١٨٣)

 

قرآن

ðقاريانو! د خداى کتاب،چې پر الهي پولو پوه شوي ياست؛ مراعات يې کړئ؛ځکه زه او تاسې د قرآن په اړه پوښتېدوني يو،زه د رسالت د تبليغ په باب او تاسې د هغه څه په اړه ،چې له قرآن او زما له سنتو پوهېدلي ياست ! (الکافي ٢\٦٠٢)

ðپر هر چا د خداى حق دى،چې قرآن زده کړي او تدبر پکې وکړي . (مستدک الوسايل ٤\٢٣٣)

ðکه فتنې درباندې د شپې د تيارو په څېر راخپرې شوې؛نو قرآن ته پناه يوسئ؛ځکه قرآن سپارښتنه کوي،چې قبلېږي هم.  (وسايل الشيعه ٦\١٧١)

ðد خلکو په زړونو کې د قرآن له تفسيره (بل) لرې څيز نشته ؛نو ځکه مخلوق پکې حيران دى؛خو هغه څيزونه،چې خداى وغواړي (خلک به پرې وپوهوي) . ( بحارالانوار  ٨٩ \ ١٠٠ )

ðعلي له قرآن سره دى او قرآن له علي سره دى او دا دواړه له يوبله نه بېلېږي،څو په (کوثر) حوض کې ماته راشي .( دحاکم نېشاپوري مستدرک : ٣\١٣٥،(صحة الذهبي فى التلخيص : ٣\ ١٣٤ معجم الاوسط ٥\ ١٣٥  فيض القدير: ٤\ ٤٧٠)

ðپه تاسې کې يو څوک دى،چې له قرآنه به د سمې پوهېدنې،تفسير او تاويل لپاره وجنګېږي؛لکه چې يې زه د نازلېدو،ټينګښت او وحېتوب لپاره وجنګېدم او هغه “علي بن ابيطالب دى”. (د حاکم نیشاپوري مستدرک : ٣\ ١٢٢-  دامام احمد حنبل مسند : ٣\٣٣)

ðپر نورو خبرو د قرآن غوراوى داسې دى؛لکه چې خداى پر خپلو مخلوقاتو غوره دى .( مستدرک الوسايل ٤\٢٣٧)

ðد قرآن د ښوونکي او زده کوونکي لپاره ټول موجودات ان کب په سمندر کې بښنه غواړي . ( مستدرک الوسايل ٤\ ٢٣٥)

ðپه تاسې کې هغه غوره دى،چې قرآن زده کړي او نورو ته يې وښيي . (مستدرک الوسايل ٤\٢٣٥ )

ð قرآن الهي دسترخوان دى؛نو څومره چې کړاى شئ،ترې يې زده کړئ . ( مستدرک الوسايل : ٤\٢٣٢)

ðد قرآن حافظان او د شپې پاڅېدونکي زما د امت اشراف دي . (وسايل  ٨\١٥٥ )

ðزه حيران يم،چې کله قرآن لولم (؛نو) ولې نه زړېږم .(وسايل ٦\١٧١)

ðپه کوم زړه کې،چې قرآن وي،پاک خداى يې نه په عذابوي.  (مستدرک وسايل ٦\١٦٧)

ðد قرآن حافظین د جنتيانو عارفان دي،مجتهدين (او زیارکښ) د جنتيانو مخکښان دي او استازي د جنتيانو ښاغلي دي .(الکافي ٢\٦٠٦)

ðبې له انبيا وو او استازيو، د قرآن قاريان د انسانيت او سړيتوب په لوړو درجو کې پراته دي؛نو د قاريانو حقوق مه ضايع کوئ؛ځکه دوى د بريمن او زورور خداى پر وړاندې لوړې درجې لري .(الکافي ١\ ٦٠٣)

ðقرآن له بې لاريو د سمې لارښوونې لامل او رڼا دى،چې پټ څيزونه پرې وګورې،د ګناهونو بښونکى دى،په تياروکې رڼا ده،په پېښو کې بله ډېوه دى،له هلاکته ساتونکى دى . له خطرونو ژغورونکى دى، د فتنو څرګندوونکى دى او انسان له دنيا څخه آخرت ته رسوي او په هغه کې مو د دين کمال دى اوهېڅوک ترې مخ نه اوړي او چې وا يې  ړاوه ؛ نو اور ته به ځي .( الکافي  ٤\٦٠٠ )

ðد قرآن حافظ تر ټولو ډېر په پټه او ښکاره متواضع،لمونځ کوونکى اوروژه تي دى بيا آنحضرت (ص) په لوړغږ وويل : د قرآن حافظه ! د قرآن له امله تواضع وکړه،چې پاک خداى دې سر لوړی کړي او ځان د هغه لپاره مه عزتمنوه،چې خداى به دې خوار کړي،د قرآن حافظه! د خداى لپاره ځان په قرآني لارښوونو سمبال کړه،چې خداى دې پرې سمبال کړي او قرآن د وسيلې په توګه مه کاروه،چې په خلکو کې ښه معلوم شې،که نه خداى به دې خوارکړي . ( وسايل الشيعه ٥\١٨٣)

ðڅوک چې قرآن زده کړي؛خو عمل پرې نه کوي او له دنيا سره مينه او ښکلا پرې غوره وبولي؛نو د الهي غوسې وړ به وي او د يهودو او نصاراوو په کتار کې به (وشمېرل) شي،چې د خداى کتاب ته يې شا کړه ( او عمل يې پرې ونه کړ ). څوک چې قرآن د ځانښوونې او دنيا غوښتنې لپاره ولولي؛نو د قيامت پر ورځ به له خداى سره په داسې بڼه ګوري،چې يوازې به د هډوکو (تشه) ډانچه وي او غوښې به پرې نه وي او قرآن به يې له شا څخه مخې ته ټېل وهي،چې جهنم ته یې ورسوي او له نورو دوزخيانو سره اور ته وغورځېږي او څوک چې قرآن لولي او عمل پرې ونه کړي؛نو ړوند به محشر ته راشي ؛نو وايي : پالونکيه! زه دې ولې ړوند پاڅولم،زه خو لېدونکى وم؟ ځواب ورکول کېږي :زما آيتونه او نښې در ورسېدې؛خو هېرې دې کړې او په دې توګه ته هم نن هېر شوى يې؛ نو حکم رارسي ،چې جهنم ته يې يوسئ او څوک چې قرآن د خداى د خوښې او د پوهې د لاس ته راوړو لپاره ولولي؛نو د ټولو پرښتو،انبياوو او استازيو بدله ورته ډالۍ کېږي .(وسايل الشيعه ٦\١٨٣)

ð په تاسې کې غوره هغه دى،چې قرآن زده کړي اونورو ته يې وښيي . (مستدرک ٤/٢٣٥ )

ð کورونه  مو د قرآن په لوستو رڼاکړئ .( وسائل ٦/٢٠٠ )

ð قرآۤن ته کتل  عبادت دى . ( بحار ٩٢/١٩٩ )

ðد  چاچې دا ښه ايسي،چې له خپل پالونکي سره خبرې وکړي ؛نو قرآن دې ولولي . ( ميزان الحکمه : ١٦٤٩٧ح )

 

قدر او منزلت

ðهغه مؤمن خداى ته د قدر او مقام له اړخه غوره دى،چې د نېکۍ ناشکري يې وشي . ( الجعفريات : ١٨٩)

ðپه قيامت کې هغوى د خداى پر وړاندې د لوړ مقام خاوندان دي، چې تر ټولو ډېر د خداى  د بندګانو خيرغواړي وي .( الکافي ٢\٢٠٨)

ðما ته د “علي” مرتبه داسې ده؛لکه د سر مې،چې بدن ته ده. (ذخائر العقبى ٦٤مخ،جامع الصغير: ٢\١٧٧،کنزالعمال: ١١\ ٦٠٣، فيض القدير : ٤\ ٤٧ ،د بغداد تاريخ : ٧\١٢،ابن مردويه اصفهاني؛مناقب على بن ابيطالب : ١٠٧مخ)

ðد علي مقام راته داسې دى؛لکه د”هارون”،چې “موسى” ته و؛خو په دومره توپير،چې تر ما وروسته بل پېغمبر نشته . (صحيح بخاري ٤\ ٢٠٨، صحيح مسلم ٧\ ١٢٠ ،د ابن ماجه سنن ١\ ٤٣ ،دترمذي سنن ٥\٣٠٢)

ðد علي مقام راته داسې دى؛لکه د روح مې چې تنې ته دى . ( ذخائر العقبى ٦٣مخ )

ðعلي مې د ځان په څېر دى،لاروي يې زما لاروي ده او سرغړاوى ترې زما څخه سرغړاوى دى . (د ابن مردويه اصفهاني مناقب علي : ١٠٨مخ ، د شيخ سليمان قندوزى حنفي ينابيع المودة : ١\ ١٧٣)

 

سوکړه- قحطي

ðامت مې تر هغه په خير کې دى،چې خيانت و نه کړي او امانت ساتى وي او زکات ورکړي او که داسې نه وي؛په  قحطۍ او کړاو اخته کېږي . (ثواب الاعمال ٢٣٦مخ )

 

قبر

ð که څوک غواړي د قبر له عذابه وژغورل شي؛نو زما له اهلبيتو سره دې مينه ولري . (فضل آل البيت للمقريزى : ١٣مخ )

ðخداى تعالى دې پر هغه بنده ولورېږي،چې له خدايه ډېره حيا کوي (او د حيا حق پر ځاى کوي)او خپل سر او منځپانګه يې ساتي (؛يعنې خپل فکر، سترګې،غوږ او خوله ساتي) او خپله ګېډه او دننه يې (له حرامو مالونو او شهوته)ساتي او د قبر او سختيو ياد يې ورسره وي  او اُخروي ژوند( او د کړنو محاسبه ،سزا او بدله )شته . (مستدرک الوسايل : ٨\٤٦٢)

ðزما او له کورنۍ سره مې مينه په اوو ځايونو کې ګټوره ده،چې ډېر ډار او هيبت پکې دى : ( ١) د مړينې پر مهال ( ٢) په قبر کې (٣) له قبره د راپاڅېدو پرمهال ( ٤) دکړنليک د اخستو پر مهال ( ٥) د حساب پر مهال ( ٦) د قيامت په محکمه کې( ٧) او له”صراط”ځنې په تېرېدو کې . (بحارالانوار  ٧\ ٢٤٧)

ðڅوک مې چې تر مړينې وروسته د قبر زيارت وکړي، د هغه په څېر به وي،چې په ژوندون يې زما پر لور هجرت کړى وي ؛نو که مو و نه کړاى شو؛نو له لرې راباندې سلام واچوئ،چې ماته را رسي .(تهذيب الاحکام  ٦\٣)

ðزما د قبر او منبر ترمنځ واټن د جنت له باغونو يو باغ دی . (بحارالانوار  ٩٧\١٩٢)

ðڅوک چې زما د قبر ترڅنګ سلام راباندې واچوي؛ اورم يې او چې له لرې يې راباندې واچوي رارسي . ( اوائل المقالات : ٧٣)

 ðقبر د آخرت لومړى کور او پړاو دى،څوک چې له دې پړاوه بريالى ووت؛نو ورپسې پېښې ورته اسانې دي اوکه ناکام ترې راووت؛نو ورپسې پېښې (هم) له دې کمې نه دي . (الدعوات : ٢٥٩)

ðڅوک چې د ويدېدو پر مهال د(تکاثر)سورت لولي؛د قبر له فتنوخوندي کېږي . (الکافي٢ \ ٦٢٣)

ðڅوک چې زما د قبر زيارت وکړي،جنت پرې واجبېږي . (سنن الدارقطني ١\٢٤٤،فيض القدير ٦\١٨١، الدرمنثور ١\٢٣٧، ميزان الدعتدال ٤\٢٢٦)

 

فقه او فقهاء

ðهر څيز يو بنسټ لري او “فقه” ددې دين بنسټ دى .(عوالي الاللي ٤\ ٥٩)

ðفقهاء تر هغه چې دنيا ته ننووتي نه وي،د پېغمبرانو امينان دي . وپوښتل شو : په دنيا کې د ننووتو مانا څه ده ؟ آنحضرت ورته وويل :د زمانې د (ظالمو) واکمنو لاروي او که دا کار يې وکړ؛نو د خپل دين د ساتنې لپاره ترې ډډه وکړئ .( الکافي ١\٤٦)

ðڅوک چې زما د امت لپاره په خپلو ديني چارو کې څلوېښت اړين احاديث زده کړي؛نو خداى تعالى به يې د فقهاوو اوعالمانو په لړ کې راپاڅوي .( عوالي الاللي : ١\ ٩٥)

ðپرهېزګاران (د قوم) ښاغلي او فقها يې مخکښان دي او ناسته پاسته ورسره عبادت دى .( الامالي لطوسي : ٢٢٥)

ðزما دامت دوې ډلې دي،که سمې وې؛نو امت مې سمېږي او چې فاسدې شي؛نو امت مې فاسدېږي : فقها او واکمن : (الخصال  ١\ ٣٦)

ðخداى دې هغه بنده خوشحاله کړي،چې خبره مې واوري،ياده يې کړي او نااورېدلي ته يې ووايي.ډېر داسی دي،چې پخپله پوهان نه دي؛خو پوهه لېږدوي او ډېر داسې (هم) دي،چې پوهه تر ځان پوهو ته رسوي . (تفسير القمي ٢\ ٤٤٦)

ðمؤمن (فقيه) چې مړ  شي؛نو اسلام ته داسې زيان رسي ،چې هيڅ څيز يې جبرانولاى نشي او ټول زيارتونه او جوماتونه،چې عبادتونه يې پکې کړي، پرې ژاړي . ( الکافي  ١ \ ٣٨)

 

فضيلت اوغورواى

ðپه دنيا او آخرت کې تر پېغبرانو وروسته  غوره خلک هغه دي ،چې خداى تعالى پرې ګران وي او دوى هم د خداى لپاره يو بل ته ګران وي . (مستدرک الوسايل ١٢\٢٢٠)

ðعقلمن ډېرغوره خلک دي .( بحارالانوار ١\١٦٠)

ðد ايمان له پلوه،د ښه خوى خاوندان غوره خلک دي . (مشکاة الانوار : ٢٢٣)

ðد مرتبې او مقام له اړخه هغه مؤمن خداى ته غوره دى،چې د نېکۍ پر وړاندې يې ناشکري وشي .( الجعفريات : ١٨٩ مخ )

 

 

 

فقر او نيستي

ðخداى تعالى (ځينو) بندګانو ته بېوزلي په امانت ورکړې؛نو چاچې پټه کړه،خداى ورته د هغه انسان بدله ورکوي،چې د ورځې روژه او د شپې پرتهجدو ولاړ وي او څوک چې دا (امانت) هغه ته ووايي،چې اړتيا يې پوره کولاى شي او ور پوره یې نه کړي؛نو لکه چې وژلى يې دى؛خو نه په توره او تېغ؛بلکې خپه او “زړه ماتى” کړى یې دى،چې دا هم وژنه ده . ( الکافي٥\ ١٣٣)

ðنږدې وه،چې فقر پر کفر واوړي او نږدې وه،چې کينه په قضاوقدر کې ادلون بدلون راولي! ( الکافي ٢\٣٠٧)

ðخيانت د بېوزلۍ لاملېږ ي .( الکافي ٥\١٣٣)

ðد ياقوتو ګوته پر ګوته کړئ،چې فقر له منځه وړي .(الکافي ٦\٤١٧)

ðهغه حقيقي مؤمن دى،چې نشتمن پخپلو شتمنۍ کې شريک کړي او د ځان په اړه له خلکو سر ه په انصاف کې وي . (الکا في ٢\ ١٤٧)

ðپوه شئ څوک چې مسلمان نشتمن ته ټيټ وګوري؛نو په واقع کې يې د خداى حق ته سپک کتلي او پاک خداى يې په قيامت کې خواروي ؛ خو داچې توبه وباسي .( بحارالانوار : ٦٩\٣٨)

ðڅوک چې د نشتمن مسلمان درناوى وکړي؛نو په قيامت کې،چې خداى ويني،ترې خوښ به وي . ( پورته منبع )

ðپه قيامت کې به نشتمن،شتمنو ته وايي : پالونکيه!هغوى راباندې تېرى وکړ،هغه حقوق يې رانه کړل،چې تا يې پرې ورکړه فرض کړې وه . (ارشاد القلوب  ١\ ٣٦)

ðبېوزلي،چې د چا ګرېوان نه خوشې کوي؛نو “لاحول ولاقوة الابالله” دې دومره ووايي،چې خوشې يې کړي . (المحاسن ١\٤٢)

ð(ګدا) نشتمن،چې خپلې اړتياوې وايي؛نو خبرې يې مه پرېکوئ،که (ځينو) مسکينانو دروغ نه ويل؛نو چاچې يې غوښتنه نه منلاى؛نو بريالى کېداى نشو .( الکافي ٤\١٥)

ðګدا نشتمن مه پرېږدئ،که څه هم ناڅیز څه ورکړئ . (الکافي ۴ / ۱۵)

ð (په محکمه کې) د ګدا نشتمن شهادت نه قبلېږي . (تهذيب الاحکام : ٦\ ٢٤٣)

ðدوه چارې مې ښې نه ايسي،چې بل راسره پکې شريک شي : په اودس کولو کې،چې د لمانځه يوه برخه مې ده او په خپل لاس مې ګدا ته له خپلې صدقې  ورکړه،چې د رحمان خداى ( د رحمت) لاس ته رسي . (الخصال ١\ ٣٣)

 ðګدا چې خپلې اړتياوې څرګندوي؛نو د”نړۍپالونکى” استازى دى، چې خلک وازمېيي ؛نو چاچې ورسره مرسته وکړه؛لکه چې له خداى سره يې مرسته کړې وي . چاچې پرېښود؛نو په حقيقت کې يې خداى پرېښى دى .( الجعفريات : ٥٧)

ðبېوزلي تر شتمنۍ غوره ده ؛خو که څوک یې د زيان زغم لرلاى شي او په سختيو کې هم له خلکو سره مرسته وکړي . (بحارلانوار ٦٩\٥٦)

ð بېوزلي سور مرګ دی . وپوښتل شو:مطلب مو له پیسو بېوزلي ده؟ آنحضرت(ص)ورته وویل: نه ! د دينه نيستي سور مرګ دى . (بحارالانوار  ٦٥\٢١٥)

ð بېوزلي مې د وياړ لامل دى او پر نورو انبياوو پرې وياړم . (بحار  ٦٩\٣١) 

ðخدايه! مسکين مې ژوندى لرې او مسکين مې مړ کړې او له مسکينانوسره مې راپاڅوې . ( بحارالانوار ١\١٩٨ )

ð تر شتمنۍ وروسته بېوزلي او تر بېوسۍ وروسته ګناه کول څومره ناوړه چارې دي او تر دې هغه ډېره ناوړه چار ده،چې څوک خداى لمانځي؛ خو بيا يې عبادت پرېښى وي . (الکافي : ٢\٨٤)

 

ځانمني

ðتر ځانمنۍ بوږنوونکی څيز نشته . (من لايحضره الفقيه ۴ \ ۳۷۱)

ðوياړنه او ځانمني د حسب او نبېري آفت دى . ( الكافي ۲\۳۲۸)

ðترځانمنۍ ډېر ډارن يوازېتوب نشته . ( بحارالانوار  ۷۴\۶۶)

ðكه نه واى،چې مؤمن ته تر ځانمنۍ (او كبر،چې ما ګناه نه ده كړې) ګناه كول غوره دى؛نو خداى خپل مؤمن بنده ته دګناه كولو فرصت نه وركاوه .(الامالي للطوسي : ۵۷۱)

 

ملاماتوونکي لاملونه

ðڅلور څيزونه د انسان ملاماتوي : (١)واکمن،چې ګناه کوي او لارښوونې يې منل کېږي (٢) هغه مېرمن،چې مېړه يې پالي؛خو دا ورسره خيانت کوي (٣) هغه بېوزلي،چې خاوند يې ورته د حل لار نشي مونداى(٤) او ناوړه ګاونډى،چې اوږد ګاونډيتوب دې ورسره وي . (بحارالانوار  ٦٩ \٤٢)

 

بلنه

ðدرې څيزونه جفا ګڼل كېږي :  (۱)  داچې څوک له چا سره ملګرتوب كوي؛خو نوم او تخلص يې و نه پوښتي ( ۲) داچې څوك دې وبلي ؛خو ويې نه منې اوكه و يې ومني ( او ورشي؛خو) څه ترې و نه خورې  (۳) او مېړه،چې له لوبو او ملاعبې پرته له خپلې مېرمن سره كوروالى كوي . (قرب الا سناد : ۷۴مخ )

ðد خپل امت حاضرو او غايبو ته سپارښتنه كوم ،چې د مسلمان بلنه ومني،كه څه هم پینځه ميله لرې وي ؛ځكه دا ( بلنه ) د دين يوه برخه ده . (الكافي : ۶\ ۲۷۴)

ðهغه ډېر بېوسى دى،چې خپل مؤمن ورور يې خوړو ته وبلي؛نو بې له كوم علته ورنشي . ( المحاسن ۲\ ۴۱۱)

ðڅوك چې بلنه و نه مني؛نو د خداى او د هغه د استازي سرغړونه یې كړې ده او د خداى او استازي يې هغه وليمه بده ايسي،چې شتمن پکې وي او بېوزلي ورته رابلل شوي نه  وي . ( بحارالانوار  ۷۲\ ۴۴۸ )

 

تېراېستنه

ðمسلمان چل او ټګۍ والا نه دى . ( عيون اخبارالرضا ۲\ ۵۰)

ðڅوك چې له مسلمان سره ټګي وكړي او يا له چا سره خيانت وكړي؛نو له موږه نه دى .( الامالي للصدوق : ۲۷۰مخ )

ðڅوك چې له مسلمان سره په راكړه وركړه كې ټګي وكړي؛نو له موږه نه دى او د قيامت پر ورځ به له يهودو سره راپاڅي؛ځكه څوك چې خلك تېر باسي؛نو مسلمان نه دى . (اعلام الدين : ۴۱۴)

ðڅوك چې له مسلمان سره ټګي وكړي يا  ورته زيان ورسوي يا ورسره چل وكړي؛نوله موږه نه دى . ( صحيفة الرضا :۴۳مخ )

ðڅوك چې له خپل مسلمان ورورسره چل ول وكړي؛نو خداى د هغه له روزۍ بركت اخلي او ژوند يې فاسدوي او ځان ته يې پرېږدي . ( وسايل الشیعة ۱۷\ ۲۸۳)

 

دنيا

ðله دنيا سره مينه د ټولو ګناهونو سرچينه ده . (التحصين لا بن فهد الحلى : ۲۷ مخ )

ðدنيا يوه “مرداره” ده،چې غوښتونكي يې سپي دي . (مصباح الشريعه : ۱۳۷مخ )

ðكه دنيا يوه “مړۍ” واى او مسلمان خوړه او بيا يې ((الحمدلله )) ويل؛نو دا وينا ورته تر دنيا او څه چې پکې دي،غوره وه . (الامالي للطوسي : ۶۱۰ )

ðپوه شئ،چې دنيا يو ژور سمندر دى،چې ډېر پکې ډوب شوي؛خو “آل محمد” د  هغوی د ژغورنې بېړۍ ده. (تفسير الامام العسكري : ۴۳۲)

ðدنيا او پيسو تر تاسې مخكې له منځه يووړل او تاسې به هم هلاك كړي .( مشكاة الانوار : ۲۶۵مخ )

ðدنيا مؤمن ته زندان او د سختۍ ځاى دى او كافر ته جنت او دسوكالۍ ځاى دى . ( مشكاة الانوار : ۲۶۶)

ðله دنيا سره مينه؛د هرې سرغړونې جرړه او د هرې ګناه بنسټ دى . (تنبية الخواطر ٢/ ١٢٢)

ðدنيا د مؤمن زندان او د کافر جنت دى .( تحف العقول : مخ ٥٣)

ð دنيا د آخرت کرونده ده . ( عوالى اللئالى ١/٢٦٧)

ð له دنيا سره مينه د هرې تېروتنې او ګناه سرچينه ده . (کنز ٣/١٩٢)

ð زړونه مو د دنيا په ياد مه بوختوئ . ( کنز ٣/١٩٨)

 

ملګرى

ðعقل د سړي ملګرى او ناپوهي يې دښمنه ده . ( المحاسن ۱ \ ۱۹۴ )

ðد علم زده کوونکی زما ملګرى دى او تر پرښتو هم  راته ډېر ګران دى او چا يې چې عزت وكړ؛نو زما عزت به يې كړى وي او چاچې زما عزت وکړ؛نو د خدای عزت به يې كړى وي او چاچې د خداى عزت وكړ؛نو جنت پرې واجبېږي؛ځكه خداى ته بې له علمه بل هيڅ هم ګران نه دي او د خداى يوساعت علمي بحث تر لس زر كلن عبادته ښه ايسي او د قيامت پر ورځ دې د علم پر زده كړي خوشحالي وي . (مستدرك الوسايل ۱ \ ۳۰۰ )

 

دوستي

ðليده كاته دوستي زياتوي . ( مستدرك الوسايل ۱۰ \ ۳۷۴)

ðسړى له هغه سره وي،چې ښه یې ايسي .(مستدرك الوسايل ۱۲\ ۲۲۰)

ðد ايمان ډېره ټينګه رسۍ د خداى لپاره دوستي او دښمنى ده او (همداراز) د خداى له دوستانو سره دوستي او له دښمنانو يې بېزاري ده. ( الكافي ۲ \ ۱۲۵)

ðمسلمان كه درې ځانګړنې ولري؛نو د خپل مسلمان ورور ملګرى يادېږي : ( ۱) د ليدنې پر وخت ورسره په ورين تندي مخ شي ( ۲) د ناستې پر مهال ورته ځاى وركړي ( ۳) او كوم ښه نوم يې،چې خوښېږي، پرې ياد يې كړي .( مستدرك الوسايل ۱۰ \ ۳۷۴)

 

له قحطۍ د ژغورنې لاملونه

ðامت به مې تل په خير كې وي كه دا ( لاندې) ځانګړنې ولري او كه و يې نه لري؛په قحطۍ او كمبودۍ به اخته شي:له يو بله سره مينه ولري، يو بل ته ډالۍ وركړي،امانت خپل خاوند ته وسپاري،له حرامو ډډه وكړي،مېلمه پال وي،لمونځ وكړي او زكات وركړى . (وسايل الشيعة ۱۵\ ۲۵۴)

 

ليده كاته او زيارت

ðڅوك چې د خپل مسلمان ورور كتو ته كور ته يې ورشي؛نو خداى تعالى ورته وايي: زما مېلمه يې او مېلمستيا دې پر ما ده ؛ځكه چې مينه دې ورسره درلوده؛ نو جنت مې درته واجب كړ. ( الكافي ۲\ ۱۷۶)

ðڅوك مې،چې تر وفات وروسته زيارت وكړي؛نو داسې دى،چې پر ژوند مې ماته مهاجر شوى وي او كه و يې نه شو كولاى؛نو سلام دې راباندې واچوي؛ځكه رارسي . ( تهذيب الاحكام ۶\۳)

ðڅوك چې هره جمعه د خپل موروپلار يا يوه قبر ته ولاړ شي او ورباندې د “ياسين” سورت ووايي؛ نو خداى تعالې ترې د هغه سورت د هر ټكي هرمره ګناهونه بښي . ( بحارالانوار  ۸۹\۲۹۳)

ðد خپلو مړيو زيارت ته ورشئ او درود او سلام پرې ووايئ؛ځكه زيارت يې درته پند او عبرت دى . ( مجموعة ورام ۱\ ۲۸۸)

 

دينار او درهم ( پيسې)

ðڅوك چې د پيسې بنده شي؛نو ډېرسخت ملعون دى .(الخصال ۱\ ۱۲۹ )

ðداسې وخت به راشي،چې ګېډې به د خلكو خداى يې وي، ښځې به يې قبله وي،پيسي به يې دين وي او شتمني به يې شرف وي، ايمان به تش په نوم وي،اسلام به يې يوازې په ظاهره وي او د قرآن به يوازې ليك پاتې وي،جوماتونه به يې اباد؛خو زړونه به يې له لارښوونې تش او ويجاړ وي،عالمان به يې د ځمكې ډېر ناوړه خلك وي؛نو پر داسې مهال به خداى هغوى پر څلورو بلاوو اخته كړي :  (۱)  د واكمن په ظلم (۲) اوږده قحطۍ (۳) ظلم او ( ۴) د قاضيانو ظلم. اصحاب پردې خبرې حيران شول او ويې پوښت : رسول الله! ايا هغوى بوتنمانځي دي؟  آنحضرت ورته وويل : هو! هره پيسه ورته يو بوت دى . (بحارالانوار : ۲۲\ ۴۵۳)

 

دين

ðزما دوست جبرئيل راته وويل : دا دين د ونې په څېر دى،چې ډډ يې ثابت دى او لمونځ يې ريښي دي،زكات يې اوبه دي،روژه يې ښاخونه دي،پاڼې يې ښه خوى دى او له حرامو ډډه كول يې مېوه ده او؛لكه څرنګه چې دا ونه يوازې په مېوه بشپړېږي؛نو ايمان هم يوازې له حرامو په ډډه كولو بشپړېږي . ( بحارالانوار  ۶۸\۲۰۷)

ðجبرئيل راته راغى او ويې ويل : احمده! اسلام لس برخې لري او څوك چې له دې كومه برخه ونه لري؛نو ناكامېږي : د((لا اله – الا الله )) شهادت،چې دا كلمه ده.لمونځ،چې د پاكۍ او سپېڅلتيا لامل دى . زكات،چې دا فطرت دى . روژه ،چې دا پناه ځى دى .حج ،چې دا شريعت دى . جهاد ،چې داعزت دى.پر نېكيو امر،چې دا وفا ده.له بديو منع ،چې دا دليل دى .په جماعت لمونځ ،چې دا صميميت دى اواطاعت،چې دا مصونيت دى . ( علل الشرايع ۱\ ۲۴۹)

ðله دينوالو سره ناسته پاسته د دنيا او آخرت د دشرف لامل ده . ( الكافي  ۱\ ۳۹)

ðد دين ډېر ناوړه مرستندويان دا دي :  (۱) ځاني غوښتنې (۲)  د حريص ګېډه ( ۳) او ډېر شهوت . ( الكافي ۶\ ۲۶۹)

ðڅوك چې د خداى د غوسې په بيه كوم واكمن له ځانه راضي كړي؛ نو د خداى له دينه وتلى دى . ( الكافي ۲\ ۳۷۳)

ðانسان د خپل دوست او ملګري پر دين وي؛نو بايد له خدايه ووېرېږي او وګوري،چې له چا سره ملګرى كېږي . ( مستدرك الوسايل ۱۲\ ۳۱۲)

ðڅوك چې خپلې ژمنې نه پوره كوي؛نو دين نه لري . ( النوادر للراوندي : ۵مخ )

ðخداى تعالى وايي : څوك چې زما خبرې پخپله ګټه تفسيروي؛نو پر ما يې ايمان نه دى راوړى او څوك چې ما له خپل مخلوق سره ورته او تشبيه كوي؛نو زه يې نه يم پېژندلى او څوك چې زما په دين كې قياس وكړي؛نو دين نه لري  . ( عيون اخبارالرضاء ۱\ ۱۱۶)

 

رښتيا

ðرښتيا ويل  د خبرې ښكلا ده . ( بحار ۶۸\ ۹)

ðكه چا دا څلور ځانګړنې درلودې؛نو كه څه هم له سره تر پښو ګناهكار وي؛نو خداى به يې ورته په ثوابونو واړوي : (۱) رښتيا ويل (۲) حياء ( ۳) ښه خوى (۴) او شكر اېستنه . (الكافي ۲\ ۱۰۷)

 

ربا

ðتر ځان وروسته مې امت ته له “حرامو”،”پټ شهوت ” او “سوده”  ډارېږم . ( الكافي ۵\ ۱۲۴)

ðسودخور،سودوركوونكى، د سود ليكونكى او پرې شاهد په ګناه كې يو شان دي . ( من لايحضرالفقيه ۳\ ۲۷۴)

ðد مسعود زويه ! څوك چې له خپلې مور سره زنا وكړي؛نو خداى ته دا تر هغه ډېره اسانه ده،چې د ږدن دانې هومره سود وخوري . ( مستدرك الوسايل ۱۳\ ۳۳۱)

ðسود خوړل ډېر ناوړه كسب دى . ( مجموعة ورام ۲\ ۹۲)

ðڅوك چې سود وخوري؛نو خداى يې د سود هومره اور په ګېډه كې اچوي او څوك چې له سوده څه شتمني تر لاسه كړي؛نو چې د بڅري هومره ورسره وي،خداى عمل یې نه قبولوي او تل به پرې د خداى او پرښتو لعنت وي . ( ثواب الاعمال : ۲۸۵)

ðڅوك چې راكړه وركړه كوي؛نو پينځوځانګړنو ته دې يې پام وي او كه دا كار و نه كړي؛نو غوره ده،چې نه وپيري او نه يې وپلوري او هغه دا دي : ربا،قسم خوړل،د جنس دعيب پټول،د پلورنې پر مهال يې صفت كول او د پېرنى پر مهال يې بد ويل . (الكافي  ۵\ ۱۵۰)

 

د رجب مياشت

ðڅوك چې د رجب په مياشت كې يوه ورځ روژه شي؛نو جنت پرې واجبېږي . ( اقبال الاعمال : ۶۳۴)

ðرجب يوه ستره مياشت ده،چې د ښو كارونو ثواب يې دوه ګرايه كېږي اوڅوك چې پکې يوه ورځ روژه شي؛نو د داسې چا په څېر به وي،چې يوكال يې روژه نيولې وي . ( فضايل شهررجب : ۴۹۸مخ )

 

د روژې مياشت

ðخلكو! خدای د رمضان میاشت درته ځانګړې كړې ده او تاسې يې پکې نناېستي ياست او تر ټولو مياشتو غوره ده او داسې يوه شپه پکې ده، چې تر زرو مياشتو غوره ده او خدای پر هغه شپه د جهنم ورونه تړي او د جنت ورونه پرانستل كېږي؛نو څوك چې په دې شپه پوه شو او ونه بښل شو؛نو خداى له خپل رحمته لرې كړی دی او چاچې خپل مور و پلار وليدل او و نه بښل شو؛نو خداى له خپل رحمته لرې كړی دى . څوك چې زما نوم واخلي او صلوات (او درود ) راباندې و نه وايي ؛نو خداى نه دى بښلى اوله خپل رحمته يې لرې كوي .

ðخلكو! د روژې مياشت چې راوخېژي؛نو سرغړانده شيطانان (په ځنځيرونو) تړل كېږي او د اسمان،جنت او رحمت ورونه پرانستل كېږي او د جهنم ورونه تړل كېږي او دعاوې قبلېږي او خداى تعالى د روژه ماتي پر مهال يو ډېر شمېر د دوزخ له اوره ژغوري او د دې مياشتې په هره شپه كې جارچې غږ كوي،چې: اړمن يا بښنه غوښتونكى شته؟ (الكافي ۴ \ ۶۷)

ðپېغمبراكرم (ص) “جابر بن عبدالله انصاري” (رض) ته وويل : د روژې په مياشت كې،چې څوك د ورځې روژه او د شپې په يوه برخه کې عبادت وكړي او خپله ګېډه او شرمځى پاك وساتي او د خپلې ژبې خيال هم ورسره وي،د روژې پر پاى ته رسېدو له ګناهونو پاكېږي . جابر وويل : رسول الله! څومره ښه حديث دې ووايه . آنحضرت ورته وويل : خوشرطونه یې ډېرسخت دي . ( الكافي ۴\ ۸۷)

ðد روژې مياشتې د وروستيو لسو ورځو اعتكاف د دوو حجونو او دوو عمرو انډول دى.( من لايحضره الفقيه ۲۵\۱۸۸)

ðخداى د رمضان په مياشت كې روژه فرض كړې ده او مؤمن،چې د خداى رضا ته پکې روژه ونيسي؛نو پاک خداى يې ګناهونه داسې بښي؛لكه له موره،چې زېږېدلى وي . (تهذيب الاحكام ۴\ ۱۵۲)

 

روژه

ðروژه د جهنم د اور ډال دى .( الكافي ۴\۶۲)

ðپه ژمي كې روژه، يو مبارك غنيمت دى . ( وسايل الشیعه ۱۰\۴۱۴)

ðروژه يو ډال دى؛يعنې د دنيا د آفتونو او د اخرت د عذاب خنډ دی . (مصباح الشريعة : ۱۳۵)

ðپه ګرمۍ كې روژه د خداى په لار كې جهاد دى .(مستدرك الوسايل ۷ \ ۵۰۵)

ðڅوك چې روژه تي ته روژه ماتى وركړي؛نو د روژه تي په ثواب كې شرېكېږي،بې له دې،چې د روژه تي له ثوابه څه كم شي . (مصباح المتهجد: ۶۲۶)

ðڅوك چې د خداى په لار كې يوه ورځ روژه ونيسي؛نو د يوكال د روژې نيولو هومره ورته ثواب وركول كېږي . ( من لايحضره الفقيه : ۲\ ۸۶)

ðڅوک چې د شعبان په میاشت کې شپږ ورځې روژه شي؛نو خدای ترې اویا بلاوې تمبوي.( وسایل: ۱۰ / ۴۹۸ )

ðد خداى په راز كې روژه ونيسئ . وپوښتل شو : د خداى راز څه دى ؟ آنحضرت ورته وويل : يوم الشك ( دشك ورځ ) . (وسايل الشيعة ۱۰ \ ۳۱۰)

ðاسمانونه د شعبان د مياشتې په هره پنجشنبه كې پاكېږي او پرښتې وايي: پالونكيه! ددې ورځې روژه تي وبښې او دعا يې قبوله كړې؛نو ځكه څوك چې يوه ورځ روژه ونيسي؛نو خداى يې بدن پر اور حراموي . (وسايل الشیعة ۱۰ \۴۹۳)

ðشعبان زما او رمضان د خداى مياشت ده؛نو څوك چې زما په مياشت كې يوه ورځ روژه شي؛نو زه يې په قيامت كې شفاعت كوم او څوك چې د رمضان روژه ونيسي؛نو پاک خداى د دوزخ له اوره یې ژغوري . (وسايل الشیعة ۱۰ \ ۵۱۲)

ðپاک خداى پرښتو ته دنده وركړې،چې روژه تيانو ته دعا وكړي . (مستدرك الوسايل ۷\۴۹۷)

ðد روژه تي خوب عبادت او ساه اخستل يې تسبيح ده . (مستدرك الوسايل ۷\ ۴۹۷)

ðهر څه زكات لري او روژه د بدن زكات دى .(مستدرك الوسايل۷\۴۹۸)

ðخداى تعالى د انسانانو بدلې لس ګرايه كوي؛خو بې له روژې،چې وايي:روژه زما لپاره ده او پخپله یې بدله وركوم . (مستدرك الوسايل ۷\ ۵۰۲)

ðروژه يوازې ماته ده او زه يې  بدله ورکوم .(جواهر السنته : ١٢٠ مخ)   

ðروژه تي که ويده هم وي؛خوچې د مسلمان غيبت يې نه وي کړى ؛نو د عبادت په حال کې دى . (تحف العقول: مواعظ النبي) 

ðڅوک چې خداى ته يوه ورځ نفلي روژه ونيسي؛نو”الله” به يې جنت ته ننباسي.( وافي : ٢ ټ او کتاب الصيام: ٦ مخ)

ðد”روژه تي”خوب عبادت او ساه اېستل يې تسبيح ده. (وسائل : کتاب الصوم  ٢ حديث )

ðخداى پرښتې روژه تيانو ته د دعا لپاره ګومارلي دي . (سفينة البحار ٢ /٦٤)  

ðد هر “روژه تي” دعا قبلېږي . (اثنى عشريه : ١٦مخ )         

ðهر څيز يو “ور” لري اوروژه د عبادت “ور” دى .(اثنى عشر يه :١٦ مخ )

ðپشمنى کول د ورځې روژه اسانوي او غرمنى خوب مو د شپې پاڅون ته چمتو کوي . (وافي: ٢ ټ ،کتاب الصيام: باب فضل السحور ،٣٦ مخ )

ð”روژه تي” دوه خوشحالۍ لري :يوه يې د روژه ماتي پر وخت او بله يې له خپل پالونکي سره د کتنې پرمهال . (پورته منبع)

ðد جنت په “ريان”  وره يوازې روژه تيان ننوځي .(پورته منبع)

ðهر څيز زکات لري او د بدن زکات روژه ده.(روضة الواعظين/ ٣٥٠)

ðروژه ونيسئ او د روژې ورځې دې د خوراک څښاک ورځې په څېر نه وي . (جامع الا خبار/٩٤)

 ð”شعبان” زما او”رمضان” د خداى مياشت ده؛نوڅوک چې يوه ورځ زما په مياشت کې روژه شو؛نو زه به يې دقيامت پر ورځ شفيع شم او چا،چې د رمضان مياشت روژه ونيوه؛نو د دوزخ له اوره بچ شو.( امالي صدوق : ٩١ مجلس ،٥حديث)

ðڅوک چې د ثواب  لپاره يوه ورځ نفلي روژه ونيسي؛نو بښنه يې لازمېږي  . (امالي صدوق: مجلس ٢ حديث .)

ðڅوک چې د خداى په لار کې يوه ورځ روژه شي؛نو خداى يې مخ د اويا کالو واټن هومره له دوزخه لرې کوي .(صحيح بخاري : ٢٨٤٠ حديث) 

ðروژه ونيسه،چې هيڅ  چار(عمل) د هغې په څېر نه دى .(سنن نسائي)

(٣٨٣) “روژه تي” چې چټي خبرې او چارې پرېنږدي؛ نوخداى يې لوږې او تندې ته اړنه دى .(صحيح بخاري )

(٣٨٤)”د قدر شپه” د رمضان په وروستيو لسو طاقو شپوکې ولټوئ . (صحيح بخاري )                  

ðپشمنى وکړئ؛ځکه برکت پکې دى .(  صحيح بخاري او مسلم )

ðپينځه څيزه روژه ماتوى : ١ – دروغ ويل ٢- غيبت کول ٣ –  خبرې وړل راوړل ( چغلي ) ٤ – پر شهوت ليده کاته ٥ – په دروغو قسم  خوړل . (نهج الفصاحه ١٤٥٩ حديث )

ðروژه ونيسئ،چې روغتيا ومومئ .(نهج الفصاحه : ٨٥٤ حديث )

ðروژه نيمايي زغم دى . ( نهج الفصاحه : ١٨٥٥ )

ðروژه يو ډال دى؛خو چې په دروغو اوغيبت يې ماته نه کړي . (نهج الفصاحه : ١٨٨٦ مخ ) 

ðد”روژه تي” خوب عبادت،چوپتيا يې تسبيح او د کړنو(ثواب يې) دوه ګرايه دى؛دعا يې قبلېږي او ګناهونه يې بښل کېږي . (نهج الفصاحه:٣١٣٩ )

ðد “روژه تي”  دعا نه ردېږي .( مسنداحمد ٢/٧)

ðڅوک چې روژه تي ته روژه ماتى ورکړي (؛نو) د روژه تي هومره ثواب يې کېږي . (سنن الکبرى ٤/٢٤٠ )

ðروژه ، د دوزخ د اور پر  وړاندې يو ډال دى .  ( بحار ٤/ ٦٣٢)

 

غازي

ðد هر نعمت پوښتنه كېږي؛خو داچې غازي يا حاجي ترې ګټه واخلي . (من لايحضره الفقيه ۲\ ۲۲۱)

ðچاچې څوك حج ته ولېږه يا يې كوم غازي سمبال كړ يا يې د كورنۍ اړتياوې ورته لرې كړې يا روژتي ته روژه ماتى وركړي؛نو په ثواب كې ورسره شريك دى،بې له دې،چې له ثوابه يې څه كم شي .(مستدرك الوسايل ۷\۳۵۴)

ðڅوك چې د مؤمن غازي غيبت وكړي يا يې وځوروي او يا يې د كورنۍ اړتياوې لرې نه کړي؛نو د قيامت پر ورځ ورسره دښمني كېږي او ښه كړه وړه يې پوپنا كېږي بيا په اور كې غورځېږي او دا ټول تر هغه وخته پورې وي ،چې غازي د خداى د امر لاروى وي . ( ثواب الاعمال : ۲۵۶)

ðڅوك چې دغازي “ليك” ورسوي؛نو د هغه په څېر دى،چې مریى يې ازاد كړی وي او د غازى په ثواب كې شريك (هم) دى.  ( الكافي ۵\۸ )

 

رسوايي

ðپه دنيا كې رسوايي د آخرت تر رسوايۍ ډېره اسانه ده. (الاحاديث الطول للطبراني : ۱۰۶مخ )

 

د مسلمانانو چارو ته پاملرنه

ðڅوك چې ګهيځ له خوبه راپاڅي او د مسلمانانو د چارو د سر ته رسولو پام ورسره نه وي او څوك چې د چا چغه اوري،چې : مسلمانانو! خو دى يې ځواب ور نه کړي (؛نو) مسلمان نه دى.خلك د خداى كورنۍ ده او خداى ته هغه ډېرګران دى،چې كورنۍ ته يې ګټور وي او كورنۍ يې خوشحاله كړي . ( الكافي۴\۶۷)

ðڅوك چې اړمن ته څه صدقه ورسوي؛نو څومره،چې صدقه وركوونكى ثواب وړي؛نو دى يې هم وړي ،بې له دې،چې د صدقه وركوونكي له ثوابه څه كم شي . ( بحارالانوار  ۹۳\ ۱۷۵)

 

بډې

ðله بډو ډډه وكړئ؛ځكه محض كفر دى او ورته بېخي د جنت بوى نه رسي .( بحارالانوار ۱۰۱\ ۲۷۴)

 

رنګونه

ðپه جاموكې سپين رنګ ډېر ښكلى دى؛نو مړيو ته مو سپن كفونه واغوندئ . ( الكافي  ۳\ ۱۴۸)

ðسرخي د شيطان ښكلا ده او د شيطان سور رنګ ښه ايسي . (عوالي الآلي ۱\ ۷۵)

 

ورځې

ðباد ته كنځل مه كوئ؛ځكه د خداى استازى دى او همداراز غره، زمانې ،ورځو او شپو ته كنځل مه كوئ؛ځكه ګناه كوئ او دا كنځل ورګرځي .( من لايحضرالفقيه ۱\۵۴۴)

ðڅوك چې غواړي،د خپلې ورځې نحس (بدمرغي) لرې كړي ؛نو خپله ورځ دې په صدقه وركولو پيل كړي؛ځكه پاک خداى پرې د ورځې نحس له منځه وړي . ( الكافي ۴\۶)

ðپاک خداى په ورځو كې ځان ته د جمعې ورځ غوره كړې ده .( وسايل الشيعة ۷\۳۸۱)

ðد جمعې ورځ د ټولو ورځو ښکلې ده،د ښو كارونو كول پکې څو ګرايه كېږي،ګناهونه له منځه وړي،د درجو د لوړاوي لامل ګرځي،دعا پکې قبلېږي،غوسې پکې لرې كېږي،غټې غوښتنې پکې پوره كېږي، زيات شمېر پکې د دوزخ له اوره لرې او ژغورل كېږي او څوك چې پردې ورځ دعا وكړي او حق او درناوى یې وپېژني؛نو خداى تعالى پر ځان لازموي،چې د دوزخ له اوره به يې لرې او ژغوري او كه د جمعې پر شپه يا ورځ مړ شي؛نو له دنيا به شهيد مړ شوی وي او خوندي به راپاڅي او څوك چې د جمعې ورځ سپكه وګڼي او درناوى يې ونه كړى او حق يې پر ځاى نه كړي؛نو خداى پر ځان لازموي،چې د جهنم په اوركې به يې غورځوي؛خو دا چې توبه وكاږي . (الكافي ۳\ ۴۱۴)

 

روزي

ðد سبا د روزۍ غم مه خوره؛ځکه هر ګهيځ خپله روزي راوړي . ( بحار ٧٧/٦٧)

ðامانت روزي زياتوي او خيانت د بېوزلۍ لاملېږي .(الكافي ۵\۱۳۳)

ðله كارغه درې خويونه زده كړئ : (۱) پټ كوروالى (۲) د روزۍ ګټلو لپاره ګهيځ پاڅېدل (۳) او احتياط . ( وسايل الشيعة ۲۰\۱۳۳)

ðڅوك چې بل ته خواړه وركړي؛نو د اوښ په كوپان كې د چړې تر ننووتو ژر يې روزي وررسي. ( وسايل الشیعة۲۴\۲۹۱)

ðد غاښونو منځونه مو پاك كړئ ،چې دا چار روزي زياتوي.  (وسايل الشیعة ۲۴\۴۲۲)

ðپه حقيقت كې انسان په ګناه كولو له روزۍ بې برخې كېږي.   (مستدرك الوسايل ۵\ ۱۷۸)

ðد صدقې  په وركړه پر ځان روزي راكېباسئ . (قرب الاسناد:۵۶مخ )

ðد روزۍ لاس ته راوړو ته واده وكړئ .(مستدرك الوسايل۱۴\ ۱۷۳)

ðڅوك چې لږې روزۍ ته ټيټ وګوري؛نو پاک خداى يې له ډېرې روزۍ بې برخې كوي . ( فقه الرضا : ۳۳۸ )

ðخلكو! په حقيقت كې روزي وېشل شوې ده؛نو نه ښايي څوك له خپل حقه تېرى وكړي او له خپلې برخې زياته وغواړى؛نو ځكه روزي په ښه شان لاس ته راوړئ . ( مستدرك الوسايل ۱۳ \ ۲۹ )

ðد ورځې په سر كې خوب د بد اخلاقۍ او ناغېړۍ لامل ، غرمنی خوب نعمت،تر ماسپښين وروسته خوب حماقت او د ماښام او ماسخوتن د لمونځو ترمنځ خوب له روزۍ د بې برخې كېدو لامل دی .(مستدرك الوسايل ۵\ ۱۱۳)

ðد چاچې روزي لږه او په ځنډ شوه؛نو بايد له خدايه بښنه وغواړي . (بحارالانوار ۴۶\ ۲۰۱)

ðد صدقې په وركړه،روزي راكېباسئ . ګهيځ پاڅېدل د بركت لامل دى، نعمتونه په تېره بيا روزي زياتوي . ښېګڼه  د روزۍ كونجي ده او ښه خبره روزي زياتوي . ( بحارالانوار  ۷۳\۳۱۸)

 

غوړي

ðغوړي وچوالى او غونجوالى له منځه وړي .( مكارم الاخلاق : ۷۱\)

 

د خوب ليدل

ðد خوب ليدل به دې يوازې هغه مؤمن ته وايې،چې له كينې او تېري لرې وي . ( الكافي ۸ \ ۳۳۶)

ðپه اخره زمانه كې د مؤمن خوبونه ليدل ټول رښتيا كېږي او د چاچې خوب ډېر رښتيا وي؛نو خبره يې هم رښتيا وي او خوب ليدل درې ډوله دی : ( ۱) د خداى له لوري زېرى (۲) انسان،چې د ورځې په كوم فكر كې وي ( ۳) او د شيطان خپه كول؛نو خراب خوب مو،چې وليد؛چا ته يې مه وايئ،راولاړ شئ او لمونځ وكړئ .(بحارالانوار ۵۸\  ۱۸۱)

ðخوب په درې  ډوله دى : (۱) د خداى له لوري زېرى ( ۲) دشيطان  له لوري غم وخپګان (۳) او څه چې انسان له ځان سره زمزمه كوي او په خوب كې يې ګوري . ( بحارالانوار  ۵۸\۱۹۱)

ðد رښتياوو ښه خوب د خداى  له لوري يو زېرى او د نبوت يوه برخه ده. ( بحار ۵۸\۱۹۲)

ðعلي! څوك چې ويده شي؛نو روح يې خپل “نړۍ پال” ته ځي؛نو چا چې د خپل “نړۍ پال” پر وړاندې څه وكتل؛نو هغه حق دى،بيا ځواكمن او بريمن خداى يې روح بدن ته د ورستنېد و امر كوي او روح د ځمكې او اسمان ترمنځ ګرځي او څه چې دلته ګوري؛نو هغه د پرېشانۍ خوبونه دي . ( روضة الواعظين ۲\۴۹۲)

 

څوكۍ او مقام

ðڅوك چې علم ددې لپاره زده كړي،چې ناپوهان يې ژوند ورجوړكړي او يا پر عالمانو ووياړي او يا خلك پر ځان راټول كړي،چې زه مو مشر يم؛نو هستوګنځى يې جهنم دى؛ځكه مقام او رياست يوازې له وړ سره يې ښايي؛نو چاچې خلک پر ځان راټول كړل او ترده پوه پکې و؛نو خداى به ورته د قيامت پر ورځ و نه ګوري . ( الاختصاص : ۱۵۱)

ðنرمي د حكمت بنسټ دى . پالونكيه! چاچې زما د امت د كوم څيز مسؤوليت پرغاړه واخست او له امت سره يې نرمي وكړه؛نو ته ورسره نرمي وكړې او چاچې زما له امت سره سختي وكړه؛نو ته پرې سختي وكړې . ( عوالي الا للي ۱\ ۳۱۷)

ðكه د كوم امت پالندويي د داسې چا پرغاړه وي،چې تر هغه بل پوه او وړ هم وي؛نو چارې به يې تر هغه په خورا ناوړه توګه تر سره كېږي،چې (حکومت ته) ډېر پوه وټاكي او ولايت ،رياست نه  دى . ( بحار  ۳۱\۴۱۷)

ðالله پاك زما پالونكى دى او د هغه په شتون كې زه حكومت  نه لرم ، زه دهغه استازی يم او زما په حضور كې هېڅوك د حكومت حق نه لري او زه،چې د چا مولى يم؛نو علي يې هم دى او د هغه په شتون كې هېڅوك د حكومت حق نه لري . ( كنزالفوائد ۱\۳۳۲)

 

ريا او د ځان مشهورول

ðدوزخ او دوزخيان د ريا كار له لاسه چغې وهي .(بحارالانوار ۲۹ \۳۰۵)

ðجنت وايي:زه پر هر كنجوس او ريا كار حرام يم . (بحارالانوار ۶۹\۳۰۵)

ðخداى تعالى جنت په هر رياكار او رياكارې حرام كړی دى . ( مستدرك الوسايل  ۱\ ۱۰۶)

ðپر لومړۍ ورځ  د ولیمې وركړه سنت، پر دويمه ورځ ښه (كار) دى او تردې ډېره نو ريا او د ځان مشهورول دي . (الكافي ۵\۳۶۸)

ðخداى تعالى د رياكار دعا نه قبلوي . ( الجعفريات : ۱۷مخ )

ðد رياكار درې نښې دي : ( ۱) د يوازېتوب پر مهال لټ او ناغېړه وي (۲) له چا سره،چې وي؛نو خړوب او تاند دى (۳) او دا يې ښه ايسي،چې په هر كار كې وستايل شي . (بحارالانوار  ۶۹\۲۰۶)

ðريا كار څلور نښې لري : ( ۱) د خلكو په مخ كې د ښه كار پر كولو حريص وي  (۲) چې ځان ته وي؛نو لټېږي  (۳) هر كارچې كوي؛نو ښه يې ايسي،چې وستايل شي (۴) او په سختۍ ځان ښه ښيي.( بحار ۱\ ۱۲۲)

ðڅوك چې د خلكو د ليدو او ښودانې لپاره لمونځ وكړي يا ځان پاك سوتره وښيي يا ريا ته روژه ونيسي او يا د نامه مشهورولو ته حج  ته ولاړ شي او څوك چې ځانښوونې ته د پاک خداى کوم حكم تر سره كړي؛ نو مشرك دى او خداى د رياكار كړه وړه  نه قبلوي .(تفسيرالقمي ۲\۴۷)

ðڅوك  چې د خلكو په مخ كې داسې ځان ښيي،چې د خداى د احكامو له مخې كړه وړه تر سره كوي او په خلوت او ګوښه توب كې هغه څه كوي،چې د خداى ښه نه ايسي؛نو د قيامت پر ورځ به له خداى سره په داسې حال كې ليده كاته كوي ،چې خداى به ورته غوسه وي .( قرب الاسناد: ۴۵)

ðڅوك چې ماڼۍ ريا او مشهورېدو ته جوړوي؛نو پاک خداى به يې د قيامت پر ورځ له اومې ځمكې تېروي،چې هغه بل اور دى او بيا هغه په غاړه كې یې  وراچوي او جهنم ته يې غورځوي او د جهنم پر تل سربېره،پر ټولو عذابونو يې اخته كوي ؛خو داچې توبه وكاږي . رسول اكرم وپوښتل شو : څرنګه ريا او شهرت ته ماڼۍ جوړوي؟ ورته يې وويل : له وسې پورته او داچې پر ګاونډيانو او وروڼو ووياړي . (الامالي للصدوق : ۴۲۶)

ðخداى ته د ذلت او خوارۍ د څادر له اغوستو پناه وغواړئ . رسول اكرم وپوښتل شو: دا څه دي؟ ورته يې وويل : دا په دوزخ كې ریاکارانو ته ځانګړې ځای  دی، رياكار ته د قیامت پر ورځ داسې غږ كوي : فاجره! خيانتكاره ! او رياكاره ! كړه وړه دې له منځه ولاړل او ثواب دې پوپناه شو او ځه ولاړشه او ثواب دې له هغه واخله، چې عبادت دې ورته كاوه . (مستدرك الوسايل : ۱\ ۱۰۶)

ðتاسې ته د ډېر ناوړه څيز په اړه وېرېږم،چې “وړوكى شرك” دی. اصحابو کرامو رسول اکرم  وپوښته : وړوکی شرک څه ته وايي؟ ورته يې وويل : ريا وړوكى شرك دى . پاک خداى،چې د قيامت پر ورځ ټولو بندګانو ته د كړنو بدله وركوي؛نو ريا كارانو ته وايي : هغو ته ورشئ ، چې په دنيا كې مو ورته ريا كوله؛نو له هغوى بدله واخلئ ايا هغو درته بدله دركوي كه نه ؟  ( عدة الدا : ۲۲۸ )

ðپېغمبر اكرم د قيامت له ورځې د ژغورنې په اړه وپوښتل شو. ورته يې وويل : په حقيقت كې ژغورنه په دې كې ده ،چې خداى و نه غولوئ؛ځكه هغه هم تاسې غولوي او څوك چې خداى غولوي؛نو په خپله غولېږي، ايمان يې له منځه ځي او ځان تېر باسي . وپوښتل شو: خداى يې څنګه غولوي ؟ ورته يې وويل : چې خداى ورته د کوم کار حكم كړى ،بل ته یې كوي ؛نو له خدايه ووېرېږئ او ريا مه كوئ ؛ځكه ريا له خداى سره شرك دى او د قيامت پر ورځ رياكار ته داسې غږكېږي : كافره! فاجره! خيانتکاره ! او زيانمنه! كړه وړه دې پوپنا او ثواب دې باطل شو،نن د ژغورنې لار نه لرې؛نو ولاړ شه او بدله دې له هغه وغواړه،چې كار دې ورته كاوه . ( تفسير العياشي ۱\ ۲۷۳)

 

ژبه

ðكه كوم څيز شوم وي ؛نوهغه به ژبه وي . ( الكافي ۲\ ۱۱۶)

ðد ژبې په ساتلو كې د انسان هوساېنه وي او چوپتيا د انسان د سلامتۍ او روغتيا لامل دى . ( مستدرك الوسايل ۹\ ۳۰)

ðپاک خداى ژبه داسې په عذابوي،چې د بدن نور غړي هغسې نه په عذابوي .ژبه وايي : پالونكيه ! زه دې داسې پر عذاب كړم،چې نور دې  زما په څېر پر عذاب نه كړل ؟ بيا ورته ويل كېږي : تا داسې خبره كړې، چې د ځمكې ختيځ او لويديځ ته ورسېده او له امله يې په حرامو وينه تويې شوه،مالونه لوټ شول او پر ناموسونو تېرى وشو، پر خپل عزت او جلال مې قسم،چې د بدن يو غړى مې هم دغسې په عذاب كړى نه دى . ( الكافي ۲\ ۱۱۵)

ðخداى دې پر هغه ولورېږي،كه خبره وكړي؛نو غنيمت يې وګڼي اوكه چوپ شي؛نو روغ رمټ پاتې شي. ژبه هغه څيز دى،چې ډېره د انسان په واك كې ده او پردې پوه شئ،چې ټولې خبرې د انسان پر ضد دي؛خو د خداى ياد يا پر نېكيو امر اوله بديو منع يا د مؤمنينو ترمنځ جوړجاړى، بيا حضرت معاذ بن جبل (رض) وپوښتل :رسول الله!په خبرو هم نيول كېږو؟ آنحضرت ورته وويل : داسې وخت راځي،چې خلك به پړمخې په اوركې لوېږي؛خوهغوى چې خپلې ژبې يې ساتلې وي؛نو څوك چې غواړي روغ رمټ پاتې شي،پر خپله ژبه دې څارن وي،چې څه پرې وايي. ( اعلا م الدين : ۳۳۵)

ðد انسان ايمان هله سمېږي،چې زړه یې سم شي او زړه يې هله سمېږي، چې ژبه يې سمه شي؛نو څوك چې غواړي، له خداى سره داسې ليده كاته وكړي،چې لاسونه يې د مسلمانانو له وينې او مالونو پاك وي او ژبه يې د هغوى له بې پته كولو خوندي وي؛نو هرومرو دې دا كار وكړي . (عوالي الاللي ۱\۲۷۸)

ðكه كوم” شر” وي ؛نو هغه به پر ژبه كې وي . ( بحار ۶۸\ ۲۸۹)

ðد هر ويونكي ژبه يو څارن لرى؛نو انسان بايد له خدايه وډارېږي او وګوري ،چې څه وايي . ( بحار ۶۸\۲۷۷)

ðژبه دې وساته؛ځكه دا صدقه ده،چې ځان ته دې وركړې  بيا يې وويل : انسان هله د ايمان پر حقيقت پوهېداى شي،چې خپله ژبه وساتي . (الكافي ۲\ ۱۱۴)

ðد مؤمن ژغورنه د خپلې ژبې په ساتلو كې ده . ( الكافي ۲\ ۱۱۴)

ðكوم بنده،چې ځان څلوېښت ورځې د خداى لپاره مخلص او نږه كړ؛ نو خداى تعالى به يې د حكمت چينې له زړه څخه پر ژبه جاري كړي . (بحارالانوار ۶۷\ ۲۴۲)

ðبدغونى او بدژبى جنت ته نه ځي . ( ابوداوود)

ðمؤمن نه چا ته پېغور ورکوي ،نه بد ژبى وي،نه کنځلې کوي او نه بد وايي . (ترمذي)

ðد قيامت پر ورځ د خداى پر وړاندې د مقام له پلوه هغه ډېر بد دى ، چې خلک ترې د بد ژبۍ له وېرې يې ځان ساتي (او له خبرو اترو يې تښتي) . (بخاري– مسلم )

ðښه او خوږه خبره (هم) يو ډول صدقه ده .( بخاري )

ðڅوک چې له ما سره ژمنه وکړي،چې خپله ژبه اوعورت به ساتي؛نو زه ورسره د جنت ژمنه کوم .( بخاري )

ðڅوک چې چوپ شو؛نو ژغورل شوى دى .(ترمذي–احمد- الدارمي– بيهقي)

ðژغورنه په درېو څيزونو کې نغښتې ده: د ژبې کابو کول،خپل کور خپل هستوګنځى کول او پر خپلو ګناهونو خداى ته ژړل . (احمد –ترمذي)

ðله بدانو سره تر ناستې ګوښي کېناستل غوره دي او له چا سره ښې خبرې اترې تر چوپتياغوره دي او تر ناوړو خبرواترو،چوپېدل غوره دي. ( بيهقي )

ðد انسان د اسلام کمال او ښه توب په دې کې دى،چې له بې ځايه او بې ګټو خبرو ډډه وکړي . ( مالک،احمد،ابن ماجه،ترمذي،بيهقي)

ðچغلګراو د خبرلېږدى جنت ته نشي تلاى .( بخاري –مسلم )

ð د انسان آرامي د خپلې ژبې په خونديتوب کې نغښتې ده . (ميزان: ١٧٨٨ح )

ðهغه دې خوښ وي،چې ژبه يې په واک کې وي او پر خپلو تېروتنو وژاړي . ( کنز ١٥/٧٢٧)

ð د بني آدم ډېرى ګناهونه پر ژبه کې نغښتل شوي دي .( مجمع الزوائد ١٠ /٢٩٩)

ð مؤمن نه چا ته پېغور ورکوي،نه بد ژبى وي،نه کنځلې کوي اونه بد وايي . (ترمذي)

ð هر ګهيځ د بدن ټول غړي په عاجزۍ ژبې ته وايي (د خداى بنده،پر موږ ولورېږه)او زموږ په اړه له خدايه ووېرېږه؛ځکه موږ په تا پورې تړلي يو،که ته ښه او سمه وې؛نو موږ به هم ښه او سم يو،که تېروتې؛نو موږ به هم تېروځو.  (ترمذي)

ð ژغورنه په درېو څيزونو کې نغښتې ده:د ژبې کابو کول،خپل کور خپل هستوګنځى کول او پر خپلو ګناهونو خداى ته ژړل . ( احمد –ترمذي)

ð ما ته مې د اصحابانو يوه خبره هم مه کوئ؛ځکه  ښه مې ايسي،چې درسره په مخېدو کې يې د ټولوپه اړه زړه پاک وي.  (ابوداوود) 

ð اى چې پر ژبه مو ايمان راوړى ؛خو لا تر اوسه مو زړه ته نه دى ننووتى! د مسلمانانوغيبت مه کوئ او پټ عيبونه يې مه راسپړئ؛ ځکه که داسې وکړئ؛نو خداى به هم له تاسې سره همدغسې وکړي،چې د رسوايۍ اوسپکاوۍ لامل به موشي . (ابوداوود)

 

زكات

ðزكات ګناهونه له منځه وړي . ( المحاسن۱\ ۲۸۶)

ðزكات چې ور نه کړ شي؛نو ځمكه (له خلكو) خپل بركتونه منع كوي . (الكافي۳\۵۰۵)

ðڅوك چې د خپلې مېرمن مهر او هم د خپل مال فرضي زكات وركړي؛نوكنجوس نه دى . ( معاني الاخبار: ۲۴۵)

ð واقعي كنجوس هغه دى،چې د خپل مال فرض زكات نه وركوي . (الكافي ۴\ ۴۶)

ðڅوك چې خپل زكات وركړي؛نو مال يې زياتېږي . (تهذيب الاحكام ۴\ ۱۱۲)

ðزما امت به تر هغه په خير او ښو وي، چې يو له بل سره خيانت ونه كړي او امانت خپل خاوند ته وسپاري او زكات وركړي او كه داسې يې ونه كړل؛نو پر قحطۍ او كمبودۍ به اخته شي . ( صحيفة الرضا : ۴۳مخ )

ð ډېرسخي هغه دى،چې د خپل مال زكات وركړي . (اعلام الدين: ۳۲۲)

ðروژه د بدن زكات دى .( من لايحضر الفقيه ۲\ ۷۵)

ðد كوم مال،چې زكات ور نه كړ شي؛نو ملعون دى . (الكافي ۲\ ۲۵۸)

ðايمان د شرك پاكوونكى او لمونځ له كبره لرېوالى دى او زكات د روزۍ د زياتېدو لامل ګرځي . ( جامع الاخبار: ۱۲۳)

ðزكات د اسلام ګومبزه (طاق) دى . ( مستدرك الوسايل ۷\۱۰)

ðپه وچه او سمندر كې يو مال هم نه پوپنا كېږى؛خو داچې زكات يې ور نه كړ شي؛نومالونه موپه زكات خوندي كړئ،ناروغان مو په صدقه درمل كړئ او په دعا د بلاوو ډولونه لرې كړئ . ( الجعفريات : ۵۳)

ðڅوك چې له دې شپږو چارو،يو هم ترسره كړي؛نو دا كړه هڅه كوي، چې كوونكى يې جنت ته ننباسي او وايي:پالونكيه ! دې وګړي په دنيا كې زه كړى يم، كړنې دا دي :زكات ،حج ، روژه ، د امانت وركړه او د خپلوۍ پالنه . (الامالي للمفيد : ۲۲۷)

 

د چا لمونځ نه قبلېږي

ðد اتو تنو لمونځ نه قبلېږي 🙁 ۱) تښتېدلى مريى،چې خپل خاوند ته نه وي راستون شوى . (۲) هغه ناکاره ښځه،چې مېړه يې پرې غوسه وي  (۳) څوك چې د زكات د ورکړې خنډګرځي(۴) څوك چې اودس نه كوي  (۵) بالغه ښځه،چې بې ستره لمونځ كوي(۶) د هغه جماعت امام ،چې په ناخوښۍ او زور ورپسې لمونځ كوي (۷) هغه چې د خپلو تشو او ډكومتيازو مخه نيسى(۸)او مست  ( الحضال ۲\۴۰۷)

 

ځمكه

ðڅوك چې ونه وكري يا څاه وباسي يا شاړه ځمكه اباده كړي؛نو د خداى او د هغه د استازى پور به يې وركړى وي . (الكافي ۵ \ ۲۸۰)

ðڅوك چې په ناحقه كومه ځمكه غصب كړي؛نو د قيامت پر ورځ مؤظف دى،چې خاوره يې تر محشره په اوږو يوسي . (تهذيب الاحكام : ۶\۲۹۴)

ðځمكه مې ځان ته د سجدې ځاى او پاكوونكې كړې ده . (وسايل الشيعة  ۳\۳۵)

 

تېرى– ظلم

ðظلم او تېرى د مړانې آفت دى .( الحضال ۲\ ۴۱۶)

ðكه يو غر پر بل تېرى وكړي؛نو پاك خداى ظالم غر پوپنا كوي . (الجعفريات : ۱۴۷)

ðله ظلمه ډډه وکړئ ؛ځکه ظلم د قيامت د ورځې تيارې دي . ( کافي ٢/ ٣٣٢)

ðپر هغه ظالم د خداى غضب زښت ډېر وي،چې پر داسې چا تېرى کوي،چې بې له خدايه بل ملاتړ نه لري .( کنز: ٧٦٠٥ح)

ðد ظلم عاقبت تر هر څه ډېر ګړندى دى . (الحضال ۱\۱۴)

ðد درېو ګناهونو سزاګانې تر آخرته پورې نه ځنډېږي او چټكې رسېږي : ( ۱) څوك چې موروپلار عاق كړى وي .(۲) پر خلكو تېرى (٣) او ناشكري . ( الامالي للمفيد: ۲۳۷)

ðله ظلمه ډډه وكړئ،چې د قيامت د ورځې تپې تيارې ورسره ملې دي  . ( الكافي ۲\ ۳۳۲)

ðظلم د پښېمانۍ لامل دى . ( مستدرك الوسايل ۱۲\۱۰۳)

ðله ظلمه ډډه وكړئ؛ځكه زړونه مو ويجاړوي . (صحیفة الرضا ۷\۴۸)

ðظلم پردې څيروي . ( مستدرك الوسايل ۱۲\۳۳۴)

ð[ په قيامت كې] مظلوم د ظالم له  دينه له هغې اندازې ډېر غواړي ، چې ظالم د مظلوم له دنيا اخستي و.(اعلام الدين : ۱۷۴مخ )

ðخداى تعالى ظالم ته دومره مهلت وركوي،چې له ځان سره ووايي :د خداى هېر شوى يم ؛خو چې وخت يې راشي؛نو ناڅاپه يې په سخت عذاب اخته كوي . ( كنزالفوايد :۱۳۵)

ðڅوك چې ګهيځ راپاڅي او پر نورور د تېري هوډ ورسره نه وي؛نو پاک خداى يې تېر ګناهونه بښي . ( الكافي ۲\ ۳۳۲)

ðدا غوره جهاد دى،چې څوك ګهيځ راپاڅي او پر چا د تېري هوډ ورسره نه وي .(مستدرك الوسايل . ۱۲ ۹۶)

ðډېر ژر به ظالمان د خپل ظلم پايله وويني،ظالم لعنت او سخت عذاب ته او مظلوم د خداى مرستې او ثواب ته سترګې پر لار وي . ( مستدرك : ۱۲\ ۹۹)

 

سپارښتنې

ðعلي! په دعا كولو درته سپارښتنه كوم ؛ځكه چې قبلېږي، په شكر اېستو درته سپارښتنه كوم؛ځكه نعمت پرې ډېرېږي او تا پر  وعدې  له وفا نه كولو او له هغه سره له مرستې او چل وله منع كوم ؛ځکه د چل ول په ناوړه لومه كې يوازې په خپله چلي نښلي او له تېري دې منع كوم؛ځكه پر چا چې تېرى وشي؛نو خداى د مظلوم مرستندوى دى . (وسايل الشيعة ۷\ ۲۹ )

ðتاسې ته سپارښتنه کوم : پرهېزګاري وکړئ،زيار وباسئ،امانت ساتى وسئ، اوږدې رکوع او سجدې کوئ،د شپې پاڅېږئ،خواړه ورکوئ او په ډاګه سلام اچوئ . (الاختصاص ، ٢٥مخ )

 

له اسلامه وتلي

ð له اسلامه به هغه وتلى وي چې : ( ۱) بيعت مات كړي ( ۲) د بې لارۍ بېرغ اوچت كړي (۳) [ د خلكو د اړتيا وړ] پوهه پټه كړي ( ۴) كوم مال په ظلم  ونيسي ( ۵) پوهېږي،چې پلانى ظالم دى؛خو په ظلم كې ورسره مرسته كوي . ( بحارالانوار : ۲\ ۶۷)

 

ښېرا

ðځان د مظلوم له ښېرا وساتئ؛ځكه له ورېځو پورته خېژي،چې پاک خداى يې وويني؛نو خداى وايي: هغه (ښیرا) راپورته كړئ، چې قبوله يې كړم .د خپل پلار د دعا او ښېرا په څارنه كې وسئ، چې له تېرې توري ډېره ژر قبلېږي . (الكافي ۲\ ۵۰۹)

 

مظلوم

ðپه حقيقت كې د درېو تنو دعا قبلېږي : ( ۱) د مظلوم ( ۲) د مسافر ( ۳) او زوى ته د پلار. ( الجعفريات : ۱۸۷ )

ðزه او علي ددې دوو ګوتو په څېر يو[ بيا يې خپلې دوه ګوتې سره غبرګې کړې] او زموږ لارويان او د مظلوم مرستندويان به له موږ سره وي . ( بحارالانورا : ۶۵\۱۹ )

 

زهد

ð ډېر زاهد هغه دى،چې له حرامو ځان وساتي . (مشكاة الانوار:۸۶مخ )

ðكه څوك غواړي د مريمې د زوى عيسى عليه السلام زهد وګوري؛نو “ابوذر” دې وويني . ( روضة الواعظين  ۲\ ۲۸۵)

ðدنيا ته لېوالتيا خپګان زياتوي او نه لېوالتيا د بدن  او روح د ارامۍ لاملېږي . ( الحضال ۱\۷۳)

ðانسان هله په خپل زړه كې د ايمان په خوږو پوهېږي،چې د دنيا خواړه ورت توپير نه لري . ( الكافي ۲\ ۱۲۸)

ðغوره عبادت دنيا ته نه لېوالتيا (او زهد) دى .(ارشاد القلوب ۱\۱۵۸)

ðابوذره! پاک خداى،چې د كوم بنده خير وغواړي؛نو پر دين یې پوهوي او له دنيا يې بې لېواله کوي او پر خپلو عيبونو يې پوهوي ابوذره! څوك چې په دنيا كې زاهد وي؛نو خداى يې په زړه كې حكمت ځايوي او پر ژبه يې ورته جاري كوي او د دنيا پر بديو، دردونو او درملنو يې پوهوي او د سلام له نړۍ په جنت كې د سلامتۍ كور ته ځي . (مستدرك الوسايل  ۱۲\ ۴۲ )

ðابوذره! په دنيا كې،چې دې خپل مسلمان ورور زاهد وموند؛نو خبرې ته یې غوږ كېږده؛ځكه پر ژبه يې حكمت جاري كېږي . ابوذر رسول اكرم وپوښت : ډېر زاهد څوك دى ؟ ورته يې وويل :څوك چې قبر او د بدن ورستنېدل هېر نه كړي او “فاني” د “باقي” لپاره پرې ږدي . څوك چې “سبا” په ورځو كې و نه شمېري او مړيو ته د كتو پر مهال ځان ته وګوري . بيا يې وپوښت : كوم مؤمن تر ټولو ځيرك دى؟ ورته يې وويل : څوك چې تر ټولومرګ ډېر يادوي او ځان يې ورته ښه چمتو كړی وي . (مستدرك الوسايل  ۲\۱۰۱)

 

ښكلا

ðپه حقيقت كې خداى ښكلى دى او ښكلا يې خوښېږي . (عوالي الاللي ۱\۴۳۶)

 

ځيركي

ðد مؤمن له ځيركۍ وډار شئ؛ځكه د خداى په رڼا یې ويني ( له باطلو د حق د بېلولو وس لري).

ð ډېر ځيرك هغه دى،چې له ځان سره حساب وكړي او تر مرګ وروسته ځان ته فعاليت وكړي او هغه ډېر احمق دى،چې په خپلو ځاني غوښتنو پسې ولاړ  شي او تل له خدايه دنيوي هيلې غواړي . (بحار ۶۷\۶۹)

ð ځيرك هغه دى،چې ځان ټيټ وشمېرې او تر مړينې وروسته لپاره كار وكړي . ( عدة الداعى : ۳۴مخ )

 

جګړه مار

ðڅوك چې پر نورو توره راباسي؛نو وينه يې تويه ولاړه .( نزهة الناظر: ۱۶۰)

 

خداى ته سجده كول

ðڅوك چې خداى ته سجده وكړي (؛نو) يوه ګناه يې بښل  كېږي او يوه درجه لوړېږي . ( ثواب الاعمال : ۳۴)

ðابوذره! په پټه سجدې كول،خداى ته د نږدېوالي ډېره غوره لار ده. ( الامالي للطوسي : ۵۲۹)

ðد قيامت پر ورځ يوه  ډله په ځلنده جامو كې راځي،چې په څېرو كې به يې رڼا وي او د خپلو سجدو له نښو به پېژندل كېږي،ليكه ليكه راځي او د خداى پر وړاندې درېږي،چې پېغمبران، پرښتې، شهيدان او صالحان پرې وياړي : حضرت عمر بن خطاب رسول اكرم وپوښت : دا څوك دي ؟ ورته يې وويل :دا زما لارويان دي،چې علي يې امام دى . (بحارالانوار  ۷\۱۸۰)

 

ګهيځ پاڅېدل

ðپه ګهيځ پاڅېدو كې بركت دى؛ټول نعمتونه په تېره بيا روزي زياتوي . ( بحارالانوار  ۷۳\ ۳۱۸)

 

خبرې او حديث

ðيو له بل سره علمي كتنې او خبرې اترې كوئ او احاديث وویاست؛ځكه د احاديثو ويل زړه ځلوي.په حقيقت كې زړونه د تورو په څېر زنګ نيسي؛نو په احاديثو يې وځلوئ . (الكافي ۱\ ۴۱)

ðډېره غوره خبره (( لا اله – الالله )) او غوره دعا “الحمدلله” ده . (مستدرك الوسايل ۵\۳۶۳)

ðخدايه! پر ځايناستو مې ولورېږه. وپوښتل شو: هغه څوك دي؟ ورته يې وويل : هغه چې تر ما وروسته راځي او زما احاديث اوسنت روايتوي .( من لايحضره الفقيه۴\۴۲۰)،معانی الاخبار۳۷۴ – ۳۷۵،جامع بیان العلم ابن عبدالبر ۱/  ۵۵ ،اخبار اصبهان ابونعیم ۱/ ۸۱ ، الفتح الکبیر سیوطي ۱ / ۲۳۳، کنزالعمال ۱۰/ ۱۲۸ )

ðخلكو! څه چې له ما درته روايت شوي وي او له قرآن سره یې اړخ لګاوه؛نو زما دي او که نه يې لګاوه؛نو نه دي .(مستدرك الوسايل : ۱۷\۳۰۴، مستدرک حاکم نیشاپوري: ۱/ ۷۷)

ðتردې به ډېره غوره صدقه نه وي،چې  ښه خبره وكړې،چې بندي پرې ازادشي،يا دې خپل مؤمن ورور ته څه خير ورسي او يا ترې كوم زيان او ظلم لرې كړې . (مستدرك الوسايل ۷\۲۶۴)

ðهغه دې خداى ښاد كړي،چې زما خبره واوري بيا يې ياده كړي او نا اورېدليو ته يې ووايي.داسې هم دي،چې څوك پخپله (عالم او) پوه نه وي؛خو پوهه (نورو ته) لېږدوي او داسې هم وي،چې څوك پوهه تر ځان ډېرو پوهانو ته رسوي . (د امام احمد حنبل مسند١\ ۴۳۷)

ðپاک خداى دې پر هغه ولورېږي،چې د خير خبره وكړي او غنيمت يې وګڼي او يا پر خواشيني صبر وكړي او تسليم پاتې شي . (المحاسن ۱\ ۱۵)

ðښه خبره (هم ) صدقه ده . ( مكارم الاخلاق : ۴۶۷)

ðچټي خبرې پرېږدئ او دومره ويل درته بس دي،چې ستا اړتيا پرې پوره كېږي . ابوذره ! ژبه د اوږده بند وړ ده . ابوذره! په حقیقت کې خداى د هر وياند له ژبې سره دى؛نو باید الهي تقوا اختيار كړي او پوه شي،چې څه وايي .  (الامالي للطوسي : ۵۳۵)

ðموږ پېغمبرانو ته لارښوونه شوې،چې له خلكو سره يې د عقل هومره خبرې وكړو . ( الكافي: ۱\ ۲۳)

ðڅوک چې بې له “سلامه” خبرې پيل کړي ؛نوځواب يې مه ورکوئ . (کافي ٢/٦٤٤)   

ðکه څوک له وړ او اهل  سره خبرې و نه کړي ،داسې دى،چې له نااهله  سره خبرې کوي . (دسيوطي جامع الصغير)

ð څوک چې پر خداى او قيامت ايمان لري ؛نو بايد يا ښه خبره وکړي  يا چوپ شي .( مسند احمد ٢/ ١٧٤ )

ð د يوه بنده د بشپړ ايمان نښه داده،چې په هره خبره کې “ان شاء الله” (که خداى وغواړي ) ووايي .( کنز ١٠/٢٦٦)

ð زياتې او چټي خبرې پرېږدئ .  ( بحار ٧٧/٨٧ )

ðبېشکه ځينې شعرونه حکمت او ځينې ويناوې د کوډو په څېر دي . (الامالي  صدوق: مخ ٤٩٥)

 

د خداى پرتم

ðڅوك چې خداى تعالى وپېژني او د پرتم خاوند يې وبولي؛نو خپله خوله له خبرو او ګېډه له خوړو منع كوي او خپل نفس په روژه او لمونځ كابو كوي . ( مستدرك الوسايل : ۱۲\ ۱۶۷)

پړه

ðكوم ورور دې،چې په څه ستونزه كې ښکېل وي؛نو پړه پرې مه اچوه؛ځكه خداى به پرې ولورېږي او تا به پرې اخته كړي.( الامالي للمفيد : ۲۶۹)

ðڅوك چې كومه ناوړه چاره خپره كړي؛نو د ناوړه چارو د بنسټګر په څېر به وي او څوك چې کوم مؤمن د هغه د تېروتنې له امله ورټي؛نو تر هغه به نه مري،چې پر همدې تېروتنه نه وي اخته شوی . ( منية المريد : ۳۳۱)

ðڅوک چې مصيبت ځپلي ته ووينې او ووايي ،چې د خداى شکر دى، چې زه يې له دې کړاوه ژغورلى يم او زه يې له تا (مصيبت ځپلي) او تر نورو ډېرو مخلوقاتو لوړ ګڼلى يم ؛نو پر خداى حق دى، چې دا به پرهماغه مصيبت اخته کوي . (مستدرک الوسايل : ٧\١٨٤)

 

لوبې

ðپه څلورو څيزونو  زړه  داسې فاسدېږي او نفاق پکې راټوكېږي؛لكه اوبه،چې د ونې د ودې لامل ګرځي : (۱) لوبې او چټي كار ( ۲) فحاشي (۳) ظالم واكمن ته خدمت كول (۴) او تفريحي ښكار. ( وسايل : ۸\۴۸۱)

ðمؤمن ته يوازې درې لوبې روا دي،چې دا دي : (۱) پر اس د سپرېدو بوختيا ( ۲) نښه ويشتل ( ۳) او له خپلې مېرمنې سره لوبې او ټوكې كول . ( الكافي ۵\۵۰)

ðپر لوبو بوخت شئ؛ځکه ښه مې نه ايسي ستاسې په دين کې سختي او تاوتريخوالى وليدل شي . ( کنز: ٤٠٦١٦)

ðخپلو اولادونو ته لامبو او غشي وېشتل ورزده کړئ . (طرايف االحکم ٢/١١٧)

 

مولا  او مشر

ðد چاچې زه مولى او مشر يم ؛نو علي يې هم دى . خدايه ! له دوستانو سره يې دوست وسه او له دښمنانو سره يې دښمن او له ملاتړو سره يې مرستندوى  او چاچې ځان ته پرېښود؛نو خوار يې كړې . (سنن ترمذي . ۵\۲۹۷)

 

د اوبو وركړه

ðپينځه څيزونه دي،كه څوك يې ټول يا يو وكړي؛نو جنت  پرې واجبېږي ( ۱) تږي څاروي ته اوبه وركول ( ۲) پښې یبل تر يو ګام پورې وړل ( ۳) د وږي ځېګړ مړول ( ۴) د بربنډ پټول ( ۵) او د منونكي مريي ازادول  ( بحار الانوار  ۱۰۱ \۶۵)

 

چوپتيا

ð له بدانو سره تر ناستې ځان ته کېناستل غوره دي او له نېکانو سره کېناستل تر يوازېتوبه غوره دي او له چاسره ښه خبرې اترې تر چوپتيا غوره دي او تر ناوړو خبرو اترو،چوپېدل غوره دي . (بيهقي)

اوږده چوپتيا او ښه خوى د خداى په تله کې دوه درنې کړنې دي،پر هغه ذات قسم،چې زه يې په واک کې يم،چې دا دواړه د مخلوقاتو په کړنو کې بې ساري څيزونه دي .(بيهقي)

ð د انسان د اسلام کمال او ښه توب په دې کې دى،چې له نااړينو او بې ګټوخبرو ډډه وکړي . (مالک،احمد،ابن ماجه،ترمذي، بيهقي)

ðډېر چوپ وسه . ( وسايل ١٥\٢٨٩)

ðروغتيا او سلامتي لس برخې لري،چې نهه يې چوپتيا ده؛خو دا چې خداى ياد شي او يو يې له بې عقلوسره د ملګرتوب پرېښوول دي . (مستدرک الوسايل ٨ \ ٣٣٧)

ðچوپ مؤمن ته ورنږدې شئ؛ځکه حکمت القا او ورغورځول کېږي . مؤمن خبرې لږې کوي او کړه يې ډېر وي او منافق خبرې ډېرې کوى؛خو عمل يې لږ وي . ( تحف العقول : ٣٩٧)

ðډېر چوپ وسه؛ځکه دا چار شيطان لرې کوي او د ديني چارو په سمون کې درسره مرسته کوي . ( الخصال  ٢\٥٢٦)

 ðد علم لومړى پړاو چوپتيا،دويم يې اورېدل،درېم پرې عمل کول او څلورم يې خپرول دي . ( دعائم الاسلام : ١\٨٢)

ðپوره يوه ورځ تر شپې پورې چوپتيا لازم نه ده . (الامالي للصدوق ٣٧٨)

ðخداى تعالى راته د “معراج” پرشپه وويل : احمده ! يو عبادت هم راته د چوپتيا او روژې هومره ګران نه دى؛نو څوک چې روژه ونيسي او خپله ژبه وساتي؛نو د داسې چا په څېر دى،چې لمانځه ته درېږي او څه ونه وايي؛خو زه ورته د لمانځه د درېدو بدله ورکوم؛خو نه د عابدانو ثواب! (مستدرک الوسايل ٩ \١٩ )

ðايا تاسې ته دوه مهم اسان او له اجره ډک کارونه وښيم ،چې خداى تعالى ثواب يې بل چاته نه ورکوي؟ : (١) اوږده چوپتيا .( ٢) ښه خوى .  (ارشادالقلوب : ١٠٤)

ðچوپتيا پراخه خزانه ده،د زغمناک ښکلا او د ناپوهه پرده ده. (بحارالانوار ٦٨\٢٩٤)

ðانسان د ژبې په ساتلو کې په راحت کې وي او د ژبې چوپتيا د انسان د روغتيا لامل وي .( مستدرک الوسايل ٩\٣٠)

ðچوپتيا تر ناوړو خبرو او ښې خبرې تر چوپتيا ښې دي . (الامالي للطوسي : ٥٣٥)

ðاوږده چوپتيا اوښه خوى،د خداى په تله کې دوه درنې کړنې دي. پر هغه ذات قسم،چې زه يې په اختيار کې  يم،چې دا دواړه د مخلوقاتو په کړنو کې بې سارې څيزونه دي . (بيهقي )

ðاوږده چوپتيا او ښه خوى دوه ارزښتناكه او اسانه چارې دي ،چې د خداى پر وړاندې يې هيڅ څيز بدله نه لري . (مستدرك الوسايل ۹\۲۲)

ðمؤمن مو،چې چوپ وليد؛نو ورنږدې شئ،چې حكمت ترې راخوټېږي . ( تحف العقول : ۳۹۷)

 

 

د واکمن ماڼۍ

ðد واكمنو له ماڼۍ ځان وساتئ؛څوك چې ورته ډېرنږدې وي ؛نو له خدايه به ډېر لرې وي او چا،چې واكمن پر خداى ړومبى وګاڼه؛نو خداى ترې ډاډېنه اخلي او لالهاندوي يې. (وسايل الشيعة : ۱۷ \ ۱۸۱)

 

ملعون

ðڅوک چې دا درې چارې وکړي؛نو ملعون دى . ( ١) څوک چې د خلکو په دمه ځاى کې تش يا ډک اودسماتى وکړي ( ٢) څوک چې د چا د اوبو د وار مخه ونيسي . ( ٣) څوک چې د خلکو سمه لار بنده کړي. ( الکافي : ٢\٢٩٢)

 

پت

ðڅوک چې ځان د خلکو له بې پتولو وساتي (؛نو) خداى به يې په قيامت کې وبښي او څوک چې ځان پر خلکو له غوسې خوندي کړي (؛نو) خداى تعالى به يې د قيامت له عذابه وژغوري . (الکافي ٢\٣٠٥)

ðڅوک چې د يو مسلمان ورور د بې پتولو مخه ونيسي؛نو هرومرو جنت ورته واجبېږي . ( وسايل ١٢ \٢٩٢)

ðد مسلمان ابرو ستر ارزښت دى . ( مستدرک الوسايل ٩\ ١١٩ )

 

اور

ðدوزخ ته به زما د امت د تلو ډېرى لامل دوه خالي څيزونه وي : (1) ګېډه او( ٢) شرمځايونه . ( الکافي ٢\٧٩)

ðڅوک چې له يو مشر (امام ) سره ژمنه ماته کړي؛نو په قيامت کې به په کږه خوله راپاڅي ،چې دوزخ ته  ولاړ شي . (الکافي ٢\٣٣٧)

 

داسې وخت به راشي

ðپر خلکو به داسې زمانه راشي،چې د دنيا تر لاسه کولو لپاره به  باطن یې چټلېږي  “برسېرن” به يې ښه وي؛خو دا کړنې به يې د ثواب په نيت نه وي او دين به يې ريا شي او په تن کې به يې له خدايه ډارنه وي . خداى تعالى به دغسې خلک ډله ييز مجازات کړي او؛لکه څنګه چې ډوب شوي دعا کوي (،چې وژغورل شي ) ؛نو د دوى به هم دعاوې نه قبلېږي . ( الکافي ٢\٢٩٦)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،چې د قرآن به يوازې ظاهر او د اسلام به يوازې نوم پاتې وي،چې خلک پرې (مسلمان) يا دېږي ،حال دا چې تر ټولو خلکو به له اسلامه لرې وي،جوماتونه به يې ودان ؛خو د لارښوونې له اړخه به وېجاړ وي ،د هغې زمانې فقهاء به د ځمکې ډېر ناوړه فقهاء وي،فتنې به له همدوى پيلېږي اوپر همدوى به پاى ته رسي او بېرته به همدوى ته ورګرځي . ( الکافي ٨\ ٣٠٨)

ðپر خلکو به داسې وخت راشي،چې د پاچايانو حج به د تفريح، د شتمنو به د سوالګرۍ او د بېوزليو به د ګدايۍ لپاره وي . ( تهذيب الاحکام ٥\٤٦٢ )

ðداسې وخت به راځي،چې خلک به اذان ويل کمزوريو ته پرېږدي،حال داچې (نه پوهېږي) د مؤذنانو د تن غوښې پر اور حرامې دي .(وسايل ١٦\١٤٠)

ðداسې وخت به راشي،چې خلک به برسېرن بنيادمان وي؛خو زړونه به يې د شيطانانو زړونه وي او د وږي لېوه په څېر به داړن وي،له ناوړو چارو به نه منع کېږي . که ورپسې ولاړ شئ؛نو شمکنوي دې او که خبرې ورسره وکړې (؛نو) دروغجن دې بولي او که ترې لرې شې؛نو غيبت دې کوي،د هغوى تر منځ “سنت”بدعت ګڼل کېږي او “بدعت” سنت . د هغوى ترمنځ زغمناک،وعده ماتى او خاين يې زغمناک دي، مؤمن پکې کمزورى (او خوار) او فاسق پکې شريف (او عزتمن) دى،کوچنيان يې خړ سري او ښځمنې يې چليانې دي، زاړه  یې پر نېکو امر او له بديو منع نه کوي،ملګرتوب ورسره خواري او رسوايي ده او څه ترې غوښتل د ډېرې احتياجۍ لاملېږي، خداى په دغسې زمانه کې له اسمانه په موقع باران نه اوروي؛خو بې موقع پرې ورېږي او ډېر ناوړه وګړي پرې واکمنوي، چې په  ډېر ناوړه عذاب يې وربړوي؛ داسې چې د زامنو يې سرونه پرې کوي او ښځې يې په وينځتوب نيسي،نېکان به يې دعا کوي؛خو نه به قبلېږي . (مستدرک الوسايل ١١\ ٣٧٥)

ðداسې وخت به راشي،چې د خلکو به خپلې ګېډى معبود وي او ښځې به يې قبلې وي او پيسې به يې دين وي او شتمني به يې شرف وي او “ايمان” به يوازې په نوم . اسلام به يوازې په ظاهره او د قرآن به يوازې زده کړه پاتې وي،جوماتونه به آباد دي؛خو زړونه به يې د هدايت او لارښوونې له اړخه ويجاړ وي،پوهان به یې د ځمکې ډېر ناوړه خلک وي، په داسې زمانه کې خداى خلک په څلورو بلاوو اخته کوى : ( ١)  د واکمن په ظلم ( ٢) اوږده وچکالي (٣) د چارواکيو ظلم (٤) او د قاضيانوظلم .( مستدرک الوسايل ١١\ ٣٧٦)

ðداسې وخت به راشي،چې خلک به له عالمانو داسې تښتي؛لکه پسه چې له لېوه . په داسې وخت کې به يې خداى په درېو څيزونو اخته کړي : (١) له مالونو يې برکت اخستل کېږي(٢) ظالم پرې واکمنېږي(٣)له دنيا به بې دينه ځي . (مستدرک الوسايل ١١\٣٧٦)

ðزما دې پر هغه (ذات) قسم وي،چې زه يې په حقه رالېږلى يم، داسې وخت به راشي،چې خلک به شراب حلال ګڼي او څښاک به ورته وايي،پر هغوى دې د خداى،پرښتو او ټولو خلکو لعنت وي،چې زه ترې کرکجن يم او هغوى هم له ما کرکجن دي .( مستدرک الوسايل  ١٧\٥٦)

 

ملګرتوب

ðحواريونو حضرت عيسى عليه السلام ته وويل : روح الله ! د چا ملګرتوب وکړو؟ورته يې وويل : له هغه چا سره،چې کتل يې درته خداى دريادوي او خبرې يې ستاسې پوهه زياتوي اوکړه يې تاسې اخرت ته هڅوي . ( الکافي ٢\١٣١)

ðله دينوالو سره ناسته پاسته د دنيا او آخرت د شرافت لاملېږي . (الکافي : ٣٩)

ðخداى وايي : د آدم اولادې! ما د ګهيځ تر لمانځه وروسته څه ساعت او مازېګر تر لمانځه وروسته (هم) څه ساعت در يادکړئ ،چې زه دې د ټولو ستونزو  بسیا شم . ( تهذيب الاحکام : ٢\١٣٨)

 

هيله

ðابوذره! ښه دې ايسي،چې جنت ته ولاړشې ؟ ورته مې وويل :هو مور و پلار مې درځار! حضرت (ص) ورته وويل : هيلې دې لنډې کړه او مړينه دې مخې ته ودروه اوپه رښتيا او له حق خدايه حيا وکړه . ( وسايل  ١\٣٠٤)

ðالله پاک مو هله پالندوى دى،چې مړينه مو سترګو ته او هيله مو شا ته وي،چې په دې حال کې مو نېکمرغي په برخه وي او که ددې پر عکس وي؛نو شيطان به مو پالندوى وي او بدمرغي به مو په برخه شي . (وسايل : ٢\٤٣٥)

ðددې امت لومړى سمونه په زهد او يقين کې ده؛خو کنجوسي او هيلې به يې وروستۍ ورکاوى وي . ( وسايل : ٢\٤٣٧)

ðپېغمبر اکرم(ص) خلکو  ته حکم  ورکړ:(( که په تاسې کې څوک له خدايه  څه  وغواړي؛نو تر ټولو خلکو  دې خپله هيله وشلوي او بې له خداىه دې بل ته هيله ونه لري،څو يې خداى غوښتنه ورکړي.))  (اصول کافي :2 ټوک)

ðزه مې خپل امت ته له هوس او اوږدو هيلو وېرېږم،چې ډېر ناوړه څيزونه دي . هوس حق ته د رسېدو مخه نيسي او اوږدې هيلې (له انسانه) آخرت هېروي . ( وسايل ٢\٤٣٨)

ðابوذره! د نن کار سبا ته مه پرېږده؛ځکه نن يې اوسبا نه يې او که د سبا چلن دې د نن په څېر وي؛نو پښېمانه به نشې،چې لږ کار دې کړى . ابوذره!که د کار پاى او د اخرت د لارې مسير ووېنې؛نو هيلې او چلونه به يې (د ځان) دښمن وګڼې.ابوذره! ګهيځ،چې پاڅېدې؛د مازيګرخبرې مه کوه او مازيګر مهال د سبا ګهيځ په باب فکر مه کوه . (مستدر ک الوسایل : ٢\١٠٧ )  

 

ازار

ðد مؤمن له ځانګړنو دي چې : ورکړه به یې ډېره وي، ازار به يې لږ وي او له  نشتمنو سره به يې لاسنيوى وي . (بحارلاانوار  ٦٤\٣١٠)

ðپر نورو زړه وسېځه که څه هم په يو ګوټ اوبو وي او که و یې نه ځوروې ؛نو دا به ډېر اوچت زړه سوى وي . ( بحارالانوار ٧١\١٠٣)

 

ازمېښت

ðستر ازمېښتونه،سترې بدلې لري؛نو د خداى چې څوک خوښ وي؛ په ستر کړاو  یې اخته کوي؛نو څوک چې په کړاو خوښ و؛نو خداى ترې راضي کېږي او چې خپه شي؛نو خداى هم ترې خپه کېږي .(الکافي ٢\٢٥٣)

بلا

ðد ((بسم الله الرحمن الرحيم  لاحول ولاقوة الابالله العلى العظيم)) په دعا ويلو هره بلا لرې کېږي . ( الکافي ٢\٥٧٣ )

ðد صدقې په ورکړه خپله ورځ پيل کړئ؛ځکه بلا پر صدقې برلاسېداى نشي. ( الکافي ٤\٦)

ðڅوک چې دنيا ته مخه کړي؛نو ترې ناکامېږي،څوک چې بلا وپېژني؛ نو پرې صبر کوي او چې ويې نه پېژني،هلاکېږي .( الکافي ٨ \ ٨١)

ðپه دعا هر ډول بلا ګانې وتمبوئ . ( وسايل  ٧\٤٢)

ðناروغان مو د صدقې په ورکړه درمل کړئ،هر ډول بلا په دعا وتمبوئ او مالونه مو د زکات په ورکړه خوندي کړئ؛ځکه الوتونکي هله  ښکار کېږي،چې د خداى تعالى په تسبيح ويلو کې يې ناغېړي کړې وي. (وسايل : ٩\ ٢٩ )

ðخداى تعالى مؤمن بنده ته داسې بلاوې ساتي؛لکه يوه کورنۍ،چې خپل مشر ته ښه خواړه ساتي . ( وسائل : ٩ \ ٣٨٠)

ðبلا پر بنده راځي؛نو هغه خپل خداى رابولي او له بلا د ځان ژغورنې لپاره دعا کوي او خداى وريادېږي؛نو خداى  يې ژغوري او د قيامت تر ورځې پورې “بلا او دعا” سره مل دي . ( مستدرک الوسايل  ٢\٤٣٤)

ðځان ساتنه او پرهېز د ناوړه تقدير او برخليک مخه نه نيسي؛خو دعا يې مخه نيسي؛نو مخکې تردې،چې بلا درباندې راشي؛نو دعا ترې ړومبۍ کړئ؛ځکه پاک خداى په دعا راغلې بلا او راتلونکې بلاوې لرې کوي .( مستدرک : ٥\١٧٦ )

ðپه پټه صدقه ورکول،ګناهونه داسې تتوي؛لکه اوبه چې اور مړ کوي او پردې سربېره اويا ډوله بلاوې هم تمبوي . (مستدرک ٧\١٨٤)

ðچې کله زما په امت کې لاندې چارې دود شي؛نو خداى به پرې توندې سيلۍ،د ځمکې ښويېدل او مسخ بلاوې راکوزي کړي( ١) شتمني يې،چې په واک کې وي او يو يې ووايي : که څوک شتمني لري؛نو ځواکمن دى (٢) خيانت،ولجه وګڼل شي(٣) زکات،زيان وګڼل شي (٤)مېړه په خپلې مېرمنې پسې ولاړ شي او مور يې ورباندې لعنت ووايي(٥) له خپل ملګري سره ښه کوي؛خو له خپل پلار سره جفا کوي (٦) په جوماتو کې په جګو غږونو خبرې کوي (٧) سړي ته له دې امله احترام کوي،چې ترې ډارېږي(٨)د هرې ډلې مشر به د هغوى ډېر ټيټ او پرېوتى سړى وي(٩) ورېښمنې جامې به اغوستل کېږي( ١٠) شراب په څښل کېږي(١١)مجسمې به جوړېږى ( ١٢) موسيقي به اورېدل کېږي (١٣) او د امت وروستي به پر لومړيو لعنت  وايي. (طوسي؛ الامالي ٥١٥ ، الخصال : ٢\ ٥٠٠)

 

 

خداى چې له بنده خوښ شي

ðخداى (ج) وايي : مسلمان ته چې د دنيا او اخرت دواړو ښېګڼې وغواړم؛نو ورته عاجز زړه ، د خداى په ياد بوخت زړه ، د کړاوونو پر وړاندې زغمناک بدن او داسې مېرمن ورکوو،چې په ليدو يې خوښېږي او مال او ځان يې خوندي ساتي .( الکافي ٨\٨١)

 

د بدمرغۍ نښې

ðد بدمرغۍ نښې دادي : ( ١) وچ سترګي ( ٢) سخت زړي(٣) د شتمنۍ لاس ته راوړو ته  ډېر حرص ( ٤) او پر ګناه ټينګار.(الجعفريات : ١٦٨مخ )

 

آفتونه

ðچې کله آفتونه او ستونزې راکېوځي؛نو جوماتيان ترې خوندي ژغورل کېږي . ( مستدرک الوسائل ٣\٣٥٦)

ðوياړ او ځانمني د کورني شرافت آفتونه دي . ( الکافي ٢\٣٢٨)

ðدروغ د خبرو آفت دى، هېر د علم آفت دى . سستي د عبادت آفت دى. تکبر د ښکلا آفت دى.منت د بخشش آفت دى.د مړانې آفت ظلم دى او کينه د علم آفت دى .( الکافي ٢\ ٣٢٨،تحف العقول:١٠ )

ðپاک خداى چې کوم بنده د کورنۍ،شتمنۍ او اولاد له نعمته برخمن کړى وي او وايي : ((ماشاء الله لاقوة الابالله ))؛نو بې له مرګ بل هيڅ آفت به پکې ونه ويني . ( المحاسن ١\ ١٦)

 

پيدايښت

ðمتعال خداى يوه ډله په خپل رحمت له خپل رحمته،پر نورو د رحمت لپاره پيدا کړه او ځانګړنه يې دا ده،چې د خلکو اړتياوې به لرې کوي؛ نو څوک چې کړاى شي له هغوی اوسي؛نو دغسې چارې دې کوي . (مستدرک الوسايل ١٢\٤٠٢)

ښوونه

 ðڅوک چې نورو ته د قرآن د ښوونې لپاره څه مزدوري تر لاسه کړي ؛ نو همدا يې د قيامت د ورځې بدله ده .( تهذيب الاحکام٦\٣٧٦)

ðد ښوونکي يا پوهې په غونډه کې د جاهليت د پېر په څېر خپاره واره مه کېنئ؛بلکې مخکى ولاړ شئ او په يو بل پسې کېنئ . (مستدرک الوسايل٨\٤-٣)

ðد ښو چارو ښوونکي ته له خدایه پر ځمکه څاروي،په سمندر کې کبان، په هوا کې شته موجودات، اسمانوال او ځمکوال بښنه غواړي او ښوونکى او زده کوونکى په بدله کې يو برابر دي .(بحارالانوار ٢\ ١٧)

ð علي زما د سنتو راژوندى کوونکى،زما د امت ښوونکى،زما حجت، تر ما وروسته غوره ځايناستى،زما د اهلبيتو مشر او ما ته ډېر ګران دى . ( بحارالانوار ٢٨ \٢٢١)

ðڅوک چې چا ته کومه مسئله وروښيي؛نو خاوند شوى به یې وي ؛ نو رسول اکرم وپوښتل شو: هغه پلورلای شي ؟ آنحضرت ورته وويل : نه خو  پر نېکيو امر او له بديو يې منع کولاى شي .( عوالي الاللي ٤\ ٧١)

 ðڅوک چې د علم د زده کړې لپاره ددې لپاره له کوره ووځي،چې په پوهې باطل پر حق واړوي(باطل له منځه يوسي او حق يې ځايناستى کړي) يا بې لارى پرې سمې لارې ته راکاږي ؛نو دا کار يې لکه د يوعابد څلوېښت کاله عبادت دى . ( بحارلاانوار : ١\١٨١)

 

مزدوري

 ðکارګر ته د مزدورۍ نه ورکول،له سترو ګناهونو دي . (مستدرک الوسايل ١٤\٣١)

ðخداى تعالى د قيامت پر ورځ ټول ګناهونه بښي؛خو چاچې د خپلې ښځې مهر نه وي ورکړى او چاچې د مزدور،مزدوري خوړلې وي او څوک چې ازاد انسان وپلوري (؛نو دا ګناهونه نه بښل کېږي) . ( الکافي ٥\٣٨٢)

 

ځانګړې اجازه

ðيو شمېر يهوديان پېغمبر اکرم ته راغلل او پوه يې ترې وپوښتل : هغه اوه کومې اجازې دي،چې پاک خداى په پېغمبرانوکې تا ته او په امتونو کې يوازې ستا امت ته ورکړې دي . ورته يې وويل : خداى ماته د فاتحې سورت ، اذان ، په جومات کې په جمعه لمونځ کول،د جمعې ورځ،پر مړي د جنازې لمونځ کول،په جهر د ګهيځ،ماښام او ماسخوتن د لمونځونو کول را ډالۍ کړي دي او زما امت ته يې اجازه ورکړې،چې د ناروغيو او سفر (د شرايطو په پامنيوي سره)  پر مهال فرضي عبادات سپک تر سره کړي او د امت ګناهګاران مې له شفاعته برخمن شي . (الاختصاص : ٣٩ مخ )

 

احتکار

ðڅوک چې تر څلوېښتو ورځو زيات خواړه احتکار کړي؛نو د جنت بوى پرې حرامېږي،حال داچې د جنت بوى د پينځوسوکلو واټنه بوى کېږي .( مستدرک الوسايل١٣\٢٧٣ )

ðکاسب له روزۍ برخمن دى؛خو محتکر د خداى له لعنته . (الاستبصار  ٣\١١٤)

ðپېغمبر اکرم احتکار حرام او پر محتکر يې لعنت ووايه او و يې ويل:هغه ملحد دى،چې د مسلمانانو  په  بازار کې احتکار کوي. (الطباطبايي محمد حسين؛محمد في مراه الاسلام :83 مخ.

ðڅوک  چې  مال  د ګرانېدو لپاره 40 ورځې احتکار کړي؛خداى ترې  بې  زاره  دى ابن عبد ربه؛ العقدالفريد:5 ټوک،119مخ، دارالکتب العلميه بيروت ،1987م.

 ðسوداګرو! سر مو جګ کړئ !لار مو روښانه ده،تاسې ټول به د قيامت پر ورځ  فاسق او خيانت کوونکي راپاڅېږئ؛خو هغوى، چې ريښتينولي يې په تجارت کې جامه  کړې وي. قطب محمد علي؛ نظام الاسلام السياسي : مطبعه الوفا مصر،1406 ه،ق _1986 م ..

ðخداى تعالى بندګان لري،چې هغوى ته يې نعمت وربښلى او تر هغه چې بښنه لري؛نو نعمت به يې په لاسو کې وي او هغه مهال، چې بخيلان شي؛نو نعمت به ترې واخستل شي او نورو ته به ورکړل شي. السنهوري عبدالرزاق؛ فقه الخلافه :39 مخ،الهيته المصريه للکتاب، 1989 م..

ðڅوک چې سود وخوري؛نو خداى به يې د خوړلې سود هومره ګېډه د دوزخ له اوره ډکه کړي او که چېرته شتمني ترې وساتي؛نو خداى به يې يو عمل هم قبول نه کړي او تر هغه چې يو پوټى سود ورسره وي؛نو خداى او پرښتې پرې لعنت وايي.)) بدوى عبدالرحمان؛دورالعرب في تکوين الفکر الاروبي :5 مخ. لويس برنارد؛ اهتمام الانګليز بالعلوم العربيه : 4_3 مخونه.

 

 

اخلاص

ðهر  حق ته يو حقيقت وي او بنده هله د اخلاص حقيقت ته رسېداى شي، چې د کړې چار له امله يې ښه نه ايسي،چې وستايل شي. (مستدرک الوسايل ١\١٠١)

ðکه بنده څلوېښت ورځې د خداى لپاره اخلاص وکړي؛نو پر ژبه به يې له زړه څخه د حکمت چينې راوبهېږي . (بحارالانوار ٦٧\٢٤٢)

ðجبرييل راته د “صفا” او “مروه”د غرونو په منځ کې راغى او و يې ويل : ((محمده ! ستا د امت پر هغه چا دې خوښې وي،چې د اخلاص له مخې ووايي : بې له “الله” بل “خداى او معبود” نشته.)) ( ثواب الاعمال  ٥مخ )

 

ښه خوى

ðد قيامت پر ورځ چې د انسان کړنې تلل کېږي؛نو ښه خوى به يې خورا دروند وي . ( الکافي ٢\٩٩ )

ðکه څوک د پښو له نوکه د تندي تر وېښتانو پورې له ګناه ډک وي؛ خو که (لاندې)څلور خويونه ولري؛نو پاک خداى به يې ګناهونه پر ثواب واړوي .( ١) رښتيا ويل (٢)حيا (٣) ښه خوى (٤) او شکر. (الکافي  ٢\١٠٧)

ðښه خوى نيم دين دى . ( وسائل ١٢ \ ١٥٤)

ðنېک خوىه وسئ؛ځکه ددې ځانګړنې خاوند هرومرو جنتي دى . له بد خویۍ ځان وژغورئ ؛ځکه بدخويه هرومرو دوزخي دى . (وسايل١٢ \ ١٥٢)

ðانسان زياتره په “الهى تقوا” او “ښه خوى”جنت ته ننوځي . (الکافي  ٢\ ١٠٠)

ðښه خوى، د خوړو ورکړې او د مسلمانانو د وينې ساتنې ته ايمان وايي . (وسايل ٢٤\ ٢٩٠)

ðد خداى د ولي خټه له سخاوت او ښه خوى سره اغږل شوې ده . (مستدرک الوسايل ٧\١٣)

ðد ښه خوى خاوند،د عابد روژه تي په څېر ثواب وړي .( الکافي ٢\١٠٠)

ðپوه شه،چې ښه خوى ګناهونه داسې له منځه وړي؛لکه لمر،چې يخ ويلي کوي او بد اخلاقي، ښې چارې داسې پو پناکوي؛لکه سرکه،چې شات خرابوي . ( بحارالانوار ٧٢\ ٣٢١)

ðپاک خداى بد خویه انسان ته د توبې د توفيق له ورکړې ډډه کوي. وپوښتل شو: څرنګه يا رسول الله ؟ ورته يې وويل : توبه چې وکاږي ؛ نو تر مخکېنۍ ګناه ډېره غټه ګناه کوي . (بحارالانوار ٧٠ \ ٢٩٩ )

 ðناوړه خوى د بداخلاقه سړي د پوزې پېزوان دی،چې واګې يې د شيطان په لاس کې دي،د بديو لوري ته یې راکاږي او بدي هغه په دوزخ کې غورځوي . ( مستدرک الوسايل ١٢\٧٦)

ð په مؤمنانو کې هغه تر ټولوغوره دى،چې خوى يې تر نورو ښه وي . (ابوداوود -الدارمي )

ð د قيامت پر ورځ د کړنو په تله کې تر ټولو دروند څيز ښه خوى دى . (بيهقي)

ðپه تاسې کې د ايمان له پلوه تر ټولوغوره،د ښه خوى خاوند دى . (تحف العقول: ٤٥مخ)

ð ښه خوى مينه زياتوي . ( مشکاة الانوار: مخ ٧٠ )

ðد کړنوپه تله کې ،تر ښه خوى درانده بل څه نشته  . ( عيون اخبارا لرضا  ٢/٣٧ )

ðبېشکه چې خداى رفيق او نرم چلنه دى اوپه هرکارکې نرمي خوښوي . ( کنز: مخ ٥٣٧٠)

ð مؤمن په ښه خوى د شپې د تهجد کوونکيو او همېشنيو روژه تيانو مقام ته رسي . ( ابوداوود )

ð زه مبعوث شوى يم ،چې (په ټولنه کې) اخلاقي ځانګړنې د کمال تر بريده ورسوم .(الموطا- احمد )

ðد ښه خوى خاوند تر ټولو بشپړ مؤمن دى . ( ابوداوود – الدارمي)

 

ادب

ðښه ادب د سليم عقل شتون راښيي .( ارشادالقلوب  ١\١٩٩)

ðتر ادب  ښه ميراث نه شته . ( دنهج البلاغې شرح ١٠ \ ١٢٢ )

 

 

آذان

ðد چا چې اولاد وشي ؛نو په ښي غوږ کې دې ورته اذان او په کېڼ کې دې ورته اقامه ووايي،چې له شيطانه خوندي وي .(مستدرک الوسايل  ١٥\١٣٧)

 

ميراث

ðوژونکى،چې د وژل شوي وارث وي؛نو ميراث يې نشي وړاى . (الکافي ٧\١٤١)

ðکه د لوی لاس د وژنې ديه (بيه) واخستل شي؛نو دا د نورو مالونو په څېر په ارث کې شمېرل کېږي . ( تهذيب الاحکام ٩\ ٣٧٧)

 

واده

ðڅوک چې غواړي زما په څېر وي ؛نو زما د سنتو لاروي دې وکړي او يو سنت مې  واده دى .( الکافي ٥\٤٩٦)

ðڅوک چې واده وکړي؛نو نيم دين يې ساتل کېږي او د نيم نور لپاره دې له خدايه ووېرېږي . ( الکافي ٥\٣٢٨)

ðله خپل سيال سره واده او کوروالى وکړئ او خپل څاڅکي ته وړ ځاى غوره کړئ . ( الکافي ٥\٣٣٢)

ðپه واده روزي ولټوئ   .( مستدرک الوسايل ١٤\١٧٣)

 

اسلام او د مسلمانانوحقوق

ðد مسلمانانو له حقوقو يو دا هم دى،چې که څوک په سفر وځي؛نو خپل دوستان دې خبر کړي او د دوستانو له حقوقو دادي،چې د راستنېدو پر وخت دې ليدو ته یې ورشي . (الکافي ٢\١٧٤)

ðله مسلمان ورور سره د سړي دوستي په درېوځانګړنو ولاړه ده : ( ١) په ورين تندي ورسره ليده کاته کوي(٢) په غونډه کې ځاى ورکوي (٣) او په ډېر غوره نوم يادوي يې . (الکافي ٢\٦٤٣)

ðڅوک چې د خپل مسلمان ورور په خبرو کې ولوېږي،داسې به وي؛ لکه چې پرمخ يې وهلى وي .( مشکاة الانوار ١٨٩مخ )

ðڅوک چې د خپل مسلمان ورور کور ته ننوځي،تر راوتو پورې پرې امير وي . ( الکافي ٢\٦٥٩)

ðد چاچې له مسلمان ورور سره دوستي وي ؛نو لازم ده ،چې نوم،د پلار نوم،ټبر نوم او د کورنى نوم ترې وپوښتي؛ځکه واجب حق او سمه وروري،ددې څيزونو پوښتل دي او که داسې و نه کړي؛نو پېژندګلو او پوهه يې احمقانه ده . (مصادقة الاخوان : ٧٢)

  ðد مړ مسلمان درناوى،د ژوندي مسلمان په څېر دى . (تهذيب الاحکام : ١\٤١٩)

ðپر يو بل د مسلمان له حقوقو يو دا(هم ) دى،چې که تر څنګ یې کېني؛نو ځاى ورکوي .( مکارم الاخلاق : ٢٥مخ )

 ðڅوک چې د مسلمان ورور کتو يا پوښتنې ته ورشي؛نو پاک خداى ورته وايي:ښه راغلې او جنت دې هستوګنځى دى .(مستدرک الوسايل :١٠ \٥٨١)

ðکه د خپل مسلمان ورور زړه دې خوشحاله کړ؛نو بښنه دې واجبېږي . (کشف الغمه ١\٥٨١)

ðڅوک چې په وسله خپل مسلمان ورور وګواښي؛نو د پرښتو لعنت دې ورباندې وي،چې وسله یې نه وي لرې کړي . (النوادر للراوندي : ٣٣مخ )

ðد مسلمان پر يوبل له حقوقو دي چې : ( ١) د ليدو پر وخت د سلام اچول ( ٢) د پرنجي پر وخت ورته د روغتياهيله کول (٣) که ناروغ شي پوښتنې ته يې ورتلل (٤) بلنه يې ومني (٥)چې مړ شي شهادت پرې ورکړي (٦) څه چې ځان ته خوښوي،هغه ته يې هم خوښ کړي (٧) او چې ورسره حاضر نه و؛ نو خير يې وغواړي . (الاختصاص٢٣٣مخ )

ðڅوک چې خپل مسلمان ورور ته عفوه وکړي او ترې تېر شي؛نو پاک خداى به له ده تېر شي .(مستدرک الوسايل ٩\٧ )

 

د خوړو ورکړه

ðڅوک چې نورو ته خواړه ورکوي؛نو خداى تعالى يې هرومرو بښي . (الکافي ٤\٥٢)

ðيوه سړي رسول اکرم  وپوښت : کوم کار تر نورو غوره دى؟ ورته يې وويل : د خوړو ورکړه او غوره خبرې کول . (الماحسن ۱/ ۲۹۲)

ðښه خوى،د خوړو ورکړه او د وينې د تویېدنې مخنيوي د ايمان يوه برخه ده . ( بحارالانوار  ٦٧\٣٩٢)

ðجنت د مبارک حج بدله ده. رسول اکرم وپوښتل شو:مبارک حج څه دى ؟ورته يې وويل :غوره خبرې کول او د خوړو ورکړه. (عوالي الاللي ٤\٣٣ )

ðخداى تعالى وايي:څوک چې په مړه ګېډه وېده شي اومسلمان ورور يې وږى وي؛نو پر ما یې بیخي ايمان نه  دى راوړى .(بحاالانوار ٧١\٣٨٤)

 ðقسم پر خداى،چې د مؤمن د اړتيا لرې کول  تر روژې نيولو او يوې مياشتې اعتکافه ښه دى .(مصادقة الاخوان:۴۲)

 

مشري او چارواکي

ðکوم سړى،چې دا درې ځانګړنې ولري ،چارواکي ورته روا ده : ( ١) داسې پرهېزګاري ولري،چې له ګناه يې وژغوري (٢)صبرناک وي، چې پر خپلې غوسې برلاس شي (٣) او له خپل چاپېريال سره د لوراند پلار په څېر چلن وکړي .(الکافي ١\٤٠٧)

 ðد عادل واکمن يو ساعت لاروي تر اويا کالو عبادته غوره ده . (الکافي  ٧\١٥٧)

ðڅوک چې ومري؛خو د خپلې (زمانې) امام يې نه وي پېژندلى؛نو په جاهليت کې به مړ شوى وي . ( الکافي ١\٣٧٧)

ðڅوک چې ومري ؛خو مشر پرې مشري و نه کړي ؛نو په جاهليت کې به مړ شوى وي . ( دامام احمد مسند ٤\ ٩٦)

ðڅوک چې ومري؛خو له مشر سره د بيعت مسؤوليت ورترغاړې نه وي؛نو په جاهليت کې مړ شوى .( صحيح مسلم ٦\٢٢)

ðڅوک چې ومري؛خو د مشر د اطاعت مسؤوليت يې پر غاړه نه وي اخستى؛نو په جاهليت کې به مړ شوى وي . (د امام احمد حنبل مسند٣\ ٤٤٦)

ð حضرت جابر بن سمرة وايي : يوه ورځ رسول اکرم ( ص) وويل : روزګار پاى ته نه رسي؛خو داچې “دولس خلفا” حکومت وکړي  بيا يې څه وويل : زه پرې پوه نه شوم .پلار مې وپوښته؛راته يې وويل : دا ټول به له قريشو وي . ( صحيح بخاري  ٨\١٢٨)

 

پرنېکيو امر و له بديومنع

ðامت مې،چې “پر نېکو د امر او له بديو د منع” په باب ناغېړي وکړي؛نو له خداى سره به يې د جګړې شپېلۍ غږولې وي .(الکافي  ٥\٥٩)

ðډېر ناوړه قومونه هغه دي،چې د نېکيو پر کوونکيواو د بديو پر منع کوونکيو تورونه تپي . ( مستدرک الوسايل  ١١\ ٣٧٠)

ðد خپل امت يو څوک مې په خوب کې وليد،چې د عذاب پرښتې پرې له هرې لورې راټولې وې بيا يې ورپسې پر نېکيو امر او له بديو منع راغلل او د عذاب له پرښتو يې وژغوره او له پرښتوسره يې ملګری کړ . (مشکاة الانوار : ٤٨ مخ )

ðد خداى رسول ته وويل شول : موږ تر هغه پر نېکيو امر نه کوو،څو مو پخپله ټولې نېکۍ پر ځان عملي کړې نه وي او تر هغه له بديو منع نه کوم،څو مو تر ټولو بديو لاس نه وي وينځلى . پېغمبر اکرم ورته وويل: داسې مه کوئ،ان که پر ټولو نېکيو مو عمل نه وي کړى؛خو پر نېکيوامر وکړئ اوکه تر ټولو بديو مولاس نه وي اخستى؛خو بيا هم له بديو منع وکړئ . ( ارشادالقلوب  ١\١٤ )

ðتر ما وروسته،چې”زنا” راښکاره شي ؛نو ناڅاپي مړينې به ډېرېږي او چې ډنډۍ وهل ډېر شي؛نو خداى هغوى په سوکړې او زيان اخته کوي او چې د زکات ورکړه منع شي؛نو ځمکه د کرنې،مېوو او کانو له پلوه له خپل برکته لاس اخلي او چې د خداى احکام واړول شي : له ظلم او دښمن سره لاسنيوى ډېرېږي او چې ژمنې ماتې شي؛خدای پرې دښمن برلاسوي او چې زړه سوى له منځه ولاړ شي؛نو شتمني د بدانو په لاس کې لوېږي؛نو غوره خلک چې دعا ګانې  کوي؛نه به قبلېږي . (علل الشرايع ٢\٥٦٤)

ðيو سړي پېغمبراکرم وپوښت : په اسلام کې څه غوره دي ؟ ورته يې وويل : پر خداى تعالى ايمان . بيا يې وپوښت : تر ده څه غوره دي ؟ ورته يې وويل :زړه سوى . ورپسې ویې پوښت : تر زړه سوي څه غوره دي؟ ورته يې وويل : پر نېکيو امر او له بديو منع . سړي بيا وپوښت : خداى پر کومې کړنې غوسه کېږي؟ ورته يې وويل: د خپلوۍ د اړيکو په شلولو . بيا يې وپوښت : تردې ډېر بد څه دي؟ورته يې وويل : پر بديو امر او له نېکيومنع کول . ( الکافي  ٥\٥٨)

ðدا به څرنګه وي،هغه وخت چې ښځې مو فاسدې او ځوانان مو فاسقان شي او (حال داچې ) پر نېکيو امر او له بديو منع به نه کوئ؟ وپوښتل شو: داسې ورځ به راشي ؟ آنحضرت ورته وويل : هو او تر دې ډېر بد به څرنګه وي،هغه وخت چې پر بديو امر او له نېکيو منع کوئ ؟ وپوښتل شو : رسول الله! داسې ورځ به هم راشي؟ آنحضرت ورته وويل : هو !  او تردې به ډېر بد څرنګه وي ،هغه وخت چې ووينئ (ښه = معرفو)) به (( بد= منکر)) او بد به ښه شوي وي .(تهذيب الاحکام : ٦\ ١٧٧)

 

امنيت

ðامنيت او روغتيا دوې (داسې ) لورنې دي،چې ناشکري يې کېږي . (بحارالانوار  ٧٨\١٧٠)

ðامنيت او روغتيا ناپېژندل شوي نعمتونه دي .(روضة الواعظين ٢\٤٧٢)

نهيلى

ðخداى تعالى له هغه بنده په تعجب کې دى،چې د خپل پالونکي پراخه رحمت ويني؛خو له رحمت او بښنې يې نهيلېږي.(ارشادالقلوب ١\ ١٠٩)

 

انتظار

ðپه جومات کې لمانځه ته انتطار اېستل عبادت دى؛خو دا چې غيبت پکې و نه کړي . ( الکافي ٢\٣٥٦)

ðتر لمانځه وروسته ورپسې لمانځه ته انتظار اېستل،د جنت يوه زېرمه ده . (تهذيب الاحکام ٢\ ٢٣٧)

ðزما د امت ډېر غوره کړه،د خداى له لوري پراخۍ ته سترګې پر لارېدل دي . (عيون اخبار الرضا ٢\٣٦)

ðپراخۍ ته سترګې پر لارېدل غوره عبادت دى . (بحارالانوار: ٥٢\١٢٥٩)

 

زغم

ðزغم او تېرېدنه تر غچ اخستنې ډېره خوندوره ده . (مستدرک الوسايل : ١١\٢٩٠)

پند

ðمړينه غوره پند ورکونه ده.عقل غوره لارښود دى . پرهېزګاري غوره توښه ده.عبادت غوره بوختيا ده .خداى غوره ملګرى دى او قرآن غوره وينا ده .( مصباح الشريعة : ١١٣مخ)

ðقبرونو ته ورشئ او اخرت درياد کړئ او مړيو ته غسل ورکړئ ؛ ځکه لمبول يې ثواب لري او ښکاره پند دى او پر جنازو لمونځونه وکړئ،چې غمګين مو کړي؛ځکه غمګين د خداى د رحمت تر سيورې لاندې دى . (مجموعة ورام ١\٢٨٨)

ðرسول اکرم جبرئيل ته وويل : ما ته نصيحت وکړه . جبرئيل ورته وويل: محمده ! څنګه چې غواړې هماغسې ژوند وکړه؛ خو په پاى کې مرې  او څه چې غواړې،خوښ دې وي؛خو په پاى کې بايد ترې بېل شې او هر کار چې غواړې و يې کړه؛خو په پاى کې به دې له خداى سره ليده کاته وشي او پوه شه،چې لمونځ د مؤمن شرف دى او عزت يې دادى،چې ځان د خلکو د پت او ابرو له تويولو وژغوري .(الخصال  ١\٧)

 

فکر

 ðفکر کول بې سارى عبادت دى . (من يحضره الفقيه ٤\٣٧١)

ðپه جنازې پسې چې ځې؛نو په فکر کولو او له خدايه په وېرې بوخت وسه او پوه شه ،چې ته به هم ورسره يو ځاى شې . (پورته منع )

ðپه فکر کولو دوه رکعته لنډ لمونځ د ټولې شپې تر لمانځه غوره دى . (ثواب الاعمال : ٤٤مخ )

ðکورونه مو جوماتونه کړئ او زړونه مو مهربان کړئ او ډېر فکر وکړئ او د خداى له وېرې ډېر وژاړئ او په نړۍ کې د مېلمه په څېر وسئ او خداى ډېر ياد کړئ . (ارشادالقلوب  ١\٩٤)

انفاق او لګښت

 ðدرې څيزونه د ايمان حقيقت دى : په تنګلاسۍ کې لګښت،له خلکو سره په انصاف چلن او زده کوونکي ته د علم زده کړه .(بحارالانوار  ٢\١٥)

ðڅوک چې مېلمه ته يو درهم لګښت وکړي؛نو داسې به وي؛لکه د خداى په لارکې،چې يې زر زر ديناره لګولي وي (درهم د دينار لسمه برخه دى او هر دينار د سرو يو شرعي مثقال دى) . (ارشادالقلوب : ١\ ١٣٨)

 

اولياء الله

ðد خداى دوستان(اولياءالله)چوپ وي،چې چوپتيا يې د خداى ياد دى، ګوري؛خو کتل يې پند وي،خبرې کوي او خبرې يې حکمت وي،پر لار ځي او تګ يې په خلکو کې د برکت لامل وي او که د ژوند نېټه يې ټاکل شوې نه وه؛نو ارواح يې په تنو کې د عذاب له وېرې او اجر ته د لېوالتيا لپاره نه پاتې کېدل .( الکافي ٢/ ٢٧٣)

ðد ايمان ډېره ټينګه ريښه دا ده،چې د مسلمان دوستي او دښمني يوازې د خداى لپاره وي او همداراز د خداى له دوستانو سره دوستي او د خداى له دښمنانو سره دښمني یې هم يوازې د خداى لپاره وي . (الکافي ٢\١٢٥ )

ðپه حقيقت کې د خداى د ځانګړيو بندګانو چوپتيا د خداى ياد دى، کتل يې عبرت دى.خبرې يې حکمت دى،پر لارې تګ يې برکت دى او که د مړينې نېټه يې ټاکل شوې نه وه؛نو اروا به يې هڅېکله په تن کې د خداى  د عذاب له وېرې او ثواب ته د لېوالتيا لپاره نه ارامېده . (الکافي  ٢\ ٢٣٧)

 

ايمان

ðپوهه د ايمان ډېره غوره مرستیاله ده .( کافي ١\٤٨ )

ðبنده چې خپله ژبه وساتي؛نو د ايمان په حقيقت به پوه شي . (کافي  ٢\١١٤)

ðله خلکو سره ښه چلن کول نيم ايمان دى .( ٢\١١٧)

ðاودس او پاکوالى نيم ايمان دى .( النوادرللراوندي : ٤مخ )

ðڅوک چې توکم پالی وي یا ورته توکم پالي وشي؛نو له غاړې يې د ايمان کړۍ وتلې ده . ( الکافي ٢\٣٠٨)

ðسړى چې زنا کوي ؛نو د ايمان روح ترې بېلېږي بيا يې وويل : دا د خداى کلام دى ،چې هغه يې په خپل روح تائيد کړ،چې همدا د خداى روح دى،چې له سړي بېلېږي . ( الکافي ٢\ ٢٨٠)

ðايمان په درېو څيزونو بشپړېږي : د خوښۍ پر مهال خوشحالي يې باطلو ته نه راکاږي ،د غوسې پر وخت يې غوسه له حقه نه لرې کوي او د وسمنۍ پر وخت د چا مال ته لا س نه اوږدوي .( الکافي ٢\٢٣٩)

ðايمان څلور نښې لري : د خداى پر وحدانيت اقرار کول،پر خداى ايمان، د خداى پر کتابو ايمان او په الهي استازيو ايمان درلودل . (بحارالانوار  ١٠ \١١٩ )

 ðاى هغو،چې پر ژبه مو ايمان راوړى او زړه مو په ايمان سوچه کړى نه  دى! د مسلمانانو بد مه واست،عيبونه يې مه راسپړئ،څوک چې دا کار وکړي ؛نو خداى به يې عيبونه راښکاره کړي او خداى،چې د چا بدي رابربنډې کړي؛نو که په خپل کور کې هم وي،رسوا به يې کړي .( الکافي  ٢\ ٣٥٤)

ðعلي ! د مؤمن له ځانګړنو دا دي چې: د فعال فکر خاوند دى . اساسي او بنسټيز ذکر کوي . ډېر پوهېږي . د ستر زغم خاوند دى . ښه بحث کوي او د متقابل احترام خاوند دى . سينه يې تر ټولو پراخه ده . ځان ډېرکوچنى ګڼي . خندا يې موسکا ده . راټولېدنه يې ښوونه ده . غافلو ته يې وريادوي .د ناپوهانو ښوونکى دى . چاچې ازار کړى وي،دى يې نه ازاروي .څه چې ورپورې اړه نه لري،لاسوهنه پکې نه کوي . د نورو پر کړاو نه خوشحالېږي . د چاغيبت نه کوي . له محرماتو بېزاره دى. شبهاتوته نه ننوځي . ډېر لوروونکى دى . لږ تکليف رسوونکى او د بې کسو ملاتړ دى . د پلار مړيو پلار دى .خوشحالي يې په څېره کې وي او غوسه يې په زړه کې . له خپل فقره خوشحاله او تر شاتو ورته خوږ دى . د سختيو پر وړاندې سختېږي . د چا رازونه  نه رابرسېروي اوپردې نه څيري .خپلې کړنې په ځير ترسره کوي . کاته يې خواږه دي . نرمي يې په مړانه ده اوچوپ دى . که د ناپوهۍ چلن ورسره وشي يا څوک ورسره بدي کوي ؛نو زغمناک دى . د لويانو درناوى کوي او پر کوچنيانو لورنه. امانت ساتى دى او له خيانته لرې . تقوا او پرهېزګاري يې ملګرې ده . حيا يې تړون دى . څارن او لږ  تېروځي . مؤدب دى  او خبرې يې له حکمته ډکې دي . عذر مني او د چا غيبونه نه راسپړي . دروند،زغمناک، راضي او شکر اېستونکى دى . لږې خبرې کوي او رښتيا وايي . صميمي او پاکلمنى دى . زغمناک،ملګرى،ځانساتى او با شرفه دى . لعنت ويوونکى، دروغجن،غيبت کوونکى،کنځل  مار، کينه کښ او کنجوس نه دى . خوشحالوونکی او ورين تندى دى،ژر نه خپه کېږي او چټي انسان نه دی . په هر کار کې ډېر غوره يې غواړي . ډېر ښکلي خويونه غواړي . خداى يې ملاتړ دى او په توفيق يې تاييدېږي هم . له وسمنۍ سره سره اسان نيونکى دى او په يقين هوډ نيسي . له خپل دښمن سره بې انصافي نه کوي اوڅه چې يې خوښېږي ، د ښويېدو لامل يې نه ګرځي. په سختيو کې زغمناک دى . پر چا تېرى نه کوي .څه چې يې زړه غواړي،نه يې کوي .نیستي يې شعار وي .زغم يې مخ روڼى وي . لګښت يې لږ وي او له نوروسره لاسنيوى کوي . ډېرې روژې نيسي ، لمونځ کوي او لږ ويده کېږي . ډارن نه وي،کړه يې پاک سوتره وي . د وسمنۍ پر مهال له نورو تېرېږي او بښي يې.پر وعده ولاړ وي . روژې ته لېوال وي . په عاجزۍ لمونځ کوي . کارونه يې ښه وي؛لکه چې څوک پرې څارن دى . سترګې يې ښکته وي . د غځېدلي لاس خاوند وي . د ګدا لاس تش نه پرېږدي .څه چې لاس ته راوړي، کنجوسي پرې نه کوي . تل پر خپلې ورورۍ ولاړ وي . د نېکۍ مانا وي . خبرې  یې ښکلې او په عين حال کې لږې خبرې کوي . له چا سره ژوره دښمني نه کوي او نه يې له چا سره دوستي د پوپناکېدولامل ګرځي .  د خپل دوست باطلې چارې او خبرې نه مني او نه د خپل دښمن پر حق چارو او خبرو سترګې پټوي . څه نه زده کوي؛خو داچې ياد او عملي يې کړي . غوسه او کينه يې لږه؛خو شکر اېستنه يې ډېره وي . د ورځې د خپلې روزۍ په لټه کې وي او د شپې پر خپلو ګناهونو ژاړي .که دنيوي چارې کوي؛نو په خورا ځيرکۍ يې کوي او که اخروي کوي؛نو خورا پرهېزګار وي او په کاروبار کې ټګي نه کوي . په مهربانۍ د خپل ورور له تېروتنې سترګې پټوي او اوږده دوستي کوي . (بحارالانوار ٦٤\٣١٠)

 

بازار

ðد مسلمانانو بازار یې د جومات په څېر  دى؛نو څوک چې ژر راشي تر شپې پورې پکې د کاروبار لومړيتوب لري . (بحارلانوار  ٨٠\٣٨٢)

 

سوداګري

ðروزي لس برخې لري،چې نهه يې په راکړه ورکړه او يوه يې په نورو کې ده . ( من لايحضره الفقيه ٣\١٩٢)

ðخیر ښېګڼه لس برخې لري،چې ډېره غوره يې راکړه ورکړه ده؛خو(په دې شرط) چې په حق وي . (من لايحضره الفقيه٣\١٩٢)

ðبايد هڅه وکړئ؛ځکه دوستان مو په راکړه ورکړه کې درباندې برلاسېږي . قريشو! په سوداګرۍ کې برکت دى او خداى تعالى بې له قسم خور سوداګر بل سوداګر نه نشتمنوي.  (مستدرک الوسايل١٣ \٩)

ðد ټوکرانو سوداګري مستحبه ده اود غنمومکروه ده ؛ځکه په دې کې احتکار او مسلمانانو ته زيان دى اوکه څوک احتکار و نه کړي؛نو سوداګري ورته حرامه نه ده . (دعائم الاسلام ٢\١٦)

ðهر سوداګر ګناهګار دى او هر ګناهګار په دوزخ کې دى؛خو هغه سوداګر چې په حق راکړه ورکړه وکړي .(من الايحضره اولفقيه ٣\١٩٤)

ðډارن سوداګر بې برخې کېږي او د زړور روزي پراخېږي . ( مستدرک الوسايل١٣\ ٢٩٤)

 

بښنه

ðڅوک چې ګهيځ راپاڅي او پر چا د ظلم کولو نيت ورسره نه وي؛نو خداى يې ټول ګناهونه بښي . ( الکافي ٢\ ٢٣٢)

 ðڅوک چې خپل اودس نوى کوي؛نو خداى يې په وار وار  بښي . (مستدرک الوسائل ١\ ٢٩٥)

ðجومات د اخرت له بازارونو دى ؛نو بيه يې بښنه او ډالۍ يې جنت دى.  ( طوسي؛الامالي: ١٣٩ )

ð څوک چې ټولو نارينه وو او ښځمنو مؤمنانو ته د بښنې دعا وکړي ؛ نو د هغوى د شمېر هومره ورته نېکي ليکل کېږي . (طبراني- الکبير)

ðڅوک چې يوه ورځ  د الهي ثواب لپاره مستحبه روژه ونيسي ؛نو بښنه پرې لازمېږي . (پورته)

ðمېلمه چې راځي؛نو خپله روزي له اسمانه راوړي او چې خواړه وخوري ،خداى د کوربه ټول ګناهونه بښي .( الکافي ٦\٢٨٤)

ðڅوک چې دپنجشنبې پر ورځ او د جمعې پر شپه جومات جارو کړي او د سترګې د يوه کونج هومره خاورې ترې پاکې کړي،خداى يې بښي . (ثواب الاعمال : ٣١مخ )

ðڅوک چې د مړي د جنازې لمونځ وکړي؛نو پر ده او يازره پرښتې لمونځ کوي او پاک خداى يې تېر ګناهونه بښي . (مستدرک الوسائل ٢\٢٤٥)

ðپر مړي چې څلوېښت تنه د جنازې لمونځ وکړي او خداى ته د مړي شفاعت وکړي؛نو خداى هغه مړى بښي.(مستدرک الوسائل ٢\ ٢٩٢)

ðڅوک چې پخپله بستره کې ارام پرېوځي او شهادت ورکړي،چې ((لا اله – الالله )) او هم ووايي چې: پر “الله” مې ايمان راوړى او له طاغوته بېزار يم ؛نو خداى تعالى يې ټول ګناهونه بښي . (مستدرک الوسايل ٤\١٨)

ðڅوک چې د قدر پر شپه پوه شي او عبادت پکې وکړي؛نو پاک خداى يې تېر او راتلونکي ګناهونه بښي .(مستدرک الوسايل ٧\ ٤٥٥)

ðڅوک چې مړ شي او له خداى سره يې د ذرې هومره شرک نه وي کړی؛ نو په رښتيا،چې پاک خداى يې بښي . (بحارالانوار ٦\٥)

ðچا ته چې خپل مسلمان ملګرى راشي او د درناوي لپاره يې بالښت ورته کېږدي؛نو پاک خداى دغه (مېلمه پال) بښي.   (مکارم الاخلاق : ٢١ )

ðګناهګار بنده،چې راولاړ شي او په ځير اودس او بيا دوه رکعته لمونځ وکړي او له خدايه بښنه وغواړي؛نو پاک خداى يې بښي .( عوالي الاللي  ١\ ٩٧)

ð څوک چې د غچ اخستو له وسې سره سره بښنه وکړي (؛نو) خداى به يې په سختۍ کې وبښي .( کنز ٣/٣٧٣ )

ðعفوه،بنده ته يوازې عزت وربښي؛نو عفوه وکړئ،چې خداى مو عزتمن کړي .   ( مستدرک ٧/١٦٠ )

ðيو بل ته تېر شئ،چې کينې موله منځه ولاړې شي .( ميزان : ١٣١٧٦ح)

ðهغه بنده خداى ته ډېرګران دى،چې د غچ او خپل حق د اخستو وسه لري ؛خو بيا هم عفوه کوي .( بيهقي )

ðايا د دنيا او اخرت ډېر غوره مخلوقات دروښيم ؟ که چا درباندې تېرى وکړ؛نو و يې بښه . که چا درسره اړيکه پرې کړه؛نو ته يې ورسره مه پرېکوه . څوک چې درسره بدي کوي ؛ ته ورسره نېکي وکړه او څوک چې  تا بې برخې کوي ؛نو څه وروبښه .( الکافي ٢\ ١٠٧)

 ð يو بل ته هرومرو تېر شئ؛ځکه تېرېدنه د وګړي عزت زياتوي؛نو يو بل ته تېر شئ ،چې خداى مو عزتمن کړي . ( الکافي ٢\١٠٨)

ðسپارښتنه درته کوم،چې الهي تقوا ولرې او له خلکو تېر شې . (مستدرک الوسايل ٩\٨)

 

بدمرغي او نېکمرغي

ðڅلور څيزونه د انسان له بدمرغيو څخه دي :ناوړه ګاونډى،ناکاره ښځه . کوچنى کور او د سپرلى ناکاره وسيله.   (مکارم الاخلاق : ١٢٦مخ)

ðبدمرغه هغه دى،چې د خپلې مور په ګېډه کې بدمرغه کېږي او نېکمرغه هغه دى،چې د خپلې مور په ګېډه کې نېکمرغه کېږي.  (تفسيرقمي  ١\٢٢٧)

تبصره : د حديث مانا دا ده،چې د مور ګېډه د انسان په نېکمرغۍ او بدمرغۍ کې دومره اغېز لري او د مور دنده دومره درنه ده، نه داچې له روايته د “جبر” د لارې مفهوم واخلو .

ðد مسلمان سړي له نېکمرغيو يو هم د سپرلۍ ښه وسېله ده.    ( الکافي  ٦\٥٣٦)

ðد مسلمان سړي له نېکمرغيو يوه دا ده ،چې اولاد يې ورته،مېرمن يې ښکلې او دينپاله وي . (قرب الاسناد : ٣٧مخ )

ðد سړي له نېکمرغيو يو هم د صالح اولاد درلودل دي . (عدة الداعي : ٨٦)

ðپينځه څيزونه له نېکمرغيو څخه دي 🙁 ١) نېکه ښځه ( ٢) نېک اولاد (٣) نېک دوستان ( ٤) داچې د وګړي روزي د اوسېدانې په ښار کې یې وي ( ٥) او له “آل محمد”سره مينه (مستدرک الوسايل ١٣\٢٩٢)

ðد مسلمان له نېکمرغیو یوه دا ده،چې کور یې پراخه وي . (الماحسن ۲ / ۶۱۱ )

ðد خداى د دوستۍ او نېکمرغۍ نښه دا ده،چې مړينه د انسان په سترګو کې وي او هيلې يې ترشا کېږي او د شيطان د دوستۍ او بدمرغۍ نښه دا ده،چې هيلې د انسان په سترګو کې وي او مړينه يې ترشا کېږي . رسول اکرم وپوښتل شو: څوک ډېر ځيرک مؤمنان دى؟ ورته يې وويل : هغوى چې مړينه ډېره يادوي او تر ټولو ډېر ورته چمتو وي . (وسايل ٢\٤٣٥)

بدعت

ðخداى د بدعتي توبه نه قبلوي. رسول اکرم وپوښتل شو: څرنګه ؟ ورته يې وويل : ځکه له دې کار سره له زړه مينه لري . ( الکافي ١\٥٤)

ðهر بدعت بې لاري ده او ټولې بې لارۍ په دوزخ کې دي ( دا روايت ټول اسلامي مذاهب مني ) .( الکافي ١\ ٥٦ )

ðمسلمانانو! ډېره غوره لارښوونه،د محمد(عليه اسلام ) لارښوونه ده  او ډېرې غوره خبرې د خداى کتاب دى او ډېر ناوړه کار په دې کې لاسوهنه ده؛په دې پوه شئ،چې هر بدعت بې لاري ده او د ټولو بې لاريو پايله د دوزخ اور دى . (الامالي للمفيد ١٨٧مخ )

 ðتل پر آثارو او سنتو عمل کول، که څه هم لږ وي،د خداى پر وړاندې غوره دي او پر دې سربېره،تر دې هم ډېرګټور دي،چې بدعت رامنځ ته کړي يا “هوى او ځاني غوښتنو” ته مخه کړي؛پوه شئ چې بدعت او “هوى پالنه” د بې لارۍ لامل دي او هره بې لاري بدعت دى او د  هر بدعت پايله د دوزخ اور دى . ( مستدرک الوسايل١٢\٣٢٥)

ðخلکو! زه به ژر له تاسې ولاړ شم او د غيبو نړۍ ته ځم. درته سپارښتنه کوم،چې له کورنۍ سره مې ښه وکړئ او له بدعتونو مو ډاروم؛ځکه هر بدعت بې لاري ده او بېشکه،چې هر بې لارې په دوزخ کې دى . ( کفاية الاثر: ٤٠مخ )

ðلاروي وکړئ او بدعت مه پرېږدئ ؛ځکه هر بدعت بې لاري ده او هر بې لارې په دوزخ کې دى . ( دعائم الاسلام ١\٨٩)

ðبېشکه چې لږ سنت تر ډېرو بدعتو غوره دى . (نهج الحق : ٢٨٩مخ )

ðله بدعت اېښوونکيو سره خبرې او ناسته ولاړه مه کوئ؛ځکه خلک به درته د هماغه په څېر ويني،بيا رسول اکرم وويل :سړى د خپل ملګري اودوست پر دين وي . (الکافي ٢\ ٣٧٥)

ðتر ما وروسته مو،چې شکي او بدعتي وليد،خپله بېزاري ترې په ډاګه کړئ او ډېر لعن (پرې ووايي) او و يې رټئ او ورسره خبرې مو (يوازې او يوازې) مبارزه وي او ويې ډاروئ،چې تمه و نه کړي،چې اسلام خراب کړي او خلک ترې وډاروئ او له بدعته يې هيڅ مه زده کوئ،چې خداى به په دې کار ثوابونه درکړي او په آخرت کې به مو درجې لوړوي . ( الکافي ٢\ ٣٧٥)

 

شر او بدي

ðايا ډېر ناوړه خلک دروښيم؟ ورته وويل شو : هو رسول الله! ورته يې وويل : څوک چې له خلکو سره دښمني وکړي او خلک يې دښمن وګڼي. ايا تر دې هم ډېر ناوړه دروښيم؟ځواب يې ورکړ: هو! آنحضرت ورته وويل :څوک چې عذر منونکى نه وي او معذرت غوښتنه و نه مني او له ګناه تېر نشي . بيا يې وويل : ايا تر دې هم ډېر ناوړه دروښيم؟ خلکو وويل : هو ! آنحضرت وويل : هغه چې له شره يې خوندي نه وى او د ښو هيله ترې نه کېږي . ( من لايحضره الفقيه ٤\٤٠٠ )

 

برابري

ðهغه حقيقي مؤمن دى،چې له خپلې شتمنۍ غريب ته څه ورکړي او له خلکو سره په انصاف چلن وکړي . ( الکافي ٢\١٤٧)

ðډېرې غوره کړنې له خلکو سره په انصاف چلن کول او د خداى په لار کې د ورورۍ ورکړه ده او په هر حال د خداى ياد دى .(الکافي: ٢\١٤٥)

ðمؤمن پر مؤمن د خداى له لارې اوه واجب حقوق لري 🙁 ١) يو بل ته په درنه سترګه کتل(٢)له زړه ورسره مينه درلول ( ٣) له خپلې شتمنۍ ورته ورکړه ( ٤) غيبت يې حرام ګڼل (٥) د ناروغۍ یې پوښتنه(٦) په جنازه کې يې ګډون کول (٧) او تر مړينې وروسته يې يوازې په ښو يادول .( من لايحضره الفقيه : ٤\٣٩٨)

 

د رسول اکرم ورور

ðعلي! ته پر دنيا او آخرت زما ورور يې . ( بحارالانوار  ٨\١٨٥)

 

برکت

ðخواړه مو په اندازه کړئ ؛ځکه په اندازه خوړو کې برکت وي . (الجعفريات : ١٦٠ مخ )

ðاولادونه له اولادنيو مېندو وغواړئ؛ځکه چې په رحمونو کې يې برکت وي .( الکافي  ٥\٤٧٤)

ðبرکت لس برخې لري،چې نهه يې په سوداګرۍ کې او يوه يې په نورو کې ده .( الخصال ٢\ ٤٤٥)

ðښوروا مو،چې خوړه؛نو له څنډې يې وخورئ؛ځکه پورته برخه يې برکت دى .( صحيفة الرضا : ٥١مخ )

ðد ناروغ پوښتونکى د خداى په برکت کې غوټې وهي او چې کېني؛ نو پکې ډوبېږي . ( کنزالفوائد ١\ ٣٧٩)

ðپه راکړه ورکړه کې برکت دى . ( مستدرک الوسايل ١٣\٩)

ðد کورنۍ د کوم غړي،چې د کوم پېغمبر وي ؛نو هغه تل په برکت کې وي .( دعائم الاسلام ٢\ ١٨٨)

ðخپلو کورو ته چې ننوځئ؛نو سلام واچوئ؛ځکه دا کار پر کور برکت نازلوي او له کور سره د پرښتو د مينې لاملېږي . (بحارالانوار ٧٣\٧)

ðد ډوډۍ کوچنى ټيکلى جوړوئ،چې په هر يوه کې برکت دى . ( الکافي  ٦\٣٠٣)

ðڅوک چې مسلمان ورور خپل حق ته له رسېدو منع کړي؛نو خداى هغه د روزۍ له برکته بې برخې کوي؛خو داچې توبه وباسي . (من لايحضره الفقيه ٤\١٥)

ðپه ټولي کې برکت دى او د يوه خواړه دوو تنو ته او دوو خواړه څلورو تنو ته بسنده دي .( مستدرک الوسايل ١٦\٢٣٠)

 

کينه او دښمني

ð له کينې ډډه وکړئ؛ځکه نېکي داسې خوري؛ لکه اور،چې خس سوځوي . (ابوداود)

 ð کينه دين توږي . ( احمد- ترمذي)  

ð ما ته په اوونۍ کې په دوشنبه او پنجشنبه د امت کړنې راوړاندې کېږې؛نو هر مؤمن بښل کېږي؛خو هغوى چې ترمنځ يې کينه وي او ورته ويل کېږي :دواړه تر هغه پرېږدئ،چې زړونه يې له کينې پاک شوي نه وي. (مسلم)

ð خلکو! په يقين شيطان په کينه آدم له جنته راوېست؛نو کينه مه کوئ،چې نېکې چارې مو پوپنا کوي او ګامونه مو ښويوي . آدم په يوې تېروتنې له جنته وشړل شو،حال داچې خداى غوره کړى و؛نو له تاسې سره به څه وکړي،حال داچې تاسې،تاسې ياست؟ (مستدرک الوسايل ١٢/ ١٦ )

ð”د خداى لورنې دښمنان لري” . وپوښتل شو،چې دا څوک دي؟ آنحضرت ورته وويل : خداى چې چا ته څه ورکړي وي؛نو د ده ورسره کينه وي . (تخريج زين الدين ابى الفضل العراقى الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالي ٣ / ١٧)

ðکينه ښېګڼې داسې سېځي؛لکه اور چې خس سوځوي . (تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالي ٣ / ١٧)

ð “ژر دى،چې د امتونو درد او ناروغۍ زما امت ته هم ورسي” اصحابو وپوښت : دا څه دي؟ آنحضرت ورته وويل: غرور، مستي، نه مړښت، پر دنيا سيالي،له يو بل لرې کېدل او خپلمنځي کينه،تر هغه چې يو سرغړاند راپورته او بيا ګډ وډي شي. (تخريج زين الدين ابي الفضل العراقي الاحاديث احياء العلوم الدين للغزالي ٣ / ١٧)

ð د وړاندنيو امتونو ناروغۍ؛لکه کينه او….. درننووتي دي.  (پورته منبع)

 ðکينه يوازې په دوو ځايو کې سمه ده : ( ١) خداى،چې چا ته شتمني او دا وسه ورکړې وي،چې د خداى په لار کې يې ولګوي . ( ٢) خداى،چې چا ته حکمت ( او پوهه) ورکړې وي او له مخې يې پرېکړې کوي او نورو ته يې هم ورزده کوي . (ناصف ٣ / ٥٧ – ٥٨)

ðکينه يوازې په دوو ځايو کې ښايي : ( ١) خداى،چې چا ته قرآن ورکړى وي او شپه و ورځ پرې بوخت وي . ( ٢) خداى،چې چا ته شتمني ورکړې وي او شپه و ورځ يې لګوي . (نووي ١ / ٧٤٢)

ðد ايمان ډېره ټينګه ريښه داده،چې دوستي او دښمني يوازې د خداى لپاره وي او پردې سربېره،د خداى له دوستانوسره دوستي او له دښمنانو سره يې دښمني هم يوازې د خداى لپاره وي . ( المقفعة : ٣٣مخ )

ðکينه او دښمني دين له منځه وړي او د دوو تنو ترمنځ اړيکه ويجاړوي.  (مستدرک الوسايل ١٢\٢٢٥ )

ðد خداى لپاره دوستي او دښمني فرض ده . ( جامع الاخبار: ١٢٨)

ðد ايمان اصل دا دى،چې دوستي او دښمني يوازې د خداى لپاره وي . ( مستدرک الوسايل : ١٢\٢٢٨ )

ðڅوک چې له خلکو سره دښمني کوي (؛نو) خلک له ده سره دښمني کوي .( من لايحضره الفقيه ٤\٤٠٠)

ðکه په چا کې درې څيزونه وي (؛نو) له ما څخه نه دى او زه هم له هغه څخه نه يم : ( ١) د چا چې له علي سره کينه وي ( ٢) زما له کورنۍ سره يې کينه وي ( ٣) او وايي چې ايمان خو (تش) خبرې دي .( بحار الانوار ٢٧\ ٢٢٧)

ðد چاچې علي ښه ايسي؛نو زه به خوښېږم او د چا چې علي بد ايسي ؛ نوله ما سره به يې دښمني وي . ( کشف اليقين : ٢٢٦)

ðد چاچې له “حسنينو” سره کينه وي ؛نو د قيامت پر ورځ به داسې راپاڅي،چې پر تنې به يې غوښه نه وي او زه به يې شفاعت نه کوم . (کامل الزيارات : ٥١مخ )

ðڅوک چې د ورځې(٢٥)ځل مؤمنانو(نارينه او ښځمنو)ته دعا وکړي؛ نو پاک خداى يې له زړه کينه لرې کوي او که خداى وغواړي؛ په “اولياءالله” کې يې شمېري . (الجعفريات :٢٢٣)

ðعلي!زه چې مړ شم؛نو هغه کينې به رابرسېره شي،چې ځينو په دښمنۍ درته په زړه کې اچولي دي او له خپل حقه به دې منع کړي . (الصراط المستقيم٢\١١٦)

ðکينه او ايمان د يوه تن په زړه کې نه ځايېږي.(مستدرک الوسايل ١٢\٣٩٤)

ðنږدې وه،چې بېوزلي د کفرلامل شي او نږدې وه،چې کينه پر قضا وقدر برلاسى شي . ( الکافي٢\ ٣٠٧)

ð کينه او ايمان په يوه زړه کې نه ځايېږي .(مستدرک الوسايل٩\٨١)

ðکينه کښ تر ټولو خلکو لږخوند وړي .(مستدرک الوسايل ١٢\١٩)

ð خوب هېچاته مه وايه ؛خو هغه مؤمن چې کينه کښ او ظالم نه وي . (الکافي ٨\٣٣٦)

ðدښمني او کينه تر تاسې د ړومبنيو ټولو قومونو دردونه دي،چې پرتاسې يې يرغل کړى دى . ( وسايل ١٥\٣٦٧)

ðکينه کښ  له ډېرو لږوخوندونو برخمنېږي . ( فقيه ٤/ ٣٩٤ )

ðله کينې ډډه وکړئ؛ځکه نېکي داسې خوري؛لکه اور،چې خس سوځوي . ( ابوداوود)

 

بنده او بندګي

ðخداى تعالى وايي : کوم بنده،چې غواړم جنت ته يې ننباسم؛نو پر بدني کړاوونو يې اخته کوم ؛ځکه دا کار يې د ګناهونو کفاره ده او که نه مرګ يې سختوم،چې ما ته په راتګ کې له ګناه پاک وي (؛نو) بيا يې جنت ته ننباسم . (الکافي ٢\٤٤٦)

ðخداى تعالى وايي : کوم بنده چې دوزخ ته ننباسم؛نو بدني روغتيا يې ور پر برخه کوم؛البته که دا ټولې غوښتنې يې له ما څخه وي او که داسې نه وي (؛نو) هغه د خپلې زمانې د واکمن له ډاره خوندي ساتم (که دا غوښتنې يې له ما وي) او که داسې نه وي؛نو روزي يې پراخوم (که دا غوښتنې يې له ما وي) او که داسې نه وي (؛نو) مړينه يې اسانوم،چې ما ته راځي،چې هيڅ ښه کار مې پر وړاندې نه لري (؛نو) بيا يې دوزخ ته ننباسم .( الکافي : ٢\٤٤٦)

ðکوم بنده،چې په پټه مؤمنو نارينه وو او ښځو ته دعا وکړي؛نو پرښته وايي : څه دعا يې،چې وکړه،هماغه تاته هم ده او کوم بنده،چې په پټه مؤمنونارينه وو او ښځو ته  دعا وکړي؛نو خداى تعالى،چې د پيدايښت له پيله تر قيامت  پورې مؤمنو نارينه واو ښځو ته څه ورکړي ، ده ته يې هم ورکوي  .( وسايل ٧\١١٥)

ðکوم بنده،چې د “کوچني اختر” په شپه شپږ رکعته لمونځ وکړي (؛نو) دا يې د ټولې کورنۍ د شفاعت لاملېږي،که څه هم جهنم پرې واجب وي . (وسايل ٨\٨٦)

ðڅوک چې د يوې کورنۍ زړه خوشحاله کړي؛نو خداى له دې خوښۍ يو موجود راپنځوي،چې د قيامت پر ورځ يې مخې ته راځي او هر ځل چې کومه سختي ويني (؛نو) ورته وايي : ته څوک يې؟ پر تا خو دې د خداى رحمت وي، که ټوله دنيا راته واى؛نو ستا په څېر مې پکې څه نه ليدل،بيا وايي:((زه هماغه ښادي يم،چې په پلاني زړه کې دې اچولې وم .))  ( وسايل ١٦\٣٥٥ )

ðخداى تعالى وايي : هغه مې غوره بندګان دي،چې د خداى لپاره  يو د بل دوستان وي او زړونه يې په جوماتونو پورې تړلي وي او ګهيځ مهال استغفار وايي؛دوى داسې کسان دي،چې کله وغواړم، ټول ځمکمېشتي مجازات کړم؛نو هغوى رايادوم او سزا نه ورکوم . ابوذره! په جومات کې هره ناسته بې ګټې ده ؛خو له دې درېو کارونو پرته : د لمونځ کوونکي د قرآن لوستل،د خداى ياد او د پوهې زده کړه . (بحارالانوار ٧٤ \ ٨٨)

 

جنت او دوزخ

ðجنت د مېندو تر پښو لاندې دى . ( کنز: ٤٥٤٣٩ ح )

ð تاسې له ماسره د شپږوڅيزونو ضمانت وکړئ ؛زه به درته د جنت ضمانت وکړم: ١- تل په خبروکې رښتيا وايئ. ٢- خپلې کړې ژمنې پوره کړئ.٣- درسپارل شوى امانت بېرته په ښه توګه ورکړئ .٤- عورت مو له حرامو وساتئ .٥-د څه له ليدو،چې منع شوي ياست،سترګې ترې پټې کړئ . ٦- او لاسونه مو هغو ځايو ته مه ورغځوئ،چې ترې منع شوي ياست (په ناحقه چاته زيان مه رسوئ او د چا پرمال تېرى مه کوئ او…) (احمد –بيهقي)

ð جنت (ته تلل) له سختيو سره اغږل شوي او همداراز دوزخ ( ته تلل ) له هوسونو سره . ( کنز ٣/ ٣٣٢)

ð جنت د سخيانو کور دى . ( کنز ٤/٢٠٨)

ð د مجاهدينو تورې دجنت کونجيانې دي . ( کنز ٤/٢٩٨ )

ð څوک چې د جنت تلو ته لېوال وي (؛نو) د ښو چارو په کولوکې دې بيړه وکړي .  ( کنز ١٥/٨٦٤)

ðچلي،بخيل او منت اېښووونکى جنت ته نه ځي . (ترمذي)

ðپه جهنم کې يو ځاى دى،چې يوازې د”حسين بن علي” او “يحيي بن زکريا” ( عليهم السلام ) وژونکي به پکې پراته وي . (ثواب الاعمال : ٢١٦)

ðجنت په کړاوونو او جهنم په شهوتونو پوښل شوى دى . (د نهج البلاغې شرحه ١٠ \ ١٦)

ðدنيا پالي،ځانپالي،نسپالي او شهوتپالي څلورځانګړنې دي، چې که امتي مې ترې ځان وژغوري؛نو جنت پرې لازمېږي . (مستدرک الوسايل  ١٢\١١٠)

ðجنت (د خداى په لارکې) د تورو تر سيوريو لاندې دى. ( د نهج البلاغې شرحه ٨\٦)

ðپالونکي چې مې جنت ته بوتلم (؛نو) جبرئيل راته وويل :جنت او دوزخ ته لارښوونه وکړه،چې ځان دروښيي . آنحضرت وويل : په جنت کې چې څه نعمتونه وو او همداراز دوزخ او د هغه عذاب مې هم وليد. جنت اته ورونه درلودل او پر هر يو څلور کلمې کښل شوې وې،که څوک پوه شي او عمل پرې وکړي ؛نو تر دنيا او څه چې پکې دي، ورته غوره دي او جهنم اوه ورونه درلودل اوپه هر يوه درې کلمې کښل شوې وې،که څوک پوه شي او عمل پرې وکړي ؛نو تر دنيا او څه چې پکې دي،ورته غوره دي، بيا جبرئيل راته وښوول : محمده! پر ورونو چې څه کښل شوي ولوله؛نو ما ولوستل .  پر لومړي ور کښل شوي ول : بې له “الله” بل خداى او معبود نشته،محمد د خداى استازى او علي يې ولي دى .هر څه ته يوه چاره شته او د ژوند چاره په څلورو ځانګړنو کې ده : قناعت،د حق لورنه،د کينې پرېښوول او د نېکانو ملګرتيا. پر دويم ور کښل شوي وو: هر څه ته چاره شته او د آخرت د خوشحالۍ لپاره څلور ځانګړنې دي: پر پلار مړيو د خواخوږۍ لاسونه راکاږل ،پر کونډو زړه سوى ،د مؤمنانو د ستونز و د لرې کولو لپاره هڅه او بېوزليو او خوارانو سره ليده کاته . پر درېم ور يې کښلي وو:هر څه ته يو چاره شته او په نړۍ کې د روغتيا لپاره څلور ځانګړنې دي :لږې خبرې کول،لږ وېدېدل،پر لارې لږ تګ او لږ خوړل .پرڅلورم وره يې کښلي  وو: څوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځې ايمان لري؛نو بايد د خپل مېلمه درناوى وکړي . څوک چې پر خدای او د قیامت پر ورځ ایمان لري،بايد د خپل ګاونډي درناوى وکړي .څوک چې پر خدای او د قیامت پر ورځ ایمان لري،بايد د خپل موروپلار درناوى وکړي او څوک چې پر خدای او د قیامت پر ورځ ایمان لري،بايد يا ښې خبرې وکړي يا چوپ وي . پر پينځم وره يې کښلي ول : څوک چې غواړي ظلم پرې ونشي ؛نو پر نورو دې ظلم نه کوي او څوک چې غواړي کنځل ورته و نشي ؛نو نورو ته دې کنځلې نه کوي او څوک چې غواړي خوار او ذليل نشي؛نو نور دې نه خواروي او څوک چې غواړي په دنيا او اخرت کې د خداى پر رسۍ منګولې ښخې کړي؛نو و دې وايي چې : ((یوازې “الله” حق او وړ معبود دی،محمد یې استازی او علي يې ولي دی )) پر شپږم وره يې کښلي وو: که څوک غواړي پراخه قبر غواړي؛نو جوماتونه دې جوړ کړي اوکه څوک غواړي د ځمکې چينجي يې و نه خوري؛ د جوماتونو مينوال دې وي او د چاچې دا ښه ايسي،چې تنه يې تازه پاتې شي؛نو جوماتونه دې جارو کړي او که څوک غواړي په جنت کې خپل هستوګنځى وويني؛نو جوماتونه دې فرش کړي. پراوم وره يې کښلي ول: زړه په څلور ځانګړنو رڼا کېږي : د ناروغ پوښتنه کول،په جنازه کې ګډون کول ،د کفن اخستل او د پور ورکړه. پر اتم وره يې کښلي وو: که څوک غواړي په دې وره ننوځي،بايد څلورځانګړنې ولري : سخاوت،ښه خوى،د صدقې ورکړه او د خداى د بندګانو نه ځورل . د جهنم پر لومړي وره يې کښلي وو:خداى ته هيلمن نېکمرغه شول ، له خدايه وېرېدونکي خوندي شول او څوک چې بې له خداىه له بل چا ووېرېدل او د “غيرالله” په هيله مغرور شول ( ؛نو ) پوپنا شول . د جهنم پر دويم وره کښل شوي وو: که څوک غواړي د قيامت پر ورځ لوڅ او بربنډ نه وي؛نو په نړۍ کې دې بربنډ اولوڅ پټ کړي او که څوک غواړي د قيامت پر ورځ تږى نه وي؛نو په نړۍ کې دې تږي په اوبو ماړه کړي او که څوک غواړي د قيامت پر ورځ وږى نه وي؛نو په نړۍ کې دې وږې ګېډې مړې کړي . د جهنم پر درېم وره کښل شوي وو: پر دروغجنو دې د خداى لعنت وي . پر کنجوسو دې د خداى لعنت وي . پر ظالمانو دې د خدای لعنت وي . د جهنم پرڅلورم وره يې کښلي وو:څوک چې اسلام سپک وګڼي؛نو خداى يې خواروي او څوک چې زما کورنۍ سپکه وګڼي؛نو خداى يې خواروي او خداى د ظالمانو ملاتړي خواروي.پر پينځم وره يې کښلي وو: په ځاني غوښتنو پسې مه ځئ؛ ځکه له ايمان سره اړخ نه لګوي او څه چې درپورې اړه نه لري،خبرې پرې مه کوه،چې د خداى له رحمته به بې برخې کېږي او د ظالمانو مرستندوى کېږه مه . د جهنم پر شپږم وره يې کښلي وو: زه پر مجتهدينو (او هڅا ندو) حرام يم . پر صدقه ورکوونکيو حرام يم . پر اوم وره يې کښلي وو: مخکې تر دې،چې حساب درسره وشي،له ځان سره حساب وکړئ.مخکې تر دې،چې ورټل شئ؛ځان ورټئ.خداى تعالى ته تر ورتلو مخکې،هغه وبلئ ؛ځکه هلته يې بيا نشئ بللاى . ( بحارلانوار ٨\١٤٥)

ð د چا په زړه کې چې د بڅري هومره کبر وي (؛نو) جنت ته نشي تلاى . (بخاري – مسلم )

ð څوک چې پر درېو څيزونو ګروهمن وي،جنت ته ننوځي : الله پاک خپل پالونکى، اسلام خپل دين،محمد (ص) خپل پېغمبر  وګڼي او څلورمه ځانګړنه يې د خداى په لار کې جهاد دى،چې د ځمکې او اسمان هومره لويه ده .

ð بنده چې لمونځ کوي او له خدايه جنت نه غواړي او د جهنم له اوره ورته پناه نه وړي،پرښتې وايي: له دوو مهمو څيزونو (؛يعنې) جنت او دوزخ يې غفلت وکړ . (الجعفريات :٤٢ )

ð درې تنه جنت ته نه ځي: شرابخور او پر کوډو ګروهمن او له خپلوانو سره اړيکه پرې کوونکى.( بحار ٧١ / ٩٠ )

ð په جنت کې يو مقام دى،چې يوازې د عادل واکمن ،زړه سواندي او زغمناک اولادوال په برخه کېږي . (الخصال ١/ ٩٣)

ð د قرآن حافظان او پوهان د جنتيانو عارفان دي،مجتهدين يې لارښوونکي دي او استازي د جنتيانو ښاغلي دي . (الکافي ٢/ ٦٨٥)

ðد چا په زړه کې،چې د ږدن دانې هومره “ايمان” وي؛نو دوزخ ته به ولاړ نشي . ( وسايل  ١٦\٧)

ðد جنت زېرمې دا څلور څيزونه دي : د اړتيا پټول،د صدقې پټول،د ناروغۍ پټول او د کړاو پټول .(الامالي للمفيد: ٨مخ )

ðڅوک چې د شپې د تهجدو لپاره پاڅي؛نو بې حساب و کتابه جنت ته ننوځي . ( بيهقي )

ðدرې تنه جنت ته نشي تلاى : (١) شرابخور .( ٢) کوډګر.(٣) او سخت زړى ( پر چا نه زړه سوى ) . ( پورته ١٧ \١٤٨)

ðنېکان لومړى جنت ته ننوځي .( الکافي٤\٢٨)

ðڅوک چې جنت ته د رسېدو لپاره وژاړي،جنت ته ننوځي او څوک چې د دنيا لپاره وژاړي ؛نو دوزخي کېږي . ( الجعفريات : ١٩٢)

ðد اوداسه پر مهال مو سترګې پرانځئ، په دې هيله ،چې د  دوزخ اور و نه وينئ . ( من لايحضره افقيه ۱\ ۵۰ )

ðډېرى دوزخيان كبرجن دي . ( وسايل الشیعة ۱۵\ ۳۷۸)

ðكه څوك غواړي د جهنم له اوره وژغورل شي؛نو چا ته يې،چې پور وركړى،ورته دې مهلت وركړي يا دې بېخي ورته له خپل حقه تېر شي . (وسايل الشیعة ۱۸ \ ۳۶۷)

ðڅوك چې”سود”وخوري؛نو خداى تعالى يې ګېډه د خوړلي سود هومره له اوره ډكوي . ( بحار  ۷۳\ ۳۶۴)

  ð درې تنه جنت ته نه ننوځي: شرابخور،پالي او  اړيک شلوونکى . (وسايل ٢٥/ ٣٠٤ )

ðعلي! د مرګ پرښته ،چې له فاجره ساه اخلي؛نو د اور سيخونه ورسره وي، چې له ډېر عذابه يې جهنم هم چغې وهي.علي له ځايه راولاړ شو او  ويې پوښتل: رسول الله ! ايا په امت كې به دې څوك پردې بلا اخته كېږي؟ ورته يې وويل: هو! ظالم واكمن،د پلار مړي د مال خوړونكى او پر دروغو د شهادت ويونكي (به پرې اخته كېږي).  ( بحار ۳۹ \ ۱۹۷ )

ðعلي! پر هغه مهال به څرنګه يې،چې د جهنم پر غاړه به ولاړ يې او د “صراط” پر لوري به ځې او خلكو ته ويل كېږي،چې تېر شئ او ته به جهنم ته وايې،چې دا زما دى او دا ستا دی ؟ علي وويل : رسول الله ! هغه څوك دي ؟ حضرت ورته وويل :هغوى ستا لارويان دي او چې چېرې يې،هغوى درسره دي . ( بحارالانوار  ۳۹\ ۱۹۷ )

ðڅوك چې،علي ته كنځلې وكړي؛نو ما ته يې كړي دي او چا چې ماته كنځلې وكړې؛نو خداى ته به يې كنځلې كړې وي او خداى ته كنځلې كوونكى د دوزخ اور ته ننوځي او ستر عذاب ورته سترګې پر لار دى . (بحارانوار  ۲۷\ ۲۲۷ )

ðټول سوداګر فاجر دي او د فاجرو ځاى جهنم دى؛خو څوك چې یې په حق وپېري اوپه حق يې وپلوري . (من لا يحضره الفقيه۳ \ ۱۹۴)

ðد ښه خوى خاوندان واست؛ځكه جنت د ښه خوى پايله ده او له ناوړه اخلاقو ډډه وكړئ؛ځكه پايله يې جهنم دى . (وسايل الشيعة ۱۲\ ۱۵۳)

ðسخاوت د جنتي ونو يوه ونه ده،چې ښاخونه يې په دنيا كې راځوړند دي؛ نو څوك چې يې پر يوه ښاخ ونښتل؛نو دا ښاخ يې جنت ته بوځي او بخل په دوزخ كې يوه ونه ده،چې ښاخونه يې په دنيا كې راځوړند دي؛نو چا چې يې په دنيا كې په يوه ښاخ يې ځان ځوړند كړ؛نو دا ښاخ يې دوزخ ته بوځي . (قرب الاسناد: ۵۵مخ )

 

خپلسري

ðغيرتمندي د ايمان نښه ده او خپلسري او بې غيرتي د نفاق نښه ده . (السنن الکبرى ،البيهقي ١٠\ ٢٢٦)

 

ناروغ او پوښتنه يې

ð که کړاى شئ؛نو يوه ورځ ترمنځ يا په هرو څلورو ورځو کې يو ځل د ناروغ پوښتنې ته ورشئ . (الامالي للطوسي: ٦٣٩)

ð د بني هاشمو پوښتنه کول لازم او ليده کاته ورسره (نبوي) سنت دي.(بحارالانوار ٩٣/   ٢٣٤)

ðڅوک چې د ناروغ پوښتنې ته ولاړ شي؛نو له اسمانه پرې په نامه ورته غږ کېږي : پلانکيه! ښه کار دې وکړ او ښه راغلاست،چې بدله دې جنت دى .( الکافي ٣/ ١٢١ )

  ð څوک چې د ناروغ پوښتنې ته ورشي او څه ساعت ورسره کېنې؛ نو خداى ورته د داسې زرو کالو د عبادت او عمل بدله ورکوي،چې د سترګو د رپ  هومره يې پکې له خداى سرغړوى نه وي کړي . (پورته)

ð څوک چې د ناروغ پوښتنې ته ورشي؛نو په واقع کې خداى يې په خپل رحمت کې رانغاړي .( بحارالانوار ٦٦/ ٣٨٢)

ðبلنه ومنئ،د ناروغ پوښتنې ته ولاړ شئ،ډالۍ ومنئ او پر مسلمېنو تېرى ونه کړئ . (مستدرک الوسايل ٢/ ٧٤ )

ð د ناروغ څلور ځانګړنې  :١) قلم ترې پورته کېږي . ٢) خداى پرښتو ته امرکوي : د روغتيا په حال کې چې ورته هره نېکي ليکل کېده ،هماغه ورته وليکئ .  ٣ )  ناروغي يې د بدن هر غړي ته غځېږي اوګناه يې څنډل کېږي . ٤)  نو که (د ناروغۍ په حال کې ) ومړ؛هم بښل شوى او که ژوندی پاتې شو؛نو هم بښل شوى دی .  (جامع الاخبار:١٩١ مخ)

ðڅوک چې د ناروغ پوښتنې ته ځي (؛نو) خپل کور ته تر راستنېدو پورې د جنت په لار کې قدمونه ږدي . ( کنز ٩/٩٥ )

ð د ناروغ پوښتنه وکړه،که څه هم يوميل ( څه کم دوه کيلومتره)لار وي  ( بحار ٧٧/٥٢ )

ðد  ناروغانو پوښتنې ته ورشئ او په جنازو پسې ولاړ شئ،چې آخرت دريادوي . ( مستدرک ١/١١٩ )

ðد ناروغ پوښتونکى د جنت په لارو کې قدمونه اخلي . (محازات النبويه:١١٣ مخ ) 

ðکه په بنيادم کې دا درې څيزونه نه واى؛نو هيڅ څيز ته يې سر نه ټيټاوه : ناروغي،بېوزلي او مړينه . دا درې واړه پکې دي؛خو بيا هم ګستاخ دى . (الخصال  ١\١١٣)

ðله هغه مؤمنه په تعجب کې يم،چې د خپلې ناروغۍ په باب اندېښمن دى؛ځکه که پوهېداى،چې د ناروغۍ له امله يې څومره ثوابونه کېږي؛نو ښه به يې ايسېداى،چې له خداى سره د ليده کتو تر وخته پورې ناروغ واى .( التوحيد : ٤٠٠ مخ )

ðناروغي ګناهونه پاکوي .( مستدرک الوسايل ٢\ ٦٥ )

ðد ناروغۍ ساعتونه،دګناهونو د بښنې ساعتونه دي .(الجعفريات  ٢٤٥)

ðد خپګان او ناروغۍ ساعتونه د ګناهونو کفاره ده . (بحارلانوار  ٦٤\٢٤٤)

ðمؤمن تل ناروغ او خپه وي او چې کله روغ شي؛نو کومه ګناه به يې ورترغاړې نه وي . ( بحارالانوار ٦٤\ ٢٤٤)

ðد سترګو د درد په څېر بل درد نشته .(وسايل ١٨\٣١٨)

ðوالګى(زکام) د خداى له سرتېرو یو سرتېرى دى،چې د ناروغۍ لوري ته يې ورلېږي ،چې له منځه  يې يوسي . (الکافي ٨\٣٨٢)

ðدرملنه وکړئ؛ځکه چاچې درد رالېږلى؛نو درمل يې هم رالېږلي دي . (مستدرک الوسايل ١٦\٤٤٠)

ðهېښنده ده،چې د ناروغۍ له امله له خوړو پرهېز(او ډډه) کوي ؛خو د جهنم له ډاره له ګناه ځان نه ساتي .( مکارم الاخلاق ١٤٧)

 ð د قرآن سپارښتنه درته کوم؛ځکه چې ګټوره شفا او برکتي دوا ده . (تفسير الامام العسکري : ١٣مخ )

ðد سپېلنو بېخ او لښتې دارو( او د عفونت ضد) دي، په دانو کې يې د دوه اويا ناروغيو شفا ده؛نو په “سپېلنو” او “کندر” د ځان درمل وکړئ.  ( طب الائمه : ٦٧ )

 

بدله او اجر

ðڅوک چې وخوري او شکر وکاږي؛نو بدله يې داسې ده؛لکه د الهي بدلې په هيله،چې روژه نيسي . ( الکافي ٢\ ٩٤)

ðد ښه خوى د خاوند بدله داسې ده؛لکه روژتي،چې پر عبادت بوخت وي .( الکافي ٢\ ١٠٠)

ðبېوزلي په خلکو کې د خداى يو امانت دى؛نو چاچې پټه وساتله ؛ نو خداى ورته د روژتي د عبادت هومره اجر ورکوي .(الکافي ٢\٢٦٠)

ðڅوک چې په سلامتيا او روغتيا کې شکر وکاږي؛نو خداى ورته د هغه چا بدله ورکوي،چې په کړاوونو کې صبر کوي . ( الکافي ٢\٩٥)

ðد اذان او اقامې ترمنځ د مؤذن ثواب د هغه شهيد هومره دى،چې د خداى په لارکې پر خپلو وينو ککړ دى . ( روضة الواعظين ٢\٣١٣)

 

تقوى او پرهېزګاري

ðاسلام لوڅ او بربنډ  دى او حيا يې جامه ده،مړانه يې ښکلا ده ، صالح کړه يې ځوانمردي  ده اوستنه يې پرهېزګاري ده او د هر څه لپاره يو بنسټ وي،چې د اسلام بنسټ زموږ له کورنۍ سره مينه ده .(الکافي ٢\٤٦)

ðڅوک چې واکمن تر خداى غوره وبولي؛نو خداى ترې پرهېزګاري لرې کوي .( وسايل  ١٧\١٨١)

ðپه دين کې مو غوره څيز پرهېزګاري ده. ( وسايل ٢٠ \ ٣٥٧)

ðد دين کمال د پرهېزګارۍ په درلودو کې دى .(مستدرک الوسايل : ١١\٢٦٨)

ðابوذره! د دين بنسټ پرهېزګاري او سر يې اطاعت دى . ابوذره! که غواړې ډېر عابد وسې؛نو پرهېزګار وسه؛ځکه پرهېزګاري غوره دينپالي ده . ( مستدرک الوسايل ١١\٢٧٠)

ðيوه پرهېزګاري هم د خداى له حرامو ځان ژغورنې ته نشي رسېداى . (من لايحضرالفقيه ٤\٣٧١)

ðپرهېزګاري ډېره ښه توښه ده . ( وسايل ١٥\٢٤١)

ðامت به مې په پرهېزګارۍ او ښه خوى جنت ته ننوځي .(مستدرک الوسايل ٨\٤٤١)

ðکه څوک غواړي عزتمن وي؛نو له خدايه دې ووېرېږي .(مستدرک الوسايل ١١\ ١٦٧)

ðاوچته خبره د تقوى کلمه ده . (بحارالانوار ٢١\ ٢١٠)

ðاسلام بر بنډ دى او جامې يې پرهېزګاري ده . (بحارالانوار ٢٧\٨٢)

ðفرايض عملي کړه،چې ډېر پرهېزګار وسې او د خداى پر درکړې برخې خوښ وسه،چې ډېر غني وسې . ځان دې د خداى له حرامو وژغوره،چې ډېر پرهېزګار وسې،له ګاونډي سره دې ښه چلن کوه،چې مؤمن وسې او له دوست سره دې ښه ملګرتوب کوه،چې مسلمان وسې . (الامالي للمفيد : ٣٥مخ )

 ðپرهېزګاران ښاغلي دي او فقهاء مشران دي او ورسره ملګرتوب عبادت دى . ( الامالي للطوسي : ٢٢٥)

ðيوازې پرهېزګاران د علي پر ولايت ټينګ او ثابت پاتې کېږي . (تفسير العياشي ١\ ١٠٠)

ðڅوک چې له الهي پولو وا نه وړي ؛نو ژوند به يې ځواکمن وي او د خپلو دښمنانو په سيمو کې به په امنيت کې وي . (بحارلانوار ٦٧\٢٨٣)

 

پاکي

ðهر څه په اوبو پاکېږي؛خو اوبه په هيڅ څيز نه پاکېږي .(الکافي ٣\١٠ )

ð حضرت “اسما‌ء د عميس لور” رسول اکرم وپوښته : ما د حسن (رض) د زوکړې پر وخت د فاطمې بي بي نه وينه وليده ،نه حيض او نه نفاس ؟ آنحضرت ورته وويل : نه پوهېږې، چې فاطمه سپېڅلې ده او د حيض او زوکړې وينه يې نه ليدل کېږي . (صحيفة الرضا: ٩٠مخ . ذخاير العقبى : ٤٤مخ . نورالابصار: ١٨١مخ )

ðد قرآن لار پاکه کړئ . رسول اکرم وپوښتل شو: د قرآن لار کومه ده؟ ورته يې وويل : ستاسې خولې. بيا وپوښتل شو:څرنګه؟ ورته يې وويل: په مسواک . ( الدعوات : ١٦١)

 

مور و پلار

ð د مور و پلار بې احترامي او ترې سرغړوى، عمر  لنډوي. (مستدرک الوسايل: ١٢/ ٣٣٤)

ð مور و پلار ته په مينه کتل عبادت دى .( الجعفريات : ١٨٧)

ðپه عبادت کې شمېرل کېږي : عالم ته ليدل،عادل واکمن ته ليدل،په مينه مور و پلار ته کتل او هغه ورور ته کتل، چې د خداى لپاره يې ښه ګڼې . ( الامالي للطوسى)

ð له مور و پلار سره نېکي او زړه سوى د قيامت د ورځې حساب اسانوي . (بحارالانوار ٧١/ ١٢٧)

ðدرې سترې ګناوې دا دي : (١ )  له خداى سره شرک . (٢)  له مور و پلار سرغړونه. (٣ )  پر ناحقه شاهدي ورکول . (بخاري : ٢٦٥٤  حديث )

ðله مور و پلار سره ښه وکړه،چې جنت ته ولاړ شې او که هغوى عاق کړى یې او جفا کار یې؛نو له اور سره جوړ جاړى وکړه . (الکافي  ٢\٣٤٨)

 ð مور و پلار مو ستاسې جنت اودوزخ دي . ( ابن ماجه )

ðد مور و پلار له عاق او نفرته ځان وژغورئ؛ځکه د جنت بوى،چې تر زر کاله واټن وروسته پوزې ته رسي؛نو د مور و پلارعاق شوى،سخت زړى،بوډا زنا کار او هغه ګاونډي ته نه رسي،چې وياړمني او کبرجنې جامې اغوندي؛ځکه ستريا او کبر يوازې له نړۍ پال خداى سره ښايي . (الکافي ٢\٣٤٩)

ð حضرت ابن مسعود (رض) وايي : رسول اکرم مې وپوښت:  د خداى کوم يو عمل ډېر ښه خوښېږي؟ راته يې وويل : په خپل وخت لمونځ .بيا مې وپوښت : تر دې وروسته بيا بل څه عمل ؟ راته يې وويل : له مور وپلار سره نېکي کول .ومې پوښت :چې بيا څه ؟ راته يې وويل : د خداى په لارکې جهاد کول .( الخصال ١\ ١٦٣)

ðعلي! مور و پلار ته په مينه، قرآن او کعبې ته کتل عبادت دي. (وسايل ٦\٢٠٥)

ðدرې ګناهونه د چټک عذاب لامل دي،چې عذاب يې بېخي نه ځنډېږي : عاقول،پر خلکو تېرى او د نېکۍ ناشکري (ښه هېرونه ) . (الامالي للطوسي :١٣مخ )

ðګناهونه نعمتونه اړوي .کينه د پښېمانۍ لاملېږي . وژنه خپګان راولي . ظلم پردې څيري .شرابخوري روزي کموي .زنا پوپنا کېدنه او نابودي ګړندۍ کوي . سخت زړي او زړه سوى نه کول، د دعا د منل کېدو مخه نيسي . عاقول عمر لنډوي او لمونح نه کول د خوارۍ لاملېږي . (مستدرک الوسايل ١٢\ ٣٣٤)

ðد خداى رضا د مور و پلار په خوښۍ او غوسه يې د هغوى په غوسه کې نغښتل شوې ده .( مستدرک الوسايل ١٥\ ١٧٤)

ðيو سړى رسول اکرم ته راغى او د مور و پلار د نېکۍ په اړه يې وپوښت :حضرت ورته درې وارې وويل : له مورسره دې نېکي وکړه او درې ځل يې وويل :له پلار سره دې هم نېکي وکړه (او له موره يې پيل کړه ) . ( مشکاة الانوار : ١٥٩)

ðد خداى په لار کې ډېر غوره لګښت پر موروپلار لګول دي. (مستدرک الوسايل ١٥\٢٠٤)

ðله مور و پلار سره ښه کول او زړه سوى د قيامت حساب اسانوي . (تفسيرالعياشي ٢\ ٢٠٨)

ðله خداى سره شرک کول،(د مور و پلار) عاقېدل او دروغ ستر ګناهونه دي .( ارشادالقلوب ١\ ١٨٥)

ðله خلکو سره ښه چلن کول،له کړاو ځپليو سره ملګري،له مور و پلار سره مينه کول او تر لاس لاندې سره احسان کول، هغه ځانګړنې دي،چې که څوک يې ولري؛نو د قيامت پر ورځ به يې خداى د خپل رحمت تر سيوري لاندې راولي او جنت ته به يې ننباسي.( بحارالانوار  ٦٦\٣٨٦)

ðيو سړى رسول اکرم ته راغى او و يې پوښت : مړو شويو مور و پلار ته څه خېر ښېګڼه رسي؟ ورته يې وويل: هو! پر هغوى درود ويل (ورته لمونځونه کول) بښنه ورته غوښتل پر ژمنو يې وفا کول،د دوستانو يې عزت کول او زړه سوى . (مستدرک الوسايل ٢\ ١١٤)

ðيوسړى رسول اکرم ته راغى او و يې پوښته : تکړه ځوان يم او د خداى په لارکې مې جهاد خوښېږي؛خو مور مې نه پرېږدي . پېغمبر اکرم ورته وويل :مور ته دې ولاړشه . پر هغه قسم ،چې زه يې پېغمبر کړى يم، له تا سره دې د مور يو شپه مينه،د خداى په لار کې تر يوه کال جهاد غوره ده . ( الکافي ٢\ ١٦٣)

ð مور و پلار ته په مينه کتل  عبادت دى .( تحف العقول : ٤٦)

ð خداى  له خپل مور و پلارسره د نېکۍ کوونکيو عمر زياتوي . ( کنز ١٦/٤٦٥)

ð څوک چې د خپلې مور تندى ښکل کړي (؛نو) ځان به يې له اوره ژغورلى وي . ( کنز ١٦/٤٦٢ )

ð  له مور و پلارسره د ښه چلن او نېکۍ له امله،خداى د انسان عمر زياتوي .( ابن منيع- ابن عدى )

ð د مور و پلار تر مړينې وروسته ورته د بښنې دعاوکړئ،له چاسره يې چې ژمنه کړې وي؛پوره يې کړئ او د خپلوانو عزت يې وکړئ اوحقوق يې ورکړئ . ( ابن حبان )  

ð له خداى سره شرک،د موروپلار ځورونه،ناحقه وژنه او د دروغو شاهدي ستر ګناهونه دي . ( بخاري )

ðخوښ دې هغه وي،چې له موروپلارسره نېکي کوي او خداى يې عمر زياتوي . ( کنز :٤٥٤٨٣ح )  

ðد پالونکي خوښي د مور و پلار په خوښۍ کې نغښتې ده . ( کنز ٤٥٥٥١ح ) 

ðله خپلو پلرونوسره نېکي وکړئ ،چې اولادونه مو درسره نېکي وکړي. ( کنز ١٦/٤٦٦)

ð پر پلار د اولاد يو حق داهم دى،چې ښه نوم پرې کېږدي اوښه يې وروزي .(بيهقي)

ðد قيامت پر ورځ هغه د نېکانو ښاغلى دى،چې له خپل موروپلار سره تر مړينې وروسته نېکي وکړي . ( سفينة  البحار/٢ /٦٨٧)

ðو مې ليدل،چې د جنت پر “وره” ليکل شوي وو،چې : ته پر هر بخيل ، رياکار،عاق او چغلګرحرام يې. (جامع الاخبار: ٩٨ مخ )

ðچاچې خپل مور و پلار خپه کړل؛نو سر غړونه يې ترې کړې ده . (بحارالانوار٧٧/٥٨)

ðخداى دې پر هغه موروپلار ورحمېږي،چې خپل اولادونه هڅوي ، چې ورسره  مرسته وکړي . (جامع الاخبار: ٩٨ مخ )

ðپر هغه موروپلار دې د خداى لعنت وي،چې خپل اولادونه هڅوي ، چې سرغړونه  ترې وکړي .(جامع الاخبار: ٩٨ مخ )

 ðخداى د هغه عمر زياتوي،چې له خپل موروپلار سره نېکي کوي . (روضة  الواعظين: ٣٦٨ مخ )                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         

ðپه مينه  موروپلارته کتل عبادت دى .(تحف العقول : مواعظ النبي)

ð د خداى پوره خوشحالي د مور و پلارپه خوشحالۍ کې او غوسه يې د هغوى په خپګان کې ده . (جامع الاخبار: ٩٨ مخ )

ðيوسړي رسول اکرم  ته وويل : له چا سره نېکي وکړم ؟ ورته يې وويل : له خپلې مورسره دې . بيا له چاسره ؟ورته يې وويل:له خپلې مورسره.بيا له چاسره.ورته يې وويل : له خپلې مورسره،(څلورم ځل يې) وپوښتل چې له چاسره نېکي وکړم؟  ورته يې وويل : له خپل پلار سره . ( جامع الاخبار ٩٨ مخ )

ðرسول اکرم (ص ) له مورسره پرنېکۍ کولو درې ځل سپارښتنه کړې او له پلارسره يو ځل . ( جامع الاخبار:٩٨ مخ )

ðيوسړي له رسول اکرم (ص) وپوښتل،چې پر اولاد دپلارڅه حق دى ؟ ورته يې وويل : په نامه دې يې نه يادوي . مخکې دې ترې نه ځي او نه دې ترې مخکې کېني او ورته دې د کنځلولامل نشي [له خلکوسره دې داسې چلن و نه کړي،چې پلار ته يې کنځلې وکړي] (اصول کافي ٣ټوک – باب البر باالوالدين ، ٥  او٩  احاديث  )

ðپر پلار د اولاد درې حقه دي :(١)ښه نوم دې پرې کېږدي. (٢)  لوست دې ورته وښيي. (٣) چې بالغ شو؛نوښځه دې ورته وکړي  (روضة  الواعظين : ٣٦٩ مخ )

ðاولاد چې د مور و پلار حقوق پوره نه کړي؛نو ترې عاقېږي،دغسې که هغوى هم د صالح اولاد حقوق  پوره نه کړي؛نو له اولاده عاقېږي . (خصال صدوق : باب الاثنين -٦٧ – حديث .)

 

 

 پوښتنه

ðله خلکو سره دوستي او مينه کول نيم عقل دى .ښه پوښتل نيم علم دى اوپه لګښت کې منځلاري نيم ژوند دى . (بحارالانوار : \٢٢٤)

ðعلم خزانې لري،چې پوښتنه کول يې کونجي ده ؛نو وپوښتئ ،چې خداى درباندې ولورېږي؛ځکه په پوښتنه څلور تنه د ثواب خاوندانېږي:  پوښتونکى ،ښوونکى اورېدونکى او د دوی مينوال .(صحيفة الرضا : ٤٢مخ )

ð ښه پوښتنه،نيم علم دى . ( تحف : مخ ٥٦ )

ð د علم په زده کړه کې د پوښتنې د اهميت په اړه وايي:((که پوښتنه نه واى ( ؛نو) پوهه له منځه تله.)) (المعجم : ٢\ ٣٨٢)

 

طبابت

ðايا داسې دعا دروښيم ،چې جبرائیل راښوولې ده،چې طبيب او درملو ته مو اړتيا پيدا نشي؟ اصحابو وويل : هو رسول الله ! آنحضرت وويل : د باران اوبه راواخلئ او ورباندې ((فاتحة الکتاب= د حمد سورت))،قل اعوذ برب الناس او بيا اويا ځل تسبيح د(سبحان الله) ووايئ او بيا له دې اوبو پرله پسې اوه ورځې هرګهيځ اوماښام وڅښئ . ( بحارالانوار : ٥٩ \٢٦٩)

 

پستي

ðعلي! له کوز فطرۍ لرې وسه؛ځکه دا کار کفر دى او د کفر پايله دوزخ دى او نېکي،د راز ساتنه او ستريا خپله کړه؛ځکه دا درې چارې ګناهونه داسې اوبه کوي؛لکه لمر،چې واوره اوبه کوي . خداى تعالى وايي : زه “الله” يم،چې بې له ما بل خداى او معبود نشته، پر عزت او جلال مې قسم،چې کوز فطرته جنت ته نه ننباسم .( الجعفريات : ١٥١)

ðمؤمن اسان نيوونى او عزتمن دى او منافق محتاط او کوز فطرته دى . ( وسايل : ١٢\ ١٨)

 

پښېماني

ðد  قيامت د ورځې پښېماني ډېره ناوړه پښېماني ده . (الکافي ٨\ ٨١)

ðپښېماني توبه ده . ( وسايل١٦\٦٢)

ðظلم د پښېمانى لاملېږي .(مستدرک الوسايل ١٢ \ ١٠٣)

 

پناه وړل

ðباد ته کنځل مه کوئ؛ځکه هغه زېرى ورکوونکى، ګواښنګرى او بلاربوونکى دى . له خدايه يې ښه والى وغواړئ او له بديو يې خداى ته پناه يوسئ . ( العياشي تفسير ٢\٢٣٩)

ðله رټل شوي شيطانه خداى ته پناه يوسئ؛ځکه څوک چې خداى ته پناه يوسي،هغه ورته پناه ورکوي؛نو د شيطان له وسوسو او تورونو خداى ته پناه يوسئ . ( دالامام العسکرى تفسير ٥٨٤ مخ )

ðله خدايه له ناوړه ګاونډي پناه غواړم؛ځکه د اوسېدانې په ځاى کې مخامخ یاست او رعایت یې په پام کې نیسې؛نو که تا په ښو وويني بد يې راځې او که په بدو کې دې ووينې؛نو خوشحالېږي . (مشکاة الانوار : ٢١٤مخ )

ðخدايه ! له تا له بېوزلۍ او خپرو ورو چارو پناه غواړم .(الکافي ٤\٤٦٤)

ðخدايه! له تا له هغې ښځې پناه غواړم،چې تر زړښت مخکې مې زوړ کړي .( الکافي ٥\٣٢٦)

 ðخدايه ! له تا له دې څلورو څيزونو پناه غواړم : هغه پوهه،چې ګټوره نه وي .هغه زړه،چې عاجز نه وي .هغه نفس،چې نه مړېږي اوهغه دعا چې نه قبلېږي .(مستدرک الوسايل ٥\٦٩)

 

جامې

ðڅوک چې ځان ښکلولاى شي؛خو د خدا ى لپاره د تواضع له مخې، ښکلا ته شا کړي؛نو خداى به ورته د ستريا جامې واغوندي . ابوذره ! پېړې جامې اغونده؛ځکه چې وياړنه او کبر درکې لار پيدا نه کړي . (وسايل  ٥\ ٥٤)

ðجامې چې اغوندم؛نو وايم : د خداى شکر،چې پر داسې جامو يې پټ کړم،چې په خلکو کې د ښکلا لامل دى . پالونکيه ! دا جامې مې برکتي کړې، چې پکې ستا رضا او د جوماتونو آبادي ولټوم . ( الجعفريات : ٢٢٤)

ðله دنيا خوراک څښاک او سپکې جامې غوره کړه . (مستدرک الوسايل   ١٢\ ٤٨)

ðڅوک چې وياړمنې جامې اغوندي؛نو خداى يې د جهنم تل ته غورځوي او د “قارون” ملګرى کوى يې؛ځکه قارون لومړى تن و ،چې مغرور شو او خداى تعالى هغه او کور يې په ځمکه کې ډوب کړ او څوک چې مغرورشي؛نو د خداى له مطلق ځواک سره به يې په جګړې لاس پورې کړى وي . ( من لا يحضره الفقيه ٤\١٣)

ðڅوک چې وياړمنې جامې واغوندي؛نو بېخي کبرجنېږي او د کبرجن سزا هرومرو جهنم دى .(مستدرک الوسايل ١٢\٣٠ )

  ðڅوک چې په دنيا کې د شهرت جامې واغوندي؛نو خداى په آخرت کې ورته د خوراۍ جامې اغوندي . (رجال الکشى : ٣٩٢)

ðدوه نارينه او دوه ښځې هيڅ حق نه لري،چې بربنډ له يوبل سره راشه درشه ولري او یو ځای وي . ( وسايل ٢\ ٣٤٢)

 

پېغمبران

ðخداى ګرد انبياء او رسولان په بشپړو عقلونو استولي دي او عقلونه يې د خپلو امتونو تر ټولو عقلونو غوره دي . (الکافي ١\ ١٢ )

ðموږ د انبياوو ټولي ته لارښوونه شوې،چې له خلکو سره يې د پوهې هومره خبرې اترې وکړو. ( الکافي ١\ ٢٣)

  ðزموږ د انبياوو د ټولي سترګې بېدېږي؛خو زړونه مو نه او لکه څرنګه، چې خپله مخه ګورو،دغسې خپله شا هم وينو.(بحارالانوار ١١\ ٥٥)

ðموږ د انبياوو ټولي ته؛لکه څنګه چې د فرايضو د ترسره کولو لپاره لارښوونه شوې،دغسې له خلکو سره د ښه چلن لارښوونه هم شوې ده . (بحارالانوار  ٧٢\ ٥٣)

 

تړون،ژمنه او وعده

ðڅوک  چې امانت ساتى نه وي،ايمان نه لري او څوک چې پر وعده وفا نه کوي ( ؛نو) دين نه لري .( النوادر للراوندي : ٥مخ )

ðبېشکه چې خداى له هر څاروي او بوټي زموږ د دوستۍ ژمنه اخستې؛ نو چا چې ومنله سپېڅلى شو او چاچې و نه منله ؛نو تريو او تريخ شو.(وسايل ٢٥\ ١٧٨)

ð وعده يو ډول پور دى (چې بايد پوره يې کړئ) . (طبراني)

ðڅوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځ ايمان لري؛نو بايد پر خپلې وعدې وفا وکړي .( الکافي ٢\٣٦٣)

ðد منافق درې نښې دي : ( ١) په خبرو کې دروغ وايي ( ٢) پر وعده وفا نه کوي (٣) او چې اعتماد پرې کېږي؛نو خيانت کوي . (مستدرک الوسايل ١٤ \١٣)

ðڅوک چې پر خپله ژمنه ولاړ نه وي؛نو بېخي دين نه لري . (النوادر للراوندي :٥)

ðڅوک چې پر خداى او د قيامت پر ورځ ايمان لري؛نوخپله ژمنه دې ترسره کړي . ( الکافي:  ٣٦٤) 

ðوعده يو ډول پور دى (،چې بايد ور يې کړئ) (؛نو) جنت ته نشي تلاى . ( بخاري – مسلم )

ðکه څوک لمونځ کوي،روژه نيسي او خيال کوي،چې مسلمان دى ؛ خو چې درې ځانګړنې ولري؛نو منافق دى : ( ١) په امانت کې خيانت ( ٢) په خبرو کې دروغ ( ٣) او پر وعده وفا نه کول .( الکافي ٢\٢٩٠ )

 

بريا

ðپوه شه،چې بريا له زغم،پراخۍ اوسختۍ سره اغږل شوې ده . (من لا يحضره الفقيه ٤\٤١٢)

ðبريا په پرېکنده هوډ اوپه لر فکرۍ کې نغښتې ده . ( بحار ٧٧/١٦٥)

ð”بريا” تل له “زغم”  سره ده . ( کنز ٣/٢٧٥)

 

سپکاوى

ðپاک خداى وايي :څوک چې زما مؤمن بنده سپک کړي ؛نو له ما سره به يې په دښمنۍ لاس پورې کړى وي .( الکافي ٢\٣٥١)

ðد معراج پر شپه راسره خداى د پردې تر شا خبرې وکړې او راته يې وويل :محمده ! څوک چې د خداى ولي سپک کړي؛نو زه به يې جګړې ته رابللى يم او زه هم ورسره جنګېږم . ( الکافي ٢\ ٣٥٣)

ðڅوک چې مؤمن خوار او سپک کړي ؛نو خداى به يې سپک کړي . (بحارالانوار ٦٦\٣٨٢)

ðزه،خداى او هر پېغمبر،چې دعا يې قبوله شوې،پر دې څلورو تنو لعنت وايو:څوک چې د خداى پر کتاب څه ورزيات کړي.څوک چې د خداى  تقدير  دروغ وګڼي.څوک،چې خدای درندو کړيو دسپکولو هڅه کوي او د خداى سيک کړيو د درنولو لپاره هڅه کوي او څه چې خدای زما اهل بیتو ته حرام کړي،هغه ورته حلالوي .( بحارلانوار ٢٧\ ٢٢٥ )

ðڅوک چې مؤمن سپک کړي او يا ورته د بېوزلۍ او تنګلاسۍ له امله ټيټ وګوري؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ د پله له سره دوزخ ته راوغورځوي .( عيون الرضا ٢\ ٧٠)

ðد چا په مخکې چې څوک يو مؤمن سپک کړي او هغه يې د ملاتړ وس لري او دا کار و نه کړي؛نو خداى به يې د قيامت پر ورځ د ټولو مخلوقاتو په مخ کې خوار کړي . (د نهج البلاغې شرحه ٩\٦٩)

ðيوولس ورځې يې هره ورځ لس کمچنيې واهه؛خو چې په وهلو ونه شوه او پوه شول،چې دا منسب نه مني؛نو لاس يې ترې واخست . امام احمد بن حنبل به،چې هر وخت دا پېښه راپريادوله ؛نو ژړل به يې او هم وګ :سيد مصطفى حسيني دشتي؛معارف ومعاريف،د ابوحنيفه ترنامه لاندې . ( ٢) سالنامه فجر افغانستان .(٣) تاريخ ومحاکمه .

“منصور”،چې څومره قسمونه تکراول؛نو هومره به امام همه ورته تکرارول .دغسې له “اربيع بن يوسف حاجب” څخه روايت دى، چې : “منصور” مې وليد،چې له امام ابوحنيفه سره يې په توندۍ خبرې کولى او ابوحنيفه ويل :”له خدايه ووېرېږه او له هغه پرته پر خپل امانت مه ګوماره. پر خداى قسم،چې زه د خوښۍ په حال کې ځان خوندي نه بولم، غوسه کې خو لا څه .))

 “خطيب بغدادي” په دې اړه روايت کوي چې: د وروستي اموي چارواکي؛ “مروان بن محمد” په واکمنۍ کې د “عراقينو” والي له امام ابوحنيفه (ره) وغوښتل ،چې د کوفې قاضې شه ؛خو ورسره يې ونه منله؛نو بيا يې د استاد او شاګرد ترمنځ علمي مناظرې شوې او دا راښيي،چې په اسلامي فرهنګ کې د استعدادونو ودې ته څومره مخه پرانستې ده او دا موږ ته په ښوونيز ډګر کې څرګنده بېلګه ده.

 امام ابوحنيفه (ره) کله هم د خلافت له غاصبانو سره جوړجاړى نه و کړى. منصور عباسي واکمن،امام ابوحنيفه له کوفې نه بغداد ته راوغوښت او د قضايي چارو د  ورسپارلو وړانديز يې ورته وکړ ؛خو امام ورسره ونه منله . منصور ورته وويل : پرخداى قسم ،چې دا امر به هرومرو منې . امام  ورته وويل :پر خداى قسم ،چې وبه يې نه منم .( ١) حضرت انس بن مالک ( رض) .( ٢) په کوفه کې له عبدالله بن ابى ( رض) سره ( ٣) په مدينه کې له سهل بن سعد ساعدي سره  ( ٤) اوپه مکه کې له ابو طفيل بن ورشه سره ابوحنيفه په فقه کې د اهل حديثو پر خلاف له ځيرتيا کار اخسته او هم يې په فقهي چارو کې عقلي استدلال کاراوه او پردې سربېره،د نبوي کورنۍ له مينوالو څخه و؛نو ځکه په دې لاملونو د هغه زمانې د حديث پوهانو ورسره کينه وه .

د “الامام الاعظم” د مناقبو په کتاب کې د امام ابوحنيفه له خولې ويل شوي دي چې :((محدثان؛ځکه راسره دښمني کوي،چې موږ د اهلبيتو پر فضايلو اعتراف کوو او مينوال يې يو . ))

  امام ابوحنيفه د امام باقر اوامام جعفر صادق له تکړه او ذهينو شاګردانو  څخه و،چې د پوهې په تر لاسه کولو کې يې خورا زيار اېسته .

 

مجاهد فقيه

ðابوحنيفه،نعمان د ثابت زوى،د زوطي لمسى او د ماه کړوسى يا نعمان بن ثابت بن مو زبان (طاووس ) بن هرنو په ٨٠ س په کوفه کې زېږېدلى او په ( ١٥٠ ) س د بغداد  په زندان کې شهيد شوى . ابوحنيفه په کوفي فقيه مشهور و او نيکه (زوطي) يې د کابل  د پروان و،پلار يې (ثابت) حضرت على ( ک) هم ليدلى و او د هغه ځوځات ته يې د خير او برکت دعا کړې وه . امام ابوحنيفه په اصل کې سوداګر و او ورسره يې له علم او پوهې سره ډېره مينه وه.لومړى يې د کلام علم ته مخه کړه او بيا په فقهي زده کړو بوخت شو . امام ابوحنيفه په تابعينو کې شمېرل کېږي او د رسول اکرم (ص) له څلورو تنو اصحابو سره يې ليدلي او روايتونه يې ترې هم کړي دي .

 

علي (ک) ته د پېغمبراکرم سپارښتنې

  ðعلي !  د يقين له آثارو دا دي، چې د چا خوشحالولو ته څښتن له ځانه خپه نه کړې او د چا ستاېنه د هغه نعمت لپاره و نه کړي،چې څښتن دركړې او څوک هغه څه ته و نه رټې،چې خداى  ترې  ژغورلى يې؛ځكه روزي نه د حريصانو حرص راماتوي او نه د چا ناخوښي د انسان روزي پر شا تمبوي . خداى  په خپل حكمت او فضل هوسا او خوشحالي،په يقين او رضا (قضا او قدر) كې اېښې او غم او خپګان يې په شك او نارضايتۍ كې . (تحف العقول)

 ðهېڅ  فقر تر ناپوهۍ ناوړه نه دى . (تحف العقول).

 ðهېڅ  مال تر عقله ګټور نه دى . (تحف العقول)

ðهېڅ  يوازېتوب تر ځان خوښۍ وېروونكى نه دى . (تحف العقول)

ðهېڅ  مرسته تر سلا مشورې غوره نه ده. (تحف العقول)

ðهېڅ  عقل د عاقبت انديشۍ په څېر نه دى . (تحف العقول)

ðهېڅ حسب او نسب د  ورين تندي په څېر  نه دى او هېڅ عبادت د فكر كولو په څېر  نه دى . (تحف العقول)

 ðعلي! د  وينا  آفت  دروغ،د پوهې آفت هېره،د عبادت آفت سستي،د سخاوت آفت منت،د مېړانې آفت تېرى، د ښكلا آفت كبر او ځان خوښي ده او د حسب او نسب آفت  وياړپلورنه يا وياړنه ده. (تحف العقول)

ðعلي ! تل رښتين وسه . هېڅكله  له خولې دروغ  مه راباسه . هېڅكله خيانت مه کوه،له خداى  داسې  وېرېږه،چې ګواكې په سترګو يې وينې. مال او ځان له دينه ځار كړه،ځان پر ښو اخلاقو سمبال او له بديو يې وژغوره. (تحف العقول)

 ðعلي ! درې ځانګړنې څښتن ته خورا ارزښت لري :

1_ د فرضو ترسره كول : د الهي واجباتو ترسره كوونکي تر ټولو ستر عابدان دي .

 2_ګناه نه کول : له ګناه ځان ژغورونکي تر ټولو ستر پرهېزګاران دي.

 3 _قناعت : د څښتن پر وركړه قناعت كوونکي تر ټولو بې نيازه انسانان دي . (تحف العقول)

ðعلي!درې اخلاقه ستايل شوي دي : له هغوى سره تګ راتګ او مړى  ژوندى کول،چې درسره يې پرېښې وي . هغه  ته ورکړه،چې ته يې محروم كړى او هغه څوک بښل،چې تېرى يې درباندې كړى وي . (تحف العقول)

ðعلي !  درې كارونه غوره دي :خلكو ته په خپله انصاف وركول، له ديني ورور سره مساوات او په هر حال كې څښتن يادول . (تحف العقول)

ðعلي ! درې كسان د څښتن مېلمانه دي : هغه چې د څښتن لپاره د مؤمن كتنې ته ځي. هغه چې تر لمانځه وروسته دعا كوي او د بل لمانځه د راتګ په تمه وي او هغه چې د حج او يا عمرې لپاره كعبې ته راځي؛نو  پر څښتن  دي،چې د خپل مېلمه پالنه وكړي او اړتياوې يې پوره كړي. (پورته منبع)

ðعلي!د درېو كارونو اجر هم  په دنيا او هم په اخرت كې وركول كېږي:حج؛ بېوزلي له  منځه  وړي . صدقه  بلا پر شا تمبوي او پيوستون يا زړه سوی عمر زياتوي . (پورته منبع)

ðعلي ! درې ځانګړنې دي،چې که څوك يې ونه لري؛نو يو عمل يې هم نه قبلېږي : تقوا؛چې له ګناه يې وساتي.پوهه او عقل،چې له خلكو سره پرې جوړ جاړى  وكړي . (پورته منبع)

ðعلي! درې كسان د قيامت پر ورځ د څښتن د عرش تر سيوري لاندې  دي :

څه چې ځان ته خوښوي، بل ته يې هم خوښ كړي.

چې د يو كار ترسره كولو ته تر هغه ګام وا نه خلي،څو ورته معلوم شوی نه وي،چې په دې  كار كې د څښتن رضا شته  كه نه.

چې د خلکو هغه نيمګړتياوو ته ګوته و نه نيسي،چې په خپله پکې وي او تل د خپل عيب په سمونې پسې وي او په نورو كې د خبرو رااېستو وخت و نه لري. (پورته منبع)

ðعلي ! درې  څيزه د خير ورونه  دي : سخاوت،پسته  ژبه او په غم كې زغم . (پورته منبع)

 ðعلي !  په تورات كې څلور څيزه له څلورو سره اوږه پر اوږه دي : هغه چې د دنيا حريص وي؛نو څښتن ته به غوسه وي . چاچې له مصيبته ګيله وكړه؛ نو له څښتنه به يې كړې وي او چاچې د شتمن درناوى  د شتمنۍ لپاره وكړ؛نو په درېو كې دوه برخې دين به يې له منځه تللى وي او څوك چې له دې امته دوزخ ته ولاړ؛نو هغه به وي،چې د څښتن پر آيتونو يې ملنډې وهلې وي . (پورته منبع)

او همداسي څلور څيزه  د څلورو څيزونو په څنګ كې راغلي دي:د واک خاوند له مشورې پرته مستبدېږي؛نو پښېمانه به شي . (پورته منبع)

 هر عمل مكافات لري : بېوزلي ستر مرګ دى .پوښتنه وشوه : د درهم او دينار لوږه؟ ويې ويل: نه ! د دين فقر. (پورته منبع)

ð علي ! د قيامت پر ورځ بې له درې سترګو ټولې ژړنې دي : هغه چې څښتن ته ويښې وي . په حرامه نه وي پرانستل شوې او د څښتن له وېرې يې ژړلې وي . (پورته منبع)

 ðعلي ! هغه څومره بختور دى،چې څښتن يې وويني،چې د داسې ګناه لپاره ژاړي،چې بې له څښتنه ترې هېڅ څوك هم نه وي خبر. (پورته منبع)

ðعلي ! درې څيزونه د هلاكت او درې څيزونه د خلاصون لامل دي :هوس، کنجوسي او ځان خوښي،چې لاروي يې وشي  او د خلاصون لاملونه : په هوساېنه او غضب کې عدالت.په بېوزلۍ او شتمنۍ کې منځ لاري. په پټه اوښكاره له څښتنه داسې وېره؛لکه چې وينې يې . (پورته منبع)

 ðعلي! په درېو ځايونو كې دروغ ښه دي : د جګړې په ډګر كې،ښځې ته د ژمنې پر مهال او د خلكو د سمونې لپاره. (پورته منبع)

 ðعلي ! په درېو ځايونو كې رښتيا ښه نه دي : مېړه ته يې د مېرمن د بدو ويلو پر مهال . چغلي او د هغه چا تكذيب ته،چې ښه عمل پر دروغو رانقلوي . (پورته منبع)

ðعلي!څلور چارې سر نه نيسي: په مړه ګېډه خوراک ،په رڼا كې څراغ ، په تروه ځمكه كې كښت او له نا اهل سره احسان . (پورته منبع)

 ðعلي! څلورو كسانو ته تر ټولو مخکې د عمل سزا وركول كېږي :هغه چې د نېكۍ ځواب په بدۍ  وركوي . هغه چې ته ورسره بد نه كوې؛خو تېرى كوي . هغه همژمنى،چې تړون ماتوي او هغه خپلوان،چې ته ورسره په ورين تندي چلېږې او هغه په تريو تندي . (پورته منبع)

 ðعلي ! د  راستۍ، شكر،حيا او ورين تندي د خاوند اسلام پوره دى. (پورته منبع)

 ðعلي ! له خلكو لږه تمه درلودل،نقده بې نيازي او له خلكو ډېره تمه،ذلت او حاضر فقر دى . (پورته منبع)

ðعلي ! روژه ، لمونځ او زكات د مؤمن درې نښې دي. (پورته منبع)

ðمخامخ غوړه مالي، تر شا غيبت او په مصيبت كې شماتت،د ځان ښودنې درې نښې دي . (پورته منبع)

ðتر لاس لانديو سره جبارانه چلن،له پورتني سرغړونه او له ظالمانو سره مرسته،د ظالم درې نښې دي . (پورته منبع)

ðريا كار درې نښې لري :په ډله كې خوښ،ځان ته ځاى كې سست او په هر كار د ډېرې ستاېنې تمه . (پورته منبع)

ðمنافق درې نښې لري: په چارو كې د ناغېړۍ تر پولې سستي، ناغېړي د تباهۍ تر پولې او تباهي د ګناه تر پولې . (پورته منبع)

ðمسافرت عاقل ته غوره نه دى؛خو كه درې موخو ته وي : د معاش لاس راوړو ته،د معاد په چارو كې سمونې ته او حلال خوند ته . (پورته منبع)

 ðعلي ! د نوې مياشت د ليدو پر مهال درې ځل ” الله اكبر ” ووايه او بيا ووايه : شكر د هغه څښتن چې زه او ته يې پېدا كړو او ستا د وهلو لپاره يې منزلونه وټاكل او نړيوالو ته يې د خپل عظمت او قدرت نښې كړې. (پورته منبع)

ðعلي! ځان چې په هېنداره كې ګورې؛نو درې ځل تكبير ووايه او بيا دا دعا ووايه:خدايه!لكه هماغسې،چې دې ښكلې څېره راكړې، ښكلى سيرت او خوى هم راكړه. (پورته منبع)

 ðعلي ! له سخت كار سره،چې مخ شوې ؛نو ووايه : خدايه ! د محمد او آل  په پار  يې اسان كړې . علي وايي: پېغمبر اکرم  مې وپوښته : هغه خبرې څه وې،چې پالونکي آدم ته ور و ښودې (بقره-37) ؟ راته يې وويل:علي ! په رښتيا چې څښتن آدم په “هندوستان” او “حوا” په “جده” كې راكوزه كړه او هغه په “اصفهان” كې و او ابليس د “ميسان” په سيمه كې . په جنت كې هم تر “مار” او “تاووس” غوره څه نه  وو؛ مار د څاروي په څېر څلور بول و،چې شيطان پکې ورننووت او آدم يې تېرايست؛څښتن هم پر “مار” پر قهر شو او پښې يې ترې واخستې او ورته يې وويل:”ستا خواړه مې خاورې كړې او په ګېډه به ګرځې او پر هغه به څښتن و نه رحمېږي،چې پر تا ورحمېږي او “تاووس” ته ددې لپاره پر قهر شو،چې “ابليس” ته يې د هغې ونې لار ښوولې وه ؛نو د”تاووس” پښې او غږ يې خراب كړ. آدم سل كاله په “هند” كې و او تل يې ژړل . څښتن،جبرئيل ورولېږه او ورته يې وويل: آدمه ! لوى څښتن درباندې تر سلامونو وروسته وايي: آدمه ! مګر په خپلو لاسونو مې جوړ نه کړې ؟ خپل روح مې در پو نه کړ؟ خپلې پرښتې مې درته سجده نه کړې؟ آيا  حوا مې ستا مېرمنه نه کړه؟ آيا ته مې په جنت كې مېشت نه کړې؟ آدمه !دا دومره ژړا ګانې د څه دي ؟ دا ټكي پر خوله راوله،چې خداى دې  وبښي:ووايه چې پاك يې ته،بې له تا  بل د عبادت وړ نه دى،بد مې كړي او پر ځان مې تېرى كړى، توبه مې ومنه،چې ډېر توبه منونكى او لورين يې . (پورته منبع)

ðعلي! كه په خپل سامان كې دې مار وليد؛نو مه  يې وژنه،چې درې ځل ورننوځي او كه په څلورم ځل ورننووت؛نو و يې وژنه،چې كافر دى. (پورته منبع)

 ðعلي ! كه د لارې پر سر دې  مار وليد ؛نو  و يې  وژنه؛ځكه له پېري سره مې  تړون كړى،چې د مار په بڼه راښكاره نشي. (پورته منبع)

 ðعلي! بدمرغي څلور ځانګړنې لري:پوچې سترګې، دروند  زړه ، اوږدې هيلې او له دنيا سره مينه. (پورته منبع)

ðعلي ! مخامخ چې دې  ستاېنه وشوه ؛ نو ووايه : خدايه ! ما تر دې غوره كړې؛ لكه څنګه چې دوى زما په باب فكر كوي . هغه ګناهونه مې وبښې،چې دوى ترې خبر نه دي او ما د دوى په خبرو و نه نيسي. (پورته منبع)

ðعلي! د كوروالي پر مهال ووايه : خدايه موږ او اولاد مو له شيطانه وساتې او که څښتن اولاد دركړ؛نو تر  پايه به له شيطانه په امان كې وي . (پورته منبع)

ðعلي! بدن د زيتونو په تيلو غوړوه،چې 40 شپې به له شيطانه خوندي يې.

 ðعلي ! د مياشتې په سر او نيمايي كې كوروالى مه کوه؛ پخپله ګورې،چې ډېرى په دې شپو کې پر مېرګيو اخته کېږي . (پورته منبع)

 ðعلي!چې څښتن اولاد دركړ؛ نو په ښي غوږ كې يې اذان او په کيڼ غوږ كې يې اقامه ووايه،چې شيطان هېڅكله تاوان ور و نه رسوي. (پورته منبع)

 ðعلي! غواړې تر ټولو ناوړه خلك دروښيم ؟ ورته مې وويل:هو ! را ته يې وويل :څوك چې ګناه نه بښي او د خلكو له تېر وتنو نه  تېريږي.آيا غواړې تر دوى هم ناوړه دروښيم؟ ورته مې وويل : هو !  و يې ويل : هغه چې نه يې خلك له شره خوندي وي او نه يې د خېر په تمه وي . (پورته منبع)

ðحمام ته لغړ مه ننوځه،چې لعنت پرې ويل شوى او هم يې پر ورکتونکي. (پورته منبع)

ðګوتمه پر كټه او منځنۍ ګوته مه په ګوته كوه،چې د “لوط” د قوم  دود دى؛خو کچه ګوته مه بې ګوتې کوه. (پورته منبع)

ðڅښتن خوښېږي،چې بنده يې ووايي : خدايه ! ګناوې مې و بښې،چې بې له تا بل بښونكى نشته؛نو د څښتن له لوري خطاب راځي : زما پرښتو!بنده مې پوه شوى،چې بې له ما بل بښونکى نشته؛نو  ګواه وسىء، چې ګناوې مې وروبښلې. (پورته منبع)

ðګوره چې دروغ  و نه وايې؛ځکه دروغ  د مختورۍ او رښتيا د مخروڼۍ لامل  دي؛ رښتيا مبارك او دروغ  شوم دي . (پورته منبع)

ðله غيبت او چغلۍ ځان وساتئ؛غيبت روژه ماتوي او چغلي د قبر د عذاب لامل دى . (پورته منبع)

ðله اړتيا پرته پر څښتن قسم مه خوره او په رښتيا يا په دروغو د څښتن پر نوم قسم مه خوره؛ځكه څښتن پر هغه نه رحمېږي،چې پر نوم  يې قسم خوري . (پورته منبع)

ðد روزۍ غم مه  خوره،د هرې سبا روزي به راورسي . (پورته منبع)

ðله ځېل تېښته کوه،چې  پېل يې ناپوهي او پاى يې پښېماني ده. (پورته منبع)

ðمسواك وهل مه هېروه،چې د خولې د پاكۍ،د څښتن  د رضا او د سترګو د روښانۍ لامل دى . (پورته منبع)

 ðخلال كول د پرښتو مينه راماتوي . هغوى چې تر خوړو وروسته خلال نه کوي؛ نو د خو لې بوى يې  پرښتې خپه كوي . (پورته منبع)

ðغوسه مه کوه او چې غوسه شوې؛نو کېنه او له ځان سره سوچ  وكړه،سره له دې،چې څښتن پر بندګانو واک لري؛خو ورسره حلم كوي او په تېروتنو يې نه نيسي . (پورته منبع)

ðهغه چې ځان ته لګوې؛نو د څښتن لپاره يې ولګوه ه؛نو له څښتن سره به يې ومومې. (پورته منبع)

ðله كورنۍ،ګاونډيانو او ټولو سره پر ورين تندي چلن كوه،چې د څښتن په نزد لوړو درجو ته ورسې . (پورته منبع)

ðهغه چې ځان ته يې نه خوښوې؛نورو ته يې هم مه خوښوه.هغه چې ځان ته غواړې؛نورو ته يې هم غواړه، چې عادل شئ او پر اسمانوالو او ځمكنيو ګران شئ . (پورته منبع)

 

 حكمتونه

په يوه اوږد حديث كې راغلي دي : مشهور راهب “شمعون بن لاوي بن يهودا”(نېکه يې د حضرت عيسى (ع) له حواريونو و )،پېغمبر اکرم ته راغى او پوښتنې يې وكړې،چې د ټولو ځواب يې واورېد،ايمان  يې راووړ او د پېغمبر اکرم رسالت يې تصديق كړ.ددې حديث  يوه برخه :

شمعون وويل : عقل څه دى؟ څرنګه دى ؟ څه چې ترې راولاړېږي او څه چې ترې نه راولاړېږي ؟ او ډولونه يې بيان كړئ ؟

پېغمبر اکرم ورته وويل : عقل د ناپوهۍ عقال (زنګونبند) دى،چې د اوښ له زنګونبند سره تشبيه شوى دى.نفس هماغه تر ټولو چټل ځناور دى ،كه زنګونبند ور وا نه چول شي؛ نو خپلسرى به شي . څښتن عقل پېدا كړ او حكم يې ورته وكړ:راشه . راغى . بيا يې ورته حكم وكړ : ولاړ شه  او عقل ولاړ . څښتن وويل : پر عزت او جلال مې قسم،چې تر تا  مې  مطيع او ستر مخلوق نه دى پېدا كړى . بيا له عقله،حلم راولاړ شو،(ورپسې ) له حلمه،علم او له علمه وده، له ودې عفاف (عفت نفس)،له عفافه،ځان ژغورنه او له ځان ژغورنې، حيا، له حيا وقار او له وقاره پر خېر ټينګار او له شره كركه او د ناصح لاروي را ولاړشوي . دا لس عنوانه (چې له عقله راولاړ شوي) له هر يوه لس نور هم راولاړېږي .

 

د حلم آثار او څانګې

1- ښايسته چلن 2_له نېکانو سره ناسته 3_ له پستۍ سرغړونه4_ ذلت ته غاړه نه اېښوول 5_له نېكۍ سره مينه 6_لوړو درجو ته ورنږدېدل 7_ګذشت يا تېرېدنه 8_ ګوزاره 9_احسان 10_ چوپتيا .

دا هغه ځانګړنې دي ،چې عاقل يې  د حلم له لارې لاس ته راړي .

 

د علم څانګې

1_په نېستۍ كې بسياېنه2_په بخل كې بښنه ( كېداى شي انسان طبعاً بخيل وي؛خو د علم له مخې سخاوت وكړي) 3_ په خوارۍ كې پرتم ( د علم وقار به ورسره وي،سره له دې د خلكو سترګه به ترې نه سوځي) 4_ په ناروغۍ كې روغتيا 5_ په لرې كې نږدې 6_ په سماجت كې حيا 7_ په ټيټوالي كې رفعت يا لوړوالى 8_ په ټيټال كې شرف 9- حكمت 10_ ګټه او مقام .

 دا هغه ګټې دي،چې عاقل يې د علم له لارې لاس ته راوړي  او څومره بختور دى هغه ،چې  هوښيار وي او هم پوه.

 

د ودې څانګې

1_زغم 2_ هدايت يا لارښوونه3_ نېك چلن 4_ تقوا 5_ منال 6_ تعادل 7_ منځ لاري 8- ثواب 9_ كرم 10_ د څښتن د دين پېژندل .

دا هغه ګټې دي ،چې د ودې له لارې د عاقل لاس ته راځي او څومره بختور دى هغه ،چې له روښانې لارې لاس نه اخلي .

 

د عفاف څانګې

1_څه چې لري،ورباندې راضي وي 2_ ځان وړوكى ګڼل 3_ ګټه 4_ هوساېنه5_ تر لاس لاندې سره  زړه سوی6-  ځان ټيټ شمېرل 7_ يادونه 8_ فكر 9_ بښنه 10_ سخاوت .

 

د مړه خواينې يا  ځان ساتنې څانګې

1_ صلاح 2 _ تواضع 3_ تقوا 4_توبه 5_فهم  6_ ادب 7_ احسان 8_مينه ناكېدل 9-خېر رسول 10_ له شره ځان ساتل .

 

د حيا څانګې

1_نرمي 2_لورنې 3 او 4_ په پټه او ښكاره دواړو كې څښتن ته پام 5_ روغتيا 6_ له شره ګوښه كېدل 7_روڼ مخي يا د ورين تندي درلودل 8_ پراخ لاسي 9_ برى 10_ نېکنومي يا د ښه نوم درلودل .

 

 

د وقار څانګې

1-پېرزوېنه 2_دورانديشي (لرليد) يا د پراخ فکر درلودل3_ امانت ساتنه 4_ خيانت نه کول5_ رښتيا ويل 6_ پاكلمني 7_د مال اصلاح 8- له دښمن سره مقابلې ته چمتوالى 9_ له بديو منع 10_ د بې عقله كارونو پرېښوول .

 

پر خير د ټينګار څانګې

1_ د بدو چارو پرېښوول 2_ له حماقته لرېوالى3_له ګناه لاس اخستل 4_ يقين 5_ له خلاصون سره علاقه6_ د رحمان څښتن لاروي 7_ د دليل او برهان درناوى8_ له شيطانه لرېوالى 9_د عدل منل 10_ حق ويل .

 

له شره د كركې څانګې

1_وقار 2_صبر 3_ په كړنلار كې زغم 4_ د هدايت يا لارښوونې دوام 5_ پر څښتن ايمان  6_ د خلكو درناوى  7_ اخلاص 8_ د بې ځايه چارو پرېښوول 9_نصرت 10_پر ګټورو چارو لاس پورې كول .

 

د ناصحانو د لاروۍ څانګې

1_ د عقل ډېروالى 2_د عقل تكامل يا بشپړتيا 3_ ښه پاى 4_ له ملامتيا خلاصون 5_ منل 6_دوستي 7-ورين تندى 8_په چارو كې مخكښي 9_انصاف 10_ د څښتنه د لاروۍ ځواک .

 

د ناپوهه نښې

شمعون وويل : د ناپوهه نښې هم راته ووايئ .

پېغمبر اکرم ورته وويل : که ورسره ملګرى شى؛نو و به دې كړوي . كه ترې ځان راټول كړې؛كنځلې به درته وكړي . كه څه درسره وکړي؛نو د كړنو منت به درباندې كوي او كه څه وركړې؛نو نامننه كوي . كه راز ورته ووايې؛رابرسېروي يې او كه راز درته ووايي؛نو  پر رابرسېرنې به دې تورن كړي . كه كوم ځاى ته ورسي؛نو ځان ترې وركېږي.كه بينوا شي؛ نو د څښتن له نعمتونو انكار كوي او د ګناه پروا نه کوي . په ښادۍ كې پړي شلوي،په غم كې نهيلېږي .خندا يې پر کټ کټ وي او ژړا يې پر سورو. پر نېكانو ملنډې وهي . څښتن پرې ګران نه وي او په پام كې يې نه نيسي،له څښتنه حيا نه کوي او نه يې رايادوي . كه و يې ستايې؛نو درنه خوشحاله وي او له دروغو به درته فضايل جوړ كړي .كه خپه دې كړ؛نو ټولې نېكۍ به دې ورسره په سيند لاهو وي او څه چې يې پر خوله راځي، درته يې وايي .

 

د اسلام نښې

وويې ويل : د اسلام نښې را ته ووايئ .

 رسول اکرم وويل : ايمان ،علم او عمل .

و يې پو ښت : د ايمان ،علم او عمل نښې راته ووايه .

 

ايمان  نښې

پېغمبر اکرم وويل : ايمان  څلور نښې لري : د څښتن پر يو والي اقرار. پر څښتن،كتابونو او پېغمبرانو يې د زړه له كومې اعتقاد يا ګروهنه .

 

 د علم نښې

علم څلور نښې لري : پر څښتن علم ،د پر دوستان علم ،پر الهي واجباتو علم او ورته پام  او څرنګه ،چې پكار وي، هماغسې تر سره شي .

عمل دادى : لمونځ ،روژه ،زكات او اخلاص .

 ويې پوښت : رښتين، مؤمن، د پراخې سينې خاوند، توبه ګار ، شكر اېستونكي ، خاشع، صالح، ناصح، باوري، خلص، زاهد، نېک، پرهېزګار، د متكلف،ظالم،رياكار، منافق،حسود،اسراف كوونكي، غافل ،خاين ،تمبل ، دروغجن او فاسق نښې څه دي ؟

 

د رښتين نښې

پېغمبر اکرم وويل : رښتين څلور نښې لري :خبره يې له واقعيت سره سمون خوري . د څښتن زيرى او ژمنه تصديقوي . پر ژمنه ولاړ وي او تړون نه ماتوي .

 

د مؤمن نښې

د مؤمن نښې : لورنه،فهم او حيا.

 

د پراخې سينې خاوند نښې

د پراخې سينې خاوند څلور نښې دي : په سختيو كې زغم ،د نېكو چارو هوډ،خاکساري او صبر .

 

د توبه ګار نښې

توبه ګار څلور نښې لري : يوازې څښتن ته كار كوي. باطل ته شا اړول. له حقه لاس نه اخستل او د خير په چارو كې بيړه او حرص.

د شكر كوونكي نښې

شكر كوونكى څلور نښې لري : په نعمت كې شكر،په غم كې صبر ، پر قسمت قناعت او بې له څښتنه د بل ستاېنه نه کوي.

 

د خاشع نښـې

خاشع څلور نښې لري : په پټه او ښكاره دواړو كې څښتن ته پام، نېك كارونه کوي او له څښتن سره  د زړه خبرې كول .

 

د صالح نښې

صالح هم څلور نښې لري : پاك زړه ، د عمل سمونه ،سم كسب او خپل ټول كارونه اصلاح ساتي .

 

د ناصح نښې

ناصح څلور نښې لري : قضاوت يې پر حقه وي او مخكې له دې،چې حق ترې وغوښتل شي،حق حقدار ته وركوي . څه چې ځان ته غواړي، نورو ته يې هم غواړي او پر هېچا تېرى نه کوي .

 

د يقين لرونکي نښې

يقين لرونکي شپږ نښې لري : د څښتن پر وجود يقين وكړي او پرې ايمان راوړي . يقين ولري،چې مرګ حق دى او ترې ووېرېږي . يقين ولري،چې قيامت حق دى او د هغه ورځ له رسوايۍ وډار شي. يقين ولري،چې جنت حق دى او ورته پر تمه وي .يقين ولري،چې دوزخ حق دى او ترې د خلاصون لپاره څرګند كارونه وكړي او يقين ولري، چې حساب حق دى او له ځان سره حساب وكړي .

 

د مخلص نښې

مخلص څلور نښې لري : زړه يې روغ رمټ وي (د شرك ،كفر،كينې او….له ناپاكيو پاك وي ) غړي يې روغ وي (بې ازاره وي او ګناه يې پرېښې وي ) خير رسول او شر نه رسول .

 

د زاهد نښې

زاهد لس نښې لري : حرام يې ښه نه ايسي . له شهوته ځان ساتي . واجبات تر سره كوي.كه مريى وي؛نو  لاروي كوي او كه بادار وي؛نو ظالم نه وي . په زړه كې يې كينه نه وي .چاچې ورسره بدي كړي وي، دى ورسره ښه كوي . چا ته يې چې تاوان رسولى وي، ګټه ور رسوي او له ظالمه تېر شي او څښتن ته تواضع وكړي .

 

د نېک انسان نښې

 نېك انسان لس نښې لري : دوستي،دښمني، بېلتون،خوشحالي، عمل، رغبت،وېره ،پاكي ،اخلاص  او حيا يې د څښتن لپاره وي .

 

د تقوا لرونکي نښې

 ساهو او تقوا لرونكى شپږ نښې لري : له څښتنه ووېرېږي .د څښتن له نيوكې ووېرېږي . شپه و ورځ داسې سبا كوي؛لکه څښتن پر سترګو ويني . دنيا ورته ارزښت و نه لري او د ورين تندي له امله د دنيا څه هم ورته ستر نه وي .

 

د متکلف نښې

متكلف څلور نښې لري : په خوشې او بې ګټو خبرو خوله خوځوي . له  خپل ځانه له پورته سره په شخړه كې وي . د هغه څه تمه لري،چې هېڅكله به نه ور رسي او خپل وخت پر هغه څيزونو تېروي،چې ورته ګټه نه لري .

 

د ظالم نښې

ظالم څلور نښې لري : پر مافوق د نافرمانۍ له لارې ظلم كوي . تر لاس لاندې ځوروي .د حق دښمن دى او پر ښكاره تېرې كوي .

 

د رياکار نښې

رياكار څلور نښې لري : د خلكو په مخ كې په الهي كار كې بيړه او په خلوت كې لټي . په ټولو چارو كې تمه لري،چې خلك يې وستايي او ټولې چارې يې نامه ګټنې ته وي .

 

د منافق نښې

منافق څلور نښې لري : باطن يې فاجر٫،ژبه يې له زړه ،وينا يې له كړو او باطن يې له ظاهر سره سمون نه خوري.

 

د کينه کښ نښې

کينه کښ(حسود) څلور نښې لري : د هغه چا غيبت  كوي،چې دى ورسره حسد كوي . غوړه مالي،په مصيبت كې شماتت (څلورم كېداى شي د راوي له قلمه غورځېدلاى وي )

 

د اسراف کوونکي نښې

اسراف كوونكى څلور نښې لري: پر باطل وياړنه،د هغه څه خوړل،چې په لاس كې يې نه وي .د خېر له چارو سره مينه نه لري او پر هغو چارو نيوكې كوي،چې ګټه يې پکې نه وي .

 

د غافل نښې

غافل څلور نښې لري : پر زړو ړوند، سرګرمي يا بوختياوې ،هېرول او تېروتنه.

 

د لټ نښې

لټ څلور نښې لري : د لټۍ تر پولې په كار كې سستي .د تباهۍ او د كار د خرابېدو تر پولې لټي، د ګناه تر پولې تباهي او ملالت.

 

د دروغجن نښې

دروغجن څلور نښې لري : په خپله رښتيا نه وايي . نور هم رښتين نه بولي.چغلي كوي او تور لګوي .

 

د فاسق نښې

فاسق څلور نښې لري : سرګرمي يا بوختياوې،لغو،دښمني او بهتان (تول لګونه).

 

د خاين نښې

خاين څلور نښې لري : له څښتنه سرغړونه، د ګاونډي ځورول،  له خپلوانو سره كينه او له سرغړونې سره مينه .

شمعون وويل : ما ته دې  شفا  راكړه او له ړندېدو دې وژغورلم اوس راته لارښوونه وکړه .

پېغمبر اکرم ورته وويل : شمعونه ! ته په پيريانو او انسانانو كې دښمنان لرې ،چې در پسې دي او درسره په جګړه كې دي،چې دين درنه پټ كړي.د “انس” له ډلې دښمنان هغه دي،چې په اخرت كې درته ګټه نه لري،د څښتن له ثواب سره علاقه نه لري او ټوله هڅه يې دا وې ،چې پر خلكو نيوكې وكړي  او هېڅكله ځان نه ملامتوي .

 په پېريانوكې دى دښمنان شيطان او لښكرې يې دي . كه د اولاد د مړينې پر مهال د صبر غلا كولو ته درپسې راغى؛نو ورته وايه : البته ژوندي مرګ ته  ژوندي دي، زما د وجود ټوټه جنت ته ځي او زه پر دې كار خوښ يم . او كه درته يې وويل : مال دې له لاسه ولاړ؛نو ورته ووايه : د هغه څښتن شكر،چې را يې كړ او وا يې خست  او زكات يې يووړ او نور د زكات پوروړې نه يم . كه درته يې وويل :خلك پر تا تېرې كوي او ته ورته هېڅ هم نه وايې؛نو  ورته ووايه : د قيامت پر ورځ به ورسره ګورم. كه درته ووايي : نېكۍ دې څومره زياتې دي،چې تا ځان ليدى  كړي؛ نو ورته ووايه : بدۍ مې تر نېكيو ډېرې دي .  كه درته يې وويل: ولې مال دې خلكو ته  وركوې؟ ورته ووايه :هغه چې له خلكو اخلم،ډېر دی .  كه درته يې وويل : څومره ډېر لمونځ كوې .ورته ووايه :تر لمانځه مې غفلتونه ډېر دي .  كه درته يې وويل : خلك درباندې څومره تېرى كوي؟ ورته ووايه : هغوى ډېر زيات دي،چې ما پرې ظلمونه کړي .  كه درته ووايي:څومره د عمل خاوند يې؟ ورته ووايه : ډېرې ګناوې مې كړې دي .

 كه درته ووايي : له دنيا سره مينه نه لرې. ورته ووايه  :پر هغه  چې نو ر غره شوي زما ښه نه راځي.

 شمعونه ! له نېکانو سره ناسته پاسته كوه او د يعقوب، يوسف او داوود په څېر د پېغمبرانو لاروي كوه .

څښتن ،چې لاندېنۍ پوړ پېدا كړ؛ نو پر ځان  ونازېد او ويې  ويل : څه كړاى شي پر ما بر لاس شي ؟ څښتن ځمكه پېدا كړه او بيا  يې هواره كړه،چې ارامه  شوه بيا ځمكې وياړ وكړ او ويې ويل : څه به پر ما بر لاسى شي ؟ څښتن غرونه پېدا كړل او د ميخونو په څېر  يې د ځمكې پر ملا ور وټومبل ،چې ميشته يې  وخو زاول .ځمكه رام شوه او ارامه . بيا غرونو پر ځمكه ځان پورته وګاڼه او غره وويل : څوك به پر ما بر لاسى شي؟خداى اوسپنه پېدا كړه او غرونه يې څېرې كړل . اوسپنې پر غرونو كبر وكړ او ويې ويل : څوك به پر ما برلاسى شي ؟ څښتن اور پېدا كړ ، چې اوسپنه يې ويلې كړه او اوبه يې كړه.اور غره شو او هغه هم وويل : پر ما به څوك برلاسى شي؟ څښتن اوبه پېدا كړې او اور يې پرې مړ كړ. اوبه غره شوې او ويې ويل :څوك به پر ما بر لاسى شي؟ څښتن باد پېدا كړ او د اوبو څپې يې په حركت كړې.باد غره شو  او و يې ويل : څوك به پر ما برلاسى شي ؟ څښتن انسان پېدا  كړ او انسان هم هغسې ځايونه جوړ كړل ،چې نه پرې باد اغېز لري او نه  نور څه . باد رام شو؛خو انسان سرغړونه پيل كړه او ويې ويل: له ما بل ځواکمن څوك دى؟ څښتن مرګ پېدا كړ او انسان يې پرې رام كړ . مرګ ځان ته غره شو. د څښتن له اړخه خطاب راغى : پر ځان مه نازېږه ،چې په دوزخيانو او جنتيانو كې به در نه سر پرې كړم او نور به دې  ژوندى  پرېنږدم.

بيا پېغمبر اکرم  وويل: حلم  پر غضب بر لاسېږي،مينه پر كينه او صدقه پر ګناه. (تحف العقول)

 

د يمن د والي کولو پر مهال

حضرت معاذ بن جبل ته د پېغمبر اکرم (ص)  سپارښتنې

ðمعاذه ! د هغه سيمې خلكو ته قرآن وښيه،پر ښاېسته او نېكو اخلاقو يې وروزه . نېك او بد هر يو په خپل ځاى كې وټاكه ( ښو او بدو ته په يوه سترګه مه ګوره ). د څښتن حكم پرې پلى كړه. د څښتن په كار او مال كې له هېچا مه وېرېږه؛ځكه نه ولايت ستا دى او نه مال (چې هغه په خپله خوښه مصرف كړې)امانتونه يې بېرته وركړه،كه لږ وي او كه ډېر.د مدارا او ګذشت كړنلار له لاسه مه وركوه؛خو  د چا حق تر پښو لاندې نه کړې او هغه ناپوهه دى،چې وايي : د څښتن له حقه تېر شوم.كه په كوم كار كې له نيوكې وېره وي؛نو مخكې له مخكې د هغه كار مصلحت او حكمت خلكو ته بيان كړه.چې بې ځايه نيوكې درباندې نه کوي . د جاهليت ټول دودونه له منځه يوسه،بې له هغوى چې اسلام تاييد كړي وي.  اسلام ټكى ټكى خلكو ته وښيه .خپل ځان ډېر پر لمانځه بوخت كړه،چې د دين د اصولو تر منلو وروسته تر ټولو غوره ركن دى . خلكو ته د څښتن او اخرت يادونه وكړه،د وعظ او نصيحت لاروي كوه،چې د څښتن خوښو كارونو ته لا پسې نور هم غښتلى شى . د اسلامي ښوونو خپرولو ته هرې لورې ته ښوونكى ولېږه . د هغه څښتن عبادت وكړه،چې ورستنېدل دې يې پر لور دي او د څښتن په كار كې د هېچا له رټنې مه وېرېږه . تا ته له څښتن د وېرې ،رښتيا ويلو،پر ژمنه او تړون درېدنه، امانت ساتنه،خيانت نه كول،پسته ژبه ، سلام كول ،د ګاونډي خيال ساتل،پر پلار مړيو زړه سوی،نېک عمل ،د هيلو لنډوالی ،له اخرت سره مينه ،له حسابه وېره،د ايمان لاروي،په قرآن كې تدبر ،غوسه سړې اوبه اړول، او د تواضع  سپارښتنې كوم . ګوره ،چې كوم مسلمان ته كنځلې ونه کړې او د ګناهكار لاروي ونه کړې . له عادل امامه سرغړونه و نه کړې . رښتين مه تكذيبوه. دروغجن مه دروغجنوه او په هر ځاى كې چې يې،څښتن مه هېروه .د هرې پټې او ښكاره ګناه  په خاطر توبه وباسه  معاذه!كه داسې نه واى،چې كاته مو د قيامت له ورځې مخكې واى؛ نو خپل وصيت به مې درته لنډ كړى واى؛خو  داسې  وينم،چې نور به يو بل ونه وينو.معاذه ! ځان پوه كړه ، چې په تاسې كې به تر ټولو هغه پر ما ګران وي،چې هماغسې،چې رانه بېل  شوى وي، را سره وويني. (تحف العقول)

 

د پېغمبر اکرم (ص) غوره ويناوې

ðهر څه شرف لري او د غونډې شرف مخ پر قبل ناسته ده. (تحف العقول)

ðڅوك چې غواړي تر ټولو پر څښتن ګران وي؛نو له څښتن دې ووېرېږي . (تحف العقول)

ðڅوك كه غواړي په خلكو كې تر ټولو پياوړى وي؛نو پر خداى دې توكل كوي . (تحف العقول)

ðڅوك چې غواړي تر ټولو مړه خوا ووسي؛نو څه چې د څښتن په لاس كې دي،د خپلو لاسونو په پرتله دې پرې ډېر اعتماد وکړي . (تحف العقول)

ðبيا پېغمبر اکرم (ص) وويل : آيا غواړئ تر ټولو بد خلك در وښيم؟

ورته وويل شول : هو را و يې ښيه !

هغوى،چې له خلكو بېل اوسي، له خلكو سره مرسته نه کوي او خپل مريى په كوړو (دورو) وهي.

پېغمبر اکرم (ص) وويل : تر دوى نه بد هم در وښيم ؟

ورته وويل شول : هو را و يې ښيه !

 هغوى،چې د نورو له تېروتنو نه تېريږي او د خلكو عذر نه مني.

پېغمبر اکرم (ص)  وويل: تر دوى دوى بد هم در وښيم ؟

ورته وويل شول :  هو را و يې ښيه .

 هغه چې نه يې خلك خير ته په تمه وي او نه يې له شره په امان كې وي .

پېغمبر اکرم وويل : تر دوى بد هم در وښيم ؟

ورته وويل شول : هو را و يې ښيه .

هغه چې له خلكو سره دښمن وي او خلك له هغه سره دښمن. (تحف العقول)

ðحضرت عيسى (ع) د بني اسرايلو په يوه غونډه كې د يوې وينا په ترڅ كې وويل : د يعقوب پرګې!حكميانه خبرې بې عقلو ته مه كوئ ، چې پر خبره ظلم دى؛خو  كه حكميانه خبره مو يې اهل ته ونه کړې؛نو پرهغوى مو ظلم كړى دى . (تحف العقول)

ðخلكو! تاسې د نېكمرغۍ پر لار يو لړ نښې لرئ؛ورته پام وكړي،تاسې يو نهايي موخه لرئ ،ورته ځان ورورسوئ . (تحف العقول)

ðمؤمن تل دوې وېرې لري : له تېر شوي وخته وېره،چې خداى به په هغې كې څه كوي او له راتلونكي ويره ،چې الهي قضا او قدر به پکې څرنګه وي؛نو بنده بايد له خپل وجوده خپل ځان ته ،له دنيا څخه د اخرت لپاره ،له ځوانۍ څخه بوډاتوب ته او له ژونده د مرګ لپاره ګته واخلي.قسم پر هغه څښتن ،چې ژوند مې يې په لاس كې دى،تر مرګ وروسته د بښنې او رضايت غوښتو وخت نه دى او تر دې دنيا وروسته يوازې  دوزخ دى او جنت . (تحف العقول)

 

 

پوهه،ناپوهي او عقل

ðد پوهې زده كړې ته ملا وتړئ،چې زده كړه يې حسنه ،وينا يې تسبيح، څېړنه پکې جهاد،ناپوه ته يې ورښوول صدقه او خپرول يې پر څښتن د ګرانېدو لامل دى؛ځكه پوهه د حلال او حرام  لارښوونكې،زده كوونكي يې جنت ته بوځي ،په يوازېتوب كې مل،په غربت كې ملګرې،په سخته كې لارښونكې،د دښمن پر وړاندې وسله او دوستانو ته سينګار او ښكلا ده. خداى په پوهه قومونو ته ترقي وركوي ،د خېر په چارو كې يې مخكښوي، په چارو كې بركت راځي،د ټولو په سترګو كې وي او ټول خلك به يې تقليد كوي ،پرښتې ورسره دوستي كول غواړي او بله دا چې علم د سترګو رڼا او د زړونو قوت دى .

خداى به عالم د خپلودوستانو په منزل كې مېشت کړي او په اخرت كې به يې د نېكانو ناسته په برخه كړي . (تحف العقول)

ðعلم د خداى د پېژندنې،لاروۍ او عبادت وسيله ده .په علم د څښتن يووالي ته رسېداى شو.له خپلوانو سره نېكي كولاى شو، حلال له حرامو بېلولاى شو او بالاخره علم د د عقل څراغ دى . (تحف العقول)

ðڅښتن نېكمرغو ته پوهه وركوي او بدمرغه به هغه وي،چې څښتن علم نه وي وركړى . (تحف العقول)

ðهوښيار هغه دى،چې ناپوهه ته يې وربښي،له ظالمه تېر شي،تر لاس لاندې کسانو باندې لورين وي،په نېكۍ كې تر چا مخكښ وي،خبرې ته پام كوي او بيا يي له خولې راوباسي،د فتنې پر مهال څښتن ته پناه وړي او خوله او لاس ساتي او چې فضيلت وويني؛ غنيمت يې ګڼي او هېڅكله حيا له لاسه نه وركوي . (تحف العقول)

ðجاهل هغه دى،چې  خپل ملګرى ځوروي،تر لاس لاندې کسانو باندې لورين نه وي،خبرې ته پام نه کوي او له خولې يې راباسي،خبره يې بېځايه او چوپتيا يې غفلت وي او چې فتنه راشي؛نو ځان به پکې ډوب كړي او چې فضيلت راشي؛نو لټ به شي . نه له پخوانۍ ګناه پښيمانه وي او نه په راتلونكې كې له ګناه كولو پروا لري . په نېکو چارو كې لټ وي،چې يې له لاسه وركړي وي،چورت نه خرابوي . (تحف العقول)

 

د پېغمبر اکرم (ص) موعظې

ðولې وينم،چې د دنيا مينه د ځينو پر زړونو برلاسې شوې،چې ګوندې مرګ په دنيا كې نورو ته ليكل شوى او د حق مراعاتول پر نورو واجب شوي دي او د مړو كيسې،چې اوري؛نو ورته تللي مسافر ښكاري،چې يو څو ورځې وروسته به بېرته دې دنيا ته راستانه شي.مړي خاورو ته سپارئ،ميراث يې خورئ،تاسې  ژوندي ياست؛خو له تېرو عبرت نه اخلئ؟ د څښتن د كتاب هره موعظه مو شاته اچولې او هېره كړې مو ده (او داسي د غفلت پر خوب ويده ياست،چې ته وا) د هر بد عاقبت له شره په امان كې ياست .

 له هغه ناوړو پېښو وېرېږئ ،چې  په لار كې دي او څومره بختور دى هغه چې له څښتن وېره يې د خلكو له وېرې وژغوري .  (تحف العقول)

 

بختور

ðڅومره بختور دى هغه چې كسب يې پاك،باطن يې ښايسته او ظاهر او اخلاق يې نېك وي .  (تحف العقول)

ðڅومره بختور دى هغه چې د زيات مال بښنه او د اضافه خبرې ساتنه کوي . (تحف العقول)

ðڅومره بختور دى هغه چې د څښتن پر وړاندې تواضع ولري او بې  له دې،چې زما له سنته سروغړوي،له حلالو  تېر شي او له مباحو خوندونو تېر شي او زما له سنته له سرغړونې پرته  د دنيا له  زر او زېوره سترګې پټې كړي او تر ما وروسته زما د كورنۍ د نېكانو لاروي وكړي او له فقهاوو او حكيمانو سره ناسته پاسته ولري او پر بېوزليو ورلورېږي . (تحف العقول)

ðڅومره بختور دى هغه چې پر حلاله يې وګټي او پر حلاله يې ولګوي او پر مسكينانو رحم او ورته بښنه وكړي او له متكبرانو، وياړپلوريو،پر دنيا له مينانو،زما په دين او په سنت كې له بدعت اېښوونكيو ځان لرې وساتي.

ðڅومره بختور دى هغه ،چې له خلكو سره پر ښه اخلاقو چلن كوي، په ستونزو كې يې لاس نيوى وكړي او خپل شر ترې راواړوي. (تحف العقول)

 

په حجة الوداع كې د پېغمبر اکرم (ص)  خطبه

د څښتن شكر او ستاېنه يې كوم،مرسته ترې غواړم،د بښنې يې غوښتونكى يم،درشل ته يې توبه كوم.له اماره نفس او له ناوړه چارو ترې پناه غواړم .چا تهچې څښتن هدايت او لارښوونه وكړه؛ نو بل به بې لارې نه  کړي او څوک چې د خپلو ناوړه چارو له امله څښتن بې لارى كړ؛نو  لارښوونكې به و نه لري .

د څښتن بندګانو! تاسې ته له خدايه د پروا سپارښتنه كوم او له نه مو لاروۍ ته مو رابلم  او په هغه كې مو ،چې سلا وي له څښتنه پكې برى غواړم . هغه څه چې درته وايم ښه ورته غوږ شئ؛ځكه  نه پوهېږم ،چې بل كال ته به مو دلته په همدې ځاى كې بيا وينم كه نه !

خلكو! لكه هماغسې،چې دا ورځ (حج) او د مکې ښار محترم دى ستاسې وينه او پت هم محترم دى . د بل د وينې او د پت د تويېدو حق تر هغه نه لرئ،څو د څښتن ليدو ته راشئ .

خلكو ! درته مې وويل او خدايه ! ته مې شاهد وسه .

 له چا سره ،چې د چا امانت وي،هغه دې بېرته وركړي . د جاهليت د وخت ټول سودونه له اعتباره غورځوم او تر ټولو لومړى د خپل تره “عباس بن عبدالمطلب” ربا له اعتباره غورځوم . څوك د جاهليت د وخت د وينې غوښتنه نشي كړاى او د هغه وخت لومړى وينه،چې بښم، د خپل د تره د زوى “عامر بن ربيعه بن حارث بن عبدالمطلب” ده.د كعبې د خدمت  کوونې او د حاجيانو له خړوبولو پرته،د جاهليت د وخت نور ټول منسبونه له اعتباره غورځېدلي دي . په لوی لاس قتل قصاص لري او  لوی لاس ته ورته وژنه سل اوښان ديه لري او تردې ډېر غوښتل د جاهليت د وخت دود دى .

 خلكو ! شيطان له دې نهيلى شوى،چې نور يې په دې سيمه كې د څښتن په نامه عبادت وشي او يوازې هيله يې داده ،چې د هغو ګناهونو له امله پر تاسې خپل عبادت وكړي،چې تاسې يې وړې شمېرئ . خلكو ! نسی كفر دى (له خپل وخته بل وخت ته د حرامو مياشتو ځنډول) كافران له دې لارې خپلې بې لارۍ زياتوي . يو كال حرامې مياشتې حراموي او بل كال يې حلالوي ،چې له الهي حرامو مياشتو سره يې تطبيق كړي . ( إِنَّمَا النَّسِيءُ زِيَادَةٌ فِي الْكُفْرِ يُضَلُّ بِهِ الَّذِينَ كَفَرُواْ يُحِلِّونَهُ عَامًا وَيُحَرِّمُونَهُ عَامًا لِّيُوَاطِؤُواْ عِدَّةَ مَا حَرَّمَ اللّهُ فَيُحِلُّواْ مَا حَرَّمَ اللّهُ زُيِّنَ لَهُمْ سُوءُ أَعْمَالِهِمْ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ(توبه _37)= رښتيا خبره همدا ده،چې نسى [= د حرامو مياشتو بېځاى او ځنډول] د (مشركانو) په كفر كې زياتوالى دى،چې کافران پرې بې لارې كېږي،هغه په يو كال كې حلالوي او(بل ) كال يې حراموي،چې د خداى د حرامو شويو مياشتو شمېر پوره كړي او په پايله كې څه چې خداى حرام كړي،(پر ځان) حلا ل كړي،د هغو ناوړه كړه ورته ښايسته كړاى شوي دي او خداى د كافرانو ټولي ته سمه لار نه ښيي .

 څښتن په قران كې وايي : إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ عِندَ اللّهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِي كِتَابِ اللّهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَات وَالأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ فَلاَ تَظْلِمُواْ فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ وَقَاتِلُواْ الْمُشْرِكِينَ كَآفَّةً كَمَا يُقَاتِلُونَكُمْ كَآفَّةً وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ = په حقيقت كې د مياشتو شمېر له هماغه ورځې،چې خداى اسمانونه او ځمكه پيدا كړي،په الهي كتاب كې دولس دي؛څلور مياشتې يې حرامې دي (،چې جنګ جګړه پکې منع ده) دا سم ثابت (الهي) قانون دى؛ نو ځكه په دې مياشتو كې پر ځان ظلم مه کوئ (او له هر ډول وينې تويونې ډډه وكړئ ) او (د جګړى پر وخت) ټول له مشركانو سره وجنګېږئ؛لكه څنګه چې هغوى ټول له تاسې سره جنګېږي او پوه شئ،چې خداى د پرهېزګارانو مل دى. (توبه/36)

چې څلور مياشتى يې حرامى دي : ذوالقعده ،ذوالحجه او محرم پرله پسى او رجب ترې بېله ده .

خلكو! درته مې وويل . خدايه  ته مې شاهد وسه .

خلكو ! ښځې پر تاسې او تاسې پر هغوى حقونه لرئ او هغه دا چې څوك خپلې بسترې ته رانننباسي،پر خپله لمنه داغ و نه لګوي او ستاسې له اجازې پرته څوك كور ته رانننباسي او كه عفت يې له لاسه وركړ؛نو څښتن حق دركړى،چې سختي ورسره وكړئ او په خپله بستره كې ځاى ور نه کړئ (او كه نرمۍ ځواب ور نه کړ؛نو ) و يې وهئ؛خو  نه ډېر دردناك؛نو كه درسره يې ومنله؛نو خوراك او څښاك يې پر تاسې دى؛ښځې له تاسې سره د څښتن امانتونه دي او د قرآن د حكم له مخې ورسره كوروالى درته حلال شوى؛نو د هغوى په هکله له څښتنه ووېرېږئ او ورسره نېكي زما سپارښتنه ده .

خلكو ! مؤمنان سره ورونه دي او د ورور مال بل ته حلال نه دى؛خو د هغه په خپله خوښه .

خدايه ! ته شاهد وسه ،چې خلكو ته مې وويل .

 خلكو! ګورئ چې تر ما وروسته بېرته  پخواني كفر ته ستانه نشئ،سره لاس و ګريوان نشئ او د يو بل وينه تويه نه کړئ . ما تاسې ته يادګار پرېښى دى؛نو كه منګولې مو پرې ولګولې؛ نو هېڅكله به بې لارې نشئ : د  څښتن كتاب او زما كورنۍ.

 خدايه  !  ته شاهد وسه،چې خلكو ته مې وويل .

 خلكو ! ستاسې څښتن يو ،پلار مو يو،ټول د آدم اولاده او له خاورې پېدا شوي ياست.په تاسې كې به هغه پر څښتن ګران وي ،چې تر ټولو يې تقوا ډېره وي .عرب  پر عجم غوراوى نه لري؛ خو چې تقوا يې ډېره  وي .

 خدايه  ! شاهد وسه ،چې خلكو ته مې وويل .

هغوى چې دلته دي؛دا خبرې دې هغو ته وكړي،چې نه دي راغلي . خلكو! څښتن هر وارث ته په ارث کې برخه ټاكلې ده؛وارث ته تر درېمې برخې وصيت كول  نه دي په كار .

 د كورنۍ ماشوم د كور په خاوند پورې اړه لري او د زنا كوونكي  په برخه کې د ډبرو ګوذارونه دي .

هر اولاد،چې له خپل پلاره انكار وكړي او مريي،چې له خپل بادار پرته بل انتخاب كړي؛ نو څښتن،ټولې پرښتې او  ټول خلك به پرې لعنت وايي او څښتن به يې يوه غوښتنه هم نه مني .(تحف العقول)

 

د پېغمبر اکرم (ص)  لنډې خبرې

ðمړينه غوره واعظ،تقوا غوره بې نيازي،عبادت غوره مشغله ، قيامت غوره د ستنېدنې ځاى او څښتن غوره ثواب وركوونكى دى . (تحف العقول)

ðدوه نېكې ځانګړنې دي،چې ترې غوره نشته: پر څښتن ايمان او د څښتن بندګانو ته ګټه  رسول . (تحف العقول)

ðدوه بدې ځانګړنې دي،چې هېڅ  هم ترې بد نشته : شرك او د څښتن د بندګانو ته خېر نه رسول . (تحف العقول)

ðيو سړي رسول اکرم (ص) ته وويل:د څښتن استازيه ! داسې نصيحت راته وكړه،چې خدای مې پرې ګټه را ورسوي . پېغمبر اکرم: مرګ ډېر يادوه،چې د دنيا مينه دې له زړه وباسي،د څښتن شكر كوه،چې نعمت دې زيات كړي او دعا ډېره كوه؛ځكه  د دعا د قبلېدو له وخته خو خبر نه يې.ظلم مه کوه؛ځكه خداى په قرآن كې وايي:خداى هغوى ته برى وركوي ،چې پرې ظلم شوى وي. خلكو ! ستاسې ظلم يوازې ستاسې په تاوان دى.( فَلَمَّا أَنجَاهُمْ إِذَا هُمْ يَبْغُونَ فِي الأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ يَا أَيُّهَا النَّاس إِنَّمَا بَغْيُكُمْ عَلَى أَنفُسِكُم مَّتَاعَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ثُمَّ إِلَينَا مَرْجِعُكُمْ فَنُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ=( نو) چې خداى هغوى وژغوري (؛نو بيا) په ناحقه پر ځمكه سرغړونه كوي. خلكو! دا سرغړونه ستاسې په خپل زيان ده،د دنيا له ژونده خوندونه (اخلئ؛ خو) بيا مو ستنېدل يوازې زموږ لوري ته دي؛نو څه چې تاسې تل كول،له هغو به مو خبركړو .(يونس 23) له مكر او دوكې ځان ژغوره ؛ځكه په قرآن كې راغلي:مكر او ناروا دسيسه يوازې د خاوند په نصيب كېږي. (فاطر43) (تحف العقول)

ðډېر ژر به د واكمنۍ حرص واخلئ؛خو  ډېر ژر به مو د پښېمانۍ لامل شي.واكمني هغه مور ده،چې اولاد ته ښې شېدې وركوي؛ خو  ډېر بد يې له تي غوڅوي. (تحف العقول)

ðهغه قوم،چې خپل واك ښځو ته وركوي؛نو د نېكمرغۍ څېره به و نه ويني. (تحف العقول)

ðوپوښتل شول :كوم ملګرى تر ټولو غوره دى ؟ هغه چې د څښتن د په ياد كې وې،ملګرى دې وي او چې درنه څښتن هير شو در په ياد يې كړي . (تحف العقول)

ðوپوښتل شول : تر ټولو بد خلك كوم دي؟ فاسد عالمان . (تحف العقول)

ðڅښتن مې راته د نهو څيزونو سپارښتنه کړې : اخلاص؛ په پټه او ښكاره . عدالت؛په هوسايۍ او غضب كې.منځ لاري؛ په  فقر او غنا كې . وبښم هغه ،چې پر ما يې ظلم كړى وي. تګ  راتګ له هغه سره، چې ځان يې رانه شلولى وي. د سكوت پر مهال فكر،په وينا كې ذكر او په كتو كې عبرت . (تحف العقول)

ðعلم په ليكلو اېل كړئ . (تحف العقول)

ðپه تېزه تګ د مؤمن وقار له منځه وړي . (تحف العقول)

ðد مال خاوند بې ګناهان کله داسې تورنوي ،چې د هغه جرم تر غله زياتېږي . (تحف العقول)

ðپه ځاى سخي پر څښتن ګران دى . (تحف العقول)

ðچې واكمنان مو نېك سيرته،شتمن مو بښونكي او چار مو په  مشوره وي؛نو  د ځمكى سر درته د ځمكې تر تله غوره وي؛خو چې واكمنان مو بد سيرته ، شتمن مو بخيلان او چارې مو د ښځو په لاس كى وي؛نو د نس خاورې به درته د ځمكې تر سره غوره وي . (تحف العقول)

ðڅوك چې تل دا درې نعمتونه ولري؛نو د دنيا نعمتونه پرې پاى ته رسېدلي دي: روغتيا،د دښمن له شره امان او د يوې شپې ورځې رزق او كه څلورم نعمت؛يعنې ايمان هم ورسره شي؛نو د دنيا او آخرت نعمتونه پرې پاى ته رسېدلي دي . (تحف العقول)

ðپر هغه عزيز،چې اوس ذليل شوى،هغه شتمن،چې اوس بېوزله شوى او هغه عالم،چې په ناپوهو كې راښکېل شوى وي،ورحمېږئ. (تحف العقول)

دوه ځانګړنې ډېرو ته د فتنې لامل دي : روغتيا او بېكاري (يا هوسايي). (تحف العقول)

ðد انسان په خټه كې اغږل شوي،چې هغه يې ښه راځي،چې ورسره نېكي كوي او هغه يې بد ايسي،چې ورسره بدي كوي.   (تحف العقول)

ðموږ پېغمبرانو ته دنده راكړل شوې،چې له هر چا سره د هغه د عقل هومره خبرى وكړو. (تحف العقول)

ðپر هغوى لعنت ويل شوى،چې د خپلو دندو پېټي پر بل وراچوي. (تحف العقول)

ðعبادت اوه برخې لري،چې تر ټولو غوره يې د حلال رزق ګټل دي . (تحف العقول)

ðبنده نه په عبادت كې مجبور او بې اراده دى او نه په ګناه كولو كې. څښتن مغلوب او مقهور دى،څښتن خپل بندګان سرايله نه دي پريښي، پر هر هغه قدرت برلاسى دى،چې بنده ته يې وركړى او په خپله د هر هغه څه خاوند دى،چى بنده ته يې وركړى دى او خداى ته هر څه اسان دي. (تحف العقول)

 ðپېغمبر اکرم د خپل زوى “ابراهيم” په وير كې وويل: (( زه ستا پر مړينه ډېر زيات خپه يم؛خو هېڅكله به داسې څه و نه وايم،چې پالونکى مې پرې رانه خپه شي.)) (تحف العقول)

ðښكلا  په ژبه كې ده. (تحف العقول)

 ð ( د علم د ناشكرۍ او د الهي قهر د راتګ پر مهال ) علم له خلكو نه اخلي؛بلكې عالم ترې اخلي،چې پرې د عالمانو په څېر (عالمان نه وي ) واكمنان شي او معارف او ديني مسايل له هغوى پوښتي او هغوى هم پرې نه پوهېږي؛خو ځواب وركوي،په خپله بې لارې دي او نور هم بې لارې كوي . (تحف العقول)

ðزما د امت تر ټولو ستر جهاد د “مهدي آخرالزمان” راتګ ته تمه ده. (تحف العقول)

ðزما په امت كې تر ټولو هغه بختور دى،چې: د دنيا متاع  يې لږه وي،  لمونځ كوي،په خلوت كې عبادت كوي، وركنومى ژوند كوي،د اړتيا هومره  يې روزي وي  او په همدى حال د عمر تر پاى پورى وي او ډېر ميراث ترې پاتې نشي . (تحف العقول)

ðپر مؤمن غم،خپګان او درد د هغه د ګناه  د كفارې لپاره راځي . (تحف العقول)

ðڅوك چې غواړي هر خواړه وخوري؛ودې خوري او هره جامه،چې اغوستل غواړي؛وا دې يې غوندي او په هره سپرلۍ كې،چې سپرېدل غواړي؛سپور دې شي؛نو څښتن دې ورته د رحمت په سترګه نه ويني(څو له دې هوسپالنې لاس واخلي) (تحف العقول)

ðوپوښتل شو:په دنيا كې تر ټولو د چا کړاو ډېر دى . ويې ويل :د پېغمبرانو او څوك چې په دې  لار كې ثابت قدمه وي . پر مؤمن د ايمان هومره بلاوې راځي،د چا چې ايمان كامل او عمل يې نېك وي؛نو کړاوونه او سختۍ يې هم ډېرې وي او د هغه چې ايمان لږ وي؛کړختونه يې هم لږ وي . (تحف العقول)

ðكه دنيا خداى ته د مچ  د وزر هومره ارزښت هم درلود؛نو كافر او منافق ته به يې په دنيا كې پيڅاڼى هم نه و وركړى. (تحف العقول)

ð هېڅ عمل به نه وي،چې اور ته د نږدېدو لامل ګرځي او تاسې مې ترې خبر كړي نه ياست او ژغورلي مې ترې نه ياست او داسې عمل به  نه وي، چې جنت ته  د ننووتو لامل وي او تاسې ته مې نه وي ښوولى او يا مې ورته  رابللي نه ياست . روح الامين راغى او زما زړه ته يې الهام وكړ،چې هېڅ بنده تر هغې مخكې  مړ نشي،څو يې خپله روزي بشيړه نه وي خوړلي؛نو د روزۍ لاس ته راوړو ته نېك لاري وسئ ( په ناوړه چارو يې لاس ته مه راوړئ ) پام مو وي،چې د روزۍ ځنډ د دې لامل نشي،چې خدايي قسمت له حرامو لاس ته راوړئ ،چې حلاله روزي يوازې په حلاله ګټل كېږي. (تحف العقول)

ðڅښتن د دوو غږونو دښمن دى : په مصيبت كې چغې او سورې او په نعمت كې شپيلي. (تحف العقول)

ð له بندګانو د څښتن د خوښۍ نښې دوې دي : د  نرخونو ارزاني او د واكمن عدالت او له بندګانو د څښتن د ناخوښۍ نښې د نرخونو ګراني او د واكمن ظلم دى. (تحف العقول)

ðڅوك چې  دا څلور ځانګړنې ولري؛نو د څښتن په ستر نور كې به وي : له ګناهونو ژغورونکى يې، د څښتن د يووالي شهادت او زما رسالت وي. ب : په مصيبت كې يې پر خوله انا لله و انا اليه راجعون وي . پر نعمت كې يې الحمدالله پر خوله وي. په ګناه كې يې پر خوله استغفرالله واتوب اليه وي . (تحف العقول)

ðڅوك چې څلور خويونه ولري؛نو له  څلورو نعمتونو به بې برخې نشي : څوك چې استغفار كوي؛نو له بښنې به بې برخې نشي.څوك چې شكر ايستونكې طبع ولري؛نو د نعمت له ډېروالي بې برخې نشي.څوك چې توبه ګار وي؛ نو د توبې له قبلېدو به محروم نشي او څوك چې دعا كوي؛ نو د حاجت له پوره كېدو به بې برخې نشي  . (تحف العقول)

ðعلم په داسې خزانه كې دى ،چې كونجي يې پوښتنه ده . (تحف العقول)

ðپر تاسې دې څښتن ورحمېږي؛وپوښتئ،چې په تاسې كې به څلور كسان د پوښتنې اجر وړي : پوښتونكى، ويونكى، اورېدونكى او هغه ،چې له دوى سره مينه لري . (تحف العقول)

ðعلماء وپوښتئ ! له حكيمانو سره خبرې وكړئ او له بېوزليو سره ناسته پاسته وكړئ . (تحف العقول)

ð له ما سره د علم فضيلت د عبادت تر فضيلته ډېر دى . (تحف العقول)

ð تقوا غوره  لار ده. (تحف العقول)

ðڅوك چې نه پوهېږي او فتوا وركړي؛نو  د ځمكې او اسمان پرښتې پرې لعنت وايي . (تحف العقول)

ðستر غمونه ستر ثوابونه لري .پر څښتن چې هر بنده ګران وي؛نو راګېروي يې او څوك چې پر كړخت راضي وي؛ نو څښتن به ترې راضي وي او څوك ،چې ترې ناراضي وي؛نو څښتن به ترې ناراضي وي . (تحف العقول)

ðيو سړي له پېغمبر اکرمه د نصيحت غوښتنه وكړه. ورته يې وويل:كه وكړول شې او په اور كې هم واچول شې؛نو شرك و نه کړې؛خو دا چې د ځان د خلاصون لپاره داسې خبره وكړې،چې له زړه دې نه وي .د مور و پلار حكم  منه. مړه وي او كه ژوندي،ورسره نېكي كوه او كه در نه يې وغوښتل ،چې له مال او عياله لاس واخله؛نو و يې وكړه، چې دا د ايمان  يوه برخه ده. (تحف العقول)

 ðپه لوى لاس واجب لمانځه ته مه شا کوه او چا چې داسې وکړل؛نو له الهي  ژمنې او امانه وځي . (تحف العقول)

ðله شراب او هر مستونكي ځان وژغوره،چې د هر شر كونجي ده. (تحف العقول)

ðد “بني تميم” له ټبره “ابواميه” پېغمبر اکرم ته وويل: ((خلک څه ته رابلئ؟)) پېغمبر اکرم:زه او لارويان  مې  په بصيرت او بشپړه پوهه خلك څښتن ته رابلو،هغه چا ته رابلو يې،چې كه د سختۍ په و خت كې ترې مرسته وغواړې؛نو سختي به دې اسانه کړي،كه په غم او خپګان كې ترې  مرسته  وغواړې؛نو ملګرتيا به دې وكړي او كه په تنګ لاسۍ كې ترې  وغواړې؛نو بې نيازه به دې  كړي.سړي ورته يې وويل : محمده ! ما ته نصيحت وكړه. پېغمبراکرم: غوسه مه کوه. سړى : نور نصيحت هم راته و كړه .پېغمبر اکرم:چې ځان ته يې خوښوې؛ نورو ته هم يې خوښوه. سړى : نور نصيحت هم راته  وكړه.پېغمبر اکرم:كنځلې مه کوه ،چې درته ونشي. سړى : نور نصيحت هم راته وكړه. پېغمبر اکرم : د هغوى له اهل سره په  احسان او نېكۍ مه ستړى كېږه، چې له دنيا به وروسته پاتې شې . سړى : نور نصيحت  هم راته  وكړه . پېغمبر اکرم: له خلكو سره مينه وكړه ،چې مينه درسره وشي. له كورنۍ او خلكو سره پر ورين تندي چله،سينه پراخه كړه او په لار په كبر مه ګرځه . (تحف العقول)

ðبوډا زناکار،ظالم شتمن،ځېلي سوالګر(چې  د مچۍ په څېر   نښتى وي) د څښتن دښمنان دي . (تحف العقول)

ðڅوك چې د فقر تظاهر كوي؛نو  فقير به شي.له خلكو سره په سړه سينه چلن نيم ايمان دى او له خلكو سره ګوزاره نيم ژوند دى. پر څښتن تر ايمان وروسته، څه چې ډېر ارزښت لري،له خلكو سره ګوزاره ده. (تحف العقول)

ðتر بوت نمانځنې وروسته له څه چې ډېر په سخته ژغورل شوى يم، له خلكو سره خوله وهل دي. (تحف العقول)

ðهغه له موږه نه دی،چې له مسلمان سره درغلي كوي او تاوان  ورسوي  (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم اکرم د “خيف” په جومات كې (په “منى” كې يوه سيمه ده) پاڅېد او و يې ويل : خداى دې هغه خوشحاله لري،چې  زما خبرې  واوري او هغوى ته يې ور واوروي،چې نه يې وي اورېدلي. داسې عالمان شته،چې تر خپل ځانه ښه عالم ته څه وروښيئ او داسې عالمان شته ،چې تر ځانه ناپوهو ته علم ور ورسوي . (تحف العقول)

ðدرې څيزه دي،چې د مؤمن زړه به يې په هكله خيانت ته چمتو نشي: څښتن ته په عمل كې اخلاص،د مسلمانانو امامانو ته خېر غوښتنه او د جماعت ملازمت يې . (تحف العقول)

ðمسلمانان سره وروڼه دي،وينې يې سره يوشان دي،ټول د دښمن پر وړاندې يو مټ دي،په هغوى کې تر ټولو وړوكى،چې تړون وتړي؛ نو ټول بايد پرې ولاړ وي. (تحف العقول)

 ðهمداچې مسلمان له “ذمي كافر” (هغه اهل كتاب،چې د اسلام د حكومت تر سيورى لاندې  ژوند كوي)سره معامله وكړي؛نو و دې وايي : خدايه ! ما ته پکې خېر راكړې او كه مسلمان له مسلمان سره معامله وكړي؛نو و دې وايي :خدايه! ما او هغه ته پکې خېر راكړې. (تحف العقول)

 

ð پر څښتن هغه بنده ګران دى،چې خوله يې تل خېر ته خلاصېږي . (تحف العقول)

ðدرې حالته دي،چې څوك ولري؛نو د ايمان  ټولې ځانګړنې به لري : په خوشحالۍ كې پر باطل لاس پورې نه کړي،غوسه كې د حق له پولې پښه وا نه ړوي او د قدرت پر مهال له خپل حقه زياته غوښتنه ونه کړي. (تحف العقول)

ðڅوك چې په ناحقه كوم مقام ته ورسېد؛نو ظالم دى. (تحف العقول)

ðپه لمانځه كې د قرآن ويلو ثواب تر نورو حالتونو ډېر دى.ذكر تر صدقې غوره او صدقه تر روژې؛خو  روژه  حسنه او نېک كار دى . (تحف العقول)

ðبې عمله خبره ښه نه راځي او كړه وړه بې تر نيته ګټور نه وي  او كړه وړه او نيت بې تر سنت او دينې لارې ګټه نه لري. (تحف العقول)

ðهوساېنه او ارامتيا د څښتن كار دى او بيړه د شيطان . (تحف العقول)

ðهغه دې د دوزخ تيارى نيسي،چې علم د زده كړې موخه يې دا وي، چې له بې عقلو سره پرې خوله ووهي،پر علماوو ځان  دروند وتلي،خلك وغولوي او خلك يې درناوى  وكړي. (تحف العقول)

ð هغه چې خلك ځان ته رابلي او په ناروا د يوه رياست دعوا وكړي؛نو تر هغې به څښتن ورته د رحمت په سترګه نه ګوري ،چې له دې كاره يې لاس نه وي اخستى او توبه يې نه وي کړي. (تحف العقول)

ðحضرت “عيسى بن مريم” خلكو ته وويل: ځان پر څښتن ګران كړئ . پوښتنه وشوه : څرنګه ؟ و يې ويل :د څښتن له حكمه له سرغړوونكيو سره د جګړې له لارې . چې مو خپه کړل؛نو څښتن مو خوشحاله کړ. پوښتنه وشوه :روح الله! له چا سره ناسته پاسته ولرو؟ ويې ويل: له هغه سره،چې په ليدو يې څښتن در ياد شي،خبرې يې ستاسې عمل ډېر كړي او كړه وړه يې تاسې اخرت ته وهڅوي . (تحف العقول)

ðپه تاسې كې بخيل او هغه چې ورانه خوله خوځوي،بېخي ماته ورته نه دى  . (تحف العقول)

ðبد اخلاقي شوم عمل دى . (تحف العقول)

ðد چا چې پر هغه څه چرت نه وي خراب،چې خلكو ته يې وايي او يا خلك يې ورته وايي؛نو يا ارمونى دى او يا له شيطانه زوکړى دى . (تحف العقول)

څښتن پر “بدژبي بې حياء” جنت حرام كړى دى .وپوښتل شو : مګر په خلكو كې هم شيطان شته؟ و يې ويل : هو ! مګر قرآن مو نه دى لوستى،چې څښتن شيطان ته وايي:له هغوى سره؛يعنې له لارويانو سره دې په مال او اولاد كې ګډون وكړه.( اسراء 64) (تحف العقول)

ðكه ګټه دې ورسوله؛نو ګټه به درورسي ،چا چې د پېښو لپاره زغم او صبر نه و چمتو كړى؛نو پاتې به وي .كه كنځلې مو وكړې؛ نو كنځلې به درته وشي . چاچې پريښوول؛ نو پرې به ښوول شي.يو وپوښتل :نو څه وكړو؟ (چې په امان كې شو)  ويې ويل: عرض او پت دې د قيامت تر ورځى پورې هغوى ته پور وركړه (؛يعنې كنځلې مه کوه او كه چېرې ستا پت په ناحقه تويې شو؛نو د قيامت پر ورځ به دې زېرمه شي؛البته دا حديث نور تفسيرونه هم لري؛خو تر ټولو مناسب يې همدا و.) (تحف العقول)

ð آيا  نه غواړئ د دنيا او اخرت تر ټولو غوره اخلاق  دروښيم؟ له هغوى سره تګ راتګ کوه،چې درسره يې پرېښي وي. وركړه ورته كوه،چې ته يې بې برخې كړى يې او هغه وبښه،چې پر تا يې تېرى كړى دى. (تحف العقول)

ðيوه ورځ پېغمبر اکرم  له يو ځايه تېرېده،چې ځينو د زور ازميېلو ته تيږه ګوزاروله،چې پېغمبر اکرم ورته وويل: په تاسې كې تر ټولو ستر مېړنى هغه دى،چې په قدرت كې بښنه وكړي. (تحف العقول)

ðد هغه به ايمان  بشپړ وي ،چې اخلاق يې غوره وي. (تحف العقول)

ðښه اخلاق،انسان د “روژه تي لمونځ كوونكي” مقام ته رسوي. (تحف العقول)

ðوپوښتل شول: تر ټولو غوره نعمت،چې څښتن ته وركول شوى، څه دى ؟ويي ويل: ښه اخلاق. (تحف العقول)

ðنېک اخلاق د ملګرتيا بنسټونه غښتلي كوي. (تحف العقول)

ðورين تندى كينه له منځه وړي. (تحف العقول)

ðپه تاسې كى تر ټولو هغه غوره دى،چې تر ټولو يې اخلاق ښه وي ،چې خلك له هغه او هغه له خلكو سره ملګرى وي. (تحف العقول)

ðلاسونه درې ډلې دي: اخستونكي،وركوونكي او ساتونكي،چې تر ټولو غوره يې وركوونكي لاسونه دي . (تحف العقول)

ðحياء دوه ډوله ده:يوه د عقل له مخې وي او بله د حماقت له مخې ، چې د عقل له مخې حياء د علم نښه ده او د حماقت له رويه حياء د ناپوهۍ نښه ده. (تحف العقول)

ðهغه غيبت نه لري، چې حياء نه لري. (تحف العقول)

هغه چې پر خداى او قيامت ايمان  لري؛نو  پر كړې ژمنه به عمل كوي.

* امانت ساتنه روزي راوړي او خيانت فقر او تنګ لاسي. (تحف العقول)

ðموروپلارته په مينه كتل هم عبادت دى . (تحف العقول)

ðسخته بلا(چې ترې څښتن ته پناه وړل پكار دى) داده : انسان بې له دې،چې د دفاع قدرت ولري،راوړي يې او ورمېږ ترې غوڅ كړاى شي يا د دښمن په لاس كې بندي شي او يا كوم فاسق پر خپله مېرمن وويني. (تحف العقول)

ðد مؤمن لپاره؛علم ملګرى،حلم وزير،عقل لارښوونكى، صبر د خلكو بولندوی،سازش پلار،احسان ورور،نسب حضرت آدم،حسب تقوا او ځواني د مال اصلاح ده. (تحف العقول)

ðيو سړي پېغمبر اکرم ته شيدې او شات راوړل،چې و يې څښي. پېغمبراکرم ورته وويل:دواړه  د څښلو دي،چې پر يو قناعت كېداى شي  دواړه  نه څښم ؛خو  تحريموم يې هم نه ؛بلكې  د څښتن لپاره خاکساري كوم او څوك چې د څښتن لپاره تواضع وكړي؛نو څښتن به يې درجه لوړه كړي او چاچې تكبر وكړ؛نو څښتن به يې را وغورځوي . څوك چې په ژوند كې منځ لاري كوي؛نو څښتن به ورته روزي وركړي او چاچې بې ځايه بدخرڅي كوله؛نو بې برخې به يې كړي او څوك چې ډېر د څښتن په ياد كې وي؛نو  ثواب به وركړي . (تحف العقول)

ðد قيامت پر ورځ به هغه تر ټولو پر ما ګران وي،چې تر ټولو رښتين، امانت ساتى،تړون نه ماتونكى،د ښو اخلاقو خاوند او خلكو ته نږدې وي. (تحف العقول)

ðچې د ناكاره ستاېنه پيل شي؛نو عرش په لړزېدو شي او څښتن غوسه شي . (تحف العقول)

ðيو سړي وپوښتل : دورانديشي او محكم كاري څه ده؟ پېغمبراکرم : د نظر له خاوند سره مشوره او مشورې ته يې غاړه ايښوول. (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم  وويل : رقوب خلك څوك دي؟ ورته وويل شول : هغه ، چې مړ شي او ولاد ترې پاتې نشي .پېغمبر اکرم  وويل: نه ! حقيقي رقوب هغه دى ،چې مړ شي او اولاد ترې مخكې تللى وي  او هغه يي د  څښتن په حساب پريښى وي ، كه څه هم زيات اولاد ترې پاتې وي . (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم  وپوښتل : صعلوك څوك دى ؟ ورته وويل شول : هغه  چې مال نه لري . پېغمبر اکرم  وويل : واقعي صعلوك هغه دى،چې تر ځانه يې مخكې د خداى لپاره مال نه وي لېږلى،كه څه هم ډېره شتمتي يې پاتې وي . (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم  وپوښتل : صرعه څوك دى ؟ ورته وويل شول : هغه پهلوان،چې  څوك يې را پرځولى نه شي.پېغمبر اکرم  وويل : نه ! واقعي پهلوان هغه دى ،چې شيطان يې په سوك پر سينه ووهي ،چې غوسه يې كړي؛خو هغه څښتن ياد كړي او د حلم په زور خپله غوسه راوپرځوي. (تحف العقول)

ðهغه چې بې علمه كار كوي؛نو تر رغونې به يې خرابول ډېر وي. (تحف العقول)

ðپه جومات كې لمانځه ته په تمه ناسته تر هغه پورې عبادت دى ،چې غيبت يې نه وي کړى. (تحف العقول)

ðپه بستره كې د روژه تي ملاسته هم عبادت دى ترهغې،چې غيبت يې نه وي کړى. (تحف العقول)

ðهغه چې  ناوړه كار (ګناه ) خپروي؛نو  ګناه به يې د كولو هومره وي او چا،چې مؤمن يو كار ته ورټه؛نو تر هغه به نه مري،چې هغه كار ترې نه وي شوى. (تحف العقول)

ðدرې ډوله خلك دي،كه و يې نه هم ځوروې؛نو و به  دې  ځوروي : ښځه،نوكر اوبې ارزښته(؛يعنى دوى پر خپل حق نه راضي كېږي) (تحف العقول)

ðدرې څيزه د بدمرغۍ نښې دي : د سترګو وچوالى،د زړه دروندوالى ، مال ته ډېر حرص او پر ګناه ټينګار. (تحف العقول)

ðيو سړي وويل : ما ته نصيحت وكړه.پېغمبر اکرم وويل : غوسه مه کوه.سړى:نور نصيحت هم راته  وكړه . پېغمبر اکرم وويل :راڅملوونکي ته پهلوان نه وايي؛بلكې پهلوان هغه دى،چى په خپله غوسه برلاسى شي . (تحف العقول)

ðد هغه چا ايمان  كامل دى،چې اخلاق يې تر ټولو ښه وي . (تحف العقول)

ðګوزاره چې په هر كار كې وي؛نو كار ته  ښكلا وركوي او بدچلن د هر كار ښكلا له منځه وړي . (تحف العقول)

ðما ته له خلكو سره د ګوزارې دنده راكړل شوې؛لكه د رسالت د تبليغ دنده،چې راكړل شوې. (تحف العقول)

ðكارونه مو پټ ترسره كوئ،چې خلك د هر نعمت له خاوند سره حسد كوي. (تحف العقول)

ðايمان  دوې برخې دى : صبر او شكر . (تحف العقول)

ðپر ژمنه وفا ايمان  دى . (تحف العقول)

ðپه بازار كى خوراك پستي ده. (تحف العقول)

ðد چاچې د تل لپاره تر ټولو ستر همت اخرت وي؛نو څښتن به يې مړه خوا كړي،كارونه به يې اسان كړي او تر هغه به له دنيا نه ځي،څو يې خپله ټوله روزي نه وي خوړلې او د چاچې د تل لپاره تر ټولو ستر همت دنيا وي؛نو څښتن به ورته فقر سترګو ته رامخې ته كړي،چارې به يې نه ترسره كېږي او د خپلى روزۍ تر خلاصېدو مخكې به له دې دنيا ولاړ شي . (تحف العقول)

ðڅښتن چې چا ته د ثواب ژمنه وركړه؛نو هرومرو به يې وركړي؛خو هغوى ته يې،چې د عذاب ژمنه وركړې؛نو مختار دى،چې پر خپله ژمنه وفا وكړي كه نه . (تحف العقول)

ð آيا  هغه دروښيم،چې په اخلاقو كې تر ټولو زيات ما ته وي؟ ورته وويل شول : هو! پېغمبر اکرم : هغه چې اخلاق يې تر ټولو ښه،علم يې تر ټولو زيات،له خپلوانو سره تر ټولو ښه وي او غوسه او هوساېنه كې انصاف ولري . (تحف العقول)

ðهغه به افضل وي،چې تر خوړو وروسته شكر وباسي ،روژه نيسي او چوپ وي . (تحف العقول)

ðله مؤمن سره د خداى لپاره دوستي، د ايمان تر ټولو لوړه درجه ده . هغه چې دوستي،دښمني او راكړه وركړه يې د څښتن لپاره وي؛نو غوره ټاكل شوى به وي . (تحف العقول)

ðپر څښتن تر ټولو هغه ګران دى،چې د بندګانو لپاره يې ګټور وي؛ هغوى چې څښتن يې په  زړه كې له نېکۍ او نېکانو سره مينه اچولي وي. (تحف العقول)

ðله هغوى سره احسان وکړئ،چې احسان يې درسره كړى وي كه نه يې شئ كړاى؛نو مننه ترې وكړئ ،چې مننه هم احسان دى . (تحف العقول)

ðهغه چې له ګوزارې بې برخې وي؛نو له هر ډول خيراته به هم بې برخې وي . (تحف العقول)

ðله ورور سره مو بې ځايه ټوكې مه کوه او پر کړې ژمنه عمل وکړه. (تحف العقول)

ðد دين،ادب او خوړو،هغه حرمتونه دي،چې هر مؤمن يې بايد رعايت كړي . (تحف العقول)

ðمؤمن به تل موسكى وي او ټوكمار او منافق به تل بړوس وي . (تحف العقول)

ðډالۍ درې ډوله ده : د انعام،ملګري او خداى  لپاره . (تحف العقول)

ðبختور هغه دى،چې د آخرت په پار ددې دنيا له خوندونو لاس واخلي. (تحف العقول)

ðڅوك چې سبا د خپل عمر برخه ګڼي؛نو له مرګ سره يې بد چلن كړى دى. (تحف العقول)

ðپېغمبر اکرم وويل :څنګه به ياست،چې ښځې مو فاسدې او ځوانان مو فاسق شي؟ او بر نېکيو امر او له بديو منع پرېږدئ؟وويل شو: رسول الله ! آيا  داسې  ورځ به راځي ؟ پېغمبر اکرم : هو! تردې به بده ورځ هم راځي او هغه به داسې وي ،چې له نېكو چارو به منع كوئ او بديو ته به رابلئ؛نو هله به څه كوى؟ وويل شو: رسول الله ! آيا  داسې ورځ به راځي ؟ پېغمبر اکرم : هو ! تردې  به بده ورځ هم راځي او هغه به داسي وي ،چې ښو ته به بد او بدو ته به ښه واست؛نوهله به څه كوئ؟ (تحف العقول)

ðچې فال دې بد راوخوت؛نو اعتنا پرې مه کوه،چې ګومان دې بد شو؛نو  قضاوت مه کوه  او چې حسد دې وكړ؛ نو  ورپسې مه ځه. (تحف العقول)

ðكه خوب ليدل درنه  واخستل شول؛نو مه وارخطا كېږه ؛ ځكه په علم كې له راسخانو د خوب ليدل اخستل كېږي . (تحف العقول)

ðزما په امت كې كه دوې ډلې سمې شوې؛نو ټول به سم شي او كه فاسد شول؛نو ټول به فاسد شي.وپوښتل شو: دا څوك دي؟ پېغمبراکرم: فقهاء او واكمنان . (تحف العقول)

ð تر ټولو هوښيار هغه دی،چې تر ټولو زيات له څښتنه ووېريږي او تر ټولو زيات يې لاروي وي . (تحف العقول)

ðتر ټولو بې عقله هغه دى،چې له سلطانه ډېر ووېرېږي او تر ټولو زيات يې لاروي  وكړي . (تحف العقول)

ðدرې څيزه زړه وژني : له بدچلنو سره ناسته پاسته او ښځو سره مجلس او خبرې او له  زورورو سره تګ را تګ . (تحف العقول)

ðيو قوم ته،چې څښتن په قهر شي او عذاب پرې رالېږي؛نو نرخونه يې ګران،عمرونه يې لنډ،سوداګر يې زيانمن شي،مېوې يې چنجي نيسي، د نهرونو اوبه يې لږې شي،باران پرې نه ورېږي  او اشرار پرې برلاسي شي . (تحف العقول)

ðتر ما وروسته،چې زنا ډېره شي؛نو ناڅاپه به مرګونه هم زيات شي، چې كم پلورنه وكړي؛نو وچکالي به راشي او چې زكات ور نه كړي؛ نو ځمكه به ترې خپل بركتونه؛يعنې كښت او معدنونه واخلي او چې په قضاوت كې بې عدالتي وكړي؛نو له تېري او ظلم سره به يې لاس يو كړى وي او چې تړونونه مات كړي؛نو څښتن به پرې دښمن واكمن كړي او چې له خپلوانو سره يې  اړيکې پرې کړې؛نو شتمني به يې اشرار لوټ كړي او چې پر نېکيو امر او له بديو منع ونه کړي او زما د كورنۍ د نېکانو لاروي ونه کړي؛نو څښتن به پرې تر ټولو بد خلك برلاسي كړي؛نو بيا به يې دعاګانې هم نه قبلېږي . (تحف العقول)

ðسترګې دې د دنيا هغه متاع ته مه وراړوه ،چې ځينو ته مې وركړې ده چې دا آيت نازل شو؛نو  پېغمبر اکرم وويل : د چا زړه،چې د څښتن په تسل ارام نشي؛نو څښتن به يې په دنيا پسې ړوند كړي او څوك چې د بل مال ته سترګې خړې كړي؛نو خپګان به يې اوږد شي او د څښتن پر قسمت به غوسه وي او د څښتن نعمتونه به ورته په خوراك و څښاك كې راغونډ شي؛ځکه به ناپوهي كوي او د الهي نعمتونو كفران به كوي، هڅه او هلې ځلې يې بې ځايه ځي او عذاب به يې رانږدې شي. (تحف العقول)

ðجنت ته به نه ننوځي؛خو دا چې مسلمان وي . (تحف العقول)

 ðحضرت ابوذر وپوښتل : اسلام څه دى؟پېغمبر اکرم : اسلام  بربنډ دى،چې جامه يې تقوا،ستر يي هدايت،كړنلار يې ژوند،خټه يې پارسايي،كمال يې ګروهه او مېوه يې صالح عمل دى . (تحف العقول)

ðهر څه ستنه (بنياد) لري او د اسلام ستنه له اهل بيتو سره مينه ده . (تحف العقول)

ðڅوک چې د كوم مخلوق د رضا لپاره څښتن خپه كړي؛نو څښتن به پرې هماغه مخلوق واكمن كړي . (تحف العقول)

ðڅښتن ځينې خلك د نورو خلكو د اړتياوو پوره كولو ته پېدا كړي دي،چې د خير په چارو وياړي،سخاوت ورته ځواني ښكاري او څښتن ته  نېک اخلاق ګران دي . (تحف العقول)

ðيوه ورځ به راشي،چې كه د خلكو دنيا ښه وي؛نو د دين تباهۍ ته به ارزښت نه وركوي . (تحف العقول)

ðپېغمبراکرم : زما امت،چې دا پينځلس كړنلارې خپلې كړې؛نو عذاب به پرې راشي.وپوښتل شو:هغه كومې دي؟ و يې ويل : هغه مهال،چې شتمني او غنيمت مستحق ته ورنه کړل شي . امانت ورته غنيمت ښكاره شي . زكات ورته جريمه ښكاره شي . سړى د ښځې د خولې مني او مور وځوروي . له ملګري سره وفا او له پلار سره جفا وكړي . په جوماتو كې چغې شي . د خلكو د شر له وېرې يې درناوى وشي .د قوم مشر د قوم تر ټولو رذيل وي . ورېښمنې جامى واغوندي . شراب وڅښي . ډمې پکې  راپېدا شي . د امت وروستني،د امت ړومبيو ته كنځلې وكړي؛نو د درېو بلاوو په تمه دې شي:سور باد،مسخ (د خلقت په چپه كېدل) او فسخ ( په ځمكه كې ننووتل). (تحف العقول)

ðدنيا د مؤمن زندان او د كافر  جنت دى . (تحف العقول)

ðداسې ورځ به راشي،چې خلك به داړونكي لېوان شي او كه څوك داسې نشي؛نو داړونكي لېوان به يې وداړي . (تحف العقول)

ðپه آخره زمانه كى به ډاډمن ورور او حلال درهم تر ټولو لږ وي(تحف العقول).

ðپر بدګومانۍ ځان د خلكو له شره وساتئ (پر بدو خلكو اعتماد مه  كوئ). (تحف العقول)

ðټول خيرونه په عقل لاس ته راوړئ او هغه چې عقل نه لري، دين هم نه لري . (تحف العقول)

ðپه يوه ډله كې د يو سړي ستاېنه وشوه،ټولې ځانګړنې يې بيان شوې، چې پېغمبر اکرم وپوښتل :په عقل کې څرنګه دى؟ ورته وويل شول : رسول الله! موږ  يې د ډېرو عبادتو او نېکيو ستاېنه كوو او ته يې عقل پوښتې؟ پېغمبراکرم : احمق د خپل حماقت له امله ځان ته ستونزې جوړوي،ان دا ستونزې د فاجر تر فسقه هم غټې وي . خلك د عقل له امله لوړو درجو ته رسي او يا د څښتن درګاه ته رسي. (تحف العقول)

ðڅښتن عقل درې برخى پېدا كړ؛نو څوك يې چې ټولې برخې لري؛ نو عقل به يې پوره وي او څوك يې،چې يوه برخه هم نه لري؛له عقله به پلى وي : خداى ښه پېژندل،ښه لاروي يې کول او د حكم په پلي كولو كې يې  صبر. (تحف العقول)

ð د نجران يو با وقاره او خوږ ژبى انصاري مدينې ته راغى .و يې ويل: رسول الله! دا نصراني څومره هوښيار دى؟ پېغمبر اکرم غوسه شو او ويې ويل : چوپ شه!هوښيار هغه دى،چى څښتن ښه وپېژني او حكم ته يې غاړه كېږدي . (تحف العقول)

ðيو بل ته لاس وركړئ،چې روغبړ كينه او دښمني توږي . (تحف العقول)

ðمؤمن بې له دروغو او خيانته هره ځانګړنه درلوداى شي. (تحف العقول)

ðځينى شعرونه له حكمته ډك وي او ځينې تلپاتې وي. (تحف العقول)

ðپېغمبراکرم حضرت ابوذر وپوښته : د ايمان كومه كړۍ تر ټولو كلكه ده؟ ابوذر (رض) : څښتن او استازى يې ښه پوهېږي . پېغمبر اکرم : د څښتن لپاره دوستي،دښمني او كينه . (تحف العقول)

ðد بنيادم له نېکمرغيو: په چارو كې له خدايه خيرغوښتل او قضا ته يې غاړه ايښوول دي . (تحف العقول)

ðد بنيادم له بدمرغيو:له څښتنه د خير د غوښتو پرېښوول او پر تقدير يې ناخوښي ده . (تحف العقول)

ðپر ګناه پښېماني په خپله توبه ده. (تحف العقول)

ðهغه چې د قرآن حرام حلالوي؛نو پر قرآن ايمان نه لري . (تحف العقول)

ðيو سړي پېغمبر اکرم ته وويل : ماته نصيحت وكړه.پېغمبر اکرم : ژبه دې كابو ساته . سړى : نور نصحيت هم راته وكړه. پېغمبر اکرم : خو بې له ژبې بل څه هم څوك جنت يا دوزخ ته ورننباسي؟(تحف العقول)

ðنېک كارونه د بدو مرګونو مخنيوى كوي . (تحف العقول)

ðصدقه د څښتن د عذاب مخه نيسي . (تحف العقول)

ðزړه سوی عمر زياتوي . (تحف العقول)

ðد خير هر كار صدقه ده . (تحف العقول)

ðد دنيا نېکان د آخرت نېکان دي او د دنيا بد د آخرت بد دي او لومړى به  نېکان جنت ته ننوځي . (تحف العقول)

ðڅښتن،چې خپل بنده ته کوم نعمت وركوي،خوښېږي او اغېز يې په كې وويني او هغوى چې د فقر تظاهر كوي، د څښتن تر ټولو بد ايسي. (تحف العقول)

ðښه پوښتنه نيم علم دى او ګوزاره نيم ژوند. (تحف العقول)

ðانسان چې زوړ شي؛نو دوې ځانګړنې په كې ځوانې شي: حرص او هيله . (تحف العقول)

ðحياء د ايمان  برخه ده. (تحف العقول)

ðد قيامت پر ورځ به  څوك له خپل ځايه ونه خوځېږي څو ترې ددې څلورو څيزونو پوښتنه نه وي شوې: عمر،چې په كومه لار كې دې تېر كړى.ځواني،چې څرنګه دې تېره كړې او زموږ د اهلو بيتو د مينې په باب . (تحف العقول)

ðهغه چې په معامله كى پر خلكو ظلم نه کوي،په وينا كى يې دروغ نه وي،له وعدې سر نه غړوي؛نو سړيتوب يې پوره،عدالت يې ښكاره، اجر يې ثابت اوغيبت يې حرام دى . (تحف العقول)

ðد مؤمن هر څه محترم دي . (تحف العقول)

ðزړه سوی وكړئ ان كه په يو سلام وي. (تحف العقول)

ð ايمان؛ پر ژبه اقرار، پر زړه اعتقاد او پر غړيو عمل ته وايي . (تحف العقول)

ðشتمني د مال زياتوالي ته نه؛بلكى حقيقي شتمني د روح بې نيازۍ ته وايي. (تحف العقول)

ð له شره ځان ساتنه صدقه ده. (تحف العقول)

ðزما د امت د عاقل لپاره څلور څيزه په كار دي : علم ته غوږ ايښوول،په مغزو كې يې ساتل او خپرول يې . (تحف العقول)

ðځينې ويناوې جادويي دي،ځينى علمونه جهل وي او ځينې ويناوې د ژبې بېوسي وي. (تحف العقول)

ðسنت دوه ډوله دى : واجب سنت،چې تر ما وروسته پرې عمل لازم او پرېښوول يې بې لاري ده او بل مستحب سنت،چې عمل پرې ثواب لري او پرېښوول يې عذاب نه  لري . (تحف العقول)

ðچا چې د سلطان خوشحالولو ته څښتن خپه كړ؛نو له دينه وتلى دى. (تحف العقول)

ð نېک چلن تر نېكۍ غوره دى او تر بدو بد د بد چلن خاوند دى . (تحف العقول)

ðهغه چې څښتن يې د ګناه له ذلته د لاروۍ عزت ته راواړوي؛نو بې له شتمنۍ به يې شتمن كړي،بې ټبره به يې عزيز كړي،بې ملګري به يې ارام كړي . څوك چې له څښتنه ووېرېد؛نو څښتن به ترې ټول ووېروي او څوك چې له څښتنه نه وېرېږي؛نو څښتن به يې له هر څه ووېروي . څوك چې د څښتن په لږه روزي راضي شي؛نو څښتن به ترې په وړوكي عمل راضي شي.څوك ،چې د حلالې روزۍ له ګټلو شرم ونه کړي؛نو خرڅ به يې سپك،خيال به يې ارام  او اولاد به يې پر هوسا وي . څوك چې له دنيا زړه  وشلوي؛نو څښتن به يې په زړه كې د حكمت چينې روانې كړي. (تحف العقول)

ðپه دنيا كى زهد او پارسايي : د هيلو لنډول،د هر نعمت شكر او له هغه څه چې څښتن حرام كړي دي ځان ساتل . (تحف العقول)

ð د خير هېڅ  كار د ريا لپاره مه  کوه او له شرم او حياء پښه مه اوړه . (تحف العقول)

ðامت ته مې له درېو څيزونو وېرېږم : بخل چې ورته لاس پر سينه ودرېږي . هغه هوس،چې لاروي  يې وشي. مشر،چې په خپله بى لارې وي. (تحف العقول)

ðد چاچې غوسه ډېره وي، بدن به يې ډېر ناروغ وي .څوك چې پخپله بد وي؛نو پخپله به په عذاب كې وي او څوك چې له خلكو سره په جګړه كې وي؛ نو شرف او ستروالى به يې پر سيند لاهو وي . (تحف العقول)

ðهغه زما د امت تر ټولو بد دى،چې له وېرې يې درناوى وشي او هغوى له ما څخه نه دي، چې له وېرې يې درناوى كېږي . (تحف العقول)

ðزما امتي نه دى،چې تل يې ټول فكر و ذكر بې له څښتنه وي؛نو له څښتنه بېل دى . مسلمان نه دى،چې د مسلمانانو چارو ته ملا نه تړي او هغه ،چې ذلت ته ځان سپاري، زما له كورنۍ څخه نه دى . (تحف العقول)

ðد حضرت معاذ زوى،چې مړ شو؛نو پېغمبر اکرم  ورته دا ليك  وليكه: له محمد رسول الله نه معاذ بن جبل ته! سلام دې پر تا وي ، ستاېنه د هغه خداى كوم ،چې بې له هغه بل څښتن نشته !اما بعد: اورېدلي مې دي،چې د خپل زوى په وير كې،چې د څښتن په حكم مړ شوى،بې صبري كوې،زوى دې د څښتن له نعمتو او امانت يې و،چې تاته يې درسپارلى و،يوې مودې ته يې دركړى و او چې اجل يې راورسيد؛نو درنه يې واخست . انالله و انا اليه راجعون . پام دې وسه، چې ډېره بې صبري دې اجر تباه نه کړي . هله چې د خپګان ثواب ته ورسې؛ نو  پوه به شې،چې  دا ثواب تر هغه خپګانه ډېر زيات دى،چې څښتن د مصيبت پر مهال خپل بنده ته ټاکلى و. پوه شه،چې چغې او سورې مړى نه را ژوندى كوي او نه تقدير بدلولاى شي؛نو صبر وكړه او الهي وعدې ته په تمه شه . معاذه ! پر داسې  خبره خواشينى يې،چې د ټولو ګرېوان ته به لاس وراچوي . د څښتن درود او رحمتونه دې  پر تا وي . (تحف العقول)

ðد قيامت له نښو د قرآن د قاريانو ډېروالى،د فقهاوو كموالى،د اميرانو ډېروالى،د رښتينو لږوالى،د بارن ډېروالى او د بوټو كموالى دى. (تحف العقول)

ðد هغوى حاجتونه ماته راورسوئ،چې ماته نشي را رسېداى؛ څوك چې د هغه  نيازمند حاجت،واكمن ته ورسوي،چې واکمن ته نشي رسيداى؛ نو څښتن به يې د قيامت پر ورځ پر صراط پښى و نه خويوي. (تحف العقول)

ðدوې خبرې غريبې دي : له بې عقله حكيمانه خبره؛نو مه يې منئ او له حكيمه بې ځايه خبره ؛نو ترې تېر شئ. (تحف العقول)

ðله منافقانه فروتنۍ ځان لرې ساتئ،چې يوازې تن پکې متواضع وي؛ نه زړه. (تحف العقول)

ðډالۍ قبوله كړئ او عطر تر ټولو غوره ډالۍ ده . (تحف العقول)

ðاحسان يوازې له دين پال او له كورنۍ سره يې روا دى. (تحف العقول)

ðد بېوسو جهاد حج دى . (تحف العقول)

ðد ښځې جهاد له مېړه سره په مينه چلن دى . (تحف العقول)

ðلورنه نيم دين دى. (تحف العقول)

ðمنځلارى به هېڅكله فقير نشي  . (تحف العقول)

ðصدقه روزي زياتوي . (تحف العقول)

 

 لس ډلې

 ð حضرت معاذ بن جبل (رض) وايي : له پېغمبر اکرم سره د “ابو ايوب انصاري” په کور کې ناست وم،ومې پوښت: [ يَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ فَتَأْتُونَ أَفْوَاجًا = پر هغه ورځ چې [د قيامت] په “شپېلۍ” كې پوكى وشي؛ نو تاسې به ډله ډله (محشر ته) راځئ. (النباء\١٨ ) له دې آيته موخه څه ده ؟ پېغمبراکرم(ص) وويل:((زما په امت کې به لس ډلې وي، چې تر نورو به ځانګړي مخونه لري او راروان به وي( او دا دي: ) بيزو،خنزير(څېرې يې) اړول شوي، ړوند، ګونګ او کوڼ، خپلې ژبې به ژوي او له خولې به يې مردار بوي روان وي او ټول به ترې کرکه کوي . تر مرداراو سخا شوي څيز به بدبوى کوي . د اور تنګې جامې به يې اغوستې وي .لاسونه او پښې به يې غوڅې وي او د اور پر دارونو به راځوړندوي . لومړۍ ډله چغلګر دي،دويمه ډله حرامه خواره دي،درېمه ډله سود خواره دي،څلورمه ډله په قضاوت کې تېري کوونکي دي، پينځمه ډله له ځانه راضي او ځانمني دي،شپږمه ډله بې عمله قاضيان او علماء دي او اومه ډله د ګاونډيانو ځوروونکي دي،اتمه ډله ظالم ته جاسوسي کوونکي دي،نهمه ډله شهوتپال او هغه دي،چې په خپلو مالونو کې يې د خداى حق نه ورکاوه  او لسمه ډله کبرجن دي .[ مجمع البيان ١\ ٤٢٣) .

 

عادلانه چلن

ðڅوک چې د لسو کسانو څارنه پرغاړه واخلي او ورسره عادلانه چلن ونه کړي،د قيامت پر ورځ به داسې راروان وي،چې لاس،پښې او سر به يې ((د تبرى)) په سوري کې وي.   (صدوق،عقاب الاعمال ،٥٩٢مخ ).

ðد عادل مشر يو ساعت مشري تر اويا کالو عبادته غوره ده او کوم حد او قانون ،چې د خداى لپاره اجرا کړي؛د څلوېښت ورځو تر باران اورېدلو غوره دى. ( فروع کافي ٧ / ١٧٥ )

 

د بدچاريو پايلې

ðزنا چې ښکاره شي؛نو ناڅاپي مړينې زياتېږي . په تله کې چې څيزونه  له اصلي وزنه کم تول او وپلورل شي؛نو خداى پر خلکو قحطي راولي . خلک چې د خپلو مالونو زکات نه ورکوي؛نو خداى له ځمکې برکتونه اخلي او کرنې،مېوې او کانونه نه رابرسېروي .د خپلوۍ اړيکې، چې پرې شي او دا خوى دود شي؛ نو شتمني د اشرارو لاس ته ورځي او پر نېکيو امر او له بديو منع ته،چې شاشي؛نو خداى به پر داسې قوم اشرار واکمن کړي او نېکان يې،چې څومره دعاګانې کوي؛نو نه به قبلېږي. (وسايل ١١\٥١٣)

ðڅوک چې د ګناه کولو پر مهال له خندا شين وي؛نو دوزخ ته په ننووتو کې به  په کړيکو ژاړي . (مشکاة الانوار \٣٦٤- وسايل ١١\١٦٤].

ðد قيامت پر ورځ به خداى له درېو کسانو سره، نه خبرې کوي او نه ورته پاملرنه او پاک به يې هم نه کړي او دردوونکى عذاب به ورته چمتو شوى وي؛زوړ او بوډا زناکار،ظالم واکمن اومغرور نشتمن.(کافى٢\ ٣)

 

توبه ګار

ðخداى ته بې له توبه ګارې ښځې او سړي بل محبوب نشته . (سفينة البحار١\١٢٧ ) ( اخبارالرضا٢\٢٩).

 ðتوبه ګار د خداى محبوب او دوست دى  .( جامع السعادات ٣\٥١)

 

 د ګناه جبرانول

ðچېرې،چې ياست،له خدايه وېرېږه او له خلکو سره په ورين تندي چلن کوه؛ ګناه چې دې وکړه؛نو نېک کار وکړه، چې ګناه له منځه وړي . (بحار  ٧١\٢٤٢وسايل ٢٢\٣٨٤) .

ðپېغمبر اکرم وپوښتل شو:د غيبت د ګناه کفاره څه ده ؟ورته يې وويل : د چاغيبت،چې دې کړى وي، له خدايه ورته بښنه وغواړه . (وسائل ١٥/٥٨٣).

ðڅوک پېغمبر اکرم(ص) ته راغى او ويې ويل: (ګناهونه مې ډېر او نېکې کړنې مې لږې دي.) ورته يې وويل: ((ډېرې سجدې کوه؛ځکه سجدې ګناهونه د ونو د پاڼوغوندې څنډي.)) (بحار ٨٥\ ١٦٢ ،ميزان الحکمه ٣\٤٧٧) .

ðپېغمبر اکرم وپوښتل شو: (تر توبې وروسته ) به څه زما ګناهونه له منځه يوسي؟ورته يې وويل:((اوښکې،خضوع او ناروغي.)) (ميزان الحکمه ٣\٤٧٤)

ðيو څوک پېغمبراکرم ته راغى،و يې ويل : د جاهليت په پېر کې مې لور وشوه؛و مې روزله او سينګار مې کړه او په څاه کې مې واچوله؛وروستۍ خبره يې دا وه:((پلارجانه!))؛خو اوس ډېر پېښمانه يم،ددې ګناه کفاره څرنګه ورکړم؟ پېغمبر اکرم ورته وويل: (( مور دې ژوندۍ ده.)) و يې ويل : نه . پېغمبراکرم ورته وويل : (( ترور دې شته ؟)) ويې ويل : هو.پېغمبراکرم وويل:((نېکي ورسره وکړه؛ځکه ترور د مور په  شان وي او ورسره نېکي به ستا د ګناه کفاره شي.)) (کافي ٢\١٦٢) .

 

تر ټولو ناوړه انسان

  ðپېغمبراکرم(ص) اصحابو کراموته وويل : (( ايا تاسې ته تر ټولو ناوړه انسانان در وپېژنم ؟)) ومو ويل : رسول الله! خبر مو کړه! ويې وويل:(( تر ټولو ناوړه هغه دى،چې تورونه لګوي،پوچه خوله خوځوي،ځان ته خواړه خوري او بښنه نه کوي،خپل مريى وهي،د چا  ښځه چې نورو ته پناه يوسي (؛يعنې لګښت يې ورنه کړي او ښځه يې اړه شي،چې نورو ته پناه يوسي  (بحار ٧٢\١١٥).

 

 منافق وپېژنئ

ðکه په چا کې درې ځانګړنې وي؛نو منافق به وي،که څه هم  روژه ونيسي،لمونځ وکړي او ګومان کوي،چې مسلمان دى: په امانت کې به خيانت کوي،په خبرو کې به دروغ وايي او پرخپله ژمنه په وفا نه کوي. [کافي ٢\٢٩]

د امت سمونه

ðکه د دين عالمان فاسد شول؛نو خلک هم فاسدېږي . [بحار:بيروت چاپ ٧٤ \ ١٥٤] .

  ðزما د امت عوام به سم  او اصلاح نشي؛خو داچې د امت مخور سم او اصلاح شي. وپوښتل شو،څوک د امت مخور (خواص) دي؟ و يې ويل: څلور ډلې دي: چارواکي، پوهان،عابدان او سوادګر. پوښتنه وشوه دا څرنګه کېداى شي؟ ويې ويل : واکمن د خلکو شپون وي، شپون چې لېوه شي؛نو رمه به څرنګه څروي؟ عالمان د خلکو طبيبان او رنځپوهان دي . طبيب چې ناروغ شي؛ نو څوک به د ناروغانو درملنه کوي . د خداى عابدين خلکو ته لارښوونه کوي،که لارښوونکي بې لارې وي؛نو څوک به پر لارويو ته لارښوونه کوي ؟ سوادګر د خلکو امينان دي، چې کله امين خيانت وکړي؛ نو پر چا اطمينان وکړو؟)) [المواعظ العدديه]. 

 

ريا

ðپه کوم عمل کې چې لږه ريا هم وي؛نو خداى يې نه مني. (بحار٧٢\ ٣٠٤)

ð که يوه پوه وپوښتل شي او په ځواب يې پوهېږي او وريې نه کړي ؛نو په قيامت کې به يې پر خوله د اور ټاپه ووهل شي . (مجمع البيان ١\ ٢٤) (سفينه البحار ٢\ ٤٧٥).

فطري دين

ðماشوم،چې وزېږي؛نو په خټه کې يې اسلام اغږل شوى او تر زوکړې وروسته ډول ډول رنګونه؛لکه يهوديت،نصرانيت او بې لاري  پرې د موروپلار لخوا ورتپل کېږي . (نورا لثقلين ٤\ ١٨٤)

 

د اولاد لاسنيوى

ðخداى دې پر هغه بنده ولورېږي،چې په نېکمرغۍ او سوکالۍ کې له خپل اولاد سره لاسنيوى او مينه کوي او په روزنه او پالنه کې يې له هيڅ څيزه دريغ نه کوي. (مستدرک الوسايل ٢\ ٦٢٦)

  ðخداى دې پرهغه مور وپلار ولورېږي،چې له اولادونو سره يې په نېکمرغۍ کې لاسنيوى کوي .(فروع کافي ٢\٤٨)

 

له کورنۍ سره غوره چلن

ð غوره هغه دى،چې له  خپلې کورنۍ سره غوره چلن ولري او زه هم همداسې يم. (وسايل ١٤\ ١٢٢)

ðڅوک چې پراخه ژوند لري؛خو پرخپلې کورنۍ تنګسه راولي؛نو له موږ به نه وي . (وسايل ٥\ ١٣٥)

 

د ماشوم ژړا

ðپېغمبر اکرم د ماسپښين د لمانځه په جمع کې وروستي دوه رکعته په بيړه وکړل . خلکو تر لمانځه وروسته وپوښت :کومه پېښه شوې،چې دومره په بيړه مو لمونځ خلاص کړ.؟ پېغمبر(ص) وويل : آيا تاسې د ماشوم ژړا وانه ورېده! (فروع کافي ٦\ ٤٨).

بډې

ðخداى دې پر بډيخور،بډي ورکوونکي او پر منځګړي يې لعنت وکړي. (وسايل ١٢باب )

 

له درې څيزونو وېره

 ðتر ځان وروسته په درې څيزونو پر خپل امت وېرېږم؛تر پوهې وروسته بې لاري،د فتنو بې لاري او تر نامه لاندې (د ناسمو غوښتنو) شهوت.[عيون الاخبار ٢\ ٢٦].

ðپه خپل امت کې له درېو څيزونو وېرېږم :د بخل  لاروي،د ځاني هوسونو منل، په بې لارې مشر پسې تلل.(سفينة البحار ٢/ ٧٤)

 

حلاله روزي

ðيو تن پېغمبر اکرم ته راغى،و يې ويل:غواړم دعا مې قبوله شي. ورته يې وويل:خپل خواړه دې پاک کړه او ګېډې ته حرام خواړه اچوه،څوک چې غواړي دعا يې قبوله شي؛نو بايد له حلالې لارې روزي لاس ته راوړي. (سفينة البحار ١/ ٤٤٦)

ðد حلالې روزۍ ګټل پر هر مسلمان سړي او ښځې فرض دي.(بحار ١٠٣\٩)

ðخدايه ! په ډوډۍ کې موږ ته برکت راکړې او زموږ او د ډوډۍ ترمنځ بېلتون مه راولې،که ډوډۍ نه وي؛نو لمونځ به مو نه وي کړى، روژه به مو نه وي نيولې او خپل فرايض به  مو نه وي ادا کړى. (فروع کافي ٥\ ٧٣) .

 

ډېرښت

ðد نامشروع شتمنيو راټولول،د حق له ورکړې ډډه کول او په زېرمو کې يې کېښوول،په مالونوکې تکاثر (ډېرښت) دى .(نور الثقلين ٥\٦٦٢ )

 

سفر

ðڅوک چې د خپل دين د ساتنې لپاره له يوې ځمکې بلې ځمکې ته د يو څپک هومره سفر وکړي؛نو د جنت وړ به وي (او په جنت کې به) د محمد او ابراهيم عليهما السلام يار وي. (نور الثقلين ٢\ ٥٤١)

 

نېک چاري

ðڅوک چې په پټه نېک کار کوي؛نو اويا ځل  ثواب به وګټي . څوک چې ګناه خپروي،رټل شوى به وي او څوک چې ګناه پټه کړي؛نو خداى به يې وبښي.(کافي ٢\ ٣٥٦) .

 ðخدايه! تا ته له ټګ انډيواله پناه دروړم؛ځکه نېک کار،چې ګوري، پټوي يې او که بدکار وويني؛نو په ډاګه کوي يې. (نهج الفصاحه \ ١٠١)

 

ګناهکار

ðګناهګار،چې وستايل شي؛نو د خداى عرش په  لړزېدو شي او خداى غوسه کېږي. (سفينة البحار ٢ \ ٥٢٨)

 ðڅوک چې ګناهګار وي،ښايي پر مخ يې خاورې وشيندئ .(وسايل ١٢\ ١٣٢)

 

له مسلمان سره خيانت

ðيوه ورځ پېغمبر اکرم(ص) د مدينې په بازارکې ګرځېده؛ يو سړى يې وليد،چې مېوې او کجورې پلوري.پېغمبر اکرم وويل : څومره ښې مېوې دي! وحې ورته وشوه : ترمال لاندې يې وګوره !پېغمبر اکرم لاس ورلاندې کړ؛نو ډېرې مردارې مېوې يې راووېستې او پلورونکي ته يې وويل : له مسلمانانو سره د خيانت لپاره دې هر څه راټول کړي دي . (وسايل ١٢ /  ٢٠٩ )

 

رهبانيت منع دى

ðخداى زه د “رهبانيت” دين ته نه يم رالېږلى؛بلکې زه يې يواسان عبادت ته رالېږلى يم؛روژه نيسم،لمونځ کوم او له ښځې سره کوروالى هم کوم؛نو د چا چې زما لار خوښه وي؛هرومرو به پرې روان وي.(وسايل ١٤\ ٧٤)

 

د مؤمن او کافر توپير

 ðمؤمن خپله ګناه د يوې سترې تيږې په شان ګڼې او وېرېږي چې پر سر يې راونه لوېږي او کافر خپله ګناه د ماشي هومره ويني، چې له پوزې يې تېر شي . ( غررالحکم؛ ميزان الحکمه ٣\ ١٨٢) .

 

 د لمانځه ثواب

 ðلمونځ د روانو اوبو په شان دى .انسان،چې لمونځ کوي؛نو د دوو لمونځونو په وخت کې يې کړي ګناهونه له منځه وړي . (وسايل ٣\٧)

 ðڅوک چې په لمانځه کې لټي وکړي او ورته سپک ګوري؛نو خداى به يې پر پينځلسو ګناهونو اخته کړي،چې دا دي : د عمرلنډوالى. د روزۍ کمېدل .له څېرې يې د صالحانو د رڼا لرې کېدل .د کړنو لپاره يې د اجر نه شتوالى. د دعا نه قبلېدل يې. د صالحانو له دعا ګټه نه شي اخستاى.په ذلت به مري. په تنده او لوږه کې به مري.د خداى له لوري به ورته پرښته وټاکل شي،چې په قبرکې يې په عذاب کړي. قبر به يې تنګ وي.په قبرکې به يې تپه تياره وي.د خداى له لوري به ورته پرښته وټاکل شي،چې د خلکو په مخ کې يې له مخه راکاږي.په قيامت کې به ورسره سخت حساب وشي.خداى به ورته پام نه کوي او پر سخت عذاب به ککړ شي . ( سفينة البحار٢\ ٤٤ )

 

وړ  مشر

ðهغه مشر او امام وړ دى،چې درې ځانګړنې ولري : تقوا، چې له ګناه يې وساتي.حلم،چې غوسه يې يخې اوبه واړوي او مهرباني،چې تر لاس لانديو سره د پلار په څېر مهربانه وي .(کافي 1 /407)

 

د پېغمبر اکرم د لارښوونې او روزنې مثال

ðزما د  لارښوونې او روزنې مثال د هغه باران دى،چې پر بېلابېلو سيمو ورېږي؛ځينې ځمکې پاکې او چمتو وي،چې اوبه  په ځان کې ساتي او ډول ډول کښتونه پکې کېږي؛خو ځينې ځمکې سختې وي،چې اوبه نه زغمي؛ بلکې اوبه پرې د پاسه ډنډېږي او خلک له هغو اوبو د خپلو پټو د خړوبولو او يا څښاک ګټه اخلي؛خو ځينې ځمکې وچې کلکې او شګلنې دي،چې نه په ځان کې اوبه ساتي او نه د کښت وړ دي،چې دا خبره د هغو په هکله ده،چې زما د لارښوونې تر اورښت لاندې دي،چې په ګټه اخستو کې يو له بل سره توپير لري . ( المحجة البيضاء : ١٩ مخ )

 

د عالمانو ډولونه

ðعالمان دوې ډلې دي: يوه هغه ډله ده،چې پر خپل علم عمل کوي، چې دا ډول عالمان د قيامت پر ورځ  له ناوړو پېښو خوندي دي. بله ډله پر علم عمل  نه کوي،چې دا ډله پوپنا شوې ده او د قيامت پر ورځ به داسې راپاڅي،چې د بدن  وروست بوى يې دوزخيان هم کړوي . د قيامت پر ورځ به هغه تر ټولو پښېمانه او عذاب يې سخت وي،چې خلک يې دين او خداى ته رابلي او دا بلنه يې اغېزمنه هم وي او هغوى جنت ته ولاړ شي،چې همده ورته سمه لار ښوولې؛خو په خپله ځکه دوزخ ته ولاړ شي،چې پر خپل شته علم يې، چې نورو ته ښوولى،عمل نه وي کړى؛ځکه د ځاني غوښتنو لاروي مې کړې او اوږدې هيلې يې اخرت ته له پام،معنوياتو او حق ته له رسېدو ژغوري .(اصول کافي؛لومړى ټوک،٥٥ مخ )

 

ګاونډ

ðرسول اکرم ته وويل شول : ((پلانۍ ښځه لمونځ کوي او روژه نيسي؛خو ګاونډيان ترې پوزې ته راغلي دي.)) د خداى استازي ورته وويل:((ځاى يې د دوزخ په اور کې دى . هغه ايمان نه دى راوړى،چې ګاونډى يې ترې تنګ وي. څوک چې ګاونډى وځوروي؛خداى به پرې د جنت بوى حرام کړي او دوزخي به يې کړي، چې دوزخ ډېر بد ځاى دى.)) (بحار الانوار٧٤ /١٥٠)

ðکه د ګاونډي نيمګړتيا مو وليده؛نو کوښښ وکړئ پرده پرې واچوئ او پوه شئ،چې د ښکلا او ښېګڼو څرګندول او پر بدو پرده اچول، الهي ځانګړنه ده  او د بديو  بربنډول د شيطان کار دى . (بحار الانوار٧٤ /١٥)

ðچا چې د اړتيا پر مهال ګاونډي ته خپل لوښي ور نه کړل؛خداى به د قيامت پر ورځ خپل خير ور نه کړي .(٥٩)

 

د جنتيانو د روح په څېر بدن

ðحضرت عايشه بي بي وايې : د خداى رسول ته مې وويل:تر تا وروسته له واره تشناب ته ولاړم،چې بې د مشکو له بوى پکې هيڅ څه هم نه ول. پېغمبر اکرم راته وويل : ((زموږ د پېغمبرانو بدنونه د جنتيانو د روح په څېر ‏دي اوڅه چې ترې راوځي،ځمکه راکاږي يې.)) (د سنن النبي کتاب)

 

په سلو کې نهه نوي برخې عقل يې پېغمبر اکرم ته ورکړ

ð چې خداى عقل جوړ کړ ؛نو ورته يې وويل : شا ته ولاړ شه! عقل شا ته ولاړ و بيا څښتن ورته وويل : يو مخلوق مې هم ستا هومره پر ماګران نه دى،چې دا مهال یې د هغې (عقل) نهه نوي برخې ماته راکړى او هغه يوه پاتې برخه يې پر خپلو نورو ټولو بندګانو وويشله .)) (سنن النبي)

 

زه د نېکو اخلاقو لپاره مبعوث شوى يم

ð زه د غوره او له نېکو اخلاقو سره مبعوث شوى يم . (سنن النبي)

ð اخلاق مو ښه کړئ؛ځکه زه خداى په ښو خويونو مبعوث کړى يم . (سنن النبي)

 

د صبر او ايمان تړاو

ðد صبر او ايمان تړاو؛لکه د سر او تې دى . (سنن النبي)

رسول الله ته ورته انسان

ð  آیا درته ووايم ،چې په تاسې کې څوک تر ټولو زيات ماته ورته دى؟ اصحابو وويل : ويې وواست؟ پېغمبر اکرم(ص): هغه چې اخلاق يې نيک او له خلکو سره يې چلن تر ټولو نرم وي او تر ټولو زيات پرخپلو دينى ورونو مهربان وي،د حق ملګرى وي او تر ټولو زياته خپله غوسه کابو کړي،بښونکى وي او خوشحاله او که خپه وي، انصاف او عدالت رعايت کړي. (سنن النبي)

 

حقيقي لارويان اوبې لاري

  ðپوه شئ د هرعبادت لپاره يو شدت او افراط وي،چې وروسته بيا دا حالت پر فطرت او هوسايۍ اوړي؛نو د چاچې د عبادت شدت زما د سنتو پر خلاف عمل کوي؛نو بې لارى شوى دى،عمل يې بې ځایه تللى او ځان يې هم تباه کړى دى . (سنن النبي)

ðخلکو! پوه شئ ،چې زه هم لمونځ کوم او هم خوب! روژه نيسم او روژه ماتى هم کوم،خاندم اوکله ژاړم هم ؛نو چا،چې زما له روښانه سنت مخ واړاوه؛نوله ما څخه نه دى . (سنن النبي)

 

پینځه نبوي سنتونه

ðپینځه څيزه به تر مرګه پرېنږدم، چې تر ما وروسته سنت شي: پر ځمکه ډوډۍ خوړل ،له مریانو سره پر لوڅ خره سپرلي ، اوزې لوشل،وړينې جامې اغوستل او پر ماشومانو سلام کول . (سنن النبي)

 

له خلکو سره جوړجاړى

ð هماغسې،چې موږ پېغمبرانو ته دنده راکړل شوې،چې په خلکو کې واجبات دود کړو؛نو هماغسې دنده راکړ شوې ،چې له خلکوسره ګوزاره او جوړجاړې ‏هم وکړو. (سنن النبي)

 

 

له فقيرانوسره مینه

ðخداى حکم راکړى،چې له بېوزليوسره مينه ولرم . (سنن النبي)

 

دعا

ðدعا د مؤمن وسله ،د دين ستنه او د اسمانو او ځمكې رڼا ده . (فلاح المسايل : ۲۸مخ)

ðبښنه غوښتل  ډېره غوره دعا ده . (الكافي ۲\ ۵۰۴)

ð ډېر بېوسې هغه دى،چې دعا نشي كولاى او ډېر كنجوس هغه دى ، چې د سلام په ځوابولو كې كنجوسي كوي . ( وسايل الشيعه ۱۲ \۶۱)

ðچا ته چې د دعا ور پرانستلل شي؛نو خداى تعالى يې دعا هرومرو قبلوي . ( مستدرك الوسايل ۵\ ۱۶۸)

ðدعا د خداى ډېره ښه ايسي . ( مستدرك الوسايل ۵\ ۱۶۹)

ðپرهېز او ډډه كول د تقدير خنډېداى نشي؛خو دعا يې خنډېداى شي؛ نو د بلا تر راكېوتو وړاندې دعا وكړئ؛ځكه خداى په دعا هره راكېوتې اور اكېوتوونكي بلا لرې كوي . (الدعوات : ۲۸۴)

ð (( لا اله – الا الله )) غوره وينا ده او ((الحمدالله))  غوره دعا ده . (المحاسن  ۱\ ۱۶۱)

ðكه بلا د خداى ټينګه قضا هم وي؛نو دعا يې ستنولاى شي . ( وسايل الشیعة ۷\ ۴۳)

ðپه لمر پرېوتو كې د اسمان او جنت ورونه پرانستل كېږي او دعا قبلېږي؛نو پر هغه دې خوښي وي ،چې پردې مهال نېکې چارې  كوي . (روضة الواعظين ۲ \ ۳۱۸)

ðپر هغه دې خوشحالي وي،چې په كړنليك كې يې تر هرې ګناه لاندې يو (( استغفرالله )) كښل شوی وي . ( محاسبة النفس : ۱۵مخ )

ðقضا يوازې په دعا، قضا شي ( او بس ) . ( مكارم الا خلاق : ۳۸۸)

ðد څلورو تنو دعا نه ستنېږي او د اسمانو ورونه پرانستل كېږي او الهي عرش ته رسېږي : (۱) زوى ته د پلار دعا (۲) ظالم ته د مظلوم ښېرا (۳) حاجي تر راستنېدو پورې (۴) او روژه تي،تر روژه ماتي پورې . (الكافي : ۲\ ۵۱۰)

ð دعا د خداى د رحمت کونجي ده .  ( کنز ٢ /٦٢)

ðغايب ته چې دعا کوې (؛نو) خداى يې  ژر قبلوي . ( سنن ابى داود ١/٣٤٣)

ðهغه ډېر بېوسې دى،چې ان  له خدايه په دعا او غوښتو کې هم بېوسې وي . ( کنز: ٦٤)

ð دعا  د مؤمن وسله ده . ( کافي ٢/٤٦٨ )

ð د يو ورور په حق کې شا پر شا دعا کول قبلېږي . ( کنز ٢/٩٨)

ð دعا د انسانه بلا ګانې تمبوي .( کنز ٢/٦٣)

 

د پېغمبر اکرم دعا

ðدآدم د اولادې ټول زړونه ديوه زړه په څېر د رحمان (خداى) د دوو ګوتو ترمنځ دي،څنګه يې چې خوښه شي،هماغسې يې ګرځوي؛نو پېغمبر اکرم وويل : (( دزړونو ګرځوونکيه! زموږ زړونه د خپلې بندګۍ پر لور وګرځوه .)) (سنن النبي)

ðخدايه ! اخلاق مې نېک کړې .خدايه! له بدو اخلاقومې لرې کړې . (سنن النبي)

ðد خداى رسول،چې ويده کيده ؛نو دا دعا ‏يې ويله (( اللهم با سمک احيا وباسمک اموت – خدايه!ستا په نامه ژوندى کېږم اوستا په نامه مړکېږم)) او چې له خوبه راپاڅېده؛نو دا دعا یې ویله ((الحمدالله الذى احيانى بعد ما اماتنى واليه النشور – د هغه خداى شکر ،چې ‏تر مرګ وروسته یې بېرته راژوندى کړم او ټول به د هغه پر لوري  راغونډېږو)). (سنن النبي)

ðپېغمبر اکرم(ص) تبې او درد ته دا دعا ويله :(( د لوى خداى په نامه د رګ رګ له شره مې وساتې،چې وينه پکې تېزه بهېږي ‏او د دوزخ  د اور له شره ‏پناه غواړم.)) (سنن النبي)

ð پر رسول اکرم،چې خپګان راته؛نو دوه رکعته لمونځ يې کاوه  او ويل یې:((خدايه! ما پر هغه څه عمل وکړ،چې تا پرې حکم کړى و؛نو ته هم راسره پرکړې ژمنه عمل وکړه.)) (سنن النبي)

ð آيا نه غواړئ،‏هغه دعا درزده کړم،چې ‏جبرئيل رازده کړې،چې نور طبيب او درمل ته اړتيا پيدا نه کړئ؟ اصحابووويل :وښاياست. آنحضرت(ص) ‏وويل:((د باران اوبه راواخلئ، ‏اويا ځل ((سوره حمد))،اويا ځله ((قل اعوذ برب الفلق )) اويا ځله (( قل اعوذبرب الناس))،اويا ځله پرې ((پر محمد او آل يې درود )) او اويا ځله ((سبحان الله)) وواست او اوه ورځې پرله پسې يې سهار ماښام وڅښئ.)) (سنن النبي)

ðد څښتن له استازي به،چې څه هېرشول؛نو تندى يې په ورغوو کې کېښود او بيا يې ويل : (( اللهم لک الحمد،يا مذکرالشى و فاعله ذکرنى ما نيست ؛يعنې خدايه!حمد او ستاېنه ستا ده . اى د هر څه يادوونکيه! راياد کړه څه مې،چې هېرکړې دي . (سنن النبي)

 

دسپرېدو پر مهال دعا

ð په سفرونو کې چې آنحضرت (ص) ‏ پر‏ څه سپور و؛نو درې ځله يې الله اکبر او د ((سُبْحانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ)) آيت يې ترپایه لوسته  او ویل یې : (( خدايه!په دې سفر کې له تا نېکي او پرهېزګاري غواړم او هغه کار درڅخه ‏غواړم،چې د خوشحالۍ لامل دې ګرځي . خدايه!دا سفر راته اسان او لرېوالى يې راته نږدې کړه . خدایه! ته په سفر کې له موږ سره او په کورونو کې مو ځايناستى يې،خدايه!د سفر د غم او کړاو او د کور د غم اوخپګانه درته پناه دروړم .)) (سنن النبي)

ð له چې سفره راستنېده؛ نو ويل يې : ((‏حال داچې خداى ته مې توبه کړې، ‏عبادت ‏او ‏مننه یې کوم ،چې خپل کور ته راستون شوم .)) (سنن النبي)

ðپر آنحضرت (ص) چې به په سفر کې شپه‏ شوه؛نو ‏ويل یې : ((ځمکې!زما او ستا پالونکی خدای دی‏، ستا له شره او د هر هغه څه له شره،چې پر تا روان دى،خداى ته پناه وړم او همداسې د هر داړونکي ، چيچونکي مار او لړم او د هر موجود له شره،چې په دې دښته کې دي خداى ته پناه وړم . (سنن النبي)

 

د نويو جامو اغوستو پر مهال دعا

ðد هغه خداى شکر او ستاېنه ،چې پر هغه څه يې وپوښلم،چې پرې خپل عورت پټ کړم او په خلکو کې پرې ځان سینګار ‏کړم . (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم چې هر کله نوې جامې واغوستې؛نو پاڅېده او مخکې له دې،چې له کوره ووځي ‏ويل یې : ((خدايه! ستا له لارې ‏مې ځان وپوښه او تا ته مخه کوم‏ او ستا پر رسۍ منګولې لګوم،پر تا مې توکل ‏دى . خدايه! ته مې ډاډ‏ اوهيله يې . خدايه!مهمات مې کافي کړې او‏ څه ته مې،چې پام نه وي او ته پرې ښه پوهېږې،راسره پکې ملاتړ شې، بې له تا بل خداى نه شته . خدايه! تقوا مې د لارې توښه کړې او ومې بښه او هر لوري ته مې،چې مخه کړه،خير او ښېګڼه راپېښه کړې . (سنن النبي)

 

له مجلسه د پاڅېدو پرمهال دعا

ðآنحضرت (ص)،چې ‏له کوم مجلسه پاڅېده؛نو ويل يې : ((خدايه!له هر ډول عيب او نيمګړتيا پاک يې،حمد او ستاېنه يوازې ستا ده، شهادت ورکوم،چې بې له تا بل خداى نشته . له تا بښنه غواړم او تا ته درستنېږم . (سنن النبي)

 

جومات ته د ننووتو او وتو دعا

 ðد خداى رسول،به چې جومات ته ننووت؛نوويل ‏يې : ((اللهم افتح لى ابواب رحمتک ‏خدايه!د رحمت ورونه راپرانځې)) او د وتو پرمهال ‏يې ويل:(( اللهم افتح لى ابواب رزقک خدايه د روزۍ ورونه ‏راپرانځې. (سنن النبي)

ðد خداى رسول ‏چې به جومات ته ننووت؛نو ويل ‏يې:(( د خداى په نامه او خدايه! پر محمد او آل يې درود ووايه ،ګناهونه مې وبښې او د رحمت ورونه راته پرانځې.)) او له جوماته د وتو پرمهال يې ويل : (( د خداى په نامه . خدايه! پر محمد او آل يې درود ووايه،ما وبښه او د فضل اوکرامت ورونه راپرانځې.))

 

د ويدېدو پرمهال دعا

ðپېغمبراکرم،چې ويدېده؛نو پر ښي اړخ ‏ويدېده،ښى لاس ‏يې تر مخ لاندې اېښووه اوبيا ‏يې ويل : ((خدايه! پر هغه ورځ  مې وساتې،چې ‏بندګان دې له قبرونو راپاڅوې .)) (سنن النبي)

د دسترخوان دعا

ð آنحضرت(ص) ته يې، چې د سترخوان خپور کړ؛نو ‏ويل یې : ((خدايه! ته پاک يې! هغه څومره ښکلي دي‏،چې موږ ‏پرې ازمېيې . ته پاک يې، ‏هغه نعمتونه څومره ډېر دي،چې رابښلي دې دي . ته پاک يې،څومره نعمتونه دې رابښلي . خدايه! موږ، مؤمنو ‏او مسلمانو بېوزلیو ‏ته پراخه روزي ورکړې .)) (سنن النبي)

 

د دسترخوان د برکت دعا

ðآنحضرت(ص) ‏ته ‏يې چې دسترخوان هوار کړ؛نو ‏‏ويل یې : ((د خداى په نامه،اى خدايه!‏دا نعمتونه راته له مشکوره نعمتونو ‏وګرځوې او د جنت له نعمتونو سره يې يو ځاى کړې .)) (سنن النبي)

 

خوړو ته د لاس نږدې کولو د مهال دعا

ðپېغمبراکرم(ص)‏،چې خوړو ته لاس وراوږداوه؛نو ويل يې :((د خداى په نامه .خدايه!‏څه چې دې راروزي راکړې،‏برکت پکې واچوې او د هغې پر ځاى نوره روزي راکړې .)) (سنن النبي)

 

د دسترخوان ټولولو پرمهال دعا

ðد خداى د رسول له مخې ‏يې،چې ډوډۍ ټولوله؛نو ويل یې:  (( خدايه! ډېر نعمتونه دې ‏راکړل،هغه دې پاک کړل،برکت دې پکې واچاوه،موږ دې ماړه کړو،د هغه خداى ځانګړې ستاېنه،چې روزي يې راکړه؛خو ‏په خپله روزۍ ته اړتيا نه لري .)) (سنن النبي)

 

 

د خوړو او شيدو پر مهال دعا

ðد خداى رسول ‏چې څه خوړل يا څښل؛نو ويل ‏يې:((خدايه په دې خوړو کې برکت واچوې او ترې غوره راکړې .)) (سنن النبي)

ðد شيدو څښلو پر مهال ‏يې ويل : (( خدايه! دا شيدې رامبارکې کړه او تر هغې ‏مې رزق زيات کړه .)) (سنن النبي)

 

د تازه ميوې د ليدو پرمهال دعا

ðد خداى رسول،چې تازه مېوه ليده؛نو ښکل کوله يې او پر سترګو او خوله ‏يې کېښووه او بيا ‏يې ويل : (( خدايه !؛لکه ددې مېوې د ليدو په پيل کې،چې دې په روغتيا کې راښووه ؛نو په پاى کې يې هم په روغتيا کې راوښيې.)) (سنن النبي)

 

تشناب ته د ننووتو دعا

ðآنحضرت(ص)،چې تشناب ته ‏ننووت؛نو ويل يې:((خدايه!د پليت ، نجس ،خبيث او ناپاکه شيطان له شره پناه دروړم . خدايه!غم او خپګان رانه لرې کړې او له رټل شوي شيطانه پناه راکړه.)) او چې اودسماتي ته ‏کېناسته؛نو ‏ويل یې:(( خدايه!خپګان او ناپاکي رانه لرې کړې او له پاکانو مې کړې.))

د مدفوع د وتو پر مهال ‏يې ويل : ((خدايه! لکه هماغسې،چې دې د روغتيا په حالت کې پاک خواړه راکړل؛نو د روغتيا په حالت کې يې رانه فضلات هم وباسه.)) (سنن النبي)

 

 

 

د خداى ستاېنه

ðپېغمبراکرم(ص)،چې تشناب ته ته؛نو کله ‏يې داسې هم ويل : (( د هغه خداى ستاېنه او شکر‏ دى،چې د انسان ساتونکى او د حاجتونو پوره کوونکې دې.)) (سنن النبي)

 

له تشنابه د راوتوپر مهال دعا

ðله تشنابه،چې راوته؛نو لاس ‏يې پر ګېډه راکښه ‏‏او ‏‏ويل یې : ((د هغه خداى شکر ‏او ستاېنه،چې د خوړو کړوونکي فضلات يې له رانه واېستل او له خوړو‏ پاتې قوت يې راکې پرېښود،‏دا ‏ ستر نعمت دى،چې ‏څوک یې هم په اندازه کولو وسمن او قادر نه دی .)) (سنن النبي)

 

له هديرې د تېرېدو پر مهال دعا

ðله هديرې ‏د تېرېدو پر مهال ‏يې ويل : ((د مؤمنانو له اړخه دې پر تاسې سلام او درود وي،موږ به هم هله له تاسې سره یو ځای شو،چې خداى غوښتل‏.)) (سنن النبي)

 

د قبر د زيارت دعا

ðد خداى رسول ‏له ځينو يارانو سره د بقیع هديرې ته ته او درې ځل ‏يې ويل : (( السلام عليکم يااهل الديار)) سلام دې پر تاسې وي‏،چې ويده ياست. ‏درې ځلې ‏يې ويل : ((رحمکم الله)) پر تاسې دې د خداى رحمت ‏وي . (سنن النبي)

 

د خوشحالۍ او خپګان پرمهال دپېغمبراکرم دعا

ðهره خوشحالوونکې خبره،چې د خداى رسول ته رارسېده؛نو ويل يې: ((الحمدالله لله على هذه النعمه‏ ،ستاېنه او شکر‏ د هغه خداى دى،چې دا نعمتونه يې ‏راکړل.)) او چې خپه به شو؛نو ويل ‏يې : ((الحمدالله على کل حال ،په هر حال کې د خداى شکراوستاېنه ده.))

 

د خوښ څيز د ليدو پر مهال دعا

ðد آنحضرت(ص)،چې څه خوښ وو او و به يې ليد؛نو ‏ويل یې: (حمد او ستاېنه ځانګړې د هغه خداى ده،چې پر خپل نعمت يې نيمګړى خلاص کړى.))

 

دروژه ماتي پر مهال دعا

 ðپېغمبر اکرم(ص) ‏د روژه ماتي پر مهال ويل : ((خدايه!تا لپاره مو روژه ونيوه او ستا پر راکړي رزق مې ماته کړه؛نو روژه مو قبوله کړه،تنده ماته شوه،د بدن رګونه ډک شول؛خو د روژې ثواب پر ځاى پاتې دی.)) (سنن النبي)

 

د سهار تر لمانځه وورسته دعا

 ðپېغمبراکرم(ص)،چې د سهار لمونځ وکړ؛نو پر ‏لوړ ‏غږ‏ يې دا دعا کوله ، چې نورو يارانو ‏يې هم ‏اورېده : ((خدايه هغه دين وساتې،چې زما د ساتلو ‏وسيله دې ګرځولې.)) او درې ځل يې وويل : ((خدايه !په کومه دنيا کې چې اوسېږم راته يې اصلاح کړې.)) او درې ځل ‏يې ويل : ((خدايه! آخرت ته مې ورستنېدل مې‏ دي، راته يې ښه کړې .)) درې ځل ‏يې ويل : ((خدايه! له غوسې دې رضا ته او له سزا ‏دې بښنې ته پناه وړم.)) او په پاى کې ‏يې ويل : ((خدايه پناه دروړم،څه چې ‏ راوبښې، څوک يې مخه نشي نيولای او د‏ څه چې ته مخه ونيسې؛نو څوک يې نشي راکولای او د هر هڅوونکي هڅه بې ‏له تا  بې ګټې ده)) (سنن النبي)  

 

په سجده کې دعا

 ðپېغمبراکرم،چې تندى د سجدې لپاره پر ځمکه کېښود؛ نو ‏‏ويل یې: ((خدايه! زما په نزد له ګناهونو مې ستا رحمت ستر دى او له اعمالو مې ستا رحمت ته ‏هيله ډېره ده؛نو خدايه!ګناهونه ‏مې وبښه. اى هغه ژونديه،چې مرګ او نيستي ستا لپاره نه ده .)) (سنن النبي)

 

له لمانځه د راستنېدو پر مهال دعا

ðپېغمبراکرم به،‏چې له لمانځه راستون شو؛نو تندى به يې پر ښي لاس مسح کړ او‏ ويل یې : (( خدايه!ټولې ستاېنې ستا ‏دي،بې تا بل خداى نشته، چې له ښکاره او پټو ‏خبر وي .خدايه ! پټې او ښکاره فتنې او غمونه رانه ‏لرې کړه. )) اوبيا يې وويل : (( ‏په امت کې مې،چې ‏چا دا کار وکړ؛نو ‏څه يې،چې له خدايه وغوښتل؛ور به يې کړي .)) (سنن النبي)

 

په هر لمانځه پسې دعا

ð حضرت انس بن مالک(رض) وايي : پېغمبر(ص) تر لمانځه وروسته ويل : ((خدايه!له هغه علمه پناه غواړم،چې ګټه نه لري،له هغه زړه،چې خشوع نه لري،له هغې ګېډې،چې مړه نشي او له هغې دعا،‏چې و نه منل شي . خدايه زه له دې څلورو څيزونو پناه غواړم.)) (سنن النبي)

 

د نوي کال پرمهال د پېغمبر اکرم دعا

 ðپېغمبر اکرم به د محرم پر لومړۍ ورځ دوه رکعته لمونځ کاوه او تر  لمانځه وروسته به ‏يې لاسونه  پورته کړل او درې ځلې ‏ يې دا دعا وويله  : (( خدايه! ته پخوانی معبود او دا کال نوى دی؛نو خدايه! په دې کال کې له تاغواړم،چې د شيطان له شره مې خلاص کړې،پر اماره نفس مې برلاس کړې او پر هغه مې بوخت کړې،چې تا ته مې در نژدې کوي . اى کريمه! اى د جلال او اکرام خاونده! اى د هغو اډانه،چې ډډوېږدى (تکيه) نه لري، اى د هغوى د چغو اورېدونکيه،چې اورېدونکی نه لري،اى د هغوى پناه،چې پناه نه لري،اى د هغوى خزانې،چې خزانه نه لري،اى نېک بښونکيه،اى سترې هيلې،اى د بېوزليو عزته،اى ‏د پوپنا‏ شويو ژغورونکیه، اى د هلاک شويو ژغورونکيه،اى احسان کوونکيه، ته هغه خداى يې،چې د شپې تياره ،د ورځې رڼا، د سپوږمۍ او لمر ځلا، د اوبو غږ،د اورونو غږ ټول درته سجده کوي . خدايه ! ته شريک نه لرې . خدايه ته موږ له هغه غوره کړې،چې خلک ‏مو‏ په باب فکر کوي او ‏هغه ګناهو‏نه مو وبښه،چې څوک ترې خبر نه دي . خداى، چې مو مل وي ؛نو همدا راته بس دى او په خدای مې  ‏توکل ‏دی . هغه د ستر عرش خاوند دی،زه پرې ايمان لرم او له دې خبرې بې له هوښياراونو بل څوک خبر نه دي،چې ټولې چارې د خداى له لوري دي . خدايه زړونه مو ونه خوځى،راباندې ولورېږه،چې يوازې ته بښونکى يې.)) (سنن النبي)

 

د شعبان پر پینځلسم (پينځلسي) د پېغمبر(ص) دعا

ð پېغمبراکرم د شعبان پر پینځلسمه شپه دا دعا کوله : ((خدايه! په زړونو کې مو له تا دومره وېره واچوې،چې د ګناه د مخنيوي لامل وګرځي او په دومره عبادت مې بوخت کړې،چې ستا د رضا لامل وګرځي او دومره يقين راوبښې،چې د دنيا ټولې سختۍ را اسانې شي . خدايه! څو‏ ژوندي يو؛سترګې،غوږونه او ځواک ‏مو ګټور کړې او ‏زموږ وارثان یې وګرځوې .‏له دښمنانو مو غچ واخله او‏ پرې مو برلاسي کړه . خدايه ‏په دين کې مو غم را نه وړې او دنيا راته غم او د علم پاى و نه ګرځوې او هغوى راباندې برلاسي نه کړې،چې راباندې ‏رحم نه لري ؛نو ستا رحمت ته هيلمن یم، اى تر ټولومهربانه.)) (سنن النبي)

  

د شعبان پر پینځلسمه دپېغمبر(ص) بله دعا

 د پېغمبر(ص) د يوې مېرمنې د خولې خبره ده،چې پر هغه شپه زما وار و؛ نو د خداى رسول له بسترې ‏داسې پاڅېد،چې پرې پوه نه شوم، ‏راپاڅېدم ؛نو ښځينه غيرت مې راوپارېد او فکر مې وکړ،چې ګنې د خداى رسول د بلې ښځې کوټې ته تللى. ناڅاپه مې پرې سترګې ولګېدې، چې د خداى رسول د جامو غوندې پر خاورو پروت دى او په سجده کې وايي : (( خدايه!تل ستا د درشل فقير يم،اړ دې يم،تل له تا وېرېږم او له تا پناه غواړم؛نو ته مې هم نوم د نېکانو ‏له لړه و نه باسې،په جسم کې مې بدلون را نه ولې،په ‏سختو ازمېښتونو ‏کې مې راښکېل نه کړې او ومې بښې.))

بيا يې وويل : د خداى رسول ‏له سجدې سر راپورته کړ او بېرته سجدې ته ولاړ او دا ځل يې په سجده کې وويل : ((خدايه! جسم او روح دواړه مې درته پر سجده دي او زړه مې پر تا ايمان لري او دا هماغه دواړه جنايت کوونکي لاسونه دي (،چې تا ته په سجده دي) ستره خدايه،چې د هر ستر کار د کولو هيله يوازې له تا کېدای شي،ستر ګناهونه ‏مې وبښه، چې بې له ستر خداىه بل څوک د سترو ګناهونو د بښلو وس نه لري.)) سر یې له سجدې راپورته کړ او بيا سجدې ته ولاړ؛ وا مې ‏ورېدل،چې ويې ويل : (( خدايه،ستا له عذاب،غضب او سزا څخه ستا تېرېدنې،‏بښې،رضا،خوشحالۍ او عفوې ته پنا دروړم، هو څښتنه! له تا څخه تا ته پناه دروړم،ته هماغه يې ،چې خپله ستاېنه دې وکړه او ته له دې ډېر ستر يې ،چې خلک فکر کوي.))‏له سجدې یې سر راپورته کړ او په څلورم ځل بیا په سجده شو او ويې ويل : (( خدايه! ستا د وجهې له رڼا درته پنا دروړم،چې اسمانونه او ځمکې پرې روښانه شوې،تيارې پرې له منځه تللي او لومړني او آخرني کارونه دې پرې اصلاح کړي،له دې وېرې،چې غضب دې راباندې رانازل نه کړې او يا داچې عذاب دې راباندې ‏نازل نشي . خدايه! د نعمت د ورکېدو،د ناڅاپه عذاب،له ناروغۍ او ستا له غوسې او عذابه پناه غواړم .خدايه! پر هغه چې کړاى شي، و مې رټې او هېڅ داسې ځواک ‏نشته؛خو داچې ستا د سپېڅلي ذات په مټ به وي .)) د خداى رسول مې،چې پر دې حال وليد؛نو پر خپل حال  مې پرېښود او ‏حال داچې ساه مې تله راتله،‏کوټې ته مې راغلم  پېغمبر اکرم هم ‏ راغى او ويې ويل: ((ولى دې ساه ځي راځي؟)) ورته مې وويل: زه په تاسې پسې در ووتم اوستاسې کړه مې وليدل .  پېغمبراکرم وویل : ((خبره يې،چې نن د څه شپه ده؟نن ‏د شعبان دپینځلسمې شپه ده،چې پکې د انسان اعمال،روزي او د مرګ اجل ټاکل کېږي . خداى په دې شپه د ټولو ګناهونه بښي؛خو مشرک، باجګير،بې رحمه،شرابخور، هغه پر خپله ګناه ټينګار کوي، بې ځايه ګړېدونکې،غيب ويونکې او کاهن په دې شپه نه بښي.))  (سنن النبي)

 

د مياشتې د ليدو پر مهال دعا

ðد خداى د رسول سترګې،چې به پر مياشت ولګيدې؛نو لاسونه ‏يې پورته کول او ‏ویل یې : ((د خداى په نامه . خدايه! د دې مياشتې هلال راته د ايمان او روغتيا له امنيت سره يو ځاى کړې  او اسلام راته ګټور شي(او اى مياشتې!) زما او ستا پالونکی ‏هماغه ایکي يو خداى دی.))  (سنن النبي)

 

د روژې د مياشتې د ليدو پرمهال دعا

ðد خداى رسول،چې به د روژې مياشت وليده؛ نو مخ پر قبله ‏درېده او ‏ويل یې : ((خدايه ددې مياشتې هلال راته د امنيت ايمان،روغتيا،پر اسلام د عمل،نيک عاقبت او د ناروغيو پر وړاندې ‏د دفاع او د لمانځه،روژې او د قرآن د تلاوت مياشت وګرځوې .خدايه!‏‏توفيق راکړې،چې ددې مياشتې اعمال ترسره کړو او دا مياشت رانه خوشحاله کړې او راته ‏پکې روغه سټه هم راکړې او ‏څو دا مياشت په خير پای ته رسي،چې په خير ‏دې بښلي يو.)) (سنن النبي)

 

٣٦٠ ځل ستاېنه او شکر

ðپېغمبراکرم  وويل : (( د بني آدم په بدن کې ٣٦٠ رګونه دي،چې ١٨٠ رګونه يې متحرک یا خوځنده او ١٨٠ يې ساکن دي؛نو که ‏متحرک رګونه ساکن او ساکن متحرک شول؛نو انسان ته به خوب ور نشي.))

ځکه پېغمبراکرم د ورځې ٣٦٠ ځل ويل : (( الحمدالله کثيرا ًعلى کل حال)) او چې شپه رارسېده ؛نو ‏هماغومره بيا یې پورتنى ذکر وايه. (سنن النبي)

 

د قرآن د حفظولو لپاره دعا

 ð خدايه ! ‏څو‏ ژوندى يم؛ته راباندې ولورېږه،چې ځان له ګناه ‏لرې کړم او هغه څه ته ملا وتړم،چې ته پرې خوشحالېږې . خدايه!؛لکه دې چې قرآن رازده کړ،زړه مې يې ساتونکی کړې،چې ته پرې راضي يې او ما ته د قرآن د تلاوت توفيق راکړې . خدايه! سترګې مې پرې روښانه،سینه مې پرې پراخه،زړه مې پرې ګواه او بدن ته مې پر قرآن د عمل توفيق ورکړې او ددې چارو په ترسره کولوکې راسره مرسته وکړې؛ځکه‏ ټول ځواکونه ‏ستا له اړخه دي.)) (سنن النبي)

 

د دښمن له شره د امان لپاره دعا

 ðموږ د کفارو پر زړونو پردې اچولي،چې په قرآن نه پوهېږي او غوږونه يې درانه دي او( ته اى زما رسوله !) چې يوازې خداى په قرآن کې يادوې؛نو هغوى له نفرته تا ته شا کوي . خدايه! ستا دې پر هغه جمال او جلال قسم وي،چې په حجابونو کى پټ دى او د کمال پر هغه نور قسم درکوم،چې عرش يې رانغښتی او پر عزت او شرافت دې قسم، چې د قدرت په عرش  کې دې ځاى لري او پر هغه څه قسم درکوم ، چې په ملکوت کې دې پرې قدرت واکمن دى .خدايه!‏ چې حکم دې تل پلي کېږي او حکم او قضاوت دې نه راستنېدونکى دى، زموږ او د دښمن ترمنځ يوه پرده راوړې،چې تېرې تورې او نيزې يې د شلولو قدرت و نه لري . اى سخت بريدمنه! چې قدرت دې تر ټولو زيات دى،‏له هغوى مې وساتې،چې د غشيو او بلاوو خولې يې زما پر لور رااړولي . اى هغه خدايه، چې د يعقوب غم دې لرې کړ؛نو زماغم هم لرې کړه. خدايه،چې د يعقو‌ب ناروغي دې ورغوله؛نو زما رنځ هم لرې کړه . خدايه! برى تل ستا دى؛نو ما هم پر خپل دښمن برلاس کړه. (سنن النبي)

 

په سهار کې دعا

 ðدرې جملې ټولو پېغمبرانو له آدامه تر خاتمه لاس پر لاس وګرځولې او پېغمبر(ص) به هر  هر سهار دا دعا ويله : (( خدايه! زه له تا هغه ايمان غواړم،چې زړه مې تل له تا سره وي او له تا هغه يقين غواړم،چې پوه شم،هغه څه رارسي،چې تا راته ټاکلي وي .خدايه! پر هغه مې خوشحاله کړې، چې تا راته ټاکلي دي.)) (سنن النبي)

 

د مياشتې د ليدوپرمهال دعا

ð د خداى د رسول سترګې،چې به پر مياشتې ولګېدې؛نو ‏‏ويل یې : ((اى لاس پرسينه مخلوقه،چې د اسمان په ملکوتو کې له الهي تقدير سره د ګرځېدو په حال کې يې،زما او ستا پالونکی ‏خداى دی . خدایه! دا مياشت راته د ايمان ،اسلام او روغتيا مياشت وګرځوې؛ نو هماغسې،چې تا ددې مياشت پيل راوښود؛نو ددې مياشت پاى هم راوښيه او‏ ‏ مبارکه مياشت یې وګرځوې،چې زموږ ګناهونه پکې وبښې او  درجه مو پکې لوړه کړې . خدايه ستا خيرات ستر دی.)) (سنن النبي)

 

د رجب د مياشتې د ليدو پرمهال دعا

ð پېغمبراکرم،چې به د رجب مياشت وليده؛نو‏ ويل یې : ((خدايه! دا مياشت راته د اسلام ايمان،امنيت او روغتيا مياشت وګرځوې. سپوږمۍ ! زما او ستا پالونکى ‏ایکي يو خداى دی .)) (سنن النبي)

 

د شعبان د مياشتې د ليدو پرمهال دعا

ðپېغمبراکرم‏ د رجب د مياشتې د ليدو پرمهال ويل : ((خدايه! د رجب او شعبان مياشت پر موږ مبارکه کړه او په خير د روژې مياشت راورسوې او په هغه مياشت کې د روژې په نيوو،له نامحرمو د سترګې په پټولو،روژه او عبادت کولو کې راسره مرسته وکړې او په هغه مياشت کې مې يوازې لوږه او تنده په نصيب نه کړې .)) (سنن النبي)

 

دمياشتى د ليدو پرمهال دعا

ðدپېغمبراکرم سترګې،چې به د مياشتې په هلال ولګېدې؛نو درې ځل يې (( الله اکبر)) درې ځل (( لااله لاالله )) وایه او بيا یې ويل:(( د خداى شکر ،چې پلانۍ مياشت يې خلاصه کړه او نوې مياشت يې پيل کړه.)) (سنن النبي)

 

خداى ته پناه وړل

ð دا دعا له پېغمبراکرم رانقل شوې : اى خدايه! د ځان او اولاد لپاره مې د بدې قضا پر قدره پناه دروړم . (سنن النبي)

ðخدايه! له هغې شتمنۍ ‏پناه غواړم،چې ‏د ګناه لامل مې شي،له هغه فقره،چې د هېرېدنې لامل مې شي،له ځاني غوښتنو،چې غافل مې کړي، هغه عمل،چې خوار مې کړي او هغه ګاونډي،چې پر عذاب مې کړي.)) (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم وويل: ((خدايه!ما دې د فرمانونو پلي کوونکى،پر ژمنو دې ايمان راوړونکى،له خلقه دې نهیلى،درسره انس نيوونکى،له تا وېروېدونکى ،ستاپر قضا راضي ،پر بلاوو دې صبر کوونکى،پر نعمتو دې شکر ايستونکى،له ذکره دې خوند اخستونکى،پر کتاب دې خوښ ،په شپه او ورځ کې دې يادونکى،مرګ ته ‏تل چمتو‏،‏ليدو ته دې لېواله، د دنيا دښمن او د آخرت دوست وګرځوې او چې له الهي ‏رسولانو سره دې څه ژمنه ‏کړې،را یې کړې او‏ د قيامت پر ورځ مو سرښکته نه کړې. رښتيا ده،چې ته تل پر خپله خبره ولاړ يې.)) (سنن النبي)

 

محمدي دعا

ðخدايه! له هغه اولاده پناه دروړم،چې پر ما واکمن شي او له هغه ماله،چې ‏د تباهۍ لامل مې شي او له هغې مېرمنې،چې له زړېدو مخکې مې زوړ کړي،له هغه ملګري،چې ټګي راسره وکړي،‏سترګې يې ما ومني او زړه يې نه او که خير وويني پټ يې کړي او که شر وويني،ښکاره ‏يې کړي او له تا د ګېډې له درده پناه غواړم .)) (سنن النبي)

 

د لارښوونې دعا

ðخدايه!له تا پناه غواړم،چې ستا له غنا سره محتاج شم او ستا د هدايت له شتوالي سره بې لارې او ستا له عزت سره  ذليل شم …. خدايه! له تا ددې خبرې پناه غواړم،چې د زور خبره وکړم و،ظلم وکړم او يا ځانمنی شم . (سنن النبي)

 

د برښنا،ورېځو او تالندې پر مهال دعا

  ðد خداى رسول،چې ‏د برښنا او د تالندې غږ واورېد؛‏‏ويل یې: ((خدايه! مخکې له دې،چې ومې بښې؛نو پر خپل غضب او عذاب مې هلاک نه کړې.)) (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم به چې د تالندې غږ اورېد، ويل يې : ((پاک او سپېڅلى دى هغه خداى،چې تالنده يې هم حمد،ستاېنه او تسبيح کوي .)) (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم،چې به وريځ ليده؛نو هر کار ‏يې،چې درلود،‏ هغه ‏يې پرېښود او ويل يې : ((خدايه! ‏له شره یې درنه ‏پناه غواړم.)) او چې وريځې ولاړې ؛نو د خداى شکر ‏يې کاوه او چې باران به پر ورېدو شو؛نو ويل ‏يې:((خدايه! ګټور يې راته وګرځوې.)) (سنن النبي)

 

د پېغمبر(ص) دعا

حضرت ام سلمه وايي : د خداى رسول پخپلو دعا ګانوکې ډېر ويل : (( اى د زړونو اړوونکيه،‏زړه مې پر دين ټینګ ‏کړې .)) (سنن النبي)

 

د بد خلقۍ آفتونه

  ðد خداى له لوري جبرئيل راغى او راته يې وويل : محمده ! ُخلق دې خوږ کړه ؛ځکه بد  ُخلق د دنيا او آخرت خير له منځه وړي او بيا يې وويل : پوه شئ،چې په تاسې کې هغه ماته دى،چې اخلاق يې تر ټولو ښه وي. (سنن النبي)

 

د يارانو خوشحالول

ðخداى د هغه دښمن دى،چې په تريو تندي له بل انسان سره ملاقات کوي . (سنن النبي)

 

د خوړو له زېرمولو ډډه کول

  ðد خداى رسول(ص) خپلې يوې مېرمنې ته وويل : ((آيا ته مې نه وې ژغورلې،چې د سبا لپاره څه مه زېرموه؛ځکه خداى به هر چا ته خواړه ورورسوي . (سنن النبي)

 

د يو بل په ليدوخوشحالېدل

 ðد پېغمبرانو او صديقانو له اخلاقو يو دا دى ،چې کله يو بل وويني؛ نو خوشحالي يې له خبرې راورېږي او يو بل ته لاسونه ورکوي . (سنن النبي)

 

يارانو ته سپارښتنه

ðد خداى رسول(ص) خپلو يارانو ته وويل : خپلې بدۍ ماته مه واست؛ ځکه ‏خوښ يم په داسې حال کې مو ووينم،چې په زړه کې درته هيڅ کینه ‏ونه لرم. (سنن النبي)

 

ست

ðزموږ د پېغمبرانو ‏په ژوند کې بې ځايه ستونه او تکلفونه نشته . (سنن النبي)

 

له خلکو سره له شخړې ژغورل شوى و

 ‏ðړومبى څيز،چې پالونکي ‏مې ترې وژغورلم، له خلکو سره شخړه ده. (سنن النبي)

 

اوه ځانګړنې

 ðخداى ګومارلى يم،چې اوه ځانګړنې ‏ولرم : ټول ښکاره او پټ کارونه مې د خداى لپاره وکړم . چاچې راباندې ظلم کړى،ترې تېر شم او هغه وبښم،چې زه يې بې برخې ‏کړى يم او له هغو سره راشه درشه وکړم،چې راسره يې نه کوي . چوپتيا مې تفکر ته او کتل مې د عبرت اخستو لپاره وي.  (سنن النبي)

 

فقيرانه ژوند

ðخدايه! په فقر او بېوزلۍ کې راته ژوند راکړې او په نېستۍ ‏کې مې له دنيا یوسې او له نشتمنو ‏سره مې راپاڅوې. (سنن النبي)

 

فقيرانو ته زکات او صدقه

ðراته دنده راکړل شوې،چې له شتمنو زکات او صدقه واخلم او فقيرانو ته يې ورکړم . (سنن النبي)

 

زه خداى روزلى يم

ðزه خداى روزلى يم اوعلي ما روزلى دى . خداى ګومارلى يم،چې بښنه او نېکي وکړم او له بخل اوظلم يې ژغورلی يم . (سنن النبي)

 

د هر څه بښنه

ðکه چا له موږ څه وغوښتل او درلودل مو؛نو ور به يې کړو. (سنن النبي)

 

شپږ ناوړه ځانګړنې

  ðخداى راته شپږ ځانګړنې خوښې نه کړې او ما هم هغه د خپل ځايناستو او د هغوى لارويانو ته خوښې نه کړې : په لمانځه کې لوبې، روژه پر خوله سپکې سپورې او بدرد ويل،تر صدقى وروسته منت اېښوول،جنب جومات ته ورننووتل،د شتمنوخلکو کورونو ته کتل او په هديره کې خندل . (سنن النبي)

 

سرتېرو ته سپارښتنه

 ðد خداى په نامه د خداى په لار کې وجنګېږئ،مکر او خيانت مه کوئ،له وژل شويو پوزې مه ‏غوڅوئ،ماشومان اوهغه مه وژنئ،چې په غرونو کې عبادت کوي،د کجورو ونې مه سېځئ او په اوبو يې مه لاهو کوئ،مېوه يي ونې مه غوڅوئ،پټو ته اور مه اچوئ؛ځکه تاسې ‏نه پوهېږئ،‏کېداى شي حاجت ورته پيدا کړئ او له حلالو ځناورو يوازې هغه چې خورئ؛نو بې له هغې ونه وېروئ او چې له دښمن سره مخامخ شوئ؛نو ورته د مسلمانېدو،له جګړې د لاس اخستواو يا د مالياتو ورکولو وړانديز ورکړئ؛نوکه هر يو يې درسره ومانه؛نو تاسې هم له جګړې لاس واخلئ. (سنن النبي)

 

څلور ګران کسان

ðخداى راته وحې وکړه،چې له څلورو تنو سره مينه وکړم : علي، ابوذر،سلمان اومقداد. (سنن النبي)

 

له علي سره مينه ولره

  ðجبرئيل راغى او ويې ويل : خداى  حکم درکړى،چې له على سره مينه ولرې او نور هم دې کار ته راوهڅوې. (سنن النبي)

 

د چا د  تېرايستو سوچ مه کوه

  ðڅومره مو،چې له لاسه کېږي،د چا د غولولو فکر په ماغزو کې رانه وړئ ؛ ځکه دا زما سنت دى او چاچې زما سنت راژوندى کړه؛نو زه يې راژوندى کړى يم او چاچې زه راژوندى کړم؛په جنت کې به له ما سره وي. (سنن النبي)

 

د وېښتانو د ږمنځولو ګټې

ðپېغمبراکرم(ص) خپل وېښتان له لاندې او پاس اړخه درې ځله ږمنځول او ويل يې :(( ږمنځه وهل د انسان هوش زياتوي او بلغم له منځه وړي.)) (سنن النبي)

 

د برېتو کمول

ðد برېتو کمول زما سنت دی،چې شونډه ترې ښکاره شي. (سنن النبي)

ðزرتشتيانو ږيره وهله او برېت يې پرېښوول،چې زيات شي؛خو موږ خپل برېت وهو او ږيره پرېږدو. (سنن النبي)

 

ښايسته بوي ثواب لري

ðعلي! هره جمعه عطر پورې کوه؛ځکه سنت دي او چې ښه بوى درنه ځي؛نو درته ثواب لري . (سنن النبي)

ðدوست مې جبرئيل راته وويل،چې يوه ورځ وروسته پر ځان عطر وهه او د جمعې پر ورځ عطر وهل مه هېروه. (سنن النبي)

 

د ځمکې ګواهي

ðپېغمبراکرم،چې به يو ځاى ته ولاړ؛څو‏ دوه رکعته لمونځ یې پکې  نه و کړى؛ له هغه ځایه به نه راته او ويل يې : ((غواړم دا ځاى مې په لمونځ کولو ګواه وي . (سنن النبي)

 

د مخه ښې پر مهال دعا

  ðمؤمنان،چې په سفر وتل؛نو پېغمبراکرم يې مخه ښې ته راته او ورته يې ويل:((خداى دې تقوا ستاسې توښه او لار کړي او درته دې خیر شي او روغ رمټ مو راوګرځوي .)) (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم(ص) له يوسړي سره خداى پاماني وکړه او داسې دعا يې ورته وکړه:((دين دې پر خداى سپارم او د هغه په امان کې يې ږدم او خداى دې تقوا ستاسې توښه کړي او مخې ته دې خير شه .)) (سنن النبي)

 

د نفس د پاکوالي لامل

ðيوسنت دا دى‏،چې يوه ډله پر سفر وځي؛نو له ځان سره د سفر خرڅ او خواړه یوسي؛ځکه دا عمل د اخلاقو د نېکۍ او د نفس د پاکۍ لامل ګرځي. (سنن النبي)

 

د مؤمن نښه د پېغمبرانو سنت

 ðپېغمبراکرم وايي : همسا نيول د مؤمن نښه او د پېغمبرانوسنت دی. (سنن النبي)

 

د سپينوجامو سپارښتنه

 ðد پېغمبراکرم زیاتره جامې سپينې وې او ويل يې : ((ژوندیو ته مو سپینې جامې ورواغوندﺉ او مړي مو پکې کفن کړئ.)) (سنن النبي)

 

په جامه کې ساده ګي

ðپېغمبراکرم يوه زړه او پيوندي چپنه هم درلوده،چې کله کله يې اغوسته او ويل يې:((زه مریى يم او د مریانو جامې اغوندم.)) (سنن النبي)

 

څوک چې مې له سنته مخ واړوي؛له ما څخه نه دى

ðپېغمبراکرم حضرت ابوذر ته وصيت وکړ:(( ابوذره!کلکې جامې اغوندم،پر خاورو کېنم،تر خوراک وروسته ګوتې څټم،پر بې کتې خره سپرېږم او له ځان سره بل هم کېنوم،چې له سنتو مې مخ واړوي؛نو له ما څخه نه دی.)) (سنن النبي)

 

سپين چرګ يې ساتلى و

ðسپين چرګ مې ملګرى دى او دښمن يې د خداى دښمن دی. هغه د خپل خاوند ساتنه کوي او په شاوخو کې د اوو نورو کورو ساتنه هم کوي . (سنن النبي)

 

د پېغمبراکرم د سترګو رڼا

 ðلمونځ مې د سترګو رڼا او اوخوند مې په ښځو کې دى. (سنن النبي)

 

غوره خلک

ðپوه شئ ،چې په تاسې که تر ټولو ‏غوره هغه دی ،چې له خپلو ښځو سره مهربانه وي او زه په تاسې کې تر ټولوغوره يم.  (سنن النبي)

 

تر ابراهيم هم غيرتي

ð پلار مې،ابراهيم ‏غيرتي و،چې زه تر هغه هم غيرتي يم . (سنن النبي)

 

درې حلالې لوبې

ðدرې ‏لوبې حرامې نه دي : لينده کارول،د ښوونې لپاره له اس سره لوبې ‏او له ښځو سره لوبې،چې سنت دي . (سنن النبي)

 

د لمانځه فرمان

ð پراهل بيتو‏،چې تنګسه راتله؛نو د خداى رسول ‏وويل: ((پاڅېږﺉ او لمونځ وکړئ؛ځکه خداى پر دې کار ‏ ګومارلى يم او وايي : خپل اهل بيت دې لمانځه ته راوبله او ته پرې صبر وکړه او موږ له تا روزي نه غواړو او پوه شه،چې ښه راتلونکې ‏د پرهېزګارانو ده.)) (سنن النبي)

 

اهل بيتو ته د خداى ځانګړي نعمتونه

ðزموږ د اهل بيتو ځواني په دې کې ده : څوک چې پر موږ ظلم کوي، ترې تېرېږو او چاچې بې برخې کړي يو،بښو يې. (سنن النبي)

ð موږ اهل بيتو ته اوه څيزونه راکړل شوي،چې پخوانيو ته نه دي ورکړل شوي او نه به چا ته ورکړل شي : په زړه پورې څېره او ورين تندى،روښانه وينا او بلاغت،مړانه او اتلولي،علم او حکمت او له ښځو سره مينه . (سنن النبي)

 

له خدایه شرم

ðپېغمبراکرم حضرت ابوذر ته وصيت وکړ:(( ابوذره!له خدایه وشرمېږه،پر خداى قسم! تشناب ته،چې ځم؛نو ‏سر پټوم ؛ځکه له هغو دوو پرښتو شرمېږم،چې راسره دي.)) (سنن النبي)

ðله خدايه بشپړه حياء وکړئ .( مصباح الشريعة \ ٨٦)

 

د ډوډۍ خوړلو ‏آداب

ðپېغمبراکرم(ص) ‏د ډوډۍ خوړلو‏ پر مهال پښې راټولولې؛لکه لمانځه ته،چې کېناسته او کله به زنګون کېږد هم کېناسته او ويل يې:(( زه مریى ‏ يم او د مریانو په څېر ‏ډوډۍ خورم او د هغوى په څېر کېنم.)) (سنن النبي)

 

ډېرګرم خواړه

ðخداى موږ ته اور خوړلو ته نه دى راکړى اوګرمه ډوډۍ برکت نه لري؛نوخواړه مو ساړه کړئ . (سنن النبي)

 

فالوده

ðيوه ورځ يارانو ورته فالوده راوړه،پېغمبراکرم ورسره وخوړه او بيا يې وپوښت : ((دا خواړه له څه جوړېږي؟)) ورته وويل شول: له غوړيو او شاتو. ویې ویل:(( ښه خواړه دي.)) (سنن النبي)

 

د خوړو د لوښي برکت

ðد خوړو لوښی يې پخپلو ګوتو پاکاوه او ويل يې : ((په لوښي کې د پاتې خوړو برکت ډېر وي.)) (سنن النبي)

ðآنحضرت(ص) ‏په لاس کې اوبه څښلې او ويل يې : ((تر ټولو پاک لوښی لاس دی.)) (سنن النبي)

 

د خوړو وخت

ð‏څو پوره وږي شوي نه يو؛نو ډوډۍ نه خورو او د خوړلو پر مهال‏ ځان پوره نه مړوو . (سنن النبي)

 

تواضع

 ðحضرت ابن خولي(رض) په يوه لوښي کې د څښتن استازي ته ‏شات او شيدې راوړې؛نوآنحضرت(ص) ‏ورته وويل:((دوه ډوله څښاک په يو لوښي کې؟!))‏له خوړو يې ډډه وکړه او ويې ويل : ((خوړل يې درته نه حراموم؛خو ویاړ ‏او مباهات مې هم نه دي . د دنيا د مال د ډېروالي له امله د قيامت د ورځې حساب کتاب ته وارختا يم،‏‏تواضع مې خوښه ده؛ځکه ‏که څوک د خداى په لار کې تواضع ‏وکړي؛نو خداى به يې رتبه او درجه لوړه ‏کړي.)) (سنن النبي)

 

په هرې مړۍ پسې شکر

ðرسول اکرم په هرې مړۍ ويل : ((خدايه!ستاېنه ځانګړې ستا ده،چې خواړه دې راکړل او په اوبو دې ماړه کړو؛نو ستاېنه او حمد يوازې ستا دې، بې له دې،چې ستا ناشکري وکړم او يا له تا لاس واخلم او يا دا چې ځان بې له تا بې نيازه وبولم.)) (سنن النبي)

 

سرکه

ðسرکه ښه خواړه دي . خدايه! سرکه راته مبارکه کړې؛ځکه تر ما مخکې هم د پېغمبرانو خوراک هم و. (سنن النبي)

ðسرکه او زيتون د پېغمبرانو خواړه دي . (سنن النبي)

 

د څارويو پښتورګي يې نه خوړل

ðحضرت علي وايي: د خداى رسول د څارويو پښتورګي نه خوړل ؛ خو خوړل يې نورو ته نه حرامول او ويل يې:(( ځکه یې نه خورم،چې پښتورګي د ځناورو متيازو ته نږدې دي.)) (سنن النبي)

 

دخوړو پر مهال‏ يې پڼې اېستې

ðد خوړو پر مهال مو پڼې وباسئ ؛ځکه ‏هم سنت دى او هم  پښې‏مو آراموي. (سنن النبي)

 

حلوا

ð آنحضرت(ص) ‏ته يې حلوا راوړه؛خو و يې نه خوړه.ورته وويل شول: پېغمبره! ولې حلوا حرامه ده؟ ويې ويل:((حرامه نه ده؛خو زه نه غواړم ځان په داسې خوړو روږدى کړم.)) (سنن النبي)

 

 ‏سخته ناورغي

‏ð د پېغمبراکرم تبه وه،حضرت ابوسعيد خدري پر هغه ټوټه لاس کېښود،چې پر پېغمبر(ص) پرته وه او‏ د پېغمبر(ص) پر تبه پوه شو. ورته يې وويل:اى د خداى رسوله! ډېره ‏تبه لرې ! آنحضرت‏(ص) وويل:((موږ داسې يو،بلاوې راباندې سختې او اجرونه او ثوابونه مو دوه ګرایه ‏دي.)) (سنن النبي)

 

د جنابت غسل

ðجبرئيل راته حکم ‏کړ‏ى،چې د اوداسه او د جنابت د غسل پر مهال ‏ګوته په ګوته کې وچورلوم. (سنن النبي)

ðجبرئيل راته حکم کړی،چې د جنابت د غسل پر مهال په خپل نامه کې هم ګوته ووهم. (سنن النبي)

 

لمونځ

ð ابوذره!خداى زما د سترګو رڼا په لمانځه کې اېښې‏او‏ راباندې ګرانه کړې یې ده؛لکه ‏خواړه یې،چې پر وږي او اوبه پر تږي ګرانې کړي دي . (سنن النبي)

ðبيا يې وويل: وږى پرخوړو او تږى پر اوبو مړېږي؛خو زه په لمانځه نه مړېږم. (سنن النبي)

ðقسم پر هغه خداى،چې زه يې پېغمبر کړم،جبرئيل له اسرافيل څخه او هغه هم له خداى راته راوړي :‏که څوک د روژې د مياشتې په وروستۍ شپه لس رکعته لمونځ وکړي او په هر رکعت کې يوځل سوره (حمد) اولس ځل د((قل هو الله احد)) سورت او په رکوع او سجده کې لس ځل ((سبحان الله والحمدالله ولااله الا لله والله اکبر)) ووايې او تر دوو رکعتونو وروسته ‏سلام  واړوي او تر لس رکعتو‏ وروسته زر ځل ((استغفرالله)) ووايي او ورپسې سجدې  ته ولاړ شي او ووايي : (( يا حى يا قيوم  يا ذى الجلال ولاکرام يا رحمن الدنيا ولآخره وحيهما،يا رحيم الرحمن،يا اله اولالين ولاخرين اغفرلنا ذنوبنا وتقبل منا ملا ئنا وحيامنا وقيامنا)) او بيا يې ددې لمانځه او چا چې وکړ د ثواب په باب ډېرې خبرې وکړې،‏‏ويې ويل : دا لمونځ يوازې خداى ماته او زما امت ته راډالۍ کړ ،چې له ما مخکې يوه پېغمبر ته يې هم ورنه کړ.)) (سنن النبي)

ðد کمکي او لوی اختر پر ورځ یې د خداى رسول ته وويل:څه به وشي،چې په خپل جومات کې لمونځ وکړئ ؟پېغمبر اکرم وويل:(( خوښ يم ټول بدن مې اسمان ته وښيم.)) (سنن النبي)

ð علي! تر فرض لمانځه ‏ وروسته د آيت الکرسي ويلوسپارښتنه درته کوم ؛ځکه ‏دا کار يوازې پېغمبران ،صديقين او شهيدان کوي . (سنن النبي)

ð پېغمبراکرم(ص)‏‏د ويدېدو ‏پر مهال آيت الکرسي ويله او ويل ‏يې : ((جبرئيل ‏راغى او ويې ويل : محمده!چې ويدېږې؛نو پيريان درباندې جادو کوي؛نو تر ويدېدو مخکې آيت الکرسي وايه.)) (سنن النبي)

 

د ګناهونوکفاره

ðد خداى رسول به رمضان او شعبان دواړو‏مياشتو کې روژه ‏و او دا دواړې مياشتې ‏يې سره نښلولې؛خو نور ‏يې له دې کاره ژغورل او ويل ‏يې : (( دا دواړې مياشتې د خداى مياشتې دي او پکې روژه نيول د ګناهونوکفاره ده.)) (سنن النبي)

 

په خپل لاس مرسته

ðزه به څو څيزونه پرېنږ‏دم : پر بې کتې خره سپرېدل،له مریانو سره پر پوزي ناسته او ورسره خوړل او په خپل لاس بېوزلي ‏ته صدقه ورکول. (سنن النبي)

 

هغه آیت چې فضیلت یې تر زر آيتونو ډېر دی

ðآنحضرت(ص)‏،چې ‏مسبحات نه و ويلي،نه ويدېده او ويل يې:((په دې آيتونوکې يو آيت دى،چې فضيلت يې تر زر آيتونو زيات دى.)) ورته وويل شول : مسبحات کوم سورتونه دي؟پېغمبراکرم وویل: ((حديد، حشر ،صف ،جمعه او  تغابن)) (سنن النبي)

 

سورة اعلى

ð پرآنحضرت (ص) ‏د((سبح اسم ربک الاعلى )) آيت ګران و او ویې ويل :(( مکائيل ‏لومړى تن و،چې د سبح اسم ربک الاعلى سورت یې ووايه.)) (سنن النبي)

 

تلاوت

ðآنحضرت(ص) د قرآن تر  لوستو مخکې ويل: اعوذبالله من الشيطان الرجیم . (سنن النبي)

ð‏جبرئيل راته امر وکړ،چې قرآن پر ولاړه تلاوت کړم . (سنن النبي)

 ðجبرئيل راته امر کړى،چې قرآن پر ولاړه ووايم ،چې په رکوع کې د خداى حمد او په سجده کې يې تسبيح او پر ناسته دعا وکړم. (سنن النبي)

 

د ښايست شکر

 ðد خداى رسول،چې به هېندارې ‏ته کتل،داسې یې ويل : ((د خداى شکرونه او ستاېنه،چې زما پيدايښت يې بشپړ کړ او زما څېره يې ښکلې پيدا کړه او د نورو د نيمګړتياوو پر وړاندې يې راته ښايست راوباښه او د اسلام لارښوونه یې راته وکړه‏ او د نبوت له لارې یې راباندې ‏منت کېښود.)) (سنن النبي)

ðد خداى رسول،چې هندارې ته کتل؛نو ويل ‏يې:(( د خداى شکرونه او ستاېنه،چې زه يې ښکلى پيدا کړم او د نورو د نيمګړتياوو پر وړاندې‏ يې ښايست راکړ.)) (سنن النبي)

 

جامې

ðآنحضرت(ص)،چې جامې اېستې؛نو له کيڼ اړخه ‏يې اېستې او د جامو اغوستو پر مهال ‏يې ‏د خداى ستاېنه او شکر کاوه.بيا يې يو بېوزلی ‏راغوښته او‏ زړې جامې يې ورته ورکولې او ويل یې : ((‏که چا د خداى د رضا لپاره يو بېوزلي ‏ته خپلې جامې ورکړې؛نو که د جامو خاوند ژوندى وي که مړ،څو‏ دا جامې د بېوزلي ‏پر غاړه وي؛نو د جامو خاوند به د خداى په پناه کې وي .)) (سنن النبي)

 

د امام حسن اوحسين لپاره د پېغمبر(ص) تعويذ

ðحضرت علي وايي : پېغمبر اکرم حسن او حسين ته داسې تعويذ وکړ: (( د لوراند او لورین څښتن په نامه،ځان،مال ، دين ،کورنۍ، اولاد د کار پايله او‏ څه چې مې پالونکي ‏راکړي،ټول د خداى عزت، عظمت، جبروت،سطلنت، رحمت، رافت، مغفرت،قدرت او قدرت  سره ږدم او د خداى له الفت،عزت ،احسان او نعمت سره به د خداى د رسول په لوري او‏ څه چې له خداى غواړم، پناه وروړم . پناه غواړم ،له هر زهرجن اوله بې زهره ځناوره،له پېري او انسانه او څه چې پرځمکه حرکت کوي او ترې بهر راوځي او د هغه څيز له شره پناه غواړم،چې له اسمانه راوري او څه چې پورته خيژي او د هر ځناور له شره،چې واک يې زما په لاس کې دی . ‏په رښتيا،چې پالونکی مې په سمه دى او هغه هر کار کړاى شي او بې له هغه بل ځواک نشته او د خداى درود دې زمونږ پر بادار حضرت محمد او د هغه پرکورنۍ وي.)) (سنن النبي)

ðحضرت جابر بن عبدالله انصاري(رض) وايي : آنحضرت(ص) وویل: ((جبرئيل راته وويل،چې هر وخت ووايه : الحمد الله رب العالمين.)) (سنن النبي)

 

د شعبان مياشت

ðد پېغمبراکرم  يارانو د پېغمبر په مخکې د شعبان مياشتې د فضائلو خبره رامنځ ته کړه،چې پېغمبر اکرم وويل : (( ډيره مبارکه مياشت ده اوهغه زما مياشت ده .)) (سنن النبي)

 

د خداى او د پېغمبر مياشت

ðپېغمبراکرم وويل : شعبان زما مياشت او رمضان د خداى مياشت ده. (سنن النبي)

 

غوره دعا

ðپېغمبراکرم(ص) وويل :تر ټولوغوره دعا زما وي او تر ما مخکې د پېغمبرانو دعا ده او هغه دا ده : (( لا اله الله له وحده وحده وحده لا شريک له،له الملک  و له لحمد،يحيى ويميت وهو حى لايموت بيده الخير وهوعلى کل شی قدير)) بيا يې وويل : دا د دعا يوازې الهي تمجيد او تقديس دی.)) (سنن النبي)

 

د پېغمبر(ص) شفقت

 ðپېغمبراکرم ‏په يوه اوږده حديث کې وويل : (( هر نبي او پېغمبر خپل قوم ته ښيرې وکړې؛خو‏ دعا یې د خپل امت لپاره د قيامت پر ورځ شفاعت ګرځولې ده .)) (سنن النبي)

 

د فضيلت د بيان پرمهال د پېغمبراکرم ادب

ðد خداى رسول،چې ‏د خپل فضيلت  يادونه وکړه؛نو ‏ويل یې:سره له دې،چې زه دا فضيلت لرم؛خو پر چا پرې ویاړنه‏ نه کوم .))

 

د مؤمن ذکر

ðيو سنت دا دى ،چې هر مؤمن د “غدير د اختر” پر ورځ سل ځله دا ذکر ووايي : الحمدالله الذى جعل کمال دينه وتمام نعمته بولاية اميرالمؤمنين على بن ابى طالب . (سنن النبي)

 

د ساداتو د زيارت سنت

ðد بني هاشمو عیادت فرض او واجب دى او زيارت یې سنت دی . (سنن النبي)

 

د پېغمبر(ص) د وجود رڼا

 ðړومبى څيز،چې خداى وپنځاوه،زما رڼا وه،چې له خپلې رڼا ‏يې جوړه او د خپل عظمت له جلاله يې رابېله کړه .)) (سنن النبي)

 

 

 

ړومبى مخلوق

ðخداى زه او اهل بيت له ‏ داسې خټې او خمبيرې جوړ کړو،چې ‏څوک يې  هم ترې نه و جوړ کړي  او موږ د خداى تر ټولو ړومبي مخلوقات يو. (سنن النبي)

 

په زړه پورې څېره

ð‏يوسف تر ما ښکلى و؛خو زما څېره ترې په زړه پورې ده. (سنن النبي)

 

د خداى او پېغمبر ترمنځ يوه پرده

 ð (د معراج په شپه) پر براق (يو ډول اس )سپور شوم او داسې پردې ته ورسېدم،چې هاخوا ترې خداى و. (سنن النبي)

ð(د معراج پر شپه) خداى مې د زړه په سترګو وکوت او زما او د هغه ترمنځ يوازې الهي جلال واټن و. (سنن النبي)

ðپېغمبراکرم وويل:(دمعراج پر شپه)،چې اووم اسمان ته ورسېدم؛نو راسره ټولې پرښتې او جبرئيل ودرېدل او پاتې شوې او زه هم د خداى حجاب ته ورورسېدم؛ اويا حجابو ته ورننووتم،چې له يو حجابه تر بل حجابه د عزت،قدرت، بها،کرامت،کبريا، عظمت، نور، ظلمت او وقار نور حجابونه ول‏ څو د جلال حجاب ته ورورسېدم ؛نو‏ خداى ته مې عبادت وکړ او ودرېدم. (سنن النبي)

 

د خداى او پېغمبراکرم ټاکلى وخت

ðزه له خداى سره يو وخت لرم،چې هيڅ پرښته او پېغمبر،چې خداى يې زړه پر ايمان ازميېلى،دهغه د تحمل قدرت نه لري .)) (سنن النبي)

 

پېغمبراکرم ته د خداى ډالۍ

ðداسې ورځ يا شپه ‏نه وه،چې پکې د خداى له اړخه راته ډالۍ نه راتله . (سنن النبي)

 

د پوهانو فضيلت

ð  پر خلکو د پوهانو فضيلت داسې دى؛لکه زه يې، چې پر تاسې پر ډېر ټيټ  لرم . )) (وګورئ: الجامع الصغیر، د منادي له شرح سره ۴۳۲/۴)

 

اسلام

د خداى  استازی  وايي : (( خداى هغوى عزتمن کړل،چې اسلام يې ومانه؛حال دا چې تر اسلامه مخکې خوار وو او په  اسلام  يې  ډېرې طبقاتي او توکمېزې دبدبې له منځه يووړې او اسلام وويل :” که سپين دي  که  تور،عرب وي  که  عجم، ټول  د “آدم”  اولاده  ده او خداى  “آدم” له خاورې پیداکړى،چې د قيامت پر ورځ  به تر ټولو هغه پر خداى ګران وي،چې تر ټولو يې تقوا زياته  وي”. )) (فروغ کافي ۲/ ۲۱)

 

د پېغمبراکرم مناظره

ðد “برهان” په  تفسير کې روايت شوى،چې د خداى استازى د کعبې په څنګ کې ناست و،چې  يوه  ډله،چې”وليد د مغېره مخزومي زوى”،”ابوبختري د هشام زوى”، “ابوجهل د هشام زوى”،”عا صم د وائل سهمي زوى”،”عبدالله د بني اميه مخزومي زوى” او نور پکې هم ول،له  پېغمبراکرمه راتاو شول . رسول الله  خپل  يو يار ته د خداى کتاب لوسته او د خداى حکم يې ورته څرګنداوه . هغوى يو بل ته وويل : (( د “محمد” دين  ‌ډېر  پر مخ  روان دى او خبرو يې  خورا پلويان پیدا کړي؛ نو راځئ تنګ  يې کړو او پر وړاندې يې دلايل  راوړو او خبرې  يې رد کړو،چې  د يارانو په  مخ  کې مقام یې راټيټ شي او خبرې يې له  ارزښته ولوېږي،له خپلې بې  لارۍ  لاس واخلي او پښېمانه شي او که  له دې لارې مو وکړاى شول مخه يې ونيسو؛نو ښه ترښه  که نه؛نو په توره به ورسره مبارزه وکړو.)) خبره چې تردې راورسېده؛ابوجهل وويل:

((څوک به دا کار پر غاړه  واخلي او له  “محمد” سره به خبرې واړوي را واړوي او مات يې کړي .))

 “عبدالله بن ابي اميه”  وويل : (( دا کار ماته راوسپارئ، چې اصيل او شريف يم او پخې خبرې کوم.))

“ابوجهل” وويل: (( درسره منو يې ،ټول  پېغمبر  ته ولاړ شئ.))  “عبدالله” خپلې خبرې پيل کړى : (( محمده ! غټې غټې خبرې کوې او وايې،چې د خداى پېغمبر يې؛خو موږ دا وايو،چې د هستۍ له خداى سره نه ښايي ستا په څېر استازى او پېغمبر  ولري؛ځکه ته خو زموږ په څېر عادي بشر يې او پر موږ هیڅ  امتياز نه لرې،زموږ په څېر خورې،څښې او په بازار او کوڅو کې روان يې . دا  د “روم”  او “فارس” پاچايان دي،چې خورا زياتې شتمنۍ لري؛غټې غټې ماڼۍ لري او ډېر مريان لري؛نو نړۍ پال،چې تر ټولو پاچايانو ستر دى او ټول يې  بندګان دي؛ نو ښايي استازى يې له هغوى غوره  وي؟؛نو که وغواړي پېغمبر راولېږي؛نو شتمن رالېږي،نه بېوزلی او فقير، چې وايي دا قرآن  د  خداى له لوري دى؛نو ولې د دوو سترو ښارونو پر سترو خلکو نازل نه شو؟ او ولې په مکه کې پر شتمنو؛ “وليدبن مغېره” او يا په “طايف” کې  پر “عروة بن مسعود ثقفي” نازل نه شو؟!))

 د “عبدالله”  خبره، چې تردې ځايه راورسېده؛نو د خداى استازي ورته وويل: (( د خدای بنده ! خبرې  دې  پاى  ته ورسېدې؟))

 عبدالله : ((هو ! ؛خو دا مې هم واوره،چې پر تا به  ايمان را نه وړو؛خو داچې د مکې په سيمه کې  چينې راوخوټوې؛ځکه  مکه یوه  دره  ده ، چې هواره یې کړې او پکې چينې راوخوټوې،چې موږ ورته اړين يو او د کجورو او انګورو باغونه ولرې،چې هم ترې په خپله ګټه واخلې او هم ترې نورو ته ګټه ورسوې او هم  اسمان ټوټې ټوټې کړې او پر موږ يې راګوذارکړې؛لکه څنګه چې ته په خپله وايي :”که  د اسمان ټوټې پرې راکوزې شي؛نو هغوى به وايي،چې يوازې  راغونډې شوې وريځې دي” او کېداى شي موږ هم هماغه خبره ورته وکړو. که دا ټول کارونه وکړې؛نو بيا به هم پر تا ايمان را نه وړو؛خو دا چې خداى او پرښتې يې راوړې او زموږ  پر وړاندې يې ودروې، چې له نږدې يې ووينو او د سرو زرو کور ولري او  موږ ته هم  پکې برخه راکړې او موږ غني کړې؛ځکه ته په خپله وايې :”انسان،  چې ځان غني وليد؛نو سرغړنه کوي” او  يا دا چې  اسمان ته  والوزې او يوازې اسمان ته د الوتو له امله  هم درباندې ايمان نه راوړو؛بلکې د خداى له لوري بايد موږ ته  ليک راوړې،چې پکې يې ليکلې وي :” دا ليک  د خداى له  لوري “عبدالله  بن اميه مخزومي” او  يارانو ته يې دى، چې پر “محمد بن عبدالله” ايمان راوړئ؛ ځکه هغه  زما پېغمبر دى او ويناوې يې رښتينې وګڼئ ؛ځکه خبرې يې زما ويناوې دي “.محمده ! څه مو، چې  وويل،که و دې کړل؛ نو بيا هم نه پوهېږم، چې ايمان به  درباندې راوړو او که نه او که اسمانو ته مو هم يوسې؛نو کېداى شي ووايو جادو دې را باندې کړى دى . ))

 رسول الله صلی الله علیه و اله وويل : (( خدايه ! ته د هرې خبرې اورېدونکى يې او له  هر څه خبر يې !! بيا يې وويل:

 ((را به شو ستاسې خبرې ته،چې و دې ويل: د “روم”  او “فارس”  پاچايان خپل استازي  له  شتمنو او زورورو ټاکي، چې کار یې په  خپل ځاى کې سم دى؛خو کار یې د  خداى له  کار سره  توپير لري  او خداى په  خپل  کار کې ځانګړى تدبیر لري او هغه خو څه  ستاسې  پر لار روان نه دى او نه به  روان شي او هغه، هغسې کوي،چې خوښه يې وي او که د خداى پېغمبرانو ماڼۍ درلودې،چې  پکې يې خاني کوله او يا خدمت ته يې مريان درلودل،چې پرې  غره  ول؛نو پر دې  کارونو له خلکو لرې کېدل او دې کار به  د نبوت مقام بې ګټې کړى و او د خلکو لارښوونه به سمه نه ترسره کېده ؟! او ستا دا خبره، چې که  ته پېغمبر وې؛ نو پرښته به هم درسره وه،چې ستا پر نبوت يې شاهدي ويلې واى،چې ستاسې دا خبره  ډېره  حیرانونکې ده ؛ځکه پرښته په سترګو نه ليدل کېږي او که ويې وينئ؛نو بيا  به  ووياست،چې دا خو پرښته نه ؛بلکې بشر دى؛ځکه که پرښته هم ځان دروښيي؛نو د بشر په  بڼه یې ښيي،چې وکړاى شئ ، ورسره خبرې وکړئ  او پر نبوت مې درته شاهدي  درکړي؛نو که  داسې  وکړي بيا به هم  باور نه کوئ  او وياست به،چې دا پرښته نه ده او بشر دى،چې ستا په ګټه شاهدي  ورکوي او دا چې  پر ما د کوډو تور لګوئ  او وايئ،چې  پر تا جادو  شوى؛نو دا بې بنسټه  خبره  ده،څنګه  ماته  داسې خبره کوئ،حال دا چې په عقل او پوهه  کې تر تاسې غوره او پوخ يم. آيا له هماغه پيله  تاسې له ماکومه تېروتنه  ليدلې او يا  له  ما  مو دروغ  اورېدلي او  يا مو له ما داسې کار ليدلى،چې پر عقل سم نه وي؛نو تاسې خپله ووايئ، چې داسې انسان له  داسې کړنو سره  پر خپل ځان متکي دى او که پر الهي او معنوي قدرت ؟!  او يا دا چې وايئ: قرآن ولې د دوو ښارونو پر دوو سترو خلکو نازل نه شو او د دې  خبرې ځواب مو هم روښانه دى؛ځکه خداى عظمت او انساني کمال په شتمنۍ کې نه ويني؛لکه  چې تاسې يې وينئ، هغه د دنيا شتمنۍ ته لږ شانته ارزښت هم نه ورکوي؛لکه څنګه  چې تاسې ورته قايل ياست او هغه  له چا نه ډارېږي؛ لکه چې تاسې له زورورو ډارېږئ او په  درنه سترګه ورته ګورئ او دغه ډول کسان  هر ډول مقام ان نبوت ته هم  وړبولئ  او دا چې  وياست هله به درباندې ايمان راوړو، چې چينې وبهوې؛نو دا خبره د عقل،تفکر  او منطق  پر بنسټ نه ده ؛ځکه داسې معجزې غواړئ،چې  د عملي  کېدو وړ نه دي او که يوه  برخه يې هم  تر سره شي؛نو پر پېغمبرۍ دليل  کېداى نه شي (؛ لکه د باغونو او ويالو درلودل) “محمدرسول الله” تردې غوره  دى،چې د خلکو له  ناپوهۍ ناوړه  ګټه  واخلي او په  څه چې نبوت تصديقېداى نه شي،خپله مشري پرې ثابته کړي او يو لړ داسې معجزې غواړئ،چې که ترسره شي؛ تاسې به په خپله هلاک شئ،حال دا چې پېغمبر خو معجزه د حقيقت  د جوتېدو لپاره کوي،نه د خلکو د هلاکېدو لپاره،چې  پردې غوښتنه خپل هلاکت غواړئ او خداى هغه نه کوي، چې خپل بنده پرې هلاک کړي او ستاسې يو لړ داسې معجزې او غوښتنې،چې د کېدو وړ نه دي (؛لکه د خداى او پرښتو ليدل او د خداى له لوري د ليک راوړل) لنډه دا چې ستاسې دا ټولې خبرې پلمې دي،چې اوس د ټولو ځوابو ته  غوږ شئ.

دا چې ته وايي: ته بايد باغونه ولرې،چې اوبه پکې روانې وي او چينې راوبهوې،چې ستا ددې غوښتنو سرچينه ناپوهي ده؛ځکه ته د معجزو له رازه بې خبره يې او که زه دا هر څه  وکړم، چې ته يې وايي؛ نو آياستا په ګومان به پېغمبر يم؟ ستا دا غوښتنې هم دې ته ورته دي، چې که ووايې که پاڅېږې او روان شې؛نو درسره به ومنم،چې پېغمبر يې؟ آيا ته او ياران دې په “طایف” کې باغونه نه لرئ؟ او آيا په هغو باغونو کې اوبه روانې نه دي؛نو آيا د هغو په درلودو پېغمبران شوي ياست،چې زه هم په درلودو یې پېغمبر شم؟ او دا چې ته وايې اسمان ټوټې کړه او راګوذار يې کړه؛نو په دې حال کې به هرو مرو هلاکېږئ. په دې غوښتنو غواړئ،د خداى استازى تاسې هلاک کړي؟خو څه چې انګېرئ، هغه ترې خورا مهربان دى، هغه مو نه هلاکوي؛بلکې د خداى له لوري  ﻻرښوونې ته مو  دﻻيل درښيي؛خو دې حقيقت ته مو پام وي،چې د پالونکي دﻻيل د خپلو بندګانو په خوښه نه دي ،چې هرڅه وغواړي،ترسره يې کړي؛ځکه انسان ښايي په دې اړه خپل خير او شر و نه پېژني او داسې څه وغواړي،چې  په  خير يې نه  وي . عبدالله! تر اوسه دې داسې طبيب ليدلى،چې د ناروغ  په خوښه  ورته درمل  ورکړي  او ايا داسې قاضي دې ليدلى،چې د دعوا د لوري په خوښه  له مدعي او شاکي دليل وغواړي؟ او ته چې وايې: موږ ته  خداى او پرښتې راوړه،چې پر نبوت دې راته شاهدي ورکړي؛نو دا کار هم ځکه نه کېدونکى دى، چې خداى خو څه  د انسان په څېر نه دى،چې وليدل شي،روان شي او تاسې يې  ووينئ  او د سرو زرو د کور درلودل خو څه زما پر نبوت دليل کېداى نه شي او آيا  تا اورېدلي،چې  د “مصر” باچايان د سروزرو کورونه لري؟

 عبدالله : هو!

رسول الله : آياهغوى د سروزرو د کورونو په درلودو د نبوت د مقام خاوندان شول؟

 عبدالله :نه!

 رسول الله: نو د سروزرو کور درلودل هم نه شي کړای  “محمد” د نبوت  مقام  ته  ورسوي او ته،چې وايې، اسمان ته والوزه او له هغه ځايه راته له  خدايه ليک راوړه ؛نو دا کارهم نه کېدونکى دى او دا يوازې  پلمه  ده؛ځکه اسمان ته ختل تر راکوزېدو سخت دي؛نو ته، چې په خپله وايې : اسمان ته پرختو به درباندې ايمان را نه وړو؛بلکې له اسمانه، چې راکوزشوې  او له ځان سره دې ليک راوړ؛نوايمان به راوړو؛نو اسمان ته پرختو، چې راباندې ايمان رانه وړئ؛نو له اسمانه پر راکوزېدو به راباندې څنګه ايمان راوړئ او بيا ته په وروستيو خبروکې په خپله هم اعتراف کوې،چې که  دا ټول کارونه وکړې؛نو بيا هم معلومه نه ده، چې ايمان به درباندې راوړو او که نه؛نو ته دداسې حجت پر وړاندې اينډه  او ځېل کوې؛نو ځواب موهماغه دى، چې خداى وايي:

 ((ورته ووايه، محمده!  خداى (له هغه) پاک او سپېڅلى دى (چې تاسې يې فکرکوئ ) او زه هم يوازې يو بشر پېغمبر يم؛ نو له  ماسره نه ښايي چې خداى ته حکم وکړم او په خپله خوښه ترې معجزې وغواړم.)) (د برهان تفسير )

 

له تېرو به لاروي وکړئ

ðپېغمبر اکرم “خيبر” ته د تګ پر مهال،چې د “ذات انواط” نومي ونې ته ورسېد،چې د مشرکانو ونه وه او خپلې وسلې يې پکې راځوړندولې. د پېغمبر يارانو وويل: د خداى استازيه ! موږ ته هم يوه “ذات انواط” وټاکه ؛ لکه چې مشرکان يې لري. رسول اکرم وويل: سبحان الله ! دا غوښتنه مو د موسى د قوم په څېر ده،چې ويې ويل:موږ  ته هم  يو داسې خداى وټاکه، چې د ليدو وړ وي؛ لکه هغوى چې خدايان لري بيا پېغمبراکرم وويل: پر خداى قسم،چې له تېرو به  لاروي  وکړئ. (صحيح ترمذي  ٦/ ٢٩ )

ðد خداى استازي وويل:(( یوازې احسان او نیکي د انسان عمر ډېرولاى شي او یوازې ښيرا او ناوړه کړه الهي تقدیر اړوي او ګناهونه انسان له الهي نعمتونو بې برخې کوي .))

(ابن ماجه۱/ ۲۴)،(حاکم؛ مستدرک ۱/ ۹۳ ) او احمد حنبل؛ مسند ۵/ ۲۷۷ او ۲۸۰، ۲۸۲ ) حاکم په مستدرک کې ددې روايت سموالى تاييدوي او ذهبي هم پرې نيوکه نه ده کړې .

 

د پېغمبر اکرم  ليکونه

 

د ايران پاچا ته ليک

ð ((د لوراند او لورين څښتن په نامه. له ((محمدرسول الله)) نه د “ايران”  پاچا “خسرو پرويز” ته؛ سلام دې پر هغه وي،چې پر خداى او استازي يې ايمان راوړي او ګواهي ورکړي،چې بې له خدايه بل خداى نۀ شته او “محمد” بنده يې او خلکو ته استازى يې دى،چې هغوى ،چې  ژوندي زړونه لري،له خداى او قيامته ووېروي او  پر کافرانو د خداى د عذاب وعده پرېکنده کړي؛نو اسلام راوړه، چې په امن کې شې او که سرغړونه دې وکړه؛نو د “مجوس” قوم ګناه به دې پر غاړه وي)) ( تاريخ يعقوبي2/77 )

 

 

“نجاشي” د حبشې  پاچا ته ليک

ð ((د لوراند او لورين څښتن په نامه . د ((محمدرسول الله)) له لوري د  حبشې ستر پاچا”نجاشي” ته؛سلام دې پر تا وي؛پر ډاډ ورکوونکي او ساتونکي خداى درود وايم او ګواهي ورکوم “عيسى” د “مريمې” زوى،د خداى روح  او کلمه ده،چې پاکلمنې پېغلې مريمې ته يې ورکړ او خداى “عيسى” له خپل روح پيدا کړ؛لکه څرنګه چې “آدم” يې په خپل لاس جوړ کړ. زه تا غني خداى او لاروۍ ته يې رابولم او له تا غواړم زما لاروى شې او پر هغه  خداى ايمان راوړې،چې  زه يې را لېږلى يم،چې زه پېغمبر يم. د خپل تره زوى؛”جعفر” او يو شمېر مسلمانان مې در لېږلي،چې درشي؛نو و يې منه  او  تکبر مۀ کوه،چې زه تا او لښکر دې خداى ته رابولم.د خداى له  پيغامه مې خبر کړې او نصيحت مې درته وکړ،نصيحت مې ومنه او درود دې پر هغه وي، چې د هدايت لاروى شي .)) (تاريخ طبري2/294 )

 

په مدينه کې د پېغمبراکرم منشور

ðد لوراند او لورين خداى په نامه. دا تړون دى د “محمدرسول الله” له لوري،له مؤمنانو،قريشو او د يثرب مسلمانانو سره او څوک،چې لاروي يې وي او ورسره يو ځاى شي او په جګړه کې ورسره برخه اخلي. دوى له نورو بيل واحد امت دي. مؤمنان بايد په خپلو منځو کې هيڅ بيوزلى و نۀ لري او په ورين تندي له خپلې شتمنۍ مسلمان ته څه ورکړي او پور يا د ويني تاوان يې ورکړي،يا په فکري مرستې د ستونزې هواري ته يې لار پيدا کړي.يو مؤمن دې هم،د بل مؤمن له همژمني سره بې د هغه له هوکړې،تړون نۀ کوي .پرهيزګار مؤمنان دې د هغو پر خلاف يو لاس شي، چې سرغړونه وکړي، پر نا حقه باج غواړي او يا فساد کوي،ان  که دا فساد کوونکى مو زوى وي . هېڅ مسلمان دې بل مسلمان د کافر د غچ له امله نۀ وژني او له کافر سره دې د مسلمان پر خلاف مرسته نۀ کوي. الهي امان يو دى او له ټولو بېوزله مسلمان کړاى شي،په نوم يې پناه ورکړي او مؤمنان له نورو خلکو بيل،په يو بل پورې تړاو لري.هغه يهود،چې له موږه لاروي کوي، په حقوقو کې مساوي دي او بايد تېرى پرې و نۀ شي او ملاتړ يې وشي.هېڅ مشرک قرشي ته د مال او ځان پناه مۀ ورکوئ او له مؤمنه يې مۀ خلاصوئ.هر مسلمان،چې ددې تړون مادې منلې وي او پر خداى او قيامت ايمان لري؛نو هېڅ قاتل ته به پناه نۀ ورکوي او مرسته يې نۀ کوي. د شخړو د حل مرجعيت خداى او استازى يې دى. د جګړې پر مهال يهودان له مسلمانانو سره د جګړې په لګښت کې شريک دي .يهود پر خپل دين  او مسلمانان او خپلوان يې پر خپل دين دي او چا،چې تېرى يا ګناه وکړه؛نو يوازې ځان او کورنۍ به يې هلاکه کړې وي او يهودان دې بې د”محمد” له اجازې نۀ وځي او د غچ جريمه دې نۀ پرېږدي.يهودان دې خپل لګښت کوي او مسلمانان دې خپل او له يو بل سره دې د هغو پر ضد مرسته نۀ کوي، چې له دې تړونوالو سره په جګړه کې وي او ترمنځ  دې يې يو بل ته زړۀ پاک او نيت ښه وي.څوک دې له خپل همژمني سره ناوړه چار نۀ کوي.د هغه ملاتړي شئ،چې تېرى پرې کېږي او د “يثرب” ښار تړونوالو ته حرام دى.هره شخړه او يا وژنه،چې ددې تړون په همژمنو کې وشي او  فساد ترې راولاړېږي؛نو د شخړې د حل مرجعيت خداى او استازى يې “محمد” دى .قرشيانو او هغو ته پناه ور نۀ کړئ،چې ورسره يې مرسته کړې وي.که پر “يثرب” يرغل وشو؛نو بايد ټول ترې دفاع وکړي.که مسلمانان او يهود سولې ته راوبلل شول؛نو په ورين تندي دې ورسره ومني؛خو نۀ له هغه سره،چې د خداى له دين سره جګړه کوي. ددې تړون همژمني ظالمان او بدچاري نۀ دي.څوک،چې له مدينې ووت؛په امان کې دى او څوک،چې راننوت هم په امان کې دى؛خو هغه،چې تېرى و او يا بدچار وکړي.( سيره ابن هشام :138_134 مخونه)

 

د دين آفت

ðد هر څيز لپاره آفت وي،چې تباه کوي يې او د دين آفت، نالايقه او ناوړه مشران دي . (نهج الفصاحه ٤٧٨)

 

 د ښېګڼو سرچينه

پېغمبراکرم(ص) وايي : ((پوهه او پراخه سينه د ټولو ښېګڼو سرچينه ده)).( سفينه البحار : حلم )

 

امانت ساتنه

ðد چا ډېرو لمونځونو،روژې،حج ،زكات،مستحباتو او شپې زمزمو ته مه ګورئ؛بلکې رښتيا ويلو او امانت ساتنې ته يې و  ګورئ .( الاختصاص : ۲۲۹ )

 

چې نه کار هلته څه کار

ðد يو چا د اسلام له نښو (يوه) داده،څه چې ورپورې اړه نه لري، خبرې پکې نه كوي . ( مستدرك الوسايل : ۹ \ ۳۴ )

 

 

 

 

 

 

 

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